पर्यावरण पर निबंध | Environment Essay in Hindi
Essay on Environment in Hindi
पर्यावरण, पर हमारा जीवन पूरी तरह निर्भर है, क्योंकि एक स्वच्छ वातावारण से ही स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। पर्यावरण, जीवन जीने के लिए उपयोगी वो सारी चीजें हमें उपहार के रुप में उपलब्ध करवाता है।
पर्यावरण से ही हमें शुद्ध जल, शुद्ध वायु, शुद्ध भोजन,प्राकृतिक वनस्पतियां आदि प्राप्त होती हैं। लेकिन इसके विपरीत आज लोग अपने स्वार्थ और चंद लालच के लिए जंगलों का दोहन कर रहे हैं, पेड़-पौधे की कटाई कर रहे हैं, साथ ही भौतिक सुख की प्राप्ति हुए प्राकृतिक संसाधनों का हनन कर प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसका असर हमारे पर्यावरण पर पड़ा रहा है।
इसलिए पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं प्राकृतिक पर्यावरण के महत्व को समझाने के लिए हर साल दुनिया भर के लोग 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस – World Environment Day के रूप में मनाते हैं। हमने कभी जाना हैं की इस दिवस को हम क्यों मनाते हैं। इस दिन का जश्न मनाने के पीछे का उद्देश्य लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है ताकि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सकारात्मक कदम उठा सकें।
और साथ ही कई बार स्कूलों में छात्रों के पर्यावरण विषय पर निबंध ( Essay on Environment) लिखने के लिए कहा जाता है, इसलिए आज हम आपको पर्यावरण पर अलग-अलग शब्द सीमा पर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका चयन आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं –
पर्यावरण पर निबंध – Environment Essay in Hindi
पर्यावरण, जिससे चारों तरफ से संपूर्ण ब्रहाण्ड और जीव जगत घिरा हुआ है। अर्थात जो हमारे चारों ओर है वही पर्यावरण है। पर्यावरण पर मनुष्य ही नहीं, बल्कि सभी जीव-जंतु, पेड़-पौधे, प्राकृतिक वनस्पतियां आदि पूरी तरह निर्भर हैं।
पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती हैं, क्योंकि पर्यावरण ही पृथ्वी पर एक मात्र जीवन के आस्तित्व का आधार है। पर्यावरण, हमें स्वस्थ जीवन जीने के लिए शुद्ध, जल, शुद्ध वायु, शुद्ध भोजन उपलब्ध करवाता है।
एक शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन जीने के लिए एक स्वच्छ वातावरण बहुत जरूरी है लेकिन हमारे पर्यावरण मनुष्यों की कुछ लापरवाही के कारण दिन में गंदे हो रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे सभी को विशेष रूप से हमारे बच्चों के बारे में पता होना चाहिए।
“ पर्यावरण की रक्षा , दुनियाँ की सुरक्षा! ”
पर्यावरण न सिर्फ जीवन को विकसित और पोषित करने में मद्द करता है, बल्कि इसे नष्ट करने में भी मद्द करता है। पर्यावरण, जलवायु के संतुलन में मद्द करता है और मौसम चक्र को ठीक रखता है।
वहीं अगर सीधे तौर पर कहें मानव और पर्यावरण एक – दूसरे के पूरक हैं और दोनों एक-दूसरे पर पूरी तरह से निर्भर हैं। वहीं अगर किसी प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित कारणों की वजह से पर्यावरण प्रभावित होता है तो, इसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ता है।
पर्यावरण प्रदूषण की वजह से जलवायु और मौसम चक्र में परिवर्तन, मानव जीवन को कई रुप में प्रभावित करता है और तो और यह परिवर्तन मानव जीवन के आस्तित्व पर भी गहरा खतरा पैदा करता है।
लेकिन फिर भी आजकल लोग भौतिक सुखों की प्राप्ति और विकास करने की चाह में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने से नहीं चूक रहे हैं। चंद लालच के चलते मनुष्य पेड़-पौधे काट रहा है, और प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर कई ऐसी प्रतिक्रियाएं कर रहा है, जिसका बुरा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है।
वहीं अगर समय रहते पर्यावरण को बचाने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो मानव जीवन का आस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
इसलिए पर्यावरण को बचाने के लिए हम सभी को मिलकर उचित कदम उठाने चाहिए। हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिए और पेड़ों की कटाई पर पूरी तरह रोक लगानी चाहिए।
आधुनकि साधन जैसे वाहन आदि का इस्तेमाल सिर्फ जरूरत के समय ही इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआं न सिर्फ पर्यावरण को दूषित कर रहा है, बल्कि मानव जीवन के लिए भी खतरा उत्पन्न कर रहा है। इसके अलावा उद्योगों, कारखानों से निकलने वाले अवसाद और दूषित पदार्थों के निस्तारण की उचित व्यवस्था करनी चाहिए,ताकि प्रदूषण नहीं फैले।
वहीं अगर हम इन छोटी-छोटी बातों पर गौर करेंगे और पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाने में अपना सहयोग करेंगे तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा।
पर्यावरण पर निबंध – Paryavaran Sanrakshan Par Nibandh
प्रस्तावना
पर्यावरण, एक प्राकृतिक परिवेश है, जिससे हम चारों तरफ से घिरे हुए हैं और जो पृथ्वी पर मौजूद मनुष्य, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, प्राकृतिक वनस्पतियां को जीवन जीने में मद्द करता है। स्वच्छ पर्यावरण में ही स्वस्थ व्यक्ति का विकास संभव है, अर्थात पर्यावरण का दैनिक जीवन से सीधा संबंध है।
हमारे शरीर के द्धारा की जाने वाली हर प्रतिक्रिया पर्यावरण से संबंधित है, पर्यावरण की वजह से हम सांस ले पाते हैं और शुद्ध जल -भोजन आदि ग्रहण कर पाते हैं, इसलिए हर किसी को पर्यावरण के महत्व को समझना चाहिए।
पर्यावरण का अर्थ – Environment Meaning
पर्यावरण शब्द मुख्य रुप से दो शब्दों से मिलकर बना है, परि+आवरण। परि का अर्थ है चारो ओर और आवरण का मतलब है ढका हुआ अर्थात जो हमे चारों ओर से घेरे हुए है। ऐसा वातावरण जिससे हम चारों तरफ से घिरे हुए हैं, पर्यावरण कहलाता है।
पर्यावरण का महत्व – Importance of Environment
पर्यावरण से ही हम है, हर किसी के जीवन के लिए पर्यावरण का बहुत महत्व है, क्योंकि पृथ्वी पर जीवन, पर्यावरण से ही संभव है। समस्त मनुष्य, जीव-जंतु, प्राकृतिक वनस्पतियां, पेड़-पौड़े, मौसम, जलवायु सब पर्यावरण के अंतर्गत ही निहित हैं। पर्यावरण न सिर्फ जलवायु में संतुलन बनाए रखने का काम करता है और जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएं उपलब्ध करवाता है।
वहीं आज जहां विज्ञान से तकनीकी और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिला है और दुनिया में खूब विकास हुआ है, तो दूसरी तरफ यह बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार हैं। आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण और बढ़ती टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ा रहा है।
मनुष्य अपने स्वार्थ के चलते पेड़-पौधे की कटाई कर रहा है एवं प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ कर रहा है, जिसके चलते पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच रही है। यही नहीं कुछ मानव निर्मित कारणों की वजह से वायुमंडल, जलमंडल आदि प्रभावित हो रहे हैं धरती का तापमान बढ़ रहा है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है, जो कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है।
इसलिए पर्यावरण के महत्व को समझते हुए हम सभी को अपने पर्यावरण को बचाने में सहयोग करना चाहिए।
पर्यावरण और जीवन – Environment And Life
पर्यावरण और मनुष्य एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात पर्यावरण पर ही मनुष्य पूरी तरह से निर्भऱ है, पर्यावरण के बिना मनुष्य, अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है, भले ही आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हो, लेकिन प्रकृति ने जो हमे उपलब्ध करवाया है, उसकी कोई तुलना नहीं है।
इसलिए भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रकृति का दोहन करने से बचना चाहिए।वायु, जल, अग्नि, आकाश, थल ऐसे पांच तत्व हैं, जिस पर मानव जीवन टिका हुआ है और यह सब हमें पर्यावरण से ही प्राप्त होते हैं।
पर्यावरण न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य का एक मां की तरह ख्याल रखता है,बल्कि हमें मानसिक रुप से सुख-शांति भी उपलब्ध करवाता है।
पर्यावरण, मानव जीवन का अभिन्न अंग है, अर्थात पर्यावरण से ही हम हैं। इसलिए हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
उपसंहार
पर्यावरण के प्रति हम सभी को जागरूक होने की जरुरत हैं। पेड़ों की हो रही अंधाधुंध कटाई पर सरकार द्धारा सख्त कानून बनाए जाना चाहिए। इसके साथ ही पर्यावरण को स्वच्छ रखना हम सभी को अपना कर्तव्य समझना चाहिए, क्योंकि स्वच्छ पर्यावरण में रहकर ही स्वस्थ मनुष्य का निर्माण हो सकता है और उसका विकास हो सकता है।
पर्यावरण पर निबंध – Paryavaran Par Nibandh
पर्यावरण हमें जीवन जीने के लिए सभी आवश्यक चीजें जैसे कि हवा, पानी, रोशनी, भूमि, अग्नि, पेड़-पौधे, प्राकृतिक वनस्पतियां आदि उपलब्ध करवाता है। हम पर्यावरण पर पूरी तरह निर्भर हैं। वहीं अगर हम अपने पर्यावरण को साफ-सुथरा रखेंगे तो हम स्वस्थ और सुखी जीवन का निर्वहन कर सकेंगे। इसिलए पर्यावरण को सरंक्षित करने एवं स्वच्छ रखने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना चाहिए।
पर्यावरण, प्रौद्योगिकी, प्रगति और प्रदूषण –
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विज्ञान की उन्नत तकनीक ने मनुष्य के जीवन को बेहद आसान बना दिया है, वहीं इससे न सिर्फ समय की बचत हुई है बल्कि मनुष्य ने काफी प्रगति भी की है, लेकिन विज्ञान ने कई ऐसी खोज की हैं, जिसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है, और जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है।
एक तरफ विज्ञान से प्रोद्यौगिकी का विकास हुआ, तो वहीं दूसरी तरफ उद्योंगों से निकलने वाला धुआं और दूषित पदार्थ कई तरह के प्रदूषण को जन्म दे रहा है और पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर रहा है।
उद्योगों से निकलने वाला दूषित पदार्थ सीधे प्राकृतिक जल स्त्रोत आदि में बहाए जा रहे हैं, जिससे जल प्रदूषण की समस्या पैदा हो रही है,इसके अलावा उद्योगों से निकलने वाले धुंए से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
पर्यावरण संरक्षण के उपाय – Paryavaran Sanrakshan Ke Upay
- उद्योगों से निकलने वाला दूषित पदार्थ और धुएं का सही तरीके से निस्तारण करना चाहिए।
- पर्यावरण की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाना चाहिए।
- पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगानी चाहिए।
- वाहनों का इस्तेमाल बेहद जरूरत के समय ही किया जाना चाहिए।
- दूषित और जहरीले पदार्थों के निपटान के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए।
- लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए।
विश्व पर्यावरण दिवस – World Environment Day
लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने और इसके प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से 5 जून से 16 जून के बीच विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है। इस मौके पर कई जगहों पर जागरूकता कार्यक्रमों का भी आय़ोजन किया जाता है।
पर्यावरण हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, इसलिए इसकी रक्षा करना हम सभी की जिम्मेदारी है, अर्थात हम सभी को मिलकर अपने पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाने में अपना सहयोग करना चाहिए।
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15 thoughts on “पर्यावरण पर निबंध | Environment Essay in Hindi”
Nice sir bhote accha post h aapne to moj kar de h sir thank you sir app easi past karte rho ham logo ke liye
Thank you sir aapne bahut accha post Kiya h mere liye bahut labhkaari h government job ki tayari ke liye
bahut badhiya jaankari share kiye ho sir, Environment Essay.
Thanks sir bhaut acha essay hai helpful hai aur needful bhi isme sari jankari di gye hai environment ke baare Mai and isse log inspire bhi hongee isko.pdkee……..
I love this essay…
Thanks mujhe ye bahut kaam diya speech per
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पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध (Environment Protection Essay in Hindi)
पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना ही पर्यावरण संरक्षण कहलाता है। पर्यावरण संरक्षण का मुख्य उद्देश्य भविष्य के लिए पर्यावरण या प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना है। इस सदी में हम लोग विकास के नाम पर पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। अब हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं कि हम पर्यावरण संरक्षण के बिना इस ग्रह पर लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकते हैं। इसलिए हम सभी को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
पर्यावरण सुरक्षा पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Environment Protection in Hindi, Paryavaran Suraksha par Nibandh Hindi mein)
पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध (250 – 300 शब्द).
पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, परि+आवरण। परि अर्थात ‘चारों ओर’ और आवरण का अर्थ है ‘घेरे हुए’। हमारे चारों ओर फैले आवरण को ही पर्यावरण कहते है। दूसरे शब्दों में मानव, वनस्पति, पशु-पक्षी सहित सभी जैविक और अजैविक घटकों के समूह को पर्यावरण कहते हैं। इसमें हवा, पानी, मिट्टी, पेड़, पहाड़, झरने, नदियां आदि सभी आते हैं।
पर्यावरण सुरक्षा क्यों आवश्यक है
अगर समय रहते हम नहीं चेते और पर्यावरण को बचाने के बारे में नहीं सोचा तो, इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं। पूरे सौर-मंडल में केवल हमारी पृथ्वी पर ही जीवन संभव है। हमें समय रहते, पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करके सुरक्षित करना है। इस सदी में हम लोग विकास के नाम पर पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। अब हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं कि हम पर्यावरण संरक्षण के बिना इस ग्रह पर लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकते हैं। इसलिए हम सभी को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
पर्यावरण सुरक्षा के उपकरण
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण ,शहरीकरण आदि का रोकथाम ही इस प्रदुषण से निजाद दिला सकता है।पर्यावरण में जितना महत्व मनुष्यों का है, उतना ही अन्य जीव-जन्तुओं का भी। अकेले मानवों के अस्तित्व के लिए भी पेड़-पौधो की उपस्थिति अनिवार्य है। प्राणवायु ऑक्सीजन हमें इन वनस्पतियों के कारण ही मिलती हैं।
पर्यावरण संरक्षण व्यक्तियों, संगठनों और सरकारों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करने का काम है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और मौजूदा प्राकृतिक वातावरण का संरक्षण करना है, और जहां संभव हो, क्षति और अन्य उपायों पर ध्यान इंगित करना है।
पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध – Paryavaran Suraksha par Nibandh (400 शब्द)
पर्यावरण में जितना महत्व मनुष्यों का है, उतना ही अन्य जीव-जन्तुओं का भी। अकेले मानवों के अस्तित्व के लिए भी पेड़-पौधो की उपस्थिति अनिवार्य है। प्राणवायु ऑक्सीजन हमें इन वनस्पतियों के कारण ही मिलती हैं।
वैज्ञानिक गतिविधियों के कारण पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है। साथ ही कभी औद्योगिकीकरण के नाम पर तो कभी शहरीकरण के नाम पर पेड़ो की अंधाधुंध कटाई हुई है। बढ़ती जनसंख्या के कारण भी पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है।
लोगों को वन संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए। वन पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, वनों की कटाई निश्चित रूप से दुनिया भर के जंगलों के क्षेत्र को कम करती है।
पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम
हमारा पर्यावरण प्राकृतिक और कृत्रिम परिवेश, दोनों का मिलाजुला स्वरुप है। इसके अन्तर्गत पर्यावरण की गुणवत्ता के संरक्षण की बात की जाती है।
पर्यावरण सुरक्षा की गंभीरता को देखते हुए 5 जून, 1972 में पहली बार स्टॉकहोम (स्वीडन) में पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया। पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए भारत ने भी महत्वपूर्ण कदम उठाया और 1986, में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम पारित कर दिया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वातावरण में घुले घातक रसायनों की अधिकता को कम करना और पारिस्थितिकीय तंत्र को प्रदूषण से बचाना है।
इस अधिनियम में कुल 26 धाराएं हैं। और इन धाराओं को चार अलग-अलग अध्यायों में विभक्त किया गया है। यह कानून पूरे भारतवर्ष में 19 नवंबर, 1986 से प्रभावी है। यह एक वृहद अधिनियम है जो पर्यावरण के सभी मुद्दों पर एकसमान रुप से नज़र रखता है। संक्षेप में कह सकते हैं कि –
- इस अधिनियम का निर्माण पर्यावरण के संरक्षण और सुरक्षा के लिए बनाया गया है।
- यह पर्यावरण के लिए, किए गए स्टॉकहोम सम्मेलन के सभी नियमों का पालन करता है।
- अपेक्षित कानूनों का गठन करता है और उनके बीच संतुलन स्थापित भी बनाये रखता है।
- पर्यावरण के लिए अगर कोई खतरा उत्पन्न करता है तो उसके लिए दंड का भी प्रावधान है।
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए यह सरकार द्वारा उठाया गया सराहनीय कदम है। यह कानून सरकार को ऐसी शक्तियां प्रदान करता है जिसके आधार पर सरकार, पर्यावरण के संरक्षण के लिए अपेक्षित कदम उठाती है और पर्यावरण के लिए गुणवत्ता मानक तय करती है। इतना ही नहीं जो उद्योग पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते है, उनके लिए कड़े नियम बनाती है और उन पर नकेल भी कसती है। इसके तहत कुछ औद्योगिक क्षेत्रों को प्रतिबंधित भी किया है।
पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध – Paryavaran Suraksha par Nibandh (500 शब्द)
हाल के कुछ दशकों में मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरण पर बहुत बुरा असर पड़ा है। ओजोन परत का क्षरण इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। साथ ही वैश्विक उष्मीयता (ग्लोबल वार्मिंग) दुनिया के लिए खतरे की घंटी है। मानवों द्वारा वनों की कटाई ही पर्यावरण असंतुलन का सबसे बड़ा कारण है।
पर्यावरण को कई अवांछनीय कारक जोकि मानव स्वास्थ्य, प्राकृतिक संसाधनों और प्रदूषण के कारकों जैसे प्रदूषण, हरितगृह प्रभाव (ग्रीनहाउस) आदि के कारण प्रभावित होते हैं।
पर्यावरण सुरक्षा का उद्देश्य, कारण एवं प्रभाव
पर्यावरण की सुरक्षा और मानव अस्तित्व के लिए उसकी प्रासंगिकता को देखते हुए 3-14 जून 1992, के मध्य ब्राजील के शहर ‘रियो डी जेनेरियो’ में प्रथम पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें विश्व के 174 देशों नें हिस्सा लिया। पर्यावरण का संरक्षण समस्त मानव जाति के साथ-साथ इस धरती के सभी जीव-जंतुओं के जीवन के लिए अति आवश्यक है।
यह सिलसिला आगे भी प्रवाहमान रहा और दस साल बाद सन् 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन का पुनः आयोजन किया गया और विश्व के सभी देशों से पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाये गये नियमों का पालन करने का आग्रह किया गया। यदि पर्यावरण संरक्षित रहेगा, तभी यह पृथ्वी सुरक्षित रहेगी, और पृथ्वी सही सलामत रहेगी, तभी हम जीवित रह पायेंगे। सभी एक-दूसरे से जुड़े है। पर्यावरण का संरक्षण हमें किसी और के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए करना है।
जलवायु परिवर्तन
97% जलवायु वैज्ञानिक इस बात को मानते है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इसका मुख्य कारण है। शायद अधिक चरम मौसम की घटनाओं जैसे कि सूखा, जंगल की आग, गर्मी की लहरें और बाढ़ जैसी घटनाओं कार्बन के अधिक उत्सर्जन के कारण ही होता है।
अब दुनिया को सावधान हो जाना चाहिए और कार्बन उत्सर्जन को कम कर देना चाहिए, अन्यथा इसके भीषण परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। इस वक़्त विश्व का लगभग 21 प्रतिशत कार्बन अकेले अमेरिका उत्सर्जित करता है।
अगर प्रत्येक व्यक्ति मिल कर अपना योगदान दें तो कार्बन का उत्सर्जन कम किया जा सकता है। हम अपने घर से ही शुरुआत कर सकते हैं। कम से कम गाड़ियों का इस्तमाल करें, और कोशिश करें कि विद्युत चलित वाहनों का इस्तमाल करें।
वनों की कटाई से कार्बन की मात्रा पर्यावरण में बहुत ज्यादा हो गयी है। पेड़ कार्बन डाई ऑक्साइड का अवशोषण कर लेते हैं और हमें प्राणवायु ऑक्सीजन देते हैं, किंतु उनकी कटाई से पूरा चक्र ही बाधित हो गया है। यह अनुमान है कि कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 15 प्रतिशत वनों की कटाई से होता है।
वन्यजीवों के आवासों पर मानव अतिक्रमण बढ़ने से जैव विविधता का तेजी से नुकसान हो रहा है जिससे खाद्य सुरक्षा, जनसंख्या स्वास्थ्य और विश्व स्थिरता को खतरा है। जैव विविधता के नुकसान में जलवायु परिवर्तन का भी बड़ा योगदान है, क्योंकि कुछ प्रजातियां बदलते तापमान के अनुकूल नहीं बन पाती हैं। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के लिविंग प्लेनेट इंडेक्स के अनुसार, पिछले 35 वर्षों में जैव विविधता में 27 प्रतिशत की गिरावट आई है।
उपभोक्ताओं के रूप में हम सभी पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले उत्पादों को खरीदकर जैव विविधता की रक्षा में मदद कर सकते हैं। साथ ही पॉलिथीन के स्थान पर घर का बना कपड़े का थैला प्रयोग कर सकते हैं। यह प्रयास भी पर्यावरण संरक्षण में हाथ बंटाएगा।
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पर्यावरण शब्द पढ़ने, लिखने, बोलने या सुनने में जितना छोटा है, इसका अर्थ उतना ही ज़्यादा बड़ा और गहरा है। प्रकृति से मिली पर्यावरण की शक्तियों का अंदाज़ा लगाने अगर हम बैठेंगे, तो शायद हमारा पूरा एक जीवन भी इसके लिए कम रहेगा। पर्यावरण एक ऐसा विषय है जिसके बारे में जितना पढ़ा जाए या लिखा जाए उतना ही कम है। मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि सभी चीज़ें पर्यावरण से ही जीवित हैं। पर्यावरण के बिना मानव जीवन की कल्पना करना असंभव है। हम सभी पर्यावरण के साथ और पर्यावरण हमारे साथ हर तरह से जुड़ा हुआ है।
सुबह के उजाले से लेकर रात के अंधेरे तक पृथ्वी पर सभी कार्य पर्यावरण की मदद से ही सम्पन्न होते हैं, इसीलिए प्रकृति या पर्यावरण को कमजोर समझना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है। अगर आप जानना चाहते हैं कि पर्यावरण क्या है या पर्यावरण का क्या अर्थ है या पर्यावरण किसे कहते हैं, पर्यावरण कितने प्रकार के होते हैं, पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है, तो आप ये आर्टिकल पढ़ सकते हैं।
जिन पेड़ों की ठंडी हवा से हमें तपती गर्मी में चैन मिलता है, जिस धूप के सेक से हमारे बदन की सर्दी कम होती है, जिस स्वच्छ जल को पीकर हम अपनी प्यास बुझाते हैं या जिस खेत में उपजे अन्न से हमारी भूख शांत होती है ये सब पर्यावरण का ही खेल है। जिस तरह से सुबह, दोपहर, शाम और रात प्रकृति के नियम के अनुसार होते हैं ठीक उसी तरह से पर्यावरण के भी कुछ अपने नियम हैं। पर्यावरण का हर काम उसके नियम के अनुरूप ही होता है। जब इस सृष्टि का निर्माण हुआ होगा तभी से पृथ्वी पर पर्यावरण की भी उत्पत्ति हो गई होगी क्योंकि बिना पर्यावरण के दुनिया का बनना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।
पर्यावरण का अर्थ
पर्यावरण दो शब्दों ‘परि’ (जो हमारे चारों ओर है) और ‘आवरण’ (जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है) के मेल से बना है, जिसका शाब्दिक का अर्थ है हमारे चारों ओर का आवरण यानी कि वातावरण। पर्यावरण (Environment) शब्द एक फ्रेंच भाषा के शब्द एनविरोनिया (Environia) से लिया गया है जिसका मतलब होता है हमारे आस-पास या चारों ओर।
जिस परिवेश या वातावरण में हम सब निवास करते हैं यह उस परिवेश के जैविक पर्यावरण (जो जीवित होते हैं) और अजैविक पर्यावरण (जो जीवित नहीं होते हैं) दोनों को दर्शाता है। पर्यावरण और जीव प्रकृति के दो संगठित और जटिल घटक होते हैं। पर्यावरण हम सभी के जीवन को नियंत्रित करने का काम करता है क्योंकि सबसे ज़्यादा हम पर्यावरण के साथ ही संपर्क में आते हैं और पर्यावरण में रह कर ही अपना जीवन व्यतित करते हैं।
पर्यावरण क्या है?
पर्यावरण किसी एक तत्व का नाम नहीं है ब्लकि यह विभिन्न तत्वों के योग के मिलकर बना है। जो तत्व या चीजें हमें अपने आसपास नज़र आती हैं वही हमारा पर्यावरण है। पर्यावरण भौतिक और बल को दर्शाता है। पर्यावरण को वातावरण या स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें व्यक्ति, जीव या पौधे निवास करते हुए अपना हर कार्य करते हैं।
मनुष्य के जीवन चक्र में पर्यावरण की मुख्य भूमिका होती है क्योंकि हम सभी सबसे अधिक पर्यावरण के ऊपर ही निर्भर हैं। पर्यावरण के पास प्राकृतिक चीजों का उत्पादन करने और सौंदर्य दर्शाने की शक्तियाँ मौजूद हैं। पर्यावरण वह स्थिति है जिसमें एक जीव जन्म लेता है, फिर उसकी जीवन प्रक्रिया चलती है और फिर एक समय ऐसा आता है जब उसका अंत होता है।यह जीवित जीव की वृद्धि और विकास को प्रभावित करता है।
अन्य शब्दों में कहा जाए तो पर्यावरण उस परिवेश को दर्शाने का काम करता है जो सभी सजीवों को चारों तरफ से घेरे रहता है और उनके जीवन को प्रभावित करता है। पर्यावरण वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल से बना हुआ है।
मिट्टी, पानी, हवा, आग और आकाश पर्यावरण के मुख्य घटक हैं, जिन्हें हम पंचतत्व भी बोलते हैं। पर्यावरण ने हम सभी को एक आरामदायक जीवन जीने के लिए और ज़रूरत के अनुसार उनका उपभोग करने के लिए हमें प्राकृतिक संसाधन प्रदान किए हैं। पर्यावरण का संबंध उन चीज़ों से है जो किसी वस्तु के बहुत पास है और उस पर उसका सीधा प्रभाव पड़ता हो। हमारा पर्यावरण उन चीजों या साधनों को दिखाता है जो हमसे हर रूप में अलग हैं और हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
पर्यावरण किसे कहते हैं?
जो कोई भी वस्तुएं हमारे आसपास या चारों ओर होती हैं, जैसे- पेड़-पौधे, जीव-जंतु, नदी, तालाब, हवा, मिट्टी तथा मनुष्य और उनके द्वारा जो कोई भी क्रियाएं की जाती हैं, उसी को हम पर्यावरण (Environment) कहते हैं। अलग-अलग दर्शनशास्त्रियों ने पर्यावरण को अपने-अपने शब्दों में परिभाषित किया है, जैसे-
- टाॅसले के अनुसार- ’’प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीव रहते हैं, पर्यावरण कहलाता है।’’
- फिटिंग के अनुसार- ’’जीवों के पारिस्थितिकी का योग पर्यावरण है अर्थात् जीवन की पारिस्थितिकी के समस्त तथ्य मिलकर पर्यावरण कहलाते हैं।’’
- बोरिंग के अनुसार- ’’एक व्यक्ति के पर्यावरण में वह सब कुछ सम्मिलित किया जाता है जो उसके जन्म से मृत्यु पर्यंन्त प्रभावित करता है।’’
- मैकाइवर के अनुसार- ’’पृथ्वी का धरातल और उसकी सारी प्राकृतिक दशाएँ- प्राकृतिक संसाधन, भूमि, जल, पर्वत, मैदान, खनिज पदार्थ, पौधे, पशु तथा सम्पूर्ण प्राकृतिक शक्तियाँ जो कि पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।’’
- गिलबर्ट के अनुसार- ’’वातावरण उन समाग्रता का नाम है, जो किसी वस्तु को घेरे रहते है तथा उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।’’
पर्यावरण कितने प्रकार के होते हैं?
पर्यावरण के मुख्य रूप से चार प्रकार होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1. प्राकृतिक पर्यावरण- यह पर्यावरण का वो भाग है जो प्रकृति से हमें वरदान के रूप में मिला है। जो प्राकृतिक शक्तियाँ, प्रक्रियाएँ और तत्व मनुष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं, उन्हें प्राकृतिक पर्यावरण के साथ में जोड़कर देखा जाता है। ये वो शक्तियाँ हैं जिनसे पृथ्वी पर विभिन्न वातावरणीय चीजें जन्म लेती हैं, जिसमें जैविक चीजें और अजैविक चीजें दोनों ही मौजूद होती हैं। जैविक चीजों में मनुष्य, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, प्राकृतिक वनस्पति आदि चीजें आती हैं, तो वहीं अजैविक चीजों में जल, तापमान, हवा, तालाब, नदी, महासागर, पहाड़, झील, वन, रेगिस्तान, ऊर्जा, मिट्टी, आग आदि चीजें शामिल हैं।
2. मानव निर्मित पर्यावरण- इस तरह के पर्यावरण में मानव द्वारा निर्मित चीजें शामिल होती हैं, जैसे- उद्योग, शैक्षणिक संस्थाएँ, अधिवास, कारखाने, यातायात के साधन, वन, उद्यान, श्मशान, कब्रिस्तान, मनोरंजन स्थल, शहर, कस्बा, खेत, कृत्रिम झील, बांध, इमारतें, सड़क, पुल, पार्क, अन्तरिक्ष स्टेशन आदि। मानव अपनी शिक्षा और ज्ञान के बल पर विज्ञान तथा तकनीक की मदद से भौतिक पर्यावरण के साथ क्रिया कर जिस परिवेश का निर्माण करता है, उसे ही हम मानव निर्मित पर्यावरण कहते हैं।
3. भौतिक पर्यावरण- इस पर्यावरण में प्रकृति से बनी चीजों पर प्रकृति का ही सीधा नियन्त्रण होता है। इसमें मानव का किसी भी तरह का कोई हस्तक्षेप शामिल नहीं होता है। भौतिक पर्यावरण में जलमण्डल, स्थलमण्डल और वायुमण्डल का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा स्थलरूप, जलीय भाग, जलवायु, मृदा, शैल तथा खनिज पदार्थ आदि विषयों का भी इसमें अध्ययन करने को मिलता है।
4. जैविक पर्यावरण- मानव और जीव-जन्तुओं के मिलकर एक-दूसरे की मदद से जैविक पर्यावरण का निर्माण किया है। मानव एक सामाजिक प्राणी है जिस वजह से वह सामाजिक, भौतिक तथा आर्थिक गतिविधियों से जुड़ा रहता है। इसमें सभी तरह के जीव प्रणाली शामिल होते हैं। इन सभी के बीच जो संबंध होता है उसको परिस्थितिकी कह जाता है। यह एक प्रकार से संतुलन बनाए रखने की प्रक्रिया भी होती है। इसके अंतर्गत पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, सूक्ष्म जीव, मानव आदि का अध्ययन शामिल है।
पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है और क्यों?
पर्यावरण दिवस (Environment Day) या विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) हर साल 5 जून का मनाया जाता है। पेड़-पौधे पर्यावरण में प्रदूषण के स्तर को कम करने का काम करते हैं और अशुद्ध पर्यावरण को शुद्ध करने में भी अपना पूरा योगदान देते हैं, लेकिन औद्योगीकरण के विकास का असर पर्यावरण पर बुरा पड़ रहा है।
पर्यावरण प्रदूषण जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है उसकी वजह से कभी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सबसे ज़्यादा जरूरी है कि लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाए। इसी उद्देश्य के साथ हम हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाते हैं।
पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत सबसे पहले स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई थी। इसी देश में दुनिया का सबसे पहला पर्यावरण सम्मेलन भी आयोजित किया गया था, जिसमें कुल 119 देशों ने हिस्सा लिया था। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की नींव रखी गई थी और हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने का संकल्प भी लिया गया था।
सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वैश्विक स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और चिंता की वजह से विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की पहल की गई। हमारे देश में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रकृति और पर्यावरण के प्रति चिंताओं को जाहिर किया था। विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य केवल इतना है कि दुनियाभर के सभी लोग पर्यावरण प्रदूषण की चिंताओं से अवगत हों और प्रकृति तथा पर्यावरण का महत्त्व बताते हुए दूसरों को जागरूक करें।
भविष्य में अगर हम अपने आसपास के वातावरण को साफ, सुंदर और उपयोगी देखना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें अपने पर्यावरण के साथ जंगली जानवरों जैसा बर्ताव करना बंद करना होगा। पर्यावरण में मौजूद सभी चीज़ों का इस्तेमाल हमें भूखे भेड़ियों की तरह नहीं बल्कि इंसान बनकर ही करना होगा। जब हम पर्यावरण का साथ देंगे तो उससे कही गुना ज़्यादा बढ़कर पर्यावरण हमारा साथ देगा। जितनी सहायता की ज़रूरत हमें प्राकृतिक पर्यावरण की है, तो उससे अधिक सहायता प्रकृति को बचाने के लिए हमें करनी होगी।
पर्यावरण पर निबंध 150 शब्द
हमारे पर्यावरण में लगभग सभी प्रकार के प्राकृतिक संसाधन पाए जाते हैं, जो अलग-अलग तरीकों से हमारी सहायता करते हैं। ये प्राकृतिक पर्यावरण हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं। यह हमें आगे बढ़ने और विकसित होने का बेहतर माध्यम प्रदान करते हैं। यह हमें वो सब कुछ उपलब्ध करवाते हैं, जिसकी हमें जीवन यापन करने हेतु सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। हमारा पर्यावरण भी हमसे कुछ मदद की अपेक्षा रखता है जिससे कि हमारा जीवन भी बना रहे और पर्यावरण भी कभी नष्ट न हो।
इस धरती पर अगर हम जीवन को बनाए रखना चाहते हैं, तो उसके लिए हमें सबसे पहले पर्यावरण को बचाकर रखना होगा और उसका संरक्षण करना होगा। पिछले कई वर्षों से हम पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस तो मनाते हुए आ रहे हैं लेकिन पर्यावरण स्वच्छता और सुरक्षा के मामले में हमारा देश आज भी दूसरे देशों के मुकाबले बहुत पीछे है।
पर्यावरण जैसे गंभीर विषय को जानने के लिए कि हमें हमारे पर्यावरण को किस प्रकार सुरक्षित रखना है और उन बातों के बारे में जानने के लिए जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है, हम सभी को पर्यावरण के लिए चलाई जा रही अलग-अलग मुहिम और पर्यावरण बचाओ अभियान का हिस्सा बनना चाहिए।
पर्यावरण पर निबंध 300 शब्द
हमारा पर्यावरण पृथ्वी पर जीवों के स्वस्थ जीवन के लिए सबसे अहम भूमिका निभाता है। इसके बावजूद भी हमारा पर्यावरण दिन-प्रतिदिन मानव निर्मित तकनीक तथा आधुनिक युग के आधुनिकरण की वजह से नष्ट होता जा रहा है। यही कारण है कि आज हमें पर्यावरण प्रदूषण जैसी सबसे बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
पर्यावरण के बिना मानव जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। हमें अपने भविष्य को जीवित रखने के लिए सबसे पहले पर्यावरण का भविष्य सुरक्षित रखना होगा। इसकी जिम्मेदारी किसी एक इंसान की नहीं बल्कि पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की है। हर व्यक्ति को अपने-अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण जैसे मुहिम का हिस्सा ज़रूर बनना चाहिए।
पर्यावरण सामाजिक, शारीरिक, आर्थिक, भावनात्मक तथा बौद्धिक रूप से हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है लेकिन पर्यावरण प्रदूषण की समस्या ने वातावरण में विभिन्न प्रकार की बीमारीयों को जन्म दिया, जिसे आज हर व्यक्ति अपने जीवन में झेल रहा है। अब यह किसी समुदाय या शहर की समस्या नहीं रही बल्कि अब तो यह दुनियाभर की समस्या बन चुकी है।
इस समस्या का समाधान किसी एक व्यक्ति के प्रयास करने से नहीं होगा। अगर इसका निवारण पूर्ण तरीके से नहीं किया गया, तो एक दिन ऐसा आएगा जब पृथ्वी पर जीवन का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा। इसीलिए प्रत्येक आम नागरिक को सरकार द्वारा चलाए जा रहे पर्यावरण आन्दोलन में शामिल होना होगा।
हम सभी को अपनी गलती में सुधार करते हुए पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त कराना होगा। यह मानना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन सही यही है कि हर व्यक्ति द्वारा उठाया गया छोटे-से-छोटा भी सकारात्मक कदम एक दिन बड़ा बदलाव ज़रूर लाता है।
हमें अब समझना होगा कि वो समय आ चुका है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बंद करते हुए उनका सही तरीके से इस्तेमाल करें। हमें इस बात का भी पूरा ख़्याल रखना होगा कि जीवन को बेहतर बनाने के लिए विज्ञान तथा तकनीक को विकसित करने के साथ-साथ पर्यावरण को भी किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचे।
ये भी पढ़ें :-
- पर्यावरण से जुड़े सामान्य ज्ञान के 100 प्रश्न उत्तर
- प्रदूषण पर निबंध
- ध्वनि प्रदूषण पर निबंध
- मृदा प्रदूषण पर निबंध
पर्यावरण से सम्बंधित FAQs
प्रश्न- पर्यावरण का क्या अर्थ है?
उत्तरः “परि” जो हमारे चारों ओर है”आवरण” जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है, अर्थात पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ होता है चारों ओर से घेरे हुए।
प्रश्न- विश्व पर्यावरण दिवस (world environment day) कब मनाया जाता है?
उत्तर- विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है।
प्रश्न- पर्यावरण का मानव जीवन में क्या महत्व है?
उत्तरः पर्यावरण का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। मनुष्य एक पल भी इसके बगैर नहीं रह सकता। जल, थल, वायु, अग्नि, आकाश इन्हीं पांच तत्वो से ही मनुष्य का जीवन है और जीवन समाप्त होने पर वह इन्हीं में विलीन हो जाता है।
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पर्यावरण पर निबंध Essay on Environment in Hindi (1000W)
आज हम इस आर्टिकल में पर्यावरण पर निबंध Essay on Environment in Hindi (1000) लिखा है जिसमें हमने प्रस्तावना, पर्यावरण का अर्थ, पर्यावरण का महत्व, विश्व पर्यावरण दिवस, पर्यावरण से लाभ और हानि, पर्यावरण और जीवन, पर्यावरण प्रौद्योगिकी प्रगति और प्रदूषण, पर्यावरण संरक्षण के उपाय के बारे में लिखा है।
Table of Contents
प्रस्तावना (पर्यावरण पर निबंध Essay on Environment in Hindi)
प्रकृति ने हमें एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण सौंपा था। किंतु मनुष्य ने अपने लालची पन और विकास के नाम पर उसे खतरे में डाल दिया है। विज्ञान की बढ़ती प्रकृति ने एक और तो हमारे लिए सुख- सुविधा में वृद्धि की है तो दूसरी ओर पर्यावरण को दूषित करके मानव के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
पर्यावरण का अर्थ Meaning of Environment
“अमृत बांटें कर विष पान, वृक्ष स्वयं शंकर भगवान।”पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है पर +आवरण जिसका अर्थ है हमारे चारों ओर घिरे हुए वातावरण।
पर्यावरण और मानव का संबंध अत्यंत घनिष्ठ है। पर्यावरण से मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। पर्यावरण से हमें जल, वायु आदि कारक प्राप्त होते हैं।
पर्यावरण का महत्व Importance of Environment in Hindi
पर्यावरण से ही हम हैं, हर किसी के जीवन के लिए पर्यावरण का बहुत महत्व है, क्योंकि पृथ्वी पर जीवन पर्यावरण से ही संभव है। समस्त मनुष्य, जीव- जंतु, प्राकृतिक, वनस्पतियों, पेड़- पौधे, जलवायु, मौसम सब पर्यावरण के अंतर्गत ही निहित है।
पर्यावरण न सिर्फ जलवायु में संतुलन बनाए रखने का काम करता है, और जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ उपलब्ध कराता है।
विश्व पर्यावरण दिवस World Environment Day
लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने और इसके प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
5 जून 1973 को पहला पर्यावरण दिवस मनाया गया था। इस मौके पर कई जगहों पर जागरूकता कार्यक्रम कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
पर्यावरण से लाभ और हानि Advantages and Disadvantages of Environment in Hindi
पर्यावरण से लाभ advantages of environment in hindi.
पर्यावरण से हमें स्वच्छ हवा मिलती है। पर्यावरण हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है। पर्यावरण में जैविक, अजैविक, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित वस्तु का समावेश होता है।
प्राकृतिक पर्यावरण में पेड़, झाड़ियां, नदी, जल, सूर्य प्रकाश, पशु, हवा आदि शामिल है।जो हवा हम हर पल सांस लेते हैं, पानी जिस के सिवा हम जी नहीं सकते और जो हम अपनी दिनचर्या में इस्तेमाल करते हैं, पेड़ पौधे उनका हमारे जीवन में बहुत महत्व है।
यह सब प्राकृतिक चीजें हैं जो पृथ्वी पर जीवन संभव बनाती हैं। वह पर्यावरण के अंतर्गत ही आती हैं। पेड़-पौधों की हरियाली से मन का तनाव दूर होता है, और दिमाग को शांति मिलती है। पर्यावरण से ही हमारे अनेक प्रकार की बीमारी भी दूर होती है।
पर्यावरण मनुष्य, पशुओं और अन्य जीव चीजों को बढ़ाने और विकास होने में मदद करती है। मनुष्य भी पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण भाग है। पर्यावरण का एक घटक होने के कारण हमें भी पर्यावरण का एक संवर्धन करना चाहिए।
पर्यावरण पर हमारा यह जीवन बनाए रखने के लिए हमें पर्यावरण की वास्तविकता को बनाए रखना होगा।
और पढ़ें: जल संरक्षण पर निबंध
पर्यावरण से हानि Disadvantages of Environment in Hindi
आज के युग में पर्यावरण प्रदूषण बहुत तेजी से बढ़ रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण पर्यावरण की प्रकृति नष्ट हो रही है। हर जगह जहां घने वृक्ष हैं उन्हें काट कर वहां बड़ी इमारत बनाए जा रहे हैं।
गाड़ी की धुआ, फैक्ट्री मे मशीनों की आवाज, खराब रासायनिक जल इन सब की वजह से, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण हो रहा है। यह एक चिंता का विषय बन चुका है यह अत्यंत घातक है। जिसके कारण हमें अनेक प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है और हमारा शरीर हमेशा बिगड़ रहा है।
वही आज जहां विज्ञान में तकनीकी और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिला है और दुनिया में खूब विकास हुआ है तो दूसरी तरफ यह बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार है। आधुनिकीकरण, प्रौद्योगिकी करण और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ रहा है।
मनुष्य अपने स्वार्थ के चलते पेड़ पौधों की कटाई कर रहा है एवं प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ कर रहा है, जिसके चलते पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच रही है, यही नहीं कुछ मानव निर्मित कारणों की वजह से वायुमंडल, जलमंडल आदि प्रभावित हो रहे हैं धरती का तापमान बढ़ रहा है और ग्लोबल वाल्मिग की समस्या उत्पन्न हो रही है, जो कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है।
पर्यावरण हमारे लिए अनमोल रत्न है। इस पर्यावरण के लिए हम सभी को जागरूक होने की आवश्यकता है। पर्यावरण का सौंदर्य बढ़ाने के लिए हमें साफ-सफाई का भी बहुत ध्यान रखना चाहिए।
- पेड़ों का महत्व समझ कर हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना चाहिए। घने वृक्ष वातावरण को शुद्ध रखते हैं और हमें छाया प्रदान करते हैं। घने वृक्ष पशु पक्षी का भी निवास स्थान है। इसीलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए।
पर्यावरण और जीवन Environment and life in Hindi
पर्यावरण और मनुष्य एक दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात पर्यावरण पर ही मनुष्य पूरी तरह से निर्भर है। पर्यावरण के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है, भले ही आज विज्ञान ने बहुंत तरक्की कर ली हो।
लेकिन प्रकृति में जो हमें उपलब्ध करवाया है, उसकी कोई तुलना नहीं है। इसीलिए भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रकृति का दोहन करने से बचना चाहिए।
वायु, जल, अग्नि, आकाश, थल ऐसे पांच तत्व है, जिस पर मानव जीवन टिका हुआ है, और यह सब हमें पर्यावरण से ही प्राप्त होते हैं। पर्यावरण ना केवल हमारे स्वास्थ्य का ख्याल रखता है बल्कि एक मां की तरह हमें सुख-शांति भी प्राप्त करता है।
पर्यावरण, प्रौद्योगिकी, प्रगति और प्रदूषण Environment, Technology, Progress and Pollution in Hindi
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विज्ञान की उन्नत तकनीकी ने मनुष्य के जीवन को बेहद आसान बना दिया है, वहीं इससे ना सिर्फ समय की बचत हुई है बल्कि मनुष्य ने काफी प्रगति भी की है। लेकिन विज्ञान ने कई ऐसी खोज की है जिसका असर हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है, और जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है।
पर्यावरण संरक्षण के उपाय Environmental protection measures in Hindi
- उद्योग से निकलने वाला दूषित पदार्थ और धोएं का सही तरीके से निस्तारण करना चाहिए।
- पर्यावरण हमारे लिए अनमोल रत्न है। इस पर्यावरण के लिए हम सभी को जागरूक होने की आवश्यकता है। पर्यावरण का सौंदर्य बढ़ाने के लिए हमें साफ-सफाई का भी बहुत ध्यान रखना चाहिए।
- पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगानी चाहिए।
- वाहनों का इस्तेमाल बेहद जरूरत के समय ही किया जाना चाहिए।
- दूषित और जहरीले पदार्थों को निपटाने के लिए सख्त कानून बनाने चाहिए।
- लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझने के लिए जागरूकता फैलाने चाहिए।
हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की। यह पर्यावरण संतुलन के लिए ही बनाया गया एक उपक्रम है।
इस तरह हमें अपने पर्यावरण को बचाना चाहिए। लोगों को पर्यावरण का महत्व समझाना चाहिए। स्वच्छ पर्यावरण एक शांतिपूर्ण और स्वास्थ्य जीवन जीने के लिए बहुत आवश्यक है।
पर्यावरण पर 10 लाइन 10 Line on Environment in Hindi
- पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है परिधान +आवरण इसका अर्थ होता है हमारे चारों ओर् घिरे हुये वातावरण।
- पर्यावरण और मानव का संबंध घनिष्ठ है।
- पर्यावरण से ही हम हैं हर किसी के जीवन के लिए पर्यावरण का बहुत महत्व है क्योंकि पृथ्वी पर जीवन पर्यावरण से ही संभव है।
- पर्यावरण से हमें जल, वायु आदि कारक प्राप्त होते हैं।
- पर्यावरण आसिफ जलवायु में संतुलन बनाए रखता है बल्कि, जीवन के लिए सभी आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराता है।
- लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने और जागरूकता फैलाने के मकसद से 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
- पर्यावरण से हमें स्वच्छ हवा मिलती है।
- प्राकृतिक पर्यावरण में पेड़, झाड़ियां, नदी, जल, सूर्य प्रकाश, पशु, हवा आदि शामिल है।
- पर्यावरण ना केवल हमारे स्वास्थ्य का ख्याल रखता है बल्कि एक मां की तरह हमें सुख-शांति भी प्राप्त करता है।
- घने वृक्ष पशु-पक्षी का निवास स्थान है। घने वृक्ष वातावरण को शुद्ध रखते हैं और हमेशा या प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष Conclusion
पर्यावरण के प्रति हम सब को जागरूक होने की आवश्यकता है। पेड़ों की हो रही है अंधाधुन कटाई पर सरकार द्वारा सख्त कानून बनाना चाहिए। इसके साथ ही पर्यावरण को स्वच्छ रखना और हमारा कर्तव्य समझना चाहिए, क्योंकि स्वच्छ पर्यावरण में ही रहकर स्वास्थ्य मनुष्य का निर्माण हो सकता है और उसका विकास हो सकता है।आशा करते हैं आपको हमारा पर्यावरण पर निबंध अच्छा लगा होगा।
1 thought on “पर्यावरण पर निबंध Essay on Environment in Hindi (1000W)”
आपने पर्यावरण पर जो निबंध लिखा है सचमुच ही हृदय को छू लेने वाला है। अगर जन-जन में यह क्रांति फैलाई जाए की मनुष्य जहां- जहां घर बनाते हैं वहां 6 फुट का जगह छोड़ना चाहिए और एक आम और नीम का पेड़ जरूर लगाना चाहिए।
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पर्यावरण पर निबंध | Essay on Environment in Hindi
by Meenu Saini | Jul 13, 2022 | Hindi | 0 comments
Hindi Essay Writing – पर्यावरण (Environment)
पर्यावरण पर निबंध – इस लेख हम पर्यावरण से तात्पर्य, पर्यावरण के प्रकार, पर्यावरण और मानव का संबंध, पर्यावरण असंतुलन, पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण आदि के बारे में जानेगे |
अनादिकाल से मानव का अस्तित्व वनस्पति और जीव-जंतुओं के ऊपर निर्भर रहा है। जीवन और पर्यावरण एक दूसरे से संबद्ध है । समस्त जीवधारियों का जीवन पर्यावरण की उपज होता है। अतः हमारे तन मन की रचना, शक्ति, सामर्थ्य एवं विशेषता और संपूर्ण पर्यावरण से नियंत्रित होती है। उसी में पनपती हैं और विकास पाती हैं। वस्तुतः जीवन और पर्यावरण एक दूसरे से इतने जुड़े हुए हैं कि दोनों का सहअस्तित्व बहुत आवश्यक है।
पर्यावरण मूलतः प्रकृति की देन है। यह भूमि, वन, पर्वतों, झरने, मरुस्थल, मैदानों, घास, रंग-बिरंगे पशु पक्षी, स्वच्छ जल से भरी लहलहाती झीलों और सरोवरों से भरा है। सौरमंडल के ग्रहों में पृथ्वी एकलौता ऐसा ग्रह है जहां जीवन संभव है। इसका कारण यहां का पर्यावरण है।
- पर्यावरण से तात्पर्य
- पर्यावरण के प्रकार
पर्यावरण और मानव का संबंध
- पर्यावरण असंतुलन
पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण प्रदूषण, पर्यावरण प्रबंधन, विश्व पर्यावरण दिवस, पर्यावरण से तात्पर्य .
पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है – परि+ आवरण। परि का अर्थ है चारों ओर, आवरण का अर्थ है घेरे हुए । इस प्रकार ऐसा आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है, पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण को अंग्रेजी में एनवायरनमेंट कहते हैं। एनवायरनमेंट शब्द फ्रेंच भाषा के “environner” शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ है घिरा हुआ या घेरा होना।
यह एक तरह से हमारा सुरक्षा कवच है, जो हमें प्रकृति से विरासत में मिला है।
दूसरे शब्दों में पर्यावरण का अर्थ जैविक और अजैविक घटकों एवं उनके आसपास के वातावरण के सम्मिलित रूप से है, जो जीवन के आधार को संभव बनाते है।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार पर्यावरण,किसी किसी जीव के चारों ओर घिरी भौतिक एवं जैविक दशा व उनके साथ अंतक्रिया को सम्मिलित करता है ।
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पर्यावरण के प्रकार
पर्यावरण में पाए जाने वाले कारकों के आधार पर हम इसे दो भागों में बांट सकते हैं ।
प्राकृतिक पर्यावरण
मानव निर्मित पर्यावरण.
प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत वे सभी संसाधन आते हैं, जो हमें प्रकृति से प्राप्त है या जिन के निर्माण में मनुष्य की कोई सहभागिता नहीं है। जो अनादि काल से इस धरती पर अस्तित्व में है। प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत नदी, पर्वत, जंगल, गुफा, मरुस्थल, समुद्र आदि आते हैं।
हमें प्रकृति से भरपूर मात्रा में खनिज, पेट्रोलियम, लकड़ियां, फल, फूल, औषधियां प्राप्त होती है, जिनका उपयोग अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है – प्राणदायी ऑक्सीजन, जो हमें पेड़ों से प्राप्त होती है। इन सब के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
मानव निर्मित पर्यावरण में तालाब, कुंए, खेत , बगीचे, घर-आवास, इमारतें, उद्योग आदि आते हैं। यह सब मिलकर मनुष्य जीवन का आधार विकसित करते हैं और एक तरह से मानव जीवन की प्रगति का सूचक है कि – किस तरह झोपड़ियों में रहने वाला मानव, आज गगनचुंबी इमारतों का निर्माण कर रहा है।
जैसे सभ्यताओं का विकास हुआ, मनुष्य ने नए-नए आविष्कार किए और अपने जीवन को सुविधाजनक बनाने हेतु, वह प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग करने लगा, और आज मानव निर्मित पर्यावरण, धरती के कोने-कोने पर विस्तृत होता जा रहा है।
पानी के अंदर हो या आसमान में, मनुष्य सब जगह अपना साम्राज्य स्थापित करने में लगा है । अब तो हमने दूसरे ग्रहों पर भी जीवन की तलाश करना शुरू कर दिया है।
प्राचीन काल से ही वृक्षों के प्रति भारतीय समाज का अनुराग सांस्कृतिक परंपरा के रूप में विकसित हुआ हैं। चाहे कोई भी धार्मिक त्यौहार हो या शुभ अवसर। हिंदू धर्म में पेड़ों को शुभ मानकर पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं में तुलसी, पीपल, वट जैसे वृक्षों का विशेष महत्व बताया गया है। हमारे ऋषि मुनि आदिमानव प्रकृति के साथ तालमेल मिलाकर जीवन यापन करते थे। गुफाओं में रहते थे। कंदमूल फल खाते थे और प्रकृति का सम्मान करते थे। एक तरह से उन्होंने पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाना सीख लिया था और आज भी मानव का अस्तित्व वनस्पति और जीव-जंतुओं के ऊपर निर्भर है। पर्यावरण हम सबका पालनहार और जीवनाधार है। किंतु आश्चर्य होता है कि मनुष्य धरती के स्त्रोतों का कितना अंधाधुंध दोहन करता जा रहा है। जिससे सारा प्रकृति तंत्र गड़बड़ा गया है। अब वह दिन दूर नहीं लगता, जब धरती पर हजारों शताब्दियों पुराना हिम युग लौट आएगा अथवा ध्रुवों पर जमी बर्फ की मोटी परत पिघल जाने से समुद्र की प्रलयकारी लहरें नगरो, वन ,पर्वतो, और जंतुओं को निगल जाएंगी।
पर्यावरण असंतुलन
हम सभी जानते हैं कि धरती पर जीवन, प्रकृति संतुलन से संभव हो सका है। धरती वनस्पतियों से ढक ना जाए, इसलिए घास खाने वाले जानवर पर्याप्त संख्या में थे। इन घास खाने वाले जानवरों की संख्या को संतुलित, सीमित रखने के लिए हिंसक जंतु भी थे। इन तीनों का अनुपात, संतुलित और नियंत्रित था।
किंतु समय के साथ पर्यावरण का संतुलन तेजी से बिगड़ता जा रहा है। मनुष्य, प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनों का अविवेकपूर्ण ढंग से दुरुपयोग कर रहा है, जिससे सारा प्रकृति तंत्र गड़बड़ा गया है। इसी असंतुलन से भूमि, वायु, जल और ध्वनि के प्रदूषण उत्पन्न हो रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण से फेफड़ों के रोग, हृदय, पेट की बीमारियां, दृष्टि और श्रवण क्षतियां, मानसिक तनाव और तनाव संबंधी रोग पैदा हो रहे हैं।
आधुनिक युग में वैज्ञानिक आविष्कारों और उद्योग धंधों के विकास, फैलाव के साथ-साथ जनसंख्या का भयावाह विस्फोट हुआ है। इन सभी कारकों ने पर्यावरण असंतुलन उत्पन्न किया है।
पर्यावरण को विकृत और दूषित करने वाली समस्त विपदाएं हमारी ही लाई हुई है। हम स्वयं प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहे हैं, इसी असंतुलन से पर्यावरण की रक्षा हेतु, इसका संरक्षण आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण, कोई आज का मुद्दा नहीं है , वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक आंदोलन चलाए जा रहे हैं-
- विश्नोई आंदोलन
यह प्रकृति पूजकों का अहिंसात्मक आंदोलन था। आज से 286 साल पहले सन 1730 में राजस्थान के खेजड़ली गांव में 263 बिश्नोई समुदाय की स्त्री-पुरुषों ने पेड़ों की रक्षा हेतु अपना बलिदान दिया था।
- चिपको आंदोलन
उत्तराखंड के चमोली जिले में सुंदरलाल बहुगुणा चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में यह आंदोलन चलाया गया था। उत्तराखंड सरकार के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों का कटाई की जा रही थी । उनके खिलाफ लोगों ने पेड़ों से चिपककर विरोध जताया था।
- साइलेंट वैली
केरल की साइलेंट वैली या शांति घाटी जो अपनी सघन जैव विविधता हेतु प्रसिद्ध है। सन 1980 में कुंतीपूंझ नदी पर 200 मेगावाट बिजली निर्माण हेतु बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था । लेकिन इस परियोजना से वहां स्थित कई विशिष्ट पेड़-पौधों की प्रजातियां नष्ट हो जाती है। अतः कई समाजसेवी व वैज्ञानिकों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया और अंततः सन 1985 में केरल सरकार ने साइलेंट वैली को राष्ट्रीय आरक्षित वन घोषित कर दिया गया।
- जंगल बचाओ आंदोलन
जंगल बचाओ आंदोलन इसकी शुरुआत सन 1980 में बिहार में हुई थी, बाद में उड़ीसा झारखंड तक फैल गया । सन् 1980 में सरकार ने बिहार के जंगलों को, सागोन के पेड़ों में बदलने की योजना पेश की थी । इसी के विरोध में बिहार के आदिवासी कबीले एकजुट हुए और उन्होंने अपने जंगलों को बचाने के लिए आंदोलन चलाया।
मनुष्य जिस तेजी के साथ विकास कर रहा है उतनी ही तेजी से पर्यावरण को प्रदूषित भी कर रहा है । हमने पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी जैविक और अजैविक घटकों का अंधाधुंध उपयोग किया है जिसकी वजह से पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न हुआ है।
प्राकृतिक पर्यावरण के भौतिक , रासायनिक ,जैविक विशेषताओं में अवांछनीय परिवर्तन लाने वाले पदार्थ को प्रदूषक कहते हैं। सामान्यतया प्रदूषण, मानव क्रियाकलापों के कारण होता है।
पर्यावरण प्रदूषण को चार भागों में बांट सकते है-
जल प्रदूषण
जल मानव के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है । स्वच्छ जल , स्वास्थ्य और मानव विकास के लिए अनिवार्य है । जल की भौतिक ,रासायनिक तथा जैविक विशेषताओं में परिवर्तन,जिससे मानव तथा जलीय जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो, जल प्रदूषण कहलाता है।
जल प्रदूषण का दुष्प्रभाव
प्रदूषित जल का विपरीत प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है । प्रदूषित जल के कारण अनेक बीमारियां फैलती हैं। जैसे हैजा, पेचिस, अतिसार, पीलिया तथा क्षय रोग। भारत में पेट से जुड़ी हुई 80% बीमारियां जल संक्रमण के कारण होती हैं । बीमारियों में सबसे अधिक प्रभावित नगरीय गंदी बस्तियों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चे होते हैं।
जल प्रदूषण के मुख्य कारण है –
- औद्योगिकीकरण
- नदियों के जल का उपयोग
- फसलों की सुरक्षा के लिए रसायनों का उपयोग
- धार्मिक सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के कारण नदियों में बढ़ता प्रदूषण
जल प्रदूषण रोकने के उपाय-
- प्रदूषित जल को उपचारित किया जाए ।
- नदी और समुद्र तटों की समय-समय पर सफाई हो।
- पीने के पानी की बचत हो।
- वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा ।
- वर्षा जल संरक्षण।
वायु प्रदूषण
पृथ्वी के वायुमंडल में मानव निर्मित प्रदूषक को का मौजूद होना वायु प्रदूषण कहलाता है । जिससे पेड़ पौधों एवं मनुष्य के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । सामान्यता वायु प्रदूषण में कार्बन डाई आक्साइड , कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइडस, सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन आदि गैसें शामिल हैं ।
वायु प्रदूषण के कारण
कई स्वास्थ्य संबंधी रोग जैसे खांसी ,दमा ,जुकाम ,निमोनिया, फेफड़े का संक्रमण, रक्त क्षीणता, उच्च रक्तचाप ,ह्रदय रोग विभिन्न प्रकार के कैंसर आदि से पीड़ित लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है ।
प्रदूषण रोकने के उपाय
- इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए।
- चूल्हे की जगह एलपीजी का उपयोग को बढ़ावा।
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अधिक उपयोग करें ।
- वाहनों को विकसित करने की तकनीक में सुधार लाएं ।
मृदा प्रदूषण
मृदा, मानव जाति के लिए अत्यंत उपयोगी तथा जीवनदायिनी है । मृदा, मनुष्यों के क्रियाकलापों अथवा कभी-कभी पर्यावरणीय संकट के कारण प्रदूषित हो जाती है ।
मृदा तथा भूमि प्रदूषण के मुख्य कारक हैं –
- मृदा अपरदन।
- रसायनिक खादों तथा फसलों की सुरक्षा हेतु रसायनों का अत्यधिक उपयोग।
- उद्योगों कारखानों से निकले ठोस अपशिष्ट ।
- जंगल की आग।
- खनन अपशिष्टों द्वारा।
मृदा प्रदूषण के दुष्प्रभाव
- मृदा की उर्वरता शक्ति में कमी आ जाती है ।
- मिट्टी में कटाव उत्पन्न हो जाता है।
- भूमि कृषि योग्य नहीं रहती।
मृदा प्रदूषण रोकने के उपाय
रासायनिक खादों , कीटनाशक का नियंत्रित उपयोग कर मृदा प्रदूषण को कम किया जा सकता है । नगरी तथा औद्योगिक अपशिष्टों का उचित निपटान कर, मृदा को प्रदूषण से बचाया जा सकता है।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण, वायुमंडलीय प्रदूषण का एक मुख्य भाग है। किसी अवांछनीय अत्यधिक तीव्र ध्वनि द्वारा लोगों को पहुंचे असुविधा एवं शांति को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं।
ध्वनि प्रदूषण के कारण
- नगरीकरण तथा औद्योगिकरण के कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ गया है ।
- ऑटोमोबाइल, फैक्ट्री मशीनें धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है ।
ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव
- ध्वनि प्रदूषण के कारण सुनने की क्षमता प्रभावित होती है।
- मानसिक तनाव , हृदय रोग, रक्तचाप चिड़चिड़ापन आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं ।
प्रदूषण रोकने के उपाय
- उद्योगों को आवासीय क्षेत्रों से दूर ले जाकर बसाना चाहिए।
- पुराने मशीनों का प्रतिस्थापन करना चाहिए
- हार्न का उपयोग न्यूनतम करना चाहिए।
- रेल पटरी में सुधार।
- नई पीढ़ी को ध्वनि प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में जागरूक करना ।
हमारे आवश्यकता असीमित है तथा प्राकृतिक संसाधन सीमित । प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग इसे धारणीय बनाने के लिए आवश्यक है इसलिए संसाधनों का संरक्षण जरूरी है । पर्यावरण के संरक्षण का अर्थ है संसाधनों का इस तरह से उपयोग किया जाए कि वर्तमान पीढ़ी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति आने वाली पीढ़ी की आवश्यकताओं से बगैर समझौता किए कर सके ।
इस संरक्षण के मुख्य उद्देश्य होने चाहिए-
पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित रखा जाए
जैव विविधता को बनाए रखा जाए।
वनों का संरक्षण किया जाए ।
वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाए।
मानव क्रियाकलापों के कारण पर्यावरण में तेजी से बदलाव आ रहा है। इस बदलाव के अनेक रूप है । जैसे ओजोन क्षरण, वनों की कटाई, अम्ल वर्षा, वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की अधिकता, फलस्वरुप भूमंडलीय तापमान में वृद्धि।
घटते प्राकृतिक संसाधनों की समस्या से निपटने के लिए समाज के सभी स्तर पर पर्यावरण संबंधी जागरूकता अनिवार्य है । वैज्ञानिकों ,राजनीतिज्ञों, नियोजकों तथा लोगों को सम्मिलित रूप से पर्यावरण की स्थिति सुधारने के लिए काम करना होगा । जिसके लिए संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है । इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कुछ उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं-
- विकासशील देशों की जनसंख्या नीति में परिवर्तन ताकि और नियंत्रित जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सके ।
- विकसित देशों में नियंत्रित उपभोक्तावाद।
- ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाना ।
- विकास की नीतियों का मुख्य ध्यान देसी वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित हो।
- विश्व के सभी विकास कार्यक्रमों का सख्त पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन होना चाहिए ।
- सभी स्तर के शिक्षा में पर्यावरण की शिक्षा एक अनिवार्य विषय होना चाहिए ।
- व्यापक शिक्षा तथा पर्यावरण जागरूकता के कार्यक्रमों में निवेश के द्वारा निजी क्षेत्र की सहभागिता जरूरी ।
- सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों की मदद से लोगों को पर्यावरण संबंधी मुद्दों के बारे में शिक्षित करना ।
- देश के विभिन्न भागों में पर्यावरण जागरूकता विकसित करने के लिए नियमित सम्मेलनों, संगोष्ठी, टेलीविजन एवं रेडियो पर वार्ताओं का आयोजन करना ।
- पर्यावरण अनुसंधान के लिए अतिरिक्त फंड की आवश्यकता।
- पर्यावरण संरक्षण में मीडिया की भूमिका।
- जनमानस में पर्यावरण की पूर्णता और मानव की महत्ता संबंधी शिक्षा की आवश्यकता पर बल।
हर साल 5 जून को वैश्विक स्तर पर पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। दरअसल 1972 में स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र महासभा का सम्मेलन हुआ था । जिसमें पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहन देने के लिए , हर वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत की गई ।
हर वर्ष अलग देश द्वारा इसका आयोजन किया जाता है ।
इस वर्ष 2022 में हमने 50 वां पर्यावरण दिवस मनाया। भारत ने इस अवसर पर पर्यावरण के लिए जीवन शैली (LiFE लाइफ स्टाइल फॉर द एनवायरनमेंट ) आंदोलन की शुरुआत की है।
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पर्यावरण संरक्षण पर निबंध | Environment Conservation Essay in Hindi
Environment Conservation Essay in Hindi प्रिय विद्यार्थियों आपका स्वागत है आज हम पर्यावरण संरक्षण पर निबंध हिंदी में जानेगे.
हमारे चारों ओर के आवरण को वातावरण कहा जाता है प्रदूषण की समस्या के चलते आज पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता हैं.
Environment Conservation Essay in Hindi कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के लिए 5, 10 लाइन, 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में एनवायरमेंट एस्से शेयर कर रहे है.
पर्यावरण संरक्षण पर निबंध Environment Conservation Essay in Hindi
Here We Share With You Environment Conservation Essay in Hindi For School Students & Kids In Pdf Format Let Read And Enjoy:-
Short Essay On Environment Conservation Essay in Hindi In 300 Words
भारत में पर्यावरण के प्रति वैदिक काल से ही जागरूकता रही है. विभिन्न पौराणिक ग्रंथो में पर्यावरण के विभिन्न कारको का महत्व व उनको आदर देते हुए संरक्षण की बात कही गई है.
भारतीय ऋषियों ने सम्पूर्ण प्राकृतिक शक्तियों को ही देवता का स्वरूप माना है. सूर्य जल, वनस्पति, वायु व आकाश को शरीर का आधार बताया गया है.
अथर्ववेद में भूमिसूक्त पर्यावरण संरक्षण का प्रथम लिखित दस्तावेज है. ऋग्वेद में जल की शुद्दता, यजुर्वेद में सभी प्रकृति तत्वों को देवता के समान आदर देने की बात कही गई है.
पहले अमेरिका प्रदूषण का उत्सर्जन करता था, लेकिन अब चीन उससे आगे निकल चुका है।
वैदिक उपासना के शांति पाठ में भी अन्तरिक्ष, पृथ्वी, जल, वनस्पति, आकाश सभी में शान्ति एवं श्रेष्टता की प्रार्थना करी गई है. वेदों में ही एक वृक्ष लगाने का पुण्य सौ पुत्रो के पालन के समान बताया गया है. हमारे राष्ट्र गीत वंदेमातरम् में पृथ्वी को ही माता मानकर उसे पूजनीय माना गया है.
हमारी संस्कृति को अरण्य संस्कृति भी कहा जाता है . इसके पीछे भाव यही है कि वन हरे भरे वृक्षों से सदैव यहाँ का पर्यावरण समर्द्ध रहा है.
महाभारत व रामायण में वृक्षों के प्रति अगाध श्रद्धा बताई गई है. विष्णु धर्म सूत्र, स्कन्द पुराण तथा याज्ञवल्क्य स्मृति में वृक्षों को काटने को अपराध बताया गया है तथा वृक्ष काटने वालों के लिए दंड का विधान किया गया है.
विश्व पर्यावरण दिवस पूरे विश्व में 5 जून को मनाया जाता है. पर्यावरण ही हमारी वैदिक परम्परा रही है कि प्रत्येक मनुष्य पर्यावरण में ही पैदा होता है, पर्यावरण में ही जीता है और पर्यावरण में ही लीन हो जाता है.
वर्तमान में पर्यावरण चेतना के प्रति जागरूकता अत्यंत आवश्यक है क्योकि पर्यावरण प्रदूषित हो जाने से ग्लोबल वार्मिग की समस्या उत्पन्न हो गई है. इसको रोकने के लिए पर्यावरण संरक्षण व पर्यावरण शिक्षा का प्रचार जरुरी है. हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई अहम कदम उठाए गये है
जिनमे खेजड़ली आंदोलन, चिपकों आंदोलन, अप्पिको आंदोलन, शांतघाटी आंदोलन और नर्मदा बचाओ आंदोलन पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता के ही परिचायक है. राजस्थान के बिश्नोई समाज के 29 सूत्र पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण नियम है.
भारत विश्व के प्रमुख जैव विविधता वाले देशों में से एक है, जहां पूरी दुनिया में पाए जाने वाले स्तनधारियों का 7.6%, पक्षियों का 12.6%, सरीसृप का 6.2% और फूलों की प्रजातियों का 6.0% निवास करती हैं.
Best Short Environment Conservation Essay in Hindi For Kids In 500 Words
प्रस्तावना- पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना हुआ है. परि का आशय चारो ओर तथा आवरण का आशय परिवेश हैं. वास्तव में पर्यावरण में वायु, जल, भूमि, पेड़ पौधे, जीव जन्तु मानव और इसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं.
इस धरती और सृष्टि के पर्यावरण का निर्माण करने वाले भूमि जल एवं वायु आदि तत्वों में जब कुछ विकृति आ जाती हैं अथवा इसका आपस में संतुलन गडबडा जाता है, तब पर्यावरण प्रदूषित हो जाता हैं.
पर्यावरण संरक्षण की समस्या- धरती पर जनसंख्या की निरंतर वृद्धि, औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति से जहाँ प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों को समाप्त किया जा रहा है.
वहां ईधन चालित यातायात वाहनों, खदानों, प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन और आण्विक ऊर्जा के प्रयोग से सारा प्राकृतिक संतुलन डगमगाता जा रहा हैं.
वर्तमान समय में गैसीय पदार्थों, अपशिष्ट पदार्थों, विभिन्न यंत्रों की कर्णकटु ध्वनियों एवं अनियंत्रित भूजल के उपयोग आदि कार्यों से भूमि, जल, वायु, भूमंडल तथा समस्त प्राणियों का जीवन पर्यावरण प्रदूषण से ग्रस्त हो रहा हैं. ऐसे में पर्यावरण का संरक्षण करना और इसमें संतुलन बनाएं रखना कठिन कार्य बन गया हैं.
पर्यावरण संरक्षण का महत्व- पर्यावरण संरक्षण का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से घनिष्ठ सम्बन्ध है. पर्यावरण संरक्षण को लेकर सन 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ब्राजील में विश्व के 174 देशों का पृथ्वी सम्मेलन आयोजित किया गया.
फिर सन 2002 में जोहांसबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय सुझाएँ गये.
वस्तुतः पर्यावरण संरक्षण से ही धरती पर जीवन सुरक्षित रह सकता हैं. अन्यथा मंगल आदि ग्रहों की तरह धरती का जीवन चक्र भी एक दिन समाप्त हो जाएगा.
पर्यावरण संरक्षण के उपाय- पर्यावरण संरक्षण के लिए इसे प्रदूषित करने वाले कारकों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है. इस दृष्टि से आण्विक विस्फोटों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए.
युवा वर्ग विशेष रूप से विद्यार्थी वृक्षारोपण करे, पर्यावरण की शुद्धता के लिए जन जागरण का काम करे. विषैले अपशिष्ट छोड़ने वाले उद्योगों और प्लास्टिक कचरे का विरोध करे.
वे जल स्रोतों की शुद्धता का अभियान चलावे. पर्यावरण संरक्षण के लिए हरीतिमा का विस्तार, नदियों की स्वच्छता, गैसीय पदार्थों का उचित विसर्जन, रेडियोधर्मी बढ़ाने वाले संसाधनों पर रोक, गंदे जल मल का परिशोधन, कारखानों के अपशिष्टों का उचित निस्तारण और गलत खनन पर रोक आदि उपाय किये जा सकते हैं. ऐसे कारगर उपायों से ही पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखा जा सकता हैं.
उपसंहार- पर्यावरण संरक्षण किसी एक व्यक्ति या किसी एक देश का काम न होकर समस्त विश्व के लोगों का कर्तव्य है. पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले सभी कारकों को अतिशीघ्र रोका जाए. युवा वर्ग द्वारा वृक्षारोपण व जलवायु स्वच्छकरण हेतु जन जागरण का अभियान चलाया जाए, तभी पर्यावरण सुरक्षित रह सकेगा.
पर्यावरण संरक्षण का महत्व Environment Protection Essay In Hindi
प्रस्तावना – मनुष्य इस पृथ्वी नामक ग्रह पर अपने अविर्भाव से लेकर आज तक प्रकृति पर आश्रित रहा हैं. प्रकृति पर आश्रित रहना उसकी विवशता हैं.
प्रकृति ने पृथ्वी के वातावरण को इस प्रकार बनाया हैं कि वह जीव जंतुओं के जीवन के लिए उपयुक्त सिद्ध हुआ हैं. पृथ्वी का वातावरण ही पर्यावरण कहलाता हैं.
पर्यावरण संरक्षण – मनुष्य ने सभ्य बनने और दिखने के प्रयास में पर्यावरण को दूषित कर दिया हैं. पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखना मानव तथा जीव जंतुओं के हित में हैं. आज विकास के नाम पर होने वाले कार्य पर्यावरण के लिए संकट बन गये हैं. पर्यावरण के संरक्षण की आज महती आवश्यकता हैं.
पर्यावरण प्रदूषण – आज का मनुष्य प्रकृति के साधनों का अविवेकपूर्ण और निर्मम दोहन करने में लगा हुआ हैं. सुख सुविधाओं की प्राप्ति के लिए नाना प्रकार के उद्योग खड़े किये जा रहे हैं.
जिनका कूड़ा कचरा और विषैला अवशिष्ट भूमि, जल और वायु को प्रदूषित कर रहा हैं. हमारी वैज्ञानिक प्रगति ही पर्यावरण को प्रदूषित करने में सहायक हो रही हैं.
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार – आज हमारा पर्यावरण तेजी से प्रदूषित हो रहा हैं. यह प्रदूषण मुख्य रूप से तीन प्रकार का हैं,
- जल प्रदूषण – जल मानव जीवन के लिए परम आवश्यक पदार्थ हैं. जल के परम्परागत स्रोत हैं कुँए, तालाब, नदी तथा वर्षा जल. प्रदूषण ने इन सभी स्रोतों को दूषित कर दिया हैं. महानगरों के समीप से बहने वाली नदियों की दशा दयनीय हैं. गंगा, यमुना , गोमती आदि सभी नदियों की पवित्रता प्रदूषण की भेंट चढ़ गयी हैं. उनको स्वच्छ करने में करोड़ो रूपये खर्च करके भी सफलता नहीं मिली हैं, अब तो भूमिगत जल भी प्रदूषित हो चूका हैं.
- वायु प्रदूषण- वायु भी जल की तरह अति आवश्यक पदार्थ हैं. आज शुद्ध वायु का मिलना भी कठिन हो गया हैं. वाहनों, कारखानों और सड़ते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी जहर भर दिया हैं. घातक गैसों के रिसाव भी यदा कदा प्रलय मचाते रहते हैं. गैसीय प्रदूषण ने सूर्य की घातक किरणों से धरती की रक्षा करने वाली ओजोन परत को भी छेद डाला है.
- ध्वनि प्रदूषण – कर्णकटु और कर्कश ध्वनियाँ मनुष्य के मानसिक संतुलन को बिगाड़ती हैं. और उसकी कार्य क्षमता को भी प्रभावित करती हैं. आकाश में वायुयानों की कानफोड ध्वनियाँ, धरती पर वाहनों, यंत्रों और संगीत का मुफ्त दान करने वाले ध्वनि विस्तारकों का शोर सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देंने पर तुले हुए हैं. इनके अतिरिक्त अन्य प्रकार का प्रदूषण भी पनप रहा हैं और मानव जीवन को संकट में डाल रहा हैं.
- मृदा प्रदूषण – कृषि में रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों के प्रयोग ने मिट्टी को भी प्रदूषित कर दिया हैं.
- विकिरणजनित प्रदूषण- परमाणु विस्फोटों तथा परमाणु संयंत्रों से होते रहने वाले रिसाव आदि ने विकिरणजनित प्रदूषण भी मनुष्य को भोगना पड़ रहा हैं.
- खाद्य प्रदूषण – मिट्टी, जल और वायु के बीच पनपने वाली वनस्पति तथा उसका सेवन करने वाले पशु पक्षी भी आज दूषित हो रहे हैं. चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी, कोई भी भोजन प्रदूषण से नहीं बच सकता.
प्रदूषण नियंत्रण/रोकने/ संरक्षण के उपाय – प्रदूषण ऐसा रोग नहीं हैं जिसका कोई उपचार न हो. प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बस्तियों से सुरक्षित दूरी पर ही स्थापित किया जाना चाहिए.
किसी भी प्रकार की गंदगी और प्रदूषित पदार्थ को नदियों और जलाशयों में छोड़ने पर कठोर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए.
वायु को प्रदूषित करने वाले वाहनों पर भी नियंत्रण आवश्यक हैं. इसके अतिरिक्त प्राकृतिक जीवन जीने का अभ्यास करना भी आवश्यक हैं. प्रकृति के प्रतिकूल चलकर हम पर्यावरण प्रदूषण पर विजय नहीं पा सकते.
जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि को रोकने की भी जरूरत हैं. छायादार तथा सघन वृक्षों का आरोपण भी आवश्यक हैं.कृषि में रासायनिक खाद तथा कीटनाशक रसायनों के छिड़काव से बचना भी जरुरी हैं.
उपसंहार – पर्यावरण प्रदूषण एक अद्रश्य दानव की भांति मनुष्य समाज या समस्त प्राणी जगत को निगल रहा हैं. यह एक विश्व व्यापी संकट हैं.
यदि इस पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो आदमी शुद्ध जल, वायु, भोजन और शांत वातावरण के लिए तरस जाएगा. प्रशासन और जनता दोनों के गम्भीर प्रयासों से ही प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती हैं.
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पर्यावरण पर निबंध - Paryavaran Essay in Hindi - Paryavaran par Nibandh - Essay on Environment in Hindi Language
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रुपरेखा : परिचय - पर्यावरण का अर्थ - प्राणियों का बेघर होना - पर्यावरण प्रदूषित - पर्यावरण प्रदूषित के अनेक उदाहरण - पर्यावरण की सुरक्षा कैसे होगी - विश्व पर्यावरण दिवस - उपसंहार।
पर्यावरण जलवायु, स्वच्छता, प्रदूषण तथा वृक्ष का संपूर्ण योग है। जो हमारे रोज के जीवन में सीधा संबंध रखता है तथा उसे प्रभावित करता है। वर्तमान में वैज्ञानिक प्रगति के परिणामस्वरूप मिलों, कारखानों तथा वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि पर्यावरण की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती बढ़ती जा रही है। मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं अर्थार्त हमारी जलवायु में परिवर्तन होता है तो इसका सीधा असर हमारे शरीर पर दिखने लगता है। जैसे ठंड ज्यादा लगती है तो हमें सर्दी हो जाती है। लेकिन गर्मी ज्यादा पडती है तो हम सहन नहीं कर पाते हैं। पर्यावरण प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर बढने से पृथ्वी को नष्ट करने में सहायता करती है। प्राकृतिक पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में एक महान भूमिका निभाता है और यह मनुष्य, जानवरों और अन्य जीवित चीजों को विकसित करने में मदद करता है। मनुष्य अपनी कुछ बुरी आदतों और गतिविधियों के कारन अपने पर्यावरण को नष्ट की और ढकेल रहा है।
पर्यावरण का अर्थ बड़ा सरल है। जो हमारे चारों ओर के वातावरण और उसमें निहित तत्वों और उसमें रहने वाले प्राणियों से है। हमारे चारों ओर उपस्थित वायु, भूमि, जल, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि सभी पर्यावरण का हिस्सा है। जिस तरह से हम अपने पर्यावरण से प्रभावित होते हैं उसी तरह से हमारा पर्यावरण हमारे द्वारा किए गए कृत्यों से प्रभावित होता है। जैसे लकड़ी के लिए काटे गए पेड़ों से जंगल समाप्त हो रहे हैं और जंगलों के समाप्त होने का असर जंगल में रहने वाले प्राणियों के जीवन पर पड़ रहा है। यही कारन है आज कई जीवों की बहुत सी प्रजातियाँ विलुप्त हो गई है और बहुत सी जातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। आज के समय में शेर अथवा चीतों के द्वारा गाँव में घुसने और वहाँ पर रहने वाले मनुष्यों को हानि पहुँचाने की बात सामने आ रही है।
इसके चलते आज कई प्राणियों बेघर हो रहे है क्योंकि हमने इन प्राणियों से इनका घर छीन लिया है। यही कारन है अब ये प्राणी गाँवो और शहरों की तरफ जाने के लिए मजबूर हो गए हैं। तथा अपने जीवन यापन के लिए मनुष्यों को हानि पहुँचाने लगे हैं। पर्यावरण का अर्थ केवल हमारे आस-पास के वातावरण से नहीं है बल्कि हमारा सामाजिक और व्यवहारिक वातावरण को शामिल करता है। मानव के आस-पास उपस्थित सोश्ल, कल्चरल, एकोनोमिकल, बायोलॉजिकल और फिजिकल आदि सभी तत्व जो मानव को प्रभावित करते हैं वे सभी वातावरण में शामिल होते हैं। जो पर्यावरण को प्रभाव करता है।
पर्यावरण प्रदूषण के बहुत से कारन है जिससे हमारा पर्यावरण अधिकतर पर प्रभावित होता है। मानव द्वारा निर्मित फैक्ट्री से निकलने वाले अवशेष हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और पर्यावरण को हानि पहुँचता है। लेकिन यह भी संभव नहीं है कि इस विकास की दौड़ में हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अपने विकास को नजर अंदाज कर दें। लेकिन हम कुछ बातों को ध्यान में रखकर अपने पर्यावरण को दूषित होने से बचा सकते हैं। जैसे कारखानों की चिमनियाँ नीची लगी होती हैं जिसकी वजह से उनसे निकलने वाला धुआं हमारे चारों ओर वातावरण में फैल जाता है और पर्यावरण को दूषित कर देता है। मिलों, कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों से बाहर निकलने वाले धुएं तथा विषैली गैसों ने पर्यावरण की समस्या को उत्पन्न कर दिया है। बसों, करों, ट्रकों, टंपुओं से इतना अधिक धुआं और विषैली गैसी निकलती है जिससे प्रदूषण की समस्या और अधिक गंभीर होती जा रही है । आज के समय में घर में इतने सदस्य नहीं होते हैं जितने उनके वाहन होते हैं। आज के दौर में घर का छोटा बच्चा भी साइकिल की जगह, गाड़ी पर जाना पसंद करता है।
बहती नदियों के पानी में सीवर की गंदगी इस तरह से मिल जाती है जिससे मनुष्यों और पशुओं के पीने का पानी गंदा हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप दोनों निर्बलता, बीमारी तथा गंभीर रोगों के शिकार बन जाते हैं। बड़े-बड़े नगरों में झोंपड़ियों के निवासियों ने इस समस्या को बहुत अधिक गंभीर कर दिया है। शहरीकरण और आधुनिकीकरण पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। मनुष्य द्वारा अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण को नजर अंदाज करना एक आम बात हो गई है। मनुष्य बिना सोचे समझे पेड़ों को काटते जा रहा है लेकिन वह यह नहीं सोचता कि जीवन जीने के लिए वायु हमें इन्हीं पेड़ों से प्राप्त होती है। बढती हुई आबादी हमारे पर्यावरण के प्रदूषण का एक बहुत ही प्रमुख कारण है। जिस देश में जनसंख्या लगातार बढ़ रही है उस देश में रहने और खाने की समस्या भी बढती जा रही है। मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिए पर्यावरण को महत्व नहीं देता है लेकिन वह भूल जाता है कि बिना पर्यावरण के उसकी सुख-सुविधाएँ कुछ समय के लिए ही हैं।
हम जिस पर्यावरण में रहते हैं वह बहुत तेजी से दूषित होता जा रहा है। हमें आवश्यकता है कि हम अपने पर्यावरण की देखरेख और संरक्षण ठीक तरीके से करें। हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। हमारे पूर्वजों ने विभिन्न जीवों को देवी-देवताओं की सवारी मानकर और विभिन्न वृक्षों में देवी देवताओं का निवास मानकर उनका संरक्षण किया है। पर्यावरण संरक्षण मानव और पर्यावरण के बीच संबंधों को सुधारने की एक प्रक्रिया होती है। जिसके उद्देश्य उन क्रियाकलापों का प्रबंधन होता है जिनकी वजह से पर्यावरण को हानि होती है। तथा मानव की जीवन शैली को पर्यावरण की प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप आचरणपरक बनाते है जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता बनी रह सके। कारखानों से निकलने वाले धुएं और पदार्थों का उचित प्रकार से निस्तारण किया जाना चाहिए। सभी मिलों, कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों में अभिलंब प्रदूषण नियंत्रण के लिए संयत्र लगाए जाने चाहिएँ। प्रदूषण और गंदगी की समस्या का निदान बहुत अधिक आवश्यक है ताकि हमारे पर्यावरण की सुरक्षा हो सके।
कई संयंत्रों के द्वारा धुएं और विषैली गैसों को सीधे आकाश में ही निष्काषित किया जाना चाहिए। बड़े नगरों में बसों, कारों, ट्रकों, स्कूटरों के रखरखाव की उचित व्यवस्था होनी चाहिए और उनकी नियमित रूप से चेकिंग होना चाहिए। शांतिपूर्ण जीवन के लिए शोरगुल वाली ध्वनि को सीमित और नियंत्रित किया जाना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सरकार के साथ-साथ सभी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को अपना पूरा सहयोग देना चाहिए। विषैले और खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के निपटने के लिए सख्त कानूनों का प्रावधान होना चाहिए। कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का कम प्रयोग करना चाहिए। वन प्रबंधन से वनों के क्षेत्रों में विकास करनी चाहिए। विकास योजनाओं को आरंभ करने से पहले पर्यावरण पर उनके प्रभाव का आंकलन करना चाहिए। मनुष्य को अपने प्रयासों से पर्यावरण की समस्या अधिकतर से घट सकती है।
जो कारखाने स्थापित हो चुके हैं उन्हें तो दूसरे स्थान पर स्थापित नहीं किया जा सकता है लेकिन सरकार को उन कारखानों को प्रतिवर्ष जांच करना चाहिए। ताकि कारखानों द्वारा किया गया प्रदूषण शहर की जनता को प्रभावित न करे। जितना हो सके वाहनों का कम प्रयोग करना चाहिए। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करके भी इस समस्या को कम किया जा सकता है। हमारे वैज्ञानिकों द्वारा धुएं को काबू करने के लिए खोज जारी है । जंगलों की कटाई पर सख्त सजा देना चाहिए तथा नए पेड़ लगाने को प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए।
विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून से 16 जून के बीच मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस के दिन हर जगह पेड़-पौधे लगाए जाते हैं। तथा पर्यावरण से संबंधित बहुत से कार्य किए जाते हैं जिसमें 5 जून का विशेष महत्व होता है। आज के समय में मनुष्य को अपने स्तर पर पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए प्रयास करना चाहिए।
पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त होना किसी भी एक समूह की कोशिश की बात नहीं है। इस समस्या पर कोई भी नियम या कानून लागू करके काबू नहीं पाया जा सकता। अगर प्रत्येक मनुष्य इसके दुष्प्रभाव के बारे में सोचे और आगे आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचे तो शायद इस समस्या गंभीरता से लेके उसका निवारण के बारे में सोचना चाहिए। विश्व पर्यावरण दिवस 2020 की थीम 'जैव-विविधता' ( 'Celebrate Biodiversity' ) है। इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय यानी विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की थीम "पारिस्थितिकी तंत्र बहाली" ("Ecosystem Restoration") है।
कई राज्य सरकारों ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत से कानून बनाये है। केंद्रीय सरकार के अंतर्गत पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक मंत्रालय का उद्घाटन किया है। इस समस्या के समाधान के लिए जन साधारण का सहयोग बहुत ही सहायक एवं उपयोगी सिद्ध हो सकता है। विकास की कमी और विकास प्रक्रियाओं से भी पर्यावरण की समस्या उत्पन्न होती हैं। हर साल सरकार को नए नियम बनाना चाहिए जिससे पर्यावरण की रक्षा बड़े ही गंभीरता के साथ करना चाहिए। ताकि आने वाले पीढ़ी को पर्यावरण से हानि नहीं पहुंचना चाहिए तथा पर्यावरण के महत्व को समझना चाहिए।
Nibandh Category
NCERT Solutions for Class 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12
CBSE Class 9 Hindi A निबंध लेखन
October 1, 2019 by Bhagya
CBSE Class 9 Hindi A लेखन कौशल निबंध लेखन
1. स्वच्छ भारत अभियान
संकेत बिंदु-
- स्वच्छता अभियान की आवश्यकता
- स्वच्छ भारत अभियान
- अभियान की शुरुआत
भूमिका – स्वच्छता और स्वास्थ्य का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। यह बात हमारे ऋषि-मुनि भी भलीभाँति जानते थे। वे अपने आसपास साफ़-सफ़ाई रखकर लोगों को यह संदेश देने का प्रयास करते थे कि अन्य लोग भी अपने आसपास स्वच्छता बनाए रखें और स्वस्थ रहें। यह देखा गया है कि जहाँ लोग स्वच्छता का ध्यान रखते हैं, वे बीमारियों से बचे रहते हैं।
स्वच्छता अभियान की आवश्यकता – बढ़ती जनसंख्या, व्यस्त दिनचर्या औ स्वच्छता के प्रति विचारों में आई उदासीनता के कारण पर्यावरण में गंदगी बढ़ती गई। साफ़-सफ़ाई का काम लोगों को निम्न स्तर का काम नज़र आने लगा। यह हमारी ज़िम्मेदारी नहीं ऐसी सोच के कारण गंदगी बढ़ती गई। हर छोटी-बड़ी वस्तुओं को प्लास्टिक की थैलियों में पैक किया जाना तथा वस्तुओं के प्रयोग के उपरांत प्लास्टिक या खाली डिब्बों तथा उनके पैकेटों को इधर-उधर फेंकने से उत्पन्न कूड़ा-करकट तथा गंदगी, तथा लोगों की सोच में बदलाव के कारण इस अभियान की विशेष आवश्यकता महसूस की जाने लगी।
स्वच्छ भारत अभियान – स्वच्छता को बढ़ावा देने तथा इसके प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए समय-समय पर संदेश प्रसारित किए जाते हैं तथा अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी दिशा में 02 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘स्वच्छ भारत’ अभियान का आरंभ किया गया। इसे 2019 तक चलाया जाएगा जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक सौ पचासवीं जयंती होगी। इस अवसर पर अर्थात् 02 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री ने देशवासियों को शपथ दिलाते हुए कहा, “मैं स्वच्छता के प्रति कटिबद्ध रहूँगा और इसके लिए समय दूंगा। मैं न तो गंदगी फैलाऊँगा और न दूसरों को फैलाने दूंगा।” हमारे राष्ट्रपिता ने साफ़-सुथरे और विकसित भारत का जो सपना देखा था, उसी को साकार करने के लिए इस अभियान का शुभारंभ किया गया।
अभियान की शुरुआत – 2 अक्टूबर, 2014 को हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने खुद झाड़ लेकर इस अभियान की शुरुआत की। इस अभियान से विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों, जानी-मानी हस्तियों, प्रधानाचार्य, अध्यापक, छात्र समेत लाखों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। इस अभियान पर लगभग करोड़ों रुपये खर्च करने का बजट भी रखा गया। प्रधानमंत्री ने इस अभियान को राजनीति प्रेरित न कहकर देशभक्ति से प्रेरित बताया। उन्होंने राजपथ पर आयोजित एक समारोह में लोगों को शपथ दिलाई। उन्होंने सफाई कर्मियों की कॉलोनी बाल्मीकि कॉलोनी में झाडू लगाई। इसी दिन तात्कालिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल के उसी स्कूल में झाडू लगाई, जहाँ उन्होंने पढ़ाई की थी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक भारतीय को वर्ष में एक सौ घंटे सफ़ाई को अवश्य देना चाहिए।
उपसंहार – देश को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की सख्त आवश्यकता थी और रहेगी। इसे महसूस करते हुए हमारे देश की अनेक हस्तियों ने इससे स्वयं को जोड़ लिया। ये हस्तियाँ हैं- सचिन तेंदुलकर, अनिल अंबानी, कमल हसन, प्रियंका चोपड़ा, मृदुलासिन्हा, ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की टीम तथा अन्य हस्तियाँ। हमारे राष्ट्रपिता का कहना था कि जहाँ सफ़ाई होती है, वहाँ ईश्वर का वास होता है। इस बात को ध्यान में रखकर हम प्रत्येक भारतीय को इस अभियान से जुड़ जाना चाहिए ताकि हमारा भारत ‘स्वच्छ भारत ही नहीं स्वस्थ भारत’ भी बन सके।
2. भारत का मंगल अभियान
संकेत-बिंदु
- मंगल अभियान-एक सफलता
- मंगलयान का सफ़र
- दुनिया का सबसे सस्ता मिशन
- भारत की मज़बूत वैश्विक स्थिति
- मंगलग्रह की पहली तसवीर
भूमिका – यदि आज हमारे पूर्वज स्वर्ग से झाँककर पृथ्वी को देखें तो शायद ही उस पृथ्वी को पहचान पाएँगे जिसे वे सौ-दो सौ साल पहले छोड़ गए थे। इसका सीधा-सा कारण है विज्ञान के बढ़ते चरण के कारण लगभग हर जगह आया बदलाव। अब तो यह बदलाव धरती की सीमा लाँघकर अन्य ग्रह तक जा पहुँचा है। भारत का मंगल अभियान इसका ताज़ा और प्रत्यक्ष उदाहरण है।
मंगल अभियान-एक सफलता – भारत ने 24 सितंबर, 2014 को मंगलयान को मंगलग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर एक नया इतिहास रच दिया। भारत ने यह उपलब्धि अपने प्रथम प्रयास में ही अर्जित कर ली। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि भारत ऐसा करने वाला पहला देश है। अमेरिका रूस और यूरोपीय संघ जैसी शक्तियों को यह सफलता पाने में कई प्रयास करने पड़े। इतना ही नहीं चीन और जापान को अब तक यह सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। मंगलयान भेजने वाले तीन सफल देशों के महत्त्वपूर्ण देशों के क्लब में चौथा देश बन गया है।
मंगलयान का सफर – इस मिशन को मॉम (ए.ओ.एम.) अर्थात् ‘मार्श ऑर्बिटर मिशन’ के नाम से जाना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी की मौजूदगी में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों द्वारा मुख्य एल.ए.एम. तथा आठ छोटे थ्रस्टर्स को प्रज्ज्वलित किया गया। इसे मंगल अर्थात् लालग्रह की कक्षा में पहुँचने में तक लगभग एक साल का समय लगा। इस मिशन की सफलता के संबंध में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘एम.ओ.एम.’ हमें निराश नहीं करेगा।
दुनिया का सबसे सस्ता मिशन – मंगलयान अभियान को दुनिया को सबसे सस्ते मिशनों में गिना जाता है। इस मिशन पर मात्र 450 करोड़ रुपये मात्र का खर्च आया। इस यान का कुल वजन 1350 किग्रा था। इस यान ने अभियान की शुरुआत से 66.6 करोड़ किलोमीअर की दूरी तय करके अपने नियत स्थान पर पहुँचा तो भारतीय वैज्ञानिक खुशी से झूम उठे और एक-दूसरे को बधाई देने लगे। बधाई देने के क्रम में हमारे राजनेता भी पीछे नहीं रहे।
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अन्य नेताओं ने इस मिशन को सफल बनाने के लिए अथक और निरंतर परिश्रम करने वाले वैज्ञानिकों को ही बधाई नहीं दी उससे जुड़े हर व्यक्ति को बधाई दी। नासा द्वारा भेजा गया मंगलयान मैवेन 22 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में प्रवष्टि हुआ था। इसकी अपेक्षा भारत द्वारा भेजे गए मंगलयान का खर्च मैवेन पर आए खर्च का दसवाँ हिस्सा था।
भारत की मज़बूत वैश्विक स्थिति – मंगलनायक लालग्रह की सतह एवं उसके खनिज अवयवों का अध्ययन करने भेजे गए इस यान से पहले भी विभिन्न देशों द्वारा 51 मिशनों दवारा प्रयास किया गया था। इनमें मात्र 21 मिशन ही सफल रहे। असफलता की इस दर को देखते हुए ‘मॉम’ की सफलता उल्लेखनीय है। इससे अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत हो गई। ऐसी अद्भुत सफलता का स्वाद चखने वाला भारत पहला एशियाई देश है।
मंगलग्रह की पहली तसवीर – भारत ने जिस मंगलयान को 24 सितंबर, 2014 को उसकी कक्षा में स्थापित किया था, उसने उससे अगले दिन ही मंगल ग्रह की पहली तसवीर भेजीं। दूसरो ने यह लिखकर तसवीर सार्वजनिक की कि ‘बहुत खूब है यहाँ का नज़ारा’। वहीं से भेजी एक तसवीर में मंगल ग्रह की सतह को नारंगी रंग का दिखाया गया है जिस पर गहरे धब्बे हैं।
उपसंहार – भारत का मंगल अभियान विज्ञान की दुनिया की अदभुत उपलब्धि है। इस अभियान से ज्ञारत ने विश्व को दिखा दिया कि वह अंतरिक्ष मिशन की दुनिया में पीछे नहीं रहा। मंगलान लालग्रह के बारे में जिस तरह नई-नई जानकारियाँ दे रहा है उसी तरह भारत को अन्य अभियानों में भी सफलता मिलेगी ऐसी आशा है।
3. प्रदूषण के कारण और निवारण अथवा प्रदूषण की समस्या
संकेत-बिंदु –
- हमारा जीवन और पर्यावरण
- पर्यावरण प्रदूषण के कारण
- प्रदूषण के प्रकार और परिणाम
- प्रदूषण रोकने के उपाय
भूमिका – मानव और प्रकृति का साथ अनादिकाल से रहा है। वह अपनी आवश्यकताओं यहाँ तक कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है। मानव ने ज्यों-ज्यों स यता की ओर कदम बढ़ाए, त्यों-त्यों उसकी ज़रुरतें बढ़ती गईं। इन आवश्यकतों को पूरी करने के लिए उसने प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ शुरु कर दी, जिसका दुष्परिणाम प्रदूषण के रूप में सामने आया। आज प्रदूषण किसी स्थान विशेष की समस्या न होकर वैश्विक समस्या बन गई है।
हमारा जीवन और पर्यावरण – मानव जीवन और पर्यावरण का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। जीवधारियों का जीवन उसके पर्यावरण पर निर्भर रहता है। जीव अपने पर्यावरण में जन्म लेता है, पलता-बढ़ता है और शक्ति, सामर्थ्य एवं अन्य विशेषताएँ अर्जित करता है। इसी तरह पर्यावरण की स्वच्छता या अस्वच्छता उसमें रहने वाले जीवधारियों पर निर्भर करती है। अत: जीवन और पर्यावरण का सहअस्तित्व अत्यावश्यक है।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण – पर्यावरण प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण है-प्राकृतिक संतुलन का तेज़ी से बिगड़ते जाना। इसके मूल में है-मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियाँ। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन और दुरुपयोग करने लगा है। इससे सारा प्राकृतिक-तंत्र गड़बड़ हो गया। इससे वैश्विक ऊष्मीकरण का खतरा बढ़ गया है। अब तो प्रदूषण का हाल यह है कि शहरों में सरदी की ऋतु इतनी छोटी होती जा रही है कि यह कब आई, कब गई इसका पता ही नहीं चलता है।
प्रदूषण के प्रकार और परिणाम – हमारे पर्यावरण को बनाने में धरती, आकाश, वायु जल-पेड़-पौधों आदि का योगदान होता है। आज इनमें से लगभग हर एक प्रदूषण का शिकार बन चुका है। पर्यावरण के इन अंगों के आधार पर प्रदूषण के विभिन्न प्रकार माने जाते हैं, जैसे- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि।
1. वायु प्रदूषण-जिस प्राणवायु के बिना जीवधारी कुछ मिनट भी जीवित नहीं रह सकते, वही सर्वाधिक विषैली एवं प्रदूषित हो चुकी थी। इसका कारण वैज्ञानिक आविष्कार एवं बढ़ता औद्योगीकरण है। इसके अलावा धुआँ उगलते अनगिनत वाहनों में निकलने वाला जहरीला धुआँ भी वायु को विषैला बना रहा है। उसी वायु में साँस लेने से स्वाँसनली एवं फेफड़ों से संबंधित अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं जो व्यक्ति को असमय मौत के मुंह में ढकेल देती हैं।
2. जल प्रदूषण-औद्योगिक इकाइयों एवं कलकारखानों से निकलने वाले जहरीले रसायन वाले पानी जब नदी-झीलों एवं विभिन्न जल स्रोतों में मिलते हैं तो निर्मल जल जहरीला एवं प्रदूषित हो जाता है। इसे बढ़ाने में घरों एवं नालों का गंदा पानी भी एक कारक है। इसके अलावा नदियों एवं जल स्रोतों के पास स्नान करना, कपड़े धोना, जानवरों को नहलाना, फूल-मालाएँ एवं मूर्तियाँ विसर्जित करने से जल प्रदूषित होता है, जिससे पेट संबंधी बीमारियाँ होती हैं।
3. ध्वनि प्रदूषण-सड़क पर दौड़ती गाड़ियों के हार्न की आवाजें आकाश में उड़ते विमान का शोर एवं कारखानों में मोटरों की खटपट के कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण के कारण ऊँचा सुनने, उच्च रक्तचाप तथा हृदय संबंधी बीमारियाँ बढ़ी हैं।
4. मृदा प्रदूषण-खेतों में उर्वरक एवं रसायनों का प्रयोग, फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग, औद्योगिक कचरे तथा प्लास्टिक की __ थैलियाँ जैसे हानिकारक पदार्थों के ज़मीन में मिल जाने के कारण भूमि या मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है। इस कारण ज़मीन की उर्वराशक्ति निरंतर घटती जा रही है।
प्रदूषण रोकने के उपाय – प्रदूषण रोकने के लिए सबसे पहले पेड़ों को कटने से बचाना चाहिए तथा अधिकाधिक पेड़ लगाने चाहिए। कल-कारखानों की चिमनियों को इतना ऊँचा उठाया जाना चाहिए कि इनकी दूषित हवा ऊपर निकल जाए। इनके कचरे को जल स्रोतों में मिलने से रोकने का भरपूर प्रबंध किया जाना चाहिए। घर के अपशिष्ट पदार्थों तथा पेड़ों की सूखी पत्तियों का उपयोग खाद बनाने में किया जाना चाहिए।
उपसंहार – प्रदूषण की समस्या विश्वव्यापी एवं जानलेवा समस्या है। इसे रोकने के लिए व्यक्तिगत प्रयास के अलावा सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। आइए इसे रोकने के लिए हम सब भी अपना योगदान दें।
4. भ्रष्टाचार-एक गंभीर समस्या अथवा भ्रष्टाचार-कारण और निवारण
- भ्रष्टाचार का अर्थ
- भ्रष्टाचार के कारण
- भ्रष्टाचार के परिणाम
- भ्रष्टाचार रोकने के उपाय
भूमिका – उपभोक्तावाद के इस दौर में मनुष्य हर तरह की सुख-सुविधा का उपभोग कर लेना चाहता है। इस मामले में वह समाज में किसी से पीछे नहीं रहना चाहता है। यही चाहत और दिखावे की प्रवृत्ति के कारण वह सुख पाने के हर तौर-तरीके अपनाने लगता है। इससे उसका नैतिक ह्रास होता है। इसी नैतिक हास के कारण व्यक्ति भ्रष्टाचार करने लगता है।
भ्रष्टाचार का अर्थ – भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-निकृष्ट श्रेणी का आचरण। भ्रष्टाचार के वश में आकर व्यक्ति नैतिकता का त्याग कर बैठता है और समाज एवं देश के हित का परित्याग कर अपनी जेबें भरने पर उतर आता है। जब व्यक्ति को जेबें भरने में खतरा नज़र आता है तो वह विभिन्न तरीकों से अपना स्वार्थ साधने लगता है। वह भाई-भतीजावाद तथा पक्षपात का रास्ता अपनाकर दूसरों का अहित करने लगता है।
भ्रष्टाचार के कारण – समाज में भ्रष्टाचार फैलने के अनेक कारण हैं। इनमें सबसे मुख्य कारण मानव का स्वभाव लालची होते जाना है। लालच के कारण उसका व्यवहार अर्थप्रधान हो गया है। वह हर काम में लाभ लेने का प्रयास करता है। इसके लिए वह पद और शक्ति का दुरुपयोग करने लगता है। कार्यालयों का वातावरण भ्रष्टाचार के कारण इतना दूषित हो गया है कि बाबुओं की बिना जेबें गरम किए काम करवाने की बात बेईमानी लगने लगती है। ऐसे में भ्रष्टाचार का बढ़ना स्वाभाविक ही है।
भ्रष्टाचार का दूसरा प्रमुख कारण बढ़ती जनसंख्या है, जिसके कारण सुविधाओं की कमी होती जा रही हैं। नौकरियों और सेवा के अवसरों की संख्या कम होती जाती है। दूसरी ओर इन्हें चाहने वालों की निरंतर बढ़ती कतार लंबी होती जा रही है। इसी बात का अनुचित फायदा नियोक्ता और बिचौलिए उठाने लगते हैं। पद के हिसाब से चढ़ावा माँगा जाने लगता है। इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है। भ्रष्टाचार का अन्य प्रमुख कारण मनुष्य में बढ़ती धनसंचय की प्रवृत्ति है।
वह निन्यानबे के फेर में पड़कर त्याग, परोपकार, उदारता बंधुत्व जैसे मानवीय मूल्यों की उपेक्षा करने लगता है और अपने ही भाइयों की जेबें काटने का काम करने लगता है। वह चाहता है कि उसे पैसा मिले, चाहे जैसे भी। भ्रष्टाचार का एक कारण हमारे कुछ माननीयों का नैतिक पतन भी है। वे भ्रष्टाचार से अरबोंखरबों की संपत्ति जोड़ लेते हैं। कानून भी ऐसे लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता हैं। ऐसे लोग बेईमान तथा नवभ्रष्ट लोगों के लिए नमूना बन जाते हैं।
भ्रष्टाचार के परिणाम – भ्रष्टाचार से समाज में अशांति, लोभ तथा नैतिक पतन को बढ़ावा मिलता है। मनुष्य देखता है कि उसके समाज और कभी उसी का समकक्ष हैसियत वाला व्यक्ति आज कहाँ से कहाँ पहुँच गया तो वह अशांत हो उठता है। उसके मन में लोभ जागता है। इससे समाज में एक ऐसा वातावरण पैदा होता है जिससे बगावत की बू आने लगती है। इससे सामाजिक समरसता घटती जाती है। व्यक्ति नैतिक-अनैतिक आचरण का भेद करना भूलने लगता है।
भ्रष्टाचार रोकने के उपाय – भ्रष्टाचार रोकने के लिए जहाँ सरकारी उपाय आवश्यक है, वहीं लोगों में नैतिक मूल्यों के उत्थान की भी आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वह भ्रष्टाचारियों को कड़ी सज़ा दे, किंतु इसके लिए वह सत्ता पक्ष के भ्रष्टाचारियों की अनदेखी न करे तथा वह बदला लेने की नीयत को भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठाया कदम न बताए। इनके अलावा लोगों को अपने पद, सत्ता एवं शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
उपसंहार-आज भ्रष्टाचार समाज का नासूर बनता जा रहा है। इसे समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि हमारे नेतागण आदर्श आचरण करके समाज को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने का उदाहरण प्रस्तुत करें। लोग अपनी नैतिकता बनाए रखें, तभी इस नासूर का इलाज संभव है।
5. प्रगति के पथ पर बढ़ता भारत
- शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति
- चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति
- रेलवे क्षेत्र में प्रगति
- अंतरिक्ष कार्यक्रम में प्रगति
- फ़िल्म क्षेत्र में प्रगति
भूमिका – परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस परिवर्तन से हमारा देश भी अछूता नहीं है। इसी परिवर्तन के कारण भारत प्रगति के पथ पर सतत् बढ़ता जा रहा है। भारत ने जब आजादी प्राप्त की थी, उस समय के स्वतंत्र भारत और आज के स्वतंत्र भारत की स्थिति में बहुत बदलाव आया है। भारत की यह उन्नति लगभग हर क्षेत्र में देखी जा सकती है।
शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति – भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है। यह प्रगति हम स्वतंत्रता के तुरंत बाद की साक्षरता दर और आज की साक्षरता दर में अंतर को देखकर जान सकते हैं। उच्च शिक्षा में प्रगति के लिए सरकार ने प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक व उच्च शिक्षा हेतु नए विद्यालय तथा विश्वविद्यालय खोले। उसने इन विद्यालयों में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की। उसने अनेक तकनीकी शिक्षण संस्थान खोले। इसके लिए छात्रवृत्ति एवं अन्य सुविधाएँ देकर छात्रों को विद्यालय की ओर लाने का प्रयास किया।
चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति – भारत ने चिकित्सा की दुनिया में अभूतपूर्व प्रगति की है। इसे मृत्युदर में आई कमी के आँकड़े देखकर जाना जा सकता है। इसके लिए सरकार ने आधुनिक सुविधाओं वाले अनेक अस्पताल खोले जहाँ आधुनिक मशीनें और आपरेशन की व्यवस्था की। इन अस्पतालों में योग्य डाक्टरों की नियुक्ति की। सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों और बच्चों के इलाज हेतु प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक केंद्रों की स्थापना के अलावा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की है। दिल्ली सरकार ने इससे भी दो कदम आगे बढ़कर मोहल्ला क्लिनिकों की स्थापना करके अनूठा कार्य किया है।
रेलवे क्षेत्र में प्रगति – अंग्रेजों ने 1853 में मुंबई से थाणे के बीच जिस रेल सेवा की शुरुआत की थी आज वह बहुत ही उन्नत अवस्था में पहुंच चुकी है। आज देश में पचास हज़ार किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी पटरियाँ बिछाई जा चुकी हैं। व्यस्त मार्गों पर इनके दोहरीकरण का काम किया जा रहा है। हज़ारों नए रेलवे स्टेशन बनाए जा चुके हैं। आज इन रेलों से प्रतिदिन लाखों यात्री यात्रा कर रहे हैं। रेल यात्रा को सुखद और मंगलमय बनाने का अनवरत प्रयास किया जा रहा है। अब तो देश के कई शहरों में मेट्रो रेल सेवा का विस्तार हो चुका है। देश में बुलेट ट्रेन चलाए जाने की योजना है।
अंतरिक्ष कार्यक्रम में प्रगति – आजादी से पहले देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की कल्पना करना भी अविश्वसनीय था। आज लगभग तीन दशक के समय में ही भारत ने इस क्षेत्र में अविश्वसनीय प्रगति की है। अब तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने एक दर्जन से अधिक आधुनिक उपग्रहों का निर्माण किया है। इसकी शुरुआत 1975 में प्रसिद्ध भारतीय खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के नाम वाले उपग्रह से हुई। ये उपग्रह मौसम की जानकारी, संचार, प्राकृतिक संसाधनों के नक्शे तैयार करने के उद्देश्य से छोड़े गए थे। आज दूरसंचार और टेलीविजन के कार्यक्रमों का प्रसारण इनसेट के माध्यम से किया जा रहा है। मंगल ग्रह की कक्षा में 24 सितंबर 2014 को भेजा गया मंगलयान विशेष उल्लेखनीय है।
फ़िल्म क्षेत्र में प्रगति – भारत में स्वतंत्रता के पूर्व से ही फ़िल्में बनाई जा रही है पर स्वतंत्रता के बाद भारत ने इस क्षेत्र में खूब तरक्की की है। यह प्रतिवर्ष सैकड़ों फ़िल्में बनती है जो भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हैं। उपसंहार-भारत ने प्रगति की जिन ऊँचाइयों को छुआ, उससे भारत विश्व में एक नई शक्ति के रूप में उभरा है। विदशों में भारत का मान-सम्मान बढ़ा है, जिससे हम भारतीयों को गर्वानुभूति होती है। भारत इसी तरह प्रगति के पथ पर बढ़ता रहे, हम यही कामना करते हैं।
6. व्यायाम का महत्त्व अथवा व्यायाम एक-लाभ अनेक
संकेत बिंदु –
- पुरुषार्थ प्राप्ति के लिए आवश्यक
- व्यायाम के लाभ
- व्यायाम का उचित समय
- ध्यान रखने योग्य बातें
भूमिका – गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- ‘बड़े भाग मानुष तन पावा’ अर्थात् मानव शरीर बड़ी किस्मत से मिलता है। इस शरीर से सुख-सुविधाओं का आनंद उठाने के लिए इसका स्वस्थ एवं नीरोग होना अत्यावश्यक है। यूँ तो स्वस्थ शरीर पाने के कई तरीके हो सकते हैं पर व्यायाम उनमें सर्वोत्तम है।
पुरुषार्थ प्राप्ति के लिए आवश्यक – मानव जीवन के चार पुरुषार्थ माने जाते हैं। ये हैं-धर्म अर्थ, काम और मोक्ष। इन्हें पाने का साधन है- स्वास्थ्य। अर्थात् यदि मनुष्य का जीवन नीरोग है तभी इन पुरुषार्थों के माध्यम से जीवन को सफल बनाया जा सकता है। रोगी और अस्वस्थ व्यक्ति न तो धर्मचिंतन कर सकता है और न उद्यम करके धनोपार्जन कर सकता है, न वह काम की प्राप्ति कर सकता है और न मोक्ष की प्राप्ति। अतः उत्तम स्वास्थ्य की ज़रूरत निस्संदेह है और उत्तम स्वास्थ्य पाने का सर्वोत्तम साधन हैव्यायाम। वास्तव में व्यायाम स्वास्थ्य का मूलमंत्र है।
व्यायाम के लाभ – उत्तम स्वास्थ्य के लिए संतुलित पौष्टिक भोजन शुद्ध जलवायु, संयमित जीवन, स्वच्छता आदि आवश्यक है, परंतु इनमें सर्वोपरि है-व्यायाम। व्यायाम के अभाव में पौष्टिक भोजन पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाता है।
व्यायाम में चिरयौवन पाने का राज छिपा है। जो व्यक्ति नियमित व्यायाम करता है, बुढ़ापा उसके निकट नहीं आता है। इससे उसका शरीर ऊर्जावान बना रहता है और लंबे समय तक चेहरे या शरीर पर झुर्रियाँ नहीं पड़ती हैं। व्यायाम हमारे शरीर की पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है। सही ढंग से पचा भोजन ही रक्त, मज्जा, माँस आदि में परिवर्तित हो पाता है। व्यायाम हमारे शरीर कर रक्त संचार भी ठीक रखता है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य भी उत्तम बनता है। इसके अलावा शरीर सुगठित, फुरतीला, लचीला और सुंदर बनता है।
व्यायाम का उचित समय – व्यायाम करने का सर्वोत्तम समय प्रातः काल है। इस समय पूरब की लालिमा शरीर में नवोत्साह भर देती है। इससे मन प्रफुल्लित हो जाता है। इस समय बहने वाली शीतल मंद हवा चित्त को प्रसन्न कर देती है और शरीर को ऊर्जा से भर देती है। पक्षियों का कलख कुछ-कहकर हमें व्यायाम करने की प्रेरणा देता हुआ प्रतीत होता है। इस समय शौच आदि से निवृत्त होकर बिना कुछ खाए व्यायाम करना चाहिए। ऋतु और मौसम को ध्यान में रखकर शरीर पर सरसों के तेल की मालिश व्यायाम से पूर्व करना अच्छा रहता है। दोपहर या तेज़ धूप में व्यायाम से बचना चाहिए। यदि किसी कारण सवेरे समय न मिले तो शाम को व्यायाम करना चाहिए।
ध्यान देने योग्य बातें – व्यायाम करते समय कुछ बाते अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। व्यायाम इस तरह करना चाहिए कि शरीर के सभी अंगों का सही ढंग से व्यायाम हो। शरीर के कुछ अंगों पर ही ज़ोर पड़ने से वे पुष्ट हो जाते हैं परंतु अन्य अंग कमजोर रह जाते हैं। इससे शरीर बेडौल हो जाता है। व्यायाम करते समय श्वास फूलने पर व्यायाम बंद कर देना चाहिए, अन्यथा शरीर की नसें टेढ़ी होने का डर रहता है। व्यायाम करते समय सदा नाक से साँस लेनी चाहिए, मुँह से कदापि नहीं। व्यायाम करने के तुरंत उपरांत कभी नहाना नहीं चाहिए। इसके अलावा व्यायाम ऐसी जगह पर करना चाहिए जहाँ पर्याप्त वायु और प्रकाश हो। व्यायाम की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए अन्यथा अगले दिन व्यायाम करने की इच्छा नहीं होगी।
उपसंहार – व्यायाम उत्तम स्वास्थ्य पाने की मुफ़्त औषधि है। इसके लिए बस इच्छाशक्ति और लगन की आवश्यकता होती है। हमें सवेरे देर तक सोने की आदत छोड़कर प्रतिदिन व्यायाम अवश्य करना चाहिए।
7. अभ्यास का महत्त्व अथवा करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
- भूमिका . अभ्यास की आवश्यकता
- अभ्यास और पशु-पक्षियों का जीवन
- सफलता का साधन-अभ्यास
- विद्यार्थी और अभ्यास
भूमिका – जीवन में सफलता पाने एवं किसी कार्य में दक्षता पाने के लिए बार-बार अभ्यास करना आवश्यक होता है। यह बात मनुष्य पर ही नहीं पशु-पक्षियों पर भी समान रूप से लागू होती है। कबूतर का शावक शुरू में चावल के दाने पर चोंच मारता है पर चोंच पत्थर पर टकराती है। बाद में वही पत्थरों के बीच पड़े चावल के दाने को एक ही बार में उठा लेता है।
अभ्यास की आवश्यकता – अत्यंत महीन और मुलायम तिनकों से बनी रस्सी के बार-बार आने-जाने से पत्थर से बनी कुएँ की जगत पर निशान पड़ जाते हैं। इन्हीं निशानों को देखकर मंदबुद्धि कहलाने वाले बरदराज के मस्तिष्क में बिजली कौंध गई और उन्होंने परिश्रम एवं लगन से पढ़ाई की और संस्कृति के वैयाकरणाचार्य बन गए। कुछ ऐसा ही हाल कालिदास का था, जो उसी डाल को काट रहे थे जिस पर वे बैठे थे।
बाद में निरंतर अभ्यास करके संस्कृत के प्रकांड विद्वान बने और विश्व प्रसिद्ध साहित्य की रचना की। ऐसा ही लार्ड डिजरायली के संबंध में कहा जाता है कि जब वे ब्रिटिश संसद में पहली बार बोलने के लिए खड़े हुए तो ‘संबोधन’ के अलावा कुछ और न कह सके। उन्होंने हार नहीं मानी और जंगल में जाकर पेड़-पौधों के सामने बोलने का अभ्यास करने लगे। उनका यह अभ्यास रंग लाया और संसद में जब वे दूसरी बार बोलने के लिए खड़े हुए तो उनका भाषण सुनकर सभी सांसद चकित रह गए।
अभ्यास और पशु-पक्षियों का जीवन – अभ्यास की महत्ता से मानव जाति ही नहीं पशु-पक्षी भी परिचित हैं। मधुमक्खियाँ निरंतर परिश्रम और अभ्यास से फूलों का पराग एकत्र करती हैं और अमृत तुल्य शहद बनाती हैं। नन्हीं चींटी अनाज का टुकड़ा लेकर बारबार चलने का अभ्यास करती है और अंततः ऊँची चढ़ाई पर भी वह अनाज उठाए चलती जाती है। इस प्रक्रिया में कई बार अनाज उसके मुँह से गिरता है तो अनेक बार वह स्वयं गिरती है, परंतु वह हिम्मत हारे बिना लगी रहती है और अंततः सफल होती है। इसी तरह पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए जगह-जगह से घास-फूस और लकड़ियाँ एकत्र करते हैं, फिर अत्यंत परिश्रम और अभ्यास से घोंसला बनाने में सफल हो जाते हैं।
सफल का साधन-अभ्यास – सफलता पाने के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है। खिलाड़ी बरसों अभ्यास करता और मनचाही सफलता प्राप्त करता है। पृथ्वीराज चौहान, राजा दशरथ आदि वीरों द्वारा शब्दबेधी बाण चलाकर निशाना लगाना उनके निरंतर अभ्यास का ही परिणाम था। विज्ञान की सारी दुनिया ही अभ्यास पर टिकी है। विज्ञान की खोजें और अन्य आविष्कार निरंतर अभ्यास से ही संभव हो सके हैं। यहाँ एक खोज के लिए ही अभ्यास करते-करते पूरी उम्र निकल जाती है।
विदयार्थी और अभ्यास – विद्यार्थियों के लिए अभ्यास की महत्ता अत्यधिक है। पुराने ज़माने में जब शिक्षा पाने का केंद्र गुरुकुल होते थे और शिक्षा प्रणाली मौखिक हुआ करती थी, तब भी विद्यार्थी अभ्यास से ही श्लोक और ग्रंथ याद कर लेते थे। कोरे कागज़ की तरह मस्तिष्क लेकर पाठशाला जाने वाले विद्यार्थी अभ्यास करते-करते अपने विषय में स्नातक, परास्नातक होकर डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर जाता है।
उपसंहार – अभ्यास सफलता का साधन है। सभी जीवधारियों को सफलता पाने हेतु आलस्य त्यागकर अभ्यास में जुट जाना चाहिए।
8. समय का महत्त्व अथवा समय चूकि वा पुनि पछताने
- समय सदा गतिमान
- समय बड़ा बलवान
- समय का पालन करती प्रकृति
- विद्यार्थी और समय का सदुपयोग
भूमिका – प्रकृति द्वारा मनुष्य को अनेकानेक वस्तुएँ प्रदान की गई हैं। इनमें कुछ ऐसी हैं जिनका मूल्य आँका जा सकता है और कुछ ऐसी हैं जिनके मूल्य का आँकलन नहीं किया जा सकता है। कुछ ऐसा ही है-समय, जिसका न तो मूल्य आँका जा सकता है और न वापस लौटाया जा सकता है।
समय सदा गतिमान – समय निरंतर गतिमान रहता है। उसे रोका नहीं जा सकता है। समय की गतिशीलता के बारे में ही कहा गया है। Time and tide wait for none. अर्थात् समय और समुद्री ज्वार किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं। जो व्यक्ति समय का लाभ नहीं उठाते हैं और अवसर आने पर चूक जाते हैं, या हाथ आए अवसर का लाभ नहीं उठा पाते हैं, वे पछताते रह जाते हैं। कहा गया है कि जो व्यक्ति समय को नष्ट करते हैं, समय उन्हें नष्ट कर देता है।
समय बड़ा बलवान – समय बड़ा बलवान माना जाता है। समय के आगे आज तक किसी की नहीं चली है। बड़े-बड़े योद्धा, राजा, धनसंपन्न व्यक्तियों की भी समय के सामने नहीं चल पाई। समय ने उन्हें भी अपना शिकार बना लिया। समय के साथ-साथ पेड़ों के पत्ते गिर जाते हैं, फल पककर शाखाओं का साथ छोड़ जाते है, और नीचे आ गिरते हैं।
समय का पालन करती प्रकृति – समय का महत्त्व भला प्रकृति से बढ़कर और कौन समझ पाया है। तभी तो प्रकृति के सारे काम समय. पर होते हैं। सूर्य समय पर उगकर अँधेरा ही दूर नहीं करता, बल्कि धरती पर प्रकाश और ऊष्मा फैलाता है। मुरगा समय पर बाग देना नहीं भूलता है तो उचित ऋतु पाकर पौधों में नई पत्तियाँ आ जाती हैं। वसंतु ऋतु में पौधों पर फूल आ जाते हैं। छोटा पौधा जैसे ही बड़ा होता है वह फल देना नहीं भूलता है। गरमी के अंत तक बादल पानी लाकर धरती का कल्याण करना नहीं भूलते हैं, तो समय पर फ़सलें अनाज दिए बिना नहीं सूखती हैं।
महापुरुषों की सफलता का राज़ – ऋषि-मुनि रहे हों या अन्य महापुरुष अथवा सफलता के शिखर पर पहुँचे व्यक्ति, सभी की सफलता के मूल में समय का महत्त्व एवं उसके पल-पल का उपयोग करने का राज छिपा है। महात्मा गांधी, नेहरू जी, तिलक आदि ने समय के पल-पल का उपयोग किया। वैज्ञानिकों की सफलता में समय पर काम करने की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। इसी प्रकार मात्र एक मिनट के विलंब से स्टेशन पर पहुँचने वाले लोगों की ट्रेन छूट जाती है।
समय के दुरुपयोग का दुष्परिणाम – कुछ लोगों की आदत होती है कि वे व्यर्थ में समय गँवाते हैं। वे कभी आराम करने के नाम पर तो कभी मनोरंजन के नाम पर समय का दुरुपयोग करते हैं। इस प्रकार समय गँवाने वाले सुखी नहीं रह सकते हैं। कहा जाता है कि जूलियस सीजर सभा में पाँच मिनट विलंब से पहुँचा और उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसी प्रकार कुछ ही मिनट की देरी से युद्ध स्थल पर विलंब से पहुंचने वाले नेपोलियन को नेल्सन के हाथों हार का सामना करना पड़ा, जिसकी डिक्शनरी में असंभव शब्द था ही नहीं।
विद्यार्थी और समय का सदुपयोग – विद्यार्थी जीवन, मानवजीवन के निर्माण का काल होता है। इस काल में यदि विद्यार्थी में समय के पल-पल के उपयोग की आदत एक बार पड़ जाती है तो वह आजीवन साथ रहती है। जो विद्यार्थी समय पर शय्या का त्यागकर पढ़ाई करते हैं, उन्हें अच्छा ग्रेड लाने से कोई रोक नहीं सकता है।
उपसंहार – समय अमूल्य धन है। हमें भूलकर भी इस धन का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। इससे पहले कि और देर हो, हमें समय के सदुपयोग की आदत डाल लेनी चाहिए।
9. जनसंख्या विस्फोट अथवा जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ
- भारत में जनसंख्या की स्थिति
- जनसंख्या वृद्धि के कारण
- जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ
- जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय
भूमिका – एक सूक्ति है–’अति सर्वत्र वय॑ते!’ अर्थात् अति हर जगह वर्जित होती है। यह सूक्ति हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि पर पूर्णतया लागू हो रही है। हाँ, जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, अब उस पर अंकुश लगाने का समय आ गया है। इसमें विलंब करने का परिणाम अच्छा नहीं होगा।
भारत में जनसंख्या की स्थिति – हमारे देश की जनसंख्या में तीव्र दर से वृद्धि हुई है। आज़ादी के समय 50 करोड़ रहने वाली जनसंख्या दूने से अधिक हो चुकी है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या 120 करोड़ की संख्या पार गई थी। वर्तमान में यह बढ़ते-बढ़ते 122 करोड़ छूने लगी है। इतनी बड़ी जनसंख्या अपने आप में एक समस्या है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण – जनसंख्या वृद्धि के कारणों के मूल में जाने से ज्ञात होता है कि इस समस्या के एक नहीं अनेक कारण हैं। इनमें अशिक्षा मुख्य है। हमारे देश के ग्रामीण अंचलों की निरक्षर जनता आज भी अशिक्षा के कारण बच्चों को भगवान की देन मानकर इस पर नियंत्रण लगाने के लिए तैयार नहीं है। इन क्षेत्रों की धार्मिकता एवं धर्मांधता के कारण जनसंख्या वृद्धि हो रही है। हिंदू धर्म में पुत्र को मोक्षदाता माना जाता है।
अपने एक मोक्षदाता को पाने के लिए वे कई-कई लड़कियाँ पैदा करते हैं और जनसंख्या वृद्धि रोकने को तैयार नहीं होते हैं। कई जातियों में व्याप्त बहुविवाह प्रथा के कारण भी जनसंख्या वृद्धि हो रही है। अशिक्षित तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता का अभाव एवं अज्ञानता के कारण जनसंख्या वृद्धि होती रही है। गर्भ निरोधन के साधनों की जानकारी उन तक नहीं पहुँच पाती हैं।
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ – वास्तव में जनसंख्या वृद्धि एक समस्या न होकर अनेक समस्याओं की जड़ है। इसके कारण प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह की समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं। इनमें प्रमुख समस्या है-सुविधाओं का बँटवारा और कमी। देश में जितनी सुविधाएँ और संसाधन उपलब्ध हैं, वे देश की जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति करने में अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैं। सरकार इन सुविधाओं को बढ़ाने के लिए योजना बनाती है और उनमें वृद्धि करती है, जनसंख्या में उससे अधिक वृद्धि हो चुकी होती है।
अतः संसाधनों की कमी बनी रह जाती है। बेरोज़गारी, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, यातायात के साधनों की भीड़, सब जनसंख्या वृद्धि के कारण ही हैं। जनसंख्या की अधिकता के कारण ही व्यक्ति को न पेट भरने के लिए रोटी मिल रही है और न तन ढंकने के लिए वस्त्र। हर हाथ को काम मिलने की बात करना ही बेईमानी होगी। अब भूखा और बेरोज़गार शांत बैठने से रहा। वह हर नैतिक-अनैतिक हथकंडे अपनाकर कार्य करता है और कानून व्यवस्था को चुनौती देता है। पर्यावरण प्रदूषण और वैश्विक ऊष्मीकरण भी जनसंख्या वृद्धि की देन है।
जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय – जनसंख्या की समस्या ने निपटने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। सरकार कानून बनाकर उसे ईमानदारी से लागू करवाए तथा युवा वर्ग इसकी हानियों पर विचार कर स्वयं ही समझदारी दिखाएँ।
उपसंहार-जनसंख्या वृद्धि देश, समाज और विश्व सबके लिए हानिकारक है। इसे रोकने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। इसके लिए आज से ही सोचने की ज़रूरत है, क्योंकि कल तक तो बहुत देर हो चुकी होगी।
10. बढ़ती महँगाई-एक विकट समस्या अथवा महँगाई की समस्या
- महँगाई के दुष्परिणाम
- सामाजिक समरसता के लिए घातक
- महँगाई वृद्धि के कारण
- महँगाई रोकने के उपाय
भूमिका – आज देश को जिन समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है, उनमें महँगाई सर्वोपरि है। यह ऐसी समस्या है जिससे मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर सभी पीड़ित हैं। गरीब और निम्न आयवर्ग के लोगों के लिए महँगाई जानलेवा बनी हुई है।
महँगाई के दुष्परिणाम – महँगाई के कारण उपयोग और उपभोग की हर वस्तु के दाम आसमान छूने लगते हैं। ऐसे में जनसाधारण की मूलभूत आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो पाती हैं। न भरपेट भोजन और न शरीर ढंकने के लिए वस्त्र, आवास की समस्या की बात ही क्या करना। उसका सारा ध्यान और शक्ति प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने में ही निकल जाता है। उसे कला, संस्कृति, साहित्य, सौंदर्य बोध आदि के बारे में सोचने का समय नहीं मिल पाता है। ऐसे में व्यक्ति की स्थिति ‘साहित्य संगीत कला विहीनः साक्षात नर पुच्छ विषाण हीनः’ की होकर रह जाती है। ऐसा लगता है कि उसका जीवन आर्थिक समस्याओं से जूझने में ही बीत जाता है।
सामाजिक समरसता के लिए घातक – महँगाई के कारण जब समाज को रोटी मिलना कठिन हो जाता है तो वर्ग संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। समाज में छीना-झपटी, लूटमार की स्थिति बन जाती है। ऐसे में सामाजिक समरसता का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जाता है। इसके अलावा समाज में कानून व्यवस्था की चुनौती उत्पन्न हो जाती है।
महँगाई वृद्धि के कारण – महँगाई बढ़ाने के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। इनमें जनसंख्या वृद्धि प्रमुख कारण है। अर्थशास्त्र का एक सिद्धांत है कि जब वस्तु की माँग बढ़ती है तो उसके मूल्य में वृद्धि हो जाती है। ऐसे में ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बढ़ती जनसंख्या की माँग पूरा करने के लिए जब वस्तुओं की कमी होती है तो महँगाई बढ़ने लगती है।
कुछ व्यापारियों की लोभ प्रवृत्ति भी महँगाई बढ़ाने के लिए उत्तरदायी होती है। ऐसे व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तुओं की जमाखोरी करते हैं और कृत्रिम कमी दिखाकर वस्तुओं का मूल्य बढ़ा देते हैं, और बाद में बढ़े दामों पर बेचते हैं।
मौसम की मार, प्राकृतिक आपदा आदि के कारण जब फ़सलें नष्ट होती हैं, तो महँगाई बढ़ जाती है। इसके अलावा सरकार की कुछ नीतियों के कारण भी महँगाई बढ़ती जाती है।
महँगाई रोकने के उपाय – महँगाई वह समस्या है जिससे देश की बहुसंख्यक जनता दुखी है। ऐसे में महँगाई रोकने के लिए सरकार को प्राथमिकता के आधार पर कदम उठाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह जमाखोरों तथा कालाबाज़ारी करने वालों के विरुद्ध ठोस कार्यवाली करे और जमाखोरी की वस्तुओं का वितरण सार्वजनिक प्रणाली के अनुसार करे।
जिन वस्तुओं के मूल्य में अचानक उछाल आ रहा हो उनका आयात करके जनता में वितरित करवाना चाहिए तथा लोगों से धैर्य बनाए रखने की अपील करनी चाहिए। राजनीतिज्ञों को चाहिए कि वे चुनाव में खर्च को कम करें, काले धन का प्रयोग न करें। चुनाव का खर्च बढ़ने पर तथा ‘येन केन प्रकारेण’ चुनाव जीतने की लालसा के कारण वे बेतहाशा पैसा खर्च करते हैं। उन्हें इस प्रवृत्ति पर स्वयं अंकुश लगाने की ज़रूरत है।
उपसंहार – महँगाई व्यक्ति का जीना मुश्किल कर देती है। भूखा व्यक्ति अपनी जठराग्नि शांत करने के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर हो जाता है। समाज के अमीर वर्ग को उदारता एवं दयालुता का परिचय देकर दीन-हीनों की मदद कर महँगाई की मार से उन्हें बचाने के लिए आगे आना चाहिए।
11. अच्छा पड़ोस अथवा अच्छा पड़ोस कितना आवश्यक
- पड़ोसी का महत्त्व
- पड़ोसी से हमारा व्यवहार
- पड़ोसी से व्यवहार खराब होने के कारण
- महानगरों का पड़ोस
भूमिका – मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह लोगों के साथ मिल-जुलकर रहता है। वह अपना दुख-सुख दूसरों को बताता है और उनके सुख-दुख में शामिल होता है। ऐसे में जो व्यक्ति उसके सबसे निकट होता है और उसके सुख-दुख में तुरंत हाज़िर हो जाता है, वह है उसका पड़ोसी। कहते हैं कि अच्छा पड़ोसी किस्मत वालों को ही मिलता है।
पड़ोसी का महत्त्व – जीवन में दुख-सुख का आना-जाना लगा रहता है। व्यक्ति को दुख के समय मददगार व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में पड़ोसी ही हमारा निकटतम रिश्तेदार एवं मददगार होता है। अच्छा पड़ोसी मिलने से जिंदगी चैन से कट जाती है, जबकि बुरा पड़ोसी सिरदर्द बन जाता है।
पड़ोसी से हमारा व्यवहार – एक लोकोक्ति है कि ताली दोनों हाथों से बजती है। अर्थात् पड़ोसी हमारे साथ अच्छा व्यवहार करे इसके लिए आवश्यक है कि हम भी उसके साथ अच्छा व्यवहार करें। हमारे व्यवहार में स्वार्थभाव आने पर संबंधों में किसी भी समय कटुता आने की स्थिति बन जाती है। हमें पड़ोसी के साथ यथासंभव निःस्वार्थ व्यवहार करना चाहिए। हमें पड़ोसी के दुख-सुख में अवश्य शामिल होना चाहिए। हमें उसकी विपत्ति और संकट को अपना दुख मानकर उसके समाधान का प्रयास करना चाहिए। हमें हर स्थिति में पड़ोसी से संबंध बनाकर रखना चाहिए। ऐसा करना हमारे लिए हितकर होता है। कभी-कभी अनजान लोगों के मन में वही छवि बन जाती है जो हमारा पड़ोसी उनसे बता देता है।
पड़ोसी से व्यवहार खराब होने के कारण – पड़ोसी के साथ व्यवहार खराब होने के लिए जो बातें अक्सर सामने आती हैं, उनमें प्रमुख हैं-हमारा स्वार्थभरा व्यवहार। ऐसा हम पड़ोसी से रोजमर्रा की वस्तुएँ माँगकर करते हैं। कभी चीनी, कभी चाय और कभी कुछ और। अक्सर हम उनका अखबार माँगकर तो पढ़ते हैं, पर उसे लौटाना भूल जाते हैं। ऐसी स्थिति उन्हें बुरी तो लगती है पर वे चाहकर भी कुछ कह नहीं पाते हैं। इसके अलावा गली में खेलने या अपने घर में खट-पट करने पर अक्सर पड़ोसी के बच्चों को डाँट-फटकार देते हैं। यह व्यवहार पड़ोसी को बिल्कुल नहीं सुहाता है। इसके अलावा अक्सर रुपये की माँग जब पड़ोसी से कर बैठते हैं और समय पर नहीं लौटाते हैं, तो व्यवहार खराब होना तय समझ लेना चाहिए।
महानगरों का पड़ोस – महानगरों का जीवन अत्यंत व्यस्त होता है। लोगों को अपने काम से अवकाश नहीं होता है। इसके अलावा शहर के लोग ज़्यादा आत्मकेंद्रित होते हैं। इस कारण वे पड़ोस की ओर ध्यान नहीं देते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि पड़ोसी के घर में चोरी या कोई दुर्घटना हो जाती है तो कई घंटे तक पता ही नहीं चल पाता है या हम उदासीन बने रहते हैं। इस भौतिकवादी युग में लोगों की बढ़ती स्वार्थ प्रवृत्ति ने पड़ोस के मायने ही बदलकर रख दिया है। हमारी आधुनिक बनने की सोच ने भी पड़ोस धर्म पर असर डाला है। इससे हम अपनी पुरानी बातें और मान्यताएँ बदलते जा रहे हैं। आधुनिक होने के साथ-साथ यह आवश्यक है कि हम पड़ोसी धर्म निभाना भी सीखें।
उपसंहार-हम एक अच्छे पड़ोसी बनें, इनके लिए हमें सहनशील बनना होगा। हमें पड़ोसी या उसके बच्चों की छोटी-छोटी बातों की उपेक्षा करके सद्भाव बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहने से अच्छा पड़ोस बनने से रहा। अतः हमें अपना व्यवहार सुधारकर अच्छा पड़ोसी बनने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।
12. आधुनिक समाज में नारी अथवा समाज में नारी की बदलती भूमिका
- प्राचीन काल में नारी की स्थिति
- मध्यकाल में नारी की स्थिति
- आधुनिक काल में नारी
- नारी में बढ़ी आत्मनिर्भरता
भूमिका – स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। आदिकाल से ही ये दोनों पहिए मिलकर जीवन की गाड़ी को सुचारु रूप से खींचते आए हैं। समय बदलने के साथ ही स्त्री की स्थिति में बदलाव आता गया। उसकी सीमा अब घर के अंदर तक ही सीमित नहीं रही। वह घर-परिवार के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करती नज़र आती है।
प्राचीन काल में नारी की स्थिति – प्राचीन काल में नारी को मनुष्य के समान ही समानता का दर्जा प्राप्त था। भले ही उस समय शिक्षा का प्रचार-प्रसार अधिक नहीं था, परंतु स्त्रियों को दबाए रखने का प्रचलन भी नहीं था। उस समय स्त्रियाँ घर के काम-काज करती थीं। वे पुरुष द्वारा कमाए धन को सँभालती थी। खाना बनाने जैसे घरेलू कार्य तथा बच्चों की देखभाल का काम उनके जिम्मे रहता था। पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन आदि में वे पुरुषों का साथ देती थीं।
मध्यकाल में नारी की स्थिति – मध्यकाल आते-आते नारी की स्थिति में बदलाव आता गया। इस समय देश को आक्रमण और युद्धों का सामना करना पड़ रहा था। नारी को आतताइयों के हाथों में पड़ने से बचाने के लिए उस परदे में रखा जाने लगा। उसे घर की चार दीवारी में कैद कर दिया गया। मुगलकाल में परदा प्रथा और बाल-विवाह की कुप्रथा की वृद्धि हुई। इस काल में नारी को शिक्षा से वंचित रखकर उसे उपभोग की वस्तु बना दिया गया।
आधुनिक काल में नारी – अंग्रेज़ी शासनकाल के उत्तरार्ध से नारी की स्थिति में सुधार आना शुरू हो गया। सावित्री बाई फुले एवं ज्योतिबा फुले ने नारी की शिक्षा के लिए जो प्रयास किया था, वह स्वतंत्रता के बाद रंग लाने लगा। सरकारी प्रयासों से नारी शिक्षा एवं उसके स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए अनेक ठोस कदम उठाए गए और योजनाबद्ध तरीके से काम किया गया। इसका परिणाम भी सामने आने लगा।
आधुनिक काल में नारी पुरुषों की भाँति उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। वह विभिन्न कौशलों का शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है। आज नारी घर की सीमा लाँघकर स्कूल, कॉलेज, कार्यालय, अस्पताल, बैंक, उड्डयन क्षेत्र आदि में अपनी योग्यतानुसार कार्य कर रही है। इतना ही नहीं, राजनीति, वैज्ञानिक संस्थान खेल जगत, सेना, पुलिस, पर्वतारोहण, विमानन, पर्यटन आदि कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ नारी के कदम न पहुँचे हों। आज स्थिति यह है कि नारी द्वारा नौकरी करने के कारण पुरुष बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है।
नारी में बढ़ी आत्मनिर्भरता – नारी की शिक्षा और नौकरी ने उसके आत्मविश्वास में वृधि की है। इससे वह पुरुषों की निरंकुशता से मुक्त हो रही है। नौकरी के कारण वेतन उसके हाथ में आया है। इस आर्थिक स्वावलंबन ने उसके आत्मविश्वास में वृद्धि की है। अब पुरुषों के समान ही अपनी कार्यक्षमता से समाज को प्रभावित कर रही है। कुछ रुढ़िवादी और परंपरागत सोच-विचार वाले पुरुष जिन्हें उसकी कार्यक्षमता और कौशल पर विश्वास न था, वे चकित होकर उसे देख ही नहीं रहे हैं, बल्कि उसकी योग्यता के कायल भी हो रहे हैं।
अब तो सरकार ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में पुरुष और महिला का वेतनमान बराबर कर दिया है। कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहाँ महिलाएं पुरुषों से भी दो कदम आगे बढ़कर काम कर रही हैं। उनकी कार्यकुशलता देखकर पुरुष समाज नारी के प्रति अपनी बनी-बनाई परंपरागत सोच में बदलाव लाना शुरू कर दिया है।
उपसंहार-इसमें कोई संदेह नहीं कि आज समाज में नारी की स्थिति उन्नत हुई है। अब पुरुषों को यह ध्यान रखना है कि कार्यालय में काम करने के बाद उसे घर की चक्की में पिसने के लिए विवश न करे। यथासंभव घर में नारी का साथ देकर घरेलू कार्यों और जिम्मेदारियों में हाथ बटाएँ तथा उसे सम्मान की दृष्टि से देखने का प्रयास करें।
13. कंप्यूटर के लाभ अथवा कंप्यूटर-आज की आवश्यकता
- कंप्यूटर-एक बहुउपयोगी यंत्र
- शिक्षण कार्यों में कंप्यूटर
- बैंकों में कंप्यूटर
- विभिन्न कार्यालयों में कंप्यूटर
- व्यक्तिगत उपयोग
- कंप्यूटर से हानियाँ
भूमिका-विज्ञान ने मुनष्य को ऐसे अनेक उपकरण प्रदान किए हैं जिनकी कभी वह कल्पना किया करता था। इन उपकरणों ने मानव-जीवन को नाना प्रकार से सुखमय बनाया है। ये उपकरण इनते उपयोगी हैं कि वे मनुष्य की आवश्यकता बनते जा रहे हैं। इन्हीं उपकरणों में एक है-कंप्यूटर। कंप्यूटर विज्ञान का चमत्कारी यंत्र है।
कंप्यूटर-एक बहुउपयोगी यंत्र – कंप्यूटर का आविष्कार विज्ञान के चमत्कारों में से एक है। यह ऐसा यंत्र है जिसका उपयोग लगभग हर जगह किया जाता है। यह व्यक्तिगत उपयोग में लाया जा रहा है। शायद ही ऐसा कोई कार्यालय हो जहाँ किसी न किसी रूप में इसका उपयोग किया जा रहा है। अब इसे लाना-ले जाना भी सुगम होता जा रहा है, क्योंकि इसके मॉडल में बदलाव आता जा रहा है।
शिक्षण कार्यों में कंप्यूटर – आने वाले समय में शिक्षण का अधिकांश कार्य कंप्यूटर से किया जाने लगेगा। यद्यपि प्रोजेक्टर के माध्यम से आज भी वभिन्न कोसों की पढ़ाई कंप्यूटर से करवाई जा रही है तथा छात्र-छात्राएँ इसकी मदद से प्रोजेक्ट बनाने आदि का काम कर रहे हैं, पर आने वाले समय में छात्रों को बस्ते के बोझ से मुक्ति मिल जाएगी। उनकी सारी पुस्तकें और पाठ्यसामग्री कंप्यूटर पर ही उपलब्ध हो जाएगी। अब वह समय भी दूर नहीं जब शिक्षक भी कंप्यूटर ही होगा। वह छात्रों को निर्देश देकर विभिन्न विषयों की पढ़ाई करवाएगा। आज भी छात्र अपनी मोटी-मोटी पुस्तकें पी.डी.एफ.फार्म में करके कंप्यूटर से पढ़ाई कर रहे हैं।
बैंकों में कंप्यूटर – कंप्यूटर बैंकिंग क्षेत्र के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है। अब कंप्यूटर के कारण क्लर्कों को न हाथ से काम करना पड़ रहा है और न फाइलें और लेजर सँभालने का झंझट रहा। सभी ग्राहकों के खाते अब कंप्यूटर की फाइलों में सिमट आए हैं। कंप्यूटर में न इनके खोने का डर है और न चूहों के काटने का। इसके अलावा एक कंप्यूटर कई-कई क्लर्कों का काम बिना थके करता है। कंप्यूटर न तो हड़ताल करता है और वेतन बढ़ाने के लिए कहता है। यह ऐसा यंत्र है जो बिना गलती किए अधिकाधिक कार्य कम से कम समय में पूरा कर देता है।
विभिन्न कार्यालयों में कंप्यूटर – कंप्यूटर अपनी उपयोगिता के कारण हर सरकारी और प्राइवेट कार्यालयों में प्रयोग किया जाने लगा है। आज इसे वैज्ञानिक, आर्थिक युद्ध, ज्योतिष, मौसम विभाग, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जा रहा है। इसका प्रयोग बिल बनाने, कर्मचारियों के वेतन, पी.एफ. का हिसाब रखने, खातों के संचालन आदि में खूब प्रयोग किया जा रहा है। इसी प्रकार रेलवे, वायुयान, समुद्री जहाजों के संचालन के लिए भी कंप्यूटर की मदद ली जा रही है।
व्यक्तिगत उपयोग – आज कंप्यूटर का व्यक्तिगत उपयोग व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। छात्र इसका उपयोग पढ़ाई के लिए कर रहे हैं, तो चित्रकार और कलाकार इसका प्रयोग अपनी कला को निखारने के लिए कर रहे हैं। गीत-संगीत की रिकॉर्डिंग और संकलन का कार्य कंप्यूटर से बखूबी किया जा रहा है। कंप्यूटर से हानियाँ-कंप्यूटर का एक पक्ष जितना उजला है, दूसरा पक्ष उतना ही श्याम भी है। ‘अति सर्वत्र वय॑ते’ की उक्ति इस पर पूरी तरह लागू होती है। इसका अधिक उपयोग मोटापा बढ़ाता है। इस पर ज़्यादा देर काम करना आँख और कमर के लिए हानिकारक होता है। इसके अलावा इस पर सारी गणनाएँ सरलता से हो जाने के कारण अब मौखिक दक्षता और याद करने की क्षमता में कमी आने लगी है।
उपसंहार – कंप्यूटर अद्भुत तथा अत्यंत उपयोगी यंत्र है, पर इसका अधिक प्रयोग हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसका प्रयोग व्यक्ति को आत्मकेंद्रित बनाता है। इसका आवश्यकतानुसार सोच-समझकर प्रयोग करना चाहिए।
14. भारत का प्राकृतिक सौंदर्य अथवा दुनिया से न्यारा देश हमारा
- पावन एवं गौरवमयी देश
- प्राकृतिक सौंदर्य
- ऋतुओं का अनुपम उपहार
- स्वर्ग से भी बढ़कर
भूमिका – हमारे देश का नाम भारत है। दुनिया इसे हिंदुस्तान, इंडिया, आर्यावर्त आदि नामों से जानती है। यह देश एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसकी संस्कृति अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। अपनी विभिन्न विशेषताओं के कारण यह देश, दुनिया में विशिष्ट स्थान रखता है।
पावन एवं संदर देश – हमारा देश पावन है। यह देश गौरवमयी है। इस गौरवमयी देश में जन्म लेने को देवता भी लालायित रहते हैं। भगवान श्रीराम, कृष्ण, नानक कबीर, बुद्ध गुरुगोविंद सिंह आदि ने इसी पावन भूमि पर जन्म लिया है। यहीं उन्होंने अपनी लीलाएँ रची और दुनिया को ज्ञान और सदाचार का सन्मार्ग दिखाया।
प्राकृतिक सौंदर्य – प्राचीन काल में इसी देश में दुष्यंत नामक राजा राज्य करते थे। दुष्यंत और शकुंतला का पुत्र भरत अत्यंत वीर एवं प्रतापी था। उसी के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। भौगोलिक दृष्टि से इस देश का प्राकृतिक स्वरूप अत्यंत मोहक है। इसके उत्तर में पर्वतराज हिमालय है जिसकी हिमाच्छादित चोटियाँ भारत के मुकुट के समान प्रतीत होती है। इसके दक्षिण में हिंद महासागर है। ऐसा लगता है जैसे सागर इसके चरण पखार रहा है।
इसके सीने पर बहती गंगा-यमुना इसका यशगान करती-सी प्रतीत हो रही हैं। भारत भूमि शस्य श्यामला है। नभ में उड़ते कलरव करते पक्षी इस देश का गुणगान दुनिया को सुनाते हुए प्रतीत होते हैं। भारत के दक्षिणी भाग में समुद्री किनारे नारियल के पेड़ हैं, तो मध्य भाग में हरे-भरे वन और फलदायी वृक्ष। इनसे भारत का सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है। इसके उत्तरी भाग जम्मू-कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ स्थित डलझील और उसमें तैरते शिकारे, शालीमार बाग, निशात बाग हमें धरती पर स्वर्ग की अनुभूति कराते हैं।
ऋतुओं का अनुपम उपहार – हमारे देश भारत को ऋतुओं का अनुपम उपहार प्रकृति से मिला है। यहाँ छह (6) ऋतुएँ-ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत और वसंत बारी-बारी से आती हैं और अपना सौंदर्य बिखरा जाती हैं। यह दुनिया का इकलौता देश है, जहाँ ऋतुओं में इतनी विविधता है। गरमी की ऋतु हमें शीतल पेय और तरह-तरह के फलों का आनंद देती है, तो वर्षा ऋतु धरती पर सर्वत्र हरियाली बिखरा जाती है। शरद ऋतु संधिकाल होती है।
शिशिर और हेमंत हमें सरदी का अहसास करवाते हैं, तो वसंत ऋतु अपने साथ हर्षोल्लास लेकर आती है और सर्वत्र खुशियों के फूल खिला जाती है। इस ऋतु में धरती का सौंदर्य अन्य ऋतुओं से बढ़ जाता है। स्वर्ग से भी बढ़कर हमारी भारत भूमि स्वर्ग से बढ़कर है। इसी भूमि के बारे में कहा गया है-‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। इसका भाव यह है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। इसी भूमि के बारे में श्रीकृष्ण ने अपने सखा उद्धव से कहा था
ऊधौ! मोहि ब्रज बिसरत नाहीं। हंससुता की सुंदर कगरी और कुंजन की छाहीं। भगवान राम ने भी अयोध्या की सुंदरता के बारे में कहा है – अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
उपसंहार-भारत देश अत्यंत विशाल है। यह जितना विशाल है उससे अधिक सुंदर एवं पावन है। पर्वत, सागर, नदी, रेगिस्तान का विशाल मैदान आदि इसकी सुंदरता में वृद्धि करते हैं। इसकी प्राकृतिक सुंदरता इसे स्वर्ग-सा सुंदर बनाती है। हम भारतीयों को भूल से भी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे इसकी गरिमा एवं सौंदर्य को ठेस पहुँचे। हमें अपने देश पर गर्व है।
15. लड़कियों की संख्या में आती कमी अथवा गिरता लिंगानुपात
- महिलाओं की संख्या में आती गिरावट
- आर्थिक संपन्नता और लिंगानुपात में विपरीत संबंध
- कमी आने का कारण
- सुधार के उपाय
भूमिका – मानव जीवन एक गाड़ी के समान है। स्त्री और पुरुष इस गाड़ी के दो पहिए हैं। जिस प्रकार एक पहिए पर गाड़ी चलना कठिन हो जाता है उसी तरह समाज में स्त्रियों की संख्या कम होने पर सामाजिक ढाँचा चरमरा जाता है। यह स्थिति मनुष्य और समाज दोनों में से किसी के लिए अच्छी नहीं समझी जाती है।
महिलाओं की संख्या में आती गिरावट – हमारे देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। 2011 में यह संख्या 120 करोड़ पार गई थी। वर्तमान में यह 122 करोड़ से भी ज़्यादा हो चुकी है, परंतु दुखद बात यह है कि जनसंख्या की इस बेतहाशा वृद्धि के बाद भी स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। आज स्थिति यह है देश में एक हजार पुरुषों के पीछे नौ सौ से भी कम स्त्रियाँ हैं। केरल एक मात्र राज्य है जहाँ लिंगानुपात देश के अन्य राज्यों से बेहतर है। देश के शेष अन्य राज्यों में लिंगानुपात अर्थात लड़कियों की संख्या पुरुषों से कम है।
आर्थिक संपन्नता और लिंगानुपात में विपरीत संबंध – जनसंख्या संबंधी आँकड़े देखने से एक विडंबनापूर्ण स्थिति हमारे सामने यह आती है कि जो राज्य आर्थिक रूप से और शिक्षा की दृष्टि से जितने आगे समझे जाते हैं, लिंग अनुपात के मामले में वे उतने ही पीछे हैं। इसके विपरीत जो राज्य जितने गरीब और शैक्षिक दृष्टि से पीछे हैं, वहाँ लिंगानुपात अन्य राज्यों से उतना ही अच्छा है।
हरियाणा और पंजाब उच्च संपन्न और शिक्षित राज्य हैं, जहाँ लिंगानुपात एक हजार पुरुषों पर 870 से भी कम है, जबकि बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसे गरीब और कम शिक्षित राज्यों में लिंगानुपात, पंजाब, हरियाणा से बेहतर ही नहीं, बहुत बेहतर है। पंजाब-हरियाणा की स्थिति तो अब यह है कि वहाँ लड़कों के विवाह के लिए लड़कियों की कमी हो गई है। इससे वे अन्य राज्यों का रुख करते हैं और खरीद-फरोख्त को बढ़ावा देते हैं। इससे सामाजिक असंतुलन तथा अन्य समस्याएँ उत्पन्न होने का खतरा पैदा हो गया है।
कमी आने का कारण – भारतीय समाज में लड़कियों से जुड़ी यह मान्यता प्रचलित है कि वे घर की इज़्ज़त होती हैं। मध्यकाल से ही विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों में पड़ने से बचाने के लिए उन्हें परदे में रखा गया तथा उनके अधिकार छीन लिए गए। विवाह योग्य कन्याओं के विवाह में आने वाली परेशानियों को देखते हुए उन्हें बोझ समझा जाने लगा। बस धीरे-धीरे लड़कियों को जन्म लेने से रोकने के उपाय अपनाए जाने लगे।
यदि परिवार में लड़की का जन्म हो भी गया, तो उसके पालन-पोषण और इलाज पर ध्यान नहीं दिया जाता था ताकि किसी तरह उसका जीवन समाप्त हो जाए। विज्ञान के साधनों एवं शिक्षा के विस्तार के साथ ही कन्याभ्रूण को ही मार देने के तरीके अपनाए जाने लगे। पुरुष प्रधान समाज में कन्या का जन्म लेना ही हीन समझा जाने लगा। इससे कन्या के जन्मने से पूर्व ही उसे मार दिया जाने लगा, जिसका दुष्परिणाम आज हम सबके सामने है।
सुधार के उपाय – समाज में लड़कियों की संख्या बढ़ाने के लिए सामाजिक जागरुकता ही ज़रूरत है। पुरुष प्रधान समाज को अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए। उसे लड़की-लड़के में भेद करने की प्रवृत्ति त्याग देनी चाहिए। युवाओं को इस दिशा में विशेष रूप से आगे आने की आवश्यकता है। यद्यपि सरकार ने एक ओर कन्या भ्रूण हत्या को अपराध घोषित किया है, तो दूसरी ओर कन्याओं के पालन-पोषण और शिक्षण से जुड़ी अनेक योजनाएं शुरू की हैं, ताकि समाज कन्या जन्म को बोझ न समझे। फिर भी समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की नितांत आवश्यकता है।
उपसंहार – समाज का संतुलन बनाए रखने के लिए लड़की-लड़के दोनों की जरूरत होती है। किसी एक की कमी सामाजिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न कर देगी। समाज में लड़कियों की संख्या में गिरावट को रोकने के लिए हमें भारतीय संस्कृति का आदर्श पुनः लाने की आवश्यकता है—’यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।
16. बाल मजदूरी-एक अभिशाप अथवा बच्चों का छिनता बचपन-बालश्रम
- समस्या का स्वरूप
- घर में बालश्रम
- कारखानों-उद्योगों में बालश्रम
- बाल मजदूरी क्यों?
- बाल मजदूरी के दुष्परिणाम
- रोकने के उपाय
भूमिका – हमारे समाज में अनेक समस्याएँ व्याप्त हैं, जिनके कारण समाज की प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। इन समस्याओं में बालश्रम, छुआछूत, गरीबी, अशिक्षा, दहेज प्रथा आदि हैं। इनमें बालश्रम की समस्या ऐसी है जिससे बच्चों का वर्तमान ही नहीं बल्कि उनका भविष्य भी चौपट हो रहा है। यह समस्या किसी अभिशाप के समान है।
समस्या का स्वरूप-बच्चों द्वारा पढ़ना-लिखना, खेलना कूदना छोड़कर काम करने पर जाने के लिए विवश होना और काम करना ही बालश्रम कहलाता है। इसे बाल मजदूरी भी कहा जाता है। बचपन में काम करने से बच्चों का भविष्य नष्ट होता है, अतः इसे रोकने के लिए समय-समय पर आवाजें उठाई जाती रही हैं। ‘बचपन बचाओ’ नामक आंदोलन इसी दिशा में उठाया गया एक कदम था।
घर में बालश्रम – बालश्रम की समस्या किसी क्षेत्र तक सीमित नहीं है। इसका दायरा विस्तृत है। पढ़े-लिखे और सभ्य कहलाने वाले लोग बच्चों को घरेलू नौकर रखकर काम करवाते हैं। इन बाल श्रमिकों को बहुत कम पारिश्रमिक दिया जाता है। उन्हें बचा खुचा भोजन और फटे-पुराने कपड़े पहनने को दिए जाते हैं। उनसे उनकी उम्र से अधिक काम लिया जाता है। इन बच्चों से एक गिलास टूटने मात्र पर ही उन्हें शारीरिक दंड दिया जाता है और प्रताड़ित किया जाता है।
कारखाने एवं उद्योगों में बालश्रम – अनेक कारखाने एवं लघु उद्योगों में बच्चों से काम करवाया जाता है। गलीचे बुनना, चूड़ियाँ बनाना, अगरबत्तियाँ बनाना, पटाखे बनाना माचिस बनाना आदि से जुड़े उद्योगों में बालश्रम देखा जा सकता है। इन स्थानों पर बच्चों को शोचनीय दशाओं में काम करना पड़ता है। प्रायः देखा जाता है कि ये बच्चे जहाँ काम करते हैं, वहाँ बाहर से ताला लगा दिया जाता है ताकि पुलिस या किसी अन्य निरीक्षक की दृष्टि उन तक न पहुँच सके। इसके अलावा चाय की दुकानों और ढाबों पर भी बाल मज़दूरों को देखा जा सकता है।
बाल मज़दूरी क्यों? – बाल मजदूरी के लिए कई कारण उत्तरदायी हैं। पहला कारण यही है कि समाज में व्याप्त गरीबी के कारण जब माँ-बाप इन बच्चों का पेट नहीं भर पाते हैं, तो बच्चे बालश्रम करने के लिए विवश हो जाते हैं। इसे अलावा शिक्षा एवं जागरुकता के अभाव में न तो ये बच्चे स्कूल जाते हैं, और न इनके माता-पिता इन्हें स्कूल भेजते हैं।
दूसरा मुख्य कारण यह है कि समाज में फैली स्वार्थ एवं लालच की प्रवृत्ति जिसके कारण ठेकेदार एवं उद्योगपति मोटा लाभ कमाने के लिए बच्चों से ही काम करवाने को प्राथमिकता देते हैं। ये ठेकेदार एक प्रौढ मज़दूर को दी जाने वाली मज़दूरी में दो-तीन बाल श्रमिकों से काम करवाते हैं तथा अधिक देर तक काम लेते हैं। इसके अलावा ये बाल श्रमिक किसी तरह की हड़ताल, वेतनवृद्धि, छुट्टी आदि की माँग नहीं करते हैं।
बाल मज़दरी का दष्परिणाम – बाल मजदूरी का सबसे भयंकर दुष्परिणाम यह है कि मज़दूरी करने के कारण इन बच्चों का वर्तमान और भविष्य दोनों अंधकारमय हो रहा है। आज मज़दूरी करने वाले बच्चे शिक्षण-प्रशिक्षण के अभाव में जीवनभर के लिए अकुशल मज़दूर बनकर रह जाते हैं। बाल मज़दूरी के कारण समाज में बेरोज़गारी बढ़ी है। इन बाल श्रमिकों को हटा देने से लाखों युवाओं को रोज़गार मिल सकता है। इसके अलावा बाल मजदूरी के कारण सरकार को अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य हासिल नहीं हो रहा है।
रोकने के उपाय – बाल मज़दूरी रोकने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए। इसके लिए जिन अधिकारियों तथा कर्मचारियों को यह उत्तरदायित्व दिया जाए, वे अपना काम ईमानदारीपूर्वक करें। समाज के लोगों को अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति त्यागकर ‘बाल मज़दूरों’ के भविष्य के बारे में सोच-विचार करना चाहिए।
उपसंहार-बाल मज़दूरी समाज के लिए अभिशाप है। इस अभिशाप को मिटाने के लिए समाज के संपन्न लोगों को आगे आना चाहिए तथा बाल मजदूरी करवाने वाले के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए।
17. दहेज प्रथा-एक समस्या
- प्राचीन काल में दहेज प्रथा
- दहेज प्रथा का वर्तमान स्वरूप
- दहेज प्रथा एक अभिशाप
- कुप्रथा को रोकने का उपाय
भूमिका – दहेज प्रथा समाज के माथे पर लगे कलंक के समान है। यह उसी तरह समाज में छिपी है, जैसे- लकड़ी में घुन। जिस तरह लकड़ी में लगा घुन उसे अंदर ही अंदर खोखला कर देता है, उसी तरह यह प्रथा हमारे समाज को खोखला बना रही है। इसके कारण समाज विषाक्त हो चुका है जिससे हज़ारों-लाखों परिवार पीड़ित हुए हैं।
प्राचीन काल में दहेज प्रथा – प्राचीन काल में विवाहोपरांत कन्या की विदाई के अवसर पर कुछ वस्तुएँ, धन, पशु आदि उपहार स्वरूप वर पक्ष को देता था। इसका उद्देश्य नवदंपति को गृहस्थ जीवन के आरंभ में होने वाली परेशानियों से बचाना था परंतु एक अच्छे उद्देश्य को लेकर शुरू की गई प्रथा का स्वरूप धीरे-धीरे बिगड़ता गया और यह कुप्रथा बनती गई। उस कुप्रथा ने विवाह जैसे पवित्र संस्कार को ‘वर खरीदने-बेचने’ का माध्यम बना दिया।
दहेज प्रथा का वर्तमान स्वरूप – दहेज प्रथा का वर्तमान स्वरूप अत्यंत भयावह रूप धारण कर चुकी है। इसकी भयावहता के बारे में उस गरीब माता-पिता से जाना जा सकता है, जिसकी बेटी विवाह योग्य हो चुकी है। गरीब माता-पिता के लिए अपनी बेटी का विवाह करने के लिए चल-अचल संपत्ति बेचने की विवशता आ जाती है। वरपक्ष की मांग पूरी न कर पाने के कारण कन्या को ससुराल में तरह-तरह की यातनाएँ दी जाती हैं।
अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलता है कि वरपक्ष की माँग पूरी न हो पाने से बिना विवाह किए बारात लौट गई। ऐसी घटना का दोष कन्या के माथे पर मढ़ा जाता है। ऐसी स्थिति में उसके माता-पिता अपनी कन्या का विवाह अयोग्य या वृद्ध व्यक्ति से करने के लिए विवश हो जाते हैं। इस बेमेल विवाह से कन्या के अरमान वहीं दफ़न हो जाते हैं।
दहेज प्रथा एक अभिशाप – दहेज प्रथा की समस्या से परेशान माता-पिता को जब लड़कियाँ देखती हैं तो वे खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाती हैं] और आत्महत्या करने जैसा कदम उठा लेती हैं।
विवाह में वरपक्ष द्वारा की गई माँग पूरी न होने का परिणाम नववधू को भुगतना पड़ता है। ससुराल पक्ष की स्त्रियाँ नव वधू के रूपगुण, सौंदर्य, शिक्षा आदि को न देखकर मिले दहेज को देखती हैं और हर वस्तु के छोटी-बड़ी या कमज़ोर होने का दोष निकालकर बहू को व्यंग्यवाणों से आहत करने लगती हैं। ससुराल के पुरुष भी कहाँ पीछे रहने वाले हैं। वे भी कम दहेज मिलने का रोना अपने रिश्तेदारों से रोते फिरते हैं। वे दुबारा बहू की विदाई तभी करवाने जाते हैं, जब उनकी माँग पूरी की जाती है। माँगें पूरी न होने पर वे नववधू को जलाकर मारने जैसा घृणित एवं निंदनीय कदम उठाने से भी नहीं चूकते हैं।
कुप्रथा को रोकने के उपाय – दहेज प्रथा रोकने के लिए व्यापक उपाय करने की आवश्यकता है। सबसे पहले तो युवावर्ग को स्वयं ही आगे आकर दहेज रहित विवाह करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए और इस प्रतिज्ञा को निभाने का दृढ़ निश्चय करना चाहिए। युवतियों को चाहिए कि वे ऐसे युवाओं से विवाह न करें, जो दहेज लोभी हों। सरकार को चाहिए कि वह दहेज लेकर विवाह करने वालों के साथ सख्ती से पेश आए और दहेज रहित विवाह करने वाले युवकों को नौकरी आदि में प्राथमिकता दे।
उपसंहार – दहेज प्रथा समाज के लिए अभिशाप है। इसे समाप्त करने के लिए समाज के बुद्धिजीवियों, युवाओं तथा सरकार को आगे आना चाहिए तथा युवकों द्वारा बिना दहेज के विवाह करके समाज के सामने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
18. बस्ते का बढ़ता बोझ अथवा बचपन पर हावी बस्ते का बोझ
- पुस्तकों का महत्त्व
- बस्ते का बढ़ता बोझ
- कम करने के उपाय
भूमिका – विदया के संबंध में कहा गया है- ‘सा विद्या या विमुक्तये।’ अर्थात् ‘विदया वही है जो हमें मुक्ति दिलाए’। इसी उददेश्य की प्राप्ति के लिए प्राचीन समय से ही विभिन्न रूपों में विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती रही है। वर्तमान समय में छात्र के बस्ते का बोझ इतना बढ़ गया है कि उसे मिलने वाली विद्या का साधन ही उसे दबाए जा रहा है। आज का छात्र, छात्र कम कुली ज़्यादा दिखने लगा है।
पुस्तकों का महत्त्व – पुस्तकें ज्ञान प्राप्त करने का साधन होती हैं। उनमें तरह-तरह का ज्ञान भरा हुआ है। पुस्तकों के कारण शिक्षा प्रणाली आसान बन सकी है। प्राचीन काल में जब पुस्तकों का अभाव था तब रट्टा मारकर ही ज्ञान प्राप्त करना होता था। तब गुरुजी ने एक बार जो बता दिया उसे बहुत ध्यान से सुनना, समझना और दोहराना पड़ता था, क्योंकि तब आज की तरह पुस्तकें न थीं कि जब जी में आया खोला और पढ़ लिया। इसके अलावा पुस्तकों के कारण ही शिक्षा का इतना प्रचार-प्रसार हो सका है।
बस्ते का बढ़ता बोझ – प्रतियोगिता और दिखावे के इस युग में माता-पिता अपने बच्चों को जल्दी से जल्दी स्कूल भेज देना चाहते हैं। अब तो प्ले स्कूल के पाठ्यक्रम को छोड़ दें तो नर्सरी कक्षा से ही पुस्तकों की संख्या विषयानुसार बढ़ने लगती हैं। एक-एक विषय की कई पुस्तकें विद्यार्थियों के थैले में देखी जा सकती हैं। कुछ व्याकरण के नाम पर तो कुछ अभ्यास-पुस्तिका के नाम पर। हद तो तब हो जाती है जब शब्दकोश तक बच्चों को विद्यालय ले जाते देखा जाता है।
अभिभावकों को दिखाने के लिए पहली कक्षा से ही कंप्यूटर और सामान्य ज्ञान की पुस्तकें भी पाठ्यक्रम में लगवा दी जाती हैं। अभिभावक समझता है कि उसका बच्चा पहली कक्षा से ही कंप्यूटर पढ़ने लगा है, पर इन पुस्तकों के कारण बस्ते का बढ़ा बोझ वह नज़रअंदाज कर जाता है।
बढ़े बोझ वाले बस्ते का असर – भारी भरकम बस्ता उठाए विद्यालय जाते छात्रों को देखना तो अच्छा लगता है, पर इस वजन को उठाते हुए उनकी कमर झुक जाती है। वे झुककर चलने को विवश रहते हैं। इससे कम उम्र में ही उन्हें रीढ़ की हड्डी में दर्द रहने की समस्या शुरू हो जाती है। शहरी खान-पान में फास्ट फूड की अधिकता कोढ़ में खाज का काम करती है। इसका सीधा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है और उन्हें अल्पायु में ही चश्मा लग जाता है।
बस्ते का बोझ बढ़ने का कारण – बस्ते का बोझ बढ़ने के मुख्यतया दो कारण हैं-पहला यह कि अभिभावक भारी भरकम बस्ते को देखकर खुश होते हैं कि उनका बच्चा अन्य बच्चों की तुलना में ज़्यादा पढ़ रहा है। दूसरा कारण हैं-प्राइवेट स्कूल के प्रबंधकों की लालची प्रवृत्ति। वे पाठ्यक्रम में अधिक से अधिक पुस्तकें शामिल करवा देते हैं, ताकि अभिभावकों से अधिक से अधिक धन वसूल कर अपनी जेबें भर सकें।
बोझ कम करने के उपाय-इस बोझ को कम करने की दिशा में अभिभावकों को जागरूक बनकर अपनी सोच में बदलाव लाना होगा कि, भारी बस्ते से ही अच्छी पढ़ाई नहीं होती है। इसके अलावा शिक्षण संस्थानों में प्रोजेक्टर आदि के माध्यम से पढ़ाने की व्यवस्था हो ताकि पुस्तकों की ज़रूरत कम से कम पड़े। इसके अलावा छात्रों को एक दिन में दो या तीन विषय ही पढ़ाए जाएँ, ताकि छात्रों को कम से कम पुस्तकें लानी पड़े।
उपसंहार- अब सोचने का समय आ गया है कि बस्ते का बोझ किस तरह कम किया जाए। बस्ते का बढ़ा बोझ बच्चों का बचपन ही नहीं निगल रहा है, बल्कि उन्हें शारीरिक रूप से विकृत भी बना रहा है। शिक्षाविदों को अपनी राय सरकार तक तुरंत पहुँचानी चाहिए।
19. विद्यार्थी और अनुशासन अथवा विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता
- अनुशासन का अर्थ
- अनुशासन का महत्त्व
- विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता
- अनुशासनहीनता के दुष्परिणाम
- अनुशासनहीनता रोकने के उपाय
भूमिका – यदि मनुष्य अपने आसपास दृष्टि दौड़ाए और फिर ध्यान से देखते हुए विचार करे तो उसे लगेगा हमारे चारों ओर एक बनी बनाई व्यवस्था है जिससे अप्रत्यक्ष रूप से जुड़कर सभी कार्य कर रहे हैं। प्रकृति का ही उदाहरण लेते हैं। हम देखते हैं कि सूर्य समय पर निकल रहा है और तारे समय पर उदय होकर छिप रहे हैं। कुछ ऐसी ही व्यवस्था विद्यार्थियों के लिए भी आवश्यक होती है। इसी व्यवस्था का दूसरा नाम अनुशासन है।
अनुशासन का अर्थ – अनुशासन शब्द ‘शासन’ में ‘अनु’ उपसर्ग जोडने से बना है जिसका अर्थ है-शासन के पीछे चलना। इस शासन को व्यवस्था या नियम भी कहा जा सकता है। अर्थात् समाज और बड़े लोगों द्वारा निर्धारित किए गए नैतिक और सामाजिक नियमों का पालन करना ही अनुशासन कहलाता है।
अनुशासन का महत्त्व – अनुशासन का महत्त्व सर्वत्र है। जीवन में कदम-कदम पर अनुशासन का महत्त्व है। निरंकुश जीवन स्वेच्छाचारिता का शिकार होकर लक्ष्य से भटक जाता है। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का विशेष महत्त्व है। यह जीवन का निर्माणकाल होता है। इस काल में अनुशासन की महत्ता सर्वाधिक होती है। इस समय घर में माता-पिता और बड़ों की बातें मानकर अनुशासित जीवन जीना चाहिए। विद्यालय में एक आदर्श विद्यार्थी कहलाने के लिए अनुशासन का पालन अनिवार्य है। इसके लिए विद्यालय के नियमों, अपने अध्यापक एवं प्रधानाचार्य की आज्ञा का पालन करना अत्यावश्यक हो जाता है। इतना ही नहीं, विद्यालय की संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना तथा अपने आसपास साफ़-सफ़ाई रखना अनुशासन के ही अंग हैं। दुर्भाग्य से विद्यार्थी अनुशासनहीनता पर उतरकर अवांछनीय कार्यों में शामिल हो जाते हैं।
विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता के कारण – समाचार पत्र, दूरदर्शन मीडिया आदि के प्रभाव के कारण विद्यार्थियों में यह सोच बढ़ी है कि अब वे बच्चे नहीं रहे। अब उन्हें अनुशासन में रहने की आवश्यकता नहीं रही। यह सोच उन्हें अनुशासनहीनता की ओर उन्मुख करती है। इसके अलावा छात्रों का राजनीति में प्रवेश करना भी इसका मुख्य कारण है।
अनुशासनहीनता का दुष्प्रभाव – अनुशासनहीनता का दुष्प्रभाव अलग-अलग रूपों में नज़र आता है। अनुशासनहीन विद्यार्थी का ध्यान पढ़ाई में नहीं लगता है। वह पढ़ाई में पिछड़ता जाता है। वह लक्ष्यभ्रष्ट होकर माता-पिता की अपेक्षाओं पर तुषारापात करता है। अनुशासनहीन छात्र विद्यालय परिसर में अपनी ताकत दिखाने के लिए छात्रों को अपने साथ मिलाने का प्रयास करते हैं। वे बात-बात में विद्यालय, कॉलेज या अन्य संस्थान बंद कराने के लिए तोड़-फोड़ का सहारा लेते हैं और सरकारी संपत्ति को क्षति पहुँचाते हैं। इसके अलावा लालच, बुरी संगत में पड़ना, आवश्यकता एवं पाकेटमनी से अधिक खर्च करने का शौक, दिखावे की प्रवृत्ति आदि भी छात्रों को अनुशासनहीनता की ओर उन्मुख करती है।
अनुशासनहीनता रोकने के उपाय – अनुशासनहीनता रोकने का पहला उपाय है-आत्मानुशासन में रहना। यदि व्यक्ति अपने शासन में रहता है तो यह समस्या नहीं आती है। इसके अलावा छात्रों को नैतिक शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिए। छात्रों के साथ मित्रवत व्यवहार करना, उनकी बातें सुनकर उनकी समस्या का निवारण करने से अनुशासनहीनता रोकी जा सकती है।
उपसंहार-जीवन में सफलता पाने के लिए अनुशासन बहुत आवश्यक है। अनुशासन हमें अच्छा मनुष्य बनने में सहायता करता है। हम सबको अनुशासनबद्ध जीवन जीना चाहिए।
20. सच्चा मित्र अथवा जीवन में मित्र की आवश्यकता
- मित्र-एक अनमोल धन
- सच्चे मित्र की पहचान
- सच्ची मित्रता के उदाहरण
भूमिका – मनुष्य के जीवन में दुख-सुख आते-जाते रहते हैं। सुख के पलों को वह बड़ी आसानी से बिता लेता है, पर दुख के पल बिताना कठिन हो जाता है। ऐसे समय में उसे ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत महसूस होती है जो दुख में उसका साथ दे, उसका दुख बाँट ले। दुख की बेला में साथ निभाने वाला व्यक्ति ही सच्चा मित्र होता है।
मित्र एक अनमोल धन – एक सच्चा मित्र ही व्यक्ति के दुख में काम आता है, अतः वह अनमोल धन से भी बढ़कर होता है। मित्र रूपी यह धन किसी को मिलना कठिन होता है। जो लोग भाग्यशाली होते हैं, उन्हें ही सच्चे मित्र मिल पाते हैं। सच्चा मित्र उस औषधि के समान होता है जो उसे पीड़ा से बचाता है। इतना ही नहीं वह अपने मित्र को कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग की ओर ले जाता है और उसे पथभ्रष्ट होने से बचाता है।
सच्चे मित्र की पहचान – सच्चे मित्र की पहचान करना बड़ा कठिन काम होता है। किसी व्यक्ति में कुछ गुणों को देखकर लोग उसे मित्र बना बैठते हैं। ऐसे मित्र बुरा समय आने पर उसी तरह साथ छोड़ जाते हैं, जैसे-जाल पर पानी मछलियों का साथ छोड देता है। ऐसे में हमें जल जैसे स्वभाव वाले व्यक्ति को मित्र बनाने की भूल नहीं करनी चाहिए। कवि रहीम ने ठीक ही कहा है –
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह। रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छोड़त छोह। सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय ही होती है। कवि रहीम ने कहा है – कह रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत। विपति कसौटी जे कसे. तेईं साँचे मीत।। कवि तुलसीदास ने भी कहा है कि विपत्ति के समय में मित्र की परीक्षा करनी चाहिए – आपतिकाल परखिए चारी। धीरज, धरम, मित्र, अरु नारी।।
सच्ची मित्रता के उदाहरण – इतिहास में अनेक उदहारण हैं, जब लोगों ने अपने मित्र के साथ सच्ची मित्रता का निर्वाह किया। उनकी मित्रता दूसरों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बन गई। इस क्रम में कृष्ण और सुदामा की मित्रता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। श्रीकृष्ण और सुदामा की स्थिति में ज़मीन आसमान का अंतर था। कहाँ कृष्ण द्वारिका के राजा और कहाँ सुदामा भीख माँगकर जीवन यापन करने वाले ब्राह्मण। कृष्ण ने ‘कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली’ की लोकोक्ति झुठलाकर सुदामा को इतना कुछ दिया कि उन्हें अपने समान बना दिया और सुदामा को इसका पता भी न लगने दिया।
दूसरा उदाहरण श्रीराम और सुग्रीव का है। श्रीराम ने सुग्रीव की मदद की और सुग्रीव ने अंत समय तक श्रीराम की सहायता की, जबकि राम अयोध्या के राजा और सुग्रीव मामूली से वानर राज।
इसी तरह कर्ण और दुर्योधन की मित्रता का उदाहरण उल्लेखनीय है। कर्ण जानता था कि दुर्योधन का साथ देने के कारण उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा, परंतु अपनी जान की परवाह न करके उसने दुर्योधन का साथ निभाते हुए प्राण दे दिया।
उपसंहार-जीवन में किसी का मित्र बनना जितना कठिन है, उससे भी अधिक कठिन है मित्रता का निर्वाह करना। हमें मित्र बनकर सच्ची मित्रता का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। हमें मित्र के सुख में सुख और उसके दुख को अपना दुख समझना चाहिए। कहा भी गया है
जे न मित्र दुख होंहि दुखारी। तिनहिं बिलोकत पातक भारी।।
21. श्रम-सफलता का साधन अथवा सफलता का मूलमंत्र-श्रम
- परिश्रम की आवश्यकता
- परिश्रम-सफलता का मूलमंत्र
- महापुरुषों की सफलता का राज़
- विद्यार्थी जीवन और परिश्रम
भूमिका – यदि हम मनुष्य की उन्नति के सौ-डेढ़ सौ साल पहले और आज की स्थिति पर विचार करें, तो हमें ज़मीन-आसमान का अंतर नज़र आता है। मीलों लंबे पुल, गंगनचुंबी इमारतें, ऊसर को भी हरा-भरा बना देना, ऊँचे-नीचे पहाड़ों का सीना चीरकर रेल की पटरियाँ आदि सब कैसे संभव हुआ, तो हमें इसका एक जवाब मिलता है-श्रम के कारण। निश्चित ही श्रम में असंभव को भी संभव बना देने की शक्ति है।
परिश्रम की आवश्यकता – जीवन में किसी काम को करने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है। यहाँ तक कि थाली में सामने रखे गए भोजन को मुँह तक ले जाने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है। शेर जंगल का राजा होता है, पर उसे भी अपने भोजन के लिए श्रम करना होता है। कहा भी गया है –
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। नहि सुप्तस्य सिंहस्य मुखे प्रविशन्ति मृगाः।।
जीवन को सुखमय बनाने के लिए धन की ज़रूरत होती है। ज्ञानवान बनने के लिए विद्या की ज़रूरत होती है। इनको पाने के लिए परिश्रम के अलावा कोई रास्ता नहीं है। थके व्यक्ति को अपना पसीना सुखाने के लिए हवा चाहिए। यह हवा भी बिना परिश्रम नहीं मिलती है तभी तो कबीर दास ने कहा है –
विद्या धन उद्यम बिना कहो जु पावे कौन।। बिना डुलाए न मिले, ज्यों पंखा की पौन।।
परिश्रम सफलता का मूलमंत्र – धरती पर जितने भी जीव हैं, वे किसी न किसी उद्देश्य के लिए परिश्रम करते दिखाई पड़ते हैं। चिड़िया को अपने चारे और पानी के लिए जंगल में भटकना पड़ता है, तालाब या नदी तक उडान भरनी पड़ती है। चींटी का जीवन परिश्रम का उदाहरण है। वह अपने वजन से अधिक भार लेकर यात्रा करती है और सरदी में जब बरफ़ जम जाती है तो आराम से उसी भोजन पर दिन बिताती है जो उसने बरफ़ पड़ने से पहले एकत्र किया था। इसी तरह मधुमक्खियाँ पराग की खोज में कई-कई मील का चक्कर काटती हैं। वे बहुत ही मेहनत से छत्ता तैयार करती हैं। उसी छत्ते में अपने द्वारा लाए पराग से शहद तैयार करती हैं। भगवान राम और उनकी सेना ने अथक परिश्रम से समुद्र को बाँधकर पुल बना लिया था। इसी की मदद से उन्होंने लंका को जीता था।
महापुरुषों की सफलता का राज – परिश्रम में सफलता का रहस्य छिपा है। इस बात को हमारे महापुरुष अच्छे से जानते थे। हमारे देश के ऋषिमुनि अपने परिश्रम से जंगल में मंगल कर देते थे। वैज्ञानिकों की सफलता का राज़ उनका अथक परिश्रम ही है। अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी, अब्दुल कलाम आदि अपने परिश्रम के कारण ही जाने-पहचाने जाते हैं। सरदार पटेल ने स्वतंत्रता उपरांत देश की रियासतों के एकीकरण के जो अथक परिश्रम किया उसे कैसे भुलाया जा सकता है।
विद्यार्थी जीवन और परिश्रम – विद्यार्थी जीवन, जीवन के निर्माण का काल होता है। इस समय जो छात्र परिश्रम करने की आदत डाल लेते हैं, वे हर कक्षा में अच्छे ग्रेड हासिल करते हैं और सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते जाते हैं। इसके विपरीत जो छात्र आलस करते हैं, वे हर चीज़ गँवाते जाते हैं। तभी तो कहा गया है – अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्।
उपसंहार – परिश्रम सफलता का साधन है। परिश्रम से मनोवांछित सफलता प्राप्त की जा सकती है। परिश्रम से मुँह मोड़ने वाला सुखी होने की बात सोच भी नहीं सकता है। विश्व की उन्नति और प्रगति का मूल परिश्रम ही है। अतः हमें भी परिश्रमी बनना चाहिए।
22. दूरदर्शन का बढ़ता प्रभाव अथवा ज्ञान और मनोरंजन का भंडार दूरदर्शन
- घर-घर तक पहुँच
- विविध कार्यक्रम
- केबल टी.वी. और दूरदर्शन का मेल
- फूहड़ कार्यक्रमों का समाज पर असर
भूमिका – विज्ञान की अद्भुत खोजों और उससे प्राप्त नित नए आविष्कारों ने मानव जीवन को बदलकर रख दिया है। आज मनुष्य के मनोरंजन करने के ढंग और साधन भी विज्ञान से अछूते नहीं रहे। विज्ञान ने मनुष्य को ज्ञान एवं मनोरंजन का जो अद्भुत खाजना दिया है, उसे दूरदर्शन के नाम से जाना जाता है।
घर-घर तक पहँच – दूरदर्शन के आविष्कारक जे.एल.बेयर्ड. ने सोचा भी न होगा कि उनके द्वारा बनाया जा रहा यह यंत्र इतनी तेज़ी से लोकप्रिय हो जाएगा। भारत में इसका आगमन 1959 में हुआ। दूरदर्शन पर देश-विदेश की घटनाएँ घर बैठे-बिठाए सजीव रूप में देखने का जो आनंद मिला, वह अपने आप में अनूठा था। इससे लोग इतने प्रभावित हुए कि यह मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन बनने लगा।
दूरदर्शन केवल ज्ञान का ही नहीं मनोरंजन का भंडार भी है। इस पर हर आयु वर्ग के लोगों के लिए कार्यक्रम प्रसारित किए जाने से यह लोकप्रिय होता गया। फ़िल्में, फ़ैशन के कार्यक्रम, खेलों का सजीव प्रसारण जैसे कार्यक्रमों ने इसे युवाओं के बीच खूब लोकप्रिय बना दिया। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे धारावाहिकों के प्रसारण ने इसे घर-घर में लोकप्रिय बना दिया। यह थोड़े ही समय में शहर और गाँव के घर-घर में पहुँच गया।
विविध कार्यक्रम – दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों में विविधता है। इस पर बच्चे, युवाओं, महिलाओं, प्रौढ़ों तथा किसानों के लिए कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। विद्यार्थियों के लिए एन.सी.ई.आर.टी. और एस.सी.ई.आर.टी. द्वारा तैयार किए गए ज्ञानवर्धक चित्रकथाएँ और कार्टन दिखाए जाते हैं। इस पर प्रसारित धारावारिक महिलाओं द्वारा सारे काम छोड़कर देखे जाते हैं। भेटवार्ता और समाचारों से प्रौढ़ व्यक्ति देश-दुनिया की खबरों से परिचित होते हैं। इसके अलावा विज्ञापनों से हमें वस्तुओं के मूल्य, गुणवत्ता, उनके चयन का विकल्प तथा छूट आदि का पता चलता है। दूरदर्शन शेयर बाजार की खबरें मौसम की जानकारी, सरकार द्वारा जारी सूचनाओं से भी लोगों को अवगत कराता है।
केबल टीवी और दूरदर्शन का मेल – अब वे दिन गए जब दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों का आनंद उठाने के लिए उसके एंटीना को बार-बार दाएँ-बाएँ या इधर-उधर घुमाना पड़ता था। आँधी और तेज़ हवा से यह एंटीना अक्सर अव्यवस्थित हो जाता था। दूरदर्शन और केबल टीवी के मेल ने इस झंझट से मुक्ति दिला दी। इसके अलावा केबल टीवी के कारण चैनलों की विविधता, प्रसारण की गुणवत्ता में सुधार आने से दूरदर्शन अपने नए अवतार में आ गया है। विदेश में होने वाले खेलों के प्रसारण से ऐसा दिखाई देता है, मानों हमारी आँखों के सामने ही हो रहा है।
फूहड़ कार्यक्रमों का समाज पर प्रभाव – केबल के प्रभाव, भौतिकवाद तथा पैसा कमाने की होड़ के कारण दूरदर्शन ने ऐसे कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू कर दिया, जिनमें हिंसा, मारकाट, लूटमार, बलात्कार आदि की भरमार होती है। इस पर प्रसारित विज्ञापनों में नग्नता एवं अश्लीलता होती है। इन कार्यक्रमों का युवा तथा किशोर मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे कार्यक्रमों को परिवार के साथ बैठकर देखना मुश्किल हो जाता है। धारावाहिकों की चिकचिक और खींचतान का असर पारिवारिक संबंधों पर पड़ने लगा है। इससे मनमुटाव बढ़ने लगा है।
उपसंहार – दूरदर्शन ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार है। इस पर प्रसारित कुछ खराब कार्यक्रमों के कारण दूरदर्शन को बुरा नहीं कहा जा सकता है। ऐसे कार्यक्रमों को देखना या छोड़ना हमारे विवेक पर निर्भर करता है। हमें इसका उपयोग कर कार्यक्रमों का आनंद उठाना चाहिए।
23. मोबाइल फ़ोन-सुविधा का खजाना अथवा मोबाइल फ़ोन-कितना सुखद कितना दुखद
- संचार में क्रांतिकारी बदलाव
- मोबाइल फ़ोन कितना सुविधाजनक
- मोबाइल फ़ोन सुविधाओं का भंडार
- मोबाइल फ़ोन का दुरुपयोग
भूमिका – मोबाइल फ़ोन का नाम आते ही हम सोचते हैं कि एक समय वह भी था जब हरकारों और कबूतरों के माध्यम से संदेश भिजवाए जाते थे। बाद में चिट्टी-पत्री के माध्यम से संदेश भेजने का सिलसिला शुरू हुआ, जिसमें महीनों बाद भी संदेश नहीं पहुँच पाता था, पर आज मोबाइल फ़ोन से हम ऐसे बातें करने लगे हैं, मानो आमने-सामने बैठे बातें कर रहे हों।
संचार में क्रांतिकारी बदलाव – मोबाइल फ़ोन के बढ़ते प्रयोग के कारण संचार की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव आ गया है। मोबाइल फ़ोन से बात करना जहाँ सस्ता है वहीं यह सर्वसुलभ होता जा रहा है। तार, टेलीग्राम, लैंड लाइन फोन से लोगों को वह सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं, जैसी मोबाइल फ़ोन से बातें करने में मिल जाती है। पहले लैंड लाइन फ़ोन की बुकिंग, फिर उसे लगवाने का खर्च और महीने के अंत में भारी भरकम बिल। इसका लाभ हर एक के वश की बात नहीं थी। ऐसे फ़ोन पर हमें वहीं चलकर बात करनी होती थी जहाँ फ़ोन रखा होता था। मोबाइल फ़ोन से यह बाधाएँ खत्म हो गई हैं। अब तो इसका प्रयोग कर रहे हैं। सचमुच संचार जगत में क्रांतिकारी बदलाव लाने का श्रेय मोबाइल फ़ोन को जाता है।
मोबाइल फ़ोन कितना सुविधाजनक – मोबाइल फ़ोन कितना सुविधाजनक है यह इसकी निरंतर बढ़ती लोकप्रियता देखकर लगाया जा सकता है। आज मोबाइल फोन रु. 500 से लेकर कई हज़ार की कीमत तक उपलब्ध हैं। खरीदने वाले अपनी सुविधानुसार खरीद रहे हैं। मोबाइल फ़ोन खरीदने के लिए गली-मोहल्ले की किसी दुकान तक ही जाने की ज़रूरत रह गई है। अब तो बस ऑर्डर करने भर की देर है अमेजन, फ्लिपकॉर्ट, शॉप-क्लूस जैसी कंपनियाँ आपकी सुविधा के अनुसार आपके दरवाज़े पर आने को तैयार खड़ी हैं। मोबाइल फोन आपकी जेब में है तो आप घर, बाहर, दफ्तर कहीं भी बातें कर सकते हैं। आप यात्रा करते हुए बस, ट्रेन वायुयान में भी अपने निकट संबंधियों से जुड़े रहते हैं। इसके अलावा मोबाइल फ़ोन पर बातें करना सस्ता और सस्ता होता जा रहा है।
मोबाइल फ़ोन सुविधाओं का भंडार – तकनीकी में आते बदलाव का असर मोबाइल फ़ोन पर दिखाई पड़ने लगा है। कुछ समय पहले तक इनका आकार इतना बड़ा होता था कि ये जेब से बाहर दिखते रहते थे। ये फ़ोन महँगे भी इतने होते थे कि लोग इन्हें बात-बात पर दिखाने का प्रयास करते थे। आजकल मोबाइल फ़ोन के आकार में ही बदलाव नहीं आया है, बल्कि यह फ़ोटो खींचने, फ़िल्में बनाने और देखने, अपनी फ़ोटो स्वयं खींचने के अलावा गाने सुनने, गणितीय संक्रियाएँ करने जैसे कार्यों में भी लिया जाने लगा है। इसमें कंप्यूटर की इतनी सारी खूबियाँ आ गई हैं कि इसे जेब में रखा जाने वाला कंप्यूटर तक कहा जाने लगा है। मोबाइल फ़ोन के कारण अब निकट संबंधियों के बीच दूरी इतनी सिमट गई है कि जब चाहे उनसे बातकर लें।
मोबाइल फ़ोन का दुरुपयोग – मोबाइल फ़ोन सुविधाजनक तो बहुत है, पर गलत हाथों में पड़कर इसका दुरुपयोग किया जाने लगा है। कुछ लोग दूसरों के समय का ध्यान रखकर समय-असमय फ़ोन कर देते हैं। इतना तो ठीक है पर मिसकाल से परेशान करने की चेष्टा दुखद होती है। कुछ युवा अनचाहे लोगों की फ़ोटो खींचकर परेशान करते हैं या अश्लील मैसेज भेजकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश करते हैं।
उपसंहार-मोबाइल फ़ोन विज्ञान का वरदान है। इसका सदुपयोग या दुरुपयोग करना मनुष्य के अपने हाथ में है। हम सबको यह चाहिए कि हम इस वरदान का भूलकर भी दुरुपयोग न करें।
24. खेलों का महत्त्व अथवा जीवन में खेलों का महत्त्व
- खेलों के प्रति बदली धारणा
- खेल और स्वास्थ्य
- खेलों के प्रकार
भूमिका – ‘खेल क्या हैं? इसका सबसे अच्छा जवाब किसी बच्चे से पाया जा सकता है। खेलों का नाम आते ही किस तरह उसका चेहरा खुशी से चमक उठता है। सचमुच खेल होते ही हैं इतने रोमांचक और मज़ेदार खेल अब तो जीवन की ज़रूरत बन गए हैं।
खेलों के प्रति बदली धारणा – पहले कहा जाता था कि ‘खेलोगे कूदोगे होगे खरांब, पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब।’ अर्थात् खेलकूद में ज्यादा ध्यान देना भविष्य खराब करने जैसा माना जाता था, जबकि पढ़ाई-लिखाई को हर प्रकार की उन्नति का साधन। समय में बदलाव के साथ ही इस धारणा में बदलाव आ गया है। अब खेल यश, धन, पद और प्रतिष्ठा पाने का माध्यम बन गया है। आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, एशियाई खेलों में या ओलंपिक स्तर पर पदक जीतने पर केंद्र एवं राज्य सरंकारें, नकद पुरस्कार देने के अलावा शानदार नौकरियों का प्रस्ताव भी देती हैं।
खेल और स्वास्थ्य – खेल और स्वास्थ्य का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। खेलों से खाया-पिया आसानी से पच जाता है। इसी पचे अंश से रक्त, मांस, मज्जा आदि बनता है जिससे शरीर पुष्ट बनता है। खेल हमारे शरीर में रक्त संचार बढ़ाते हैं जिससे शरीर स्वस्थ बनता है। इसके अलावा खेलों से शरीर लचीला, फुर्तीला, ऊर्जावान तथा बलवान बनता है। डॉक्टर भी स्वस्थ होने के लिए मरीजों को खुली हवा में घूमने-टहलने और उम्र तथा रुचि के अनुसार खेलने की सलाह देते हैं।
खेल और मानवीय मूल्य – खेल सुख-दुख को समान भाव से अपनाने की प्रेरणा देते हैं। इससे खेल में पराजित व्यक्ति अपनी पराजय का दुख आसानी से भूलकर आगे की तैयारी में जुट जाता है। जीवन के दुख से उबरने के लिए यह गुण अत्यंत आवश्यक है। खेल मनुष्य में ईमानदारी, सहनशीलता, सद्भाव, सामंजस्य बिठाना तथा क्षमा करने जैसे गुणों का विकास करते हैं, जो मनुष्य को अच्छा इंसान बनाते हैं। इसके अलावा खेल नैतिकता एवं अनुशासन पाठ भी पढ़ाते हैं।
खेलों के प्रकार-खेलों को खेलने के स्थान के आधार पर मुख्यतया दो भागों में बाँटा जा सकता है-
- घर के अंदर खेले जाने वाले खेल
- घर के बाहर खेले जाने वाले खेल।।
घर के अंदर खेले जाने वाले खेलों को ‘इंडोर गेम’ भी कहते हैं। ऐसे खेल प्रायः दो-चार खिलाड़ियों के साथ खेले जाते हैं। शतरंज, लूडो, कैरम बोर्ड, ताश टेबलटेनिस आदि ऐसे ही खेल हैं।
घर के बाहर खुले मैदानों में खेले जाने वाले खेलों को ‘आउटडोर गेम’ भी कहा जाता है। इस श्रेणी के खेल टीम या अधिक खिलाड़ियों के साथ खेले जाते हैं। हॉकी, क्रिकेट, फुटबाल, वालीबॉल, लान टेनिस, रस्सा कसी, खो-खो, कबड्डी आदि इसी श्रेणी के खेल हैं।
खेल-यश और धन प्राप्ति के साधन – खेलों से केवल स्वास्थ्य ही उत्तम नहीं बनता बल्कि चरित्र भी उत्तम बनता है। खेल, खिलाड़ियों को यश और धन दिलाने के साधन हैं। किसी खेल के खिलाड़ी को लाखों रुपये फ़ीस के रूप में मिलते हैं। विज्ञापन कंपनियाँ उससे करोड़ों का सालाना अनुबंध करती हैं। इसके अलावा उसे पुरस्कार स्वरूप भारी राशि मिलती है। अच्छे खिलाड़ी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय होते हैं। खेल के समय स्टेडियम का खचाखच भर जाना इसका प्रमाण है।
उपसंहार-जीवन में खेलों का बहुत महत्त्व है। खेल हमें स्वस्थ एवं प्रसन्न रखते हैं। खेल व्यक्ति का सम्मान तथा राष्ट्र का गौरव बढ़ाते हैं। हमें अपनी रुचि के अनुसार खेलों में अवश्य भाग लेना चाहिए।
25. मेरा प्रिय खेल अथवा क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता
- क्रिकेट के प्रति जुनून
- क्रिकेट के प्रारूप
भूमिका – हर व्यक्ति अपनी आयु, पसंद, रुचि के अनुसार कोई न कोई खेल अवश्य खेलता है। कोई हॉकी खेलता है तो कोई क्रिकेट, कोई फुटबॉल तो कोई वालीबॉल, पर मेरी पसंद का खेल है-क्रिकेट, जिसे आज का लगभग हर युवक पसंद करता है।
क्रिकेट के प्रति जुनून – क्रिकेट के प्रति मेरा ही नहीं देश के अधिकांश युवाओं में जुनून छाया हुआ है। युवाओं में क्रिकेट इतना लोकप्रिय है कि इसकी लोकप्रियता अन्य खेलों पर भारी पड़ने लगी है। आज बचपन से ही इस खेल के प्रति बच्चों की रुचि देखी जा सकती है जो युवावस्था तक और भी बढ़ती जाती है। क्रिकेट खेलना ही नहीं दूरदर्शन पर प्रसारित क्रिकेट मैच देखने के लिए युवा वर्ग विद्यालय से छुट्टी करता है, कहीं आने-जाने का कार्यक्रम स्थगित करता है तथा अन्य काम बंद कर देता है। यह क्रिकेट के प्रति उसका जुनून ही तो है।
क्रिकेट के प्रारूप – किसी ज़माने में क्रिकेट एक ही प्रारूप में खेला जाता था- वह है टेस्ट क्रिकेट। इस प्रारूप में क्रिकेट पाँच दिनों तक खेला जाता है। इसमें दोनों पारियों को दो-दो बार बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी करनी होती है। दोनों पारियों को मिलाकर जो टीम अधिक रन बनाती है, वह विजयी होती है। क्रिकेट के इस प्रारूप में परिणाम निकल ही आएगा, इसकी गारंटी नहीं होती। पाँच दिनों तक मैच देखने के लिए समय न होना और परिणाम निकलने की गारंटी न होने के कारण इसकी लोकप्रियता कम होती जा रही है।
एक दिन में सौ ओवरों के मैच को एक दिवसीय क्रिकेट मैच के नाम से जाना जाता है। कभी एक दिवसीय मैच 60 – 60 ओवरों का खेला जाता था, पर आज यह 50 – 50 ओवरों में दो टीमों के मध्य खेला जाता है। जो भी टीम अधिक रन बनाए और दूसरी टीम को जल्दी आउट कर ले, वही टीम विजयी मानी जाती है। क्रिकेट का यह प्रारूप काफ़ी लोकप्रिय है।
आजकल क्रिकेट को बीस-बीस ओवरों के प्रारूप में खेला जाने लगा है। इसे टी-20 क्रिकेट कहा जाता है। आजकल यह प्रारूप अत्यधिक लोकप्रिय है। इस खेल में परिणाम निकल आता है तथा लगभग चार घंटे में पूरा हो जाता है, अतः हर आयु वर्ग का दर्शक इसमें रुचि लेने लगा है। इस प्रारूप का क्रिकेट प्रायः शाम को खेला जाता है। विभिन्न राज्यो ने इसी प्रारूप में अपना-अपना लीग शुरू कर लिया है। आई.पी.एल. के आयोजन से इस प्रारूप की लोकप्रियता अपने चरम पर पहुँच गई है।
क्रिकेट की लोकप्रियता के कारण – यद्यपि दुनियाभर में क्रिकेट खेलने वाले देशों की संख्या बारह-चौदह ही है, पर अधिकांश देशों में इसे रुचि के साथ देखा जाता है। आस्ट्रेलिया-इंग्लैंड और भारत-पाकिस्तान के मध्य खेले जाने वाले खेलों की लोकप्रियता चरम पर होती है। क्रिकेट से खिलाड़ियों को हर साल करोड़ों रुपये अर्जित होते हैं। दुनिया उन्हें जानने-पहचानने लगती है। खेल में कैरियर की समाप्ति के बाद कई कंपनियाँ उन्हें नौकरी दे देती हैं। आज क्रिकेट खिलाड़ी युवाओं का मॉडल बन चुके हैं। भारत का हर युवा सचिन तेंदुलकर बनना चाहता है। आखिर वह बनना भी क्यों न चाहे, यहाँ सचिन को ‘भगवान’ का दर्जा जो प्राप्त है।
उपसंहार – इसमें कोई संदेह नहीं कि क्रिकेट हमारे देश का सबसे लोकप्रिय खेल है। इस खेल से जुड़े खिलाड़ियों को जो आदरसम्मान एवं ख्याति प्राप्त है, वह अन्य खेल के खिलाड़ियों को नहीं। खेल कोई भी हो, पर हमें किसी न किसी खेल में भाग अवश्य लेना चाहिए।
26. मेरा प्रिय कवि अथवा महाकवि तुलसीदास
- कवि बनने की प्रेरणा
- कवि की लोकप्रियता
- समाज को देन
भूमिका – हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में अनेक कवियों एवं लेखकों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से योगदान दिया है। काव्य साहित्य में अनेक ऐसे कवि हुए हैं जो अपनी कालजयी रचनाओं से अमर हो गए हैं। ऐसे ही कवियों में प्रमुख हैं-महाकवि तुलसीदास, जिसके काव्य ने उन्हें जन-जन का प्रिय बना दिया है।
जीवन-परिचय-इस महाकवि के जन्म के संबंध में अनेक जनश्रुतियाँ पाई जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस महाकवि का जन्म सन् 1532 ई. में सूकर क्षेत्र (सोरों) नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम था। कहा जाता है कि जन्म के समय ही इनके मुँह में 32 दाँत थे। पैदा होने पर इनके मुँह से रोने के बजाय ‘राम’ निकला। इनका जन्म अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था। जन्म के कुछ समय बाद ही इनकी माता की मृत्यु होने से इन्हें अशुभ समझा गया। इनके पिता ने इन्हें घर में काम करने वाली दाई को सौंप दिया। दुर्भाग्य से तीन-चार साल बाद ही दाई की मृत्यु होने से तुलसीदास माँगकर खाने पर विवश हो गए। पर संयोग से बाबा नर हरिदास की दृष्टि इस बालक पर पड़ी। वे उसे अपने साथ ले गए और शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध किया।
कवि बनने की प्रेरणा – कहा जाता है कि तुलसी का विवाह रत्नावली नामक अत्यंत सुंदर कन्या से हो गया। तुलसी उसके प्रेम में आसक्त थे। वे एक बार उसके पीछे ही अपने ससुराल पहुँच गए। इससे नाराज़ रत्नावली ने उन्हें ताना देकर कहा –
लाज न आवत आपको, दौरे आयह साथ। धिक-धिक ऐसो प्रेम को कहा कहौ मैं नाथ ।। अस्थि चर्म मय देह मम तासो ऐसी प्रीति। ऐसी जो श्री राम में, होत न तव भवभीति ।।
इस कटुवाक्य से तुलसी इतने आहत हुए कि उसी वक्त अपने घर लौट आए और वाल्मीकि रामायण का अध्ययन करने में जुट गए जो बाद में उनके सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ की कथा का आधार बना।
कवि की लोकप्रियता का कारण – महाकवि तुलसी की लोकप्रियता का कारण उनका जीवन-परिचय नहीं, बल्कि उनकी अमर कृतियाँ । उन्होंने राम चरितमानस, कवितावली, गीतावली, दोहावली, राम लला नहछू, बरवैरामायण, विनयपत्रिका, हनुमान बाहुक आदि अमर कृतियों की रचना की। इनमें अकेला रामचरित मानस ही ऐसा ग्रंथ है, जिसने कवि को अमर बना दिया। इस ग्रंथ की लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि यह ग्रंथ उत्तर भारत के हर हिंदू घर में देखा जा सकता है। घर के बड़े-बूढे फुरसत के पलों में इसका पाठ करते हैं, और सुख-शांति की अनुभूति करते हैं। इतना ही नहीं आज भी आकाशवाणी के लखनऊ केंद्र से तथा एफ.एम. के एक चैनेल द्वारा प्रातः सात बजे के आसपास ‘रामचरितमानस’ की कुछ पंक्तियों का सस्वर गायन के रूप में 5 या दस मिनट के लिए प्रसारण किया जाता है। इसका आरंभ ‘रामचरितमानस मिलि गावा। तुलसीकृत यह ग्रंथ सुनावा’ सुनकर ही कितनों की आज भी आँख खुलती है।
समाज को देन – महाकवि तुलसीदास की अमर कृति राम चरितमानस एक साहित्यिक कृति भर ही नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से कवि ने भारतीय संस्कृति को एक अनुपम धरोहर प्रदान की है। इस ग्रंथ से मनुष्य को एक नई चेतना और प्रेरणा मिलती है। इस ग्रंथ में जीवन के प्रत्येक पहलू को स्पर्श किया गया है। कवि तुलसी ने रामचरितमानस में मानवीय संबंधों का जैसा हृदयस्पर्शी सुंदर निरूपण किया है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। इस ग्रंथ में राजा को प्रजा के साथ, भाई को भाई के साथ, पुत्र को पिता के साथ, पिता के पुत्र के साथ, मित्र का मित्र के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए इसकी शिक्षा जैसे इस ग्रंथ में मिलती है, वैसी अन्यत्र नहीं। यह ग्रंथ कर्म करने और कर्तव्यों का निर्वाह करने की प्रेरणा देता है।
उपसंहार-महाकवि तुलसी ने भगवान श्रीराम की पावन जीवन गाथा का सुंदर गेय शैली में ऐसा वर्णन किया है कि वह जन-जन का कंठाहार बन गई। वे अपनी रचनाओं से हर एक के हृदय सम्राट बन गए।
27. मेरी प्रिय पुस्तक
• भूमिका • प्रिय लगने का कारण • वर्ण्य-विषय • भाषा एवं छंद
भूमिका – हिंदी साहित्य अत्यंत समृद्ध है। हिंदी साहित्यकारों ने अपनी-अपनी कृतियों से हिंदी प्रेमियों को उपकृत किया है। ये कृतियाँ पाठकों का ज्ञानवर्धन ही नहीं करती वरन उसे आनंद के सागर में गोते भी लगवाती हैं। यह पाठक विशेष पर निर्भर करता है कि उसकी पसंदीदा कृति कौन-सी है। मेरी सबसे प्रिय कृति ‘रामचरित मानस’ है जिसकी रचना महाकवि तुलसी द्वारा की गई है।
प्रिय लगने का कारण – मुझे ‘राम चरितमानस’ क्यों प्रिय है, इसके एक नहीं अनेक कारण हैं। इस महाकाव्य में मानव जीवन के हर पहलू का सुंदर चित्रण है। इसमें मनुष्य के लिए कदम-कदम पर संदेश दिया गया है जिनको अपनाने से वह आदर्श बन सकता है। माता-पिता का सम्मान करने की सीख देते हुए कहा गया है- प्रातकाल उठि के रघुनाथा। मातु-पिता, गुरु नावहिं माथा।
प्रातकाल माता-पिता के प्रणाम करने का क्या फल मिलता है, तुलसी इसका उल्लेख करना नहीं भूले हैं, ताकि बालक यह प्रश्न न कर सकें कि इससे क्या मिलने वाला। तुलसी ने लिखा है –
गुरु गृहं पढ़न गए दोउ भाई। अल्पकाल सब विद्या पाई।।
रामचरितमानस में भाई से भाई को प्रेम करने का जैसा संदेश दिया गया है, वह सबके लिए अनुकरणीय है। लक्ष्मण के मूर्छित होने पर विलाप करते हुए श्रीराम के मुख से कहलवाया है –
सुत वित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारंबारा। अस विचारि जिय जागहुँ ताता। मिलहिं न जगत सहोदर भ्राता। इसी प्रकार एक राजा को अपनी प्रजा के प्रति कर्तव्य का बोध कराने के लिए तुलसी ने कहा है – जासु राज निज प्रजा दुखारी। सो नृप अवश नरक अधिकारी।।
वर्ण्य-विषय – रामचरित मानस का वर्ण्य विषय है- भगवान राम के जीवन की पावन गाथा का वर्णन। इसके लिए महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायण’ की कथा को आधार बनाया गया है। इस ग्रंथ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को सामान्य मानव के जैसा ही कार्य व्यवहार करते हुए दर्शाया गया है, जिससे लोग उनके अनुकरणीय कार्यों से कुछ सीख ले सकें। इस पावन गाथा को सात भागों, जिन्हें ‘कांड’ नाम दिया गया है, के माध्यम से वर्णित किया गया है। ये सातों कांड हैं- बाल कांड, अयोध्या कांड, सुंदर कांड, किष्किंधा कांड, अरण्य कांड, लंका कांड और उत्तर कांड। इस काव्य में तात्कालिक समाज, राजनीति और जनजीवन के चित्रण के अलावा विभिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों का भी सुंदर वर्णन है।
भाषा एवं छंद – रामचरितमानस अवध प्रांत की भाषा ‘अवधी’ में रचा गया है। यह भाषा इतनी सरस, सरल, मधुर, सजीव एवं कर्णप्रिय है कि यह अनायास ही जन मानस की जुबान पर बस जाती है। इसमें निहित लयात्मकता एवं संगीतात्मकता इसे कर्णप्रिय बना देती है। इस ग्रंथ में मुख्यतया चौपाई, दोहा, सोरठा, हरिगीतिका आदि छंदों का प्रयोग हुआ है। छंदों की यह विविधता इस ग्रंथ को और भी लोकप्रिय बना देती है।
प्रेरणादायक बिंदु – राम चरितमानस से समाज को समन्वय बनाए रखने की सीख मिलती है। इससे मनुष्य को आपस में संबंध बनाए रखने तथा कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। इसके अलावा इसके पठन से संकट में न घबराने, कर्तव्य से मुँह न मोड़ने तथा उत्तरदायित्व निभाने, सच्ची मित्रता निभाने, त्याग एवं परोपकार करने धैर्यवान तथा उदार बनने की सीखं मिलती है।
उपसंहार – ‘रामचरितमानस’ भारतीय समाज के लिए एक धरोहर है। इसमें लोकमंगल की कामना है। यह ग्रंथ श्रेष्ठता की सभी कसौटियों पर खरा उतरता है। हम सबको एक बार इसे अवश्य पढ़ना चाहिए।
28. समाज सुधारक-कबीर
- शिक्षा-दीक्षा
- समाज सुधार के स्वर
- काव्य की भाषा
भूमिका – हिंदी साहित्य को अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं से समृद्ध बनाया है। इन कवियों में तुलसीदास, सूरदास, मीरा, जायसी जयशंकर प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा आदि प्रमुख हैं। इन्हीं कवियों में कबीर का विशेष स्थान है, क्योंकि उनकी रचनाओं में समाज सुधार का स्वर विशेष रूप से मुखरित हुआ है।
जीवन-परिचय – ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि माने जाने वाले कबीर का जन्म सन् 1398 ई. में काशी में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि कबीर का जन्म विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। उसने लोक लाज के भय से कबीर को लहरतारा नामक स्थान पर तालाब के किनारे छोड़ दिया। उसी स्थान से नि:संतान नीरु-नीमा गुज़र रहे थे। उन्होंने ही बालक कबीर का पालन किया। कहा गया है
जना ब्राह्मणी विधवा ने था, काशी में सुत त्याग दिया। तंतुवाय नीरू-नीमा ने पालन कबिरादास किया।।
शिक्षा-दीक्षा-कबीर ने बड़े होते ही नीमा-नीरु का व्यवसाय अपना लिया और कपड़ा बुनने लगे। कबीर अनपढ़ रह गए थे। उन्होंने स्वयं कहा है –
मसि कागज छूयो नहिं, कलम गही नहिं हाथ।
कबीर ने अनुभव से ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने दोहे साखियों के रूप जो कुछ कहा उनके शिष्यों ने उसे संकलित किया। उनके शिष्यों ने उनके नाम पर एक मठ चलाया, जिसे कबीर पंथी मठ कहा जात है। इसके अनुयायी आज भी मिलते हैं।
रचनाएँ – कबीर अनपढ़ थे। उनकी साखियों, सबद और रमैनी का संकलन ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में किया गया है। इनका मूल स्वर समाज सुधार, भक्ति-भावना तथा व्यावहारिक विषयों से जुड़ी बातें हैं।
समाज सुधार के स्वर – कबीरदास उच्चकोटि के साधक, संत और विचारक थे। वे भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास, बाह्य आडंबर, मूर्ति पूजा, धार्मिक कट्टरता और धार्मिक संकीर्णता पर चोट की है। उन्होंने जातिपाँति का विरोध करते हुए लिखा है –
हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुअन न देई। वेस्या के पायन तर सोवे ये देखो हिंदुआई। उन्होंने मुसलमानों को भी नहीं छोड़ा और कहा – मुसलमान के पीर औलिया मुरगा-मुरगी खाई। खाला की रे बेटी ब्याहे, घर में करे सगाई।। उन्होंने हिंदुओं की आडंबरपूर्ण भक्ति देखकर कहा – पाहन पूजे हरि मिले, मैं पज पहार। ताते यह चकिया भली पीसि खाए संसार।। उन्होंने ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रयोग करने पर मुसलमानों पर प्रहार करते हुए कहा – काँकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाय। ता पर मुल्ला बाँग दे, का बहरा भया खुदाय।।
काव्य की भाषा – कबीर की भाषा मिली-जुली बोलचाल की भाषा थी, जिनमें ब्रज, खड़ी बोली, अवधी, राजस्थानी तथा पहाड़ी भाषाओं के शब्द मिलते हैं। इसे संधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी भी कहा जाता था। कबीर बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं।
उपसंहार – कबीर संत कवि थे। उन्होंने समाज की बुराइयों पर जिस निर्भयता से प्रहार किया वैसा किसी अन्य कवि ने नहीं। वास्तव में कबीर सच्चे समाज सुधारक थे जिन्होंने कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। कबीर आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने उसकाल में थे। हमें उनके मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
29. परोपकार अथवा वही उदार है परोपकार जो करे
- प्रकृति का परोपकारी स्वभाव
- प्रेरणादायक उदाहरण
- उच्चमानवीय गुण
- परोपकार से तात्पर्य
भूमिका – मनुष्य में कुछ विशिष्ट गुण होते हैं जो उसे पशुओं से अलग करते हैं। अपना पेट जैसे-तैसे भरने का काम तो पशु भी कर लेते हैं, पर त्याग सहयोग, उदारता, परोपकार आदि गुणों के कारण वह पशुओं से अलग हो जाता है। मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाने के लिए जो गुण होने चाहिए उनमें परोपकार प्रमुख है।
प्रकृति का परोपकारी स्वभाव – प्रकृति सदा से मनुष्य पर उपकार करती आई है। प्रकृति के अंग पेड़-पौधे अपना फल स्वयं नहीं खाते हैं। वे दूसरे के लिए ही फलते-फूलते हैं और पत्ते धारण करते हैं। नदियाँ अपना अमृत तुल्य जल स्वयं कभी नहीं पीती हैं। जीव इनसे अपनी प्यास बुझाते हैं। मनुष्य इसे पीने के अलावा विविध कार्यों में भी प्रयोग करता है। तभी तो कहा गया है
वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर। परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर।।
सूर्य अपनी ऊष्मा और प्रकाश निःस्वार्थ भाव पर लुटाता है और बिना भेदभाव किए सबको प्रकाश देता है। इसी प्रकार चंद्रमा अपनी शीतलता से सभी के दुखों पर मरहम लगाता है। बादलों का स्वभाव ही परोपकारी होते हैं। वे दूसरों की भलाई के लिए अपना अस्तित्व तक मिटा देते हैं।
परोपकार से तात्पर्य – परोपकार दो शब्दों ‘पर’ और ‘उपकार’ के मेल से बना है जिसका अर्थ है-दूसरों की भलाई करना। अर्थात् मन, वाणी वचन और कर्म से नि:स्वार्थ भाव से दूसरों का कल्याण करना, उन्हें सुख पहुँचाना ही परोपकार है। यदि हम स्वार्थ भाव से या दूसरों से कुछ पाने की आशा में किसी की भलाई करते हैं, तो उसे परोपकार नहीं कहा जा सकता है। कहा जाता है कि परोपकार की शुरुआत घर से ही होती है। माता-पिता अपने सुख और सुविधाओं में कटौती करके अपनी संतान को सुख-सुविधा प्रदान करते हैं और उसका भविष्य सुखमय बनाने का प्रयास करते हैं। यहीं से बच्चे में भी परोपकार की भावना जागती है और समय के साथ मज़बूत होती जाती है।
प्रेरणादायक उदाहरण – मानव शरीर पाकर खाना-पीना सोजाना और अपने स्वार्थ में डूबे रहना सच्ची मनुष्यता नहीं है। सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों के काम आता है। ऐसे पुरुषों की कमी नहीं है जिन्होंने अपना सारा जीवन दूसरों की भलाई में समर्पित कर दिया। कार्ल मार्क्स, लेनिन, अब्राहम लिंकन, गांधी जी, महात्मा बुद्ध आदि परोपकार के लिए ही जाने जाते हैं। महर्षि दधीचि ने मानवता की रक्षा के लिए अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने अत्याचारी वृत्तासुर को मारने के लिए जीते जी अपने शरीर की अस्थियाँ दान दे दी जिसका बज्र बनाकर देवराज इंद्र ने दानवों से युद्ध किया और विजय प्राप्त किया। हमारे देश के ऋषि-मुनि मानवता की भलाई के लिए यज्ञ-हवन आदि करते थे जिससे वातावरण शुद्ध होता था और वर्षा होती थी।
राजा शिवि ने एक कबूतर के जान की रक्षा के लिए उसके वजन के बराबर मांस अपने शरीर से काटकर बाज को दिया था। ऐसे परोपकारियों के उदाहरण कम ही मिलते हैं।
उच्च मानवीय गण – परोपकार उच्च मानवीय गुण है। इससे मनुष्य उदार बनता है। वह दूसरों के काम आता है जिससे मैत्रीभाव में वृद्धि होती है। वह दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन जाता है। उसे देखकर अन्य लोग भी परोपकार के लिए प्रेरित होते हैं।
उपसंहार-मानवता की भलाई के लिए परोपकार, की भावना होनी बहुत आवश्यक है। हमारी संस्कृति ‘सर्वेभवन्तु सुखिनः’ का संदेश देती है। यह संदेश तभी सार्थक बन सकेगा जब सभी दूसरों के लिए भी जीना सीखें।
30. भारत गाँवों का देश . अथवा चले गाँव की ओर
- आजादी से पहले गाँवों की स्थिति
- गाँवों की वर्तमान स्थिति
- गाँवों का महत्त्व
- गाँवों में भारतीय संस्कृति का असली रूप
भमिका-भारत को गाँवों का देश कहा जाता है। यहाँ की लगभग दो तिहाई जनसंख्या गाँवों में रहती है। उसकी आजीविका का आधार कृषि और उससे जुड़े उद्योग धंधे हैं। इन्हीं गाँवों में हमारे देश की आत्मा बसती है। तभी तो कहा गया है-‘है अपना हिंदुस्तान कहाँ, वह बसा हमारे गाँवों में।’
आज़ादी से पहले गाँवों की स्थिति – आज़ादी से पहले गाँवों की स्थिति दयनीय हालत में थी। गाँवों का भाग्य ज़मींदारों के हाथ में था। ये ज़मींदार किसानों, मज़दूरों तथा अन्य कर्मियों पर मनमाना टैक्स लगाते थे। वर्षा न होने पर पैदावार न होने की दशा में वे लगान वसूलना नहीं भूलते थे। ऐसे में किसान की हालत दयनीय थी। झोपड़ियों या कच्चे घरों में रहना वहीं पास में पेड़ों से बँधे जानवर कच्ची गलियाँ, गलियों में बहता घरों का गंदा पानी, वर्षा ऋतु में घुटनों तक भरा कीचड़, चारों ओर फैली गंदगी, कमज़ोर शरीर वाले अनपढ़ नर-नारी और बच्चे कुछ ऐसा था गाँवों का स्वरूप जहाँ विकास के कदम नहीं पहुँचे थे। अस्पताल, बैंक, डाकघर, स्कूल सब कुछ गाँववालों की पहुँच से दूर हुआ करते थे।
गाँवों की वर्तमान स्थिति – आजकल गाँवों की स्थिति में पर्याप्त बदलाव आ गया है। स्वतंत्रता के उपरांत ग्रामीण विकास की योजनाएँ बनने और उनका क्रियान्वयन होने से विकास की बयार गाँवों तक जा पहुँची है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना कार्यक्रम की शुरुआत होने से अधिकांश गाँवों को सड़कों से जोड़ा गया है। ग्रामीण विद्युतीकरण से बिजली गाँवों तक पहुंच गई है। इससे टेलीविजन वाशिंग मशीन, फ्रिज जैसे आधुनिक उपकरण गाँव वालों के घरों तक जा पहुँचे। सिंचाई की व्यवस्था हेतु राजकीय नलकूप लगवाए गए।
इससे कृषि की वर्षा पर निर्भरता खत्म हुई। इससे किसानों की आय में वृद्धि हुई। अब वहाँ भी पक्की नालियाँ और खड्जे दिखाई देते हैं। कंधे पर हल रखकर खेत को जाता हुआ, किसानों की जगह अब ट्रैक्टर दिखाई देते हैं। घर के बाहर जहाँ-जहाँ हल-बल दिखाई देते थे, अब वहाँ ट्रैक्टर और कृषि के अन्य उन्नतयंत्र दिखाई देते हैं।
गाँवों का महत्त्व – गाँव शहरी जीवन की अनेक वस्तुओं के आपूर्ति के केंद्र हैं। गाँवों में उगाए गए अनाज द्वारा ही शहर के लोगों तथा सीमा पर देश की रक्षा में लगे जवानों का पेट भरता है। गाँवों की कृषि उपज के कारण खाद्यान्न का निर्यात होता है। इससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। गाँवों को दूध-घी का केंद्र माना जाता है। शुद्ध दूध, दही और घी गाँवों में ही मिलता है। गाँवों की सब्ज़ियाँ ही शहरों में पहुँचाई जाती हैं। इसके अलावा कृषि से जुड़े सारे उत्पाद गाँवों से शहर में पहुँचाए जाते हैं। इनकी अधिकता होने पर इन्हें अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। गाँवों की महत्ता देखकर ही हमारे पूर्व प्रधानमंत्री ने ‘जय किसान’ का नारा दिया था।
गाँवों में भारतीय संस्कृति का असली रूप-यद्यपि गाँवों के रहन-सहन और रीति-रिवाजों में बदलाव आया है, परंतु आज भी गाँवों में भारतीय संस्कृति अपने मूल रूप में विद्यमान है। माता-पिता, दादा-दादी के चरण छूना, बड़ों द्वारा प्रसन्न होकर आशीर्वाद देना, भारतीय संस्कृति के अनुरूप पहनावा तथा अन्य व्यवहार आज भी देखे जाते हैं, जो हमारी प्राचीन संस्कृति की याद दिलाते हैं। ग्रामीण आज भी ‘हाय-हेलो’ और ‘बाय-बाय’ पसंद नहीं करते हैं।
उपसंहार-आज भी दूर-दराज के ऐसे अनेक गाँव हैं जहाँ बिजली, पक्की सड़कें विद्यालय आदि नहीं हैं। इन गांवों का विकास होना अभी बाकी है। सरकार को चाहिए कि ऐसे गाँवों को भी विकास की मुख्यधारा से जोड़कर इनका भी उद्धार करे, क्योंकि ऐसे गाँवों का विकास किए बिना देश के विकास की बात सोचना बेईमानी होगी।
31. महानगरीय जीवन अथवा महानगरीय जीवन की समस्याएँ
- शहरों की ओर झुकाव
- शहरों की चकाचौंध
- शहर सुविधा के केंद्र
- शहरी जीवन का सच
- दिखावापूर्ण जीवन
भूमिका-मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि उसे अधिक से अधिक सुख-सुविधाएँ मिलें। इन्हीं सुख-सुविधाओं को वह खोजता-खोजता शहर की ओर आता है। शहरी जीवन उसे बड़ा आकर्षक लगता है पर यहाँ की सच्चाई कुछ और ही होती है।
शहरों की ओर झुकाव – वर्तमान युग में चारों ओर विकास दिखाई पड़ता है, परंतु जिस रफ्तार से शहरों का विकास हुआ है, उस तरह से गाँवों का नहीं। शहरों की तुलना में गाँव सदा पिछड़े ही नज़र आते हैं। गाँवों में आजीक्किा का प्रमुख साधन कृषि है, परंतु बढ़ती आबादी के कारण कृषियोग्य जमीन का बँटवारा होता गया। कृषि कम होने से रोटी-रोजी का संकट उठना स्वाभाविक है। इसके अलावा गाँवों में सरकारी तथा गैर सरकारी मिल और फैक्ट्रियाँ तथा अन्य उद्योग धंधे नहीं हैं कि लोगों का मन शहर की ओर न झुके और वे यहीं के यहीं रह जाए।
शहरों की चकाचौंध – शहरी जीवन आकर्षण से भरपूर है। यहाँ की चमचमाती पक्की सड़कें, पार्क, उद्यान, ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ, घर-घर तक बिजली की पहुँच और अत्याधुनिक उपकरण, घरों के वातानुकूलित कमरे, सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स क्लब होटल आदि शहरों की चकाचौंध कई गुना बढ़ा देते हैं। इसके अलावा सरकारी-गैर सरकारी कार्यालय, मैट्रो रेल सेवा, वातानुकूलित बसें उनकी उपलब्धता देखकर गाँव से आया व्यक्ति सम्मोहित-सा हो जाता है। वह शहर की चकाचौंध में खो जाता है। उसे लगता है कि वह किसी और लोक में आ गया है।
शहर सुविधा के केंद्र – सरकारी योजनाओं का अधिकांश लाभ शहरों को मिलता है। यहाँ विकास की गति बहुत तेज़ होती है। शहरों में उच्च पदासीन अधिकारियों तथा नेताओं का निवास होने के कारण यहाँ सुविधाओं की कमी नहीं होती है। शहरों में एक ओर जहाँ रोज़गार के छोटे-बड़े अनेक अवसर उपलब्ध होते हैं, वहीं योग्यता के अनुसार नौकरी के अवसर भी उपलब्ध होते हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे जीवन के लिए आवश्यक वस्तुएँ भी आसानी से मिल जाती हैं।
खाद्य वस्तुएँ, दूध, तेल, साबुन, कपड़ा आदि के लिए किसी विशेष दिन लगने वाली बाज़ार का न तो इंतज़ार करना है और न ज्यादा दूर जाना हैं। यहाँ परिवहन सेवा, चिकित्सा सेवा आदि सुलभ है। यहाँ दो कदम पर मॉल है तो चार कदम पर सिनेमाघर उपलब्ध है। यही स्थिति अन्य सुविधाओं की भी है।
शहरी जीवन का सच – अमीर लोगों के लिए शहर सुविधा के केंद्र हैं। यहाँ उनके लिए एक से बढ़कर एक सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हैं, परंतु गरीब और आम आदमी के लिए शहर की सुविधाएँ दिवास्वप्न साबित होती है। व्यक्ति गाँव से शहर के आकर्षण से खिंचा आ जाता है, परंतु उसे फैक्ट्रियों में मजदूरी करनी पड़ती है या मंडी में पल्लेदारी करनी पड़ती है।
कम आय होने के कारण मुश्किल से वह अपना पेट भर पाता है। वह झग्गियों में रहने के लिए विवश होता है। पानी और शौच के लिए घंटों लाइन में लगना उसकी नियति बन जाती है। आने-जाने के लिए बसों के धक्के, साँस लेने के लिए न साफ़ हवा और न पीने को स्वच्छ पानी। उसकी जिंदगी कोल्हू के बैल के समान होकर रह जाती है। ऐसे जीवन में उसे शहर का सच पता चल जाता है।
दिखावापूर्ण जीवन – शहर की व्यस्त और भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण आत्मीयता में कमी आने लगती है। वह काम की मार से परेशान होता है। यह परेशानी उसके व्यवहार में झलकती है। वह फ़ोन, सोशल मीडिया, एस.एम.एस. से जुड़ने का दिखावा तो करता है, परंतु वह चाहकर अपने निकट संबंधियों से मिल नहीं पाता है। इसके अलावा शहरी जीवन में व्यक्ति आत्मकेंद्रित तथा स्वार्थी बनता जाता है।
उपसंहार-महानगरों का जीवन आकर्षण से भरपूर है। धनी लोग शहरों में सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, पर आम आदमी और गरीब वहाँ नाटकीय जीवन जीने को विवश होता है। शहरी जीवन पर हर बात पूर्णतया लागू होती है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।
32. भारत की ऋतुएँ अथवा ऋतुओं का अनोखा उपहार
- ग्रीष्म ऋतु
भूमिका – प्रकृति भारत पर खूब दयालु रही है। उसने हमारे देश को अनेक वरदान दिए हैं। इन वरदानों में एक अद्भुत वरदान है-यहाँ की ऋतुएँ। हमारे देश में छह ऋतुएँ पाई जाती हैं, जो बारी-बारी से आती हैं और अपनी सुषमा सर्वत्र बिखरा जाती हैं।
ग्रीष्म ऋतु – इस ऋतु को गरमी की ऋतु भी कहा जाता है। भारतीय महीनों के अनुसार, यह ऋतु जेठ महीने में होती है। इस समय खूब गरमी पड़ती है। धूप बहुत तेज़ हो जाती है। तालाब, पोखर, नाले और छोटी नदियाँ सूख जाती हैं। इस समय हरियाली गायब हो जाती है। पशु-पक्षी, मनुष्य और अन्य जीवधारी बेहाल हो जाते हैं। वे वर्षा के लिए आसमान की ओर निहारते नज़र आते हैं।
वर्षा ऋतु-यह ऋतु ग्रीष्म ऋतु के बाद आती है। इसका काल आषाढ़, सावन और आधा भादों का महीना होता है। इसे ‘जीवनदायिनी ऋतु’ और ‘ऋतुओं की रानी’ भी कहा जाता है। आषाढ़ माह में तपते मौसम के बीच अचानक बादल छा जाते हैं, शीतल हवा बहने लगती है, बिजली चमकने लगती है और वर्षा शुरू हो जाती है। इससे धरती को हरियाली और प्राणियों को जीवन मिलता है। इस समय खेतों में फ़सलें लहराने लगती हैं और नदी-नाले तालाब-पोखर पानी से भर जाते हैं। प्रकृति में सर्वत्र उल्लास का वातावरण बन जाता है।
शरद ऋतु-यह ऋतु मुख्यतया क्वार और आधे कार्तिक मास में होती है। इस समय तक गरमी बिलकुल कम हो चुकी होती है। आसमान से काले बादल गायब हो चुके होते हैं। जो होते भी हैं वे थोथे होते हैं। वे गरजते तो हैं, पर बरसने की क्षमता नहीं होती है। धरती पर सर्वत्र हरियाली दिखाई देती है। रास्तों का कीचड़ सूख चुका होता है। अधिक बरसात के कारण जो नदी – नाले अपनी सीमा लाँघ गए थे वे अपनी सीमा में लौट आते हैं। यह काल गरमी और सरदी का संधि काल होता है। इस समय का मौसम गुलाबी होती है- यह ऋतु स्वास्थ्य के अनुकूल होती है।
शिशिर ऋतु-कार्तिक और अगहन महीना इस ऋतु का काल माना जाता है। इस ऋतु में सरदी बढ़ने लगती है। इसी समय दीपावली तथा अन्य त्योहार मनाए जाते हैं। इसी समय खरीफ की फ़सलें पककर कटने को तैयार होती हैं तथा रबी की फ़सल की बुवाई करने की तैयारी की जाती है। इस ऋतु में आसमान प्रायः स्वच्छ होता है। इस ऋतु में आसमान साफ़ रहता है।
हेमंत ऋतु – इस ऋतु का काल पूस और माघ माना जाता है। इस समय दाँत किटकिटा देने वाली सरदी पड़ती है। गरीबों का जीवन ऐसे में मुश्किल हो जाता है। पहाड़ी भागों में इस समय खूब बरफ़ पड़ती है। मैदानी भागों में कभी-कभी पाला पड़ता है। इस ऋतु में रंग-बिरंगे कपड़े पहने लोग दिखाई देते हैं। रूस साइबेरिया जैसे स्थानों पर बरफ़ पड़ने के कारण विदेशी पक्षी हमारे आसपास दिखाई पड़ते हैं। इसी समय अनेक पेड़ अपनी पत्तियाँ गिराकर दूंठ से नज़र आते हैं।
वसंत ऋतु – वसंत को ‘ऋतुराज’ की संज्ञा दी जाती है। यह सबसे सुंदर और सुहानी ऋतु मानी जाती है। इस ऋतु का काल फागुन और चैत महीने माने जाते हैं। इस समय धरती का प्राकृतिक सौंदर्य निखर उठता है। चारों ओर फूल खिल जाते हैं और पेड़ों पर नई पत्तियाँ और कलियाँ आ जाती हैं। हवा में मादकता भर जाती है। यह ऋतु प्राणियों को हर्षोल्लास से भर देती है। आमों पर बौर आया देख कोयल मतवाली हो जाती है और कूकती फिरती है।
उपसंहार – भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ इतना ऋतु वैविध्य है। यहीं ऋतुओं का ऐसा अद्भुत सौंदर्य दिखाई देता है। हमें ऋतुओं का स्वागत करने को तैयार रहना चाहिए।
33. जीवनदायिनी वर्षा ऋतु अथवा वर्षा ऋतु-ऋतुओं की रानी
- वर्षा ऋतु का आगमन
- जीवनदायिनी वर्षा
- कवियों की प्रिय ऋतु
- वर्षा ऋतु में प्राकृतिक सौंदर्य
- वर्षा ऋतु में सावधानियाँ
भूमिका – भारत को ऋतुओं और त्योहारों का देश कहा जाता है। यहाँ दो महीने बीतते-बीतते नई ऋतु आ जाती है। हमारे देश में बारी-बारी से छह ऋतुएँ आती-जाती हैं। वर्षा ऋतु इनमें से एक है। यह ऐसी ऋतु है जिसका इंतज़ार धरती का हर प्राणी करता है।
वर्षा ऋतु का आगमन – इस ऋतु का आगमन उस समय होता है जब गरमी अपने चरम पर होती है। धरती तवे की भाँति जल रही होती है पशु-पक्षी तथा अन्य गरमी से बेचैन होते हैं तथा किसान रह-रहकर आसमान में बादलों की राह देखते हैं। इस समय बच्चे ‘काले मेघा पानी दे’ कर रट लगाए होते हैं तभी आषाढ़ महीने में अज्ञात दिशा से काले-काले घन आकर छा जाते हैं। शीतल हवा बहने लगती हैं। बादल की गरजना शुरू होती है और जंगल में मोर अपनी केका से उनका स्वागत करने लगते हैं। इससे प्रसन्न होकर बादल बरसने लगते हैं।
जीवनदायिनी वर्षा – वर्षा जीवनदायिनी होती है। वर्षा तपती धरती को शीतल कर देती है। वर्षा होते ही गरमी की तपन से मुक्ति मिलती है। ऐसे में वर्षा की परवाह न करके बच्चे नहाने के लिए बाहर आ जाते हैं। वर्षा के साथ बहती हवा में पेड़-पौधे झूमझूमकर खुशी प्रकट करते हैं। पेड़-पौधे नहाए-धोए से नज़र आने लगते हैं। धरती पर जीवन वापस आया देख बादल धरती के और भी करीब आ जाते हैं और बरसने लगते हैं। ऐसे ही बरसते बादलों को देखकर कविवर तुलसीदास ने कहा था –
बरसत जलद भूमि नियराये। जथा नवहिं बुधि विद्या पाए।।
कवियों की प्रिय ऋतु-वर्षा कवियों की प्रिय ऋतु है। कवियों ने वर्षा ऋतु के संबंध में काफ़ी कुछ लिखा है। महादेवी वर्मा ने वर्षा सुंदरी के बारे में लिखा है –
रूपसि तेरा घन केशपाश श्यामल-श्यामल कोमल-कोमल लहराता सुरभित केशपाश।
वर्षा ऋतु संयोगी जनों को तो बहुत भाती है, परंतु विरहिणी नायिकाओं की विरह व्यथा को यह और भी बढ़ा देती है। सीताहरण के उपरांत जब श्रीराम अकेले होते हैं तो गरजते-बरसते बादलों को देखकर उनके मन में भय का संचार होता है। वे कह उठते हैं –
घन घमंड गरजत घनघोरा। प्रियाहीन डरपत मन मोरा।।
वर्षा ऋतु में प्राकृतिक सौंदर्य – ग्रीष्म ऋतु की तपन से धरती की हरियाली नष्ट हो गई थी वह वर्षा का शीतल जल पाकर लौट आती है। इससे धरती का प्राकृतिक सौंदर्य निखर उठता है। खेतों में लहराती फ़सलें, पेड़ों पर छायी हरियाली इस सुंदरता को और भी बढ़ा देती है। ऐसे सौंदर्य को देखकर पशु-पक्षी मुखरित हो उठते हैं। तालाब में दादुर अपना राग छेड़कर खुशी प्रकट करते हैं तो जंगल में मोर बोलने लगते हैं। तरह-तरह के पक्षी अपने कलरव से आकाश [जा देते हैं। कल तक के सूखे तालाबों में पानी भर जाता है। कमल और कुमुदिनी खिल जाते हैं तथा जलचर क्रीड़ा करते नज़र आते हैं।
वर्षा ऋतु में सावधानियाँ – वर्षा अत्यंत लाभकारी ऋतु है, परंतु वर्षा की अधिकता बाढ़ लाती है। वर्षा में नाना प्रकार के कीटपतंगे और मक्खी-मच्छर पैदा हो जाते हैं। इसके अलावा ज़मीन एवं बिलों में पानी भर जाने से साँप-बिच्छू चूहे बाहर आ जाते हैं। तनिक-सी असावधानी से इन कीट-पतंगों तथा जहरीले जीवों से खतरा हो सकता है। इस संबंध में हमें सावधान रहना चाहिए। इसके अलावा बच्चे तालाब, नाले आदि में कागज की नाव तैराने चले जाते हैं। सावधानी न बरतने से पैर फिसलकर गिरने का भय रहता है। उपसंहार-वर्षा जीवनदायिनी ऋतु है। यह प्राणियों तथा वनस्पतियों को नव-जीवन देती है। वर्षा ऋतु आए और बादल खूब बरसे, इसके लिए आइए, इसी वर्षा ऋतु हम सब पेड़-पौधे लगाएँ।
34. विद्यालय का वार्षिकोत्सव अथवा आँखों देखे किसी रंगारंग कार्यक्रम का वर्णन
- आयोजन का समय
- कार्यक्रम की तैयारी
- कार्यक्रम का आरंभ
- वार्षिकोत्सव का मुख्य कार्यक्रम
भूमिका – वर्तमान समय में विद्यालय में केवल पठन-पाठन संबंधी गतिविधियों का आयोजन ही नहीं होता वरन् छात्रों के बहुमुखी विकास के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विद्यालय में आयोजित किए जाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम भी इसी की एक कड़ी हैं। इनमें विद्यालय का वार्षिकोत्सव अपना विशेष महत्त्व रखता है।
आयोजन का समय – हमारे विद्यालय की स्थापना 15 नवंबर 1960 को हुई थी। विद्यालय के लिए इस दिन का उतना ही महत्त्व है जितना कि किसी व्यक्ति के जन्मदिन का। विद्यालय का स्थापना दिवस होने के कारण प्रतिवर्ष 15 नवंबर को विद्यालय का वार्षिकोत्सव मनाया जाता है।
कार्यक्रम की तैयारी – विद्यालय का वार्षिकोत्सव सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपना विशेष महत्त्व रखता है। ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम की तैयारी भी कार्यक्रम से 20 – 25 दिन पहले से शुरू कर दी जाती है। इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सभी छात्रों के विभिन्न कार्यक्रमों की जाँच-परख की जाती है। यह काम दो-तीन दिन में कर लिया जाता है। फिर भाषाध्यापक, कला शिक्षक एवं योगा के अध्यापक कार्यक्रमों के हिसाब से तैयारी करवाते हैं। बगल के विद्यालय के संगीत शिक्षक की सेवाएँ लेकर गीत गाने वाले छात्रों की तैयारी करवाई जाती है। इसके अलावा छात्र अपने ढंग से व्यक्तिगत स्तर पर भी तैयारी करते हैं, ताकि कार्यक्रम ज़्यादा से ज़्यादा अच्छा बन सके।
कार्यक्रम का आरंभ – कार्यक्रम के आरंभ होने का समय प्रातः नौ बजे रखा गया। इसके लिए आवश्यक तैयारियाँ 14 तारीख को ही पूरी कर ली गई थी। छात्रों एवं अतिथियों को बैठने के लिए पांडाल सजा दिया गया। 15 नवंबर को प्रात: आठ बजे तक दरियाँ बिछाकर कुरसियाँ लगवा दी गईं। विद्यालय का मुख्य द्वार सजा दिया गया। मेहमानों के आने के रास्ते के आसपास चूना छिड़कवाकर रास्ते के पास रंगोली बनाई गई और फूलों की पंखुड़ियों से स्वागतम लिखा गया। विद्यालय में सवेरे से ही देशभक्ति पूर्ण गीत बजाकर वातावरण में संगीत घोलने का काम किया जा रहा था। तभी ठीक नौ बजे मुख्य अतिथि का आगमन हुआ और कार्यक्रम शुरू हो गया।
वार्षिकोत्सव का मुख्य कार्यक्रम – मुख्य अतिथि के आने की घोषणा की गई। विद्यालय के प्रधानाचार्य और उपप्रधानाचार्य उन्हें लेकर मंच पर आए और पुष्पमालाओं द्वारा उनका स्वागत किया। मुख्य अतिथि द्वारा आसन ग्रहण करने के बाद छात्रों ने स्वागत गान प्रस्तुत किया। इसके उपरांत मुख्य अतिथि ने सरस्वती की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्ज्वलित किया।
अब छात्रों द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। बाद में ‘आओ मिलकर दीये जलाएँ’ शीर्षक वाला समूह ज्ञान प्रस्तुत किया गया। इसकी समाप्ति के उपरांत प्रधानाचार्य ने गतवर्ष की उपलब्धियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति के बाद ‘जलाओ धरा पर दीप इतने’ गीत की प्रस्तुति की गई। इस गीत पर श्रोताओं ने करतल ध्वनि से उत्साहवर्धन किया। इसके बाद बारी थी- ‘अंधेर नगरी’ नाटक के मंचन की। इसे देखकर दर्शक हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए। इसके बाद ‘आओ मिलकर राष्ट्र सँवारे’ गीत का गायन हुआ।
अब बारी थी एक देशभक्ति पूर्ण नाटक। यह नाटक मन में देशभक्ति का भाव जगा गया। इसके बाद मुख्य अतिथि ने आशीर्वाद वचन कहकर छात्रों का उत्साहवर्धन किया। इसके बाद प्रधानाचार्य द्वारा धन्यवाद भाषण दिया गया। अंत में मिष्ठान्न वितरण हुआ। इस तरह वार्षिकोत्सव का यह रंगारंग कार्यक्रम समाप्त हुआ।
उपसंहार – विद्यालय का वार्षिकोत्सव अत्यंत मनोरंजक एवं उत्साहवर्धक रहा। इस कार्यक्रम की यादें अब भी ताज़ा है।
35. किसी पर्वतीय स्थल की यात्रा अथवा मेरी अविस्मरणीय यात्रा
- यात्रा का उद्देश्य
- यात्रा की तैयारी
- रास्ते के मनोरम दृश्य
- पर्वतीय स्थल का वर्णन
- यात्रा से वापसी
भूमिका – मनुष्य घुमंतू स्वभाव का प्राणी है। वह आदिकाल से ही जगह-जगह घूमता रहा है। कभी वह भोजन और आवास की शरण में भटकता रहा तो कभी प्रचार-प्रसार हेतु। वर्तमान समय में भी मनुष्य काम-काज की खोज या मनोरंजन के लिए कहीं न कहीं आ जा रहा है।
यात्रा का उद्देश्य – इस साल गरमियों में मैंने अपने मित्र के साथ वैष्णो देवी की यात्रा का कार्यक्रम बनाया। इस यात्रा का उद्देश्य ‘एक पंथ दो काज’ करना था। परीक्षा का परिमाण आते ही मन बना लिया था कि इस बार वैष्णो देवी जाकर ‘माता’ के दर्शन करूँगा और पर्वतीय स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य जी भर निहार लूँगा। ईश्वर की कृपा से वे दोनों ही काम पूरे होने थे।
यात्रा की तैयारी – वैष्णो देवी हो या अन्य पर्वतीय स्थल, गरमियों में वहाँ पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे में मैंने इन स्थानों पर जाते समय पहले से आरक्षण करवा लिया था। मैंने अपने कपड़े, टिकट, बिस्किट, नमकीन, रीयल जूस, खट्टी-मीठी गोलियाँ ए.टी.एम. कार्ड, पहचान-पत्र आदि रख लिया। इसके अलावा दो चादरें, तौलिया, जुराबें, स्लीपर (चप्पलें) आदि रख लिया। मैं ट्रेन आने के दो घंटे पहले घर से आटो लेकर निकल पड़ा। संयोग से ट्रेन आने से पहले ही मैं स्टेशन पहुँच गया। ट्रेन प्रातः चार बजकर दस मिनट पर आई और आधे घंटे बाद चल पड़ी।
रास्ते के मनोरम दृश्य – सवेरे की शीतल हवा का झोंका लगते ही मुझे नींद आ गई। लगभग सात बजे आँख खुली। दोनों ओर दूरदूर तक फैले खेत और हरे-भरे पेड़ लगता था कि वे भी कहीं भागे जा रहे हैं। चक्की बैंक स्टेशन से आगे जाते ही पहाड़ दिखने लगे। पहाड़ों को इतना निकट से देखने का यह मेरा पहला अवसर था। जम्मू स्टेशन पर उतरकर आगे की यात्रा हमने बस से की। कटरा तक करीब दो घंटे तक सीले पहाड़ी रास्ते पर चलना तेज़ मोड़ पर बस मुड़ने पर एक ओर झुकना सर्वथा नया अनुभव था।
दर्शनीय स्थल का वर्णन – कटरा पहुँचकर हमने एक कमरा किराए पर लिया। अब तक सायं के साढे चार बजने वाले थे। वहाँ आराम करके शाम को कटरा घूमने चले गए। होटल लौटकर खाना खाया और आराम किया। करीब साढ़े दस बजे मैं अपने मित्र के साथ पैदल वैष्णों देवी की यात्रा पर पैदल चल पड़ा। पहले तो लगता था कि चौदह किलोमीटर लंबी चढ़ाई कैसे चढी जाएगी, पर बच्चों और वृधों को पैदल जाता देखकर मन उत्साहित हो गया। हम भी उनके साथ ‘जय माता दी’ कहते हुए रास्ते में चाय-कॉफ़ी पीते और आराम करते हुए हम वैष्णों देवी पहुँच गए। वहाँ करीब एक घंटे बैठकर विश्राम किया। अब तक सुबह हो गई थी। चारों ओर पहाड़ ही पहाड़, क्या अद्भुत दृश्य था। इतना सुंदर देखकर मन रोमांचित हो उठा।
वहाँ ठंडे पानी में स्नान करके कपड़े बदले, माता के दर्शन किए, प्रसाद लिया। बाहर आकर नाश्ता किया और भैरव नामक पहाड़ी की चढ़ाई करने लगे। दो घंटे बाद हम भैरव नामक मंदिर के सामने थे। पहाड़ को इस तरह देखने का अनुभव मन में रोमांच भर रहा था।
यात्रा से वापसी – भैरव नामक पहाड़ी से उतरकर हम साँझी छत नामक स्थान पर आ गए। यहाँ छोटी-सी जगह में हेलीकाप्टर का उतरना और उड़ान भरना देखकर आश्चर्य भर रहा था। हमारे साथ-साथ तवी नदी बहती हुई निरंतर चलते रहने की प्रेरणा दे रही थी। वहाँ से कटरा और कटरा से सीधे हम दिल्ली आ गए।
उपसंहार-यह मेरी पहली पर्वतीय यात्रा थी। इसकी यादें मन को अब भी रोमांच से भर देती हैं। इससे यह सीख मिलती है कि जब भी समय मिले मनुष्य को प्रकृति के निकट अवश्य जाना चाहिए।
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