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डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध (Dr Rajendra Prasad Essay in Hindi)

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध (Dr Rajendra Prasad Essay in Hindi)

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डॉ राजेंद्र प्रसाद पर 10 लाइन (10 Lines On Dr Rajendra Prasad In Hindi)

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  • डॉ राजेंद्र प्रसाद के इस निबंध से हमेंं क्या सीख मिलती है? (What Will Your Child Learn From Dr Rajendra Prasad Essay?)

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

भारत के पहले राष्ट्रपति को कौन नहीं जानता होगा , क्योंकि इतिहास के पन्नो पर इन्होंने अपने कार्य के बेहतरीन प्रदर्शन से अपना नाम हमेशा के लिए दर्ज करा लिया। इनका बहुत अच्छे से वर्णन किया गया है। डॉ राजेंद्र प्रसाद आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति बने थे और इनका शासन 1950-1962 तक चला था। इनका जन्म 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सिवान जिले के एक छोटे गांव जीरादेई में हुआ था। इनके पिताजी का नाम महादेव सहाय था , जो कि एक श्रेष्ठ विद्वान और वैघ थे और माता का नाम कामेश्वरी देवी था। इनका अधिकांश जीवन राष्ट्रपति पद पर ही गुजरा है। प्रसाद जी बहुत ही शांत और साधारण स्वभाव के थे , जिसके कारण देश की जनता उन्हें बेहद पसंद करती थी। इन्होंने देश का सच्चा नागरिक होने की भूमिका निभाते हुए भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया था। इनके प्रभाव से देश के लोगों में एक अलग उत्साह और जोश आ गया था। भारत की आजादी की लड़ाई में इनका अहम योगदान रहा है। इन्होने अपने राष्ट्रपति शासन के दौरान कई अहम फैसले और घटनाओं का सामना किया है। 28 फरवरी 1963 में राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद पटना में इनका निधन हो गया था।

डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारें में आपको संझेप में जानकारी चाहिए जिससे आपके बच्चे को निबंध लिखने में आसानी हो , तो नीचे दी गई 10 लाइनों को ध्यान से पढ़े और उसकी मदद से निबंध लिखें।

  • डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बने थे।
  • इनका जन्म 3 दिसंबर , 1884 को बिहार के सिवान जिले में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का कामेश्वरी देवी था।
  • प्रसाद जी ने अपना स्नातक प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता से किया था।
  • पहले इन्होंने एक शिक्षक के रूप में कार्य किया और बाद में एक प्रसिद्ध वकील बने।
  • प्रसाद जी ने कानून में डॉक्ट्रेट किया और उच्च न्यालय से जुड़े थे।
  • भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इनका सक्रीय योगदान रहा है।
  • साल 1934 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
  • साल 1962 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
  • इनका निधन 28 फरवरी 1963 में पटना में हुआ था।

अगर आप भी डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारें में छोटा निबंध लिखना चाहते हैं या फिर बच्चों को उनके बारें में कम शब्दों में जानकारी देना तो उसके लिए आगे पढ़ें।

डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के महत्वपूर्ण नेताओं में से प्रसिद्ध नेता है और इनका भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान रहा है। भारत को आजादी मिलने के बाद 26 जनवरी 1950 में इन्हें देश के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था। इनका राष्ट्रपति शासन साल 1950-1962 तक चला था। प्रसाद जी एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी , सामाजिक कार्यकर्ता , शिक्षक और वकील थे। महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए कई स्वतंत्र आंदोलनों में उन्होंने भाग लिया था। इनका जन्म 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सिवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम महादेव सहाय था , जो कि पेशे से एक विद्वान और वैध थे और माता का कामेश्वरी देवी था। छोटी उम्र में उन्हें मौलवी से घर पर शिक्षा प्राप्त की थी और बाद में उनका दाखिला छपरा हाई स्कूल में करवाया गया था। 1902 में उन्होंने स्नातक की पढाई के लिए कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया था। राष्ट्रपति बनने से पहले राजेंद्र प्रसाद ने एक शिक्षक और बेहतरीन वकील के रूप में भी कार्य किया है। इनके पास वकालत में डॉक्ट्रेट की उपाधि भी है जिसकी वजह से इनके नाम के आगे डॉ लगाया जाता है। भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए उन्होंने राजनीती में कदम रखा और 1934 में वह कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने थे। इनके उत्कर्ष्ट कार्यों के लिए 1962 में भारत के सर्वोच्चम सम्मान ‘ भारत रत्न ‘ से सम्मानित किया गया था। 28 फरवरी 1963 में इन्होने देश को अलविदा कह दिया था।

यदि आपको भी देश के पहले राष्ट्रपति के बारे में जानकारी चाहिए , ताकि आपका बच्चा उनके ऊपर एक बेहतरीन निबंध लिख सके और उनके कार्यों के बारे में भी उसे जानकारी हासिल हो तो नीचे दिए गए लॉन्ग एस्से की मदद आप ले सकती हैं। यदि आपका बच्चा 400 से 500 शब्दों में निबंध लिखना चाहता है , तो इस निबंध को जरूर पढ़ें।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन बहुत ही उदार और सामाजिक था। 3 दिसंबर 1884 को बिहार के एक छोटे से जिले सिवान में हुआ था। वह भारत के पहले स्वतंत्र राष्ट्रपति बने थे और इनकी कारण देश की जनता में एक अलग जोश और उत्साह देखने को मिलता था। राजेंद्र प्रसाद को शुरू से शिक्षा में बेहद रूचि रही है और अपने जीवन के शुरूआती दौर में उन्होंने एक शिक्षक के रूप में कार्य भी किया है। बाद में वकालत में डॉक्ट्रेट का उपाधि भी हासिल की। इन सब के बावजूद भी इनका मन देश की स्वतंत्रता की लड़ाई और आंदोलन में लगा रहता था। इन्होने महात्मा गांधी के साथ मिलकर कई आंदोलनों में हिस्सा लिया जिसकी वजह से इन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था। इनके सबसे अहम कार्यों में से एक था गांधी जी के साथ मिलकर सत्याग्रह के प्रस्ताव को प्रस्तुत करना। देश के लिए किए गए इनके योगदानों को आज भी कोई भूल नहीं पाया है। इन्होने अपनी आखिरी सांस 28 फरवरी 1963 में ली थी।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का शुरूआती जीवन और विवाह (Early Life and Marriage of Dr Rajendra Prasad)

डॉ . राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर , 1884 में बिहार के जिले सिवान के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था। एक बड़े संयुक्त परिवार के सबसे छोटे बेटे होने के कारण इनका बचपन बहुत प्यार और दुलार से बीता है। इनके पिता का नाम महादेव सहाय था , जो एक विद्वान और वैध थे। इनकी माता कामेश्वरी देवी गृहिणी थी। वह तीन भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे थे और उनका पारिवारिक एवं आर्थिक जीवन सुखी था। इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव जीरादेई से ही हासिल की और इन्हे बचपन से ही पढाई करने का बहुत शौक था। उस समय बाल विवाह की प्रथा के चलते राजेंद्र प्रसाद का विवाह 12 साल की उम्र में साल 1896 जून में राजवंशी देवी से कराया गया था। जिससे उन्हें एक बेटा है जिसका नाम मृत्युंजय प्रसाद है और वो भी एक राजनीतिज्ञ है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा (Education Of Dr Rajendra Prasad)

डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी शिक्षा में बहुत महत्व दिया था। 5 साल की उम्र से ही इन्होने पढ़ाई शुरू कर दी थी और एक मौल्व से उर्दू और पर्शिया सीख रहे थे। इसके बाद इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला विद्यालय से ही हासिल की थी। उच्च शिक्षा के लिए राजेंद्र प्रसाद ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया था और वहाँ उनको प्रथम स्थान मिला था। वकालत की पढ़ाई के दौरान उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलनों में भी भाग लिया था। अपने एलएलबी और एलएलएम की परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया था। जिसके बाद उन्होंने वकालत में डॉक्ट्रेट की उपाधि पाने के लिए आगे की पढ़ाई की थी। डॉक्ट्रेट की डिग्री पाने के बाद उनके नाम के आगे डॉ राजेंद्र प्रसाद लगाया गया।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का राजनीतिक जीवन (Political Life of Dr Rajendra Prasad)

राजेंद्र प्रसाद शुरू से ही महात्मा गांधी के सिद्धांतों का अच्छे से पालन करते रहे हैं और देश की आजादि में इनका अहम योगदान रहा है। इन्होंने बिहार में असहयोग और नमक सत्याग्रह – जैसे आंदोलनों की शुरुआत की थी साथ ही लोगों को खादी पहनने और चरखे का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। साल 1934 में राजेंद्र प्रसाद को भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। नए भारत के निर्माण में इन्होंने अहम भूमिका निभाई है। 15 अगस्त , 1947 को भारत आजाद हुआ था , लेकिन संविधान सभा का गठन उससे पहले ही कर लिया गया था , जिसके अध्यक्ष डॉ . राजेंद्र प्रसाद खुद थे। 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत ने अपने देश का पहला राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को चुना। साल 1950-1962 तक यानि कि पूरे 12 साल उनका राष्ट्रपति शासन रहा है और इतने लंबे समय तक देश की सेवा करने वाले पहले राष्ट्रपति थे। भारत के संविधान को तैयार करने में इनकी भी भूमिका रही है। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान इन्होंने देश को एकजुट करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए। इनके कार्यों को देखते हुए 1962 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। राजनीति से संन्यास लेने के बाद इन्होंने अपना जीवन पटना के एक आश्रम में बिताया , जहाँ 28 फरवरी , 1963 में इनका निधन हो गया।

भारत के प्रति उनका योगदान और सफलता (His Contribution And Success Towards India)

डॉ . राजेंद्र प्रसाद भारत इ एक चहेते राजनीतिज्ञ थे , जिन्होंने आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। देश के संविधान के निर्माण में इनकी अहम भूमिका रही है। प्रसाद जी ने अंग्रेजों के शासन से लेकर स्वतंत्रता तक देश में होने वाले महत्वपूर्ण बदलाव के के लिए बहुत मेहनत की है और संवैधानिक लोकतंत्र को आकार देने में भी इनका हाथ रहा है। राष्ट्रपति बनने के बाद प्रसाद जी ने साल 1947 में हुए भारत – पाकिस्तान युद्ध और 1962 में चीनी युद्ध सहित कुछ मुष्किल वक्त देश को संभालने और आगे बढ़ाने में मदद की। देश में शिक्षा और सामाजिक सुधार के विकास में इनका अहम योगदान रहा है। राष्ट्रपति बनने से पहले साल 1946 में वह भारत के खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया है। अपने राजनितिक कार्यकाल में उन्हें कई उपलब्धियां हासिल हुई हैं लेकिन इसके साथ ही वह एक प्रसिद्ध विद्वान और लेखक थे।

  • राजेंद्र प्रसाद को नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह कई बार जेल गए थे।
  • डॉ प्रसाद बिहार के कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे , लेकिन बाद में उन्होंने वकालत की पढ़ाई की।
  • राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने सांसदों के लिए नए दिशानिर्देश निर्धारित किए जिनका आज भी पालन किया जाता है।
  • अंतरिम सरकार के दौरान ये पहले खाद्य और कृषि मंत्री बने थे।
  • कोलकाता कॉलेज की परीक्षा में पहला स्थान पाने की वजह से इन्हे हर महीने 30 रुपये की स्कॉलरशिप मिलती थी।
  • साल 1906 में डॉ प्रसाद ने बिहारियों के लिए एक स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी
  • 1914 में बंगाल और बिहार में आई भयंकर बाढ़ के दौरान पीड़ितों की सहायता के लिए यह आगे आए थे।

डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत की सामान्य जनता के प्रतिनिधि थे , उनके कार्य से देश की जनता उनका बेहद सम्मान और उन्हें प्यार करती थी। उनके विचार हमेशा से भारतीय संस्कृति के विकास और बेहतर भारत के निर्माण से जुड़ा रहा है। वह काफी साधारण जीवन जीते थे और जिंदगी भर सिर्फ भारतीय कपड़े ही पहने हैं और अंग्रेजों के कपड़ों को हाथ भी नहीं लगाया है। वह जैसे ऊपर से थे उनका मन अंदर उतना ही साफ था। महात्मा गांधी उनके लिए प्रेरणाश्रोध थे और वह उनके बताए रास्तों का पालन करते थे। प्रसाद जी ने गांधी जी के साथ देश की आजादी के हिट में होने वाले कई आंदोलनों में हिस्सा लिया था। 28 फरवरी 1963 को उनकी मृत्यु हो गई , लेकिन आज भी देशवासी उन पर गर्व करते है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद के इस निबंध से हमेंं क्या सीख मिलती है ? (What Will Your Child Learn From Dr Rajendra Prasad Essay?)

डॉ राजेंद्र प्रसाद एक शांत और बड़े दिल वाले व्यक्ति थे , उन्होंने हमेशा ही भारत के हित में कई बड़े कार्य किए हैं जिसका आभार आज भी देश की जनता करती है। ऐसे प्रसिद्ध सैनानियों के बारें में बच्चों को जानकारी होना जरूरी है ताकि वह जान सकें कि आखिर उनके लीडर्स ने देश की आजादी और राजनीती में क्या योगदान दिया है। यदि आपके बच्चे से कोई भारत के पहले राष्ट्रपति के बारे में पूछेगा तो बच्चा इस निबंध को पढ़कर आसानी से सबके सामने बता सकेगा।

1. राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद प्रसाद किस आश्रम में रहते थें ?

राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद वह बिहार के सदाकत आश्रम में रहते थे , जहाँ उनकी मृत्यु हुई थी।

2. नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद को कितने महीने की जेल हुई थी ?

नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान , कानून व्यवस्था का उल्लंघन करने के लिए उन्हें 6 महीने की जेल हुई थी।

3. डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा लिखी गई पहली पुस्तक का नाम क्या था ?

‘ इंडिया डिवाइडेड ‘ डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा लिखी गई पहली पुस्तक थी।

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डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर निबंध

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रूपरेखा : परिचय - डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक जीवन - उनकी शिक्षा - स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष में भूमिका - राजनीतिक जीवनवृत्ति - निष्कर्ष ।

भारत देश के 'रत्न' और बिहार के 'गौरव' डॉं. राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वे लगभग 10 वर्ष इस पद पर बने रहे। इस काल में देश की अच्छी उन्नति हुई। उनकी सेवाएँ अमूल्य और अनेक हैं।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार में सारण (वर्तमान सीवान) जिले के जीरादेई गाँव में हुआ। उनका पालनपोषण बहुत लाड़ प्यार और देखभाल के साथ हुआ। उनके बड़े भाई श्री महेंद्र प्रसाद ने अपने छोटे भाई राजेंद्र प्रसाद का लालन-पालन किया था और ऊँची शिक्षा पाने में उनकी मदद की थी।

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सारण में पूरी की। उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता (कोलकाता) से स्नातक किया। उन्होंने कानून में मास्टर की डिगरी भी हासिल की। वे एक विलक्षण प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्हें कई तमगे और छात्रवृत्तियों मिली। राजेंद्र बाबू ने पटना के टी. के. घोष एकेडमी में शिक्षा पाकर कलकत्ता विश्वविद्यालय से सन 1900 में प्रथम श्रेणी में इंट्रेन्स परीक्षा पास की। इस परीक्षा में उन्हें सबसे अधिक अंक मिले। इस वजह से सारे देश में उनकी प्रशंसा हुई।

डॉ. प्रसाद ने कुछ समय के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत की। बाद में, वे पटना उच्च न्यायालय से जुड़े। उन्हें अच्छी आमदनी हो रही थी। किंतु. एक दिन डॉ. प्रसाद गाँधीजी से मिले। गाँधीजी के समर्पण और देशभक्ति ने उन्हें काफी प्रभावित किया। उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।

1934 ई. में बिहार में भारी भूकंप आया। इसने जान-माल को भारी नुकसान पहुँचाया। उस समय डॉ, प्रसाद ने स्वयंसेवक के रूप में लोगों की सेवा की। उन्होंने पीड़ितों के लिए भोजन, दवाइयाँ, कपड़े एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं को इकट्ठा किया। धीरे-धीरे वे पूर्ण रूप से समर्पित स्वतंत्रता सेनानी बन गए।

वे गाँधीजी के सिद्धांतों के एक सच्चे अनुयायी थे। उन्होंने बिहार में असहयोग और नमक सत्याग्रह-जैसे आंदोलनों का सूत्रपात किया। उन्होंने लोगों को खादी पहनने और चरखे का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने पटना में सदाकत आश्रम नामक एक महाविद्यालय खोला।

1939 ई. में डॉ. प्रसाद काँग्रेस के अध्यक्ष बने। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने । नए भारत के निर्माण में उन्होंने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1962 ई. में सेवानिवृत्त हुए। उन्हें उनकी सेवाओं के लिए 'भारतरत्न' से सम्मानित किया गया। उन्होंने 'आत्मकथा', 'चंपारण में सत्याग्रह' एवं 'बापू के कदमों में' - जैसी कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं।

राजेंद्र बाबू भारतीय संस्कृति और सामान्य जनता के प्रतिनिधि थे, इसलिए वे सबके प्यारे थे। वे सरल जीवन और ऊँचे विचार के जीते-जागते उदाहरण थे उन्होंने जीवनभर भारतीय पोशाक पहनी, विदेशी वस्त्र कभी नहीं पहना। सादगी और सचाई के वे अवतार थे। उनका अंदर और बाहर का जीवन एकसमान था। वे गाँधीजी के अनुयायियों में प्रथम थे। 28 फरवरी 1963 को डॉ. प्रसाद का देहावसान हो गया। हम सभी को उन पर गर्व है। राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण अद्वितीय है।

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डॉं० राजेंद्र प्रसाद पर निबंध

परिचय- भारत देश के 'रत्न' और बिहार के 'गौरव' डॉं० राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वे लगभग 10 वर्ष इस पद पर बने रहे। इस काल में देश की अच्छी उन्नति हुई। उनकी सेवाएँ अमूल्य और अनेक हैं। डॉं० राजेंद्र प्रसाद का बचपन एवं शिक्षा- राजेंद्र प्रसादजी का जन्म 3 दिसंबर, 1884 ई० को सारण जिले के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था। उनके बड़े भाई श्री महेंद्र प्रसाद ने अपने छोटे भाई राजेंद्र प्रसाद का लालन-पालन किया था और ऊँची शिक्षा पाने में उनकी मदद की थी। राजेंद्र बाबू ने पटना के टी० के० घोष एकेडमी में शिक्षा पाकर कलकत्ता विश्र्वविद्यालय से सन् 1900 में प्रथम श्रेणी में इंट्रेन्स परीक्षा पास की। इस परीक्षा में उन्हें सबसे अधिक अंक मिले। सारे देश में उनकी प्रशंसा हुई। सन् 1906 में उन्होंने एम० ए० की परीक्षा पास की और इसके बाद एम० एल० की परीक्षा भी। राजेंद्र बाबू अपनी सभी परीक्षाओं में सदा सर्वप्रथम होते रहे, यह उनकी शिक्षा और प्रतिभा की बहुमूल्य विशेषता है। सभी उनकी योग्यता और विद्वता पर मुग्ध थे। सारे देश में उनका नाम फैल गया। शिक्षा समाप्त कर लेने के बाद राजेंद्र बाबू ने पहले कलकत्ता में, फिर पटना हाईकोट में वकालत शुरू की। इसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली। वकालत चमक उठी। अच्छी आमदनी होने लगी। सेवाएँ- लेकिन, महापुरुषों का जन्म अपने लिए नहीं हुआ करता। वे तो किसी बड़े काम को पूरा करके ही दम लेते है। सन् 1917 में जब गाँधीजी ने चंपारण में अँगरेजों के खिलाप आवाज उठायी तभी राजेंद्र बाबू की भेंट गाँधीजी से हुई और वे (राजेंद्र बाबू) उनके शिष्य हो गये। उन्होंने चलती वकालत को लात मार दी और देश की सेवा का व्रत लिया। यद्यपि वे बराबर दमे से परेशान रहे तथापि देश के लिए कठिन-से-कठिन परिश्रम से भागते नहीं थे। वे एक सच्चे, धुनी, उत्साही, ईमानदार और परिश्रमी कार्यकर्ता थे। उनका शरीर दुबला-पतला था, किंतु उनकी आत्मा बलवती थी। उन्होंने बिहार के संगठन का बीड़ा उठाया। पटना का 'सदाकत आश्रम' उनकी अथक सेवा का फल है, जिसकी स्थापना कर उन्होंने बिहार में काँग्रेस की जड़ जमायी और हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत किया। सन् 1906 में वे काँग्रेस में आ गये थे। सन् 1911 में वे काँग्रेस प्रतिनिधि हुए और सन् 1912 में अखिल भारतीय काँग्रेस समिति के सदस्य हुए। कई वर्षों तक उन्होंने मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज और कलकत्ता के सिटी कॉलेज तथा लॉ कॉलेज में प्रोफेसर का कार्य किया। सन् 1919 में जब गाँधीजी की देखरेख में रॉलेट ऐक्ट के खिलाप आंदोलन चला, राजेंद्र बाबू ने दिल खोलकर उनका साथ दिया। सन् 1920 के स्वतंत्रा-संग्राम, सन् 1921 के असहयोग-आंदोलन और सन् 1922, 1939, 1940, और 1942 के भिन्न-भिन्न राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेने के कारण वे कई बार जेल गये। कई बार तो उन्हें पुलिस की लाठी भी खानी पड़ी। सन् 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब राजेंद्र बाबू पहले खाद्यमंत्री और फिर भारत के प्रथम राष्ट्रपति हुए। 28 फरवरी, 1963 को भारत का यह साधु नेता सदा के लिए उठ गया। उपसंहार- राजेंद्र बाबू भारतीय संस्कृति और सामान्य जनता के प्रतिनिधि थे, इसलिए वे सबके प्यारे थे। वे सरल जीवन और ऊँचे विचार के जीतेजागते उदाहरण थे उन्होंने जीवनभर भारतीय पोशाक पहनी, विदेशी वस्त्र कभी नहीं पहना।सादगी और सचाई के वे अवतार थे। उनका अंदर और बाहर का जीवन एकसमान था। वे गाँधीजी के अनुयायियों में प्रथम थे।
  • निबंध ( Hindi Essay)

essay on doctor rajendra prasad in hindi

Essay on Dr Rajendra Prasad in Hindi

डॉ राजेंद्र प्रसाद हमारे देश के राज नेताओं में से एक हैं। महान पुरुषों में दिया जाने वाला नाम एक इनका भी है। हमारे देश के कई सारे महान पुरुषों ने कार्य किए हैं देश को आजादी दिलाने के लिए और बहुत सारे राज नेताओं ने अपनी जान की बलिदान भी दिए है। भारत देश की आजादी की लड़ाई बहुत ही कठिन रही है और इस दौरान हर एक महान पुरुषों की सहायता बहुत ही जरूरी हो गई थी। डॉ राजेंद्र प्रसाद हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में आए थे। राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद (Essay on Dr Rajendra Prasad in Hindi) करीब 10 साल तक हमारे देश के इस कार्यभार को संभालते रहे। डॉ राजेंद्र प्रसाद हमारे देश के लिए बहुत ही बड़े भक्त रहे है जिन्होंने अपना जीवन हमारे देश के लिए न्योछावर कर दिया।

Table of Contents

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जीवन:-

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर अट्ठारह सौ चौरासी को हुआ था। इनका जन्म सारण नामक स्थान के जिरादेई गांव में हुआ था। डॉ राजेंद्र प्रसाद जी का बचपन उनके बड़े भाई महेंद्र प्रसाद जी के साथ गुजरा उन्होंने इनका पालन पोषण किया और पढ़ा लिखा कर उन्हें ऊंचे दर तक पहुंचाया। राजेंद्र प्रसाद जी अपनी इमानदारी से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थे, यह एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते थे। राजेंद्र प्रसाद के पिता का नाम महादेव सहाय और उनकी माता का नाम कमलेश्वरी था। इन्होने एक धार्मिक परिवार में जन्म लिया था।

इन्होंने सबसे पहले हमारे देश के राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला। हमारे देश के महान पुरुषों में से एक राजेंद्र प्रसाद जी ने भी हमारी आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया था और गांधीवाद के रास्ते में चलकर इन्होंने देश के लिए अनेक कार्य किए थे।

डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की शिक्षा:-

राजेंद्र प्रसाद जी को अक्सर लोग प्यार से राजेंद्र बाबू बुलाया करते थे इनकी शिक्षा पटना के टीके घोष एकेडमी से शुरू हुई थी। जिसके बाद यह कोलकाता के विश्वविद्यालय में वर्ष उन्नीस सौ में एंट्रेंस एग्जाम में सबसे ज्यादा राजेंद्र प्रसाद जी ने अंक लाकर अपना और अपने माता-पिता का नाम रोशन किया था, इसके बाद सभी देश वालों ने उनकी खूब प्रशंसा की थी। सन 1906 में राजेंद्र बाबू ने M.A. की परीक्षा को अच्छे अंक के साथ उतरीन किया था। M.A. की परीक्षा देने के बाद राजेंद्र प्रसाद जी एम एल की परीक्षा दिये| बचपन से लेकर बड़े तक राजेंद्र प्रसाद अपनी शिक्षा में सबसे आगे रहे। राजेंद्र प्रसाद जी के पास योग्यता बहुत ज्यादा थी और हर क्षेत्र में इनका मुकाबला कोई नहीं कर पाता था। पूरे भारत देश में राजेंद्र प्रसाद (Essay on Dr Rajendra Prasad in Hindi) जी का नाम रोशन हो गया था और इनकी शिक्षा से हर एक व्यक्ति जागरूक था। राजेंद्र प्रसाद जी ने अपनी वकालत की पढ़ाई करने के बाद सबसे पहले कोलकाता के हाईकोर्ट में वकालत किया उसके बाद पटना के हाई कोर्ट में वकील का कार्य आरंभ कर दिया। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि राजेंद्र बाबू हरे क्षेत्र में अपना बहुत ही ऊंचा नाम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा करते थे।

राजेंद्र बाबू को संस्कृति से प्रेम: –

राजेंद्र प्रसाद जी को अपने धर्म और संस्कृति से बहुत ही प्यार रहा था। अपनी देश की संस्कृति को बचाने के लिए इन्होंने बहुत से कार्य किए। देश की हर एक नागरिक को धर्म और संस्कृति को बनाए रखने के लिए जागरूक किया। धर्म और संस्कृति के लिए राजेंद्र बाबू प्रेरणा का स्रोत बने और उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अच्छे कार्य और विचार में व्यतीत कर दिया। शांति में जीवन जीने वाले में से राजेंद्र बाबू का भी नाम आता था। राजेंद्र बाबू अपनी संस्कृति से बहुत ही प्रेम करते थे उनका लगाव हमारे भारत देश से बहुत ज्यादा था देशभक्ति (Essay on Dr Rajendra Prasad in Hindi) के नाम पर इन्होंने अपनी सभी कर्तव्य निभाएं। पूरे जीवन काल में इन्होंने अपना नाम देश में बनाए रखा। आज भी हर व्यक्ति इन्हें याद करते हैं।

भारत देश के प्रति आदर:-

राजेंद्र प्रसाद बाबू ने 1906 में विशाल छात्र संघ एवं बिहार छात्र नामक संघ में अपनी अहम भूमिका निभाई थी यह देश के प्रति एक बहुत ही अच्छा शैक्षिक संघ था। शुरू से ही राजेंद्र प्रसाद बाबू देश के प्रति बहुत ही आदर रखते थे भारतीय होने में उन्हें बहुत ही गर्व था। इसके पश्चात राजेंद्र प्रसाद ने अनेक संस्थाओं में अपना योगदान दिया और अपने अर्थशास्त्र के पढ़ाई में अच्छी डिग्री लाकर अपना नाम देश के लिए और भी ज्यादा गौरवशाली बनाया। 1915 में राजेंद्र प्रसाद जी ने लॉ की पढ़ाई में प्रथम ला कर स्वर्ण पदक पाया और भारत देश को इसका शुक्रियादा दिया। अपने सभी गर्व सील कार्य के लिए राजेंद्र प्रसाद जी भारत देशों में कई बार सम्मानित भी किए गए।

राजनैतिक सफर:-

राजेंद्र प्रसाद बाबू ने अपनी वकालत को स्थिर में रखकर गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए यहीं से इनका राजनीतिक सफर शुरू हो गया। इनके मन में बचपन से ही देश के प्रति देशभक्ति की भावना रही थी इसलिए इन्होंने देश के लिए किए जाने वाले हर एक कार्य में हिस्सा लेने से कदम पीछे नहीं हटाया। सबसे पहले राजेंद्र प्रसाद बाबू जी गोपाल कृष्ण गोखले से प्रभावित थे। गोखले सदैव देश के प्रति सभी कार्य करते थे बल्कि यह राजनीति (Essay on Dr Rajendra Prasad in Hindi) का हिस्सा नहीं रहे थे परंतु फिर भी इन्होंने समाज सेवा करने के लिए अपना जीवन निहीत कर दिया था। गोपाल कृष्ण गोखले के पश्चात इनका ध्यानाकर्षण गांधीजी पर गया था। महात्मा गांधी की देशभक्ति देखकर भी इनके अंदर देश प्रेम की भावना जागी थी। जिसके बाद उन्होंने सभी आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और इनके पूरे जीवन काल में जितना हो सके उन्होंने सभी देश हित कार्यों में हिस्सा लिया।

15 अगस्त 1947 में हमारा भारत देश आजाद हुआ था जिसके बाद से हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जी को बनाया था और हमारा प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया। आजादी के बाद से राजेंद्र प्रसाद जी राष्ट्रपति का कार्यभार देश के लिए बहुत ही अच्छे से उठाया। 10 साल तक राजनीतिक कार्य में इन्होंने अपनी अहम भूमिका निभाई। उनका जीवनकाल बहुत ही शांति मय रहा है इन्होंने अपने जीवन में केवल देश का नाम रोशन करने का कार्य किया है।

1.प्रश्न:- राजेंद्र प्रशाद जी का जन्म कब हुआ था?

उत्तर:-  डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को हुआ था।

2.प्रश्न:- इनके माता पिता का नाम क्या था ?

उत्तर:-    राजेंद्र प्रसाद के पिता का नाम महादेव सहाय और उनकी माता का नाम कमलेश्वरी था।

3.प्रश्न:- डॉक्टर राजेंद्र प्रशाद को किस रूप में याद किया जाता है?

उत्तर:- डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में याद किया जाता है।

4.प्रश्न:- राजेंद्र बाबू ने राष्ट्रपति का कार्यभार कब तक सम्हाला?

उत्तर:- 10 साल तक इन्होंने भारत के राष्ट्रपति का कार्यभार सम्हाला।

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डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय

Dr Rajendra Prasad Biography in Hindi: डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का नाम भारत का बच्चा-बच्चा जानता है क्योंकि यह भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारत के युवा स्वतंत्रता संग्रामी थे। वे बढ़ चढ़कर भारतीय आजादी आंदोलन में हिस्सा लिया करते थे।

Dr Rajendra Prasad Biography in Hindi

भारत 1950 में एक गणतंत्र देश के रूप में दुनिया के समक्ष आया। उस वक्त भारतीय संविधान को बनाने वाले कुछ दिग्गजों में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का नाम भी शामिल था। उन्हें सबसे पहले भारत का खाद और कृषि विभाग सौंपा गया था, जिसमें अतुलनीय काम करने के बाद वह भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में सबके समक्ष आए।

इस डॉ राजेंद्र प्रसाद की जीवनी में हम डॉ राजेंद्र प्रसाद के परिवार, डॉ राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा, उनको प्राप्त सम्मान, उनके द्वारा किये गये कार्य आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय (Dr Rajendra Prasad Biography in Hindi)

डॉ राजेंद्र प्रसाद कौन थे.

3 दिसंबर 1884 को बिहार की राजधानी पटना के समीप एक छोटे से गांव जीरादेई में भारत के महान स्वतंत्रता सैनानी और प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम महादेव सहाय था, जो एक किसान थे और इनकी माता का नाम कमलेश्वरी देवी था।

इनके पिता संस्कृत और फारसी भाषा के अपने जमाने के बहुत बड़े ज्ञानी हुआ करते थे। इन्हें अपने पिता से विभिन्न भाषाओं का ज्ञान हुआ और अपनी माता से धर्म ग्रंथ के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। उस जमाने में बाल विवाह एक साधारण बात होती थी, जिस वजह से 12 साल की कम उम्र में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से कर दिया गया।

राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा

उनका बचपन का खेल कूद बहुत जल्द खत्म हो गया और 5 साल की उम्र में उन्हें शिक्षा देने के लिए उनके पिता ने गांव के एक मौलवी के पास राजेंद्र प्रसाद को भेजना शुरू किया। राजेंद्र ने अपने गांव के मौलवी से फारसी और उर्दू भाषा का ज्ञान हासिल किया।

राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा उसी जीरादेई गांव में हुई। बचपन से ही राजेंद्र प्रसाद का झुकाव पढ़ाई के तरफ बहुत था। वह पढ़ना लिखना बहुत पसंद करते थे, जिस वजह से उन्हें पटना के टीके एकेडमी में स्नातक की पढ़ाई करने का मौका मिला। जिसके बाद कोलकाता विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रवेश लिया और अच्छे अंक से अपनी स्नातक और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।

राजेंद्र प्रसाद की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए ₹30 प्रति माह का स्कॉलरशिप मिलना शुरू हुआ। उस जमाने में आपने गांव से विश्वविद्यालय में दाखिला पाने में सफलता प्राप्त करने वाले वह पहले व्यक्ति थे।

1907 में इकोनॉमिक्स से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1915 में कानून में मास्टर डिग्री हासिल की, जिसके लिए उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। उसके बाद वह पटना आकर वकालत का काम करने लगे, जिसमें उन्होंने पूरे पटना में बहुत धन और नाम हासिल किया।

किसी भी केस की सुनवाई के लिए डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का नाम सबसे पहले लिया जाता था। इस महान हस्ती की वकालत की कला की कहानी गांधीजी तक पहुंच गई थी और उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देश के आजादी के लिए आंदोलन में हिस्सा लेने का आमंत्रण दिया।

डॉ राजेंद्र प्रसाद के बहुत सारे पढ़ाई के किस्से आज भी अलग-अलग जगहों पर सुनाए जाते हैं। उनमें से एक प्रचलित किस्सा है कि किसी परीक्षा में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को पांच प्रश्नों के सही उत्तर लिखने को कहा गया था और 10 प्रश्न पूछे गए थे।

उन्होंने दसों प्रश्न का सही उत्तर लिखा और परीक्षा पत्र के अंत में लिख दिया कि कोई भी पांच चुनकर चेक कर लें। इसके बाद उन्होंने सबको पूरा संविधान याद करके भी दिखाया। डॉ राजेंद्र प्रसाद को पूरा संविधान मुंह जबानी याद था।

महात्मा गांधी का जीवन परिचय और उनके बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ  क्लिक करें।

राजनीति और आंदोलन में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का पहला कदम

डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने जमाने के बहुत नामी और प्रचलित वकील हुआ करते थे। ना केवल भारतीय बल्कि अंग्रेज भी इसी समस्या पर उनकी राय लेने आते थे। 1917 में गांधीजी बिहार आए और यहां पर नील मजदूर को बहुत परेशान किया जा रहा था।

वह जितना फसल उगाते थे, उसकी सही कीमत नहीं दी जाती थी और जबरदस्ती उनसे नील की ही फसल उगाई जाती थी। इस तरह बिहार में किसान और मजदूरों की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही थी। इस समस्या का निराकरण करने के लिए गांधीजी चंपारण पहुंचे और सबसे पहले राजेंद्र प्रसाद से मिलकर इस समस्या के बारे में विचार विमर्श किया।

राजेंद्र प्रसाद जब पहली बार गांधी जी से मिले तो उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए और उनकी मदद करने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ इस आंदोलन में खड़े हुए। परिणाम स्वरूप अपनी वकालत के दम पर राजेंद्र प्रसाद ने गांधी जी समेत अन्य मजदूरों को उनका हक दिलवाने में कामयाब रहे।

इसके कुछ साल बाद जब 1919 में सविनय अवज्ञा आंदोलन की लहर पूरे भारत में दौड़ी तो गांधी जी ने सभी लोगों को स्कूल, कॉलेज और अंग्रेजों के द्वारा दी गई प्रत्येक चीज का बहिष्कार करने को कहा। जिसमें डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अपनी नौकरी छोड़ दी और एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बिहार से आजादी की लड़ाई का आगाज किया।

बिहार में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने बढ़-चढ़कर विभिन्न आंदोलन में हिस्सा लिया और अंग्रेजों को यहां से भगाया। 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया और कई महीनों तक नजरबंद करके रखा गया। जिसके बाद 15 अगस्त 1947 को अंत तक हमारा देश आजाद हुआ।

इसके बाद भी हमारे देश में किस प्रकार संविधान होगा और किस तरह का नियम कानून बनेगा इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी। जिस वजह से लॉर्ड माउंटबेटन ने देश को कुछ सालों तक चलाने की जिम्मेदारी ली और भारतीय लोगों को संविधान और कानून बनाने का मौका दिया।

इस संविधान बनाने वाले महान दिग्गजों में एक नाम डॉ राजेंद्र प्रसाद भी था। इस दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में लॉर्ड माउंटबेटन की मदद करते थे और संविधान बनाने का कार्य भी करते थे।

अंततः 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू किया गया और भारत का एक गणतंत्र देश के रूप में घोषणा किया गया। इस समय इलेक्शन में 26 जनवरी 1950 को डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में कार्यरत किया गया।

इसके बाद देश सही तरीके से चलने लगा और दुबारा इलेक्शन हुआ तो 1957 में डॉ राजेंद्र प्रसाद दोबारा भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुनाव जीत गए और 1962 तक इस सर्वोच्च पद पर विराजमान रहकर भारत की बागडोर को संभाला।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का कार्य और सम्मान

डॉ राजेंद्र प्रसाद एक विद्वान, दार्शनिक और अपने जमाने के सबसे नामी वकील में से एक थे। उन्होंने वकालत में गोल्ड मेडल हासिल किया था और भारत के प्रथम और दूसरे राष्ट्रपति भी बने। आज़ादी के समय भारत एक गरीब एक देश था, जिसे संभालना काफी मुश्किल था।

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जैसे विद्वान ने इस देश की बागडोर इतनी मजबूती से संभाला कि आज हमारा देश विश्व के सम्मानित देशों में से एक बना। डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने कार्य आजादी आंदोलन और ज्ञान की वजह से हमेशा हमें याद रहेंगे।

1962 में डॉ राजेंद्र प्रसाद को सामाजिक और राजनैतिक योगदान की वजह से सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। अंत में 28 फरवरी 1963 को डॉ राजेंद्र प्रसाद का निधन हो गया। वह एक गंभीर और प्रभावशाली राष्ट्रपति और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रत्येक भारतीयों को सदैव याद रहेंगे।

राजेंद्र प्रसाद का जन्म पटना के समीप जीरादेई नाम के गांव में 3 अक्टूबर 1884 को हुआ था।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति अपने जमाने के सबसे प्रचलित वकील कानून में गोल्ड मेडलिस्ट, पूरा संविधान मुंह जबानी याद रखने वाले और एक महान विद्वान जिनके राजनैतिक और सामाजिक नेतृत्व में भारत ने कई आंदोलन में विजय प्राप्त की और उनके इस राजनीतिक और सामाजिक योगदान को सम्मान देने के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया।

डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में 26 जनवरी 1950 को विराजमान हुए। मगर इसके बाद 1957 को दूसरी बार भारत के राष्ट्रपति के रूप में जाना जाता है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता सेनानी बनने से पहले पटना के सबसे नामी वकीलों में से एक हुआ करते थे, जो 1917 में चंपारण आंदोलन में गांधीजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भारतीय आजादी आंदोलन में हिस्सा लिया।

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का पूरा नाम डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ही है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति होने के अलावा भारत के पहले मंत्रिमंडल में 1946 एवं 1947 मेें कृषि और खाद्यमंत्री का दायित्व निभाया था।

डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत रत्न 1972 में मिला।

डॉ राजेंद्र प्रसाद के पिता संस्कृत और फारसी भाषा के अपने जमाने के बहुत बड़े ज्ञानी हुआ करते थे।

डॉ राजेंद्र प्रसाद अगस्त 1961 में एक बड़ी बीमारी से ठीक हो गये थे। राष्ट्रपति का कार्यक्रम पूर्ण करने के बाद वे पटना आ गये और उनको उस समय पेंशन के रूप में 1100 रुपये मिलते थे। 28 फरवरी 1963 को सदाक़त आश्रम (पटना) में उनका निधन हो गया।

डॉ राजेंद्र प्रसाद 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक राष्ट्रपति पद रहे।

ऊपर बताई गई सभी जानकारियों को पढ़ने के बाद आप डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के राजनीतिक और सामाजिक योगदान को समझ पाए होंगे। किस प्रकार उन्होंने भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए अपना जीवन देश को समर्पित किया और एक राजनेता के रूप में उन्होंने भारत की बागडोर बहुत विषम परिस्थिति में संभाली।

परिणाम स्वरूप आज हमारा देश विश्व के कुछ सम्मानित देशों में से एक बन पाया। डॉ राजेंद्र प्रसाद अपनी वकालत और आंदोलन की वजह से भी हमें हमेशा याद रहेंगे।

हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय हिंदी में (Dr Rajendra Prasad Biography in Hindi) पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर करें। यदि आपका इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध हिंदी में | Dr Rajendra Prasad Essay in Hindi

दोस्तों, आज के इस हिंदी निबंध (Hindi Essay) के आर्टिकल में हम भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद पर हिंदी में निबंध पढ़ेंगे।

इस आर्टिकल में हम डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के बारे में पूरी जानकारी जानेंगे जैसे की उनका जन्म कहा हुआ था, उन्होंने अपनी पढाई कहा की और किस प्रकार उन्हें भारत का प्रथम राष्ट्रपति बनने का ग़ौरव प्राप्त हुआ।

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अब हम आज का यह आर्टिकल Dr Rajendra Prasad in Hindi Essay को शुरू करते हैं।

आप इस निबंध को पूरा पढ़िए और आपको यह निबंध कैसा लगा नीचे कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमें जरूर बताये।

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध – Dr Rajendra Prasad Par Nibandh in Hindi

essay on doctor rajendra prasad in hindi

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का विराट व्यक्तित्व हिमालय-सा ऊँचा तथा ह्रदय सागर-सा गंभीर था।

वे एक ही साथ ही योगी, चिंतक, समाजसेवी तथा सच्चे देशभक्त थे। वे सरलता, निष्कपटता तथा सज्जनता की प्रतिमूर्ति थे।

राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च महिमा-मंडित पद को सुशोभित करते हुए भी वे राष्ट्रपति-भवन की विलासिता से सदा दूर रहे। वे भारतीयता के सच्चे प्रतीक थे।

मानवता के सम्पूर्ण गुणों से विभूषित ऐसा जनप्रिय नेता किसके न गले का कंठहार होगा ? इनका जन्म 1884 ई. में बिहार राज्य के वर्तमान सिवान जिले के जीरादेई ग्राम में हुआ था।

इनकी प्रारंभिक उर्दू के माध्यम से पारंभ हुई थी। कलकत्ते में उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। ये प्रखर बुद्धि के थे।

हाई स्कूल से एम.ए. तक की सभी परीक्षाएँ में उन्होंने प्रथम श्रेणी में पास की थी। एल-एल. बी. और एल-एल एम. परीक्षाओं में भी वे सर्वप्रथम ही रहे।

अध्ययन के पस्चात उन्होंने वकालत प्रारम्भ की और अपनी अनवरत साधना, कुशाग्र बुद्धि, कर्मठता और लगन के बल पर इनकी गणना उच्च कोटि के वकीलों में की जाने लगी।

देश की परतरंता को देखकर इनका मन चीत्कार कर उठा। देश की पुकार पर उन्होंने अपनी चलती वकालत को तिलांजलि दे दी और गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए।

बिहार के चम्पारण किसान आंदोलन में उन्होंने बड़ी निष्ठा से कार्य किया। मुंगेर के भूकंप पीड़ित लोगों की सेवा भी उन्होंने काफी लगन तथा धैर्य के साथ की।

धीरे-धीरे देश के बड़े-बड़े नेताओं में इनकी गिनती होने लगी। स्वतंत्रता-सेनानी के रूप में कई बार इन्हें जेल की कठोर यातनाएँ भी सहनी पड़ी।

गाँधी जी के ही आदर्शो पर वे हमेशा चलते रहे। ये अनेक बार अखिल भारतीय कांग्रेस के सभापति भी रहे। 26 जनवरी, 1950 ई. से भारत एक गणतंत्र राज्य घोषित किया गया।

तथा राजेंद्र बाबू गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। दूसरी बार पुनः ये भारत के राष्ट्रपति चुने गए।

इनके ह्रदय में देश-प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। इसका पता हमें इनके इस कथन से चलता है – “ अहिंसा हो या हिंसा, चीनी आक्रमण का सामना हमें करना हैं। ”

अंतिम दिनों में वे पटना स्थित सदाकत आश्रम में रहे। 28 फरवरी, 1963 ई. को वे इस धराधाम को सदा के लिए छोड़ कर चले गए।

अब वे हमारे बीच नहीं हैं। किन्तु उनका आदर्श जीवन, सादगी, त्याग, सेवा-भावना और कर्त्तव्यनिष्ठा सदा हमारे लिए पथप्रदर्शक तथा अनुकरणीय रहेंगे।

Final Thoughts –

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डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर निबंध- Essay on Dr Rajendra Prasad in Hindi

In this article, we are providing information about Dr Rajendra Prasad in Hindi- Short Essay on Dr Rajendra Prasad in Hindi Language. डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर निबंध

डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर निबंध- Essay on Dr Rajendra Prasad in Hindi

भूमिका- डा.राजेंद्र प्रसाद एक महान पुरूष थे और भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। इन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने भारत के सविधान को लागु करने में भी योगदान दिया था। राजेंद्र प्रसाद को राजेंद्र बाबू और देशरत्न के नाम से भी जाना जाता है।

जन्म- राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के जीरादोई नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय था जो कि फारसी और संस्कृत के विद्वान थे। उनकी माता का नाम कमलेश्वरी देवी था जो कि एक धार्मिक महिला थी।

शिक्षा- राजेंद्र प्रसाद ने पाँच साल की उमर में फारसी का अध्ययन शुरू किया था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला स्कूल से हुई थी। 13 वर्ष की उमर में शादी होने के बावजुद भी उन्होंने पटना के टी.के. घोष से पढ़ाई जारी रखी। 18 साल की उमर में उन्होंने प्रथम श्रेणी से कोलकता विश्वविद्यालय की परीक्षा उतीर्ण की थी। 1902 में उन्होंने कोलकता के प्रेजीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। इन्होंने अपनी बी.ए. हिंदी में की थी। उन्होंने विधि परास्नातक की उपाधि 1915 में स्वर्ण पद के साथ की थी और आगे लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी।

गतिविधियाँ- राजेंद्र बाबू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में वकील बनते ही भाग लेना शुरू कर दिया था। यह गाँधी जी के विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए थे और 1912 में उन्होंने कोलकता विश्वविद्यालय के सीनेटर पद से त्याग दे दिया था। वह देश सेवा और देश जैसी पत्रिकाओं के लिए धन जुटाते थे और लोगों की सहायता करते थे। 1934 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1939. में दोबारा अध्यक्ष बने। वह भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने और 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक कार्यरत रहे।

रचनाएँ- राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा के साथ साथ अन्य बहुत सी पुस्तकें लिखी थी जिनमें गाँधी जी की देन, सत्याग्रह एट चम्पारण इत्यादि।

भारत रत्न- 1962 में इनके राजनीति से अवकाश के बाद भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

निधन- राजेंद्र प्रसाद का निधन 28 फरवरी, 1963 को पटना के निकट सदाकत आश्रम में हुआ था।

निष्कर्ष- राजेंद्र प्रसाद बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति थे लेकिन उनकि वेशभूषा बहुत ही साधारण थी जिनसे उनके गुणों का पता नहीं लगाया जा सकता था। उन्हें हिंदी से भी बहुत प्यार था। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पण कर दिया था और हम सबको उन पर बहुत गर्व है।

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डॉ० राजेंद्र प्रसाद पर निबंध – Dr. Rajendra Prasad Essay In Hindi

नमस्कार प्यारे दोस्तों, स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट में। आज के इस पोस्ट में हम भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद के बारे में जानेंगे। राजेंद्र प्रसाद एक भारतीय राजनेता, वकील और पत्रकार थे, जो भारत गणराज्य (1950-62) के पहले राष्ट्रपति थे।

इसीलिए आज के अपने लेख में हम आपके लिए डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारे में एक अच्छा और सरल लेख लेकर आए हैं। हम आशा करते हैं कि इस निबंध को पढ़ने के बाद आप निश्चित रूप से राजेंद्र प्रसाद को जानने में सक्षम होंगे।

इस पोस्ट में आपको डॉ राजेंद्र प्रसाद पर कई  निबन्ध  दिए गए है जैसे  डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध 100 शब्दों में, Essay On Dr Rajendra Prasad In Hindi 300 words, Rajendra Prasad par nibandh 500 शब्दों में तथा डॉ राजेंद्र प्रसाद से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर  इत्यादि।

भारत के “रत्न” और बिहार के “गौरव” डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वह करीब 10 साल तक इस पद पर रहे। इस काल में देश की अच्छी उन्नति हुई। उनकी सेवाएँ अमूल्य और अनेक हैं।

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध 100 शब्दों में

राजेंद्र प्रसाद (1884-1963) एक भारतीय वकील, राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1950 से 1962 तक भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक प्रमुख व्यक्ति थे। पक्ष महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी थे और उनके आंतरिक चक्र का हिस्सा थे।

वह एक सम्मानित नेता थे और भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। वह भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न के प्राप्तकर्ता थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने भारत के राष्ट्रपति की भूमिका निभाई और भारत के संविधान को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे लोकतंत्र के समर्थक और सामाजिक समानता के समर्थक थे। वह अहिंसा के समर्थक थे और उनके भाषणों और लेखों ने बहुतों को प्रेरित किया। वह एक योग्य शासक था और सभी का सम्मान करता था।

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध 300 शब्दों में

राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। उनका जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के जीरादेई में महादेव सहाय और कमलेश्वरी देवी के घर हुआ था। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने बिहार और ओडिशा के उच्च न्यायालय में कानून का अभ्यास शुरू किया। राजेंद्र प्रसाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदार थे और महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी थे।

वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण नेता थे और 1934 और 1939 में इसके अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। वह संविधान सभा के एक महत्वपूर्ण सदस्य थे जिसने भारत के संविधान को तैयार किया था।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राजेंद्र प्रसाद का प्रमुख योगदान था। वह असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा थे और इन आंदोलनों में भाग लेने के लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।

वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण वार्ताकार थे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता से पहले 1946 में अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में भी कार्य किया।

भारत की स्वतंत्रता के बाद, वह भारत के पहले राष्ट्रपति बने और 1962 तक कार्यालय में रहे। वे लोकतंत्र के प्रबल समर्थक थे और भारत में लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने लोगों के कल्याण के लिए भी काम किया और गरीबों और जरूरतमंदों के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की। भारत के स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान के लिए उन्हें 1962 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 28 फरवरी 1963 को राजेंद्र प्रसाद का निधन हो गया और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों में से एक के रूप में याद किया जाता है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर लम्बा निबंध – Long Essay On Rajendra Prasad In Hindi

राजेंद्र बाबू भारतीय संस्कृति और जनता के प्रतिनिधि हैं और सभी के प्रिय हैं। वे सादा जीवन और नेक सोच की जीती-जागती मिसाल हैं। उन्होंने जीवन भर भारतीय पोशाक पहनी, कभी विदेशी पोशाक नहीं, सादगी और प्रामाणिकता का प्रतीक। उसका आंतरिक जीवन बाहरी जैसा ही है। वे गांधी के प्रथम अनुयायी थे।

राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सीवान) के जीरादेई नामक गाँव में महादेव सहाय और कमलेश्वरी देवी के घर हुआ था।

डॉं० राजेंद्र प्रसाद का बचपन एवं शिक्षा :-

राजेंद्र प्रसादजी का जन्म 3 दिसंबर,1884 ई० को सारण जिले के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था। उनके बड़े भाई श्री महेंद्र प्रसाद ने अपने छोटे भाई राजेंद्र प्रसाद का लालन-पालन किया था और ऊँची शिक्षा पाने में उनकी मदद की थी। राजेंद्र बाबू ने पटना के टी० के० घोष एकेडमी में शिक्षा पाकर कलकत्ता विश्र्वविद्यालय से सन् 1900 में प्रथम श्रेणी में इंट्रेन्स परीक्षा पास की। इस परीक्षा में उन्हें सबसे अधिक अंक मिले। सारे देश में उनकी प्रशंसा हुई।

सन् 1906में उन्होंने एम० ए० की परीक्षा पास की और इसके बाद एम० एल० की परीक्षा भी। राजेंद्र बाबू अपनी सभी परीक्षाओं में सदा सर्वप्रथम होते रहे, यह उनकी शिक्षा और प्रतिभा की बहुमूल्य विशेषता है।

सभी उनकी योग्यता और विद्वता पर मुग्ध थे। सारे देश में उनका नाम फैल गया। शिक्षा समाप्त कर लेने के बाद राजेंद्र बाबू ने पहले कलकत्ता में, फिर पटना हाईकोट में वकालत शुरू की। इसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली। वकालत चमक उठी। अच्छी आमदनी होने लगी।

क़ानून में मास्टर डिग्री :-

1915 में, राजेंद्र प्रसाद ने अपने एलएलएम के लिए स्वर्ण पदक प्राप्त किया। उसके बाद उन्होंने ज्यूरिस डॉक्टर की डिग्री के लिए भी अध्ययन किया। वह अब डॉ. राजेंद्र प्रसाद हैं। इन वर्षों के दौरान, राजेंद्र प्रसाद कई प्रतिष्ठित वकीलों, विद्वानों और लेखकों से मिले। राजेंद्र प्रसाद भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। राजेंद्र प्रसाद के मन में राष्ट्रवाद ने जड़ें जमा लीं।

महान व्यक्ति अपने लिए नहीं बने हैं। 1917 में जब गांधीजी अंग्रेजों के खिलाफ चंपारण में जोर-शोर से बोल रहे थे, तब राजेंद्र बाबू गांधीजी से मिले और वे (राजेंद्र बाबू) गांधीजी के शिष्य बन गए। हालांकि उन्हें कई बार अस्थमा की बीमारी हो गई, लेकिन उन्होंने अपने देश के लिए कड़ी मेहनत करने में संकोच नहीं किया।

वह एक सच्चे, जोशीले, भावुक, ईमानदार और कड़ी मेहनत करने वाले व्यक्ति हैं। उसका शरीर पतला है, लेकिन उनकी आत्मा मजबूत है। उन्होंने बिहार में संगठित प्रयासों का नेतृत्व किया। पटना का ‘सदाकत आश्रम’ बिहार में कांग्रेस की जड़ें जमाने और हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत करने में उनकी अथक सेवा का परिणाम है। 1906 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए।

1911 में वे राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि बने और 1912 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी कमेटी के सदस्य बने। इन वर्षों में, वह लंगट सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर और सिटी कॉलेज, कलकत्ता और लॉ कॉलेज में प्रोफेसर रहे हैं।

1919 में रॉलेट एक्ट के खिलाफ अभियान गांधीजी की देखरेख में शुरू हुआ, जिसका राजेंद्र बाबू ने पूरे दिल से समर्थन किया। 1920 में स्वतंत्रता संग्राम, 1921 में असहयोग आंदोलन और 1922, 1939, 1940 और 1942 में विभिन्न राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेने के लिए उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।

कई बार उन्हें पुलिस की बर्बरता का भी सामना करना पड़ा। 1947 में भारत की आजादी के बाद, राजेंद्र बाबू पहले खाद्य मंत्री और भारत के पहले राष्ट्रपति बने। 28 फरवरी, 1963 को, पवित्र भारतीय नायक सदा के लिए पुनर्जीवित हो गया।

भूकम्प और राहत कार्य :-

जनवरी 1934 में, बिहार में एक शक्तिशाली भूकंप आया। जान-माल का नुकसान बहुत बड़ा था। राजेंद्र प्रसाद अपनी बीमारी के बाद भी राहत कार्य में जुटे हुए हैं। वे अपने घरों को खोने वालों के लिए भोजन, कपड़े और दवाइयाँ एकत्र करते थे। भूकंप के बाद बिहार में बाढ़ और मलेरिया आया। ऐसे में जनता की परेशानी बढ़ गई है। गांधी जी ने इस भूकंप और बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में राजेंद्र प्रसाद के काम का समर्थन किया।

स्वाधीनता संग्राम में उनका योगदान :-

राजेंद्र प्रसाद ने अन्य नेताओं के साथ राष्ट्र निर्माण का कठिन कार्य किया। उस समय उनके हृदय में राष्ट्रवाद की जो ज्वाला धधक रही थी, उसे कोई नहीं बुझा सका। राजेंद्र प्रसाद गांधी के कट्टर अनुयायी।

उन्होंने खुद को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। उन्हें और पूरे भारत को गांधी के रूप में एक नया आंदोलन नेता और नागरिक प्रतिरोध और असहयोग के रूप में नए हथियार मिले। हालांकि राजेंद्र प्रसाद का अखंड भारत का सपना बंटवारे से चकनाचूर हो गया, लेकिन भारत ने खून, पसीना और दर्द के बाद 15 अगस्त, 1947 को आजादी हासिल की।

पुरस्कार और अन्य तथ्य :-

  • 1922 में चंपारण में सत्याग्रह
  • भारत का विभाजन 1946
  • आत्मकथा बांकीपुर जेल में तीन साल की जेल अवधि के दौरान लिखी गई डॉ राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा थी
  • 1949 में महात्मा गांधी और बिहार, कुछ यादें
  • 1954 में बापू के कदमों में
  • 1960 में आजादी के बाद से
  • भारतीय शिक्षा
  • महात्मा गांधी के चरणों में प्रसाद

10 Lines On Rajendra Prasad In Hindi

  • राजेंद्र प्रसाद एक भारतीय राजनीतिक नेता, वकील और भारत गणराज्य के पहले राष्ट्रपति थे।
  • वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी थे, 1911 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और पार्टी के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
  • प्रसाद अहिंसा में दृढ़ विश्वास रखने वाले, किसानों के अधिकारों के हिमायती और जमींदारी प्रथा के मुखर आलोचक हैं।
  • वह संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए, जिसने भारत का संविधान तैयार किया, और 11 दिसंबर, 1946 से 26 जनवरी, 1950 तक संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
  • 29 अगस्त, 1947 से 28 नवंबर, 1949 तक, उन्होंने संविधान सभा के प्रारूप आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
  • 1962 में, उन्हें भारत रत्न, भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिला।
  • उन्होंने 1939 से 1948 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में भी कार्य किया।
  • वह एक विपुल लेखक थे और उन्होंने भारतीय दर्शन, धर्म और साहित्य सहित विभिन्न विषयों पर कई पुस्तकें प्रकाशित कीं।
  • उनकी सादगी, बुद्धि और हास्य की भावना के लिए उनका बहुत सम्मान किया जाता था।
  • वह एक कुशल गायक और वादक होने के नाते संगीत के प्रति अपने प्रेम के लिए भी जाने जाते हैं।

उम्मीद करता हूं दोस्तों की “डॉ राजेंद्र प्रसाद ( Dr Rajendra Prasad Essay In Hindi )” से सम्बंधित हमारी यह पोस्ट आपको काफी पसंद आई होगी। इस पोस्ट में हमनें डॉ राजेंद्र प्रसाद से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियां देने का प्रयास किया है। आशा है आपको पूर्ण जानकारी मिल पाई होगी।

अगर आप यह पोस्ट आपको अच्छा लगा तो आप अपने दोस्तों के साथ इसे शेयर कर सकते हैं। अगर आपके मन मे कोई सवाल है तो आप हमें कमेंट के माध्यम से बता सकते हैं हम आपसे जल्द ही संपर्क करेंगे। अपना कीमती समय देने के लिए आपका बहुत – बहुत धन्यवाद।

FAQ About Rajendra Prasad In Hindi

Q. डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत रत्न कब मिला.

Ans: 1950 में संविधान सभा की आखिरी बैठक में वे राष्‍ट्रपति चुने गए और 26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962 तक देश के पहले राष्‍ट्रपति रहे। राष्ट्रपति बनने के बाद राजेंद्र प्रसाद ने कई सारे सामाजिक कार्य किए। 1962 में राष्ट्रपति पद से हट जाने के बाद उन्हें भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।

Q. राजेंद्र प्रसाद का उपनाम क्या था?

Ans: डॉ राजेन्द्र प्रसाद का उपनाम अजातशत्रु था। उन्होने देश रत्न के उपनाम से भी पुकारा जाता था।

Q. डॉ राजेन्द्र प्रसाद कितनी बार राष्ट्रपति बने?

Ans: डॉ राजेन्द्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति बने।

Q. राजेंद्र प्रसाद जी का निधन कब और कैसे हुआ?

Ans: 1962 में, राजेंद्र प्रसाद को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” मिला। लगभग छह महीने तक चलने वाली एक संक्षिप्त बीमारी के बाद, 28 फरवरी, 1963 को डॉ प्रसाद का निधन हो गया। मगर अगस्त 1961 को भयंकर बीमारी के बाद वे ठीक हो गए. राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने के बाद वे पटना आए थे. उस समय उनको मात्र 1100 रुपये पेंशन मिलती थी. पटना के सदाक़त आश्रम में सेवानिवृत्त होने के बाद अपना जीवन गुज़ारा और 28 फरवरी, 1963 को यहीं उनकी मृत्यु भी हुई।

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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर निबन्ध | Rajendra Prasad Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Rajendra Prasad in Hindi

By: savita mittal

राजेन्द्र प्रसाद का जीवन परिचय | Rajendra Prasad Essay in Hindi

स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी, प्रथम राष्ट्रपति के रूप में राजेन्द्र प्रसाद, साहित्यिक अभिरुचि, डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर निबंध | dr rajendra prasad par nibandh in hindi | essay on dr rajendra prasad video.

15 अगस्त, 1947 को भारत अब स्वतन्त्र हुआ तो गांधीजी ने भारतीय प्रजातन्त्र की विशेषता बताते पाकका एक किसान भी भारत का राष्ट्रपति बन सकता है। गांधीजी की यह बात शीघ्र ही सही सिद्ध ह जब 26 जनवरी, 1950 को ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की प्रतिमूर्ति एवं बिहार के किसानों का नेतृत्व करने वाले एक महान व्यक्ति को देश का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया। वह महान व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि बिहार के शील डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पेि, जिन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में गाँधीजी का साथ देने के लिए अपनी चलती हुई वकालत की। तिलांजलि दे दी।

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राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार प्रान्त के सीवान जिले में जीरादेई नामक गाँव में 3 दिसम्बर, 1884 को हुआ था। उनके पिता श्री महादेव सहाय एक विद्वान् व्यक्ति थे एवं माता श्रीमती कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। उ प्रारम्भिक शिक्षा गाँव से ही हुई। राजेन्द्र बाबू अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के छात्र थे। उन्होंने पाँच वर्ष की आयु में एक मौलवी साहब से फारसी पढ़ना शुरू किया. उसके बाद वे छपरा के जिला स्कूल में पढ़ने गए। जिला स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद में पटना स्थित टीके पोप अकादमी में पड़ने के लिए गए। इसी दौरान 18 वर्ष की विवाह हो गया। में राजवंशी देवी के साथ उनका

वर्ष 1902 में 18 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद राजेन्द्र प्रसाद ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला से लिया। इसके बाद कानून में करियर की शुरुआत करने के लिए उन्होंने बैचलर ऑफ लॉ की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान भी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यद्यपि स्नातक स्तरीय परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही वे राजनीति में सक्रिय हो चुके थे, किन्तु राजनीति में रहते हुए भी उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और वर्ष 1915 में स्वर्ण पदक के साथ विधि परास्नातक (एसएलएम) की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने लॉ में डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की।

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कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में वकालत प्रारम्भ कर दी। अपने सदस्य एवं कुशलता के कारण उन्होंने वकालत में खूब नाम कमाया और एक प्रसिद्ध वकील बनकर उभरे। उसी दौरान वर्ष 1917 में जब चम्पारण के किसानों को न्याय दिलाने के लिए गांधीजी विम आए, तो डॉ राजेन्द्र प्रसाद का उनसे मिलना हुआ।गांधीजी की कर्मठता, लगन, कार्य-शैली एवं साहस से वे अत्यधिक प्रभावित हुए। इसके बाद बिहार में सत्याग्रह का नेतृत्व राजेन्द्र प्रसाद ने ही किया। उन्होंने बिहार की जनता के समक्ष गाँधीजी का सन्देश इस तरह प्रस्तुत किया फि लोग उन्हें बिहार का गाँधी ही कहने लगे।

वर्ष 1920 में गाँधीजी ने जब असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया, तो उनके आह्वान पर राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी चलती हुई बकालत छोड़ दी और स्वाधीनता संग्राम में कूद गए। इसके बाद गाँधीजी द्वारा छेड़े गए हर आन्दोलन में थे उनके साथ नज़र आने लगे। उन्होंने नेशनल कॉलेज एवं बिहार विद्यापीठ की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई। गाँधीजी के आन्दोलनों में सहयोग देने के कारण कई बार उन्हें जेल की यात्रा भी करनी पड़ी।

वर्ष 1922 में गाँधीजी ने जब ‘सविनय ‘अवज्ञा आन्दोलन’ को चौरी-चौरा काण्ड के बाद स्थगित करने की घोषणा की, तब उनकी अधिकतर नेताओं ने आलोचना की, किन्तु उस समय भी राजेन्द्र बाबू ने उनका साथ दिया। वर्ष 1930 में जब गाँधीजी ने नमक सत्याग्रह प्रारम्भ किया, तो राजेन्द्र प्रसाद ने पटना में एक तालाब पर अपने साथियों के साथ नमक बनाकर सरकार के ‘नमक पर का कानून का विरोध किया। इसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

वर्ष 1914 में बिहार और बंगाल में आई बाढ़ में उन्होंने काफी बढ़-चढ़कर सेवा कार्य किया। वर्ष 1934 में जब बिहार में भूकम्प आया, तो राजेन्द्र प्रसाद ने भूकम्प राहत कार्य का संचालन किया। अक्टूबर, 1984 में वे बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए तथा वर्ष 1939 में सुभाषचन्द्र बोस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने के बाद वे कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष बनाए गए। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी राजेन्द्र प्रसाद की भूमिका सराहनीय थी।

वर्ष 1946 में जब अन्तरिम सरकार बनी, तब उनके नेतृत्व क्षमता एवं गुणों को देखते हुए उन्हें खाद्य एवं कृषि मन्त्री बनाया गया। इसी वर्ष जब भारत का संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया, तो उन्हें इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

Rajendra Prasad Essay in Hindi

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26 जनवरी, 1950 को जब भारत गणतन्त्र बना, तो वे भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनाए गए। वर्ष 1952 में नई सरकार के गठन के बाद वे पुन: इस पद के लिए निर्वाचित हुए। वर्ष 1957 में भी राष्ट्रपति के चुनाव में उन्हें विजयश्री हासिल हुई। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उन्होंने कई देशों की यात्राएँ भी की। लगातार दो कार्यकाल पूरा करने वाले वे भारत के एकमात्र राष्ट्रपति हैं। वे 14 मई, 1962 तक देश के सर्वोच्च पद पर आसीन रहे। इसके बाद अस्वस्थता की वजह से वे अपने पद से अवकाश प्राप्त कर पटना के सदाकत आश्रम में रहने चले गए। इसी वर्ष भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया।

राजेन्द्र प्रसाद आजीवन गाँधीजी के विचारों का पालन करते रहे, किन्तु जब वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया, तो अस्वस्थ होते हुए भी वे जनता का स्वाभिमान जगाने को उतावले हो गए और रोग-शैया छोड़कर पटना के गाँधी मैदान में ओजस्वी भाषण देते हुए उन्होंने कहा-“अहिंसा हो या हिंसा, चीनी आक्रमण का सामना हमें करना है।” इससे उनकी देशभक्ति की अनन्य भावना का पता चलता है।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी ‘आत्मकथा’ (1946) के अतिरिक्त कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें ‘बापू के कदमों में 1954’, ‘इण्डिया डिवाइडेड 1946’, ‘सत्याग्रह एट चम्पारण 1922’, ‘गाँधीजी की देन’, ‘भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र’, ‘महात्मा गाँधी एण्ड बिहार’ इत्यादि उल्लेखनीय हैं।

यद्यपि राजेन्द्र बाबू की पढ़ाई फ़ारसी और उर्दू में हुई तथापि बी ए में उन्होंने हिन्दी ही ली। वे अंग्रेज़ी, हिन्दी, उर्दू, फारसी, बंगाली भाषा व साहित्य से पूरी तरह परिचित थे तथा गुजराती भाषा का भी उन्हें व्यावहारिक ज्ञान था। एम एल परीक्षा के लिए हिन्दू कानून का उन्होंने संस्कृत ग्रन्थों से ही अध्ययन किया था। हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम था।

हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं; जैसे- ‘भारत मित्र’, ‘भारतोदय’, ‘कमला’ आदि में उनके लेख छपते थे, जो सुरुचिपूर्ण तथा प्रभावकारी होते थे। उन्होंने हिन्दी के ‘देश’ और अंग्रेजी के ‘पटना लॉ Noबीकली’ समाचार-पत्र का सम्पादन भी किया। वर्ष 1926 में वेबिहार प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा वर्ष 1927 में उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति थे। वे राष्ट्रभाषा हिन्दी के विकास एवं प्रसार के लिए सदा प्रयत्नशील रहे तथा इस कार्य के लिए वे अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के साथ आजीवन जुड़े रहे।

राष्ट्रपति भवन के वैभवपूर्ण बातावरण में रहते हुए भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी सादगी एवं पवित्रता को कभी भंग नहीं होने दिया। सरोजिनी नायडू ने उनके बारे में लिखा था- “उनकी असाधारण प्रतिभा, उनके स्वभाव का अनोखा माधुर्य, उनके चरित्र की विशालता और अति त्याग के गुण ने शायद उन्हें हमारे सभी नेताओं से अधिक व्यापक और व्यक्तिगत रूप से प्रिय बना दिया है। गाँधीजी के निकटतम शिष्यों में उनका वही स्थान है, जो ईसा मसीह के निकट सेण्ट जॉन का था।”

अपने जीवन के आखिरी महीने बिताने के लिए उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम चुना। 28 फरवरी, 1963 को राजेन्द्र प्रसाद ने पटना के सदाकत आश्रम में अपनी अन्तिम साँस ली। वे आज हमारे बीच भले ही उपस्थित न हों, पर कृतज्ञ राष्ट्र उनके योगदान को कभी भूल नहीं सकता। उनके निधन से राष्ट्र ने एक महान् सपूत को खो दिया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की प्रतिमूर्ति थे। उनका जीवन हम सबके लिए अनुकरणीय है।

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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डा. राजेंद्र प्रसाद पर निबन्ध | Essay on Dr. Rajendra Prasad in Hindi

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डा. राजेंद्र प्रसाद पर निबन्ध | Essay on Dr. Rajendra Prasad in Hindi!

अपनी सादगी औरसरलता से किसी को भी प्रभावित कर देने वाले विद्वान थे डॉ राजेन्द्र प्रसाद । इन्हें हम आदर से राजेन्द्र बाबू कहते हैं । स्वाधीन भारत के सर्वप्रथम राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भी अहंकार (Ego) से पूरी तरह मुका रहने वाले और किसान जैसी वेशभूषा में रहने वाले व्यक्ति थे राजेन्द्र बाबू ।

2. जन्म और शिक्षा:

राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसंबर, 1884 ई. को बिहार के सारण जिला स्थित जीरादेई नामक गाँव में हुआ था । उनके पिता का नाम महादेव सहाय था । माता और दादी से इन्हें बहुत प्यार मिला ।

3. कार्यकलाप:

राजेन्द्र बाबू की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई । घर पर मौलवी साहब से फारसी पढ़ने के बाद छपरा के एक स्कूल में उन्हें प्रवेश दिलाया गया, जहाँ उन्हें अन्य विषयों के साथ हिन्दी और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान मिला ।

एंटरेन्स (Now-a-days higher secondary) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया, जहाँ से उन्होंने एफ.ए की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास की । इसके बाद उन्हें 50 रुपये मासिक छात्रवृत्ति मिलने लगी । वहीं उन्होंने दो विषयों में बीए, ऑनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण की । सन् 1904 में आपने एमए की परीक्षा पास की ।

कलकत्ता में ही राजेन्द्र बाबू वकालत करने लगे । वकालत खूब चली लेकिन ‘सर्वेन्ट्स ऑफ इण्डिया’ सोसाइटी की स्थापना करने वाले देशभक्त गोपाल कृष्ण गोखले जी के कहने पर वे वकालत के साथ-साथ अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलनों में भाग लेने लगे ।

ADVERTISEMENTS:

सतीशचन्द्र मुखर्जी की ‘डॉनसोसाइटी’ में शामिल होने पर उनकी मुलाकात देश के बड़े-बड़े नेताओं से हुई । सन् 1911 में जब अलग बिहार प्रात बना तो वे पटना आ गये । वहीं चम्पारण आन्दोलन के दौरान उनकी भेंट गाँधीजी से हुई ।

हिन्दी, हरिजन और भूकप पीड़ितों की उन्होंने जो सेवा की, उससे वे बिहार के गाँधी बन गए । इसी दौरान उन्होंने यूरोप की यात्रा भी की । बाद में वे कांग्रेस के अध्यक्ष भी बनाये गये किन्तु अधिक श्रम के कारण वे दमा (Ashthma) के शिकार हो गये ।

फिर भी वे समाज सेवा से अलग नहीं हुए । सन् 1946 में जब देश का संविधान (Constitution Assembly) बनना आरम्भ हुआ, तो वे संविधान सभा (Constitution Assembly) के अध्यक्ष (President) चुने गये और सन् 1950 में देश के गणतंत्र (Republic) घोषित होने पर देश के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए ।

1957 में दूसरी बार भी राष्ट्रपति (President) बने और कुल मिलाकर 12 वर्षों तकउन्होंने राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया । देश के इस महान सपूत का निधन (Demise) पटना के सदाकत आश्रम में 28 फरवरी 1963 को हो गया ।

4. उपसंहार:

डा. राजेन्द्र प्रसाद जी को सन् 1962 में भारत-रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया, किन्तु इससे पहले देश की जनता ने उन्हें देश-रत्न कहना आरम्भ कर दिया था । उनके कार्यों और व्यवहार से प्रभावित होकर सरोजिनी नायडू ने कहा था कि उनके जीवन की कहानी सोने की कलम मधु में डूबा कर लिखनी होगी ।

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डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर निबंध Essay on Dr Rajendra Prasad In Hindi

आज हम डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर निबंध पढ़ेंगे। आप Essay on Dr Rajendra Prasad In Hindi  को ध्यान से और मन लगाकर पढ़ें और समझें। यहां पर दिया गया निबंध कक्षा (For Class) 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त हैं।

Also Read – My House Essay in Marathi

Essay on Dr Rajendra Prasad In Hindi

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 में बिहार के एक छोटे-से गांव जीरादेई में हुआ था। एक बड़े संयुक्त परिवार के सबसे छोटे सदस्य होने के कारण इनका बचपन बहुत प्यार और दुलार से बीता।इनके पिता का नाम महादेव सहाय था।

इनकी शिक्षा का आरंभ इन्हीं के गांव जीरादेई में हुआ था। शिक्षा की तरफ इनका बहुत रुझान था। इस समय बाल विवाह का प्रचलन था, इस कारण इनका विवाह 12 वर्ष की आयु में ही हो गया था। इनकी पत्नी का नाम राजवंशी देवी था। अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा दी, जिसमें इन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके लिए इन्हें 30 रुपये महीने की छात्रवृत्ति भी दी गई। सन् 1902 में इन्होंने कोलकाता प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।

सन् 1915 में कानून में मास्टर की डिग्री में विशिष्टता पाने के लिए इन्हें गोल्ड मेडल’ मिला। इसके बाद इन्होंने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी राजनीति में तब आए, जब इन्होंने गांधी जी से प्रेरित होकर विदेशी कपड़ों को पहनना छोड़ दिया। राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय कांग्रेस के एक से अधिक बार अध्यक्ष बने। 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ, परंतु संविधान सभा का गठन उससे पहले ही कर लिया गया था, जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे।

जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र बना और देश को अपना पहला राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के रूप में मिला। 1962 में इन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। राजनीति से संन्यास लेने के बाद इन्होंने अपना जीवन पटना के एक आश्रम में बिताया, जहां 28 फरवरी, 1963 में इनका निधन हो गया।

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डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध | Essay On Rajendra Prasad In hindi

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध-  भारत के महान आन्दोलनकारी तथा स्वतन्त्र देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद को अपनी कीर्ति और देश के लिए अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए राजेंद्र प्रसाद को भारत के श्रेष्ठ पदक ''भारत रत्न'' द्वारा सम्मानित किया.आज के इस आर्टिकल में हम भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद पर निबंध के माध्यम से राजेंद्र प्रसाद के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे.

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध Essay On Rajendra Prasad In hindi

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध Essay On Rajendra Prasad In hindi

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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर निबंध हिंदी में (Dr Rajendra Prasad Par Nibandh)

पूर्व जीवन और शिक्षा.

3 दिसंबर, 1884 को जन्मे राजेंद्र प्रसाद, पहले रूप में राजेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव, एक चित्रगुप्तवंशी कायस्थ परिवार से थे। अपनी माँ की समस्याओं का सामना करते हुए भी, प्रसाद ने अपनी शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त की। पारंपरिक प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने पटना में स्थित टी.के. घोष के एकेडमी में अध्ययन किया और यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता के प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया।

छात्र जीवन और शैक्षिक उपलब्धियाँ

विज्ञान छात्र के रूप में प्रारंभ करके, 1902 में कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रसाद ने बाद में कला में ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने 1907 में यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता से अर्थशास्त्र में पहले विभाजन के साथ स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उनकी अकादमिक प्रतिष्ठा ने उन्हें छात्रवृत्ति से नवाजा और उन्होंने इधन कैंपस छोड़ दिया।

शिक्षक और विद्वान के रूप में करियर की शुरुआत

अपने एम.ए. में अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी करने के बाद, प्रसाद ने मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर के रूप में सेवा की। उनकी शिक्षा में रुचि ने उन्हें प्रमुख बना दिया, और अंत में उन्होंने प्रमुख बन गए।

वकील के रूप में करियर

1915 में प्रसाद ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के विधि विभाग से मास्टर्स इन लॉ विचारण की परीक्षा में भाग लिया, परीक्षा पास की और सोने का मेडल जीता। उन्होंने अपनी विधि में डॉक्टरेट पूरा किया और 1916 में बिहार और उड़ीसा के हाईकोर्ट में शामिल हो गए। 1917 में उन्हें पटना विश्वविद्यालय के सेनेट के पहले सदस्यों में से एक के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने बिहार के प्रसिद्ध रेशम नगर भागलपुर में वकीली की भी की थी।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

प्रसाद ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1906 में कोलकत्ता में आयोजित इंडियन नेशनल कांग्रेस के वार्षिक सत्र में उनका पहला संबंध हुआ, जहां उन्होंने एक स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया, जब वह कोलकत्ता में अध्ययन कर रहे थे। सौभाग्यपूर्ण रूप से, उन्होंने 1911 में कोलकत्ता में फिर से आयोजित वार्षिक सत्र में आधिकारिक रूप से भारतीय नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए। भारतीय नेशनल कांग्रेस के लखनऊ सत्र में जब महात्मा गांधी से मिले, तो उनका संबंध मजबूत हुआ। चंपारण के एक तथा ना के एक दौरे के दौरान, महात्मा गांधी ने उनसे अपने स्वयंसेवकों के साथ आने को कहा। उन्हें महात्मा गांधी की समर्पितता, साहस और निर्धारितता ने इतने प्रभावित किया कि जैसे ही 1920 में भारतीय नेशनल कांग्रेस ने नॉन-कोऑपरेशन का प्रस्ताव पारित किया, उन्होंने अपने लाभकारी वकील करियर और विश्वविद्यालय के कर्तव्यों से संन्यास लेने का निर्णय किया।

राजनीतिक करियर और कांग्रेस के नेतृत्व

1934 में भारतीय नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जाने पर, प्रसाद ने राजनीतिक क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का आरंभ किया। 1942 में बॉम्बे में कांग्रेस द्वारा बहिष्कार प्रस्ताव के पारित होने पर बहुत से भारतीय नेताओं की गिरफ्तारी का परिणाम होने पर, प्रसाद को सदाकत आश्रम, पटना में गिरफ्तार किया गया और उन्हें बंकीपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। लगभग तीन साल के गिरफ्तारी के बाद, उन्हें 15 जून 1945 को रिहा किया गया।

राष्ट्रपति की विरासत और राजनयिक भूमिका

स्वतंत्र भारत के दो और आधे वर्ष बाद, 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के संविधान की मन्जूरी मिली, और उन्हें भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। राष्ट्रपति के रूप में, प्रसाद ने संविधान द्वारा आवश्यक किए जाने वाले कार्यों के रूप में विशेषज्ञता और स्वतंत्रता के लिए उनके समर्पण के लिए सामान्य परंपरा स्थापित की। उन्होंने दुनियाभर में भारत के राजदूत के रूप में यात्रा की, विदेशी राष्ट्रों के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करते हुए। अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने गैर-पक्षपातपूर्णता की परंपरा स्थापित की, शिक्षा के महत्व पर जोर दिया और दुनिया भर में राजनयिक संबंधों में योगदान दिया। उल्लेखनीय रूप से, उन्हें 1952 और 1957 में लगातार दो बार फिर से चुना गया।

सेवानिवृत्ति और विरासत

राष्ट्रपति के रूप में 12 वर्षों तक सेवा करने के बाद, प्रसाद ने 1962 में अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा की। वह पटना लौट आए और 28 फरवरी, 1963 को नेतृत्व, शिक्षा के प्रति समर्पण और भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान की विरासत छोड़कर उनका निधन हो गया। मरणोपरांत, उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न मिला, और देश के राजनीतिक और शैक्षणिक परिदृश्य पर उनके प्रभाव को आज भी याद किया जाता है।

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Dr Rajendra Prasad Essay in English

Dr. Rajendra Prasad was an Indian lawyer, politician, and freedom fighter who served as the first President of India from 1950 to 1962. He played a major role in the Indian independence movement and is widely considered one of India’s greatest statesmen. Here are some sample essays on Dr. Rajendra Prasad.

Dr Rajendra Prasad Essay in English

100 words Essay On Dr Rajendra Prasad

Dr. Rajendra Prasad served in many government positions, including being first president of the country from 1950-1962. He was sent to jail several times for his participation in the freedom movement and for trying to set up a constituent assembly. His two most famous accomplishments were as school teacher and president.

Dr. Prasad is most well-known for his time in politics, but he was quite an accomplished lawyer and economist as well. As a member of the senate and syndicate of Patna University, he played an important role in the education system early on in his career. And then later on, during his presidential presidency from 1950-1962, he helped to implement many laws that improved social conditions in India.

200 words Essay On Dr Rajendra Prasad

After his elementary school education, Dr. Rajendra Prasad went to study law and became a practising lawyer in 1916. He left his profession and joined the non-cooperation movement to free India. During his time in India, he worked closely with some of the most renowned freedom fighters, including Mahatma Gandhi, and was also elected President of the Indian National Congress. He was also a professor, scholar and one of the most prominent freedom fighters. As a freedom fighter, Dr. Rajendra Prasad was jailed multiple times and went through many hardships to secure India’s independence.

Dr Rajendra Prasad’s Presidency

Dr. Rajendra Prasad was the first President of the Republic of India from 1950 to 1962. This 12-year tenure made him the longest-serving President of the country to date. He played a key role in drafting the Constitution of India. He was also instrumental in getting the Constitution ratified by all the states.

During his tenure as President, Dr. Rajendra Prasad worked tirelessly to unify the country and promote economic development. He also helped establish close relations with other countries, particularly those in Asia and Africa. Dr. Rajendra Prasad served two terms as President before retiring from politics in 1962. He died on February 28, 1963, at the age of 78. His legacy continues to inspire Indians all over the world.

500 words Essay On Dr Rajendra Prasad

Dr Rajendra Prasad was a lawyer by training. He was an Indian nationalist who actively participated in India’s independence movement.

Dr Rajendra Prasad’s Childhood

Dr Rajendra Prasad was born on December 3, 1884 in the village of Zeradai, in the Champaran district of Bihar. His father Mahadev Sahay was a small landowner and his mother Kamleshwari Devi was a homemaker. He was the youngest of three brothers and a sister.

Rajendra Prasad's childhood was spent in rural Bihar, where he received his early education at a local school. He later attended the prestigious Presidency College in Kolkata, where he studied economics and law. After graduating, he began working as a lawyer in Muzaffarpur, Bihar.

Dr Rajendra Prasad’s And India’s Independence

After completing his education at the University of Calcutta and the University of Allahabad, he began his legal practice in 1908. In 1917, he joined the Indian National Congress and became active in the independence movement. He was arrested and jailed several times during the struggle for independence.

In India's struggle for freedom, Rajendra Prasad played a very important role. It is here that he met Mahatma Gandhi at Lucknow Pact and joined him in India's struggle for freedo. He left his job as a lawyer and went to join Gandhi with the rest of the freedom fighters to fight against British colonialism.

Rajendra Prasad's involvement in the Indian independence movement began with his participation in the Non-Cooperation Movement of 1920-22. He was soon arrested and jailed for his part in the protests. Upon his release, he became actively involved in Gandhi's Salt March of 1930 and the Quit India Movement of 1942. For his role in the political turmoil, Dr. Rajendra Prasad was imprisoned for three years and was released in 1945.

As India moved towards independence, Rajendra Prasad emerged as one of its most prominent leaders. He served as the President of the Constituent Assembly that drafted India's constitution, and later went on to become the country's first President after it.

Dr Rajendra Prasad’s Contributions And Success

Dr Rajendra Prasad was an Indian political leader who served as the first President of the Republic of India. He was one of the architects of the Constitution of India. He made many significant contributions to the development of India. He played a key role in the country's transition from British rule to independence, and was instrumental in shaping its constitutional democracy.

As President, Dr Rajendra Prasad helped steer India through some difficult times, including the Indo-Pakistani War of 1947 and the Chinese aggression in 1962. He also played a pivotal role in promoting education and social reform in India.

He had sworn in as the Food and Agriculture Minister of India in September 1946. In 1962, Rajendra Prasad was awarded the Bharat Ratna – the highest civilian award of India.

In addition to his political achievements, Dr Rajendra Prasad was also a renowned scholar and writer. His works include several books on history, politics, and religion.

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