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भारत का संविधान पर निबंध (Constitution of India Essay in Hindi)

भारत का सर्वोच्च विधान संविधान है। यह हमारे कानून का संग्रहण है। इसे आम बोल-चाल की भाषा में ‘कानून की किताब’ भी कहते हैं। हमारा संविधान दुनिया का सबसे लम्बा लिखित संविधान है। हमारे देश में लोकतंत्रात्मक गणराज स्थापित है। इसकी सम्प्रभुता, और धर्म-निरपेक्षता इसे दूसरों से अलग करती है। अक्सर शैक्षणिक संस्थानों में निबंध प्रतियोगिताएं होती रहती है। खासकर राष्ट्रीय त्यौहारों के मौके पर। इसी बात को ध्यान में रखकर हम भारतीय संविधान पर कुछ छोटे-बड़े निबंध दे रहे हैं। इन्हें काफी आसान शब्दों में लिखा गया है।

भारत का संविधान पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Constitution of India in Hindi, Bharat ka Samvidhan par Nibandh Hindi mein)

भारत का संविधान पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

जब-जब देश की गणतंत्रता की बात होगी, तब-तब देश के संविधान का नाम आना स्वाभाविक है। हमारा संविधान अनूठा संविधान है। संविधान को बनाने के लिए संविधान-सभा बनाई गई थी, जिसका गठन स्वतंत्रता पूर्व ही दिसम्बर, 1946 को हो गया था। संविधान को निर्मित करने के लिए संविधान-सभा में अलग-अलग समितियां बनाई गयी थी। इसका मसौदा बनाने का जिम्मा प्रारूप-समिति को दिया गया था, जिसके अध्यक्ष डाँ. भीमराव अम्बेडकर थे।

क्या है भारतीय संविधान

देश का कानून ही देश का संविधान कहलाता है। इसे धर्म-शास्त्र, विधि-शास्त्र आदि नामों से भी जाना जाता है। हमारा संविधान 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत कर लिया गया था, और सम्पूर्ण भारत में इसके एक महीने बाद, 26 जनवरी 1950 से प्रभाव में आया। इसे पूर्णतः बनने में 2 साल, 11 महीनें और 18 दिनों का वक़्त लगा। इसके लिए 114 दिनों तक बहस चली। कुल 12 अधिवेशन किए गये। लास्ट डे 284 लोगों ने इस पर साइन किए।

भारतीय संविधान के निर्माता

संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों में ‘पंडित जवाहर लाल नेहरू’, ‘डा. भीमराव अम्बेडकर’, ‘डा. राजेन्द्र प्रसाद’, ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल’, ‘मौलाना अब्दुल कलाम आजाद’ आदि थे।

भारतीय संविधान की अनुच्छेद और सूचियाँ

भारत के संविधान में शुरूआत में 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां थी, जो अब बढ़कर 448 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियां हो गयी हैं।

हमारे भारत का संविधान दुनिया का सबसे अच्छा संविधान माना जाता है। इसे दुनिया भर के संविधानों का अध्ययन करने के बाद बनाया गया है। उन सभी देशों की अच्छी-अच्छी बातों को आत्मसात किया गया है। संविधान की नज़र में सब एक समान है। सबके अधिकार और कर्तव्य एक समान है। इसकी दृष्टि में कोई छोटा नहीं, कोई बड़ा, न ही अमीर, न ही गरीब। सबके लिए एक जैसे पुरस्कार और दंड का विधान है।

Bharat ka Samvidhan par Nibandh – निबंध 2 (400 शब्द)

संविधान बनने से पहले देश में भारत सरकार अधिनियम, 1935 का कानून चलता था। हमारे संविधान ने बनने के बाद भारत सरकार एक्ट का ही स्थान लिया। हमारा संविधान विश्व का वृहदतम संविधान है। यह सबसे लंबा लिखा भी गया है। इसके 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 08 अनुसूचियां, इसके विशाल स्वरूप की व्याख्या करतीं है।

इसके निर्माण के बाद, समय की प्रासंगिकता को देखते हुए इसमें अनेकों संशोधन हुए। वर्तमान में हमारे संविधान में 498 आर्टिकल्स, 25 भाग और 12 अनुसूचियां हो गयीं है। चूंकि यह परिवर्तन बदस्तूर जारी है और आगे भी होगा, इसीलिए सदैव मूल संविधान का डाटा ही याद रखना चाहिए।

भारतीय संविधान निर्माता एवम् निर्माण

भारतीय संविधान का जो स्वरुप हमें दिखाई देता है, वो केवल एक व्यक्ति का नहीं, वरन् कई लोगों के अथक प्रयास का नतीजा है। बेशक बाबासाहब डाँ. भीमराव अम्बेडकर को संविधान का निर्माता और जनक कहा जाता है। लेकिन उनके अलावा भी बहुत लोगों ने उल्लेखनीय काम किये हैं। इस संबंध में यह कह सकते है कि, इन लोगों के बिना संविधान कार्य का उल्लेख अधूरा है।

राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण पिंगली वैंकेया ने किया था ।

थॉमस हेयर ने आधुनिक निर्वाचन प्रणाली का निर्माण किया था ।

भारतीय संविधान के सजावट का कार्य शांति-निकेतन के कलाकारों ने किया था, जिसका निर्देशन नंद लाल बोस ने किया था।

भारतीय संविधान की संकल्पना श्री एम.एन राव ने 1934 में ही कर दी थी। इसी कारण उन्हें साम्यवादी विचारधारा का पहला अन्वेषक कहा जाता है। इतना ही नहीं, उन्हें कट्टरवादी लोकतंत्र के पायनियर की संज्ञा भी दी जाती है। इनकी संस्तुति को ऑफिशियली सन् 1935 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। तत्पश्चात् श्री सी. राजगोपालाचारी ने सन् 1939 में इसके समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की थी। और अन्ततः सन् 1940 में इसे ब्रिटिश सरकार द्वारा मान्यता प्रदान की गयी।

भारतीय संविधान की रचना भी कोई एक दिन की कहानी नहीं है। बल्कि कई वर्षों के अथक प्रयासों का सम्मिलित रूप है। आज की पीढ़ी को सब-कुछ थाली में सजा-परोसा मिलता है न, इसीलिए उसे इसकी कीमत नहीं है। हमारे देश ने करीब साढ़े तीन सौ सालों तक केवल ब्रिटिश हुकुमत की गुलामी झेली है। यह समय कितना असहनीय और पीड़ादायी रहा है, यह हमारे लिए कल्पना के भी परे है।

हम सभी बेहद भाग्यशाली है, जो हमने स्वतंत्र भारत में जन्म लिया। हम कुछ भी कर सकते है, कहीं भी आ-जा सकते है। कुछ भी बोल सकते हैं। ज़रा सोचिए, कितना हृदय-विदारक होता होगा, जब आपको बात-बात पर यातनाएं दी जाती हो। मैं तो सोच भी नहीं सकती, मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

Constitution of India par nibandh – निबंध 3 (600 शब्द)

यूं तो हम सभी प्रायः अनेकों विषयों पर विचार-विमर्श और मंत्रणाएं करते है, किन्तु जब बात देश और देशभक्ति की हो, तब उत्साह ही अलग होता है। यह केवल मेरी ही नहीं, अपितु हम सबकी भावनाओं से जुड़ा है।

देशभक्ति का जज्बा एक अलग ही जज्बा होता है। हमारी नसों में रक्त दुगुनी गति से प्रवाहित होने लगता है। देश के अमर सपुतों के बारे में जानने के बाद, हमारे अंदर भी देश पर मर मिटने का जुनून पैदा होने लगता है।

भारतीय संविधान का इतिहास

भारतीय संविधान को 26 नवंबर सन् 1949 में मंजूरी मिल गई थी, लेकिन इसे 26 जनवरी सन् 1950 में लागू किया गया था। भारतीय संविधान को तैयार करने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा था।

भारतीय संविधान के निर्माण के समय इसमें 395 अनुच्छेद, 08 अनुसूचियां तथा 22 भागों में विभाजित किया गया था, जबकि इस समय भारतीय संविधान 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 22 भागों में विभाजित है। संविधान सभा के प्रमुख सदस्य अब्दुल कलाम, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल थे, जो भारत के सभी राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे।

भारतीय संविधान को हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में हाथ से ही लिखा गया है। भारतीय संविधान को बनाने में लगभग एक करोड़ का खर्च लगा था। भारतीय संविधान में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को 11 दिसंबर सन् 1946 में स्थाई अध्यक्ष चुना गया था। भारतीय संविधान लागू होने के बाद भी इसमें 100 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं। बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष थे।

भारतवर्ष में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संविधान में सरकार के अधिकारियों के कर्तव्य और नागरिकों के अधिकारों के बारे में भी बताया गया है। संविधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या 389 थी, जिसमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के 4 चीफ कमिश्नर एवं 93 देसी रियासतों के थे।

भारत अंग्रेजों से आजाद होने के बाद संविधान सभा के सदस्य ही, संसद के प्रथम सदस्य बने थे और भारत की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान को बनाने के लिए ही किया गया था। संविधान के कुछ अनुच्छेदों को 26 नवंबर सन् 1949 को पारित किया गया था जबकि बचे अनुच्छेदों को 26 जनवरी सन् 1950 को लागू किया गया था।

केंद्रीय कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति होता है। भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन 19 जुलाई 1946 में किया गया था। भारत की संविधान सभा में हैदराबाद रियासत के प्रतिनिधि शामिल नहीं हुए थे।

मौलिक अधिकार

भारतीय संविधान ने भारत के नागरिकों को छः मौलिक अधिकार प्रदान किए है, जिनका वर्णन अनुच्छेद 12 से 35 को मध्य किया गया है –

1) समानता का अधिकार

2) स्वतंत्रता का अधिकार

3) शोषण के विरूध्द अधिकार

4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

5) संस्कृति और शिक्षा से सम्बंधी अधिकार

6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार

पहले हमारे संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, जिसे ‘44वें संविधान संशोधन, 1978’ के तहत हटाया गया। ‘सम्पत्ति का अधिकार’ सातवाँ मौलिक अधिकार था।

हमारे संविधान में बहुत सारी खूबियां है। कुछ खामियां भी, जिसे समय-समय पर दूर किया जाता रहा है। अपनी कमी को मानना और उसे दूर करना बहुत अच्छा गुण होता है। हमारा संविधान न ही बहुत लचीला है, न ही बहुत सख्त। हमारा देश बेहद उदार देशों की श्रेणी में आता है। माना उदारता बड़ा गुण होता है। लेकिन कुछ देश हमारी उदारता का नाजायज फायदा उठाते हैं। जो कि हमारे देश के हित में नहीं। अधिक उदार होने से लोग आपको कमज़ोर समझने लगते हैं।

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essay on preamble of indian constitution in hindi

  • constitution of India 1950
  • Preamble of Indian Constitution

भारतीय संविधान की प्रस्तावना 

Constitution of India

यह लेख लॉयड लॉ कॉलेज, ग्रेटर नोएडा के कानून के छात्र  Gaurav Raj Grover और Diksha Paliwal द्वारा लिखा गया है। यह लेख भारत के संविधान के परिचयात्मक भाग यानी प्रस्तावना (प्रिएंबल) के बारे में बात करता है। इससे पहले, यह संविधान शब्द के अर्थ का संक्षिप्त परिचय देता है और उसके बाद ‘प्रस्तावना’ शब्द की विस्तृत चर्चा करता है। यह प्रस्तावना के साथ-साथ संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में भी बात करता है। बाद के भाग में, यह कुछ महत्वपूर्ण न्यायिक घोषणाओं के साथ-साथ प्रस्तावना के महत्वपूर्ण तत्वों पर चर्चा करता है जिससे प्रस्तावना के उद्देश्य और उपयोग की बेहतर व्याख्या में मदद मिलती है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

Table of Contents

26 फरवरी 1948 और 26 जनवरी 1950 भारत के कानूनी इतिहास में दो उल्लेखनीय घटनाओं की शुरुआत करते हैं। ये तारीखें क्रमशः संविधान के सार्वजनिक विमोचन (पब्लिक रिलीज) और उसके प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) का प्रतीक हैं। इसके परिणामस्वरूप विश्व में एक नए गणतंत्र का जन्म हुआ था। लेख में आगे बढ़ने से पहले, यह सवाल उठता है कि ‘संविधान’ शब्द का क्या अर्थ है? आम बोलचाल की भाषा में इसका तात्पर्य विशेष कानूनी पवित्रता वाले दस्तावेज़ से है। यह किसी राज्य के सभी शासी निकायों के कानूनी ढांचे और प्रमुख कार्यों को निर्धारित करता है। यह उन सिद्धांतों को भी निर्धारित करता है जो इन अंगों के संचालन को नियंत्रित करते हैं।

essay on preamble of indian constitution in hindi

देश का मौलिक कानून, यानी संविधान, राज्य की संस्था और उसके अंगों से संबंधित होता है। एक कानूनी ढाँचा स्थापित करके, संविधान राज्य और उसकी जनसंख्या के बीच संबंधों को नियंत्रित करता है। साथ ही, यह राज्य और उसके उपकरणों को दी गई शक्तियों को बाधित और प्रतिबंधित करता है। 

संविधान का परिचयात्मक भाग, जो संविधान में सन्निहित मूल संवैधानिक मूल्यों को दर्शाता है, ‘ प्रस्तावना ‘ कहलाता है। अधिनियम या क़ानून के प्रावधानों पर विचार करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों और सामग्री को समझाने के लिए इसका मसौदा तैयार किया गया है। यह क़ानून के लक्ष्य और उद्देश्यों को निर्धारित करता है, जिसे वह प्राप्त करना चाहता है। 

अपने प्रारंभिक भाग में लेख भारतीय संविधान, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और इसकी मुख्य विशेषताओं के बारे में एक संक्षिप्त परिचय देता है। इसके बाद यह सामान्य परिप्रेक्ष्य से ‘प्रस्तावना’ शब्द का अर्थ समझाता है और फिर भारत के संविधान की प्रस्तावना, इसके इतिहास, इसके उद्देश्यों, प्रमुख घटकों और प्रस्तावना में किए गए महत्वपूर्ण संशोधनों पर चर्चा करता है। इसके अलावा, यह संविधान की प्रस्तावना से संबंधित महत्वपूर्ण न्यायिक विकास से संबंधित है। 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर विस्तार से चर्चा करने से पहले आइए संविधान का संक्षिप्त अवलोकन करें। 

भारत का संविधान, 1950

भारतीय संविधान एक क़ानून है जिसमें ऐसे प्रावधान हैं जो राज्य और उसके प्राधिकरणों की शक्तियों, नागरिक अधिकारों और राज्य और उसकी आबादी के बीच संबंध स्थापित करते हैं। इस उल्लेखनीय कानूनी दस्तावेज़ की प्रवर्तन तिथि 26 जनवरी 1950 है। भारत का संविधान निस्संदेह लोगों के प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों के शोध और विचार-विमर्श का एक परिणाम है। यह निश्चित रूप से किसी राजनीतिक क्रांति का परिणाम नहीं है। यह इन प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों की कड़ी मेहनत का परिणाम है जो देश के प्रशासन में सुधार करना चाहते थे और सामान्य तौर पर, देश की मौजूदा व्यवस्था में सुधार करना चाहते थे। किसी भी संविधान को बेहतर ढंग से समझने के लिए, उस ऐतिहासिक प्रक्रिया और घटनाओं जिसके कारण इसे लागू किया गया था, पर नज़र डालना बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसके प्रावधानों और इसके पीछे के उद्देश्य को बेहतर ढंग से जानने और समझने में मदद करती है। आइए उन महत्वपूर्ण घटनाओं का संक्षिप्त अवलोकन करें जिनके कारण दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान लागू हुआ था। 

भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

ब्रिटिश शासन के तहत, भारत को दो भागों में विभाजित किया गया था, अर्थात् ब्रिटिश प्रांत और रियासतें (प्रिंसली स्टेट)। ब्रिटिश शासन काल में, भारत संघ लगभग 52 प्रतिशत भारतीय क्षेत्र के अलावा 550 से अधिक रियासतों का एक संयोजन था, जो ब्रिटिशों, अर्थात् ब्रिटिश प्रांतों के सीधे शासन के अधीन था। संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए औपनिवेशिक काल की घटनाओं पर पकड़ पर्याप्त है, क्योंकि मुख्य राजनीतिक संस्थाओं का उद्भव और विकास उसी काल में हुआ था। हमारे संविधान ने अंग्रेजों द्वारा बनाए गए अधिनियमों और नियमों के कई प्रावधानों को महत्वपूर्ण रूप से अपनाया है और संविधान की प्रस्तावना संविधान सभा द्वारा लिखे गए सिद्धांतों का परिणाम है। 

संविधान का अधिनियमन विभिन्न घटनाओं का परिणाम रहा है जिन्हें आम तौर पर विभिन्न चरणों में विभाजित किया गया है। इन घटनाओं को निम्नलिखित अवधि के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है जैसा कि नीचे उल्लिखित उपशीर्षकों में चर्चा की गई है।

1600-1765: अंग्रेजों का आगमन

प्रारंभ में, अंग्रेज वर्ष 1600 में व्यापार करने के लिए भारत आए थे। अंग्रेजों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी नामक कंपनी के तहत व्यापार करना शुरू किया था। कंपनी ने अपना संविधान, काम करने का अधिकार, विशेषाधिकार और अन्य शक्तियाँ दिसंबर 1600 में महारानी एलिजाबेथ द्वारा हस्ताक्षरित एक चार्टर से प्राप्त कीं थी। इस चार्टर के माध्यम से, कंपनी को भारत में व्यापार करने के लिए एकाधिकार प्राप्त हुआ था। प्रारंभ में यह अवधि 15 वर्ष थी जिसे बाद में इसे बढ़ा दिया गया। कंपनी का प्रबंधन एक गवर्नर और 24 अन्य सदस्यों के हाथों में था जिनके पास भारत में व्यापार अभियान चलाने और व्यापार को व्यवस्थित करने का अधिकार था। ऐसा प्राधिकरण और शक्ति चार्टर के माध्यम से निहित थी। अंततः जब अंग्रेजों ने व्यापार से इतना पैसा कमा लिया तो उन्होंने भारतीय शासकों की सहमति से भारत के कई स्थानों पर अपने व्यापारिक केंद्र स्थापित करना शुरू कर दिया। अंग्रेज़ भारतीय शासकों से अपने स्वयं के कानूनों को बनाए रखने की अनुमति लेने में भी कामयाब रहे। इन रियायतों ने धीरे-धीरे ब्रिटिशों और क्राउन के लिए पूरे ब्रिटिश भारत में अविभाजित संप्रभुता (सोव्रेंटी) का प्रयोग करने का मार्ग प्रशस्त किया। 

वर्ष 1601 में, क्राउन द्वारा एक नया चार्टर अधिनियमित किया गया था, जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी को विधायी शक्ति प्रदान की, जिससे उन्हें कंपनी के सुशासन के लिए नियम, कानून और अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) बनाने का अधिकार मिल गया था। कंपनी को दी गई यह विधायी शक्ति किसी विदेशी क्षेत्र पर कानून बनाने या शासन करने की शक्ति नहीं थी, बल्कि यह केवल कंपनी की व्यापारिक चिंताओं तक ही सीमित थी। हालाँकि, कंपनी को विभिन्न शक्तियाँ प्रदान करने वाले ये चार्टर बहुत महत्वपूर्ण थे क्योंकि ये वे रत्न थे जिनसे अंततः एंग्लो-इंडियन कोड विकसित हुए थे। बाद में वर्ष 1609 और 1661 में क्राउन द्वारा समान शक्तियां प्रदान की गईं, जिससे पहले के चार्टर की पुष्टि हुई। 

वर्ष 1726 में एक नए चार्टर को अधिनियमित किया गया था जिसका अत्यधिक विधायी महत्व था। पहले, विधायी शक्तियाँ इंग्लैंड में निदेशक न्यायालय में निहित थीं। हालाँकि, ये लोग भारत की तत्कालीन परिस्थितियों से भली-भाँति परिचित नहीं थे। इसलिए, क्राउन द्वारा निर्णय लिया गया कि कानून बनाने की शक्ति उन लोगों को सौंपी जाए जो भारतीय परिस्थितियों से परिचित हों। तदनुसार, चार्टर ने कानूनों के उल्लंघन के मामले में दंड प्रावधानों के साथ-साथ उप-कानून, नियम और अध्यादेश तैयार करने के लिए गवर्नर और एक परिषद को शक्ति दी थी, जिसमें तीन अन्य सदस्य भी शामिल थे। चार्टर ने कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास में मेयर कोर्ट की स्थापना की, जिससे प्रांतों में अंग्रेजी कानून लागू हुए थे। 

18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध (सेकंड हाफ) में, सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के कारण भारत में अस्थिरता पैदा हो गई थी, जिसके कारण भारत प्रतिद्वंद्वी प्रतिस्पर्धी (राइवल कॉन्टेस्टिंग) रियासतों का युद्धक्षेत्र बन गया था। अंग्रेजों ने इस अराजक (क्योटिक) स्थिति का फायदा उठाया और खुद को भारतीय उपमहाद्वीप का स्वामी स्थापित कर लिया। अंग्रेजों के हाथ में सत्ता का यह क्रमिक स्थानांतरण (ट्रांसफर) प्लासी की लड़ाई (1857) के कारण हुआ, जो ईस्ट इंडिया कंपनी और सिराजुदुल्ला (बंगाल के तत्कालीन नवाब) के बीच लड़ा गया था। इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई थी और इस तरह भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव पड़ी थी।

1765-1858: ब्रिटिश शासन की शुरुआत

1765 के आसपास, सम्राट शाह आलम ने ईस्ट इंडिया कंपनी को राजस्व (रिवेन्यू) इकट्ठा करने की जिम्मेदारी दी थी। इससे अंततः कुछ हद तक नागरिक न्याय प्रणाली का प्रशासन उनके हाथ में आ गया था। इस वर्ष को अक्सर भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा क्षेत्रीय संप्रभुता के युग की शुरुआत का वर्ष माना जाता है। हालाँकि, कंपनी ने राजस्व इकट्ठा करने के इस कार्य को तुरंत अपने हाथ में लेना शुरू नहीं किया, इसका कारण राजस्व इकट्ठा करने की प्रणाली से अपरिचित होना था। अंग्रेजों ने निर्णय लिया कि कुछ समय के लिए भारतीयों को यह कार्य करने दिया जाए, लेकिन उन्होंने राजस्व इकट्ठा करने की प्रणाली के कामकाज की निगरानी के लिए अंग्रेजी अधिकारियों को नियुक्त किया था। यह व्यवस्था भारतीयों के लिए बहुत हानिकारक साबित हुई क्योंकि अंग्रेजों ने भारतीयों का शोषण करना शुरू कर दिया। 

वर्ष 1772 में, कंपनी के कामकाज की जाँच के लिए क्राउन द्वारा एक समिति बनाई गई और जांच के बाद परिणाम प्रकाशित किए गए। क्राउन को कंपनी की अपर्याप्तताओं के बारे में पता चला, और इसलिए संसद द्वारा एक नया विनियमन अधिनियम बनाया गया था। 1773 का यह रेगुलेटिंग एक्ट संविधान के इतिहास में बहुत महत्व रखता है। यह पहली बार था कि कंपनी के मामलों को विनियमित करने का अधिकार संसद को प्रदान किया गया था। इस अधिनियम में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें अधिनियमित की गईं थी- कलकत्ता सरकार की मान्यता, कंपनी के संविधान में परिवर्तन, मद्रास और बॉम्बे के प्रांत को बंगाल के गवर्नर जनरल के नियंत्रण में लाया गया था, और कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई थी। 

बाद में 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट की अस्पष्टता एवं अनियमितताओं को दूर करने के लिए एक नया अधिनियम अर्थात् 1781 का रेगुलेटिंग एक्ट पारित किया गया था। यह अधिनियम कुछ नए प्रावधानों के साथ आया, जैसे- सरकारी कर्मचारियों को ड्यूटी पर रहने के दौरान किए गए कार्यों के लिए कुछ दंड से छूट, अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) से संबंधित प्रश्न, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कौन से कानून लागू किए जाने हैं, इसके बारे में स्पष्टीकरण, और विभिन्न क्षमताओं के तहत गवर्नरों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया था। 

वर्ष 1784 में, पिट्स इंडिया एक्ट अधिनियमित किया गया जिसने कंपनी के राजनीतिक मामलों को वाणिज्यिक (कमर्शियल) मामलों से अलग कर दिया। निदेशक मंडल को कंपनी के वाणिज्यिक मामलों के प्रबंधन के लिए अधिकृत किया गया था जबकि अंग्रेजों के राजनीतिक मामलों के प्रबंधन के लिए छह सदस्यों वाली एक समिति का गठन किया गया था। बाद में, 1813 के चार्टर एक्ट ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से व्यापार का एकाधिकार छीन लिया था। चार्टर ने विभिन्न परिषदों को दी गई शक्ति पर बेहतर नियंत्रण का भी दावा किया। 

1833 के चार्टर एक्ट ने एक तरह से अंग्रेजों की शक्ति को केंद्रीकृत कर दिया था। इसने भारत का एक गवर्नर जनरल नियुक्त किया, जिसे पहले बंगाल का गवर्नर जनरल कहा जाता था। उनके नेतृत्व में एक परिषद भी गठित की गई जिसे ब्रिटिशों के साथ-साथ ब्रिटिश भारत में रहने वाले भारतीयों दोनों के लिए कानून और नियम बनाने का अधिकार दिया गया। अधिनियम ने एक कानून सदस्य की भी नियुक्ति की, जिसका कार्यकारी मामलों में कोई दखल नहीं था और उसे पूरी तरह से कानून के मामलों से निपटने के लिए निर्देशित किया गया था। पिछले कानूनों को विनियम (रेगुलेशन) कहा जाता था, हालाँकि, 1833 के अधिनियम संसद के अधिनियम थे। 

इसके बाद, 1853 में एक नया चार्टर अधिनियमित किया गया जिसने एक तरह से शक्तियों के पृथक्करण (सेपरेशन) की अवधारणा को स्पष्ट रूप से पेश नहीं किया। 1853 के इस चार्टर ने कार्यकारी (एग्जिक्यूटिव) अंग को विधायी अंग से अलग कर दिया। साथ ही, स्थानीय प्रतिनिधियों की अवधारणा को पहली बार भारतीय विधानमंडल में पेश किया गया था। इन अधिनियमों ने निश्चित रूप से भारतीय संप्रभुता को लगभग पूरी तरह से क्राउन को हस्तांतरित करने का मार्ग प्रशस्त किया। 

1858-1919: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत

पिट्स इंडिया एक्ट 1784 के माध्यम से दोहरी सरकार की स्थापना बुरी तरह विफल रही। कंपनी का देश के मामलों पर उचित नियंत्रण भी नहीं था और कई क्षेत्रों में व्यापार लाभ भी कम हो रहा था। इसके साथ ही भारत की जनता अंग्रेजों के अत्याचारों से बहुत क्रोधित थी। अंग्रेजों के खिलाफ पहला युद्ध यानी 1857 का सिपाही विद्रोह अंग्रेजों के सामने एक झटके की तरह आया था। कंपनी के फैसले के खिलाफ इन सभी प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण संसद द्वारा एक नया अधिनियम लागू किया गया, जिसे भारत सरकार अधिनियम 1858 के रूप में जाना जाता है। इस अधिनियम ने भारत के शासन को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से क्राउन में स्थानांतरित कर दिया। भारत अब महामहिम (हर मैजेस्टी) द्वारा शासित होता था। क्राउन ने अपनी ओर से भारत सचिव को अधिकार दिया, जिसकी सहायता एक परिषद् द्वारा की जाती थी। भारत के मामलों का प्रबंधन करने के लिए इसमें 15 सदस्य शामिल हैं। अधिनियम में राज्य के सचिव (सेक्रेटरी) और परिषद को एक निगमित (कॉर्पोरेट) निकाय के रूप में भी गठित किया गया जो भारत और इंग्लैंड में अपने नाम से मुकदमा चलाने और अपने नाम पर मुकदमा होने में सक्षम था। इस अधिनियम ने आधिकारिक तौर पर “क्राउन द्वारा प्रत्यक्ष शासन” की स्थापना की थी।

बाद के काल में 1861 का भारतीय परिषद अधिनियम लागू किया गया था, जिसने प्रतिनिधि संस्थाओं का आधार या शुरुआत की थी। भारतीय पहली बार सरकार के मामलों, विशेषकर कानून के काम से जुड़े थे। यह अधिनियम संवैधानिक इतिहास में बहुत महत्व रखता है। पहला इसलिए क्योंकि इसने भारतीयों को कानून बनाने से जोड़ा और दूसरा इसलिए क्योंकि इसने बंबई और मद्रास की सरकार को कानून बनाने की शक्ति प्रदान की। एक तरह से इसने प्रांतों को आंतरिक स्वायत्तता(ऑटोनोमी)  प्रदान की थी। 

वर्ष 1892 में एक नया भारतीय परिषद अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम ने तीन महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत कीं, अर्थात्, चुनाव प्रणाली की शुरूआत, केंद्रीय और प्रांतीय परिषदों में सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गई और परिषद के कार्यों को बढ़ाया गया था। इस अधिनियम ने प्रतिनिधि सरकार की नींव रखी थी। हालाँकि, इसमें अभी भी चुनाव प्रणाली, कुछ लोगों के लिए प्रतिनिधित्व की कमी आदि जैसे विभिन्न प्रावधानों से संबंधित कुछ मतभेद थे और इसलिए 1909 का भारतीय परिषद अधिनियम लागू किया गया था जो मॉर्ले-मिंटो सुधारों से भी जुड़ा था। 

1909 के अधिनियम ने केंद्रीय और प्रांतीय दोनों के लिए विधान परिषदों के आकार में वृद्धि की शुरुआत की। परिषद को वित्तीय विवरण पर चर्चा करने और एक प्रस्ताव पेश करने का अधिकार भी प्रदान किया गया था, हालाँकि, उन्हें मतदान की शक्ति प्रदान नहीं की गई थी।

1919-1947: स्वशासन का परिचय 

यह चरण संवैधानिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण अधिनियम के रूप में एक उल्लेखनीय स्थान रखता है, यानी, भारत सरकार अधिनियम, 1919 जो मॉन्टेग चेम्सफोर्ड रिपोर्ट के पारित होने का परिणाम था। इस अधिनियम ने संघीय ढांचे के विचार को प्रस्तुत करने के साथ-साथ जिम्मेदार सरकार की अवधारणा को स्थापित किया। पहली बार लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी। इसने प्रांतों में द्वैध शासन की अवधारणा भी पेश की थी। 

1919 के अधिनियम में विभिन्न कमियाँ थीं। इसके साथ ही, अंग्रेजों को बेहतर सुधार तैयार करने की बढ़ती मांग का सामना करना पड़ा और इसके परिणामस्वरूप साइमन कमीशन की नियुक्ति हुई थी। आयोग द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जिसके बाद गोलमेज सम्मेलन (राउंड टेबल कांफ्रेंस) में रिपोर्ट पर चर्चा की गई। इस सम्मेलन में ब्रिटिश सरकार के सदस्यों के साथ-साथ राज्य शासक भी शामिल थे। रिपोर्ट की सिफ़ारिशों और सम्मेलन में हुई चर्चा के बाद भारत सरकार अधिनियम, 1935 (इसके बाद 1935 का अधिनियम कहा जायेगा) पारित किया गया था। 

भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने केंद्रीय स्तर पर द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत की जिसे शुरुआत में प्रांतीय स्तर पर स्थापित किया गया था। इस अधिनियम ने आधिकारिक तौर पर प्रांतों की स्वायत्तता की शुरुआत को चिह्नित किया था। इसने संघीय विधायिका की अवधारणा को भी स्थापित किया जिसमें दो सदन शामिल थे, अर्थात् राज्य परिषद और विधान सभा। एक बेहतर अलग विधायी प्रणाली के साथ एक अधिक स्थिर और विनियमित सरकार तैयार की गई। साथ ही, केंद्र और प्रांतों के बीच विधायी शक्ति के वितरण का प्रावधान भी पेश किया गया था। इतना ही नहीं, इस अधिनियम ने एक संघीय न्यायालय की भी स्थापना की थी। इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ 6 अन्य न्यायाधीशों की अधिकतम शक्ति होनी चाहिए थी।

भारतीय अभी भी अंग्रेजों से खुश नहीं थे और स्वराज चाहते थे। इसलिए, अंग्रेजों ने तब सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स को भारतीय नेताओं के साथ बातचीत करने और विश्व युद्ध में उनका सहयोग सुनिश्चित करने के लिए भेजा। कुछ प्रस्ताव जैसे संवैधानिक निकाय का निर्माण, नियंत्रण और रक्षा की ज़िम्मेदारी आदि अंग्रेजों द्वारा दिए गए थे, हालाँकि, भारतीयों ने उन्हें अस्वीकार कर दिया। भारतीय कैबिनेट सरकार में कांग्रेस चाहते थे। 

बाद में, 1946 में कैबिनेट मिशन अंग्रेजों की कुछ सिफ़ारिशों के साथ भारत आया, जिन्हें स्वीकार कर लिया गया। प्रस्ताव में क्राउन की सर्वोपरिता की समाप्ति, संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा की स्थापना, एक अंतरिम सरकार की स्थापना और ब्रिटिश भारत के साथ-साथ राज्यों दोनों का गठन करने वाले भारतीय संघ का अस्तित्व शामिल था। 

1947 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम ने पंद्रह अगस्त, 1947 से दो स्वतंत्र डोमिनियन, अर्थात् भारत और पाकिस्तान की स्थापना का प्रावधान किया। प्रत्येक डोमिनियन के लिए एक गवर्नर-जनरल को राजा द्वारा नियुक्त किया जाना था। इस अधिनियम ने दोनों डोमिनियनों की संविधान सभाओं को अपने क्षेत्रों के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया। इस अधिनियम ने भारत में ब्रिटिश शासन की सर्वोपरिता को समाप्त कर दिया था। इसमें आगे कहा गया कि जब तक डोमिनियन अपने-अपने संविधान नहीं बनाते, तब तक उन पर 1935 के अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार शासन किया जाएगा। इस प्रकार, भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया था।

1947-1950: नये संविधान का निर्माण 

अंग्रेजों का शासन समाप्त होने के साथ ही भारतीय नेताओं के सामने एक नई चुनौती खड़ी थी। वे चाहते थे कि भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में खड़ा हो, साथ ही समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित लोकतंत्र की स्थापना हो। 

संविधान सभा ने कई बहसों और बैठकों के बाद, जनवरी 1948 में भारतीय संविधान का पहला मसौदा जारी किया। 1948 में प्रकाशित संविधान के मसौदे में संशोधन का सुझाव देने के लिए नागरिकों को आठ महीने का समय दिया गया था। 2 साल 11 महीने और 18 दिन की बैठक के बाद में भारत को अपना संविधान प्राप्त हुआ था। प्रारंभ में, संविधान बाईस भागों और आठ अनुसूचियों में फैले 395 अनुच्छेदों का एक संकलन था। 

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं 

प्रत्येक संविधान अपने तरीके से अनोखा है। भारतीय संविधान का विकास बीसवीं सदी के मध्य में हुआ था जिससे एक तरह से संविधान निर्माण में लाभ हुआ था। इस समय तक, दुनिया भर के विभिन्न देशों ने अपना संविधान विकसित कर लिया था। इससे निर्माताओं को विभिन्न कानूनों, नियमों, सरकारी प्रणालियों आदि से संबंधित बड़ी मात्रा में ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिली। इन संविधानों का विश्लेषण करने और विभिन्न संविधानों से क्या प्रावधान लिए जा सकते हैं, यह समझने से हमारे संविधान को बेहतर बनाने में मदद मिली। दुनिया के विभिन्न हिस्सों से अलग-अलग कानूनों का प्रभाव काफी व्यापक है। हमारा संविधान अपने अनोखे ढंग से विशिष्ट विशेषताओं वाला एक उत्कृष्ट दस्तावेज़ साबित हुआ। हालाँकि हमने कुछ प्रावधान अन्य देशों के संविधानों से लिए होंगे, लेकिन हमारे संविधान ने एक अलग रास्ता, नए पैटर्न और अपने स्वयं के दृष्टिकोण बनाए हैं। आइए भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताओं पर एक नजर डालते हैं।

सबसे लंबा लिखित संविधान 

हमारा संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है जिसमें लगभग सभी महत्वपूर्ण पहलुओं से संबंधित विस्तृत प्रावधान हैं जिन पर एक लोकतांत्रिक देश को विचार करना चाहिए। संविधान के मूल मसौदे में 395 अनुच्छेद और आठ अनुसूचियाँ शामिल थीं। 

विस्तृत प्रस्तावना 

संविधान की प्रस्तावना, एक बहुत ही विस्तृत दस्तावेज़ है। यह कोई शक्ति नहीं देती, बल्कि यह संविधान को एक उद्देश्य और दिशा देती है। 

समाजवादी, कल्याणकारी और धर्मनिरपेक्ष राज्य 

प्रारंभ में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी (सोशलिस्ट)’ शब्द मौजूद नहीं था। इसे 1976 में 42वें संशोधन द्वारा शामिल किया गया था। साथ ही हमारा संविधान भारत को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करता है। संविधान यह भी कहता है कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, अर्थात, धर्म का देश होने के बावजूद, भारतीय संविधान भारत के एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की वकालत करता है। 

सरकार का संसदीय स्वरूप 

संविधान केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकार का संसदीय स्वरूप स्थापित करता है। इस प्रणाली में सरकार का कार्यकारी अंग निर्वाचित (इलेक्टेड) विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है। 

मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य 

संविधान लोगों को कुछ अधिकारों की गारंटी देता है और ये अधिकार कानून द्वारा लागू करने योग्य हैं। ये मौलिक अधिकार संविधान के भाग IV के तहत निहित हैं। इसके अलावा यह लोगों को कुछ कर्तव्य और दायित्व भी प्रदान करता है जो संविधान के भाग IV A में निहित हैं। 

संघीय (फेडरल) संरचना

भारत का संविधान संघीय प्रकृति का है। भारतीय संविधान दोहरी राजनीति अर्थात केंद्र और राज्य स्तर पर सरकार स्थापित करता है। 

स्वतंत्र न्यायपालिका

भारत का संविधान एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना करता है, जो सरकार के अन्य अंगों से मुक्त होती है। 

कठोरता और लचीलेपन का अनोखा मिश्रण

संविधान में संशोधन की प्रक्रिया न तो बहुत लचीली है और न ही यह कठोर संविधान है, जिससे संशोधन की गुंजाइश शून्य हो जाती है। संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ है जिसमें कठोरता और लचीलेपन का अनोखा मिश्रण है। 

भारतीय संविधान के उद्देश्य जो प्रस्तावना में दिये गये हैं 

भारत का संविधान विविधता में एकता के प्रतीक को दर्शाता है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति और समुदाय के हितों की पर्याप्त रूप से रक्षा करने के लिए संविधान निर्माताओं द्वारा विशिष्ट रूप से तैयार किया गया है। संविधान की उल्लेखनीय विशेषताएं, संविधान द्वारा प्राप्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निर्माताओं द्वारा किए गए कठिन कार्य का उदाहरण देती हैं। 

जैसा कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने कहा था, “संविधान केवल वकीलों का दस्तावेज नहीं है, यह जीवन का वाहन है, और इसकी आत्मा हमेशा युग की भावना है।” संविधान के निर्माता, शासन का एक आदर्श मॉडल चाहते थे जो लोगों की जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए देश की सेवा करेगा। उस समय के कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों की दूरदर्शिता और दूरदर्शी नेतृत्व से यह संविधान देश में समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व को बनाए रखने के साथ-साथ देश में सद्भाव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया था। महत्वपूर्ण महत्व के इस दस्तावेज़ ने पिछले 75 वर्षों से देश की सेवा की है और राष्ट्र के लिए एक प्रकाशस्तंभ के रूप में काम किया है।  

भविष्य के लिए एक लंबी दृष्टि को ध्यान में रखते हुए, संविधान ने जिन उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया, उनका उल्लेख इस प्रकार किया गया है:

संविधान की प्रस्तावना के शुरुआती शब्द, यानी, “हम भारत के लोग”, स्पष्ट घोषणा करते हैं कि अंतिम संप्रभुता भारत के लोगों के पास है और सरकार और उसके अंग भारत के लोगों से अपनी शक्ति प्राप्त करते हैं। यह शब्द पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता दिखाता है। एक ऐसा देश जो सभी बाहरी ताकतों और अपनी इच्छा से मुक्त है। 

हमारे संविधान में कई प्रावधान हैं जो एक कल्याणकारी राज्य को बढ़ावा देने की हमारे देश की नीति को स्पष्ट करते हैं, जो अस्तित्व में सभी क्षेत्रों में शोषण से मुक्त है। राज्य सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए काम करने के लिए बाध्य है, जहां सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं से ऊपर है। समाजवाद का मुख्य उद्देश्य “सभी को बुनियादी न्यूनतम राशि” प्रदान करना है ।

धर्मनिरपेक्षता

इस शब्द का अर्थ है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों को समान सुरक्षा मिलेगी। हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता की आदर्श अवधारणा इस बात पर कायम है कि राज्य किसी भी धर्म या धार्मिक विचार से निर्देशित नहीं होता है। 

‘न्याय’ शब्द में तीन तत्व शामिल हैं जो परिभाषा को पूरा करते हैं, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय हैं। समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए नागरिकों के बीच न्याय आवश्यक है। भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से न्याय का वादा किया जाता है।

‘समानता’ शब्द का अर्थ है कि समाज के किसी भी वर्ग को कोई विशेष विशेषाधिकार नहीं है और सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के हर चीज के लिए समान अवसर दिए गए हैं। इसका अर्थ है समाज से सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करके लोगों के रहने के लिए एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करना। कानून के समक्ष हर कोई समान है। 

‘स्वतंत्रता’ शब्द का अर्थ लोगों को अपने जीवन का तरीका चुनने और समाज में राजनीतिक विचार और व्यवहार रखने की स्वतंत्रता है। इसका मतलब है कि नागरिकों पर उनके विचारों, भावनाओं और विचारों के संदर्भ में कोई अनुचित प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन आज़ादी का मतलब कुछ भी करने की आजादी नहीं है, व्यक्ति कुछ भी कर सकता है लेकिन कानून द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर ही। जो कुछ भी सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करता है वह स्वतंत्रता के अंतर्गत नहीं आ सकता। यह समझना महत्वपूर्ण है कि स्वतंत्रता का अर्थ किसी भी तरह से ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ नहीं है। ये सीमाएँ या उचित प्रतिबंध संविधान द्वारा स्वतंत्रता के नाम पर किसी क्षति से बचने के लिए निर्धारित किए गए हैं।

‘बंधुता’ शब्द का अर्थ भाईचारे की भावना और देश और सभी लोगों के प्रति भावनात्मक लगाव है। यह उस भावना को संदर्भित करता है जो यह विश्वास करने में मदद करती है कि हर कोई एक ही मिट्टी की संतान है और एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। भाईचारा सामाजिक मानदंडों या नियमों से ऊपर है, यह जाति, उम्र या लिंग से ऊपर का रिश्ता है। बंधुत्व राष्ट्र में गरिमा और एकता को बढ़ावा देने में मदद करता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना किसी को कोई शक्ति या श्रेष्ठता प्रदान नहीं करती है जबकि यह संविधान को दिशा और उद्देश्य देती है। यह केवल संविधान के मूल सिद्धांतों की जानकारी देता है। 

राष्ट्र की एकता और अखंडता 

प्रस्तावना और संविधान में बंधुता शब्द पर जोर देकर यह स्पष्ट किया गया है कि देश अपने लोगों के बीच एकता को बढ़ावा देना चाहता है। हमारे देश की आजादी, जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की देन है, को बरकरार रखने के लिए राष्ट्र की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखना बहुत महत्वपूर्ण है। 

प्रस्तावना क्या है?

सामान्य तौर पर, कानूनी दस्तावेज़ के आदर्शों और लक्ष्यों की बेहतर समझ को सुविधाजनक बनाने के लिए दुनिया भर के संविधानों में एक प्रस्तावना शामिल होती है। हालाँकि, विभिन्न संविधानों की प्रस्तावना की लंबाई, पैटर्न, सामग्री और स्वरूप एक-दूसरे से भिन्न हो सकते हैं, कभी-कभी महत्वपूर्ण रूप से जबकि कभी-कभी बहुत मामूली अंतर होता है। सीधे शब्दों में कहें तो प्रस्तावना किसी अधिनियम, क़ानून, विधेयक या किसी अन्य दस्तावेज़ का एक परिचयात्मक भाग के अलावा और कुछ नहीं है। यह इस बात का संक्षिप्त विचार देता है कि दस्तावेज़ का वास्तव में क्या तात्पर्य है। 

भारत के संविधान की प्रस्तावना संविधान का एक परिचय है जिसमें देश के लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए नियमों और विनियमों का सेट शामिल है। इसमें नागरिकों की प्रेरणा और आदर्श वाक्य की व्याख्या की गई है। प्रस्तावना को संविधान की शुरुआत माना जा सकता है जो संविधान के आधार पर प्रकाश डालता है। 

अर्थ एवं परिभाषा

किसी क़ानून की प्रस्तावना कारणों का प्रारंभिक विवरण है, जो अंततः उस क़ानून के अधिनियमन या पारित होने को वांछनीय बनाता है। प्रस्तावना, क़ानून या किसी अन्य दस्तावेज़ का परिचयात्मक हिस्सा होने के कारण आम तौर पर दस्तावेज़ के मुख्य सार की शुरुआत से पहले रखी जाती है। प्रस्तावना को एक घोषणा के रूप में भी माना जा सकता है जो विधायिका क़ानून के अधिनियमन के कारणों को शामिल करते हुए करती है। यह वह परिचयात्मक भाग है जो क़ानून के प्रावधानों और उन प्रावधानों में मौजूद किसी भी अस्पष्टता की व्याख्या में मदद करता है। इसका उपयोग क़ानून की संक्षिप्त व्याख्या के रूप में किया जा सकता है।

ऑक्सफोर्ड एडवांस्ड लर्नर्स डिक्शनरी में परिभाषित ‘प्रस्तावना’ शब्द एक प्रारंभिक वक्तव्य को दर्शाता है जो किसी भी पुस्तक, दस्तावेज़, विधेयक, क़ानून आदि के उद्देश्य को स्पष्ट करता है। जबकि, इस शब्द को चैंबर्स ट्वेंटिएथ सेंचुरी डिक्शनरी में मुख्य रूप से संसद के एक अधिनियम की प्रस्तावना या परिचय, जो इसके अधिनियमन के कारण और उद्देश्य बताता है, के रूप में परिभाषित किया गया है। 

कानूनी परिभाषा के बारे में बात करते हुए, प्रसिद्ध ब्लैक लॉ डिक्शनरी इसे एक ऐसे खंड के रूप में परिभाषित करती है जो संविधान या क़ानून की शुरुआत में मौजूद होता है, जिसमें इसके अधिनियमन और उन उद्देश्यों के बारे में स्पष्टीकरण शामिल होता है जिनके लिए इसे पारित किया गया है। मरियम-वेबस्टर डिक्शनरी इसे कानून के इरादे को स्पष्ट करने और अधिनियमन के कारणों का उल्लेख करने के उद्देश्य से दिए गए एक परिचयात्मक बयान के रूप में परिभाषित करती है। जबकि, ब्रिटानिका डिक्शनरी इसे एक बयान के रूप में परिभाषित करती है जो एक कानूनी दस्तावेज़ की शुरूआत में दिया जाता है, जो आम तौर पर इसके बाद के हिस्सों के कारण और स्पष्टीकरण देता है। 

प्रस्तावना के कार्य

ऐसा कहा जाता है कि प्रस्तावना किसी दस्तावेज़, क़ानून, विधेयक या अधिनियम के लिए एक मंच तैयार करती है। यह एक परिचयात्मक या अभिव्यक्ति का बयान है जो संविधान के मूल्यों, लक्ष्यों, उद्देश्यों और सिद्धांतों को रेखांकित करता है। यह विशेष विधेयक, क़ानून आदि के निर्माताओं के लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्रतिबिंबित करने वाली प्रस्तावना है। इसका प्रमुख कार्य अधिनियम के विशिष्ट तथ्यों को पढ़ना और समझाना है, जिन्हें अधिनियम को पढ़ने से पहले समझाना और सुनाना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, इसका उपयोग एक दस्तावेज़ के रूप में भी किया जा सकता है जो दस्तावेज़ में निहित कुछ अभिव्यक्तियों के दायरे को प्रतिबंधित करेगा या अधिनियम में मौजूद परिभाषाओं के लिए स्पष्टीकरण और परिचय प्रदान करेगा। 

प्रस्तावना को एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है जो क़ानून के इरादों को दर्शाता है और क़ानून को समझने की कुंजी है। आम तौर पर, यह अधिनियम के पीछे विधायिका के उद्देश्य और उद्देश्य को बताता है या बताने का दावा करता है। सीधे शब्दों में कहें तो, प्रस्तावना का अर्थ किसी भी खंड, धारा या अनुसूची (शेड्यूल) में मौजूद किसी भी अस्पष्टता को स्पष्ट करने के उद्देश्य से परामर्श में वैध सहायता के रूप में कार्य करना है। इस प्रकार, एक प्रस्तावना दस्तावेज़ के स्रोत को दर्शाती है, इसमें दस्तावेज़ का अधिनियमित खंड शामिल होता है, और उन अधिकारों और स्वतंत्रता की घोषणा करता है जो दस्तावेज़ प्रदान करेगा। 

इसके अलावा, प्रस्तावना का प्रमुख रूप से व्याख्यात्मक महत्व होता है। यह दस्तावेज़ के प्रावधानों की व्याख्या करने में मदद करता है, और यह उन क़ानूनों की व्याख्या के स्रोत के रूप में भी कार्य करता है जो उस प्रस्तावना के दस्तावेज़ के उत्पाद हैं।

संविधान की प्रस्तावना का उद्देश्य संविधान के प्रावधानों के पीछे के उद्देश्य का परिचय देना है। जिस प्रेरणा और सार के आधार पर भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया गया है वह प्रस्तावना में सन्निहित है। यह संविधान के लक्ष्यों और सिद्धांतों पर प्रकाश डालने वाला भाग है। भारत के संविधान की प्रस्तावना संविधान की विचारधारा और अधिकार का प्रतीक है।

प्रस्तावना संविधान के प्रावधानों की बेहतर व्याख्या का मार्ग प्रशस्त करती है। इस प्रकार, यह संविधान के प्रावधानों की व्याख्या करने में एक वैध सहायता है। संविधान सभा की बहसों में, सर अल्लादी कृष्णास्वामी ने कहा कि प्रस्तावना एक ऐसी चीज़ है जो यह व्यक्त करती है कि “हमने इतने लंबे समय तक क्या सोचा या सपना देखा था” । भारतीय संविधान के निर्माताओं द्वारा इसे “गौरव का स्थान” दिया गया है। यह निर्माताओं के दिमाग को खोलता है और उन्हें संविधान के विभिन्न प्रावधानों को लागू करने के पीछे के सामान्य उद्देश्य को साकार करने में मदद करता है। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के मामले में न्यायमूर्ति शेलट और न्यायमूर्ति ग्रोवर ने था कहा कि भारत के संविधान की प्रस्तावना उन सभी आदर्शों और उद्देश्यों को ईमानदारी से धार्मिक रूप में प्रस्तुत करती है जिनके लिए भारत ने इतने लंबे समय से सपना देखा है और पूरे औपनिवेशिक काल के दौरान संघर्ष किया है।

प्रस्तावना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

संविधान सभा को जो पहला काम करना था उनमें से एक लक्ष्य, उद्देश्यों और मार्गदर्शक सिद्धांतों को बनाना और तैयार करना था जो संविधान का आधार बनेंगे। जिन सिद्धांतों और उद्देश्यों को तैयार किया जाना था, वे उस लोकतांत्रिक भावना जिसके लिए भारत का संविधान खड़ा था को प्रतिबिंबित करने वाले थे। 

1946 में राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की गई थी। समिति ने 22 जुलाई की अपनी बैठक में एक ‘घोषणा’ का मसौदा तैयार किया जिसमें संविधान के उद्देश्य शामिल थे। इस मसौदे की सामग्री के आधार पर, नेहरू ने एक मसौदा प्रस्ताव पेश किया, जिसे ‘वस्तुनिष्ठ संकल्प (ऑब्जेक्टिव रिजॉल्यूशन)’ के रूप में जाना गया था। इसे 13 दिसंबर 1946 को संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। इसके अलावा नेहरू ने एक लंबा भाषण दिया जिसमें मुख्य रूप से संविधान की व्यापक विशेषताओं, उद्देश्यों और आकांक्षाओं के बारे में बात की गई थी। लंबी बहस के बाद इस प्रस्ताव को 22 जनवरी, 1947 को विधानसभा द्वारा अपनाया गया था। 

इस वस्तुनिष्ठ संकल्प की मुख्य सामग्री संक्षेप में इस प्रकार बताई गई है:

  • भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य घोषित करने का संविधान सभा का दृढ़ संकल्प जो भविष्य में संविधान द्वारा शासित होगा। 
  • कि, भारत के वे क्षेत्र जो अंग्रेजों के अधीन थे और अन्य प्रांत जो अंग्रेजों के अप्रत्यक्ष शासन के अधीन थे, मिलकर ‘भारत संघ’ बनाएंगे।
  • उक्त क्षेत्र जो भारत संघ का हिस्सा बनेंगे, स्वायत्त इकाइयाँ होंगी, जिनके पास शक्तियाँ होंगी और वे सरकार के रूप में कार्य करेंगी। 
  • कि, राज्य इकाइयों की शक्तियाँ और अधिकार स्वतंत्र संप्रभु के लोगों से प्राप्त होंगे।
  • भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की सुरक्षा और गारंटी दी जाएगी;  साथ ही पद, अवसर और कानून के समक्ष समानता; कानून और सार्वजनिक नैतिकता के अधीन विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, विश्वास, पूजा, व्यवसाय, संघ और कार्रवाई की स्वतंत्रता दी जाएगी।
  • अल्पसंख्यकों, दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों और आदिवासी क्षेत्रों के लोगों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाएगी। 
  • कि, न्याय और सभ्य राष्ट्रों के कानून के अनुसार गणतंत्र के पास भूमि, समुद्र और वायु पर संप्रभु अधिकार होंगे, और क्षेत्रों की अखंडता बनाए रखी जाएगी।  
  • कि, देश का दुनिया में एक उचित और सम्मानित स्थान है और वह शांति, सद्भाव और मानव जाति के कल्याण को बढ़ावा देने में योगदान देने को तैयार है।

संस्थापकों ने वस्तुनिष्ठ संकल्प को “कुछ ऐसा जो मानव जाति में जीवन की सांस लेता है” के रूप में वर्णित किया था। इसे एक प्रकार की आध्यात्मिक प्रस्तावना के रूप में भी माना जाता था जो संविधान के प्रत्येक धारा, खंड और अनुसूची में व्याप्त होगी। 

इसके बाद, बीएन राव ने प्रस्तावना का एक मसौदा तैयार किया जिसे इस प्रकार पढ़ा जा सकता है; “हम, भारत के लोग, सबकी भलाई को बढ़ावा देना चाहते हैं, अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से इस संविधान को अधिनियमित करते हैं, अपनाते हैं और खुद को सौंपते हैं”।

बीएन राव द्वारा तय किए गए मसौदे को 4 जुलाई, 1947 को संविधान सभा के समक्ष दोबारा प्रस्तुत किया गया था। संघ संविधान सभा ने निर्णय लिया कि भारत के संविधान की प्रस्तावना वस्तुनिष्ठ संकल्प पर आधारित होगी। बाद में, नेहरू ने सुझाव दिया कि प्रस्तावना का मसौदा तैयार करने को विभाजन तक स्थगित कर दिया जाना चाहिए। 

विधानसभा की मसौदा समिति ने निर्णय लिया कि प्रस्तावना को नए भारत की आवश्यक विशेषताओं और इसके बुनियादी सामाजिक-राजनीतिक उद्देश्यों के साथ-साथ उद्देश्य प्रस्ताव में निपटाए गए अन्य मामलों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। कई बैठकों और लंबी बहस के बाद, संविधान द्वारा एक पुनः प्रारूपित प्रस्तावना प्रस्तुत की गई थी। कुछ बदलावों के बाद जैसे ‘संप्रभु भारतीय गणराज्य’ शब्द को ‘संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य’ अभिव्यक्ति से बदलना, ‘राष्ट्र की एकता’ शब्द को ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ से बदल दिया गया, जिसमें ‘बंधुता’ शब्द जोड़ा गया जो था वर्तमान में मूल रूप से वस्तुनिष्ठ संकल्प में नहीं है, और अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सुरक्षा प्रावधानों से संबंधित खंड को समाप्त कर दिया गया है। 

कई संशोधन पेश किए जाने और खारिज किए जाने के बाद, प्रस्तावना तैयार की गई जिसमें काफी हद तक वस्तुनिष्ठ संकल्प की भाषा और भावना शामिल थी। संविधान को अंतिम रूप देने के बाद प्रस्तावना के प्रारूप को अंतिम रूप दिया गया ताकि यह संविधान के अनुरूप हो सके। 

प्रस्तावना को परिभाषित करने के लिए प्रख्यात व्यक्तियों के कुछ शब्द

उपरोक्त चर्चा स्पष्ट रूप से बताती है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना न केवल भारत के संविधान की व्याख्या करने में बल्कि अधिनियम के इरादे और उद्देश्य को समझने, कुछ अभिव्यक्तियों की अस्पष्टता से निपटने आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नीचे कुछ वाक्यांश दिए गए हैं और कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा प्रस्तावना को परिभाषित करने के लिए प्रयुक्त कथन दिए है। 

मुख्य न्यायाधीश सर डायर का कहना है कि प्रस्तावना “संविधान के निर्माताओं के दिमाग को खोलने की कुंजी” है, श्री केएम मुंशी इसे “संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य की जन्मकुंडली” के रूप में बताते हैं, और सर अर्नेस्ट पार्कर इसे “संविधान के मुख्य वक्ता” के रूप में बताते हैं। सर पंडित ठाकुर दास भार्गव इसे “संविधान का सबसे कीमती हिस्सा, यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान की कुंजी है” के रूप में मानते हैं। नेहरू ने प्रस्तावना के लक्ष्यों और उद्देश्यों पर जोर देते हुए कहा कि यह एक “दृढ़ संकल्प और ठोस वादा” है।

भारत की प्रस्तावना और इसे अपनाने की तारीख किसने लिखी?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना मुख्यतः जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित ‘वस्तुनिष्ठ संकल्प’ पर आधारित है। जैसा कि उपरोक्त पैराग्राफ में चर्चा की गई है, श्री नेहरू ने वस्तुनिष्ठ संकल्प, जिसके आधार पर वर्तमान प्रस्तावना मौजूद है, 13 दिसंबर, 1946 को पेश किया था और 22 जनवरी 1947, संविधान सभा द्वारा संकल्प की स्वीकृति की तारीख को चिह्नित करता है। 

संविधान की प्रस्तावना, जिसे संविधान की भावना, रीढ़ और आत्मा भी कहा जाता है, वह सब कुछ दर्शाती है जिसे संविधान हासिल करना चाहता है। इसे 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था और इसकी प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) तिथि 26 जनवरी 1950 है जिसे गणतंत्र दिवस के रूप में भी जाना जाता है। 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के घटक

प्रस्तावना के निम्नलिखित घटक हैं:

हम भारत के लोग 

प्रस्तावना के शुरुआती शब्दों से पता चलता है कि भारत के लोग सत्ता का स्रोत हैं और भारत का संविधान भारत के लोगों की इच्छा का परिणाम है। इसका मतलब है कि अपने प्रतिनिधियों को चुनने की शक्ति नागरिकों के पास है और उन्हें अपने प्रतिनिधियों की आलोचना करने का भी अधिकार है। 

भारत संघ बनाम मदन गोपाल काबरा (1954) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारत के लोग ही भारतीय संविधान के स्रोत हैं, जैसा कि प्रस्तावना में लिखा गया है।

संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, गणतंत्र, लोकतांत्रिक

प्रस्तावना लोगों की इच्छा से भारत को ‘संप्रभु’, ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’, ‘लोकतांत्रिक’ और ‘गणतंत्र’ घोषित करती है। ये चार शब्द भारतीय राज्य की प्रकृति को दर्शाते हैं। 

आइए इन शब्दों का संक्षिप्त अवलोकन करें।

संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि भारत एक संप्रभु राज्य है। ‘संप्रभु’ शब्द का अर्थ राज्य की स्वतंत्र सत्ता है। इसका मतलब है कि राज्य का हर विषय पर नियंत्रण है और किसी अन्य प्राधिकारी या बाहरी शक्ति का उस पर नियंत्रण नहीं है। इसलिए, हमारे देश की विधायिका के पास संविधान द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को ध्यान में रखते हुए देश में कानून बनाने की शक्तियां हैं। 

सामान्यतः संप्रभुता दो प्रकार की होती है: बाहरी और आंतरिक। अंतर्राष्ट्रीय कानून में बाहरी संप्रभुता का अर्थ ऐसी संप्रभुता है जिसका अर्थ है अन्य राज्यों के विरुद्ध राज्य की स्वतंत्रता जबकि आंतरिक संप्रभुता राज्य और उसमें रहने वाले लोगों के बीच संबंधों की बात करती है। 

सिंथेटिक एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1989) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि ‘संप्रभु’ शब्द का अर्थ है कि राज्य को संविधान द्वारा दिए गए प्रतिबंधों के भीतर सब कुछ नियंत्रित करने का अधिकार है। संप्रभु का अर्थ सर्वोच्च या स्वतंत्रता है। इस मामले ने बाहरी और आंतरिक संप्रभु के बीच अंतर करने में मदद की। इस मामले में प्रस्तावित किया गया कि ‘किसी भी देश का अपना संविधान तब तक नहीं हो सकता जब तक वह संप्रभु न हो।’ 

‘समाजवादी’ शब्द आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन, 1976 के बाद जोड़ा गया था। समाजवादी शब्द लोकतांत्रिक समाजवाद को दर्शाता है। इसका मतलब एक राजनीतिक-आर्थिक व्यवस्था से है जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करती है। 

श्रीमती इंदिरा गांधी ने समाजवादी को ‘अवसर की समानता’ या ‘लोगों के लिए बेहतर जीवन’ के रूप में समझाया था। उन्होंने कहा कि समाजवाद लोकतंत्र की तरह है, हर किसी की अपनी-अपनी व्याख्याएं होती हैं लेकिन भारत में समाजवाद लोगों के बेहतर जीवन का एक रास्ता है। 

  • एक्सेल वेयर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1978) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि समाजवादी शब्द जोड़ने के साथ, राष्ट्रीयकरण और उद्योग (इंडस्ट्री) के राज्य स्वामित्व के पक्ष में निर्णय जानने के लिए एक पोर्टल खोला गया था। लेकिन समाजवाद और सामाजिक न्याय का सिद्धांत समाज के एक अलग वर्ग, मुख्य रूप से निजी मालिकों के हितों की अनदेखी नहीं कर सकता है। 
  • डी.एस. नकारा बनाम भारत संघ (1982) के मामले में, न्यायालय ने कहा कि “समाजवाद का मूल उद्देश्य देश में रहने वाले लोगों को एक सभ्य जीवन स्तर प्रदान करना है और उनके जन्म के दिन से उनके मरने के दिन तक ही उनकी रक्षा करना है।” 

धर्मनिरपेक्ष

‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भी आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़ा गया था। संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बताता है क्योंकि राज्य का कोई भी अपना आधिकारिक धर्म नहीं है। नागरिकों का जीवन के प्रति अपना- अपना दृष्टिकोण है और वे अपनी इच्छानुसार अपना धर्म चुन सकते हैं। राज्य लोगों को अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है। राज्य सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है, समान सम्मान देता है और उनके बीच कोई भेदभाव नहीं कर सकता है। राज्य को लोगों की पसंद के धर्म, आस्था या पूजा की मूर्ति के मामले में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। 

धर्मनिरपेक्षता के महत्वपूर्ण घटक मिनलिखित हैं:

  • समानता का अधिकार संविधान के  अनुच्छेद 14 द्वारा गारंटीकृत है।
  • संविधान के  अनुच्छेद 15 और 16 द्वारा धर्म, जाति आदि जैसे किसी भी आधार पर भेदभाव निषिद्ध है।
  • संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 नागरिकों की सभी स्वतंत्रताओं की चर्चा करते हैं, जिनमें बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल है। 
  • अनुच्छेद 24 से अनुच्छेद 28 तक धर्म का पालन करने से संबंधित अधिकार शामिल हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद 44 ने सभी नागरिकों को समान मानते हुए समान नागरिक कानून बनाने के राज्य के मौलिक कर्तव्य को त्याग दिया।

एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ के द्वारा धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को संविधान की मूल विशेषता के रूप में पाया गया था। 

बाल पाटिल बनाम भारत संघ (2005) के मामले में, न्यायालय ने माना कि सभी धर्मों और धार्मिक समूहों के साथ बराबर रूप से और समान सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है जहां लोगों को अपना धर्म चुनने का अधिकार है। लेकिन राज्य का अपना कोई भी विशिष्ट धर्म नहीं होगा। 

एम. पी. गोपालकृष्णन नायर बनाम केरल राज्य (2005) के मामले में, न्यायालय द्वारा कहा गया कि धर्मनिरपेक्ष राज्य नास्तिक समाज से अलग है, जिसका अर्थ है कि राज्य हर धर्म की अनुमति देता है और किसी का अनादर नहीं करता है। 

लोकतांत्रिक

लोकतांत्रिक जिसे अंग्रेजी में ‘डेमोक्रेटिक’ कहा जाता है वह ग्रीक शब्दों ‘डेमोस’ और ‘क्रेटोस’ से लिया गया है जहां ‘डेमोस’ का अर्थ ‘लोग’ है और ‘क्रेटोस’ का अर्थ ‘अधिकार’ है। इन शब्दों का सामूहिक अर्थ है कि सरकार का निर्माण लोगों द्वारा किया जाता है। भारत एक लोकतांत्रिक राज्य है क्योंकि लोग सभी स्तरों पर, यानी संघ, राज्य और स्थानीय या बुनियादी स्तर पर अपनी सरकार चुनते हैं। हर किसी को अपनी जाति, पंथ या लिंग की परवाह किए बिना मतदान करने का अधिकार है। इसलिए, सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप में, प्रत्येक व्यक्ति की प्रशासन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी होती है। 

मोहन लाल बनाम राय बरेली के जिला मजिस्ट्रेट (1992)  के मामले में, न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र राजनीति से संबंधित एक दार्शनिक (फिलोसॉफिकल) विषय है जहां लोग सरकार बनाने के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं, जहां मूल सिद्धांत अल्पसंख्यकों के साथ वैसा ही व्यवहार करना है जैसा लोग बहुसंख्यकों के साथ व्यवहार करते हैं। सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप में प्रत्येक नागरिक कानून के समक्ष समान है। 

भारत संघ बनाम एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (2002) के मामले में, न्यायालय का कहना है कि एक सफल लोकतंत्र की बुनियादी आवश्यकता लोगों की जागरूकता है। सरकार का लोकतांत्रिक स्वरूप निष्पक्ष चुनाव के बिना जीवित नहीं रह सकता क्योंकि निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आत्मा हैं। लोकतंत्र मानवीय गरिमा, समानता और कानून के शासन की रक्षा करके जीवन के तरीके को भी बेहतर बनाता है। 

भारत में सरकार का स्वरूप गणतांत्रिक है क्योंकि यहां पर राज्य का प्रमुख निर्वाचित होता है, और राजा या रानी की तरह वंशानुगत राजा नही होता है। गणतंत्र शब्द को अंग्रेजी में ‘रिपब्लिक’ कहा जाता है जिसे ‘रेस पब्लिका’ से लिया गया है जिसका अर्थ है सार्वजनिक संपत्ति या राष्ट्रमंडल। इसका मतलब है कि एक निश्चित अवधि के लिए राज्य के प्रमुख को चुनने की शक्ति लोगों के पास है। तो, निष्कर्ष में, ‘गणतंत्र’ शब्द एक ऐसी सरकार को दर्शाता है जहां राज्य का प्रमुख किसी जन्मसिद्ध अधिकार के बजाय लोगों द्वारा चुना जाता है। हमारी प्रस्तावना में सन्निहित यह शब्द दृढ़ता से दर्शाता है कि देश लोगों द्वारा चलाया जाएगा, न कि चुने गए लोगों की इच्छा और मर्जी से। देश के लोगों की इच्छा को प्राथमिकता में रखते हुए हर चीज और किसी भी चीज़ का कानून बनाया जाएगा, निष्पादित किया जाएगा और शासित किया जाएगा। 

न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुआ

प्रस्तावना में आगे देश के सभी नागरिकों को ‘न्याय’, ‘स्वतंत्रता’, ‘समानता’ और ‘बंधुता’ सुरक्षित करने की घोषणा की गई है। 

जैसा कि पहले भी चर्चा की गई है, न्याय शब्द में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय शामिल होता है। 

  • सामाजिक न्याय – सामाजिक न्याय का अर्थ है कि संविधान जाति, पंथ, लिंग, धर्म इत्यादि जैसे किसी भी आधार पर भेदभाव के बिना एक समाज बनाना चाहता है जहां कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की मदद करके लोगों को समान सामाजिक स्थिति प्राप्त हो। संविधान समाज में समानता को नुकसान पहुंचाने वाले सभी शोषणों को खत्म करने का प्रयास करता है।
  • आर्थिक न्याय – आर्थिक न्याय का अर्थ है कि लोगों के साथ उनकी संपत्ति, आय और आर्थिक स्थिति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। इसका मतलब है कि धन का वितरण उनके काम के आधार पर किया जाना चाहिए, किसी अन्य कारण से नहीं। प्रत्येक व्यक्ति को समान पद के लिए समान वेतन मिलना चाहिए और सभी लोगों को अपने जीवन यापन के लिए कमाने के अवसर मिलने चाहिए।
  • राजनीतिक न्याय – राजनीतिक न्याय का अर्थ है सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के राजनीतिक अवसरों में भाग लेने का समान, स्वतंत्र और निष्पक्ष अधिकार है। इसका मतलब है कि सभी को राजनीतिक कार्यालयों तक पहुंचने का समान अधिकार है और सरकार की प्रक्रियाओं में समान भागीदारी है। 

स्वतंत्रता शब्द में विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, और पूजा की स्वतंत्रता  शामिल है। 

समानता शब्द का तात्पर्य प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान स्थिति और अवसर से है। 

अंत में, बंधुता शब्द का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा (डिग्निटी) की रक्षा करने की प्रतिज्ञा के साथ-साथ राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखना है।

अपनाने की तारीख

इसमें इसके अपनाने की तारीख शामिल है जो की 26 नवंबर, 1949 है। यहां यह ध्यान रखना उचित है कि प्रस्तावना का मसौदा भारतीय संविधान के निर्माण के बाद तैयार किया गया था। हालाँकि, दोनों की प्रारंभ तिथि 26 जनवरी 1950 ही दी गई है।

संविधान की व्याख्या में सहायता के रूप में प्रस्तावना 

जैसा कि नीचे चर्चा की गई है, सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है, हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि प्रस्तावना को भारतीय संविधान में दिए गए स्पष्ट प्रावधानों को खत्म करने का अधिकार मिल गया है। यदि संविधान में उल्लिखित किसी भी अनुच्छेद में प्रयुक्त शब्दों के दो अर्थ हैं या अस्पष्ट हैं, तो प्रस्तावना उस प्रावधान के उद्देश्य की व्याख्या और समझने में एक मूल्यवान सहायता के रूप में कार्य करती है। प्रस्तावना में निहित उद्देश्यों से काफी हद तक सहायता ली जा सकती है।

न्यायमूर्ति सीकरी के द्वारा केशवानंद भारती के मामले में प्रस्तावना के महत्व पर जोर देते हुए कहा गया कि, “मुझे ऐसा लगता है कि हमारे संविधान की प्रस्तावना अत्यधिक महत्वपूर्ण है और संविधान को प्रस्तावना में व्यक्त महान दृष्टिकोण की भव्यता के आलोक में पढ़ा और उसकी व्याख्या की जानि चाहिए।”

संविधान के  अनुच्छेद 368 के तहत संसद को दी गई संशोधन की शक्ति पर निहित सीमाएं लगाते समय प्रस्तावना का भी उपयोग किया गया और उस पर भरोसा किया गया था।

रणधीर सिंह बनाम भारत संघ (1982) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना के मुख्य शब्दों पर विचार करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 39(d) में “समान काम के लिए समान वेतन” भी शामिल है, जो लिंग की परवाह किए बिना एक संवैधानिक अधिकार है। हमारी प्रस्तावना स्पष्ट रूप से अपने लोगों को पद और अवसर की समानता प्रदान करने का प्रावधान करती है और इसके अनुसरण में, न्यायालय ने समान काम के लिए समान वेतन को संवैधानिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया है। 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना, किसी अधिनियम की प्रस्तावना से अलग है 

जहां तक ​​भारतीय संविधान की प्रस्तावना का सवाल है, यह किसी भी अन्य अधिनियम की प्रस्तावना से पूरी तरह अलग है। आम तौर पर, किसी भी अधिनियम की प्रस्तावना विधायिका द्वारा अधिनियमित नहीं की जाती है, और यही कारण है कि इसका उपयोग किसी अधिनियम के प्रावधानों की अस्पष्टता को दूर करने तक ही सीमित है। हालाँकि, जहाँ तक भारतीय संविधान की प्रस्तावना का सवाल है, इसे संविधान की तरह ही उसी तरीके और प्रक्रिया से संविधान सभा द्वारा अधिनियमित और अपनाया गया था। 

इस तथ्य को प्रस्तावना के इतिहास से और अधिक पुष्ट किया जा सकता है। प्रारंभ में, प्रस्तावना को वस्तुनिष्ठ संकल्प के रूप में संविधान सभा में पेश किया गया था। ये संकल्प पहले कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे थे जिन पर चर्चा की जानी थी और आगे के विचार-विमर्श के लिए मार्गदर्शक के रूप में निर्णय लिया जाना था। संपूर्ण संविधान के पूरा होने के बाद यानी अंत में प्रस्तावना को अंतिम रूप दिया गया था। इसके पीछे कारण यह था कि संविधान के निर्माता संविधान के अनुरूप रहना चाहते थे क्योंकि यह उसका एक हिस्सा है। 

क्या प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है?

प्रस्तावना संविधान का परिचय है। इसमें संविधान के आदर्श और सिद्धांत शामिल हैं और यह उस उद्देश्य या उद्देश्यों को दर्शाता है जिसे संविधान प्राप्त करना चाहता था। पुनित ठाकुर दास (केंद्रीय विधान सभा के लिए निर्वाचित) ने संविधान सभा में चल रही एक बहस के दौरान प्रस्तावना के महत्व पर जोर दिया और कहा कि, “प्रस्तावना संविधान का सबसे कीमती हिस्सा है। यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान की कुंजी है। यह संविधान में स्थापित एक रत्न है।”

यह प्रश्न कि क्या प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है या नहीं, लंबे समय से बहस का विषय था और अंततः केशवानंद भारती मामले में सुलझाया गया था (जैसा कि बाद के खंड में चर्चा की गई है)। यह समझने में कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है या नहीं, दो मामले, अर्थात् बेरुबारी मामला और केशवानंद भारती मामला, महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रारंभ में, सर्वोच्च न्यायालय का विचार यह था कि प्रस्तावना भारत के संविधान का हिस्सा नहीं है। हालाँकि, बाद में, केशवानंद भारत मामले में इसे उलट दिया गया था।

आइए उपरोक्त दोनों मामलों पर एक नजर डालते हैं। 

बेरुबारी संघ और… बनाम अज्ञात (1960)

बेरुबारी मामला संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति के संदर्भ के माध्यम से उत्पन्न हुआ था, जो बेरुबारी संघ से संबंधित भारत-पाकिस्तान समझौते के कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) पर था। अदालत के सामने मुद्दा यह तय करना था कि क्या संविधान का अनुच्छेद 3 संसद को देश के किसी भी हिस्से को किसी विदेशी देश को देने की शक्ति देता है। न्यायालय के समक्ष दूसरा मुद्दा यह था कि क्या नेहरू-नून समझौते के अनुपालन के लिए विधायी कार्रवाई आवश्यक है। हालाँकि, इस लेख का प्रासंगिक भाग प्रस्तावना के संविधान का हिस्सा होने के प्रश्न तक ही सीमित है, जिसे इस मामले में भी निपटाया गया था।

इस मामले के माध्यम से न्यायालय ने कहा था कि ‘प्रस्तावना निर्माताओं के दिमाग को खोलने की कुंजी है’ लेकिन इसे संविधान का हिस्सा नहीं माना जा सकता है। अदालत ने ऐसा कहते हुए अमेरिका के एक प्रसिद्ध प्रोफेसर विलो के एक उद्धरण पर भरोसा किया, जिसमें उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया है कि अमेरिकी संविधान की प्रस्तावना कभी भी शक्ति का स्रोत नहीं रही है। प्रोफ़ेसर ने कहा और मैं उद्धृत (साइट) कर रहा हूँ “इसे कभी भी संयुक्त राज्य सरकार या उसके किसी भी विभाग को प्रदत्त किसी ठोस शक्ति का स्रोत नहीं माना गया है। ऐसी शक्तियाँ केवल उन्हें ही शामिल करती हैं जो संविधान में स्पष्ट रूप से दी गई हैं और जो इस प्रकार दी गई शक्तियों से निहित हो सकती हैं।”

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य और अन्य (1973)

इस मामले ने इतिहास रचा और यह काफी महत्व रखता है। इस ऐतिहासिक मामले की सुनवाई के लिए 13 न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया गया था, जिसमें अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या संसद के पास प्रस्तावना में संशोधन करने की शक्ति है और यदि है तो इस शक्ति का प्रयोग किस हद तक किया जा सकता है। इसके साथ ही याचिकाकर्ता ने संविधान के 24वें और 25वें संशोधन को भी चुनौती दी थी। इस मामले में न्यायालय ने माना है कि:

  • संविधान की प्रस्तावना को अब संविधान का हिस्सा माना जाएगा। 
  • प्रस्तावना किसी सर्वोच्च शक्ति नही है या प्रतिबंध या निषेध की स्रोत नहीं है, लेकिन यह संविधान के क़ानूनों और प्रावधानों की व्याख्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

तो, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रस्तावना संविधान के परिचयात्मक भाग का हिस्सा है। 

केशवानंद भारती मामले के फैसले के बाद यह स्वीकार किया गया कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है। अदालत ने संविधान सभा के विभिन्न अंशों पर भरोसा किया, जिसमें यह तर्क दिया गया था कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा होगी। इसलिए, संविधान के एक भाग के रूप में, इसे संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है, लेकिन प्रस्तावना की मूल संरचना में संशोधन नहीं किया जा सकता है। क्योंकि संविधान की संरचना प्रस्तावना के मूल तत्वों पर आधारित है। 

प्रस्तावना में संशोधन

अनुच्छेद 368 के तहत दी गई संशोधन शक्तियों के तहत संसद द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है या नहीं, यह सवाल पहली बार केशवानंद भारती मामले में शीर्ष अदालत के सामने आया था। अदालत ने कहा कि चूंकि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है, इसलिए इसमें संशोधन किया जा सकता है, हालांकि, इसका दायरा सीमित है। इसमें इस प्रकार संशोधन नहीं किया जा सकता कि प्रस्तावित संशोधन बुनियादी सुविधाओं को नष्ट कर दे। यह राय दी गई थी कि हमारे संविधान का आधार काफी हद तक प्रस्तावना में सन्निहित मूल तत्वों पर आधारित है। इनमें से किसी भी तत्व के नष्ट होने या हटाए जाने की स्थिति में संविधान का प्रयोजन और उद्देश्य पूरा नहीं होगा। संसद की संशोधन शक्ति किसी भी तरह से यह नहीं दर्शाती है कि उसके पास संवैधानिक नीति के बुनियादी सिद्धांतों और आवश्यक विशेषताओं को छीनने या बाधित करने का अधिकार है। ऐसा करने का परिणाम केवल संविधान को पूरी तरह से बर्बाद करना होगा। 

भारत के संविधान के लागू होने के बाद से इसमें कई बार संशोधन किया गया है। संविधान एक जीवंत दस्तावेज है और यह महत्वपूर्ण है कि कोई भी कानून समाज की जरूरतों के अनुसार बदले। हालाँकि, प्रस्तावना में संशोधन का एकमात्र उदाहरण वर्ष 1976 में था। यह संशोधन इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार द्वारा पेश किया गया था जिसने प्रस्तावना को उसके वर्तमान स्वरूप में छोड़ दिया था। इस संशोधन द्वारा जो तीन शब्द जोड़े गए वे थे धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और अखंडता। ऐसा नहीं था कि इस संशोधन से पहले ये अवधारणाएँ संविधान का हिस्सा नहीं थीं। इस संशोधन में प्रस्तावना में इन शब्दों का स्पष्ट रूप से उल्लेख करके इन अवधारणाओं को स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया था।  

42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा लाए गए दो परिवर्तनों का उल्लेख इस प्रकार है:

42वां संशोधन अधिनियम, 1976

42वां संशोधन अधिनियम, 1976 संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करने वाला पहला अधिनियम था। 18 दिसंबर, 1976 को आर्थिक न्याय की रक्षा करने और किसी भी तरह के भेदभाव को खत्म करने के लिए प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्दों को जोड़ा गया था। इस संशोधन के माध्यम से ‘संप्रभु’ और ‘लोकतांत्रिक’ के बीच ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को जोड़ा गया और ‘राष्ट्र की एकता’ को ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ में बदल दिया गया था। 

दो शब्दों अर्थात् ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ को प्रस्तावना में जोड़ने का यह संशोधन, संशोधन अधिनियम, 1976 की धारा 2 द्वारा किया गया था। इसके अलावा, “राष्ट्र की एकता” शब्द का प्रतिस्थापन “राष्ट्र की एकता और अखंडता” के साथ किया गया था जिसका उल्लेख अधिनियम की धारा 2 में किया गया था। 

हालाँकि, एसआर बोम्मई मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि भले ही प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता शब्द को 1976 के अधिनियम द्वारा बाद के चरण में जोड़ा गया था, लेकिन संविधान के प्रावधानों में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा शामिल थी, हालांकि यह सीधे रूप से शामिल नहीं थी।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्याख्या

भारतीय संविधान के पूर्ण निर्माण के बाद प्रस्तावना को अंतिम रूप दिया गया था। बेरुबारी संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि प्रस्तावना इसके निर्माताओं के दिमाग को खोलने की कुंजी है, हालांकि, इसे संविधान का हिस्सा नहीं माना जा सकता है। प्रस्तावना को संविधान के प्रावधानों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत माना जाना चाहिए। 

केशवानंद भारती मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले फैसले को बदल दिया और प्रस्तावना को संविधान के हिस्से के रूप में स्वीकार कर लिया, जिसका अर्थ है कि इसे संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है। इस ऐतिहासिक मामले में, प्रस्तावना को संविधान के एक भाग के रूप में शामिल करके, यह राय दी गई कि प्रस्तावना एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह संविधान में अंतर्निहित बुनियादी सिद्धांतों का प्रतीक है। आगे यह भी कहा गया कि “प्रस्तावना संशोधन योग्य नहीं है, और इसे बदला या निरस्त नहीं किया जा सकता है” और “प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और संविधान की मूल संरचना या ढांचे से संबंधित है”।

भारतीय जीवन बीमा निगम एवं अन्य बनाम उपभोक्ता शिक्षा एवं अनुसंधान (1995) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है। 

तो, अंत में, संविधान की प्रस्तावना को दस्तावेज़ की एक सुंदर प्रस्तावना माना जाता है क्योंकि इसमें संविधान के उद्देश्य और दर्शन जैसी सभी बुनियादी जानकारी शामिल होती है। 

प्रस्तावना और भारतीय संविधान के बारे में 15 तथ्य जो आप नहीं जानते होंगे 

  • भारत का मूल संविधान प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा द्वारा सुलेख (कैलीग्राफी) और इटैलिक शैली में लिखा गया था। 
  • भारतीय संविधान की हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखी मूल प्रतियां भारतीय संसद के पुस्तकालय में विशेष हीलियम से भरे डिब्बों में मौजूद हैं। 
  • भारतीय संविधान में 448 अनुच्छेदों और 12 अनुसूचियों के साथ 25 भाग हैं, जो इसे दुनिया के किसी भी संप्रभु देश का सबसे लंबा लिखित संविधान बनाता है।
  • भारतीय संविधान के अंतिम मसौदे को पूरा करने में संविधान सभा को ठीक 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे थे। 
  • संविधान को अंतिम रूप देने से पहले इसमें लगभग 2000 संशोधन किए गए थे। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की प्रस्तावना भी ‘हम लोग’ से शुरू होती है। 
  • मौलिक अधिकारों की अवधारणा अमेरिकी संविधान से आई है क्योंकि उनमें नागरिकों के लिए नौ मौलिक अधिकार थे। 
  • 44वें संशोधन ने संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटा दिया, जो संविधान के अनुच्छेद 31 के तहत दिया गया था, ‘कानून के अधिकार के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।’ 
  • भारत का संविधान सबसे अच्छा संविधान माना जाता है क्योंकि इसमें त्रुटियों को बदलने का प्रयास किया जाता है। इस वजह से, संविधान में अतीत में 100 से अधिक संशोधन हो चुके हैं। 
  • संविधान के अन्य सभी पन्नों के साथ-साथ प्रस्तावना के पृष्ठ को जबलपुर के प्रसिद्ध चित्रकार ब्योहर राममनोहर सिन्हा द्वारा डिजाइन और सजाया गया था। 
  • भारत का संविधान एक हस्तलिखित संविधान है जिस पर 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के 284 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे, जिनमें से 15 महिलाएं थीं, हस्ताक्षर करने के दो दिन बाद अर्थात् 26 जनवरी को यह लागू हुआ था। 
  • संविधान का अंतिम मसौदा 26 नवंबर 1949 को पूरा हुआ था और यह दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ जिसे गणतंत्र दिवस के रूप में जाना जाता है। 
  • संविधान का मसौदा तैयार करते समय हमारी प्रारूपण समिति द्वारा विभिन्न संविधानों से कई प्रावधानों को अपनाया जाता है। 
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (डीपीएसपी) की अवधारणा आयरलैंड से अपनाई गई थी। 
  • हमारी प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की अवधारणा को फ्रांसीसी क्रांति के  फ्रांसीसी मोटो आदर्श वाक्य से अपनाया गया था।

निष्कर्षतः, प्रस्तावना संविधान का एक अभिन्न अंग है और इसे संविधान की आत्मा, और रीढ़ के रूप में व्यापक रूप से सराहा जाता है। प्रस्तावना संविधान के मूलभूत मूल्यों और मार्गदर्शक सिद्धांतों पर प्रकाश डालती है। प्रस्तावना में घोषणा की गई है कि भारत के नागरिकों ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को स्वीकार किया, लेकिन संविधान के प्रारंभ होने की तिथि 26 जनवरी 1950 तय की गई थी। 

संविधान की प्रस्तावना को लागू करने का उद्देश्य वर्ष 1976 में किए गए संशोधन के बाद पूरा हुआ, जिसने ‘संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य’ शब्द को ‘संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के स्थान पर प्रतिस्थापित कर दिया था। संविधान की प्रस्तावना भारत के लोगों की आकांक्षा का प्रतीक है। 

संविधान के अनुच्छेद 394 में कहा गया है कि अनुच्छेद 5 , 6 , 7 , 8 , 9 , 60 , 324 , 367 , 379 और 394 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाने के बाद से लागू हुए और बाकी प्रावधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुए थे। भारत के संविधान की प्रस्तावना अब तक तैयार की गई सर्वश्रेष्ठ प्रस्तावनाओं में से एक है, न केवल विचारों में बल्कि अभिव्यक्ति में भी। इसमें संविधान का उद्देश्य शामिल है, एक स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण करना जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधूता की रक्षा करता है जो संविधान के उद्देश्य हैं।

अक्सर पूछे गए प्रश्न (एफएक्यू)

सर्वोच्च न्यायालय ने किस मामले में यह राय दी गई थी कि 1976 के संशोधन अधिनियम से पहले भी धर्मनिरपेक्षता संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी.

एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को संविधान की मूल संरचना की एक अनिवार्य विशेषता के रूप में शामिल किया गया है और 42वां संशोधन से पहले भी यह संवैधानिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। न्यायालय ने यह भी कहा कि “धर्मनिरपेक्षता बंधुता के निर्माण का गढ़ है”।

किस मामले में बंधुता की अवधारणा पर पहली बार विस्तार से चर्चा की गई थी?

इंद्रा साहनी आदि बनाम भारत संघ और अन्य (1992) के मामले में, बंधुता की अवधारणा का उपयोग दो महत्वपूर्ण मुद्दों में किया गया था, अर्थात् बंधुता के संबंध में संविधान में सन्निहित आरक्षण के प्रावधान का बचाव करने के लिए, और गलत तरीके से इस्तेमाल करने पर इसका बंधुता के संबंधों पर असर पड़ता है पर चर्चा करने के लिए भी। हमारी प्रस्तावना में निर्धारित बंधुता की अवधारणा का उपयोग समाज के कमजोर वर्गों में प्रगति लाने के लिए समाज के पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की प्रथा को उचित ठहराने के लिए किया गया था। 

क्या प्रस्तावना भारतीय संविधान के मूल संरचना सिद्धांत का हिस्सा है?

प्रस्तावना में उल्लिखित उद्देश्य भारत के संविधान के मूल संरचना सिद्धांत का एक हिस्सा हैं। सिद्धांत के अनुसार, संसद के पास संविधान में संशोधन करने की असीमित शक्ति है। हालाँकि, संशोधन से संविधान की मूल संरचना बाधित नहीं होनी चाहिए। जैसा कि लेख में चर्चा की गई है, कानून में यह स्थापित स्थिति है कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा बनती है और इसलिए संविधान की तरह ही इसमें भी मूल संरचना सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए संशोधन किया जा सकता है। जहां तक ​​संविधान की मूल संरचना का सवाल है, इसे तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने के लिए अदालतों पर छोड़ दिया गया था। 

  • https://www.cambridge.org/core/services/aop-cambridge-core/content/view/0C548A998AEB5EAC78AD43D1B150B8B1/S0018246X21000856a.pdf/the-people-and-the-making-of-indias-constitution.pdf  
  • संविधान की प्रस्तावना: भारतीय संविधान का हृदय, आत्मा और लक्ष्य, रिद्धिमान मुखर्जी और दिब्यांगना दास, [खंड। 4 अंक 2; 233], इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ लॉ मैनेजमेंट एंड ह्यूमैनिटीज़  
  • भारत के संविधान का परिचय, 11वाँ संस्करण, बृज किशोर शर्मा
  • https://papers.ssrn.com/sol3/papers.cfm?abstract_id=2043496  
  • https://www.jetir.org/papers/JETIR2102201.pdf  

essay on preamble of indian constitution in hindi

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भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Preamble of the Indian Constitution in Hindi

भारतीय संविधान की प्रस्तावना (preamble of the indian constitution upsc in hindi ).

हम , भारत के लोग , भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न , समाजवादी , पंथनिरपेक्ष , लोकतंत्रात्मक गणराज्य , बनाने के लिए , तथा उसके समस्त नागरिकों कोः

  सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक न्याय , 

विचार ,  अभिव्यक्ति , विश्वास , धर्म

और उपासना की स्वतंत्रता ,     

प्रतिष्ठा और अवसर की समता ,

प्राप्त कराने के लिए ,

                       

तथा उन सब में , व्यक्ति की गरिमा और

राष्ट्र की एकता और अखण्डता ,

    सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए

दृढसंकल्प होकर अपनी   इस  सं विधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई . ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी , संवत दो हजार छह विक्रमी ) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत , अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

Preamble in Hindi PDF (Image of Preamble of the Indian Constitution in Hindi)

Preamble in Hindi pdf | Image of Preamble of the Indian Constitution in Hindi

प्रस्तावना की पृष्ठ्भूमि

भारतीय संविधान की प्रस्तावना पंडित नेहरू द्वारा पेश किये गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव ’ पर आधारित है।

42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976

“ समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता ” शब्दों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 ई. द्वारा भारत की प्रस्तावना में जोड़ा गया।

भारत की प्रस्तावना से जुड़े हुए प्रमुख केस  

  • बेरुबारी यूनियन केस 1960 के मामले में , सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना , संविधान का हिस्सा नहीं है ।
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973 के मामले में , सुप्रीम कोर्ट ने बेरुबारी संघ वाद में दिए फैसले कोको बदल दिया और कहा कि भारत की प्रस्तावना , संविधान का हिस्सा है।
  • भारतीय जीवन बीमा निगम एवं अन्य बनाम कंज्यूमर एजुकेशन और रिसर्च एवं अन्य 1995 के मामले में उच्चतम न्यायालय के अनुसार प्रस्तावना भारत के संविधान का अभिन्न अंग है ।

प्रश्न & उत्तर

Q. भारतीय संविधान की प्रस्तावना का प्रस्ताव किसके द्वारा पेश किया गया था ?

A. भारतीय संविधान की प्रस्तावना का प्रस्ताव पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर 1946 को पेश किया गया था। इसे ‘ उद्देश्य प्रस्ताव ’ के नाम से जाना जाता है। संविधान सभा ने इस प्रस्ताव को 22 जनवरी 1947 को स्वीकार कर लिया।

Q. भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र किसने कहा है ?

A. भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र एन . ए . पालकीवाला ने कहा है .

Q. संविधान की कुंजी किसे कहा जाता है ?

A. भारतीय संविधान की प्रस्तावना को  संविधान की कुंजी कहा जाता है.

Q.   “ समाजवादी , पंथनिरपेक्ष और अखंडता ” शब्दों को किस संविधान संशोधन द्वारा भारत की प्रस्तावना में जोड़ा गया ?

A. “ समाजवादी , पंथनिरपेक्ष और अखंडता ” शब्दों को 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम , 1976 ई . द्वारा भारत की प्रस्तावना में जोड़ा गया .

Q. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार संविधान की सर्वोच्च शक्ति किस में निहित है ?

A.  भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार संविधान की सर्वोच्च शक्ति  भारत की जनता में   निहित है.

Q. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कितने प्रकार के न्याय का उल्लेख है ?

A.  भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 3 प्रकार के न्याय ( सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक ) का उल्लेख है.

Q. संविधान दिवस कब मनाया जाता है ?

A. 26 नवंबर   को  संविधान दिवस  मनाया जाता है.

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preamble of Indian Constitution in Hindi

  • by Namaste Sensei

preamble meaning in hindi and english

Preamble of Indian Constitution in Hindi | Preamble of India in Hindi (भारतीय संविधान की प्रस्तावना)

preamble meaning in hindi and english

The preamble is the summary of the Indian constitution. In this article, we have explained the preamble of Indian constitution in Hindi and English. Examples are provided for easy understanding of the preamble in Hindi and English. (Preamble भारतीय संविधान का सार है। इस लेख में, हमने भारतीय संविधान की प्रस्तावना को हिंदी और अंग्रेजी में समझाया है। प्रस्तावना को हिंदी और अंग्रेजी में आसानी से समझने के लिए उदाहरण दिए गए हैं।)

Preamble of Indian Constitution in Hindi and English

PREAMBLE IN ENGLISH

  • WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN, SOCIALIST , SECULAR , DEMOCRATIC, REPUBLIC and to secure to all its citizens:
  • JUSTICE , social, economic and political;
  • LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship;
  • EQUALITY of status and of opportunity;
  • And to promote among them all FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation;

Preamble in Hindi (प्रस्तावना हिंदी में)

  • हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
  • न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक,
  • विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
  • प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा,
  • उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए,
  • दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

preamble meaning in hindi ( भारतीय संविधान की प्रस्तावना का अर्थ)

  • The Preamble is regarded as an introduction or summary of the constitution. (प्रस्तावना को संविधान का परिचय या सारांश माना जाता है।)
  • It declares the basic values on which the constitution is based. (यह उन बुनियादी मूल्यों की घोषणा करता है जिन पर संविधान आधारित है।)

preamble of indian constitution in hindi

  • It is customary but not compulsory for a constitution to have a preamble. (यह प्रथागत है लेकिन संविधान के लिए प्रस्तावना का होना अनिवार्य नहीं है।)
  • The unwritten constitution does not have a preamble. (अलिखित संविधान की कोई प्रस्तावना नहीं है।)
  • The written constitution may or may not have a preamble. (लिखित संविधान की प्रस्तावना हो भी सकती है और नहीं भी।)
  • Example: Government of India (GOI) Act 1935 which was a written constitution during British time in India did not have a preamble. (उदाहरण: भारत सरकार (GOI) अधिनियम 1935, जो भारत में ब्रिटिश काल के दौरान एक लिखित संविधान था, की प्रस्तावना नहीं थी।)

Explanation for Preamble in Hindi (प्रस्तावना की व्याख्या हिंदी में)

What was the mentality of the people of the Constituent Assembly while they were framing the Indian constitution? (भारतीय संविधान बनाते समय संविधान सभा के लोगों की सोच क्या थी?)

  • The members of the Constituent Assembly were clear that India should be a secular country. This means that people who made the constitution were secular in mentality as well. (संविधान सभा के सदस्य स्पष्ट थे कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि संविधान बनाने वाले लोग मानसिकता में भी धर्मनिरपेक्ष थे।)
  • However, the word “Secular” was added in the 42 Amendment Act but we were secular way before that. (हालाँकि, 42 वें संशोधन अधिनियम में “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़ा गया था लेकिन हम उससे पहले धर्मनिरपेक्ष थे।)
  • For example , the Right to Religion was already one of the fundamental rights even before the 42nd Amendment act. (उदाहरण के लिए, धर्म का अधिकार 42वें संशोधन अधिनियम से पहले ही मौलिक अधिकारों में से एक था।)
  • This shows that the philosophy of the people was Secular as well. (इससे पता चलता है कि लोगों का दर्शन भी धर्मनिरपेक्ष था।)
  • Is preamble enforceable? (क्या प्रस्तावना प्रवर्तनीय है?)

preamble of indian constitution enforceable

  • No , It is not enforceable in any court of law which means one cannot compel to enforce the preamble in any court of law. (नहीं, यह किसी भी न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं है, जिसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति किसी भी न्यायालय में प्रस्तावना को लागू करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।)
  • For example , Fundamental Rights are enforceable, while the preamble is not. (उदाहरण के लिए, मौलिक अधिकार प्रवर्तनीय हैं, जबकि प्रस्तावना प्रवर्तनीय नहीं है।)
  • Also, the Uniform Civil Code mentioned in DPSP is not enforceable. (साथ ही, DPSP में उल्लिखित समान नागरिक संहिता लागू करने योग्य नहीं है।)

Nature of Preamble of Indian Constitution in Hindi (भारतीय संविधान की प्रस्तावना की प्रकृति: )

preamble of indian constitution clash

  • A preamble is a form of declaration. Also, it cannot override any specific provision of the constitution (i.e it is subordinate to the constitution) (प्रस्तावना घोषणा का एक रूप है। साथ ही, यह संविधान के किसी विशिष्ट प्रावधान को अवहेलना नहीं कर सकता (अर्थात यह संविधान के अधीन है))
  • If there is a clash between any Article of the constitution and the Preamble, the former shall prevail i.e Constitution will be given more importance. (यदि संविधान के किसी अनुच्छेद और प्रस्तावना के बीच टकराव होता है, तो पूर्व प्रभावी होगा। अर्थात संविधान को अधिक महत्व दिया जाएगा।)
  • As per the constitution if there is an ambiguity around an article of constitution then that interpretation by article may be used by court which tallies or matches with the preamble. (संविधान के अनुसार यदि संविधान के किसी अनुच्छेद के बारे में अस्पष्टता है तो न्यायालय द्वारा उस व्याख्या का उपयोग किया जा सकता है जो प्रस्तावना से मेल खाती है।)

Explanation for Nature of Preamble in Hindi and English (प्रस्तावना की प्रकृति का स्पष्टीकरण)

  • For Example, Article 15 says there will be no discrimination on the ground of ( caste, sex, religion, etc) (उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 15 कहता है कि (जाति, लिंग, धर्म, आदि) के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा।)
  • But at the same Article 15(4) provide special provisions i.e reservations for backward classes. (लेकिन साथ ही अनुच्छेद 15(4) पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान यानी आरक्षण प्रदान करता है।)
  • This way both Article 15 and Article 15(4) seem against each other. (इस प्रकार अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 15(4) दोनों एक दूसरे के विरुद्ध प्रतीत होते हैं।)
  • In this case, if we see our Preamble which explicitly mentions Justice (social, economic, and political). (इस मामले में, यदि हम अपनी प्रस्तावना देखते हैं जिसमें स्पष्ट रूप से न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) का उल्लेख है।)
  • Hence reservations under Article 15(4) are given, after getting acknowledgment from the preamble. (इसलिए प्रस्तावना से स्वीकृति मिलने के बाद अनुच्छेद 15(4) के तहत आरक्षण दिया जाता है।)
  • Therefore, Article 15(4) was made so that backward classes can get Social Justice. (इसलिए अनुच्छेद 15(4) इसलिए बनाया गया ताकि पिछड़े वर्गों को सामाजिक न्याय मिल सके)

Purpose of Preamble of Indian Constitution in hindi

purpose of preamble

  • The preamble declares that the source of powers of the constitution is the people themselves and the constitution arises from people only i.e preamble declares that people are the ultimate sovereign in India. (प्रस्तावना घोषणा करती है कि संविधान की शक्तियों का स्रोत स्वयं लोग हैं और संविधान केवल लोगों से उत्पन्न होता है अर्थात प्रस्तावना घोषित करती है कि लोग भारत में परम सार्वभौम हैं।)

KEHAR SINGH CASE VS UNION OF INDIA CASE 1989 (केहर सिंह मामला VS भारत संघ मामला 1989)

  • In KEHAR SINGH CASE VS UNION OF INDIA CASE 1989. The statement “constitution derives its power from people directly” got challenged. (केहर सिंह केस VS भारत संघ मामला 1989 में कथन “संविधान अपनी शक्ति सीधे लोगों से प्राप्त करता है” को चुनौती मिली।)
  • People of India hadn’t written the Indian Constitution, then how the Constitution derives its power from people directly? (भारत के लोगों ने भारतीय संविधान नहीं लिखा था, फिर संविधान अपनी शक्ति सीधे लोगों से कैसे प्राप्त करता है?)
  • In India, the reality is that the Supreme Court wanted to give people the ultimate importance. So even if the constitution is not written by the people directly. (भारत में, वास्तविकता यह है कि सर्वोच्च न्यायालय लोगों को अंतिम महत्व देना चाहता था। तो भले ही संविधान सीधे लोगों द्वारा नहीं लिखा गया हो।)
  • Still, the Supreme court wants to believe that the constitution derives its power from the people directly. (फिर भी, सर्वोच्च न्यायालय यह मानना ​​चाहता है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे लोगों से प्राप्त करता है।)
  • However, the court said that this statement “Constitution derives its power from people only” is a legal fiction and conclusive assumption which cannot be challenged or tested in any court of law. (हालांकि, अदालत ने कहा कि यह बयान “संविधान केवल लोगों से अपनी शक्ति प्राप्त करता है” एक कानूनी कल्पना और निर्णायक धारणा है जिसे किसी भी अदालत में चुनौती या परीक्षण नहीं किया जा सकता है।)

Ideals and aspirations of preamble of indian constitution (भारतीय संविधान की प्रस्तावना के आदर्श और आकांक्षाएं)

  • Preamble contains the ideals and aspirations of people of this country. (प्रस्तावना में इस देश के लोगों के आदर्शों और आकांक्षाओं का समावेश है।)

ideals

Five Ideals mentioned in Preamble (प्रस्तावना में वर्णित पाँच आदर्श)

  • Sovereignty (संप्रभुता )
  • Secularism (धर्मनिरपेक्षता)

Socialism (समाजवाद)

  • Democratic/Democracy (लोकतांत्रिक/लोकतंत्र)
  • Republic (गणतंत्र)

Aspirations

Four Aspirations mentioned in Preamble (प्रस्तावना में वर्णित चार आकांक्षाएँ)

  • Equality (समानता)
  • Justice (न्याय)
  • Liberty (स्वतंत्रता)
  • Fraternity (बिरादरी)
  • Ideals are the vision or imagination of the country. (आदर्श देश की दृष्टि या कल्पना हैं।)
  • Aspirations in the Preamble are only met if the Ideals are met first. This means that Ideals are needed in order to fulfill Aspirations. (प्रस्तावना में आकांक्षाएं तभी पूरी होती हैं जब आदर्शों को पहले पूरा किया जाता है। इसका मतलब है कि आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आदर्शों की आवश्यकता होती है।)
  • For Example , John is from a Minority Community. (उदाहरण के लिए, जॉन अल्पसंख्यक समुदाय से है।)
  • If Secularism (IDEAL) is missing in a country then there are chances that he will not get justice (ASPIRATION) if something wrong happens in that country. (यदि किसी देश में धर्मनिरपेक्षता (IDEAL) गायब है तो संभावना है कि उस देश में कुछ गलत होने पर उसे न्याय (ASPIRATION) नहीं मिलेगा।)
  • It clearly meant that in order for Aspirations to be established, ideals need to be met first. (इसका स्पष्ट अर्थ था कि आकांक्षाओं को स्थापित करने के लिए पहले आदर्शों की पूर्ति करनी होगी।)

Ideals of preamble of indian constitution in hindi (भारतीय संविधान की प्रस्तावना के आदर्श)

Sovereignty ( संप्रभुता ).

soverignty

  • It implies that a country’s government is totally independent and does not acknowledge any other power as supreme with regard to the governance of the country. (इसका तात्पर्य है कि एक देश की सरकार पूरी तरह से स्वतंत्र है और देश के शासन के संबंध में किसी अन्य शक्ति को सर्वोच्च नहीं मानती है।)
  • Aspirants can read more about Sovereignty in this linked article. (उम्मीदवार इस लिंक किए गए लेख में संप्रभुता के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं।)

Secularism ( धर्मनिरपेक्षता )

secularism

  • Secularism means the state shall not recognize any religion as the official religion in the country i.e Indian state is neither: (धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य किसी भी धर्म को देश में आधिकारिक धर्म के रूप में मान्यता नहीं देगा अर्थात भारतीय राज्य न तो है: )
  • Religious (धार्मिक)
  • Anti-religious (मज़हब मुखालिफ़)
  • It is also not Irreligious (अधार्मिक)
  • All religions that have made India their home have the right to coexist on the soil of India. (भारत को अपना घर बनाने वाले सभी धर्मों को भारत की धरती पर सह-अस्तित्व का अधिकार है।)
  • Aspirants can read more about Secularism by this linked article. (उम्मीदवार इस लिंक किए गए लेख से धर्मनिरपेक्षता के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं।)

Socialism

  • In India we followed democratic socialism that is achieving socialistic goals in our constitution which are: (भारत में हमने लोकतांत्रिक समाजवाद का पालन किया जो हमारे संविधान में समाजवादी लक्ष्यों को प्राप्त कर रहा है जो हैं)
  • Under Article 39(b) state shall take steps to provide equal distribution of material resources.(अनुच्छेद 39 (बी) के तहत राज्य भौतिक संसाधनों के समान वितरण प्रदान करने के लिए कदम उठाएगा।)
  • Article 39(c) state should take a step to reduce the concentration of wealth in fewer hands. (अनुच्छेद 39(सी) राज्य को कम हाथों में धन की एकाग्रता को कम करने के लिए कदम उठाना चाहिए।)
  • Aspirants can read more about Socialism in this linked article. (उम्मीदवार इस लिंक किए गए लेख में समाजवाद के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं।)

democracy ( लोकतांत्रिक )

Democracy

  • We have representative democracy based on the one man one vote principle. (हमारे पास एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धांत पर आधारित प्रतिनिधि लोकतंत्र है।)
  • Various provisions like Freedom of Speech and Expression, Active civil society, Free media has been strengthening democratic practices. (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सक्रिय नागरिक समाज, स्वतंत्र मीडिया जैसे विभिन्न प्रावधान लोकतांत्रिक प्रथाओं को मजबूत कर रहे हैं।)
  • Aspirants can read more about Democracy in this linked article. (उम्मीदवार इस लिंक किए गए लेख में लोकतंत्र के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं।)

Republic ( जनतंत्र )

Republic

  • Republic is a political system where people are supreme and there is no hereditary ruler i.e head of the state is elected by people for a fixed term. (गणतंत्र एक राजनीतिक व्यवस्था है जहाँ लोग सर्वोच्च होते हैं और कोई वंशानुगत शासक नहीं होता है अर्थात राज्य का मुखिया एक निश्चित अवधि के लिए लोगों द्वारा चुना जाता है।)

Explanation (व्याख्या)

  • Republic means that the technical head of the state is always elected (VOTED BY PEOPLE). (गणतंत्र का अर्थ है कि राज्य का तकनीकी प्रमुख हमेशा चुना जाता है (लोगों द्वारा वोट दिया जाता है)।)
  • Not Inherited, which is commonly seen in a Monarchy i.e Hereditary Monarch (विरासत में नहीं मिला, जो आमतौर पर एक राजशाही यानी वंशानुगत राजशाही में देखा जाता है)
  • The concept of the Republic has been taken from France . (गणतंत्र की अवधारणा फ्रांस से ली गई है।)
  • The Nominal head of the State of the Indian Republic is President. (भारतीय गणराज्य के राज्य का नाममात्र प्रमुख राष्ट्रपति होता है।)
  • The Executive head of the government is Prime Minister. (सरकार का कार्यकारी प्रमुख प्रधान मंत्री होता है।)

Aspirations for preamble of indian constitution in hindi (भारतीय संविधान की प्रस्तावना की आकांक्षाएं)

Equality  (समानता).

Equality

  • Preamble talks about the equality of status ( Article 16 , Article 17 , Article 18 ). (प्रस्तावना स्थिति की समानता के बारे में बात करती है (अनुच्छेद 16, अनुच्छेद 17, अनुच्छेद 18)।)
  • The preamble of the Indian Constitution talks not only about Economic equality but also it talks about the social status of an individual. (भारतीय संविधान की प्रस्तावना न केवल आर्थिक समानता के बारे में बात करती है बल्कि यह व्यक्ति की सामाजिक स्थिति के बारे में भी बात करती है।)
  • For Example, Article 16(4) Provided the opportunity to the backward classes. (उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 16(4) ने पिछड़े वर्गों को अवसर प्रदान किया।)
  • Untouchability is completely banned in India to bring social equality among individuals. ( Article 17 ) (व्यक्तियों के बीच सामाजिक समानता लाने के लिए भारत में अस्पृश्यता पूरी तरह से प्रतिबंधित है। (अनुच्छेद 17))
  • The state will not give special titles to an individual ( Article 18 ) (राज्य किसी व्यक्ति को विशेष उपाधि नहीं देगा (अनुच्छेद 18))

justice (न्याय)

justice in preamble of indian constitution

  • To provide Political, Economical, and Social Justice to the people. (लोगों को राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक न्याय प्रदान करना।)
  • Political Justice: Fair chance to participate in the political system of the country. (राजनीतिक न्याय: देश की राजनीतिक व्यवस्था में भाग लेने का उचित अवसर।)
  • Social Justice: No social bias against any caste i.e No discrimination, Nonpractice of Untouchability ( Article 15 – Article 18 ) (सामाजिक न्याय: किसी भी जाति के खिलाफ कोई सामाजिक पूर्वाग्रह नहीं यानी कोई भेदभाव नहीं, अस्पृश्यता का अभ्यास (अनुच्छेद 15 – अनुच्छेद 18))
  • Economic Justice: Nobody can practice economic bias. (आर्थिक न्याय: कोई भी आर्थिक पक्षपात का अभ्यास नहीं कर सकता है।)
  • Economic Justice first example , Everyone can go to Park (Rich or Poor). There should be free legal Aid. (आर्थिक न्याय पहला उदाहरण, हर कोई पार्क (अमीर या गरीब) जा सकता है। मुफ्त कानूनी सहायता मिलनी चाहिए।)
  • Economic Jusitice second example , the State should provide a lawyer to the poor who cannot afford it. (आर्थिक न्याय दूसरा उदाहरण, राज्य को उन गरीबों को एक वकील प्रदान करना चाहिए जो इसे वहन नहीं कर सकते।)
  • Economic Justice third example , Everyone can set up the industry. Also, there should be equal wages for both men and women. (आर्थिक न्याय तीसरा उदाहरण, हर कोई उद्योग स्थापित कर सकता है। साथ ही पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान वेतन होनी चाहिए।)

liberty (स्वतंत्रता)

liberty preamble

  • Liberty means the absence of arbitrary powers exercised by the state over an individual. (स्वतंत्रता का अर्थ है किसी व्यक्ति पर राज्य द्वारा प्रयोग की जाने वाली मनमानी शक्तियों का अभाव।)
  • NOTE – There are some conditions for Liberty. (नोट – स्वतंत्रता के लिए कुछ शर्तें हैं।)

fraternity (बिरादरी)

fraternity preamble

  • Fraternity is the sense of brotherhood that prevails among all the people in India. It is a must to ensure the unity and integrity of India. (बिरादरी  भाईचारे की भावना है जो भारत में सभी लोगों के बीच व्याप्त है। भारत की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है।)
  • Unity – To bring people together. (एकता – लोगों को एक साथ लाने के लिए।)
  • Integrity – Preventing people from falling apart. (वफ़ादारी – लोगों को टूटने से बचाना।)

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Constitution Of India, Indian Penal Code - IPC

Preamble in Hindi, Preamble of Indian Constitution in Hindi

प्रस्तावना: भारतीय संविधान का मूलाधार.

प्रस्तावना क्या है: प्रस्तावना, भारतीय संविधान का पहला पृष्ठ, उस दिल की धड़कन है जिसमें भारत का आदर्श और उद्देश्य सुनाया जाता है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है जो हमारे संविधान की भावना और सिद्धांतों को प्रकट करता है। इस प्रस्तावना में भारतीय समाज के मूल सिद्धांतों की चर्चा की गई है और देश के नागरिकों के लिए एक सशक्त और समृद्ध भविष्य की दिशा में मार्गदर्शन किया गया है।

“संविधान का प्रस्तावना”

हिंदी: “हम भारतीय, भारतीय संघ के एक एक अखंड और समुद्र के दोनों ओर समुद्र से घिरे भूखंड में बसने वाले हैं। हम अपने देश के साथ एक अद्वितीय गौरव को देखते हैं और इसके निर्माण में समर्थ हैं। हम अपने देश के सर्वोत्तम हित की प्राप्ति के लिए संघर्षरत हैं और समाजवाद, समानता और धर्मनिरपेक्षता की आदर्श विचारधारा का पालन करते हैं।”

Significance of Preamble of Indian Constitution in Hindi

  • एकता का प्रतीक : प्रस्तावना भारत के एकता के प्रतीक के रूप में कार्य करती है, यहां तक कि समुद्रों से घिरे भूखंड में बसने वाले सभी भारतीयों को एक ही देश के नागरिक के रूप में देखती है।
  • सामाजिक न्याय : प्रस्तावना में समाजवाद, समानता और धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों का महत्वपूर्ण उल्लेख है, जो समाज में न्याय के माध्यम से सबके हित की प्राप्ति का संकेत करते हैं।
  • सर्वोत्तम हित : यह प्रस्तावना हमें अपने देश के सर्वोत्तम हित की प्राप्ति के लिए संघर्षरत होने का संदेश देती है, जिसमें आदर्श और निर्देश शामिल हैं।

Meaning of Preamble in Hindi, भारतीय संविधान की प्रस्तावना का अर्थ:

भारतीय संविधान का प्रथम पृष्ठ है और यह उसका मूल भाग है जो संविधान के निर्माणकार्य के पीछे की भावना और सिद्धांतों को दर्शाता है। इसमें भारत के सर्वोत्तम लक्ष्यों और आदर्शों की चर्चा की गई है और यह दर्शाता है कि हम किस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं।

प्रस्तावना में निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं का मतलब है:

  • एकता का प्रतीक : प्रस्तावना भारत के एकता को प्रकट करती है और यहां तक कि समुद्रों से घिरे भूखंड में बसने वाले सभी भारतीयों को एक ही देश के नागरिक के रूप में देखती है।

प्रस्तावना, भारतीय संविधान की मूल भावना और सिद्धांतों का प्रतीक होती है, जो नागरिकों को उनके अधिकारों और दायित्वों को समझने में मदद करती है। डिजिटल युग में जानकारी आसानी से उपलब्ध हो रही है, जिससे नागरिक जनता जागरूक और लोकतंत्र में भागीदार रह सकती है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Preamble in Hindi of Indian Constitution

भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Preamble in Hindi of Indian Constitution

” हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए और उसके समस्त नागरिकों को

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए

दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 ई. ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी ) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

Preamble of the Indian Constitution

WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a [SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC] and to secure to all its citizens: JUSTICE, social, economic and political; LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship; EQUALITY of status and of opportunity; and to promote among them all FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the 2[unity and integrity of the Nation]; IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this twentysixth day of November, 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION.

The Indian Constitution

भारतीय संविधान की उद्देशिका(प्रस्तावना) | Preamble of Indian Constitution In Hindi

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प्राय: प्रत्येक अधिनियम के प्रारम्भ में एक उद्देशिका (Preamble) होती है। उदेशिका में उन उद्देश्यों का उल्लेख किया जाता है जिनकी प्राप्ति के लिए उस अधिनियम को पारित किया गया है।

  • विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाने वाली भारतीय संविधान की उद्देशिका ऑस्ट्रेलियाई संविधान से प्रभावित है।

उद्देशिका संविधान का सार है, जो संविधान के उद्देश्यों और संविधान के दर्शन को प्रदर्शित करती है।

संविधान के आदर्शो और आकांक्षाओ से संविधान निर्माताओ के मस्तिष्क में रहे विचारो को जानने में मदद मिलती है।

उद्देशिका को प्रस्तावना भी कहते है लेकिन संविधान मे “उद्देशिका” शब्द का जिक्र किया गया है।

भारतीय संविधान की उद्देशिका

“हम भारत के लोग , भारत को एक 1 सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय , विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता , प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और 2 राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26-11-1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
  • 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 की धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  • 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 की धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “राष्ट्र की एकता” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

संविधान की प्रस्तावना का स्पष्टीकरण

पहले एक बात स्पष्ट कर लेते है की संविधान के लिए उद्देशिका होना जरूरी नही है, लेकिन अगर है तो वह अच्छा है, वह संविधान के मूल उद्देश्य को संक्षेप्त समझा सकती है।

ज़्यादातर लेखित संविधान मे प्रस्तावना लिखी होती है जो अलेखित संविधान मे नही होती है।

  • जैसे भारत के संविधान मे उद्देशिका है जबकि अलेखित ब्रिटेन के संविधान मे उद्देशिका नही है ।

समझ ने के लिए हम उद्देशिका को पाँच भाग मे विभाजित करते है।

  • संविधान का स्त्रोत
  • देश की शासन प्रणाली
  • नागरिकों के अधिकार
  • नागरिकों के कर्तव्य
  • संविधान स्वीकारने की तारीख

1. संविधान का स्त्रोत

संविधान का स्त्रोत से मतलब है, जहा से संविधान को शक्ति मिलेगी, जो संविधान को सर्वोपरि बनाएगा।

उद्देशिका में प्रयुक्त “हम भारत के लोग….. ..इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं” पदावली से यह स्पष्ट है कि भारतीय संविधान का स्रोत भारत की जनता है और भारतीय जनता ने अपनी सम्प्रभु इच्छा को इस संविधान के माध्यम से व्यक्त किया है।

इसका तात्पर्य यह है कि जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभा द्वारा संविधान का निर्माण किया गया है।

कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं हैं, क्योंकि संविधान निर्मात्री सभा के प्रतिनिधियों का चुनाव जनता के वयस्क मताधिकार द्वारा नहीं किया गया था।

1947 की संविधान सभा में सभी प्रतिनिधियों को जनता का समर्थन नहीं प्राप्त था।

ऐसा ही एक दावा केहर सिंह बनाव भारत संघ केस में किया गया। जिसको सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया।

संविधान-निर्मात्री सभा की स्थापना ब्रिटिश-संसद के एक अधिनियम द्वारा की गयी थी इसलिए यह एक सम्प्रभु संस्था नहीं कही जा सकती। सैद्धांतिक द्रष्टि यह बात सही भी है।

लेकिन व्यवहार में भारत की जनता ने दिखा दिया है कि सारी शक्ति देशवासी के हाथो में है। 1950 के बाद बने कानून और किये गए संवैधानिक सुधार यह दिखते है कि जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि ही देश का शासन चलाते हैं।

2. देश की शासन प्रणाली

उद्देशिका के अनुसार भारत कि शासन प्रणाली इस पाँच सिद्धांत को जरुर सुनिश्चित करेगी

  • प्रभुत्वसंपन्न राष्ट्र
  • समाजवादी विचारधारा
  • पंथ निरपेक्षता
  • लोकतंत्रात्मक राष्ट्र
  • गणराज्य देश

2.1 प्रभुत्वसंपन्न राष्ट्र (Sovereign Country)

प्रभुत्वसंपन्न राष्ट्र का यह अर्थ है कि भारत आंतरिक या बाह्य द्रष्टि से किसी भी विदेशी सत्ता के अधीन नही है।

इसका सरल अर्थ है की भारत अपने निर्णय खुद से और पूरी स्वतंत्रता से लेगा । यह निर्णय देश कि जनता की तरफ से चुने हुए प्रतिनिधि लेते है।

भारत अपनी विदेशी नीति मे जैसे चाहे वैसे गठन कर सकता है। वह किसी देश से मित्रता और संधि अपनी मरजी कर सकता है।

पाकिस्तान के साथ कैसा व्यवहार रखना है यह भारत खुद से निर्णय करेगा नही कि अन्य देश के दबाव मे।

स्वतन्त्रता के पश्चात् भी भारत राष्ट्रमण्डल (Commonwealth) का सदस्य है। किन्तु यह सदस्यता भारत की सम्प्रभुता पर अंशमात्र भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती है।

कई बार सवाल उठते है की भारत WTO, UNSC जैसी वैश्विक संस्था और USA जैसे देशो की बातें मानता है।

वास्तव में भारत कई वैश्विक संस्था का सदस्य है, जहा पर उसे संस्था के नियम को मानना पड़ता है, लेकिन यह बदले मे भारत को कई प्रकार के फायदे देता है इसीलिए प्रभुत्वसंपन्नता का उल्लंघन नही माना जाएगा।

भारत ने एसी संस्था में सदस्यता को अपनी इच्छा से स्वीकार किया है और वह जब चाहे इसकी सदस्यता को छोड़ सकता है।

देखिये भारत अपनी विदेशी कूटनीति अपने फायदे और हितो को ध्यान में रखकर बनाता जिसमे कभी कभी अन्य देश के हितो का भी ख्याल रखना पड़ता है, इसमें भारत गैर सार्वभोमिक नही हो जाता।

वैसे भी वैश्विकीकरण के बाद सभी देश आपसमे जुड़े हुए है, जिस वजह कोई भी देश सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न नही है।

2.2 समाजवादी विचारधारा (Socialist Ideology)

विश्व में मुख्यतः दो विचारधारा पर देश का प्रशासन चलता है। एक साम्यवादी (Communist) और दूसरा पूंजीवादी (Capitalist) ।

साम्यवादी में देश के सारे संशाधन पर सरकार का काबू होता है, जबकि मुड़ीवादी मे संशाधन का नियमन बाज़ार पर छोड़ दिया जाता है जिसमे सरकार बहुत कम हस्तक्षेप करती है।

आज़ादी के बाद भारत की परिस्थिति को देख कर इन दोनों के बीच की समाजवादी विचारधारा (Socialist Ideology) को अपनाना ठीक समझा।

हालाकी, संविधान में ‘समाजवाद’ शब्द लिखा नही गया था फिर भी संविधान के प्रावधान जैसे भाग 4 के नीति निर्देश सिद्धांत इसी विचारधारा को दर्शाते थे।

जिसको बाद में जरूरत महसूस होने पर 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 से उद्देशिका मे लिख दिया गया।

इस शब्द की कोई निश्चित परिभाषा देना कठिन है।

  • किन्तु सामान्य अर्थ में समाज में उपस्थित सभी संशाधनो को समाज के सभी लोगों में समानरूप से न्यायपूर्ण वितरण करना कह सकते है।

भारतीय संविधान ने इस दिशा में एक बीच का मार्ग अपनाया है, जिसे मिश्रित अर्थव्यवस्था भी कहते हैं।

लेकिन भारत के परिपेक्ष मे समझे तो,

समाजवादी व्यवस्था में भारत की सरकार कुछ संशाधन पर अपना नियंत्रण रखती है जिसका इस्तेमाल देश की जनता के लिए कल्याणकारी कार्यो एवं उनके विकास के लिए किया जाता है।

ओर बाकी संशाधन को बाज़ार (Market) के ऊपर छोड़ दिया जाता।

  • संक्षेप्त में कहे तो देश की अर्थव्यवस्था सरकार तथा ख़ानगी दोनों क्षेत्र से चलती है।

उदाहरण: ONGC सरकारी पेट्रोलियम रिफ़ाइनेरी है और Reliance ख़ानगी है।

  • परमाण्विक कार्यो को सिर्फ सरकारी संस्था करती है, जबकि रेल्वे मे सरकार और खानगी दोनों काम करते है, वैसेही रियल इस्टेट पूरा ख़ानगी क्षेत्र है।

सरकार का संशाधन पर नियन्त्रण की मात्रा कितनी अधिक या कितनी कम है इस आधार पर समाजवाद के वास्तविक स्वरूप का अवधारण किया जाता है।

1991 के LPG सुधारो में सरकार कई क्षेत्रो में अपना नियंत्रण कम करके थोड़ा सा मुड़ीवादी की ओर जुकी है।

2.3 पंथ निरपेक्षता (Secularism)

भारत का कोई राष्ट्रीय धर्म नही होगा।

संविधान के अंदर पंथ निरपेक्ष या धर्म निरपेक्ष शब्द का उल्लेख नही है, लेकिन संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता के रूप में मूल अधिकारों का उल्लेखित किया गया है।

पाकिस्तान, ईरान जेसे देशो का राष्ट्रिय धर्म इस्लाम है जबकि भारत में सभी धर्मो को समान महत्व प्रदान किया गया है।

प्रश्न यह है की राष्ट्रिय धर्म होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है ?

बिलकुल फर्क पड़ता है,

अगर आपको पाकिस्तान सरकार के किसी भी उच्च पद जेसे – प्रधानमंत्री, कोर्ट के जज, आर्मी अधिकारी आदि पर बेठना हो तो आपको इस्लाम धर्म का होना अनिवार्य है।

और अगर आप इस्लाम को नही मानते तो फिर आपको इस्लाम स्वीकार करके बाद ही पद मिल सकता है।

  • जबकि भारत में किसी भी धर्म का व्यक्ति ऐसे पद ग्रहण कर सकता है।

राष्ट्रीय धर्म यह भी दर्शाता है की उस देश की नीतियां अपने राष्ट्रिय धर्म की ओर ज्यादा जुकी हुई होगी।

ध्यान देने की बात यह है की भारत में सकारात्मक धर्म निरपेक्षता है, जिसमे सभी धर्मो को समान महत्व दिया जाता है।

इसके विपरीत यूरोप के देशो में नकारात्मक धर्म निरपेक्षता है, इसमें किसी भी धर्म को महत्व नही दिया जाता।

2.4 लोकतंत्रात्मक राष्ट्र (Democracy)

भारत लोकतंत्रात्मक राष्ट्र होगा, जिसमे देश को चलाने के सभी निर्णय देश की जनता लेगी।

सवा सो करोड़ वस्ती होने से सभी को निर्णय में समावेश करना वास्तविक नही है इसीलिए उनके द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि निर्णय लेते है।

अब्राहम लिंकन के अनुसार,

By the people, For the people, Of the people (लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा चलता शासन) अब्राहम लिंकन

शासन ही सही मायने में लोकतंत्र की निशानी है।

2.5 गणराज्य देश (Republic)

गणराज्य में जनता सर्वोपरि शासक होती है, जहा किसी वंशानुगत (Hereditary) परिवार या वंश का शासन नहीं होता है।

गणराज्य में जनता देश के प्रमुख को निश्चित समय के लिए चुनती है।

इस परिभाषा के अनुसार भारत गणराज्य देश है, क्योंकि हम अपने राष्ट्रपति को परोक्ष रूप से पांच साल के लिए चुनते है।

जबकि ब्रिटेन में रानी के परिवार का शासन होता है, जो वंशानुगत पद धारण करते है और जिसको जनता ने नही चुना होता है, इसीलिए वह गणराज्य नही है।

  • संक्षेप्त में :- राजप्रमुख निर्वाचित होगा न कि वंशानुगत

essay on preamble of indian constitution in hindi

नमस्ते! मैं मेहुल जोशी हूँ। मैंने इस ब्लॉग को संवैधानिक प्रावधानों और भारतीय कानूनों को बहुत आसान बनाने की दृष्टि से बनाया है ताकि आम लोग भी कानून आसानी से समझ सकें।

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भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है?

प्रस्तावना(preamble), को भारतीय संविधान का परिचय पत्र कहा जाता है. सन 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसमें संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था. प्रस्तावना, भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करती है और लोगों के बीच भाई चारे को बढावा देती है..

Hemant Singh

भारतीय संविधान की प्रस्तावना, जवाहरलाल नेहरू द्वारा बनाये गये पेश किया गये 'उद्येश्य प्रस्ताव 'पर आधारित है. प्रस्तावना को सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में शामिल किया गया था, इसके बाद कई देशों ने इसे अपनाया है. संविधान विशेषज्ञ नानी पालकीवाला ने संविधान की प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र कहा है. 

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भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है (Preamble of Indian Constitution)?

हम भारत के लोग , भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न , समाजवादी , पंथनिरपेक्ष , लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :

न्याय , सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक ,

विचार , अभिव्यक्ति , विश्वास , धर्म और उपासना की स्वतंत्रता ,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा ,

उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए ,

दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर , 1949 ई 0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत , अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"

preamble-indian-constitution

प्रस्तावना के चार घटक इस प्रकार हैं: (Four Components of Preamble)

1. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि संविधान के अधिकार का स्रोत भारत के लोगों के साथ निहित है।

2. यह इस बात की घोषणा करता है कि भारत एक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राष्ट्र है।

3. यह सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करता है तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए भाईचारे को बढ़ावा देता है।

4. इसमें उस तारीख (26 नवंबर 1949) का उल्लेख है जिस दिन संविधान को अपनाया गया था.

प्रस्तावना के मूल शब्दों की व्याख्या इस प्रकार है:

संप्रभुता (Sovereignty)

प्रस्तावना यह दावा करती है कि भारत एक संप्रभु देश है। सम्प्रुभता शब्द का अर्थ है कि भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रुभता सम्पन्न राष्ट्र है। भारत की विधायिका को संविधान द्वारा तय की गयी कुछ सीमाओं के विषय में देश में कानून बनाने का अधिकार है।

समाजवादी (Socialist)

'समाजवादी' शब्द संविधान के 1976 में हुए 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया । समाजवाद का अर्थ है समाजवादी की प्राप्ति लोकतांत्रिक तरीकों से होती है। भारत ने 'लोकतांत्रिक समाजवाद' को अपनाया है। लोकतांत्रिक समाजवाद एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखती है जहां निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र कंधे से कंधा मिलाकर सफर तय करते हैं। इसका लक्ष्य गरीबी, अज्ञानता, बीमारी और अवसर की असमानता को समाप्त करना है।

धर्मनिरपेक्ष (Secular)

'धर्मनिरपेक्ष' शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ है कि भारत में सभी धर्मों को राज्यों से समानता, सुरक्षा और समर्थन पाने का अधिकार है। संविधान के भाग III के अनुच्छेद 25 से 28 एक मौलिक अधिकार के रूप में धर्म की स्वतंत्रता को सुनिश्चत करता है।

लोकतांत्रिक (Democratic)

लोकतांत्रिक शब्द का अर्थ है कि संविधान की स्थापना एक सरकार के रूप में होती है जिसे चुनाव के माध्यम से लोगों द्वारा निर्वाचित होकर अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रस्तावना इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च सत्ता लोगों के हाथ में है। लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र के लिए प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है। सरकार के जिम्मेदार प्रतिनिधि, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, एक वोट एक मूल्य, स्वतंत्र न्यायपालिका आदि भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं हैं।

गणराज्य (Republic)

एक गणतंत्र अथवा गणराज्य में, राज्य का प्रमुख प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लोगों द्वारा चुना जाता है। भारत के राष्ट्रपति को लोगों द्वारा परोक्ष रूप से चुना जाता है ; जिसका अर्थ संसद औऱ राज्य विधानसभाओं में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से है। इसके अलावा , एक गणतंत्र में , राजनीतिक संप्रभुता एक राजा की बजाय लोगों के हाथों में निहित होती है।

न्याय (Justice)

प्रस्तावना में न्याय शब्द को तीन अलग-अलग रूपों में समाविष्ट किया गया है- सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक , जिन्हें मौलिक और नीति निर्देशक सिद्धांतों के विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से हासिल किया गया है।

प्रस्तावना में सामाजिक न्याय का अर्थ संविधान द्वारा बराबर सामाजिक स्थिति के आधार पर एक अधिक न्यायसंगत समाज बनाने से है। आर्थिक न्याय का अर्थ समाज के अलग-अलग सदस्यों के बीच संपति के समान वितरण से है जिससे संपति कुछ हाथों में ही केंद्रित नहीं हो सके। राजनीतिक न्याय का अर्थ सभी नागरिकों को राजनीतिक भागीदारी में बराबरी के अधिकार से है। भारतीय संविधान प्रत्येक वोट के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और समान मूल्य प्रदान करता है।

स्वतंत्रता (Liberty)

स्वतंत्रता का तात्पर्य एक व्यक्ति जो मजबूरी के अभाव या गतिविधियों के वर्चस्व के कारण तानाशाही गुलामी , चाकरी , कारावास , तानाशाही आदि से मुक्त या स्वतंत्र कराना है।

समानता (Equality)

समानता का अभिप्राय समाज के किसी भी वर्ग के खिलाफ विशेषाधिकार या भेदभाव को समाप्त करने से है। संविधान की प्रस्तावना देश के सभी लोगों के लिए स्थिति और अवसरों की समानता प्रदान करती है। संविधान देश में सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक समानता प्रदान करने का प्रयास करता है।

भाईचारा (Fraternity)

भाईचारे का अर्थ बंधुत्व की भावना से है। संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति और राष्ट्र की एकता और अखंडता की गरिमा को बनाये रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढावा देती है।

प्रस्तावना में संशोधन (Amendment in the Preamble)

1976 में , 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम (अभी तक केवल एक बार) द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था । अदालत ने इस संशोधन को वैध ठहराया था।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्या (Explanation of preamble by the Supreme Court)

संविधान में प्रस्तावना को तब जोड़ा गया था जब बाकी संविधान पहले ही लागू हो गया था। बेरूबरी यूनियन के मामले में (1960) सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है। हालांकि , यह स्वीकार किया गया कि यदि संविधान के किसी भी अनुच्छेद में एक शब्द अस्पष्ट है या उसके एक से अधिक अर्थ होते हैं तो प्रस्तावना को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

केशवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को पलट दिया और यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और इसे संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है. एक बार फिर , भारतीय जीवन बीमा निगम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है।

इस प्रकार स्वतंत्र भारत के संविधान की प्रस्तावना खूबसूरत शब्दों की भूमिका से बनी हुई है। इसमें बुनियादी आदर्श , उद्देश्य और दार्शनिक भारत के संविधान की अवधारणा शामिल है। ये संवैधानिक प्रावधानों के लिए तर्कसंगतता अथवा निष्पक्षता प्रदान करते हैं.

अनुच्छेद 14 क्या है और यह किस प्रकार की समानता का अधिकार देता है?

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भारतीय संविधान की प्रस्तावना का महत्त्व

भारतीय संविधान की प्रस्तावना, महत्त्व और प्रमुख बातें: Preamble of the Constitution of India

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने 13 दिसंबर, 1946 को भारतीय संविधान में एक उद्देशिका पेश की थी. जो  उद्देशिका संविधान निर्माण से सम्बंधित था. संविधान निर्माण से सम्बंधित नेहरू द्वारा प्रस्तावित उद्देशिका को, संविधान निर्माण के अंतिम चरण में  ‘ संविधान की प्रस्तावना ‘ के रूप में भारतीय संविधान में लिखा गया. तो आज मैं आपसे इसी के बारे में बात करेंगे कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना का महत्त्व क्या है? Preamble of The Constitution in Hindi

Table of Contents

भारतीय संविधान की प्रस्तावना हिंदी में 

“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष,

लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता ,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता

प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में

व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की

एकता और अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता

बढाने के लिए

दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्वर, 1949 ईo (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस सविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं|”

भारतीय संविधान की प्रस्तावना का महत्त्व 

  • भारत के संविधान की प्रस्तावना में नागरिकों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वर्णन है.
  • संविधान की प्रस्तावना देश की नागरिकों को आपस में भाई-चारे और बंधुत्व से रहने और देश की एकता व अखंडता को बनाये रखने का संदेश देती है.
  • प्रस्तावना में लिखित शब्द जैसे- “हम भारत के लोग ………….इस संविधान को” अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं|” भारतीय नागरिकों की सर्वोच्च संप्रभुता को बतलाती है.
  • संविधान की प्रस्तावना को ‘संविधान की कुंजी’ कहा जाता है.
  • संप्रभुता, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणराज्य शब्द भारत की प्रकृति के बारे में बतलाती है.
  • न्याय, स्वतंत्रता व समानता शब्द भारतीय नागरिकों को प्राप्त अधिकारों को बतलाती है.
  • प्रस्तावना के अनुसार संविधान की समस्त शक्तियों का केंद्रबिंदु ‘भारत के लोग’ ही है.
  • संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम के द्वारा प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘राष्ट्र की अखंडता’ को जोड़ा गया.

भारतीय संविधान की प्रस्तावना किसने लिखी?

संविधान की प्रस्तावना पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखी थी. नेहरू जी ने 13 दिसंबर, 1946 को भारतीय संविधान में एक उद्देशिका पेश की थी. वह उद्देशिका  संविधान निर्माण से सम्बंधित था. संविधान निर्माण से सम्बंधित नेहरू द्वारा प्रस्तावित उद्देशिका को ही, संविधान निर्माण के अंतिम चरण ‘ संविधान की प्रस्तावना ‘ के रूप में भारतीय संविधान में लिखा गया.

भारतीय संविधान की प्रस्तावना का वर्णन 

प्रस्तावना में कुछ विशेष शब्दों को शामिल किया गया है, जो भारत की प्रकृति और भारत के नागरिकों को प्राप्त अधिकारों के बारे में बतलाती है.  जैसे- संप्रभुता, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक,गणतंत्र और न्याय, स्वतंत्रता व समानता आदि शब्द.

संप्रभुता – भारत एक संप्रभु देश है. यह अपनी निर्णय स्वतंत्र रूप से स्वयं लेता है, चाहे वह आतंरिक व बाह्य मामले कोई भी हो. भारत अन्य किसी देश पर न निर्भर है और न ही किसी देश का डोमिनियन. भारत पूर्णत: स्वतंत्र राष्ट्र है.

समाजवादी – भारतीय समाज ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ है, जिसे राज्याश्रित समाजवाद भी कहा है. भारतीय समाजवाद में उत्पादन और वितरण के साधनों में निजी व सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों का अधिकार होता है. भारतीय समाजवाद मार्क्सवाद और गांधीवाद का मिला-जुला रूप है, जिसमें गांधीवाद समाजवाद का अधिक प्रभाव है.

धर्मनिरपेक्ष – भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है. यहाँ सभी धर्मों का सम्मान समान रूप से होता है. अपनी इच्छा के अनुसार भारतीय नागरिक किसी भी धर्म को मान और अपना सकते हैं.

लोकतांत्रिक – भारत एक लोकतांत्रिक देश है. यहाँ लोकतंत्र का शासन चलता है यानि लोगों के द्वारा चुने हुए सरकार देश की शासन संभालती है. संविधान की प्रस्तावना में भारत की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र को दर्शाया गया है.

भारतीय संविधान की प्रमुख बातें 

गणतंत्र- भारत एक गणतंत्र देश है. यहाँ देश के प्रमुख नागरिक यानि राष्ट्रपति का पद चुनाव के द्वारा प्राप्त होता है, न कि उत्तराधिकार द्वारा. भारत के प्रथम नागरिक का चयन गणतंत्र के द्वारा होता है.

न्याय – भारतीय संविधान में तीन प्रकार की न्याय की बात की गयी है. सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय. सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी क्षेत्रों में सभी नागरिकों को समान न्याय प्राप्त होगा.

स्वतंत्रता – प्रस्तावना में नागरिकों को प्राप्त स्वतंत्रता को दर्शाया गया है. भारतीय नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्राप्त है.

समानता – भारतीय संविधान की प्रस्तावना में प्रतिष्ठा और अवसर की समता को दर्शाया गया. राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक सभी क्षेत्रों में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होगा. कानून के समाने किसी भी प्रकार कोई भेदभाव नहीं होगा, सभी नागरिक समान है.

इसे भी पढ़ें: मौलिक अधिकार कौन-कौन से है? 

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भारतीय संविधान पर निबंध Essay on Indian Constitution in Hindi

इस लेख में आप भारतीय संविधान पर निबंध Essay on Indian constitution in Hindi हिन्दी में पढ़ेंगे। इसमें आपको भारतीय संविधान का इतिहास, प्रकार, विशेषताएं, लेखक, धराएं जैसी की महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई है।

Table of Content

विश्व के तमाम देशों को व्यवस्थित रूप से संचालित करने के लिए कुछ नियम और कानून तय किए गए हैं। यह अलग-अलग प्रकार के नियम कानून लिखित और मौखिक भी हो सकते हैं। 

इसे संविधान कहा जाता है, जो एक तरह से कानून की किताब है। यह देश की सर्वोच्च विधि होती है, जिसके अनुसार ही किसी भी देश के शासन प्रशासन को संचालित किया जाता है। 

भारतीय संविधान की बात करें तो यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के संचालन के लिए जानी जाती है। सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ ही हमारा संविधान भी दुनिया में लिखित तौर पर बहुत ही विशाल है।

भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जहां शासन तंत्र जनता के बहुमत के आधार पर ही निर्धारित होता है। भारतीय संविधान में हर किसी के लिए मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के साथ साथ सैकड़ों कानूनों की चर्चा की गई है। 

दुनिया में भारतीय संविधान अपनी एक अलग पहचान रखता है। यह विविधताओं से भरा है, जिसे तैयार करने में लगभग 2 साल 11 महीने और 14 दिनों का समय लगा था। 

बाबासाहेब आंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है। बाबासाहेब के साथ ही अन्य कई बुद्धिजीवियों और सर्वश्रेष्ठ लोगों द्वारा इसे तैयार किया गया था।

भारतीय संविधान का इतिहास History of Indian Constitution in Hindi

भारत जब ब्रिटिश सरकार के औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र होने के पड़ाव पर था, तभी देश को एक नए ढंग से चलाने के लिए संविधान सभा को बनाया गया था। भारत के लिए एक नए संविधान को गढ़ने में बहुत समय और विभिन्न बैठकों का आयोजन हुआ था। 

9 दिसंबर 1946 के दिन पहली बार संविधान सभा की बैठक हुई थी। 26 जनवरी 1950 में भारतीय संविधान को लागू किया गया था। प्रारंभ में भारतीय संविधान में कुल मिलाकर 22 भाग 8 अनुसूचियां व 395 अनुच्छेद का समावेश हुआ था।

लेकिन समय-समय पर कई संशोधन हुए, जिसके परिणाम स्वरूप नए-नए प्रावधानों को भी इसमें जोड़ा गया। आज के समय में भारतीय संविधान में कुल मिलाकर 25 भाग 12 अनुसूचियां और 395 अनुच्छेद मौजूद हैं। 

संविधान बनाने वाले लोगों के उत्कृष्ट विचार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि संविधान इस तरह से बनाया गया था जहां कोई भी प्रत्यक्ष रूप से किसी भी कानून को जड़ से खत्म नहीं कर सकता और ना ही मनमानी कर के नए कानूनों को जोड़ सकता है। 

इसके लिए बहुत ही लंबा कानूनी क्रियाकलाप के बाद ही कोई भी संशोधन किया जा सकता है। अधिकतर जितने भी अधिनियम को संशोधित किया गया, उनके जरिए नए उप खंडों को भारतीय संविधान में जगह दी गई। 

यदि संविधान निर्माण की बात करें तो ब्रिटिशों ने भारत पर लंबे समय तक राज किया। जिसके कारण उनके नियम कानूनों की छाप हमारे देश पर बहुत ही प्रभावी ढंग से पढ़ चुकी थी। 

संविधान निर्माण कर्ताओं ने इसी कारण ब्रिटिश राज्य व्यवस्था के संसदीय प्रशासन प्रणाली को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान का निर्माण किया था।

भारतीय संविधान के प्रकार Types of Indian Constitution in Hindi

संविधान की रचना के आधार पर, (i) विकसित संविधान (evolved constitution).

यह संविधान का वह प्रकार है, जो बिना किसी निश्चित समय, सिद्धांत और सभा द्वारा तैयार नहीं किया जाता। बल्कि कई सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के परिणाम स्वरूप ऐसे संविधान का निर्माण होता है। 

(ii) निर्मित संविधान (Enacted Constitution)

संविधान का ऐसा प्रारूप जो किसी निश्चित समय और ध्येय के कारण सभा से पारित किया जाता है। भारतीय संविधान एक तरह का निर्मित संविधान है, जो एक निश्चित समय 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।

संविधान के स्वरूप के आधार पर

(i)लिखित संविधान (written constitution).

संविधान काफी विचार विमर्श करने के पश्चात तथा संविधान सभा द्वारा निश्चित सैद्धांतिक क्रियाकलापों के पश्चात लागू किया जाता है। लिखित संविधान आमतौर पर निर्मित किया गया संविधान होता है, जिसमें स्पष्ट रूप से सिद्धांत और नियमों का वर्णन होता है।

(ii) अलिखित संविधान (Unwritten Constitution)

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि वह संविधान जो लिखित नहीं है, लेकिन उसके नियम और सिद्धांतों को अनिवार्य रूप से माना जाता है, अलिखित संविधान कहलाता है। हालांकि किसी भी प्रकार का संविधान पूर्ण रूप से अलिखित या मौखिक नहीं हो सकता है।

संविधान में संशोधन प्रक्रिया के आधार पर 

(i) लचीला संविधान (flexible constitution).

जिस कानूनी प्रक्रिया में विधायिका को कानून निर्माण की प्रक्रिया में सरलता होती है तथा संवैधानिक दृष्टिकोण से आवश्यक बदलाव को बड़े ही आसानी से कानूनी प्रक्रिया से प्रसार करके उसे लागू कर दिया जाता है, वह लचीले संविधान की श्रेणी में आता है। लचीला संविधान किसी भी तरह के संशोधन बदलावों को आसानी से स्वीकार कर सकता है।

(ii) कठोर संविधान (Rigid Constitution)

लचीला संविधान के प्रकृति के बिल्कुल विपरीत कठोर संविधान, जिसमें संशोधनों के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है तथा प्रकृति में कठोर होता है, जिनमें बदलावों को शामिल करना बेहत कठिन कार्य होता है ऐसे संविधान कठोर संविधान के प्रवृत्ति के अंतर्गत आते हैं।

भारतीय संविधान की विशेषताएं Important Features of Indian Constitution in Hindi

  • भारतीय संविधान पूरी तरह से लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी विचारधारा पर आधारित है।
  • विश्व का सबसे व्यापक लिखित तौर पर मौजूद एकमात्र भारतीय संविधान है।
  • भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों और अधिकारों को विशेष जगह दी गई है।
  • अनुसूचित जैसे तमाम पिछड़े वर्गो से ताल्लुक रखने वाले समुदायों के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं।
  • संविधान पूर्ण रूप से अंतर्राष्ट्रीय शांति और समृद्धि को विकसित करने पर विश्वास रखता है।
  • भारतीय संविधान के आधार पर देश के संचालन व्यवस्था के लिए संसदात्मक शासन पद्धति अपनाई गई है।
  • भारतीय न्याय व्यवस्था कठोरता और लचीला दोनों ही प्रकृति का एक अद्भुत मिश्रण है।
  • विश्व के सामने यह एक आश्चर्य का मुद्दा है, कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी को इतने प्रभावी ढंग से भारतीय संविधान संचालित करने में पूर्ण रूप से सफल रहा है।

भारतीय संविधान के लेखक 

हमारे भारतीय संविधान के निर्माण की जब भी बात आती है, तो सभी के मन में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का ही जिक्र होता है। 

लेकिन बाबा भीमराव अंबेडकर के अलावा बहुत से लोगों के अथाह प्रयास के पश्चात संविधान का निर्माण संभव हो सका था। यदि उन महान लोगों के प्रयासों के बिना भारतीय संविधान के निर्माण की बात की जाए तो यह अधूरा रहेगा।

नंदलाल बोस के निर्देशन में भारतीय संविधान का सजावट काम अन्य शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा संपन्न किया गया था। 1934 में ही श्री एम.एन. राव ने भारतीय संविधान की नींव रख दी थी। 

गौरतलब है कि राव साहब को साम्यवादी विचारधारा के पहले अन्वेषक के रूप में भी जाना जाता है। कांग्रेस पार्टी से ताल्लुक रखने वाले कई बुद्धिजीवियों के कड़ी मेहनत के पश्चात हमारा संविधान बना था। 

श्री राजगोपाल चारी, राजेंद्र प्रसाद , जवाहरलाल नेहरू , सरदार वल्लभभाई पटेल इत्यादि जैसे अन्य दूर दृष्टि रखने वाले राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों ने भी संविधान निर्माण में अपना योगदान दिया था।

भारतीय संविधान की धाराएं

शुरूआत में 26 नवंबर, 1949 के दरमियान अपनाए गए संविधान में कुल मिलाकर एक प्रस्तावना, 22 भागों में 395 लेख और 8 अनुसूचियाँ शामिल की गई थी। 

1950 में किए गए अधिनियमन में बदलाओं के बाद वर्तमान में 104 संशोधनों के कारण लेखों की संख्या बढ़कर 448 पहुंच गई है और साथ ही संविधान में अब 25 भाग और 12 अनुसूचियां हैं।

भारतीय संविधान कब लागू हुआ

1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद ही देश के संचालन के लिए कई तरह की परियोजनाएं बनाई जा रही थी। 26 नवंबर 1949 में भारतीय संविधान को अंगीकृत किया गया था, जिसमें कुछ प्रावधान तो उसी समय बना दिए गए थे। 

इसके बाद 26 जनवरी 1950 में इसे लागू किया गया। संविधान निर्माण के विशेष दिन के उपलक्ष में ही प्रति वर्ष 26 जनवरी को पूरे भारत में “ गणतंत्रता दिवस ” मनाया जाता है।

भारतीय संविधान की परिभाषा

कानूनों का ऐसा समुच्चय जो अपने सैद्धांतिक नियमों के अंतर्गत किसी भी देश के व्यवस्थित रूप से संचालन में अनिवार्य रूप से भागीदार होता है, उसे संविधान कहा जाता है। 

जो भी राजनीतिक पक्ष देश पर शासन करती है, उसे सरकार कहते हैं। सरकार के प्रमुख अंगों में न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका का समावेश होता है। जो प्रमुख रूप से संविधान का मुख्य अंग माना जाता है। 

संविधान एक तरह से विस्तृत कानूनी दस्तावेज होता है, जो किसी भी देश का सर्वोच्च विधि माना जाता है। दूसरे शब्दों में देश में कानूनी व्यवस्था को संचालित करने वाले मूल कानूनी सिद्धांतों को संविधान का नाम दिया जाता है।

भारतीय संविधान के प्रमुख भाग Major Parts of Indian Constitution

  • भाग 1 – संघ एवं उसका राज्य क्षेत्र : अनुच्छेद 1 से 4
  • भाग 2 – नागरिकता : अनुच्छेद 5 से 11
  • भाग 3 – मौलिक अधिकार : अनुच्छेद 12 से 35
  • भाग 4 – नीति निर्देशक तत्व : अनुच्छेद 36 से 51
  • भाग 4( क) – मूल कर्तव्य : अनुच्छेद 51
  • भाग 5 – संघ : अनुच्छेद 52 से 151
  • भाग 6 – राज्य : अनुच्छेद 152 से 237
  • भाग 7 – संविधान अधिनियम : अनुच्छेद 238
  • भाग 8 – संघ राज्य क्षेत्र : अनुच्छेद 239 से 242
  • भाग 9 – पंचायत : अनुच्छेद 243 से 243
  • भाग 10 – नगर पालिका : अनुच्छेद 243P-243ZG
  • भाग 11 – अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र : अनुच्छेद 244 से 244A
  • भाग 12 – संघ और राज्य के बीच संबंध : अनुच्छेद 245 से 263
  • भाग 13 – वित संपत्ति : अनुच्छेद 264- 300
  • भाग 14 – व्यापार वाणिज्य और समागम : अनुच्छेद 301 से 307
  • भाग 15 – संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं : अनुच्छेद 308 से 322
  • भाग 16 – अधिकरण : अनुच्छेद 323A से 323B
  • भाग 17 – निर्वाचन : अनुच्छेद 324 से 329A
  • भाग 18 – कुछ वर्गों के लिए विशेष संबंध : अनुच्छेद 330 से 342
  • भाग 19 – राजभाषा : अनुच्छेद 343 से 351
  • भाग 20 – आपात उपबंध : अनुच्छेद 352 से 307
  • भाग 21 – प्रकीर्ण : अनुच्छेद 361 से 367
  • भाग 22 – संविधान के संशोधन : अनुच्छेद 368

भारतीय संविधान के स्रोत

केवल ब्रिटिश शासन पद्धति ही नहीं बल्कि दुनिया के बहुत से देशों की शासन प्रणाली से सुझाव लेकर भारतीय संविधान बना हुआ है। 

हमारा संविधान अमेरिकी संविधान जिसमें मूल अधिकार, उपराष्ट्रपति पद, राष्ट्रपति के महाभियोग, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अन्य न्यायिक सिद्धांतों के आधार पर तैयार किया गया है।

वही ब्रिटिश संविधान से एकल नागरिकता, विधाई प्रक्रिया, संसदीय विशेषाधिकार, मंत्रिमंडलीय सिद्धांत, द्विसदनीय विशेषता और विधि द्वारा निर्मित प्रक्रिया इत्यादि का सुझाव लिया गया। 

इसके अलावा फ्रांस, भूतपूर्व सोवियत संघ, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड इत्यादि जैसे देशों के संवैधानिक प्रणाली के आधार पर मिलाजुला कर भारतीय संविधान की स्थापना की गई है। 

यह भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता है कि कई सारे देशों के संवैधानिक नियमों के मिश्रण के परिणाम स्वरूप हमारा संविधान बना हुआ है।

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नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

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17 Comments

NYC Essay on Indian Constitution in Hindi

Nice thanks for this posting

Very good and very nice

Wow so nice every speech is very nice its very short and very simple essay

Very Nice and short essay Thanks

wow is very good peragraph

Our constitution are very important to the Indian people,cultural, and others etc.

Dr.babasaheb ambedakr is the father of Indian contitution.

Very very nice

Very creative

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भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Preamble In Indian Constitution In Hindi

भारतीय संविधान की प्रस्तावना Preamble In Indian Constitution In Hindi  दुनिया के सबसे बड़े संविधान भारत के संविधान की प्रस्तावना उद्देशिका को संविधान का ह्रदय भी कहा जाता हैं.

मुख्य रूप से प्रस्तावना में सम्पूर्ण संविधान के उद्देश्यों का वर्णन इसमें प्रस्तुत किया जाता है जिसकी शुरुआत हम भारत के लोग वाक्य से होती हैं, आज हम जानेगे कि भारत के संविधान में प्रस्तावना का महत्व क्या है हिंदी पीडीऍफ़ में सम्पूर्ण प्रस्तावना के मूल बिंदु  दिए गये हैं.

भारतीय संविधान प्रस्तावना Preamble In Indian Constitution In Hindi

भारतीय संविधान प्रस्तावना Preamble In Indian Constitution In Hindi

Here We Preamble In Indian Constitution In Hindi Language In Pdf What Is Meaning Definition Of  Preamble Short Essay Information Main Points Here.

Meaning Of Preamble In Indian Constitution In Hindi

प्रत्येक संविधान के प्रारम्भ में एक प्रस्तावना होती है जिसके द्वारा संविधान के मूल उद्देश्यों को स्पष्ट किया जाता हैं. जिससे संविधान की क्रियान्वती तथा उसका पालन संविधान की मूल भावना के अनुसार किया जा सके. संविधान के गौरव पूर्ण मूल्यों को संविधान की प्रस्तावना में रखा गया हैं.

संविधान की मूल प्रस्तावना (Original Preamble Of Indian Constitution In Hindi)

भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रतात्मक, गणराज्य बनाने के लिए तथा समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा

उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित कराने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.

संविधान में 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 की धारा 2 के द्वारा (3.1.77 के अनुसार) प्रस्तावना में निम्न संशोधन किये गये हैं.

  • प्रभुत्व सम्पन्न लोक तंत्रात्मक गणराज्य के स्थान पर सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य प्रतिस्थापित किया गया हैं.
  • राष्ट्र की एकता के स्थान पर राष्ट्र की एकता और अखंडता को प्रतिस्थापित किया गया हैं. इस संशोधन के बाद प्रस्तावना निम्नानुसार हैं.

हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त करने के लिए

तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.

संविधान की प्रस्तावना की विस्तृत विवेचना (Description Of Preamble)

घोषणात्मक भाग (declaratory part).

हम भारत के लोग- संविधान के निर्माताओं के अनुसार संप्रभुता अन्तः जनता में निहित है. सरकार के पास अथवा राज्य सरकार के विभिन्न अंगों के पास जो शक्तियाँ है वे सब जनता से मिली है.

प्रस्तावना में प्रयुक्त हम भारत के लोग इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित व आत्मार्पित करते हैं. पदावली से यह स्पष्ट है कि भारतीय संविधान का स्रोत भारत की जनता है अर्थात जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधियों की सभा द्वारा संविधान का निर्माण किया गया हैं.

उद्देश्य भाग (Obejective Part)

सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न – इस पदावली से यह व्यक्त होता है कि भारत पूर्ण रूप से प्रभुता सम्पन्न राज्य है आंतरिक और विदेशी मामलों में किसी अन्य विदेशी शक्ति के अधीन नही है.

समाजवाद – समाजवाद शब्द को 42 वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया हैं. प्रस्तावना में समाजवाद शब्द को सम्मिलित करके उसे और अधिक स्पष्ट किया गया हैं.

इसमें समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने और आर्थिक विषमता को दूर करने का प्रयास करने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया हैं.

पंथ निरपेक्ष- 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में इसे जोड़ा गया था. इसका अर्थ यह है कि भारत धर्म के क्षेत्र में न तो धर्म विरोधी है न धर्म प्रचारक, बल्कि वह तटस्थ है जो सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता हैं.

लोकतंत्रात्मक – इससे तात्पर्य है कि भारत में राज सत्ता का प्रयोग जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि करते है और वे जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं. संविधान सभी को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय का आश्वासन देता हैं.

गणराज्य- इसका अर्थ यह है कि भारत में राज्याध्यक्ष या सर्वोच्च व्यक्ति वंशानुगत न होकर निर्वाचित होता हैं. भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा होता हैं.

भारतीय संविधान की प्रस्तावना का विवरणात्मक भाग (Distributory Part)

सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय-.

  • सामाजिक न्याय- सामाजिक न्याय का अर्थ है कि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समानता प्राप्त हो. जाति, धर्म, वर्ग, लिंग, नस्ल या अन्य किसी आधार पर नागरिकों में भेदभाव नहीं हो.
  • आर्थिक न्याय- अनुच्छेद 39 में आर्थिक न्याय के आदर्शो को स्वीकार किया गया हैं. इसमें राज्यों को अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करने के लिए कहा गया है कि समान रूप से नागरिकों को आजीविका के साधन प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हो, समुदाय की भौतिक सम्पति का स्वामित्व और वितरण इस प्रकार हो जिसमें अधिकाधिक सामूहिक हित संभव हो सके. पुरुषों व स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले, उत्पादन व वितरण के साधनों का अहितकर केन्द्रीयकरण न हो.
  • राजनीतिक न्याय- भारतीय संविधान वयस्क मताधिकार की स्थापना, संवैधानिक उपचारों द्वारा राजनीतिक न्याय के आदर्श को मूर्त रूप प्रदान करता हैं.

स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व

  • स्वतंत्रता- भारतीय संविधान में नागरिकों को विचार अभिव्यक्त, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता दी गई हैं.
  • समानता – देश के सभी नागरिकों को प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्रदान की गई हैं.
  • बन्धुत्व- प्रस्तावना में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता की भावना बढ़ाने के लिए संकल्प किया गया हैं.

व्यक्ति की गरिमा व राष्ट्र की एकता व अखंडता

  • व्यक्ति की गरिमा व राष्ट्र की एकता – हमारे संविधान निर्माता भारत की विविधताओं के अंतर्गत विद्यमान एकता से परिचित थे. वे चाहते थे कि हमारे नागरिक, प्रांतवाद, भाषावाद व सम्प्रदायवाद को महत्व न देकर देश की एकता के भाव को अपनाएं. इसलिए हमारे संविधान में बंधुत्व का आदर्श दो आधारों पर टिका है. यह आधार हैं- राष्ट्र की एकता व व्यक्ति की गरिमा.
  • अखंडता- 42 वें संविधान संशोधन द्वारा उद्देशिका में अखंडता शब्द को सम्मिलित किया गया हैं. इसका मूल उद्देश्य भारत की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करता हैं.

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रस्तावना या उदेशिका में संविधान के मूलभूत आदर्शों को दर्शाया गया हैं.

  • भारतीय संविधान के बारे में कुछ तथ्य  
  • भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार
  • भारतीय संविधान की विशेषताएं
  • भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध
  • भारतीय चुनाव पर निबंध
  • भारतीय संसद की सामान्य जानकारी

आशा करता हूँ दोस्तों आपकों  Preamble In Indian Constitution In Hindi का यह लेख अच्छा लगा होगा. यदि आपकों यहाँ दिया गया  भारतीय संविधान प्रस्तावना इन हिंदी  अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे तथा इस लेख से जुड़ा आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट कर जरुर बताएं.

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Essay on Constitution of India

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A Constitution is a set of rules and regulations guiding the administration of a country. The Constitution is the backbone of every democratic and secular fabric of the nation. The Constitution of India is the longest Constitution in the world, which describes the framework for political principles, procedures and powers of the government. The Constitution of India was written on 26 November 1949 and came into force on 26 January 1950. In this essay on the Constitution of India, students will get to know the salient features of India’s Constitution and how it was formed.

Constitution of India Essay

On 26th January 1950, the Constitution of India came into effect. That’s why 26th January is celebrated as Republic Day in India.

How Was the Constitution of India Formed?

The representatives of the Indian people framed the Indian Constitution after a long period of debates and discussions. It is the most detailed Constitution in the world. No other Constitution has gone into such minute details as the Indian Constitution.

The Constitution of India was framed by a Constituent Assembly which was established in 1946. Dr Rajendra Prasad was elected President of the Constituent Assembly. A Drafting Committee was appointed to draft the Constitution and Dr B.R. Ambedkar was appointed as the Chairman. The making of the Constitution took a total of 166 days, which was spread over a period of 2 years, 11 months and 18 days. Some of the salient features of the British, Irish, Swiss, French, Canadian and American Constitutions were incorporated while designing the Indian Constitution.

Also Read: Evolution and Framing of the Constitution

Features of The Constitution of India

The Constitution of India begins with a Preamble which contains the basic ideals and principles of the Constitution. It lays down the objectives of the Constitution.

The Longest Constitution in the world

The Indian Constitution is the lengthiest Constitution in the world. It had 395 articles in 22 parts and 8 schedules at the time of commencement. Now it has 448 articles in 25 parts and 12 schedules. There are 104 amendments (took place on 25th January 2020 to extend the reservation of seats for SCs and STs in the Lok Sabha and state assemblies) that have been made in the Indian Constitution so far.

How Rigid and Flexible is the Indian Constitution?

One of the unique features of our Constitution is that it is not as rigid as the American Constitution or as flexible as the British Constitution. It means it is partly rigid and partly flexible. Owing to this, it can easily change and grow with the change of times.

The Preamble

The Preamble has been added later to the Constitution of India. The original Constitution does not have a preamble. The preamble states that India is a sovereign, socialist, secular and democratic republic. The objectives stated by the Preamble are to secure justice, liberty, and equality for all citizens and promote fraternity to maintain the unity and integrity of the nation.

Federal System with Unitary Features

The powers of the government are divided between the central government and the state governments. The Constitution divides the powers of three state organs, i.e., executive, judiciary and legislature. Hence, the Indian Constitution supports a federal system. It includes many unitary features such as a strong central power, emergency provisions, appointment of Governors by the President, etc.

Fundamental rights and fundamental duties

The Indian Constitution provides an elaborate list of Fundamental Rights to the citizens of India. The Constitution also provides a list of 11 duties of the citizens, known as the Fundamental Duties. Some of these duties include respect for the national flag and national anthem, integrity and unity of the country and safeguarding of public property.

Also Read: Difference between Fundamental Rights and Fundamental Duties

India is a republic which means that a dictator or monarch does not rule the country. The government is of the people, by the people and for the people. Citizens nominate and elect its head after every five years.

Related Read: Constitution of India – 13 Major Features

The Constitution serves as guidelines for every citizen. It helped India to attain the status of a Republic in the world. Once Atal Bihari Vajpayee said that “governments would come and go, political parties would be formed and dissolved, but the country should survive, and democracy should remain there forever”.

We hope that this essay on the “Constitution of India” must have helped students. For the latest updates on ICSE/CBSE/State Board/Competitive Exams, stay tuned to BYJU’S. Also, download the BYJU’S App for watching interesting study videos.

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Frequently Asked Questions on Constitution of India Essay

Who is the father of our indian constitution.

Dr. B. R. Ambedkar is the father of our Indian Constitution. He framed and drafted our Constitution.

Who signed the Indian Constitution?

Dr. Rajendra Prasad was the first person from the Constitution Assembly to have signed the Indian Constitution.

What is mentioned in the Preamble of our Indian Constitution?

The preamble clearly communicates the purpose and emphasis the importance of the objectives of the Indian Constitution.

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essay on preamble of indian constitution in hindi

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Essay on Preamble of the Constitution

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In this essay we will discuss about preamble of the constitution. After reading this essay you will learn about:- 1. Introduction to the Preamble of the Constitution 2. Preamble and its Significance 3. Sources of Preamble 4. Preamble of the Constitution 5. Critical Evaluation of Preamble of the Constitution.

List of Essays on the Preamble of the Constitution

Essay Contents:

  • Essay on Critical Evaluation of Preamble of the Constitution

Essay # 1. Introduction to the Preamble of the Constitution:

The Constitution of India is prefaced with a Preamble which is supposed to reflect the thinking and ideology of constitution itself and view point of its makers. It is, however, not an integral part of the main document and as such not subject to judicial review. But at the same time it occupies a pivotal position in the interpretation or classification of any vagueness in the constitution.

It is thus key to the constitution. It also indicates the sources as well as the sanction and pattern of the constitution and is supposed to indicate its contents. The whole constitution can be measured with this yard stick and as such it has been called as perfection in itself.

It reflects country’s glorious values. In the words of Pt. Thakur Das Bhargav, “I would like that we examine all the provisions of the constitution by touch stone of the Preamble and thus decide whether constitution is good or not.”

Essay # 2. Preamble and its Significance :

C J. Suba Rao in the case of Gokalnath Vs. the State of Punjab maintained that the Preamble of the Constitution contains in nutshell its ideals and aspirations. In case, however, preamble is dropped it will not change the statute itself.

About preamble Shukla says, “It is neither regarded as a source of any substantive governmental power nor by itself alone it inputs any limitations on the exercise of powers nor expressly or impliedly prohibited by the constitution.’ In the world there are many constitutions which do not have any preamble. All that can be said is that preamble gives the constitution greater dignity.

The preamble of Indian constitution, however, not only reflects basic character of the State but also specifies at me length purposes and objectives of the constitution. Though not a part the constitution, the preamble can be referred to, explain and elucidate a point where there is some ambiguity.

There are, however, several cases in which the preamble of the constitution has been given much importance. In Indo-Pakistan Agreement Supreme Court of India observed that preamble to the constitution is a key to open the mind of the makers. In Keshvananda Bharti case all the judges look the view that preamble of the constitution is its integral part.

In Berubari Union case it has also been held that preamble is part of the Constitution. because it is expressly voted to be the part of the constitution. In the words of Dr. Dayal, “A majority of the judges of the Full Bench who expressed an opinion on the point, held that the objectives specified in re amble contain the basic structure of the constitution which cannot be amended in exercise of the powers under Section 368.”

In the words of Basu, “In other words preamble shows the general purpose behind the several provisions of the constitution but, nevertheless, it is never regarded as a source of any substantive prohibition or limitation.”

In fact, opinions even in the courts of law continue to vary whether preamble is part of the constitution or not and whether it is possible to amend it or it is too holy to be touched. In several cases the courts of law have given different opinions and viewpoints about the position and place of preamble in the constitution and as such the issue has become somewhat confusing.

Essay # 3. Sources of Preamble:

Indian constitution makers were inspired by the constitutions of the USA, Australia, France, Italy and West Germany, which contain a preamble to their respective constitutions.

The influence of the US constitution which has been dedicated to the people of that country, had, however, immense influence on constitution makers of India. Accordingly like the constitution of the USA, the Indian Constitution too has been dedicated to our people.

In addition to this, while drafting the Preamble to the constitution, our constitution makers were influenced by the Resolution of Constituent Assembly passed as early as in January, 1947, which reads as follows:

“The Constituent Assembly declares its firm and solemn resolve to proclaim India as an Independent Sovereign Republic…

Wherein all powers and authority of the Sovereign Independent India, its constituent parts and organs of government are derived from the people;

Wherein shall be guaranteed and secured to all the people of India justice, social, economic and political; equality of status, of opportunity; and before the law; freedom of thought, expression, belief, faith, worship, vocation, association and action subject to law and public morality; and

Wherein adequate safeguards shall be provided for minorities….

Wherein shall be maintained the integrity of the territory of the Republic and its sovereign rights on land….”

The Resolution of the Constituent Assembly thus promised to make India a Sovereign Democratic Republic with a federal polity and vesting all power and authority in the hands of the masses. It was in this Resolution that integration of Indian states was visualised and a federation consisting of British India and ‘Indian India’ was foresighted.

Similarly, social, economic and political justice and equality before law was also promised in this very Resolution. Thus, the Preambles of some other working constitutions of the world as well as this historic Resolution of January, 1947 are the main sources for the Preamble of our constitution.

Essay # 4. Preamble of the Constitution :

As already said, the Preamble of the Constitution of India makes very lofty promises and has been dedicated to the people of India, and not to any particular class or section of the society.

When originally adopted by the Constituent Assembly it read as follows:

“WE THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a Sovereign, Democratic Republic and to secure to all its citizens;

JUSTICE, social, economic and political;

LIBERTY, of thought, expression, belief, faith and worship;

EQUALITY, of status and of opportunity; and promote among them all;

FRATERNITY, assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the nation;

In our Constituent Assembly this twenty-sixth day of November 1949, do hereby ADOPT, ENACT and GIVE TO OURSELVES this Constitution.”

It may, however, be pointed out that the words ‘Socialist, Secular’ occurring between the words ‘Sovereign’ ‘Democratic’ and also the words Integrity’ occurring between the words ‘Unity’ and ‘of the nation’ in the preamble were inserted by Forty-Second Constitution Amendment Act, enacted in 1976.

The Principles enunciated in the constitution, namely, those of making India a Sovereign Democratic, Secular Republic, ensuring the people equality and making them as ultimate sovereign in the country have been fully incorporated in the constitution. Thus, the preamble is true picture of the constitution.

It may be discussed as under:

1. We the People of India:

The Preamble has vested ultimate authority in the people of India to whom the constitution has been dedicated and in whose name it has been enacted. It will be seen that India has adopted democracy as a form of government and way of life. In the country all adults have a right to vote without any consideration for sex, caste or creed.

All the posts in the state, including the highest one of the President of the Republic, can be held by citizen of India who gets elected by duly elected representatives of the people i.e., by his electoral college.

In India there is also Parliamentary form of government in which ultimate authority is vested in the Parliament, which consists of the elected representatives of the people. The Council of Ministers, i.e., the de-facto executive is responsible to the legislature and can remain in power only as long as it enjoys its confidence.

Some critics were of the view that due to large-scale illiteracy India was, and is still not fit for democracy and yet constitution fathers, in their best wisdom, decided to experiment with democracy and today India is the biggest democracy in the world. Several elections which have so far been held in India have established beyond all doubts political maturity of our electorates.

In the opinion of K.V. Rao the significance of “We the people lies in the fact the Constitution eliminates the British king externally and Indian princes internally from claiming any vestiges in sovereignty.”

2. Having Solemnly Resolved to makes India a Sovereign Socialist Secular Democratic Republic:

The Preamble says that India shall sovereign state. Sovereignly implies freedom of national action, both internal as well as external. Internal sovereignty means freedom to enact and amend both ordinary and constitutional laws without any external pressure.

External freedom implies nation’s right to formulate and execute her own foreign policies. In both these respects India is free and playing her role in the world organisations. As a member of UNO India has played a very significant pan in the world politics.

Some of the critics, however, feel that India is not a sovereign state by virtue of her membership of Commonwealth of Nations which makes it obligatory for her to accept British Queen as her over-lord. Nation is supposed to owe allegiance to the Queen.

But the criticism does not seem to be valid because India is not obliged to be a member of Commonwealth of Nations but is continuing there with her own willingness and without any compulsion. Membership of Commonwealth in no way hinders country’s decisions at national and international level or in any matter both domestic and foreign.

In fact, the character of this organisation has now altogether changed and Commonwealth is now nothing beyond a forum on which members discuss their problems in a free and frank manner as free sovereign nations and to solve such problems which confront Commonwealth as a whole.

It has very appropriately been said by Palande that, “India’s membership of Commonwealth of Nations is based on extra constitutional contractual arrangement entered into at will and terminable at will.”

The Preamble also says that India shall be a Republic. It implies that the head of the State in India shall neither be hereditary nor a dictator. He shall be elected by the people indirectly for a limited period and will have to face his electorates again after the expiry of the period.

Accordingly the President of Indian Republic is elected for a period of 5 years by the elected representatives of the state legislatures and the Parliament who form an electoral college for the purpose of electing him.

Since the President is neither hereditary nor a dictator he can also be removed from office by impeachment, if it is found that he is not discharging his obligations in accordance with the rules provided in the constitution. His electoral college consists of Members of Parliament and State Legislatures. Impeachment procedure for his removal is very difficult and so far (1996) in India no President has been impeached.

3. Socialist Society:

Forty-Second Constitution Amendment Act has specifically provided that India will be a socialist state. A change to this effect was incorporated in the preamble of the constitution. Now what is ‘Socialism’? It is a term, which like ‘Justice’ and ‘democracy’ still remains undefined.

But from the days of freedom struggle, Indian National Congress has been telling to the people of India that after independence the nation will follow the path of socialism. As early as in 1929, All India Congress- Committee, resolved that India’s poverty was due to its poor economic structure which needed modification on socialistic lines.

In 1931, the Congress party resolved that in order to improve economic conditions and with a view to making political freedom meaningful it was essential that the state should control key industries and services.

In 1945, in its election manifesto the Congress party again said that India’s most important problem was to end poverty and for this it was essential that the wealth should not get concentrated just in the hands of few individuals or group of individuals.

When the constitution of India was enacted at that time the main aim of the constitution fathers was to ensure that India should be a socialist state and accordingly it was provided that in India the people must be given social, economic and political justice. Directive Principles of the State Policy embodied in the constitution also provide that India will be a socialist state.

In Indian context socialism means removal of fantastic socio-economic imbalances and providing the masses distributive justice. But so far mention of socialism in India, as a part of the constitution, had been deliberately avoided and instead at Avadi Session of the Congress it was said that establishing ‘Socialistic Pattern of Society’ shall be the main aim of the Congress party.

In such a society there will be equal opportunity for progress for all. When Art. 31 C of the Constitution Forty-Second Amendment Act became part of the constitution and Directive Principles of the state policy as a whole got dominance over Fundamental Rights, it became unavoidable that m the preamble itself it should be specified that socialism is the goal of Indian society and that the coots should recognise this change.

On May 30, 1976, Sardar Swaran Singh said before All India Congress Committee that the word ‘Socialist’ had been added in the preamble so that there should be no confusion about our objectives.

He also said that the constitution should be suitably altered so that it became easy to effectively implement other socio-economic reforms. He also said that, “By inserting the word ‘Socialist’ it is intended to give a positive direction to the government in formulating its policies.”

Prime Minister Mrs. Gandhi also said that our socialism meant bettering the life of the people of India and that this word had been chosen to describe India’s ethos because it came closest to what is being aimed at She said that socialism did not mean mixed economy but some form of ownership of means of production and distribution by the society so that private ownership was eliminated.

It has, however, been very often said by ruling Congress party that ‘Socialism’ in India means type of socialism which is most suited to Indian conditions. But is socialism solution to Indian problem is still a question mark?

4. Secular Democracy:

Preamble of the constitution had provided that India will be a Sovereign, Democratic Republic. But with the enactment of Forty-Second Constitution Amendment Act it was provided that the country will be, Secular’ Republic. In fact, secularism of India has never been in doubt and the constitution in more than one way emphasised on India’s being a secular state.

But incorporation of this word in the preamble meant giving it a constitutional sanctity, what was otherwise an established fact.

In India secularism has different meaning. To quote Dr. Dayal again, “Secularism in the Indian context does not mean negation of all religions. It means equal respect for all religions.”

Similarly one of the Congress Presidents, D.K: Baroah in 1976, while speaking on this amendment said that, “All religions in this country, however small their strength may be, have the same status and same prestige and the same support from the state.”

Similarly the then Law Minister H.R. Gokhale also said, “There will be freedom, liberty of faith and worship, whatever religion you belong to, is all that what you mean by secularism.” Articles 25-30 of the constitution stress on religious freedom in India.

In the words of Basu, “Instead of clarifying the meanings of those provisions, the use of non-technical word Secular originating in common parlance and there from finding its way into the courts, has been unfortunate and confusing. Little improvement will be effected by inserting this word in the preamble.”

But that perhaps is not very true. Addition of word Secular the preamble of the constitution itself clearly indicates that in India state possesses no religion and the very fact that a vast majority of population of India professes a particular religion does not give it any weightage over other religions either in public or in private sector.

But the very concept of ‘Secularism’ has become a matter of debate these days. Many politicians have started preaching that it is pesudo secularism which ruling party at the Centre is using for winning the votes of religious minorities. It is being used against the majority religious community. It is this wrong approach to secularism which is cause of many political problems in India.

5. Democratic:

Preamble of the Constitution states that India shall be a democratic State. Thus, all chances of dictatorship or any other form of government have been completely ruled out. The country shall have representative democracy based on universal adult franchise without any distinction of voters on the basis of caste, creed and religion.

It will be indirect and not direct democracy and as devices of direct democracy like referendum, recall and plebiscite have not been introduced in the country. All the representatives of the people for elected bodies are to be chosen by the people without any distinction about property, education and sex.

Entire authority for the conduct of election has been vested in an independent statutory authority called the Election Commission of India, headed by a Chief Election Commissioner.

6. Republic:

Preamble of the Constitution also states that India shall be a ‘Republic’. The term ‘republic’ has, of course, been differently interpreted 6y the scholars but our founding fathers meant from republic a state in which the supreme power shall remain in the people and their elected representatives. In it even the head of the state was to be elected.

Thus, it was absolutely opposed to either monarchy or dictatorship. Thus, there was no scope for hereditary headship of the country or the one who has been super-imposed by the people. It means that the head of the state can come even from the cottages of the remotest part of India provided he enjoys the confidence of the people of India.

7. Justice; Social, Economic and Political:

The Preamble of the Constitution ensures justice for all citizens of India. It implies that all the high and the low in India will be treated by same set of laws. In the eyes of law all shall be equal and there will be no differentiation on the basis of caste, creed, religion or sex. For crimes of similar nature, there will be equal punishment.

This type of justice has not only been promised but given to the people of India in the form of Fundamental Rights. The people have been assured social justice and all have been given the right to get the type of education they like. Untouchability which was a slur on the fair name of society has now been abolished. Temples have been thrown open to the so-called schedule castes, who are now Very much an integral part of the society and on their betterment depends the very advancement of Indian society.

Similarly economic justice has been promised. Beggary and Begar both have been legally banned and those who exploit and continue beggary can be legally punished. Similarly steps are being taken that equal wages are paid for equal work and sex of a worker does not differentiate in deciding the wages.

Economic justice also implies that working conditions of the workers should be improved and every effort should be made to see that all lead an honourable life with high living standards. Bonded labour system has already been abolished and keeping bonded labour is punishable offence. Political justice has been provided to the people by adopting democracy, as a form of government and way of life. In it even citizen has been given only one vote. But is the country anywhere near social and economic justice? Reply is very much in the negative.

8. Liberty of; Thought, Expression, Belief, Faith and Worship:

Liberty, as promised in the preamble has been given to the people in the form of Fundamental Rights. The people have been assured that as long as they are peaceful, they are at liberty to form associations and assemblies to discuss their problems. There is no ban on expression of ideas or their following a particular belief provided national interests were not jeopardised or these did not lead to violence.

Fundamental Rights as embodied in the constitution also give perfect freedom of worship to the people of India. India is a secular state and as such the state has no religion of its own. In the eyes of the state all religions are equal. In the constitution it is clearly stated that the state shall neither praise nor patronise any religion, nor shall it condemn or discourage any religion in any manner.

The state shall also neither extend nor deny financial assistance to any religion. No religious institution, which professes or promotes the cause of a particular religion shall get Financial assistance or patronage from the state. While filling up jobs in public services religion of the person shall have no meaning.

9. Equality; of Status and of Opportunity:

This promise of the preamble is also reflected in the constitution. Fundamental Rights assure social, economic and political equality. None is to be distinguished for having high or low standard or on economic basis. Status of a person does not give him any weightage either in the political or economic as well as legal field.

An economically well placed person has one vote and so is the case with economically poor one. A rich is at par with the poor in the eyes of law.

All have been provided equal opportunity for seeking employment and also for getting higher jobs. The scheduled castes, scheduled tribes and other backward classes have been given special protection, by way of giving them reservation of seats, so that they become equal with socially advanced classes, in due course of time.

Honours and titles which used to distinguish one person from the other have altogether been abolished, with a view to giving a sense of equality, to all.

10. Fraternity; Assuring the Dignity of the Individual:

The preamble promises that all individuals in the state shall have dignity. There is no backward or forward individual. There is no high or low or there is no advanced caste and no backward community. All those who are socially downtrodden and had suffered in the past, in the hands of one section of society or the other, are to be brought forward so that they can lead a respectable life.

This promise has been kept up by providing reservation of seats for cultural and linguistic minorities. Special care has been taken to see that there is no reservation of seats for religious minorities, because it was this system which divided the nation and ultimately resulted in the partition of the country.

11. Unity and Integrity of the Nation:

Unity and Integrity of the Nation is another promise of the preamble. Undoubtedly for advancement, development and progress nation must be united. When the very unity of the nation is in danger, rights and privileges of individuals cannot be protected.

Nation first and everything else latter’ is the famous, understandable and rational dictum Constitution makers of India were working and labouring under very peculiar circumstances. Mass migration of population from Pakistan to India and vice-versa, added by shameful cruelties inflicted on the people to glorify religion, had pained them.

There were visible tendencies of extra territorial affiliations by some political parties and doubts persisted about loyalties of few to new born India. It was, therefore, essential to maintain national unity. For this, the constitution makers empowered the executive government with emergency powers by which it could take all powers in its hand in a bid to protect national unity.

Not only this, but the constitution, keeping in view the promise of the preamble, has tried to develop feelings of one united India, in spite of her federal character. India has one judiciary, one citizenship, one constitution, a system of All India Services and also one set of Fundamental Rights.

It is to promote this sense of unity that in India’s federal set up Centre has been made more powerful than the federating units i.e. states all union territories.

12. Integrity of India:

Forty-Second Constitution Amendment also made another change in the preamble of the constitution. It has now been provided that every effort shall be made for maintaining unity and integrity of India. The word ‘integrity’ has specifically been added in the preamble.

In the words of Dr. Dayal, “The insertion of word ‘integrity’ cannot rationally be questioned for it is impossible to argue that unity can be safe without integrity of nation. Integrity is vital to encounter fissiparous tendencies.”

The idea behind the word integrity being that it should be very clear from the very outset that for India integrity of the country is paramount and that the nation will not tolerate any activity by any political party or group of individuals, who directly or indirectly might try to disturb the integrity of nation and thus try to take it on the path of disintegration.

13. Adopt, Enact and give to Ourselves:

The words ‘to give to ourselves’ occupy a very significant place. The preamble, thus, has clearly stressed that it is people’s constitution which has been enacted for and on behalf of the people. The people as a whole and not a particular section of the society is thus source of our inspiration.

They look after the interests of the people of India. It also implies that if at any time any change in the constitution is necessary, the required amendment can be carried out only through the will of the people. It is not a play thing or handmaid of any political party or a particular individual, but a pious document which expresses will, wishes and sentiments of the people.

Essay # 5. Critical Evaluation of Preamble of the Constitution:

Whether preamble is a part of the constitution or not and also whether what has been said in the preamble will be taken cognisance by the courts of law or not is a separate issue. But beyond all doubts it indicates the intentions of the constitution makers. There are many authorities which firmly believe that the preamble helps in solving many ambiguities.

In India several occasions have arisen when preamble has been invoked. In the case of M/s. Barrukar Coal Co. Vs. Union of India, Supreme Court observed that no resort should be made to preamble if the language of the enactment was clear.

If it was not clear then preamble might be looked to explain that In the case of State of Bihar Vs. Kameshwar Singh, Dr. Ambedkar appearing on behalf of the Zamindars in 1952, also referred to the preamble, though the court took a different view.

In Benibari case, the Supreme Court again opined that preamble by itself is not a source of power. Every state has by virtue of its sovereignty the power to cede its territory and this right cannot be regarded to have been taken away by the preamble.

About the preamble of the constitution Justice Bhagnati once said that, “What is, therefore, needed is that judiciary must not interpret any element of the preamble that introduces a line of disconcerting unpredictability which judicial review must constantly and scrupulously avoid.”

In the case of Kerala Education Bill, 1957, the Supreme Court in 1958 held the view that where the enacting part is explicit and unambiguous, the preamble cannot be resorted to, to control, to qualify or to restrict it but where the enacting part is ambiguous, the preamble can be referred to, to explain and to elucidate it.

Similarly Lord Halsbury in Powell Vs. Kempton Park Race Course Co. said that, “Two propositions are quite clear, one that preamble may afford useful light as to what the Statute intends to reach; and another, that if an enactment by itself is clear and unambiguous, no preamble can qualify or cut down the enactment.”

The same holds good in the case of preamble to the constitution of India. In the words of Justice Hidayatullah, “The preamble is more than a declaration. It is the soul of our constitution and lays down pattern of our political society.” The preamble is thus not a superficial appendage to the constitution but a very useful and important key to it, which expresses hopes, wishes, aspirations and dreams of its founding fathers.

Preamble of the Constitution of India has made the country a sovereign democratic republic and as Granville Austin has said that, “With the adoption of the Constitution India becomes the largest democracy in the world. The Preamble of the Constitution does not bind India to any political or economic ideology but it eliminates every vestige of despotism. It reflects the whole constitutional system but is not a system in itself because it is not justiciable part of the Constitution. It cannot adversely affect constitutional structure. It is source of inspiration but not a source of power. Thus, Preamble of the Constitution occupies a very significant place in the structure of the constitution though not an integral part of the structure itself.”

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Essay on Preamble Of Indian Constitution

Students are often asked to write an essay on Preamble Of Indian Constitution in their schools and colleges. And if you’re also looking for the same, we have created 100-word, 250-word, and 500-word essays on the topic.

Let’s take a look…

100 Words Essay on Preamble Of Indian Constitution

Introduction to the preamble.

The Preamble is like the introduction to the Indian Constitution. It tells us about the values and principles of the country. It is like a promise to its people to give them justice, liberty, equality, and to promote brotherhood.

Goals of the Preamble

The Preamble sets goals for India. It wants to make sure everyone is treated fairly and has the same rights. It also wants to keep the country united and maintain peace among all its people.

Words in the Preamble

The Preamble starts with “We, the people of India,” showing that the power of the government comes from the citizens. It talks about making India a sovereign, socialist, secular, and democratic republic.

Importance of the Preamble

The Preamble is important because it guides the people who make laws in India. It helps them remember the core values of the Constitution when they make decisions or create new laws.

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250 Words Essay on Preamble Of Indian Constitution

The Preamble of the Indian Constitution is like an introduction to a book. It tells us about the values, principles, and goals of our country. It is the opening statement of the Constitution and gives us a brief idea of what the rest of the document is about.

What the Preamble Says

The Preamble declares India as a “Sovereign Socialist Secular Democratic Republic.” This means that India is free to make its own decisions, supports social equality, respects all religions equally, believes in fair and equal voting rights, and is run by the people for the people. It also aims to secure justice, liberty, equality, and to promote fraternity among all citizens.

The Goals of the Preamble

The Preamble sets the direction for the country. It aims to make sure that every person gets fair treatment, has the freedom to speak, think, and worship as they like, and is treated equally before the law. It also wants to make sure that people from different backgrounds feel like they belong to the same big family.

Significance of the Preamble

The Preamble is very important because it guides the people who make laws and the courts that explain these laws. It also helps the citizens understand the essence of the Constitution and the rights and duties it gives them.

The Preamble of the Indian Constitution is like a guiding light. It sets the path for the nation to follow and helps everyone understand the core values that India stands for. It is not just an introduction but the soul of the Constitution, reflecting the dreams and aspirations of its people.

500 Words Essay on Preamble Of Indian Constitution

The Preamble of the Indian Constitution is like an introduction to a book. It tells us what the book is about. In the same way, the Preamble gives us a glimpse of what the Constitution contains. It shares the ideals and goals of the country. The Constitution is the most important set of rules for India, and the Preamble is like its guiding light.

Words and Their Meaning

The Preamble starts with the words “We, the people of India.” This means all the rules in the Constitution come from the citizens of India. It says that India will be a “Sovereign, Socialist, Secular, Democratic Republic.” Sovereign means no other country can tell India what to do. Socialist means the wealth of the country should be shared fairly among its people. Secular means the government will treat all religions equally. Democratic means the people have the power to choose their leaders. Republic means the head of the country is not a king or queen but someone elected by the people.

The Preamble sets four main goals: Justice, Liberty, Equality, and Fraternity. Justice means everyone should be treated fairly by the law. Liberty means everyone has the freedom to speak, believe, and think what they want. Equality means everyone should have the same chance to succeed in life, no matter where they come from. Fraternity means we should all treat each other like brothers and sisters, and make sure everyone feels like they belong to India.

The Preamble is important because it tells the government how to use its power. It reminds the government that it should work to make life better for all its people. It also tells the people that they have rights and should live together peacefully.

Changes to the Preamble

The Preamble was changed once. In 1976, three new words were added: Socialist, Secular, and Integrity. Integrity means that the country should be united and strong, with no parts wanting to break away.

The Preamble of the Indian Constitution is a short but powerful text. It shows the dreams and promises of India as a country. It tells us that India belongs to its people, and it is up to everyone to make sure the country is fair, free, equal, and friendly. The Preamble is not just an introduction to the Constitution; it is a promise of what India strives to be.

That’s it! I hope the essay helped you.

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