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प्राकृतिक संसाधन एवं उसका संरक्षण (Natural Resources and Its Conservation in hindi, BSC final year zoology)

प्राकृतिक संसाधन ( natural resources), जीवन संरक्षण के मुख्य उद्देश्य ( main objects of wild life conservation).

( i) प्राथमिक उत्पादकता, ( ii) कुल उत्पादकता ( Net productivity) की यह प्रतिशतता, जो कि प्रतिवर्ष हटाई जा सके एवं चरागाह स्थलों में उत्पादकता बनाये रखी जा सके। चरागाह को संरक्षित करने हेतु चरागाह का इतिहास एवं अन्य मुख्य कारकों का भी विचार करना चाहिए।

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Agriculture Studyy - Agriculture Ki Puri Jankari Hindi Mein

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प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources in hindi)

प्राकृतिक संसाधन क्या है, अर्थ एवं परिभाषा अथवा प्राकृतिक ससाधनों का महत्त्व एवं उनका वर्गीकरण, प्राकृतिक संसाधन से आप क्या समझते है, प्राकृतिक संसाधन क्या है natural resource in hindi, प्राकृतिक संसाधन के नाम (names of natural resources in hindi), भारत के जल संसाधन भारत में सिंचाई के स्रोत वनस्पति जगत का वर्गीकरण, प्राकृतिक संसाधन किसे कहते है:- अर्थ एवं परिभाषा (natural resources :- meaning and definition in hindi), प्राकृतिक संसाधनों को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है, प्राकृतिक संसाधन का महत्त्व (importance of natural resources in hindi), प्राकृतिक संसाधनों में निम्न महत्व हैं, 1. निष्क्रियता (non - active) -, 2. निःशुल्क उपलब्धता (unpaid availability) -, 3. ज्ञात एवं अज्ञात (known and unknown) -, 4. विविधता (diversity) -, प्राकृतिक संसाधन का वर्गीकरण (classification of natural resources in hindi ), प्राकृतिक संसाधनों को विभिन्न आधारों पर निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है ।, ( क ) स्रोत के आधार पर वर्गीकरण, स्रोत के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों को निम्न पाँच वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -, 1. खनिज संसाधन क्या है mineral resources in hindi, 2. मृदा संसाधन क्या है soil resources in hindi, मिट्टी किस प्रकार का संसाधन है, 3. जल संसाधन किसे कहते है water resources in hindi, 4. वनस्पति संसाधन किसे कहते है botanical resources in hindi, 5. जीव - जन्तु संसाधन क्या है, ( ख ) उपलब्धता / आपूर्ति के आधार पर वर्गीकरण, उपलब्धता / आपूर्ति के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों को निम्न दो वर्गों में बाँटा जा सकता है -, 1. सम्पूर्ति / आपूर्ति अथवा सतत संसाधन, 2. अपूर्य / अनापूर्ति अथवा संचित संसाधन, ( ग ) विकास की अवस्था के आधार पर वर्गीकरण, विकास की अवस्था के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों को निम्न तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है -, 1. सम्भाव्य संसाधन क्या है, 2. ज्ञात संसाधन कोन से है, 3. अज्ञात संसाधन क्या है, you might like.

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essay on natural resources in hindi

Natural resources are material from the earth that are support life and meet people needs. Oil coal natural resources metals stone and sand are some examples of natural resources.

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प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन (Management of natural resources in Hindi)

Management of natural resources in hindi.

Table of Contents

  • मनुष्य अपने जीविकोपार्जन के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता है। आदि मानव अपने पर्यावरण से प्राप्त वनस्पतियों एवं पशुओं पर निर्भर है। उस समय जनसंख्या का घनत्व कम था, मनुष्य की आवश्यकताएँ सीमित थी ‘तथा प्रौद्योगिकी का स्तर नीचे था। उस समय संरक्षण की समस्या नहीं थी | कालान्तर में मनुष्य ने संसाधनों के दोहन की प्रौद्योगिकी में विकास किया । वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास द्वारा मनुष्य जीविकोपार्जी संसाधनों के अतिरिक्त, उत्पादन के संसाधनों का भी दोहन करने लगा | जनंसख्या की निरन्तर वृद्धि के कारण संसाधनों की मांग बढ रही है साथ ही प्रौद्योगिकी के विकास द्वारा इन्हें उपयोग करने की मनुष्य की क्षमता भी बढी है। अत: इस होड़ ने यह आशंका उत्पन्न कर दी है कि कही ये संसाधन शीघ्र समाप्त होकर और पूरी मानवता के जीवन पर ही प्रश्नचिहन न लग जाए।

1. न्याय संगत उपयोग एवं संरक्षण (Judicial use and conservation)

  • प्राकृतिक संपदाओं का योजनाबद्ध, न्यायसंगत और विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए तो उनसे अधिक दिनों तक लाभ उठाया जा सकता है, वे भविष्य के लिए संरक्षित रह सकती है। संपदाओं या संसाधनों का योजनाबद्ध, समुचित और विवेकपूर्ण उपयोग ही उनका संरक्षण है | सरंक्षण का यह अर्थ कदापि नहीं है कि-
  • 1. प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग न कर उनकी रक्षा की जाए या 2. उनके उपयोग में कंजूसी की जाए या 3. उनकी आवश्यकता के बावजूद उन्हें भविष्य के लिए बचा कर रखा जाए। वरन् संरक्षण से हमारा तात्पर्य है कि संसाधनों का अधिकाधिक समय तक अधिकाधिक मनुष्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विवेकपूर्ण उपयोग हो |

2. संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता (Need for conservation of resources)

  • मानव विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करता आ रहा है। खाद्यानों और अन्य पदार्थों की पूर्ति के लिए उसने भूमि को जोता है, सिचांई और शक्ति के विकास के लिए उसने वन्य पदार्थों एवं खनिजों का शोषण और उपयोग किया है | पिछली दो शताब्दियों में जनसंख्या तथा औद्योगिक उत्पादनों की वृद्धि तीव्र गति से हुई है। विश्व की जनसंख्या आज से दो सो वर्ष पूर्व जहाँ पौने दो अरब थी वहां सवा पाँच अरब पहुँच चुकी है। हमारी भोजन, वस्त्र, आवास, परिवहन के साधन, विभिन्न प्रकार के यंत्र, औद्योगिक कच्चे माल की खपत कई गुना बढ गयी है। इस कारण हम प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से गलत व विनाशकारी ढंग से शोषण करते जा रहे है। जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगा है यदि यह संतुलन नष्ट हुआ तो मानव का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा | अतः मानव के अस्तित्व एवं प्रगति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण व प्रबंधन आवश्यक हो चला है।

3 संसाधनों के संरक्षण के उपाय (Ways of conservation of resources)

  • प्राकृतिक संपदा हमारी पूँजी है। जिसका लाभकारी कार्यों में सुनियोजित ढंग से उपयोग होना चाहिए | इसके लिए पहले हमें किसी देश या प्रदेश के संसाधनों की जानकारी होनी चाहिए तथा हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि विभिन्न संसाधन परस्परावलम्बी तथा परस्पर प्रभावोत्पादक होते है। अतः एक का ह्यस हो या नाश हो तो उस का कुप्रभाव पूरे आर्थिक चक्र पर पड़ता है। हमें इनका उपयोग प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए | जो संसाधन या प्राकृतिक संपदा सीमित है उसे अंधाधुंध समाप्त करना अदूरदर्शिता है। सीमित परिभाग वाली संपदा (कोयला, पेट्रोलियम) के विकल्प की खोज करना श्रेयस्कर है। संसाधनों के संरक्षण के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी स्तर पर पूर्ण सहयोग मिलना आवश्यक है|

4. वन संरक्षण एव प्रबंधन (Forest conservation and management)

  • वन इस पृथ्वी पर जीवन का आधार ¥ | यह वह क्षेत्र है जहां जीवन के विकास की क्रिया युगों से चलती आयी है और प्राणियों तथा पौधो की लाखों जातियों की उत्पति हुई है । वन, बरसात तथा उसमें पानी के संरक्षण हेतु अलवणीय जल के स्त्रोतों तथा नदियों के वर्षा-जल के निरन्तर पूर्ति के नियंत्रक होने के साथ-साथ जलवायु के लिए वायुमण्डल को आर्द्रता की पूर्ति भी करते हैं |

Management of natural resources in Hindi

  • वन न केवल जल तथा वायु के कारणों से होने वाले कटाव से उपजाऊ मिट्टी की रक्षा करते है बल्कि वे सक्रिय अजैव चट्टानों से उर्वरा मिटटी की रचना करने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से एक हैं । वन, पर्यावरण को स्वच्छ रखने तथा प्राकृतिक संतुलन को कायम रखने में सहायक होते हैं । वनों के बिना स्वच्छ पर्यावरण संभव नहीं है। पिछलें कुछ वर्षों में ‘लकड़ी की मांग बढने के साथ-साथ जिस प्रकार इसके दामों में वृद्धि हुई है उसे देखते हुए लकड़ी का व्यापार इतना अधिक बढ गया है कि दुनिया भर के जंगलों को खतरा उत्पन्न हो गया। उनका क्षेत्रफल कम होने के कारण जगह-जगह सूखा पड़ने लगा है। जहाँ कहीं पानी बरसता है, पेड़ों के अभाव में ‘उपजाऊ मिटटी बह जाती है | पेड़ों की कटाई का असर पहाड़ों पर भी होने के कारण पानी बरसने पर वहां से मिट्टी बहकर नदियों में आ जाती है फलस्वरुप नदियाँ इतनी उथली हों गई है कि थोड़ा सा जलस्तर बढ़ने पर बाढ़ आ जाती & | जंगलों की रक्षा का सवाल आज हमारे लिए जीवन और मौत का सवाल बन गया हैं |
  • पिछलें कुछ वर्षों में तेजी से हुए जंगलों के विनाश के बावजूद भारत में लगभग 45,000 स्पीशीज के पुष्पीय पौधें एवं इससे दुगुनी स्पीशीज शेष वनस्पति समूह की पायी जाती हैं | पौधो की कुल उपलब्ध जातियों में से 45 प्रतिशत आर्थिक महत्व की है । भारतीय वन लगभग 8 लाख कि.मी क्षेत्र में फैले हैं। भारत में मुख्य रुप सें उष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं । SO कटीबंधीय सदाबहार वनों की एक विशेषता यह है कि इनमें जैव विविधता अत्यधिक होती है। देश के कुछ हिस्सों में शीतोष्ण जलवायु के पर्णपाति वन भी पाए जाते हैं ।
  • वनोपज के रुप में इनसे 35 लाख घन मीटर टिम्बर, 13 लाख घन मीटर जलाऊ लकड़ी एवं असंख्य प्रकार के उत्पाद जैसे- बाँस, औषधियाँ, गोंद, रेजिन, रबड़, सुगंधित तेल, तेल बीज एवं अनेक उपयोगी उत्पाद प्राप्त होते हैं |
  • वनों की रक्षा आज की प्राथमिकता है | उपग्रहों से प्राप्त आंकड़े बतलाते है कि हमारे देश में प्रतिवर्ष 1.3 मिलियन हेक्टेयर जंगल कम होते जा रहे है। जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ वनों को काटकर कृषि के लिए भूमि साफ की जाती है | विभिन्न निर्माण कार्यों, कारखानों, पशुपालन आदि के लिए विश्वभर में वन काटे जा रहे हैं आरम्भ में जहाँ पृथ्वी के लगभग 70 प्रतिशत भू-भाग पर वन थे वहाँ आज मात्र 16-17 प्रतिशत भाग वनों से आच्छादित है। वन-उन्मूलन का एक कारण झूम-खेती को भी माना जाता है। इस प्रकार की खेती में किसी क्षेत्र विशेष की वनस्पति को जला कर राख कर दी जाती है जिसमें वहां की भूमि की उर्वरता में वृद्धि होने से दो-तीन वर्ष अच्छी फसल ली जाती है | उर्वरता कम होने पर अन्य क्षेत्र में यही विधि अपनायी जाती है। हमारे देश में नागालैड, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल, त्रिपुरा तथा आसाम में आदिवासी इसे अपनाते हैं |
  • वन-उन्मूलन के दुष्प्रभावों में प्राकृतिक संसाधनों का क्षय, मृदा अपरदन, वनीय जीवन का विनाश, जलवायु में परिवर्तन, मरुस्थली करण, प्रदूषण में वृद्धि आदि उल्लेखनीय हैं |

वनों के सरंक्षण हेतु निम्न उपाय अपनायें जा सकते है-

1. वनों की पोषणीय सीमा तक ही कटाई की जानी चाहिए, वन काटनें व वृक्षारोपण की दरों में समान अनुपात होना AR |

2. वनों की आग से सुरक्षा की जानी चाहिए इस हेतु निरीक्षण गृह तथा अग्नि रक्षा पथ बनाने चाहिए। 3. वनों को हानिकारक कीटों से दवा छिड़क कर तथा रोगग्रस्त वृक्ष को हटाकर रक्षा की जानी चाहिए। 4. विविधता पूर्ण वनों को एकरुपता पूर्ण वनों से अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए | 5. कृषि व आवास हेतु वन भूमि के उन्मूलन एव झूम पद्धति की कृषि पर रोक लगायी जानी चाहिए। 6. वनों की कटाई को रोकने के लिए ईंधन व इमारती लकड़ी के नवीन वैकल्पिक स्त्रोतों को काम में लिया जाना चाहिए। 7. बाँधों एवं बहुउद्देशिय योजनाओं को बनाते समय वन संसाधन सरंक्षण का ध्यान रखना चाहिए | 8. वनों के महत्व के बारे में जन चेतना जागृत की जाए। चिपको आन्दोंलन, शांत घाटी क्षेत्र आदि इसी जागरुकता के परिणाम है | वन संरक्षण में सामाजिक व स्वंयसेवी संस्थाओं की महती भूमिका है | 9. सामाजिक वानिकी को प्रोत्साहन देना श्रेयस्कर है | 40. वन संरक्षण के नियमों व कानूनों की कड़ाई से अनुपालना होनी चाहिए |

5 सामाजिक वानिकी (Social forestry)

  • देश में लगभग एक करोड़ हेक्टेयर से अधिक अवक्रमित भूमि पर प्रति वर्ष वनरोपण की आवश्यकता है ताकि पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाया जा सके | सामाजिक वानिकी के द्वारा इस लक्ष्य की प्राप्ति संभव है इससे न केवल वन क्षेत्रों में वृद्धि होगी वरन बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन होगा। राष्ट्रीय वन नीति से पूर्व राष्ट्रीय कृषि आयोग ने भी वन क्षेत्र को बढाने के लिए सामाजिक वानिकी को अपनाने के सुझाव दिए थे, ताकि वनों के क्षेत्र में विस्तार के साथ ही गांव वालों को. चारा, जलाऊ लकड़ी, व गौण वनोत्पाद प्राप्त हो सके | इसे लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा कार्यक्रम के रुप में मान्यता प्राप्त हुई |

समाजिक वानिकी के तीन प्रमुख घटक हैं –

1. कृषि वानिकी (Agro- forestry) 2. वन विभाग द्वारा नहरों, सड़कों, अस्पताल आदि सार्वजनिक स्थानों पर सामुदायिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वृक्षारोपण करना | 3. ग्रामीणों द्वारा सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण |

प्रमुख प्राकृतिक संसाधन FAQ –

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उत्तर ⇒ ???????

प्रश्न 1. संकटापन्न जातियों से क्या तात्पर्य है? उत्तर- वे जातियाँ जिनके संरक्षण के उपाय नहीं किये गये तो निकट भविष्य में समाप्त हो जायेंगी।

प्रश्न 2. राष्ट्रीय उद्यान क्या है? उत्तर- राष्ट्रीय उद्यान वे प्राकृतिक क्षेत्र हैं, जहाँ पर पर्यावरण के साथ-साथ वन्य जीवों एवं प्राकृतिक अवशेषों का संरक्षण किया जाता है।

प्रश्न 3. सिंचाई की विधियों के नाम बताइये। उत्तर- सिंचाई फव्वारा विधि व टपकन विधि से की जाती है।

प्रश्न 4. उड़न गिलहरी किस वन्य जीव अभयारण्य में पायी जाती है? उत्तर- सीतामाता तथा प्रतापगढ़ अभयारण्य

Note :- आशा है की आपको यह Post पसंद आयी होगी , सभी परीक्षाओं ( Exam ) से जुड़ी हर जानकरियों हेतु ExamSector को बुकमार्क जरूर करें।

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दा इंडियन वायर

प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग पर निबंध

essay on natural resources in hindi

By विकास सिंह

Essay on depletion of natural resources in hindi

मनुष्य के हस्तक्षेप के बिना प्रकृति में होने वाले संसाधन और जीवित रहने और विकसित होने के लिए मानवता के लिए आवश्यक हैं जिन्हें प्राकृतिक संसाधनों के रूप में जाना जाता है। वे हमारे चारों ओर पाए जा सकते हैं – हवा, सूर्य, मिट्टी और यहां तक कि भूमिगत खनिज प्राकृतिक संसाधनों के सभी उदाहरण हैं जिन्हें हमें एक या दूसरे तरीके से उपयोग करने की आवश्यकता होती है।

प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग पर निबंध, Essay on depletion of natural resources in hindi (200 शब्द)

प्रस्तावना:.

पृथ्वी जीवित प्राणियों के लिए इस ग्रह पर जीवित रहने और फूलने के लिए आवश्यक सभी सामग्री प्रदान करती है। प्राकृतिक संसाधन वे हैं जिन्हें हम इन सामग्रियों को कहते हैं। प्राकृतिक संसाधनों के कुछ मूल उदाहरण हैं हवा, पानी, धूप, मिट्टी, कोयला और तेल आदि।

भारत में प्राकृतिक संसाधन:

भारत सभी प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश है। वास्तव में, इसमें दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला भंडार है, मैंगनीज का तीसरा सबसे बड़ा जमा और लोहे का चौथा सबसे बड़ा जमा है। इसमें दुनिया की 1.35 बिलियन लोगों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, जिन्हें जीवित रहने के लिए उन संसाधनों का उपयोग करने की आवश्यकता है।

प्राकृतिक संसाधनों की कमी:

किसी भी संसाधन को समाप्त कर दिया जाता है जब हम इसे तेजी से उपयोग करते हैं जिससे इसे फिर से भरा नहीं जाता। सूरज की रोशनी और हवा जैसे संसाधन अक्षय हैं। हालांकि, अन्य संसाधन जैसे जीवाश्म ईंधन, खनिज और यहां तक ​​कि पानी भी गैर-नवीकरणीय हैं; उन्हें तेजी से खाया जा रहा है, क्योंकि वे फिर से भरे नहीं जा सकते हैं। जैसे-जैसे जीवन की अवधि और देश की आबादी बढ़ी है, इन संसाधनों पर की गई मांग तेजी से अस्थिर हो गई है।

निष्कर्ष:

भारत न केवल अपने लोगों और संस्कृति में, बल्कि इसके संसाधनों के प्रकार में भी विविधतापूर्ण है। दुर्भाग्य से, आबादी के विशाल आकार का मतलब है कि ये संसाधन जल्द ही समाप्त हो जाएंगे।

यदि हम अपने द्वारा की गई प्रगति को संरक्षित करना चाहते हैं, तो हमें गैर-नवीकरणीय संसाधनों से दूर जाने और अपना ध्यान नवीकरणीय संसाधनों की ओर मोड़ने की आवश्यकता है; अन्यथा हमारे प्राकृतिक संसाधनों की कमी न केवल जारी रहेगी, बल्कि आगे भी बढ़ेगी।

प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग पर निबंध, 300 शब्द:

प्राकृतिक संसाधन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सबसे बड़ा तथ्य यह है कि वैश्विक मानव और आर्थिक विकास उनके बिना नहीं हो सकता है। जैसे-जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था बढ़ी है, खासकर औद्योगिक क्रांति के बाद से, इन संसाधनों जैसे खनिज, जीवाश्म ईंधन, पानी, लकड़ी और भूमि के लिए हमारी मांग तेजी से बढ़ी है।

दुर्भाग्य से, इन मांगों को विनियमित करने के लिए बहुत कम किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप काफी अधिक शोषण हुआ है। यह, बदले में, न केवल संसाधनों की कमी हुई है, बल्कि एक अभूतपूर्व डिग्री के लिए पर्यावरणीय क्षति भी हुई है।

तथ्य और आंकड़े:

पिछले 25 वर्षों में, संसाधनों का वैश्विक निष्कर्षण काफी तेजी से बढ़ा है। 1980 में यह संख्या लगभग 40 बिलियन टन थी। 2005 में, यह 58 बिलियन टन हो गया था, लगभग 45 प्रतिशत की वृद्धि। पृथ्वी के 70 प्रतिशत हिस्से में पानी हो सकता है, लेकिन केवल 2.5 प्रतिशत पानी ही ताजा है। उस पानी का अधिकांश हिस्सा स्थायी आइकैप और बर्फ के रूप में होता है।

इसलिए, हमारे पास वास्तव में पृथ्वी की ताजे पानी की आपूर्ति की बहुत कम पहुंच है – एक पहुंच जो बढ़ती आबादी और ताजे पानी के अधिकांश स्रोतों के प्रदूषण से तनाव में डाल रही है। संयुक्त राष्ट्र ने भविष्यवाणी की है कि 1.8 अरब लोग उन क्षेत्रों में रह रहे हैं जो 2025 तक पानी की कमी का सामना करेंगे।

तेल वैश्विक विकास के लिए आवश्यक सबसे बुनियादी प्राकृतिक संसाधनों में से एक है। हालांकि, खपत की हमारी वर्तमान दर पर, यह केवल 46.2 वर्ष और चलेगा। वही प्राकृतिक गैस के लिए सही है, जो 58.6 वर्षों तक और चलेगा यदि हम इसे वर्तमान स्तरों पर उपयोग करना जारी रखेंगे।

ये केवल प्राकृतिक संसाधनों की कमी के बारे में कुछ तथ्य हैं। यहां दिए गए सभी आंकड़े इस बात पर निर्भर हैं कि वर्तमान में हम इन संसाधनों का कितना उपयोग करते हैं। भविष्यवाणी के इस मॉडल के साथ समस्या यह है कि एक वैश्विक आबादी के साथ जो जल्द ही 8 बिलियन तक पहुंच जाएगी और बाद में वृद्धि जारी रहेगी, संसाधनों का तेजी से उपभोग किया जाएगा।

प्राकृतिक संसाधनों का दोहन पर निबंध, Essay on depletion of natural resources in hindi (400 शब्द)

आधुनिक समाज भारी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करता है, चाहे वे साफ पानी हो या जीवाश्म ईंधन। हालाँकि, इन संसाधनों पर हमारी निर्भरता बढ़ रही है, लेकिन संसाधनों की वास्तविक मात्रा कम हो रही है क्योंकि हम उन्हें तेजी से उपयोग कर रहे हैं, क्योंकि वे प्रतिस्थापित हो सकते हैं।

इस कमी के प्रभाव को न केवल आर्थिक स्तर पर, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर भी दूर-दूर तक महसूस किया जा रहा है। इन संसाधनों को अनिवार्य रूप से चलाने से पहले हमें समाधान खोजने की आवश्यकता है।

जीवाश्म ईंधन निर्भरता कम करें:

जब हम आम तौर पर जीवाश्म ईंधन निर्भरता को कम करने के बारे में बात करते हैं, तो हम बिजली के उपयोग को कम करने के लिए देखते हैं, जो जीवाश्म ईंधन और गैसोलीन का उपयोग करके उत्पन्न होता है। इसलिए, व्यक्ति और संगठन दोनों इस कमी में योगदान कर सकते हैं।

कारपूलिंग, ऊर्जा स्टार उपकरणों का उपयोग करना, स्थानीय रूप से उगाए गए खाद्य पदार्थों की खरीद, जो लंबी दूरी पर पहुँचाया नहीं जाता है और उच्च लाभ के साथ वाहनों का उपयोग करने जैसे समाधान वे सभी चीजें हैं जो हम कर सकते हैं। संगठनों और सरकारों को सौर और पवन जैसे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश शुरू करनी होगी।

स्वच्छ जल:

पानी को एक अक्षय संसाधन के रूप में देखा जाता है और चूंकि यह मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक है, इसलिए इसका उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। हालांकि, तथ्य यह है कि दुनिया की ताजा पानी की आपूर्ति जनसंख्या में वृद्धि के साथ नहीं रख सकती है। इसे नदियों और झीलों जैसे ताजे जल निकायों के प्रदूषण में जोड़ें और हमें भारी समस्या है।

व्यक्ति यह सुनिश्चित करके पानी की कमी को हल करने में योगदान दे सकते हैं कि पानी के रिसाव का तुरंत पता चल जाए, नल के पानी को अनावश्यक रूप से चलाने की अनुमति नहीं है और प्रदूषित पानी में सोप और डिटर्जेंट का उपयोग नहीं किया जाता है। उद्योगों को ऐसी तकनीक में निवेश करने की जरूरत है जो जहरीले कचरे का ध्यान रखे न कि उन्हें निकटतम जलस्रोतों में डंप करें।

वनों का संरक्षण करें:

हम औद्योगिकीकरण के बाद से दुनिया के आधे जंगल को काटने में कामयाब रहे हैं, उन मामलों की स्थिति जिन्हें जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। बस कम कागज का उपयोग करके, हम इस उद्देश्य के लिए प्रतिवर्ष काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या को कम कर सकते हैं। फर्नीचर और अन्य वस्तुओं के लिए वैकल्पिक सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए। हमें कटे हुए लोगों को बदलने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाना शुरू करना होगा।

ये कुछ ऐसे तरीके हैं जिनसे प्राकृतिक संसाधन की कमी की समस्या से निपटा जा सकता है। लोगों, उद्योगों और सरकारों द्वारा केवल एक ठोस प्रयास सराहनीय परिणाम दिखाएगा। यह लाभ और सुविधा से परे सोचने का समय है। यदि हम अभी ऐसा नहीं करते हैं, तो हम शुरू करते हैं तो बहुत देर हो जाएगी।

प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग पर निबंध, 500 शब्द:

धरती पर मानव की आबादी छलांग और सीमा से बढ़ रही है। इस ग्रह पर जितने अधिक लोग हैं, उतने अधिक संसाधनों को जीवित रहने और पनपने की आवश्यकता है। हालांकि, ग्रह परिमित संसाधनों के साथ आता है – वे संसाधन जो एक घातीय दर पर खपत हो रहे हैं।

यहां तक ​​कि नवीकरणीय संसाधनों जैसे कि पानी और मिट्टी की तुलना में कहीं अधिक उच्च दर पर खपत की जा रही है। इसका अनिवार्य परिणाम आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास है जिसका मानवता और ग्रह के लिए कुछ गहरा परिणाम होगा।

प्राकृतिक संसाधनों के प्रभाव की कमी:

बढ़ती आबादी के लिए हमें आवास, कपड़े और भोजन प्रदान करने के लिए विभिन्न खनिजों की आवश्यकता है। औद्योगिक क्रांति ने खनिजों के बड़े पैमाने पर दोहन को बढ़ावा दिया और खपत की दर केवल तब से बढ़ी है। यह अनुमान लगाया गया है कि गैस, तांबा और जस्ता जैसे खनिजों की उपलब्धता की कमी के कारण अगले 20 वर्षों में उत्पादन में गिरावट देखी जाएगी।

वर्तमान सदी के दौरान एल्युमीनियम, कोयला और लोहे में समान गिरावट का सामना करना पड़ेगा। तेल आज की वैश्विक औद्योगिक अर्थव्यवस्था के लिए मूलभूत है। हालाँकि, तेल भंडार जल्द ही समाप्त होने का अनुमान है और पीक ऑइल पीरियड, वह अवधि जब हम वैश्विक स्तर पर पेट्रोलियम निष्कर्षण की अधिकतम दर तक पहुँच जाते हैं, बहुत करीब है।

तरल ईंधन की कीमतें बढ़ने के लिए बाध्य हैं और उन कीमतों में अस्थिरता होगी। यह बदले में, न केवल अर्थव्यवस्थाओं बल्कि समाज और यहां तक ​​कि वैश्विक राजनीति को भी प्रभावित करेगा। वन एक आवश्यक प्राकृतिक संसाधन हैं; हालांकि, हमने कृषि, औद्योगीकरण और आवास के लिए दुनिया के लगभग आधे जंगलों को काट दिया है।

इस अनियंत्रित वनों की कटाई का प्रभाव चौंका देने वाला है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हुई है, पानी के चक्र में बदलाव किया गया है, मिट्टी की उपजाऊ परतों का क्षरण हुआ है और जैव विविधता में कमी आई है। पानी उन सभी का सबसे आवश्यक प्राकृतिक संसाधन है।

हम पानी के बिना एक सप्ताह भी जीवित नहीं रहेंगे। स्वाभाविक रूप से, यह वह संसाधन है जिसने सबसे अधिक शोषण देखा है। फिलहाल, हमारे अधिकांश ताजे पानी की आपूर्ति भू-जल से होती है, जो गैर-नवीकरणीय है। यह असमान रूप से वितरित किया जाता है जिसका राजनीतिक, सामाजिक और उत्तरजीविता प्रभाव होता है।

पानी के स्रोतों पर युद्ध करने के लिए देश तैयार हैं। अगर वे पानी से बाहर निकलते हैं तो लोग दूसरे देशों में जाते हैं। हालांकि, सबसे बड़ी चिंता वैश्विक आपूर्ति में कमी है। हमें जल्द ही एक ऐसे समय का सामना करना पड़ सकता है जब हमारे पास खेती के लिए पीने या उपयोग के लिए पर्याप्त पानी नहीं है, जिससे बहुत बड़े पैमाने पर अकाल हो सकता है।

जब भी हम किसी चीज़ को बदलने से पहले उसका इस्तेमाल करते हैं, तो हम बाहर भाग जाते हैं। यह बुनियादी सामान्य ज्ञान है। हालाँकि, वैश्विक विकास के हितों में हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं जैसे कि वे अनंत हैं, जो कि वे निश्चित रूप से नहीं हैं।

जब तक हम अधिक जिम्मेदार नहीं हो जाते और आर्थिक विकास के साथ संसाधनों के संरक्षण को संतुलित करना सीखते हैं, हम जल्द ही एक ऐसे समय का सामना करेंगे जब हमारे पास शोषण करने के लिए संसाधन नहीं होंगे। वैकल्पिक संसाधनों के विनियमन और उपयोग को रोकना आवश्यक है और संभवतया रिवर्स संसाधन में कमी।

प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग पर निबंध, Essay on depletion of natural resources in hindi (600 शब्द)

प्राकृतिक संसाधन उन सभी संसाधनों को दिया गया नाम है जो मानव हस्तक्षेप के बिना प्रकृति में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध हैं। ये विद्युत, चुंबकीय और गुरुत्वाकर्षण गुणों से लेकर सूर्य के प्रकाश, वायु, जल, खनिज, मिट्टी, तेल, पेड़, वनस्पति और यहां तक ​​कि जानवरों तक के लिए हैं। हम अपने आस-पास देख सकते हैं, पृथ्वी के पास बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन हैं।

दो प्रकार के संसाधन उपलब्ध हैं – नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय। नवीकरणीय संसाधन वे संसाधन हैं जिन्हें समय के साथ बदल दिया जाता है और इसलिए, उनका बार-बार उपयोग किया जा सकता है। कुछ अच्छे उदाहरण पानी, हवा और धूप हैं। गैर-नवीकरणीय संसाधन वे संसाधन हैं जो परिमित हैं; उन्हें या तो प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है या उन्हें बहुत धीरे से प्रतिस्थापित किया जाता है।

किसी संसाधन को तब समाप्त कर दिया जाता है जब उसे प्रतिस्थापित करने की तुलना में तेजी से उपभोग किया जाता है। यदि इसके उपभोग की दर प्रतिस्थापन की दर से अधिक है, तो किसी भी प्रकार का संसाधन समाप्त हो सकता है।

प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण:

प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कुछ प्रमुख कारण हैं:

जनसंख्या की वृद्धि – जनसंख्या वृद्धि प्राकृतिक संसाधनों की कमी का प्रमुख कारण है। सीधे शब्दों में कहें, ग्रह पर जितने अधिक लोग हैं, वे उतने ही अधिक संसाधनों का उपभोग करते हैं। जितनी जल्दी या बाद में, संसाधनों को तेजी से खपत किया जाता है, जितना कि उन्हें बदला जा सकता है।

सुविधा और आराम के लिए हमारी खोज में, हमने हमारे लिए उपलब्ध संसाधनों में से कई का दोहन किया है और उनके पुनर्मिलन के लिए बहुत कम सोचा है। इसका एक आदर्श उदाहरण पानी है। भले ही पृथ्वी का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी में समाया हुआ है, लेकिन हमने संसाधन का दोहन किया है और इसे इतना प्रदूषित किया है कि आज मानव उपभोग के लिए जल फिट हो रहा है।

वनों की कटाई – हमारे लिए उपलब्ध सबसे प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों में से एक वन हैं। वे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने और ऑक्सीजन का उत्पादन करने, मिट्टी को एक साथ रखने और यहां तक ​​कि वर्षा को प्रभावित करने जैसे विभिन्न कार्य करते हैं।

जैसा कि हम लकड़ी के लिए जंगलों को काटते हैं, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, धीरे-धीरे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है। यह बदले में, जलवायु पैटर्न और इसलिए, वर्षा को प्रभावित करता है। इसके अलावा, इन पेड़ों की जड़ों द्वारा एक साथ रखी गई मिट्टी भी बह गई है। यह अंततः विशाल जंगलों को रेगिस्तान में बदल देता है।

जीवाश्म ईंधन का उपयोग – जीवाश्म ईंधन कोयले और तेल जैसे ईंधन हैं जो मृत पशु से बनते हैं और पौधे का जीवन पृथ्वी के नीचे भारी दबाव और तापमान का सामना करता है। औद्योगिक क्रांति के बाद से, ये ईंधन हमारे जीवन के हर पहलू के लिए आवश्यक हैं।

दुर्भाग्य से, चूंकि उन्हें बनने में सैकड़ों हजारों साल लगते हैं, वे आसानी से अक्षय नहीं होते हैं। मामलों को बदतर बनाने के लिए, हम उन्हें बहुत तेज दर से उपभोग कर रहे हैं। हमारी आबादी भी तेजी से बढ़ रही है और इन ईंधनों की मांग बढ़ रही है जबकि उनकी आपूर्ति कम हो रही है।

प्रदूषण – जब पदार्थ जो जहरीले या पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं, उन्हें उक्त वातावरण में पेश किया जाता है, तो वे स्थायी और कभी-कभी स्थायी प्रभाव डाल सकते हैं। इस परिचय को प्रदूषण कहा जाता है। प्रदूषण हवा, पानी और भूमि को प्रभावित करता है, जिससे यह संसाधन की कमी के सबसे खतरनाक और खतरनाक कारणों में से एक है क्योंकि यह उन बुनियादी संसाधनों पर हमला करता है जिन्हें हमें जीवित रहने की आवश्यकता होती है।

समस्या यह है कि आधुनिक युग में अधिकांश प्रदूषण मानव गतिविधियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष परिणाम रहा है। धुएं फैलाने वाली फैक्ट्रियां, कारों से निकलने वाले निकास धुएं, जहरीले रसायनों का जल निकायों में और हवा में निष्कासन – ये सभी गतिविधियां प्रदूषण और संसाधनों को पीछे छोड़ती हैं जो न केवल अनुपयोगी हैं बल्कि हानिकारक भी हैं।

ये हमारे ग्रह पर प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कुछ प्रमुख कारण हैं। हम अंत में इस तथ्य के लिए जाग रहे हैं कि हमारे ग्रह पर सब कुछ परिमित है और इन संसाधनों की हमारी अधिक खपत हमें बहुत जल्द ही जीवित रहने के साधन के बिना छोड़ देगी। हालांकि हम सचेत हो गए हैं लेकिन चीजों को बदलने से पहले बहुत कुछ करने की जरूरत है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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Management of Natural Resources in Hindi | प्राकृतिक सम्पदा का प्रबन्धीकरण  

Table of Contents

Management of Natural Resources in Hindi :

जीवनयापन के लिए मानव विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहता है , परिणामस्वरूप मानव ने इन संसाधनों का मनमाना अंधाधुंध दोहन प्रारंभ कर दिया। इस अविवेकपूर्ण उपयोग से भौतिक सुखों में बढ़ोतरी का खतरा भी उत्पन्न हो गया है।

वास्तव में मानव द्वारा प्रकृति पर अपना एकछत्र राज्य स्थापित करने के लिए अन्य जीवधारियों तथा प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग आज की प्रमुख समस्या है। इसी बुद्धिमानीपूर्ण संसाधनों के सदुपयोग को जिससे कि मानव जाति और संसाधनों का अस्तित्व अपने स्थान पर बना रहे , उसे संसाधनों का प्रबन्धीकरण कहते है।

विगत 80 वर्षो के अनुभवों तथा शोध के आधार पर पारिस्थितिकी विशेषज्ञों ने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के महत्व को स्पष्ट करते हुए अनेकों सुझाव तथा उपाय बताये है। अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति संसाधन संरक्षण परिषद् के वैज्ञानिक डॉ. रेयमंड एफ. डासमैन ने इस विषय को प्राथमिकता देने का सुझाव देते हुए प्राकृतिक संसाधन संरक्षण को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है –

“वातावरण के विवेकपूर्ण सदुपयोग से मानवीय रहन सहन के लिए उच्च कोटि की सुविधाएँ जुटाने की प्रक्रिया को प्राकृतिक संसाधन संरक्षण कहते है। ”

रेयमंड का यह भी कहना है कि मानव कल्याण के लिए पारिस्थितिकी नियमों के आधार पर सभी संसाधनों की निरन्तरता बनाये रखने के लिए इनका विवेकपूर्ण उपयोग करते हुए संरक्षण प्रदान करना होगा तथा विकास कार्यों में इन नियमों को प्राथमिकता भी देनी होगी।

अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति तथा प्राकृतिक संसाधन संरक्षण परिषद् के वैज्ञानिक रेयमंड के अनुसार प्रबन्धीकरण का आधार है मानव कल्याण के लिए पारिस्थितिकी नियमों के आधार पर सभी प्राकृतिक संसाधनों की निरंतरता बनाये रखने के लिए इनका विवेकपूर्ण उपयोग करते हुए , संरक्षण प्रदान करना तथा विकास कार्यो में इन नियमों को प्राथमिकता देना।

प्राकृतिक संसाधन:

विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों को दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है –

  • पुनर्विकास योग्य संसाधन (renewable resources)
  • अपुनर्विकास योग्य संसाधन (non renewable resources)

नवीकरणीय अथवा पुनर्विकास योग्य संसाधन (renewable resources) :

इस समूह के अंतर्गत सभी जैविक घटक शामिल है जिनका व्यापक उपयोग किया जाता है। इन संसाधनों को उचित वातावरण प्रदान करने और उपयोग उपरान्त फिर से पुनर्विकास किया जा सकता है। इन संसाधनों के संरक्षणपूर्ण उपयोग से अनेकों लाभ उठाये जाते है। विभिन्न पुनर्विकास योग्य संसाधन निम्नलिखित प्रकार है –

  • वन एवं वन प्रबन्धीकरण :

वनों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। अनेकों आर्थिक समस्याओं का समाधान इन्ही से होता है। इंधन , कोयला , औषधियुक्त तेल और जडीबुटी , लाख , गोंद , रबड़ , चन्दन , इमारती सामान तथा अनेकों लाभदायक पशु पक्षी तथा कीट आदि वनों से प्राप्त होते है लेकिन पिछले पांच से छ: दशकों में वनों का अविवेकपूर्ण दोहन किया गया है। वनों के अभाव में जल , वायु तथा वर्षा के प्राकृतिक चक्र भी अनियंत्रित होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

वन संरक्षण एवं विकास के लिए वर्षा ऋतु में प्रत्येक वर्ष वन महोत्सव मनाया जाता है तथा सरकारी व गैर सरकारी संस्थायें उचित स्थानों पर पौधे लगाकर वन विकास में भाग लेते है। हाल ही में अनेकों राप्तय सरकारों ने “सामाजिक वानिकी” नामक कार्यक्रम चलाया है , जिसके माध्यम से समाज में वनों के महत्व तथा विकास की चेतना का नियमित प्रचार व प्रसार किया जा रहा है।

वन संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए  :

  • वनों की अंधाधुंध कटाई तथा आर्थिक दोहन को प्रभावी कानून से रोका जाए व उल्लघंन करने वालों को कड़ी सजा दी जाए।
  • प्राकृतिक वन प्रदेशों में आधुनिक उद्योगों को लगाने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लागू किया जाए।
  • वन प्रदेशों में निर्माण योजनायें पूर्ण रूप से प्रतिबंधित की जाए।
  • वन विकास कार्यक्रमों को प्राथमिकता व संरक्षण दिया जाए।
  • वन संरक्षण एवं विकास को अनिवार्य पाठ्यक्रम के रूप में पढाया जाए।
  • वन चेतना , संरक्षण एवं विकास के लिए उत्तर प्रदेश की भांति सभी जिला मुख्यालयों पर “वन चेतना” केन्द्रों की स्थापना पूरे देश में की जाये।
  • “वन महोत्सव” को राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में मनाया जाए , जिसमे सभी विभागीय कर्मचारीयों , शिक्षकों तथा विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाए।

2. वन्य जन्तु प्रबन्धिकरण (wildlife management):

वन्य जन्तुओं का प्रबंध जीव विज्ञान की वह प्रावस्था है जो कि वन्य जंतुओं का सर्वश्रेष्ठ संभवत: विकास , उपयोग और संरक्षण से सम्बन्धित है। सभी जातियों के प्रबंध का आशय यह है कि कोई जाति अधिक शोषण , बीमारी अथवा अन्य प्राकृतिक कारणों से विलुप्त नहीं हो जाए। अन्य जन्तुओं के प्रबंध का उद्देश्य यह भी है कि वन्य जन्तुओ से मनुष्य को अधिक से अधिक संभावित लाभ हो।

प्रबंधक को सूचनाओं द्वारा जो मदद मिलती है , उनको निम्नलिखित छ: समूहों में विभक्त किया जा सकता है –

  • आवास आवश्यकता
  • भोजन स्वभाव
  • जीव संख्या परिमाण और घटाव बढाव।
  • अन्य जातियों के साथ अंतर सम्बन्ध

जब किसी एक जाति का प्रबंध करना हो तो उसके लिए सर्वप्रथम जानकारी होनी चाहिए , जैसी कि जीव संख्या परिमाण तथा इसका अन्य जातियों से अन्तर्सम्बन्ध। इस प्रकार का अन्तर्सम्बन्ध लाभदायक अथवा हानिकारक हो सकता है। भक्षक , परजीवी एवं बीमार जीवों से जीव संख्या कम होती है। कभी कभी मानव की प्रतिक्रियाएं भी जाति को कम करने का कारण हो सकती है।

कई समय हमारी अनेक गेम जातियों की जीव संख्या भोजन की कमी के कारण परिमित हो सकती है। प्रबंध में वन्य जातियों द्वारा अक्सर भोजन के लिए प्रतियोगिता का होना महत्वपूर्ण कारक है। इस प्रकार की प्रक्रिया मत्स्य जीवसंख्या के प्रबंध में मुख्य रूप से सत्य है।

कभी कभी भली प्रकार आवास की अनुपस्थिति भी गेम जातियों की जीव संख्या को परिमित करता है , इस प्रकार के आवासों को बढ़ाने की चेष्टा की जाती है। आजकल वन्य जन्तुओ के प्रबंध में आवास विकास एक प्रभावकारी साधन सिद्ध हुआ है।

वन्य जन्तु:

वनों की भांति वन्य जन्तु भी मानव पर्यावरण के एक महत्वपूर्ण अंग है। लेकिन आधुनिकीकरण प्रक्रिया में विद्युत उत्पादन के लिए बाँध निर्माण , सडकों या रेलों के जाल एवं विशाल गृह निर्माण योजनाओं ने अनेकों वन्य जन्तुओ के प्राकृतिक निवास समाप्त कर दिए है।

परिणामस्वरूप आज अनेकों वन्य जन्तु जातियां या तो लुप्त हो गयी है अथवा विलुप्तिकरण के कगार पर खड़ी है। विलुप्तिकरण की तरफ अग्रसर होने वाले वन्य जन्तुओ में सफ़ेद शेर , गैंडा , बब्बर शेर , चिंकारा , चीतल , हाथी , काला चीतल , जंगली सूअर , मगरमच्छ आदि कुछ प्रमुख जन्तु है।

केरल विश्वविद्यालय के जन्तुशास्त्री श्री एम. बालकृष्णन तथा के.एन. अलेक्जेंडर के अनुसार 350 वन्य प्राणी जातियों में से 81 विलुप्तिकरण संकट से ग्रस्त है।

इन वन्य जन्तुओं के संरक्षण के लिए पारिस्थितिकी वैज्ञानिकों ने अनेकों प्रभावकारी कदम उठाये है। इसी सन्दर्भ में सन 1952 में भारतीय वन्य प्राणी परिषद का गठन हुआ था।

इस परिषद् के तत्वावधान में सन 1970 में अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति तथा प्राकृतिक संसाधन संगठन (IUCN) ने अपनी 10 वीं बैठक नयी दिल्ली में आयोजित की , जिससे वन्य जंतुओं सहित विश्वभर में सम्पूर्ण पारिस्थतिकी परितंत्र संरक्षण के लिए शक्तिशाली प्रस्ताव किये गए , परिणामस्वरूप आज भारत सरकार सहित सभी राज्य सरकारों ने अलग से पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी मंत्रालय स्थापित किये है तथा अनेकों प्रभावी कानून बनाये है। परिषद की उपरोक्त बैठक में वन्य जन्तु संरक्षण के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए थे –

  • प्रजननकारी जन्तुओं के आखेट पर पूर्ण क़ानूनी प्रतिबन्ध।
  • वन्य जन्तुओ के लिए अभयारण्यों का विकास एवं इनमें संरक्षणपूर्ण पालन पोषण की व्यवस्था।
  • वन्य जन्तुओं के प्राकृतिक आवासों में आवश्यक सुधार।
  • आखेट योग्य जन्तु अथवा जन्तु जातियों का निर्धारण एवं आरक्षित आखेट क्षेत्रों का विकास।

उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हमारे देश में लगभग 240 वन्य जीवन विहार एवं अनेकों राष्ट्रीय वन्य प्राणी उद्यान स्थापित किये गए है। प्रत्येक वर्ष 1 अक्टूबर से 8 अक्टूबर तक वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जाता है। जिसमे साधारण व्यक्तियों को वन्य प्राणियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी जाती है।

वन्य जन्तु संरक्षण के लिए सन 1967 में वन्य जीव कोष की एक शाखा राष्ट्रीय अपील भारत में स्थापित की गयी है जिसके सहयोग से मद्रास (तमिलनाडु) में एक सर्प उद्यान का विकास किया गया तथा भारतीय बस्टर्ड , बाघ और नीलगिरी टाइगर्स संरक्षण परियोजना चलाई गयी , जिनके परिणामस्वरूप आज इन जातियों को नया जीवन मिला है।

इसी प्रकार भरतपुर (राजस्थान) का पक्षी विहार (घना पक्षी विहार) अनेकों देशी एवं विदेशी पक्षियों की शरणस्थली के रूप में विश्वविद्यालय हो चूका है। उत्तरप्रदेश का जिम कार्बेट पार्क तथा राजस्थान में सरिस्का वन विहार (जिला अलवर) भी अनेकों वन्य जन्तुओं जैसे बाघ , नीलगाय , चीता , हाथी आदि का संरक्षणपूर्ण विकास करने में सहायक हो रहे है।

डाल्फिनो पर संकट समाप्त करने के लिए कई सुझाव दिए जा रहे है। इन विभाग अभयारण्य क्षेत्र में तथा मछुआरों के अधिकारों के लिए संघर्षरत संगठन गंगा मुक्ति आन्दोलन ने मछुआरों से गिल , नेट एवं अन्य विनाशकारी जालों के परित्याग की अपील की है।

दिल्ली में भारतीय उपमहाद्वीप में नदियों के डाल्फिन के संरक्षण पर आयोजित सेमिनार में एक बार फिर चेतावनी दी गयी है कि यदि डाल्फिनो का शिकार तथा गिल नेटों का चलन बना रहा तो अगले 50 वर्षो में कम से कम गंगा के डाल्फिन समाप्त हो जायेंगे।

  • अभयारण्य (sanctuaries)  : सामूहिक संरक्षण के अंतर्गत एक ही आवास में पौधों और जन्तुओ की कई जातियों का साथ साथ परिरक्षण और संरक्षण किया जाता है। इस कार्य हेतु आवासों का चयन किया जाता है कि उनकी पर्यावरणीय दशाएं इस प्रकार की हो कि उनमें बाहर से भारी संख्या में प्राणी खासकर प्रवासी पक्षी आ सके। कई देशों ने इस तरह के पक्षी विहारों की स्थापना और विकास किया है। इन पक्षी विहारों में प्राणियों को स्वच्छ पर्यावरणीय दशाएं उपलब्ध करायी जाती है। उदाहरण के लिए , संयुक्त राप्तय अमेरिका के वनमुर्गी विहारों में बत्तख , हंस और जल पक्षी की कई जातियों के लिए आदर्श स्थानों और घोंसला बनाने के लिए अनुकूल स्थानों को उपलब्ध कराया जाता है।

भारत के दिल्ली चिड़ियाघर और भरतपुर पक्षी विहार में दूरस्थ स्थानों (जैसे साइबेरिया) से आने वाले प्रवासी पक्षियों के लिए स्थान और खाद्य पदार्थो की आपूर्ति के लिए भरपूर व्यवस्था की जाती है और आखेट अथवा किसी भी प्रकार के मानवीय कार्यो से उनकी पूर्णतया रक्षा की जाती है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में उच्च पर्वतीय प्रारक्षण में अल्पाइन पौधों की जातियों की रक्षा की जाती है आदि।

  • राष्ट्रीय उद्यान (national park) :

आवास परिरक्षण के अंतर्गत प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों और पारिस्थितिकीय संसाधनों की बहुमुखी रक्षा के लिए विविध प्रकार के पारिस्थितिकीय संसाधनों वाले विस्तृत क्षेत्रों को आरक्षित कर दिया जाता है।

इस प्रकार के प्रकृति प्रारक्षण को राष्ट्रीय उद्यान कहा जाता है। ऐसे राष्ट्रीय उद्यानों की बाहरी प्राणियों और मनुष्यों के प्रभावों से पूर्ण रक्षा की जाती है।

  • जैवमण्डल प्रारक्षण (biosphere reserves) : जीव मण्डल प्रारक्षण का कार्यक्रम , UNESCO के मनुष्य और जैवमंडल कार्यक्रम (mab – man and biosphere programme) के अंतर्गत आता है। जीवमण्डल प्रारक्षण की संकल्पना का सामान्य तात्पर्य है प्राकृतिक आवासों और उनमे पाए जाने वाले पौधों और जन्तुओ की रक्षा और संरक्षण।

उल्लेखनीय है कि “जीवमंडल प्रारक्षण” की संकल्पना की शुरुआत 1968 में MAB द्वारा आयोजित “द रैशनल यूज एंड कंजर्वेशन ऑफ़ द रिसोर्सेज ऑफ द बायोस्फीयर” नामक संगोष्ठी के समय हुआ था।

इस संगोष्ठी की संस्तुतियो में से एक संस्तुति “जननिक संसाधनों के उपयोग और परिरक्षण” से सम्बन्धित थी। इन संगोष्ठी की संस्तुतियों में से प्रमुख है कि महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों , पालतू पौधों और जन्तुओं के मौलिक आवासों और संकटापन्न और दुर्लभ जातियों की बची संख्या के परिरक्षण के लिए विशेष तौर पर प्रयास किया जाना चाहिए।

सन 1969 में यह निर्णय लिया गया कि MAB कार्यक्रम के अंतर्गत विश्वभर में राष्ट्रीय उद्यानों , जैविक प्रारक्षण और अन्य रक्षित क्षेत्रों की व्यवस्था की जाए और इनमें घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किया जाए। ऐसे समन्वित क्षेत्रों को कभी कभी जैवमण्डल प्रारक्षण नाम से सम्बोधित किया जाता रहा लेकिन जैवमंडल प्रारक्षण की संकल्पना का उद्भव सन 1971 में हुआ और प्रथम जीवमण्डल प्रारक्षण का अभिनिर्धारण से 1976 में किया गया।

1976 के बाद से MAB द्वारा अभिनिर्धारित जैवमण्डल प्रारक्षण की संख्या में निरंतर वृद्धि होती गयी और 1986 के अंत तक 70 देशो में 1986 जीवमण्डल प्रारक्षण को तैयार कर दिया गया।

सन 1974 में UNESCO और UNEP (United Nations Environment Programme) के सहयोग से विशेष टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया जिसने “जैवमण्डल प्रारक्षण” की विशेषताओं का निर्धारण किया और उसके विभिन्न उद्देश्यों को निश्चित किया।

जैवमण्डल प्रारक्षण का उद्देश्य:

जैवमण्डल प्रारक्षण की भूमिकाओं और प्रमुख उद्देश्यों को तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया।

  • संरक्षणात्मक भूमिका : जननिक संसाधनों और प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्रों का संरक्षण और जैविक विविधता का अनुरक्षण।
  • तार्किक अर्थात शोध सम्बन्धी भूमिका : MBA कार्यक्रम के तहत शोध और अध्ययन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सुनिश्चित और निर्धारित शोध क्षेत्रों की स्थापना करना , विभिन्न शोध क्षेत्रों के मध्य विभिन्न सूचनाओं का आदान प्रदान करना , विभिन्न कार्यक्रमों को मोनिटर करना और संरक्षण से सम्बन्धित प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • विकासीय भूमिका : पर्यावरण संरक्षण और भूमि संसाधन के विकास के मध्य सम्बन्ध स्थापित करना।
  • संरक्षणात्मक भूमिका  : जननिक संसाधनों और पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण।
  • तार्किक भूमिका  : शोध कार्य और मोनिटरिंग के लिए अन्तर्राष्ट्रीय परिषद की स्थापना।
  • विकासीय भूमिका  : पर्यावरण और विकास कार्यो में सम्बन्ध स्थापित करना।

UNESCO की सन 1981 की विज्ञप्ति के अनुसार जैवमण्डल प्रारक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य है –

  • विश्व के विभिन्न भागों में जैवमंडल प्रारक्षण की अधिकाधिक संख्या में स्थापना करना।
  • संरक्षण की समन्वित योजना को कारगर बनाना।
  • पारिस्थितिकीय और आनुवांशिक विविधता और शोध में समन्वय स्थापित करना। ,
  • पर्यावरणीय दशाओं को नियमित रूप से मोनिटर करना।
  • पर्यावरण और पारिस्थितिकी से सम्बन्धित शिक्षा और प्रशिक्षण करना आदि।

जैवमण्डल प्रारक्षण का क्षेत्रीयकरण  :

सन 1976 में जैवमंडल प्रारक्षण के लिए सामान्य क्षेत्रीयकरण प्रारूप का प्रस्ताव रखा था। इस क्षेत्रीयकरण योजना के अंतर्गत जैवमण्डल प्रारक्षण में 3 क्षेत्र होने चाहिए –

  • पूर्ण रूप से रक्षित कोड क्षेत्र
  • पूर्ण रूप से सीमांकित मध्यवर्ती क्षेत्र
  • असीमांकित बाह्य क्षेत्र अथवा आवांतर क्षेत्र

क्रोड़ क्षेत्र राष्ट्रीय उद्यान का प्रतिनिधित्व करता है। सरकारी कर्मचारियों को छोड़ कर कोई भी व्यक्ति इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं पा सकता है। मध्यवर्ती मण्डल का सीमांकन तो अच्छी तरह किया जाता है लेकिन इसका उपयोग ऐसे कार्यो के लिए किया जा सकता है जो पूर्णतया नियंत्रित और अविध्वंसक हो।

बाह्य मण्डल की सीमा सुनिश्चित नहीं होती है। इसका प्रायोगिक शोध , परंपरागत उपयोग , पुनर्वास आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है।

संहत जैवमण्डल प्रारक्षण:

  • सन 1977 में संहत जीवमंडल प्रारक्षण की संकल्पना का विकास किया गया। इस संकल्पना के अनुसार मुख्य “जीवमण्डल प्रारक्षण” के साथ कुछ गौण जैवमण्डल प्रारक्षण भी होने चाहिए। क्योंकि एक ही सम्बंद्ध क्षेत्र में “जैवमण्डल प्रारक्षण” के सभी कार्य सम्पादित नहीं किये जा सकते।

माइकेल बैटिसी (1986) के अनुसार इन्होने विशुद्ध “जैवमण्डल प्रारक्षण” के लिए निम्नलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक बताया है –

  • जैवमण्डल प्रारक्षण में पूर्ण रूप से रक्षित मण्डल होना चाहिए। इसके अभाव में कोई भी जैवमण्डल प्रारक्षण विशुद्ध और वास्तविक जैवमण्डल प्रारक्षण नहीं हो सकता है।
  • जीवमण्डल प्रारक्षण में स्थित राष्ट्रीय उद्यान का उद्देश्य उसके बाहर स्थित आस पास के क्षेत्र का विकास करना भी होना चाहिए।
  • जैवमण्डल प्रारक्षण में पारिस्थितिक तंत्र के विकास के लिए संरक्षण सम्बन्धी कार्यो और शोध कार्यो और शिक्षा के मध्य पूर्ण सम्बन्ध और परस्पर सहयोग होना चाहिए।
  • किसी भी जैवमण्डल प्रारक्षण का विश्व के अन्य जैवमण्डल प्रारक्षण के साथ सम्पर्क होना चाहिए , इनमे शोध से सम्बन्धित सूचनाओं का आदान प्रदान होना चाहिए और प्रायोगिक शोध कार्यो की नियमित मोनिटरिंग होनी चाहिए।

हम आशा करते है कि यह नोट्स आपकी स्टडी में उपयोगी साबित हुए होंगे | अगर आप लोगो को इससे रिलेटेड कोई भी किसी भी प्रकार का डॉउट हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूंछ सकते है | आप इन्हे अपने Classmates & Friends के साथ शेयर कर सकते है |

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जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

धरती पर जीवन के अनुकूल जलवायु के कारण ही यहां जीवन संभव है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें लगातार हो रहे परिवर्तन ने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ाई है। जीवाश्म ईंधन जैसे, कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस आदि को जलाने के कारण पृथ्वी के वातावरण में तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। औसत मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन या क्लाइमेट चेंज (Climate change) कहा जाता है। दशकों, सदियों या उससे अधिक समय में जलवायु में बड़े स्तर पर हो रहे परिवर्तन से जीवन पर प्रभाव पड़ता है। इन दिनों उद्योग और शहरीकरण से इस परिवर्तन में तेजी देखी गई है।

जलवायु परिवर्तन पर लेख (Essay on climate change in hindi) - जलवायु क्या है?

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जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

सामान्यतः जलवायु का मतलब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है। अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं। जलवायु एक ऐसा पहलू है जो दुनिया के हर इंसान के जीवन से जुड़ा हुआ है। जलवायु की दशा हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करती है। मानवीय तथा कुछ प्राकृतिक गतिविधियों के कारण जलवायु की दशा बदल रही है। हाल के वर्षों और दशकों में गर्मी के कई रिकॉर्ड टूट गए हैं: यूएन जलवायु रिपोर्ट 2019 इस बात की पुष्टि करती है कि 2010-2019 सबसे गर्म दशक था। वर्ष 2019 में वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) तथा अन्य ग्रीनहाउस गैसें नए रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई थी।

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इन सब वजहों से जलवायु में परिवर्तन आ रहा है, जिसे जलवायु परिवर्तन की संज्ञा दी जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जलवायु में हो रहे नकारात्मक परिवर्तन (Negative changes in climate) पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के लिए बहुत ही खतरनाक सिद्ध होंगे। हालांकि जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रति सरकारें जागरूक हो रही हैं और लोगों को भी जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रति आगाह करने की जरूरत है। हमारे देश भारत के लिए राहत की बात है कि वर्ष 2024 में जलवायु प्रदर्शन सूचकांक में सातवें स्थान पर रहा जो बीते वर्ष 2023 में 8वें नंबर पर था। हालांकि इसमें अभी काफी सुधार की जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन पर निबंध (jalvayu parivartan par nibandh) से इस विषय के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी मिलेगी। जलवायु परिवर्तन वैश्विक स्तर पर एक बेहद गंभीर मुद्दा है जिससे अवगत करवाने के लिए विद्यालयों में छात्रों को भी जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in hindi) लिखने का कार्य दे दिया जाता है या फिर कभी-कभी परीक्षा में अच्छे अंकों के लिए जलवायु परिवर्तन पर निबंध (climate change par nibandh) लिखने से संबंधित प्रश्न पूछ लिए जाते हैं।

हिंदी में निबंध- भाषा कौशल, लिखने का तरीका जानें

जलवायु परिवर्तन पर लेख (jalvayu parivartan par lekh) के प्रारंभ में जलवायु क्या है, पहले इस बात को समझने की जरूरत है। एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। यूरोपीय देशों में जहां गर्मी की ऋतु छोटी होती है और कड़ाके की ठंड पड़ती है, जबकि भारत में अधिक गर्मी वाले मौसम की प्रधानता रहती है। सर्दियों के 2-3 महीनों को छोड़ दिया जाए, तो शेष समय जलवायु गर्म ही रहता है। भारत के समुद्र तटीय क्षेत्रों में, तो सर्दियों की ऋतु का तापमान औसत स्तर का रहता है। इस तरह किसी क्षेत्र की जलवायु उसकी स्थिति पर निर्भर करती है।

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किसी क्षेत्र विशेष की परंपरागत जलवायु में समय के साथ होने वाले बदलाव को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। जलवायु में आने वाले परिवर्तन के प्रभाव को एक सीमित क्षेत्र में अनुभव किया जा सकता है तथा पूरी दुनिया में भी इसके प्रभाव दिखने लगे हैं। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर दशा में पहुँच रही है और पूरे विश्व पर इसका असर देखने को मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु रिपोर्ट (climate report) में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन का पर्यावरण के सभी पहलुओं के साथ-साथ वैश्विक आबादी के स्वास्थ्य और कल्याण पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की अगुवाई में तैयार रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के भौतिक संकेतों - जैसे भूमि और समुद्र के तापमान में वृद्धि, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और बर्फ के पिघलने के अलावा सामाजिक-आर्थिक विकास, मानव स्वास्थ्य, प्रवास और विस्थापन, खाद्य सुरक्षा और भूमि तथा समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव का दस्तावेजीकरण किया गया है।

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण भी पृथ्वी के तापमान में लगातर बढ़ोतरी हो रही है। पर्यावरण प्रदूषण के कारण बढ़ते तापमान ने जलवायु परिवर्तन की स्थिति को और गंभीर बनाने का कार्य किया है। जलवायु रिपोर्ट के अनुसार 1980 के दशक के बाद आगामी प्रत्येक दशक, 1850 से किसी भी दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव पेटेरी टालस के इस कथन से भी यह बात समझी जा सकती है - अब तक का सबसे गर्म साल 2016 था, लेकिन जल्द ही इससे अधिक गर्म वर्ष देखने को मिल सकते हैं। यह देखते हुए कि ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि जारी है, तापमान में वृद्धि (global warming) जारी रहेगी। आगामी दशकों के लिए लगाए जाने एक हालिया पूर्वानुमान से संकेत मिलता है कि आने वाले पांच वर्षों में एक नया वार्षिक वैश्विक तापमान रिकॉर्ड मिलने की आशंका है।

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जिसके कारण के कारणों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- प्राकृतिक और मानवीय। जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी, महासागरीय धाराओं, महाद्वीपों के अलगाव आदि प्रमुख हैं।

ज्वालामुखी- ज्वालामुखी की सक्रियता बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड, जलवाष्प, धूल कण तथा राख को वायुमण्डल में फैलाने के लिए जिम्मेदार है। हालांकि, ज्वालामुखी की सक्रियता कुछ दिनों की ही हो सकती हैं, लेकिन भारी मात्रा में निकलने वाली गैसें तथा राख लंबे समय तक जलवायु के पैटर्न को प्रभावित करती है।

महासागरीय धाराएं- महासागरों की जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका है। वायुमंडल या भू-सतह की तुलना में दुगुना तापमान इनके द्वारा अवशोषित किया जाता है। महासागरीय प्रवाह चारों ओर तापमान के स्थानांतरण के लिए जिम्मेदार है। इनकी वजह से हवाओं की दिशा परिवर्तित कर तापमान को प्रभावित किया जाता है। तापमान को अवशोषित करने वाली ग्रीनहाउस गैस का एक अहम हिस्सा समुद्रों जलवाष्प होती है जो कि वायुमंडल में तापमान को अवशोषित करने का काम करती है।

मिथेन गैस का भंडार- आर्कटिक महासागर की बर्फ के नीचे अतल गहराइयों में मेथेन हाइड्रेट के रूप में ग्रीनहाउस गैस मेथेन का विशाल भंडार है जो विशिष्ट ताप और दाब में हाइड्राइट रूप में रहता है। ताप और दाब में परिवर्तन होने पर यह मिथेन मुक्त होती है और वायुमंडल में घुल जाती है। अपने गैसीय रूप में, मिथेन सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों में से एक है, जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में पृथ्वी को बहुत अधिक गर्म करती है।

ग्रीनहाउस प्रभाव गैसें- वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाईऑक्साइड, मेथेन, जलवाष्प आदि के द्वारा सूर्य के प्रकाश की ऊष्मा के एक भाग को अवशोषित कर लिया जाता है, इस घटना को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है।

जीवाश्म ईंधन का प्रयोग- जीवाश्म ईँधन के प्रयोग के कारण ग्रीनहाउस गैसों खासकर कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर वायुमंडल में बढ़ता जा रहा है। लगभग 33% कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जीवाश्म ईँधनों के प्रयोग को माना जाता है।

जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया पर आपदाओं के बादल मँडरा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कुछ परिणाम निम्नलिखित हैं-

जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बहुत ही जल्दी-जल्दी और घातक बदलाव होने लगे हैं।

साल 2019 दूसरा सबसे गर्म साल रिकॉर्ड किया गया।

अब तक का सबसे गर्म दशक 2010- 2019 रिकॉर्ड किया गया।

वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का स्तर 2019 में नए रिकॉर्ड तक पहुंच गया।

बाढ़, सूखा, झुलसा देने वाली लू, जंगल की आग और क्षेत्रीय चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में जमी बर्फ के पिघलने की दर बढ़ती जा रही है जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है।

मालदीव की समुद्र तल से ऊंचाई कम होने के कारण यह द्वीपीय राष्ट्र विशेष खतरे में है। इस देश का उच्चतम स्थान समुद्र तल से लगभग 7.5 फीट ऊँचा है जिससे मालदीव के समुद्र में डूबने का खतरे बढ़ता जा रहा है।

दक्षिण अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया सहित अधिकांश भू-क्षेत्र हालिया औसत से अधिक गर्म रहे। अमेरिकी राज्य अलास्का भी तुलानात्मक रूप से गर्म था वहीं इसके विपरीत उत्तरी अमेरिका का एक बड़ा क्षेत्र हाल के औसत से अधिक ठंडा रहा।

वर्ष 2019 जुलाई के अंत में आए लू के थपेड़ों से मध्य और पश्चिमी यूरोप का अधिकांश भाग प्रभावित हुआ। इस दौरान नीदरलैंड में 2964 मौतें लू से जुड़ी पाई गईं जो कि गर्मी के सप्ताह में औसतन होने वाली मौतों की तुलना में लगभग 400 अधिक थीं।

लंबे समय तक तापमान अधिक रहने के कारण मौसम के स्वभाव में बदलाव आ रहा है जिसके चलते प्रकृति में मौजूद सामान्य संतुलन की स्थिति बिगड़ती जा रही है। इससे मनुष्यों के साथ ही पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग के चलते उपजे खतरों को देखते हुए ग्लोबल वार्मिंग कारण और निवारण पर साल 2015 में ऐतिहासिक पेरिस समझौते को अपनाया गया जिसका लक्ष्य इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक काल के तापमान से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक होने के स्तर से नीचे रखना है। समझौते का उद्देश्य उपयुक्त वित्तीय प्रवाह, नए प्रौद्योगिकी ढांचे और उन्नत क्षमता निर्माण ढांचे के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए देशों की क्षमता में वृद्धि करना भी है। जलवायु परिवर्तन के खतरे के लिए दुनिया भर में उठाए जा रहे कदमों को मजबूत करने और तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से घटाकर 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों की रूपरेखा के साथ 4 नवंबर, 2016 को जलवाय परिवर्तन पर पेरिस समझौते को क्रियान्वित किया गया।

जीवन और आजीविका बचाने के लिए महामारी और जलवायु आपातकाल दोनों को संबोधित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। हमारे ग्रह पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। सरकारों को इसमें नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त व मजबूत कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को सतत विकास के उपायों में निवेश करने, ग्रीन जॉब, हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखने, पृथ्वी को स्वस्थ रखने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर व पूरी ईमानदारी के साथ काम करना होगा। यह बात ज्ञात हो कि कोई देश अकेले ही ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने में सक्षम नहीं है। इस खतरे को सभी मिलकर ही दूर कर सकते हैं।

Frequently Asked Question (FAQs)

एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। 

किसी क्षेत्र विशेष की परंपरागत जलवायु में समय के साथ होने वाले बदलाव को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। जलवायु में आने वाले परिवर्तन के प्रभाव को एक सीमित क्षेत्र में अनुभव किया जा सकता है और पूरी दुनिया में भी। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर दिशा में पहुँच रही है और पूरे विश्व में इसका असर देखने को मिल रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। लंबे समय तक तापमान अधिक रहने के कारण मौसम के स्वभाव में बदलाव आ रहा है जिसके चलते प्रकृति में मौजूद सामान्य संतुलन की स्थिति बिगड़ रही है। इससे मनुष्यों के साथ ही पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के अन्य परिणामों के बारे में जानकारी लेख में दी गई है।

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प्राकृतिक धरोहर पर निबंध | Essay On Natural Heritage In Hindi

प्राकृतिक धरोहर पर निबंध Essay On Natural Heritage In Hindi : हमारा भारत विशाल एवं सांस्कृतिक विविधताओं से भरा देश हैं.

यहाँ सदियों पुरानी यादों को समेटे वस्तुएं व स्थल है जिनको संजोकर रखने के लिए 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस भी मनाते हैं. आज के निबंध स्पीच में हम भारत की प्राकृतिक धरोहर के संरक्षण पर लेख बता रहे हैं.

Essay On Natural Heritage In Hindi

Essay On Natural Heritage In Hindi

दुनिया के विभिन्न समुदायों ने अपने ज्ञान, अनुभव, विवेक, लोक सांस्कृतिक परम्पराओं और मूल्यों से एक ऐसी व्यवस्था को जन्म दिया था जिसके कारण न केवल जंगल बचे वरन आर्थिक सांस्कृतिक एवं पर्यावरनीय तंत्र भी सुरक्षित रहे.

दुनिया के हर हिस्से में देवी, देवता, संतों के नाम से जमीन का एक भूभाग रखा जाता था. जहाँ न तो कोई पेड़ काटा जाता था, न ही किसी जीव का शिकार किया जाता था. वह टिकाऊ विकास और जलवायु परिवर्तन को बेअसर करने की अनोखी व्यवस्था थी.

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर ने भी इसे प्रकृति पूजा का अनोखा तरीका माना, लेकिन चिंता की बात यह है आज लोक मूल्यों के क्षीण होने व जलवायु परिवर्तन के खतरों के बीच देवी देवताओं के ये वन पूरी दुनिया के साथ साथ भारत में भी खत्म होते जा रहे हैं.

इस बीच सुखद पहलू यह है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों को बेअसर करने की इस देशज व्यवस्था को फिर से जीवित करने पर अब दुनिया का ध्यान जा रहा हैं. यही कारण है कि पिछले कुछ ऐसे अहम संरक्षित क्षेत्रों को यूनेस्को ने पिछले सालों में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया हैं.

इनमें नेपाल का लुम्बिनी, ओकिनावा का सेफ़ा उतकी एवं नाइजीरिया का ओसून ओसोम्बो शामिल हैं. अब तक ऐसी चौदह हजार धरोहर ही सूचीबद्ध हुई है,

जबकि भारत के थार रेगिस्तान, हिमाचल, पश्चिमी घाट, मध्य भारत, उत्तरी पूर्वी क्षेत्र आदि में पचास हजार से एक लाख तक ऐसे प्राकृतिक धरोहर के स्थल हैं.

प्राकृतिक धरोहर को देवी देवताओं से जोड़कर संरक्षित करने की परम्परा वैदिक काल से पहले की हैं. महाभारत, पुराणों के साथ कालिदास की रचनाओं में भी इसका उल्लेख मिलता है. लेकिन चिंता की बात यह है कि हमारे देश में ऐसे प्राकृतिक धरोहर का आकार और संख्या निरंतर सिमटती जा रही हैं.

राजस्थान में भी कई इलाकों में ओरण की जमीन तक लोक देवी देवताओं के नाम होती थी. पेड़ कोई नहीं काटता था. साल भर सूखी लकड़ी, साग सब्जी, विभिन्न प्रकार के फल, जडीबुटी, घास, चारा आदि ओरण से मिल जाता था.

यह ग्रामीण समाज की धुरी भी थी. ओरण और गोचर के उजड़ जाने से यहाँ भी बहु जैव विविधता प्रभावित हो रही है. यही कारण है कि वनस्पति, वन्य जीव संकट में हैं.

ओरण, गोचर और बीड़ इंसान मवेशी और वन्य जीव के लिए अत्यंत जरुरी हैं. ओरण में देशी बावल, अरणी, फोग, गागेंटी, मखणी, आँख फूटनी, तूम्बा, बरू, गोखरू आदि वनस्पतियाँ विलुप्ति की कगार पर हैं. इसके बावजूद बोरडी, कुमट, सिरगुडा, खेजड़ी, जाल, मोराली, मोथ वनस्पतियाँ ओरण का महत्व बनाएं हुए हैं.

देखा जाए तो देश में ओरण, गोचर, बीड़ जैसी प्राकृतिक जमीन पर परम्परागत हक संसाधनों को दुरुस्त करने की जरूरत है. नरेगा जैसी योजनाओं के तहत आगोर का रखरखाव हो तो बारिश की एक एक बूंद को सहेजा जा सकता हैं. यही नहीं पेड़ पौधों, घास, जड़ी बूटियों का भी बड़े पैमाने पर रोपण कर रखरखाव किया जाना चाहिए.

इससे पशुपालकों को लाभ मिलेगा ही, गरीब कमजोर वर्ग को ओरण गोचर उत्पाद से रोजगार भी मिलेगा. पुरखों के परम्परागत ज्ञान का इस्तेलाम कर लोक मूल्यों एवं लोक आधारित देशज व्यवस्था से जलवायु के खतरे को रोका ही नहीं जा सकता.

बल्कि पूरी तरह खत्म भी किया जा सकता है, ऐसे प्रयास होंगे तभी प्राकृतिक धरोहर बचेगी ही, खत्म होती जा रही वनस्पतियों और जीवों को भी बचाया जा सकेगा.

(1000 शब्द) प्राकृतिक धरोहर पर निबंध

जिस धरती पर हम रहते हैं वो बहुमूल्य है जिस तरह हमें अपनी धरोहर हमारा घर, सम्पत्ति, ज़मीन आदि मूल्यवान लगते हैं। उसी तरह जिन पर्वतों की शान होती है, वनस्पतियाँ- पेड़ -पौधे जो हमारे मित्र होते हैं.

जंगल की शान जीव जन्तु जो हमारे करीब होते हैं, स्मारक, शहर, भवन, मरुस्थल आदि यह सब प्राकृतिक धरोहर के रूप में बहुमूल्य हैं।

दोस्तों हमारा जीवन खूबसूरत प्राकृतिक धरोहर के कारण ही होता है। वायु जिसकी वजह से हम साँस लेते हैं, जो भोजन हम खाते हैं, जो पानी हम पीते हैं, जिन स्थलों में हम घूमने जाते हैं, जिन स्मारकों की शोभा अद्वितीय होती है.

जिन पशु पक्षियों की वजह से खूबसूरती, चहल पहल रहती है, सूरज, चाँद, आकाश, धरती आदि ये सब हमें पृथ्वी पर जीवन देते हैं। ये सब प्राकृतिक धरोहर कीमती हैं। प्रस्तुत निबंध प्राकृतिक धरोहर के बारे में है हमारे देश की शान हमारी पहचान हैं प्राकृतिक धरोहर।

प्राकृतिक धरोहर परिचय

प्राकृतिक धरोहर के बारे में जानने के लिए हमें प्रकृति के करीब जाना होगा, उसको समझना होगा। मानव निर्मित न होकर ये धरोहर प्रकृति से संबंधित होते हैं।

जो इस पृथ्वी में जीवन की खोज के साथ साथ मनुष्य के संपर्क में आए और मनुष्य के लिए ज़रूरी हो गए। प्राकृतिक धरोहर के रूप में नदी, नहरें, पशु पक्षी, पेड़ पौधे,जंगल, स्मारक, पर्वत, शहर, भवन आदि सब प्राकृतिक संपदा हैं जो अनमोल हैं।

भारतवर्ष की शान उसकी विविधताओं में एकता, सांस्कृतिक परम्परा, धार्मिक, वैज्ञानिक आदि स्वरूपों में देखने को मिलती है। प्राकृतिक धरोहर भी अपनी विशेषता रखते हुए अपने में अनेक वस्तुएँ और जगहों को संभाल कर रखती हैं.

जिस की महत्वपूर्णता को बरकरार रखने के लिए विश्व धरोहर दिवस भी मनाया जाता है जो मुख्य रूप से अप्रैल 18 को मनाया जाता है। प्राकृतिक धरोहर भारत की मूल्यवान संपति है जो विश्व भर में अपनी बहुमूल्यता बनाए रखती है।

धरोहर पुराने समय से शुरू होते हुए निरन्तर चलती रहती है जो आज भी है। प्राकृतिक धरोहर परिस्थिति के अनुरूप उन सभी तंत्रों, वस्तुओं से संबंधित होते हैं.

जो पुराने समय से अब तक प्राकृतिक सम्पत्ति के रूप में मानी जाती हैं। जैसे – स्मारक, स्थल, प्रजातियों के रहने का स्थान, घूमने की जगह( पर्यटन स्थल), प्राकृतिक सम्पदा, जीव जंतु आदि।

प्राकृतिक धरोहर हमारी शान

आकाश में उभरते अनेक ग्रहों में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जहाँ जीवन सुचारू रूप से चलता है, मनुष्य रहते हैं, साँस लेते हैं, काम करते हैं, अलग अलग रूपों में जीवन जिया जाता है।

हमारे देश की प्राकृतिक संपदा हमारे लिए बहुमूल्य ही है क्योंकि प्राकृतिक धरोहर है तो हम हैं वरना हमारा कोई वजूद नहीं होगा।

जीवन जीवित रहने से जिया जाता है जिसके लिए खाना, पानी, हवा बहुत ज़रूरी है जो पेड़ पौधों, नदी आदि से मिलते हैं। पर्वत हमारे देश के रक्षा कवच समान हैं।

रात दिन का चक्र, सुबह – दिन – रात की बात, त्यौहारों, रीति रिवाजों की रौनक सब सूरज, चाँद, आकाश, तारे से जुड़े हैं, पेड़ पौधों से संबंधित हैं जो हमारे देश को अलग मुकाम देते हैं, एक अलग पहचान, एकता में अनेकता का रूप देते हैं, हमारी शान कायम रखते हैं।

प्राकृतिक धरोहर की उपयोगिता

प्राकृतिक धरोहर उतना ही उपयोगी है जितना इस धरती पर साँस लेना। हमें हर रूप में इन प्राकृतिक धरोहर की ज़रूरत पड़ती है। अच्छा स्वास्थ्य हो जिसके लिए सुबह की स्वच्छंद हवा बेहद उपयोगी होती है.

साफ सुथरा अच्छा पौष्टिक भोजन शरीर के लिए ज़रूरी होता है जो पेड़ पौधों से मिलते हैं जिसके लिए सूरज की रोशनी, पानी, खाद की ज़रूरत होती है, जीवित रहने के लिए वायु की ज़रूरत होती है, पानी के बिना रहा नहीं जाता, ये सब पेड़ पौधों, नदी आदि से प्राप्त होते हैं। प्राकृतिक धरोहर के ही अंर्तगत आते हैं।

हम घर लेते हैं सुंदर सुंदर पलंग, पर्दे, कुर्सी, सोफा, टेबल, बेड आदि घर में सजाते हैं रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में प्रयोग किए जाते हैं जो प्राकृतिक धरोहर के कारण ही उपयोग में ला पाते हैं।

पर्यटन स्थलों में घूमने जाते हैं, स्मारकों के दर्शन के लिए जाते हैैं ये सब प्राकृतिक धरोहर के कारण संभव हो पाता है वरना तो जीवन ही नहीं रहेगा।

प्राकृतिक धरोहर संरक्षण

हम जीवन अच्छे से जीना चाहते हैं तो अपनी प्रकृति की रक्षा करना भी हमारा दायित्व है। पेड़ पौधे काटे जाते हैं अधिक मात्रा में कटाई रोकनी चाहिए, पेड़ पौधे लगाने चाहिए।

प्राकृतिक धरोहर की साफ सफाई रखना भी हमारा ही कर्तव्य है। कूड़ा खुले में नहीं फैलाना चाहिए, जल और खाने की बर्बादी पर ध्यान देना चाहिए। प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित करेंगें तो एक अच्छी ज़िन्दगी जी पायेगें।

प्राचीन काल से प्राकृतिक संरक्षण का खयाल किया जा रहा है। जब प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए उन्हें देवी देवताओं से जोड़ा जाता था,

पेड़ नहीं काटे जाते थे जिसके फलस्वरूप लकड़ियाँ, खाद्य सामग्री फल आदि, जड़ी बूटियाँ, पशुओं के लिए घास चारा मिल जाता था। वनस्पतियों, जीव जंतुओं की रक्षा हो जाती थी।

पुराने समय में एक व्यवस्था के अंतर्गत वनों को विशेष स्थल के रूप में माना जाता था काटा नहीं जाता था, पेड़ पौधों को ईश्वर से जोड़ा जाता था, पूजा की जाती थी, जीव जंतुओं का शिकार नहीं किया जाता था जिस कारण प्राकृतिक सम्पदा सुरक्षित रहती थी।

वर्तमान काल में प्राकृतिक धरोहर की सुरक्षा का प्रश्न समक्ष आ रहा है, ग्लोबल वार्मिंग की समस्या आ रही है। पुराने समय में प्रकृति पूजा स्वरूप पेड़ पौधे की रक्षा हो जाती थी,जिसे  इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर ने भी उपयुक्त माना था।

आज के दौर में इन पेड़ पौधों की हानि देखने को मिल रही है लेकिन कई संस्था इस समस्या पर विचार कर कई कदम उठा रही है जिसमें यूनेस्को ने पहल की है।

अनेक स्थलों जैसे – राजस्थान के रेगिस्तान, हिमाचल, उत्तरी पूर्वी क्षेत्र, भारत का मध्य भाग आदि की सूची बनाई गई है ताकि संरक्षण किया जा सके।

प्राकृतिक धरोहर अमूल्य खज़ाना

हमारे लिए जो खज़ाना बेहद अमूल्य है वो है प्राकृतिक धरोहर। रुपए पैसे भी तभी आएंगे जब प्रकृति सुरक्षित होगी। ताज़े फल सब्जी खाकर, साफ स्वच्छ पानी पीकर हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है, माहौल प्रदूषण रहित रहने से साँस लेना आसान नहीं होता है। जीवन खुशहाल बना दे ऐसी प्राकृतिक धरोहर अमूल्य खज़ाना ही है।

अन्तिम शब्द

दोस्तों हमारा जीवन जितना महत्वपूर्ण है उससे कहीं ज्यादा महत्व रखती है प्राकृतिक धरोहर और इसी धरोहर के बारे में इस निबंध में बड़े सहज रूप से लिखा गया है.

जिस से आसानी से आपको प्राकृतिक धरोहर के बारे में अनेक बातें जानने को मिलेंगी, प्राकृतिक धरोहर की इंपॉर्टेंस ही पता चलेगी।

  • विश्व धरोहर दिवस पर निबंध
  • गवरी नृत्य मेवाड़ के बारे में जानकारी
  • भारत की विरासत पर निबंध
  • ऐतिहासिक स्थल की सैर पर निबंध

आशा करता हूँ दोस्तों Essay On Natural Heritage In Hindi का यह निबंध आपकों अच्छा लगा होगा. इस निबंध में हमने प्राकृतिक धरोहर के बारे में जानकारी दी हैं. निबंध पसंद आए तो अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे.

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प्राकृतिक आपदा पर निबंध Essay on Natural Disasters in Hindi

प्राकृतिक आपदा पर निबंध Essay on Natural Disasters in Hindi

इस अनुच्छेद में हमने प्राकृतिक आपदा पर निबंध (Essay on Natural Disasters in Hindi) हिन्दी में लिखा है। इसमें हमने आपदा के कारण, प्रकार, प्रभाव और प्रबंधन के विषय में पूरी जानकारी दी है। इस निबंध में हमने सभी प्रकार के आपदाओं के विषय में 3000 शब्दों में पूरी जानकारी दी है।

सबसे पहले हम आपको बताते हैं प्राकृतिक आपदा क्या है? तो चलिए शुरू करते हैं – प्राकृतिक आपदा पर निबंध Essay on Natural Disasters in Hindi

Table of Content

प्राकृतिक आपदा क्या है? What is Natural Disaster in Hindi?

ऐसी कोई भी प्राकृतिक घटना जिससे मनुष्य के जीवन या सामग्री को हानि पहुंचे प्राकृतिक आपदा कहलाता है। सदियों से प्राकृतिक आपदायें मनुष्य के अस्तित्व के लिए चुनौती रही है।

जंगलो में आग, बाढ़, हिमस्खलन, भूस्खलन, भूकम्प, ज्वालामुखी, सुनामी, चक्रवाती तूफ़ान, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदायें बार-बार मनुष्य को चेतावनी देती है। वर्तमान में हम प्राकृतिक संसाधनो का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है।

ये मनुष्य के मनमानी का ही नतीजा है। इन आपदाओं को ‘ईश्वर का प्रकोप या गुस्सा ‘ भी कहा जाता है। आज मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिए वनों, जंगलो, मैदानों, पहाड़ो, खनिज पदार्थो का अंधाधुंध दोहन कर रहा है। उसी के परिणाम स्वरुप प्राकृतिक आपदायें दिन ब दिन बढ़ने लगी है।

हमे सावधानीपूर्वक प्राकृतिक संसाधनो का इस्तेमाल करना चाहिये। ऐसी आपदाओं के कारण भारी मात्रा में जान-माल की हानि होती है।

अगर हम भारत और आस पास के कुछ बड़े प्राकृतिक आपदाओं की बात ही करें तो –

  • 1999 में ओड़िसा में महाचक्रवात आया जिसमे 10 हजार से अधिक लोग मारे गये।
  • 2001 का गुजरात भूकंप कोई नही भूल सकता है। इसमें 20 हजार से अधिक लोग मारे गये। यह भूकंप 26 जनवरी 2001 में आया था। इसमें अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, गांधीनगर, कच्छ, जामनगर जैसे जिले पूरी तरह नष्ट हो गये।
  • 2004 में हिन्द महासागर में सुनामी आ गयी। इसमें अंडमान निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका, इंडोनेशिया, दक्षिण भारत प्रभावित हुए। इसमें 2 लाख से अधिक लोगो की जान चली गयी।
  • 2014 में जम्मू कश्मीर में भीषण बाढ़ आई जिसमे 500 से अधिक लोग मारे गये।

प्राकृतिक आपदाओं के कई प्रकार हैं –

  • जंगलो में आग
  • बाढ़ और मूसलाधार बारिश
  • बिजली गिरना,
  • सूखा (अकाल)
  • हिमस्खलन, भूखलन
  • चक्रवाती तूफ़ान
  • बादल फटना (क्लाउड ब‌र्स्ट)

इस तरह की आपदायें कुछ समय के लिए आती है पर बड़ी मात्रा में नुकसान करती है। सभी मकानों, परिसरों, शहरो को नष्ट कर देती है और बड़ी मात्रा में जान-माल का नुकसान होता है। हर कोई इनके सामने बौना साबित होता है। निचे हमने इन सभी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में विस्तार में बताया है।

प्राकृतिक आपदाओं का पर्यावरण पर प्रभाव Effect of Natural Disaster on Environment in Hindi

प्राकृतिक आपदा अपने साथ बहुत सारा विनाश लेकर आती है। इससे धन-जन का भारी नुकसान होता है। मकान, घर, इमारते, पुल, सड़के टूट जाती है। करोड़ो रुपये का नुकसान हो जाता है।

रेल, सड़क, हवाईमार्ग बाधित हो जाता है। वन्य जीव नष्ट हो जाते है, वातावरण प्रदूषित हो जाता है। वन नष्ट हो जाते है, परिस्तिथिकी तंत्र को नुकसान पहुचता है। जिस शहर, देश में भूकंप, बाढ़, सुनामी, तूफ़ान, भूस्खलन जैसी आपदा आती है वहां पर सब कुछ नष्ट हो जाता है।

लाखो लोग बेघर हो जाते हैं। फोन सम्पर्क टूट जाता है। जलवायु परिवर्तित हो जाती है। लाखो लोग अचानक से काल के गाल में समा जाते हैं। प्राकृतिक आपदा हमेशा अपने पीछे भयंकर विनाश छोड़ जाती है। शहर को दोबारा बनाने में फिर से संघर्ष करना पड़ता है।

करोड़ो रुपये फिर से खर्च करने पड़ते है। बाढ़, मूसलाधार बारिश, ओलावृष्टि जैसी आपदा सभी फसलों को नष्ट कर देती है जिससे देश में अनाज की कमी हो जाती है। लोग भुखमरी का शिकार हो जाते हैं। सूखा, महामारी जैसी प्राकृतिक आपदा आने से पूरे प्रदेश में बीमारी फ़ैल जाती है जिससे हजारो लोग मौत का शिकार बन जाते हैं।

1992-93 में इथोपिया में भयंकर सूखा पड़ा जिसमे 30 लाख से अधिक लोगो की मृत्यु हो गयी। आज भी हर साल हमारे देश में राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, मध्यप्रदेश में सूखा पड़ता रहता है।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार और उनका आपदा प्रबंधन Types of Natural Disasters in Hindi with Management

अब आईये आपको हम एक-एक करके विस्तार में सभी प्राकृतिक आपदा के प्रकार और प्रबंधन के विषय में बताते हैं-

1. भूकंप किसे कहते हैं? What is Earthquake in Hindi? (पढ़ें: भूकंप की पूरी जानकारी )

पृथ्वी की सतह के अचानक हिलने को भूकंप या भूचाल कहते है। इसमें धरती में दरारें पड़ जाती है और तेज झटके लगते है। भूकंप आने से घर, मकान, इमारतें, पुल, सड़के सब टूट जाते है। इमारतों में दबने से हजारो लाखो लोगो की मौत हो जाती है।

पृथ्वी के अंदर की प्लेटो में हलचल और टकराने की वजह से भूकंप आते है। 26 जनवरी 2001 में गुजरात में विनाशकारी भूकंप आया था। इसमें 20000 से अधिक लोगो की जान चली गयी थी। अप्रैल 2015 में नेपाल में विनाशकारी भूकंप आया था जिसमे 8000 से अधिक लोग मारे गये। 2000 से अधिक लोग घायल हुए।

भूकंप प्रबंधन Earthquake management in Hindi

  • भूकंप आने पर इमारत, बिल्डिंग, मकान, ऑफिस से फ़ौरन बाहर खुले में आ जायें।
  • किसी भी इमारत के पास न खड़े हों।
  • किसी मेज के नीचे छिप जायें।
  • भूकंप के समय लिफ्ट का प्रयोग न करें। सीढ़ियों से नीचे उतरें।
  • जब तक भूकंप के झटके लगते रहे बाहर खुले स्थान में बैठे रहे।
  • अगर कार मे है तो किसी खुली जगह पर कार पार्क कर दें। कार से बाहर निकल आयें।

2. बिजली गिरना क्या है? What is Lightening in Hindi?

बिजली बारिश के मौसम में आसमान से जमीन पर गिरती है। हर साल विश्व में 24000 लोग आसमानी बिजली गिरने से मौत के शिकार हो जाते है। आसमान में विपरीत दिशा में जाते हुए बादल जब आपस में टकराते है तो घर्षण पैदा होता है।

इससे ही बिजली पैदा होती है जो जमीन पर गिरती है। चूँकि आसमान में किसी तरह का कोई कंडक्टर नही होता है इसलिए बिजली कंडक्टर की तलाश करते करते जमीन पर पहुच जाती है। बारिश के मौसम में बिजली के खम्भों के पास नही खड़े होना चाहिये। मूसलाधार बारिश होने पर बिजली गिरना आम बात है। हर साल सैकड़ो लोग बिजली गिरने से मर जाते है।

बिजली गिरने पर प्रबंधन Lightening Management in Hindi

  • जब भी मौसम खराब हो, आसमान में बिजली चमक रही हो कभी भी किसी पेड़ के नीचे न खड़े हो और कम से कम 5-6 मीटर दूर रहें। बिजली के खम्बो से दूर रहे।
  • धातु की वस्तुओं से दुरी बनाये रहे। बिजली के उपकरणों से दूर रहे। मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें।
  • पहाड़ी की चोटी पर खड़े न हो।
  • पानी में न नहाये। ऐसा करके आप बिजली से बच सकते हैं।
  • बिजली गिरते समय अगर आपके आस पास कोई छुपने की जगह ना हो तो किसी गड्ढे जैसी जगह पर घुस कर चुप जाएँ या सर को नीचे करके, घुटनों को मोड़कर पंजों के सहारे नीचे बैठ जाएँ, और अपने दोनों पैर के एडियों को जोड़ें और कानों को उन्ग्लिओं से बंद कर दें।

3. सुनामी किसे कहते हैं? What is Tsunami in Hindi? (पढ़ें: सुनामी की पूरी जानकारी )

सुनामी की परिभाषा है “बन्दरगाह की तरंगे” समुद्र तल में हलचल, भूकंप, दरार, विस्थापन, प्लेट्स हिलने के कारण सुनामी की बेहद खतरनाक तरंगे उत्पन्न होती है। इस लहरों की गति 400 किमी/ घंटा तक हो सकती है। लहरों की उंचाई 15 मीटर से भी अधिक हो सकती है। सुनामी के कारण भारी धन-जन हानि होती है।

आसपास के क्षेत्रो, समुद्रतट, बंदरगाह, मानव बस्तियों को ये नष्ट कर देती है। 26 दिसम्बर 2004 को हिन्द महासागर में सुनामी आने से 11 देशो में 2.8 लाख लोग मारे गये। 10 लाख से अधिक लोग बेघर हो गये। करोड़ो रुपये का नुकसान हुआ। इस सुनामी में भारत का दक्षिणी छोर “इंदिरा पॉइंट” नष्ट हो गया।

सुनामी पर प्रबंधन Tsunami Disaster Management in Hindi

  • सुनामी से बचाव के लिए एक जीवन रक्षा किट बना लें। इसमें खाना, पानी, फोन, दवाइयां, प्राथमिक उपचार किट रखे।
  • सुनामी आने से पहले अपने स्थान से बाहर निकलने की ड्रिल एक दो बार कर लें। आपके पास एक अच्छा रास्ता होना चाहिये जिससे आप फ़ौरन उस स्थान से सुरक्षित स्थान पर जा सकें।
  • आपके पास शहर का एक नक्शा होना चाहिये क्यूंकि सुनामी आने पर हजारो की संख्या में लोग शहर से बाहर जाने लगते है।
  • सरकारी चेतावनी, मौसम विभाग की चेतावनी को आप ध्यानपूर्वक सुनते रहे। जादातर सुनामी भूकंप के बाद आती है।
  • यदि पशु अजीब व्यवहार करे, पक्षी स्थान छोड़कर जाने लगे तो ये सुनामी का संकेत हो सकता है।
  • सुनामी आने से पहले समुद्र का पानी कई मीटर पीछे चला जाता है, इस बात पर भी ध्यान देना बहुत आवश्यक है।
  • सुनामी से बचने के लिए समुद्र तट से दूर किसी स्थान पर चले जाएँ।

4. बाढ़ किसे कहते है? What is Flood in Hindi? (पढ़ें: बाढ़ की पूरी जानकारी )

किसी स्थान पर जब अचानक से ढेर सारी बारिश हो जाती है तो पानी जगह जगह भर जाता है। ऐसी स्तिथि में सड़के, रास्ते, खेत, नदी, नाले सभी भर जाते है। जीवन अवरुद्ध हो जाता है। इसी स्तिथि को बाढ़ कहते है। बारिश का यह पानी बहता रहता है।

बाढ़ आने पर निचले भागो में रहने वाले लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हो जाते है। फसलों को बहुत नुकसान होता है। अधिक बाढ़ आ जाने से पशु-पक्षी पानी में डूबकर मर जाते है। लोगो का जीना मुश्किल हो जाता है। 2005 में मुंबई में भयानक बाढ़ आ गयी जिसमे 5000 लोग मारे गये। इसमें मुंबई शहर को पूरी तरह से रोक दिया था।

बाढ़ आपदा प्रबंधन Flood Disaster Management in Hindi

  • बाढ़ से बचने के लिए किसी ऊँची सुरक्षित जगह पर चले जाना चाहिये जहाँ पानी न हो।
  • अपने साथ में खाने-पीने का जरूरी सामान, दवाइयां, टोर्च, पीने का पानी, रस्सी, चाक़ू, फोन जैसा जरूरी सामान ले लें।
  • बाढ़ में घर का बिजली का मेंन स्विच बंद कर दें।
  • घर की कीमती वस्तुएं, कीमती कागजात को उपर वाली मंजिल में रख दें।
  • बहते बाढ़ के पानी में न चले। इससे आप बह सकते हैं।
  • गिरे हुए बिजली के तार से दूर रहे। आपको करेंट लग सकता है।

5. चक्रवाती तूफान क्या है? What is Cyclone in Hindi? (पढ़ें: चक्रवात )

हमारे देश में चक्रवात प्रायः बंगाल की खाड़ी में आते हैं। ये समुद्र की सतह पर निम्न वायु दाब के कारण उत्पन्न होते है। तेज हवायें बारिश के साथ गोलाकार रूप में दौड़ती है जो समुद्रतट पर जाकर भयंकर विनाश करती है।

यह रफ्तार के अनुसार श्रेणी 1 से लेकर श्रेणी 5 तक होते है। इनकी गति 280 किमी/ घंटा से अधिक हो सकती है। देश में 1839 में कोरिंगा चक्रवात आया था जिसमे 20000 से अधिक लोगो की मौत हो गयी। 1999 में ओड़िसा में 05B नाम का चक्रवात आया था जिसमे 15000 से अधिक लोग मारे गये थे।

चक्रवाती तूफान प्रबंधन Cyclone Disaster Management in Hindi

  • आंधी, तूफ़ान, चक्रवातीय तूफ़ान आने पर घर में ही रहना चाहिये। घर से बाहर नही निकलना चाहिये।
  • सभी खिड़की दरवाजे बंद कर लेना चाहिये। पक्के मकान में ही रहना चाहिये।
  • आंधी-तूफ़ान आने पर बिजली चली जाती है। इसलिए अपने पास बैटरी, टोर्च, ईधन, फोन, लालटेन, माचिस, खाना, पीने का पानी पहले से रखे।
  • प्राथमिक उपचार किट भी अपने पास रखे। स्थानीय रेडियो का प्रसारण सुनते रहे।

6. अकाल या सूखा पड़ना क्या है? What is Drought in Hindi?

सूखा में किसी स्थान पर कई महीनो, सालों तक कोई वर्षा नही होती है, जिसके कारण भूजल का स्तर गिर जाता है। इससे कृषि बुरी तरह प्रभावित होती है। पालतु पशुओ, पक्षियों, मनुष्यों के लिए पेयजल का संकट हो जाता है जिसके कारण पशु, जानवर, मनुष्य मर जाते है। सूखा के कारण कुपोषण, भुखमरी, महामारी जैसी समस्याएं पैदा हो जाती है।

सूखा के कारण उस स्थान पर किसी फसल की खेती नही हो पाती है। यह 3 प्रकार का होता है- मौसमीय सूखा, जलीय सूखा, कृषि सम्बन्धी सूखा। कई महीनों तक वर्षा नही होने से, भूजल का अत्यधिक दोहन, वनों की कटाई, जल चक्र का नष्ट होना, पहाड़ियों पर अत्यधिक खनन पेड़ो की अत्यधिक कटान ये सब कारण सूखा पड़ने के लिए उत्तरदाई है।

सूखे से निपटने के उपाय Drought solutions in Hindi

  • सूखे की समस्या से निपटने के लिए वर्षा के जल का संरक्षण टैंको और प्राकृतिक जलाशयों में करना चाहिये।
  • सागर जल अलवणीकरण किया जाना चाहिए जिससे समुद्र के जल को सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सके।
  • अशुद्ध जल को पुनः शुद्ध करना चाहिये। अपशिष्ट जल का प्रयोग घर की सफाई, सब्जियाँ धोने, बगीचे को पानी देने, कार, वाहन सफाई में कर सकते है।
  • बादलो की सीडिंग करके अधिक वर्षा प्राप्त की जा सकती है।
  • सूखा की समस्या से बचने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिये।
  • जिन क्षेत्रो में सूखा की समस्या रहती है वहां लोगो को सीमित मात्रा में पानी इस्तेमाल करना चाहिये।
  • ऐसे क्षेत्रो में अधिक पानी का दोहन करने वाली फैक्ट्री, उद्योगों को बंद करना चाहिये।

7. जंगल में आग लगना What is Wildfire in Hindi?

गर्मियों के मौसम में अक्सर जंगलो में आग लग जाती है। इसके पीछे मानवीय और प्राकृतिक कारण जिम्मेदार होते हैं। कई बार मजदूर घास, पत्तियों में आग लगाकर छोड़ देते है जिससे आग पूरे जंगल में फ़ैल जाती है।

कई बार सूरज की गर्म किरणों से सूखी पत्तियों में आग लग जाती है। उतराखंड राज्य में चीड़ के जंगलो में अक्सर आग लगती रहती है।

जंगल में आग लगने पर प्रबंधन Management in Wildfire in Hindi

  • जंगल में आग लगने पर वन विभाग के कर्मचारियों को तुरंत सूचित करना चाहिये।
  • जंगल की आग बुझाना अत्यंत कठिन काम है। इसे अधिक स्टाफ और आधुनिक उपकरणों की सहायता से बुझाया जा सकता है।
  • हेलीकाप्टर के जरिये पानी का छिड़काव करके जंगल की आग बुझाई जा सकती है।
  • जंगल में आग लगने पर फौरन पुलिस को फोन करना चाहिये।
  • हानिकारक धुवें से बचने के लिए अपने मुंह पर कपड़ा बाँध लेना चाहिये।
  • किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाना चाहिये।
  • जंगल के किनारे स्तिथ घर को खाली कर देना चाहिये। फायर फाइटर को फोन करना चाहिये।

8. हिमस्खलन किसे कहते हैं? What is Avalanche in Hindi?

पहाड़ो पर हिम (बर्फ), मलवा, चट्टान, पेड़ पौधे आदि के अचानक खिसकने की घटना को हिमस्खलन कहते हैं। बर्फ से ढके पहाड़ो पर इस तरह की प्राकृतिक आपदा जादा होती है। यह बहुत विनाशकारी होता है। अपने मार्ग में आने पर घर, मकानों, पेड़ पौधों को तोड़ देता है।

इसमें दबकर हर साल हजारो लोगो की जान चली जाती है। यह सड़को, पुलों, राजमार्गो को तबाह कर देता है। पहाड़ो को काटकर सड़के बनाना, मानवीय कार्य, लगातार बारिश, भूकंप, जमीन में कम्पन, अधिक बर्फबारी, डेल्टा में अधिक अवसाद का जमा होना- ये सभी कारणों की वजह से हिमस्खलन होता है।

हिमस्कलन पर आपदा प्रबंधन Disaster Management in Avalanche in Hindi

  • हिमस्खलन में गिरने वाले बर्फ को रोकने के लिए लोहे के तारो का जाल बनाकर पहाड़ो पर सड़कों की सुरक्षा की जा सकती है।
  • सोफ्टवेयर द्वारा पहाड़ी जगहों में ऐसे स्थानों का पता लगा सकते हैं जहाँ हिमस्खलन आ सकता है।
  • पहाड़ो पर अधिक से अधिक पेड़ लगाकर, ढलानों को काटकर चबूतरा बनाकर, मजबूर दीवार बनाकर हिमस्खलन को रोका जा सकता है।

9. भूस्खलन किसे कहते हैं? What is Landslide in Hindi?

यह प्राकृतिक आपदा भूवैज्ञानिक घटना है। भूस्खलन के अंतर्गत पहाड़ी, पत्थर, चट्टान, जमीन खिसकना, ढहना, गिरना, मिटटी बहना जैसी घटनाये होती है। यह छोटी से बड़ी मात्रा में हो सकता है। छोटे भूस्खलन में छोटे-छोटे पत्थर नीचे की तरफ गिरते है।

बड़े भूस्खलन में पूरी की पूरी पहाड़ी ही नीचे गिर जाती है। इससे जान-मान, धन-जन की हानि होती है। यह भारी बारिश, भूकंप, धरातलीय हलचल, मानवीय कार्यों जैसे पहाड़ो पर पेड़ो की कटाई, चट्टानों को काटकर सड़क, घर बनाने, पानी के पाइपों में रिसाव से होता है।

भूस्खलन होने पर प्रबंधन Disaster Management for Landslide in Hindi

  • भूस्खलन होने पर फ़ौरन उस स्थान से निकल जाना चाहिये।
  • अपने साथ में एक सेफ्टी किट रखनी चाहिये जिसमे जरूरी सामान, फर्स्ट ऐड बोक्स, पीने का पानी हो।
  • रेडिओ, टीवी पर मौसम की जानकारी लेते रहे।
  • अगर आपका घर भूस्खलन के क्षेत्र में है तो जादा से जादा पेड़ चारो तरफ लगाइये। पेड़ पहाड़ो को बांधे रखते है।
  • अपने घर के आस पास की जगह की नियमित जांच करते रहिये।
  • जिस स्थान पर उपर से चट्टान गिरने का खतरा हो वहां से दूर रहे।
  • हेलिकॉप्टर या बचाव दल का फोन नम्बर हमेशा अपने पास रखे।

10. ज्वालामुखी फटना क्या है? What is Volcano eruption in Hindi?

ज्वालामुखी में पृथ्वी के भीतर से गर्म लावा, राख, गैस का तीव्र विस्फोट होता है। यह प्रकिया धीरे भी हो सकती है और तीव्र भी। यह प्राकृतिक आपदा 3 प्रकार का होता है- सक्रीय ज्वालामुखी, प्रसुप्त ज्वालामुखी, मृत ज्वालामुखी।

इसी वर्ष 2018 में ग्वाटेमाला में ज्वालामुखी विस्फोट होने से 33 लोगो की मौत हो गयी, 20 लोग घायल हुए और 17 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। ज्वालामुखी का धुआं बहुत ही हानिकारक होता है। विस्फोट होने पर यह 100 किमी से अधिक के दायरे में आकाश में फ़ैल जाता है जिसके कारण हवाई जहाजो की उड़ाने रद्द करनी पड़ती है।

ज्वालामुखी फटने पर आपदा प्रबंधन Disaster management in Volcano eruption in Hindi

  • ज्वालामुखी फटने पर फ़ौरन घर का कीमती सामान अपने साथ लेकर सुरक्षित स्थान पर चले जायें।
  • अपने पालतु पशुओं को भी साथ ले जायें।
  • मौसम विभाग, स्थानीय रेडियो प्रसारण को सुनते रहे जिससे आपको नई जानकारी मिलती रहे।
  • स्थानीय मार्गो का एक नक्शा अपने पास रखे।
  • साथ में एक जीवन रक्षा किट भी साथ रखे जिसमे दवाइयाँ, टोर्च, पीने का पानी, अन्य सामान हो। अपने मित्रो और परिवार के साथ में रहे (अकेले न रहे)।
  • बचाव दल का नम्बर अपने पास रखे।
  • ज्वालामुखी राख से अपनी कारो, मशीनों को बचाने के लिए प्लास्टिक के कवर से ढंक दें।

11. महामारी किसे कहते है? What is Epidemic in Hindi?

किसी क्षेत्र विशेष में जब कोई बीमारी बड़े पैमाने पर फ़ैल जाती है तो उसे महामारी कहते हैं। यह संक्रमण के कारण हवा, छूने, पानी के माध्यम से फैलती है। कई बार यह पूरे देश में फ़ैल जाती है। 2009 में पूरे विश्व में एच1एन1 इंफ्लूएंजा (स्वाइन फ्लू) की बिमारी फ़ैल गयी। जल्द ही यह भारत में भी फ़ैल गयी थी। भारत में 2700 लोग स्वाइन फ्लू से मारे गये और 50 हजार से अधिक लोग बीमार हो गये।

वर्ष 2019 में चीन से शुरू हुए नोवेल कोरोना वायरस (nCOVID) की वज़ह से दुनिया भर में लाखों लोग इससे इन्फेक्टेड हो गए। जिसके कारण हजारों लोगों की जान इसमें चहली गयी।

महामारी फैलने पर आपदा प्रबंधन Epidemic Management tips in Hindi

  • महामारी (संक्रामक रोग) बरसात और ठंडे के मौसम में अधिक होते है। रोगाणु- विषाणु पानी के माध्यम से सबसे जल्दी फैलते है इसलिए साफ़ पानी पीना चाहिये। दस्त, पेचिस, हैजा, मियादी बुखार, पीलिया, पोलियो जैसे रोग अशुद्ध पानी के सेवन से फैलते हैं।
  • इनसे बचने के लिए ताज़ी कटी सब्जियों, फलों का सेवन करना चाहिये। भोजन करने से पहले हाथो को अच्छी तरह से धोइये। नियमित रूप से नाख़ून कांटे, दाढ़ी और बाल कटवाएं।
  • रोज साबुन और मलकर नहायें और खाना खाने के बाद-पहले अच्छे से हांथ धोएं।
  • किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा आने पर शांत रहे। अफवाहों पर ध्यान न दें। सरकारी आदेशो का पालन करें, अकेले न रहे। अपने परिवार के साथ ही रहे।
  • अपने पास पुलिस, अस्पताल, अग्निशमन सेवा, एम्बुलेंस, बचाव दल का फोन नम्बर जरुर रखे।
  • अपने पास एक आपातकालीन किट जरुर रखे। इसमें माचिस,टोर्च, रस्सी, चाक़ू, पानी, टेप, बैटरी से चलने वाला रेडियो रखे।
  • अपने परिचयपत्र, कागजात, जरूरी कागज अपने पास रखे।

12. ओलावृष्टि क्या है? What is Hail in Hindi?

आसमान में जब बादलो में मौजूद पानी की बुँदे अत्यधिक ठंडी होकर बर्फ के रूप में जमकर जमीन पर गिरती है तो उसे ओलावृष्टि या वर्षण प्राकृतिक आपदा कहते है। इसे आम भाषा में ओला गिरना भी कहा जाता है। यह अक्सर गर्मियों के मौसम में दोपहर के बाद गिरते है। ओलावृष्टि अक्सर तब होती है जब बादलो में गडगडाहट और बिजली बहुत अधिक चमकती है।

ओलावृष्टि से सबसे अधिक नुकसान किसानो को होता है। अधिक ओलावृष्टि होने से फसलें बर्फ के गोलों से ढँक जाती है और नष्ट हो जाती है। यदि बर्फ के गोले बड़े हो तो मकान, खिड़की, कारो के शीशे तोड़ देते हैं। कुछ महीनो पहले हिमाचल प्रदेश में ओलावृष्टि होने से 2.5 करोड़ का नुकसान हुआ। सेब, नाशपाती की फसलें बर्बाद हो गयी थी।

13. बादल फटना किसे कहते हैं? What is Cloud Burst in Hindi?

इस प्राकृतिक आपदा मेघविस्फोट भी कहते है। जब बादल अधिक मात्रा में पानी लेकर चलते है और उनके मार्ग में कोई बाधा अचानक से आ जाती है तो बादल अचानक से फट जाते हैं। ऐसा होने से उस  स्थान पर करोड़ो लीटर पानी अचानक से गिर जाता है। पानी की विशाल मात्रा मजबूत पक्के मकानों, सडकों, पुलों, इमारतों को ताश के पत्ते की तरह तोड़ देती है।

उतराखंड, केदारनाथ, बद्रीनाथ, जम्मू-कश्मीर, जैसे राज्यों में बादलो के मार्ग में हिमालय पर्वत,पहाड़ियाँ, गर्म हवा आ जाने के कारण बादल फटने की घटनाये होती रहती हैं। 2013 में उतराखंड में बादल फटने से 150 से अधिक लोग मारे गये। धन-जन की भारी बर्बादी हुई।

निष्कर्ष Conclusion

आज के लेख में हमने आपको विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जानकारी दी है। इससे बचने के उपाय अपनाकर आप भी इस आपदाओं से बच सकते हैं। आशा करते हैं आपको यह लेख प्राकृतिक आपदा पर निबंध Essay on Natural Disasters in Hindi अच्छा लगा होगा।

पढ़ें: पर्यावरण संरक्षण पर जबरदस्त नारे

27 thoughts on “प्राकृतिक आपदा पर निबंध Essay on Natural Disasters in Hindi”

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Essay on Conservation of Natural Resources for Students and Children

500+ words essay on conservation of natural resources.

Natural resources are something that is occurring naturally on Earth. It forms an indispensable part of our lives. It comprises of air, water, sunlight, coal , petroleum, natural gas, fossil fuels, oil, etc. However, they are exploited by humans for economic gain. Natural resources are at depletion because of the overuse. Some of these resources are available in abundance with the capability to renew. On the other hand, some are non-renewable . Thus, it demands a responsible behavior for the conservation so as to ensure their sustainability.

essay on conservation of natural resources

Why Conserve Natural Resources?

Human beings depend upon the natural resources for their development activities. If the resources are not used wisely, it would create an imbalance in the environment. Thus would head us in opposition to an eco-friendly atmosphere. The need for conservation arises from the significance of natural resources. It is as follows-

  • Water is a renewable natural resource . We use it for drinking, producing electricity, irrigation, in various industries and for a number of activities. Its scarcity would cause loss of vegetation, adverse effect on flora and fauna, erosion of soil, etc.
  • Plants and animals provide a wide range of industrial and biological materials. Also, it assists in the manufacturing of medicine and for various other uses.
  • It takes millions of years for the formation of natural resources.
  • Fossil fuels are of great importance. A lot of energy is produced from coal, oil and natural gas all of which are fossil fuels.
  • Forest is the most important natural resource which helps in economic development . Forest provides paper, furniture, timber, medicine, gum, etc. Also, it maintains a balance in the ecosystem. Moreover, it prevents soil erosion and protects wildlife.
  • Land resources support natural vegetation, wildlife, transport. The land also provides us food, cloth, shelter, and other basic needs.

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Ways to Conserve Natural Resources

Different ministries of the Government, national and international agencies have been working for the purpose of conserving the natural resources .

  • Environment education must be imparted by including the same in the curricula of the schools.
  • National Parks are making an effort for the safety of the natural resources.
  • By reducing, reusing and recycling of non-renewable resources.
  • Non-human species must be disturbed only to meet the basic needs.
  • Planting of more and more trees to save our forest resources.
  • Seeking alternatives to non-renewable resources.
  • By increased use of bio-gas and bio-fuels.
  • By preventing the dumping of industrial wastes into the river bodies. This is a measure to protect the rich marine life.
  • Overgrazing must be prevented. Also, poaching of animals must be controlled.
  • Practicing crop rotation techniques helps in maintaining the fertility of the soil.
  • Burning of fossil fuels emits carbon-di-oxide which is a major greenhouse gas. It is responsible for the greenhouse effect. Thus, the burning of fossil fuels must be controlled.

These are some of the measures which we can undertake for the conservation of natural resources. As Human- beings, we have a social responsibility to fulfill towards nature. Thus, while using resources, we shall follow the principle of sustainable development.

Natural resources are a present for the creation. These help in satisfying the human needs to its fullest. Furthermore, the rational use of natural resources maintains the earth’s atmosphere. Also, the wise use leads to protection of bio-diversity. Humans cannot imagine their lives without natural resources. Thus, the conservation of the same is essential.

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Natural Resources Essay

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Introduction

Natural resources and their relevance to human life are a major concern for all people on the planet. It is now important to have knowledge of the need for and value of natural resources, as well as to spread full awareness of the dangers associated with their scarcity. We have provided both long and short natural resources essays for students of Class 1 to 12.

Long and Short Essay on Natural Resources

Long natural resources essay in english.

Natural resources are priceless gifts to us that are necessary for our survival on this planet. Air, water, ground, trees, wood, soil, minerals, petroleum, metals, and sunlight are all examples. These resources cannot be generated or developed by humans; instead, they can be changed in various ways so that we can make better use of them.

Natural Resources are Classified into Two Types:

1. Renewable - Water, air, sunshine, ground, wood, soil, plants, and animals are examples of renewable resources that can be reclaimed and reformed after use. Water, plants, livestock, and fresh air are examples of scarce resources. Without a well-managed mechanism for consuming these renewable resources, we will not be able to bring them back in the future for future generations to use.

2. Non-Renewable - Non-renewable natural resources are those that cannot be duplicated and are only available in finite amounts on the globe. Minerals, Metals, petroleum, and coal are located under the earth's surface. Both of these items are in short supply and are extremely useful and valuable in everyday life.

Other categories of natural resources, in addition to these two, are specified as:

1. Biotic - These are natural resources derived from the global environment and include life-like plants, trees, and animals.

2. Abiotic - These resources include non-living natural resources such as air, water, ground, soil, minerals, and metals.

Both Renewable and Non-Renewable resources are used for various purposes:

Wind energy is produced by the movement of air.

Water is used for drinking and hydroelectric energy production.

Plants and trees provide us with vegetables, fruits, cotton, and wood, which we can use to make paper, furniture, and houses.

Animals provide us with milk, and their skin is used to make soap, shoes, purses, belts, and other products.

Solar energy is generated by the sun, which is used to keep us warm.

Oil is used to power vehicles and generates electricity.

Coins, steel, and jewelry are all made from minerals and metals.

Electricity is generated using coal.

What Causes the Depletion of These Resources?

Over-Population: When the world's population grows at an exponential pace, so does the demand for natural resources.

Urbanization: More cities and towns are springing up to meet the ever-increasing demand for housing and other necessities. Some resources have been exhausted as a result of this.

Industrialization: Several new industries are springing up in both rural and urban areas to create jobs and manufacture consumer goods for everyday use. As a result, our natural resources have been over-exploited.

Deforestation: Deforestation is the degradation of trees on a wide scale. Forest degradation has resulted in a reduction in other natural resources such as soil, water, and wildlife.

Mining and Quarrying: Resources have also been exhausted as a result of unscientific mining and quarrying for the production of minerals and ores.

Overgrazing: Soil erosion is exacerbated by overgrazing by cattle in general, and sheep and goats in particular.

Intensive Agriculture: Excessive use of fertilizers and pesticides, as well as cultivating the same crop year after year, decreases soil fertility and leaves the soil sick.

Insecticides: Insecticides and industrial waste products have depleted biodiversity in the forest, rivers, wetlands, dams, and oceans.

Soil Erosion: Soil erosion is the process of water or wind transporting nutrient-rich topsoil away. This harms both the soil and the plants.

Let us take a look at the Natural Resources Short Essay.

Short Essay on Natural Resources

Natural resources are those that we receive naturally from the Earth. Natural resources include the flora and fauna in our local area, as well as air, water, and sunshine. Natural resources are classified into two groups. They are renewable natural resources, such as solar energy, as well as non-renewable natural resources, such as fossil fuels.

Renewable natural resources do not deplete and are replenished over time, while non-renewable resources deplete as their use increases. Natural resources are a gift to humanity that must be used responsibly and protected for future generations.

Even though the majority of these natural resources are sustainable and plentiful, human activities do misuse some of them. It takes millions of years for all of those non-renewable resources to form. Unauthorized and irresponsible use of these natural resources would lead to a scarcity of these resources in the future.

The key cause of this threat of natural resource extraction can be identified as population growth. When the world's population increases, so does the need for more natural resources. This involves the over-consumption of lands by sacrificing their true natural value to create massive structures, industrialisation, and so on.

The increased use of new technology and requirements has contaminated our natural resources, such as air, water, and soil, by exposing them to more chemically hazardous wastes. Owing to overuse, raw materials derived from fossil fuels, such as petroleum products, are in danger of becoming extinct.

Many of these risks can be avoided if we use our natural resources more wisely and don't take them for granted. Humans should adopt a more sustainable lifestyle to preserve nature's gifts for future generations.

The above material contained an essay on Natural Resources which had a lot of information about the topic. 

It outlined the ways to write an essay, both, long and short. But, writing is all about creative ideas and is considered to be the most loved form of expression. 

Students shall keep exploring more about the art of writing. The best way to do so is by putting their hands on different topics and trying to describe them in different ways. 

Let us get to know more about the essays, their types, formats, and some of the tips that the students shall be using while writing any piece of content.

What is an essay? 

An essay is a kind of writing piece that is usually short and describes the perspective of a writer. It may showcase an argument, tell a story, highlight an issue or simply, describe a topic. They are very personalized and talk about personal opinions and viewpoints. Since writing is a form of expression and a lot of people love to own their thoughts, essay writing is a skill that everyone should possess.

What is the Format to write an Essay? 

It doesn’t follow a very rigid format. However, it consists of three main parts. 

First, the introduction, which talks about an overview of the prompt that you’ve been given. 

Second, the body, which talks in detail or gives a response to the argument which has been stated in the topic.

Third, is the conclusion, which generally contains the ending lines. It can contain a moral, quote or suggestion. 

Students shall note that since writing is a creative process, there’s no need to confine it within some boundaries. You shall write according to the topic and your flow of ideas. However, an important point that you shall keep in mind is that the content of the writing piece should be organized and easy to understand. If there’s a relatability factor to it, the audience would find it appealing and this way, you can connect with more people.

How many Types of Essays are There? 

There are mainly 4 types of essays. However, it depends on the writer, how and what they want to deliver to their audience. 

Narrative Essay

Descriptive Essay

Persuasive Essay

Expository Essay

What are Short Essays? 

Short essays are generally the kind of essays which doesn’t offer too many details about the prompt but surely highlights all the important points linked to it. 

These kinds of essays are considered to be more interesting and easy to read, because of the length of the content.

What are Long Essays?

Long Essays are generally longer than the others as it contains a lot of information. These are considered to be the ones that have all the details. They may be written in an informal way or even a formal way, depending on what the prompt is.

Tips for Writing Essays

Select a captivating title for it. 

Divide the content into small paragraphs so that it looks more organized. 

Make sure that your content grabs the attention of the reader. 

Your words should give a sense of curiosity in the reader’s mind. 

The essay should be well-paced. 

Avoid using jargon and focus more on simple words. 

Focus on the structure of your essay. 

Avoid making grammatical errors. 

Use correct spellings and punctuations. 

Before writing, you may consider making a rough draft so that it becomes easier for you to organize your points later. 

Understand your topic well so that you can provide only relevant information and don't present an unorganized mess. 

Brainstorm your topic, ask yourself questions, research extensively so that before you start, you get a clearer idea of what your content should be like. 

You may use resources and cite research to make it more interesting for the readers.

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FAQs on Natural Resources Essay

1. How can we Conserve/Avoid Water Pollution?

There are two ways to conserve water:

Maintenance of Water Cycle:

In many areas of the world, healthy forests are important for promoting rainfall. As a result, the water cycle would be dependent on tree maintenance and planting.

Swamps, marshes, tanks, and reservoirs must all be closely controlled. Wetland areas, which play an important role in the water cycle, should not be filled with mud and reclaimed as land.

Prevention of Water Pollution:

It is recommended that industrial wastes not be dumped directly into lakes and rivers. If sewage is to be dumped into rivers or streams, it must first be cleaned and filtered.

Oil should not be dumped in the seas by ships or oil tankers.

Cities' organic wastes (sewage) should not be permitted to pollute the water supply. To achieve sewage oxidation, special sewage plants should be built. Finally, sewage-free water can be discharged into rivers and reservoirs.

2. What are Some of the Ways in Which we can Preserve Soil Fertility?

Following are the ways in which we can preserve soil fertility:

It is not advisable to cultivate the same crop year after year. As a consequence, basic elements of a specific kind are depleted in the soil. Different crops should be planted at different times of the year. Crop rotation is a good idea to pursue. It entails rotating between growing a pulse crop or a leguminous crop and some other crop. This is due to the presence of the bacteria rhizobium in the root nodules of leguminous plants, which can fix atmospheric nitrogen.

To substitute what is taken up as nutrients by plants, green manure or synthetic fertilisers should be applied to the soil.

The type of fertiliser to be used for different crops should be addressed with an Agriculture Development Officer or Gram Sevak.

3. How many words long should an essay be? 

An ideal essay should be 400-500 words unless otherwise stated. The words also depend on what you have been asked to write for. Often, the topic is too lengthy and it becomes difficult for you to organise it. While writing, you shall only keep your reader in the mind and then let the ideas flow on a paper.

4. How should an essay be concluded?

The best way to conclude an essay is by presenting your viewpoints or suggestions and ending it with a quote or something similar. However, there is no rule attached to it and students shall rely the most on their creative skills and let the ideas flow as they come.

5. From where can we get to read some of the samples of essays?

Vedantu provides you with a heck of sample essays. You shall simply visit their website or download their mobile app and get access to it. By reading more and more samples, your brain will give you more ideas, and this way your writing skills will improve over time. Remember, the way to write is always reading.

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प्रकृति पर निबंध (Nature Essay in Hindi)

प्रकृति

प्रकृति के विषय को समझने के लिये इस पर आसान भाषण और निबंध दिये जा रहे है। इससे हमारे केजी से लेकर 10 तक के बच्चों और विद्याथर्यीं की शिक्षा में नई रचनात्मकता का प्रवेश होगा। प्रकृति हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बारे में हमें अपने बच्चों को बताना चाहिये। तो, चलिये निबंध लेखन और भाषण व्याख्यान के द्वारा अपने बच्चों को कुदरत के करीब लाते है।

प्रकृति पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Nature in Hindi, Prakriti par Nibandh Hindi mein)

प्रकृति पर निबंध – 1 (250 – 300) शब्द.

प्रकृति हमारी वास्तविक माँ की तरह की होती है जो हमें कभी नुकसान नहीं पहुँचाती बल्कि हमारा पालन-पोषण करती है। सुबह जल्दी प्रकृति के गोद में ठहलने से हम स्वस्थ और मजबूत बनते है साथ ही ये हमें कई सारी घातक बीमारीयों जैसे डायबिटिज, स्थायी हृदय घात, उच्च रक्त चाप, लीवर संबंधी परेशानी, पाचन संबंधी समस्या, संक्रमण, दिमागी समस्याओं आदि से भी दूर रखता है।

प्रकृति की अहमियत

प्रकृति हमारे जीवन का मूल है। प्रकृति के बिना हम  जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। हमारी आधारभूत जरूरते हवा, पानी, भोजन आदि सभी प्रकृति से ही प्राप्त होते है। प्रकृति हमारी जननी है, जो हमें जीवन देती है। प्रकृति ही हमें पालती है।

प्रकृति के प्रति हमारे दायित्व

प्रकृति की सेवा हमें उसी तरह करनी है , जिस निस्वार्थ भाव से प्रकृति हमारी सेवा करती है। प्रकृति को हरा भरा, स्वच्छ और स्वस्थ रखना हमारा दायित्व है। हमें अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाने चाहिए। हमें पानी का दुरुप्रयोग नहीं करना चाहिए। हमें ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण रखना चाहिए।

धरती पर जीवन जीने के लिये भगवान से हमें बहुमूल्य और कीमती उपहार के रुप में प्रकृति मिली है। दैनिक जीवन के लिये उपलब्ध सभी संसाधनों के द्वारा प्रकृति हमारे जीवन को आसान बना देती है। एक माँ की तरह हमारा लालन-पालन, मदद, और ध्यान देने के लिये हमें अपने प्रकृति का धन्यवाद करना चाहिये।

प्रकृति पर निबंध – Prakriti par Nibandh (300) शब्द

प्रकृति सभी के जीवन का महत्वपूर्ण और अविभाज्य अंग है। खूबसूरत प्रकृति के रुप में भगवान के सच्चे प्यार से हम सभी धन्य है। कुदरत के सुख को कभी गँवाना नहीं चाहिये। कई प्रसिद्ध कवियों, लेखक, पेंटर, और कलाकार के कार्य का सबसे पसंदीदा विषय प्रकृति होती है। प्रकृति भगवान की बनायी सबसे अद्भुत कलाकृति है जो उसने बहुमूल्य उपहार के रुप में प्रदान की है। प्रकृति सब कुछ है जो हमारे आसपास है जैसे पानी, हवा, भूमि, पेड़, जंगल, पहाड़, नदी, सूरज, चाँद, आकाश, समुद्र आदि। कुदरत अनगिनत रंगों से भरी हुई है जिसने अपनी गोद में सजीव-निर्जीव सभी को समाहित किया है।

भगवान के द्वारा प्रकृति में सभी को अपनी शक्ति और विशिष्टता उपलब्ध करायी गई है। इसमें इसके कई रुप है जो मौसम दर मौसम और यहाँ तक कि मिनट दर मिनट बदलते रहते है जैसे समुद्र सुबह के समय चमकीला नीला दिखाई देता है लेकिन दोपहर के समय हरित मणी रंग सा दिखाई पड़ता है। आकाश पूरे दिन अपना रंग बदलता रहता है सूर्योदय में पीला गुलाबी, दिन के समय आँखे चौंधियाने वाला नीला रंग, चमकदार नारंगी सूर्यास्त के समय और रात के समय बैंगनी रंग का। हमारा स्वाभाव भी प्रकृति के अनुसार बदलता है जैसे खुश और आशावादी सूरज के चमकने के समय, बरसात के समय और वसंत के समय। हम चाँदनी रोशनी में दिल से खुशी महसूस करते है, तेज धूप में हम ऊबा हुआ और थका महसूस करते है।

कुदरत के पास कुछ परिवर्तनकारी शक्तियाँ है जो हमारे स्वाभाव को उसके अनुसार बदलते है। रोगी को अपनी बीमारी से बाहर निकलने के लिये प्रकृति के पास शक्ति है अगर उनको जरुरी और सुहावना पर्यावरण उपलब्ध कराया जाये। हमारे स्वस्थ जीवन के लिये प्रकृति बहुत जरुरी है। इसलिये हमें इसको खुद के लिये और अगली पीढ़ी के लिये संरक्षित रखना चाहिये। हमे पेड़ों और जंगलों को नहीं काटना चाहिये, हमें अपने गलत कार्यों से महासागर, नदी और ओजोन परत को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिये, ग्रीन हाउस गैस को नहीं बढ़ाना चाहिये तथा अपने निजी स्वार्थों के कारण पर्यावरण को क्षति नहीं पहुँचाना चाहिये। हमें अपने प्रकृति के बारे में पूर्णत: जागरुक होना चाहिये और इसको बनाए रखने का प्रयास करना चाहिये जिससे धरती पर जीवन हमेशा संभव हो सके।

प्रकृति पर निबंध – Prakriti per Nibandh (400) शब्द

प्रकृति एक प्राकृतिक पर्यावरण है जो हमारे आसपास है, हमारा ध्यान देती है और हर पल हमारा पालन-पोषण करती है। ये हमारे चारों तरफ एक सुरक्षात्मक कवच प्रदान करती है जो हमें नुकसान से बचाती है। हवा, पानी, जमीन, आग, आकाश आदि जैसी प्रकृति के बिना हमलोग इस काबिल नहीं है कि धरती पर रह सके। प्रकृति हमारे आस-पास कई रुपों में है जैसे पेड़, जंगल, जमीन, हवा, नदी, बारिश, तालाब, मौसम, वातावरण, पहाड़, पठार, रेगिस्तान आदि। कुदरत का हर स्वरुप बहुत शक्तिशाली है जो हमारा पालन पोषण करने के साथ ही नाश करने की क्षमता भी रखता है।

आज के दिनों में सभी के पास प्रकृति का आनन्द उठाने का कम समय है। बढ़ती भीड़ में हम प्रकृति का सुख लेना और अपने को स्वस्थ रखना भूल गये है। हम शरीर को फिट रखने के लिये तकनीक का प्रयोग करने लगे है। जबकि ये बिल्कुल सत्य है कि प्रकृति हमारा ध्यान रख सकती है और हमेशा के लिये फिट रख सकती है। बहुत सारे लेखक अपने लेखन में प्रकृति के फायदे और उसकी सुंदरता का गुणगान कर चुके है। प्रकृति के पास ये क्षमता है कि वो हमारे दिमाग को चिंता मुक्त रखे और बीमारीयों से बचाए। मानव जाति के जीवन में तकनीकी उन्नत्ति के कारण हमारी प्रकृति का लगातार ह्रास हो रहा है जिसे संतुलित और उसके प्राकृतिक संपत्ति को संरक्षित रखने के लिये उच्च स्तर की जागरुकता की जरुरत है।

ईश्वर ने सब कुछ बहुत सुंदरता से देखने के लिये बनाया है जिससे हमारा आँखे कभी नहीं थक सकती। लेकिन हम भूल जाते है कि मानव जाति और प्रकृति के बीच के रिश्तों को लेकर हमारी भी कुछ जिम्मेदारी है। सूर्योदय की सुबह के साथ ये कितना सुंदर दृश्य दिखाई देता है, जब चिड़ियों के गाने, नदी, तालाब की आवाज हवा और एक लंबे दिन के दबाव के बाद बगीचे में शाम में दोस्तों के साथ खुशनुमा पल हो। लेकिन हम अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते प्रकृति की खूबसूरती का आनन्द लेना भूल चुके है।

कई बार हमारी छुट्टीयों में हम अपना सारा दिन टीवी, न्यूजपेपर, कम्प्यूटर खेलों में खराब कर देते है लेकिन हम भूल जाते है कि दरवाजे के बाहर प्रकृति के गोद में भी बहुत कुछ रोचक है हमारे लिये। बिना जरुरत के हम घर के सारे लाइटों को जलाकर रखते है। हम बेमतलब बिजली का इस्तेमाल करते है जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देता है। हमारी दूसरी गतिविधियाँ जैसे पेड़ों और जंगलों की कटाई से CO2 गैस की मात्रा में वृद्धि होती है और ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनती है।

अगर हमें हमेशा खुश और स्वस्थ रहना है तो हमें स्वार्थी और गलत कार्यों को रोकने के साथ-साथ अपने ग्रह को बचाना होगा और इस सुंदर प्रकृति को अपने लिये बेहतर करना होगा। पारिस्थितिकीय तंत्र को संतुलित करने के लिये हमें पेङों और जंगलो की कटाई रोकनी होगी, ऊर्जा और जल का संरक्षण करना होगा आदि। अंत में प्रकृति के असली उपभोक्ता हम है तो हमें ही इसका ध्यान रखना चाहिये।

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