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स्वामी विवेकानंद की जीवनी ~ Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

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शिकागो वक्तृता [ स्वामी विवेकानन्द,विश्व धर्म सभा, शिकागो ] | Swami Vivekananda's Complete Speech In Hindi At World's Parliament Of Religions, Chicago

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Nice post meri bhi blog hai http://www.hindihint.com is par bhi aap hindi me biography ke saath bhut kuch pad skte hai

Aapne sawami ji ke baare me bahut achhi jankari di hai.

vivekananda biography book in hindi

bhai ek baat bolna tha.... pura to wikipedia ko he chhaap diya uska bhin link dene bolte na.....

You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.

bahut achha lekh

Very good information about sawami vivekananda

सारगर्भित और ज्ञान से ओत-प्रोत जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

Very nice information

It is very good biography on my idel Swami Vivekananda

अद्भुत ज्ञान के भंडार हैं स्वामी विवेकानंद जी

Very nice biography

Bahut achha likha hai aapne Swami ji ke bare main

swami ji 1 din me 700 page yaad kar lete the

Bhut hi shandar likha sir aapne bhut si bate nahi janta jo ab jan gya

Great 🙏🙏🙏🙏🙏 ❤❤❤❤❤❤❤❤

kashto se bhara jiban apne laskh or Hindu dharm ko bataye

Swami ji ka lekh pada bahut acchha laga

◦•●◉✿Great man✿◉●•◦

Swami vivekanand ji ko mera namaskar kitne vidvaan hai swami vivekanand ji

Thanku so much this information

संक्षिप्त में बहुमूल्य जानकारी।

आपको हमारे तरफ से बहुत धनबाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

बहुत-बहुत धन्यवाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े व्यक्ति के जीवन के बारे में बताने के लिए।

if a real good we can talk to anyone that is vivakanand, my hero good is thru but vivakanand is master of everyone. his word to protact other befor himself , i real like

very nice sir

very informational and high quality article about Swami Vivekananda

आपने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के बारे में अच्छी जानकारी दी है

I am able to write my project with it

Bahut hi sundar raha hai ye anubhav mere liye

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हिंदीपथ - हिंदी भाषा का संसार

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जीवन-परिचय हिंदी में (Biography of Swami Vivekananda in Hindi) आपके सम्मुख प्रस्तुत करते हुए बहुत हर्ष का अनुभव हो रहा है। स्वामी जी की यह जीवनी “जगमगाते हीरे” नामक पुस्तक से ली गई है जिसके लेखक पंडित विद्याभास्कर शुक्ल हैं। पढ़ें यह लेख-

हिन्दीपथ.कॉम हिंदी पाठकों के लिए स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराने का यत्न पहले ही कर रहा है। इसी कड़ी में उनका जीवन परिचय भी प्रस्तुत किया जा रहा है।

हमें पूरी उम्मीद है कि स्वामी विवेकानन्द का यह जीवन परिचय (Swami Vivekananda information in Hindi) सभी पाठकों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगा।

Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

महात्माओं का वास-स्थान ज्ञान है। मनुष्यों की जितनी ज्ञान-वृद्धि होती है, महात्माओं का जीवनकाल उतना ही बढ़ता जाता है। उन के जीवन काल की गणना मनुष्य शक्ति के बाहर है क्योंकि ज्ञान अनन्त है, अनन्त का पार कौन पा सकता है। महात्मा लोग एक देश में उत्पन्न होकर भी सभी देश अपने ही बना लेते हैं। सब समय उन के ही अनुकूल हो जाते हैं।

श्री स्वामी विवेकानंद ऐसे ही महापुरुषों में हैं।

स्वामी जी का जन्म 1863 ई० में कलकत्ता के समीपवर्ती सिमूलियां नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था। जिस समय विश्वनाथ दत्त बंगाल में “अटर्नी” हुए तभी उन के पिता ने संन्यासाश्रम में प्रवेश करके गृह त्याग कर दिया। उसी आनुवंशिक संस्कार के बीज स्वामी विवेकानंद के हृदय में भी जमे हुए थे जिन्होंने अवसर पाकर अपना स्वरूप संसार पर प्रकट किया।

स्वामी विवेकानंद का बचपन Childhood Of Swami Vivekananda In Hindi

स्वामी विवेकानंद का पैदाइशी नाम वीरेश्वर था परन्तु प्यार के कारण घर के लोग, अड़ोसी-पड़ोसी सब उनको “नरेन्द्र” कहते थे। नरेन्द्र सुडौल, गठीला शरीर, गौर-वर्ण, मनमोहक बड़ी-बड़ी आँखें और तेजस्वी मुख वाला होनहार बालक था। उसका चित्त पढ़ने में बहुत कम लगता था, दिन रात खेलना, अपने साथ के लड़कों को तंग करना, ख़ूब ऊधम मचाना–यही उसके विशेष प्रिय कार्य थे। कोई ऐसा दिन नहीं जाता था जिस दिन माता-पिता या गुरुजन को नरेंद्र की दस-पाँच शिकायतें सुनने को न मिलती हों। वह ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता था हँसोड़ और उपद्रवी होता जाता था। अपने सहपाठियों से मार-पीट करना, शिक्षकों से बहस-मुबाहसा करना उसका नित्य का काम था।

बुद्धि तीव्र थी, पढ़े हुए पाठ को याद कर लेना नरेन्द्र के लिए खेल था। सहपाठियों को वह उनके पढ़ने में सहायता दिया करता था। तंग किये जाने पर भी उसके सहपाठी, वाद-विवाद से खीझ जाने पर भी उसके शिक्षक, उससे द्वेष न मानकर प्रेम करते थे और उसको आदर की दृष्टि से देखते थे। नरेन्द्र को तत्त्वज्ञान संबन्धी पुस्तकों से विशेष प्रेम था। कोर्स की पुस्तकों में इतना आनन्द न आता था जितना तत्त्व-ज्ञान विषयक पुस्तकों में। एक बार तत्त्वज्ञान का एक आलोचनात्मक लेख लिखकर प्रसिद्ध पाश्चात्य-तत्त्ववेत्ता मीमांसक हर्बर्ट स्पेन्सर के पास भेजा था, उस लेख को देख कर हर्बर्ट साहब ने दाँतों तले अंगुली दबाई और नरेन्द्र को एक उत्तेजना-पूर्ण पत्र लिखते हुए लिखा–“आप अपना सतत उद्योग निरन्तर जारी रक्खें, बन्द न करें। हमें पूर्ण आशा है कि भविष्य में संसार आप से उपकृत होगा।” आगे चलकर सचमुच नरेंद्र ने अपने अदम्य उत्साह, अधिक परिश्रम, विचित्र बुद्धिमत्ता, अपूर्व स्वार्थ-त्याग और प्रेम-बल से संसार को अपना दास बना लिया।

नरेंद्र में सत्य को जानने की जिज्ञासा The Desire To Know The Truth In Narendra

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय पढ़ें तो ज्ञात होता है कि उनमें सत्य को लेकर हमेशा से प्रेम था। जब उन्होंने बांग्ला के साथ-साथ संस्कृत और अंग्रेज़ी में भी पूर्ण योग्यता प्राप्त कर ली, बी० ए० पास कर लिया, उसी समय उन्हें पितृ-वियोग सहना पड़ा। गृहस्थी का कुल भार नरेन्द्र के ही कंधों पर आ पड़ा। नौकरी में उनका चित्त न लगता था। दिनों-दिन सांसारिक झंझटों से निवृत्ति की प्रवृत्ति ही चित्त में बढ़ती जा रही थी। इधर माता जी उनके ब्याह के लिए प्रयत्न-शीला और व्याकुल हो रही थीं। उन्होने प्यारे पुत्र के लिए बहुत प्रयत्न किया कि वह विवाह कर ले पर नरेंद्र तो कामिनी-काञ्चन की तृण-तुल्य असारता का यथार्थ रूप पूर्ण तरह से समझ चुके थे। वे ब्रह्मचर्य पालन के कट्टर पक्षपाती थे और अपने को सदैव उसी स्वरूप में देखना चाहते थे। वे लन्दन से भेजे हुए अपने एक पत्र में लिखते हैं–

“मुझे ऐसे मनुष्यों की आवश्यकता है जिनकी नसें लोहे की हों, ज्ञान-तन्तु फ़ौलाद के हों और अन्तःकरण वज्र के हों। क्षत्रियों का वीर्य और ब्राह्मणों का तेज जिनमें एकत्रित हुआ हो, मुझे ऐसे नरसिंह अपेक्षित हैं। ऐसे लाखों नहीं, करोड़ो बालक मेरी दृष्टि के सामने हैं, मेरी आकांक्षाओं को पूर्ण करने के अंकुर स्पष्टतः उनमें दिखलाई पड़ रहे हैं। परन्तु हा! उन सुन्दर बच्चों का बलिदान होगा। होमकुण्ड में उनकी पूर्णाहुति कर दी जायगी। विवाह के होमकुण्ड की धधकती हुई ज्वालायें चारों ओर से घेरे हुए खड़ी हैं। इन्हीं ज्वालाओं के कुण्ड में मेरे सुकुमार बच्चे निष्ठुरता-पूर्वक झोंक दिए जायंगे। हे दयालु! इस जलते हुए अन्तःकरण से निकलने वाले करुणोद्गार क्या तुम्हें नहीं सुनाई देते? यदि सत्य के लिए कम-से-कम ऐसे सौ सुभट भी संसार की विशाल रण-भूमि में उतर आयें तो कार्य पूर्ण हो जाय। प्रभो! तुम्हारी इच्छा होगी तो सब कुछ हो जायगा।”

बंगाल प्रान्त में उन दिनों “ब्रह्म समाज” सम्प्रदाय का प्रचार दिनों-दिन बढ़ रहा था, जिसके संस्थापक राजा राममोहन राय थे। नरेन्द्र पहले ब्रह्मो समाज में शामिल हुए। थोड़े ही दिनों के पश्चात उन्होंने जान लिया कि इस धर्म में कोई सार नहीं; केवल ऊपरी चमत्कार, आडम्बर मात्र है। अस्तु, अब वे ईसाई व मुहम्मदी तत्वों की ओर मुड़े; धर्मग्रन्थों का अनुशीलन प्रारम्भ किया, पर उनसे भी शान्ति प्राप्त न हुई। सनातन धर्म पर उन्हें श्रद्धा न थी। वे लकीर के फ़क़ीर न बनना चाहते थे तथापि अन्वेषण-दृष्टि से एक बार फिर सनातन धर्म के वेदान्त , उपनिषद, धर्म-शास्त्र का गहरी दृष्टि से अध्ययन प्रारम्भ किया।

जो शान्ति उन्हें पहले प्राप्त न हुई थी वही शान्ति वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन से अब प्राप्त होने लगी। शनैः-शनैः उनका दृढ़ निश्चय होता गया कि संसार में यदि कोई धर्म शान्ति दे सकता है तो वह एक सनातन हिन्दू धर्म है। संसार में इसी धर्म के प्रचार की आवश्यकता है। यही एक धर्म सदैव निर्बाध रूप से सर्वजीव हितकारी हो सकता है। नरेंद्र अब तक जिस भ्रम-जाल में फँसकर छटपटा रहे थे, हिन्दू शास्त्रों से वह जाल छिन्न-भिन्न हो गया। अपना कर्त्तव्य पथ उन्हें दृष्टि गोचर होने लगा। सद्गुरु कृपा की उत्कट अभिलाषा उत्पन्न हुई। इधर-उधर साधु-संग करना प्रारम्भ किया। कोई झूठ ही कह दे कि अमुक स्थान पर एक योगी महात्मा आए हुए हैं तो नरेन्द्र सब कार्य छोड़कर तत्काल ही वहाँ पहुँचते थे। कोई साधु-महात्मा मिलता तो उस से भाँति-भाँति के प्रश्न करके उसे घबराहट में डाल देते थे। इससे लोग उन्हें दुराग्रही, कपटी आदि नाना उपाधियों से विभूषित करने लगे थे। कोई-कोई महात्मा तो हठात् उन को परास्त करने की इच्छा से जाते और मुँह की खाकर लौट आते थे। परन्तु नरेन्द्र की तो गुरु-दर्शन की प्रबल अभिलाषा थी। गुरु मिलता कैसे न? “जाको जा पर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलहि न कछु सन्देहू।”

जब रामकृष्ण परमहंस से मिले स्वामी विवेकानंद When Vivekananda Met Ramakrishna Paramhamsa

उन्हीं दिनों एक पहुँचे हुए महात्मा श्री स्वामी रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता के समीप दक्षिणेश्वर नामक स्थान में रहते थे। वे स्वतः तो सदैव ब्रह्म-लीन रहते ही थे परन्तु जिज्ञासु को भी अपनी अमृतमयी वाणी से तृप्त कर देते थे। नरेंद्र के एक सम्बन्धी एक दिन नरेन्द्र को वहाँ चलने के लिए बाध्य करने लगे। “आप जाकर दर्शन करें। मेरे चलने से उनके प्रति आपकी श्रद्धा कम हो जायगी”, कहकर नरेन्द्र ने उन्हें टालना चाहा पर अन्त में उनके विशेषाग्रह से जाना ही निश्चय किया।

कुछ बातचीत होने के अनन्तर, “भगवन्, आपने ईश्वर सिद्ध तो कर दिया है परंतु कभी देखा भी है?” नरेन्द्र ने दिल्लगी भाव से पूछा। “हाँ, मैंने ईश्वर देखा है। तुम्हें भी दिखला सकता हूँ”, परमहंस ने गंभीर भाव से उत्तर दिया। थोड़े समय बाद उपस्थित लोगों के चले जाने पर परमहंस ने उनको समाधि लगा दी और नरेन्द्र को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो गई। नरेंद्र की चिरेप्सित अभिलाषा पूर्ण हुई। वे परमहंस रामकृष्ण के सच्चे शिष्य बन गए। कभी-कभी बड़ी-बड़ी सभाओं तक में नरेन्द्र, गुरु-स्मरण करते हुए उनके चरण में लीन हो जाते थे। एकबार जन समुदाय में गुरु के प्रति उनके उद्गार थे, “रामकृष्ण परमहंस मेरे हैं, मैं उनका हूँ। माता, पिता, गुरु, भ्राता, इष्टदेव, मन, आत्मा, प्राण, स्वामी–वे ही मेरे सब कुछ हैं। मेरे सद्गुण उनके हैं और दुर्गण मेरे हैं। मुझे उन्हीं के सहवास में शान्ति मिली है।”

यह भी पढ़ें – श्री रामकृष्ण परमहंस की जीवनी

नरेंद्र के सांसारिक बंधनों से मुक्त होने में बाधक थीं उनकी पुत्र-वत्सला माता। मातृ-भक्ति का उद्रेक संन्यास ग्रहण कर उन्हें अधिक दुःखी न करना चाहता था। परमहंस स्वामी रामकृष्ण महाराज के निर्वाण प्राप्त करने पर, माता से किसी प्रकार आज्ञा ले नरेन्द्र ने संन्यास ले ही लिया और संसार में गुरु-मत प्रचार तथा सनातन हिंदू धर्म को पुनर्जागृत करने का प्रण किया। अब से वे स्वामी विवेकानंद नाम से नए रूप में आविर्भूत हुए।

पैर में सादा देशी जूता, कमर में कौपीन, शरीर पर गेरुआ अंगरखा और सिर पर साफा धारण किया। क्या देश क्या विदेश सभी जगह वे एक ही वेश से घूमे; हाँ, सर्दी के कारण विदेश में बजाय सूती के ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। उन के इस वेश से विदेश में प्रायः लोग उनकी खिल्ली उड़ाया करते थे।

एक बार अमेरिका में किसी पथ से होकर जा रहे थे तो एक सभ्य पुरुष ने छड़ी से उनका साफा दूर उछाल दिया।

“आप जैसे सभ्य पुरुष ने यह कष्ट क्यों उठाया?”, स्वामी जी ने पूछा। उसने कहा, “भला आपने यह विचित्र वेश क्यों धारण किया है?” “मैं बहुत दिनों से इस देश की सभ्यता की प्रशंसा सुनता था। इसी से इसको देखने की इच्छा से आया था।” स्वामी जी ने कहा, “यहाँ की सभ्यता का पहला पाठ आप ही ने मुझे पढ़ाया।”

स्वामी जी के कथन से वह बहुत लज्जित हुआ और क्षमा मांगते हुए घर की राह ली।

संन्यास लेने पर स्वामी विवेकानन्द ने एकान्तवास सेवन कर योगाभ्यास किया। विदेशों में भी वे जब तब एकान्त वास करते थे। अद्वैतवाद के प्रचारार्थ वे चीन, जापान गए। वहाँ से लौट कर भारत के इलाहाबाद, बनारस, पूना, मद्रास आदि नगरों में घूमे। समस्त मानव जाति के प्रति सब भेद-भावों को भुलाकर समान दृष्टि से धर्म प्रचार करना ही वे सर्वोपरि देश-सेवा समझते थे।

वे कहते थे–“अपने ज्ञान का उपयोग संसार को करने दो, अन्यों के सीखने योग्य गुणों को तुम सीखो। आकुण्ठित विचारों को हृदय में रखना मृत्यु का आह्वान है। जो दूसरों को स्वतंत्रता नहीं दे सकते, वे स्वयं स्वतंत्र होने योग्य नहीं।”

अमेरिका में स्वामी विवेकानंद Swami Vivekananda In America

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय बताता है कि एक बार वे रामेश्वर से मध्य भारत की ओर आ रहे थे। रास्ते में रामनाड़ के महन्त से भेंट हुई। महन्त ने स्वामी जी की विद्वत्ता पर मुग्ध होकर उनसे अमेरिका की सर्वधर्म परिषद में भारत के प्रतिनिधि स्वरूप जाकर हिन्दू धर्म प्रचार की प्रार्थना की। स्वामी जी तो तैयार ही थे, सहमत हो गए और मद्रास आदि में घूमकर कुछ चन्दा एकत्रित किया। विदेश का ख़र्च, थोड़ा चन्दा, अमेरिका पहुँचते-पहुँचते रुपया ख़त्म हो गया। कोई दूसरा पुरुष होता तो अवश्य घबड़ा जाता पर जिसकी चिन्ता ईश्वर को है उसे कैसा सोच। रास्ते में एक वृद्धा स्त्री से भेंट हो गई। वह स्वामी जी का विचित्र वेष देखकर “इस पूर्वीय जीव से कुछ विनोद ही होगा” विचारती हुई उन्हें अपने घर ले गई। परन्तु घर में विनोद के बदले तत्व-ज्ञान का उपदेश स्वामी जी के मुख से सुनकर वह स्तंभित हो गई। अल्प समय में ही अमेरिका के समाचार पत्रों में स्वामी जी की कीर्ति-कथा पढ़ी जाने लगी।

एक दिन एक अहम्मन्य तत्त्वज्ञानी स्वामी जी को परास्त करने की इच्छा से उनके पास आया परन्तु उनकी असाधारण विद्वत्ता और वक्तृत्त्व शक्ति पर मुग्ध होकर उसी समय उनका शिष्य हो गया। शिकागो की सर्वधर्म सभा में स्वामी जी जब आये हुए प्रतिनिधियों का अपनी रसमयी वाणी से स्वागत करते थे तो स्वामी जी के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा हो जाती थी।

परिषद में जिस दिन स्वामी जी का भाषण होने को था, सवेरे से हो शहर की दीवालों पर लगे हुए विज्ञापन आगन्तुकों को बतला रहे थे, “एक तेजस्वी विद्वान, अद्वितीय हिन्दू संन्यासी का व्याख्यान 4 बजे सुनकर अपने को तृप्त कीजिए।” सभा-भवन में तथा उसके चारों ओर इतनी ठसाठस भीड़ थी कि तिल रखने की जगह न थी।

यथा समय स्वामी जी व्यास-पीठ पर आ उपस्थित हुए। उनकी तेजस्वी और मनोहर मूर्ति देख कर द्रष्टाओं की आँखें चकाचौंध हो गईं। सब के तुमुल जय घोष के साथ “ओ३म् तत्सत्” का गीत गाते हुए स्वामी विवेकानन्द ने मनोमुग्धकारी भाषण शुरू किया और अनेक युक्ति तथा प्रमाणों से साबित कर दिया कि एक हिन्दू धर्म ही ऐसा सार्वभौम धर्म है जिसे मानव जाति स्वीकार कर सकती है।

अमेरिका के प्रसिद्ध पत्र अभिमान के साथ जय घोष करते हुए लिखने लगे–”गेरुआ वस्त्रधारी यह हिन्दू धर्मोपदेशक ईश्वर का उत्पन्न किया हुआ जन्मसिद्ध वक्ता है। ऐसे प्रतिभाशाली देश में मिशनरियों का भेजना मूर्खता है।”

गंगा की धवल धारा की तरह स्वामी जी की कीर्ति अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि में फैल गई। न्यूयॉर्क में “रामकृष्ण मठ” नामक एक संघ स्थापित हुआ जिसमें अब तक वेद, वेदांत, ध्यान , धारणा , प्राणायाम आदि की शिक्षा दी जाती है।

अमेरिका जाने से पूर्व भारतीय जिनका नाम तक नहीं जानते थे, लौटने पर कोलम्बो (सीलोन) में उनके स्वागत के लिए दश सहस्र पुरुष एकत्रित हुए और स्वामी जी का ख़ूब स्वागत किया। रामनाड़ के महन्त ने हाथी-घोड़ों, गाजों-बाजों, ध्वजा पताकाओं, वाद्यों, रोशनी व अपार भीड़ के साथ उनका अपूर्व स्वागत किया और पाश्चात्त्य देशों में दिग्विजयी होने के कारण अपने यहाँ एक विजय-स्तम्भ स्थापित किया।

स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय – भारत वापसी Swami Vivekananda Back In India

स्वदेश में स्वामी जी ने मद्रास, बंगाल, उत्तर भारत और बंबई आदि के भिन्न-भिन्न स्थानों में घूम-घूम कर बहुत से व्याख्यान दिए। कितने ही स्थानों में संस्थाएँ खोलीं जिनका मुख्य कार्य धर्म प्रचार और ग़रीबों की सेवा करना है।

सन् 1902 की 4 जुलाई को स्वामी जी ने नित्य की भाँति प्रातः कृत्य करने के पश्चात् योगाभ्यास किया। मध्याह्न में शिष्यों को पढ़ाया। संध्या समय मुमुक्षुओं से धर्म-चर्चा की, बाहर घूमने गए। पहर रात्रि गए तक बातचीत करते-करते सहसा कहने लगे, “आज मेरी श्री गुरु-चरण दर्शनों की इच्छा है। नाशमान शरीर में अमर आत्मा का कार्य कभी नहीं रुकता। देश की इच्छाओं को अब आप लोग पूर्ण करें, ईश्वर आपको सहायता दे।” इतना कहने के साथ ही वे अपने कक्ष में गए, “ॐ तत्सत्” कहते हुए अन्तिम श्वास छोड़ दी और परमात्मा में लीन हो गए।

स्वामी विवेकानंद के विचार Swami Vivekananda’s Message

स्वामी विवेकानंद जी बड़े संयत पुरुष थे। अपनी धुन के एक थे। दृढ़ निश्चयी थे। पास घड़ी न रखने पर भी सब कार्य उनके यथा समय ही होते थे। उनमें तीन प्रधान गुण थे–

  • देश, धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा
  • स्वार्थ त्याग पूर्वक अथक परिश्रम

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय दिखलाता है कि वे एक कर्मयोगी थे और कभी खाली बैठना तो जानते ही न थे। 12-14 घंटे अभ्यास करना उनका नित्य का कार्य था। उनका सिद्धान्त था कि खाली बैठने से मनुष्य काहिल हो जाता है। खाली बैठने से बेगार करना अच्छा।

एक दिन उनके एक आलसी नौकर ने आकर कहा, “महाराज, आप सब को मुक्ति की राह बतलाते हैं पर मुझे क्यों नहीं बतलाते जो दुनिया के झंझटों से छूट जाऊँ।” “ मुक्ति के लिये उद्योग की आवश्यकता है। यदि तुम कुछ न कर सको तो चोरी ही सीख लो।” स्वामी जी ने हँसकर कहा, “खाली बैठने से चोरी आदि सीखना अच्छा, क्योंकि उद्योग से ज्ञान होने पर बुरे कर्म छूट जाते हैं।”

वे अपने भारतीय मित्रों को प्रायः लिखा करते थे, “अब बार-बार यह कहने का समय नहीं कि हम ऐसे जगद्विजयी थे, उद्योगी थे, हम संसार के गुरु थे, हम सर्वोपरि थे। अब कैसे हो सो संसार को दिखला दो। अपने कर्तव्य पथ पर बढ़े चलना तुम्हारा कार्य है। यश तो पीछे-पीछे आप दौड़ता है। संसार का भार अपने ऊपर समझो, अपना भार ईश्वर पर छोड़ दो। अन्तःकरण की पवित्रता, धैर्य और दृढ़ निश्चय के साथ सतत उद्योग में निरत रहो। मरने का मोह त्याग दो। कष्टों का सामना करने की, संसार की भलाई करने की प्रतिज्ञा कर लो और उसका पालन करो। कहो कम, करो ज़्यादा। तभी सफल होगे।”

एक जगह स्वामी जी अपने एक मित्र के पत्र के उत्तर में लिखते हैं– “तुमने लिखा कि कलकत्ते की सभा में दस हज़ार मनुष्यों की भीड़ हुई। यह बड़े आनन्द की बात है। पर सभा में फ़ी (शुल्क) एक आना मांगने पर कितने आदमी बैठे दिखलाई पड़ते इसका भी अनुभव करना था। निरुद्योगियों की सभा में उद्योग की बात ज़हर मालूम होती है। जो कुछ भी करना है आचरण से सिद्ध करो, व्यवहार से सिद्ध करो। जब तुम्हारा आचरण और व्यवहार लोगों को हितकर मालूम होगा तो वे आप से आप तुम्हारा अनुकरण करने लगेंगे। हमारा कर्तव्य है कि लोगों को धार्मिक जीवन और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखावें। बस, निन्दा-स्तुति, सुख-दुःख का विचार छोड़कर उठो और कार्य आरम्भ करो।”

एक स्थान पर अपार जन समूह में स्वामी विवेकानंद का रथ खड़ा किया गया। वहीं स्वामी जी को उपदेश देना पड़ा। आपने कहा, “भगवान कृष्ण ने रथ में बैठकर गीता का उपदेश दिया था। आज वही सौभाग्य मुझे प्राप्त है। काम करना और उद्योग करना मनुष्य के हाथ में है। फल और यश ईश्वर के हाथ में है। मैं उस दिन अपने को धन्य समझूंगा जिस दिन आप लोगों का यह उत्साह कार्य रूप में परिणत होगा।”

स्वामी जी की वाणी में अद्भुत मधुरता और आकर्षण शक्ति थी। श्रोताओं पर उनके उपदेश का बिजली की तरह असर होता था। अपने उपदेश में वे किसी की बुराई करना तो जानते ही न थे फिर भी हिन्दू धर्म की ख़ूबी का सिक्का लोगों के हृदय में जमा देते थे। लोग मंत्रमुग्ध की भाँति उनके व्याख्यानों को सुनते थे। अंग्रेज़ी और संस्कृत पर उनका असाधारण अधिकार था। स्वामी जी का मत था, “उदार चरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम्।” मनुष्य जाति को वे समान दृष्टि से देखते थे। हिंदू संस्कृति पर उन्हें अभिमान था, उसका प्रचार और अध्यात्म ज्ञान का प्रचार उनके जीवन का लक्ष्य था। ब्रह्मचर्य की वे साक्षात् मूर्ति थे। देश सेवा, परोपकार, शिक्षा प्रसार उनके कार्यों के मुख्य अङ्ग थे। उनका जीवन संसार के लिए आदर्श था। कोई भी मनुष्य स्वामी विवेकानंद के उपदेशों के अनुसार चलकर अपना जीवन सफल बना सकता है।

हमें आशा है कि स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda in Hindi) जो यहाँ प्रस्तुत किया गया है आपके लिए उपयोगी साबित होगा। उनके सुविचार और अनमोल वचन हमें सदैव प्रेरणा देते रहेंगे। वे हमेशा मानते थे कि किसी राष्ट्र या व्यक्ति जब आत्म-विश्वास खो देता है तो वही उसकी मृत्यु का कारण सिद्ध होता है। उनका जीवन-परिचय न केवल हमें संबल देता है, बल्कि हमारे भीतर श्रद्धा और आत्म-विश्वास का संचार भी करता है। हिंदीपथ.कॉम पर हम न सिर्फ़ स्वामी विवेकानंद के बारे में सभी जानकारियाँ देंगे, बल्कि उनकी सभी किताबें भी जल्द-से-जल्द आप तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे। स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jeevan Parichay) यदि आपको भी कुछ करने तथा देश-सेवा के लिए प्रेरित करता हो, तो कृपया टिप्पणी करके अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

स्वामी विवेकानंद जी का संन्यास-पूर्व नाम “नरेन्द्रनाथ दत्त” था। बचपन में उनकी माँ प्यार से उन्हें “वीरेश्वर” भी कहकर पुकारती थीं।

स्वामी जी का जन्म 1863 ई० में कलकत्ता के समीपवर्ती सिमूलियां नामक ग्राम में हुआ था।

श्री रामकृष्ण परमहंस स्वामीजी के गुरु थे। उनके ही आदेश पर स्वामी विवेकानन्द ने असम्प्रज्ञात समाधि का मोह त्यागकर लोकसेवा और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार का मार्ग चुना।

स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन-काल में रामकृष्ण मिशन, रामकृष्ण मठ और अमेरिका में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की थी। इन संस्थाओं का उद्देश्य देश-विदेश में श्री रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों और वेदांत-ज्ञान का प्रचार करना था।

एक अमेज़न एसोसिएट के रूप में उपयुक्त ख़रीद से हमारी आय होती है। यदि आप यहाँ दिए लिंक के माध्यम से ख़रीदारी करते हैं, तो आपको बिना किसी अतिरिक्त लागत के हमें उसका एक छोटा-सा कमीशन मिल सकता है। धन्यवाद!

  • राजयोग द्वितीय अध्याय – साधना के प्राथमिक सोपान
  • स्वामी विवेकानंद के शिक्षा पर विचार

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

6 thoughts on “ स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय ”

This article is really very interesting. Found your post interesting to read. I cant wait to see your post soon. Good Luck for the upcoming update.This article is really very interesting and effective.

Thank you, Krishnamurari Ji. Your support and encouragement really matter to us. Keep reading and guiding us.

Very Good Information For Swami Vivekanand

ऋषि प्रताप जी, हिंदीपथ पढ़ने और सराहने के लिए धन्यवाद। इसी तरह पढ़ते रहें और मार्गदर्शन करते रहें।

लेखक महोदय … सबसे पहले तो इतने महान व्यक्तित्व का विस्तृत जीवन परिचय अपनी मातृभाषा हिंदी में अपने पाठको के सम्मुख रखने के लिए आप बधाई के पात्र है .. इसके साथ – साथ सबसे अच्छी और उपयोगी बात है , लेख के अंत में प्रश्न और उत्तरों की श्रृंखला .. निसंदेह आपके प्रयास सराहनीय और अनुकरणीय है .. आशा है की आगे भी आप इसी तरह से भारत के महान व्यक्तित्वों से अपने पाठकों का परिचय करवाते रहेंगे .. और नई पीढ़ी को एक सकारात्मक सन्देश देते रहेंगे .. भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं .. धन्यवाद

इन प्रोत्साहनपूर्ण शब्दों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने अपनी साइट पर स्वामी विवेकानंद के बारे में जो जानकारी डाली है, वह भी बहुत सराहनीय प्रयास है। स्वामी जी का व्यक्तित्व और कृतित्व अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचे, यही हम सबका प्रयत्न है। इसी तरह स्वामी जी के विचार यहाँ पढ़ते रहें और हमारा मार्गदर्शन करते रहें।

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Swami Vivekananda Books in Hindi : स्टूडेंट्स को जरूर पढ़नी चाहिए स्वामी विवेकानन्द की ये किताबें, जिनसे मिलती है जीवन की बड़ी सीख

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  • Updated on  
  • जनवरी 12, 2024

Swami Vivekananda Books in Hindi

स्वामी विवेकानन्द एक भारतीय हिंदू, सार्वजनिक वक्ता, वेदांत दार्शनिक और योग चिकित्सक थे। वह श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे। उन्हें रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ के संस्थापक के रूप में सबसे ज्यादा याद किया जाता है, लेकिन उनकी बोलने और लिखने की कला भी किसी से छिपी नहीं है। उनकी लिखीं किताबों से किसी भी व्यक्ति के जीवन को नई दिशा मिल सकती है और इस ब्लाॅग में हम स्वामी जी की प्रमुख किताबें (Swami Vivekananda Books in Hindi) जानेंगे।

This Blog Includes:

स्वामी विवेकानन्द के बारे में.

  • ध्यान और उसकी विधियां
  • राज-योग (1896)
  • कर्म योग: क्रिया का योग (1896)
  • स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएं

स्वामी विवेकानन्द स्वयं पर (Swami Vivekananda on Himself)

  • वेदांत: स्वतंत्रता की आवाज
  • भगवत गीता पर व्याख्यान
  • स्वामी विवेकानन्द के पत्र

मेरा भारत: शाश्वत भारत (माई इंडिया: द इंडिया इटरनल)

स्वामी विवेकानन्द की किताबें (लिस्ट).

स्वामी विवेकानन्द जिनका मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। उनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता शहर में हुआ था। स्वामी विवेकानन्द ने छोटी उम्र से ही ‘उच्च विचार और सादा जीवन’ का सार अपना लिया था। उन्होंने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य के रूप में रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी शिक्षाएं और पहल आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और हमेशा करती रहेंगी।

यह भी पढ़ें- Swami Vivekanand ka Janm kab hua : जानिए स्वामी विवेकानंद का जन्म कब और कहाँ हुआ?

स्वामी जी की किताबें (Swami Vivekananda Books in Hindi)

स्वामी जी की प्रमुख किताबें (Swami Vivekananda Books in Hindi) यहां दी जा रही हैं जिन्हें आपको जरूर पढ़ना चाहिएः

ध्यान और उसकी विधियां दो भागों में विभाजित हैं। इसमें ध्यान पर विवेकानन्द के विचार उनके संपूर्ण कार्यों में बिखरे हुए हैं। इस पुस्तक को बनाने के लिए इन विभिन्न विचारों, राय और व्याख्यानों को जोड़ा गया है।

यह पुस्तक स्वामी विवेकानन्द की राजयोग पर लिखी पुस्तक है। इसमें अधिकांश भाग में, पतंजलि के योग सूत्र की उनकी व्याख्या शामिल है। यह पुस्तक उनके पश्चिमी दर्शकों और पाठक को ध्यान में रखकर लिखी गई थी। पुस्तक की शुरुआत योग के संक्षिप्त परिचय से होती है। 

कर्म योग: द योगा ऑफ एक्शन स्वामी विवेकानंद के व्याख्यानों की एक पुस्तक है, जिसे जोसेफ जोशिया गुडविन ने लिखा है। पुस्तक का मुख्य विषय कर्म (कार्य) और कर्म योग (क्रिया का योग) है। विवेकानन्द अपने दर्शन को समझाने के लिए भगवद गीता में वर्णित कर्म की अवधारणा का उपयोग करते हैं।

यह भी पढ़ें- National Youth Day in Hindi : जानिए कब और क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय युवा दिवस

स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं में उनके भाषणों और शिक्षाओं का एक चुनिंदा संग्रह शामिल है। यह उन शुरुआती पाठकों के लिए एक आदर्श पुस्तक है जो विवेकानन्द की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं।

यह पुस्तक स्वामी विवेकानन्द की आत्मकथात्मक ढंग से लिखी गई जीवनी है। यह पहली बार 1963 में प्रकाशित हुआ था। इस पुस्तक में स्वामी विवेकानन्द के जीवन और उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं का दस्तावेजीकरण (documented) किया गया है। 

वेदांत: वॉयस ऑफ फ्रीडम भारत के आध्यात्मिक ज्ञान को प्रस्तुत करता है क्योंकि यह पांच हजार वर्षों में विकसित हुआ है। यह पुस्तक वेदांत विषय पर विवेकानन्द के विचारों का संकलन है। ये विचार उनके विभिन्न भाषणों और पुस्तकों से लिए गए हैं।

स्वामी जी की यह पुस्तक उन लोगों के लिए उपयोगी होगी जो गीता को समझने का प्रयास कर रहे हैं। ‘लेक्चर्स ऑन द भगवद गीता’ हिंदू पाठ पर विवेकानन्द के लेखन, विचारों और टिप्पणियों का समूह है। भगवद गीता स्वामी विवेकानन्द की आजीवन साथी थी और वे जहां भी जाते थे, भगवत गीता अपने साथ लेकर जाते थे।

स्वामी विवेकानन्द के पत्र पुस्तक में पाठक को विवेकानन्द की वह छवि मिलती है जो किसी भी जीवनी लेखक से अछूती है। इसमें पत्र उनके कार्य की योजना और उन साधनों को दर्शाते हैं जिन्हें वह अपने मिशन की पूर्ति के लिए अपनाना चाहते थे।

माई इंडिया: द इंडिया इटरनल पुस्तक भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य के लिए विवेकानन्द के दृष्टिकोण के बारे में बात करती है। स्वामी विवेकानन्द भारत के युवाओं के कर्तव्यों और भारत को एक महान राष्ट्र बनाने के लिए उनके द्वारा अपनाए जाने वाले मार्ग के बारे में बात करते हैं।

स्वामी जी की किताबें इस प्रकार हैःं

  • स्वामी विवेकानन्द स्वयं पर
  • ज्ञान-योग (1899)
  • कोलंबो से अल्मोडा तक व्याख्यान
  • स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रेरित वार्ता
  • मेरा भारत: शाश्वत भारत
  • मन की शक्तियां
  • मेरे स्वामी
  • हिंदू धर्म की अनिवार्यताएं
  • स्रोत पर रहना
  • शिक्षा के बारे में मेरा विचार
  • कार्य और उसका रहस्य
  • बोध की ओर कदम
  • भारत के युवाओं के लिए
  • बुद्धि के मोती
  • आनंद के मार्ग: ईश्वर तक पहुंचने के चार योग मार्गों पर स्वामी विवेकानन्द
  • भारत की महिलाएं
  • मृत्यु के बाद का जीवन
  • पूर्व और पश्चिम
  • प्रेम का धर्म।

स्वामी विवेकानन्द कर्म योग, राज योग, ज्ञान योग, भक्ति योग आदि पुस्तकों को पढ़ना चाहिए।

स्वामी विवेकानन्द की पहली पुस्तक माई मास्टर है।

विवेकानंद: एक जीवनी।

आशा है कि इस ब्लाॅग Swami Vivekananda Books in Hindi में आपको विवेकानन्द की किताबें पता चल गई होंगी। ऐसे ही अन्य ब्लाॅग्स पढ़ने के लिए बनें रहे हमारी वेबसाइट Leverage Edu पर।

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स्टडी अब्राॅड प्लेटफाॅर्म Leverage Edu में सीखने की प्रक्रिया जारी है। शुभम को 4 वर्षों का अनुभव है, वह पूर्व में Dainik Jagran और News Nib News Website में कंटेंट डेवलपर रहे चुके हैं। न्यूज, एग्जाम अपडेट्स और UPSC में करंट अफेयर्स लगातार लिख रहे हैं। पत्रकारिता में स्नातक करने के बाद शुभम ने एजुकेशन के अलावा स्पोर्ट्स और बिजनेस बीट पर भी काम किया है। उन्हें लिखने और रिसर्च बेस्ड स्टोरीज पर फोकस करने के अलावा क्रिकेट खेलना और देखना पसंद है।

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स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani

स्वामी विवेकानंद जी का संपूर्ण जीवन परिचय, उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों तथा घटनाओं का भी अध्ययन करेंगे।

यह जीवन परिचय युवा प्रेरणा स्रोत , ऊर्जावान स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित है। इस लेख के माध्यम से आप नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनाने की कहानी जान सकेंगे। उनकी स्मरण शक्ति और उनके जीवन शैली को इस लेख के माध्यम से विस्तृत अध्ययन का प्रयत्न किया गया है।

प्रस्तुत लेख स्वामी विवेकानंद जी के संकल्प शक्ति, विचारों के ऊर्जा, अध्यात्म, आत्मविश्वास आदि का विस्तार है। उन्होंने अल्पायु से लेकर अपने जीवन काल तक जिस मार्ग को अपनाया, उसे आज युवा प्रेरणा के रूप में ग्रहण करते हैं। स्वामी जी आज करोड़ों देशवासियों के मार्गदर्शक और प्रेरणा के स्रोत हैं। उनको पसंद करने वाले देश ही नहीं अभी तो विदेश में भी है। उनकी विचारधारा ऐसी थी जिसे भारत ही नहीं विदेश में भी पसंद किया गया।

यह लेख स्वामी जी के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालने में सक्षम है.

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय – Swami Vivekananda biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनकी स्मरण शक्ति और दृढ़ प्रतिज्ञा बेजोड़ है। बचपन में उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त हुआ करता था। उनकी कुशाग्र बुद्धि ने उन्हें स्वामी विवेकानंद बनाया। एक छोटे से जगह पर जन्मे और देश-विदेश में अपनी ख्याति को सिद्ध करने वाले स्वामी आज करोड़ों देशवासियों के लिए आदर्श व्यक्ति हैं। देश-विदेश में उनकी ख्याति है , उनको पसंद करने वाले किसी एक सीमा में बंधे नहीं है। स्वामी जी की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि, उन्होंने आधुनिक वेद-वेदांत धर्म आदि की सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों का अध्ययन किया था।

Read Swami Vivekananda biodata below  which includes birth date, birth place, mother and father’s name, education, early life, full name, nationality, religion, famous quotes, stories, and some unknown facts.

स्वामी विवेकानंद जी का पारिवारिक जीवन – Swami Vivekananda family life

Swami Vivekananda jivani and family life

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता के कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म मकर संक्रांति के दिन हुआ था। यह दिन हिंदू मान्यता का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। सूर्य की दिशा कुछ इस प्रकार होती है जो , वर्ष भर में मात्र एक बार अनुभव करने को मिलती है। विवेकानंद जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

जन्म के उपरांत उन्हें वीरेश्वर के नाम से जाना जाता था। 

शिक्षा शिक्षा के लिए औपचारिक नाम नरेंद्रनाथ दत्त रखा गया। विवेकानंद उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का दिया हुआ नाम था।

जैसा कि उपरोक्त विदित हुआ स्वामी जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाईकोर्ट के मशहूर वकीलों में से एक थे। उनकी वकालत काफी लोकप्रिय थी, अधिवक्ता समाज उन्हें आदरणीय मानता था। विवेकानंद जी के दादा दुर्गा चरण दत्त काफी विद्वान थे। उन्होंने कई भाषाओं में अपनी मजबूत पकड़ बनाई हुई थी। उन्हें संस्कृत , फारसी, उर्दू का विद्वान माना जाता था। उनकी रुचि धार्मिक विषयों में अधिक थी, जिसका परिणाम यह हुआ उन्होंने अपने युवावस्था में सन्यास धारण किया।

पच्चीस वर्ष की युवावस्था में दुर्गा चरण दत्त अपना परिवार त्याग कर सन्यासी बन गए।

स्वामी जी की माता भुवनेश्वरी दत्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।

वह विशेष रूप से शिव की उपासना किया करती थी। यही कारण है उनके घर में निरंतर पूजा-पाठ, हवन, कीर्तन-भजन आदि का कार्यक्रम हुआ करता था। रामायण, महाभारत और कथा वाचन नित्य प्रतिदिन का कार्य था।

स्वामी विवेकानंद जी का पालन पोषण इस परिवेश में हुआ।

उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति और धर्म के प्रति लगाव , घर में बने वातावरण के कारण था । वह सदैव जानने की प्रवृत्ति को अपने भीतर रखते थे। वह अपने माता-पिता या कथावाचक आदि से नित्य प्रतिदिन ईश्वर, धर्म और संस्कृति के बारे में प्रश्न पूछा करते थे।

कई बार उनके प्रश्न इस प्रकार हुआ करते थे , जिसका जवाब किसी के पास नहीं होता। स्वामी जी मे दिखने वाली कुशाग्र बुद्धि और जिज्ञासा धर्म-संस्कृति आदि की समझ परिवार की देन ही माना जाएगा।

नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद जी कैसे बने – Swami Vivekananda Childhood

नरेंद्र नाथ दत्त बचपन से खोजी प्रवृत्ति के थे, उन्हें किसी एक विषय में रुचि नहीं थी। वह विषय के उद्गम और विस्तार को कारणों सहित जानने के जिज्ञासु थे । नरेंद्र नाथ कि इसी प्रवृत्ति के कारण शिक्षक उनसे प्रभावित रहते थे।

उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे बालक नरेंद्र नाथ के जिज्ञासा और उनकी उत्सुकता को अपना प्रेम देते थे।

नरेंद्र नाथ दत्त में बहुमुखी प्रतिभा थी, यह सामान्य बालक से बिल्कुल अलग थे। सामान्य बालक जहां एक विषय के अध्ययन में वर्षों निकाल दिया करते थे। नरेंद्र नाथ पूरी पुस्तक का अध्ययन कुछ ही क्षण में कर लिया करते थे। उनका यह अध्ययन सामान्य नहीं था वह पृष्ठ संख्या और अक्षरसः हुआ करता था। इस प्रतिभा से रामकृष्ण परमहंस प्रसन्न होकर नरेंद्र नाथ दत्त को विवेकानंद कहकर पुकारते थे।

यही विवेकानंद भविष्य में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। जो विवेक का स्वामी हो वही विवेकानंद।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा – Swami Vivekananda Education

Swami vivekananda education in Hindi - स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद की आरंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। विद्यालय से पूर्व उनका ज्ञान संस्कार घर पर ही किया गया। दादा तथा माता-पिता की देख-रेख में उन्होंने विद्यालय से पूर्व ही, सामान्य बालकों से अधिक जानकारी प्राप्त कर ली थी।

आठ वर्ष की आयु में, उन्हें ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्थान कोलकाता में प्राथमिक ज्ञान के लिए विद्यालय भेजा गया। यह समय 1871 का था। कुछ समय पश्चात 1877 में परिवार किसी कारणवश रायपुर चला गया। दो वर्ष के पश्चात 1879 मे कोलकाता वापस आ गया।  यहां स्वामी विवेकानंद ने प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में उच्चतम अंक प्राप्त किए।

यह बेहद ही सराहनीय सफलता थी, अन्य विद्यार्थियों के लिए यह सपना हुआ करता था।

स्वामी विवेकानंद इस समय तक

  • राजनीति विज्ञान
  • समाजिक विज्ञान
  • अनेक हिंदू धर्म के ग्रंथ तथा साहित्य का अक्षरसः गहनता से अध्ययन कर लिया था।

स्वामी जी ने पश्चिमी साहित्य के धार्मिक और विचारों तथा क्रांतिकारी घटनाओं का व्याख्यात्मक विश्लेषण भी सूक्ष्मता से अध्ययन किया था।

स्वामी विवेकानंद शास्त्रीय कला में भी निपुण थे , उन्होंने शास्त्रीय संगीत में परीक्षा को सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया। वह शास्त्रीय संगीत को जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए स्वीकार करते हैं। वह जीवन के किसी भी क्षेत्र को नहीं छोड़ना चाहते थे।

यही कारण है उनका स्वयं के शरीर से काफी लगाव था।

वह योग, कसरत, खेल, संगीत आदि को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया करते थे। उनका मानना था अगर मस्तिष्क को संतुलित रखना है तो, शरीर को स्वस्थ रखना ही होगा। जिसके लिए वह योग और कसरत पर विशेष बल दिया करते थे। स्वामी जी खेल में भी निपुण थे, वह विभिन्न प्रकार के खेलों में भाग लेते तथा प्रतियोगिता को अपने बाहुबल से जितते भी थे।

स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी देश के धर्म, संस्कृति, विचारधारा और महान लेखकों के साहित्य का विस्तार पूर्वक अध्ययन किया था। उन्होंने यूरोप, अमेरिका, फ्रांस, रूस, जर्मनी आदि विकसित देशों के महान दार्शनिकों की पुस्तकें और उनके शोध को गहनता से अध्ययन किया था।

1881 में विवेकानंद जी ने ललित कला की परीक्षा दी, जिसमें वह सफलतापूर्वक उच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए।

1884 में उनका स्नातक भी सफलतापूर्वक पूर्ण हो गया था।

स्वामी जी का शिक्षा के प्रति काफी लगाव था, जिसके कारण उन्होंने संस्कृत के साहित्य को विकसित किया। क्षेत्रीय भाषा बांग्ला में अनेकों साहित्य का अनुवाद किया। संभवत उपन्यास, कहानी, नाटक और महाकाव्य हिंदी साहित्य में बांग्ला साहित्य के माध्यम से ही आया था।

Swami vivekananda biography in Hindi - स्वामी विवेकानंद

सामाजिक दृष्टिकोण – Swami Vivekananda views towards society

स्वामी विवेकानंद की सामाजिक दृष्टि समन्वय भाव की थी। वह सभी जातियों को एक समान दृष्टि से देखते थे। यही कारण है सभी जाती और मानव कल्याण के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की। उन्होंने वेद-वेदांत, धर्म, संस्कृति आदि की शिक्षा प्राप्त की थी। वह ईश्वर को एक मानते थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है, उसे पूजने और मानने का तरीका अलग-अलग है। उन्होंने अनेक मठ की स्थापना धर्म के विकास के लिए ही किया था।

स्वामी जी मूर्ति पूजा का विरोध किया करते थे, उन्होंने अपने भीतर ईश्वर की मौजूदगी का एहसास दिलाया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि ब्रह्मांड की सभी सार्थक शक्तियां व्यक्ति के भीतर निहित होती है। अपनी साधना और शक्ति के माध्यम से उन सभी दिव्य शक्तियों को जागृत किया जा सकता है।

इसलिए वह सदैव कर्मकांड और बाह्य आडंबरों, पुरोहितवाद पर चोट करते थे।

समाज के कल्याण के लिए वह जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे थे। जहां एक और समाज में जाति-धर्म व्यवस्था आदि की पराकाष्ठा थी। वही स्वामी जी ने उन सभी जाति धर्म और वर्ण में समन्वय स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किया। स्वामी जी ने समाज कल्याण के लिए जमीनी स्तर पर सराहनीय कार्य किया। ब्रह्म समाज की स्थापना कर उन्होंने समाज में बहिष्कृत जाति आदि को मान्यता दी।

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे समाज का सपना देखते थे जहां भेदभाव जाति के आधार पर ना हो। वह इसीलिए ब्रह्मावाद, भौतिकवाद, मूर्ति पूजा पर, अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए धर्म और अनाचार के विरुद्ध वह सदैव कार्य कर रहे थे। उन्होंने समाज में युवाओं द्वारा किया जा रहा मदिरापान तथा अन्य व्यसनों को दूर करने के लिए कार्य किया। कई उपदेश दिए और अपने सहयोगियों के साथ उन सभी केंद्रों को बंद करवाया।

वह अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच आदि को समाज से दूर करना चाहते थे।

उन्होंने सेठ महाजन ओ आदि के द्वारा किया जा रहा , सामान्य जनता पर अत्याचार आदि को भी दूर करने का प्रयत्न किया । स्वामी जी ने नर सेवा को ही नारायण सेवा मानकर समाज के प्रति अपना सम्मान जनक दृष्टिकोण रखा।

स्वामी विवेकानंद जी की स्मरण शक्ति – Swami Vivekananda memory powers

Swami Vivekananda memory power

स्वामी जी की स्मरण शक्ति अतुलनीय थी। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे, अपनी कक्षा की पाठ्य सामग्री को कुछ ही दिनों में समाप्त कर दिया करते थे। जहां उसके अध्ययन में अन्य बच्चों को पूरा वर्ष लग जाया करता था। बड़े से बड़े धार्मिक ग्रंथ और साहित्य की पुस्तकों को उन्होंने अक्षर से याद किया हुआ था। उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि उनसे पढ़ी हुई पुस्तक को पूछने पर पृष्ठ संख्या सहित प्रत्येक शब्द बता दिया करते थे।

स्मरण शक्ति के पीछे उनके आरंभिक जीवन के ज्ञान का अहम योगदान है।

स्वामी विवेकानंद के दादाजी धार्मिक प्रवृत्ति के थे, उन्होंने संस्कृत और फारसी पर अच्छी पकड़ बनाई हुई थी। वह इन साहित्यों का गहन अध्ययन कर चुके थे। विवेकानंद जी की माता जी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। उन्होंने पूजा-पाठ, कीर्तन-भजन और धार्मिक पुस्तकों, वेद आदि को नित्य प्रतिदिन पढ़ना और सुनना अपनी दिनचर्या में शामिल किया हुआ था। पिता प्रसिद्ध वकील थे, उनकी वकालत कोलकाता हाईकोर्ट में उच्च श्रेणी की थी।

इन सभी संस्कारों के कारण स्वामी विवेकानंद कुशाग्र बुद्धि के हुए। उन्होंने ईश्वर के प्रति जानने की इच्छा और स्वयं अपने भीतर के ईश्वर को पहचानने का यत्न किया। जिसके कारण उनकी स्मरण शक्ति अतुलनीय होती गई।

स्वामी विवेकानंद जी की तार्किक शक्ति – Swami Vivekananda Logical thinking

जैसा कि हम जानते हैं स्वामी जी का आरंभिक जीवन वेद-वेदांत, भगवत गीता, रामायण आदि को पढ़ते-सुनते बीता था। वह कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्होंने अपने घर आने वाले कथा वाचक को ऐसे-ऐसे प्रश्न जाल में उलझाया था।  जिनका जवाब उनके पास नहीं था। वह जीव, माया, ईश्वर, जगत, दुख आदि के विषय में अनेकों ऐसे प्रश्न जान लिए थे जिनका कोई तोड़ नहीं था।

इस कारण स्वामी जी की बौद्धिक शक्ति का विस्तार हुआ। वह सभ्य समाज में बैठने लगे, उनकी ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। उनके जवाब इस प्रकार के होते, जिसके आगे सामने वाला व्यक्ति निरुत्तर हो जाता। उसे संतुष्टि हो जाती, इस जवाब के अतिरिक्त कोई और जवाब नहीं हो सकता।

उनकी तर्कशक्ति इतनी प्रसिद्ध थी कि, बड़े से बड़े विद्वान, नीतिवान और चिंतकों ने स्वामी विवेकानंद से शास्त्रार्थ किया।

योग के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण – Swami Vivekananda view towards Yoga

Swami Vivekananda views on Yoga in Hindi

स्वामी जी का स्पष्ट मानना था स्वस्थ मस्तिष्क के लिए , स्वस्थ शरीर का होना अति आवश्यक है। योग साधना पर उन्होंने विशेष बल दिया था। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर के भीतर निहितदिव्य शक्तियों को जागृत कर बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है। स्वयं स्वामी विवेकानंद प्रतिदिन काफी समय तक योग किया करते थे। उनकी बुद्धि और शरीर सभी उनके नियंत्रण से कार्य करती थी। इस प्रकार की दिव्य साधना स्वामी जी ने एकांतवास में किया था।

वह समाज में योग को विशेष महत्व देते हुए, योग के प्रति प्रेरित करते थे। संसार जहां व्यभिचार और व्यसनों में बर्बाद हो रहा है, वही योग का अनुकरण कर ईश्वर की प्राप्ति होती है। योग के द्वारा माया को दूर भी किया जा सकता है। एक सिद्ध योगी अपने शक्तियों के माध्यम से सांसारिक मोह-माया से बचता है, आत्मा-परमात्मा के बीच का भेद मिटाता है।

स्वामी विवेकानंद जी की दार्शनिक विचारधारा – Swami Vivekananda Philosophy

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धर्म-संस्कृति में विशेष रूचि रखते थे। स्वामी जी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग धर्म – संस्कृति तथा जीव , माया , ईश्वर आदि को जानने में प्रयोग किया। वह अद्वैतवाद को मानते थे, जिसका संस्कृत में अर्थ है एकतत्ववाद या जिसका दो अर्थ नहीं हो । जो ईश्वर है वही सत्य है, ईश्वर के अलावा सब माया है।

यह संसार माया है, इसमें पडकर व्यक्ति अपना जीवन बर्बाद कर देता है। ईश्वर उस माया को दूर करता है, इस माया को दूर करने का एक माध्यम ज्ञान है। जिसने ज्ञान को हासिल किया वह इस माया से बच गया।

इस प्रकार के विचार स्वामी विवेकानंद के थे, इसलिए उन्होंने अद्वैत आश्रम का मायावती स्थान पर किया था। अनेक मठों की स्थापना उन्होंने स्वयं की। देश-विदेश का भ्रमण करके उन्होंने ईश्वर सत्य जग मिथ्या पर अपना संदेश लोगों को सुनाया।

लोगों ने इसे स्वीकार करते हुए स्वामी जी के विचारों को अपनाया है।

स्वामी जी मूर्ति पूजा के विरोधी थे, उन्होंने युक्ति संगत बातों को समाज के बीच रखा। वेद-वेदांत, धर्म, उपनिषद आदि का सरल अनुवाद लोगों के समक्ष प्रकट किया। उनके साथ उनकी पूरी टोली कार्य किया करती थी।

संभवत वह केशव चंद्र सेन और देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में भी कार्य करते थे।

1881 – 1884 के दौरान उन्होंने धूम्रपान, शराब और व्यसन से दूर रहने के लिए युवाओं को प्रेरित किया। उनके दुष्परिणामों को उनके समक्ष रखा। जिससे काफी संख्या में युवा प्रभावित हुए, आज से पूर्व उन्हें इस प्रकार का ज्ञान किसी और ने नहीं दिया था। देश में फैल रहे अवैध रूप से ईसाई धर्म को भी उन्होंने प्रबल इच्छाशक्ति के साथ रोकने का प्रयत्न किया। ईसाई मिशनरी देश की भोली-भाली जनता को प्रलोभन देकर धर्मांतरण करा रही थी।

इसका विरोध भी स्वामी जी ने किया था।

स्वामी विवेकानंद ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी जिसका मूल उद्देश्य वेदो की ओर लोटाना था।

स्वामी विवेकानंद जी थे धर्म-संस्कृति के प्रबल समर्थक

विवेकानंद जी का बाल संस्कार धर्म और संस्कृति पर आधारित था। उन्हें बाल संस्कार के रूप में वेद – वेदांत, भगवत, पुराण, गीता आदि का ज्ञान मिला था। जिस व्यक्ति के पास इस प्रकार का ज्ञान हो वह व्यक्ति महान हो जाता है। समाज में वह पूजनीय स्थान प्राप्त कर लेता है। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वह किसी और ज्ञान का आश्रित नहीं रह जाता।

उन्होंने विद्यालय शिक्षा अवश्य प्राप्त की थी, किंतु उन्हें विद्यालयी शिक्षा सदैव बोझ लगा। यह केवल समय बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं था।  विद्यालयी शिक्षा अंग्रेजी शिक्षा नीति पर आधारित थी। जहां केवल ईसाई धर्म आदि का महिमामंडन किया गया था। यह शिक्षा समाज के लिए नहीं थी।समाज का एक बड़ा वर्ग जहां अशिक्षित था।

शिक्षा की कमी के कारण वह समाज निरंतर विघटन की ओर जा रहा था। 

अतः समाज में ऐसी शिक्षा की कमी थी जो समाज को सन्मार्ग पर ले जाए।

निरंतर सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा था, धर्म की हानि हो रही थी। स्वामी जी ने अपने बुद्धि बल का प्रयोग कर समाज को एकजुट करने का प्रयास किया। उन्होंने सभी मोतियों को एक माला में पिरोने का कार्य किया।

विवेकानंद जी ने जगह-जगह घूमकर धर्म-संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।

लोगों को, समाज को यह विश्वास दिलाया कि वह महान और दिव्य कार्य कर सकते हैं। बस उन्हें इच्छा शक्ति जागृत करनी है। उन्होंने माया और जगत मिथ्या हे लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया।

ईश्वर की सत्ता को परम सत्य के रूप में प्रकट किया।

स्वामी जी ने मठ तथा आश्रम की स्थापना कर धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया। उन्होंने ऐसे सहयोगी तथा शिष्य को तैयार किया। जो समाज के बीच जाकर, उनके बीच फैली हुई अज्ञानता को दूर करते थे।

धर्म तथा संस्कृति के वास्तविक मूल्यों को सामने रखने का प्रयत्न किया।

शरीर के प्रति स्वामी विवेकानंद जी के विचार

स्वस्थ शरीर होने की वकालत सदैव स्वामी विवेकानंद जी करते रहे। वह हमेशा कहते थे , स्वस्थ शरीर के रहते हुए ही स्वस्थ कार्य अर्थात अच्छे कार्य किए जा सकते हैं। अच्छी शक्तियां शरीर के भीतर तभी जागृत होती है, जब मन और शरीर स्वच्छ हो। वह स्वयं खेल-कूद और शारीरिक प्रतियोगिता में भाग लिया करते थे।

शारीरिक कसरत उनकी दिनचर्या में शामिल थी। उनका शरीर, कद-काठी उनके ज्ञान की भांति ही मजबूत और शक्तिशाली थी।

स्वामी विवेकानंद जी का वेदों की और लोटो से आशय

स्वामी जी के समय समाज में व्याप्त आडंबर, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा और विदेशी धर्म संस्कृति, भारतीय सनातन संस्कृति की नींव खोद रही थी। उन्होंने स्वयं वेद-वेदांत, पुराण तथा अन्य प्रकार के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया था। इस अध्ययन में वह निपुण हो गए थे। उन्होंने ईश्वर और जगत के बीच माया-मोह का अंतर जाने लिया था। वह सभी लोगों को ईश्वर की ओर अपना ध्यान लगाने के लिए प्रेरित किया। इसीलिए उन्होंने वेदों की ओर लौटो का नारा बुलंद किया।

इस नारे को लेते हुए वह विदेश भी गए, वहां उन्हें काफी सराहना मिली। अमेरिका, यूरोप, रूस, फ्रांस आदि विकसित देशों ने भी स्वामी जी के विचारों को सराहा। उनके विचारों से प्रेरित हुए, जिसके कारण वहां आश्रम तथा मठ की स्थापना हो सकी। वहां ऐसे शिक्षक तैयार हो सके जो स्वामी जी के विचारों को आगे लेकर जाए।

स्वामी विवेकानंद जी की प्रसिद्धि

स्वामी जी की प्रसिद्धि देश ही नहीं अपितु विदेश में भी थी। उनकी कुशाग्र बुद्धि और तर्कशक्ति का लोहा पूरा भारत तो मानता ही था। जब उन्होंने अमेरिका के शिकागो में अपना ऐतिहासिक भाषण धर्म सम्मेलन में दिया।

उनकी ख्याति रातो-रात विदेश में भी बढ़ गई।

स्वामी जी की प्रसिद्धि अब विदेशों में भी हो गई थी।

उनसे मिलने के लिए विदेश के बड़े से बड़े दार्शनिक, चिंतक, आदि लालायित रहा करते थे।

स्वामी जी से मुलाकात किसी भी विद्वान के लिए सौभाग्य की बात हुआ करती थी। स्वामी जी भारतीय सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते थे। सनातन धर्म से अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने वाले अनेकों दूसरे धर्म के प्रचारक भेंट करने को आतुर रहते। स्वामी जी के तर्कशक्ति के आगे बड़े से बड़ा विचारक, दार्शनिक आदि धाराशाही हो जाते। वह किसी भी साहित्य को बिना खोले बाहर सही अध्ययन करने की क्षमता रखते थे।

इस प्रतिभा ने स्वामी जी को और प्रसिद्धि दिलाई।

फ्रांस, जर्मनी, रूस और अमेरिका तथा अन्य देशों की ऐसी घटनाएं यह साबित करती है कि उनकी प्रसिद्धि किस स्तर पर थी।

फ़्रांस के महान दार्शनिक के घर जब वह आतिथ्य हुए तब उनकी पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठ की पुस्तक को एक घंटे में बिना खोलें अध्ययन किया। यह अध्ययन पृष्ठ संख्या सहित, अक्षरसः था।

इस प्रतिभा से फ्रांस का वह दार्शनिक स्वामी जी का शिष्य हो गया।

अंग्रेजी भाषा के प्रतिस्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण

स्वामी विवेकानंद अपनी मातृभाषा के प्रति समर्पित थे। वह बांग्ला, संस्कृत, फ़ारसी आदि भाषाओं को जानते थे। इन भाषाओं में वह काफी अच्छा ज्ञान रखते थे। अंग्रेजी भाषा के प्रति उनका दृष्टिकोण अलग था। वह अंग्रेजी भाषा को कभी भी हृदय से स्वीकार नहीं करते थे। उनका मानना था जिन लुटेरों और आतंकियों ने उनकी मातृभूमि को क्षति पहुंचाई है।

उनकी भाषा को जानना भी पाप है।

इस पाप से वह सदैव बचते रहे।

जब आभास हुआ, भारतीय संस्कृति को तथाकथित अंग्रेजी विद्वानों के सामने रखने के लिए उनकी भाषा की आवश्यकता होगी। स्वामी जी ने उनकी भाषा में, उनको समझाने के लिए अंग्रेजी का अध्ययन किया। वह अंग्रेजी में इतने निपुण हो गए, उन्होंने अंग्रेजी के महान दार्शनिक, चिंतकों और विचारकों के साहित्य को विस्तारपूर्वक अक्षर से अध्ययन किया। इतना ही नहीं उनकी महानता को बताने वाले, सभी धार्मिक साहित्य का भी गहनता से अध्ययन किया। जिसका परिणाम हम अनेकों धर्म सम्मेलनों में देख चुके हैं।

मतिभूमि के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का प्रेम

विवेकानंद जी की देशभक्ति अतुलनीय थी। एक समय की बात है ,स्वामी जी विदेश यात्रा कर समुद्र मार्ग से अपने देश लौटे। यहां जहाज से उतर कर उन्होंने मातृभूमि को झुककर प्रणाम किया। यह संत यहीं नहीं रुका।जमीन में इस प्रकार लौटने लगा, जैसे प्यास से व्याकुल कोई व्यक्ति। यह प्यास अपनी मातृभूमि से मिलने की थी, जो उद्गार रूप में प्रकट हुई थी। स्वामी जी अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा और सम्मान की भावना संभवत अपने बाल संस्कारों से लिए थे।

बालक नरेंद्र ने अपने दादा को देखा था।

जिन्होंने पच्चीस वर्ष की अल्पायु में ही अपने परिवार का त्याग कर सन्यास धारण किया था। ऐसा कौन युवा होता है जो इतनी कम आयु में संन्यास लेता है।

संभवत नरेंद्र ने भी राष्ट्रभक्ति का प्रथम अध्याय अपने घर से ही पढ़ा था।

स्वामी विवेकानंद जी के अद्भुत सुविचार

१.  कोई तुम्हारी मदद नहीं कर सकता अपनी मदद स्वयं करो तुम खुद के लिए सबसे अच्छे मित्र हो और सबसे बड़े दुश्मन भी। ।

स्वामी जी कहते हैं तुम्हारी मदद कोई और नहीं कर सकता , जब तक तुम स्वयं की मदद नहीं करते। मनुष्य को यहां तक कि किसी के मदद की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वयं अपनी मदद कर सकता है। व्यक्ति स्वयं का जितना अच्छा मित्र होता है, उतना ही बड़ा दुश्मन भी। यह उसके व्यवहार पर निर्भर करता है कि, वह स्वयं से दोस्ती करना चाहता है या दुश्मनी।

२.  हम जितना ज्यादा बाहर जाएंगे और दूसरों का भला करेंगे हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होता जाएगा और परमात्मा उसमें निवास करेंगे। ।

भारत में नर सेवा को नारायण सेवा माना गया है। स्वामी जी इसका पुरजोर समर्थन करते हैं, उन्होंने कहा है व्यक्ति जितना बाहर निकल कर दीन – दुखीयों  और आवश्यक लोगों की सेवा करेगा। उस व्यक्ति का हृदय उतना ही पवित्र होगा। पवित्र हृदय में ही परमात्मा का सच्चा निवास होता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए वह दिन दुखियों की सेवा करे।

३. कुछ ऊर्जावान व्यक्ति एक साल में इतना कर देता है , जितना भीड़ एक हजार साल में नहीं कर सकती। ।

बड़ी सफलता और उपलब्धि हासिल करने वाले कुछ ही लोग होते हैं।

ऐसे ऊर्जावान व्यक्ति कुछ ही समय में ऐसा कार्य कर दिखाते हैं, जो बड़े से बड़ा जनसमूह हजारों साल में नहीं कर सकता। वर्तमान समय में भी ऐसे लोग विद्यमान है।

ऐसे ही लोगों के कारण आज का विज्ञान सूरज और चांद से आगे निकल चुका है।

४. कोई एक विचार लो , और उसे ही जीवन बना लो उसी के बारे में सोचो , उसके सपने देखो उसे मस्तिष्क में , मांसपेशियों में , नसों में और शरीर के हर हिस्से में डूब जाने दो। दूसरे सभी विचारों को अलग रख दो यही सफल होने का तरीका है। ।

स्वामी जी का मानना था किसी एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके पीछे दिन-रात की मेहनत लगानी पड़ती है। उसे अपने प्रत्येक इंद्रियों में समाहित करना पड़ता है। उसके प्रति लगन समर्पण का भाव रखना पड़ता है , तब जाकर सफलता प्राप्त होती है। जो इस प्रकार के यत्न नहीं करते उन्हें सफलता दुष्कर लगती है।

५.  विकास ही जीवन है और संकोच ही मृत्यु प्रेम ही विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच एतव प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है जो प्रेम करता है , वह जीता है जो स्वार्थी है , वह मरता है एतव प्रेम के लिए ही प्रेम करो क्योंकि प्रेम ही , जीवन का एकमात्र नियम है। ।

माना जाता है प्रेम से शुद्ध और कोई चीज नहीं होती। व्यक्ति के जीवन में प्रेम अहम भूमिका निभाती है , प्रेम जितना शुद्ध होगा व्यक्ति उतना ही योग्य होगा। जिस व्यक्ति के मन में स्वार्थ और संकोच की भावना होती है , वह मृत्यु के समान बर्ताव करती है। जीवन का एक मात्र सत्य प्रेम है प्रेम के प्रति व्यक्ति को समर्पण भाव रखते हुए स्वीकार करना चाहिए।

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स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की महत्वपूर्ण तिथियां

  • 12 जनवरी 1863 – कोलकाता (वर्तमान पश्चिम बंगाल) में जन्म ।
  • 1871 प्राथमिक शिक्षा के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्था कोलकाता में दाखिला।
  • 1877 परिवार रायपुर चला गया।
  • 1879 प्रेसिडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में अव्वल हुए।
  • 1880 जनरल असेंबली इंस्टिट्यूट में प्रवेश।
  • 1881 ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की
  • नवंबर 1881 रामकृष्ण परमहंस से भेंट।
  • 1882 – 86 रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में रहे
  • 1884  स्नातक की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया
  • 1884 पिता का स्वर्गवास
  • 16 अगस्त 1886 रामकृष्ण परमहंस का निधन
  • 1886 वराहनगर मठ की स्थापना किया
  • 1887 वडानगर मठ से औपचारिक सन्यास धारण किया
  • 1890-93 परिव्राजक के रूप में भारत भ्रमण किया
  • 25 दिसंबर 1892 कन्याकुमारी में निवास किया
  • 13 फरवरी 1893 प्रथम व्याख्यान सिकंदराबाद में दिया
  • 31 मई 1893 मुंबई से अमेरिका के लिए जल मार्ग से रवाना हुए
  • 25 जुलाई 1893 कनाडा पहुंचे
  • 30 जुलाई 1893 शिकागो शहर पहुंचे
  • अगस्त 1893 हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन राइट से मुलाकात हुई
  • 11 सितंबर 1893 विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में ऐतिहासिक व्याख्यान
  • 16 मई 1894 हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
  • नवंबर 1894 न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना
  • जनवरी 1895 न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ

अगस्त 1895 वह पेरिस गए

  • अक्टूबर 1895 लंदन में अपना व्याख्यान दिया
  • 6 दिसंबर 1895 न्यूयॉर्क वापस आए
  • 22-25 मार्च 1886 वह पुनः लंदन आ गए
  • मई तथा जुलाई 1896 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया
  • 28 मई 1896 ऑक्सफोर्ड में मैक्स मूलर से भेंट किया
  • 30 दिसंबर 1896 नेपाल से भारत की ओर रवाना हुए
  • 15 जनवरी 1897 कोलंबो श्री लंका पहुंचे
  • जनवरी 1897 रामेश्वरम में उनका जोरदार स्वागत हुआ साथ ही एक व्याख्यान भी
  • 6- 15 1897 मद्रास में भ्रमण किया
  • 19 फरवरी 1897 वह कोलकाता आ गए
  • 1 मई 1897  रामकृष्ण मिशन की स्थापना की
  • मई- दिसंबर 1897 उत्तर भारत की महत्वपूर्ण यात्रा की
  • जनवरी 1898 कोलकाता वापस हो गए
  • 19 मार्च 1899 अद्वैत आश्रम की स्थापना की
  • 20 जून 1899 पश्चिम देशों के लिए दूसरी यात्रा का आरंभ किया
  • 31 जुलाई 1899 न्यूयॉर्क पहुंचे
  • 22 फरवरी 1900 सैन फ्रांसिस्को में वेदांत की स्थापना की
  • जून 1900 न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा का आयोजन हुआ
  • 26 जुलाई 1900 यूरोप के लिए रवाना हुए
  • 24 अक्टूबर 1900 विएना , हंगरी , कुस्तुनतुनिया , ग्रीस , मिश्र आदि देशों की यात्रा किया
  • 26 नवंबर 1900 भारत को रवाना हुए
  • 6 दिसंबर 1900 बेलूर मठ में आगमन हुआ
  • 10 जनवरी 1901 अद्वैत आश्रम में भ्रमण किया
  • मार्च – मई1901 पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थ यात्रा की
  • जनवरी-फरवरी1902 बोधगया और वाराणसी की यात्रा की
  • मार्च 1902 बेलूर मठ वापसी हुई
  • 4 जुलाई 1902 स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि धारण की

स्वामी विवेकानंद जी पर आधारित कहानी

बालक नरेंदर बुद्धि का धनी था। वह अन्य विद्यार्थियों से बिल्कुल अलग था, जानने की जिज्ञासा उसके भीतर सदैव जागृत रहती थी।

स्वभाव से वह खोजी प्रवृत्ति का था।जब तक किसी विषय के उद्गम-अंत आदि का विस्तार से अध्ययन नहीं करता, चुप नहीं बैठा करता ।

यही कारण है उसका नाम  नरेंद्र नाथ दत्त  से  स्वामी विवेकानंद  हो गया ।

विवेकानंद कहलाने के पीछे भी उनके गुरु की अहम भूमिका है।

नरेंद्र बचपन से ही कुशाग्र और तीक्ष्ण बुद्धि के थे। वह किसी भी विषय को बेहद ही सरल और कम समय में अध्ययन कर लिया करते थे। उनका ध्यान विद्यालय शिक्षा पर अधिक नहीं लगता था।

वह उन्हें अरुचिकर विषय जान पड़ता था। 

विद्यालय पाठ्यक्रम को वह कुछ दिन में ही समाप्त कर लिया करते थे। इसके कारण उन्हें फिर भी अन्य विद्यार्थियों के साथ वर्ष भर इंतजार करना पड़ता था , यह उन्हें बोझिल लगता था।

नरेंद्र की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी , वह कुछ क्षण में पूरी पुस्तक का अध्ययन अक्षरसः कर लिया करते थे। उनकी इस प्रतिभा से उनके  गुरु रामकृष्ण परमहंस  काफी प्रभावित थे। नरेंद्र की इस प्रतिभा को देखते हुए वह प्यार से  विवेकानंद  पुकारा करते थे।

भविष्य में यही नरेंद्र स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

अल्पायु में स्वामी विवेकानंद ने वेद-वेदांत, गीता, उपनिषद आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन कर लिया था।

यह उनके स्मरण शक्ति का ही परिचय है।

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स्वामी विवेकानंद जी की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। मनुष्य होते हुए भी उनमें आलौकिक गुण विद्यमान थे जो उन्हें औरों से अलग बनाता था। भारतीय ही नहीं बल्कि पुराने जमाने में विदेश में भी उनकी प्रशंसा की जाती थी और वहां के लोग विवेकानंद जी पर किताब लिखते थे और उनकी प्रशंसा करते थे।

ऐसे महान व्यक्ति सदी में एक बार जन्म लेते हैं। इनसे जितना हो सके उतना लोगों को सीखना चाहिए और अपने जीवन को बदलना चाहिए। आशा है यह लेख आपको काफी पसंद आया होगा और आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। आप अपने विचार हम तक कमेंट सेक्शन में लिखकर पहुंचा सकते हैं।

आप हमारे द्वारा लिखी अन्य महान लोगों पर जीवनी भी पढ़ सकते हैं नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से

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4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani”

महान व्यक्तियों में स्वामी विवेकानंद जी को मैं काफी फॉलो करता हूं और वह मेरे लिए काफी बड़े प्रेरणा के स्रोत हैं. उनके द्वारा कहा गया एक एक शब्द एक किताब के बराबर है जिसके मूल्य को नापना बहुत मुश्किल है. उनकी जीवनी लिखकर आपने बहुत अच्छा काम किया है

स्वामी विवेकानंद जी एक महान व्यक्ति थे जिनका चरित्र चित्रण आपने बहुत अच्छे तरीके से किया है. परंतु इसमें कुछ बातें नहीं लिखी जो मैं चाहता हूं कि आप यहां पर लिखें जैसे कि उन्होंने कौन सी स्पीच दी थी।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरू रामकृष्ण परमहंस जी थे जो काली के उपासक थे

बहुत बहुत साधुवाद आपकी पुरी टीम को जिन्होंने इतनी मेहनत कर के हम सभी तक स्वामी जी के जीवन की अमुल्य बातें पहुचाई

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Biography in Hindi (पृष्ठभूमि, इतिहास और मृत्यु)

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Swami Vivekananda Biography in Hindi- स्वामी विवेकानन्द एक ऐसा नाम है जिसे किसी भी प्रकार के परिचय की आवश्यकता नहीं है। वह एक प्रभावशाली व्यक्तित्व हैं जिन्होने पश्चिमी दुनिया को हिंदू धर्म के बारे में व्यापक जानकारी उपलब्ध करवाई थी। उन्होंने 1893 में शिकागो की धर्म संसद में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया जहां पर उनके द्वारा दिया गया भाषण विश्व प्रसिद्ध हुआ था।स्वामी विवेकानन्द की जयंती के उपलक्ष्य में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। स्वामी विवेकानन्द ने विश्व के कल्याण के लिए 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन स्थापना की थी, जिसकी शाखाएं दुनिया के कई देशों में हैं। स्वामी विवेकानंद के बारे में गुरुदेव रविंद्र ठाकुर ने कहा था यदि भारत को आप करीब से जाना चाहते हैं’ तो आप विवेकानंद के जीवन को पढ़िए। उनमें आपको सभी चीज केवल सकारात्मक ही मिलेंगे नकात्मक कुछ भी नहीं मिलेगा।

ऐसे में विवेकानंद के जीवन परिचय के बारे में जानने की  जिज्ञासा हर एक व्यक्ति  के मन में आ रही है इसलिए आज के लेख में स्वामी विवेकानन्द विकिपीडिया हिंदी में,स्वामी विवेकानन्द हिंदी में | Swami vivekananda in Hindi, स्वामी विवेकानन्द का परिचय | introduction of swami vivekananda, स्वामी विवेकानन्द का जीवन | life of swami Vivekananda, स्वामी विवेकानन्द का बचपन | Childhood of Swami Vivekananda, स्वामी विवेकानन्द शिक्षा | Swami Vivekanandaeducation,स्वामी विवेकानन्द इतिहास | Swami Vivekananda History, स्वामी विवेकानन्द पत्नी | Swami vivekananda Wife, स्वामी विवेकानन्द संगठनों की स्थापना | vivekananda organizations founded,books written by swami Vivekananda, स्वामी विवेकानन्द की मृत्यु संबंधित जानकारी प्रदान करेंगे इसलिए आप लोग इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े।                    

स्वामी विवेकानंद का जन्म (Swami Vivekanand Birth)

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था । उनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था। उनके पिता हाईकोर्ट (High Court) के एक प्रसिध्द वकील (Lawyer) थे। नरेंद्र के पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता (western) के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। नरेंद्र की माता भुवनेश्वरी देवी जी धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका ज्यादातर समय भगवान शिवजी की आराधना में ही बीतता था। नरेंद्र बचपन से ही तीव्र बुध्दि के थे और उनके अंदर परमात्मा को पाने की लालसा काफी प्रबल थी। इसी वजह से वे पहले ‘ब्रह्रा समाज’ (Brahmo Samaj) में गए, लेकिन वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ। वे वेदांत और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए जरूरी योगदान देना चाहते थे। 

स्वामी विवेकानन्द विकिपीडिया हिंदी में | Swami Vivekananda wikipedia in Hindi

दैवयोग से विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेंद्र पर आ गया। घर की स्थिति बहुत खराब थी। बहुत गरीब होने के बाबजूद भी नरेंद्र बड़े ही अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते थे और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते थे। स्वामी विवेकानंद अपना जीवन गुरुदेव श्रीरामकृष्ण को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की चिंता किए बिना, खुद भोजन की बिना चिंता के गुरू की सेवा में सतत संलग्न रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था।

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Swami Vivekananda Jivani

विवेकानंद बड़े स्वप्न द्रष्टा थे। उन्होंने एक नए समाज की कल्पना की थी। ऐसा समाज जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद नहीं रहे। विवेकानंद जी को युवकों से बड़ी आशा थी। आज के युवकों के लिए ही इस ओजस्वी सन्यासी का यह जीवन वृत्त लेखक उनके समकालीन समाज एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में उपस्थित करने का प्रयत्न किया है यह भी प्रयास रहा है कि इसमें विवेकानंद के सामाजिक दर्शन एवं उनके मानवीय रूप का प्रकाश पड़े। 

बचपन से ही नरेंद्र अत्यंत कुशाग्र बुध्दि के और नटखट थे। परिवार में आध्यात्मिक माहौल होने से उनके अंदर बचपन से ही आध्यात्म (spiritual) का बीज पड़ चुका था। उनके मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी। वे कभी-कभी ऐसे प्रश्न पूछते कि माता-पिता और कथावाचक पंडित जी भी चक्कर में पड़ जाते थे। 

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स्वामी विवेकानन्द हिंदी में | Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानन्द हमारे देश के एक महान धार्मिक सुधारक थे। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। उनके पिता बिस्वनाथ दत्ता एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माँ भुवनेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। वह बहुत बुद्धिमान और असाधारण थे। आध्यात्मिक विचारों में उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन से प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की। 1884 में  स्वामी विवेकानंद ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में ऑनर्स के साथ बीए की पढ़ाई को पूरा किया था। श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलना उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ वह रामकृष्ण के शिष्य बन गए और पैदल ही पूरे भारत का भ्रमण किया था।  स्वामी विवेकानंद पश्चिमी देशों में भारतीय हिंदू धर्म दर्शन का प्रचार और प्रसार भी किया था।

उन्होंने जाति व्यवस्था और छुआछूत का डटकर विरोध किया। 1893 में शिकागो में धार्मिक सम्मेलन में भाग लिया और दुनिया भर में मानवता का संदेश दिया। गरीबों को सामाजिक सेवा प्रदान करने के लिए उन्होंने 1897 में बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। उन्होंने भारत में विभिन्न स्थानों पर कई अस्पताल, पुस्तकालय, स्कूल भी स्थापित किए। स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के युवाओं को प्रेरित किया। स्वामी विवेकानन्द की जयंती भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है।  स्वामीजी ने 4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली।  आज स्वामी विवेकानंद वाले इस संसार में नहीं है लेकिन उनकी स्मृति सदैव हमारे दिलों में जीवंत रहेगी

स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम

स्वामी जी के गुरू का नाम रामकृष्ण परमहंस (Ramkrishna Paramhans) था । एक बार किसी ने गुरुदेव की सेवा में निष्क्रियता दिखायी और घृणा से नाक-भौं सिकोड़ी। यह देखकर स्वामी जी क्रोधित हो गए थे। उस गुरू भाई को पाठ पढाते हुए स्वामी जी गुरू की प्रत्येक वस्तु से प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरू के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे स्वयं के अस्तित्व को गुरूदेव के स्वरूप में विलीन कर सके।   

 स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध है?

25 वर्ष की आयु में नरेंद्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए। इसके बाद उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की । सन् 1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद हो रही थी। स्वामी विवेकानंद उसमें भारत के प्रतिनिधि बनकर पहुंचे। यूरोप और अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत कोशिश की कि स्वामी को परिषद में बोलने का मौका नहीं मिले। 

एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला, किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चौंक गए। अमेरिका में उनका बहुत स्वागत सत्कार हुआ। वहां स्वामी जी के भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। वे अमेरिका में तीन साल तक रहे और लोगों को तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। उनकी बोलने की शैली और ज्ञान को देखते हुए वहां के मीडिया ने उन्हें ‘साइक्लॉनिक हिंदू नाम’ दिया। 

स्वामी विवेकानंद इतने घंटे करते थे ध्यान (Meditation)

स्वामी जी रोज ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर तीन घंटे ध्यान करते थे। इसके बाद वे अन्य रोजना के काम में व्यस्त होते और यात्रा पर निकलते । इसके बाद वे दोपहर और शाम को भी घंटों तक ध्यान में रहते थे। रात के वक्त उन्होंने तीन-चार घंटे तक ध्यान किया है। “आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बगैर विश्व अनाथ हो जाएगा।” वे वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरू थे। 

स्वामी विवेकानंद के सिध्दांत

स्वामी जी ने भारत में ब्रम्हा समाज, रामकृष्ण मिशन और मठों की स्थापना करके लोगों को आध्यात्म से जोड़ा। उनका एक ही सिध्दांत था कि भारत देश के युवा इस देश को काफी आगे ले जाएं। उन्होंने कहा था कि अगर मुझे सौ युवा मिल जाएं, जो पूरी तरह समर्पित हों तो वे भारत की तस्वीर बदल देंगे। शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास हो सके। शिक्षा से बच्चे के चरित्र का निर्माण और वह आत्मनिर्भर बने। उन्होंने कहा था कि धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा ना देकर आचरण और संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।

स्वामी विवेकानन्द का बचपन | Childhood of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द का जन्म सन 1863 में 12 जनवरी के दिन हुआ था। उनका जन्म कोलकाता के बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानन्द को बचपन में इनकी माता भुवनेश्वरी देवी ने इनका नाम वीरेश्वर रखा था जो बाद में इनका नाम को बदलकर नरेंद्र नाथ दत्त रख दिया गया था। जिन्हें प्यार से नरेन भी पुकारा जाता था। उनकी माता धार्मिक प्रवृत्ति की एक विद्वान महिला थी। ऐसे में स्वाभाविक था कि उनके घर में ही अपने मां के द्वारा हिंदू धर्म और संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला। स्वामी विवेकानंद जी पर उनकी मां का इतना प्रभाव पड़ा कि वह घर में ही भगवान के भक्ति और ध्यान में खो जाया करते थे। स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से ही ईश्वर के बारे में जानने की काफी इच्छा थी। स्वामी विवेकानंद जी अन्य बच्चों से बिल्कुल ही अलग थे। छोटी उम्र में ही, वह अलग-अलग religion जैसे हिंदू-मुस्लिम और अमीर-गरीब में भेदभाव करने के लिए सवाल उठाते थे।जब स्वामी विवेकानन्द छोटे थे तो उन्हें दो तरह के सपने आए थे, एक बहुत पढ़ा लिखा आदमी है जिसके पास काफी धन संपत्ति है समाज में उसका नाम काफी प्रचलित है। एक सुंदर घर है और परिवार बच्चे हैं।जबकि दूसरे तरफ एक साधु है जो एक जगह से दूसरे जगह यात्रा करते रहता है उन्हें साधारण जीवन पसंद है पैसा एवं दूसरी सुख सुविधा देने वाली चीज उन्हें खुश नहीं करती है।

स्वामी विवेकानंद जी का इच्छा ताकि वह भगवान को जाने और उनके पास चले जाए। स्वामी विवेकानंद जी जानते थे कि इनमें से वह कुछ भी नहीं बन सकते हैं। इसलिए उन्होंने साधु का रूप धारण कर लिया।

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स्वामी विवेकानन्द शिक्षा | Swami Vivekananda Education

  • स्वामी विवेकानन्द  को 1871 में ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूट में भर्ती कराया गया था।
  • 1877 में जब स्वामी विवेकानन्द तीसरी कक्षा में थे तभी उनकी पढ़ाई बाधित हो गयी, दरअसल उनके परिवार को किसी कारणवश अचानक रायपुर जाना पड़ा।
  • 1879 में, अपने परिवार के कलकत्ता लौटने के बाद, वह प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करने वाले पहले छात्र बने।
  • वह दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य जैसे विभिन्न विषयों के जिज्ञासु पाठक थे। उन्हें वेद, उपनिषद, भगवत गीता, रामायण, महाभारत और पुराण जैसे हिंदू धर्मग्रंथों में भी गहरी रुचि थी। नरेंद्र भारतीय पारंपरिक संगीत के विशेषज्ञ थे और हमेशा शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में भाग लेते थे।
  • 1881 में उन्होंने ललित कला परीक्षा उत्तीर्ण की;1884 में उन्होंने कला से स्नातक की डिग्री पूरी की।
  • इसके बाद उन्होंने 1884 में अच्छी योग्यता के साथ बीए की परीक्षा पास की और फिर उन्होंने कानून की पढ़ाई की।
  • 1884 का समय, जो स्वामी विवेकानन्द के लिए बेहद दुखद था, क्योंकि इसी समय उन्होंने अपने पिता को खोया था। पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर अपने 9 भाई-बहनों की जिम्मेदारी आ गयी, लेकिन वे घबराये नहीं और अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहने वाले विवेकानन्द ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई।
  • 1889 में नरेंद्र का परिवार कोलकाता लौट आया। बचपन से ही विवेकानन्द कुशाग्र बुद्धि के थे, जिसके कारण उन्हें एक बार फिर स्कूल में प्रवेश मिल गया। दूरदर्शी समझ और कठोरता के कारण उन्होंने 3 साल का कोर्स एक साल में पूरा कर लिया।

स्वामी विवेकानन्द पत्नी | Swami Vivekananda Wife

स्वामी विवेकानन्द एक ब्रह्मचारी सन्यासी थे। क्योंकि जब यह  विदेश दौरे पर थे और भिन्न-भिन्न जगहों पर अपना व्‍याख्‍यान देने का कार्य करते थे इसी बीच के भाषण को सुनकर एक महिला काफी प्रभावित हुई और महिला उनके आप पास आकर उनसे बोली की मैं आपसे शादी करना चाहती हूं ताकि उसे भी उनकी तरह प्रतिभाशाली पुत्र प्राप्त हो। तब स्वामी विवेकानंद जी इनके बातों को सुनकर उन्हें कहा कि मैं एक संन्यासी हूं इस वजह से मैं शादी के बंधन में बंध नहीं सकता हूं। लेकिन मैं आपका पुत्र बनना स्वीकार कर सकता हूं ऐसा करने से नहीं मेरा सन्यास टूटेगा और आपको पुत्र की प्राप्ति हो जाएगा। महिला इनके बातों को सुनकर स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ी और बोली आप महान है। आप ईश्वर के ही एक रूप है जो किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते हैं।

स्वामी विवेकानन्द संगठनों की स्थापना | Swami vivekananda Organizations Founded

मई 1897 को स्वामी विवेकानन्द कलकत्ता लौट आए और उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य नए भारत का निर्माण करने के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और स्वच्छता की ओर बढ़ना था।

साहित्य, दर्शन और इतिहास के रचयिता स्वामी विवेकानन्द ने अपनी प्रतिभा का लोहा सभी को मनवाया और अब वे युवाओं के लिए आदर्श बन गये।

1898 में स्वामी जी ने बेलूर मठ की स्थापना की – Belur Math जिसने भारतीय जीवन दर्शन को एक नया आयाम दिया।

इसके अलावा स्वामी विवेकानन्द जी ने दो अन्य मठों की स्थापना एवं स्थापना की।

स्वामी विवेकानन्द संगठनों की स्थापना | Books Written by Swami Vivekananda

पवित्र और दिव्य आत्मा स्वामी विवेकानन्द को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। वैश्विक गांव उन्हें एक हिंदू संत, एक योग गुरु, एक दार्शनिक, एक शिक्षक, एक लेखक और एक असाधारण वक्ता के रूप में जानता है। स्वामी विवेकानन्द की पुस्तकों की सूची नीचे दी गई है:-

  • ज्ञान योग: ज्ञान का योग 
  • कर्म योग: क्रिया का योग 
  • राजयोग: आंतरिक प्रकृति पर विजय 
  • माई मास्टर 
  • स्वामी विवेकानन्द स्वयं पर कोई उत्पाद नहीं मिला।
  • स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएँ 
  • ध्यान और उसकी विधियाँ 
  • द मास्टर एज़ आई सॉ हिम: द लाइफ़ ऑफ़ द स्वामी विवेकानन्द
  • विवेकानन्द 

स्वामी विवेकानन्द इतिहास | Swami Vivekananda History

महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। असाधारण प्रतिभा के धनी व्यक्ति का जन्म कोलकाता में हुआ था और उन्होंने अपनी जन्मभूमि को पवित्र बनाया था। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, लेकिन बचपन में वे सभी को नरेंद्र के नाम से ही बुलाते थे।स्वामी विवेकानन्द के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो उस समय कलकत्ता उच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित और सफल वकील थे जिनकी वकालत के साथ-साथ अंग्रेजी और फ़ारसी भाषाओं पर भी उनकी अच्छी पकड़ के चर्चे खूब होते थे।

विवेकानन्द की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, जो धार्मिक विचारों वाली महिला थीं, वह भी बहुत प्रतिभाशाली महिला थीं, जिन्होंने रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का महान ज्ञान प्राप्त किया था। साथ ही वह एक प्रतिभाशाली और बुद्धिमान महिला थीं जिन्हें अंग्रेजी भाषा की भी अच्छी समझ थी।वहीं स्वामी विवेकानन्द पर उनकी माँ का इतना गहरा प्रभाव था कि वह घर में ही ध्यान में लीन रहते थे और इसके साथ ही उन्होंने अपनी माँ से ही शिक्षा भी प्राप्त की थी। इसके साथ ही स्वामी विवेकानन्द पर उनके माता-पिता के गुणों का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा अपने घर से ही मिली।

स्वामी विवेकानन्द के माता और पिता के अच्छे संस्कारों और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और उच्च स्तर की सोच मिली।ऐसा कहा जाता है कि नरेंद्रनाथ बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और बुद्धिमान व्यक्ति थे, वह अपनी प्रतिभा के इतने धनी थे कि एक बार जो व्यक्ति उनकी आंखों के सामने से गुजर जाता था वह उन्हें कभी नहीं भूलता था और दोबारा उन्हें वह काम नहीं करना पड़ता था। दोबारा। मुझे पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़ी

युवा दिनों से ही उनकी रुचि अध्यात्म के क्षेत्र में थी, वे हमेशा शिव, राम और सीता जैसे भगवान के चित्रों के सामने ध्यान का अभ्यास करते थे। ऋषि-मुनियों और सन्यासियों की कहानियाँ उन्हें सदैव प्रेरणा देती हैं। आगे चलकर यही नरेन्द्र नाथ पूरे विश्व में ध्यान, अध्यात्म, राष्ट्रवाद, हिन्दू धर्म और संस्कृति के वाहक बने और स्वामी विवेकानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए।

स्वामी विवेकानन्द का परिचय | introduction of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द का परिचय निम्न वाक्य द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं जिसे आप लोग ध्यानपूर्वक पढ़े:-

  • स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म कोलकाता के कायस्‍थ परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।
  • इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता जो एक पेशे से कोलकाता हाई कोर्ट के वकील थे और उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो धार्मिक विचारधारा वाली महिला थी।
  • स्वामी विवेकानन्द जी 1871 में 8 साल के उम्र में स्कूल गए थे। 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किए थे।
  • स्वामी विवेकानंद जी केवल 25 साल की उम्र में सांसारिक मोह माया को त्याग कर संयासी बन गए।
  • स्वामी विवेकानंद जी का मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से 1881 में कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर में हुआ था।
  • स्वामी विवेकानन्द जब रामकृष्ण परमहंस मिले तो एक सवाल किया था जो कई लोगों से कर चुके थे, क्या आपने भगवान को देखा है रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया कि हमने देखा है ‘मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं जितना तुम्हें’फर्क सिर्फ इतना है कि उन्हें में तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं।
  • अमेरिका में हुई धर्म संसद में जब स्वामी विवेकानन्द जी अमेरिका के भाइयों और बहनों संबोधन से भाषण शुरू किया तो 2 मिनट तक आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में तालियां बजती रही।
  • स्वामी विवेकानन्द 1 मई 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना किए थे। और गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना 9 दिसंबर 1898 में किए थे।
  • स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन के तारीख यानी 12 जनवरी को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।
  • स्वामी विवेकानन्द केवल 39 साल की उम्र में 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित रामकृष्‍ण मठ में ध्‍यानमग्‍न अवस्‍था में महासमाध‍ि धारण कर प्राण त्‍याग द‍िए।

स्वामी विवेकानन्द का जीवन | Life of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता एक कायस्थ परिवार में हुए था। इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त को कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे और मां का नाम भुनेश्वरी देवी जो एक धार्मिक विचार की महिला थी, और हिंदू धर्म के प्रति कफि आस्था रखती थी। नरेंद्र को 9 भाई बहन थे। दादा जी का नाम दुर्गाचरण दत्त फारसी और संस्कृत के विद्वान वक्ति थे। वे भी अपने घर परिवार को छोड़कर साधु बन गए। स्वामी विवेकानन्द जी का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था प्यार से लोग उन्हें नरेंद्र बुलाया करते थे। ये बचपन से अत्यंत कुशाग्र और बुद्धिमान के साथ बहुत नटखट भी थे। बचपन में अपने सहपाठियों के साथ मिलकर काफी शरारत किया करते थे, कभी-कभी मौका मिलने पर अधियापको से भी सरारत करने से नहीं चूकते थे।घर में नियमित रूप से पूजा पाठ होता रहता और साथ ही रामायण, गीता, महाभारत जैसे पुरानो की पढ़ होते रहता था। इस कारण से उन्हें बचपन से ही ईश्वर के प्रति जानने की इच्छा उनके मन में जागृत होने लगा। भगवान को जानने की उत्सुकता में माता पिता कुछ ऐसे सवाल पूछ देते की जानने के लिऐ उन्हे ब्रहमणो के यहा जाना पढ़ता था। 1984 में उनके पिता की मृत्यु के बाद  पिता जी साथ छूट गया और परिवार की सारी दायित्व उन्ही पर आ गया।

 स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन

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  • जब तक तुम अपने आप में विश्वास नहीं करोगे, तब तक भगवान में विश्वास नहीं कर सकते। 
  •  हम जो भी हैं हमारी सोच हमें बनाती है, इसलिए सावधानी से सोचें, शब्द व्दितीय हैं पर सोच                          रहती है और दूर तक यात्रा करती है। 
  • उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त ना कर सको। 
  •  हम जितना बाहर आते हैं और जितना दूसरों का भला करते हैं, हमारा दिल उतना ही शुध्द होता है और उसमें उतना ही भगवान का निवास होता है। 
  • सच हजारों तरीके से कहा जा सकता है, तब भी उसका हर एक रूप सच ही है। 
  • संसार एक बहुत बड़ी व्यायामशाला है, जहां हम खुद को शक्तिशाली बनाने आते हैं।
  • बाहरी स्वभाव आंतरिक स्वभाव का बड़ा रूप है।
  • भगवान को अपने प्रिय की तरह पूजना चाहिए। 
  • ब्रम्हांड की सारी शक्तियां हमारी हैं। हम ही अपनी आंखों पर हाथ रखकर रोते हैं कि अंधकार है।

स्वामी विवेकानन्द की मृत्यु | Swami Vivekananda Death

4 जुलाई 1902 को, स्वामी विवेकानन्द की मृत्यु उस समय हो गई जब वे अन्य दिनों की तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे, अपने अनुयायियों को शिक्षा दे रहे थे और वैदिक विद्वानों के साथ शिक्षाओं पर चर्चा कर रहे थे। ध्यान करने और अंतिम सांस लेने के लिए रामकृष्ण मठ में अपने कमरे में गए, यह मठ उन्होंने अपने गुरु के सम्मान में बनाया था। उनके अनुयायियों का मानना ​​था कि मृत्यु का कारण उनके मस्तिष्क में रक्त वाहिका का टूटना था, जो तब होता है जब कोई व्यक्ति निर्वाण प्राप्त करता है, जो आध्यात्मिक ज्ञान का उच्चतम रूप है जब 7 वां चक्र यानी मुकुट चक्र जो सिर पर स्थित होता है, खुलता है और फिर लाभ प्राप्त करता है। ध्यान करते समय महा समाधि। उनकी मृत्यु का समय रात्रि 9:20 बजे था। उनका अंतिम संस्कार उनके गुरु के सामने गंगा के तट पर चंदन की चिता पर किया गया।

Conclusion:

उम्मीद करता हूं कि हमारे द्वारा लिखा गया आर्टिकल Swami  Vivekanand ka  Jivan Parichay आप लोगों को काफी पसंद आया होगा ऐसे में आप हमारे आर्टिकल संबंधित कोई प्रश्न एवं सुझाव है तो आप तो हमारे कमेंट बॉक्स में आकर अपने प्रश्नों को पूछ सकते हैं हम आपके प्रश्नों का जवाब जरूर देंगे।

FAQ’s Swami Vivekananda Biography in Hindi

Q. स्वामी विवेकानंद की उनके गुरू से पहली भेंट कब हुई थी .

Ans.  नवंबर 1881 में स्वामी विवेकानंद की उनके गुरू से पहली भेंट हुई थी

Q. स्वामी विवेकानंद ने प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान कहां दिया था ?

Ans.  सिकंदराबाद में स्वामी विवेकानंद ने प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान दिया था । 

Q. स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन शिकागों में पहला भाषण कब दिया ?

Ans.  11 सितंबर 1893 में स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन शिकागों में पहला भाषण दिया 

Q. स्वामी विवेकानंद के माता-पिता का नाम क्या था ?

Ans.  माता का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था।

Q.स्वामी विवेकानन्द किस लिये प्रसिद्ध थे?

Ans.स्वामी विवेकानन्द (1863-1902) द्वारा 1893 विश्व धर्म संसद के दौरान दिया गया सबसे प्रसिद्ध भाषण, जिसमें उन्होंने अमेरिका में हिंदू धर्म का परिचय दिया और धार्मिक सहिष्णुता और उग्रवाद को समाप्त करने की अपील की, यही बात उन्हें  प्रसिद्ध बनती हैं।

Q.विवेकानन्द ने भारत के लिए क्या किया?

Ans.विवेकानन्द ने धर्मार्थ, सामाजिक और शैक्षिक प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए भारत में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, साथ ही रामकृष्ण मठ की स्थापना की, जो भिक्षुओं और आम भक्तों को आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करता है।

Q विवेकानंद का नारा क्या है?

Ans. स्वामी विवेकानन्द का एक नारा है ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।

Q. विवेकानन्द की मृत्यु किससे हुई?

Ans.4 जुलाई, 1902 को स्वामी विवेकानन्द का अचानक निधन हो गया, जब वे ध्यान में थे।  उनके मस्तिष्क में रक्त वाहिका का टूटना मृत्यु का संभावित कारण बताया गया था।

Q.स्वामी विवेकानन्द के गुरु कौन थे?

Ans. रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानन्द के गुरु थे।

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भारत के सबसे महान तेजस्वी प्रतिभा वाले व्यक्ति स्वामी विवेकानंद जी ने अपने अध्यात्मिक, धार्मिक ज्ञान के मध्यम से समस्त मानव जाति को अपने रचना ज्ञान से सिख दी। जिन्होंने पूरी दुनिया को भारत के संस्कृति से अवगत करवाया। उनका कहना था की अपने लक्ष्य को पाने के लिए तब तक कोशिश करनी चाइए, जबतक आपको आपका लक्ष्य प्राप्त न हो। वे हमेशा कर्म पर विश्वाश करते थे, उनका कहना था की जो जैसा कर्म केरेंगे कल आपको वैसा ही फल मिलेगा। स्वामी विवेकानंद के विचार को जो वेक्ति जो फॉलो करेगा, उसे सफलता हासिल करने से कोई नही रोक सकता.

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संक्षप्त परिचय, स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन(swami vivekananda biography in hind).

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकरसंक्रति के दिन कलकत्ता एक कायस्थ जाति के परिवार में हुए था। इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त को कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे और मां का नाम भुनेश्वरी देवी जो एक धार्मिक विचार की महिला थी, और हिंदू धर्म के प्रति कफि यास्था रखती थी। नरेंद्र को 9 भाई बहन थे। दादा जी का नाम दुर्गाचरण दत्त   फारसी और संस्कृत के विद्वान वक्ति थे। वे भी अपने घर परिवार को छोड़कर साधु बन गए।

यह भी पढ़े: महात्मा गांधी की जीवनी, परिचय

स्वामी विवेकानन्द जी का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था प्यार से लोग उन्हें नरेंद्र बुलाया करते थे। ये बचपन से अत्यंत कुशाग्र और दुधिमान के साथ बहुत नटखट भी थे। बचपन में अपने सहपाठियों के साथ बहुत किया करते थे, कभी-कभी मौका मिलने पर अधियापको से भी सरारत करने से नहीं चूकते थे।

उनकी मां धार्मिक विचार की महिला थी इसलिए उनके घर में नियमित रूप से पूजा पाठ होता रहता और साथ ही रामायण, गीता, महाभारत जैसे पुरानो की पढ़ होते रहता था। इस कारण से उन्हें बचपन से ही ईश्वर के प्रति जानने की इच्छा उनके मन में जागृत होने लगा। भगवान को जानने की उत्सुकता में माता पिता कुछ ऐसे सवाल पूछ देते की जानने के लिऐ उन्हे ब्रहमणो के यहा जाना परता। 1984 में उन्होंने अपने पिता जी साथ छूट गया और परिवार की सारी जिमेदार उन्ही पर आ गया

स्वामी विवेकानंद का शिक्षा( teachings of swami vivekananda)

स्वामी विवेकानन्द का प्रारम्भ शिक्षा उनके घर में ही हुआ। 1871 में 8 साल की उम्र में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन सस्थान में नामांकन करवाए, जहां से उन्होंने स्कूल की पढ़ाई की। 1877 अपने परिवार के साथ रायपुर चले गए फिर एक साल बाद 1877 में अपने घर या गए। कलकत्ता के प्रसिडेंसी कॉलेज   के परवेश परीक्षा में प्रथम डिविजन से पास होने वाला एक मात्रछात्र थे। कॉलेज के समय स्कूल में हो रहे खेल कूद प्रतियोगिता में हमें भाग लेते थे।

उन्होंने दर्शनसास्त्र, धर्म, सामाजिक विज्ञान, इतिहास, काला और साहित्य जैसे विषयों की शिक्षा प्राप्त किए थे। 

यह भी पढ़े: भारत के सबसे कम उम्र के महिला जासूस सरस्वती राजमणि का जीवनी 

इसके अलाव वेद , उपनिषद, भागवत, गीता, रामायण , महाभारत और कई हिंदू सस्त्रो का गहन अधियान किए थे। उसके बाद भारतीय सस्ती संगीत का भी प्रशिक्षण ग्रहण किए। स्कांतिश चर्च कॉलेज असेंबली इस्टीट्यूशन से पश्चिमी तर्क , पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास अध्ययन किए। 1884 में उन्हे काला स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

1860 में उन्होंने स्पेंसर का किताब एजुकेशन को बंगाली में अनुवाद किए। उसके बाद उन्होंने 1984 में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। महासभा सस्थां के प्रधाना अध्यापक ने लिखा नरेंद्र सच में एक बहुत बुद्धिमान वेक्ति हैं।

मैने कई सारे अलग अलग जगहों   यात्रा किए है, पर उनके जैसा प्रतिभाशाली वेक्ति कभी नही देख यहां ताकि वे जर्मन विश्वविद्यालय के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं देखें। इसलिए उन्हें श्रुतिधर भी कहा जाता था। इसका अर्थ है विलक्षण स्मृति वाला व्यक्ति होता है।

  स्वामी विवेकानंद ने david Hume, lmmanuel Kant, Johann Gottlieb fichte, Baruch spinoza, Georg W.F. Hegel, arthu schopenhauer, aguste comte, John Stuart mill और चार्ल्स डार्विन के कामों का अभ्यास किए थे।

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस ( Swami Vivekananda and Ramakrishna Paramhansa)

स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से ही ईश्वर के प्रति जानने का जिज्ञासा था इसीलिए उन्होंने एक बार महा ऋषि देवेंद्र नाथ से उन्होंने एक सवाल पूछा ‘क्या आपने कभी भगवान को देखा है?’ उनके इस सवाल को सुनकर महर्षि देवेंद्र आश्चर्य में पड़ गए। उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दिए। उसके बाद स्वामी जी ने रामकृष्ण परमहंस को ही अपना गुरु बना लिए। उनके बताए सदमार्ग पर चलने लगे।

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विवेकानंद जी अपने गुरु से इतना प्रभावित हुए की उनके प्रति उनके मन में कर्तव्यनिष्ठा और श्रद्धा की भावना बढ़ती गई। 1885 में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस कैंसर की बीमारी से ग्रसित थे।इसलिए उन्होंने उनके बहुत सेवा की और अंत में उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह से गुरु और शिष्य के बीच में एक मजबूत रिश्ता बन चुका था।

रामकृष्ण मठ की स्थापना (Ramakrishna Math Establishment)

उसके बाद उन्होंने अपने ग्रुप रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के बाद उन्होंने 12 नगरों में रामकृष्ण संघ की स्थापना की बाद में इनका नाम रामकृष्ण संघ से बदलकर रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद   मात्र 25 वर्ष के उम्र में उन्होंने अपना घर परिवार त्याग दिया और ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे और और गेरुआ वस्त्र धारण करने लगे। तभी से उनका नाम विवेकानंद स्वामी हो गया।

विवेकानंद स्वामी का भारत भ्रमण (Vivekananda Swami’s India tour)

स्वामी विवेकानन्द पूरे भारतवर्ष का भ्रमण पैदल यात्रा के दौरान काशी, प्रयाग, अयोध्या, बनारस, आगरा, वृंदावन इसके अलावा और कई जगह का भ्रमण किए। इस दौरान वे कई सारे राजा, गरीब, संत और ब्रहमणों के घर में ठहरे। इस यात्रा के दौरान कई सारे अलग अलग क्षेत्रों में जाति प्रथा और भेद भाव ज्यादा प्रचलित है। जाति प्रथा को हटाने के लिए बहुत कोशिश किए।

23 दिसंबर 1892 को भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी जा पहुंचे वहा पर उन्होंने तीन दिन तक समाधी में रहे। उसके बाद वे अपने गुरु भाई से मिलने के लिए राजस्थान के अबू रोड जा पहुंचे जहां अपने गुरु भाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तूर्यानंद से मिले। भारत की पूरी यात्रा देश की गरीबी और दुखी लोगो को देख कर इसेसे पुरे देश को मुक्त करने और दुनिया को भारत के प्रति सोच को बदलने का फैसला किया।

स्वामी विवेकानन्द अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन का भाषण (Swami Vivekananda’s speech at the World Conference of Religions of America)

1893 में स्वामी विवेकानन्द   भारत के ओर से अमेरिका के विश्व धर्म समेलन में हिस्सा लिए। इस धर्म समेलान में पूरी दुनिया के धर्म गुरु ने हिस्सा लिया था। इसमें में भाग लेने वाले सभी लोगो ने अपना धार्मिक किताब रखे और भारत के ओर से भागवत गीता को रखा गया। इस सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द जी को देख कर विदेश लोग काफी मजाक उड़ाते थे। पर उन्होंने कुछ भी नही बोले।

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जब वे मंच पर जाकर MY BROTHER’S AND SISTER’S OF AMERICA   से संबोधित कर भाषण देना शुरू केए। तब पूरा सभागार उन्हे तालियों की ग्रग्राहट से उनका स्वागत किया। अगले दिन अमेरिका के अखबारों उन्ही की चर्चा था।

एक पत्रकार ने लिखा था, वैसे तो धर्म सम्मेलन के सभी विद्वान ने बहुत अच्छी भाषण दी पर भारत के विद्वान ने पूरे अमेरिका का दिल जीत लिया। इसी तरह उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जिससे उस समय के नई लोकप्रिये छवि बनकर उभरे। और आज भी उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विद्वान माने जाते हैं।

स्वामी विवेकानंद का विश्व भ्रमन (Swami Vivekananda’s world tour)

धर्म सम्मेलन खत्म होने के बाद 3 साल तक अमेरिका में ही रह गए और वह हिंदू धर्म के वेदंग का प्रचार अमेरिका में अलग अलग जगहों पर जाकर किए। वही अमेरिका के प्रेस ने उन्हें   “ Cylonic Monik From India ” का नाम दिया था। उसके बाद   दो साल तक शिकागो, न्यूयॉर्क, डेट्रइट और बोस्टन   में उन्होंने लेकर दिए थे।

1894 को न्यूयॉर्क में वेदाँग सोसाइटी की स्थापना की। 1896 में अक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैक्स मूलर से हुआ जिन्होंने उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की आत्मकथा लिखे थे। 1879 में उन्होंने अमेरिका से श्रीलंका गए और वहां के लोगो ने उनका स्वागत खुलकर किया। उस समय वे काफी प्रचलित थे। वहां से रामेश्वरम चले गए और फिर 1 मई 1897 को अपना घर कोलकाता चले गए।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना(Establishment of Ramakrishna Mission)

1897 मैं स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जिसका उद्देश्य यह था कि नव भारत निर्माण के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ सफाई के क्षेत्र में बढ़ावा देना। वेद , साहित्य , शास्त्रदर्शन और इतिहास के ज्ञानेश्वर स्वामी विवेकानंद ने अपनी विनोद प्रतिभा से सभी को अपनी ओर आकर्षित किया और उस समय के नौजवान लोगों के लिए एक आदर्श बने रहे थे।

1898 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना जो अभी भी चल रही है इसके अलावा और 2 मठ की स्थापना की।

स्वामी विवेकानंद का दूसरा विश्व यात्रा (Swami Vivekananda’s Second World Tour)

20 जून 1899 को फिर अमेरिका गए और वहां कैलिफोर्निया में शांति आश्रम का निर्माण किए और फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।

जुलाई 1900 में विवेकानंद जी पेरिस गए जहां उन्होंने कांग्रेस ऑफ द हिस्ट्री रिलेशंस में भाग लिए और करीब 3 महीने तक वहां रहे थे इस दौरान उनका 2 शिष्य वहां बन गया था भगिनी निवेदिता और स्वामी त्रियानंद

1900 के आखरी माह में स्वामी जी भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने फिर से भारत की यात्रा की बोधगया और बनारस यात्रा की। इस दौरान उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता जा रहा था, वे अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों से ग्रसित थे।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (swami vivekananda death)

4 जुलाई 1992 को मात्र 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु हो गई। उनके शिष्य का में तो उन्होंने महासमाधि ली थी। आरोही इस महापुरुष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट के किनारे किया गया था।

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Swami Vivekananda Biography in Hindi | विवेकानंद की जीवनी

Swami Vivekananda Biography in Hindi : स्वामी विवेकानंद को भारत में उनको सन्यासी का अमेरिका में उनका नाम पड़ा साइक्लॉनिक हिन्दू का टाटा समूह के पितामह ने उनसे शिक्षा का प्रचार प्रसार का ज्ञान लिया तो कर्म कान्डियो के लिए Swami Vivekananda बन के उभरे एक विद्रोही।

भारत में समाज सुधार की धर्म की, अध्यात्म की दर्शनशास्त्र की, प्रगतिशील विचारों की जब भी बात होगी तो स्वामी विवेकानंद –  Swami Vivekananda के बिना वो चर्चा हमेशा अधूरी रहेगी।

उनमे किस तरह का अनूठा Convention Power था स्वामी विवेकानंद में कि वह अपने मस्तिष्क पर कंट्रोल कर सकते थे और फिर कर सकते थे Multitasking।

Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद सबसे कहते थे, कि महिलाओं का सम्मान करते हैं और उनकी बेहतरी चाहते हैं उनकी हालत सुधारना चाहते हैं तो उनके लिए कुछ करिए नहीं बस उनको अलग छोड़ दीजिए

वह जो करना चाहे वह उन्हें करने का अवसर दीजिए वह पुरुषों से ज्यादा सक्षम है अपनी बेहतरी स्वयं कर सकती हैं महिलाएं भी स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से बेहद प्रभावित रहती थी।

Swami Vivekananda का नाम Cyclonic Hindu क्यों पड़ा

11 सितंबर 1893 में शिकागो मैं हुई विश्वधर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया यह वह भाषण था इस भाषण में उन्होंने सबसे पहले बोला “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों”  इस को सुनकर वह बैठे सभी लोगो ने खड़े होकर तालिया बजाई।

इस भाषण के बाद स्वामी विवेकानंद की ख्याति फैल गई जिसके बाद स्वामी विवेकानंद 3 साल तक अमेरिका में रहे अमेरिकी मीडिया ने उनका नाम Cyclonic Hindu Swami Vivekananda रख दिया।

स्वामी विवेकानंद ने ‘योग’, ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथों की रचना पूरे विश्व के युवाओं मैं एक नई अलख जगाई है उनका प्रमुख नारा भी युवाओं के लिए का युवाओं में दृढ़ इच्छा और विश्वास पैदा करने के लिए उन्होंने यह नारा दिया था।

“उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये !!”

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी  (Swami Vivekananda Biography in Hindi)

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प्रारंभिक जीवन, जन्म और बचपन- (Swami Vivekananda life History)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर सक्रांति के दिन 6:35 पर सूर्य उदय से पहले भारत के कोलकाता शहर में उनके पैतृक घर में होता है। स्वामी विवेकानंद का का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था और पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट में प्रसिद्ध वकील थे। वह नए विचारों को मानने वाले आदमी थे।

और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धर्म कर्म में मानने वाली गृहिणी थी। वह नरेंद्र नाथ को रामायण रामायण और महाभारत के किस्से कहानियां सुनाया करती थी इस कारण बचपन से ही नरेंद्र की हिंदू धर्म ग्रंथों मैं बहुत रुचि थी। नरेंद्र नाथ का पालन पोषण बहुत ही खुशहाली मैं हुआ क्योंकि उनका परिवार बहुत ही सुखी और संपन्न परिवार था।

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स्वामी विवेकानंद की मां ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि भगवान शिव आप मुझे एक प्यारा सा बेटा दीजिए, तब भुवनेश्वरी देवी के सपने में शिव भगवान आते हैं और उनको कहा कि तुम परेशान मत हो मैं आ रहा हूं और स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ।

Swami Vivekananda के परिवार में उनके दादा दुर्गाचरण दत्ता भी जो की संस्कृत और फारसी भाषा के बहुत बड़े विद्वान् थे। वह ईश्वर की साधना में मग्न रहते थे और एक दिन ऐसा आया कि उन्होंने 25 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया और एक सन्यासी के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे।

नरेंद्र नाथ बचपन में बहुत ही शरारती और नटखट थे उनकी शरारतों के कारण सभी तंग रहते थे एक दिन की बात है नरेंद्र कुछ शरारत कर के भाग खड़े हुए उनकी बहन उनको पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ी, यह देखकर नरेंद्र घबरा गया और वह नाली के पास जाकर नाली का कीचड़ अपने ऊपर लगा लिया और फिर अपनी बहन से बोले अब पकड़कर दिखाओ मुझे, यह देखकर उनकी बहन आश्चर्यचकित रह गई और नरेंद्र को वह पकड़ नहीं पाई क्योंकि नरेंद्र कीचड़ में लिपटा हुआ था।

एक बार नरेंद्र नाथ अपने शहर में लगा मेला देखने गए तब नरेंद्र की उम्र सिर्फ 8 साल थी वह मेले में तरह तरह के रंग बिरंगे चीजें देखकर बहुत ही प्रसन्न हो गई और पूरे दिन मेले में घूमते रहे।

और जैसे ही शाम ढलने लगी घर जाने का समय हुआ तो स्वामी विवेकानंद दें एक दुकानदार से मिट्टी का शिवलिंग खरीद लिया इसके बाद उनके पास बहुत कम 4 आने वैसे ही बचे थे इसके बाद वह सोच रहे थे कि भी इन 4 आने को कहां खर्च करें तभी उनको एक छोटे बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी।

जब उन्होंने उस बच्चे से पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो तो बच्चे ने बहुत ही सैनी से आवाज में जवाब दिया कि वह अपने घर से कुछ पैसे लेकर आया था लेकिन मेले में कहीं गुम हो गए अगर वह खाली हाथ घर गया तो उसकी मां उसको बहुत मारेगी यह देख नरेंद्र के मन में दयालुता का भाव उमड़ा और उन्होंने अपने बचे हुए 4 आने उस बच्चे को दे दिए।

इस घटना से यह पता चलता है कि स्वामी जी बचपन से ही कितने दयालु स्वभाव के थे।

जब नरेंद्र की माता को इस बात का पता चला तो उनकी मां ने उनको गले से लगा लिया और कहा कि जीवन में सदैव ही ऐसे काम करते रहना।

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स्वामी विवेकानंद की शिक्षा – (Swami Vivekananda Education)

नरेंद्र की उम्र 8 साल थी तब उनका दाखिला ईश्वर चंद विद्यासागर मेट्रो मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट में करवाया गया, उनके पिताजी चाहते थे कि कि उनका बेटा अंग्रेजी पढ़े लेकिन बचपन से ही स्वामी विवेकानंद का मन वेदों की ओर था। 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज का एंट्रेंस एग्जाम दिया और परीक्षा को फर्स्ट डिवीजन से पास करने वाले पहले विद्यार्थी बने।

वे दर्शन शास्त्र, इतिहास, धर्म, सामाजिक ज्ञान, कला और साहित्य सभी विषयों के बड़े उत्सुक पाठक थे बहुत रुचि थी उनको इन सभी विषयों में बचपन से ही हिंदू धर्म ग्रंथों मैं उनकी बहुत रुचि थी और साथ ही उनको योग करना, खेलना बहुत पसंद था।

भारतीय अध्यात्म, भारतीय दर्शन और धर्म के साथ-साथ नरेंद्र की दिलचस्पी पश्चिमी जीवन और यूरोपीय इतिहास मैं भी बहुत रुचि थी इसलिए उन्होंने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिटूशन (वर्तमान – स्कॉटिश चर्च कॉलेज) से किया था। उस जमाने के सभी वेस्टर्न राइटरस उन्होंने बहुत गहन अध्ययन किया था।

उन्होंने 1881 में ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली थी।

उस जमाने के जाने माने शिक्षा वेद और फ़लॉसफ़र William Hastie ने एक जगह लिखा है कि नरेंद्र बहुत होशियार है और मैंने दुनिया भर के विद्यार्थियों को देखा है और अलग-अलग यूनिवर्सिटीज में गया हूं लेकिन जब Philosophy (दर्शनशास्त्र) का सवाल आता है तो नरेंद्र के दिमाग और कुशलता के आगे मुझे कोई और स्टूडेंट नहीं दिखता।

रामकृष्ण के साथ – (Swami Vivekananda Teacher Ramakrushna)

नरेंद्र पढ़ने लिखने लिखने में बहुत ही अच्छे छात्र थे लेकिन उनका मन हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा था सांसारिक मोह माया के पीछे वह नहीं भागते थे लेकिन जब तक उनके पिताजी जिंदा थे स्वामी विवेकानंद का मन दीन-दुनिया से अलग नहीं हुआ था उनका मोह भंग नहीं हुआ था

वेदांत में योग में इन सब में उनकी दिलचस्पी तो पहले भी थी। लेकिन पिता की मृत्यु के बाद Swami Vivekananda का मन दीन- दुनिया से उठ गया।

एक दिन की बात है जब William Hastie धर्म और दर्शन पर व्याख्या कर रहे थे और उन्होंने देखा कि नरेंद्र नाथ आंखें बंद करके बैठे हुए हैं उन्होंने तुरंत नरेंद्र को कहा कि क्या तुम सो रहे हो, नरेंद्र ने तुरंत आंखें खोली और कहां जी नहीं William Hastie मैं कुछ सोच रहा था

Ramakrishna paramahamsa

William Hastie ने कहा किस विषय में सोच रहे हो तुम, तब नरेंद्र ने कहा क्या आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दोगे।

William Hastie ने कहा क्यों नहीं बोलो नरेंद्र क्या प्रश्न पूछना चाहते हो तुम।

नरेंद्र ने कहा क्या आपने कभी ईश्वर के दर्शन किए हैं

तब William Hastie ने कहा नरेंद्र नाथ तुमने बहुत ही कठिन प्रश्न पूछा है तुम इस प्रश्न के उत्तर के लिए गंभीर भी हो, निराश ना हो मैं तुम्हें एक ऐसे संत का नाम बताऊंगा जो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर सही प्रकार से दे सकते हैं यदि वास्तव में ही ईश्वर के दर्शन करना और सत्य की प्राप्ति ही तुम्हारा उद्देश्य है तो तुम दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस के पास चले जाओ, वही तुम्हें ईश्वर के विषय में बता देते हैं।

नरेंद्र को William Hastie की बात सही लगी और 1881 के अंत और 1882 में प्रारंभ में वह दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस से मिलने चले गए।

और वहां पहुंच कर उन्होंने वही प्रश्न रामकृष्ण परमहंस ने किया लेकिन रामकृष्ण परमहंस नए जब नरेंद्र को देखा तो वह उन्हें एकटक देखते ही रहे मानो जैसे वह दोनों एक दूसरे से पहले से ही परिचित थे।

फिर उन्होंने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा हां मैंने ईश्वर को देखा है ठीक वैसे ही जैसे तुम्हें देख रहा हूं यदि कोई सच्चे हृदय से ईश्वर को याद करता है तो वह अवश्य ईश्वर से मिल सकता है।इसके बाद रामकृष्ण परमहंस ने कहा की यदि तुम मेरे कहे अनुसार कार्य करो तो मैं तुम्हें भी ईश्वर के दर्शन करा सकता हूं।

रामकृष्ण की इन बातों का नरेंद्र पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। और वह उनकी ओर आकर्षित होने लगे। इसके बाद महेंद्र रामकृष्ण परमहंस के सच्चे शिष्य बन गए उन्होंने उनके विचारों को अपनाया और अपने जीवन में उतारा।

नरेंद्र के पिता विश्वनाथ दत्त की 1884 में अचानक मृत्यु हो गयी उसके बाद उनके घर की हालत इतनी खराब हो गयी कि उनके खाने के भी लाले पड़ गये। उनका परिवार अगर सुबह भोजन कर लेता तो शाम का पता नही होता था। कई कई बार तो वे 2-3 दिन तक भोजन नहीं करते थे। स्वामी विवेकानंद के पास पहनने को कपड़े भी नहीं थे।

विवेकानंद के दोस्त उन्हें खाने के लिए देते भी थे लेकिन वह यह बोल कर मना कर देते थे की उनका परिवार भूखा होगा। वह ईश्वर को कोसने लगे थे। फिर वह सब कुछ छोड़ छाड़ के अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास चले गए।

रामकृष्ण ने उनके परिवार के हालत की सुधार के लिए उनको मां काली की उपासना करने को कहा लेकिन विवेकानंद मूर्ति और धातु पूजा में नहीं मानते थे क्योंकि कॉलेज के दिनों में उनका ध्यान ब्रह्म समाज की ओर हो गया था। ब्रह्म समाज मूर्ति पूजा को नहीं मानता था इसलिए विवेकानंद ने भी मां काली की उपासना करने से मना कर दिया।

और विरोध करने लगे और रामकृष्ण का उपहास भी उड़ाया। लेकिन रामकृष्ण परमहंस यह सब शांति पूर्वक देखते रहे और नरेंद्र की शांत होने पर उन्होंने कहा कि ”सभी दृष्टिकोणों से सत्य जानने का प्रयास करे” ।

नरेंद्र को भी यह बात सही लगी तब उन्होंने मां काली की उपासना करना चालू कर दिया और अंत में उनको मां काली के दर्शन हुए उन्होंने मां काली से सब कुछ मांगा और जब वे ध्यान से बाहर आए तो रामकृष्ण ने कहा कि तुमने अपने प्यार के लिए सब कुछ मांग लिया।

तो नरेंद्र ने कहा मांग लिया तो रामकृष्ण ने कहा तुमने अपने परिवार के लिए धन मांगा कि नहीं…

फिर नरेंद्र ने उत्तर दिया कि नहीं वह तो मैं भूल गया..

रामकृष्ण ने कहा तुम फिर से ध्यान लगाओ और अपने परिवार के लिए धन मांगो।

नरेंद्र ने करीब 3 बार ध्यान लगाया लेकिन तीनों ही बार वह सब कुछ मांग लेते लेकिन अपने परिवार के लिए धन मांगना भूल जाते थे।

तब उनको एहसास हो गया कि धन और मोह माया उनके लिए नहीं बनी है इसके बाद उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को गुरु मान लिया । और रामकृष्ण परमहंस ने भी उनको शिष्य बनाया और जितना भी ज्ञान उनको था वह पूरा ज्ञान नरेंद्र को दे दिया।

लेकिन कुछ वर्ष बाद रामकृष्ण परमहंस बीमार रहने लगे थे उन्हें पता चल गया था कि अब उनके जीवन के अधिक दिन नहीं रह गए हैं उन्हें पता चला कि उनको कैंसर हैं।इसलिए 1885 में रामकृष्ण परमहंस को इलाज के लिए कोलकाता जाना पड़ा लेकिन वह वहां पर ठीक नहीं हो पाये।

फिर नरेंद्र ने उनके अंतिम दिनों में उनकी सेवा की, रामकृष्ण ने अपने अंतिम दिनों में उन्हें सिखाया की मनुष्य की सेवा करना ही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है। करीब 1 वर्ष के बाद 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई।  उन्होंने अपना जीवन गुरुदेव श्री रामकृष्ण को समर्पित कर दिया 25 साल की उम्र में नरेंद्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए यानी कि उन्होंने सन्यास ले लिया और निकल गए पूरे भारत की यात्रा पर।

श्री रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद नरेंद्र ही उनके उत्तराधिकारी बने वे केवल नाम के ही उत्तराधिकारी नहीं थे उन्होंने वैसा कार्य भी करके दिखाया। उन्होंने अपने गुरु के नाम पर रामकृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना की गुरु के विचारों का पूरी दुनिया में विस्तार किया और देश की दीन दुखियों की सहायता की और अनेक कल्याणकारी योजनाएं भी चलाई।

स्वामी विवेकानंद ने अपने पत्र में लिखा था “मुझे ईश्वर में विश्वास है, मुझे मनुष्य में विश्वास है, मुझे दिन दुखियों की सहायता में विश्वास है और यही मेरा कर्तव्य है” ।

इसी दृढ़ निश्चय को लेकर उन्होंने भारत के अंतिम शहर कन्याकुमारी के समुंद्र में चट्टान थी वहां पर उन्होंने 2 दिन 2 रात तक अटूट ध्यान किया इसी ध्यान के दौरान उनके मन में अतीत और वर्तमान भारत के चित्र उभर आए जिस शिला पर स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था वह आज विवेकानंद स्मारक के रूप में प्रसिद्ध है आज भी लाखों लोग कन्याकुमारी में स्थित उस शीला के दर्शन करने आते हैं।

नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद नाम कैसे पड़ा (How did Narendra name Swami Vivekananda?)-

1893 जब नरेंद्र नाथ दत्त बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए एक सन्यासी के रूप में यात्रा करने लगे और वह पूरे भारत में जगह-जगह भ्रमण करने लगे थे इस बीच उनकी मुलाकात 4 जून 1891 को माउंट आबू में खेतड़ी के राजा अजीत सिंह से हुई।

नरेंद्र और अजीत सिंह की कुछ बात हुई नरेंद्र की ज्ञान की बातें सुनकर राजा अजीत सिंह बहुत खुश हुए। और उन्होंने नरेंद्र नाथ को अपने महल खेतड़ी में आने के लिए निमंत्रण दिया।

maharaja ajit singh and swami vivekananda

नरेंद्र ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और 7 अगस्त 1891 को भारत का भ्रमण करते हुए खेतड़ी राजस्थान पहुंचे। वहां पर राजा अजीत सिंह ने उनका स्वागत किया और नरेंद्र वहां पर कुछ दिन रुके इस बीच राजा अजीत सिंह और नरेंद्र के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी।

तब राजा अजय सिंह ने नरेंद्र को पगड़ी बांधने का सुझाव दिया और राजस्थानी वेशभूषा पहनने को कहा इस बात पर नरेंद्र राजी हो गए और तभी से स्वामी विवेकानंद ने पगड़ी बांधना चालू किया था। यह देख कर राजा अजीत सिंह ने उनका नाम नरेंद्र से विवेकानंद रख दिया था जिसका मतलब “ समझदार ज्ञान का आनंद ” था।

विश्व धर्म सम्मेलन (World Religions Conference)-

विश्व धर्म सम्मेलन का दिन उनके लिए बहुत बड़ा साबित हुआ क्योंकि उस दिन के बाद उन्होंने पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त कर ली थी वह अब हर देश जाकर ज्ञान बांटने लगे थे लेकिन आपको हम उनके विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होने के पहले की बात बताते हैं।

Swami Vivekananda के पास विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ध्यान नहीं था इसलिए वह दोबारा अपने मित्र राजा अजीत सिंह से मिलने खेतड़ी गए वह 21 अप्रैल 1893 से 10 मई 1893 तक खेतड़ी में रहे। उन्होंने अजीत सिंह को बताया कि वह विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होना था चाहते हैं तो अजीत सिंह ने कहा कि आप धर्म सम्मेलन में शामिल हुई है धन की परवाह मत कीजिए वह सब बंदोबस्त कर दूंगा।

Swami Vivekananda at Parliame nt of Religions

बड़ी कठिनाइयों के बाद स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शहर शिकागो पहुंचे लेकिन वहां पहुंचने के बाद उनको पता चला कि विश्व धर्म सम्मेलन की तारीख आगे बढ़ा दी गई है इसलिए उनको बड़ी चिंता हुई क्योंकि उनके पास तो सिर्फ 4 से 5 दिन के खर्चे के लिए ही धनराशि थी और वह वापस भी नहीं लौट सकते थे इसलिए उन्होंने वही ठहरने का निर्णय लिया।

लेकिन शिकागो जैसे शहर में एक आम भारतीय संत का रहना बहुत ही मुश्किल था। फिर उनको वहीं के एक प्रोफेसर मिले वह उनको अपने घर लेकर गए और उनको अपने घर में रहने को कहा उन्होंने स्वामी विवेकानंद की बहुत सेवा की।

1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद का आयोजन हुआ स्वामी विवेकानंद वहां पहुंचे भारत के प्रतिनिधि के बतौर यह वह दौर था जब यूरोप और अमेरिका के लोग भारत वासियों को बहुत ही ही दृष्टि से देखते थे कुछ लोगों का मानना है कि उस धर्म परिषद में पहले यह भी तय नहीं हुआ था की विवेकानंद जी पर कोई भाषण देंगे।

क्योंकि विश्व धर्म सम्मेलन में अपने विचार प्रकट करने का कोई विधिवत निमंत्रण नहीं मिला था। जब गई पश्चिमी सभ्यता के लोग बोल चुके हैं उनका संबोधन हो चुका था तो कुछ अमेरिकी प्रोफेसर ने इस बात पर जोर दिया अब कुछ मौका पूर्व से आने वालों को भी दिया जाए।

तब सबका ध्यान गया गेरुआ वस्त्र पहने एक खूबसूरत भारतीय नौजवान पर जिसका नाम था स्वामी विवेकानंद , जब Swami Vivekananda ने खड़े होकर बोलना शुरू किया और जिस धारा प्रवाह अंग्रेजी में उन्होंने बहुत ही पुरजोर तरीके से अपनी बात रखी और

बोले “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” इतना सुनकर वहां के सभी लोगों ने करीब 2 मिनट तक खड़े होकर उनके लिए तालियां बजाई थी। क्योंकि स्वामी विवेकानंद जी एक ऐसे अलग व्यक्ति थे जिन्होंने रटे-रटाए धर्मों और ग्रंथों के अलावा कुछ नई बात कही थी।

विश्व कवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने कहा था कि अगर आपको भारत की संस्कृति धर्म और इतिहास के बारे में जानना है तो आपको स्वामी विवेकानंद का अध्ययन करना चाहिए।

मृत्यु – (Swami Vivekananda Death)

स्वामी विवेकानंद जी ने अपने अंतिम दिनों तक ध्यान करने की अपनी दिनचर्या को नहीं बदला वह रोज सुबह 2 से 3 घंटे ध्यान लगाते थे दमा और शुगर के साथ उन्हें कई शारीरिक बीमारियों ने घेर लिया था उन्होंने एक जगह लिखा भी कि “यह बीमारियां मुझे 40 वर्ष की आयु को पार नहीं करने देंगी” और उनकी यह वाणी सच भी हुई।

सत्येंद्र मजमूदार ने अपनी किताब विवेक चरित्र में लिखा है कि 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ थे । सुबह स्वामी जी ने अपने शिष्यों को बुलाया और अपने हाथों से सभी शिष्यों के पाव धोए।

शिष्यों ने कहा कि यह क्या कर रहे हैं Swami Vivekananda जी का उत्तर था कि Jesus Christ ने भी अपने शिष्यों के पाव धोए थे फिर सभी ने साथ बैठकर खाना खाया उसके बाद विवेकानंद जी ने कुछ आराम किया दोपहर 1:30 बजे सभी सभागार में इकट्ठे हुए और डेढ़ 2 घंटे तक काफी हंसी-मजाक चला शाम को विवेकानंद जी मठ में घूमकर अपने कमरे में वापस चले गए।

और दरवाजे और खिड़कियां बंद की और ध्यान में बैठ गए उसके बाद उन्होंने खिड़कियां खोली और बिस्तर पर लेट गए। और ओम का उच्चारण करते हुए उन्होंने प्राण त्यागे।

“संत विवेकानंद अमर तुम, अमर तुम्हारी पवन वाणी तुम्हें सदा ही शीश नवाते भारत के प्राणी प्राणी”

स्वामी विवेकानंद से सम्बंधित रोचक बाते (Swami Vivekananda life History in hindi )

1) स्वामी विवेकानंद 25 साल की उम्र में ही सन्यासी बन गए थे।

2) बचपन में स्वामी विवेकानंद बड़े शरारती और नटखट स्वभाव के थे।

3) 1881 के अंत और 1882 में प्रारंभ में वह दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस से मिलने गए थे।

4) 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई।

5) स्वामी विवेकानंद 1893 में बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए यात्रा की थी।

6) स्वामी विवेकानंद पहली बार राजा अजीत सिंह से 4 अगस्त 1891 को माउंट आबू में मिले थे।

7) 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद नहीं शिकागो शहर में विश्व धर्म सम्मेलन मैं अपना पहला भाषण दिया था।

8) स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन 12 जनवरी को अब पूरे भारतवर्ष में “युवा दिवस” के रुप में मनाया जाता है।

9) 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में अपने प्राण त्याग दिए।

Rahim ke Dohe Class 7 – रहीम के दोहे अर्थ सहित कक्षा 7

Swami Vivekananda Quotes in Hindi – स्वामी विवेकानंद के विचार

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12 thoughts on “Swami Vivekananda Biography in Hindi | विवेकानंद की जीवनी”

This article will help me a lot.

Thank you Dilip Singh Sisodiya.

very nice Biography …Today we need just like Biography who show to our society and new generation…my new generation going to wrong side about RELIGION…

Thank you Devendra Nath Thakur for appreciation, keep visiting hindi yatra.

आपने स्वामी विवेकानंद के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी दी है। आपने विवेकानंद के सभी विषय को बहुत खूबसूरती से समझाया है।

निरंजन सुबेदी, सराहना के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे ही ही हिंदी यात्रा पर आते रहे

hame aise hi sant ki jaroorat hai jo hamari dharm ,sanskrit ka prachar prasar kare aur apne desh ki shiksha padhat hamare desh ke p.m. lagu kare.

Premnath Yadav ji aap ne shi bola, agar hum unke vicharo par chle toek acche samaj ka nirmaan kar sakte hai. Hindi yatra par aane ke liye ka bhut bhut dhanyawad.

Bahut hi gajab biography h

Thank you Mohammed Azam khan for appreciation.

स्वामी विवेकानंद 1828 में बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए यात्रा की थी।

ye Date Galat hai..har jagah. isko sudhar liya jaye

Raj Singh ji hame hmari galti batane ke liye Dhanyawad, hamne galti ko thik kar liya hai.

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Swami Vivekananda Biography in Hindi | स्वामी विवेकानंद की जीवनी & Swami Vivekananda Quotes

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स्वामी विवेकानंद एक हिंदू साधु (Monk) और दार्शनिक (Philosopher) थे। यह ऐसे इंसान थे जिन्होंने देश में ग़रीबी और भेद भाव को कम करा। इन्होंने जो भारत देश के लिए करा वो अविस्मरणीय है। आज भी यह करोड़ों भारतीयों के दिलों में बस्ते है और इनका जीवन बहुत ही प्रेरणा दायक है। आइये जानने स्वामी विवेकानंद के जीवन परिचय के बारे में | Swami Vivekananda biography in Hindi

Swami Vivekananda biography in Hindi | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

Swami vivekananda age, guru, education and family.

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863, मकर संक्रांति के दिन बंगाल में हुआ था। इनके माता पिता ने बचपन में इनका नाम नरेंद्रनाथ (Narendranath) रखा था और सब इनको नरेन बुलाते थे।

बचपन से ही यह बहुत तेज और बाक़ी बच्चों से अलग थे। यह हमेशा पूछते थे की हिंदू-मुस्लिम में भेद भाव क्यों करा जाता है और इसकी प्रकार के अन्य प्रशन यह पूछा करते थे।

Swami Vivekananda family | स्वामी विवेकानंद का परिवार

विवेकानंद का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। इनका परिवार बहुत ही अच्छा था और सारे व्यक्ति पढ़े लिखे थे। परिवार के सभी लोग हमेशा सबकी मदद करते थे और बहुत सारे लोग इनके परिवार को जानते थे व पसंद भी करते थे।

विवेकानंद की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। यह एक धार्मिक महिला थी। विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता था और यह कलकत्ता हाई कोर्ट (High Court) में वकील थे।

Swami Vivekananda Education | स्वामी विवेकानंद की पढ़ाई

स्वामी विवेकानंद पढ़ाई में बहुत ही होशियार और बुद्धिमान थे। इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज (Scottish Church College), विद्यासागर कॉलेज (Vidyasagar College), कलकत्ता विश्वविद्यालय (University of Calcutta), प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय (Presidency University) से पढ़ाई की हुई है।

बुद्धिमान होने के कारण यह हमेशा प्रथम श्रेणी से पास होते। इन्हें किताबों से बहुत लगाओ था इसलिए यह हमेशा लाइब्रेरी की सारी किताबों को पड़ देते थे। समय के साथ-साथ इन्हें हर एक क्षेत्र का अच्छा ख़ासा ज्ञान हो गया था।

Swami Vivekananda Guru | स्वामी विवेकानंद के गुरु

स्वामी विवेकानंद को एक दिन सपना आता है जिसमें वो एक आमिर आदमी जिसके पास सारी सुख सुविधा होती है और वो एक साधु को भी देखते है जो प्रभु की भगती में लीन होता है। उस दिन यह साधु से बहुत प्रभावित होते है और विवेकानंद भी साधु बन्ने का फ़ेस्ला करते है।

लेकिन इनको कोई दिशा दिखाने वाला नही मिल रहाँ था जिसने भगवान को देखा हो। तो यह एक दिन राम कृष्णा (Ram krishna Paramahamsa) से दक्षिणेश्वर (Dikshineswar) मंदिर में मिलते है।

राम कृष्णा को विवेकानंद सबसे अलग लगते है और यह इन्हें अपना शिष्य बना लेते है और सिर्फ़ इनसे ही अपनी मन की बातों को बताते है। स्वामी विवेकानंद इन्हें अपना गुरु मान लेते है। ऐसा भी माना जाता है की श्री राम कृष्णा भगवान के ही अवतार थे।

इनके चले जाने के बाद विवेकानंद ने 23 साल की उम्र में मठ को सम्भाला और बाक़ी साधुओं को भी पूजा, ध्यान और पढ़ाई का ज्ञान दिया।

विवेकानंद चाहते थे कि बाक़ी साधुओं के पास भी सारी चीज़ों की जानकारी हो इसलिए विवेकानंद इन्हें बाक़ी देशों के राजनीतिक व्यवस्था और इतिहास के बारे के बारे में भी बताते थे। विवेकानंद ने इन्हें प्लांटों, एरिस्टोटल, बुद्धा और बाक़ी प्रशिद्ध इंसानो के बारे में भी बताते थे।

Swami Vivekananda parliament of religion | स्वामी विवेकानंद धर्म की संसद

स्वामी विवेकानंद भारत के कई हिस्सों में गए और समानता की भावना को फैलाया। लेकिन कुछ समय के बाद इन्हें अमेरिका में मौक़ा दिखा की वो वहाँ अपना प्रचार कर सकते है क्योंकि वहाँ धर्मों में भेद भाव नही है।

स्वामी जी ने 1893 में होने वाली धर्म की संसद (Parliament of Religion), जिसमें सारी दुनिया से हर एक धर्म के नेता आने वाले थे। उसमें विवेकानंद भारत की तरफ़ से गए थे और सभी इनके भाषण को सुन कर बहुत प्रसन्न हुए।

विवेकानंद चार साल अमेरिका में भी रहे और अमेरिका के न्यू यॉर्क (New York), बॉस्टन (Boston), वॉशिंटॉन (Washington) आदि शहरों में धर्म का प्रचार किया।

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Swami Vivekananda books | स्वामी विवेकानंद की किताबें

स्वामी जी ने अपने समय में अनेक प्रकार की किताबी लिखी जो आज भी हम सबके लिए बहुत मूल्य वान है। यह किताबे इनके जीवनकाल में प्रकाशित हुई थी।

  • कर्म योग (Karma Yoga )
  • राज योग (Raja Yoga)
  • वेदांत दर्शन (Vedanta Philosophy)
  • कोलंबो से अल्मोड़ा तक व्याख्यान (Lectures from Colombo to Almora )
  • बार्टमन भारती (Bartaman Bharat)
  • मेरे गुरु (My Master)
  • वेदांत दर्शन: ज्ञान योग पर व्याख्यान (Vedânta philosophy: On Jnâna Yoga)
  • ज्ञान योग (Jnana yoga)

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Swami Vivekananda Quotes in Hindi | स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन

“दिल और दिमाग के टकराव में, अपने दिल का अनुसरण करें”

“आपको अंदर से बाहर की ओर बढ़ना है। कोई आपको सिखा नहीं सकता, कोई आपको आध्यात्मिक नहीं बना सकता। आपकी अपनी आत्मा के अलावा कोई दूसरा शिक्षक नहीं है।”

“किसी की निंदा न करें: यदि आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ऐसा करें। यदि तुम नहीं कर सकते, तो अपने हाथ जोड़ो, अपने भाइयों को आशीर्वाद दो, और उन्हें अपने रास्ते जाने दो”

“एक समय में एक काम करो, और इसे करते समय बाकी सब को छोड़कर अपनी पूरी आत्मा को उसमें डाल दो।”

“हम वही काटते हैं जो हम बोते हैं। हम अपने भाग्य के विधाता स्वयं हैं। किसी और का दोष नहीं है, किसी की प्रशंसा नहीं है।”

“अगर मैं अपने अनंत दोषों के बावजूद खुद से प्यार करता हूं, तो मैं कुछ दोषों की झलक में किसी से कैसे नफरत कर सकता हूं।”

“हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।”

“यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।”

“जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं”

“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये।”

“जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।”

“चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो। स्वामी विवेकानंद के कोट्स”

“किसी का या किसी चीज का इंतजार न करें। आप जो कुछ भी कर सकते हैं वह करें, किसी पर भी अपनी आशा का निर्माण न करें”

“जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।”

Was Swami Vivekananda married ?

नहीं। अपने जीवन मे स्वामी जी ने शादी नहीं की वो हमेशा महिलाओ को अपनी माँ समान मानते थे इसलिए उन्होंने कभी शादी नहीं की और अपनी भक्ति मे लिन रहे।

Was Swami Vivekananda enlightened ?

स्वामी विवेकानंद enlighted है यह समाधि मे बहुत-बहुत देर तक चले जाते थे।

Does  Swami Vivekananda  believe in god ?

स्वामी जी भगवान मे विशवास रखते थे और यह भी माना गया है की वो भगवान को देख भी सकते थे।

Did  Swami Vivekananda  believe in astrology ?

स्वामी जी astrology मे विशवास नहीं रखते थे। उनका मानना था की यह सब एक कमजोर व्यक्ति के काम होते है।

Did  Swami Vivekananda  wrote any book ?

स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन मे अनेक किताबे लिखी और इनकी बहुत से किताबे तो इनकी मृत्यु के बाद छापी गई।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Biography In Hindi

Swami Vivekananda Biography in hindi

स्वामी विवेकानंद भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति थे. जिन्होंने संपूर्ण विश्व को भारत की संस्कृति, धर्म के मूल आधार और नैतिक मूल्यों से परिचय कराया. स्वामी जी वेद, साहित्य और इतिहास की विधा में निपुण थे. स्वामी विवेकानंद को सयुंक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में हिन्दू आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार प्रसार किया. उनका जन्म कलकत्ता के के उच्च कुलीन परिवार में हुआ था. उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था. युवावस्था में वह गुरु रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आये और उनका झुकाव सनातन धर्म की और बढ़ने लगा.

गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिलने के पहले वह एक आम इंसान की तरह अपना साधारण जीवन व्यतीत कर रहे थे. गुरूजी ने उनके अन्दर की ज्ञान की ज्योति जलाने का काम किया. उन्हें 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में दिए गए अपने भाषण के लिए जाना जाता हैं. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” कहकर की थी. स्वामी विवेकानंद की अमेरिका यात्रा से पहले भारत को दासो और अज्ञान लोगों की जगह माना जाता था. स्वामी जी ने दुनिया को भारत के आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन कराये.

स्वामी विवेकानंद का जन्म और परिवार (Swami Vivekananda Birth and Family)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट में हुआ. स्वामी जी के बचपन का नाम नरेन्द्र दास दत्त था. वह कलकत्ता के एक उच्च कुलीन परिवार के सम्बन्ध रखते थे. इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक नामी और सफल वकील थे. वह कलकत्ता में स्थित उच्च न्यायालय में अटॅार्नी-एट-लॉ (Attorney-at-law) के पद पर पदस्थ थे. माता भुवनेश्वरी देवी बुद्धिमान व धार्मिक प्रवृत्ति की थी. जिसके कारण उन्हें अपनी माँ से ही हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला.

स्वामी विवेकानंद का बचपन (Swami Vivekananda Childhood)

स्वामी जी आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में पले और बढे. उनके पिता पाश्चात्य संस्कृति में विश्वास करते थे इसीलिए वह उन्हें अग्रेजी भाषा और शिक्षा का ज्ञान दिलवाना चाहते थे. उनका कभी भी अंग्रेजी शिक्षा में मन नहीं लगा. बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के बावजूद उनका शैक्षिक प्रदर्शन औसत था. उनको यूनिवर्सिटी एंट्रेंस लेवल पर 47 फीसदी, एफए में 46 फीसदी और बीए में 56 फीसदी अंक मिले थे.

माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थी वह नरेन्द्रनाथ (स्वामीजी के बचपन का नाम) के बाल्यकाल में रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाया करती थी. जिसके बाद उनकी आध्यात्मिकता के क्षेत्र में बढते चले गयी. कहानियाँ सुनते समय उनका मन हर्षौल्लास से भर उठता था.रामायण सुनते-सुनते बालक नरेन्द्र का सरल शिशुहृदय भक्तिरस से भऱ जाता था. वे अक्सर अपने घर में ही ध्यानमग्न हो जाया करते थे. एक बार वे अपने ही घर में ध्यान में इतने तल्लीन हो गए थे कि घर वालों ने उन्हें जोर-जोर से हिलाया तब कहीं जाकर उनका ध्यान टूटा.

स्वामी विवेकानंद का सफ़र (Swami Vivekananda Life Journey)

वह 25 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपना घर और परिवार को छोड़कर संन्यासी बनने का निर्धारण किया. विद्यार्थी जीवन में वे ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेंद्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आये. स्वामी जी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने नरेन्द्र को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी.

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी थे. परमहंस जी की कृपा से स्वामी जी को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ और वे परमहंस जी के प्रमुख शिष्य हो गए.

1885 में रामकृष्ण परमहंस जी की कैंसर के कारण मृत्यु हो गयी. उसके बाद स्वामी जी ने रामकृष्ण संघ की स्थापना की. आगे चलकर जिसका नाम रामकृष्ण मठ व रामकृष्ण मिशन हो गया.

Swami Vivekananda Biography In Hindi

शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन (Swami Vivekananda’s chicago Dharma Sammelan)

11 सितम्बर 1893 के दिन शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन होने वाला था. स्वामी जी उस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

जैसे ही धर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने अपनी ओजस्वी वाणी से भाषण की शुरुआत की और कहा “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” वैसे ही सभागार तालियों की गडगडाहट से 5 मिनिट तक गूंजता रहा. इसके बाद स्वामी जी ने अपने भाषण में भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति के विषय में अपने विचार रखे. जिससे न केवल अमेरीका में बल्कि विश्व में स्वामीजी का आदर बढ़ गया.

स्वामी जी द्वारा दिया गया वह भाषत इतिहास के पन्नों में आज भी अमर है. धर्म संसद के बाद स्वामी जी तीन वर्षो तक अमेरिका और ब्रिटेन में वेदांत की शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते रहे. 15 अगस्त 1897 को स्वामी जी श्रीलंका पहुंचे, जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ.

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स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग (Swami Vivekananda Story in Hindi)

जब स्वामी जी की ख्याति पूरे विश्व में फैल चुकी थी. तब उनसे प्रभावित होकर एक विदेशी महिला उनसे मिलने आई. उस महिला ने स्वामी जी से कहा- “मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ.” स्वामी जी ने कहा- हे देवी मैं तो ब्रह्मचारी पुरुष हूँ, आपसे कैसे विवाह कर सकता हूँ? वह विदेशी महिला स्वामी जी से इसलिए विवाह करना चाहती थी ताकि उसे स्वामी जी जैसा पुत्र प्राप्त हो सके और वह बड़ा होकर दुनिया में अपने ज्ञान को फैला सके और नाम रोशन कर सके.

उन्होंने महिला को नमस्कार किया और कहा- “हे माँ, लीजिये आज से आप मेरी माँ हैं.” आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल गया और मेरे ब्रह्मचर्य का पालन भी हो जायेगा. यह सुनकर वह महिला स्वामी जी के चरणों में गिर गयी.

Swami Vivekananda Biography In Hindi

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (Swami Vivekananda Death)

4 जुलाई 1902 को स्वामी जी ने बेलूर मठ में पूजा अर्चना की और योग भी किया. उसके बाद वहां के छात्रों को योग, वेद और संस्कृत विषय के बारे में पढाया. संध्याकाल के समय स्वामी जी ने अपने कमरे में योग करने गए व अपने शिष्यों को शांति भंग करने लिए मना किया और योग करते समय उनकी मृत्यु हो गई.

मात्र 39 वर्ष की आयु में स्वामी जी जैसे प्रेरणा पुंज का प्रभु मिलन हो गया. स्वामी जी के जन्मदिवस को पूरे भारतवर्ष में “युवा दिवस“ के रूप में मनाया जाता हैं.

स्वामी जी के अनमोल विचार (Swami Vivekananda’s Quotes in Hindi)

  • ‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ. अपने मानव जन्म को सफल बनाओ और तब तक नहीं रूको जब तक लक्ष्य प्राप्त न कर लो’
  • हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र निर्माण हो. मानसिक शक्ति का विकास हो. ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम खुद के पैरों पर खड़े होने में सक्षम बन जाएं.

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3 thoughts on “स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Biography In Hindi”

बहुत बढ़िया लिखा है नीस , स्वामी विवेकानंद जी से जुडी रोचक जानकारियां जानने के लिए यहां किल्क करें।

very nice biography .. thanks for sharing

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Swami vivekananda biography in hindi

Swami vivekananda biography in hindi | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

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नमस्ते दोस्तों स्वागत है आपका मेरे इस ब्लॉग पर।आज मैं आपको भारत के एक महान व्यक्ति की जीवनी के बारे मैं बताऊँगा। आपको जानकर खुशी होगी कि उनका जन्म भारत के कलकत्ता बंगाल मे हुआ था। जी हां दोस्तों आपने सही सोचा उनका नाम है स्वामी विवेकानंद जो भारत में बहुत लोकप्रिय है। आज हम इस लेख में देखेंगे Swami vivekananda biography in hindi . इस लेख को पूरा पढ़े जिससे आप Swami vivekananda जेसे आध्यात्मिक गुरु से रूबरू हो पाएंगे।

Table of Contents

General Information:- (Swami vivekananda biography in hindi)

स्वामी विवेकानंद जन्म और परिवार (swami vivekananda birth & family).

इनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था जिनको आज हम स्वामी विवेकानंद के नाम से जानते है। आज के इस गोर कलयुग मैं युवा पीढ़ी को अपना जीवन सफल बनाने के लिए उनको आविष्कार और नई विचारों की जरूरत रहती है। इसलिए हम आपके लिए स्वामी विवेकानंद जीकी जीवन की गाथा ले कर आये है। जिससे आप प्रेरित होंगे। इनका पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त है।

आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जुलाई 1902 को हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का  नाम भुवनेश्वरी दत्त था। सन्यास धारण करने से पहले स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र दत्त था। नरेंद्र के पिता जी विश्वनाथ दत्त पाश्रात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे और वे अपने पुत्र को अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्रात्य सभ्यता के रास्ते पर चलाना चाहते थे। नरेंद्र के पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता के उच्च न्यायलय मे (Attorney-at-law) थे और उच्च न्यायलय में वकालत करते थे।

स्वामी विवेकानंद प्रारंभिक जीवन और बचपन (Swami vivekananda early life & childhood)

स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही सब बच्चों से अलग थे। इसलिए ही सायद उनको सब बच्चों से अलग तरह के सपने आते थे। एक बार जब स्वामी जी छोटे बच्चे थे तब उनको एक सपना आया था, उस सपने में उनको एक चमकता हुआ एक सुंदर गोला दिख रहा था। उस गोले से बहुत प्रकार की रोशनी की किरणें उन पर आ रहीं थीं। उस गोले का रंग और आकार धीरे धीरे बदल रहा था। एक समय के बाद वह गोला विस्फोट हो गया और वह फुट गया।

इस गोले मैं से सफेद किरण निकल रहीं थी। वो सफेद रोशनी स्वामी जी पर गिरने लगी। उस रोशनी ने स्वामी विवेकानंद को पूरी तरह अपने अंदर ढक लिया था। छोटी सी उम्र मैं स्वामी जी भिन्न भिन्न धर्मों के लिए जेसे की हिंदू-मुस्लिम और अमीर-गरीब, सफेद-काला रंग जेसे भेदभाव करने के लिए सवाल उठा ते थे।

एकबार जब स्वामी जी छोटे बच्चे थे तब उन्होंने अपने पिता से एक बार एक प्रश्न पूछा था कि आपने मेरे लिए क्या किया है। उनके पिता ने उनको आईना देखने के लिए कहा। उनके पिता जी ने कहा अपने आप को इस आइने मैं देखो, तुम खुद समझ जाओगे की मेने तुम्हारे लिए क्या-क्या किया है। फिर स्वामी जी ने एक बार अपने पिताजी से पूछा कि मुझको दुनिया के सामने अपनी केसी छबि रखनी चाहिए। पिताजी ने हस्ते हुए कहा बेटा कभी भी किसी चीज को देख के आश्चर्य चकित मत होना। यही कारण था कि स्वामी जी सब का आदर करते थे और किसी को भी चोट नहीं देते थे।

Maharana pratap biography in hindi

रामकृष्ण परमहंस से पहली मुलाकात (First meeting with Ramakrishna Paramhansa)

स्वामी विवेकानन्द बचपन से ही बुद्धिमान बच्चे थे और परमात्मा में वे बहुत मानते थे इनके पास बहोत आध्यात्मिक ज्ञान था इसीलिए ये पहले ब्रह्म समाज में गए परन्तु वहा इनका मन संतुस्ट ना हुआ और उसी समय वह अपने धार्मिक व आध्यात्मिक संशयो की निवारण हेतु अनेक लोगो से मिले लेकिन कही भी इनकी शंकाओ का समाधान ना मिला।

एक दिन स्वामी विवेकानंद के रिश्तेदार ने उनको रामकृष्ण परमहंस के बारे मैं बताया तब स्वामी विवेकानंद जी को उनमे रुचि होने लगी और उनसे मिलने की इच्छा हुई, तो उनके एक रिश्तेदार ने उनको रामकृष्ण परमहंस के पास ले गए।

रामकृष्ण परमहंस ने नरेंद्र को देखते ही एक प्रश्न पूछ कि लिया “क्या तुम धर्मं विषयक कुछ भजन गा सकते हो?” इसका उत्तर देते हुए नरेंद्र दत्त ने कहा कि हाँ, मैं धर्मं विषयक भजन गा सकता हूँ। फिर नरेंद्र ने कुछ भजन अपने मधुर स्वर से सुनाए। नरेंद्रनाथ के भजन सुन कर रामकृष्ण परमहंस बहुत ही ज्यादा खुश हो गए। तभी से नरेंद्र दत्त रामकृष्ण परमहंस सत्संग करने लग गए और उनके शिष्य बन गए।

नरेंद्र दत्त रामकृष्ण परमहंस के साथ रह कर दृढ़ अनुयायी बन गए थे। रामकृष्ण परमहंस का 16 अगस्त 1886 को वो परलोक सिधार गये। उसके बाद स्वामी विवेकानंद सन 1887 से 1892 तक अज्ञातवास मैं रहे। अज्ञातवास मैं रहने के बाद स्वामी विवेकानंद जीने वेदांत और हिंदी संस्कृति को प्रचलित करने के लिए योगदान देना चाहते थे। इसलिए स्वामी विवेकानंद एक बहुत बड़े ज्ञानी महा-पुरुष थे। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन मैं कहीं सारे मंत्र दिए है। जो आपको सफल बनने के लिए आपके जीवन मैं बहुत काम आयेंगे। 

स्वामी विवेकानंद आध्यात्मिक जागृति (Swami Vivekananda Spiritual Awakening)

साल 1884 में, स्वामी विवेकानंद ने अपने पिता की मृत्यु के बाद खुद को काफी वित्तीय कठिनाई में पाया, क्योंकि उन्हें अपनी मां और उनके छोटे भाई-बहनों का समर्थन करना पड़ा था। स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस से अपने परिवार की वित्तीय भलाई के लिए देवी से प्रार्थना करने को कहा। रामकृष्ण परमहंस के सुझाव पर वे स्वयं मंदिर में प्रार्थना करने गए। लेकिन जैसे ही उन्होंने देवी का सामना किया, वे धन या संपति नहीं मांग सके, बल्कि “विवेक” और “बैराग्य” (एकांत) मांगे। उस दिन से नरेंद्रनाथ के पूर्ण आध्यात्मिक जागरण को चिह्नित किया गया था और वे एक तपस्वी जीवन शैली के लिए तैयार हो गए थे।

स्वामी विवेकानंद का जीवन बदलने वाला मंत्र (Swami vivekananda life changing mantra)

मंत्र 1:-  उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाये।

मंत्र 2:-  तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता नाही कोई तुम्हें सीखा सकता है, तुमको सब कुछ खुद अपने आत्मा से सीखना होगा।

मंत्र 3:- दुनिया मे खुद को कमजोर समझना, सबसे बड़ा पाप हैं।

मंत्र 4:- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप होता हैं।

मंत्र 5:- सत्य को हम हज़ार तरीकों से बता सकते हैं, फिर भी वह सत्य ही रहेगा।

मंत्र 6:- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।

मंत्र 7:- ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।

मंत्र 8:- शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।

मंत्र 9:- दिल और दिमाग के टकराव में हमेशा दिल की सुनो।

मंत्र 10:- किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये तो आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।

स्वामी विवेकानंद शिकागो धर्म परिषद (Swami vivekananda chicago dharma parishad)

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Swami Vivekananda Books in Hindi

Swami Vivekananda Books in Hindi – स्वामी विवेकानंद की वो शानदार पुस्तकें, जो देती हैं जीवन जीने की प्रेरणा

स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के एक उत्साही शिष्य और भारत में हिंदू धर्म के पुनरुद्धार में एक प्रमुख शक्ति थे। देश के महानतम सामाजिक नेताओं में से एक के रूप में प्रसिद्ध स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवनकाल में कई पुस्तकें लिखीं। स्वामी विवेकानंद की पुस्तकें (Swami vivekananda books in hindi) हमेशा से लोगों को प्रेरित करती आई हैं, खासतौर पर युवाओं को। हम आपके लिए यहां स्वामी विवेकानंद की किताबें (swami vivekananda best books in hindi) की एक सूची लेकर आये हैं। 

Table of Contents

प्रेरणादायी स्वामी विवेकानंद की पुस्तकें, swami vivekananda books in hindi.

स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्र दत्त था। स्वामी विवेकानंद ने अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर दिया था। स्वामी विवेकानंद ने 4 जुलाई 1902 को अपना देह त्याग दिया था। स्वामी विवेकानंद के विचार आज के वक्त में युवाओं और लोगों को काफी प्रेरित करते हैं। उनके विचारों की झलक उनकी लिखी पुस्तकों में भी नजर आती है। हम यहां आपके लिए स्वामी विवेकानंद की लिखी पुस्तकों में से 10 किताबों की लिस्ट लेकर आये हैं। हमें यकीन है, ये स्वामी विवेकानंद की किताबें आपको जरूर प्रेरित करेंगी। 

Swami Vivekananda Books in Hindi

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi

इस लेख में आप स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi पढ़ेंगे। जिसमें आप उनका जन्म, प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, महान कार्य तथा मृत्यु के विषय में पढ़ेंगे।

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू सन्यासी थे जो श्री रामकृष्ण के प्रत्यक्ष शिष्य थे। उन्हें भगवान का रूप माना जाता है। विवेकनद जी का भारतीय योग और पश्चिम में वेदांत दर्शन के ज्ञान को बांटने का बहुत ही अहम योगदान है। वर्ष 1893 में उन्होंने शिकागो में विश्व धर्म संसद के उद्घाटन में एक बहुत ही शक्तिशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने विश्व के सभी धर्मों में एकता का मुद्दा उठाया।

Table of Content

विवेकानंद ने पारंपरिक ध्यान का दर्शन दिलाया और निस्वार्थ सेवा को समझाया जिसे कर्म योग कहा जाता है। विवेकनद ने भारतीय महिलाओं के लिए मुक्ति और बुरे और बुरे जाती व्यवस्था को अंत करने का वकालत किया।

भारतीय लोगों और भारत देश का आत्मविश्वास बढाने में उनका बहुत ही अहम हाथ रहा और बाद मैं बहुत सारे राष्ट्रवादी नेताओं ने यह भी बताया की वे विवेकनद जी के सुविचारों और व्यक्तित्व से बहुत ही प्रेरित थे।

विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन Early life of Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 कलकत्ता, बंगाल, ब्रिटिश भारत मैं एक परम्परानिष्ठ हिन्दू परिवार में हुआ था। उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। एक बच्चे के रूप में भी विवेकानंद में असीम उर्जा था और वह जीवन के कई पहलुओं से मोहित हो गए थे।

उन्होंने इश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलीटैंट इंस्टीट्यूशन से अपनी पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की। पढाई में वह अच्छी तरह से पश्चिमी और पूर्वी दर्शनशास्त्र में निपुण हो गये। उनके शिक्षक यह टिप्पणी किया करते थे की विवेकानंद में एक विलक्षण स्मृति और जबरदस्त बौद्धिक क्षमता थी।

स्वामी विवेकानंद बहुत बुद्धिमान थे और वे पूर्व – पश्चिमी दोनों प्रकार के साहित्य में निपूर्ण थे। विवेकानंद विशेष रूप से पश्चिम के तर्कसंगत तरीके को पसंद करते थे जिसके कारण धार्मिक अंधविश्वासियों को निराशा भी हुई। इस चीज के कारण स्वामी विवेकानंद ब्राह्मो समाज से जुड़े।

ब्राह्मो समाज एक आधुनिक हिन्दू अन्दोलत था जिसमें उससे जुड़े लोगों ने भारतीय समाज और जीवन को पुनर्जीवित करने की मांग की और अध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ावा दिया। उन्होंने चित्र और मूर्ति पूजा जा विरोध किया।

हालाकिं ब्राह्मो समाज की समजदारी विवेकानंद को उतना आध्यात्मिकता नहीं दे सका। बहुत ही छोटी उम्र से हीउनके जीवन में अध्यात्मिक अनुभवों की शुरुवात हो गयी थी और 18 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने मन में “भगवान के दर्शन” पाने का एक भारी इच्छा बना लिया था।

श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद Ramakrishna Paramahansa and Swami Vivekananda

शुरुवात में कई बातों में रामकृष्ण परमहंस जी के विचार विवेकनंद से अलग थे। रामकृष्ण परमहंस जी एक अशिक्षित और साधारण ग्रामीण व्यक्ति थे जिन्होंने एक स्थानीय काली मंदिर में एक पद को लिया और वहां रहते थे तब भी उनके साधारण रूप में भी एक अत्याधुनिक अध्यात्मिक तेज़ दीखता था।

वे अपने मंदिर के माता काली के समक्ष तीव्र साधना करते थे और रामकृष्ण जी ने ना सिर्फ हिन्दू रसम रिवाज़ का पालन किया बल्कि सभी मुख्य धर्मों के आध्यात्मिक पथ को भी अपनाया। उनका यह मानना था कि सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य है वो है एकता के साथ अनंत की खोज।

विवेकानंद के अध्यात्मिक शक्ति के विषय में रामकृष्ण को जल्द यह पता चल गया और जल्द ही उनका ध्यान विवेकानंद के ऊपर हुआ जो पहले रामकृष्ण के विचारों को सही तरीके से समझ नहीं पाते थे। विवेकानंद शुरुवात में रामकृष्ण के विचारों का विश्वास भी नहीं करते थे और उनके उपदेशों को बार-बार पूछते थे और उनकी शिक्षा के प्रति बहस भी करते थे।

हलाकि बाद में श्री रामकृष्ण परमहंस जी के सकारात्मक विचारों ने विवेकानंद के हृदय को पिघला दिया और वो भी रामकृष्ण से उत्पन्न होने वाले वास्तविक आध्यात्मिकता का अनुभव करने लगे। लगभग 5वर्षों के अवधि के लिए, विवेकनद को सीधे मास्टर श्री रामकृष्ण जी से सिखने का मौका मिला। उनसे शिक्षा लेने के बाद स्वामी विवेकानंद को चेतना और समाधी के गहरे स्थिति का अनुभव हुआ।

विवेकानंद ने अपने गुरु से जीवन भर इस प्रकार के निर्वाण के परमानंद का अनुभव प्रदान करने के लिए पुछा। परन्तु श्री रामकृष्ण का उत्तर आया – मेरे लड़के, मुझे लगता है तुम्हारा जन्म कुछ बहुत बड़ा ही करने के लिए हुआ है।

रामकृष्ण के मृत्यु के बाद, अन्य शिष्यों ने विवेकानंद को उनका नेतृत्व करने के लिए कहा ताकि वे भी रामकृष्ण जी के अध्यात्मिक  विचारों से अवगत हो सकें। हलाकि विवेकानंद के लिए व्यक्तिगत मुक्ति काफी नहीं था उनका ध्यान तो गरीब, भूखे लोगों की और था। विवेकानंद जी का कहना था मात्र मानवता से ही इश्वर या भगवान् को पाया जा सकता है।

कई वर्षों के तप और ध्यान के पश्चात् स्वामी विवेकानंद ने भारत के कई पवित्र स्थानों का भ्रमण करना शुरू कर दिया। उसके बाद वे अमेरिका – विश्व धर्म संसद, सन्यासी का भेस धारण कर गेरुआ वस्त्र पहन कर गए।

विश्व धर्म संसद में विवेकानंद का भाषण Vivekananda Speech– World Parliament of Religions.

स्वामी विवेकानंद ने साल 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद के उद्घाटन में एक बहुत ही शक्तिशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने विश्व के सभी धर्मों में एकता का मुद्दा उठाया।

उद्घाटन समारोह में विवेकानंद आखरी के कुछ भाषण देने वालों में से एक थे।  उनसे पहले भाषण देने वाले व्यक्ति ने अपने स्वयं के धर्म का अच्छाई और विशेष चीजों के बारे में बताया परन्तु स्वामी विवेकानंद ने सभी दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि उनका दृष्टिकोण मात्र  इश्वर के समक्ष सभी धर्मों की एकता है।

. ( see Speech to Parliament )

उन्होंने अपना भाषण कुछ इन शब्दों में शुरू किया –

Sisters and Brothers of America, It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world; . . .

स्वामी विवेकानंद हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए चीन गए थे। लेकिन विवेकानंद ने अपने धर्म को बड़ा और अच्छा दिखाने का कोई कोशिश नहीं किया बल्कि उन्होंने वहां विश्व धर्म सद्भाव और मानवता के प्रति आध्यात्मिकता भाव को व्यक्त किया।

The New York Herald ने विवेकानंद के विषय में कहा –

He is undoubtedly the greatest figure in the Parliament of Religions. After hearing him we feel how foolish it is to send missionaries to this learned nation. निश्चित रूप से वो धर्म संसद में सबसे ज़बरदस्त व्यक्ति थे। उन्हें सुनने के बाद हम यह एहसास कर सकते हैं कि यह कितना मुर्खता है की हम अपने धर्म-प्रचारक इतने शिक्षित देश में भेजते हैं।

अमरीका में विवेकानंद ने अपने कुछ करीबी शिष्यों को ट्रेनिंग भी देना शुरू किया ताकि वे वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार कर सकें। उन्होंने अपने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अमरीका और ब्रिटेन दोनों जगह छोटे सेंटर शुरू कर दिए। विवेकानंद को ब्रिटेन में भी कुछ ऐसे लोग मिले जो वेदांत की शिक्षा को लेने में इच्छुक हुए।

मिस मार्गरेट नोबल उन्ही में से एक ध्यान देने वाला नाम था जिसका नाम बाद में मिस निवेदिता पड़ा। वह आयरलैंड की रहनेवाली थी जो विवेकनद की एक शिष्या थी। उन्होंने आपना पूरा जीवन भारतीय लोगो के लिए समर्पण कर दिया। पश्चिमी देशों में कुछ वर्ष समय बिताने के बाद विवेकानंद भारत वापस आगए। सभी लोगों ने उनका उत्साहपूर्ण स्वागत किया।

भारत लौटने के बाद स्वामी विवेकानंद ने भारत में अपने मठों का पुनर्गठन किया और अपने वेदान्तिक सिधान्तों के सच्चाई का उपदेश देना शुरू कर दिया। उन्होंने निःस्वार्थ सेवा के फायदों के बारे में भी बताया।

मृत्यु Death

4 जुलाई , 1902, बेलूर, भारत में 39 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद निधन हो गया। पर अपने इस जीवन के छोटे अवधि में भी वो बहुत कुछ सिखा कर गए जो आज तक पूरे विश्व को याद है। इसी कारण स्वामी विवेकानंद जी को आधुनिक भारत के संरक्षक संत का नाम दिया गया।

4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi”

He is real hero of world

Yes he Is a real hero of world

very nice, bhut hi badiya trike se btaya aapne thanks

You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.

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Vivekananda: A Biography

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Uploaded by vivekavani on January 17, 2021

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Best Books by Swami Vivekananda

Swami Vivekananda Books | A List of 28 Best Books

Are you looking for Swami Vivekananda Books? In this article, I list 28 books which are must-reads to understand the thoughts, ideals and philosophies of Swamiji.

Swami Vivekananda was an Indian Hindu monk, public speaker , Vedanta philosopher and Yoga practitioner. He was the chief disciple of Sri Ramakrishna Paramahamsa.

He is best remembered as the founder of the Ramakrishna Mission and the Ramakrishna Math .

His speech at the Parliament of the World’s Religions in Chicago in 1893 brought him International fame. It introduced the concept and philosophy to the Western World.

Named Narendra Nath Datta at birth by his aristocratic Bengali parents in Calcutta, he is considered a patriotic saint for propagating the message of Vedanta in the west through hundreds of speeches and lectures.

His works are still read by millions of followers even today. Some of his other books are Sangeet Kalpataru, Karma Yoga, and Lectures from Colombo to Almora, Raja Yoga and Vedanta Philosophy: An address before the Graduate Philosophical Society.

Best Books by Swami Vivekananda

Table of Contents

1. complete works of swami vivekananda (9 vols.), 2. raja-yoga (1896), 3. karma yoga: the yoga of action (1896), 4. meditation and its methods, 5. jnana-yoga (1899), 6. teachings of swami vivekananda, 7. swami vivekananda on himself, 8. vedanta: voice of freedom, 9. lectures from colombo to almora, 10. lectures on bhagavad gita, 11. inspired talks by swami vivekananda, 12. letters of swami vivekananda, 13. my india: the india eternal, 14. powers of the mind, 15. chicago addresses, 16. my master, 17. essentials of hinduism, 18. living at the source, 19. my idea of education, 20. work and its secret, 21. steps to realisation, 22. to the youth of india, 23. pearls of wisdom, 24. women of india, 25. life after death, 26. the east and the west, 27. religion of love, 28. pathways to joy: the master vivekananda on the four yoga paths to god.

Complete Works of Swami Vivekananda

Complete Works of Swami Vivekananda (9 vols.) is an exhaustive collection of Swami Vivekananda’s speeches and works.

It brings together his thoughts on Vedanta, philosophy, and human consciousness. His teachings in these volumes convey the core meaning of Vedanta philosophy in an easy-to-understand way.

Swami Vivekananda (complete 8 volume set in English)

This book, as the title suggests, is a book by Swami Vivekananda on Raja Yoga . It contains, for the most part, his interpretation of Patanjali’s Yoga Sutras.

This book was written keeping his Western audience and reader in mind.

The book begins with a brief introduction to Yoga. It explains various techniques for practising basic Yoga exercises like Prânâyâma, Pratyâhâra, Dhyâna, Samâdhi etc.

The book also provides insights into developing concentration and the powers of practising Yoga.

Raja-Yoga or Conquering the Internal Nature

Karma Yoga: The Yoga of Action is a book of lectures by Swami Vivekananda, as transcribed by Joseph Josiah Goodwin.

The main subject of the book is Karma (Work) and Karma Yoga (The Yoga of Action). Vivekananda uses the concept of Karma as described in the Bhagavad Gita to explain his philosophy.

The final message is that work is worship and a path to enlightenment.

Karma Yoga: The Yoga Of Action

Meditation and Its Methods is divided into two sections:

  • Meditation according to Yoga and
  • Meditation according to Vedanta.

Vivekananda’s views on meditation are sprinkled throughout his “Complete Works”. These various views, thoughts, opinions, and lectures are compiled to make this book.

Jnana Yoga

Jnana Yoga or The Yoga of Knowledge is a book of lectures by Swami Vivekananda as transcribed by Joseph Josiah Goodwin. These lectures were delivered mostly in New York.

In this book, Vivekananda explains the knowledge of the Vedas, Upanishads, and the Bhagavad Gita in a scientific manner.

According to him, knowledge is the ultimate goal. It is only knowledge which can give us freedom from Maya or illusion.

The book also touches upon other important Hindu philosophies like the atman , cosmos, immortality etc.

Jnana-Yoga , along with Karma-Yoga , Bhakti-Yoga , and Raja-Yoga , is a classic book on Hindu philosophy.

Jnana Yoga (Pb)

Teachings of Swami Vivekananda comprises a choice collection of his speeches, quotes, and teachings. These are categorised into 44 suitable sections.

This is a perfect book for a beginner reader looking to start Vivekananda’s books.

It is suitable for those who cannot make the time to go through his voluminous writings.

Teachings of Swami Vivekananda

This book is a biography of Swami Vivekananda written in an autobiographical manner. It was first published in 1963.

The publishers have picked up excerpts from his various books and written them in the first-person voice.

The life and different incidents of Swami Vivekananda’s life have been documented in this book.

Swami Vivekananda on Himself

Vedanta: Voice of Freedom presents the spiritual wisdom of India as it has evolved over five thousand years. It does so in a clear, easy and concise form.

The book is a compilation of Vivekananda’s ideas on the subject of Vedanta. The ideas have been sourced from his various speeches and books.

Vedanta: Voice of Freedom

After visiting the West, Vivekananda reached Colombo on 15 January 1897.

From there he proceeded to India and was received as a hero. He went around the country making speeches to thousands of people who were eager to hear him.

Lectures from Colombo to Almora is a collection of many of those speeches.

Lectures from Colombo to Almora

This book would be useful to people who are trying to understand the Gita.

“Lectures on the Bhagavad Gita” is an anthology of Vivekananda’s writings, opinions and comments on the sacred Hindu text.

The Bhagavad Gita was a lifelong companion of Swami Vivekananda and he used to carry one wherever he went.

All these lectures were delivered in 1900 and were recorded by Ida Ansell in shorthand.

Bhagavad Gita As Viewed by Swami Vivekananda

In 1895, Vivekananda conducted a series of private lectures to groups of selected disciples. These lectures were recorded by one of the disciples, Sara Ellen Waldo (who was later known as Haridasi ).

Inspired Talks by Swami Vivekananda was first published in 1909 by The Ramakrishna Mission .

Inspired Talks

Letters of Swami Vivekananda is a close look at the personality and spirit of Swami Vivekananda as seen through his letters.

In this book, the reader gets a picture of Vivekananda that is untouched by any biographer.

The letters have been arranged in chronological order for the benefit of the reader. The letters show the plan of his work and the means he wanted to adopt for the fulfilment of his mission.

In the end, the book also has notes on the persons who are mentioned in these letters.

Letters of Swami Vivekananda

My India: The India Eternal talks about India’s past, its present and Vivekananda’s vision for its future.

Swami Vivekananda talks about the duties of India’s youth and the path they must follow to make India a great nation.

The book also includes his comments on education and religion.

MY INDIA THE INDIA ETERNAL

This is a booklet but packs more information than other volumes written on the subject of mind.

It is a lecture delivered by Swami Vivekananda in Los Angeles on January 8 th , 1900.

Powers of The Mind talks about the infinite possibilities and powers hidden within the human mind. It also explains how the powers of the mind can be unlocked using Yoga.

Powers of the Mind + Work and its Secret + Vivekananda: His Call to the Nation + Thoughts of Power

Swami Vivekananda attained global fame because of his speech at the World Parliament of Religions in Chicago in 1893.

Chicago Addresses contains those lectures delivered by him.

Through these speeches, Swamiji wished to impart the teachings of Vedanta to the world. The core theme of his lecture was – brotherhood and universal acceptance.

Chicago Addresses

While in the West, Swami Vivekananda mostly talked about and preached the beauties of Vedanta. But on two occasions – in New York and England – he talked about his Guru, Sri Ramakrishna Paramhamsa .

My Master contains both those lectures in which Swamiji discusses his Master’s life right from his birth in 1836 to his evolution from Gadadhar Chattopadhyay (Pre-monastic name of Ramakrishna) to Ramakrishna Paramhamsa .

My Master

This book is a detailed account of Hinduism.

It begins by describing the word ‘Hindu’ and goes on to discuss the various schools of thought in Hinduism.

It stresses upon the Vedanta Philosophy and the Advaita system. The book also talks about the various Hindu scriptures, Smritis and sects in Hinduism.

Swami Vivekananda discusses other deeper topics like the theory of creation, law of karma, aatma, mukti , idol worship, guru , divine incarnations and much more.

Essentials of Hinduism

This book has many inspirational messages which have been selected from the various writings, speeches and teachings of Swami Vivekananda.

The book is ideal for people seeking to live a spiritual life but are busy with their everyday material life.

Living at the source: Yoga teachings of Vivekananda

Swami Vivekananda had many insightful and deep thoughts on education – a subject very close to his heart.

In My Idea of Education, he writes about the philosophy of education, the relationship between society and education, and The Teacher.

Swamiji presents some brilliant ideas on educating the masses and women – concepts which were far ahead of their times in India.

Swamiji also writes about the importance of practical experience, mother tongue and concentration.

The book ends with one of the main goals of a good education – Character Building.

My Idea of Education|| Swami Vivekananda||Advaita Ashrama

Work and Its Secret is based on the speech by Swami Vivekananda in Los Angeles, California on January 4th, 1900.

In it, Swamiji talks about giving equal importance to both the means and the end while doing work.

He emphasises that the major reason for failure is a lack of attention while doing work.

Swamiji draws upon the lessons of the Bhagavad Gita to emphasise this point.

Work and Its Secret

Steps to Realisation explains the secrets of self-realisation.

The book begins by explaining the concept of organs – the external organs i.e., eyes, nose, and mouth are mentioned as instruments and internal organs i.e., brain, and heart are considered as organs.

Swami Vivekananda explains the importance of shutting down the instruments to activate the organs –

“So in order to control the mind, we must first be able to control these organs. To restrain the mind from wandering outward or inward, and keep the organs in their respective centres” .

Other important concepts like Shama, Dama, Uparati, Titikshâ, Shraddhâ, Samâdhâna , and Mumukshutva which lead to self-realisation are also explained.

Steps to Realisation: The secrets of self-realization.

To the Youth of India is a collection of some of the rousing and inspiring lectures that Swami Vivekananda delivered to vast audiences in India and Sri Lanka after his rise to fame.

It has some of the best messages that can be given to the youth of India.

This book is recommended for all young minds and should be definitely read by girls and boys alike.

To the Youth of India

The content of this book is derived from “Complete Works of Swami Vivekananda” .

Pearls of Wisdom is a collection of all the quotes and thoughts by Swamiji, grouped into different themes like love, knowledge, leader etc.

These quotes have inspired many people over the years and will surely inspire many others in the future.

Pearls of Wisdom

Women of India is based on the lecture delivered by Swami Vivekananda at the Shakespeare Club House, in Pasadena, California, on January 18, 1900.

The content is focused on the position of women in Indian society.

Swamiji touches upon the glory and stature of Indian women and tries to clear some of the misunderstandings that Westerners might have about Indian women –

“Now, the ideal woman in India is the mother, the mother first, and the mother last.”

Swamiji also narrates the difference between the concept of women in the East and the West.

Women of India

Perhaps no other subject has haunted the human mind, right from the hoary past, with such unerring consistency as the one regarding life and death.

Is man mortal or immortal? What is reincarnation? What happens when a man dies?

Every man is forced to ask these questions at some juncture in his life.

Life after Death by Swami Vivekananda provides brief but clear answers to these fundamental questions.

Life After Death : None Has Power To Destroy The Unchangable

In The East and the West , Swami Vivekananda makes a comparative study of Eastern and Western cultures.

The book is divided into six chapters – Customs, Food and Cooking, Civilisation in Dress, Etiquette and Manners, France — Paris and Progress in Civilisation.

The East and the West

Religion of Love is based on a lecture delivered by Swami Vivekananda in London on November 16, 1895.

Swamiji classifies love into 5 types –

  • Shânta , a common, peaceful love, with such thoughts as those of fatherhood and help
  • Dâsya , the ideal of service
  • Vâtsalya , God as mother or child.
  • Sakhya , God as a friend.
  • Madhura , sweetest love, the love of husband and wife.

Pathways to Joy

Pathways to Joy is a collection of 108 of the best teachings of Swami Vivekananda on Vedanta Philosophy.

Swamiji illustrates the four classical yoga paths – Karma, Bhakti, Raja and Jnana .

The messages focus on the oneness of existence; the divinity of the soul; the truth in all religions; and unifying with the Divine within.

Invaluable and inspiring, the selections also explore karma, maya, rebirth, and other great revelations of Hinduism.

Pathways to Joy: The Master Vivekananda on the Four Yoga Paths to God

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