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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi)

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। हम उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं। वह आध्यात्मिक विचारों वाले अद्भूत बच्चे थे। इनकी शिक्षा अनियमित थी, लेकिन इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बीए की डिग्री पूरी की। श्री रामकृष्ण से मिलने के बाद इनका धार्मिक और संत का जीवन शुरु हुआ और उन्हें अपना गुरु बना लिया। इसके बाद इन्होंने वेदांत आन्दोलन का नेतृत्व किया और भारतीय हिन्दू धर्म के दर्शन से पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Long and Short Essay on Swami Vivekananda in Hindi, Swami Vivekananda par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 – 300 शब्द).

स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है। अपने महान कार्यों द्वारा उन्होंने पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

विश्वभर में ख्याति प्राप्त संत, स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह बचपन में नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे। इनकी जयंती को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है। वह विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील, और भुवनेश्वरी देवी के आठ बच्चों में से एक थे। वह बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे और अपने संस्कृत के ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे।स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति वाले थे और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए काफी परेशान थे।

स्वामी विवेकानद का ह्रदय परिवर्तन

 एक दिन वह श्री रामकृष्णसे मिले, तब उनके अंदर श्री रामकृष्ण के आध्यात्मिक प्रभाव के कारण बदलाव आया। श्री रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने के बाद वह स्वामी विवेकानंद कहे जाने लगे।

वास्तव में स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि तमाम प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरे विश्व भर में हिंदु धर्म के विषय में लोगो का नजरिया बदलते हुए, लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया। अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं। यदि हम उनके बताये गये बातों पर अमल करें, तो हम समाज से हर तरह की कट्टरता और बुराई को दूर करने में सफल हो सकते हैं।

निबंध 2 (400 शब्द)

स्वामी विवेकानंद उन महान व्यक्तियों में से एक है, जिन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। अपने शिकागों भाषण द्वारा उन्होंने पूरे विश्व भर में हिंदुत्व के विषय में लोगो को जानकारी प्रदान की, इसके साथ ही उनका जीवन भी हम सबके लिए एक सीख है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता में शिमला पल्लै में 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जोकि कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करत थे और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के मुख्य अनुयायियों में से एक थे। इनका जन्म से नाम नरेन्द्र दत्त था, जो बाद में रामकृष्ण मिशन के संस्थापक बने।

वह भारतीय मूल के व्यक्ति थे, जिन्होंने वेदांत के हिन्दू दर्शन और योग को यूरोप व अमेरिका में परिचित कराया। उन्होंने आधुनिक भारत में हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित किया। उनके प्रेरणादायक भाषणों का अभी भी देश के युवाओं द्वारा अनुसरण किया जाता है। उन्होंने 1893 में शिकागो की विश्व धर्म महासभा में हिन्दू धर्म को परिचित कराया था।

स्वामी विवेकानंद अपने पिता के तर्कपूर्ण मस्तिष्क और माता के धार्मिक स्वभाव से प्रभावित थे। उन्होंने अपनी माता से आत्मनियंत्रण सीखा और बाद में ध्यान में विशेषज्ञ बन गए। उनका आत्म नियंत्रण वास्तव में आश्चर्यजनक था, जिसका प्रयोग करके वह आसानी से समाधी की स्थिति में प्रवेश कर सकते थे। उन्होंने युवा अवस्था में ही उल्लेखनीय नेतृत्व की गुणवत्ता का विकास किया।

वह युवा अवस्था में ब्रह्मसमाज से परिचित होने के बाद श्री रामकृष्ण के सम्पर्क में आए। वह अपने साधु-भाईयों के साथ बोरानगर मठ में रहने लगे। अपने बाद के जीवन में, उन्होंने भारत भ्रमण का निर्णय लिया और जगह-जगह घूमना शुरु कर दिया और त्रिरुवंतपुरम् पहुँच गए, जहाँ उन्होंने शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने का निर्णय किया।

कई स्थानों पर अपने प्रभावी भाषणों और व्याख्यानों को देने के बाद वह पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गए। उनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी ऐसा माना जाता है कि, वह ध्यान करने के लिए अपने कक्ष में गए और किसी को भी व्यवधान न उत्पन्न करने के लिए कहा और ध्यान के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।

स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषणों द्वारा पूरे विश्व भर में भारत तथा हिंदु धर्म का नाम रोशन किया। वह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके जीवन से हम सदैव कुछ ना कुछ सीख ही सकते हैं। यहीं कारण है कि आज भी युवाओं में इतने लोकप्रिय बने हुए हैं।

निबंध 3 (500 शब्द)

एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर विवेकानंद बने। अपने कार्यों द्वारा उन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। यहीं कारण है कि वह आज के समय में भी लोगो के प्रेरणास्त्रोत हैं।

भारत के महापुरुष – स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में मकर संक्रांति के त्योहार के अवसर पर, परंपरागत कायस्थ बंगाली परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त (नरेन्द्र या नरेन भी कहा जाता था) था। वह अपने माता-पिता (पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला थी) के 9 बच्चों में से एक थे। वह पिता के तर्कसंगत मन और माता के धार्मिक स्वभाव वाले वातावरण के अन्तर्गत सबसे प्रभावी व्यक्तित्व में विकसित हुए।

वह बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिन्दू भगवान की मूर्तियों (भगवान शिव, हनुमान आदि) के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और भिक्षुओं से प्रभावित थे। वह बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे, उनके एक कथन के अनुसार, “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक भेज दिया।”

उन्हें 1871 (जब वह 8 साल के थे) में अध्ययन के लिए चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिल कराया गया। वह सामाजिक विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्रों और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया।

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद के विचार

वह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे हिन्दू शास्त्रों (वेद, रामायण, भगवत गीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि) में रुचि रखते थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी रुचि रखते थे। उन्हें विलियम हैस्टै (महासभा संस्था के प्राचार्य) के द्वारा “नरेंद्र वास्तव में एक प्रतिभाशाली है” कहा गया था।

वह हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित थे और हिन्दू धर्म के बारे में देश के अन्दर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच में नई सोच का निर्माण करने में सफल हुए। वह पश्चिम में ध्यान, योग, और आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने में सफल हो गए। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे।

उन्होंने राष्ट्रवादी विचारों के माध्यम से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित किया। भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरबिंद ने उनकी प्रशंसा की थी। महान हिंदू सुधारक के रुप में, जिन्होंने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया, महात्मा गाँधी ने भी उनकी प्रशंसा की। उनके विचारों ने लोगों को हिंदु धर्म का सही अर्थ समझाने का कार्य किया और वेदांतों और हिंदु अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरिये को भी बदला।

उनके इन्हीं कार्यों के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल) ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था। उन्हें सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा “आधुनिक भारत के निर्माता” कहा गया था। उनके प्रभावी लेखन ने बहुत से भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं; जैसे- नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरविंद घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया। ऐसा कहा जाता है कि 4 जुलाई सन् 1902 में उन्होंने बेलूर मठ में तीन घंटे ध्यान साधना करते हुए अपनें प्राणों को त्याग दिया।

अपने जीवन में तमाम विपत्तियों के बावजूद भी स्वामी विवेकानंद कभी सत्य के मार्ग से हटे नही और अपने जीवन भर लोगो को ज्ञान देने कार्य किया। अपने इन्हीं विचारों से उन्होंने पूरे विश्व को प्रभावित किया तथा भारत और हिंदुत्व का नाम रोशन करने का कार्य किया।

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Swami Vivekananda Essay in Hindi (स्वामी विवेकानंद पर निबंध) - 100, 200, 500 शब्दों में

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) - जब आध्यात्मिकता की बात की जाती है तो भारत का नाम आना सहज ही है। परंतु अध्यमिकता को विश्व-पटल पर ले जानें का श्रेय किसी को दिया जाता है, तो स्वामी विवेकानंद जी का नाम सबसे पहले आता है। विश्व में भारत की पहचान स्थापित करने का कार्य स्वामी विवेकानंद जी ने ही शुरू किया। यह उस समय की बात है जब भारत अक्रांताओं से पीड़ित था। औपनिवेशिक काल में भारत अपनी अस्मिता ढूँढने का प्रयास कर रहा था। यह ऐसे समय की बात है जब भारत को सांपों और सपेरो के देश के रूप में देखा जाता था। भारतियों को हीन दृष्टि से देखा जाता था। उस समय वास्तविक भारत को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने का कार्य स्वामी विवेकानंद जी ने किया।

Swami Vivekananda Essay in Hindi (स्वामी विवेकानंद पर निबंध) - 100, 200, 500 शब्दों में

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) : विवेकानंद जी के कुछ प्रेरणादायक उद्धरण

  • उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।

एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।

  • एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।

पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।

एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।

स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व के समक्ष भारत की बौद्धिक शक्ति को उजागर करने का प्रयास किया। स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय वेदान्त दर्शन, भारतीय परंपरा तथा सनातन धर्म के बारे में विश्व को जागरूक किया। हमारे देश के सामर्थ्य को दुनिया के सामने प्रकट करने में स्वामी विवेकानंद जी का बहुत बड़ा योगदान हैं। अक्सर छात्र विवेकानंद पर निबंध या विवेकानंद पर स्पीच(swami vivekananda speech in hindi) इंटरनेट पर सर्च करते रहते है। स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda essay in hindi) के माध्यम से आप स्वामी विवेकानंद जी के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे। इसके अलावा आप स्वामी विवेकानंद पर स्पीच (swami vivekananda speech in hindi) भी दें पाएंगे। अपनी जानकारी को समृद्ध करने के लिए स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda essay in hindi) को पूरा पढ़ें।

महत्वपूर्ण लेख :

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) : स्वामी विवेकानन्द के बारे में पैराग्राफ (paragraph about Swami Vivekananda)

विवेकानंद जी का जन्म कोलकाता के कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को हुआ। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान से हुई। इसके बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन प्राप्त किया। स्वामी विवकानंद जी की स्कूली शिक्षा अनियमित थी लेकिन उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। इसके अलावा उन्होंने ललित कला परीक्षा भी उत्तीर्ण की। उनकी वास्तविक रुचि वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों, पुराणों आदि में हमेशा से ही थी। वह हमेशा से ही परमतत्व यानि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उत्साहित रहते थे। अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया। सन्यास लेने के बाद विवेकानंद जी का नाम वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजित सिंह के नाम पर 'विवेकानंद' रखा गया।

सन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी विवेकानंद जी ने भारत भ्रमण तथा विश्व यात्रा करना आरंभ कर दिया। स्वामी विवेकानंद जी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पैदल भ्रमण के बाद जापान, चीन कनाडा की यात्रा करते हुए 1893 में अमेरिका के शिकागो पहुंचे। जहां उन्होंने धर्म सभा को संबोधित किया और अपना विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया। इस भाषण की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

स्वामी विवेकानंद जी ने सबसे पहले अमेरिका के लोगो को बहन तथा भाई कहकर संबोधित किया।

स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय समाज को सहिष्णु तथा सार्वभौम स्वीकृत करने वाला बताया।

उन्होंने भारत को वास्तव में सभी धर्मो का सम्मान करने वाला बताया।

उनके अनुसार भारत उन सभी लोगो को शरण देता है, जो दुनिया के दूसरे भागों में शोषित किए गए है।

उन्होंने एक श्लोक- ‘रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥’ की चर्चा करते हुए कहा कि इसका तात्पर्य है कि जैसे विभिन्न नदियां अलग-अलग मार्गों के माध्यम से यात्रा करती हुई अंत में समुद्र में जाकर मिलती है। उसी प्रकार अलग-अलग धर्मों का अनुसरण करते हुए व्यक्ति अंत में ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है। ये धर्म बेशक अलग-अलग लगते है परंतु अंत में ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग हैं।

स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनके वीभत्स वंशजों ने इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज किया हैं। इनके कारण पृथ्वी कई बार रक्त से लाल हो चुकी है। यदि ये न होते तो मानव विकास अपने चरमोत्कर्ष पर होता और न जानें कितनी सभ्यताएं जो इनकी हठधर्मिता की बलि चढ़ गई, आज जीवित होती।

इस भाषण से देश-विदेश में उनकी ख्याति हुई। बहुत से लोग उनके अनुयायी बन गए। उन्होंने भारतीय तत्व-ज्ञान का प्रसार किया। उनकी भाषण-शैली के कारण अमेरिका के समाचार पत्रों ने उन्हें 'साइक्लॉनिक हिन्दू' का नाम प्रदान किया। उनका मानना था कि "अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा।"

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) : विवेकानंद जी की शिक्षा तथा योगदान

विवेकानंद जी का योगदान भारतीय समाज के उद्धार के लिए अविश्वसनीय है। उन्होंनें देश के सर्वांगीण विकास के लिए हमेशा प्रयास किए। भारत के बारे में वास्तविक ज्ञान का प्रसार करने का श्रेय विवेकानंद जी को ही जाता है। उन्होंने अमेरिकी मंच से भारतीय दर्शन को पहचान दिलवाई। उन्होंने ही विश्व को अध्यात्म का मार्ग दिखाया। विवेकानंद जी ने 1 मई 1897 रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसका परम उद्देश्य वेदान्त दर्शन का प्रचार करना है तथा मानव सेवा और परोपकार करना है।

विवेकानंद जी ने शिक्षा और चरित्र निर्माण पर बल दिया है। वें मैकाले द्वारा प्रस्तावित उस समय की शिक्षा प्रणाली के विरोधी थे। क्योंकि इस शिक्षा प्रणाली के माध्यम से केवल बाबुओं का ही जन्म होता। इस शिक्षा प्रणाली के माध्यम से छात्रों के विकास में बाधा आनी तय थी। विवेकानंद जी चाहते थे की देश के युवाओं का सर्वांगीण विकास हो। वें छात्रों की व्यवहारिक शिक्षा पर अधिक बल देते थे। वें चाहते थे कि देश का युवा आत्म-निर्भर बने।

स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्तित्व का निर्माण और व्यवहारिक जानकारी प्राप्त करने से है। यदि किसी व्यक्ति में इन दोनों ही तत्वों कि कमी है तो ऐसी शिक्षा किस काम की। यदि व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपना सर्वांगीण विकास करने मे असमर्थ है तो ऐसी शिक्षा निराधार है। विवेकानंद जी के अनुसार "हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का गठन हो, मन का बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो और व्यक्ति स्वावलम्बी बने।" उनके अनुसार 'शिक्षा से तात्पर्य मनुष्य की अंतरात्मा पूर्णता की अभिव्यक्ति से है।'

युवाओं के प्रति इन विचारों के कारण भारत सरकार ने विवेकानंद जी की जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का निर्णय लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1984 को 'राष्ट्रीय युवा वर्ष' के रूप में घोषित किया गया। भारत सरकार ने इसकी महत्ता पर विचार करते हुए 12 जनवरी जो कि विवेकानंद जी की जयंती भी है, को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत रहें हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव कल्याण तथा सेवा में समर्पित किया है। उनकी गुरु भक्ति भी हमेशा से ही प्रेरणादायक रही है। इन गुणों को आत्मसात कर आज का युवा श्रेष्ठ युवा बन सकता है।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami vivekananda essay in hindi): विवेकानंद जी के युवाओं के लिए कुछ प्रेरणादायक अनमोल वचन इस प्रकार हैं:

  • खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।

सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।

विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।

शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।

जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।

जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था - चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda essay in hindi): आज के युग में विवेकानंद जी के विचारों की प्रासांगिकता

आज के युग में विवेकानंद जी के विचार बहुत अधिक प्रासांगिक है। यदि आप इनका अनुसरण करते है तो यह आपके चरित्र निर्माण से लेकर आपके पूरे व्यक्तित्व को परिवर्तित कर देंगे। स्वामी विवेकानंद जी हमेशा से ही प्रेरणा का स्त्रोत रहें हैं। उनका जीवन-चरित्र अपने आप में प्रेरणादायक है। जीवन संघर्ष का नाम है। स्वामी विवेकानंद जी ने स्वयं भी बहुत अधिक संघर्ष किया परंतु वें अपने जीवन की कठिनाइयों में तटस्थ रहें और कभी भी सत्य, ज्ञान, सेवा तथा परोपकार का मार्ग नहीं छोड़ा। आज उनके विचार हमारे बीच एक ज्योति का काम कर रहें है। इनके विचारों से प्रेरणा तो मिलती ही है साथ ही संघर्ष करने की शक्ति भी प्राप्त होती है। आज आप और हम उनके विचारों को आत्मसात कर अपनी समस्याओं, कठियाइयों तथा संघर्ष पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

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महत्वपूर्ण प्रश्न :

स्वामी विवेकानंद के बारे में स्पीच (swami vivekanand ke bare mein speech) कैसे दें?

स्वामी विवेकानंद के बारे में स्पीच या भाषण देने से पहले विवेकानंद के बारे में लेख पढ़ें। इस लेख में उनकी जीवनी और विचार दिए हुए है। इसके आधार पर एक भाषण तैयार करें जिसमें उनका जीवन परिचय, उनके कार्य, उनके प्रमुख योगदान, उनकी प्रेरणादायक बातों का जिक्र करें। स्वामी विवेकानंद के बारे में स्पीच देने के लिए इस लेख की मदद ले सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद के बारे में (about swami vivekananda in hindi) और स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (swami vivekananda ji ka jivan parichay) कैसे लिखें?

स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखने के लिए उनके जीवन परिचय से शुरुआत करें और उनके कार्यों की चर्चा करें। इसके लिए इस लेख की सहायता ले सकते हैं और इस प्रकार से लिख सकते हैं-

विवेकानंद जी का जन्म पश्चिम बंगाल के कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को हुआ। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान से हुई। उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। उनकी वास्तविक रुचि वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों, पुराणों आदि में हमेशा से ही थी। अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया। स्वामी विवेकानंद जी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पैदल भ्रमण के बाद जापान, चीन कनाडा की यात्रा करते हुए 1893 में अमेरिका के शिकागो पहुंचे। जहां उन्होंने धर्म सभा को संबोधित किया और अपना विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया।

उन्होंने अमेरिकी मंच से भारतीय दर्शन को पहचान दिलवाई। विवेकानंद जी ने 1 मई 1897 रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसका परम उद्देश्य वेदान्त दर्शन का प्रचार करना है तथा मानव सेवा और परोपकार करना है। विवेकानंद जी ने शिक्षा और चरित्र निर्माण पर बल दिया है। विवेकानंद जी चाहते थे की देश के युवाओं का सर्वांगीण विकास हो। वें छात्रों की व्यवहारिक शिक्षा पर अधिक बल देते थे। वें चाहते थे कि देश का युवा आत्मनिर्भर बने।

स्वामी विवेकानन्द का मूल नाम क्या था? (what was the original name of swami vivekananda?)

विवेकानंद जी का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया। सन्यास लेने के बाद विवेकानंद जी का नाम वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजित सिंह के नाम पर 'विवेकानंद' रखा गया।

राष्ट्रीय युवा दिवस कब मनाया जाता है? (rashtriy yuva divas kab manaya jata hai)

हर साल देश में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इसी दिन स्वामी विवेकानंद की जयंती भी होती है। 1984 में भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। 1985 से हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इस दिन को युवा दिवस के रूप में मनाकर स्वामी विवेकानंद के विचारों और आदर्शों को बढ़ावा देना है।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (swami vivekanand nibandh) कैसे लिखें?

स्वामी विवेकानंद जी पर निबंध लिखना बेहद ही कठिन कार्य है क्योंकि उनका व्यक्तित्व अपने आप में बेहद ही विशाल है। छात्र स्वामी विवेकानंद जी पर निबंध लिखने पर असमंजस की स्थिति में पढ़ जाते हैं कि उनके व्यक्तिव की किस विशेषता को अपने निबंध में स्थान दें। ऐसे में छात्र careers360 के इस निबंध का अनुसरण कर सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद के प्रमुख कार्य कौन से थे?

स्वामी विवेकानंद अपने जीवन में बेहद महत्वपूर्ण कार्य किए है। जिसमें से भारत की अस्मिता को विश्व पटल पर रखना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की तथा भारत में जन-कल्याण तथा जागरूकता के क्षेत्र में बहुत काम किया।

स्वामी विवेकानंद का परिचय कैसे दें?

स्वामी विवेकानंद जी को किसी भी परिचय की आवश्यकता नहीं है। स्वामी विवेकानंद देश को विश्व स्तर पहचान दिलवाने वाले महान व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद जी पर निबंध के माध्यम से आप उनके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Frequently Asked Question (FAQs)

स्वामी विवेकानंद जी के सिद्धांत को प्रतिपादित करते कुछ उद्धरण इस प्रकार हैं:

स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व को सत्य, ज्ञान, सेवा तथा परोपकार का उपदेश दिया।  

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): 200 और 500+ शब्दों में निबंध लिखना सीखें

Updated On: January 11, 2024 01:10 pm IST

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  • स्वामी विवेकानंद पर निबंध 500+ शब्दों में (Essay on Swami …
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स्वामी विवेकानंद पर निबंध

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है। स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। हम उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं। वह आध्यात्मिक विचारों वाले अद्भूत बच्चे थे। इनकी शिक्षा अनियमित थी, लेकिन इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की। श्री रामकृष्ण से मिलने के बाद इनका धार्मिक और संत का जीवन शुरु हुआ और उन्हें अपना गुरु बना लिया। इसके बाद इन्होंने वेदांत आन्दोलन का नेतृत्व किया और भारतीय हिन्दू धर्म के दर्शन से पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 200 शब्दों में (Essay on Swami Vivekananda in Hindi in 200 words)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): स्वामी विवेकानंद जी उन महान व्यक्तियों में से एक है, जिन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया। अपने शिकागों भाषण द्वारा उन्होंने पूरे विश्व भर में हिंदुत्व के विषय में लोगो को जानकारी प्रदान की, इसके साथ ही उनका जीवन भी हम सबके लिए एक सीख है। स्वामी विवेकानंद जी ने महान कार्यों द्वारा पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह बचपन में नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे। इनकी जयंती को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है। वह विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील, और भुवनेश्वरी देवी के आठ बच्चों में से एक थे। वह बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे और अपने संस्कृत के ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे। स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति वाले थे और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए काफी परेशान थे। स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिन्दू भगवान की मूर्तियों (भगवान शिव, हनुमान आदि) के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और भिक्षुओं से प्रभावित थे। वह बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे, उनके एक कथन के अनुसार, “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक भेज दिया।” स्वामी विवेकानंद जी का 1871 (जब वह 8 साल के थे) में अध्ययन के लिए चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन कराया गया। वह सामाजिक विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्रों और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया।

स्वामी विवेकानंद का योगदान

उन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल में ऐसे-ऐसे कार्य किये थे कि जिससे हमारे देश की अनेकों पीढ़ियों का मार्गदर्शन हो सकता है। उनके जीवन में सबसे प्रसिद्ध घटना शिकागो की थी। वह घटना अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन की थी, जहाँ वह हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जहाँ उनके भाषण की शुरुआत ने ही वहाँ की पूरी जनता का मन जीत लिया था।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 500+ शब्दों में (Essay on Swami Vivekananda in Hindi in 500+ words)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): स्वामी विवेकानंद एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर वे विवेकानंद बने। अपने कार्यों द्वारा उन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया। यहीं कारण है कि वह आज के समय में भी लोगो के प्रेरणास्त्रोत हैं।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय 

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में कोलकत्ता शहर में एक हाईकोर्ट के वकील के यहाँ हुआ।उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। स्वामी विवेकानंद जी का अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेन्द्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक, प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में सहायता की। बचपन से ही नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। कभी भी शरारत करने से नहीं चूकते थे फिर चाहे वे उनके साथी के साथ हो या फिर मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गये। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी।

स्वामी विवेकानंद का योगदान एंव महत्व

स्वामी विवेकानद का ह्रदय परिवर्तन.

एक दिन वह श्री रामकृष्णसे मिले, तब उनके अंदर श्री रामकृष्ण के आध्यात्मिक प्रभाव के कारण बदलाव आया। श्री रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने के बाद वह स्वामी विवेकानंद कहे जाने लगे। वास्तव में स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि तमाम प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरे विश्व भर में हिंदु धर्म के विषय में लोगो का नजरिया बदलते हुए, लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया। अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं। यदि हम उनके बताये गये बातों पर अमल करें, तो हम समाज से हर तरह की कट्टरता और बुराई को दूर करने में सफल हो सकते हैं।

10 लाइनों में स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in 10 lines)

  • स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेन्द्रनाथ विश्वनाथ दत्त है, नरेन्द्रनाथ यह उनका जन्म नाम है।
  • स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था।
  • स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस के दिन को राष्ट्रीय युवा दिन के रूप में मनाया जाता है।
  • स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और वह पेशे से हाई कोर्ट के वकील थे।
  • स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था।
  • स्वामी विवेकानंद ने कॉलेज में इतिहास, दर्शन, साहित्य जैसे विषयो का अध्ययन किया था और बी. ए. के परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हो गये थे।
  • स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है।
  • स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे।
  • जब स्वामी विवेकानंद शिकागो में भाषण देने गए थे तो उन्होंने सभी को “मेरे अमेरिका के बहनो और भाइयो” कह कर संबोधित किया था, जिस वजह से वहां उपस्थित सभी का दिल उन्होंने जित लिया।
  • स्वामी विवेकानंद जी ने 4 जुलाई 1902 को अपने शरीर का त्याग किया था।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में | Swami Vivekananda Essay in Hindi

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Swami Vivekananda Essay in Hindi:- स्वामी विवेकानंद को संयुक्त राज्य अमेरिका (United Nation America) में 1893 की विश्व धर्म संसद में उनके महत्वपूर्ण भाषण (Speech) के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने America में Hindu Religion का परिचय दिया और धार्मिक सहिष्णुता और कट्टरता को समाप्त करने का आह्वान किया था। Swami Vivekananda को नरेंद्रनाथ दत्त के नाम से भी जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मिशन के संस्थापक थे। 12 जनवरी के पूरे देश में Swami Vivekananda राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day ) के तौर पर मनाया जाएगा। Swami Vivekananda jayanti पर हम आपके लिए इस लेख के जरिए निबंध लेकर आए है। इस लेख में आपको स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के बारे में सारी जानकारियां देंगे। इस निबंध में हमने स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में , Essay on Swami Vivekananda in Hindi Swami Vivekananda Essay in Hindi, स्वामी विवेकानंद पर निबंध 250 शब्द (Swami Vivekananda Essay in 250 words), स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100 शब्द (Swami Vivekananda Essay in 100 Words) इन सभी बिंदूओं पर तैयार किया है। स्वामी जी के बारे में और जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़े।

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में.

Swami Vivekananda India में एक आध्यात्मिक नेता और एक हिंदू भिक्षु (Hindu Monk) थे।  वे उच्च विचार और सादा जीवन व्यतीत करते थे। स्वामी जी महान सिद्धांतों और धर्म परायण व्यक्तित्व वाले एक महान दार्शनिक थे। वह रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे और उनके दार्शनिक कार्यों में राजयोग और आधुनिक वेदांत शामिल हैं। Kolkata में रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ के संस्थापक थे। भारत में हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के रूप में राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (Chicago) में धर्म संसद में हिंदू धर्म प्रस्तुत किया, जिसने उन्हें काफी प्रसिद्ध बना दिया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 250 शब्द

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

Swami Vivekananda का जन्म ब्रिटिश सरकार (British Government) के दौरान 12 जनवरी 1863 को Kolkata में नरेंद्रनाथ दत्त के रूप में हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक वकील थे, वह बंगाली परिवार से थे। माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, जो मजबूत चरित्र, गहरी भक्ति के साथ अच्छे गुण वाली महिला थी। स्वामी जी ने 1984 में Kolkata University से Graduation की पढ़ाई पूरी की। विवेकानंद का जन्म योग प्रकृति के साथ हुआ था इसलिए वे हमेशा ध्यान करते थे, जिससे उन्हें मानसिक शक्ति प्राप्त होती थी। उन्होंने इतिहास, संस्कृत, बंगाली साहित्य और पश्चिमी दर्शनशास्त्र सहित विभिन्न विषयों में ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें भगवत गीता, वेद, रामायण, उपनिषद और महाभारत जैसे हिंदू शास्त्रों का गहरा ज्ञान था। स्वामी जी एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जिन्हे संगीत, अध्ययन, तैराकी और जिमनास्टिक का ज्ञान था।

रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात

Swami Vivekananda भगवान को देखने और भगवान के अस्तित्व के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक थे। जब वे दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण से मिले तो उन्होंने पूछा कि क्या उन्होंने भगवान को देखा है? रामकृष्ण ने स्वामी जी के पूर्व कर्मों को देखते हुए कहा कि हां उन्होंने भगवान को देखा है, वैसे ही जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूं। Ramkrishna Paramhans ने बताया कि भगवान हर इंसान के भीतर मौजूद है। स्वामी जी ने रामकृष्ण से दीक्षा ली और उन्हें अपना गुरु बनाया और यहीं से एक आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई। जब उन्होंने सन्यास की दीक्षा ली तब वह 25 वर्ष के थे और उनका नाम Swami Vivekananda रखा गया।

बाद में अपने जीवन में उन्होंने रामकृष्ण मिशन (Ramkrishna Mission) की स्थापना की,  जो धर्म, जाति और पंथ के बावजूद गरीबों और संकट ग्रस्त लोगों को सुरक्षित सामाजिक सेवा (Secure social service) प्रदान कर रहा है। 1893 में Chicago में आयोजित विश्व धर्म संसद में विवेकानंद जी ने भाग लिया और विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया। अपने भाषण में उन्होंने “अमेरिका के भाइयों और बहनों” के रूप में संबोधित कर सभी का दिल जीत लिया। स्वामी जी का प्रसिद्ध वाक्य है ” उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए”।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100 शब्द

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु.

Swami Vivekananda  ने 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में अंतिम सांस ली। उन्होंने घोषणा की कि वह 40 वर्ष की आयु तक नहीं पहुंचेंगे। उन्होंने 39 वर्ष की आयु में अपना नश्वर सभी छोड़ दिया और “महासमाधि” प्राप्त की।  लोगों ने कहा कि वह 31 बीमारियों से पीड़ित थे। उन्होंने India के भीतर और बाहर Hindu Religion का प्रसार किया।

स्वामी विवेकानंद जयंती कैसे मनाई जाती है?

इस दिन India के हर एक स्कूल और विश्वविद्यालयों में Swami Vivekananda के दिए गए भाषण और मोटिवेशनल स्पीच (Motivational Speech) का आयोजन किया जाता है। हर सरकारी विभाग में उनकी फोटो और मूर्तियों पर माल्यार्पण करके इस दिन Youth Day के रूप में मनाया जाता है। युवाओं को विवेकानंद जी के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। उनके भाषण और मोटिवेशनल स्पीच से लोगों में एक नई चेतना का जागरण होता है। निराश व्यक्ति भी एक अलग तरह की ऊर्जा से भर जाता है। इस दिन स्कूल कॉलेजों में तरह-तरह के आयोजन किए जाते हैं। लोगों को वेदांत की दीक्षा दी जाती है।

FAQ’s Swami Vivekananda Essay in Hindi

Q. स्वामी विवेकानंद कौन है.

Ans. स्वामी विवेकानंद भारत में एक आध्यात्मिक नेता और एक हिंदू भिक्षु थे।  वे महान दार्शनिक थे।

Q. स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम क्या था?

Ans. नरेंद्रनाथ दत्त स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम था।

Q. स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे?

Ans.  रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे।

Q. स्वामी विवेकानंद का जन्म कब और कहां हुआ था?

Ans. स्वामी जी का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था।  वे बंगाली परिवार से थे।

Q. रामकृष्ण मठ, बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन के संस्थापक कौन थे?

Ans. स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मठ, बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन के संस्थापक थे।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi)- आध्यात्मिकता का जो असली आनंद है वह भारत के अलावा कोई और जगह देखने को कहीं नहीं मिलेगा। भारत देश की अपनी अलग ही बात है। यहां पर अनेक ऋषि मुनियों ने जन्म लिया और अपना जीवन सफल किया। सभी के अच्छे उपदेशों का हम आज भी अनुसरण करते हैं। आध्यात्मिकता का अर्थ है स्वयं की खोज करना। स्वयं की खोज करने में इंसान का पूरा जीवन बीत जाता है। हमें पता ही नहीं चल पाता है कि हम अपने जीवन में क्या कर रहे हैं। और हमारे इस जीवन में आने का उद्देश्य क्या है। आध्यात्म एकदम अलग ही चीज है।

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

मैंने कई महापुरुषों और राजनेताओं पर अनेक किताबें पढ़ी, पर एक किताब जिसने मुझे खूब प्रभावित किया वह थी स्वामी विवेकानंद जी की आत्मकथा। मैं जब वह किताब पढ़ रही थी तो ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मानो मैं खुद भी उनका जीवन जी रही हूँ। उनकी वह किताब पढ़ने से मुझे इतनी प्रेरणा मिली कि मैंने एक किताब भी लिख डाली। मेरी पुस्तक काशी का राही स्वामी विवेकानंद को समर्पित है। आज का हमारा टॉपिक स्वामी विवेकानंद (swami Vivekananda) पर आधारित है। तो आज हम पढ़ेंगे स्वामी विवेकानंद (swami vivekananda in hindi essay) पर निबंध हिंदी में।

आत्मकथाओं की अपनी अलग ही बात होती है। एक ऐसी ही आत्मकथा से मेरा परिचय हुआ जिसको पढ़ने के बाद मेरा जीवन ही बदल गया। मैं बात कर रही हूं भारत के सबसे महान संत स्वामी विवेकानंद जी की। वह एक ऐसे संत थे जिन्होंने भारत में आध्यात्मिक ज्ञान का खूब प्रचार किया था। आज समस्त दुनिया उनकी आभारी है। तो आइए हम चलते हैं स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के सफर पर।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

विश्वनाथ दत्त को एक प्रसिद्ध वकील के तौर पर जाना जाता है। उनकी पत्नी का नाम था भुवनेश्वरी देवी। उनका जीवन हमेशा जैसे ही चल रहा था जब तक उनके घर पर एक सुंदर बालक ने जन्म नहीं लिया। 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में उस बच्चे का जन्म हुआ। बालक का नाम रखा गया नरेन्द्रनाथ दत्त। विश्वनाथ दत्त का बेटा नरेन्द्रनाथ। वह बालक बचपन में आपके और मेरी तरह ही शरारती हुआ करता था।

आगे चलकर उस बच्चे को पूरी दुनिया स्वामी विवेकानंद के नाम से जानने लगी। जी हां, स्वामी विवेकानंद। अब जैसे जैसे स्वामी विवेकानंद बड़े होने लगे, आध्यात्मिकता की जड़ें उनके दिल में मजबूत होती गई। आध्यात्मिकता का वरदान उनको अपनी माता की तरफ से मिला था। उनकी माता भगवान की सच्ची भक्त थी। बचपन से ही वह देवी देवताओं की कहानियों को पूरा मन लगाकर सुनते थे।

स्वामी विवेकानंद की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और कॉलेज से हुई। एक विद्यार्थी के तौर पर वह बहुत कुशाग्र बुद्धि वाले बालक थे। उनकी कई देशी और विदेशी भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। फिर एक दिन उनके घर में एक भूचाल आया कि सब कुछ बर्बाद हो गया। दरअसल 1884 उनके पिता विश्वनाथ दत्त का आकस्मिक निधन हो गया। चूंकि स्वामी विवेकानंद अपने घर में बड़े थे इसलिए अपनी माँ और सारे भाई बहन की जिम्मेदारी अब उन पर आ गई थी।

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स्वामी विवेकानंद का रामकृष्ण परमहंस से मिलन

अपने पिता की मत्यु के पश्चात विवेकानंद काफी उखड़े उखड़े से रहने लगे। वह नौकरी पाने की लालसा में इधर से उधर भटकते रहे। बहुत दिनों तक उन्होंने अच्छी नौकरी पाने की लालसा में दिन रात भागदौड़ की। फिर जब उनको सफलता की जगह निराशा हाथ लगी तो वह बिखर गए। सोचने लगे कि उनके घर का खर्चा अब कैसे चलेगा। वह भगवान के अस्तित्व पर ही प्रश्न करने लगे।

जो इंसान भगवान के प्रति इतनी गहरी आस्था रखता था अब वह नास्तिक कैसे होने लगा। स्वामी विवेकानंद के एक रिश्तेदार रामचंद्र दत्त को विवेकानंद का रवैया अजीब लगा। वह विवेकानंद को गलत रास्ते पर नहीं ले जाना चाहते थे। इसलिए रामचंद्र दत्त विवेकानंद को एक सही मार्ग पर ले गए। वह विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस के पास ले गए। जैसे ही विवेकानंद दक्षिणेश्वर पहुंचे उनकी दुनिया ही बदल गई। रामकृष्ण परमहंस से मिलने के बाद स्वामी विवेकानंद के जीवन की दिशा ही बदल गई।

स्वामी विवेकानंद के जीवन से हम क्या सीख सकते हैं?

1) जीवन में विनम्रता रखें- स्वामी विवेकानंद जी का जीवन हमें यही सीख देता है कि हम अपने जीवन में सदा विनम्रता को उच्च स्थान दे। विनम्रता से हम मुश्किल से मुश्किल घड़ी को भी पार करके हम जीत हासिल कर सकते हैं।

2) जीवन में हमेशा जिज्ञासा बनाए रखो- विवेकानंद जी के जीवन से हमें एक प्रसिद्ध कहानी मिलती है। उस कहानी के अनुसार विवेकानंद को हमेशा मन में एक प्रश्न उठता था कि क्या भगवान सच में होते हैं? अगर होते हैं तो हमें दिखते क्यों नहीं। इसी प्रश्न की जिज्ञासा ने उन्हें रामकृष्ण परमहंस के चरणों में पहुंचाया। और वहां जाते ही उन्हें उनके सारे प्रश्नों का उत्तर मिल गया। हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में जिज्ञासा बनाई रखनी जरूरी है। इससे हमें कई नई चीजों को जानने का मौका मिलेगा।

3) दयालुता बनाए रखना बहुत जरूरी है- हमें अपने जीवन में दया भाव रखना बहुत जरूरी है। इस गुण के बगैर हम किसी भी चीज को हासिल नहीं कर सकते हैं। दया के बगैर हमारा जीवन सफल नहीं माना जाता है।

4) ईश्वर पर विश्वास रखना बेहद महत्वपूर्ण है- हम मानव सोचते हैं कि हम मानव इस दुनिया में सब कुछ हासिल कर सकते हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस दुनिया में सब कुछ ईश्वर की बदौलत से ही हो रहा है। भले ही आप नियमित रूप से मंदिर ना जाओ पर आपको भगवान के प्रति आस्था रखना बेहद जरूरी है।

5) अपने संस्कारों को कभी ना भूले- आज हम सभी भारतीय अपनी संस्कृति की वजह से ही उन्नति कर रहे हैं। अगर हम अपने संस्कारों को ही भूल जाए तो यह हमारे पतन का कारण बन सकता है। यह हमारा दायित्व बनता है कि हम अपनी संस्कृति को सहेजकर रखें।

स्वामी विवेकानंद का राष्ट्र के प्रति योगदान

स्वामी विवेकानंद भारत के एक प्रसिद्ध विचारक और आध्यात्मिक गुरु थे। वह भारत को लेकर बेहद जागरूक थे। वह अपने देश से खूब प्रेम करते थे। वह अपने देश के नौजवानों को ऊंचा उठता देखना चाहते थे। वह चाहते थे कि उनका देश हर तरह से तरक्की करे। उनके राष्ट्र के प्रति प्रेम ने उन्हें यह शक्ति दी कि वह हर दिन अपना जीवन देश के प्रति ही समर्पित कर दे। उनके इसी राष्ट्र प्रेम ने उन्हें समाज के लिए कुछ बड़ा करने को प्रेरित किया। रामकृष्ण मिशन इसी प्रेम और प्रेरणा की ही उपज है।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

रामकृष्ण मिशन को विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस को समर्पित करते हुए बनाया था। रामकृष्ण परमहंस एक सच्चे गुरु थे। विवेकानंद ने इसी आश्रम के साथ साथ अनाथ बच्चों के लिए हॉस्पिटल और स्कूल आदि का निर्माण किया। वह सभी के लिए कुछ ना कुछ खास किया करते थे। उन्होंने ही हिंदू धर्म का ज्ञान पूरी दुनिया भर में फैलाया था। विवेकानंद भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना चाहते थे और उन्होंने ऐसा ही किया। उन्होंने भारत के धर्म का ज्ञान पूरे देश-विदेश में फैलाया। वह समाज में कोई भी तरह का भेदभाव नहीं देखना चाहते थे। वह समाज से कुरीतियों को पूर्ण रूप से उखाड़ना चाहते थे।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार

1) मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है।

2) खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।

3) मौन, क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है।

4) चिंतन करो, चिंता नहीं; नए विचारों को जन्म दो।

5) ज्ञान का प्रकाश सभी अंधेरों को खत्म कर देता है।

6) भय और अपूर्ण वासना ही समस्त दुःखों का मूल है।

7) समस्त प्रकृति आत्मा के लिए है, आत्मा प्रकृति के लिए नहीं।

8) सत्य को स्वीकार करना जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है।

9) आकांक्षा, अज्ञानता और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं।

10) हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।

11) हिन्दू संस्कृति आध्यात्मिकता की अमर आधारशिला पर स्थित है।

12) अगर स्वाद की इंद्रिय को ढील दी, तो सभी इन्द्रियां बेलगाम दौड़ेगी।

13) मध्य युग में चोर डाकू अधिक थे अब छल कपट करने वाले अधिक है।

14) अनुभव ही आपका सर्वोत्तम शिक्षक है। जब तक जीवन है सीखते रहो।

15) जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।

16) उठो, जागो और जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये तब तक मत रुको।

17) जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है।

18) संभव की सीमा जानने का एक ही तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना।

19) अगर धन दुसरो की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा ये सिर्फ बुरे का एक ढेर है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।

20) जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है, शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक। उसे जहर की तरह त्याग दो।

स्वामी विवेकानंद की कृतियां

1) संगीत कल्पतरु

2) कर्म योग

4) वर्तमान भारत

5) ज्ञान योग

6) भक्ति योग

7) वेदांत : वॉयस ऑफ फ्रीडम

8) कोलंबो से अल्मोड़ा तक व्याख्यान

9) भगवद गीता पर व्याख्यान

10) स्वामी विवेकानंद के पत्र

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद को पूरी दुनिया में अपने शानदार भाषण के लिए जाना जाता था। वह बहुत ही प्रभावशाली विचारों को व्यक्त करते थे। अपने पूरे जीवनकाल में उन्होंने अनेकों भाषण दिए। पर एक भाषण उन्होंने ऐसा भी दिया जिसके लिए वह दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गए। दरअसल विवेकानंद ने शिकागो में बहुत ही प्यारा सा भाषण दिया था। 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण दिया था। इस भाषण को शुरु करने से पहले उन्होंने ‘मेरे प्रिय भाइयों और बहनों’ कहा था। अपने इस भाषण के जरिए उन्होंने भारत के सकारात्मक पक्ष के बारे में बात की। उन्होंने यह भी बताया कि भारत कैसे इतना प्राचीन देश है और कैसे इस देश ने आज तक अपनी संस्कृति को सहेजकर रखा है।

स्वामी विवेकानंद के जीवन की सच्ची कहानी

एक बार की बात है। विवेकानन्द किसी समारोह के उद्देश्य से विदेश गए हुए थे। वहां बहुत से विदेशी लोग आये हुए थे। उसी विदेशी ग्रुप में एक विदेशी महिला भी थी जो विवेकानंद से बहुत ही प्रभावित थी।

उसने विवेकानन्द के पास आकर कहा- स्वामी विवेकानन्द, मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ। विवाह के पश्चात मैं चाहती हूं कि मुझे आपके जैसा गौरवशाली पुत्र प्राप्त हो।

इसपर स्वामी विवेकानन्द बोले कि क्या आप नहीं जानती कि “मै एक सन्यासी हूँ ?” और यही कारण है कि मैं आपसे विवाह नहीं कर सकता हूँ। यदि आप चाहो तो आप मुझे अपना पुत्र जरूर बना सकती हो। ऐसा होने पर मैं संन्यासी ही रहूँगा। और आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा। यह बात सुनते ही वह विदेशी महिला स्वामी विवेकानन्द के चरणों में गिर पड़ी और बोली कि आप धन्य है। आप सचमुच ईश्वर के समान है! आपके कथन से यह पता चल गया कि किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं हो सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद की कविता

छिप गए तारे गगन के, बादलों पर चढ़े बादल, काँपकर घहरा अँधेरा, गरजते तूफ़ान में, शतलक्ष पागल प्राण छूटे जल्‍द कारागार से – द्रुम जड़ समेत उखाड़कर, हर बला पथ की साफ़ करके।

शोर से आ मिला सागर, शिखर लहरों के पलटते उठ रहे हैं कृष्‍ण नभ का स्‍पर्श करने के लिए द्रुत, किरण जैसे अमंगल की हर तरफ से खोलती है मृत्‍यु-छायाएँ सहस्‍त्रों, देहवाली धनी काली।

आधि-व्‍याधि बिखेरती, ऐ नाचती पागल हुलसकर आ, जननि, आ जननि आ, आ! नाम है आतंक तेरा मृत्‍यु तेरे श्‍वास में है, चरण उठकर सर्वदा को विश्‍व एक मिटा रहा है, समय तू है सर्वनाशिनि, आ, जननि, आ, जननि, आ, आ! साहसी, जो चाहता है दु:ख, मिल जाना मरण से, नाश की गति नाचता है, माँ उसी के पास आई।

तो आज हमने स्वामी विवेकानंद के जीवन पर निबंध पढ़ा। हम यह उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह निबंध जरूर पसंद आया होगा।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 150 शब्दों में

भारत सच में महान पुरुषों की धरती रही है। ऐसे ही एक महापुरुष ने इस धरती पर जन्म लिया था। उसका नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। इस बालक का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। वह हमारे जैसा ही एक साधारण सा बालक था। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था। हम यहां बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद की। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम श्री विश्वनाथ और मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

विवेकानंद भारत के महान संत माने जाते हैं। उनके भाषण भी जबरदस्त हुआ करते थे। उनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। रामकृष्ण परमहंस भी एक महान संत के रूप में जाने जाते हैं। स्वामी विवेकानंद को महान विचारक भी माना जाता है। उनको जीवन का असली ज्ञान अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिला। उन्होंने ज्ञान के प्रचार प्रसार हेतु पूरे विश्व का भ्रमण किया।

स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन

1 ) स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था।

2 ) स्वामी विवेकानंद एक महान विचारक और संत थे।

3 ) स्वामी विवेकानंद बचपन से ही भगवान और आध्यात्म के प्रति रुचि रखने लगे थे।

4 ) स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

5 ) स्वामी विवेकानंद के पिता अंग्रेजी सरकार में एक अच्छे वकील थे।

6 ) विवेकानंद शिक्षा को लेकर बहुत ज्यादा जागरूक थे।

7 ) विवेकानंद जी की शिक्षा के चलते दुनियाभर के लोगों का नजरिया ही बदल गया।

8 ) सहिष्णुता और सार्वभौमिकता पर विवेकानंद खुलकर बोलते थे।

9 ) स्वामी विवेकानंद को जीवन का असली ज्ञान देने वाले उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे।

10 ) रामकृष्ण परमहंस से मिलने के बाद उनके जीवन का रास्ता ही बदल गया था।

स्वामी विवेकानंद पर FAQs

Q1. स्वामी विवेकानंद पर निबंध कैसे लिखे?

A1. भारत की धरती पर एक महापुरुष ने जन्म लिया था। उसका नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। इस बालक का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। वह हमारे जैसा ही एक साधारण सा बालक था। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था। हम यहां बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद की। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम श्री विश्वनाथ और मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

Q2. स्वामी विवेकानंद ने कौन सा नारा दिया था?

A2. ऐसे तो स्वामी विवेकानंद ने कई नारे दिए थे। पर एक नारा बहुत प्रसिद्ध हो गया था- उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते।

Q3. स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे?

A3. स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे। रामकृष्ण परमहंस महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के जीवन को एक नई दिशा दी थी।

Q4. स्वामी विवेकानंद का सबसे बड़ा मंत्र क्या है?

A4. एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। यह मंत्र स्वामी विवेकानंद का सबसे बड़ा मंत्र था।

Q5. स्वामी विवेकानंद के प्रमुख कार्य कौन से थे?

A5. स्वामी विवेकानंद के प्रमुख कार्य थे- गरीबों की हर प्रकार से सहायता, दूसरी वेदान्त और स्वामी रामकृष्ण की शिक्षाओं का प्रभावशाली ढंग से प्रचार तथा अन्तिम जनकल्याण के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना।

Q6. क्या विवेकानंद भगवान को मानते थे?

A6. जी हां, विवेकानंद भगवान को सच्चे मन से मानते थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति के थे। भगवान को लेकर उनकी पूरी आस्था थी।

Q7. स्वामी विवेकानंद का देहांत कब हुआ?

A7. स्वामी विवेकानंद का देहांत चार जुलाई 1902 को हार्ट अटैक के चलते हो गया था। उस समय उनकी आयु मात्र 39 साल ही थी।

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स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध

स्वामी विवेकानन्द के पूर्वजों का आदि निवास वर्द्धमान (पश्चिम बंगाल) जिले के कालना महकमे के अन्तर्गत ठेरेटोना गांव में था। ब्रिटिश शासन के प्रारम्भ में ही वे लोग गाँव में था। ब्रिटिश शासन के प्रारम्भ में ही वे लोग गाँव छोड़कर कलकत्ता में आ बसे। पहले गढ़ गोविन्दपुर और बाद में उत्तर कलकत्ता के शिमला इलाके में शिमला मुहल्ले के जिस घर में स्वामीजी का जन्म हुआ था, उस घर को उनके परदादा राममोहन दत्त ने बनवाया था। राममोहन के ज्येष्ठ पुत्र दुर्गाप्रसाद ने बीस-बाईस वर्ष की उम्र में संसार त्याग कर संन्यास ग्रहण किया था। उनके पुत्र विश्वनाथ दत्त उस समय छोटे थे। श्री विश्वनाथ दत्त ने बड़े होकर एटर्नी का पेशा अपनाया। उनका विवाह शिमला निवासी नन्दलाल बसु की एकमात्र कन्या भुवनेश्वरी देवी से हुआ। नरेन्द्रनाथ जो काल में स्वामी विवेकानन्द कहलाए, इन्हीं की छठी सन्तान थे। श्री विश्वनाथ दत्त अत्यन्त उदार प्रकृति के मनुष्य थे। खान-पान, पोशाक तथा अदब कायदे में वे हिन्दू-मुसलमान की मिश्रित संस्कृति के अनुरागी थे एवं कर्मक्षेत्र में अंग्रेजी का अनुसरण करते थे। अर्थोपार्जन तो प्रचुर मात्रा में करते थे, पर संचय करने के आग्रही नहीं थे। अनेकों आत्मीय जनों और दरिद्रों का प्रतिपालन करते थे। उन्हें सात भाषाओं में दक्षता प्राप्त थी। इतिहास तथा संगीत में विशेष रूचि थी। भुवनेश्वरी देवी सभी अर्थो में उनकी सुयोग्य सहधर्मिणी थीं। उनके हर कदम पर अपना व्यक्तित्व और आभिजात्य प्रकाश पाता था। गरीब, दुःखी उनके दरवाजे से खाली हाथ नहीं लौटते थे। परिवार का हर काम स्वयं करने के उपरान्त नियमित रूप से पूजा, शास्त्रध्ययन एवं सिलाई का काम भी करती थीं। प्रतिवेशी लोगों के सुख-दुःख, खबर लेना भी प्रतिदिन नहीं भूलती थीं। नरेन्द्रनाथ ने अपनी माता से ही प्राथमिक अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी। सन् 1863 ई. की 12 जनवरी पौष संक्रान्ति के दिन प्रातः 6 बजकर 33 मिनट 33 सेकेण्ड पर भुवनेश्वरी की छठी सन्तान का जन्म हुआ। भुवनेश्वरी देवी ने विश्वास किया कि यह पुत्र उन्हें काशी के वीरेश्वर शिव के अनुग्रह से प्राप्त हुआ है। इसी कारण पुत्र का नामकरण वीरेश्वर किया गया और घरेलू नाम वीरेश्वर बिले हुआ। बिले में असाधारण मेधा, तेजस्विता, साहस, स्वाधीनता मनोभाव, सहृदयता, बन्धुप्रीत एवं खेलकूद के प्रति आकर्षण का स्पष्ट परिचय मिलता था और इसके साथ खेलते समय सहज ही गम्भीर ध्यान में डूब जाता। राम-सीता और शिव की वह पूजा करता। साधु-संन्यासियों को देखते ही अनजाने आकर्षण से दौड़ उनके पास चला जाता। सोने से पहले ज्योति दर्शन करना उसकी एक स्वाभाविक अवस्था थी। उम्र बढ़ने के साथ-साथ नरेन्द्रनाथ स्कूल में वाद-विवाद और आलोचना सभाओं में मणि की तरह चमके। खेलकूद में सबसे आगे निकले, शास्त्रीय भजन-संगीत में प्रथम श्रेणी के गायक और नाटक में कुशल अभिनेता बने एवं विभिन्न प्रकार की पुस्तकों के अध्ययन से अन्य अवस्था में ही उनमें गहन गम्भीर चिन्तन शक्ति जागी। संन्यास के प्रति आकर्षण बढ़ता ही रहा, परन्तु जगत के प्रति निष्ठुर नहीं हुए। उनका अत्यन्त ममतशील ह्रदय विदाओं से घिरे व्यक्ति की सहायता के लिए उन्हें हमेशा प्रेरित और अग्रसर करता रहा। नरेन्द्रनाथ 1871 ई. में मेट्रोपॉलियन स्कूल से प्रथम श्रेणी में एण्ट्रेन्स परीक्षा उत्तीर्ण होकर कलकत्ता स्थित प्रेसिडेन्सी कॉलेज में दाखिल हुए, पर मलेरिया ज्वर से आक्रान्त होने के कारण पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न हुआ। प्रेसिडेन्सी कॉलेज छोड़कर जनरल असेम्बली (स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में दाखिल हुए। उसी कॉलेज से 1881 ई. में एफ. ए. तथा 1883 में बी. ए. परीक्षा पास की। नरेन्द्रनाथ में विद्यानुराग प्रबल था एवं लिखने-पढ़ने की परिधि स्कूल एवं कॉलेज की परीक्षाओं से अत्यन्त विस्तृत थी। छात्रावस्था में ही उन्होंने दार्शनिक हर्बर स्पेन्सर के विचारों की समालोचना कर उन्हें लिखा था। उसके उत्तर में स्पेन्सर महाशय ने नरेन्द्रनाथ की यथेष्ट प्रशंसा की थी और लिखा था कि वे अपनी पुस्तक के परवर्ती संस्करण में उनकी समालोचना के अनुरूप कुछ-कुछ परिवर्तन भी करेंगे। उनके कॉलेज के अध्यापक विलियम हेस्टी उनकी प्रतिभा से मुग्ध होकर कहा करते- 'नरेन्द्रनाथ सचमुच ही एक जीनियस (प्रतिभाशाली) हैं। मैं बहुत स्थानों में घूमा हूँ, परन्तु इसके अनुरूप बुद्धि और बहुमुखी प्रतिभा कहीं नहीं देखी, यहां तक कि जर्मनी के विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले दर्शन के छात्रों में भी नहीं। विलियम हेस्टी से ही नरेन्द्रनाथ ने सर्वप्रथम सुना था कि दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस समाधि में लीन होते हैं। इसके उपरान्त सन् 1881 ई. के नवम्बर माह (सम्भवतः 6 नवम्बर) में कलकत्ता के सुरेन्द्रनाथ मित्र के आवास पर श्रीरामकृष्ण से पहली मुलाकात हुई। दूसरी बार श्रीरामकृष्ण से दक्षिणेश्वर में मिले। उस दिन नरेन्द्रनाथ ने श्री रामकृष्ण से वही सीधा प्रश्न किया जो उन्होंने इससे पहले भी अनेकों से पूछा था, ''आपने क्या ईश्वर का साक्षात्कार किया है'' ? उत्तर भी उतना ही सीधा मिला : 'हाँ, मैं उनका दर्शन पाता हूँ। तुम्हें जैसा देखता हूँ, उससे भी स्पष्ट उन्हें देखता हूँ। तुम अगर देखना चाहते हो तो तुम्हें भी दिखा सकता हूँ।'' उत्तर सुनकर नरेन्द्रनाथ अचम्भित हो गये। यह तो पहला व्यक्ति है जो बड़े सहज भाव से कहता है कि उसने ईश्वर को देखा है। सिर्फ इतना ही नहीं, वह अन्य को भी ईश्वर का साक्षात्कार करा सकता है। परन्तु नरेन्द्रनाथ ने सहज ही उनको स्वीकार नहीं किया था। पुनः परीक्षा के उपरान्त ही जब वे उनकी पवित्रता तथा आध्यात्मिकता के विषय में निःसन्दिग्ध हुए, तभी उन्हें जीवन के पथ प्रदर्शक के रूप में ग्रहण किया। उनके परखने के इस कौशल से श्रीरामकृष्ण अत्यन्त मुग्ध हुए थे और उन्होंने जाना था कि यह मनुष्यों को दुःख से मुक्त करने के लिए पृथ्वी पर आया है और यही उनके भावों के प्रचार का माध्यम बनेगा। नरेन्द्रनाथ ने श्रीरामकृष्ण का घनिष्ठ संसर्ग लगभग पांच वर्ष तक पाया था। इन पांच वर्षों में उन्हें श्रीरामकृष्ण की शिक्षा तथा अपनी योग्यता के आधार पर बहुविद्या आध्यात्मिक अनुभूतियाँ प्राप्त हुई। किन्तु 25 फरवरी 1884 को उनके पिता का आकस्मिक देहान्त होने के उपरान्त उन्हें बहुत ही आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ा। इस कठिन परिस्थिति में भी उनके विवेक और वैराग्य में तनिक भी कमी नहीं आई। सन् 1885 ई. में श्रीरामकृष्ण कण्ठरोग (कैंसर) से ग्रस्त हुए, चिकित्सा के लिए उन्हें पहले श्यामपुर और बाद में काशीपुर में एक किराये के मकान में लाया गया। इसी मकान में नरेन्द्रनाथ अपने गुरुभाइयों को लेकर श्रीरामकृष्ण की सेवा की और तीव्र आध्यात्मिक साधना में डूब गये। एक दिन उन्होंने श्रीरामकृष्ण के समक्ष इच्छा व्यक्त की वे शुकदेव की भांति दिन-रात निर्विकल्प समाधि में डूबे रहना चाहते हैं। परन्तु श्रीरामकृष्ण ने धिक्कारा, ''छि: नरेन, तुम सिर्फ अपनी मुक्ति की इच्छा रखते हो। तुम्हें तो विशाल वटवृक्ष की तरह होना पड़ेगा, जिसकी छाया में समस्त पृथ्वी के मनुष्य शान्ति लाभ करेंगे।'' यद्यपि उन्होंने ऐसा कहा था, परन्तु उनकी कृपा से ही काशीपुर में ही नरेन्द्रनाथ ने एक दिन आध्यात्मिक जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि निर्विकल्प समाधि प्राप्त की थी। समाधि भंग होने के उपरान्त श्रीरामकृष्ण ने उनसे कहा कि इस उपलब्धि की कुंजी वे अपने पास ही रखेंगे। जगत के प्रति जब नरेन्द्रनाथ के कर्त्तव्य की इति होगी, तो वे स्वयं ही इस उपलब्धि का द्वार पुनः मुक्त कर देंगें। काशीपुर में श्रीरामकृष्ण ने एक दिन कागज पर लिखा, ''नरेन्द्र शिक्षा देगा।'' अर्थात भारतवर्ष का जो शाश्वत आध्यात्मिक आदर्श अपने जीवन में उन्होंने उपस्थित किया था, जगत में उसी का प्रसार नरेन्द्रनाथ को करना होगा। इस पर नरेन्द्रनाथ ने आपत्ति प्रकट की तो श्रीरामकृष्ण बोले, ''तेरी हड्डियां भी यह काम करेंगी।'' एक दिन श्रीरामकृष्ण ने वैष्णव धर्म की समालोचना करते समय मन्तव्य व्यक्त किया, जीव पर दया नहीं, शिव भाव से जीव की सेवा करनी चाहिए। नरेन्द्रनाथ इस पर मुग्ध होकर बोले, ''आज ठाकुर के वचनों में एक अदभुत प्रकाश अनुभव किया। अगर ईश्वर ने कभी अवसर दिया तो आज जो अदभुत सत्य को सुना, उसे सम्पूर्ण संसार में बिखेर दूँगा।'' परवर्ती काल में स्वामीजी ने मानव सेवा के माध्यम से भगवान की उपासना का जो अनुष्ठान पसारा उसकी जमीन उसी दिन तैयार हुई थी। वस्तुतः स्वामी विवेकानन्द का प्रत्येक काम ही श्रीरामकृष्ण द्वारा निर्देशित है। श्रीरामकृष्ण सूत्र हैं और स्वामीजी उनके भाष्य हैं। संन्यासी गुरूभाइयों को लेकर एक संघ की प्रतिष्ठा का निर्देश भी श्रीरामकृष्ण ही दे गये थे। सन् 1886 ई. की 16 अगस्त को श्रीरामकृष्ण की इहलीला को विराम मिला। इस घटना के कुछ दिन बाद ही नरेन्द्रनाथ ने अपने गुरूभाइयों के साथ वरा हनमर के कुछ जीर्ण मकान में रामकृष्ण मठ की प्रतिष्ठा की। नरेन्द्र दारिद्रय के बीच अपने गुरूभाइयों के साथ भूखे-अधभूखे रहकर तीव्र तपस्या, भजन-कीर्तन, शास्त्रालोचना के मध्य दिन गुजारते। इसी स्थान पर सन्1887 ई. के जनवरी माह में नरेन्द्रनाथ और दस गुरूभाइयों ने संन्यास ग्रहण किया। नरेन्द्रनाथ ने अपना नाम स्वामी विविदिषानन्द ग्रहण किया। आत्मगोपन के लिए स्वामीजी नाना नाम ग्रहण कर लेते थे-विविदिषानन्, सच्चिदानन्द और विवेकानन्द। लेकिन शिकागो विश्वधर्म महासभा में स्वामी विवेकानन्द नाम से आविर्भूत हुए थे। इसी कारण इसी नाम से समस्त विश्व ने उन्हें पहचाना। संन्यास के बाद स्वामीजी एवं उनके अन्य गुरूभाई परिव्राजक के रूप में समय-समय पर निकल पड़ते। कभी-कभी अकेले और अन्य समय साथ मिलकर परिव्रजन किया करते थे। इस प्रकार पैदल चलकर स्वामीजी ने समस्त भारत का परिभ्रमण किया और इस दौरान शिक्षित-अशिक्षित, धनी-निर्धन, राजा-महाराजा, ब्राह्मण-चण्डाल, समाज के विभिन्न स्तरों के लोगों के साथ उनका परिचय हुआ। उनकी प्रतिभा, आकर्षणीय तेजोदीप्त कानित एवं आध्यात्मिक गम्भीरता से सभी मुग्ध हुए। 3 अगस्त, सन् 1810 ई. को जिस भ्रमण पर वे निकले, वही उनका सर्वाधिक दीर्घकालिक और स्थायी महत्ववाला साबित हुआ। इस भ्रमण काल में उनकी प्रतिभा से मुग्ध होकर बहुतों ने उन्हें अमेरिका में होने वाले विश्वधर्म महासभा में भाग लेने का अनुरोध किया। प्रारम्भ में स्वामीजी ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया। बाद में मद्रास के लोगों की उत्कट इच्छा एवं दैव निर्देश पर (श्रीरामकृष्ण) ने सूक्ष्म शरीर के माध्यम से एवं कामारपुकुर से श्रीमाँ सारदादेवी ने उन्हें अनुमति प्रदान की। उन्होंने अमेरिका जाने का निश्चय किया। स्वामीजी भारत के जनसाधारण के प्रतिनिधि होकर उनसे प्राप्त आर्थिक सहायता से अमेरिका गये। उन्होंने चाहा भी वही था। उन्होंने कहा था, ''अगर यह माँ की इच्छा हो कि मुझे (अमेरिका) जाना पड़े तो मैं जनसाधारण की अर्थ सहायता द्वारा ही जाऊँगा क्योंकि भारत के सर्वसाधारण और गरीब मनुष्यों के लिए ही मैं पाश्चात्य देश जाऊँगा।'' स्वामीजी ने सन् 1893 ई. को 31 मई को मुम्बई से जहाज द्वारा अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। वे 25 जुलाई को वेकुवर पहुँचे। वहाँ से रेलगाड़ी द्वारा 30 जुलाई को सन्ध्या के समय शिकागो पहुँचे। धर्मसभा में विलम्ब जानकर कम खर्च पर रहने के लिए स्वामीजी बोस्टन चले गये। बोस्टन में वे विभिन्न विद्वानों तथा अध्यापकों से परिचित हुए। इनमें हार्वड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राइट विशेष उल्लेखनीय हैं। स्वामीजी के पास कोई परिचय पत्र नहीं है जानकर राइट ने धर्मसभा कमेटी के चेयरमैन डॉ. बैराज के नाम एक पत्र लिखा। हमारे सभी अध्यापकों को सम्मिलित करने से जो होगा, यह संन्यासी उससे भी अधिक विद्वान है।'' 11 सितम्बर को धर्मसभा आरम्भ हुई। स्वामीजी ने अपराहन में अपना भाषण 'अमेरिका निवासी बहनों और भाइयों' के सम्बोधन से शुरू किया ही था कि उपस्थित सात हजार श्रोताओं ने करतल ध्वनित से उनका विपुल अभिनन्दन किया। दो मिनटों के बाद तालियों की गड़गड़ाहट थमने पर स्वामीजी ने एक संक्षिप्त भाषण दिया। इसमें सभी धर्मों के प्रति उनकी आदरपूर्ण और प्रीतिपूर्ण मनोभावना का अपूर्व प्रकाश देखकर श्रोतागण मुग्ध हो गये। 27 सितम्बर तक धर्म महासभा चली। उन्हें लगभग प्रतिदिन व्याख्यान देना पड़ता। उनके उदार एवं युक्तियुत चिन्तन के लिए उन्हें धर्म महासभा का सबसे प्रभावशाली वक्ता मान लिया। शिकागो के राजपथों पर उनके चित्र सुशोभित हुए। सभी समाचार पत्र उनकी हार्दिक प्रशंसा से भर गये। 'धर्मसभा में विवेकानन्द निर्विरोध सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं। उनका भाषण सुनने के पश्चात यही अनुमान हुआ कि इस शिक्षित जाति के मध्य धर्म प्रचारक भेजना कितनी निर्बुद्धि का परिचायक है।' (दि हेराल्ड), 'अपनी भावराशि की चमत्कारिक अभिव्यक्ति एवं व्यक्तित्व के प्रभाव के कारण धर्म महासभा में वे अत्यन्त जनप्रिय थे। विवेकानन्द जब भी मंच के एक कोने से अन्य कोने तक चलकर जाते, तालियों की गड़गड़ाहट से उनका अभिवादन होता। परन्तु हजार-हजार मनुष्यों की इस सुस्पष्ट प्रशंसा से भी उनमें गर्व का कोई भाव परिलक्षित नहीं होता। शिशु-सुलभ सरलता से वे उसे ग्रहण करते। (दी बोस्टन इवनिंग ट्रांजिस्टर) 'सभा की कार्यसूची में विवेकानन्द का वक्तव्य सबसे अन्त में रखा जाता। इसका उद्देश्य था श्रोताओं को अन्त तक पकड़ कर रखना। किसी भी दिन जब नीरस वक्ताओं के लम्बे भाषणों से सैकड़ों लोग सभागृह का त्याग करते रहते, तब विराट श्रोता मण्डली को निश्चिन्त करने हेतु सिर्फ इतनी घोषणा यथेष्ट होती कि प्रार्थना के पहले विवेकानन्द कुछ बोलेंगे। श्रोतागण उनके पन्द्रह मिनट का भाषण सुनने के लिए घण्टों बैठे रहते।' (नार्थम्पटन डेली हेराल्ड, अप्रैल 1894)। इसके उपरान्त स्वामीजी अमेरिका के बड़े-बड़े नगरों में धर्म प्रचार करते रहे। अमेरिका के जनसाधारण, विशेषकर शिक्षित समुदाय उसके और भी अधिक अनुरागी हुए। केवल संकीर्णमना भारतीय एवं ईसाई सम्प्रदाय के कुछ मनुष्य ईष्र्यावश उनके विरुद्ध मिथ्या प्रचार करते रहे। स्वामीजी आर्थिक रूप से विपन्न होते हुए भी अपनी चरित्र की महानता द्वारा सभी प्रतिकूल परिस्थितियों को झेल सके। दो वर्ष बाद 1895 के अगस्त माह में वे यूरोप गये। पेरिस एवं लन्दन के नगरों में धर्म प्रचार अभियान के बाद दिसम्बर माह में अमेरिका लौट आये। 15 अप्रैल 1896 को अमेरिका से विदा लेकर पुनः लन्दन आये। इंग्लैण्ड में स्वामीजी के प्रभाव के सम्बन्ध में विपिनचन्द्र पाल ने पत्र में लिखा 'इंग्लैण्ड के अनेक स्थानों में मैंने ऐसे बहुत मनुष्यों का सान्निध्य प्राप्त किया जो स्वामीजी विवेकानन्द के प्रति गम्भीर श्रद्धा और भक्ति से अभिभूत थे। यह सत्य है कि मैं उनके सम्प्रदाय से युक्त नहीं हूँ और उनसे कुछ विषयों में मतभेद भी रखता हूँ।' पर मुझे स्वीकार करना ही होगा कि विवेकानन्द के प्रभाव एवं गुण से यहाँ के अधिकांश लोग आजकल विश्वास करते हैं कि प्राचीन हिन्दूशास्त्र विस्मयकारी आध्यात्मिक निधियों से परिपूर्ण हैं। स्वामीजी लन्दन से भारत की ओर 16 दिसम्बर 1896 को रवाना हुए और 15 जनवरी, 1897 को कोलम्बो आ पहुँचे। पाश्चात्य देशों में उनकी अभूतपूर्व सफलता ने उनके देशवासियों के मन में जो आत्मविश्वास और आत्ममर्यादा जगायी थी, उसके प्रभाव से दीर्घ संचित हीन भावना एक पल में दूर हो सकी। भारतवासी सिर उठाकर खड़े हुए और पहचाना कि विश्व की सभ्यता के भण्डार में उनका योगदान पाश्चात्य देशों से कम नहीं, वरन अधिक ही रहा है। इस आत्मगरिमा का संचार जिसने जन-जन में किया, सारे देश को जिसे घोर निद्रा से जगाया, उसका स्वागत करने के लिए समस्त देश अधीर आग्रह से कम्पायमान था। जब स्वामीजी कोलम्बो पहुँचे तो उनके प्रति समस्त देश की कृतज्ञता ने एक अभूतपूर्व अभिनन्दन का रूप धारण कर लिया। उसके बाद तो अभिनन्दन की बाद तरंगयित होकर मद्रास से लेकर कलकत्ता की सड़कों पर बह चली। 20 जनवरी को स्वामीजी कलकत्ता पहुँचे। अभिनन्दन के बाद अभिनन्दन कलकत्ता अपने विश्वविजयी पुत्र के आगमन में मतवाला हो उठा। 1899 ई. की 20 जून को स्वामीजी दूसरी बार पाश्चात्य देशों की यात्रा पर निकले एवं इंग्लैण्ड में दो सप्ताह बिताने के उपरान्त अगस्त माह में अमेरिका पहुंचे। इस बार अमेरिका में वे लगभग एक वर्ष रहे और नब्बे से अधिक भाषण दिये। परन्तु इस बार उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य था उन देशों में प्रतिष्ठित उनके कार्यक्रमों को देखना और उन्हें सुदृढ़ करना। पेरिस, विएना, एथेंस और मिस्र होते हुए स्वामीजी 9 दिसम्बर 1900 को बेलूड़ मठ पहुँचे। स्वदेश लौटते ही 27 दिसम्बर को स्वामीजी मायावती की ओर रवाना हुए। वहाँ से 24 जनवरी 1901 को लौटे। 6 फरवरी को ट्रस्ट डीड की रजिस्ट्री हुई। 10 फरवरी को मठ के ट्रस्टियों के अनुमोदन से स्वामी ब्रह्मानन्द रामकृष्ण मठ एवं रामकृष्ण मिशन के अध्यक्ष तथा स्वामी सारदानन्द महासचिव नियुक्त हुए। इस प्रकार संघ के समस्त परिचालन दायित्व से अपने को पृथक रखकर अन्तिम दो वर्ष स्वामीजी महासमाधि के लिए प्रस्तुत होते रहे। गुरु भाइयों अथवा शिष्यों को अपनी बुद्धि के अनुसार काम करने को प्रेरित करते ताकि उनके न रहने पर संघ के परिचालन के विषय में वे स्वयं ही निर्णय लेने में समर्थ हो सकें। स्वामीजी ने 1903 ई. की 4 जुलाई को देहत्याग किया। सन्ध्या बेला में मठ स्थित अपने कक्ष में वे ध्यानरत थे। रात्रि 9 बजकर 10 मिनट पर वह ध्यान महासमाधि में परिणत हुआ। उस समय उनकी आयु 39 वर्ष 5 माह 23 दिन थी। परन्तु स्थूल शरीर का नाश होने पर भी, जिस शक्ति के रूप में स्वामी विवेकानन्द उभरे थे, वह अब भी क्रियाशील है। स्वामीजी ने स्वयं कहा था, ''शरीर को पुराने वस्त्र की भाँति त्यागकर इसके बाहर चला जाना ही श्रेय मानता हूँ। परन्तु मैं काम से कभी निरत नहीं होऊँगा। मैं तब तक मानव को अनुप्रेरित करता रहूँगा, जब तक प्रत्येक मनुष्य यह नहीं समझता कि वह भगवान है।'' भारतवर्ष के नवजागरण के प्रत्येक क्षेत्र को स्वामीजी ने अत्यन्त प्रभावित किया है और समस्त पृथ्वी के लिए पथ-निर्देश छोड़ गये हैं। अनेक मनीषियों का यह मानना है कि स्वामी विवेकानन्द ही आधुनिक भारत के सृष्टा हैं। इस प्रसंग में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की उक्ति स्मरणीय है। हमारे आधुनिक इतिहास की ओर जो कोई भी दृष्टि डालेगा, उसे स्पष्ट दिखेगा 'स्वामी विवेकानन्द के हम कितने ऋणी हैं। उन्होंने भारत की महिमा की ओर देशवासियों की आँखें उन्मुख की। राजनीति को आध्यात्मिकता पर आधारित किया। हम धर्मान्धों की दृष्टि प्रदान की। वे ही भारतीय स्वाधीनता संग्राम के जनक हैं। हमारी राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वाधीनता के जनक भी वे ही हैं।

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Swami Vivekananda Essay in Hindi : जानिए स्वामी विवेकानंद के बारे में निबंध

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  • Updated on  
  • जनवरी 6, 2024

Swami Vivekananda Essay In Hindi

स्वामी विवेकानन्द का जीवन और शिक्षाएँ प्रेरणा के एक महान स्रोत के रूप में काम करती हैं। स्वामी विवेकानन्द ने जीवन में मूल्यों और नैतिकता के महत्व पर जोर दिया। एक युवा भिक्षु से एक प्रमुख आध्यात्मिक व्यक्ति तक की उनकी यात्रा छात्रों के लिए प्रेरक है। उनके जीवन से छात्रों को प्रेरणा मिलती है जिससे उन्हें प्रयास करने और चुनौतियों पर काबू पाने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए कई बार छात्रों को स्वामी विवेकानंद के बारे में निबंध तैयार करने को दिया जाता है। Swami Vivekananda Essay In Hindi के बारे में निबंध जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

This Blog Includes:

स्वामी विवेकानंद के बारे में 100 शब्दों में निबंध, स्वामी विवेकानंद के बारे में 200 शब्दों में निबंध, स्वामी विवेकानंद का बचपन, रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात और भारतीय संस्कृति का समन्वय, उपसंहार , स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन्स .

Swami Vivekananda Essay In Hindi 100 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

स्वामी विवेकानन्द एक हिंदू भिक्षु थे जिन्होंने पश्चिमी दुनिया में भारतीय विचारों को साझा करने में बड़ी भूमिका निभाई।  वे 1863 में कलकत्ता में जन्मे थे। उन्होंने हिंदू धर्म में आध्यात्मिकता और लोगों को खुद को बेहतर ढंग से समझने के बारे में अपनी शक्तिशाली बातचीत और लेखन के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने महान भारतीय संत रामकृष्ण की शिक्षाओं का पालन किया और इन शिक्षाओं को फैलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

1893 में, उन्होंने शिकागो में धर्मों पर एक बड़ी बैठक में भारत और हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। वहां उन्होंने भाषण दिया था जिसकी बहुत अधिक व्यापक प्रशंसा हुई। उन्होंने इस बारे में बात की कि सभी धर्म कैसे जुड़े हुए हैं और दूसरों की मदद करने के महत्व पर जोर दिया। स्वामी विवेकानन्द के शब्द आज भी दुनिया भर में कई लोगों को प्रेरित करते हैं और उन्होंने जो सिखाया वह आज की व्यस्त दुनिया में भी महत्वपूर्ण है।

Swami Vivekananda Essay In Hindi 200 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

स्वामी विवेकानन्द एक हिंदू भिक्षु थे। वे एक महान गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। वे आधुनिक भारत में एक अत्यधिक प्रभावशाली आध्यात्मिक नेता के रूप में खड़े हुए। उनकी शिक्षाएँ विश्व स्तर पर लाखों लोगों को प्रभावित करते हुए, सार्वभौमिक भाईचारे, सहिष्णुता और विविध मान्यताओं को स्वीकार करने पर जोर देती हैं।

जो बात स्वामी विवेकानन्द को वास्तव में प्रेरणादायक बनाती है, वह है अपने विश्वासों के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता, विशेषकर ऐसे समय में जब भारतीय संस्कृति को पश्चिम में गलतफहमी का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने स्वयं को शिक्षा देने और सांस्कृतिक अंतरालों को समझाने में समर्पित कर दिया।

उनकी प्रेरणा व्यावहारिक आध्यात्मिकता पर उनके ध्यान से भी उत्पन्न होती है। स्वामी विवेकानन्द ने व्यक्तियों को अपनी प्रतिभा का उपयोग दूसरों की सेवा करने और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया।

इसके अलावा गहन विचारों को स्पष्ट, सरल और शक्तिशाली तरीके से व्यक्त करने की उनकी क्षमता उनकी प्रेरणादायक विरासत बढ़ाती है। उनके भाषण और लेख प्रेरणा का एक कालातीत स्रोत बने हुए हैं, जो आध्यात्मिकता की परिवर्तनकारी शक्ति पर जोर देते हैं। स्वामी विवेकानन्द का व्यक्तित्व एसे व्यक्ति के रूप में कार्य करता है, अपने उच्चतम स्तर तक पहुँचने और दुनिया में सकारात्मक योगदान देने की क्षमता रखते हैं। 

स्वामी विवेकानंद के बारे में 500 शब्दों में निबंध

Swami Vivekananda Essay In Hindi 500 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

स्वामी विवेकानन्द का मूल नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। वे एक श्रद्धेय भारतीय संत थे। उन्होंने “उच्च विचार और सादा जीवन” का सार अपनाया था। स्वामी विवेकानन्द न केवल एक गहन दार्शनिक थे, बल्कि दृढ़ सिद्धांतों वाले एक समर्पित व्यक्तित्व भी थे।  उनके उल्लेखनीय दार्शनिक कार्यों में “आधुनिक वेदांत” और “राज योग” शामिल हैं।

रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य के रूप में, उन्होंने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने पूरे जीवन में, स्वामी विवेकानन्द ने स्वयं को भारतीय संस्कृति के मूल मूल्यों के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षाएं और पहल, सार्थक जीवन के महत्व पर जोर देते हुए पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती हैं।

स्वामी विवेकानंद श्री विश्वनाथ और भुवनेश्वरी देवी के घर में जन्में थे। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। स्वामी विवेकानन्द ने छोटी उम्र से ही असाधारण बौद्धिक कौशल का प्रदर्शन किया था। शिक्षाओं पर पकड़ के कारण अपने गुरुओं द्वारा “श्रुतिधर” के नाम से जाने जाते थे। उन्होने तैराकी और कुश्ती जैसे विभिन्न कौशलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

रामायण और महाभारत की शिक्षाओं से गहराई से प्रभावित होने के कारण, उनके मन में धर्म के प्रति गहरा सम्मान था, और पवन पुत्र हनुमान उनके जीवन आदर्श थे। आध्यात्मिक परिवार में पले-बढ़े होने के बावजूद नरेंद्र का स्वभाव प्रश्न करने वाले व्यक्ति का था। उनकी मान्यताएँ ठोस तर्क पर आधारित थीं और उन्होंने भगवान के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया था। इसके चलते उन्हें कई संतों के पास जाना पड़ा और उन्होंने प्रश्न पूछा, “क्या आपने भगवान को देखा है?”  आध्यात्मिक उत्तरों की उनकी खोज तब तक अनुत्तरित रही जब तक उनका सामना “रामकृष्ण परमहंस” से नहीं हुआ।

स्वामी विवेकानन्द की पहली मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से तब हुई जब वे कोलकाता में एक मित्र के घर गये। रामकृष्ण ने विवेकानन्द की अलौकिक क्षमता को पहचानते हुए उन्हें दक्षिणेश्वर में आमंत्रित किया, यह महसूस करते हुए कि उनका जीवन विश्व के उत्थान के लिए एक आशीर्वाद है।

गहन आध्यात्मिक खोज के बाद, विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस को अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया और अंधकार से प्रकाश की ओर गहन परिवर्तन का अनुभव किया। अपने गुरु की शिक्षाओं के प्रति आभारी होकर, उन्होंने रामकृष्ण के ज्ञान को सभी दिशाओं में साझा करने के लिए बड़े पैमाने पर यात्रा की।

स्वामीजी को शिकागो में अपने ओजस्वी भाषण के लिए व्यापक प्रशंसा मिली, जहां उन्होंने दर्शकों को “अमेरिका की बहनों और भाइयों” के रूप में संबोधित किया। उन्होंने गर्व से भारतीय धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए सभी लोगों की स्वीकृति और सहिष्णुता के मूल्यों पर जोर दिया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पूर्व और पश्चिम, धर्म और विज्ञान और अतीत और वर्तमान के बीच सामंजस्य स्थापित करने में स्वामीजी की भूमिका को स्वीकार किया। स्वामीजी का प्रभाव भारत के सांस्कृतिक अलगाव को समाप्त करने तक फैला।

उच्च आदर्शों के प्रतीक स्वामी जी ने भारतीय युवाओं के लिए महान प्रेरणा का काम किया। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, उनका उद्देश्य युवा मन में आत्म-बोध, चरित्र निर्माण, आंतरिक शक्तियों की पहचान, दूसरों की सेवा और अथक प्रयासों की शक्ति पैदा करना था।

स्वामी विवेकानन्द के अन्य महान कार्य

स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध कथनों में शामिल हैं, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” उनका दृढ़ विश्वास था कि बच्चे के शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए हानिकारक किसी भी चीज़ को जहर की तरह अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए।  उनका ध्यान एक ऐसी शिक्षा प्रणाली पर था जो चरित्र विकास को पोषित करती हो।

“रामकृष्ण मठ” और “रामकृष्ण मिशन” की उनकी स्थापना ने उनके गुरु के प्रति उनकी गहरी भक्ति को दर्शाया। इसने भारत में आत्म-त्याग, तपस्या और गरीबों और वंचितों की सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।  बेलूर मठ की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

स्वामीजी ने अथक परिश्रम से देवत्व के संदेश और शास्त्रों के सच्चे सार का प्रचार किया। इस समर्पित और देशभक्त भिक्षु ने 4 जुलाई, 1902 को बेलूर मठ में अंतिम सांस ली।

स्वामीजी ने निस्वार्थ प्रेम और राष्ट्र सेवा जैसी अवधारणाओं पर जोर देते हुए भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म की समृद्ध विरासत से अवगत कराया। महान गुणों से परिपूर्ण उनका प्रेरक व्यक्तित्व युवाओं को आलोकित करता था। उनकी शिक्षाओं ने लोगों के भीतर आत्मा की शक्ति के प्रति जागरूकता पैदा की। उनके आदर्शों के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में, हम 12 जनवरी को उनके “जन्म दिवस” को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में उत्साहपूर्वक मनाते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन्स नीचे दी गई है:

  • 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में पैदा हुए स्वामी विवेकानन्द एक महान भारतीय संत और दार्शनिक थे।
  • मूल रूप से उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, उन्होंने छोटी उम्र से ही असाधारण बौद्धिक क्षमताएं दिखाईं।
  • स्वामी विवेकानन्द की अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात, उनकी आध्यात्मिक यात्रा को आकार देने में महत्वपूर्ण थी।
  • उन्होंने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध भाषण को वैश्विक प्रशंसा मिली।
  • उनकी शिक्षाओं में धर्मों की एकता, सहिष्णुता और आत्म-प्राप्ति की खोज पर जोर दिया गया।
  • स्वामीजी के उद्धरण जैसे “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए” प्रतिष्ठित और प्रेरणादायक बने हुए हैं।
  • भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देने में उनके योगदान को हर साल 12 जनवरी को मनाए जाने वाले राष्ट्रीय युवा दिवस पर मनाया जाता है।
  • स्वामी विवेकानन्द का 4 जुलाई, 1902 को निधन हो गया।
  • उनका जीवन और शिक्षाएँ निस्वार्थ सेवा और ज्ञान पर जोर देते हुए दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करती रहती हैं।

स्वामी विवेकानन्द, भारत के एक प्रमुख हिंदू भिक्षु और दार्शनिक थे। उन्होंने पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता से परिचित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वामी विवेकानन्द को 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपने प्रेरक भाषण के लिए जाना जाता है। उनके प्रसिद्ध भाषण में, दर्शकों को “अमेरिका की बहनों और भाइयों” के रूप में संबोधित करते हुए भाषण दिया था जिससे विश्व धर्म संसद में उन्हें बहुत अधिक सराहा गया। 

स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं में धर्मों की एकता, आत्म-बोध के महत्व और ज्ञान की खोज पर जोर दिया गया।  उन्होंने व्यक्ति के चरित्र के विकास की वकालत की और आध्यात्मिकता की शक्ति में विश्वास किया।

भारत में हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिन के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।  

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग में Swami Vivekananda Essay In Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी प्रकार के अन्य निबंध से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध

In this article, we are providing an Essay on Swami Vivekananda in Hindi | Swami Vivekananda Par Nibandh स्वामी विवेकानंद पर निबंध  हिंदी | Nibandh in 100, 200, 250, 300, 500 words For Students & Children.

दोस्तों आज हमने Swami Vivekananda Essay in Hindi लिखा है स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है। Swami Vivekananda information in Hindi essay & Speech.

Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध

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Swami Vivekananda Nibandh- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 200 words )

इनका जन्म 12 जनवरी 1863 ई० को कलकत्ता के दत्त परिवार में हुआ था। इनके जन्म का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। संन्यासी होने पर यह नाम बदल कर विवेकानन्द रखा गया। छात्रावस्था में ही उन्होंने यूरोपीय दर्शन-शास्त्र में अच्छी जानकारी प्राप्त कर ली थी। अपने विद्यार्थी जीवन में ही वे नास्तिक हो गये थे। उन दिनों सारे भारत में धर्म-विप्लव मचा हुआ था। बंगाल में ईसाई-प्रचार जोरों पर था । ब्रह्म समाज की नींव पड़ चुकी थी। कृष्णमोहन बनर्जी, कालीचरण बनर्जी, माईकेल मधुसूदन दत्त जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके थे। इस समय नरेन्द्रनाथ का मन भी ब्रह्म समाज की ओर झुका, पर शीघ्र ही उनका परिचय महात्मा रामकृष्ण झुका, परमहंस से हो गया। परमहंस पहुँचे हुए महात्मा थे। उन्होंने नरेन्द्र से कहा, ‘क्या तुम कोई भजन गा सकते हो?’ इन्होंने कहा, ‘हाँ, गा सकता हूँ।’ तब उन्होंने तीन भजन गाये। यह सुनकर परमहंस प्रसन्न हो गये और उन्होंने नरेन्द्रमाथ को अपना शिष्य बना लिया।

फिर तो उनकी संगत पाकर नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानन्द बन गये और देश-विदेश में इसी नाम से विख्यात हो गये। इन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इन्होंने अमेरिका में जाकर वेदान्त का प्रचार किया। ये 4 जुलाई 1902 ई० को बेलूर में मृत्यु को प्राप्त कर सदा के लिए अमर हो गये।

जरूर पढ़े- 10 Lines on Swami Vivekananda in Hindi

Swami Vivekananda in Hindi Essay- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 250 to 300 words )

स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनका जन्म कलकत्ता में 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ था।

बालक नरेंद्र बड़ा नटखट था । वह घर-भर में उत्पात मचाता था। उसे भूतप्रेतों में बिलकुल विश्वास नहीं था । वह कभी-कभी अपनी उम्र के बालकों के साथ घंटों ध्यान-मग्न बैठ जाता था।

पाँच वर्ष की अवस्था में नरेंद्र को स्कूल में भर्ती कराया गया। वह पढ़ता कम था और खेलता अधिक था। उसके सहपाठी उसे अपना नेता ” मानते थे। सन् 1881 में दर्शन-शास्त्र में एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण की। रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आने के बाद वह विवेकानंद हो गया।

रामकृष्ण परमहंस की सलाह पर विवेकानंद भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति के प्रचार और प्रसार में लग गये। उन्होंने एक बार अमेरिका में आयोजित सर्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया। वहाँ उनके भाषण को सुनकर लोग मंत्र-मुग्ध हो गये। उन्होंने हिन्दू धर्म की विशेषता उन्हें बतायी। उनके भाषण को सुनने के बाद अमेरिका के लोगों में हिन्दू धर्म के प्रति जो भ्रामक विचार थे, वे दूर हो गये।

विवकानंद ने समाज-सेवा करने के उद्देश्य से भारत तथा विदेशों में कई स्थानों पर ‘रामकृष्ण मिशन’ की शाखायें खोली।

विवेकानंद ने सारे भारत की यात्रा की। उन्होंने लोगों की दयनीय दशा अपनी आँखों से देखी। उन्होंने अपने भाषणों से सोयी हुई भारत जाति को जगाने का प्रयत्न किया। उन्होंने युवकों से कहा कि वे अपनी मांसपेशियों को फौलाद की बनायें। उन्होंने कहा – “युद्ध नहीं, सहायता; ध्वंस नहीं, निर्माण; भेदभाव नहीं, सामंजस्य।” उनकी मृत्यु 4 जुलाई सन् 1902 को हुई।

Long Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 1000 words )

भूमिका

भारत महापुरूषों की धरती है जहाँ पर बहुत से महापुरुष हुए हैं। बहुत से मुनि भी हुए है जिन्होंने अपने अध्यातम और विचारों से पूरे विश्व में भारत को प्रसिद्ध किया है। भारत के महान संत स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय संस्कृति और अध्यातम से पूरे विश्व को प्रख्यात बनाया था। स्वामी विवेकानंद जी को भारतीय दर्शन, संस्कृति, साहित्य, धर्म आदि का बहुत ही ग्यान था।

बचपन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकता में हुआ था। इनका जन्म एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। बचपन में स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र रखा गया था। इनके पिता कोलकता हाई कॉर्ट के एक नामी वकील थे और उन्हें अंग्रेजी और फारसी भी अच्छे से जानते थे। नरेंद्र की माता बहुत ही धार्मिक थी। नरेंद्र बचपन से बहुत ही मेधावी थे लेकिन उन्हें धर्म और प्रभू में आशंका थी। पिता के पश्चिमी संस्कृति के ग्याता होने और माता के धार्मिक होने से नरेंद्र को दोनों ही चीजों का पूर्ण ग्यान मिला। नरेंद्र हर चीज जानने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति थे।

शिक्षा

नरेंद्र पढ़ने में बहुत ही तथा। थे। उनकी आरंभिक पढ़ाई कोलकता में ही हुई थी। जब वह तीसरी कक्षा में थे तो उनकी पढ़ाई को बीच मे ही रोकना पड़ा क्योंकि उनके पूरे परिवार को जरूरी काम से कोलकता सो बाहर जाना पड़ा। तीन साल बाद कोलकता लौटने पर उनकी मेहनत को देखकर उन्हें स्कूल में फिर से प्रवेश दिया गया। नरेंद्र ने तीन साल का पाठ्य क्रम एक साल में ही कर लिया था। 1889 में नरेंद्र ने मैट्रिक की परिक्षा उत्तीर्ण की और कोलकता के जनरल असैंबली नामक कॉलज में दाखिला लिया। वहाँ उन्होंने इतिहास, दर्शन ,साहित्य, राजनीतिक ग्यान आदि का अध्ययन की। नरेंद्र ने बी.ए. की परिक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। नरेंद्र को एक प्रोफेसर ने कहा था कि उन्हें बहुत से विद्यार्थि मिले लेकिन उन्होंने नरेंद्र जैसा मेधावी और कौशल विद्यार्थि कभी नहीं देखा।

आध्यातमिक ग्यान

नरेंद्र की सभी चीजों के बारे में जानने की इच्छा के चलते वह ब्रहमसमाज का हिस्सा बने लेकिन उन्हें संतुष्टी नहीं मिली। फिर वह दक्षिणेश्वर के रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए। उनके आध्यातमिक ग्यान से प्रभावित होकर नरेंद्र ने उन्हें अपना गुरू बना लिया। वह रामकृष्ण की हर बात का अनुसरण करते थे और उनके सच्चे अनुयायी बन गए। इसी दौरान नरेंद्र के पिता का देहांत हो गया और घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधो पर आ गई। कमजोर आर्थिक स्थिति के समय नरेंद्र ने जब गुरू से सहायता माँगी तो उन्होंने कहा कि काली माता के मंदिर जाकर याचना करे । रामकृष्ण काली माता के भक्त थे। नरेंद्र ने मंदिर जाकर धन की बजाय बुद्धि और ग्यान की याचना की। एक दिन गुरू रामकृष्ण ने अपनी साधना के वक्त नरेंद्र को तेज प्रदान किया और तभी से वह स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।

नरेंद्र गुरू के रूप में

गुरू रामकृष्ण की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद कोलकता छोड़कर वरादनगर आश्रम में आकर रहने लगे। 25 साल की उमर में उन्होंने गेहुँआ चोला पहनना शुरू कर दिया था। वरादनगर आश्रम में आकर उन्होंने धर्म और संस्कृति का अध्ययन किया। विशेष रूप से उन्होंने हिंदु धर्म के बारे में जाना। वह भारत की संस्कृति से बहुत ही प्रभावित हुए। इन सबका अध्ययन करने के बाद वह भारत भ्रमण पर निकल पड़े। वह राज्यस्थान ,जुनागड़ से होते हुए दक्षिण भारत पहुँचे। वहाँ से वह पोंडीचेरी और मद्रास गए। इस सब के दौरान उनके विचारों से प्रभावित होकर उनके बहुत से शिष्य बन चुके थे।

विदेश यात्रा

1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्वामी विवेकानंद के शिष्यों ने उनसे बहुत आग्रह किया। शिष्यों के आग्रह करने पर स्वामी विवेकानंद बहुत सी परेशानियों को पार कर शिकागो पहुँचे। वहाँ उन्हें सम्मेलन में बोलने का अंतिम अवसर मिला और उन्होंने हिंदु धर्म का नेतृत्व किया। उस समय विदेशों में भारत के लोगों को हीन भावना से देखा जाता था। अपने भाषण से उन्होंने सभी लोगों को भावूक कर दिया। लोग भारतीय संस्कृति और उनके आध्यातमिक ग्यान से बहुत ही प्रभावित हुए। स्वामी विवेकानंद ने हिंदु धर्म को विदेशों में भी प्रसिद्ध किया। उन्होंने चार साल तक अमेरिका और युरोप के बहुत सारे शहरों में भाषण दिया। विदेशों में भी स्वामी विवेकानंद के बहुत से अनुयायी बन गए।

मृत्यु

स्वामी विवेकानंद चार साल विदेश में भारतीय संस्कृति को प्रख्यात बनाने के बाद जब भारत लौटे तो लोगों नें उनका बड़ी धुमधाम से स्वागत किया। स्वामी विवेकानंद का विश्वास था कि बिना अध्यातमिक ग्यान के देश उन्नति नहीं कर सकता। उन्होंने समाज कल्याण हेतु अध्यातम ग्यान देने के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसके विकास में वह इतने व्यस्त हो गए कि बिमार पड़ गए। 4 जुलाई, 1902 में रात के नौ बजे 39 साल की कम उमर में ही स्वामी विवेकानंद का देहांत हो गया।

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद एक महान संत हुए है। उनका मानना था कि असली पूजा गरीबों की मदद करने में है। वह मानवता रो सबसे बड़ा धर्म मानते थे। स्वामी विवेकानंद महिलाओं का बहुत ही आदर करते थे। वह हर महिला को घर की रानी बताते थे। स्वामी विवेकानंद ने बहुत ली पुस्तकें भी लिखी है। वह धार्मिक मुद्दों के साथ साथ सामाजिक मुदद्धों पर भी भाषण देते थे। उनके भाषण का प्रभाव उस समय के स्वतंत्रता सैनानियों पर पड़ा क्योंकि उस समय भारत अंग्रेजों के अधीन था। स्वामी विवेकानंद एक सच्चे देशभक्त भी थे और उन्होंने योग, राजयोग, और ग्यानयोग जैसे ग्रंथ भी लिखे थे। सरकार द्वारा स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन यानि कि 12 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज भी जब कभी महान संतो की बात की जाती है तो स्वामी विवेकानंद जी का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है।

स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म संसद में भाग कब लिया था?

11 सितंबर, 1893 स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म संसद में भाग लिया था

स्वामी विवेकानंद के पिता क्या कार्य करते थे?

-इनके पिता कोलकता हाई कॉर्ट के एक नामी वकील थे

स्वामी विवेकानंद के बचपन का क्या नाम है?

-बचपन में स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र रखा गया था

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इस लेख के माध्यम से हमने Swami Vivekananda  Par Nibandh | Essay on My Swami Vivekananda in Hindi  का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay In Hindi)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay In Hindi Language)

हम इस लेख में आज स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay On Swami Vivekananda In Hindi) लिखेंगे। स्वामी विवेकानंद पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

स्वामी विवेकानंद पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Swami Vivekananda In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।

भारत के भूत और वर्तमान को एक नई दिशा देने वाले प्रसिद्ध महापुरुष स्वामी विवेकानंद जी को कौन नहीं जानता है। देश का हर व्यक्ति उनके महान कार्यों और अनोखे व्यक्तित्व को याद करके आज भी नतमस्तक हो जाता है। इनका पूरा जीवन मानव कल्याण और सत्य की खोज में बीता।

आज हम इन्हीं महापुरुष की बात करने जा रहे हैं और इनका पूरा जीवन परिचय, इनके महान कार्य, इनकी शिक्षाएं और इनके जीवन की रोचक घटनाओं के बारे में बता रहे हैं।

स्वामी विवेकानंद का बचपन

12 जनवरी सन्‌ 1863 को सुबह 6 बजकर 35 मिनट पर इस महान् व्यक्ति ने धरती पर जन्म लिया। इनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनका जन्म कलकत्ता शहर में स्थित संस्कारी बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था।

इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त था और वे कलकत्ता शहर के जाने माने वकील थे। इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो कि अत्यंत धार्मिक, दयालु और कर्मठ महिला थी।बचपन से ही विवेकानंद जी का रुझान अध्यात्म की तरफ अधिक था और ये तेजस्वी व बुद्धिशाली भी थे।

स्वामी विवेकानंद जैसे जैसे बड़े होते गए वैसे ही इनकी बुद्धि और आध्यात्मिक गुण भी बढ़ते गए। इनकी माता से जब ये धार्मिक कहानियां आदि सुनते थे, तब इनके हृदय में कई प्रकार की जिज्ञासाएं उत्पन्न होती थी।

इनका जिज्ञासु स्वभाव होने के कारण ये हर बात के पीछे का कारण जानना चाहते थे। इनके अंदर धर्म को और ज्यादा जानने की इच्छा प्रबल होती गई और इन्होंने बाद में करीब 25 साल की आयु में सन्यास को अपना लिया और अपना घर बार त्यागकर साधु बन गए।

विवेकानंद जी के दादा फारसी तथा संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध ख्यातिप्राप्त विद्वान थे। अतः अपने दादाजी से भी इन्होंने कई बातें सीखी।

स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा

इनके परिवारजनों की इच्छा थी कि विवेकानन्द उच्च शिक्षा ग्रहण करें और खूब पढ़ाई करके बड़े विद्वान बनें। अतः इन्हें काफी छोटी उम्र में ही विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने को भेज दिया गया था।

इन्होंने ईश्वरचंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन नामक संस्था में प्रवेश लिया। फिर जब ये 16 वर्ष के थे तो इन्होंने कलकत्ता के ही प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की।उन्हें हिन्दू धर्म ग्रंथ पढ़ना और उनके बारे में जानना भी बहुत पसंद था।

केवल शिक्षा में ही नहीं बल्कि खेलकूद और प्राणायाम में भी उनकी रुचि थी। हिन्दू संस्कृति ही नहीं इन्होंने पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति का भी गहराई से अध्ययन किया और कई डिग्रियां हासिल की।

सन 1884 में इन्होंने कला स्नातक की डिग्री हासिल की थी और सन 1881 में उन्हें ललित कला की डिग्री भी मिली। इन्होंने कई महापुरुषों और दार्शनिकों की जीवनियां पढ़कर उन्हें अपना प्रेरणास्रोत बनाया।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस

इन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस जी को अपना गुरु माना था। रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता शहर के दक्षिणेश्वर में जो काली मंदिर था उसमें पुजारी थे। रामकृष्ण परमहंस अत्यंत अद्भुत विलक्षण व्यक्तित्व के धनी और महाज्ञानी थे। वे सांसारिकता से परे थे और ईश्वर भक्ति में लीन रहते थे।

इनकी मुलाकात सन 1881 में स्वामी विवेकानंद जी से हुई। इनसे मुलाकात होने के बाद विवेकानंद जी के जीवन ने एक नया रुख ले लिया। रामकृष्ण परमहंस जी स्वामी विवेकानंद जी के चरित्र, ज्ञान और ईश्वर को जानने की उत्सुकता देखकर बहुत प्रभावित हुए और विवेकानंद जी को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया।

रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानन्द जी के सभी सवालों का जवाब दिया और ईश्वर को खोजने के मार्ग में उनका साथ दिया। उन्होंने विवेकानन्द को बताया कि इस संसार में ईश्वर का अस्तित्व है, परन्तु जो मनुष्य उन्हें पाना चाहता है उसे निष्ठापूर्वक अच्छे कर्म करके और मानवजाति की सेवा करके उन्हें खोजना होगा।

विवेकानन्द जी ने भी उनकी सारी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारा और उनके कहे अनुसार मानव सेवा और साधना में संलग्न हो गए। स्वाम विवेकानंद जी का साथ अपने गुरु जी के साथ ज्यादा समय तक नहीं रहा और 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस जी अपनी देह त्याग कर पंचतत्व में विलीन हो गए।

विवेकानन्द अपने गुरु जी के सान्निध्य में पांच वर्षों तक रहे, परन्तु इन पांच वर्षों में उन्होंने जीवन और ईश्वर से जुड़े कई महत्वपूर्ण तथ्य और जानकारियां प्राप्त की। इन्होंने अपने गुरु जी की याद में कई मठ बनवाए और सारे संसार में उनके ज्ञान और उपदेशों का प्रचार किया।

सन 1884 में विवेकानंद जी के पिता का स्वर्गवास हो गया और फिर सारे परिवार की जिम्मदारियां इन पर आ गई। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब हो गई थी, ऐसे में उन्हें उनके गुरु जी रामकृष्ण परमहंस जी ने ही सहारा दिया था।

रामकृष्ण परमहंस जी ने  विवेकानंद जी को अपने साथ काली मंदिर में पुजारी के रूप में रख लिया था। वहां रहकर उन्हें अपने गुरु जी के साथ और अधिक समय बिताने को मिला, तथा वे पूरी तरह से परमात्मा की प्राप्ति के लिए भक्ति में डूब गए।

स्वामी विवेकानन्द की उपाधि कैसे मिली?

विवेकानन्द, जिनके बचपन का नाम नरेन्द्र था उनके इस नाम के बदलने के पीछे भी एक रोचक घटना है। जब वे पूरे भारत में अपने गुरु जी के विचारों, उनकी शिक्षा और उपदेशों का प्रचार प्रसार करने के लिए घूम रहे थे। तब वे सन 1891 में माउंट आबू में स्थित खतड़ी नामक स्थान के राजा अजीतसिंह से मिले।

राजा अजीतसिंह उनके व्यक्तित्व और आध्यात्मिक विचारों से मंत्रमुग्ध हो गए और उन्हें सम्मानपूर्वक अपने महल में बुलवाया। विवेकानन्द उनके महल में गए और वहां उनकी खूब सेवा और खातिर की गई।

कुछ दिवस जब वे महल में रहे तो राजा से उनके सम्बन्ध और अच्छे हो गए। तब अजीतसिंह जी ने उनके व्यक्तित्व, ज्ञान और बुद्धि को वर्णित करते हुए उनका एक नया नाम विवेकानन्द रखकर उन्हें सम्मानित किया।

विवेकानन्द जी के धार्मिक कार्य व सम्मेलन

उन्होंने धार्मिक सुधार और समाज सुधार के कामों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। वे किसी एक धर्म में विश्वास नहीं रखा करते थे, बल्कि सभी धर्मों को बराबर मानते थे। इन्होंने परमात्मा के साकार और निराकार दोनों ही रूपों को अपनाया।

उन्होंने सर्व धर्म समभाव और आपस में सहयोग का उपदेश दिया। इन्होंने सभी लोगों को कहा की सारे धार्मिक ग्रंथ, पूजा पाठ, मस्जिद, मंदिर या फिर गिरजाघर इत्यादि, ये सभी हमें भगवान से मिलाने पर हमारे मन में श्रद्धा उत्पन्न करने का बस एक साधन हैं। हम सभी को इनके लिए झगड़ना नहीं चाहिए और सब धर्मो को समान महत्व देना चाहिए।

इन्होंने बताया कि जिस तरह से अनाज एक ही होता है और हमें वही खाना होता है, फिर भी हम अलग अलग तरीकों से खाना पका कर खाते हैं। वैसे ही ईश्वर एक ही होता है लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए ये सभी साधन हैं और उस एक परमात्मा के विभिन्न रूप हैं।

उनके अनुसार धर्म का परिवर्तन करने का कोई फायदा नहीं होता है, क्योंकि सारे धर्मों का उद्देश्य तो एक ही है परमात्मा से मिलन। फिर हम क्यों धर्म के चक्कर में आपस में लड़ें? अतः सभी को एक दूसरे के धर्म का आदर करना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद जी ने हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति के बारे में कहा कि हिन्दू धर्म सत्य, शिव और सुंदर पर विश्वास रखने वाला धर्म है। उन्होंने ये भी कहा कि मैंने कई प्रकार के हिन्दू ग्रंथ हों चाहे पाश्चात्य ग्रंथ या फिर यूरोपीय धार्मिक किताबें इन सभी धर्मों का गूढ़ अध्ययन किया है और इससे मैंने ये जाना की हिन्दू धर्म और संस्कृति अन्य सभी से बेहतर और गौरवमय है।

उन्होंने ये भी कहा कि ईश्वर को पाने के लिए ब्रह्मचारी बनना या सांसारिकता को छोड़ना ये सभी बेकार है। हमें अपना कर्म करते हुए परमात्मा से मिलने की साधना करनी चाहिए और गरीब लोगों तथा भूख से पीड़ित लोगों की मदद करनी चाहिए। दुखी मनुष्यों की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा और उनसे मिलने का मार्ग है।

11 सितंबर सन 1893 में अमेरिका के शिकागो नामक शहर में एक धर्म सम्मेलन में वे भारतीय प्रतिनिधि की तरह शामिल हुए। वहां पर उन्होंने अपने विचार प्रकट किए, जिन्हे सुनकर सारे श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।

विवेकानन्द जी के मानव सेवा के कार्य

स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन में मनुष्य जाति की सेवा करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने समाज सेवा के बहुत से काम किए और समाज में फैली कुप्रथाओं का विरोध भी किया।

इन्होंने गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा को दूर हटाने का भरसक प्रयास किया और सभी लोगों को इसके लिए जागरूक किया। उन्होंने कहा कि वे भले ही मंदिरों में दान ना दें लेकिन भूखे लोगों को खाना जरूर खिलाएं।

इन्होंने कहा कि सभी के मन में सेवाभाव होना चाहिए और समाज के उद्धार के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना भी की। जिसके अनुसार कोई भी मनुष्य, चाहे वो किसी भी जाति या धर्म के हो, अगर वे गरीब और दुखी लोगों की सेवा करने की इच्छा रखते है तो वह इसमें भाग ले सकते थे।

वे हमेशा महिलाओं का सम्मान करने और उनका उत्थान करने की शिक्षा देते थे और इस हेतु बहुत प्रयास भी किया करते थे।

स्वामी विवेकानन्द जी की मोक्षप्राप्ती

इन्होंने अपने पूरे जीवन में नियमित दिनचर्या और अनुशासन का पालन किया। अपने अनुययियों को इन्होंने अच्छी शिक्षा और दीक्षा दी। रामकृष्ण मठ में ध्यान करते हुए 4 जुलाई 1902 को इनकी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया।

इनके शिष्यों ने इनके उपदेशों को सारी दुनिया में फैलाया और दुनिया में विभिन्न जगहों पर कई सारे मठ बनवाए। आज भी इनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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तो यह था स्वामी विवेकानंद पर निबंध, आशा करता हूं कि स्वामी विवेकानंद पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Swami Vivekananda) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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स्वामी विवेकानन्द पर निबंध | Essay on Swami Vivekanand in Hindi

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ADVERTISEMENTS:

स्वामी विवेकानन्द पर निबंध | Essay on Swami Vivekanand in Hindi!

भारत वर्ष में नवजागरण का शंखनाद करने वाले महापुरुषों में स्वामी विवेकानन्द का अद्वितीय स्थान है । स्वामी जी का जन्म 1863 ईस्वी में हुआ । उनका जन्म नाम नरेन्द्रनाथ था ।

स्वामी जी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और उच्च विचार सम्पन्न थे । उनकी प्रारम्भिक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से हुई । सन् 1884 ई॰ में उन्होने स्नातक की परीक्षा पास की । उनकी माता इन्हें वकील बनाना चाहती थी । परन्तु स्वामी विवेकानन्द के भीतर एक आध्यात्मिक भूख उत्पत्र हो चुकी थी, जिसे शान्त करन के लिए वे अधिकांश समय साधु-सन्तों की संगति में व्यतीत करते थे ।

परन्तु उन्हें ऐसा कोई आध्यात्मिक गुरू नहीं मिला, जिससे वह दीक्षा प्राप्त कर सकें । वे सत्य की खोज में निरन्तर भटकते रहे, परन्तु उन्हें शान्ति नहीं मिली । अन्त में वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के सम्पर्क में आए । उन्होंने स्वामीजी के सामने अपनी शंकाएं रखीं । ईश्वर के अस्तित्व और रहस्य को जानने की उनके मन में प्रबल इच्छा थी ।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस की सरलता, सादगी और दृढ़ आत्मविश्वास, तत्व ज्ञान और वाणी में बिजली की सी अद्‌भुत शक्ति ने विवेकानन्द को परमहंस का परम भक्त बना दिया । स्वामी जी से उन्होंने आध्यात्म और वेदान्त का ज्ञान प्राप्त किया ।

स्वामी विवेकानन्द का व्यक्तित्व बड़ा विलक्षण था । उनके चेहरे पर अद्वितीय आभा थी । वे अनेक भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित थे । भारतीय धर्म और दर्शन का उन्हें अच्छा ज्ञान था । स्वामी विवेकानन्द ने कई वर्षों तक हिमालय के क्षेत्र में कठोर तपस्या की । वहाँ उन्हें विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा ।

कई बार उनका सामना उन असुरों से हुआ तो कई बार भयंकर ठण्ड में नंगे बदन रहना पड़ा । परन्तु स्वामी विवेकानन्द की निष्ठा और आध्यात्मिक शक्ति ने उन्हें विचलित नहीं होने दिया । वे वर्षों तक उनके महात्माओं के संसर्ग में रहे । इसके पश्चात् उन्होंने देश का भ्रमण किया और उनकी ख्याति दिनोंदिन बढ़ने लगी ।

सन् 1893 ईस्वी में वे अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए शिकागो पहुँचे । धन की कमी के कारण उन्हें वहाँ अनेक कष्ट उठाने पड़े । स्वामी जी के पाण्डित्य पूर्ण ओजस्वी और धारा प्रवाह भाषण ने वहाँ जनता को मन्त्रमुग्ध कर दिया । विवेकानन्द की विद्वता का जादू पश्चिमी लोगों के सिर चढ़कर बोला । उन्हें अनेक विश्वविद्यालयों से निमन्त्रण आए, अनेक पादरियों और बड़े-बड़े धर्मगुरूओं ने चर्च में बुलाकर भाषण कराए ।

लोग उनके भाषण सुनने के लिए घण्टों पूर्व निश्चित स्थल पर पहुँच जाते थे । लगभग तीन वर्ष तक अमेरिका में रहकर वेदान्त का प्रचार करते रहे । इसके पश्चात् वे इंग्लैण्ड चले गए । स्वामी जी का सिक्का तो पहले ही बैठचुका था । अब तो उनके अनुयायियों का संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी ।

उन्हें अनेक व्यापारी, प्रोफेसर, वकील और राजनैतिक नेता उनके शिष्य बन गए । वे लगभग एक साल तक इंग्लैण्ड में रहे । लगभग चार वर्ष के बाद स्वामी जी 16 सितम्बर 1886 को स्वेदश के लिए रवाना हो गए । रत पहुँचने पर स्थान-स्थान पर उनका भव्य स्वागत हुआ । उन्होंने लगभग सम्पूर्ण भारत का दौरा किया । लाहौर, राजपुताना, सियालपुर सभी स्थानों पर उन्होंने प्रवचन किए । इसी बीच उन्होंने दो मठों की स्थाना की ।

स्वामीजी मानव को ही ईश्वर सेवा समझते थे । उन्होंने देशवासियों में स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए एक ज्योति जलाई । 1857 में भयंकर प्लेग की महामारी फूट पड़ी । स्वामी जी ने दीन-दुखियों की सेवा के लिए अनेक साधु-सन्तों की अनेक मंडलियाँ गठित कीं ।

मुर्शिदाबाद, ढाका, कलकत्ता, मद्रास आदि अनेक स्थानों पर सेवा आश्रम खोले । उन्होंने अपने प्रवचनों से लोगों में आत्मविश्वास, देश प्रेम, भाईचारे, मानव सेवा और अस्पृश्यता का संदेश दिया । अत्यधित्क परिश्रम करने के कारण स्वामी जी का स्वास्थ्य बहुत् गिर गया । वे बीमार रहने लगे । परन्तु तब भी उन्होंने समाधि लगाना नहीं छोड़ा ।

4 जुलाई 1902 को स्वामी जी का देहावसान हुआ । यद्यापि आज स्वामी जी हमारे मध्य नहीं हैं परन्तु इनका जीवन एक प्रकाश स्तम्भ की तरह आज भी हमारा मार्ग दर्शन कर रहा है । उनके द्वारा स्थापित रामकृष्णन मिशन संस्था की अदक शाखाएँ आज भी वेदान्त का प्रचार-प्रसार कर रही हैं और मानव सेवा में जुटी हैं ।

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स्वामी विवेकानन्द पर निबन्ध | Swami Vivekananda Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Swami Vivekananda in Hindi

By: savita mittal

जीवन परिचय | Swami Vivekananda Essay in Hindi

शिकागो का महान् सम्बोधन, विवेकानन्द के सन्देश, स्वामी विवेकानंद निबंध हिंदी में | essay on swami vivekanand in hindi | स्वामी विवेकानंदजी की जीवनी video.

भारत जब ब्रिटिश सरकार के अधीन था, तब ‘उठो, जागो और तब तक नहीं सको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए जैसा सन्देश देकर भारतीयों को जगाने वाले महापुरुष, स्वामी विवेकानन्द अपने ज्ञान तथा अध्यात्म के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे। उन्होंने भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को विश्व पटल पर अलग पहचान दिलाई। भारतीय युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे आज भी ज्यादातर शिक्षित भारतीय युवाओं के आदर्श है।

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स्वामी विवेकानन्द, जिनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था, का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता के निभुलिया नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त एक प्रख्यात अटॉनी थे। समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण उन्होंने अच्छे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त की तथा स्कूली शिक्षा के बाद कलकत्ता के प्रसिद्ध प्रेसीदेसी कॉलेज में डाखिला लिया। उस कॉलेज में पढ़ने के दौरान उनकी आध्यात्मिक भूख जागृत हुई और वे ईश्वर, विश्व, मानव इत्यादि के महस्य जानने के लिए व्याकुल रहने लगे।

इसी दौरान उन्हें किसी ने रामकृष्ण परमहंस के बारे में बताया, जिनकी विद्वत्ता एवं प्रवचनों की चर्चा कलकत्ता की शिक्षण संस्थाओं के साथ-साथ सम्भ्रान्त समाज में भी होने लगी थी।

नरेन्द्रनाथ ने भी उनसे मिलने का विचार किया। सैन्द्रनाथ ने परमहंस से अपनी पहली ही मुलाकात में प्रश्न किया, “क्या आपने ईश्वर को देखा है? परमहंस ने इस प्रश्न को मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हाँ, मैंने ईश्वर को बिल्कुल वैसे ही देखा है, जैसे मैं तुम्हे देख रहा हूँ।” परमहंस के इस उत्तर से नरेन्द्रनाथ न केवल सन्तुष्ट हो गए, बल्कि उसी समय उनको अपना गुरु भी मान लिया। इसी घटना के बाद उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय लिया। संन्यास ग्रहण करने के बाद जब वे एक परिब्राजक के रूप में भारत भ्रमण पर थे, तब खेतड़ी के महाराज ने उन्हें विवेकानन्द नाम दिया।

रामकृष्ण परमहंस से मिलने से पूर्व स्वामी विवेकानन्द हरबर्ट स्पेसर के नास्तिकवाद से प्रभावित के समय के साथ-साथ स्वामी विवेकानन्द में नास्तिकवाद का विकास होता जा रहा था।

Swami Vivekananda Essay in Hindi

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1893 ई. में जब संयुक्त राज्य अमेरिका के शिकागों में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ, तो खेतड़ी के महाराज ने विवेकानन्द जी को भारत के प्रतिनिधि के तौर पर उसमें भाग लेने के लिए भेजा। 11 सितम्बर, 1893 को इस सभा के स्थागत भाषण में स्वामी जी ने श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए जैसे ही कहा- “प्रिय बहनो एवं भाइयों” Dear Sisters and Brothers of America), वैसे ही तालियों की गड़गड़ाहट से वहाँ का वातावरण गूंजने लगा।

सारे लोग आश्चर्यचकित थे, पृथ्वी के ठीक दूसरे छोर से आया हुआ एक व्यक्ति पराए देश के लोगों को अपना भाई-बहन मानकर सम्बोधित कर रहा था तथा अपने सम्बोधन में स्त्रियों को पहला स्थान दे रहा था। उसके बाद जब उन्होंने हिन्दू धर्म एवं भारत के अध्यात्म की बात करनी शुरू की, तो अमेरिका ही नहीं दुनियाभर के विद्वज्जनों का बड़ा समूह चुपचाप उन्हें सुनता रहा।

यह धार्मिक सम्मेलन 27 सितम्बर तक चला। इन सत्रह दिनों में उनके व्याख्यान सुनने बालों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती रही। धार्मिक ही नहीं, साहित्यिक, सामाजिक एवं वैज्ञानिक जगत के लोग भी उनके व्याख्यान को सुनने के लिए आने लगे।विश्व-धर्म सम्मेलन की यह घटना उन दिनों की है, जब भारत ब्रिटिश संस्कार के अधीन था। पश्चिम जगत के स्लोग भारतीयों को हीन दृष्टि से देखते थे। उनका मानना या फि भारत में विद्वानों का नितान्त अभाव है एवं यह देश हर सामन में पिछड़ा है। स्वामी विवेकानन्द भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने पश्चिम जगत के लोगों का भ्रम दूर कर भारतीय शा एवं विद्वत्ता का का सारी दुनिया में बजाया।

विश्य-धर्म सम्मेलन के समापन के बाद स्वामी जी ने विश्व के अनेक देशों की यात्रा की। वे जहाँ भी गए, वों के लोगों ने उनका स्वागत किया। नबम्बर, 1894 में उन्होंने न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना की। वे 1897 ई. में उस स्वदेश बापस आए, तो देशवासियों ने भी उनका शानदार स्वागत किया। 1 मई, 1897 को उन्होंने कलकता में तथा 9 दिसम्बर, 1898 को कलकत्ता के निकट हुगली नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसमें उन्हें सिस्टर निवेदिता का उल्लेखनीय सहयोग प्राप्त हुआ।

वर्तमान में इस संस्था की शाखाएँ विश्व के अनेक देशों में हैं। यह संस्था शिक्षा एवं समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए विश्वभर में विख्यात है। इसके अतिरिक्त विवेकानन्द साहित्य के प्रकाशन एवं इसके प्रसार के साथ-साथ योग एवं अध्यात्म के प्रचार-प्रसार में भी इस संस्था की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।

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विवेकानन्द के सन्देश ने पश्चिम के विशिष्ट बौद्धिकों जैसे-विलियम जेम्स, निकोलस टेसला, नेल्सन रॉकपेल्य लियो टॉल्स्टॉय, रोम्या रोला इत्यादि को प्रभावित किया। प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार एएल बॉशम ने विचकानन्द को पहला व्यक्ति बताया, जिन्होंने पूर्व की आध्यात्मिक संस्कृति के मित्रतापूर्ण प्रत्युत्तर का आरम्भ किया और उन्हें आधुनिक विश्व को आकार देने वाला घोषित किया।

अरविन्दो घोष, सुभाषचन्द्र बोस, सर जमशेदजी टाटा, रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा महात्मा गाँधी जैसे महान व्यक्तियों में स्वामी विवेकानन्द को भारत की आत्मा को जागृत करने वाला और भारतीय राष्ट्रपाद के मसीहा के रूप में देखा। स्वामी विवेकानन्द पहले अन्तर्राष्ट्रवादी नेता थे, जिन्होंने ‘सीग ऑफ नेशस’ के जन्म से भी पहले 1897 ई. में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों गठबन्धनों और कानूनों का आह्वान किया, जिससे राष्ट्रों के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके।

स्वामी जी ने अपने जीवनकाल में विश्व के अनेक स्थानों पर अध्यात्म, भारतीय सनातन धर्म, योग इत्यादि विषयों पर अनेक व्याख्यान दिए। उनके व्याख्यानों के संग्रह को रामकृष्ण मिशन ने अनेक पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया है। स्वामी जी ने कई पुस्तकों की भी रचना की, जिनमें ‘राजयोग’, ‘कर्मयोग’, ‘ज्ञानयोग’ एवं भक्तियोग’ प्रमुख है। भारतीय नारियों की दशा में सुधार के लिए उन्होंने अनेक कार्य किए। उनका मानना था कि किसी भी देश की प्रगति तभी सम्मय है जब यहाँ की नारियाँ शिक्षित हो। नारियों के महत्व को दशनि के लिए उन्होंने कन्या पूजन की परम्परा की शुरुआत की।। स्वामी जी के निम्नलिखित उपदेश आज भी युवाओं का मार्गदर्शन करने एवं उन्हें प्रेरित करने में सक्षम है

“जी सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो, इससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो।” “तुम अपनी अन्तस्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।”

स्वामी जी रामकृष्ण मिशन के माध्यम से सदा गरीबों की मलाई एवं सेवा में जुटे रहे। वर्ष 1901-02 में जब कलकत्ता में प्लेग फैला, तो उन्होंने रोगियों की खूब सेवा की। लोगों की सेवा करते समय उन्होंने अपने स्वास्थ्य क भी ध्यान नहीं रखा, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य निरन्तर गिरता चला गया और अन्तत: 4 जुलाई, 1902 को मात्र 38 वर्ष की अवस्था में उनका देहाना हो गया।

इस प्रकार, मानवता के मसीहा ने मानव सेवा के लिए ही अपने जीवन की आहुति दे दी। जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1985 को अन्तर्राष्ट्रीय युवा वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया, तब उसी वर्ष से भारत सरकार ने स्वामी जी के जन्मदिन 12 जनवरी को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की। स्वामी जी का दर्शन, उनका जीवन तथा उनके कार्यों में निहित उनके आदर्श भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का एक विशाल स्रोत है। भारतीय युवा स्वामी विवेकानन्द के पदचिन्हों पर चलकर अपने भवि निर्माण के साथ-साथ देश को समृद्ध करने के लिए प्रयासरत रहते हैं। 

Great Personalities

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध Essay on Swami Vivekananda in Hindi

विवेकानंद एक धर्म प्रचारक के रूप में

Short swami vivekananda essay in hindi 500 words for students and kids, स्वामी जी के धार्मिक सुधार:-.

  • सभी धर्मों की सत्यता में विश्वास ग्रंथों में आत्म सम्मान की भावना व्यक्ति की.
  • ईश्वर के साकार और निराकार दोनों रूपों की पूजा पर बल दिया तथा धार्मिक कर्मकांड स्थलों ग्रंथों आदि ईश्वर उपासना के साधन माना.
  • धर्म ना तो पुस्तकों में है और ना ही सिद्धांतों में यह केवल अनुभूति में निवास करता है .
  • धर्म परिवर्तन से कोई लाभ नहीं होता क्योंकि सभी धर्मों का लक्ष्य और उद्देश्य समान है.
  • हमें धर्म व संस्कृति के साथ साथ पाश्चात्य शिक्षा की अच्छी बातों को भी ग्रहण करना चाहिए.
  • स्वामी जी ने दीन दुखियों के ईश्वर का रूप कहा था.
  • महाराणा प्रताप पर निबंध
  • सुधार आंदोलन पर निबंध
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swami vivekananda essay in hindi। स्वामी विवेकानंद पर निबंध

Swami Vivekananda Essay in Hindi

स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परम हंस जी के सबसे प्रिय शिष्यों में से एक थे। सनातन धर्म के प्रति प्रेम और उनके द्वारा सनातन धर्म की समझ का प्रचार प्रसार उन्होंने पुरे विश्व में किया । सनातन धर्म ही सभी धर्मो का मूल है और सभी धर्मो की जननी है ये बात पुरे विश्व में साबित भी की। आज हम आपके लिए इस पोस्ट में swami vivekananda essay in hindi ले कर आये है । स्वामी विवेकानंद पर निबंध को आप स्कूल और कॉलेज में इस्तेमाल कर सकते है । इस हिंदी निबंध को आप essay on swami vivekananda in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।

Table of Contents

Swami Vivekananda Essay in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी ऐसे महापुरुष है जिनके बारे में जीतना जाने उतना कम है। इनके योगदान प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे बदलाव लाते है। इनके बारे में पढ़ना, सुनना, समझना आज की पीढ़ी के लिए सौभाग्य की बात है। यह युवाओं के लिए प्रेरणा के प्रतीक है।हम सभी इनके विचारों को जान फिरसे कुछ नया करने की चाह उत्पन्न कर पाते है। कभी भी संकट के दौर में इनके विचारों के स्मरण मात्र से मनुष्य समस्याओं को जड़ से खत्म करने के लिए प्रेरित होता है। इन्होंने युवाओं को कार्य करने के लिए हमेशा प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन मे कई समस्याओं का सामना भी किया। इसके बाद भी उन्होंने कभी हार नही मानी। वह आर्थिक संकट से जूझे परंतु उनके विचारों से, उनकी कला से उन्होंने जीवन मे सब कुछ हासिल किया। उन्होंने समूचे विश्व में भारत का नाम रौशन किया। पूरे  विश्व मे भारत को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिलाया। उनके कार्यो की चर्चा केवल भारत मे नही बल्कि पूरे विश्व मे है। उनके कार्यो की सराहना आज भी देश विदेश में होती रही है। आत्मीय भाव रखने वाले स्वामी विवेकानंद जी लोगो की भावनाओ का सम्मान करते थे। वे अपने से बड़ो व अपने से छोटे सभी के प्रति आदर रखते थे।उन्होंने अपने जीवन में गरीबों के लिए भी बहुत कुछ किया। उनके कारण कई लोगो को जीवन दान भी मिला।

Life history of Swami Vivekananda in Hindi

प्रस्तावना-   स्वामी विवेकानंद जी आध्यात्मिक व्यक्ति थे। वे बचपन से ही ईश्वर में आस्था रखते थे। उनके मन मष्तिष्क में योग, संस्कृत, यजुर्वेद व अनंत ज्ञान का सागर होता था। उन्होंने देश के विकास में अपनी भूमिका सुनिश्चित की। उन्होंने अपनी शिक्षा का इस्तेमाल लोगो के विकास के लिए किया। उनका सीखा हुआ ज्ञान आमजन के काम आया। वह एक प्रखर वक्त थे। जिनके तर्क के आगे कोई खड़ा नही हो पाता था। वे अच्छे वक्ता के साथ पढ़ाई व खेल खुद में भी उज्जवल थे। उन्हें योग्य बनाने में उनके परिवार का विशेष योगदान रहा।उस वक़्त देश के युवा उनके तर्कों से, उनकी वाणी से, उनके विचारों से काफी प्रभावित थे। और यह दौर कभी थमा ही नही क्योंकि आज तक युवाओं को प्रेरणा देने वाले उनके विचार जीवित है। जो हर दूसरे युवा के जीवन को बेहतर बनाने में कार्यरत होते है। जिससे हर दूसरे युवा को हौसला मिलता है, वह अपनी नीव मज़बूत कर पाते है। इसी वजह से उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म 12 जनवरी को हुआ था। इसीलिए हर वर्ष उन्हें उस दिन याद किया जाता है। उनके बारे में जान आज भी युवाओं की रूह में, युवाओं के खून में हौसले का संचार निश्चित होता है। 

Swami Vivekananda Education

उनका बचपन एवं पढ़ाई काल- स्वामी विवेकानंद जी बचपन से तेजस्वी बालक थे। उनका जन्म  कलकत्ता में 12 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन हुआ। वह बेंगोली परिवार से थे। उनके 9 भाई बहन थे। उनका बचपन से स्वामी विवेकानंद जी नाम नही था। उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनके पिता विश्व नाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में अभिवक्ता थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला व गृहिणी थी। वह अपनी माता से बेहद प्रभावित थे। उन्हें उनकी माता के साथ समय व्यतीत करना बेहद पसंद था। उनकी माता से उन्होंने भगवान के बारे में जाना और उनके हृदय में जिज्ञासा पैदा हुई। उनके जीवन मे उनकी माता की विशेष भूमिका रही। स्वामी विवेकानंद जी के दादाजी संस्कृत व फारसी के विद्वान थे। इससे स्वामी विवेकानंद जी का उच्च व्यक्तित्व बना। उनके जीवन को उच्च बनाने के लिए बचपन से ही उन्होंने अपने परिवार से हर छोटी बड़ी सीख ली। उनकी माता के धार्मिक होने के कारण उनकी भी आध्यात्म में रुचि बढ़ी। उन्होंने संगीत में गायन व वाद्य यंत्र को बजाना सीखा। वह काफी छोटी उम्र से ध्यान साधना करते थे। सन्यासियों के प्रति उनमें विशेष प्रेम व श्रद्धा थी। वह दयालु व आत्मीय भाव के व्यक्ति थे। 1871 में जब वह 8 वर्ष के थे तब उनका दाखिल ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट में कराया गया। 1879 में उन्होंने मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। एक साल बाद कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला लिया और फिलोसोफी पढ़नी शुरू की। उनके जीवन का यह समय काफी विशेष था। इस वक़्त उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपियन देशों के इतिहास आदि के बारे में विस्तार पूर्वक जाना। इससे उन्होंने काफी ज्ञानार्जन किया। 1884 में उन्होंने बैचलर ऑफ आर्ट की डिग्री प्राप्त की।

Guru of Swami Vivekananda

गुरु का मिलना व देश भ्रमण- उनका जीवन सवालों से भरा हुआ था। ईश्वर की सच्चाई वह जानना चाहते थे। वे ईश्वर पर विश्वास करते थे उन्हें जानना व देखना चाहते थे। इसी बीच काली मां के मंदिर पर स्वामी विवेकानंद जी की मुलाकात बाबा रामकृष्ण परमहंस जी से हुई। स्वामीजी के मन मे ना जाने कितने सवाल थे वह सन्यासियों में श्रद्धा रखते थे इसी वजह से उन्होंने बाबा रामकृष्ण जी से पहली ही मुलाकात एक सवाल किया। क्या आपने कभी भगवान को देखा है? परमहंस जी ने कहा कि हां बिल्कुल देखा है और बिल्कुल वैसे ही दिखा है जैसे तुम्हे अपने समक्ष देख रहा हु। स्वामी विवेकानंद जी को उनकी बातें दिलचस्प और सत्य प्रतीत हुई। इसी प्रकार उन्होंने उनसे कई सारे सवाल किए। जिसका उत्तर बाबा रामकृष्ण जी ने सटीक दिया। वह पहले व्यक्ति थे जिनसे स्वामी विवेकानंद जी प्रभावित हुए थे। इसके बाद बाबा रामकृष्ण परमहंस जी उनके गुरु बने। उनसे स्वामीजी ने बहुत कुछ सीखा और अपने जीवन मे उतारा। आध्यात्म में उनका प्रेम प्रबल होता जा रहा था। 1886 में बाबा रामकृष्ण परमहंस जी की मृत्यु हुई। उनका उत्तराधिकारी उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी को बनाया। इसके बाद उन्होंने देश का भ्रमण किया। वह देश के कई हिस्सों में गए। वहां जाकर उन्होंने जातिवाद देखा। विभिन्न भेद भाव देखे।

उन्होंने लोगो को उपदेश दिए और यह ज्ञात कराया कि विकसित भारत के निर्माण के लिए बुराइयों को खत्म करना होगा। युवाओं को मेहनत करने के व संकल्प करने के उपदेश दिए। उनकी वाणी में सत्यता और एकता की भावना रहती थी।उनके व्यक्तित्व के कारण खेत्री के राजा ने उन्हें स्वामी विवेकानंद के नाम से सम्मानित किया। 

Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

विदेश यात्रा व विश्व मे कीर्ति-  स्वामी विवेकानंद जी केवल भारत देश में प्रसिद्ध नही है। उन्होंने विदेश में भी अपने वर्चस्व को स्थापित किया। 1893 में वह विदेश भ्रमण कर रहे थे। उसी वर्ष अमेरिका के शिकागो में सम्पूर्ण विश्व के धर्मो का सम्मेलन आयोजित हुआ था। सभी ने अपने अपने अपने धर्म की पुस्तकें रखी। उस वक़्त स्वामी विवेकानंद जी ने भी वहां भारत के हिन्दू धर्म की छोटी सी पुस्तक भगवत गीता रखी। धीरे धीरे सभी ने अपने धर्म के भाषण दिए। जब स्वामी विवेकानंद जी की बारी आई तब उनके भाषण सुन सभा मे बैठे सभी लोग अभिभूत हो गए। उनके लिए ज़ोरदार तालियां बजने लगी। कहा जाता है कि वह तालियां सबसे लंबे समय तक बजायी गयी। उनकी वाणी ने चमत्कार कर दिया। लोगो ने हिन्दू धर्म को विदेश में भी सराहा। भारत को स्वामी विवेकानंद जी ने विदेश में कीर्ति दिलाई। हिन्दू धर्म को लोकप्रिय बनाने व आध्यात्म को बढ़ाने का कार्य करने के लिए उन्हें सारे संसार मे जाना जाता है। उनके एक भाषण ने लोगो के हृदय में आत्मीयता भरी। लोग उस वक़्त किसी धर्म के नही थे। सभी मे एकता का भाव था। भागवत गीता को उन्होंने विदेश में पहचान दिलाई। उनके तर्क इतने सटीक थे कि वहां बैठे सभी लोग उनके तर्क की आत्मीयता से भाव विभोर हो गया। ऐसे भाषण हिन्दू धर्म पर पहली बार उन्होंने ही दिए थे। उन्होंने विदेश में हिन्दू धर्म को सम्मान व भारत को आदर दिलाया। 1894 में उन्होंने न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की। 1895 में योग की कक्षा करने लगे। उनकी प्रमुख शिष्य आयरिश महिला सिस्टर निवेदिता बनी। 1897 में उन्होंने भारत के दक्षिणी क्षेत्र में जगह जगह भाषण दिए। 4 जुलाई को रात्रि 9:10 मिनट पर उनकी मृत्यु हुई। उस दिन उन्होंने अपने शिष्यों को शुक्ल, यजुर्वेद, संस्कृत व्याकरण और योग की फिलोसोफी का ज्ञान दिया था। शाम 7 बजे उन्होंने अपने कक्ष में किसी को आने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। उनके शिष्यों के अनुसार स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि ली थी। 

उपसंहार- स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन से सैंकड़ो लोगो को प्रेरित किया। उन्होंने राष्ट्र के प्रति, विश्व के प्रति, हिन्दू धर्म के प्रति, गरीबों के प्रति, युवाओं के प्रति आजीवन कार्य किये। के मानो दुसरो के जीवन मे बदलाव लाना व मनुष्य कल्याण ही उनका संकल्प रहा हो। उनका कहना था कि हम सभी को अपने जीवन मे एक संकल्प ज़रूर करना चाहिए और उसके प्रति अपना जीवन न्योछावर करना चाहिए। युवाओं से उनका कहना था कि उठो, जागो और तब तक काम करो जब तक तुम्हे सफलता ना मिले। 

ऐसे महापुरुष के बारे में जान हम सभी अभिभूत व भाव विभोर है। स्वामी विवेकानंद जी आज भी उनके विचारों के रूप में हम सभी के बीच है। 12 जनवरी,हर वर्ष युवा दिवस उनके दिए उपदेश को, उनके योगदान को हमे हमेशा याद दिलाता है।

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Essay on swami vivekananda in hindi स्वामी विवेकानंद पर निबंध.

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Essay on Swami Vivekananda in Hindi 1000 Words

हमारे देश में विश्व-विभूतियों की एक अटूट श्रृंखला रही है। समय-समय पर जन्म लेकर उन्होंने भारतभूमि व सारी मानवता को विभूषित व धन्य किया है। आधुनिक समय के संदर्भ में हम राजा राममोहन राय, महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, स्वामी रामकृष्ण परम हंस, चैतन्य महाप्रभु, सर्वपल्लि राधाकृष्णन, महर्षि अरविन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि कुछ नाम गिना सकते हैं। स्वामी विवेकानन्द इस श्रृंखला की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। उन्होंने अपने जीवन-चरित्र व अनुकरणीय महान् कार्यों से भारत को गौरव प्रदान किया। उन्होंने धार्मिक व सामाजिक क्रांति को आगे बढ़ाया तथा नवजागरण को नया बल और स्फूर्ति प्रदान की।

इस महान विभूति का जन्म 12 जनवरी, 1883 को कलकत्ता के एक सम्पन्न और आधुनिक परिवार में हुआ। इनके बाल्यकाल का नाम नरेन्द्र दत्त था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक विद्वान, संगीत प्रेमी और पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति के अच्छे ज्ञाता थे। नरेन्द्र की माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक और सनातन संस्कारों की गुणवान तथा प्रतिभाशाली महिला थीं। माता-पिता के ज्ञान, स्वभाव-संस्कार व गुणों का बालक नरेन्द्र पर बहुत प्रभाव पड़ा। संगीत की प्रारम्भिक प्रेरणा उन्हें अपने पिता से ही मिली थी। उनके बाबा दुर्गाचरण दत्त एक विद्वान व्यक्ति थे। फारसी, बंगला व संस्कृत भाषाओं को उनको गहरा ज्ञान था। ये सभी संस्कार बालक नरेन्द्र को विरासत में मिले और आगे चलकर वे महान् व्यक्ति बने तथा विवेकानन्द के नाम से विख्यात हुए।

उनकी माता ने उन्हें “प्रथम गुरु” के रूप में बहुत अच्छे संस्कार व शिक्षा प्रदान की। उन्हीं से नरेन्द्र ने अंग्रेजी तथा बंगला भाषाएं सीखीं, रामायण और महाभारत की शिक्षाप्रद व प्रेरणादायी कहानियां सुनी। रामायण और राम का उन पर गहरा प्रभाव था। हनुमान भी उनके लिये पूज्य व अनुकरणीय थे। वे शिव की उपासना करते थे। आध्यात्मिक रूचि और जिज्ञासा के अन्तर्गत भारतीय दर्शनशास्त्र का उन्होंने गंभीर अध्ययन किया तथा कालांतार में ब्रह्म समाज के सदस्य बन गये। नरेन्द्र प्रतिभाशाली छात्र थे। जो एक बार पढ़ लेते स्मृति-पटल पर सदैव के लिए अंकित हो जाता।

स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् उनके पिता उनका विवाह कर देना चाहते थे परन्तु नरेन्द्र इस बंधन में नहीं बंधना चाहते थे। वस्तुत: नियति को मान्य नहीं था। परिवार के संकीर्ण घेरे में उनकी प्रतिभा और दैवीगुण सिमट कर रह जायें। ईश्वर ने उन्हें सम्पूर्ण विश्व की सेवा, कल्याण और आध्यात्मिक क्रांति के लिए भेजा था।

रामकृष्ण गंगातट स्थित काली के दक्षिणेश्वर मन्दिर में निवास करते थे। उनकी गहन साधना, तपस्या व उपलब्धियों की चर्चा कलकत्ता में सर्वत्र होती थी। अतः एक दिन वे रामकृष्ण से मिलने दक्षिणेश्वर गये तथा इस महायोगी के दर्शन किये। धीरे-धीरे उनके संपर्क में आने से उनके संदेह, तर्क व जिज्ञासाएं शांत होती चली गईं और उन्होंने अपना गुरु स्वीकार कर लिया। रामकृष्ण ने अपने ज्ञान के आधार पर तुरंत जान लिया कि नरेन्द्र असाधारण प्रतिभा सम्पन्न एक महान् व्यक्ति थे और उनका पृथ्वी पर अवतरण एक विशेष आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ था। अंतत: 1881 में उन्होंने संसार का त्याग कर सन्यास ले लिया।

सन् 1884 में पिता के देहान्त से नरेन्द्र के परिवार पर संकट का पहाड़ ही टूर पड़ा परन्तु गुरु कृपा व ईश्वर के आर्शीवाद से नरेन्द्र विचलित नहीं हुए और अपने साधना पथ पर निरन्तर बढ़ते रहे तथा ईश्वर दर्शन का लाभ प्राप्त किया। 16 अगस्त, 1886 को परमहंस रामकृष्ण का देहांत हो गया। विवेकानन्द व उनके अन्य संन्यासी साथियों के लिए यह बड़ा आघात था परन्तु तुरंत ही वे संभल गये और सूक्ष्म रूप में उन्हें अपने गुरु से मार्गदर्शन निरन्तर मिलता रहा।

उन्होंने अपने सन्यासी साथियों तथा दूसरे भक्तजनों के साथ मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस संस्थान ने तब से अब तक अनेक प्रशंसनीय और अभूतपूर्व कार्य देश व विदेशों में सम्पन्न किये हैं। विवेकानन्द का अंग्रेजी तथा बंग्ला भाषाओं पर असाधारण अधिकार था। संस्कृत के भी वे विद्वान थे। ऊपर से उन्हें अपने गुरु व ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त था। हिन्दी भी वे धाराप्रवाह बोल सकते थे। नवजागरण की इस नई लहर से प्रभावित-प्रेरित होकर हजारों स्त्री-पुरूष विवेकानन्द के शिष्य, अनुयायी और प्रशंसक बन गये।

खेतड़ी के राजा के आग्रह पर विवेकानन्द अमेरिका में होने वाले विश्वधर्म सम्मेलन में जाने को तैयार हो गये। 11 सितम्बर, 1893 को इस धर्म संसद का सत्र प्रारम्भ हुआ। विवेकानन्द के ओजस्वी, ज्ञानपूर्ण और मौलिक विचारों को सुनकर श्रोतागण अभिभूत हो गये। उन्होंने बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट से स्वामी जी के भाषण का स्वागत किया। उनके प्रवचनों की सारे अमेरिका में धूम मच गई तथा बड़ी संख्या में लोग विवेकानन्द के शिष्य व अनुयायी बनने लगे। लगभग अढाई वर्षों तक वे अमेरिका में रहे और वहां भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते रहे।

भारत लौटने पर विवेकानन्द का देश भर में अपार स्वागत हुआ। सारे देश ने कृतज्ञता से अपना मस्तक उसके सामने झुका दिया। जनसमुदाय हर्ष-विभोर होकर उनकी जयकार करता रही। 4 जुलाई, 1902 को इस कर्मवीर का निधन हो गया। उस समय विवेकानन्द मात्र 39 वर्ष के थे। उनके निधन ने सारे देश को शोक-स्तब्ध कर दिया। उनकी पावन स्मृति में देश तथा विदेश में अनेक स्मारक स्थापित किये गए। उदाहरणार्थ कन्याकुमारी के सागर तट स्थित उनके स्मारक का यहां उल्लेख किया जा सकता है। किसी समय यहीं पर विवेकानन्द ने आकर ध्यान साधना की थी और समाधि में लीन रहे थे।

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Essay on Swami Vivekananda in Hindi 1500 Words

Let’s start reading an essay on Swami Vivekananda in Hindi.

विश्व को ज्ञान-रश्मियों से आलोकमण्डित कर हमारा देश जगत् गुरु कहलाया। ज्ञान के अनेक क्षेत्रों में भारतीय मनीषियों ने निरन्तर साधना से विश्व को नए दर्शन पढ़ाए। अपने विश्व व्यापी चिंतन से हमारे महापुरुषों ने विश्व को धर्म की सीमित परिधियों से निकाल उसे विशाल क्षेत्र प्रदान किया। धर्म के कूप-मण्डूक बनकर रहना उन्हें स्वीकार न था। इसलिए विश्व के सम्मुख उन्होंने धर्म और दर्शन की नयी व्याख्या की जिसका आधार विशाल था और जिसमें द्वेष का मालिन्य नहीं था अपितु प्यास की सौरभ थी। स्वामी विवेकानन्द भी ऐसे ही युग-पुरुष हुए हैं जिनका चिंतन और दर्शन विश्व के लिए नवीन पथ तो प्रशस्त करता ही है, एक अखण्डित, कालजयी धर्म की व्याख्या भी करता है।

12 जनवरी सन् 1863 ई. मकर संक्रान्ति के दिन कलकत्ता के एक क्षत्रिय परिवार में श्री विश्वनाथ दत्त के घर में उनकी पत्नी भुवनेश्वरी देवी की कोख से एक बालक का जन्म हुआ जिसका प्यार भरा नाम माँ ने वीरेश्वर’ (बिले) रखा। लेकिन अन्नप्राशन के दिन नाम दिया गया नरेन्द्र नाथ। अनेक मनौतियों के बाद जन्मा बालक सम्पन्न परिवार में बहुत लाड़-प्यार से पाला गया और परिणामतः वह हट्ठी बन गया। बचपन से ही मेधावी नरेन्द्र जिज्ञासु भी था। अत: घर में भी माता-पिता पर प्रश्नों की बौछार करता। धार्मिक वातावरण में महादेव और हनुमान के चरित्रों से वह प्रभावित होता।

घर की आरम्भिक शिक्षा के बाद विद्यालय की शिक्षा आरम्भ हुई। दो वर्ष तक रायपुर में पिता के समीप रहने से बालक नरेन्द्र ने स्वास्थ्य लाभ भी किया और तर्क शक्ति का विकास भी हुआ। मैट्रोपोलिटन इन्स्टीट्यूट से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद असेम्बली इन्स्टीट्यूशन से नरेन्द्र ने एफ. ए. और बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

इस अध्ययन काल में नरेन्द्र ने वकृत्व शक्ति, शारीरिक और मानसिक शक्ति, तर्क-बुद्धि चिंतन और मनन, ध्यान और उपासना, भारतीय और पाश्चात्य दर्शन, डार्बिन का विकासवाद और स्पेंसर का अज्ञेयवाद, ब्रह्म समाज और परम हंस और काली आदि से जुड़कर उनका अध्ययन विकास की ओर अग्रसर हुआ।

सन 1884 में पिता का निधन होने से परिवार के भरण-पोषण का भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। ऋण की परेशानी, नौकरी की निरर्थक हूँढ, मित्रों की विमुखता, ने नरेन्द्र के मन में ईश्वर के प्रति प्रचण्ड विद्रोह जगा दिया लेकिन रामकृष्ण परमहंस के प्रति उसकी श्रद्धा और विश्वास स्थिर रहे। परमहंस से उन्होंने निर्विकल्प समाधि प्राप्त करने की प्रार्थना की लेकिन यह सब कुछ एक दिन स्वयं हो गया। एक दिन ध्यान में डूबे नरेन्द्र की समाधि लग गई और समाधि टूटने पर वह दिव्य आनन्द और शान्ति के प्रचण्ड प्रवाह से विभोर हो गया, पुलकित हो गया। अपनी मृत्यु से तीन-चार दिन पूर्व रामकृष्ण ने नरेन्द्र को अपने प्रभाव से स्वयं समाधिस्थ होकर कहा था – “आज मैंने तुम्हें अपना सब कुछ दे दिया है और अब मैं सर्वस्वहीन एक गरीब फकीर मात्र हैं। इस शक्ति से तुम संसार का महान् कल्याण कर सकते हो और जब तक तुम वह सम्मान प्राप्त न कर लोगे, तब तक तुम न लौटोगे।” उसी क्षण से सारी शक्तियाँ नरेन्द्र के अन्दर संक्रान्त हो गई, गुरु और शिष्य एक हो गए तथा नरेन्द्र ने संन्यास ग्रहण कर लिया। अगस्त 1886 में परमहंस महासमाधि में लीन हो गए।

संन्यास की ओर

अभी तक नरेन्द्र घर से पूर्ण रूप से असम्पृक्त नहीं हुए थे। घर की व्यवस्था संतोषजनक नहीं थी। जब उनके मकान सम्बन्धी मुकद्दमे की अपील का निर्णय उनके पक्ष में हो गया तो दिसम्बर के आरम्भ में नरेन्द्र ने घर-परिवार से स्वयं को पूर्ण रूप से मुक्त कर दिया और वाराहनगर में रहने लगे। इसके बाद दैवी इच्छा से प्रेरित होकर नरेन्द्र ने मठ को त्यागने का फैसला कर लिया। युवक नरेन्द्र परिव्राजक स्वामी विवेकानन्द हो गए।

इसके बाद स्वामी विवेकानन्द की यात्रा आरम्भ हुई। बिहार, उत्तर प्रदेश, काशी, अयोध्या, हाथरस, ऋषिकेश, आदि तीर्थों में घूमने के पश्चात् वे पुन: वाराहनगर मठ में आ गए और रामकृष्ण संघ में सम्मिलित हो गए।

उनकी यात्रा निरन्तर जारी रही और ज्ञानार्जन की पिपासा भी उत्तरोत्तर बढ़ती गई। एक ओर उत्तरी भारत में उत्तरकाशी से लेकर दक्षिण भारत में कन्याकुमारी तक वे सम्पूर्ण राष्ट्र का जीवन देखते रहे समझते रहे तो दूसरी ओर उनकी आध्यात्मिक क्षुधा भी बढ़ती गई। इस संदर्भ में वे कभी पवहारी बाबा से उपदेश प्राप्त करते, उच्चतर आध्यात्मिक चर्चा करते तो दूसरी ओर प्रेमानन्द जी से शास्त्र-चर्चा और शंका-समाधान भी किया करते। एक ओर वे अनेक नरेशों के सम्पर्क में आते तो दूसरी और माँ सारदा देवी जी का पुण्य आशीर्वाद भी मांगते। अष्टाध्यायी और ‘पातंञ्जलि’ का गहन अध्ययन उनकी ज्ञानार्जन की बलवती भावना का प्रमाण है। लोकमान्य तिलक, स्वामीरामतीर्थ जैसे नेताओं और विद्वानों से उनका सामीप्य रहा। कन्याकुमारी में श्रीपादशिला पर समाधिस्थ होना और उसके विदेश प्रस्थान उनके इस भ्रमण के कुछ विशेष महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।

31 मई 1893 ई. को उन्होने बम्बई से प्रस्थान किया। इस यात्रा में जापान जैसे देशों को देखा जो औद्योगिक क्रान्ति से नव्य रूप प्राप्त कर रहा था। शिकागो शहर में गेरुआ वस्त्र धारी तेजस्वी गौर वर्ण व्यक्ति को देखकर उन लोगों के ध्यान को आकर्षित करते। शिकागो धर्म सभा में भाग लेने से पूर्व उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन वे विचलित नहीं हुए। 11 सितम्बर 1893 का दिन विश्व के धार्मिक इतिहास के लिए चिरस्मरणीय है जब गैरिक वस्त्रों से विभूषित गौरवर्ण संन्यासी ने प्यार और अपनत्व की ऊर्जामयी भाषा में अमेरिका के लोगों को संबोधित किया था – अमेरिका निवासी भाइयों और बहनों और वह कक्ष कारतल ध्वनि से गूंज उठा था। और इसके पश्चात सम्मेलन मानो विवेकानन्द के ही रंग में रंग गया। हिन्दु धर्म के अनेक पक्षों को जब उन्होने सम्मुख रखा तो समस्त पत्र-पत्रिकाओं ने अपूर्व स्वागत इस दिव्य स्वामी का किया। न्यूयार्क हेराल्ड, प्रेस ऑफ अमेरिका ने स्पष्ट लिखा कि इस चुम्बकीय व्यक्तित्व वाणी और विषय के प्रतिनिधि के सम्मुख अन्य धर्मों के प्रतिनिधि निस्तेज हैं। इसके बाद स्वामी जी ने अमेरिका के विभिन्न शहरों में व्याखान दिए। इंग्लैंड आने पर यहाँ भी उनके प्रवचनों ने अनेक विद्धान जनों, धर्म प्रेमियों को लुभाया। जगद् विख्यात विद्वान मैक्समूलर उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। जर्मनी के अलावा वे अन्य देशों में वेदान्त प्रचार के पश्चात वे भारत लौटे। चार वर्ष पश्चात् अपनी मातृभूमि में वापस आने पर उनका अभूतपूर्व, भव्य, गौरवमय और प्यार भरा स्वागत किया गया। सम्पूर्ण देश में विवेकानन्द का नाम गूंज उठा। देश और विदेश में अनेक धर्मों के लोग उनके शिष्य बने। रामकृष्ण मिशन की स्थापना के बाद यह महान् विभूति 4 जुलाई 1902 को ओम् की ध्वनि के साथ महाप्रस्थान कर गई।

दर्शन और सिद्धान्त

स्वामी विवेकानन्द का उद्देश्य रामकृष्ण परमहंस के धर्म तत्त्व को विश्वव्यापी बनाना था जिसका आधार वेदान्त था। अत: उन्होंने वेदों के प्रचार और प्रसार के लिए महासंकल्प किया। देश और विदेश में रामकृष्ण मिशन की शाखाएं और प्रचार केन्द्र स्थापित किए। अपने साथियों से उन्होंने एक बार कहा था – “जो लोग दिखावटी भावावेश के धर्म को प्रोत्साहन देते हैं उनमें से अस्सी फीसदी बदमाश और पन्द्रह फीसदी पागल हो जाते हैं।” उनका संन्यास जीवन से दूर नहीं भागता था अपितु संसार के दुःख दारिद्रय को दूर करना तपस्या के समान मानता था। केवल अपनी मुक्ति के लिए तपस्या करना उन्हें स्वार्थ प्रतीत होता था।

वे धर्म के ढोंग-ढकोसला के दलदल से बाहर निकलना चाहते थे। उनका स्पष्ट मत था कि धर्म का व्यवसाय करने वाले पण्डित-पुरोहित ही धर्म के मूल तत्त्वों को नहीं समझते हैं और भारत की धर्म निष्ठा जनता को गुमराह करते हैं।

वे पत्थर हृदय-संन्यासी नहीं संवेदनशील परदुःखकातर योगी थे। अपने गुरु भाई की मृत्यु पर अब वे शोक-विह्वल हुए और प्रमदा दास ने उनके साधारण व्यक्तियों जैसे शोक पर आश्चर्य प्रकट किया तो उन्होंने कहा था-क्या संयासी हृदयहीन होते हैं। मेरे विचार में तो संन्यासी का हृदय अधिक सहानुभूतिशील होता है। ….. पत्थर जैसा अनुभूतिशून्य संन्यासी जीवन तो मेरा आदर्श नहीं है।

वेदान्त के विभिन्न मतों के संबंध में उनका निश्चित मत था कि विभिन्न मतवाद परस्पर विरोधी नहीं है अपितु एक दूसरे के पूरक और समर्थक हैं। उनके इस समन्वयवादी विचार ने सभी धर्मों के श्रेष्ठ तत्त्वों को स्वीकारा किया अत: वे सबके प्रिय बने।

वे समाज को देश को प्रतिगामी रुढ़ियों से निकाल कर प्रगतिशील बनाना चाहते थे। जो नियम और आचार-विचार समाज के विकास और पोषण में बाधक थे उनके त्याग को ही वे स्वीकारते थे। उन्होंने धर्म-द्वन्द्व के त्याग, स्वाधीनता के नाम पर स्वेच्छाचारिता के परित्याग, जातीयता और राष्ट्रीयता के नाम पर दूसरे पर अत्याचार, धर्म के नाम पर दूसरों के धर्म को हेय मानने का निषेध तथा उच्च और उदार मानव धर्म की स्थापना पर बल दिया।

सर्वधर्म समन्वय का उपदेश देते हुए उन्होंने कहा था – प्रत्येक जाति और प्रत्येक धर्म जाति और धर्मों के साथ आदान प्रदान करेगा, कुछ लेगा और कुछ देगा। किन्तु प्रत्येक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करेगा और अपनी अपनी अन्तर्निहित शक्ति के अनुसार आगे बढ़ेगा। उनका आदर्श था – “युद्ध नहीं सहयोग, ध्वज नहीं एकात्मता, भेद नहीं सामंजस्य।” उपसंहार

यह दिग्विजयी संन्यासी, मानवता का उपासक और प्रेमी ज्ञान का प्रकाश पंज, दिव्य शान्तियों के आलोक से विभूषित ब्रह्मचारी केवल 39 वर्ष की अल्पायु में ब्रह्मलोक की ओर महाप्रयाण कर गया। मां भारती के इस पुत्र को देशवासियों ने इसकी इस विशाल प्रतिमा ‘परिव्राजक की प्रतिमा’ स्थापित कर अपने श्रद्धा सुमन और भावाजलियां इसके चरणों में निवेदित की।

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Swami Vivekananda Essay in Hindi

Swami Vivekananda Essay in Hindi: स्वामी विवेकानंद पर निबंध

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Swami Vivekananda Essay in Hindi

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Swami Vivekananda Short Essay (150 words)

स्वामी विवेकानंद को भारत में एक महान हिंदू नेता और संत के रूप में जाना जाता है। भारत के रत्न स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। स्वामी जी को बचपन में नरेंद्र दत्त के नाम से जाना जाता था। स्वामी जी बचपन से ही बड़े विचारों के धनी थे। उनकी एकमात्र इच्छा थी परमात्मा से मिलन की और वे परमात्मा से मिलन के लिए हमेशा व्याकुल रहते थे। इसके अलावा स्वामी जी आध्यात्मिक विचारों वाले एक बड़े ही अद्भुत व्यक्ति थे। विवेकानंद जी ने बड़े-बड़े देश जैसे कि अमेरिका यूरोप में जाकर अपने धर्म का खूब प्रचार किया। स्वामी जी ने अपनी बुद्धि और ज्ञान के दम पर सारे विश्व में भारत की गरिमा को बढ़ाया।

Swami Vivekananda Essay in Hindi

Essay on Swami Vivekananda in Hindi 300 words

स्वामी विवेकानंद आज सारे विश्व में एक महान संत और विद्वान गुरु के रूप में जाने जाते हैं। स्वामी विवेकानंद का नाम भारत में जन्मे ऐसे महापुरुषों में शामिल है जिन्होंने सनातन धर्म में मौजूद वेदों और शास्त्रों के ज्ञान से विश्व को परमात्मा और अध्यात्म से परिचित कराया। उन्होंने अपने सारे जीवन में सदैव विश्व कल्याण के लिए काम किया। स्वामी जी का जीवन सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। अपने ज्ञान और कुशल बुद्धि के कारण उन्हें युवा शक्ति का प्रतीक भी कहा जाता है। भारतवर्ष में सभी लोग उन्हें युवा शक्ति का प्रतीक मानते हैं।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था। स्वामी जी की माता का नाम भुवनेश्वर देवी तथा पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता इनके पिता कोलकाता के न्यायालय में वकालत किया करते थे। स्वामी जी का बचपन का नाम नरेंद्र दत्ता था। स्वामी जी बचपन से ही बड़ी कुशल और तीव्र बुद्धि के धनी थे उन्होंने छोटी उम्र में ही विज्ञान इतिहास दर्शन धर्म कला और साहित्य जैसे विषयों में महारत प्राप्त कर ली थी। स्वामी जी के पिता विश्वनाथ जी पाश्चात्य सभ्यता को सबसे बेहतर मानते थे इसलिए उन्होंने नरेंद्र दत्त से अंग्रेजी पढ़कर पाश्चात्य सभ्यता को अपनाने को कहा। लेकिन स्वामी जी सिर्फ परमात्मा मिलन के इच्छुक थे।

रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध महात्मा गांधी पर निबंध लाल बहादुर शास्त्री पर निबंध

भारत के इतिहास में स्वामी विवेकानंद जैसे महान पुरुषों का जन्म कई सदियों में एक बार होता है। आज सारे विश्व में स्वामी जी को एक महान गुरु महान समाज सेवक और महान शिष्य के रूप में जाना जाता है। स्वामी जी एकमात्र ऐसे इंसान थे जिन्होंने अपने ज्ञान के दम पर सारे विश्व को भारत से परिचित कराया। स्वामी विवेकानंद जिए कैसे व्यक्तित्व के व्यक्ति थे जिन्होंने मरने के बाद भी लोगों को प्रेरित किया। वह हमेशा लोगों को भाईचारे की सीख देते थे और आपसी प्रेम बनाए रखने को कहते थे। भारत के इस महान रत्न ने 4 जुलाई 1902 को अपना देह त्याग दिया

Swami Vivekananda Essay in Hindi 500 words

स्वामी विवेकानंद जी एक ऐसे व्यक्ति थे जिनके कारण भारत का नाम सारे विश्व में रोशन हुआ। स्वामी विवेकानंद जी द्वारा शिकागो में दिए गए भाषण से उन्होंने इसके लोगों को हिंदुत्व के बारे में बताया। प्रभु मिलन की इच्छा के कारण स्वामी जी ने वेद छात्रों का पठन किया जिसके कारण उन्हें वेद शास्त्रों का काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त हो गया था। अपने इस बेतात्रों के ज्ञान से उन्होंने सारे विश्व में अपने धर्म का प्रचार किया। स्वामी विवेकानंद के जीवन से सभी लोगों को हमेशा सीख मिलती रहती है। उन्होंने युवा शक्ति को भी काफी बढ़ावा दिया इसलिए 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा

स्वामी जी को बचपन से ही पढ़ने का काफी शौक था और तीव्र बुद्धि होने के कारण वे पढ़ने में भी काफी तेज थे। स्वामी जी की प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था से हुई 8 वर्ष की आयु में उनके पिता ने चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था में उनका दाखिला करवा दिया था। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर आगे की पढ़ाई जारी की। स्वामी जी ने सामाजिक विज्ञान धर्म का इतिहास दर्शन जैसे साहित्य के विषयों में अध्ययन कर महारत हासिल प्राप्त कर ली थी। इसके अलावा स्वामी जी को संस्कृत शास्त्र और बंगाली शास्त्र का अच्छा खासा ज्ञान था।

स्वामी विवेकानंद के गुरु

किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसके गुरु का काफी बड़ा योगदान होता है उसी तरह स्वामी विवेकानंद के जीवन को महान बनाने में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का काफी बड़ा योगदान था। स्वामी जी बचपन से ही बड़े आध्यात्मिक और धार्मिक किस्म के व्यक्ति थे। वे हमेशा परमात्मा से मिलन की कामना करते रहते थे परमात्मा की तलाश में वह काफी परेशान हो चुके थे तब एक दिन उनकी मुलाकात काली माता मंदिर के पुजारी से हुई। काली मंदिर के पुजारी से मिलने के बाद उनके जीवन में काफी बदलाव आया उसके बाद उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु मानकर अपना जीवन उनके प्रति समर्पित कर दिया। स्वामी जी ने अपने गुरु की खूब सेवा की तथा संन्यास लेने के बाद गुरु जी ने उनका नाम स्वामी विवेकानंद रखा।

स्वामी विवेकानंद की यात्रा

केवल 25 वर्ष की आयु में नरेंद्र नाथ सन्यास लेकर स्वामी विवेकानंद बन चुके थे। इसके बाद उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष में जब जात्रा प्रारंभ की। इसी के दौरान 1893 में स्वामी जी को शिकागो में आयोजित विश्व धर्म परिषद सभा में भारत के प्रतिनिधि के रूप में बुलाया गया। शिकागो मैं आयोजित हुए इस कार्यक्रम में स्वामी जी के भाषण से सभी लोग हक्का-बक्का हो गए। पहले विदेश के सभी लोग भारतीय लोगों को हीन दृष्टि से देखते थे लेकिन स्वामी जी के भाषण के बाद सब कुछ बदल गया सभी लोग हिंदुत्व और सनातन संस्कृति के प्रशंसक और प्रेरक हो गए।

स्वामी विवेकानंद जी ने बचपन काफी जल्दी हिंदू शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था इसके बाद वे हिंदू शास्त्रों के सबसे महान प्रशंसक बन गए। उन्होंने हमेशा भारत के लोगों को अपनी संस्कृति का प्रचार करने के लिए प्रेरित किया इसके अलावा लोगों को भाईचारे की भावना बनाए रखने के लिए भी प्रेरित किया। स्वामी जी ने अपना पूरा जीवन हिंदू धर्म के प्रचार और लोगों के कल्याण में व्यतीत कर दिया। भारत के महापुरुष और महान 4 जुलाई 1904 को अपने प्राण त्याग दें।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध

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स्वामी विवेकानंद पर हिन्दी निबंध - स्वामी विवेकानंद के विचार - स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय - Swami Vivekananda Essay in Hindi - Swami Vivekananda par nibandh - About Swami Vivekananda in Hindi

रुपरेखा : प्रस्तावना - स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय - स्वामी विवेकानंद की शिक्षा - स्वामी विवेकानंद का राष्ट्र को योगदान - स्वामी विवेकानंद के विचार - उपसंहार।

एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर विवेकानंद बने। स्वामी विवेकानंद भारत के कई महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। अपने भाषण द्वारा उन्होंने पूरे विश्व भर में हिंदुत्व के विषय में लोगो को जानकारी प्रदान की तथा अपने महान कार्यों द्वारा उन्होंने पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया। इसके साथ ही उनका जीवन भी हम सबके लिए एक सीख है।

भारत अनेक संतों, विद्वानों एवं दार्शनिकों का साक्षी रहा है। स्वामी विवेकानंद स्वयं एक महान संत, विद्वान् और दार्शनिक थे। स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता (कोलकाता) में शिमला पल्लै में 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जोकि कलकत्ता (कोलकाता) उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करत थे और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के मुख्य अनुयायियों में से एक थे। इनका जन्म से नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वह भारतीय मूल के व्यक्ति थे, जिन्होंने वेदांत के हिन्दू दर्शन और योग को यूरोप व अमेरिका में परिचित कराया। उन्होंने आधुनिक भारत में हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित किया। उनके प्रेरणादायक भाषणों का अभी भी देश के युवाओं द्वारा अनुसरण किया जाता है। उन्होंने 1893 में शिकागो की विश्व धर्म महासभा में हिन्दू धर्म को परिचित कराया था।

स्वामी विवेकानंद अपने पिता के तर्कपूर्ण मस्तिष्क और माता के धार्मिक स्वभाव से प्रभावित थे। उन्होंने अपनी माता से आत्मनियंत्रण सीखा और बाद में ध्यान में विशेषज्ञ बन गए। उनका आत्म नियंत्रण वास्तव में आश्चर्यजनक था, जिसका प्रयोग करके वह आसानी से समाधी की स्थिति में प्रवेश कर सकते थे। उन्होंने युवा अवस्था में ही उल्लेखनीय नेतृत्व की गुणवत्ता का विकास किया। वह युवा अवस्था में ब्रह्मसमाज से परिचित होने के बाद श्री रामकृष्ण के सम्पर्क में आए। वह अपने साधु-भाईयों के साथ बोरानगर मठ में रहने लगे। अपने बाद के जीवन में, उन्होंने भारत भ्रमण का निर्णय लिया और जगह-जगह घूमना शुरु कर दिया और त्रिरुवंतपुरम् पहुँच गए, जहाँ उन्होंने शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने का निर्णय किया। कई स्थानों पर अपने प्रभावी भाषणों और व्याख्यानों को देने के बाद वह पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गए। उनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी ऐसा माना जाता है कि, वह ध्यान करने के लिए अपने कक्ष में गए और ध्यान के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।

नरेंद्रनाथ ने प्रायः घर पर ही पढ़ाई की। अध्ययन के अलावा वे अभिनय, खेल एवं कुश्ती में भी रुचि रखते थे। वे अनेक कलाओं में प्रवीण थे। वे अपनी बाल्यवस्था से ही ऊर्जा से परिपूर्ण थे। वे संस्कृत भाषा में प्रवीण थे। उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्ययन किया। वे दर्शनशास्त्र में अच्छे थे। वे ब्रह्म-समाज से जुड़े। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। इसने उनके मन को काफी व्याकुल कर दिया। इन सबके दौरान, वे संत रामकृष्ण परमहंस से दक्षिणेश्वर में मिले और उनके शिष्य बन गए। 'निर्विकल्प समाधि' से गुजरने के बाद वे विवेकानंद बने। बाद में, उन्होंने संत रामकृष्ण के मठ का प्रभार लिया। वे देश भर के बहुत-से तीर्थ स्थानों पर गए। १८९३ ई. में वे शिकागो के धर्मसंसद में शामिल हुए। वहाँ उन्होंने पूरब की संस्कृति और विशेषताओं के बारे में बताया। 'शून्य' पर किया गया उनका भाषण आज भी सराहा जाता है।

१८९७ ई. में उन्होंने 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना की। यहाँ अनुयायिओं को वैदिक धर्म के बारे में पढ़ाया जाता था। मिशन ने सामाजिक सेवाएँ भी की। गरीबों के लिए विद्यालय, अस्पताल, अनाथालय आदि खोले गए। मिशन का लक्ष्य भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूकता फैलानी थी। वह हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित थे और हिन्दू धर्म के बारे में देश के अंदर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच में नई सोच का निर्माण करने में सफल हुए। वह पश्चिम में ध्यान, योग, और आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने में सफल हो गए। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे।

स्वामी विवेकानंद के विचार अधिक प्रेरणादायक है। वह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे क्यूंकि हिन्दू शास्त्रों (जैसे - वेद, रामायण, भगवत गीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि) में रुचि रखते थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी रुचि रखते थे। उन्होंने राष्ट्रवादी विचारों के माध्यम से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित किया। भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरबिंद ने उनकी प्रशंसा की थी। महान हिंदू सुधारक के रुप में, जिन्होंने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया, महात्मा गाँधी ने भी उनकी प्रशंसा की। उनके विचारों ने लोगों को हिंदु धर्म का सही अर्थ समझाने का कार्य किया और वेदांतों और हिंदु अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरिये को भी बदला था। उनके इन्हीं कार्यों के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (वह स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे) ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था। उनके प्रभावी लेखन ने बहुत से भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं जैसे - नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरविंद घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया।

स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व को भारतीय संस्कृति और परंपरा का सम्मान करना सिखलाया। वे एक महान संत, दार्शनिक और सच्चे देशभक्त थे। स्वामी विवेकानंद जी एक ऐसे व्यक्ति थे, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं तथा जिनके जीवन से हम सदैव कुछ ना कुछ सीख सकते हैं। उनका जन्म-दिवस 'राष्ट्रीय युवा दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

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Essay on Swami Vivekananda in Hindi – स्वामी विवेकानंद पर निबंध

दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको स्वामी विवेकानंद पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में बताएंगे यानी की Swami Vivekananda par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में पूरी जानकारी देंगे यानी की आपको Swami Vivekananda par 1200 words का essay मिलेगा इसलिए ये आर्टिकल पूरा धेयान से पूरा पढ़ना है। आपके लिए हेलफुल साबित होगी।

स्वामी विवेकानंद भारत के सबसे बड़े महापुरुष और धर्म गुरु है उन्होंने हमारी संस्कृति और हिंदू धर्म को पश्चिमी देशों को परिचित कराया आज पूरा विश्व योग दिवस मनाता है और योग को अपनी पहली प्राथमिकता के तौर पर करता है इस योग्य को परिचित भी स्वामी विवेकानंद ने ही पश्चिमी देशों को कराया स्वामी विवेकानंद युवाओं के नेता और मार्गदर्शक थे.

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

उन्होंने देश की संस्कृति और देश के विकास के लिए अहम कदम उठाये और कार्य किए। स्वामी विवेकानंद हमारे देश की संस्कृति और वेदांत और आध्यात्मिक के महान ग्रुप है उन्होंने हमारे वेदांत और आध्यात्मिक ज्ञान को पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

आज पूरा विश्व संस्कृति और हिंदू धर्म के वेदों और योग के मूल्य को जानता है और उन मूल्यों को पूरे विश्व में लाने का श्रेय स्वामी विवेकानंद को जाता है स्वामी विवेकानंद जी हमारे संस्कृति के प्रचार के लिए पूरे विश्व भर का भ्रमण किया और लोगों को हमारे संस्कृति का परिचय कराया।

19वीं सदी के अंत में हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार और लोगों के आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास और चेतना को जगाने के लिए स्वामी विवेकानंद ने बहुत ही कार्य किए उन्होंने लोगों को जागरूक किया आज पूरा विश्व हिंदू धर्म और इसके रीति रिवाज को जानते हैं।

Swami Vivekananda रामकृष्ण मठ की स्थापना की जो आज भी कार्य कर रही है इस मठ में आज भी हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार किया जाता है आज भी मठ समाज कल्याण में जुड़े हुए हैं। स्वामी विवेकानंद ने मठ का नाम अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा.

Swami Vivekananda युवाओं के रोल मॉडल हैं। युवाओं को आगे बढ़ने और युवाओं को अपने आत्मविश्वास के बल से परिचय कराया। स्वामी विवेकानंद ने हमारे युवाओं को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया और इसी के सहारे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम भी चलाएं। उन्होंने हमारे देश के लोगों को एक किया और अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ खड़ा किया।

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Biography of swami vivekananda in Hindi)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ था। उस वक्त कोलकाता ब्रिटिश इंडिया की राजधानी थी। स्वामी विवेकानंद जी का बचपन में नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता और उनके माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

उनके पिता विश्वनाथ दत्ता कोलकाता हाईकोर्ट में कार्यरत उनकी माता एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व वाले थे स्वामी विवेकानंद को अपनी शुरुआत में आध्यात्मिक ज्ञान अपने माता से ही मिले स्वामी विवेकानंद के दादाजी संस्कृत और फारसी के जानकार थे उन्होंने 25 साल की उम्र में अपने परिवार को छोड़कर सन्यासी जीवन को अपना लिया।

Swami Vivekananda को बचपन से ही आध्यात्मिक में बहुत ही उचित है वह भगवान श्री राम और हनुमान जी के तस्वीरों के सामने अध्यन करते रहते थे। इतना ही नहीं नरेंद्र दत्ता बहुत ही नटखट भी थे उनके माता-पिता को बचपन में  संभालना बहुत ही मुश्किल होता था इसीलिए मैंने भगवान शिव से पुत्र मांगा था पर उन्होंने मुझे एक शैतान दे दिया।

1871 में 8 साल की उम्र में उनका दाखिला ईश्वर चंद्र विद्यासागर के स्कूल में हुआ। यहां पर उन्होंने 6 साल तक पढ़ाई की इसके बाद उनका परिवार रायपुर चला गया 1879 में स्वामी विवेकानंद और उनके माता-पिता कोलकाता लौटे और उस वक्त स्वामी विवेकानंद पहले छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रवेश परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन अंक लाए थे।

स्वामी विवेकानंद की पढ़ने की क्षमता बहुत ही अधिक थी वह एक बहुत ही अच्छे reader थे। नरेंद्र दत्त को भारतीय क्लासिक संगीत में रुचि थी। नरेंद्र दत्त को अध्यात्म धार्मिक इतिहास सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में बहुत ही अधिक रूचि थी उन्हें हिंदू धर्म के वेदांत पुराण महाभारत उपनिषद में भी बहुत ही रुचि थी।

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उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई arts subject से की। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता पश्चिम में अध्यात्म और यूरोपियन इतिहास को भी पढ़ा। नरेंद्र दत्त पढ़ने में बहुत ही अव्वल थे उनके याद रखने की क्षमता बहुत ही अधिक और उनके तेज पढ़ने की क्षमता अतुल्य थी।

Swami Vivekananda तब के धर्मगुरु रामकृष्ण परमहंस से बहुत ही प्रभावित हुए और उन्हें अपना गुरु माना। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक और हिंदू समाज के ज्ञान को स्वर्गीय रामकृष्ण परमहंस से ही प्राप्त किया। उन्होंने अपनी पूरी जीवन को गुरु सेवा में लगा दिया।

आध्यात्मिक और इन सब चीजों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सन्यासी जीवन को अपनाया उनके गुरु का एक उद्देश्य था भगवान की सेवा मानवता की सेवा में है और स्वामी विवेकानंद ने इस उद्देश्य को अपनी जीवन भर पूरा किया।

स्वामी विवेकानंद ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें किसी जाति लिंग के आधार पर भेदभाव ना हो जहां पर लोगों को एक अच्छी शिक्षा प्राप्त हो और लोगों के ऊपर अत्याचार ना हो इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने भारत में भ्रमण किया और लोगों को देश के प्रति जागरूक किया।

लोगों को एक दूसरे के प्रति जागरूक 4 देशवासियों को एक किया ताकि पूरा देश मिलकर अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ सके और अपने आजादी को प्राप्त कर सकें।

उन्होंने सदा ही अपने जीवन में नारियों का सम्मान किया उन्होंने समाज में नारी पर हो रहे अत्याचार को कम करने के लिए बहुत ही अहम भूमिका निभाई उन्होंने लोगों को नारी के प्रति जागरूक कराया और नारियों को उनका सम्मान दिलाया।

एक बार की बात है जब स्वामी विवेकानंद कहीं विदेश में एक उपदेश दे रहे थे उनके स्पीच से विदेशी महिलाएं बहुत ही प्रभावित हुई उन्होंने स्वामी विवेकानंद से मिलने की इच्छा जताई जब यह स्त्रियां स्वामी विवेकानंद से मिली तब उन्होंने उनसे कहा जी आप बहुत ही गौरवशाली पुरुष हैं।

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स्वामी विवेकानंद से कहा आप हमसे शादी कर ले और तब हमें आपके जैसा पुत्र प्राप्त होगा तब स्वामी विवेकानंद ने हंसते हुए उत्तर दिया आप सभी तो जानते हैं कि मैं एक सन्यासी हूं भला मैं कैसे शादी कर सकता हूं अगर आपको मेरे जैसा पुत्र चाहिए तो आप मुझे अपना पुत्र बना ले इससे आप की भी इच्छा पूरी हो जाएगी और मेरा भी धर्म नहीं टूटेगा।

यह तो सुनते ही विदेशी महिलाएं Swami Vivekananda के चरणों में जा पड़ी और उन्होंने कहा आप धन्य है प्रभु आप एक ईश्वर के स्वरूप है आप किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म को नहीं छोड़ सकते हैं।

अपने 30 वर्ष की छोटी से आयु में उन्होंने अमेरिका के शिकागो में हो रहे धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और हिंदू धर्म से पश्चिमी देशों को परिचित कराया। उनकी ख्याति इतनी है कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था यदि आप भारत के बारे में जानना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को पढ़िए।

Swami Vivekananda भारत के लोगों को और देशवासियों को आवाहन दिया कि आओ साथ चल पड़े और इन दुराचारी अंग्रेजों से अपने देश को आजाद कराएं उन्हें कई शव वाहन का फल महात्मा गांधी के आजादी की लड़ाई में देखा इतना जनसैलाब स्वामी विवेकानंद के आह्वान के कारण आया स्वामी विवेकानंद अपने देश से बहुत अधिक प्रेम करते थे

उनका यह मानना था कि हमारे देश के युवा इस विश्व के सर्वश्रेष्ठ युवाओं में से एक है और हमारे देश के युवा ही हमारे देश की नींव रखेंगे इसीलिए स्वामी विवेकानंद को युवा का नेता भी कहा जाता है और आज हम उनके जन्मदिवस को युवा दिवस के तौर पर मनाते हैं हर साल हम 12 जनवरी को युवा दिवस के तौर पर स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देते हैं।

 मृत्यु:  उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी पढ़ना नहीं छोड़ा वह हर वक्त दो-तीन घंटे पढ़ते ही रहते थे। 4 जुलाई 1902 में अपने पढाई करते वक्त ही उन्होंने महासमाधि ली। उनका अंतिम संस्कार बेलूर मठ में किया गया। उनकी अंत्येष्टि चंदन की लकड़ी से बेलूर मठ वेट किया गया ठीक गंगा नदी के दूसरे तट में 16 वर्ष पूर्व रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार हुआ था।

उनका जीवनकाल पूरी तरह से देश को समर्पित और सामाजिक और हिंदू धर्म को समर्पित था आज हमें स्वामी विवेकानंद के रास्तों पर चलना चाहिए अगर हम सफल होना चाहते हैं तो हमें स्वामी विवेकानंद के दिखाए गए रास्तों में चलना चाहिए इन्होंने समाज को एक आईना दिखाया और नए समाज की परिकल्पना की और इस परिकल्पना को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने जीवन भर कार्य किया।

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मुझे उम्मीद है की स्वामी विवेकानंद पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में आपको पूरी जानकारी मिली होगी और साथ ही Swami Vivekananda par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में भी खेर अगर आपको अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

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