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essay on law in hindi

Law and Justice Essay In Hindi | Kaanoon Aur Nyaay Nibandh | कानून और न्याय निबंध हिंदी में

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Law and Justice Essay In Hindi : भारत जैसे ही अजाद हुआ वैसे ही भारत के विद्वानों ने विचार किया कि देश को चलाने के लिए नियम और कानून की आवश्यकता होगी और तुरतं ही कानून बनाने की तैयारी कर दी उन्हें मालूम था कि बिना किसी भी कानून के कोई   सँगठित देश नही चलाया जा सकता है , आजकल तो घर चलाने के लिए भी कानून बनते है और जब बात देश की हो तो कानून और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

Table of Contents

लॉ ( नियम ) और जस्टिस क्या हैं – (Law aur Justice Kya Hai)

क्योंकि हर व्यक्ति की सोच अलग – अलग होती है और वो चाहता है कि सब उसके कहे अनुसार या उसके सोचे अनुसार हो तो ये संभव नही है क्योंकि हर दूसरा व्यक्ति भी यही सोचता है कि सब उसके हिसाब से हो बिना उचित या अनुचित का अंतर जाने तब इन लोगो की सहूलियत ले लिए कानून जरूरी होते है कि जो हमे हमारी सीमाएं और सही – गलत के बारे में बताती है इन्हें ही नियम कहते है , कानून हम सभी की सहूलियत के लिए सभी के हित में होते है जहां सभी को बराबर कानून का पालन करना होता है।

किसी किताब में लिखा था कि आपकी सीमाएं वहां खत्म हो जाती है जहां से किसी और कि नाक शुरू होती है , मतलब सभी को बराबर जीने का अधिकार है चाहें वो अमीर हो या गरीब , चाहे वो काला हो या गोरा , बिना नियम के संग़ठन में रहना मुमकिन ही नही है।

जस्टिस की बात करें तो कानून का उल्लंघन करने वाले लोगो के लिए उनके अपराध के हिसाब से सजा दी जाती है और जिसके साथ अपराध होता है उसे तब मिलता है न्याय , लेकिन प्रक्रिया धीमी होने के कारण लोगो का विश्वास कम हो रहा है कानून पर और न्याय व्यवस्था पर।

( और   पढ़ें – स्वच्छ भारत मिशन पर   निबंध   इन   हिंदी )

कब बना कानून – (Kab Bana Kaanoon)

भारत का संबिधान ( कानून )2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन में बन पाया जहां विदेशों में लागू अच्छे कानूनों को भी संबिधान में शामिल किया गया और साथ मे कई नए नियमो को जोड़ा गया , जहां हर व्यक्ति के हित को ध्यान में रखकर कानून का निर्माण किया गया और आज तक जनता के हित को ध्यान में रखकर कानूनों को जोड़ा और हटाया जाता है।

चूंकि संबिधान में विदेशो के अच्छे कानूनों को भी स्थान दिया गया है जिससे भारत का कानून और भी अलग और न्यायप्रिय बन जाता है लेकिन भारत के कानून को सिर्फ और सिर्फ न मानना या कानून का दुरुपयोग ही निराश कर रहा है।

क्यों जरूरी है लॉ ( नियम )-(Kyu Jaroori Hain Law)

हर जगह कानून की आवश्यकता होती है क्योंकि बिना कानून के कोई भी काम नही सकता और हमारे देश मे तो कानून अतिमहत्वपूर्ण हैं क्योंकि हमारे यहां व्यक्ति स्वमं   के हित में किसी और का हित देखता ही नही है , अगर कानून नही होंगे तो कोई भी कुछ कर सकता है ये कानून ही है जो हमे बांधे रहता हैं कुछ गलत करने या देखने से।

अगर सही मायनों में देखे तो कानून हमारे गार्जियन के समान है जो हमारे अच्छे या गलत कामो पर हमें सजा देकर उनमें सुधार के लिए प्रेरित करता है।

भारत मे लॉ ( कानून ) की स्थित – (Bharat Mein Law Ki Stith)

वैसे लिखित में जो भारत का कानून है वो कई देशों के कानूनों और अपनी सोच समझ के हिसाब से बनाया गया है तो वो और भी सर्वश्रेष्ठ हो जाता है लेकिन असल मे जो कानून की स्थित भारत मे है शायद वो कहीं नही होगी , यहां हम सिर्फ बात सरकारी कार्यालयों या लोगो की नही कर रहे बल्कि आम जनता ही क़ानून को अपने हिसाब से चलाना चाहती है , यहां देश के कानून या देश की तरक्की से किसी को कोई लेना देना नही है बस सभी को स्वमं की तरक्की ही चाहिए चाहे वो कानूनी हो या गैर – कानूनी।

यहां कानून को लोग अपने हिसाब से जीते है अगर उनके हित में है तो कानून और खिलाफ है तो मानना ही नही , कानून होता है ताकि लोगो मे   कानून का डर रहे और वो उचित कार्य ही करें लेकिन कानून जितना शख्त होना चाहिए शायद उतना नही है क्योंकि हर वर्ष जाने कितने रेप , मर्डर , चोरी होती ही रहती है और सभी को पता होता है कि चोरी या मर्डर किसने किया है फिर भी बस केस चलता रहता है और मिलती रहती है सिर्फ अगली तारीख , इसमें कोई भी दोहराए नही भारत की कानूनी प्रक्रिया धीमी है , जिस हिसाब से कानून है उस हिसाब से न्याय भी जल्द हो तो अपराधों की संख्या में कमी आएगी।

भारत मे जस्टिस – (Bharat Mein Justice )

भारत मे अपराधों की संख्या अधिक है और न्यायालय , न्यायधीश कम जिस कारण किसी को भी न्याय मिलने में समय लगता है लेकिन अगर यही प्रणाली अच्छी हो जाए तो जल्दी फैसले होंगे और लोगो को न्याय मिलेगा जिससे अपराधों में कमी आएगी और जनता का कानून के प्रति सम्मान भी बढ़ेगा।

कोई केश के सालों तक चलता रहता है और उन्हें न्याय नही मिलता कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि व्यक्ति बूढ़ा होकर मर जाता है लेकिन केस चलता रहता है जिसमे बहुत सुधार की आवश्यकता है , कानून व्यस्थाओ में बड़े कानूनों को शामिल किया जाना चाहिए और अगर व्यक्ति सच मे दोषी है तो उसे तुरंत सजा मिलनी चाहिए।

कानून को दे सम्मान – (Kaanoon Ko De Saaman)

हमे कानून को सम्मान देना होगा क्योंकि जब तक हम कानून का सम्मान नही करेंगे जब तक हम नही मानेंगे कानून तब तक हमारे साथ न्याय कैसे हो सकता है , हमे अपने औऱ दूसरे लोगो के अधिकार और कानून पर हक़   को ध्यान में रखना होगा।

कानून किसी एक का नही है ये सबका है और सभी को बराबर मन्ना होगा तभी साथ मे खुश रह सकते हैं आपको याद रखना होगा कि आपकी बजह से किसी और को कष्ट न पहुचें।

कानून में सुधार की आवश्यकता – (Kaanoon Mein Sudhar Ki Aavashyakata)

  • कानून को सख्त करें ।
  • न्याय प्रणाली कम समय में न्याय दे।
  • न्याय बिना किसी भेदभाव से मिलना चाहिए।
  • न्यायप्रणाली में भृष्ट करचरियों को हटाया जाए।
  • न्याय प्रणाली में जितनी अधिक पारदर्शिता लाई जाए उतना ठीक रहेगा।
  • नियमो को तोड़ने वालों के खिलाफ शख्त कदम उठाएं जाने चाहिए।
  • किसी भी राजनेता को कानूनी प्रणाली में हस्तक्षेप न करने दिया जाए।
  • समय – समय पर कानून प्रणाली को जांचा जाए कि कहीं कुछ गलत तो नही हो रहा।
  • रिश्वतखोरी को बड़ा जुर्म बना दिया जाए और ऐसा करते पाए जाने पर कड़ी सजा दी जाए।
  • न्याय प्रणाली में काविल लोगों को कमहि स्थान दिया जाए।
  • कानून को सर्वोपरि किया जाए।

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भारतीय कानून की जानकारी | परिभाषा, अधिकार, नियम | Indian Law in Hindi

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आज जब हम आधुनिक युग की बात करें या फिर प्राचीन समय की दोनों ही कालो में हमें कानून के बारे में देखने और सुनने का मौका मिलता है, लेकिन अक्सर आम जन इन कानूनों के बारे में या तो अनभिज्ञ रहता है या तो थोड़ा बहुत जानता है जिसका कारण हमारे कानूनों की भाषा का जटिल होना | दोस्तों हम इसी बात को ध्यान में रख कर आपके लिए लाये हैं आपके अपने इस लॉ पोर्टल Nocriminals.org   पर “कानून की जानकारी”   आसान भाषा में, इस पेज पर आपको न केवल IPC , CrPC के जटिल प्रावधानों को आसानी से समझया गया है बल्कि इसके साथ ही संविधान तथा और अन्य अधिनियम से सम्बंधित जानकारियां  विस्तार से आम जान की भाषा में बताया गया है जिससे सभी लोग अपने कानून और अधिकारों से परिचित हो सकें | 

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असंज्ञेय अपराध (Non Cognizable) क्या है

हम पोर्टल के इस सेगमेंट में आपको IPC, भारतीय संविधान , CrPC व सभी भारतीय कानूनों के बारे में सटीकता के साथ जानकारी देने का प्रयास करेंगे जिसमे प्रोफेशनल वकील की भाषा के साथ सामान्य व्यक्ति भी समझ का भी ध्यान रखा जायेगा | आप यहाँ भारतीय कानून की जानकारी और कानून  की परिभाषा, नागरिको के अधिकार, कानून के नियम इन सबके बारे में आसानी से समझेंगे | आपको बताते चले कि लोकतन्त्रीय आस्थाओं, नागरिकों के अधिकारों व स्वतन्त्रओं की रक्षा करने और सभ्य समाज के निर्माण के लिए कानून का शासन बहुत जरूरी है, या यूँ  कहें कि इसका कोई अन्य विकल्प नहीं है। कानून का शासन का अर्थ है कि कानून के सामने सब समान होते हैं । यह सर्व विदित है कि कानून राजनीतिक शक्ति को निरंकुश बनने से रोकती है और समाज में सुव्यवस्था भी बनाए रखने में मदद करती है।

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कानून की जानकारी

जब आपको अपने कानून और  भारतीय संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के बारे में पता रहता है तब ही केवल आप इनका प्रयोग कर सकते हैं परन्तु दुर्भाग्यवश कानून के बनने के इतने दिनों बाद भी आज तक लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं हैं | इस पेज पर हमने यही प्रयास किया है कि ऐसे  कानूनों और अधिकारों की चर्चा की जाये जो कि साधारण लोगों  को शोषण से बचाये |

1. ड्राइविंग के समय यदि आपके 100ml ब्लड में अल्कोहल का लेवल 30mg से ज्यादा मिलता है तो पुलिस बिना वारंट आपको गिरफ्तार कर सकती है | ये बात मोटर वाहन एक्ट, 1988, सेक्शन -185,२०२ के तहत बताई गई है |

2. किसी भी महिला को शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 बजे से पहले गिरफ्तार नही किया जा सकता है | ये बात दंड प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 में निहित है |

3. पुलिस अफसर FIR लिखने से मना नही कर सकते, ऐसा करने पर उन्हें 6 महीने से 1 साल तक की जेल हो सकती है| ये आता है (Indian Penal Code) भारतीय दंड संहिता , 166 A के अंतर्गत |

4. कोई भी शादीशुदा व्यक्ति किसी अविवाहित लड़की या विधवा महिला से उसकी सहमती से शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो यह अपराध की श्रेणी में नही आता है | (Indian Penal Code) भारतीय दंड संहिता व्यभिचार, धारा ४९८

5. यदि दो वयस्क लड़का या लड़की अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं तो यह गैर कानूनी नही है | और तो और इन दोनों से पैदा होने वाली संतान भी गैर कानूनी नही है और संतान को अपने पिता की संपत्ति में हक़ भी मिलेगा | इसको (Domestic Violence Act) घरेलू हिंसा अधिनियम , 2005 के अंतर्गत बताया गया है 

6. कोई भी कंपनी गर्भवती महिला को नौकरी से नहीं निकाल सकती, ऐसा करने पर अधिकतम 3 साल तक की सजा हो सकती है| ये मातृत्व लाभ अधिनियम, १९६१के अंतर्गत आता है |

7. तलाक निम्न आधारों पर लिया जा सकता है : हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कोई भी (पति या पत्नी) कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे सकता है। व्यभिचार (शादी के बाहर शारीरिक रिश्ता बनाना), शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, नपुंसकता, बिना बताए छोड़कर जाना, हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाना, पागलपन, लाइलाज बीमारी, वैराग्य लेने और सात साल तक कोई अता-पता न होने के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है। इसको हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) की धारा-13 में बताया गया है |

 8. कोई भी दुकानदार किसी उत्पाद के लिए उस पर अंकित अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक रुपये नही मांग सकता है परन्तु उपभोक्ता, अधिकतम खुदरा मूल्य से कम पर उत्पाद खरीदने के लिए दुकानदार से भाव तौल कर सकता है | अधिकतम खुदरा मूल्य अधिनियम, 2014

संज्ञेय अपराध (Cognisable Offence) क्या है

आप यहाँ हमसे कोई भी कानून से सम्बंधित सीधा सवाल भी पूछ सकते है, नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स की सहायता से आप अपना क्वेश्चन पोस्ट कर सकते है जिसका हम जल्द से जल्द जवाब देने का प्रयास करेंगे | यदि क्वेश्चन के अलावा और  कुछ भी शंका कानून को लेकर आपके मन में हो या इससे सम्बंधित अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप हमसे बेझिझक पूँछ सकते है |

जज (न्यायाधीश) कैसे बने

6 thoughts on “भारतीय कानून की जानकारी | परिभाषा, अधिकार, नियम | Indian Law in Hindi”

498 a agar koi patni apne pati ke uper galat tarike se fasana chahe to bachane ke liye kya kare

Tab uski baat man lo

यदि पुलिस fir नहीं लिखतिह् तो उसके खिलाफ कहा शिकायत करें जिससे उस पर कार्यवाही हो सके आपके दवारा दी गई जानकारी बहुत अच्छी लगी।

1. संज्ञेय अपराध होने पर भी यदि पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है तो आपको वरिष्ठ अधिकारी के पास जाना चाहिए और लिखित शिकायत दर्ज करवाना चाहिए.

2. अगर तब भी रिपोर्ट दर्ज न हो, तो CRPC (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) के सेक्शन 156(3) के तहत मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी देनी चाहिए. मैट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के पास यह शक्ति है कि वह FIR दर्ज करने के लिए पुलिस को आदेश दे सकता है.

3.सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी अर्थात FIR दर्ज नहीं करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश भी जारी किए हैं. न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी है कि FIR दर्ज होने के एक सप्ताह के अंदर प्राथमिक जांच पूरी की जानी चाहिए. इस जांच का मकसद मामले की पड़ताल कर अपराध की गंभीरता को जांचना है. इस तरह पुलिस इसलिए मामला दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है कि शिकायत की सच्चाई पर उन्हें संदेह है.

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Unlock The Power Of Law And Society In Hindi: Empower Your Community Today!

Law and society in hindi: an overview of the legal system in india.

Dear Readers,

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Picture of: विधि एवं समाज के मूल सिद्धांत  Hindi Book

Welcome to this informative article on law and society in Hindi. In this article, we will delve into the intricacies of the legal system in India and its impact on society. From the what, who, when, where, why, and how of the law in Hindi, to the advantages and disadvantages, we will explore various aspects of this topic. So, let’s get started!

Table of Contents

1. introduction.

law and society in hindi - Jindal Global Law School  Rai

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2. What is Law and Society in Hindi?

3. who is involved in the legal system, 4. when did the hindi legal system emerge, 5. where is the law practiced in hindi, 6. why is law and society important in hindi.

law and society in hindi - विधि एवं समाज के मूल सिद्धांत  Hindi Book

Image Source: epustakalay.com

7. How Does the Legal System Function in Hindi?

8. advantages of law and society in hindi, 9. disadvantages of law and society in hindi, 10. frequently asked questions, 11. conclusion, 12. final remarks.

The legal system in India plays a crucial role in maintaining law and order and ensuring justice for its citizens. As India is a diverse country with multiple languages, including Hindi, it is important to have a legal system that caters to the needs of the Hindi-speaking population. The law and society in Hindi encompass various aspects of the legal system, including legislation, enforcement, and judiciary. In this section, we will provide an overview of the Hindi legal system and its significance in society.

India follows a federal system of government, where both the central government and state governments have the power to legislate and enforce laws. The legal system is primarily based on common law, which is a legal system derived from judicial decisions and precedents. The Constitution of India serves as the supreme law of the land and provides the framework for governance and the protection of citizens’ rights.

The judiciary in India is independent and plays a crucial role in interpreting and upholding the law. The Supreme Court of India is the highest judicial authority in the country and has the power of judicial review. Additionally, each state has its own High Court, which has jurisdiction over matters within its territory. The lower courts, such as district courts and subordinate courts, handle cases at the grassroots level.

Now, let’s explore the various aspects of law and society in Hindi in more detail.

The term law and society in Hindi refers to the legal system and its impact on society in the Hindi language. It encompasses the laws, rules, and regulations that govern the Hindi-speaking population and shape their interactions with the legal system. The Hindi legal system ensures that laws are accessible and understandable to Hindi-speaking individuals, promoting inclusivity and equal access to justice.

Law and society in Hindi also encompass legal education, legal aid, and awareness among the Hindi-speaking population. It aims to empower individuals with knowledge of their legal rights and responsibilities, enabling them to participate actively in society and seek redressal for any legal grievances.

The legal system in Hindi involves various stakeholders who play different roles in ensuring the administration of justice. These include:

– Judges: Judges preside over courts and make decisions based on the interpretation of law. They ensure fair and impartial proceedings and deliver justice.

– Lawyers: Lawyers represent clients in court and provide legal advice. They argue cases on behalf of their clients and present evidence to support their arguments.

– Police: The police are responsible for enforcing the law and maintaining order. They investigate crimes, apprehend suspects, and ensure public safety.

– Legislators: Legislators are responsible for creating laws. They draft, debate, and pass legislation to address societal issues and ensure the welfare of the citizens.

– Government Officials: Government officials, such as public prosecutors and legal advisors, play a vital role in the legal system. They represent the government’s interests and provide legal guidance.

– Citizens: The citizens are the most important stakeholders in the legal system. They have rights and responsibilities and can seek legal recourse for any infringements or disputes.

The Hindi legal system has its roots in ancient India, where the concept of justice was intrinsic to society. The ancient legal system in India, known as Dharma, emphasized fairness, equality, and justice. Legal texts such as the Manusmriti and Arthashastra provided guidelines for governance and administration of justice.

Over the centuries, various rulers and dynasties introduced their legal systems, influenced by Hindu, Islamic, and British laws. The British Raj significantly impacted the Indian legal system and introduced the common law system, which forms the basis of the present legal system in India.

The law is practiced in Hindi in various courts and legal institutions across the country. Hindi is one of the official languages of India and is widely spoken and understood by a large section of the population. The Supreme Court of India, High Courts, and subordinate courts conduct proceedings in Hindi, along with English. Legal documents and judgments are also available in Hindi, ensuring accessibility for Hindi-speaking individuals.

Additionally, law colleges and universities in India offer legal education in Hindi, allowing aspiring lawyers to study and practice law in their native language.

Law and society in Hindi are of utmost importance as they ensure that laws are accessible and understandable to the Hindi-speaking population. It promotes inclusivity, equal access to justice, and empowers individuals with legal knowledge. The Hindi legal system plays a vital role in maintaining law and order, resolving disputes, and upholding the rights and freedoms of citizens.

By providing legal education and awareness in Hindi, the legal system enables individuals to understand their rights, seek legal remedies, and actively participate in society. It ensures that the Hindi-speaking population has a voice in the legal system and is not disadvantaged due to language barriers.

The legal system in Hindi functions through legislation, enforcement, and judiciary. Legislation involves the creation of laws by the legislature, which includes the Parliament at the central level and state legislatures at the state level. These laws are enacted to govern various aspects of society, such as criminal offenses, civil disputes, property rights, and human rights.

Enforcement of laws is carried out by the police and other law enforcement agencies. They investigate crimes, gather evidence, and apprehend offenders. The enforcement agencies work in collaboration with the judiciary to ensure justice is served.

The judiciary, comprising the Supreme Court, High Courts, and subordinate courts, interprets the laws and resolves disputes. The courts hear cases, examine evidence, listen to arguments from lawyers, and deliver judgments. The judiciary ensures that the laws are applied fairly and impartially, providing justice to all.

The law and society in Hindi offer several advantages:

1. Accessibility: By providing legal information and resources in Hindi, the legal system becomes accessible to a larger section of the population.

2. Inclusivity: It promotes inclusivity by ensuring that Hindi-speaking individuals can understand and participate in legal proceedings.

3. Empowerment: By imparting legal knowledge in Hindi, individuals are empowered to assert their rights and seek justice.

4. Preservation of Culture: Law and society in Hindi help preserve the cultural identity and heritage of Hindi-speaking communities.

5. Strengthening Democracy: A robust legal system in Hindi strengthens the democratic fabric of the country and ensures the rule of law.

Despite its advantages, law and society in Hindi also have some disadvantages:

1. Language Barrier: Restricting legal proceedings to Hindi may create a language barrier for non-Hindi speakers, leading to exclusion and difficulties in accessing justice.

2. Limited Resources: The availability of legal resources, such as books, judgments, and legal literature, in Hindi may be limited compared to English.

3. Regional Differences: India is a diverse country with multiple languages. Limiting legal proceedings to Hindi may not cater to the linguistic needs of all citizens.

4. Translation Challenges: Translating legal concepts and terminology from English to Hindi accurately may pose challenges and impact the clarity and effectiveness of legal communication.

5. Standardization: Ensuring uniformity and standardization of legal terminology and language in Hindi across different states and regions may be challenging.

Q1. Is Hindi the only language used in the Indian legal system?

A1. No, Hindi is one of the official languages used in the Indian legal system. English is also widely used, especially in higher courts and legal documentation.

Q2. Can non-Hindi speakers access legal services in India?

A2. Yes, legal services are available in multiple languages across India. However, knowledge of the local language or English may be advantageous.

Q3. Are there any efforts to promote legal education in Hindi?

A3. Yes, several universities and law colleges in India offer legal education in Hindi, promoting legal studies in the Hindi language.

Q4. How are judgments delivered in Hindi courts?

A4. Judgments are delivered orally in open court by the judges. They are later transcribed and made available in written form in Hindi.

Q5. Can I file a legal case in Hindi?

A5. Yes, legal cases can be filed in Hindi, provided the court has jurisdiction and accepts filings in Hindi.

In conclusion, law and society in Hindi play a significant role in India’s legal system. It ensures the accessibility and inclusivity of the legal system for the Hindi-speaking population, empowering individuals with legal knowledge and promoting equal access to justice. While there are certain advantages and disadvantages to the Hindi legal system, efforts are being made to address the challenges and ensure a robust legal framework in Hindi.

By promoting legal education, awareness, and resources in Hindi, India strives to strengthen its legal system and uphold the rights and liberties of its citizens.

In this article, we have explored various aspects of law and society in Hindi, shedding light on the legal system in India and its impact on society. It is important to remember that the legal system is dynamic and constantly evolving to meet the needs of a diverse and multicultural society.

While we have provided comprehensive information, it is always advisable to consult legal professionals or refer to official sources for specific legal advice or information. By staying informed and aware, we can actively participate in the legal system and contribute to a just and equitable society.

This post topic: Law and Society

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मुफ्त कानूनी सहायता की चुनौतियां और समाधान

Constitution of India

यह लेख भारती विद्यापीठ विश्वविद्यालय, पुणे के न्यू लॉ कॉलेज के Beejal Ahuja ने लिखा है। यह लेख मुफ्त कानूनी सहायता की अवधारणा (कांसेप्ट) और इसे प्रदान करने की चुनौतियों पर चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sonia Balhara द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

जस्टिस ब्लैकमन ने ठीक ही कहा था कि “न्याय मांगने की अवधारणा को डॉलर के मूल्य (वैल्यू) के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। न्याय पाने में पैसा कोई भूमिका नहीं निभाता है।” न्याय की राह कभी सस्ती नहीं रही  है। अदालतों में न्याय की मांग करते हुए हर कदम पर मोटी रकम चुकानी पड़ती है। भारत के संविधान के आर्टिकल 14 में कहा गया है कि कानून के समक्ष हर एक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जाएगा, और धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म के स्थान सभी के लिए कानून की समान सुरक्षा सुनिश्चित करता है। साथ ही, आर्टिकल 22(1) में कहा गया है कि जिसे गिरफ्तार किया जा रहा है, उसे उसकी पसंद के कानूनी व्यवसायी (प्रैक्टिशनर) से परामर्श (कंसल्ट) करने और बचाव करने के अधिकार से इंकार नहीं किया जा सकता है, और कानून का एक बुनियादी सिद्धांत (बेसिक प्रिंसिपल) है जिसका पालन किया जाना चाहिए, वह है, ऑडी अल्टरम पार्टेम, जिसका मतलब है कि किसी भी पार्टी को अनसुना नहीं छोड़ा जाएगा। न्याय एक मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट) होने के बाद भी, महंगी कानूनी व्यवस्था को वहन (अफ़्फोर्ड) करने में असमर्थता के कारण गरीब लोगों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है और कई बार अन्याय के लिए समझौता करना पड़ता है।

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कानूनी सहायता गरीब लोगों के लिए मार्ग दिखाने वाले (टॉर्चबियरर) का काम करती है जो अदालती कार्यवाही का खर्च नहीं उठा सकते। यह न्यायिक (ज्यूडिशियल) कार्यवाही, प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) कार्यवाही, अर्ध-न्यायिक (क्वासि-ज्यूडिशियल) कार्यवाही, या सभी कानूनी समस्याओं के संबंध में किसी भी परामर्श में गरीब लोगों को दी जाने वाली मुफ्त कानूनी सहायता है। कानूनी सहायता जैसा कि जस्टिस पी.एन. भगवती गरीब और अनपढ़ लोगों के लिए न्याय वितरण प्रणाली (डिलीवरी सिस्टम) तक आसान पहुंच की व्यवस्था है, ताकि अज्ञानता (इग्नोरेंस) और गरीबी उन्हें न्याय मांगने से न रोके। इस सेवा का एकमात्र उद्देश्य गरीब और पददलित (डाउनट्रोड्डेन) लोगों को समान न्याय प्रदान करना है। इसमें न केवल अदालती कार्यवाही में एक वकील के प्रतिनिधित्व के लिए मुफ्त पहुंच शामिल है बल्कि कानूनी जागरूकता, कानूनी सलाह, जनहित याचिका (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन), कानूनी आंदोलन, लोक अदालतें, कानून सुधार और ऐसी कई सेवाएं भी शामिल हैं जो अन्याय को रोक सकती हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (हिस्टोरिकल बैकग्राउंड)

आजादी के बाद कई राज्यों ने जरूरतमंद लोगों के लिए कानूनी सहायता की अवधारणा शुरू की। 1958 में, 14वीं लॉ कमीशन की रिपोर्ट ने गरीबों को समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने पर जोर दिया। केरला पहला राज्य था जिसने गरीब लोगों के लिए कानूनी सहायता पर नीति (पॉलिसी) शुरू की जिसका नाम केरला कानूनी सहायता है। तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने भी गरीब और पिछड़े (बैकवर्ड) लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए इसी तरह की योजनाएं शुरू कीं। 1971 में माननीय जस्टिस पी.एन. भगवती एक कमिटी के अध्यक्ष थे जो सभी को न्याय प्रदान करने और कानूनी सहायता की विभिन्न कमि टीज के कामकाज में न्यायाधीशों की भूमिका पर जोर देने के लिए बनाई गई थी, जो थीं-

  • तालुका कानूनी सहायता कमिटी (तालुका लीगल ऐड कमिटी)
  • जिला कानूनी सहायता कमिटी
  • राज्य कानूनी सहायता कमिटी

1973 में, माननीय जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर के नेतृत्व में कानूनी सहायता पर एक विशेषज्ञ (एक्सपर्ट) कमिटी द्वारा “ प्रोसेसुअल जस्टिस टू पुअर ” पर एक रिपोर्ट प्रकाशित (पब्लिश्ड) की गई थी। रिपोर्ट में कानूनी सहायता को वैधानिक (स्टेच्यूटरी) आधार देने की आवश्यकता, लॉ स्कूलों में कानूनी सहायता क्लीनिक स्थापित करने की आवश्यकता, जनहित याचिका पर जोर, और कानूनी सहायता प्रणाली को लोगों को आसानी से उपलब्ध कराने के अन्य तरीकों पर जोर दिया गया है। फिर 1977 में जस्टिस पी.एन. भगवती और जस्टिस कृष्ण अय्यर को “ राष्ट्रीय न्यायशास्त्र समान न्याय और सामाजिक न्याय ” के रूप में नामित किया गया। रिपोर्ट ने कानूनी सहायता कार्यक्रमों के कामकाज को देखा, उपचार या न्याय प्राप्त करने में वकीलों के मूल्य और भूमिका को मान्यता दी, और नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (एनएएलएसए) की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा।

1976 में, मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, इसे 42वें संवैधानिक संशोधन (अमेंडमेंट) द्वारा “समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता” पर डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी (डीपीएसपी) के तहत आर्टिकल 39A को सम्मिलित (इनसर्टिंग) करके एक वैधानिक अधिकार बनाया गया था जिसमें कहा गया है कि राज्य के पास सभी को समान न्याय का अवसर सुनिश्चित करने और जरूरतमंदों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए न्यायालय होना चाहिए ताकि आर्थिक (इकोनॉमी) या कोई अन्य विकलांगता (डिसेबिलिटी) किसी को न्याय मांगने से न रोके।

1980 में, कानूनी सहायता योजना के कार्यान्वयन (इम्प्लीमेंटेशन) के लिए कमिटी (सीआईएलएएस) को माननीय जस्टिस पी.एन. भगवती की अध्यक्षता में देश में चल रही कानूनी सहायता गतिविधियों की निगरानी और पर्यवेक्षण (सुपरवाइस्ड) किया और लोक अदालतों की भी शुरुआत की जो विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग (अमीकेबली) से निपटाने के लिए एक प्रभावी उपकरण (टूल) हैं।

न्यायपालिका की भूमिका (रोल ऑफ ज्यूडिशरी)

न्यायपालिका हमेशा भारत में एक प्रमुख समर्थक और मुफ्त कानूनी सहायता की प्रस्तावक  (प्रोपोनेंट) रही है। अतीत से यह स्पष्ट है कि माननीय जस्टिस पी.एन. भगवती और माननीय जस्टिस कृष्ण अय्यर ने कानूनी सहायता आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और भारत में मुफ्त कानूनी सहायता के महत्व पर जोर दिया है। न्यायपालिका के विभिन्न निर्णय कानूनी सहायता कार्यक्रम को बढ़ावा देने में प्रभावी साबित हुए हैं। उनमें से कुछ हैं:

हुसैनारा खातून बनाम होम सेक्रेटरी, स्टेट ऑफ बिहार

इस मामले ने बिहार राज्य में न्याय वितरण प्रणाली की खराब स्थिति को उजागर किया था। ऐसे बहुत से विचाराधीन (अंडरट्रायल्स) कैदी थे जिन्हें जबरदस्ती जेल में डाल दिया गया था और ऐसे आरोपी थे जिन्हें जबरदस्ती दोषी ठहराया गया था और उन्हें ज्यादा सजा दी गई थी, जिसके वे हकदार नहीं थे। इन सभी देरी के पीछे एकमात्र कारण दोषी व्यक्ति द्वारा अपने बचाव के लिए एक वकील को नियुक्त करने में असमर्थता थी। इसकी अध्यक्षता जस्टिस पी.एन. भगवती ने कहा कि मुफ्त कानूनी सेवा का अधिकार किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति के लिए ‘उचित, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण’ प्रक्रिया का एक अनिवार्य हिस्सा है और इसकी गारंटी आर्टिकल 39A और आर्टिकल 21 में निहित (इम्प्लिसिट) है।

स्टेट ऑफ हरियाणा बनाम दर्शन देवी

इस मामले में, माननीय जस्टिस कृष्णा अय्यर ने कहा कि कोई भी गरीब केवल अदालती शुल्क और आदेश XXXIII, सिविल प्रोसीजर कोड के प्रावधानों को लागू करने से इनकार करने के कारण न्याय से वंचित नहीं होना चाहिए, और उन्होंने इसके प्रावधानों को दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों तक बढ़ा दिया गया।

खत्री बनाम स्टेट ऑफ बिहार

इस मामले में माननीय जस्टिस पी.एन. भगवती ने सेशन न्यायाधीशों के लिए यह अनिवार्य कर दिया कि वे आरोपियों को मुफ्त कानूनी सहायता के अपने अधिकारों के बारे में सूचित करें और यदि ऐसा कोई व्यक्ति जो गरीबी या बदहाली के कारण बचाव के लिए एक वकील को नियुक्त करने में असमर्थ है।

शीला बरसे बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

इस मामले में, माननीय न्यायालय द्वारा यह माना गया कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में निहित त्वरित परीक्षण करना एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।

सुक दास बनाम यूनियन टेरिटरी ऑफ अरुणाचल प्रदेश

यह न्याय जस्टिस पी.एन. भगवती द्वारा दिए गए ऐतिहासिक निर्णय में से एक था। उन्होंने कहा कि भारत में बड़ी संख्या में निरक्षर लोग हैं जिसके कारण उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं है। इसलिए, लोगों के बीच कानूनी साक्षरता और कानूनी जागरूकता को बढ़ावा देना आवश्यक है और यह कानूनी सहायता का एक महत्वपूर्ण अवयव ( कंपो नेंट) भी है।

अन्य क़ानून (अदर स्टैच्यूट्स)

कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1973 की धारा 304.

इस धारा में कहा गया है कि जब सेशन न्यायालय के समक्ष एक मुकदमे में, आरोपी बचाव के लिए एक प्लीडर या वकील को शामिल करने में सक्षम नहीं है और अगर अदालत को लगता है कि आरोपी एक वकील को शामिल करने की स्थिति में नहीं है, तो यह कर्तव्य है न्यायालय द्वारा आरोपी के बचाव के लिए एक वकील या एक प्लीडर नियुक्त करने के लिए और खर्च राज्य द्वारा वहन किया जाएगा।

सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 का नियम 9A

सी.पी.सी के आदेश XXXIII के इस नियम में कहा गया है कि अदालत के पास एक निर्धन व्यक्ति को वकील नियुक्त करने की शक्ति है और ऐसे व्यक्ति को अदालती शुल्क का भुगतान करने से भी छूट मिलती है।

लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट, 1987

यह एक्ट भारत में कानूनी सहायता आंदोलन का एक नया हिस्सा था। एक्ट में अंतिम संशोधन किए जाने के बाद इसे 1995 में लागू किया गया था। जस्टिस आर.एन. मिश्रा ने इस एक्ट को लागू करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फिर 1988 में जस्टिस ए.एस आनंद नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी के कार्यकारी अध्यक्ष बने।

एक्ट के 2 उद्देश्य थे: 

  • समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करना, यह सुनिश्चित करना कि कोई भी नागरिक किसी भी आर्थिक और अन्य अक्षमता के कारण न्याय से वंचित न रहे, और,
  • लोक अदालतों का आयोजन कर सुनिश्चित करें कि न्याय का समान वितरण हो।

इस एक्ट की धारा 12 उन लोगों की एक श्रेणी (कैटेगरी) निर्धारित करती है जो इस एक्ट के तहत मुफ्त कानूनी सहायता के हकदार हैं। इस एक्ट में राष्ट्रीय, राज्य, जिला और तालुका स्तरों पर संस्थागत (इंस्टीट्यूशनल) ढांचे का भी उल्लेख किया गया है, जो कि नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी, डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी, जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण और तालुका लीगल सर्विस अथॉरिटी है।

नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (एनएएलएसए)

एनएएलएसए एक शीर्ष निकाय (अपेक्स बॉडी) है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश पैट्रन-इन-चीफ और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त (रिटायर्ड) न्यायाधीश कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नामित किया जाता है। एनएएलएसए एक्ट के तहत कानूनी सेवाओं को आसानी से उपलब्ध कराने के लिए नीतियों और सिद्धांतों के साथ-साथ प्रभावी आर्थिक योजनाओं को तैयार करता है। यह कानूनी सहायता कैम्प भी आयोजित करता है, लोगों को लोक अदालत में विवादों को निपटाने के लिए प्रोत्साहित करता है, कानूनी सेवाओं में रिसर्च शुरू करता है और बढ़ावा देता है, और कानूनी सहायता कार्यक्रमों का आवधिक मूल्यांकन (पेरिओडिक ईवैल्यूएशन ) भी करता है। यह कानूनी साक्षरता को बढ़ावा देता है और विभिन्न लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में कानूनी सहायता क्लीनिक स्थापित करता है और पैरालीगल के प्रशिक्षण को भी बढ़ावा देता है। इसके अलावा, एनएएलएसए स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी की गतिविधियों की निगरानी करता है और गैर-सरकारी संगठनों को कानूनी सहायता योजनाओं को लागू करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी (एसएलएसए)

लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट हर एक राज्य सरकार के लिए एक स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी होना अनिवार्य बनाता है जिसमें हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पैट्रन-इन-चीफ और कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में हाई कोर्ट के एक सेवारत (सर्विंग) या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं, जो राज्य के गवर्नर द्वारा मनोनीत (नॉमिनेट) कि ए जाते है। स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी एनएएलएसए द्वारा निर्धारित नीतियों, नियमों और रणनीतियों को लागू करता है। यह प्राधिकरण सर्वोच्च निकाय है जो राज्य में होने वाली कानूनी सेवाओं की गतिविधियों की निगरानी करता है। यह लोक अदालतों और विभिन्न कानूनी सहायता कार्यक्रमों का भी आयोजन करता है।

डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी (डीएलएसए)

लीगल सर्विस एक्ट हर एक राज्य के लिए संबंधित राज्य के हर एक जिले में एक डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी का गठन (कंन्स्टिट्यूट) करना अनिवार्य बनाता है जिसमें एक अध्यक्ष के रूप में जिला न्यायाधीश शामिल होंगे। यह प्राधिकरण स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा निर्धारित कार्यों और नियमों का पालन करता है। और यह तालुका लीगल सर्विस कमिटी और जिले में घूमने वाली अन्य कानूनी सेवाओं के कार्यों की निगरानी भी करता है और लोक अदालतों का आयोजन करता है।

तालुका लीगल सर्विस कमिटी

स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा एक तालुका लीगल सर्विस कमिटी का गठन किया जाता है जिसमें एक पदेन  (एक्स-ऑफिशिओ) अध्यक्ष के रूप में सबसे वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी होता है। यह तालुका में होने वाली कानूनी सेवाओं की गतिविधियों का पर्यवेक्षण और समन्वय (कोआर्डिनेशन) करता है और लोक अदालत का आयोजन भी करता है।

लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट की धारा 3A में समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को कानूनी सहायता करने वाला और न्याय प्रदान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमिटी की स्थापना का उल्लेख है। यह समिति सुप्रीम कोर्ट में लोक अदालतों का आयोजन भी करती है और कमिटी के अधीन सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र (मेडिएशन सेंटर) भी कार्य करती है।

साथ ही, धारा 8A स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा हाई कोर्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी की स्थापना के बारे में बताती है।

लोक अदालतें विवाद समाधान का एक वैकल्पिक (अल्टरनेटिव) माध्यम हैं। लोक अदालतों का मुख्य उद्देश्य अदालतों के कार्यभार को कम करना और मामलों का सस्ता त्वरित (स्पीडी) निपटान सुनिश्चित करना है। लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट, 1987 का चैप्टर VI लोक अदालतों की शक्तियों से संबंधित प्रावधानों को बताता है। लोक अदालतों के कई लाभ हैं जैसे कि कोई अदालत शुल्क की आवश्यकता नहीं है, यह विवादों को सुलझाने का एक बहुत ही सौहार्दपूर्ण तरीका है, मामलों का त्वरित निपटान है, और पक्ष समझौता करने या तदनुसार समझौता करने के लिए स्वतंत्र हैं।

मुद्दे और चुनौतियां

इतने सारे वैधानिक प्रावधानों, समितियों और प्राधिकरणों के बाद भी, एक रिक्त स्थान है जिसे भरने की आवश्यकता है। आज भी, बहुत से लोग अन्याय के लिए समझौता करते हैं क्योंकि वे अपने बचाव के लिए एक वकील का खर्च नहीं उठा सकते। अदालतों में इतने सारे लंबित मामले क्यों हैं, इसके कई कारण हैं, ऐसे कई लोग हैं जो दोषी हैं लेकिन निर्दोष हैं और अपना बचाव करने में सक्षम नहीं हैं। कानूनी सहायता सेवाओं के कार्यान्वयन के रास्ते में कई चुनौतियाँ और मुद्दे आते हैं।

सार्वजनिक कानूनी शिक्षा और कानूनी जागरूकता का अभाव (लैक ऑफ पब्लिक लीगल एजुकेशन एंड लीगल अवेयरनेस)

ये कानूनी सहायता सेवाएं गरीब और अनपढ़ लोगों के लिए हैं, और प्रमुख मुद्दा यह है कि वे शिक्षित नहीं हैं। उनके पास कानूनी शिक्षा नहीं है, यानी वे अपने मूल अधिकारों और कानूनी अधिकारों से अवगत नहीं हैं। लोगों को कानूनी सहायता सेवाओं के बारे में अधिक जानकारी नहीं है जिसका वे स्वयं लाभ उठा सकते हैं। इसलिए, कानूनी सहायता आंदोलन ने लक्ष्य हासिल नहीं किया है, क्योंकि लोग लोक अदालतों, कानूनी सहायता आदि से ज्यादा परिचित नहीं हैं।

अधिवक्ताओं (एडवोकेट्स), वकीलों आदि के समर्थन का अभाव 

इन दिनों सभी वकील और एडवोकेट्स अपनी सेवाओं के लिए उचित शुल्क चाहते हैं, और उनमें से ज्यादातर ऐसी सामाजिक सेवाओं में भाग लेने में रुचि नहीं रखते हैं। बहुत कम वकील हैं जो इन सेवाओं में योगदान करते हैं लेकिन अच्छी गुणवत्ता (क्वालिटी) वाले कानूनी प्रतिनिधित्व (रिप्रजेंटेशन) की कमी न्याय के वितरण (डिलीवरी) में बाधा डालती है।

लोक अदालतों को शक्तियों का अभाव

लोक अदालतों के पास सिविल अदालतों की तुलना में सीमित शक्तियाँ हैं। सबसे पहले, उचित प्रक्रियाओं की कमी। फिर इसमें वे पक्षकारों को कार्यवाही के लिए उपस्थित होने के लिए बाध्य (बाउंड) नहीं कर सकते। कई बार कोई एक पक्ष सुनवाई के लिए उपस्थित नहीं होता और फिर यहां भी निस्तारण (डिस्पोजल) में देरी हो जाती है।

पैरा-लीगल वॉलंटियर्स का कम उपयोग

इन पैरा-लीगल वॉलंटियर्स की मूल भूमिका कानूनी सहायता कैम्प्स, योजनाओं को बढ़ावा देना और समाज के गरीब और कमजोर वर्गों तक पहुंचना है। लेकिन इन पैरा लीगल वॉलंटियर्स के उचित प्रशिक्षण (ट्रेनिंग), निगरानी, ​​सत्यापन (वेरिफिकेशन) का अभाव है। और ये स्वयंसेवक भी पूरी आबादी की तुलना में बहुत कम संख्या में हैं।

समाधान और सुझाव

कानूनी सहायता का लक्ष्य तभी प्राप्त होगा जब सभी जरूरतमंद और गरीब लोग जागरूक होंगे और इसका लाभ उठा रहे होंगे, क्योंकि यह उनका मौलिक अधिकार है। इसलिए, कानूनी सहायता प्रणाली में उन कमियों को भरने के लिए कुछ सुधार किए जाने हैं।

गैर सरकारी संगठनों की भूमिका (रोल ऑफ एनजीओ)

लोगों के बीच उनके अधिकारों और प्रभावी न्याय वितरण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका को शामिल करना और बढ़ाना।

कानूनी सहायता कार्यक्रम और कानूनी जागरूकता

लोगों के अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने और जरूरतमंद लोगों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए बड़े स्तर पर कानूनी सहायता कैम्प्स और लोक अदालतों का एक संगठन होना चाहिए। विभिन्न पिछड़े क्षेत्रों में अधिकारों, कानूनों के बारे में जागरूक करने और वैकल्पिक विवाद मध्यस्थता, लोक अदालतों आदि के माध्यम से विवादों को हल करके उन्हें मुफ्त कानूनी सेवाओं का विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न पिछड़े क्षेत्रों में पात्रता (एंटाइटलमेंट) केंद्रों की स्थापना होनी चाहिए।

कानूनी साक्षरता मिशन (लीगल लिटरेसी मिशन)

अन्य विकसित (डेवलप्ड) देशों में लोगों को कानूनों और अधिकारों के बारे में सूचित करने के लिए 2 साल या 5 साल की योजना है। भारत लोगों को उनके अधिकारों और कानूनों के बारे में शिक्षित करने के लिए 5 साल की योजना भी पेश कर सकता है।

वकीलों को बेहतर पारिश्रमिक (रैम्यूनरेशन)

आजकल, वकीलों के लिए एक अच्छा प्रतिनिधित्व मिलना मुश्किल है क्योंकि वे मुफ्त कानूनी सेवाएं देने में रुचि नहीं रखते हैं, और सेवाओं के लिए कुछ शुल्क की अपेक्षा करते हैं। इसलिए, अदालतों या सरकार द्वारा वकीलों को भुगतान किए जाने वाले पारिश्रमिक में वृद्धि की जानी चाहिए, जो अभियुक्तों को मुफ्त में पेश कर रहे हैं या उनका बचाव कर रहे हैं।

प्रतिक्रिया दृष्टिकोण (फीडबैक एप्रोच)

काउंसलों के काम की निगरानी का मूल्यांकन प्रतिक्रिया दृष्टिकोण के माध्यम से किया जाना चाहिए, अर्थात लोगों से परिषद के काम की प्रतिक्रिया के बारे में पूछकर और फिर हर एक अधिवक्ता की उचित प्रगति रिपोर्ट होनी चाहिए। यह सब एक उचित निगरानी समिति का गठन करके किया जा सकता है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

रेजिनाल्ड हेबर स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘जस्टिस एंड द पूअर’ में खूबसूरती से लिखा है कि “कानून तक समान पहुंच के बिना, सिस्टम न केवल गरीबों को उनकी एकमात्र सुरक्षा से वंचित करता है, लेकिन यह उनके उत्पीड़कों के बैंड में अब तक का सबसे शक्तिशाली और क्रूर हथियार रखता है।”  

भारत में एक सफल कानूनी सहायता आंदोलन के लिए, सरकार को जागरूकता फैलाने और लोगों को उनके मूल मौलिक अधिकारों के बारे में शिक्षित करके उचित कदम उठाने की जरूरत है। सरकार का एकमात्र उद्देश्य ‘सभी को समान न्याय’ प्रदान करना होना चाहिए। लोगों के बीच जागरूकता और कानूनी शिक्षा की कमी की प्रमुख समस्या या मुद्दे को हल करके लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट को उचित कार्यान्वयन की आवश्यकता है। यदि लोग शिक्षित और अधिकारों के प्रति जागरूक होंगे तो मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं आदि का उचित उपयोग होगा। इन सबके कारण, यह अधिकारों का शोषण और जरूरतमंद लोगों द्वारा अधिकारों से वंचित करता है। कानूनी सहायता सेवाओं का उचित प्रबंधन और निगरानी होनी चाहिए।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • https://www.academia.edu/36325912/Legal_Aid_and_Awareness_in_India_Issues_and_Challenges?auto=download  
  • http://www.legalserviceindia.com/legal/article-82-legal-aid-and-awareness-in-india-issues-and-challenges.html  

essay on law in hindi

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Rule of law in Hindi

  • by Namaste Sensei

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Rule of law in Hindi कानून का शासन

rule of law in hindi

Rule of law in Hindi and English

  • In India “Rule of law” concept came from England and has been made part of the Right to Equality under Article 14 of the Indian Constitution.  भारत में “कानून का शासन” की अवधारणा इंग्लैंड से आई है और इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का हिस्सा बनाया गया है।
  • This concept was given by A.V DICEY . यह अवधारणा A.V DICEY द्वारा दी गई थी।
  • However, Laws are made for the welfare of the people to maintain harmony between the conflicting forces in society. हालाँकि, समाज में परस्पर विरोधी ताकतों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए लोगों के कल्याण के लिए कानून बनाए जाते हैं।
  • One of the prime objectives of making laws is to maintain law and order in society and develop a peaceful environment for the progress of the people. कानून बनाने का एक प्रमुख उद्देश्य समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखना और लोगों की प्रगति के लिए शांतिपूर्ण वातावरण का विकास करना है।

What is the Rule of Law in India? कानून का शासन क्या है?

rule of law in india definition

  • It means “ Law Is Supreme ” i.e “ Lex Supremus ” and absolute supremacy of the law against the arbitrary powers. इसका अर्थ है “कानून सर्वोच्च है” यानी “लेक्स सुप्रीमस” और मनमानी शक्तियों के खिलाफ कानून की पूर्ण सर्वोच्चता।
  • Only the adoption of the Rule of Law has changed the concept of Rex Lex (King is Law) to Lex Rex (Law is King) which is very much essential for the right to equality & stability in India. केवल कानून के शासन को अपनाने ने Rex Lex ( King is Law ) की अवधारणा को Lex Rex (Law is King) में बदल दिया है जो भारत में समानता और स्थिरता के अधिकार के लिए बहुत आवश्यक है।

rule of law in india

  • Explanation: Lex- Law Rex- King
  • Lex is Rex- Law is King (Now)
  • Rex is Lex- King is Law (In Past)
  • Constitution under Article 32 and Article 226 empowers Supreme Court and High Court to enforce the Rule of Law against executives and legislators. अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के तहत संविधान सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को कार्यपालकों और विधायकों के खिलाफ कानून का शासन लागू करने का अधिकार देता है।
  • The Supreme Court also held that the Rule of Law is a part of the basic structure of the Constitution in India and also a part of the Right to equality . It cannot be destroyed even by an amendment. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि कानून का शासन भारत में संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है और समानता के अधिकार का भी एक हिस्सा है। इसे संशोधन द्वारा भी नष्ट नहीं किया जा सकता।

Three principles of Rule of law in Hindi कानून के शासन के तीन सिद्धांत

  • No man shall be punished or made to suffer except for a violation of Law and such violation should have been established in an Ordinary court of Law. कानून के उल्लंघन के अलावा किसी भी व्यक्ति को दंडित या पीड़ित नहीं किया जाएगा और इस तरह के उल्लंघन को एक साधारण अदालत में स्थापित किया जाना चाहिए था।
  • All persons are subjected to the Ordinary Law of land without any distinction i.e all can sue or get sued before the court. सभी व्यक्ति बिना किसी भेद के भूमि के साधारण कानून के अधीन हैं अर्थात सभी अदालत में मुकदमा कर सकते हैं या मुकदमा कर सकते हैं। Can sue or get sued – means anyone can start legal proceedings against someone and also vice-versa. Can Sue or get sued – इसका मतलब है कि कोई भी किसी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकता है और इसके विपरीत भी।
  • It says that all the laws passed by the legislature must be consistent with the provisions of the constitution. इसमें कहा गया है कि विधायिका द्वारा पारित सभी कानून संविधान के प्रावधानों के अनुरूप होने चाहिए।

Exceptions to rule of law in Hindi कानून के शासन के अपवाद

  • The President or the Governor is not answerable to any court for the exercise of the powers and duties of his office. राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने कार्यालय की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग के लिए किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
  • Members of Parliament (M.P), ministers, and other executive bodies are also given wide discretionary powers. संसद सदस्यों (एमपी), मंत्रियों और अन्य कार्यकारी निकायों को भी व्यापक विवेकाधीन शक्तियां दी जाती हैं।

Frequently Asked Questions (FAQ) अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

What is the basic structure of the constitution संविधान की मूल संरचना क्या है.

judicial review

  • The Basic Structure of the constitution consists of those parts and features of the constitution without which the constitution loses its character. संविधान की मूल संरचना में संविधान के वे भाग और विशेषताएं शामिल हैं जिनके बिना संविधान अपना चरित्र खो देता है।
  • The Supreme Court did not define exhaustively the basic structure of the constitution but in various judgments, we keep knowing them. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की मूल संरचना को विस्तृत रूप से परिभाषित नहीं किया लेकिन विभिन्न निर्णयों में, हम उन्हें जानते रहते हैं। Example: Judicial Review , Secularism , Sovereignty , Federalism, the mandate to build a welfare state, etc. उदाहरण : न्यायिक समीक्षा, धर्मनिरपेक्षता, संप्रभुता, संघवाद, कल्याणकारी राज्य बनाने का जनादेश, आदि।

Example: Judicial Review , Secularism , Sovereignty , Federalism, the mandate to build a welfare state, etc.

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मानव अधिकार पर निबंध (Human Rights Essay in Hindi)

मानव अधिकार मूल रूप से वे अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को इंसान होने के कारण मिलते हैं। ये नगरपालिका से लेकर अंतरराष्ट्रीय कानून तक कानूनी अधिकार के रूप में संरक्षित हैं। मानवाधिकार सार्वभौमिक हैं इसलिए ये हर जगह और हर समय लागू होते हैं। मानवाधिकार मानदंडों का एक समूह है जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों को चित्रित करता है। नगर निगम के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कानून में कानूनी अधिकारों के रूप में संरक्षित, इन अधिकारों को अनौपचारिक मौलिक अधिकारों के रूप में जाना जाता है जिसका एक व्यक्ति सिर्फ इसलिए हकदार है क्योंकि वह एक इंसान है।

मानव अधिकार पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Human Rights, Manav Adhikar par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द) – मूलभूत मानव अधिकार.

मानव अधिकार वे मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के मानकों को स्पष्ट करते हैं। एक इंसान होने के नाते ये वो मौलिक अधिकार हैं जिनका प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से हकदार है। ये अधिकार कानून द्वारा संरक्षित हैं।

मूलभूत मानव अधिकार

हमारे यहां कुछ बुनियादी मानवाधिकारों को विशेष रुप से सुरक्षित किया गया है। जिनकी प्राप्ति देश के हर व्यक्ति होनी चाहिए, ऐसे ही कुछ मूलभूत मानव अधिकारों के विषय में नीचे चर्चा की गयी है।

  • जीवन का अधिकार

प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना स्वतन्त्र जीवन जीने का जन्मसिद्ध अधिकार है। हर इंसान को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं मारे जाने का भी अधिकार है।

  • उचित परीक्षण का अधिकार

प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष न्यायालय द्वारा निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। इसमें उचित समय के भीतर सुनवाई, जन सुनवाई और वकील के प्रबंध आदि के अधिकार शामिल हैं।

  • सोच, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता

प्रत्येक व्यक्ति को विचार और विवेक की स्वतंत्रता है उसे अपने धर्म को चुनने की भी स्वतंत्रता है और अगर वह इसे किसी भी समय बदलना चाहे तो उसके लिए भी स्वतंत्र है।

  • दासता से स्वतंत्रता

गुलामी और दास प्रथा पर क़ानूनी रोक है। हालांकि यह अभी भी दुनिया के कुछ हिस्सों में इसका अवैध रूप से पालन किया जा रहा है।

  • अत्याचार से स्वतंत्रता

अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत यातना देने पर प्रतिबंध है। हर व्यक्ति यातना न सहने से स्वतंत्र है।

अन्य सार्वभौमिक मानव अधिकारों में स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा, भाषण की स्वतंत्रता, सक्षम न्यायाधिकरण, भेदभाव से स्वतंत्रता, राष्ट्रीयता का अधिकार और इसे बदलने के लिए स्वतंत्रता, विवाह और परिवार के अधिकार, आंदोलन की स्वतंत्रता, संपत्ति का अधिकार, शिक्षा के अधिकार, शांतिपूर्ण विधानसभा और संघ के अधिकार, गोपनीयता, परिवार, घर और पत्राचार से हस्तक्षेप की स्वतंत्रता, सरकार में और स्वतंत्र रूप से चुनाव में भाग लेने का अधिकार, राय और सूचना के अधिकार, पर्याप्त जीवन स्तर के अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार और सामाजिक आदेश का अधिकार जो इस दस्तावेज़ को अभिव्यक्त करता हो आदि शामिल हैं।

हालांकि कानून द्वारा संरक्षित इन अधिकारों में से कई का लोगों द्वारा, यहां तक ​​कि सरकारों के द्वारा भी, उल्लंघन किया जाता है। हालांकि मानवाधिकारों के उल्लंघन पर नजर रखने के लिए कई संगठन बनाए गए हैं। ये संगठन इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए कदम उठाते हैं।

कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि जिन लोगों के ऊपर मानव अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी होती है वही अपने शक्ति का दुरुपयोग कर लोगो के मानव अधिकारों का हनन करने लगते है। इसलिए इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए की देश के सभी व्यक्तियों को उनके मानव अधिकारों की प्राप्ति हो।

निबंध 2 (400 शब्द) – सार्वभौमिक मानव अधिकार व मानवाधिकारों का उल्लंघन

मानवाधिकार वे अधिकार हैं जोकि इस पृथ्वी पर हर व्यक्ति केवल एक इंसान होने के कारण ही प्राप्त हुए हैं। ये अधिकार विश्व्यापी हैं और वैश्विक कानूनों द्वारा संरक्षित हैं। सदियों से मानवाधिकार और स्वतंत्रता का विचार अस्तित्व में है। हालांकि समय के बदलने के साथ-साथ इनमें भी परिवर्तन हुआ है।

सार्वभौमिक मानव अधिकार

मानव अधिकारों में वे मूल अधिकार शामिल हैं जो हर जाति, पंथ, धर्म, लिंग या राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना हर इंसान को दिए जाते हैं। सार्वभौमिक मानवाधिकारों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है:

  • जिंदगी जीने, आज़ादी और निजी सुरक्षा का अधिकार
  • समानता का अधिकार
  • सक्षम न्यायाधिकरण द्वारा बचाव का अधिकार
  • कानून के सामने व्यक्ति के रूप में मान्यता के अधिकार
  • भेदभाव से स्वतंत्रता
  • मनमानी गिरफ्तारी और निर्वासन से स्वतंत्रता
  • अपराध सिद्ध न होने तक निर्दोष माने जाने का अधिकार
  • उचित सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार
  • आंदोलन की स्वतंत्रता
  • गोपनीयता, परिवार, गृह और पत्राचार में हस्तक्षेप से स्वतंत्रता
  • अन्य देशों में शरण का अधिकार
  • राष्ट्रीयता को बदलने की स्वतंत्रता का अधिकार
  • विवाह और परिवार के अधिकार
  • शिक्षा का अधिकार
  • खुद की संपत्ति रखने का अधिकार
  • शांतिपूर्ण सभा और एसोसिएशन बनाने का अधिकार
  • सरकार में और नि: शुल्क चुनावों में भाग लेने का अधिकार
  • विश्वास और धर्म की स्वतंत्रता
  • सही तरीके से रहने/जीने का अधिकार
  • समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार
  • सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
  • वांछनीय कार्य और ट्रेड यूनियनों में शामिल होने का अधिकार
  • अवकाश और विश्राम का अधिकार
  • ऊपर दिए अधिकारों में राज्य या व्यक्तिगत हस्तक्षेप से स्वतंत्रता

मानवाधिकारों का उल्लंघन

यद्यपि मानव अधिकार विभिन्न कानूनों द्वारा संरक्षित हैं पर अभी भी लोगों, समूहों और कभी-कभी सरकार द्वारा इसका उल्लंघन किया जाता है। उदाहरण के लिए पूछताछ के दौरान पुलिस द्वारा यातना की आज़ादी का अक्सर उल्लंघन किया जाता है। इसी प्रकार गुलामी से स्वतंत्रता को मूल मानव अधिकार कहा जाता है लेकिन गुलामी और गुलाम प्रथा अभी भी अवैध रूप से चल रही है। मानव अधिकारों के दुरुपयोग की निगरानी के लिए कई संस्थान बनाए गए हैं। सरकारें और कुछ गैर-सरकारी संगठन भी इनकी जांच करते हैं।

हर व्यक्ति को मूल मानवाधिकारों का आनंद लेने का हक है। कभी-कभी इन अधिकारों में से कुछ का सरकार द्वारा दुरूपयोग किया जाता है। सरकार कुछ गैर-सरकारी संगठनों की सहायता से मानवाधिकारों के दुरुपयोगों पर नजर रखने के लिए उपाय कर रही है।

निबंध 3 (500 शब्द) – मानवाधिकार के प्रकार

मानवाधिकारों को सार्वभौमिक अधिकार कहा जाता है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपना लिंग, जाति, पंथ, धर्म, संस्कृति, सामाजिक/आर्थिक स्थिति या स्थान की परवाह किए बिना हकदार है। ये वो मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों का वर्णन करते हैं और कानून द्वारा संरक्षित हैं।

मानवाधिकार के प्रकार

मानव अधिकारों को दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ये नागरिक और राजनीतिक अधिकार हैं। इनमें सामाजिक अधिकार भी हैं जिनमें आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं। यहां हर व्यक्ति को दिए गए बुनियादी मानवाधिकारों पर विस्तृत जानकारी दी गई है:

पृथ्वी पर रहने वाले हर इंसान को जीवित रहने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी के द्वारा नहीं मारे जाने का अधिकार है और यह अधिकार कानून द्वारा संरक्षित है। हालांकि इसमें मौत की सजा, आत्मरक्षा, गर्भपात, इच्छामृत्यु और युद्ध जैसे मुद्दे शामिल नहीं हैं।

  • बोलने की स्वतंत्रता

हर इंसान को स्वतंत्र रूप से बोलने का और जनता में अपनी राय की आवाज उठाने का अधिकार है हालांकि इस अधिकार में कुछ सीमा भी है जैसे अश्लीलता, गड़बड़ी और दंगा भड़काना।

हर देश अपने नागरिकों को स्वतंत्र रूप से सोचने और ईमानदार विश्वासों का निर्माण करने का अधिकार देता है। हर व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने का अधिकार है और समय-समय पर किसी भी समय अपनी स्वतंत्र इच्छा के अनुसार इसे बदलने के लिए स्वतंत्र है।

इस अधिकार के तहत हर व्यक्ति को निष्पक्ष अदालत द्वारा निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, उचित समय के भीतर सुनना, वकील के अधिकार, जन सुनवाई के अधिकार और व्याख्या के अधिकार हैं।

अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अत्याचार से स्वतंत्रता का अधिकार है। 20वीं शताब्दी के मध्य से इस पर प्रतिबंध लगाया गया है।

इसका मतलब यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश के किसी भी हिस्से में यात्रा करने, रहने, काम या अध्ययन करने का अधिकार है।

इस अधिकार के अनुसार गुलामी और गुलामी के व्यापारियों को हर रूप में प्रतिबंधित किया गया है। हालांकि दुर्भाग्य से ये दुर्व्यवहार अब भी अवैध तरीके से चलते हैं।

मानवाधिकार का उल्लंघन

जहाँ हर इंसान मानव अधिकार का हकदार है वहीँ इन अधिकारों का अब भी अक्सर उल्लंघन किया जाता है। इन अधिकारों का उल्लंघन तब होता है जब राज्य द्वारा की गई कार्रवाईयों में इन अधिकारों की उपेक्षा, अस्वीकार या दुरुपयोग होता है।

मानव अधिकारों के दुरुपयोग की जांच करने के लिए संयुक्त राष्ट्र समिति की स्थापना की गई है। कई राष्ट्रीय संस्थान, गैर-सरकारी संगठन और सरकार भी यह सुनिश्चित करने के लिए इन पर नजर रखती हैं कि कहीं किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा हैं।

ये संगठन मानव अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने की दिशा में काम करते हैं ताकि लोगों को उनके अधिकारों के बारे में अच्छी जानकारी मिल सके। उन्होंने अमानवीय प्रथाओं के खिलाफ भी विरोध किया है। इन विरोधों के कारण कई बार कार्रवाई देखने को मिली है जिससे स्थिति में सुधार हुआ है।

मानव अधिकार हर व्यक्ति को दिए गए मूल अधिकार हैं। सार्वभौमिक होने के लिए इन अधिकारों को कानून द्वारा संरक्षित किया जाता है हालांकि, दुर्भाग्य से कई बार राज्यों, व्यक्तियों या समूहों द्वारा उल्लंघन किया जाता है। इन मूल अधिकारों से एक व्यक्ति को वंचित करना अमानवीय है। यही कारण है कि इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई संगठन स्थापित किए गए हैं।

Essay on Human Rights in Hindi

निबंध 4 (600 शब्द) – मानव अधिकार व इस का महत्व

मानवाधिकार निर्विवाद अधिकार है क्योंकि पृथ्वी पर मौजूद हर व्यक्ति इंसान होने के नाते इसका हकदार है। ये अधिकार प्रत्येक इंसान को अपने लिंग, संस्कृति, धर्म, राष्ट्र, स्थान, जाति, पंथ या आर्थिक स्थिति के बंधनों से आज़ाद हैं। मानवाधिकारों का विचार मानव इतिहास से ही हो रहा है हालांकि इस अवधारणा में पहले के समय में काफ़ी भिन्नता थी। यहाँ इस अवधारणा पर एक विस्तृत नज़र डाली गई है:

मानव अधिकारों का वर्गीकरण

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों को व्यापक रूप से वर्गीकृत किया गया है: नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक अधिकार जिसमें आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं। हर व्यक्ति के सरल तथा सामान्य जीवन के लिए यह काफी आवश्यक है कि हर हालात में उसे आवश्यक मानव अधिकारों की प्राप्ति अवश्य हो। इन्हीं के आधार पर विभिन्न तरह के मानव अधिकारों का वर्गीकरण किया गया है।

नागरिक और राजनीतिक अधिकार

यह अधिकार व्यक्ति की स्वायत्तता को प्रभावित करने वाले कार्यों के संबंध में सरकार की शक्ति को सीमित करता है। यह लोगों को सरकार की भागीदारी और कानूनों के निर्धारण में योगदान करने का मौका देता है।

सामाजिक अधिकार

ये अधिकार सरकार को एक सकारात्मक और हस्तक्षेपवादी तरीके से कार्य करने के लिए निर्देश देते है ताकि मानव जीवन और विकास के लिए आवश्यक जरूरतें पूरी हो सकें। प्रत्येक देश की सरकार अपने सभी नागरिकों की भलाई सुनिश्चित करने की उम्मीद करती है। प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है।

मानव अधिकार का महत्व

आज के समय में मानव अधिकार एक ऐसी सुविधा है, जिसके बिना हमारा जीवन काफी भयावह और दयनीय हो जायेगा क्योंकि बिना मानव अधिकारों के हम पर तमाम तरह के अत्यार किये जा सकते है और बिना किसी भय के हमारा शोषण किया जा सकता है। वास्तव में मानव अधिकार सिर्फ आज के समय में ही नही पूरे मानव सभ्यता के इतिहास में भी काफी आवश्यक रहे है। भारत में भी प्रचीनकाल में कई सारे गणतांत्रिक राज्यों के नागरिकों को कई विशेष मानव अधिकार प्राप्त थे। आज के समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैदियों से लेकर युद्धबंदियों तक के मानव अधिकार को तय किया गया है। इन अधिकारों की देखरेख और नियमन कई प्रमुख अंतराष्ट्रीय संस्थाओं और संगठनों द्वारा किया जाता है।

यदि मानव अधिकार ना हो तो हमारा जीवन पशुओं से भी बदतर हो जायेगा, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें आज के समय में कई तानाशाही और धार्मिक रुप से संचालित होने वाले देशों में देखने को मिलता है। जहां सिर्फ अपने विचार व्यक्त कर देने पर या फिर कोई छोटी सी गलती कर देने पर किसी व्यक्ति को मृत्युदंड जैसी कठोर सजा सुना दी जाती है क्योंकि ना तो कोई वहा मानव अधिकार नियम है ना तो किसी तरह का कानून, इसके साथ ही ऐसे देशों में सजा मिलने पर भी बंदियों के साथ पशुओं से भी बुरा सलूक किया जाता है।

वही दूसरी तरफ लोकतांत्रिक देशों में मानव अधिकारों को काफी महत्व दिया जाता है और हरके व्यक्ति चाहे फिर वह अपराधी या युद्धबंदी ही क्यों ना हो उसे अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया जाता है, इसके साथ ही सजा मिलने पर भी उन्हें मूलभूत सुविधाएं अवश्य दी जाती है। इस बात से हम अंदाजा लगा सकते है कि मानव अधिकार हमारे जीवन में कितना महत्व रखते है।

मानवाधिकार, व्यक्तियों को दिए गए मूल अधिकार हैं, जो लगभग हर जगह समान हैं। प्रत्येक देश किसी व्यक्ति की जाति, पंथ, रंग, लिंग, संस्कृति और आर्थिक या सामाजिक स्थिति को नज़रंदाज़ कर इन अधिकारों को प्रदान करता है। हालांकि कभी-कभी इनका व्यक्तियों, समूहों या स्वयं राज्य द्वारा उल्लंघन किया जाता है। इसलिए लोगों को मानवाधिकारों के किसी भी उल्लंघन के खिलाफ खुद आवाज़ उठाने की जरूरत है।

Related Information:

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FAQs: Frequently Asked Questions on Human Rights (मानव अधिकार पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

उत्तर- प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को।

उत्तर- 12 अक्टूबर 1993 को।

उत्तर- नई दिल्ली में।

उत्तर- रंगनाथ मिश्र

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Essay on International Law | Hindi | Law

essay on law in hindi

ADVERTISEMENTS:

Here is an essay on ‘International Law’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘International Law’ especially written for school and college students in Hindi language .

Essay on International Law

Essay Contents:

  • अन्तर्राष्ट्रीय कानून के सुधार के सुझाव (Suggestions for Improvement)

Essay # 1. अन्तर्राष्ट्रीय कानून: अर्थ एवं परिभाषा ( International Law: Meaning and Definitions):

अन्तर्राष्ट्रीय कानून उन नियमों का समूह है जिनके अनुसार सभ्य राज्य शान्तिकाल तथा युद्धकाल में एक-दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं । ‘अन्तर्राष्ट्रीय कानून’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1780 में जेरेमी बेन्थम द्वारा किया गया । यह शब्द ‘राष्ट्रों का कानून’ (Law of nations) का पर्यायवाची है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अर्थ को समझने के लिए इसकी विविध परिभाषाओं पर विचार करना आवश्यक है ।’

ओपेनहीम के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय कानून उन प्रयोगों में आने वाले तथा सन्धियों में प्रयोग किए जाने वाले नियमों का नाम है जिनको सभ्य राज्य पारस्परिक व्यवहारों में प्रयोग करने के लिए बाध्य होता है ।”

ह्यूज के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय कानून ऐसे सिद्धान्तों का समूह है जिनको सभ्य राष्ट्र पारस्परिक व्यवहार में प्रयोग करना बाध्यकारी समझते हैं । यह कानून सर्वोच्चता सम्पन्न राज्यों की स्वीकृति पर निर्भर है ।”

हैन्स केल्सन के अनुसार- ”राष्ट्रों की विधि अथवा अन्तर्राष्ट्रीय विधि की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि वह नियमों और सिद्धान्तों का एक संकलन है जिसके अनुसार कार्य करना पारस्परिक व्यवहार में सभ्य राज्यों के लिए आवश्यक है ।”

सर हेनरीमैन के अनुसार- “राष्ट्रों की विधि भिन्न-भिन्न तत्वों की एक जटिल योजना है । उसमें अधिकारों तथा न्याय के साधारण सिद्धान्त निहित हैं । इनका प्रयोग समान रूप से राज्यों के व्यक्ति तथा राज्य पारस्परिक व्यवहारों में कर सकते हैं । यह एक निश्चित कानूनों की संहिता है रीति-रिवाजों और विचारों का संकलन है जिनका प्रयोग पारस्परिक व्यवहार में राज्यों के बीच किया जा सकता है ।”

डॉ. समूर्णानन्द के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय विधान उन नियमों और प्रथाओं के समूह को कहते हैं जिनके अनुसार सभ्य राज्य एक-दूसरे के साथ प्राय: बर्ताव करते हैं ।”

हाल के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय कानून आचरण के ऐसे नियम हैं जिन्हें वर्तमान सभ्य राज्य एक-दूसरे के साथ व्यवहार में ऐसी शक्ति के साथ बाधित रूप से पालन करने योग्य समझते हैं जिनके साथ सद्‌विवेकी कर्तव्यपरायण व्यक्ति अपने देश के कानूनों का पालन करते हैं । वे यह भी समझते हैं कि यदि इनका उल्लंघन किया गया तो उपयुक्त साधनों द्वारा उन्हें लागू किया जा सकता है ।”

स्टार्क के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय कानून का यह लक्षण किया जा सकता है कि यह ऐसा कानून समूह है जिसके अधिकांश भाग का निर्माण उन सिद्धान्तों तथा आचरण के नियमों से हुआ है जिनके सम्बन्ध में राज्य यह अनुभव करते हैं कि वे इनका पालन करने के लिए बाध्य हैं ।”

इसमें निम्न प्रकार के नियम भी सम्मिलित हैं:

(a) अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा संगठनों की कार्यप्रणाली से सम्बन्ध रखने वाले तथा इन संस्थाओं के राज्यों तथा व्यक्तियों से सम्बन्ध रखने वाले कानून के नियम ।

(b) व्यक्तियों से तथा राज्येतर सत्ताओं से सम्बन्ध रखने वाले कानून के नियम ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून की विभिन्न परिभाषाओं को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि, यद्यपि विचारकों ने भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग किया है, किन्तु उनके बीच अर्थ की दृष्टि से विशेष अन्तर नहीं है ।

इन परिभाषाओं से निम्न बातें सामने आती हैं:

(i) अन्तर्राष्ट्रीय कानून राज्यों के पारस्परिक व्यवहार का नियमन करते हैं ।

(ii) ये कानून सिद्धान्तों अथवा नियमों का समूह हैं ।

(iii) ये राज्यों अथवा सामान्य अन्तर्राष्ट्रीय समाज द्वारा स्वीकृत होते हैं ।

(iv) इनका स्रोत परम्पराएं, प्रथाएं, न्यायालय के निर्णय एवं सभ्यता के आधारभूत गुण, आदि हैं ।

(v) इनका पालन सद्‌भावना एवं कर्तव्यपालन के दायित्व के कारण किया जाता है । ये सभ्य राज्यों द्वारा स्वयं पर लगाए गए प्रतिबन्ध हैं ।

(vi) इनका उद्देश्य राज्यों के अधिकारों की परिभाषा करना, राज्यों के मध्य विवादों को निपटाना एवं सहयोगपूर्ण व्यवहार विकसित करना, आदि है ।

Essay # 2. अन्तर्राष्ट्रीय कानून का महत्व तथा आवश्यकता ( International Law: Significance and Need):

वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय कानून की आवश्यकता इस प्रकार दर्शायी जा सकती है:

(1) अराजकता से बचाव:

मनुस्मृति में कहा गया है कि, मानव को पारस्परिक संगठन बनाने के लिए अथवा राष्ट्र के रूप में संगठित होने के लिए आपस में पारस्परिक व्यवहार के लिए कुछ नियमों का निर्माण करना पड़ता है और उन नियमों का पालन करना पड़ता है, अन्यथा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । अव्यवस्था अशान्ति अराजकता तथा अनिश्चिततापूर्ण परिस्थितियों के निराकरण के अनेक प्रयासों में अन्तर्राष्ट्रीय कानून का अनुशीलन विशेष रूप से महत्व रखता है ।

(2) शक्ति संघर्ष को परिसीमित करना:

अन्तराष्ट्रीय राजनीति शक्ति संघर्ष की राजनीति है । शक्ति संघर्ष की इस राजनीति में छोटे एवं बड़े राज्य अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए कार्यरत रहते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष को अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रतिबन्ध द्वारा सीमित दायरे में रखा जाता है ।

चाहे वह छोटा राज्य हो अथवा बडा किसी भी कार्यकलाप को करने से पहले यह विचार कर लेता है कि क्या उसकी नीतियों से अन्तर्राष्ट्रीय कानून की उपेक्षा तो नहीं हो रही है ? दूसरे शब्दों में राज्यों के व्यवहारों में अन्तर्राष्ट्रीय कानून द्वारा ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ या ‘मत्स्य न्याय’ की धारणा को गलत साबित कर दिया गया है ।

(3) विश्वशान्ति का आधार तैयार करना:

विश्वशान्ति आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है । अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के द्वारा राष्ट्रों के व्यवहारों हेतु सामान्य नियमों का ‘सार्वभौमिक’ निर्धारण किया जाता है । यदि विश्व के समस्त राज्य अन्तर्राष्ट्रीय कानून का समान भाव से आदर करने लग जाएं तो राज्यों के बीच होने वाले मतभेदों एवं संघर्षों को टाला जा सकता है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून एक ऐसे विश्व का निर्माण करने का साधन हो सकता है जिसमें संघर्षों के बजाय सहयोग का प्राबल्य हो ।

(4) विश्व सरकार की प्राथमिक आवश्यकता को पूरा करना:

प्रसिद्ध दार्शनिक बर्ट्रेण्ड रसेल के अनुसार विश्व सरकार (World government) के द्वारा ही विश्वशान्ति की स्थापना की जा सकती है । जब तक राष्ट्रों में उग्र राष्ट्रीयता एवं सम्प्रभुता की भावना विद्यमान रहेगी विश्व सरकार एक सपना ही बना रहेगा किन्तु यदि अन्तर्राष्ट्रीय कानून की पर्याप्त रचना की जाए, विभिन्न राज्यों में इसके प्रयोग से लाभों का समुचित प्रसार किया जाए तो राज्य सहज में इसका प्रयोग करने लग जाएंगे ।  उग्र सम्प्रभुता जिसका अन्ततोगत्वा परिणाम युद्ध होता है, का निश्चित रूप से परित्याग होगा और निकट भविष्य में विश्व सरकार की धारणा की पूर्ति की जा  सकेगी ।

(5) आणविक तथा संहारक शस्त्रों से सुरक्षा:

विज्ञान तथा तकनीकी विकास के परिणामस्वरूप विभिन्न राष्ट्रों के पास संहारक शस्त्रों की मात्रा में भयानक वृद्धि हो चुकी है । विश्व की महान् शक्तियों के मध्य संहारक शस्त्रों के निर्माण की भयानक प्रतिस्पर्द्धा चल रही है ।  आज अमरीका, रूस, फ्रांस तथा चीन के पास आणविक एवं हाइड्रोजन शस्त्रों का विशाल भण्डार है ।

विभिन्न राष्ट्रों में आपसी मनमुटाव के कारण शस्रीकरण की प्रतिस्पर्द्धा को रोका नहीं जा सकता । नि:शस्त्रीकरण के लिए किए गए विभिन्न प्रयास असफल सिद्ध हुए हैं । ऐसी स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय कानून ही मानवता को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं । इस समय इन कानूनों के द्वारा ही युद्धों में विषैले एवं भयानक शस्त्रों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाए गए हैं ।

(6) युद्धों का न्यायपूर्वक संचालन:

जिस प्रकार राष्ट्रीय कानून की उपस्थिति में भी छोटे-छोटे मतभेदों को लेकर व्यक्तियों में संघर्ष उत्पन्न हो जाते हैं उसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के उपरान्त भी विभिन्न राज्यों के मध्य राष्ट्रीय हितों के महत्वपूर्ण (vital) प्रश्नों को लेकर उग्रतर मतभेद पैदा हो जाते हैं और युद्ध प्रारम्भ हो जाते हैं ।

अभी वह स्थिति नहीं आयी है कि युद्धों का समूल परित्याग हो जाए । विभिन्न राज्यों के मध्य चलने वाले युद्धों को अन्तर्राष्ट्रीय कानून द्वारा व्यावहारिकता प्रदान की जाती है । युद्ध करना अपराध नहीं है, किन्तु युद्ध में अन्तर्राष्ट्रीय कानून की उपेक्षा करना घोर निन्दनीय अपराध माना जाता है । यदि युद्ध का संचालन करने के लिए पर्याप्त कानून न हों तो युद्धग्रस्त राष्ट्रों की जनता को अपार क्षति उठानी पड सकती है ।

(7) राष्ट्रों के मध्य आर्थिक एवं व्यावसायिक क्रियाकलापों का संचालन:

वैज्ञानिक आविष्कारों यातायात एवं संचार के साधनों की अभूतपूर्व उन्नति के कारण सब देशों के सम्बन्ध एक-दूसरे के साथ बढ रहे हैं एक-दूसरे पर निर्भरता में निरन्तर वृद्धि हो रही है ।  आर्थिक व्यापारिक प्राविधिक शैक्षणिक राजनीतिक आवश्यकताओं के कारण विभिन्न देशों के पारस्परिक सम्बन्ध इतने प्रगाढ़ हो रहे हैं कि इस समय कोई भी सभ्य राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों से सर्वथा पृथक् रहकर न तो किसी प्रकार की उन्नति कर सकता है और न अपना चहुंमुखी विकास ही ।

आज छोटे और बडे सभी राज्य आपसी लेन-देन और आदान-प्रदान द्वारा ही अपनी जरूरतों को पूरा कर पाते हैं । राज्यों के बीच व्यापार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा  है । इन सारी स्थितियों का सुविधापूर्वक संचालन अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अभाव में आसानी से किया जाना असम्भव ही प्रतीत होता है ।

(8) कूटनीतिक गतिविधियों का संचालन:

विभित्र राज्यों के आपसी सम्बन्धों का संचालन कूटनीतिक प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है । एक राज्य के राजनयिक प्रतिनिधि दूसरे राज्य में निवास करते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अभाव में राजनयिक प्रतिनिधियों का कार्य अत्यन्त दुष्कर हो जाएगा ।

इनकी समस्त गतिविधियों का निर्धारण वियना अभिसमय, 1961 (जो अन्तर्राष्ट्रीय कानून का भाग है) द्वारा किया जाता है । निष्कर्षत: अन्तर्राष्ट्रीय कानून का महत्व द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद लगातार बढ़ता जा रहा है । आज युद्ध से त्रस्त मानवता की रक्षा का यह अप्रतिम साधन बन चुका है ।

Essay # 3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून: विधिशास्त्र का लोप बिन्दु है ( International Law as the Vanishing Point of Jurisprudence):

अन्तर्राष्ट्रीय कानून के सम्बन्ध में आचार्यों के भिन्न-भिन्न मत हैं । कोई तो इसे विधिशास अथवा न्यायशास्त्र (Jurisprudence) का अंग मानते हैं और कुछ विद्वान इसे नीतिशास्त्र (ethics) से उच्च स्थान नहीं     देते । राज्यों की समक्षता के सम्बन्ध में एकलवादी दृष्टिकोण प्रकट करने वाले पुराने विधिशास्त्रियों का मत है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून का अस्तित्व ही नहीं है । दूसरी तरफ हाल तथा लारेन्स ने यह मत व्यक्त किया है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून अन्तर्राष्ट्रीय नैतिकता से पूर्णतया भिन्न है और विधि की भांति क्रियाशील है ।

यहां इन विचारों का विश्लेषण किया जाना आवश्यक है:

अन्तर्राष्ट्रीय कानून को कानून न स्वीकार करने वाले विचारकों में जॉन आस्टिन, कालरिज, हॉब्स, प्यूफेनडार्फ, हॉलैण्ड, जेथरो ब्राउन लार्ड सेल्सबरी आदि प्रमुख हैं ।

ऑस्टिन के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय कानून एक सच्चा कानून है ही नहीं । यह तो नैतिक नियमों की एक संहिता मात्र है ।” वे कहते हैं कि कानून के पीछे बाध्यकारी शक्ति होना परम आवश्यक है । यदि इस दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय कानून पर विचार किया जाए तो वह कानून नहीं कहा जा सकता । अन्तर्राष्ट्रीय कानून के पीछे केवल नैतिक शक्ति (moral force) होती है । इसका पालन राज्यों की सामान्य स्वीकृति के आधार पर किया जाता      है ।

हॉलैण्ड के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय कानून विधिशास्त्र का लोप बिन्दु अथवा पतनोन्मुख केन्द्र (Vanishing Point of Jurisprudence) है । इससे अर्थ यह लिया जा सकता है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून को विधिशास्त्र का अंग नहीं माना जा सकता क्योंकि इससे पहले ही विधिशास्त्र की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं ।”

दो कारणों से हॉलैण्ड अन्तर्राष्ट्रीय कानून को विधिशास का तिरोधान बिन्दु मानता है:

(i) पहला कारण यह है कि, इसमें दोनों पक्षों के ऊपर, राज्यों के पारस्परिक विवाद का निर्णय करने वाली कोई शक्ति नहीं है ।

(ii) दूसरा कारण यह है कि, ज्यों-ज्यों राज्यों के एक बड़े अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में संगठित होने से अन्तर्राष्ट्रीय नियम कानूनों जैसा रूप धारण करने लगते हें त्यों-त्यों इसका यह स्वरूप लुप्त होता जाता है और संघीय सरकार के सार्वजनिक कानून (जो एक कमजोर कानून होता है) के रूप में बदलता जाता है ।

जेथरो ब्राउन के अनुसार- ” अन्तर्राष्ट्रीय विधि विधि की अवस्था तक पहुंचने का प्रयल कर रही है । अभी तो यह मार्ग में ही है और विधि की हैसियत से जीवित रहने के लिए संघर्षरत है ।” 

गार्नर के अनुसार- ”समुचित बाध्यता का अभाव सदा से और आज भी अन्तर्राष्ट्रीय कानून की मुख्यत: दुर्बलता है और भविष्य के समक्ष मुख्य आवश्यक कार्यों में से एक है-ऐसी बाध्यता प्रदान करना ।” 

लॉर्ड सैलिसबरी के अनुसार- “अन्तर्राष्ट्रीय कानून किसी न्यायाधिकरण द्वारा प्रवर्तित नहीं होता इसलिए उसे असाधारण अर्थों में कानून कहना भ्रमात्मक है ।”

उपर्युक्त लेखकों एवं कानूनवेत्ताओं के विचारों का विश्लेषण किया जाए तो अन्तर्राष्ट्रीय कानून को कानून न मानने के निम्नलिखित कारण बताए जा सकते हैं :

(1) बाध्यकारी शक्ति का अभाव:

साधारणतया कानून का पालन करवाने के लिए बाध्यकारी शक्ति का होना आवश्यक है । राज्यों में संसद तथा व्यवस्थापिकाओं द्वारा निर्मित कानून का पालन शक्ति द्वारा करवाया जाता है जबकि अन्तर्राष्ट्रीय कानून सदस्य राज्यों की सदइच्छा पर निर्भर रह जाता है । कानून बनाने वाली सत्ता हमेशा उच्चतम होती है और भौतिक शक्ति के सहारे यह दूसरे लोगों को भी कानून का पालन करने के लिए बाध्य कर सकती है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून में इन सबका अभाव है ।

( 2) कानून सम्प्रभु के आदेश होते हैं:

कानूनों का निर्माण निश्चित व्यक्ति अथवा निश्चित सम्प्रभु निकाय द्वारा किया जाता है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून का निर्माण करने वाली सम्पभु संस्थाओं एवं व्यक्तियों का अभाव है । ऐसी स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय कानून एक कल्पनामात्र है ।

(3) व्याख्या करने वाली संस्था का अभाव:

कानूनों की व्याख्या करने वाली संस्थाओं के द्वारा विवादों का निर्णय एवं कानूनों का महत्व स्पष्ट किया जाता है । राज्यों में यह कार्य न्यायालय करते हैं, किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय कानून की व्याख्या के लिए कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं है और इस प्रकार इनके उल्लंघन का निर्णय सही प्रकार नहीं हो पाता ।

उदाहरण के लिए, वियतनाम संघर्ष तथा भारत-पाक युद्ध में अन्तर्राष्ट्रीय कानून का कई बार उल्लंघन हुआ किन्तु इसका निर्णय नहीं हो सका कि कानून की अवहेलना किस पक्ष ने की है । इस सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की शक्तियां भी पर्याप्त रूप से सीमित हैं ।

( 4) अन्तर्राष्ट्रीय कार्यपालिका का अभाव:

कानूनों को कार्यान्वित करने का कार्य कार्यपालिका का है । अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय कानून के लागू करने के लिए कोई कार्यपालिका निकाय नहीं है । ऐसी स्थिति में वे केवल आदर्श इच्छामात्र ही बनकर रह जाते हैं ।

(5) संहिता का अभाव:

कानूनों के अस्तित्व की बोधता संहिताओं के द्वारा होती है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून अधिकांशत: प्रथाओं पर आधारित हैं और अस्पष्ट तथा अनिश्चित हैं । ऐसे अनिश्चित कानून को ‘कानून’ कहना अतिरंजनपूर्ण तथा बेहूदा है ।

इन्हीं तर्कों के कारण कतिपय विधिशासी अन्तर्राष्ट्रीय कानून को कानून की कोटि में नहीं रखते । वे अन्तर्राष्ट्रीय कानून को केवल नम्रतावश (Law of courtesy) ही कानून की संज्ञा प्रदान करते हैं । इनके अनुसार इसको कानून के स्थान पर शुद्ध नैतिकता (Positive Morality) कहा जाना उचित होगा ।

किन्तु हॉब्स तथा ऑस्टिन के विचार अब अतीत की वस्तु बन चुके हैं । आधुनिक विधिशासियों ने उपर्युक्त तर्कों का जोरदार शब्दों में खण्डन किया है, तथा प्रबल दलील के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अस्तित्व की स्थापना की है ।

Essay # 4. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के पक्ष में दिए गए तर्क ( Arguments in Favour of International Law):

सर हेनरीमैन, लार्ड रसेल, ब्रियर्ली, स्टार्क, ओपेनहीम, आदि विधिशास्त्रियों ने अन्तर्राष्ट्रीय कानून को एक वास्तविकता माना है । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि, अन्तर्राष्ट्रीय कानून राष्ट्रीय कानून से कम शास्ति सूचक तथा अस्पष्ट हैं तथापि यह कानून हैं ।

विधि के पीछे केवल दबाव ही आवश्यक नहीं है । साधारण राष्ट्रीय विधि के समान अन्तर्राष्ट्रीय विधि की भी कभी-कभी उपेक्षा की जाती है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि विधि का अस्तित्व ही नहीं हे । सर हेनरीमैन के अनुसार किसी नियम को कानून बनाने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उसके पीछे कोई बाध्यकारी शक्ति हो ।

सर हेनरी बर्कले के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय कानून का अस्तित्व तब हो सकता है, जब सभी राष्ट्र आपस में सहमत होकर कानून की बाध्यता को स्वीकार कर लेते हैं यह सामान्य स्वीकृति ठीक वैसी ही है जैसी राष्ट्रीय कानून के प्रसंग में विभिन्न नागरिकों की होती है । यदि कोई राष्ट्र इस कानून को भंग करे तो सम्बन्धित राष्ट्र को कानून का उल्लंघनकर्ता माना जाएगा किन्तु कानून यथावत् बना रहेगा ।

विधि की अवहेलना करने से ही विधि का अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता । पोलक के मतानुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय कानून का आधार यदि केवल नैतिकता रही होती तो विभिन्न राज्यों द्वारा विदेश नीति की रचना नैतिक तर्कों के आधार पर ही की जाती किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता ।

विभिन्न राष्ट्र जब किसी बात का औचित्य सिद्ध करना चाहते हैं तो इसके लिए वे नैतिक भावनाओं का सहारा नहीं लेते वरन् पहले के उदाहरणों सन्धियों एवं विशेषज्ञों की सम्मतियों का सहारा लेते हैं । कानून के अस्तित्व के लिए आवश्यक शर्त केवल यही है कि एक राजनीतिक समुदाय होना चाहिए और उसके सदस्यों को यह समझना चाहिए कि उन्हें आवश्यक रूप से कुछ नियमों का पालन करना है ।”

स्टार्क ने भी ऑस्टिन के मत की निम्न तर्कों के आधार पर आलोचना करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय कानून का प्रबल समर्थन किया है:

(i) वर्तमान ऐतिहासिक न्यायशास्त्र में कानून के सिद्धान्त में बल के प्रयोग को निकाल दिया गया है । यह बात सिद्ध हो गयी है कि बहुत-से राज्यों में इस प्रकार से कानून माने जाते हैं जिनका निर्माण उन राज्यों की व्यवस्थापिका द्वारा नहीं हुआ है ।

(ii) ऑस्टिन का सिद्धान्त उनके समाज में कदाचित ठीक हो परन्तु वर्तमान समय में वह ठीक नहीं है । पिछली अर्द्धशताब्दी में अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विधियां अस्तित्व में आ गयी हें । ये विधियां अनेक समझौते और सन्धियों के फलस्वरूप अस्तित्व में आयी हैं ।

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय प्रश्नों को सदैव वैधानिक विधियों के समान मान्यता दी जाती है । भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय सरकारों और वैदेशिक कार्यालयों के अन्तर्राष्ट्रीय कार्यों में सदा इन बातों को विधि के समान ही मान्यता दी गयी है ।

ओपेनहीम ने कानून को परिभाषित करते हुए कहा है कि- “कानून किसी समाज के अन्तर्गत लोगों के आचरण के लिए उन नियमों के समूहों का नाम है जो उस समाज की सामान्य स्वीकृति से एक बाह्य शक्ति द्वारा लागू किए जाते हैं ।”

प्रो. ओपेनहीम की इस परिभाषा में कानून के अस्तित्व के लिए जिन बातों को आवश्यक माना गया है, वे हैं: 

(a) समुदाय,

(b) नियमों का संग्रह,

(c) नियमों का पालन कराने वाली बाह्य शक्ति ।

ओपेनहीम के अनुसार पहली शर्त समुदाय की है । इस समय राष्ट्रसंघ संयुक्त राष्ट्रसंघ तथा अनेक आपसी सहयोग करने वाली संस्थाओं के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का निर्माण किया गया है । ओपेनहीम की दूसरी शर्त इस समुदाय के व्यवहार के लिए नियमों की सत्ता है ।

इस समय अनेक अन्तर्राष्ट्रीय परम्पराएं तथा सन्धियां एवं संहिताएं उपलब्ध हैं जैसे 1961 का राजदूतों की नियुक्ति से सम्बन्धित वियना अभिसमय, 1949 का युद्धबन्दियों सम्बन्धी अभिसमय, 1907 का हेग अभिसमय, इत्यादि ।

ओपेनहीम की तीसरी शर्त इन कानूनों का पालन कराने वाली सत्ता की आवश्यकता है । संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद को यह अधिकार दिया गया है, कि वह अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार जल वायु और स्थल सेना का प्रयोग कर सके ।

संघ के सदस्य राष्ट्रों ने यह प्रतिज्ञा की है कि वे सुरक्षा परिषद् की मांग पर अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की स्थापना के लिए आवश्यक सैनिक सहायता प्रदान करेंगे । कोरिया कांगो मिस्र आदि विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के समय सदस्य राष्ट्रों ने अपने इस वचन को पूरा करने की चेष्टा की है ।

ओपेनहीम के अनुसार सभी राज्य तथा सरकारें अन्तर्राष्ट्रीय कानून को आदर की दृष्टि से देखती हैं । केन्द्रीय सत्ता के अभाव में शक्तिशाली राज्यों ने हस्तक्षेप के माध्यम से यदा-कदा कानून को लागू किया है । यद्यपि राष्ट्रीय कानूनों की तुलना में यह कमजोर कानून है क्योंकि यह उस बाध्यता के साथ लागू नहीं किया जा सकता जिस शक्ति के साथ राज्यों के कानून लागू होते हैं ।

फिर भी कमजोर कानून कानून ही   है । राज्यों के आपसी व्यवहार में भी अन्तर्राष्ट्रीय कानून को स्वीकार किया गया है । विभिन्न राज्यों की सरकारें अन्तर्राष्ट्रीय कानून से अपने आपको बाध्य मानती हैं । ओपेनहीम के अनुसार, अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन प्राय: होता रहता है किन्तु कानून को भंग करने वाले राज्यों ने अपने कार्यों की पुष्टि कानून के द्वारा ही करने का सदैव प्रयास किया है । कानून को तोड़ने के उपरान्त भी वे कानून के अस्तित्व को आदर की दृष्टि से मानते हैं ।

संक्षेप में , हम अन्तर्राष्ट्रीय कानून को कानून न मानने वालों के तर्कों का खण्डन निम्नलिखित आधारों पर कर सकते हैं:

(1) अन्तर्राष्ट्रीय कानून नैतिकता से भिन्न हैं:

विभिन्न राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय कानून को कानून की भांति ही मानते हैं । नैतिकता के नियमों की यह विशेषता है कि वे केवल अन्त:करण पर ही प्रभाव डालते हैं इनके पालन कराने का साधन अन्त करण ही है । इसके सर्वथा विपरीत कानून का पालन बाह्यशक्ति द्वारा बलपूर्वक कराया जाता है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून को तोड़ने पर सुरक्षा परिषद् के प्रतिबन्ध लोकमत द्वारा निन्दा आदि को सहन करना पड़ता है ।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय कानून की अवहेलना का अर्थ कानून के अस्तित्व का अभाव नहीं है:

कानून की विशेषता तो उसका पालन है किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बड़ी अराजकता दृष्टिगोचर होती है । शक्तिशाली राष्ट्र कानूनों को तोड़ते रहते हैं, किन्तु नियमों का उल्लंघनमात्र से उनके अभाव की कल्पना नहीं की जा सकती । सभी देशों में चोरी डकैती आदि को रोकने के लिए नियम बने हुए हैं फिर भी वे अवैध कार्य होते रहते हैं किन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि वहां कानूनों की सत्ता नहीं है ।

(3) सभ्य राष्ट्रों ने अन्तर्राष्ट्रीय कानून को मान्यता प्रदान की है:

आधुनिक समय में अधिकांश राज्य अन्तर्राष्ट्रीय रिवाजों तथा सन्धियों का आदर करना पसन्द करते हैं । जो राज्य इसकी अवहेलना करते हैं वे भी अपने कार्यों की पुष्टि में अन्तर्राष्ट्रीय कानून को ही उद्‌धृत करते हैं । भारत, इंग्लैण्ड, अमरीका के न्यायालयों ने इसकी उपस्थिति स्वीकार की है ।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय कानूननिर्मात्री संस्था का प्रादुर्भाव होना:

वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्रसंघ अन्तर्राष्ट्रीय विधि आयोग, इत्यादि संस्थाओं द्वारा कानूनों के निर्माण का प्रयास किया जा रहा है । स्टार्क के अनुसार अब अन्तर्राष्ट्रीय कानून का निर्माण अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्थापन प्रक्रिया द्वारा तेजी से शुरू हो गया है । किसी भी स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय कानून को सुदृढ़ मान्यता मिल जानी चाहिए ।

(5) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालयों का निर्णय कानून के आधार पर:

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार राज्यों के मध्य उठे झगड़ों का निर्णय करता है । अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों पंच फैसलों तथा कुछ रीति-रिवाजों के अनुसार कुछ निश्चित सिद्धान्तों का जन्म हो गया है जिन्हें मानना प्रत्येक सभ्य राष्ट्र अपना कर्तव्य समझता है ।

अन्तराष्ट्रीय कानून के स्वरूप (nature) के बारे में उपर्युक्त दोनों विचारधाराओं के तर्कों की विवेचना करने के उपरान्त यह कहना समीचीन प्रतीत होता है कि, अन्तर्राष्ट्रीय कानून वास्तव में कानून है, किन्तु अभी यह उस प्रकार विकसित नहीं हो पाया है, जिस प्रकार सम्प्रभु राज्यों के कानून विकसित हुए हैं । यह अभी भी अपनी शैशवावस्था में है ।

Essay # 5. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के आधार ( Basis of International Law):

अन्तर्राष्ट्रीय विधि का सुदृढ़ आधार राज्यों की परस्पर एक-दूसरे पर अन्त:निर्भरता  है । वैज्ञानिक आविष्कारों, सन्देशवाहक यन्त्रों तथा आवागमन के साधनों के कारण एक-दूसरे से हजारों मील दूर स्थित राज्य एक-दूसरे के इतने निकट आ गए हैं मानो अब उनके बीच कोई दूरी है ही नहीं ।

राज्यों के बीच राजनीतिक आर्थिक व्यावसायिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान आज के विश्व की विशेषता बन गयी है । राज्यों के आपसी आदान-प्रदान को अन्तर्राष्ट्रीय विधि द्वारा नियमित किया जाता है । आज विभिन्न राज्य अन्तर्राष्ट्रीय कानून का पालन करना आवश्यक मानते हैं । राज्य अन्तर्राष्ट्रीय कानून का पालन क्यों करते हैं ?

इस विषय में विधिशास्त्रियों ने दो प्रकार के सिद्धान्तों की रचना की है:

(1) मूल अधिकारों का सिद्धान्त,

(2) सहमति सिद्धान्त ।

(1) मूल अधिकारों का सिद्धान्त (Theory of Fundamental Rights):

इस सिद्धान्त का आधार सामाजिक समझौता सिद्धान्त की प्राकृतिक अवस्था की मान्यता है । इसके अनुसार राज्यों के कुछ मौलिक अधिकार हैं जिनको वह सुरक्षित रखना चाहता है । इन मूल अधिकारों में स्वतन्त्रता समानता एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सुरक्षा हैं । इन अधिकारों के अस्तित्व को बनाए रखने की प्रबल इच्छा के फलस्वरूप ही राष्ट्रों के बीच कानून का जन्म होता है ।

जब राष्ट्रों में पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं तो दूसरी आवश्यकता इन सम्बन्धों को सुनिश्चित एवं सुस्पष्ट नियमों द्वारा नियन्त्रित रखने की होती है । जब एक राज्य को अपने मूल अधिकारों को बनाए रखने की इच्छा हुई तो साथ-साथ में उसका यह कर्तव्य भी हो गया कि वह अन्य राष्ट्रों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करे । अन्तर्राष्ट्रीय अधिकारों और कर्तव्यों का ही दूसरा नाम अन्तर्राष्ट्रीय कानून      है ।

इस सिद्धान्त की आलोचना की जाती है । यह सिद्धान्त व्यक्तियों और राज्यों के सामाजिक सम्बन्ध को गौण समझता है और उनके व्यक्तित्व को अधिक महत्व देता है । यह सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अस्तित्व ही समाप्त कर देता है क्योंकि इसके अन्तर्गत राज्यों की प्रकृति में ही स्वतन्त्रता की कल्पना की जाती है और यह भुला दिया जाता है कि राज्यों का मिलन ऐतिहासिक विकास की अवस्था का परिणाम है ।

(2) सहमति सिद्धान्त (Consent Theory):

सहमति सिद्धान्त के मुख्य समर्थक अस्तित्ववादी (Positivists) हैं । इसके समर्थकों का कथन है कि अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों का जन्म राज्यों द्वारा स्वीकृत नियमों के परिणामस्वरूप हुआ है । समस्त राज्यों ने मिलकर इस बात की सहमति दी कि ये सभी अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का बाधित रूप से पालन करेंगे ।

जब आचरण में किसी नियम को बाध्यकारी रूप से लागू होने वाला समझ लिया जाता है तो वह कानून बन जाता है । औपचारिक सन्धियां और अभिसमय सम्बन्धित पक्षों की स्वीकृति पर आधारित होते हैं । ओपेनहीम के अनुसार भी राज्यों की सामान्य सहमति अन्तर्राष्ट्रीय कानून के विकास का आधार रही है । यह सहमति स्पष्ट (Express) तथा परिलक्षित (Implied) दोनों ही होती है ।

इस सिद्धान्त की भी आलोचना की जाती है । फेनविक के अनुसार सहमति का सिद्धान्त यह बताने में असमर्थ है कि भूतकाल में सरकारों ने किस अनुमान के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय विधि में प्रारम्भ से कार्य करना शुरू किया था ।

स्टार्क के मतानुसार सहमति का सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय कानून के वास्तविक तथ्यों से मेल नहीं खाता । रिवाज सम्बन्धी नियमों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि यह कहना असम्भव है कि राज्यों ने इनका पालन करने की सहमति दी है ।

जब नए राष्ट्र का जन्म होता है तो वह न तो अन्य राष्ट्रों से अन्तर्राष्ट्रीय कानून के नियमों के पालन करने की सहमति लेता है और न उससे ही अन्य राष्ट्र किसी प्रकार की सहमति लेते हैं ।  इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि कभी भी सब राष्ट्रों ने मिलक या एक-एक करके अन्तर्राष्ट्रीय विधि के सिद्धान्तों को मानने की सहमति नहीं प्रदान की । अन्तर्राष्ट्रीय कानून सभी राष्ट्रों पर लागू होता है, चाहे वे इसकी सहमति दें या न दें ।

Essay # 6. अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सच्चा आधार ( True Basis of International Law):

अन्तर्राष्ट्रीय कानून के पालन के उपर्युक्त दोनों आधार दोषयुक्त हैं । कानून के पालन का सही आधार यही हो सकता है कि, राज्यों की यह भावना है कि इन कानूनों का पालन किया जाना चाहिए । कुछ विचारकों का मत है कि, वर्तमान परिस्थितियों में अन्तर्राष्ट्रीय कानून का राष्ट्रीय कानून से भिन्न कोई आधार तलाश करना अतार्किक है ।

जिस प्रकार राज्य का कानून केवल ऐतिहासिक विकास की एक घटना नहीं वरन् मानवीय संस्था का आवश्यक तत्व है उसी प्रकार आधुनिक परिस्थितियों में विभिन्न राज्य सामाजिक प्राणी बन गए हैं और उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय समाज के दूसरे सदस्यों के साथ मिलकर रहना है । व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों का नियमन करने के लिए कानून की जो आवश्यकता है वही राज्यों के आपसी सम्बन्धों का नियमन करने के लिए है ।

अत: अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सही आधार:

(i) इसकी उपयोगिता, व

(ii) राज्यों की भावना ही है ।

फेनविक के अनुसार- “अन्तर्राष्ट्रीय कानून अपने अस्तित्व की आवश्यकता पर आधारित माना जा सकता है । आज की परिस्थितियों में लोग एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रखते हैं और इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय कानून आवश्यक है । इसके अतिरिक्त, अन्तर्राष्ट्रीय कानून के आधारों से सम्बन्धित विचार-विमर्श केवल शैक्षणिक महत्व रखता है ।”

Essay # 7. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के पीछे बाध्यकारी शक्तियां ( Sanctions of International Law):

प्राय: अन्तर्राष्ट्रीय कानून की तुलना राष्ट्रीय कानून से की जाती है । यह माना जाता है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून को लागू करने वाली कोई संस्थागत व्यवस्था नहीं है और राज्य अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णयों को उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून की व्याख्या और क्रियान्वयन हेतु न्यायाधिकारों के पदसोपान का भी अभाव है इसलिए उनके पात्रों को लघु से उच्च न्यायालय तक पहुंचने का मौका ही नहीं मिल पाता है, किन्तु इन सब तथ्यों के बावजूद भी राज्य अन्तर्राष्ट्रीय कानून का पालन करते हैं ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून वर्तमान अवस्था में कतिपय प्रभावशाली शक्तियों (Effective sanctions) की भी व्यवस्था करता है जो इस प्रकार हैं:

(1) कानून के पालन की तरफ झुकाव:

राज्यों की इच्छा कानून के पालन की है । कानून तोड़ने पर उन्हें ज्यादा हानि हो सकती है । ब्रियर्ली के अनुसार, अधिकांश राज्य यह मानते हैं कि कानून अराजकता को दूर करता है और शान्ति-व्यवस्था स्थापित करता है । अत: कानून पालन की इच्छा ही अन्तर्राष्ट्रीय कानून के लिए आधारभूमि तैयार करती है ।

(2) न्यस्त स्वार्थ:

अधिकांश राष्ट्र यह महसूस करते हैं कि, अन्तर्राष्ट्रीय कानून के पालन से उनके राष्ट्रीय हितों की शीघ्र पूर्ति हो सकती है और उनकी विदेश नीति की सफलता भी राष्ट्रीय हितों के परिप्रेक्ष्य में ही सम्भव है । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध आपसी लेन-देन पर आधारित होते हैं अत: कानून के द्वारा राज्य द्वारा जो कुछ अन्य राज्यों से प्राप्त किया गया है उसे बनाए रखने के इच्छुक होते हैं ।

(3) विश्व-जनमत:

विश्व जनमत के भय से भी राज्य कानून को तोड़ना उचित नहीं मानते । राज्य ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहते जिससे विश्व में उनकी गरिमा पर आच आए । संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा का मंच विश्व जनमत की अभिव्यक्ति का प्रमुख साधन है और यदि वहां किसी राज्य की आलोचना होती है तो उसका सर्वत्र प्रभाव पड़ता है ।

(4) सामाजिक सहमति:

यदि अन्तर्राष्ट्रीय कानून को तोड़ा जाता है तो उस कार्य को विश्व समाज की मान्यता प्राप्त नहीं होती है । फिर कानून को तोड़कर शक्ति और युद्ध के तरीकों से राज्य जो रियायतें अन्य राज्यों से प्राप्त करते है उनमें अधिक खर्च और आर्थिक भार राज्य को वहन करना पड़ता है । कानून के प्रयोग से शान्तिपूर्ण वैध तरीकों द्वारा जो सुविधाएं राज्य प्राप्त करते हैं वे पारस्परिक सहमति और मितव्ययी साधनों से अर्जित होती  हैं ।

(5) राजनयिक विरोध:

यदि कोई राज्य कानून के प्रतिकूल आचरण करता है जिससे दूसरे राज्यों को हानि पहुंचती है तो उसके राजनयिक विरोध-पत्र द्वारा अपनी नाराजगी प्रकट करते हैं । कभी-कभी विरोध-पत्रों द्वारा राज्य अपनी गलतियों को सुधार लेते हैं ।

(6) सुरक्षा परिषद:

कभी-कभी राज्य सुरक्षा परिषद में अन्तर्राष्ट्रीय कानून सम्बन्धी विवादों को रखते  हैं । सुरक्षा परिषद् चार्टर के अनुच्छेद 10, 39, 41, 45 और 94(2) के तत्वावधान में कानून तोड़ने वाले राज्य के विरुद्ध कार्यवाही करती है । सुरक्षा परिषद् आर्थिक प्रतिबन्ध लगा सकती है और सेनाएं भी भेज सकती है ।

दक्षिण कोरिया पर उत्तर कोरिया का आक्रमण होने पर सुरक्षा परिषद् के 27 जून तथा 7 जुलाई, 1950 के प्रस्तावों के अनुसार पहली बार दक्षिण कोरिया की रक्षा के लिए 16 देशों के सहयोग से संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सेनाएं भेजी और सैनिक कार्यवाही की ।

(7) युद्ध के कानूनों का उल्लंघन:

वॉन ग्लॉंन के अनुसार चार तरीकों से युद्ध के कानूनों का पालन कराया जाता है, युद्ध के कानून तोड़ने वाले के विरुद्ध प्रचार, युद्ध में अपराध करने वालों को दण्ड का भय, प्रत्यापहार और हानि पहुंचाने पर आर्थिक दृष्टि से क्षतिपूर्ति ।

(8) हस्तक्षेप:

कभी-कभी राज्य वैयक्तिक और सामूहिक रूप से भी हस्तक्षेप करते हैं और उल्लंघनकर्ता को अन्तर्राष्ट्रीय कानून के पालन हेतु बाध्य करते हैं । कैल्सन के अनुसार, अन्तर्राष्ट्रीय विधि माने जाने वाले नियमों के उल्लंघन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय विधि में अनुशास्तियों या दण्डों (Sanctions) का प्रयोग नागरिक विधि की भांति केन्द्रीभूत (संस्था या व्यक्ति के हाथ में) न होकर समस्त राष्ट्र समुदाय में उसी प्रकार विकेन्द्रीकृत है जैसा कि आद्य समुदायों में होता रहा है, वे अन्तर्राष्ट्रीय विधि में अनुशास्तियों (Sanctions) का अभाव नहीं मानते, केवल उनके प्रयोग के ढंग, साधनकर्ता या सीमा में विशेषता बताते हैं ।

Essay # 8. अन्तर्राष्ट्रीय कानून का संहिताकरण ( Codification of International Law):

अन्तर्राष्ट्रीय कानून अस्पष्ट, अनिश्चित एवं प्रथाओं पर आधारित हैं । इनमें सुधार लाने के लिए इनको संहिताबद्ध किया जाना आवश्यक है । संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर की धारा 13 में यह प्रावधान रखा गया है कि महासभा राजनीतिक क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन देने के लिए अध्ययनों की पहल करेगी और अन्तर्राष्ट्रीय कानून के विकास तथा संहिताकरण को प्रोत्साहन देगी ।

निम्नलिखित कारणों से संहिताकरण की मांग बढ़ती जा रही है:

(1) संहिता बन जाने पर अन्तर्राष्ट्रीय विधि का प्रयोग सरल हो जाता है,

(2) संहिताकरण के परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय कानून का एक व्यवस्थित प्रबन्ध प्राप्त हो सकेगा,

(3) संहिता बन जाने पर सन्देहों का निराकरण होगा,

(4) अनेक ऐसे विषयों में नियम बना दिए जाएंगे जिनमें अभी तक कोई नियम नहीं थे ।

ओपेनहीम के अनुसार,  “अन्तर्राष्ट्रीय कानून की अस्पष्टता एवं धीमी गति से आगे बढ़ने की प्रक्रिया के कारण ही संहिताकरण की मांग जोरों से बढ़ रही है ।” विधि के संहिताकरण का अर्थ विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रतिपादित किया गया है । साधारण शब्दों में संहिता संविधियों का एक संकलित रूप है । (A code is consolidation of the statute law) अथवा यह एक संग्रह है जिसमें किसी विशेष विषय सम्बन्धी सभी संविधियों का संग्रह है ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून के संहिताकरण से अभिप्राय हे रीति-रिवाज तथा प्रचलित कानूनों पंचनिर्णयों तथा अन्य प्रकार के नियमों को एकत्र करके एक टीका या पुस्तक का रूप देना । संहिताकरण से कई लाभ हैं । इनसे अन्तर्राष्ट्रीय कानून स्पष्ट, सरल और सुनिश्चित बन जाएगा ।

संहिताकरण के फलस्वरूप सम्बन्धित परिस्थिति के लिए स्पष्ट कानून उपलब्ध हो जाएगा तो अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्य सुगम हो जाएगा । संहिताकरण द्वारा कानूनों में पाए जाने वाले विरोधों को दूर किया जा सकता है और इस प्रकार उनके बीच में उसी तरह एकरूपता (Uniformity) स्थापित की जा सकती है जिस तरह राज्यों के कानूनों में एकरूपता पायी जाती है ।

संहिताबद्ध कानून शीघ्र ही समयानुकूल बन जाता है और उसकी लोकप्रियता बढ़ जाती है । यदि सपूर्ण कानून को लिख दिया जाए तो इसकी गणना सामाजिक विज्ञानों में अग्रणी हो जाएगी । संहिताकरण के मार्ग में अनेक कठिनाइयां हैं, बिखरे हुए कानूनों का संहिताकरण एक दुस्साध्य है ।

संहिताओं के बारे में मत-भिन्नता पायी जाती है । प्रत्येक राज्य अपने हितों के अनुरूप ही संहिताओं का निर्माण करना चाहता है । इस प्रकार मतैक्य के अभाव में संहिताओं का निर्माण दुःसाध्य है । यह भी समस्या है कि संहिताकरण किसके द्वारा किया  जाए ? कानूनवेत्ताओं द्वारा या राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा ?

संहिताकरण की प्रक्रिया के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय कानून की वास्तविकता तथा इसकी स्पष्ट उपस्थिति प्रकट हो रही है । अब यह आशा की जाने लगी है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्थापन की प्रक्रिया कानून की अनेक असंगतियों को मिटाने में समर्थ हो सकेगी ।

आवश्यकता इस बात की है कि, प्रत्येक राज्य संहिताकरण को अपना राष्ट्रीय उद्देश्य घोषित करे तथा उसके लिए भरसक प्रयास करे । संहिताकरण एक बन्धन नहीं है अपितु आपाधापी एवं अराजकता को मिटाने का एक साधन हो सकता है बशर्ते विभिन्न राज्य इसका आदर करें । फिर भी यह कहना समुचित होगा कि इस क्षेत्र में अभी लम्बी मंजिल तय करनी है, अभी तो केवल कार्य प्रारम्भ ही किया गया है ।

Essay # 9. परम्परावादी अन्तर्राष्ट्रीय कानून ( Traditional International Law):

प्रारम्भिक अन्तर्राष्ट्रीय कानून उपनिवेशवादी और साम्राज्यवादी युग की विरासत कहा जा सकता है । कुछ विद्वान इसे पश्चिमी यूरोपीय ईसाई सभ्यता की देन भी कहते हैं । परम्परावादी कानून का ध्येय बड़ी शक्तियों के राष्ट्रीय न्यस्त स्वार्थों की पूर्ति करना तथा उनकी शक्ति को बनाए रखना था ।

वे ऐसे ही कानूनों के निर्माण में रुचि लेते थे ताकि उन्हें गरीब और गुलाम देशों से समस्त प्रकार की रियायतें मिलती रहें और उनके राष्ट्रजनों की सुरक्षा कर सकें । अन्तर्राष्ट्रीय कानून को आधार बनाते हुए बड़ी शक्तियों ने कमजोर देशों के साथ असमान सन्धियां भी कीं और उनका प्रयोग छोटे राष्ट्रों के शोषण हेतु किया गया ।

वस्तुत: परम्परावादी अन्तर्राष्ट्रीय कानून की पांच विशेषताएं देखी जा सकती हैं:

(i) अन्तर्राष्ट्रीय कानून का प्रयोग कमजोर राष्ट्रों के आर्थिक शोषण के रूप में किया गया ।

(ii) कमजोर देशों के साथ अन्तर्राष्ट्रीय कानून की ओट में असमान सन्धियां की गयीं और उन्हें दासता की बेड़ियों में बांधा गया ।

(iii) परम्परावादी कानून द्वारा शक्ति और युद्ध के प्रयोग को उचित बताया गया ।

(iv) परम्परावादी कानून द्वारा इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया गया कि महाशक्तियां छोटे और कमजोर राष्ट्रों के आन्तरिक मामलों में जो हस्तक्षेप करती हैं, वह कानूनसम्मत नहीं है ।

(v) इसके द्वारा उपनिवेशवाद और असमान सन्धियों को स्वीकृति प्रदान की गयी ।

Essay # 10. अन्तर्राष्ट्रीय कानून में नयी प्रवृत्तियां ( New Trends in International Law):

परिवर्तन और विकास जीवन का कानून है और अन्तर्राष्ट्रीय कानून भी एक जीवन्त कानून है । वैज्ञानिक और तकनीकी परिवर्तनों के प्रभाव से अन्तर्राष्ट्रीय कानून भी कैसे अछूता रह सकता है ? वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय कानून के विभिन्न अंगों में एक नया रूप नयी दिशा का उद्‌भव हो रहा है ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून के ढांचे मे कतिपय नूतन परिवर्तन इस प्रकार हुए हैं:

(1) अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सच्चा अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप:

द्वितीय महायुद्ध से पूर्व अन्तर्राष्ट्रीय कानून एक सीमित कानून था । इसे ‘यूरोपीय राज्यों के क्लब’ (Small Club of European Powers) का कानून कहा जाता था, किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त एशिया अफ्रीका तथा लैटिन अमरीका के अनेक राज्यों को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई । ये राज्य विश्व-संस्था के सदस्य बने विश्व के सामूहिक कार्यों में हिस्सेदार बने । अत: अन्तर्राष्ट्रीय कानून का क्षेत्र व्यापक हुआ  है ।

(2) आर्थिक एवं सामाजिक गतिविधियों का संचालन:

राज्यों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ उनमें आर्थिक, सांस्कृतिक वैज्ञानिक तकनीकी ज्ञान का आदान-प्रदान एवं सहयोग बढ़ रहा है । पहले अन्तर्राष्ट्रीय कानून केवल राजनीतिक विषयों का ही निरूपण करता था किन्तु अब उसका क्षेत्र आर्थिक एवं आपसी सहयोग की सामाजिक गतिविधियों का नियमन हो गया ।

( 3) शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अन्तर्राष्ट्रीय कानून:

आज दुनिया विश्व विचारधारा (Ideology) के आधार पर दो गुटों में विभक्त है । दोनों ही गुटों की अलग-अलग विचारधारा एवं दृष्टिकोण हैं । यदि विभिन्न राष्ट्र शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति को न मानकर एक-दूसरे को आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सहयोग न प्रदान करें तो किसी प्रकार का अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार सम्भव न होगा और अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का पालन न हो सकेगा ।

इसका पालन तभी हो सकता है जब सब राष्ट्र अपने से विरोधी विचारधाराओं वाले राष्ट्रों का अस्तित्व स्वीकार करें अर्थात् शान्तिपूर्ण-अस्तित्व की नीति को अपना लें । अत: आज सभी देश इसी भावना से अन्तर्राष्ट्रीय कानून को मान्यता दे रहे है ।

(4) क्षेत्रीय सहयोग का सीमित अन्तर्राष्ट्रीय कानून:

आपसी हितों को पूरा करने के लिए राज्यों के बीच अनेक क्षेत्रीय सब्धियां एवं समझौते होते रहते हैं । इससे सीमित अन्तर्राष्ट्रीय कानून का विकास होता है, जिसका सम्बन्ध विशेष प्रकार के आपसी कार्यों से ही होता है ।

(5) संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना से होने वाले परिवर्तन:

डॉ नगेन्द्रसिंह के अनुसार, संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना के फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय कानून में अनेक नए परिवर्तन हुए हैं ।

उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

(i) इससे साम्राज्यवाद का अन्त हुआ और विश्व परिवार के सदस्यों में वृद्धि हुई ।

(ii) महासभा की शक्ति में वृद्धि हुई है और विश्व-संस्था का लोकतन्त्रीकरण हुआ है ।

(iii) व्यवसाय एवं वाणिज्य हितों के संचालन के नए-नए कानूनों का प्रादुर्भाव हो रहा है ।

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय कानून के पीछे प्रभावशाली शक्ति (Effective Sanctions) का प्रयोग भी हुआ है, जैसे कोरिया संकट के समय, रोडेशिया व दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए गए, आदि ।

(v) वैज्ञानिक आविष्कारों के परिणामस्वरूप विध्वंसकारी शक्तियां बढ़ रही हैं । आणविक परीक्षण बन्द (Test Ban Treaty), तथा अणु अप्रसार सन्धि (Non-Proliferation Treaty), 1967 द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के प्रति शक्तिशाली राज्यों में भी अन्तर के भाव जाग्रत हो रहे हैं ।

(6) अन्तर्राष्ट्रीय विकास का कानून:

विकास शान्ति का नया नाम भी है और अन्तर्राष्ट्रीय कानून को आज गरीब देशों के विकास द्वारा विश्व की स्थिरता एवं स्थायी शान्ति सम्भावनाएं खोजनी हैं । इसके लिए आवश्यक है कि विकसित देश इस दिशा में पहल करें और अपने अस्थायी हितों का त्याग करें । उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय समाज के लिए नए लक्ष्यों व मानकों की प्राप्ति की दिशा में सहायता व सहयोग देना चाहिए ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून को भी अन्तर्राष्ट्रीय समाज के मतैक्य पर आधारित उन अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वाह करना चाहिए जो कि इसके सदस्यों के लिए हितकारी हैं । संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र में निहित कर्तव्य को अधिक सार्थकता देते हुए उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय कानून द्वारा मान्यता मिलनी चाहिए ।

(7) अन्तर्राष्ट्रीय कानून का नया अभिमुखीकरण:

परम्परावादी कानून को अनेक प्रकार से चुनौतियां दी गयी हैं । राज्यों के उत्तरदायित्वों से सम्बन्धित समस्त कानूनों तथा विदेशों में बसे नागरिकों से सम्बन्धित राजनयिक सुरक्षा के समस्त नियमों को चुनौती दी गयी है और उन्हें प्राचीन घोषित कर दिया गया है ।

विदेशी सम्पति के स्वामित्व और देय क्षतिपूर्ति की राशि सम्बन्धी पुराने कानूनों को परिवर्तित किया जा रहा है । आज अभिग्रहण कानूनों के उत्तराधिकार को चुनौती दी गयी है और प्राकृतिक सम्पदा एवं स्रोतों पर प्रभुसत्ता के अधिकार पर बल दिया जाता है ।

(8) अन्तर्राष्ट्रीय कानून के निर्माण में नयी प्रवृत्ति:

अन्तर्राष्ट्रीय कानून के निर्माण के सम्बन्ध में पुराना मत यह था कि यह खास तौर से राज्यों द्वारा बनाया जाता हे । इसका आधार प्रथाएं और परम्पराएं हैं । आज नए अन्तर्राष्ट्रीय संगठन एवं इससे बनायी गयी विभिन्न संस्थाओं के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय कानून के नियमों का निर्माण बड़ी तेजी से हो रहा है । आज तो हम नए अन्तर्राष्ट्रीय कानून के निर्माण के लिए किन्हीं अन्य स्रोतों की अपेक्षा संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय और कानूनवेताओं की ओर अधिक देखा करेंगे ।

(9) अन्तर्राष्ट्रीय कानून के विषय-राज्य और व्यक्ति:

पुराना अन्तर्राष्ट्रीय कानून राज्यों का कानून था । अब यह राज्यों के साथ-साथ व्यक्तियों पर भी लागू होने लगा है । न्यूरेम्बर्ग जांच तथा टोक्यो जांच ने इस तथ्य की स्थापना कर दी है ।

पारम्परिक अन्तर्राष्ट्रीय कानून का स्वरूप बदलता जा रहा है । अमरीका और रूस के मधुर सम्बन्धों के परिप्रेक्ष्य में अन्तर्राष्ट्रीय कानून के विकास के नए आयाम उजागर हुए हैं ।

Essay # 11. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के कमजोरियां (Weaknesses of International Law):

ओपेनहीम के अनुसार- ‘अन्तर्राष्ट्रीय कानून एक कमजोर कानून है ।‘ इसमें कई दोष हैं और अभी तक यह राष्ट्रीय कानूनों की तुलना में अपूर्ण है ।

इसकी कमजोरियां निम्न प्रकार हैं :

(1) व्यवस्थापन सम्बन्धी कमजोरियां:

अन्तर्राष्ट्रीय कानून का निर्माण करने वाली अथवा संशोधन करने वाली व्यवस्थापिका का अभाव है । जिस प्रकार राज्यों में संसद के द्वारा कानूनों का निर्माण किया जाता है उसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में इस प्रकार की मान्य संसद का अभाव है । संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा को कानून निर्मात्री संस्था की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता  है ।

(2) कार्यपालिका सम्बन्धी कमजोरियां:

अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों को कार्यान्वित करने वाले निकाय का अभाव है । अन्तर्राष्ट्रीय नियमों को तोड़ने वाले राज्यों को दण्ड देने वाले निकाय के अभाव में यह कानून राज्यों की इच्छा पर निर्भर हो जाता है । शक्तिशाली राज्य कानूनों की अवहेलना करते रहते हैं परन्तु उनको रोकने वाला कोई नहीं है । मुसोलिनी ने अबीसीनिया पर आक्रमण किया अमरीका ने वियतनाम युद्ध में कानूनों को तोड़ा, चीन ने वियतनाम पर आक्रमण किया, किन्तु कोई कहने-सुनने वाला नहीं था ।

(3) न्यायपालिका सम्बन्धी दोष:

राज्यों के बीच विवादों का निपटारा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय अधिग्रहण न्यायालय तथा पंच निर्णयों द्वारा होता है, किन्तु यदि ये निर्णय राज्यों के हितों के प्रतिकूल हैं तो वे उनका पालन नहीं करते हे । कानून भंग करने वालों को स्पष्ट दण्ड मिल पाना कठिन हो जाता है । दक्षिणी अफ्रीका ने अन्तर्राष्ट्रीय कानून को कई बार दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका के विवाद भारतीय एवं काले लोगों के प्रश्नों को लेकर तोड़ा है किन्तु उसे कोई दण्ड नहीं मिल पाया है ।

(4) राज्यों की सम्प्रभुता एवं अतिवादी राष्ट्रीयता:

कोई भी राज्य अपनी सम्पभुता को खोना नहीं चाहता । राष्ट्रीयता की अन्धभावना के परिणामस्वरूप वे अन्तर्राष्ट्रीय कानून की चिन्ता ही नहीं करते । इजरायल ने अरबों पर आक्रमण किया चीन ने भारत पर आक्रमण किया-इन सबका कारण उग्र राष्ट्रीयता ही है ।

(5) घरेलू मामलों का संयुक्त राष्ट्र चार्टर में प्रावधान:

संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुसार राज्यों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करना अपवर्जित है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून को लागू करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं और कानून का उल्लंघन मूक दर्शक की भांति देखती रहती हैं ।

(6) अन्तर्राष्ट्रीय कानून की अस्पष्टता तथा अनिश्चितता:

अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अधिकांश नियम अभी तक सुस्पष्ट नहीं हो पाए हैं । अभी तक इसका संकलन एक समस्या बनी हुई है । इसका आधार आज भी आपसी समझौते  हैं ।

ब्रियर्ली ने ठीक ही लिखा है, ”वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय विधि की दो बड़ी कमजोरियां हैं । इस कानून को बनाने और लागू करने वाली संस्थाएं बड़ी आरम्भिक दशा में हैं और इसका क्षेत्र बहुत संकुचित है । इस कानून का निर्माण करने वाली कोई ऐसी संस्था नहीं है जो इस कानून को अन्तर्राष्ट्रीय समाज की नयी आवश्यकताओं के अनुसार ढाल सके ।”

Essay # 12. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के सुधार के सुझाव ( Suggestions for Improvement):

अन्तर्राष्ट्रीय कानून के उपर्युक्त दोष उसके महत्व एवं उपयोगिता को घटा देते हैं ।

इन दोषों को हटाने और इस कानून को संवारने के लिए विचारकों ने अनेक सुझाव प्रस्तुत किए हैं, जो इस प्रकार हैं:

(i) संहिताकरण:

अन्तर्राष्ट्रीय कानून को संहिताकरण द्वारा स्पष्ट तथा निश्चित किया जाना चाहिए । संहिताओं को विभिन्न राज्यों द्वारा स्पष्ट स्वीकृति एवं मान्यता मिलनी चाहिए । यदि संहिताएं राज्यों की सहमति पर आधारित की जाएंगी तो इनके सम्मान में वृद्धि होगी ।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय कानून या प्रचार:

विभिन्न छोटे-बड़े राज्यों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय कानून के महत्व एवं उपयोगिता को प्रचार द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिए ।

(iii) कानून तोड़ने वालों को पर्याप्त दण्ड:

अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने वाले राज्यों को किसी न किसी प्रकार का दण्ड अवश्य मिलना चाहिए । उसकी अन्तर्राष्ट्रीय निन्दा की जानी चाहिए तथा सुरक्षा परिषद अथवा सामूहिक सुरक्षा के प्रावधानों के अन्तर्गत ऐसे राज्यों पर आवश्यक प्रतिबन्ध लगाने की व्यवस्था की जानी चाहिए ।

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार में वृद्धि:

अन्तर्राष्ट्रीय कानून से सम्बन्धित विवादों का निपटारा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के द्वारा किया जाना चाहिए एवं इसके निर्णय बाध्यकारी माने जाने चाहिए । वर्तमान समय में राज्य अपने जो मामले न्यायालय के सामने स्वेच्छापूर्वक लाते रहे हैं, इसमें न्यायालयों को बड़ी सफलता मिली है । यदि राज्यों के विवादों का निपटारा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के द्वारा आवश्यक रूप से किया जाए तो समस्याओं का शान्तिपूर्ण निपटारा ढूंढा जा सकता है । इससे अन्तर्राष्ट्रीय कानून को सुदृढ़ आधार प्राप्त होंगे ।

(v ) अन्तर्राष्ट्रीय कानून के क्षेत्र का विस्तार:

वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय कानून केवल राज्य पर ही लागू होता है । इसे व्यक्तियों पर लागू किया जाए तथा घरेलू मामलों में भी लागू किया जाए । यदि राज्य के कार्यो से किसी व्यक्ति को हानि पहुंचती है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपने हक की पेशकश करने का अधिकार होना चाहिए ।

(vi) राज्यों की सम्प्रभुता के साथ मेल:

वर्तमान युग अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का युग है । विभिन्न राज्यों को उग्र सम्पभुता के विचार को त्यागना होगा । राज्यों की सरकारों को विश्वबन्दुत्व एवं शान्ति के लिए अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय कानून की सत्ता स्वीकार कर लेनी चाहिए । इससे राज्यों की सम्पभुता का अन्तर्राष्ट्रीय कानून के साथ-साथ चलन सम्भव हो जाएगा ।

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वकील पर निबंध | Essay On Lawyer In Hindi

नमस्कार दोस्तों आज हम Essay On Lawyer In Hindi में वकील पर निबंध लेकर आए हैं. Short Essay Advocate In Hindi में हम वकील बेरिस्टर व एडवोकेट के बारे में पढेगे, जिन्हें हिंदी में अधिवक्ता कहा जाता हैं.

आपसी विवादों के निप टान और न्यायालय में कानूनी सुनवाई का कार्य वकील का होता हैं. इस निबंध, स्पीच भाषण अनुच्छेद पैराग्राफ में हम वकील के कार्य और मेरा लक्ष्य वकील बनना पर शोर्ट निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं.

Essay On Lawyer In Hindi

हम उस व्यक्ति को वकील के रूप में जानते है जो कानूनों मुकदमों में हमारा पक्ष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता हैं. काले कोट एवं सफेद कमीज पेंट की विशिष्ट पोशाक इनकी विशेषता हैं.

अधिवक्ता, अभिभाषक या वकील ऐडवोकेट आदि रूप में इन्हें जाना जाता हैं. वकील को न्यायालय वाद प्रतिपादन तथा दलील रखने का कानूनी अधिकार हैं.

कानून में विशेष्यज्ञता की डिग्री प्राप्त व्यक्ति जिसे कानून का पूर्ण ज्ञान होने के साथ साथ अपनी बात को प्रभावी ढ़ंग से कहने की क्षमता, ज्ञान, कौशल, या भाषा-शक्ति भी जरुरी होती हैं.

आम बोलचाल की भाषा में एडवोकेट को हम लॉयर और बैरिस्टर मान लेते हैं. मगर इन शब्दों के खेल में उलझीये मत. हिंदी में जिसे हम अधिवक्ता यानी किसी तरफ से बोलने वाला कहते है उसे अंग्रेजी में एडवोकेट कहते हैं.

लॉयर वह व्यक्ति कहलाता हैं जिसके पास कानून की डिग्री एलएलबी हो. प्रत्येक लॉयर एडवोकेट नहीं होता है उन्हें यह उपाधि लेने के लिए बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा आयोजित एक परीक्षा को उतीर्ण करना पड़ता हैं.

अब हम वकील और बैरिस्टर के अंतर को समझते हैं. ये दोनों ही कानून की डिग्री प्राप्त व्यक्ति होते हैं जबकि अंतर यह है कि जो स्वदेश में रहकर कानून की डिग्री करता है वह लॉयर या वकील कहलाता हैं

जबकि जो इंग्लैंड आदि देशों से वकालत की पढाई करके आते है उन्हें बैरिस्टर कहा जाता हैं. यह पुरानी रुढ़िवादी परम्परा भर हैं हैसियत के लिहाज से इनमें कोई फर्क नहीं हैं.

देशभर हर साल हजारों स्टूडेंट्स कानून में स्नातक करते हैं. विभिन्न न्यायिक विषयों में गहन अध्ययन और अभ्यास के बाद ही एक वकील बना जा सकता हैं. यह पेशा अधिक ज्ञान की आवश्यकता एवं चुनौतियों से भरा हैं.

दशकों पूर्व तक इस पेशे को धनाढ्य वर्ग से जुड़े लोग ही अपनाते थे. वर्तमान में इसका सामान्यीकरण हो चूका हैं. बदलते वैश्विक परिदृश्य में वकालत पेशा सेवा के व्यवसाय के रूप में उभर रहा हैं.

आपने गौर से किसी व्यक्ति को कोर्ट से निकलते देखा हो तो वह हमेशा काला कोट पहने नजर आएगा, वकीलों की विशेष ड्रेस से जुडी यह परम्परा इंग्लैंड से शुरू हुई.

कहा जाता है कि 1865 में जब इंग्लैड के शाही परिवार ने किंग्‍स चार्ल्‍स द्वितीय की मृत्यु हुई तो राजकीय आदेश जारी किया गया कि न्यायालय में वकील और जज सभी काला कोट पहनेगे.

ब्रिटेन से शुरू हुई  परम्परा आज दुनियाभर में सभी वकील अपनाते हैं. हमारे देश में 1961 के तहत वकीलों के लिए ब्लैक कोट अनिवार्य कर दिया गया था, यह उनके अनुशासन व आत्मविश्वास का प्रतीक माना जाता हैं.

हर व्यक्ति जीवन में कुछ न कुछ बनकर सेवा कार्य करना चाहता है. मेरा भी सपना है कि मैं एक दिन वकील बनकर शोषित पीड़ित समाज की मदद कर सकू. आज के संसार में हर व्यक्ति बिका हुआ हैं.

कानून व न्याय का क्षेत्र भी अछूता नहीं हैं. हमारे सिस्टम में वही पीसता है जो गरीब होता है. एक वकील के रूप में पूर्ण ईमानदारी और सेवा के भाव से काम करते हुए सिस्टम तथा धनी लोगों द्वारा सताए गरीब लोगों को न्याय दिलाने में मुझे सबसे अधिक ख़ुशी प्राप्त होगी.

देरी से मिला न्याय अन्याय के बराबर ही होता हैं. हमारी न्याय व्यवस्था की यही सच्चाई है दशकों तक मुकदमों को वकील चाहकर लम्बा खीचते हैं. अपराधी कई बार इस समय का दुरूपयोग कर सबूतों को मिटाकर बरी भी हो जाते हैं.

यदि मैं वकील बन पाया तो न्यायालय द्वारा लोगों को जल्दी न्याय दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करुगा. अधिकतर न्यायालय में आने वाले मामले छोटे मोटे परिवारिक झगड़े होते हैं. एक वकील के रूप में मैं सामाजिक कार्यकर्ता बनकर आपसी सुलह के लिए पहल कर सकता हूँ.

मैं एक वकील बनकर यह चाहूँगा कि लोग न्याय में विशवास करे तथा इसे बिकाऊ न समझे. हमें आमजन का भरोसा अपने न्यायालयों के लिए जगाना हैं. यह तभी हो सकता है जब न्यायिक तंत्र में धन तथा ताकत के वर्चस्व को तोडा जाए.

आम लोगों को सामर्थ्यवान बनाया जाए जिससे वे अपराधियों के खिलाफ बेझिझक गवाही देने के लिए आगे आए.

एक वकील के रूप में मैं हमारी कानून व्यवस्था को धन के बल छूटने वाले अपराधियों पर काबू पाने में हर सम्भव मदद करने के लिए तैयार रहूँगा.

  • अधिवक्ता, वकील पर सुविचार
  • LLB क्या होता है, वकील बनने के लिए क्या करे
  • न्याय पर निबंध

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हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) - छात्र जीवन में विभिन्न विषयों पर हिंदी निबंध (essay in hindi) लिखने की आवश्यकता होती है। हिंदी निबंध लेखन (essay writing in hindi) के कई फायदे हैं। हिंदी निबंध से किसी विषय से जुड़ी जानकारी को व्यवस्थित रूप देना आ जाता है तथा विचारों को अभिव्यक्त करने का कौशल विकसित होता है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने की गतिविधि से इन विषयों पर छात्रों के ज्ञान के दायरे का विस्तार होता है जो कि शिक्षा के अहम उद्देश्यों में से एक है। हिंदी में निबंध या लेख लिखने से विषय के बारे में समालोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है। साथ ही अच्छा हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने पर अंक भी अच्छे प्राप्त होते हैं। इसके अलावा हिंदी निबंध (hindi nibandh) किसी विषय से जुड़े आपके पूर्वाग्रहों को दूर कर सटीक जानकारी प्रदान करते हैं जिससे अज्ञानता की वजह से हम लोगों के सामने शर्मिंदा होने से बच जाते हैं।

आइए सबसे पहले जानते हैं कि हिंदी में निबंध की परिभाषा (definition of essay) क्या होती है?

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हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi) - हिंदी निबंध लेखन, हिंदी निबंध 100, 200, 300, 500 शब्दों में

कुछ सामान्य विषयों (common topics) पर जानकारी जुटाने में छात्रों की सहायता करने के उद्देश्य से हमने हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) और भाषणों के रूप में कई लेख तैयार किए हैं। स्कूली छात्रों (कक्षा 1 से 12 तक) एवं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हिंदी निबंध (hindi nibandh), भाषण तथा कविता (useful essays, speeches and poems) से उनको बहुत मदद मिलेगी तथा उनके ज्ञान के दायरे में विस्तार होगा। ऐसे में यदि कभी परीक्षा में इससे संबंधित निबंध आ जाए या भाषण देना होगा, तो छात्र उन परिस्थितियों / प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन कर पाएँगे।

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छात्र जीवन प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के सबसे सुनहरे समय में से एक होता है जिसमें उसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। वास्तव में जीवन की आपाधापी और चिंताओं से परे मस्ती से भरा छात्र जीवन ज्ञान अर्जित करने को समर्पित होता है। छात्र जीवन में अर्जित ज्ञान भावी जीवन तथा करियर के लिए सशक्त आधार तैयार करने का काम करता है। नींव जितनी अच्छी और मजबूत होगी उस पर तैयार होने वाला भवन भी उतना ही मजबूत होगा और जीवन उतना ही सुखद और चिंतारहित होगा। इसे देखते हुए स्कूलों में शिक्षक छात्रों को विषयों से संबंधित अकादमिक ज्ञान से लैस करने के साथ ही विभिन्न प्रकार की पाठ्येतर गतिविधियों के जरिए उनके ज्ञान के दायरे का विस्तार करने का प्रयास करते हैं। इन पाठ्येतर गतिविधियों में समय-समय पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) या लेख और भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन करना शामिल है।

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निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति ही निबंध है।

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आइए अब जानते हैं कि निबंध के कितने अंग होते हैं और इन्हें किस प्रकार प्रभावपूर्ण ढंग से लिखकर आकर्षक बनाया जा सकता है। किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) के मोटे तौर पर तीन भाग होते हैं। ये हैं - प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार।

प्रस्तावना (भूमिका)- हिंदी निबंध के इस हिस्से में विषय से पाठकों का परिचय कराया जाता है। निबंध की भूमिका या प्रस्तावना, इसका बेहद अहम हिस्सा होती है। जितनी अच्छी भूमिका होगी पाठकों की रुचि भी निबंध में उतनी ही अधिक होगी। प्रस्तावना छोटी और सटीक होनी चाहिए ताकि पाठक संपूर्ण हिंदी लेख (hindi me lekh) पढ़ने को प्रेरित हों और जुड़ाव बना सकें।

विषय विस्तार- निबंध का यह मुख्य भाग होता है जिसमें विषय के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है। इसमें इसके सभी संभव पहलुओं की जानकारी दी जाती है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) के इस हिस्से में अपने विचारों को सिलसिलेवार ढंग से लिखकर अभिव्यक्त करने की खूबी का प्रदर्शन करना होता है।

उपसंहार- निबंध का यह अंतिम भाग होता है, इसमें हिंदी निबंध (hindi nibandh) के विषय पर अपने विचारों का सार रखते हुए पाठक के सामने निष्कर्ष रखा जाता है।

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अंत में यह जानना भी अत्यधिक आवश्यक है कि निबंध कितने प्रकार के होते हैं। मोटे तौर निबंध को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जाता है-

वर्णनात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है। इसमें त्योहार, यात्रा, आयोजन आदि पर लेखन शामिल है। इनमें घटनाओं का एक क्रम होता है और इस तरह के निबंध लिखने आसान होते हैं।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है। अक्सर ये किसी समस्या – सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत- पर लिखे जाते हैं। विज्ञान वरदान या अभिशाप, राष्ट्रीय एकता की समस्या, बेरोजगारी की समस्या आदि ऐसे विषय हो सकते हैं। इन हिंदी निबंधों (hindi nibandh) में विषय के अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार व्यक्त किया जाता है और समस्या को दूर करने के उपाय भी सुझाए जाते हैं।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है। इनमें कल्पनाशीलता के लिए अधिक छूट होती है। भाव की प्रधानता के कारण इन निबंधों में लेखक की आत्मीयता झलकती है। मेरा प्रिय मित्र, यदि मैं डॉक्टर होता जैसे विषय इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

इसके साथ ही विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

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जिस प्रकार बातचीत को आकर्षक और प्रभावी बनाने के लिए लोग मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविताओं आदि की मदद लेते हैं, ठीक उसी तरह निबंध को भी प्रभावी बनाने के लिए इनकी सहायता ली जानी चाहिए। उदाहरण के लिए मित्रता पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखते समय तुलसीदास जी की इन पंक्तियों की मदद ले सकते हैं -

जे न मित्र दुख होंहि दुखारी, तिन्हिं बिलोकत पातक भारी।

यानि कि जो व्यक्ति मित्र के दुख से दुखी नहीं होता है, उनको देखने से बड़ा पाप होता है।

हिंदी या मातृभाषा पर निबंध लिखते समय भारतेंदु हरिश्चंद्र की पंक्तियों का प्रयोग करने से चार चाँद लग जाएगा-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

प्रासंगिकता और अपने विवेक के अनुसार लेखक निबंधों में ऐसी सामग्री का उपयोग निबंध को प्रभावी बनाने के लिए कर सकते हैं। इनका भंडार तैयार करने के लिए जब कभी कोई पंक्ति या उद्धरण अच्छा लगे, तो एकत्रित करते रहें और समय-समय पर इनको दोहराते रहें।

उपरोक्त सभी प्रारूपों का उपयोग कर छात्रों के लिए हमने निम्नलिखित हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) तैयार किए हैं -

दुनिया के कई देशों में मजदूरों और श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य से हर वर्ष 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। इसे लेबर डे, श्रमिक दिवस या मई डे भी कहा जाता है। श्रम दिवस एक विशेष दिन है जो मजदूरों और श्रम वर्ग को समर्पित है। यह मजदूरों की कड़ी मेहनत को सम्मानित करने का दिन है। ज्यादातर देशों में इसे 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रम दिवस का इतिहास और उत्पत्ति अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। विद्यार्थियों को कक्षा में मजदूर दिवस पर निबंध लिखने, मजदूर दिवस पर भाषण देने के लिए कहा जाता है। इस निबंध की मदद से विद्यार्थी अपनी तैयारी कर सकते हैं।

सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के नेता थे और बाद में उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। इसके माध्यम से भारत में सभी ब्रिटिश विरोधी ताकतों को एकजुट करने की पहल की थी। बोस ब्रिटिश सरकार के मुखर आलोचक थे और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए और अधिक आक्रामक कार्रवाई की वकालत करते थे। विद्यार्थियों को अक्सर कक्षा और परीक्षा में सुभाष चंद्र बोस जयंती (subhash chandra bose jayanti) या सुभाष चंद्र बोस पर हिंदी में निबंध (subhash chandra bose essay in hindi) लिखने को कहा जाता है। यहां सुभाष चंद्र बोस पर 100, 200 और 500 शब्दों का निबंध दिया गया है।

भारत में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस के सम्मान में स्कूलों में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। गणतंत्र दिवस के दिन सभी स्कूलों, सरकारी व गैर सरकारी दफ्तरों में झंडोत्तोलन होता है। राष्ट्रगान गाया जाता है। मिठाईयां बांटी जाती है और अवकाश रहता है। छात्रों और बच्चों के लिए 100, 200 और 500 शब्दों में गणतंत्र दिवस पर निबंध पढ़ें।

26 जनवरी, 1950 को हमारे देश का संविधान लागू किया गया, इसमें भारत को गणतांत्रिक व्यवस्था वाला देश बनाने की राह तैयार की गई। गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाषण (रिपब्लिक डे स्पीच) देने के लिए हिंदी भाषण की उपयुक्त सामग्री (Republic Day Speech Ideas) की यदि आपको भी तलाश है तो समझ लीजिए कि गणतंत्र दिवस पर भाषण (Republic Day speech in Hindi) की आपकी तलाश यहां खत्म होती है। इस राष्ट्रीय पर्व के बारे में विद्यार्थियों को जागरूक बनाने और उनके ज्ञान को परखने के लिए गणतत्र दिवस पर निबंध (Republic day essay) लिखने का प्रश्न भी परीक्षाओं में पूछा जाता है। इस लेख में दी गई जानकारी की मदद से Gantantra Diwas par nibandh लिखने में भी मदद मिलेगी। Gantantra Diwas par lekh bhashan तैयार करने में इस लेख में दी गई जानकारी की मदद लें और अच्छा प्रदर्शन करें।

मोबाइल फ़ोन को सेल्युलर फ़ोन भी कहा जाता है। मोबाइल आज आधुनिक प्रौद्योगिकी का एक अहम हिस्सा है जिसने दुनिया को एक साथ लाकर हमारे जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। मोबाइल में इंटरनेट के इस्तेमाल ने कई कामों को बेहद आसान कर दिया है। मनोरंजन, संचार के साथ रोजमर्रा के कामों में भी इसकी अहम भूमिका हो गई है। इस निबंध में मोबाइल फोन के बारे में बताया गया है।

भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने जनभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया। इस दिन की याद में हर वर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। वहीं हिंदी भाषा को सम्मान देने के लिए 10 जनवरी को प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस (World Hindi Diwas) मनाया जाता है। इस लेख में राष्ट्रीय हिंदी दिवस (14 सितंबर) और विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी) के बारे में चर्चा की गई है।

मकर संक्रांति का त्योहार यूपी, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित देश के विभिन्न राज्यों में 14 जनवरी को मनाया जाता है। इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान के बाद पूजा करके दान करते हैं। इस दिन खिचड़ी, तिल-गुड, चिउड़ा-दही खाने का रिवाज है। प्रयागराज में इस दिन से कुंभ मेला आरंभ होता है। इस लेख में मकर संक्रांति के बारे में बताया गया है।

पर्यावरण से संबंधित मुद्दों की चर्चा करते समय ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा अक्सर होती है। ग्लोबल वार्मिंग का संबंध वैश्विक तापमान में वृद्धि से है। इसके अनेक कारण हैं। इनमें वनों का लगातार कम होना और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन प्रमुख है। वनों का विस्तार करके और ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण करके हम ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के समाधान की दिशा में कदम उठा सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध- कारण और समाधान में इस विषय पर चर्चा की गई है।

भारत में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। समाचारों में अक्सर भ्रष्टाचार से जुड़े मामले प्रकाश में आते रहते हैं। सरकार ने भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए कई उपाय किए हैं। अलग-अलग एजेंसियां भ्रष्टाचार करने वालों पर कार्रवाई करती रहती हैं। फिर भी आम जनता को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। हालांकि डिजीटल इंडिया की पहल के बाद कई मामलों में पारदर्शिता आई है। लेकिन भ्रष्टाचार के मामले कम हुए है, समाप्त नहीं हुए हैं। भ्रष्टाचार पर निबंध के माध्यम से आपको इस विषय पर सभी पहलुओं की जानकारी मिलेगी।

समय-समय पर ईश्वरीय शक्ति का एहसास कराने के लिए संत-महापुरुषों का जन्म होता रहा है। गुरु नानक भी ऐसे ही विभूति थे। उन्होंने अपने कार्यों से लोगों को चमत्कृत कर दिया। गुरु नानक की तर्कसम्मत बातों से आम जनमानस उनका मुरीद हो गया। उन्होंने दुनिया को मानवता, प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। भारत, पाकिस्तान, अरब और अन्य जगहों पर वर्षों तक यात्रा की और लोगों को उपदेश दिए। गुरु नानक जयंती पर निबंध से आपको उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी मिलेगी।

कुत्ता हमारे आसपास रहने वाला जानवर है। सड़कों पर, गलियों में कहीं भी कुत्ते घूमते हुए दिख जाते हैं। शौक से लोग कुत्तों को पालते भी हैं। क्योंकि वे घर की रखवाली में सहायक होते हैं। बच्चों को अक्सर परीक्षा में मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने को कहा जाता है। यह लेख बच्चों को मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने में सहायक होगा।

स्वामी विवेकानंद जी हमारे देश का गौरव हैं। विश्व-पटल पर वास्तविक भारत को उजागर करने का कार्य सबसे पहले किसी ने किया तो वें स्वामी विवेकानंद जी ही थे। उन्होंने ही विश्व को भारतीय मानसिकता, विचार, धर्म, और प्रवृति से परिचित करवाया। स्वामी विवेकानंद जी के बारे में जानने के लिए आपको इस लेख को पढ़ना चाहिए। यह लेख निश्चित रूप से आपके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन करेगा।

हम सभी ने "महिला सशक्तिकरण" या नारी सशक्तिकरण के बारे में सुना होगा। "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) समाज में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ बनाने और सभी लैंगिक असमानताओं को कम करने के लिए किए गए कार्यों को संदर्भित करता है। व्यापक अर्थ में, यह विभिन्न नीतिगत उपायों को लागू करके महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण से संबंधित है। प्रत्येक बालिका की स्कूल में उपस्थिति सुनिश्चित करना और उनकी शिक्षा को अनिवार्य बनाना, महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस लेख में "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) पर कुछ सैंपल निबंध दिए गए हैं, जो निश्चित रूप से सभी के लिए सहायक होंगे।

भगत सिंह एक युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ते हुए बहुत कम उम्र में ही अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। देश के लिए उनकी भक्ति निर्विवाद है। शहीद भगत सिंह महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गए। उन्होंने न केवल भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि वह इसे हासिल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने को भी तैयार थे। उनके निधन से पूरे देश में देशभक्ति की भावना प्रबल हो गई। उनके समर्थकों द्वारा उन्हें शहीद के रूप में सम्मानित किया गया था। वह हमेशा हमारे बीच शहीद भगत सिंह के नाम से ही जाने जाएंगे। भगत सिंह के जीवन परिचय के लिए अक्सर छोटी कक्षा के छात्रों को भगत सिंह पर निबंध तैयार करने को कहा जाता है। इस लेख के माध्यम से आपको भगत सिंह पर निबंध तैयार करने में सहायता मिलेगी।

वसुधैव कुटुंबकम एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है "संपूर्ण विश्व एक परिवार है"। यह महा उपनिषद् से लिया गया है। वसुधैव कुटुंबकम वह दार्शनिक अवधारणा है जो सार्वभौमिक भाईचारे और सभी प्राणियों के परस्पर संबंध के विचार को पोषित करती है। यह वाक्यांश संदेश देता है कि प्रत्येक व्यक्ति वैश्विक समुदाय का सदस्य है और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए, सभी की गरिमा का ध्यान रखने के साथ ही सबके प्रति दयाभाव रखना चाहिए। वसुधैव कुटुंबकम की भावना को पोषित करने की आवश्यकता सदैव रही है पर इसकी आवश्यकता इस समय में पहले से कहीं अधिक है। समय की जरूरत को देखते हुए इसके महत्व से भावी नागरिकों को अवगत कराने के लिए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर निबंध या भाषणों का आयोजन भी स्कूलों में किया जाता है। कॅरियर्स360 के द्वारा छात्रों की इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर यह लेख तैयार किया गया है।

गाय भारत के एक बेहद महत्वपूर्ण पशु में से एक है जिस पर न जाने कितने ही लोगों की आजीविका आश्रित है क्योंकि गाय के शरीर से प्राप्त होने वाली हर वस्तु का उपयोग भारतीय लोगों द्वारा किसी न किसी रूप में किया जाता है। ना सिर्फ आजीविका के लिहाज से, बल्कि आस्था के दृष्टिकोण से भी भारत में गाय एक महत्वपूर्ण पशु है क्योंकि भारत में मौजूद सबसे बड़ी आबादी यानी हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए गाय आस्था का प्रतीक है। ऐसे में विद्यालयों में गाय को लेकर निबंध लिखने का कार्य दिया जाना आम है। गाय के इस निबंध के माध्यम से छात्रों को परीक्षा में पूछे जाने वाले गाय पर निबंध को लिखने में भी सहायता मिलेगी।

क्रिसमस (christmas in hindi) भारत सहित दुनिया भर में मनाए जाने वाले बेहद महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है। प्रत्येक वर्ष इसे 25 दिसंबर को मनाया जाता है। क्रिसमस का महत्व समझाने के लिए कई बार स्कूलों में बच्चों को क्रिसमस पर निबंध (christmas in hindi) लिखने का कार्य दिया जाता है। क्रिसमस पर एग्जाम के लिए प्रभावी निबंध तैयार करने का तरीका सीखें।

रक्षाबंधन हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व पूरी तरह से भाई और बहन के रिश्ते को समर्पित त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांध कर उनके लंबी उम्र की कामना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों को कोई तोहफा देने के साथ ही जीवन भर उनके सुख-दुख में उनका साथ देने का वचन देते हैं। इस दिन छोटी बच्चियाँ देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को राखी बांधती हैं। रक्षाबंधन पर हिंदी में निबंध (essay on rakshabandhan in hindi) आधारित इस लेख से विद्यार्थियों को रक्षाबंधन के त्योहार पर न सिर्फ लेख लिखने में सहायता प्राप्त होगी, बल्कि वे इसकी सहायता से रक्षाबंधन के पर्व का महत्व भी समझ सकेंगे।

होली त्योहार जल्द ही देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला है। होली आकर्षक और मनोहर रंगों का त्योहार है, यह एक ऐसा त्योहार है जो हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन की सीमा से परे जाकर लोगों को भाई-चारे का संदेश देता है। होली अंदर के अहंकार और बुराई को मिटा कर सभी के साथ हिल-मिलकर, भाई-चारे, प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहने का त्योहार है। होली पर हिंदी में निबंध (hindi mein holi par nibandh) को पढ़ने से होली के सभी पहलुओं को जानने में मदद मिलेगी और यदि परीक्षा में holi par hindi mein nibandh लिखने को आया तो अच्छा अंक लाने में भी सहायता मिलेगी।

दशहरा हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। बच्चों को विद्यालयों में दशहरा पर निबंध (Essay in hindi on Dussehra) लिखने को भी कहा जाता है, जिससे उनकी दशहरा के प्रति उत्सुकता बनी रहे और उन्हें दशहरा के बारे पूर्ण जानकारी भी मिले। दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख में हम देखेंगे कि लोग दशहरा कैसे और क्यों मनाते हैं, इसलिए हिंदी में दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें।

हमें उम्मीद है कि दीवाली त्योहार पर हिंदी में निबंध उन युवा शिक्षार्थियों के लिए फायदेमंद साबित होगा जो इस विषय पर निबंध लिखना चाहते हैं। हमने नीचे दिए गए निबंध में शुभ दिवाली त्योहार (Diwali Festival) के सार को सही ठहराने के लिए अपनी ओर से एक मामूली प्रयास किया है। बच्चे दिवाली पर हिंदी के इस निबंध से कुछ सीख कर लाभ उठा सकते हैं कि वाक्यों को कैसे तैयार किया जाए, Class 1 से 10 तक के लिए दीपावली पर निबंध हिंदी में तैयार करने के लिए इसके लिंक पर जाएँ।

बाल दिवस पर भाषण (Children's Day Speech In Hindi), बाल दिवस पर हिंदी में निबंध (Children's Day essay In Hindi), बाल दिवस गीत, कविता पाठ, चित्रकला, खेलकूद आदि से जुड़ी प्रतियोगिताएं बाल दिवस के मौके पर आयोजित की जाती हैं। स्कूलों में बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस पर हिंदी में निबंध लिखने के लिए उपयोगी सामग्री इस लेख में मिलेगी जिसकी मदद से बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस के लिए निबंध तैयार करने में मदद मिलेगी। कई बार तो परीक्षाओं में भी बाल दिवस पर लेख लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। इसमें भी यह लेख मददगार होगा।

हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। भारत देश अनेकता में एकता वाला देश है। अपने विविध धर्म, संस्कृति, भाषाओं और परंपराओं के साथ, भारत के लोग सद्भाव, एकता और सौहार्द के साथ रहते हैं। भारत में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं में, हिंदी सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली और बोली जाने वाली भाषा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में अपनाया गया था। हमारी मातृभाषा हिंदी और देश के प्रति सम्मान दिखाने के लिए हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। हिंदी दिवस पर भाषण के लिए उपयोगी जानकारी इस लेख में मिलेगी।

हिन्दी में कवियों की परम्परा बहुत लम्बी है। हिंदी के महान कवियों ने कालजयी रचनाएं लिखी हैं। हिंदी में निबंध और वाद-विवाद आदि का जितना महत्व है उतना ही महत्व हिंदी कविताओं और कविता-पाठ का भी है। हिंदी दिवस पर विद्यालय या अन्य किसी आयोजन पर हिंदी कविता भी चार चाँद लगाने का काम करेगी। हिंदी दिवस कविता के इस लेख में हम हिंदी भाषा के सम्मान में रचित, हिंदी का महत्व बतलाती विभिन्न कविताओं की जानकारी दी गई है।

15 अगस्त, 1947 को हमारा देश भारत 200 सालों के अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था। यही वजह है कि यह दिन इतिहास में दर्ज हो गया और इसे भारत के स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। इस दिन देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते तो हैं ही और साथ ही इसके बाद वे पूरे देश को लालकिले से संबोधित भी करते हैं। इस दौरान प्रधानमंत्री का पूरा भाषण टीवी व रेडियो के माध्यम से पूरे देश में प्रसारित किया जाता है। इसके अलावा देश भर में इस दिन सभी कार्यालयों में छुट्टी होती है। स्कूल्स व कॉलेज में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस से संबंधित संपूर्ण जानकारी आपको इस लेख में मिलेगी जो निश्चित तौर पर आपके लिए लेख लिखने में सहायक सिद्ध होगी।

प्रदूषण पृथ्वी पर वर्तमान के उन प्रमुख मुद्दों में से एक है, जो हमारी पृथ्वी को व्यापक स्तर पर प्रभावित कर रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय से चर्चा में है, 21वीं सदी में इसका हानिकारक प्रभाव बड़े पैमाने पर महसूस किया जा रहा है। हालांकि विभिन्न देशों की सरकारों ने इन प्रभावों को रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। इससे कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं में गड़बड़ी आती है। इतना ही नहीं, आज कई वनस्पतियां और जीव-जंतु या तो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रदूषण की मात्रा में तेजी से वृद्धि के कारण पशु तेजी से न सिर्फ अपना घर खो रहे हैं, बल्कि जीने लायक प्रकृति को भी खो रहे हैं। प्रदूषण ने दुनिया भर के कई प्रमुख शहरों को प्रभावित किया है। इन प्रदूषित शहरों में से अधिकांश भारत में ही स्थित हैं। दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली, कानपुर, बामेंडा, मॉस्को, हेज़, चेरनोबिल, बीजिंग शामिल हैं। हालांकि इन शहरों ने प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ और बहुत ही तेजी के साथ किए जाने की जरूरत है।

वायु प्रदूषण पर हिंदी में निबंध के ज़रिए हम इसके बारे में थोड़ा गहराई से जानेंगे। वायु प्रदूषण पर लेख (Essay on Air Pollution) से इस समस्या को जहाँ समझने में आसानी होगी वहीं हम वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार पहलुओं के बारे में भी जान सकेंगे। इससे स्कूली विद्यार्थियों को वायु प्रदूषण पर निबंध (Essay on Air Pollution) तैयार करने में भी मदद होगी। हिंदी में वायु प्रदूषण पर निबंध से परीक्षा में बेहतर स्कोर लाने में मदद मिलेगी।

एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। पृथ्वी ग्रह का बुखार (तापमान) लगातार बढ़ रहा है। सरकारों को इसमें नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को सतत विकास के उपायों में निवेश करने, ग्रीन जॉब, हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखने, इसे स्वस्थ रखने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर ईमानदारी से काम करना होगा। ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन पर निबंध के जरिए छात्रों को इस विषय और इससे जुड़ी समस्याओं और समाधान के बारे में जानने को मिलेगा।

हमारी यह पृथ्वी जिस पर हम सभी निवास करते हैं इसके पर्यावरण के संरक्षण के लिए विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन के दौरान हुई थी। पहला विश्व पर्यावरण दिवस (Environment Day) 5 जून 1974 को “केवल एक पृथ्वी” (Only One Earth) स्लोगन/थीम के साथ मनाया गया था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने भी भाग लिया था। इसी सम्मलेन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की भी स्थापना की गई थी। इस विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) को मनाने का उद्देश्य विश्व के लोगों के भीतर पर्यावरण (Environment) के प्रति जागरूकता लाना और साथ ही प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करना भी है। इसी विषय पर विचार करते हुए 19 नवंबर, 1986 को पर्यवरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया तथा 1987 से हर वर्ष पर्यावरण दिवस की मेजबानी करने के लिए अलग-अलग देश को चुना गया।

आज के युग में जब हम अपना अधिकतर समय पढाई पर केंद्रित करने का प्रयास करते नजर आते हैं और साथ ही अपना ज़्यादातर समय ऑनलाइन रह कर व्यतीत करना पसंद करते हैं, ऐसे में हमारे जीवन में खेलों का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। खेल हमारे लिए केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं, अपितु हमारे सर्वांगीण विकास का एक माध्यम भी है। हमारे जीवन में खेल उतना ही जरूरी है, जितना पढाई करना। आज कल के युग में मानव जीवन में शारीरिक कार्य की तुलना में मानसिक कार्य में बढ़ोतरी हुई है और हमारी जीवन शैली भी बदल गई है, हम रात को देर से सोते हैं और साथ ही सुबह देर से उठते हैं। जाहिर है कि यह दिनचर्या स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है और इसके साथ ही कार्य या पढाई की वजह से मानसिक तनाव पहले की तुलना में वृद्धि महसूस की जा सकती है। ऐसी स्थिति में जब हमारे जीवन में शारीरिक परिश्रम अधिक नहीं है, तो हमारे जीवन में खेलो का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।

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हमेशा से कहा जाता रहा है कि ‘आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है’, जैसे-जैसे मानव की आवश्यकता बढती गई, वैसे-वैसे उसने अपनी सुविधा के लिए अविष्कार करना आरंभ किया। विज्ञान से तात्पर्य एक ऐसे व्यवस्थित ज्ञान से है जो विचार, अवलोकन तथा प्रयोगों से प्राप्त किया जाता है, जो कि किसी अध्ययन की प्रकृति या सिद्धांतों की जानकारी प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिए भी किया जाता है, जो तथ्य, सिद्धांत और तरीकों का प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करता है।

शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ साथ उसके चरित्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। कहा जाता है कि सबसे पहली गुरु माँ होती है, जो अपने बच्चों को जीवन प्रदान करने के साथ-साथ जीवन के आधार का ज्ञान भी देती है। इसके बाद अन्य शिक्षकों का स्थान होता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना बहुत ही बड़ा और कठिन कार्य है। व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना भी उसी प्रकार का कार्य है, जैसे कोई कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य करता है। इसी प्रकार शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 1908 में हुई थी, जब न्यूयॉर्क शहर की सड़को पर हजारों महिलाएं घंटों काम के लिए बेहतर वेतन और सम्मान तथा समानता के अधिकार को प्राप्त करने के लिए उतरी थीं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव क्लारा जेटकिन का था जिन्होंने 1910 में यह प्रस्ताव रखा था। पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में मनाया गया था।

हम उम्मीद करते हैं कि स्कूली छात्रों के लिए तैयार उपयोगी हिंदी में निबंध, भाषण और कविता (Essays, speech and poems for school students) के इस संकलन से निश्चित तौर पर छात्रों को मदद मिलेगी।

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बाल श्रम को बच्चो द्वारा रोजगार के लिए किसी भी प्रकार के कार्य को करने के रूप में परिभाषित किया गया है जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा डालता है और उन्हें मूलभूत शैक्षिक और मनोरंजक जरूरतों तक पहुंच से वंचित करता है। एक बच्चे को आम तौर व्यस्क तब माना जाता है जब वह पंद्रह वर्ष या उससे अधिक का हो जाता है। इस आयु सीमा से कम के बच्चों को किसी भी प्रकार के जबरन रोजगार में संलग्न होने की अनुमति नहीं है। बाल श्रम बच्चों को सामान्य परवरिश का अनुभव करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने और उनके शारीरिक और भावनात्मक विकास में बाधा के रूप में देखा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें बाल श्रम या फिर कहें तो बाल मजदूरी पर निबंध।

एपीजे अब्दुल कलाम की गिनती आला दर्जे के वैज्ञानिक होने के साथ ही प्रभावी नेता के तौर पर भी होती है। वह 21वीं सदी के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में से एक हैं। कलाम देश के 11वें राष्ट्रपति बने, अपने कार्यकाल में समाज को लाभ पहुंचाने वाली कई पहलों की शुरुआत की। मेरा प्रिय नेता विषय पर अक्सर परीक्षा में निबंध लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें अपने प्रिय नेता: एपीजे अब्दुल कलाम पर निबंध।

हमारे जीवन में बहुत सारे लोग आते हैं। उनमें से कई को भुला दिया जाता है, लेकिन कुछ का हम पर स्थायी प्रभाव पड़ता है। भले ही हमारे कई दोस्त हों, उनमें से कम ही हमारे अच्छे दोस्त होते हैं। कहा भी जाता है कि सौ दोस्तों की भीड़ के मुक़ाबले जीवन में एक सच्चा/अच्छा दोस्त होना काफी है। यह लेख छात्रों को 'मेरे प्रिय मित्र'(My Best Friend Nibandh) पर निबंध तैयार करने में सहायता करेगा।

3 फरवरी, 1879 को भारत के हैदराबाद में एक बंगाली परिवार ने सरोजिनी नायडू का दुनिया में स्वागत किया। उन्होंने कम उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने कैम्ब्रिज में किंग्स कॉलेज और गिर्टन, दोनों ही पाठ्यक्रमों में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की। जब वह एक बच्ची थी, तो कुछ भारतीय परिवारों ने अपनी बेटियों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। हालाँकि, सरोजिनी नायडू के परिवार ने लगातार उदार मूल्यों का समर्थन किया। वह न्याय की लड़ाई में विरोध की प्रभावशीलता पर विश्वास करते हुए बड़ी हुई। सरोजिनी नायडू से संबंधित अधिक जानकारी के लिए इस लेख को पढ़ें।

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Frequently Asked Question (FAQs)

किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- ये हैं- प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार (conclusion)।

हिंदी निबंध लेखन शैली की दृष्टि से मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

वर्णनात्मक हिंदी निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है।

विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

निबंध में समुचित जगहों पर मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविता का प्रयोग करके इसे प्रभावी बनाने में मदद मिलती है। हिंदी निबंध के प्रभावी होने पर न केवल बेहतर अंक मिलेंगी बल्कि असल जीवन में अपनी बात रखने का कौशल भी विकसित होगा।

कुछ उपयोगी विषयों पर हिंदी में निबंध के लिए ऊपर लेख में दिए गए लिंक्स की मदद ली जा सकती है।

निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति निबंध है।

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हिंदी में निबंध (Essay in Hindi/ Hindi me Nibandh) - परिभाषा, प्रकार, टॉपिक्स और निबंध लिखने का तरीका जानें

Updated On: September 29, 2023 12:22 pm IST

निबंध किसे कहते हैं? (What is Essay?)

निबंध की परिभाषा (definition of essay in hindi), निबंध के कितने अंग होते हैं .

  • निबंध कितने प्रकार का होता है (Types of Essay in …

हिंदी में निबंध (Essay in Hindi/ Hindi me Nibandh)

निबंध कितने प्रकार का होता है (Types of Essay in Hindi )

हिंदी में निबंध (essay in hindi) लिखते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-.

  • निबंध लिखना शुरू करने से पहले संबंधित विषय के बारे में जानकारी इकठ्ठा कर लें। 
  • कोशीश करें कि विचार क्रमबद्ध रूप से लिखे जाएं और उनमे सभी महत्वपूर्ण बिंदु शामिल हों। 
  • निबंध को सरल भाषा में लिखने का प्रयास करें और रोचक बनाएं। 
  • निबंध में उपयोग किए गए शब्द छोटे और प्रभावशाली होने चाहिए। 

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भारत में बाल अधिकार पर निबंध Essay on Child Rights in India (Hindi)

भारत में बाल अधिकार पर निबंध Essay on Child Rights in India

इस लेख में भारत में बाल अधिकार पर निबंध Essay on Child Rights in India (Hindi) को दिया गया है जिसमें इसकी परिभाषा, लिस्ट भी दिया गाय है।

Table of Content

चाइल्ड राइट्स यह बच्चों के शोषण को रोकने के लिए बनाया गया एक कानून है इसमें बच्चों को कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं।

इस लेख में बच्चों के कानूनी अधिकारों  के बारे में विस्तार से बताया गया है तथा बाल अधिकारों की सूची भी दी गई है। चाइल्ड राइट्स के बारे में यह लेख बेहद ही सरल है तथा जानकारी से भरपूर है।

बाल अधिकारों के बारे में परीक्षा में अवश्य पूछा जाता है। यहां पर बाल अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करें।

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बाल अधिकार क्या है? What is Child Rights in Hindi?

भारतीय संविधान के अनुसार 18 साल से कम उम्र के बच्चों को नाबालिग कहा जाता है जिन्हें भारतीय संविधान कुछ विशेष अधिकार प्रदान करता है जिन्हें भारत में बाल अधिकार या चाइल्ड राइट्स इंडिया कहते हैं।

बचपन को जीवन की एक विशेष प्रक्रिया कहा गया है जहां पूरे जीवन का ताना-बाना बुना जाता है और इस प्रक्रिया में उन्हें प्यार तथा सहकार की आवश्यकता होती है न की दुत्कार और तिरस्कार की।

आज कुछ लोगों की स्वार्थपरता के कारण बच्चों का शोषण चरम पर है और बच्चों का एक बड़ा वर्ग इस समस्या से जूझ रहा है और शिक्षा, पोषण तथा अपने अधिकारों से वंचित हैं। बाल अधिकारों के रक्षण के लिए पूरी दुनिया में लगभग एक से नियम है। जिसे अन्तराष्ट्रीय बाल अधिकार कानून कहा जाता है।

बाल अधिकार की आवश्यकता क्यों पड़ी? Why was there a need for child rights?

अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत चाइल्ड राइट की परिभाषा एक सी है। 1992 के यूएनसीआरसी अनुसमर्थन के बाद भारत सरकार ने अपने बाल न्याय कानूनों में बहुत से बदलाव किए हैं जिसमें नाबालिक बच्चों के हकों की रक्षा के लिए कड़े कानून का प्रावधान है लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है की चाइल्ड राइट्स कानून की आवश्यकता क्यों पड़ी।

भारत में गरीबी और अशिक्षा के कारण कुछ बच्चे मजबूरी वश कम आयु में परिवार के भरण-पोषण के लिए मजदूरी का मार्ग अपनाते हैं। कुछ नाबालिग बच्चों को जबरदस्ती काम पर रखा जाता है और उनसे अधिक काम लिया जाता है तथा बदले में बहुत ही मामूली से रकम दी जाती है। इसे बाल मजदूरी कहा जाता है।

बच्चे नासमझ होते हैं इसलिए वे मज़बूरी वश कम रकम पर काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं या बच्चे शारीरिक रूप से प्रतिकार करने में असमर्थ होते हैं जिसके कारण उन्हें जबरन काम पर रखा जाता है। जहाँ अशिक्षा होगी वह बाल मजदूरी ही नहीं तमाम और भी सामजिक कुरीतियाँ जन्म लेंगी। इसलिए अशिक्षा ही एक मात्र कारण है जिसके कारण बाल अधिकार की आवश्यकता पड़ी।

भारत में बाल अधिकार के लिस्ट List of Child Rights in India (Hindi)

बच्चों को भगवान का स्वरूप कहा गया है और किसी भी देश की असली संपत्ति वहां के बच्चे तथा युवा होते हैं इसलिए उनके शोषण के विरोध में तथा विकास को ध्यान में रखकर कुछ कड़े कानून बनाए गए हैं। भारत सरकार ने बच्चों के शोषण तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ विशेष कानून बनाए हैं जिनमें 2006 में संशोधित भारतीय बाल अधिकारों के लिस्ट भी शामिल है जो निम्न है।

  • भारतीय संविधान के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निशुल्क प्रारंभिक शिक्षा को अनिवार्य बताया गया है जिसका उल्लेख भारतीय संविधान के धारा  21 में किया गया है।
  • भारत के हर बच्चे को स्वास्थ्य का अधिकार है।
  • भारतीय संविधान के अंतर्गत बच्चों को नौकरी पर रखने तथा उनका शोषण करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है।
  • बच्चों को समानता का अधिकार है इसलिए उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव करना कानूनन अपराध है।
  • बच्चों को अपने शोषण के विरोध का अधिकार दिया गया है जिससे उच्च वर्गों द्वारा किसी भी बच्चे का शोषण न किया जा सके।
  • बाल अधिकारों में जरूरी पोषण प्राप्त करना यह बच्चों के अधिकारों में सर्वोपरि है।
  • भारतीय संविधान में लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष के पहले विवाह पर रोक है। बाल विवाह को गैरकानूनी बताया गया है।
  • बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का दुराचार या अपमानजनक बर्ताव करना कानूनी अपराध माना गया है।
  • मां बाप द्वारा बच्चों में किए भेदभाव विशेषकर लिंग के अनुसार किया भेदभाव कानूनन अपराध है तथा भ्रूण हत्या या मानसिक प्रताड़ना के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है।

चाइल्ड राइट्स कानून के लाभ Benefits of Child Rights Law

बाल अधिकार कानून से आज बाल मजदूरी में बेहद ही कमी देखने को मिली है और लोगों में बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता भी आई हैं बच्चों का तन और मन कोमल होने से उन्हें अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है। बाल अधिकार कानून के अंतर्गत 65 तरह के विशेष काम बताए गए हैं जिन्हें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से नहीं कराया जा सकता उदाहरण के तौर पर होटलों तथा दुकानों पर काम इत्यादि।

चाइल्ड राइट्स कानून के सबसे बड़े लाभ के रूप में लोगों में एक जागरूकता का आना है चाहे विद्यालय हो या अन्य कोई स्थल, कम या ज्यादा मात्रा में लोगों को बाल अधिकारों के बारे में जागरूकता है इसी कारण एक रिपोर्ट के अनुसार बाल मजदूरी तथा बाल हिंसा में थोड़ी गिरावट देखने को मिली है।

भारत में बाल अधिकार कानून के तहत विद्यालय भी बच्चों पर अतिरिक्त प्रताड़ना या मानसिक दबाव का उपयोग कम कर रहे हैं। बच्चों से मारपीट जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 23 के तहत गंभीर मारपीट के अंदर आता है जिससे दोषी को कड़ी सजा का प्रावधान है।

चाइल्ड राइट एक्ट के तहत अनाथ बच्चों को सुरक्षा देने के लिए चाइल्ड वेलफेयर कमिटी बनाई गई है। भारतीय बाल अधिकार के तहत 18 साल से कम उम्र के लड़के-लड़कीयों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में होती है तथा दोषी को उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है।

भारत में बाल अधिकार कानून से बच्चों के प्रति अपराध कम जरूर हुए हैं लेकिन खत्म नहीं हुए बाल उत्पीड़न को पूरी तरह से खत्म करने के लिए भारत के नागरिकों को इसकी गंभीरता को समझना होगा तथा इनके प्रति उपयुक्त कदम उठाना होगा।

 निष्कर्ष Conclusion

एक कहावत के रूप में कहा गया है कि “बच्चे होते हैं मन के सच्चे” या  “बच्चे भगवान का रूप होते हैं” लेकिन भारत जैसा देश जहां आदर्शों की कमी नहीं है वहां बच्चों के लिए कानून लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी?  जवाब है और अशिक्षा और हमारी समाज के प्रति विमुखता।

चाइल्ड राइट्स कानून से बाल अपराध पूरी तरह से समाप्त होने वाला नहीं है। अगर बाल अपराध को समाप्त करना है तो शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी करना होगा तथा गरीब तथा पिछड़े वर्ग के बच्चों के निर्वहन का बोझ सरकार को उठाना पड़ेगा और समाज के बुद्धिजीवी वर्गों को अपनी हैसियत के अनुसार गरीब बच्चों को शिक्षा देने का कर्तव्य निभाना पड़ेगा।

इस लेख में आपने भारत के चाइल्ड राइट्स कानून के बारे में पढ़ा जिसमें बच्चों के अधिकारों से लेकर समाज का उनके प्रति कर्तव्य सभी को सरल रूप से लिखा गया है। आशा है आपको भारत में बाल अधिकार पर निबंध Essay on Child Rights in India (Hindi) लेख जानकारी से भरपूर लगा होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे शेयर जरूर करें।

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अपराध और अपराधी पर निबन्ध | Essay on Crime and Criminals in Hindi

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अपराध और अपराधी पर निबन्ध | Essay on Crime and Criminals in Hindi!

प्रस्तावना:

कोई भी व्यक्ति अपराध जानबूझ कर नहीं करता वरन् उसके अपराधी कार्य के पीछे कोई न कोई कारण ऐसा होता है जिसके वशीभूत हो यह गलत कार्यों अथवा अपराधिक कार्यो की ओर अग्रसर होता है ।

कोई व्यक्ति नहीं चाहता कि वह अपराध कर अपराधी बने और समाज उसे तिरस्कृत नजरों से देखे । हमारी विद्यमान सामाजिक, कानूनी, आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियाँ ही ऐसी हैं जो व्यक्ति को अपराधी बनने हेतु मजबूर करती हैं ।

चिन्तनात्मक विकास:

अपराध वास्तव में क्या है ? इस सम्बंध में अनेक विचारकों ने अपराध की परिभाषा अपने-अपने दृष्टिकोणों से दी है । किसी का मत है कि ‘अपराध एक साभिप्राय कार्य है’, अथवा किसी विचारक का मानना है कि यह एक ‘असामाजिक कार्य’ है आदि ।

अनेक विचारकों ने कानूनी, गैर-कानूनी एवं सामाजिक शब्दों में अपराध को परिभाषित किया है जहाँ तक अपराधी का सम्बंध है तो उसके अपराधिक व्यवहार को अच्छी तरह से समझने के लिए क्लासिक, जैविकीय, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आधारों पर व्याख्या की गई है ।

हमारे समाज में आज विघटनकारी प्रवृत्तियाँ अत्यन्त प्रबल हैं । व्यक्ति को चारों ओर से कुण्ठाओं एवं तनावों ने घेर रखा है । राजनीतिक व्यवस्था उस पर हावी है परिणामस्वरूप वह सामाजिक एवं कानूनी प्रतिमानों का उल्लंघन कर रहा है, जिससे की समाज का स्वरूप विकृत होता जा रहा है ।

दिन-प्रतिदिन अपराध और अपराधियों की संख्या में वृद्धि हो रही है । भारत में प्रतिवर्ष भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत लगभग 14.5 लाख संज्ञेय अपराध होते हैं और लगभग 37.7 लाख अपराध स्थानीय एवं विशेष कानूनों के तहत होते हैं । हमारे समाज में अपराध को समाप्त करने एवं अपराधियों को दण्डित करने अथवा उपचार हेतु कारावास एवं परिवीक्षा कारावास की व्यवस्था की गई है ।

वस्तुत: समाज से इस समस्या को समाप्त करने हेतु अनेंक उपाय किये गए हैं किन्तु इसमें सन्देह ही है कि वास्तव में अपराध खत्म हो सकता है । अत: आज आवश्यकता इस बात की है कि जो भी उपाय व्यवस्था द्वारा अपनाये गये हैं उन्हें कारगर ढंग से लागू किया जाये, कठोरता से अपनाया जाये । कई संस्थाएँ भी इस ओर अग्रसर हैं ।

उन्हें भी अपने प्रयासों को संगत बनाने हेतु और अधिक रुचि दिखलानी पड़ेगी । कानूनी व्यवस्था को भी कड़े कदम उठाने पड़ेगे ताकि समाज से बुराई को दूर किया जा सके । अपराध किसे कहते हैं ? अपराध क्या हैं ? अपराधी कौन होते हैं ? इत्यादि प्रश्नों के उत्तर देने से पूर्व हमारे लिए ‘अपराध और अपराधी’ इन दोनों तत्वों की परिभाषा देना अत्यावश्यक है ।

ADVERTISEMENTS:

पॉल टप्पन ने अपराध की परिभाषा इस प्रकार दी है कि यह ‘एक साभिप्राय कार्य है या अनाचरण है जो दण्ड कानून का उल्लंघन करता है और जो बिना किसी सफाई और औचित्य के किया जाता है ।’  इस परिभाषा में पाँच तत्व महत्वपूर्ण हैं; प्रथम, किसी क्रिया को किया जाये या किसी क्रिया को करने में चूक होनी चाहिए, यानि कि किसी व्यक्ति को उसके विचारो के लिए दण्डित नहीं किया जा सकता ।

द्वितीय, क्रिया स्वैच्छिक होनी चाहिए और उस समय की जानी चाहिए जबकि कर्ता का अपने कार्यों पर नियन्त्रण है । तृतीय, क्रिया साभिप्राय होनी चाहिए, फिर चाहे अभिप्राय सामान्य हो अथवा विशेष । एक व्यक्ति का विशेष अभिप्राय चाहे दूसरे व्यक्ति को गोली मारना व उसको जान से मारना न हो, परन्तु उससे इस जानकारी की आशा की जाती है कि उसकी क्रिया से दूसरों को जोट लग सकती है ।

चतुर्थ, वह क्रिया फौजदारी कानून का उल्लंघन होनी चाहिए जोकि गैर-फौजदारी कानून या दीवानी या प्रशासनिक कानून से भिन्न है जिससे कि सरकार अभियुक्त के विरुद्ध कार्यवाही कर सके । पंचम, वह क्रिया बिना किसी सफाई या औचित्य के की जानी चाहिए । इस प्रकार यदि यह सिद्ध हो जाता है कि क्रिया आत्मसुरक्षा के लिए या पागलपन में की गयी थी, तो उसे अपराध नहीं माना जायेगा चाहे उससे दूसरों को हानि हुई हो या चोट लगी हो ।

कानून की अनभिज्ञता को अधिकतर बचाव या सफाई नहीं माना जाता है । हाल जिरोम की परिभाषा के अनुसार अपराध ‘कानूनी तौर पर वर्जित और साभिप्राय कार्य है, जिसका सामाजिक हितों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जिसका अपराधिक उद्देश्य है और जिसके लिए कानूनी तौर से दण्ड निर्धारित है ।’

इस प्रकार उसकी दृष्टि में किसी कार्य को अपराध नहीं माना जा सकता जब तक उसमें ये पाँच विशेषताएँ न हों; पहली, कानून द्वारा वह वर्जित हो । दूसरी, वह साभ्रिपाय हो । तीसरी, वह समाज के लिए हानिकारक हो । चौथी, उसका अपराधिक उद्देश्य  हो । पाँचवी, उसके लिए कोई दण्ड निर्धारित हो ।

अपराध की परिभाषा गैर-कानूनी और सामाजिक शब्दों में भी की गई है । मोरर ने उसे एक असामाजिक कार्य कहा है । काल्डवेल ने उसकी यह कहकर व्याख्या की है दवे कार्य या उन कार्यो को करने में चूक जोकि समाज में प्रचलित मानदण्डों की दृष्टि में समाज के कल्याण के लिए इतने हानिकारक हैं कि उनके संबंध में कार्यवाही किसी निजी पहलशक्ति या अव्यवस्थित प्रणालियों को नहीं सौंपी जा सकती, परन्तु वह कार्यवाही संगठित समाज द्वारा परीक्षित प्रक्रियाओं के अनुसार’ की जानी चाहिए ।’

थौर्सटन सेलिन ने उसे ‘मानकीय समूहों के व्युवहार के आदर्श नियमाचारों का उल्लंघन कहा है ।’ मार्शल क्लिनार्ड ने यह दावा किया है कि मानदण्डों के सभी विचलन अपराध नहीं होते । वह तीन प्रकार के विचलन की बात करते हुँ (1) सहन किये जाने वाले विचलन, (2) विचलन जिसकी नरमी से निन्दा की जा सकती है, (3) विचलन जिसकी कड़ी निन्दा की जाती है । वह तीसरे प्रकार के विचलन को अपराध मानते हैं ।

‘अपराध’ की उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सभी विचारकों ने इसकी परिभाषा अपने-अपने दृष्टिकोण से दी है । किसी ने इसे स्पष्ट करने के लिए समाजशास्रीय आधार लिया है, तो किसी ने कानूनी । अपराध की कानूनी और सामाजिक परिभाषाओं के मध्य समाधानात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुये रीड ने कहा है कि कानूनी परिभाषा का अपराध के आकड़ों का संकलन करने के लिए और अपराधी का लेबिल देने के लिए उपयोग किया आ सकता है, परन्तु अपराध के कारणों के अध्ययन के लिए किये जा रहे अध्ययनों में ऐसे व्यक्तियों को भी अपराधियों के प्रतिदर्शो में सम्मिलित किया जाना चाहिए जो अपना अपराध स्वीकार करते हैं, परन्तु न्यायालय से दोषी सिद्ध नहीं हुये हैं ।

जहाँ तक अपराधी का सम्बंध है तो वह किसी न किसी कारण के वशीभूत हो अपराध करता है । यह आवश्यक नहीं कि किसी अपराध के पीछे कोई ठोस कारण ही हो क्योंकि कई बार अनजाने में ही किसी व्यक्ति द्वारा अपराध हो जाता है परिणामस्वरूप वह ‘अपराधी वर्ग’ के अन्तर्गत आ जाता है ।

अत: यह जरूरी हो जाता है कि किसी व्यक्ति के अपराधी व्यवहार के पीछे कारणों पर गहनता से विचार किया जाए । कोई भी व्यक्ति स्वतन्त्र इच्छा शक्ति के वशीभूत हो अपराधी व्यवहार नहीं करता अपितु नियति के वशीभूत हो अपराध कर बैठता हे ।

हमारी सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था ही ऐसी है कि वह अपराध करने को मजबूर कर देती है । कानून एवं उसकी व्यवस्था भी किसी हद तक किसी निरपराधी को अपराधी में परिवर्तित कर देती है । प्राय: दण्ड नीति भी कई बार किसी को अपराध करने के लिए प्रेरित करती है ।

अपराधिक व्यवहार की सैद्धान्तिक व्याख्याओं को मुख्यत: छह वर्गों में विभाजित किया गया है: (1) जैविक या स्वभाव-सम्बंधी व्याख्याएं, (2) मानसिक अव-सामान्यता, बीमारी और मनोवैज्ञानिक-रोगात्मक व्याख्याएं, (3) आर्थिक व्याख्या, (4)स्थलाकृतिक व्याख्या, (5) मानव पर्यावरणवादी व्याख्या और (6) ‘नवीन’ और ‘रैडिकल’ व्याख्या ।

रीड ने सैद्धान्तिक व्याख्याओं का इस प्रकार वर्गीकरण किया है; (1) क्लासिकल और सकारात्मक व्याख्याएं, (2) शारीरिक, मनश्चिकित्सीय और मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त, और (3) समाजशास्त्रीय सिद्धान्त । इन्होंने समाजशास्रीय सिद्धान्तों को पुन: दो वर्गो में बांटा है: (1) सामाजिक संरचनात्मक सिद्धान्त, (2) सामाजिक प्रक्रिया सिद्धान्त । अपराधिक व्यवहार सम्बंधी इन सभी सिद्धान्तों को मुख्यत: चार भागों में वर्गीकृत कर समझा जा सकता है । (1) क्लासिक, (2) जैविकीय, (3) मनोवैज्ञानिक,  (4) सामाजिक ।

‘अपराध और दण्ड’ सम्बधी क्लासिक विचारधारा इटेलियन विचारक बैकेरिया द्वारा अठारहवीं शताब्दी के दूसरे अर्ध में विकसित की गई थी । क्लासिक विचारधारा यह मानती थी कि (क) मानव प्रकृति तार्किक एवं स्वतन्त्र है और अपने स्वार्थ से निर्धारित होती है, (ख) सामाजिक व्यवस्था मतैक्यता और सामाजिक अनुबंध पर आधारित है, (ग) अपराध सामाजिक प्रतिमानों का उल्लंघन नहीं बल्कि कानून संहिता का उल्लंघन है, (घ) अपराध का वितरण सीमित है और उसका पता उचित प्रक्रिया से लगाना चाहिए, (ड) अपराध व्यक्ति की तार्किक प्रेरणा से होता है, व अपराधी को दण्ड देते समय ‘संयम’ का सिद्धान्त अपनाना चाहिए ।

क्लासिक व्याख्या की कुछ कमियाँ थी जैसे; पहली, सब अपराधियों के साथ बिना उनकी आयु, लिंग अथवा बुद्धि में भेद करके समान व्यवहार किया जाना । दूसरी, अपराध की प्रकृति को कोई महत्व नहीं दिया गया (अर्थात अपराध साधारण है अथवा जघन्य) । इसी प्रकार अपराधी के प्रकार को भी महत्व नहीं दिया गया (अर्थात् उसका प्रथम अपराध था, या आकस्मिक अथवा पेशेवर अपराधी था) ।

तीसरी, एक व्यक्ति के व्यवहार की व्याख्या केवल ‘स्वतन्त्र इच्छा-शक्ति’ के सिद्धान्त पर करना और ‘उपयोगितावाद’ के सिद्धान्त पर दण्ड प्रस्तावित करना अव्यावहारिक दर्शन है जो अपराध को अमूर्त मानता है और जिसके निष्पक्ष एवं आनुभविक मापन में वैज्ञानिक उपागम का अभाव है ।

चौथी, न्यायसंगत अपराधिक कार्यो के लिये उसमें कोई प्रावधान नहीं था । पांचवीं, इन्हें फौजदारी कानून में सुधार करने में अधिक रुचि थी, बजाय अपराध को नियन्त्रित करने और अपराध के सिद्धान्तों का विकास करने में दण्ड की कठोरता को कम करना, जूरी व्यवस्था के दोषों को हटाना, देश निकाला और फांसी देने के दण्ड को समाप्त करना और कारागृह दर्शन को अपनाना, और नैतिकता को नियमित करना ।

क्लासिक सिद्धान्त में नव-कलासिकवादी अंग्रेज अपराधशासियों ने संशोधन कर यह सुझाव दिया कि अपराधी की आयु, मानसिक दशा ओर लघुकारक परिस्थितियों को महत्व दिया जाना चाहिए । सात वर्ष से कम आयु के बच्चों और मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्तियों को कानून से मुक्त रखना चाहिए । जैविकीय व्याख्या के अन्तर्गत ‘नियतिवाद’ के सिद्धान्त पर बल दिया गया ।

लोझासो, केरी और गेरीफलो प्रमुख प्रत्यक्षवादी थे । जिन्होने अपराधिक व्यवहार के जैविकी से उत्पन्न होने वाले और वंशानुगत पहलुओं पर बल दिया । लोखासों को ‘अपराधशास्त्र का पिता’ कहा जाता हे । इनका मत था कि अपराधी का शारीरिक रूप गैर-अपराधी के शारीरिक रूप से भिन्न होता है, जैसे असममित चेहरा, बडे कान, बहुत लम्बी बाहे पिचकी हुई नाक, पीछे की ओर मुड़ा हुआ ललाट, गुच्छेदार और कुचित बाल, पीड़ की तरफ संज्ञाहीनता, आँखों में खराबी और अन्य शारीरिक अनूठेपन ।

साथ ही इन्होने उन विशेषताओं का भी जिक्र किया जो अपराध की किस्मों के अनुसार अपराधियो में भेद दर्शाते हैं । यद्यपि जीवन के अन्तिम दिनों में इन्होने अपने सिद्धान्त में परिवर्तन कर कहा कि द्र अपराधी जन्मजात’ नहीं होते वरन् साधारण अपराधी’ (जो सामान्य शारीरिक और मनोवैज्ञानिक बनावट के व्यक्ति होते हैं), आकस्मिक अपराधी और संवेगात्मक अपराधी भी होते हैं ।

इनके सिद्धान्त की भी कुछ आलोचनाएँ हुईं जैसे, इनके तथ्यों का संकलन जैविक कारकों तक सीमित था और इन्होंने मानसिक और सामाजिक कारकों पर ध्यान नहीं दिया, इनका सिद्धान्त वर्णनात्मक था, प्रयोगात्मक नहीं, पूर्वाजानुरूपता सिद्धान्त और विकृति सम्बंधी सामान्यीकरणों ने सिद्धान्त और तथ्य के बीच एक दरार बना दी । सिद्धान्त को ठीक दर्शाने के लिए तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया । यह अवैज्ञानिक क्योंकि इनका सामान्यीकरण एक अकेले प्रकरण से प्राप्त किया गया था ।

अपराध और अपराधी सम्बंधी मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त मन्द बुद्धिमता पर बल देता है, मनश्चिकित्सीय सिद्धान्त मानसिक रोगों पर बल देता है, और मनोवैश्लेषिक सिद्धान्त अविकसित अहम् या प्रेरणाओं और मूल प्रवृत्तियो या अपराध भावनाओं या हीन भावना पर बल देता है ।

हेनरी गोडर्ड ने विचलन और अपराध का सबसे बडा अकेला कारण मन्द बुद्धिमता बताया । इन्होने कहा कि मन्द बुद्धिमत्ता वशागत होती है और जीवन की घटनाओ से बहुत कम प्रभावित होती है । यहाँ इस बात पर बल दिया गया कि अपराधी पैदा नहीं होता वरन् बनाया जाता है । किन्तु वह इस बात में विश्वास नहीं करते थे कि प्रत्येक मन्दबुद्धि वाला व्यक्ति अपराधी होता है ।

वह सम्भावित अपराधी हो सकता है, परन्तु उसके अपराधी बनने का निर्धारण दो कारक करते हैं; उसका स्वभाव और उसका पर्यावरण । इसलिए मन्द बुद्धिमत्ता वंशानुगत हो सकती है, परन्तु अपराधिकता वंशानुगत नहीं है । इसके विपरीत समाजशास्त्री यह तर्क देते हैं कि अपराधिक व्यवहार सीखा जाता है और सामाजिक पर्यावरण के परिस्थितिवश होता है ।

समाज की परिस्थितियाँ अथवा वातावरण ऐसा होता है जिसके कारण व्यक्ति अपराध कर बैठता है । उदाहरणार्थ, आर्थिक परिस्थिति के अन्तर्गत जैसे पूंजीवादी व्यवस्था में आदमी केवल स्वयं पर ही सकेन्द्रित रहता है और इससे उसमे स्वार्थपरता उत्पन्न होती है । आदमी की रुचि केवल अपने ही लिये पैदा करने में होती है, विशेष रूप से अधिशेष प्राप्त करने में जिसका विनिमय वह लाभ से कर सकता है ।

उसे अन्य व्यक्तियों की आवश्यकताओं में रूचि नहीं होती । इस प्रकार पूजीवाद सामाजिक दायित्वहीनता को जन्म देता है, और परिणामस्वरूप अपराध होता है भौगोलिक व्याख्या अपराध का आकलन भौगोलिक कारको जैसे जलवायु, तापमान और आर्द्रता के आधार पर करती है । वस्तुत: इस बात मे कोई सन्देह नहीं है कि ‘अपराध और अपराधी’ सम्बधी सभी सिद्धान्तों मे कहीं न कहीं एवं कुछ न कुछ कमियां अवश्य हैं । कोई भी सिद्धान्त स्वयं मे पूर्ण नहीं है ।

हमारे समाज में प्राय: सभी श्रेणियों मे अशान्ति बढ रही है क्योकि सामाजिक सम्बधों एवं सामाजिक बंधनो मे विघटन हो रहा है । युवाओ, किसानों, औद्योगिक श्रमिकों, छात्रों, सरकारी कर्मचारियों और अल्पसंख्यको में अशान्ति व्याप्त है । यह अशान्ति तनावों और कुण्ठाओं में वृद्धि करती है जिससे कानूनी और सामाजिक प्रतिमानो का उल्लघन होता है ।

अत: हमारे समाज की विद्यमान उप-व्यवस्थाओं औ२ संरचनाओ का सगठन और कार्यप्रणाली अपराध की वृद्धि हेतु उत्तरदायी है । भारत में एक घंटे मे लगभग 175 संज्ञेय अपराध भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत और 435 अपराध स्थानीय और विशेष कानूनो के तहत होते हैं ।

एक दिन में लगभग 900 चोरियों, 250 दगों, 400 डकैतियो और सेध लगाकर चोरियो और 2,500 अन्य फौजदारी अपराधों से पुलिस जूझती रहती है (क्राइम इन इंडिया, 1990 : 14) । 1970 और 1980 के मध्य अपराध में 57 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि 1980 और 1990 के बीच अपराध केवल 80 प्रतिशत बढ़ा (1990 : 10) ।

अपराध की उठती हुई तरंग जनता मे भय उत्पन्न कर सकती है, परन्तु हमारी पुलिस और राजनीतिज्ञ बिगड़ती हुई कानून और व्यवस्था की स्थिति से अप्रभावित एवं अछूते रहते हैं । विपक्षी राजनैतिक दल इन आँकडों में रूचि तभी लेते हैं जब इन्होंने सत्ताधारी दल की नीतियों की आलोचना करनी होती है ताकि उन्हें सत्ता से हटाया जा सके ।

वास्तव में समाजशास्त्री और अपराधशास्री ही अपराध के कारणों का पढ़ा लगाने, अपराध को कम करने, दण्ड एवं न्याय व्यवस्था को प्रभावशाली बनाने में रूचि दिखलाते हैं और इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य करते हैं ।

हाल ही में कुछ उग्र विचारो वाले विद्वानों ने अपराध सम्बंधी कानूनो को पारित करवाने, पुलिस व्यवस्था को सुधारने, न्यायिक सक्रियता, उत्पीडितों के हितो की सुरक्षा, कारागृह की स्थिति मे सुधार और विचलित व्यक्ति को मानवीय बनाने के सम्बंध में प्रश्न उठाये हैं ।

हमारे समाज में अपराधियों को दण्ड देने एवं उपचार हेतु मुख्यत: दो तरीके अपनाए जाते हैं-प्रथम कारावास, द्वितीय परिवीक्षा पर मुक्ति । यद्यपि कुछ भयंकर अपराधियों को फांसी की सजा भी दी जाती है और कुछ पर जुर्माने भी किये जाते हैं ।

1919-20 तक भारतीय कारावासों में स्थितियाँ भयावह थीं । 1919-20 की भारतीय रेल सुधार कमेटी के सुझावों के अचात् ही अधिकतम सुरक्षा कारागृह जैसे केन्द्रीय जेल, जिला जेल और उप-जेल में परिवर्तन किये गये । इन परिवर्तनों में शामिल थे वर्गीकरण, कैदियो का पृथक्करण, शिक्षा, मनोरंजन, उत्पादन कार्य का देना और परिवार एवं समाज में सम्पर्क रखने के अवसर ।

बाद में तीन राज्यों में तीन मध्यम-सुरक्षा कारागृह या आदर्श कारावास भी स्थापित किये गए जिनमें पंचायत राज, स्व-संचालित केन्टीन और मजदूरी पद्धति पर बल दिया गया, किन्तु इन्हें केन्द्रीय कारागृह मे परिवर्तित कर दिया गय । कारागृह सामान्यत: समान पोशाक पहनने वालों का ससार है । जहाँ के प्रत्येक निवासी पर कलंक लगा होता है और उसे अपरिचित साथियो के साथ निर्धारित कार्यो को नियत समय में करना होता है ।

इन्हे किसी भी प्रकार की आजादी, सुविधाओं, भावात्मक सुरक्षा और विषमलिगींय संबंधों से वचित किया जाता है । इन मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करने के लिए वही निवासी कैदी व्यवस्था की कैदी सहिता का पालन करते हैं, जोकि कारागृह पद्धति की औपचारिक संहिता के बिल्कुल विपरीत होती है ।

कैदियों को कारावास के द्वारा दण्डित करने एव उनका उपचार करने हेतु एक उदार और कठोर सन्तुलित नीति को अपनाना चाहिए । जेल व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाने हेतु और अपराधियो को सुधारने के लिए जिन अन्य उपायो की आवश्यकता है ।

वे है, विचाराधीन कैदियो को सजायाफ्ता कैदियों के साथ एक ही जेल में नहीं रखना चाहिए, कैदियो को उनकी फाइलें प्राप्त करानी चाहिए, कैदियो को बैरक निर्धारण अथवा काम देने से पूर्व उनका उपयुक्त निदान होना चाहिए, कैदियो को अपनी इच्छानुसार कार्य चयन की स्वतन्त्रता होनी चाहिए, पैरोल पर रिहा करने को अधिक सरल एव प्रभावी बनाना चाहिए, निजी उद्योगों को कारागृह में लाने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए ।

कैदियों को अपनी शिकायतें व्यक्त करने के लिए प्रभावी माध्यम उपलब्ध कराने चाहिए, अनिश्चित सजा प्रणाली लागू करनी चाहिए, कैदियों को छ: माह से कम समय के लिए कारागृह भेजने को हतोत्साह करना चाहिए, राज्यस्तर पर एक जेल उद्योग ब्यूरो स्थापित करना चाहिए ।

अत: ऐसे कार्यक्रम बनाये जाने चाहिएं जो कैदियों को नया जीवन प्रारम्भ करने के लिए प्रोत्साहित करें । एक अन्य विकल्प है-परिवीक्षा कारागृह । परिवीक्षा कारागृह से आशय है अदालत द्वारा अपराधी की सजा को स्थगित करना और कुछ शर्तो पर उसे रिहा करना, जिससे वह समाज में परिवीक्षा अधिकारी की देख-रेख में या उसके बिना समाज में रह सके ।

कारागृह प्रणाली की अपेक्षा परिवीक्षा कारागृह में कुछ लाभ हैं । ये हैं; परिवीक्षा पर रिहा किये गए अपराधी पर कोई कलंक नहीं लगता, परिवीक्षार्थी का आर्थिक जीवन भंग नहीं होता, उसके परिवार को कष्ट नहीं सहन करना पड़ता, अपराधी भी कुंठित नहीं होता और यह आर्थिक रूप से कम महंगी है । इसमें कुछ कमियाँ हें जैसे, अपराधी उसी वातावरण में रहता है जहाँ उसने अपराध किया है, उसे दण्ड का कोई भय नहीं होता । किन्तु यह कमियां तर्कसंगत नहीं हैं ।

इसके अतिरिक्त परिवीक्षा को नये उपायों से अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है जैसे, परिवीक्षा की अवधारणा को परिवर्तित करना और उसको सजा का स्थगन मानने के स्थान पर सजा का विकल्प मानना, उन सब प्रकरणों में जिनमे अपराधियों को परिवीक्षा पर छोड़ दिया जाता है, उनके सामाजिक अन्वेषण को अनिवार्य करना, रिहाई की शती को लचीला बनाना, अनिश्चित सजा प्रणाली को लागू करना और परिवीक्षा सेवाओं को किसी अन्य विभाग से न जोड़ कर राज्य स्तर पर उनका एक अलग निदेशालय स्थापित करना ।

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि सुधार व्यवस्था को अधिक कुशल बनाने हेतु प्रबंधकी: रुचि एवं मानवतावादी रुचि को ही अपनाकर व्यवस्था में सुधार निश्चित है ।

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हिंदी निबंध: हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। हमारे हिंदी भाषा कौशल को सीखना और सुधारना भारत के अधिकांश स्थानों में सेवा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूली दिनों से ही हम हिंदी भाषा सीखते थे। कुछ स्कूल और कॉलेज हिंदी के अतिरिक्त बोर्ड और निबंध बोर्ड में निबंध लेखन का आयोजन करते हैं, छात्रों को बोर्ड परीक्षा में हिंदी निबंध लिखने की आवश्यकता होती है।

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  • पुस्तक मेला पर निबंध – (Book Fair Essay)
  • मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध हिंदी में – (My Favorite Player Essay)
  • सर्वधर्म समभाव निबंध – (All Religions Are Equal Essay)
  • शिक्षा में खेलकूद का स्थान निबंध – (Shiksha Mein Khel Ka Mahatva Essay)a
  • खेल का महत्व पर निबंध – (Importance Of Sports Essay)
  • क्रिकेट पर निबंध – (Cricket Essay)
  • ट्वेन्टी-20 क्रिकेट पर निबंध – (T20 Cricket Essay)
  • मेरा प्रिय खेल-क्रिकेट पर निबंध – (My Favorite Game Cricket Essay)
  • पुस्तकालय पर निबंध – (Library Essay)
  • सूचना प्रौद्योगिकी और मानव कल्याण निबंध – (Information Technology Essay)
  • कंप्यूटर और टी.वी. का प्रभाव निबंध – (Computer Aur Tv Essay)
  • कंप्यूटर की उपयोगिता पर निबंध – (Computer Ki Upyogita Essay)
  • कंप्यूटर शिक्षा पर निबंध – (Computer Education Essay)
  • कंप्यूटर के लाभ पर निबंध – (Computer Ke Labh Essay)
  • इंटरनेट पर निबंध – (Internet Essay)
  • विज्ञान: वरदान या अभिशाप पर निबंध – (Science Essay)
  • शिक्षा का गिरता स्तर पर निबंध – (Falling Price Level Of Education Essay)
  • विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – (Advantages And Disadvantages Of Science Essay)
  • विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा निबंध – (Health Education Essay)
  • विद्यालय का वार्षिकोत्सव पर निबंध – (Anniversary Of The School Essay)
  • विज्ञान के वरदान पर निबंध – (The Gift Of Science Essays)
  • विज्ञान के चमत्कार पर निबंध (Wonder Of Science Essay in Hindi)
  • विकास पथ पर भारत निबंध – (Development Of India Essay)
  • कम्प्यूटर : आधुनिक यन्त्र–पुरुष – (Computer Essay)
  • मोबाइल फोन पर निबंध (Mobile Phone Essay)
  • मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध – (My Unforgettable Trip Essay)
  • मंगल मिशन (मॉम) पर निबंध – (Mars Mission Essay)
  • विज्ञान की अद्भुत खोज कंप्यूटर पर निबंध – (Vigyan Ki Khoj Kampyootar Essay)
  • भारत का उज्जवल भविष्य पर निबंध – (Freedom Is Our Birthright Essay)
  • सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा निबंध इन हिंदी – (Sare Jahan Se Achha Hindustan Hamara Essay)
  • डिजिटल इंडिया पर निबंध (Essay on Digital India)
  • भारतीय संस्कृति पर निबंध – (India Culture Essay)
  • राष्ट्रभाषा हिन्दी निबंध – (National Language Hindi Essay)
  • भारत में जल संकट निबंध – (Water Crisis In India Essay)
  • कौशल विकास योजना पर निबंध – (Skill India Essay)
  • हमारा प्यारा भारत वर्ष पर निबंध – (Mera Pyara Bharat Varsh Essay)
  • अनेकता में एकता : भारत की विशेषता – (Unity In Diversity Essay)
  • महंगाई की समस्या पर निबन्ध – (Problem Of Inflation Essay)
  • महंगाई पर निबंध – (Mehangai Par Nibandh)
  • आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप निबंध – (Reservation System Essay)
  • मेक इन इंडिया पर निबंध (Make In India Essay In Hindi)
  • ग्रामीण समाज की समस्याएं पर निबंध – (Problems Of Rural Society Essay)
  • मेरे सपनों का भारत पर निबंध – (India Of My Dreams Essay)
  • भारतीय राजनीति में जातिवाद पर निबंध – (Caste And Politics In India Essay)
  • भारतीय नारी पर निबंध – (Indian Woman Essay)
  • आधुनिक नारी पर निबंध – (Modern Women Essay)
  • भारतीय समाज में नारी का स्थान निबंध – (Women’s Role In Modern Society Essay)
  • चुनाव पर निबंध – (Election Essay)
  • चुनाव स्थल के दृश्य का वर्णन निबन्ध – (An Election Booth Essay)
  • पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध – (Dependence Essay)
  • परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – (Nuclear Energy Essay)
  • यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो हिंदी निबंध – (If I were the Prime Minister Essay)
  • आजादी के 70 साल निबंध – (India ofter 70 Years Of Independence Essay)
  • भारतीय कृषि पर निबंध – (Indian Farmer Essay)
  • संचार के साधन पर निबंध – (Means Of Communication Essay)
  • भारत में दूरसंचार क्रांति हिंदी में निबंध – (Telecom Revolution In India Essay)
  • दूरसंचार में क्रांति निबंध – (Revolution In Telecommunication Essay)
  • राष्ट्रीय एकता का महत्व पर निबंध (Importance Of National Integration)
  • भारत की ऋतुएँ पर निबंध – (Seasons In India Essay)
  • भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – (Future Of Sports Essay)
  • किसी खेल (मैच) का आँखों देखा वर्णन पर निबंध – (Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan Essay)
  • राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध – (Criminalization Of Indian Politics Essay)
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हिन्दी निबंध – (Narendra Modi Essay)
  • बाल मजदूरी पर निबंध – (Child Labour Essay)
  • भ्रष्टाचार पर निबंध (Corruption Essay in Hindi)
  • महिला सशक्तिकरण पर निबंध – (Women Empowerment Essay)
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध (Beti Bachao Beti Padhao)
  • गरीबी पर निबंध (Poverty Essay in Hindi)
  • स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध (Swachh Bharat Abhiyan Essay)
  • बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध – (Child Marriage Essay)
  • राष्ट्रीय एकीकरण पर निबंध – (Importance of National Integration Essay)
  • आतंकवाद पर निबंध (Terrorism Essay in hindi)
  • सड़क सुरक्षा पर निबंध (Road Safety Essay in Hindi)
  • बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – (Increasing Materialism Reducing Human Values Essay)
  • गंगा की सफाई देश की भलाई पर निबंध – (The Good Of The Country: Cleaning The Ganges Essay)
  • सत्संगति पर निबंध – (Satsangati Essay)
  • महिलाओं की समाज में भूमिका पर निबंध – (Women’s Role In Society Today Essay)
  • यातायात के नियम पर निबंध – (Traffic Safety Essay)
  • बेटी बचाओ पर निबंध – (Beti Bachao Essay)
  • सिनेमा या चलचित्र पर निबंध – (Cinema Essay In Hindi)
  • परहित सरिस धरम नहिं भाई पर निबंध – (Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Essay)
  • पेड़-पौधे का महत्व निबंध – (The Importance Of Trees Essay)
  • वर्तमान शिक्षा प्रणाली – (Modern Education System Essay)
  • महिला शिक्षा पर निबंध (Women Education Essay In Hindi)
  • महिलाओं की समाज में भूमिका पर निबंध (Women’s Role In Society Essay In Hindi)
  • यदि मैं प्रधानाचार्य होता पर निबंध – (If I Was The Principal Essay)
  • बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay)
  • शिक्षित बेरोजगारी की समस्या निबंध – (Problem Of Educated Unemployment Essay)
  • बेरोजगारी समस्या और समाधान पर निबंध – (Unemployment Problem And Solution Essay)
  • दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi)
  • जनसँख्या पर निबंध – (Population Essay)
  • श्रम का महत्त्व निबंध – (Importance Of Labour Essay)
  • जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – (Problem Of Increasing Population Essay)
  • भ्रष्टाचार : समस्या और निवारण निबंध – (Corruption Problem And Solution Essay)
  • मीडिया और सामाजिक उत्तरदायित्व निबंध – (Social Responsibility Of Media Essay)
  • हमारे जीवन में मोबाइल फोन का महत्व पर निबंध – (Importance Of Mobile Phones Essay In Our Life)
  • विश्व में अत्याधिक जनसंख्या पर निबंध – (Overpopulation in World Essay)
  • भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंध – (Problem Of Unemployment In India Essay)
  • गणतंत्र दिवस पर निबंध – (Republic Day Essay)
  • भारत के गाँव पर निबंध – (Indian Village Essay)
  • गणतंत्र दिवस परेड पर निबंध – (Republic Day of India Essay)
  • गणतंत्र दिवस के महत्व पर निबंध – (2020 – Republic Day Essay)
  • महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay)
  • ए.पी.जे. अब्दुल कलाम पर निबंध – (Dr. A.P.J. Abdul Kalam Essay)
  • परिवार नियोजन पर निबंध – (Family Planning In India Essay)
  • मेरा सच्चा मित्र पर निबंध – (My Best Friend Essay)
  • अनुशासन पर निबंध (Discipline Essay)
  • देश के प्रति मेरे कर्त्तव्य पर निबंध – (My Duty Towards My Country Essay)
  • समय का सदुपयोग पर निबंध – (Samay Ka Sadupyog Essay)
  • नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों पर निबंध (Rights And Responsibilities Of Citizens Essay In Hindi)
  • ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – (Global Warming Essay)
  • जल जीवन का आधार निबंध – (Jal Jeevan Ka Aadhar Essay)
  • जल ही जीवन है निबंध – (Water Is Life Essay)
  • प्रदूषण की समस्या और समाधान पर लघु निबंध – (Pollution Problem And Solution Essay)
  • प्रकृति संरक्षण पर निबंध (Conservation of Nature Essay In Hindi)
  • वन जीवन का आधार निबंध – (Forest Essay)
  • पर्यावरण बचाओ पर निबंध (Environment Essay)
  • पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध (Environmental Pollution Essay in Hindi)
  • पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध (Environment Protection Essay In Hindi)
  • बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – (Vehicle Pollution Essay)
  • योग पर निबंध (Yoga Essay)
  • मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर निबंध – (Adulterated Foods And Health Essay)
  • प्रकृति निबंध – (Nature Essay In Hindi)
  • वर्षा ऋतु पर निबंध – (Rainy Season Essay)
  • वसंत ऋतु पर निबंध – (Spring Season Essay)
  • बरसात का एक दिन पर निबंध – (Barsat Ka Din Essay)
  • अभ्यास का महत्व पर निबंध – (Importance Of Practice Essay)
  • स्वास्थ्य ही धन है पर निबंध – (Health Is Wealth Essay)
  • महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय निबंध – (Tulsidas Essay)
  • मेरा प्रिय कवि निबंध – (My Favourite Poet Essay)
  • मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध – (My Favorite Book Essay)
  • कबीरदास पर निबन्ध – (Kabirdas Essay)

इसलिए, यह जानना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि विषय के बारे में संक्षिप्त और कुरकुरा लाइनों के साथ एक आदर्श हिंदी निबन्ध कैसे लिखें। साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं। तो, छात्र आसानी से स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें, इसकी तैयारी कर सकते हैं। इसके अलावा, आप हिंदी निबंध लेखन की संरचना, हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए टिप्स आदि के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। ठीक है, आइए हिंदी निबन्ध के विवरण में गोता लगाएँ।

हिंदी निबंध लेखन – स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें?

प्रभावी निबंध लिखने के लिए उस विषय के बारे में बहुत अभ्यास और गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसे आपने निबंध लेखन प्रतियोगिता या बोर्ड परीक्षा के लिए चुना है। छात्रों को वर्तमान में हो रही स्थितियों और हिंदी में निबंध लिखने से पहले विषय के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानना चाहिए। हिंदी में पावरफुल निबन्ध लिखने के लिए सभी को कुछ प्रमुख नियमों और युक्तियों का पालन करना होगा।

हिंदी निबन्ध लिखने के लिए आप सभी को जो प्राथमिक कदम उठाने चाहिए उनमें से एक सही विषय का चयन करना है। इस स्थिति में आपकी सहायता करने के लिए, हमने सभी प्रकार के हिंदी निबंध विषयों पर शोध किया है और नीचे सूचीबद्ध किया है। एक बार जब हम सही विषय चुन लेते हैं तो विषय के बारे में सभी सामान्य और तथ्यों को एकत्र करते हैं और अपने पाठकों को संलग्न करने के लिए उन्हें अपने निबंध में लिखते हैं।

तथ्य आपके पाठकों को अंत तक आपके निबंध से चिपके रहेंगे। इसलिए, हिंदी में एक निबंध लिखते समय मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें और किसी प्रतियोगिता या बोर्ड या प्रतिस्पर्धी जैसी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर करें। ये हिंदी निबंध विषय पहली कक्षा से 10 वीं कक्षा तक के सभी कक्षा के छात्रों के लिए उपयोगी हैं। तो, उनका सही ढंग से उपयोग करें और हिंदी भाषा में एक परिपूर्ण निबंध बनाएं।

हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची

हिंदी निबन्ध विषयों और उदाहरणों की निम्न सूची को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे कि प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, सामान्य चीजें, अवसर, खेल, खेल, स्कूली शिक्षा, और बहुत कुछ। बस अपने पसंदीदा हिंदी निबंध विषयों पर क्लिक करें और विषय पर निबंध के लघु और लंबे रूपों के साथ विषय के बारे में पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त करें।

विषय के बारे में समग्र जानकारी एकत्रित करने के बाद, अपनी लाइनें लागू करने का समय और हिंदी में एक प्रभावी निबन्ध लिखने के लिए। यहाँ प्रचलित सभी विषयों की जाँच करें और किसी भी प्रकार की प्रतियोगिताओं या परीक्षाओं का प्रयास करने से पहले जितना संभव हो उतना अभ्यास करें।

हिंदी निबंधों की संरचना

Hindi Essay Parts

उपरोक्त छवि आपको हिंदी निबन्ध की संरचना के बारे में प्रदर्शित करती है और आपको निबन्ध को हिन्दी में प्रभावी ढंग से रचने के बारे में कुछ विचार देती है। यदि आप स्कूल या कॉलेजों में निबंध लेखन प्रतियोगिता में किसी भी विषय को लिखते समय निबंध के इन हिस्सों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से इसमें पुरस्कार जीतेंगे।

इस संरचना को बनाए रखने से निबंध विषयों का अभ्यास करने से छात्रों को विषय पर ध्यान केंद्रित करने और विषय के बारे में छोटी और कुरकुरी लाइनें लिखने में मदद मिलती है। इसलिए, यहां संकलित सूची में से अपने पसंदीदा या दिलचस्प निबंध विषय को हिंदी में चुनें और निबंध की इस मूल संरचना का अनुसरण करके एक निबंध लिखें।

हिंदी में एक सही निबंध लिखने के लिए याद रखने वाले मुख्य बिंदु

अपने पाठकों को अपने हिंदी निबंधों के साथ संलग्न करने के लिए, आपको हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखते समय कुछ सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। कुछ युक्तियाँ और नियम इस प्रकार हैं:

  • अपना हिंदी निबंध विषय / विषय दिए गए विकल्पों में से समझदारी से चुनें।
  • अब उन सभी बिंदुओं को याद करें, जो निबंध लिखने शुरू करने से पहले विषय के बारे में एक विचार रखते हैं।
  • पहला भाग: परिचय
  • दूसरा भाग: विषय का शारीरिक / विस्तार विवरण
  • तीसरा भाग: निष्कर्ष / अंतिम शब्द
  • एक निबंध लिखते समय सुनिश्चित करें कि आप एक सरल भाषा और शब्दों का उपयोग करते हैं जो विषय के अनुकूल हैं और एक बात याद रखें, वाक्यों को जटिल न बनाएं,
  • जानकारी के हर नए टुकड़े के लिए निबंध लेखन के दौरान एक नए पैराग्राफ के साथ इसे शुरू करें।
  • अपने पाठकों को आकर्षित करने या उत्साहित करने के लिए जहाँ कहीं भी संभव हो, कुछ मुहावरे या कविताएँ जोड़ें और अपने हिंदी निबंध के साथ संलग्न रहें।
  • विषय या विषय को बीच में या निबंध में जारी रखने से न चूकें।
  • यदि आप संक्षेप में हिंदी निबंध लिख रहे हैं तो इसे 200-250 शब्दों में समाप्त किया जाना चाहिए। यदि यह लंबा है, तो इसे 400-500 शब्दों में समाप्त करें।
  • महत्वपूर्ण हिंदी निबंध विषयों का अभ्यास करते समय इन सभी युक्तियों और बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, आप निश्चित रूप से किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं में कुरकुरा और सही निबंध लिख सकते हैं या फिर सीबीएसई, आईसीएसई जैसी बोर्ड परीक्षाओं में।

हिंदी निबंध लेखन पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. मैं अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार कैसे कर सकता हूं? अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक किताबों और समाचार पत्रों को पढ़ना और हिंदी में कुछ जानकारीपूर्ण श्रृंखलाओं को देखना है। ये चीजें आपकी हिंदी शब्दावली में वृद्धि करेंगी और आपको हिंदी में एक प्रेरक निबंध लिखने में मदद करेंगी।

2. CBSE, ICSE बोर्ड परीक्षा के लिए हिंदी निबंध लिखने में कितना समय देना चाहिए? हिंदी बोर्ड परीक्षा में एक प्रभावी निबंध लिखने पर 20-30 का खर्च पर्याप्त है। क्योंकि परीक्षा हॉल में हर मिनट बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, सभी वर्गों के लिए समय बनाए रखना महत्वपूर्ण है। परीक्षा से पहले सभी हिंदी निबन्ध विषयों से पहले अभ्यास करें और परीक्षा में निबंध लेखन पर खर्च करने का समय निर्धारित करें।

3. हिंदी में निबंध के लिए 200-250 शब्द पर्याप्त हैं? 200-250 शब्दों वाले हिंदी निबंध किसी भी स्थिति के लिए बहुत अधिक हैं। इसके अलावा, पाठक केवल आसानी से पढ़ने और उनसे जुड़ने के लिए लघु निबंधों में अधिक रुचि दिखाते हैं।

4. मुझे छात्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ औपचारिक और अनौपचारिक हिंदी निबंध विषय कहां मिल सकते हैं? आप हमारे पेज से कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों के लिए हिंदी में विभिन्न सामान्य और विशिष्ट प्रकार के निबंध विषय प्राप्त कर सकते हैं। आप स्कूलों और कॉलेजों में प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं और भाषणों के लिए हिंदी में इन छोटे और लंबे निबंधों का उपयोग कर सकते हैं।

5. हिंदी परीक्षाओं में प्रभावशाली निबंध लिखने के कुछ तरीके क्या हैं? हिंदी में प्रभावी और प्रभावशाली निबंध लिखने के लिए, किसी को इसमें शानदार तरीके से काम करना चाहिए। उसके लिए, आपको इन बिंदुओं का पालन करना चाहिए और सभी प्रकार की परीक्षाओं में एक परिपूर्ण हिंदी निबंध की रचना करनी चाहिए:

  • एक पंच-लाइन की शुरुआत।
  • बहुत सारे विशेषणों का उपयोग करें।
  • रचनात्मक सोचें।
  • कठिन शब्दों के प्रयोग से बचें।
  • आंकड़े, वास्तविक समय के उदाहरण, प्रलेखित जानकारी दें।
  • सिफारिशों के साथ निष्कर्ष निकालें।
  • निष्कर्ष के साथ पंचलाइन को जोड़ना।

निष्कर्ष हमने एक टीम के रूप में हिंदी निबन्ध विषय पर पूरी तरह से शोध किया और इस पृष्ठ पर कुछ मुख्य महत्वपूर्ण विषयों को सूचीबद्ध किया। हमने इन हिंदी निबंध लेखन विषयों को उन छात्रों के लिए एकत्र किया है जो निबंध प्रतियोगिता या प्रतियोगी या बोर्ड परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं। तो, हम आशा करते हैं कि आपको यहाँ पर सूची से हिंदी में अपना आवश्यक निबंध विषय मिल गया होगा।

यदि आपको हिंदी भाषा पर निबंध के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है, तो संरचना, हिंदी में निबन्ध लेखन के लिए टिप्स, हमारी साइट LearnCram.com पर जाएँ। इसके अलावा, आप हमारी वेबसाइट से अंग्रेजी में एक प्रभावी निबंध लेखन विषय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए इसे अंग्रेजी और हिंदी निबंध विषयों पर अपडेट प्राप्त करने के लिए बुकमार्क करें।

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Essay in Hindi (Hindi Nibandh) | 200 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन – 200 Hindi Essay Topics

essay on law in hindi

Hindi Essay Topics:निबंध (Nibandh) एक विस्तृत लेख होता है जो किसी विषय के बारे में विस्तार से लिखा जाता है। इसमें आमतौर पर लेखक अपने विषय के बारे में अपने विचार, अनुभव, विश्लेषण और संदर्भ देता है। निबंध लेखन के दौरान लेखक की उद्देश्य होती है कि वह अपने पाठकों को अपनी बात समझाए और उन्हें विषय के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करे। निबंध लिखना एक महत्वपूर्ण लेखन कौशल होता है जो विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं, लेखकों और संवाददाताओं को सीखना चाहिए।

  • 1 निबंध लिखना हिंदी में कैसे लिखें, इसके लिए आप निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं।
  • 2 निबंध – Nibandh In Hindi – Best 35 Hindi Essay Topics
  • 3 निबंध – Nibandh In Hindi – Best 10 Short Hindi Essay Topics
  • 4 निबंध – Nibandh In Hindi – Best 1 7 Long Hindi Essay Topics
  • 5.1 हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची
  • 5.2 दीर्घ निबंध विषय:
  • 5.3 लघु निबंध विषय:
  • 6 हिंदी निबंधों की संरचना इस प्रकार होती है:
  • 7 हिंदी भाषा में कई प्रसिद्ध निबंध हैं। निम्नलिखित कुछ प्रसिद्ध निबंध हैं:

निबंध लिखना हिंदी में कैसे लिखें, इसके लिए आप निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं।

  • विषय चुनें: निबंध लिखने से पहले, अपने निबंध के लिए एक विषय चुनें। आपको उस विषय के बारे में विस्तार से जानना होगा ताकि आप एक संपूर्ण और स्पष्ट निबंध लिख सकें।
  • निबंध का ढांचा बनाएं: निबंध लिखने से पहले, अपने निबंध के ढांचा को तैयार करें। आप अपने निबंध के लिए विभिन्न विषयों को एकत्रित कर सकते हैं और उन्हें एक अनुक्रम में रख सकते हैं।
  • विस्तारपूर्वक लिखें: निबंध लिखते समय, अपने विषय को विस्तारपूर्वक विवरण दें। आप अपने निबंध में अधिकतम जानकारी देने का प्रयास करें ताकि आपके पाठक उस विषय को समझ सकें।
  • आकर्षक शीर्षक: अपने निबंध के शीर्षक को आकर्षक बनाने के लिए एक उत्तेजक शीर्षक चुनें। शीर्षक उन शब्दों का एक समूह होता है जो आपके निबंध के मुख्य विषय को सार्थकता से दर्शाते हैं।
  • निष्कर्ष लिखें: अपने निबंध के अंत में एक निष्कर्ष लिखें जिसमें आप अपने विषय के बारे में अपनी मत का विवरण देते हैं।

निबंध – Nibandh In Hindi – Best 35 Hindi Essay Topics

  • नरेंद्र मोदी पर निबंध   (Essay on Narendra Modi )
  • डाकिया पर निबंध  ( Essay on Post Man )
  • सड़क सुरक्षा पर निबंध  (Essay on Road Safety )
  • पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध (Essay on Environmental Pollution)
  • कंप्यूटर पर निबंध  ( Computer Essay )
  • ईंधन संरक्षण पर निबंध  (Essay on Fuel Conservation )
  • महा शिवरात्रि पर निबंध (Essay on Maha Shivaratri Festival )
  • ताजमहल पर निबंध ( Essay on Taj Mahal )
  • प्रेम विस्तार है और स्वार्थ संकुचन है निबंध (All Love is Expansion and Selfishness )
  • हैप्पी न्यू ईयर पर निबंध (Essay on Happy New Year Celebration )
  • यात्रा पर निबंध ( Essay on Travelling)
  • भारत में जल संकट पर निबंध  (Water Crisis in India )
  • प्यार पर निबंध ( Essay on Love )
  • अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस (International Friendship Day (Date, History, Importance, Celebration)
  • गुरु गोबिंद सिंह जयंती ( Guru Gobind Singh Jayanti : Significance, History) लोहड़ी पर्व पर निबंध  ( Essay on Lohri Festival)
  • विश्व स्वास्थ्य दिवस पर निबंध (Essay on World Health Day )
  • गुरु तेग बहादुर पर निबंध( Essay on Guru Tegh Bahadur )
  • ईमानदारी सबसे अच्छी नीति क्यों है पर निबंध (Essay on Why Honesty is the Best Policy )
  • महात्मा गांधी के नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों पर निबंध  ( Essay on Moral Values and Principles of Mahatma Gandhi )
  • मौलिक कर्तव्यों पर निबंध  ( Essay on Fundamental Duties of India )
  • जितिया पूजा पर निबंध  ( Essay on Jitiya Puja/Jitiya Festival )
  • अजीब सपना पर निबंध  (Essay on Strange Dream )
  • ई-कूटनीति पर निबंध  (Essay on E-Diplomacy )
  • मैंने अपनी सर्दी की छुट्टी कैसे बिताई पर निबंध  (Essay on How I Spent My Winter Vacation )
  • मोर पर निबंध  ( Essay on Peacock)
  • सोशल मीडिया पर निबंध – स्कूल के लिए वरदान या अभिशाप ( Essay on Social Media)
  • सोशल नेटवर्किंग के फायदे और नुकसान ( Advantages and Disadvantages of Social Networking)
  • खराब मूड को कैसे हराया जाए पर निबंध  (Essay on How to Beat Bad Mood )
  • कला और संस्कृति हमें कैसे जोड़ती है पर निबंध  (Essay on How Art and Culture Unifies )
  • विपत्ति कैसे एक व्यक्ति को बदल सकती है पर निबंध  (Essay on How Adversity can Change a Person)
  • प्रदूषण कैसे नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है पर निबंध ( Essay on How Pollution is Negatively Affecting Humanity)
  • किसान क्यों महत्वपूर्ण हैं पर निबंध ( Essay on Why are Farmers Important )
  • निबंध ऐतिहासिक स्मारक का दौरा ( Essay on a Visit to Historical Monument)
  • पशु हमारे लिए कैसे उपयोगी हैं इस पर निबंध  (Essay on How Animals are Useful to us)
  • चिड़ियाघर की यात्रा पर निबंध  (Best 10 Essay on A Visit to Zoo )

निबंध – Nibandh In Hindi – Best 10 Short Hindi Essay Topics

  • पौधे इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं पर निबंध  (Essay on Why Plants are so Important for us )
  • पारसी नव वर्ष पर निबंध ( Essay on Parsi New Year )
  • भारत में उच्च शिक्षा पर निबंध (Essay on Higher Education in India )
  • नदियों में बढ़ते प्रदूषण पर निबंध (Essay on Growing Pollution in Rivers)
  • महात्मा गांधी पर निबंध ( Essay on Mahatma Gandhi)
  • भारत में आपातकाल पर निबंध (Essay on Emergency in India )
  • इसरो पर निबंध ( Best 10 Essay on ISRO)
  • मैं एक इंजीनियर क्यों बनना चाहता हूँ पर लंबा निबंध ( why i want to be an engineer)
  • सावन माह पर निबंध  (best 10 Essay on Sawan Month )
  • दशहरा निबंध ( Dussehra Essay in )

निबंध – Nibandh In Hindi – Best 1 7 Long Hindi Essay Topics

  • क्रिसमस निबंध (Christmas Essay )
  • ईद मुबारक निबंध (Eid Mubarak Essay In Hindi )
  • Aids Essay In Hindi  (एड्स निबंध )
  • Importance Of Yoga Essay ( योग का महत्व निबंध )
  • दुर्गा पूजा निबंध (Durga Puja Essay )
  • गणेश चतुर्थी निबंध ( Ganesh Chaturthi Essay )
  • रक्षाबंधन निबंध ( Raksha Bandhan Essay)
  • teacher’s Day Essay (शिक्षक दिवस निबंध )
  • Independence Day Essay (स्वतंत्रता दिवस निबंध हिंदी में)
  •  Essay on Hindi Diwas (हिंदी दिवस पर निबंध)
  •  Essay On Labour Day In Hindi (मजदूर दिवस निबंध)
  • Essay on world population day (विश्व जनसंख्या दिवस पर निबंध)
  • International yoga day Essay ( अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस निबंध )
  • world health day Essay ( विश्व स्वास्थ्य दिवस निबंध)
  • children’s day (बाल दिवस निबंध )
  • Essay on My school ( मेरे स्कूल पर निबंध )
  • ज्ञान पर निबंध ( Best 10 Essay on Knowledge)

 स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें?

स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी में निबंध लिखना एक महत्वपूर्ण कौशल है। निबंध लिखते समय ध्यान रखने वाली बातें हैं:

  • विषय का चयन: सबसे पहले, आपको उस विषय का चयन करना होगा जिसके बारे में आप लिखना चाहते हैं। आपको एक ऐसा विषय चुनना चाहिए जो आपके अध्ययन से संबंधित होता हो। उस विषय के बारे में आपके पास पूर्ण जानकारी होनी चाहिए ताकि आप इसे अच्छी तरह से विश्लेषण कर सकें।
  • निबंध की योजना बनाएं: निबंध की योजना बनाना बहुत महत्वपूर्ण होता है। आपको अपने निबंध के लिए एक तालिका बनाना चाहिए जिसमें निम्नलिखित बातें शामिल हों:
  • शुरुआती अनुच्छेद (जो आपके निबंध का परिचय देता है)
  • मुख्य विषयों की सूची (जो आप अपने निबंध में विस्तार से विश्लेषण करेंगे)
  • निष्कर्ष (जो आप अपने निबंध से निकालेंगे)
  • संरचना: निबंध में संरचना बहुत महत्वपूर्ण होती है।

हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची

दीर्घ निबंध विषय:.

  • भारत का इतिहास
  • स्वतंत्रता संग्राम
  • ग्लोबल वार्मिंग
  • पर्यावरण संरक्षण
  • महिला शिक्षा एवं उनका सम्मान
  • बेरोजगारी की समस्या
  • स्वास्थ्य समस्याएँ और उनका समाधान
  • दुर्घटनाओं की समस्या और समाधान
  • संचार के विकास और इसके प्रभाव
  • राजनीति और नागरिक अधिकार

लघु निबंध विषय:

  • मेरे परिवार का सदस्य
  • मेरे प्रिय शिक्षक
  • मेरी प्रिय फसल
  • मेरा प्रिय खेल
  • मेरी सड़क सुरक्षा
  • मेरा प्रिय त्योहार
  • मेरा स्वच्छ भारत
  • मेरी प्रिय किताब
  • मेरी प्रिय शहर

हिंदी निबंधों की संरचना इस प्रकार होती है:

  • प्रस्तावना: इसमें निबंध के विषय को परिचय दिया जाता है और पाठक का ध्यान आकर्षित किया जाता है।
  • मुख्य भाग: यहां पर निबंध का मुख्य विषय विस्तार से विवरण दिया जाता है। इसमें विषय के बारे में जानकारी, अभिप्राय और समर्थन के आधार पर अपने विचार प्रस्तुत किए जाते हैं।
  • निष्कर्ष: इस भाग में निबंध के मुख्य विषय के बारे में संक्षिप्त विचार एवं समाप्ति वाक्य दिए जाते हैं।
  • संदर्भ: इसमें उन सभी स्रोतों का उल्लेख किया जाता है जिनसे निबंध के लिए जानकारी प्राप्त की गई है।
  • संलग्नक: इसमें निबंध में प्रयोग किए गए चित्र, आंकड़े, चार्ट, टेबल, आदि का संलग्न किया जाता है।

इन सभी भागों को स्पष्ट, संगठित एवं अंतर्वस्तृत ढंग से लिखा जाना चाहिए ताकि पाठकों को निबंध का संदेश समझ में आ सके।

हिंदी भाषा में कई प्रसिद्ध निबंध हैं। निम्नलिखित कुछ प्रसिद्ध निबंध हैं:

  • “भ्रष्टाचार का उच्चाटन” – विषय: भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई
  • “भारत की संस्कृति” – विषय: भारतीय संस्कृति और उसका महत्त्व
  • “स्वच्छ भारत अभियान” – विषय: स्वच्छता और इसका महत्त्व
  • “जीवन में सफलता के मूल मंत्र” – विषय: सफलता के लिए जरूरी मंत्र
  • “मेरा विद्यालय” – विषय: अपने विद्यालय का वर्णन और महत्त्व
  • “जल ही जीवन है” – विषय: जल के महत्त्व और उसके संरक्षण के उपाय
  • “स्त्री शिक्षा” – विषय: स्त्रियों के लिए शिक्षा के महत्त्व और उसके लिए समाज की जिम्मेदारी
  • “स्वतंत्रता दिवस” – विषय: भारत की स्वतंत्रता का महत्त्व और उसकी अर्थपूर्ण विशेषताएं
  • “विदेशी भाषाओं के प्रति हमारी दृष्टि” – विषय: भाषा के महत्त्व और विदेशी भाषाओं के प्रति हमारी दृष्टि

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Guest Essay

Trump Embraces Lawlessness, but in the Name of a Higher Law

Signs featuring Donald Trump’s face and supporters’ slogans.

By Matthew Schmitz

Mr. Schmitz is a founder and an editor of Compact, an online magazine.

Donald Trump is often denounced in terms that suggest he poses an existential threat to the American political tradition. He is a fascist, a Russian agent, an aspiring caudillo: something foreign and menacing. To his critics, the four criminal indictments he faces are further evidence that he is a danger to democracy.

Mr. Trump and his associates may seem to welcome this characterization. He celebrates himself (inaccurately, as it happens) as a man who has been investigated “more than Billy the Kid, Jesse James and Al Capone combined.” He has praised James as “a great bank robber” and urged his fans to watch the 1932 film “Scarface,” based on Capone’s career. Donald Trump Jr. sells T-shirts that display his father’s mug shot with the words “Wanted — for president.”

For Mr. Trump’s detractors, such an open embrace of lawlessness confirms the danger he presents. But this understanding of his newfound criminal persona, a persona his legal opponents have helped to thrust upon him, overlooks something important: Mr. Trump may pose a threat to our political system as it now exists, but it is a threat animated by a democratic spirit. It is the threat of the outlaw hero, a figure of defiance with deep roots in American culture who exposes the injustices and hypocrisies of a corrupt system.

The outlaws in whose image Mr. Trump styles himself gained fame in the United States because they seemed to embody freedom and spontaneity, along with mistrust of authority and indifference to polite convention. They appealed to democratic impulses, however perversely. As the folklorist Stephen Knight has observed, the core values of the figure of the good outlaw are “liberty and equality.” These outlaws were lawless, yes, but in the name of a higher law. It is no coincidence that Mr. Trump recently described himself as the “public enemy of a rogue regime.”

The imagery is politically salient. Insofar as it resonates with his supporters, it may be an indication not that they are indifferent to our political tradition but rather that they are drawn to one of its core mythologies — and it suggests that attempts to use the legal system to defeat him politically will backfire.

From the beginning, Mr. Trump’s admirers have compared him to a paradigmatic outlaw hero, Robin Hood. In 2017, Sebastian Gorka, an official in the Trump administration, described Mr. Trump as “a Robin Hood taking over the empire” — an outsider who suddenly found himself on the inside, supported only by his “small band of merry men and women.” Representative Lauren Boebert, Republican of Colorado, has compared President Biden to Robin Hood’s antagonist Prince John.

Mr. Trump may not deserve the comparison — critics of his 2017 tax cut called it a reverse Robin Hood — but myth has a way of overstepping mere fact. Did Jesse James really pay off a widow’s mortgage, then rob the greedy banker who took the cash? Did Railroad Bill, the elusive Black bandit who stalked the rail lines of the South, actually feed the hungry with the money he made by robbing freight trains? For that matter, did Robin Hood really rob the rich and give to the poor? (The early ballads show him helping only members of his band.)

Whether these outlaws did the good deeds attributed to them hardly matters, because the appeal of the outlaw hero rests on a deeper truth: When the authorities are regarded as corrupt and malevolent, people will celebrate those who defy them. Like Joaquín Murrieta, the 19th-century Mexican laborer working in California who, according to legend, responded to injustice by vowing that he “would live henceforth for revenge,” Mr. Trump has promised to avenge the downtrodden. “I am your warrior. I am your justice,” he said in March 2023. “And for those who have been wronged and betrayed, I am your retribution.”

For those whose inclination is to trust and respect the American legal system, Mr. Trump’s mug shot, in which he defiantly glowers at the camera, may seem to lack humility. But for some others, the image may be a sign that he understands what it’s like to be on the wrong side of the law. The rapper Lil Pump has apparently had the image tattooed on his leg. The same is true of the rapper Bandman Kevo, who publicized his new body art with a recording likening himself to the candidate. (“Like Donald Trump, do what I want.”)

Lil Pump and Bandman Kevo have criminal records, a distinction they share with 70 million to 100 million other Americans — comparable to the roughly 100 million who have college degrees. It’s possible that a rap sheet is a political asset .

Mr. Trump’s embrace of an outlaw image marks a change on the American right. A political formation that once was committed to what Russell Kirk called the “defense of order” is now drawn to the most anarchic figures in our national mythology. The exchange of George Washington for Jesse James reflects the right’s growing alienation from America’s leading institutions. But the break may not be as total as it seems. Even as Robin Hood defies the local sheriff, he maintains his loyalty to the king. He may humiliate the bishop, but he prays to the Virgin Mary. A similar combination of rebellion and reverence characterizes Mr. Trump’s attempt to run as an outlaw who will restore law and order.

If Mr. Trump can manage to convince voters that he is an outlaw hero, then the usual criticisms of him won’t stick. His vices, however grave, will be seen as expressions of the democratic character, bound up with the political system his critics purport to defend. The threat he presents won’t be addressable by limiting foreign influence or vanquishing a single candidate. Indeed, given the nature of the outlaw hero’s appeal, we shouldn’t be surprised if efforts to counter him end up limiting things that are normally cherished as democratic values — not least, the freedom to challenge authority.

Matthew Schmitz ( @matthewschmitz ) is a founder and an editor of the online magazine Compact .

The Times is committed to publishing a diversity of letters to the editor. We’d like to hear what you think about this or any of our articles. Here are some tips . And here’s our email: [email protected] .

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Panama Papers law firm co-founder Ramon Fonseca dies in hospital, lawyer says

  • Medium Text

Ramon Fonseca, founding partner of law firm Mossack Fonseca, speaks during an interview with Reuters at his office in Panama City

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Reporting by Elida Moreno, Natalia Sinawski and Valentine Hilaire; Writing by Sarah Morland; Editing by Christina Fincher and Jan Harvey

Our Standards: The Thomson Reuters Trust Principles. New Tab , opens new tab

Mexico experiences high temperatures

World Chevron

Australian Foreign Minister Penny Wong in Melbourne

Australia says Palestinian UN membership bid builds peace momentum

Australian Foreign Minister Penny Wong said on Saturday the country's support for a Palestinian bid to become a full United Nations member was part of building momentum to secure peace in the Israel-Hamas war in Gaza.

Peru's President Boluarte attends a press conference in Lima

  • Immigration

Republican-Led States Across the Country Are Copying Texas’ Radical Anti-Immigration Law

Is this the return of “show me your papers”.

Isabela Dias

Isabela Dias

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essay on law in hindi

Governors Greg Abbott of Texas, Kevin Stitt of Oklahoma, and Kim Reynolds of Iowa. Bob Daemmrich/ZUMA

On April 30, Republican Gov. Kevin Stitt of Oklahoma signed HB 4156, enabling state law enforcement to arrest undocumented immigrants. The measure was, in many ways, radical. For more than a century, immigration enforcement has been almost exclusively the domain of the federal government. But, across the country, Republicans on the state level are attempting to undo settled law to take immigration policing and deportations into their hands. 

The most infamous example is in Texas. In 2023, lawmakers passed SB 4, which makes it a state crime to cross the border into Texas between ports of entry. The law allows police officers to detain people suspected of entering the state illegally and empowers state judges to order deportations. (Initial punishment for a misdemeanor would carry jail time and repeat offenders could face felony charges and up to 20 years in prison.) Thomas A. Saenz, president and general counsel of the Mexican American Legal Defense and Educational Fund (MALDEF), has called the measure “the most extreme anti-immigrant state law in the last 50 years, bar none.”

And this extreme law is spreading, with copycat anti-immigration bills cropping up in Republican-led states across the country. At least nine states have considered bills mirroring SB 4 so far this year, according to the National Conference of State Legislatures. In March, Iowa Gov. Kim Reynolds approved legislation, to go into effect in July, criminalizing “illegal re-entry.” Just last month, Louisiana lawmakers pushed through a bill allowing local law enforcement to enforce immigration law.

These anti-immigration laws raise the spectrum of an infamous measure adopted by Arizona in the not-so-distant past. In 2010, Arizona enacted SB 1070, a “ show me your papers ” law that, among other things, required state law enforcement to determine the immigration status of people under “reasonable suspicion” of being in the country without legal authorization. Following legal challenges, the United States Supreme Court struck down several provisions of the discriminatory law—with the exception of the mandate that authorities routinely ask for proof of legal status.

Crucially, the justices concluded in Arizona v. United States that “federal power to determine immigration policy is well settled.” But Texas, and other states, are hoping to challenge the current legal framework and, if it topples, have laws ready to go to police immigration.

Oklahoma’s legislation makes it a misdemeanor punishable by up to a year in jail or a maximum fine of $500 “if the person is an alien and willfully and without permission enters and remains in the State of Oklahoma without having first obtained legal authorization to enter the United States.” (It also requires them to leave the state within 72 hours of being convicted or released from custody.)

Stitt said upon signing the bill that the measure would not give “law enforcement the authority to profile individuals.” But opponents say the new legislation is one of the most extreme anti-immigrant laws in all of the United States—weaponizing state authorities against communities of color and potentially leading to racial profiling. “Local law enforcement lacks the expertise and the constitutional authority to interpret and enforce immigration law,” the ACLU of Oklahoma said in a press release critical of the legislation.

In both Texas and Oklahoma, Republican governors have called the laws necessary amid inaction from a Democratic administration at the federal level. But the bills represent a challenge to both well-established law and constitutional provisions.

SB 4 has been embroiled in a back-and-forth legal battle . The US Department of Justice, El Paso county, and two nonprofit groups have sued the state of Texas challenging SB 4 as unconstitutional because it violates the Supremacy Clause establishing that federal laws take precedent over state acts that conflict with the exercise of federal power. SB 4, the Biden administration argued, also ignores US Supreme Court’s precedents reaffirming federal authority to regulate immigration. “SB 4 impedes the federal government’s ability to enforce entry and removal provisions of federal law and interferes with its conduct of foreign relations,” according to the DOJ.

In February, a federal judge blocked SB 4 from going into effect, ruling that the law “threatens the fundamental notion that the United States must regulate immigration with one voice.” Texas appealed and the conservative Fifth Circuit granted an administrative stay suspending the lower court’s decision. The Supreme Court later allowed Texas to enforce the law pending ongoing litigation over its legality. But then a Fifth Circuit panel placed the implementation of SB 4 on temporary hold. “For nearly 150 years, the Supreme Court has held that the power to control immigration—the entry, admission, and removal of noncitizens—is exclusively a federal power,” the court wrote.

If SB 4 prevails, immigrant rights advocates worry it could present the conservative supermajority on the US Supreme Court with an opportunity to reverse its own previous ruling. Texas Gov. Greg Abbott, whose power grab aspirations knows few boundaries, suggested as much to CNN, saying the state would “welcome a Supreme Court decision that would overturn the precedent set in the Arizona case.” He has argued that the enforcement of SB 4 is supported by Scalia’s dissent in the 2012 case, where the late justice wrote that Arizona was entitled to “its own immigration policy” as long as it didn’t conflict with federal law and found no reason why the state couldn’t make it a state crime to deport people. (Both Justice Samuel Alito and Clarence Thomas dissented in part with the majority, with Thomas’ opinion indicating he would have upheld all provisions of SB 1070.)

SB 4, Kate Melloy Goettel, senior legal director at the American Immigration Council, stated , “ sets a disastrous  precedent” for other states across the country to enact bills that could “r esult in significant civil rights abuses, leading to widespread arrests and deportations by state actors  without key federal protections.” 

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