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अनुसंधान का अर्थ ( Meaning of Research)

अनुसंधान के द्वारा उन मौलिक प्रश्नों के उत्तर देने के प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। यह उत्तर मानवीय प्रयासों पर आधारित होता है इस प्रत्यय को चन्द्रमा के एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। कुछ वर्ष पहले जब तक मनुष्य चन्द्रमा पर नहीं पहुँचा था, चन्द्रमा वास्तव में क्या हैं ? इस सम्बन्ध में सही जानकारी नहीं थी। यह एक समस्या भी थी जिसका कोई समाधान भी नहीं था। मनुष्य को चन्द्रमा के सम्बन्ध में मात्र आवधारणाएं ही थी, शुद्ध ज्ञान नहीं था। परन्तु मनुष्य अपने प्रयास से चन्द्रमा पर पहुंच गया है। इस प्रकार शोध कार्यों द्वारा उन प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर साहित्य में उपलब्ध नहीं है अथवा मनुष्य की जानकारी में नहीं है। उन समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयत्न किया जाता है जिसका समाधान उपलब्ध नहीं है और न ही मनुष्य की जानकारी में है।

अनुसंधान की परिभाषा ( Definition of Research)

अनेक परिभाषाएं अनुसन्धान की गई है प्रमुख परिभाषा इस प्रकार हैं-

रेडमेन एवं मोरी के अनुसार- “नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए व्यावस्थित प्रयास ही अनुसंधान हैं।”

पी० एम० कुक के अनुसार- ‘अनुसंधान किसी समस्या के प्रति ईमानदारी, एवं व्यापक रूप में समझदारी के साथ की गई खोज है। जिसमें तथ्यों, सिद्धान्तों तथा अर्थों की जानकारी की जाती है। अनुसंधान की उपलिब्ध तथा निष्कर्ष प्रामाणिक तथा पुष्टि करने योग्य होते हैं। जिससे ज्ञान में वृद्धि होती है।

उद्देश्य ( Objectives of Research)

शोध समस्याओं की विविधता अधिक है इसके चार प्रमुख उद्देश्य होते हैं- सैद्धान्तिक उद्देश्य, तथ्यात्मक उद्देश्य, सत्यात्मक उद्देश्य तथा व्यावहारिक उद्देश्य इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  • सैद्धान्तिक उद्देश्य ( Theoretical Objectives)- अनुसंधान में वैज्ञानिक शोध कार्य द्वारा नये सिद्धान्तों तथा नये नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। इस प्रकार के शोध कार्य में अर्थापन होता है। इसमें चरों के सम्बन्धों को प्रगट किया जाता है और उनके सम्बन्ध में सामान्यीकरण किया जाता है। इससे नवीन ज्ञान की वृद्धि होती है, जिनका उपयोग शिक्षण तथा निर्देशन की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाता है।
  • तथ्यात्मक उद्देश्य ( Factual Objectives)- शिक्षा के अन्तर्गत ऐतिहासिक शोध-कार्यो। द्वारा नये तथ्यों की खोज की जाती है। इनके आधार पर वर्तमान को समझने में सहायता मिलती है। इन उद्देश्यों की प्रकृति वर्णनात्मक होती है। क्योंकि तथ्यों की खोज करके, उनका अथवा घटनाओं का वर्णन किया जाता है। नवीन तथ्यों की खोज शिक्षा-प्रक्रिया के विकास तथा सुधार में सहायक होती है, निर्देशन प्रक्रिया का विकास तथा सुधार किया जाता है।
  • सत्यात्मक उद्देश्य ( Establishment of Truth Objective)- दार्शनिक शोध कार्यों द्वारा नवीन सत्यों का प्रतिपादन किया जाता है। इनकी प्राप्ति अन्तिम प्रश्नों के उत्तरों से की जाती है। दार्शनिक शोध-कार्यों द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों, सिद्धान्तों तथा शिक्षण विधियों तथा पाठ्यक्रम की रचना की जाती है। शिक्षा की प्रक्रिया के अनुभवों का चिन्तन बौद्धिक स्तर पर किया जाता है। जिससे नवीन सत्यों तथा मूल्यों को प्रतिपादन किया जा सकता है।
  • व्यावहारिक उद्देश्य ( Application Objectives)- शैक्षिक अनुसंधा निष्कर्षों का व्यावहारिक प्रयोग होना चाहिए। परन्तु कुछ शोध-कार्यों में केवल इन्हें विकासात्मक अनुसन्धान भी कहते है। क्रियात्मक अनुसन्धान से शिक्षा की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास किया जाता है अर्थात् इनका उद्देश्य व्यावहारिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से इसका उपयोग अधिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से भी इस उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। निर्देशन में इसकी उपयोगिता अधिक होती है।

अनुसन्धान का वर्गीकरण (Classification of Research)

अनुसन्धान के उद्देश्यों से यह स्पष्ट है कि अनुसन्धानों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है। प्रमुख वर्गीकरण मानदण्ड पर आधारित है-

योगदान की दृष्टि से (Contribution Point of View)

शोध कार्यों के योगदान की दृष्टि से शैक्षिक अनुसन्धानों को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-

मौलिक अनुसंधान ( Basic or Fundamental Research)- इन शोध कार्यों द्वारा नवीन ज्ञान की वृद्धि की जाती है-नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन नवीन तथ्यों की खोज, नवीन तथ्यों का प्रतिपादन होता है। मौलिक-अनुसन्धानों से ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि की जाती है। इन्हें उद्देश्यों की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  • प्रयोगात्मक शोध-कार्यों से नवीन सिद्धान्तों तथा नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। सर्पक्षण शोध से इसी प्रकार का योगदान होता है।
  • ऐतिहासिक शोध कार्यो से नवीन तथ्यों की खोज की जाती है। जिनमें अतीत का अध्ययन किया जाता है और उनके आधार पर वर्तमान को समझने का प्रयास किया जाता है।
  • दार्शनिक शोध कार्यों से नवीन सत्यों एवं मूल्यों का प्रतिपादन किया जाता है। शिक्षा का सैद्धान्तिक दार्शनिक अनुसन्धानों से विकसित किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण लिंक

  • निर्देशन (Guidance)- अर्थ, परिभाषा एवं विशेषतायें, शिक्षा तथा निर्देशन में सम्बन्ध
  • सूक्ष्म-शिक्षण- प्रकृति, प्रमुख सिद्धान्त, महत्त्व, परिसीमाएँ
  • निर्देशन के उद्देश्य (Aims of Guidance in Hindi)
  • शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)-परिभाषा, विशेषताएँ, सिद्धान्त
  • शैक्षिक निर्देशन-उद्देश्य एवं आवश्यकता (Objectives & Need)
  • व्यावसायिक निर्देशन (Vocational guidance)- अर्थ, उद्देश्य, शिक्षा का व्यावसायीकरण
  • परामर्श (Counselling)- परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य, विशेषताएँ
  • विशेष शिक्षा की आवश्यकता | Need for Special Education
  • New Education Policy- Characteristics & Objectives in Hindi
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1992 की संकल्पनाएँ या विशेषताएँ- NPE 1992
  • सूक्ष्म शिक्षण- परिभाषा, सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया, प्रतिमान, पद
  • व्यावसायिक निर्देशन- आवश्यकता एवं उद्देश्य (Need & Objectives)

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बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सम्पूर्ण जानकारी देने में सक्षम है।

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अनुसंधान के प्रकार (Types of Research)

Types of Research

अनुसंधान आमतौर पर अंत: विषय में अनुसंधान के विभिन्न प्रकारों के बीच काफी व्यापक व्यापकता भी है

Table of Contents

  परिणाम के आधार पर अनुसंधान का वर्गीकरण 

परिणाम के आधार पर अनुसंधान दो प्रकार का होता है –

मौलिक अनुसंधान और  व्यावहारिक अनुसंधान  

मौलिक या प्राथमिक अनुसंधान (बेसिक रिसर्च)

 यह मूल ज्ञान के वर्तमान समय में विधि के लिए होता है इससे सिद्धांतों और धारणाएं विकसित होती हैं हो सकती हैं कि वर्तमान में इनका कोई उपयोग ना हो या अकादमी के दृष्टिकोण से ज्यादा महत्वपूर्ण है मौलिक या प्राथमिक अनुसंधान से ज्ञान में वृद्धि की खोज या अविष्कार   मुख्यता वाचिक होती है और विस्तृत अध्ययन किया जाता है

 व्यावहारिक अनुसंधान (अप्लाइड रिसर्च)

 व्यावहारिक अनुसंधान विशिष्ट और व्यावहारिक समस्याओं का समाधान करने के लिए किया जाता है यह नीति निर्धारण प्रशासन और किसी घटना को समझने के लिए उपयोग किया जा सकता है क्या यह मुक्ता मौलिक अनुसंधान के आधार पर ही किया जाता है व्यावहारिक अनुसंधान समाधान उन्मुख होता है व्यावहारिक अनुसंधान समाधान उन्मुख होता है मूल परिस्थितियों में लागू होता है और इस का गहन अध्ययन किया जाता है।

तर्क के आधार पर अनुसंधान का वर्गीकरण

(Classification of Research on the Basis of Logic) 

आगमन और निधन को ज्ञान प्राप्ति की मूलभूत शिल्पी कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी यह दोनों अपने-अपने तरीके से ज्ञात करने के लिए सहायक उपकरण हैं।

  आगमन (सूचक)

आगमन तक प्रणाली तक का प्रयोग कर ज्ञान प्राप्त करने की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें हम विभिन्न उदाहरणों या अनुभवों के सामान्यीकरण द्वारा वांछित ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

 निगम आंतरिक प्रणाली ज्ञान प्राप्ति के लिए एक ऐसी तर्क प्रणाली है जिसमें हम सामान्य से विशिष्ट की ओर चलते हैं।

 अतः हम कह सकते हैं कि सिर्फ आगमन या सिर्फ निधन की सहायता से विश्वसनीय वैध और वस्तुनिष्ठ ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है या नहीं किसी पर अत्यधिक निर्भरता हमारी सोच और उसके निष्कर्षों को गलत दिशा में ले जा सकती है आगमन या निस्सहायता वादों ये हैं से किसी को भी पूर्णतया त्रुटि रहित या विश्वसनीय उपगमम माना नहीं जा सकता है।

  प्रक्रिया के आधार पर अनुसंधान का वर्गीकरण 

 इस आधार पर अनुसंधान को तीन प्रकार का माना गया है।

  • परिधीय या परिधीय अनुसंधान 
  • गुणात्मक अनुसंधान
  •  मिश्रित अनुसंधान

 1-  परिधीय अनुसंधान   

 स्वभाव से यह निद्रता का ही रूप है इसमें पहले उपलेखना का निर्धारण होता है जिसमें सिद्धांत भी पहले से ही निर्धारित होते हैं यह शोध आंकड़ों पर आधारित होता है और इसके निष्कर्ष भी आंकड़ों द्वारा ही निर्धारित होता है मात्रात्मक शोध आदेशात्मक है और निरोध विधि पर आधारित   होता है।

मात्रात्मक शोध किसी प्रकार के पक्ष या भाव से रहित होता है यह या सटीक घटना और परिणाम या प्रभाव के बीच संबंधों पर केंद्रित रहता है मात्रात्मक शोध में सूचना सांख्यिकीय के रूप में होता है या सर्वेक्षण संरक्षित साक्षात्कार अवलोकन रिकॉर्ड और रिपोर्ट की समीक्षा का डेटा संग्रह होता है।

विश्वविद्यालय आयोग Universities Commission

 2-  गुणात्मक अनुसंधान 

इस शोध को आगमन का रूप माना जाता है कि मानव व्यवहार को गणित के स्रोतों में नहीं बांधा जा सकता है गुणात्मक शोध का मुख्य उद्देश्य मानव व्यवहार और उसे नियंत्रित करने वाले कारणों को गहराई से समझने से होता है ।

यह विधि ना केवल क्या कहां कब सवाल की जांच करती है बल्कि क्यों और कैसे फिर भी इस प्रकार के अनुसंधान के लिए बड़े हमलोंदर्शो की बजाए छोटे लेकिन कैनद्रित मदरसों को ज्यादा उपयोगी माना गया है गुणात्मक शोध निर्देशन से कार्य करता है गुणात्मक शोध में आमतौर पर उपलेख का प्रयोग नहीं करते यह विकल्प खुला रखते हैं। 

Research Aptitude /अनुसंधान अभिक्षमता अनुसंधान: अर्थ,

गुणात्मक शोध बहुत लचीला होता है गुणात्मक शोध मात्रात्मकता के स्थान पर व्यक्तिगत अनुभव के विश्लेषण पर जोर देता है गुणात्मक शोध में शोध के निष्कर्ष में भाव और पक्ष को स्थान दिया जाता है। यह कारण का विश्लेषण और सत्यापन करता है।

 उदाहरण के लिए यदि हमें शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षण प्रभावशीलता के बारे में अध्ययन करना है तो जो संबंधित तथ्य सामने आते हैं उन्हीं का परीक्षण और रिकॉर्डिंग द्वारा वर्णनात्मक तथ्यों के रूप में शिक्षक प्रभावशीलता की गुणात्मक तथ्यों पर टिप्पणी की जाएगी।

गुणात्मक अनुसंधान का उपयोग अफसर   नीति और कार्यक्रम मूल्यांकन अनुसंधान के लिए किया जाता है विश्वसनीयता और वैधता को गुणात्मक अनुसंधान का एक मुख्य विषय माना गया है गुणात्मक शोध में कुछ विशिष्ट गुणों और सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है जिसका वर्णन उद्देश्यों लिखित अनुच्छेदों में किया गया है इसको गुणात्मक अनुसंधान के विभिन्न प्रकार भी कहा जा सकता है

समूह केंद्रीय 

  इस विधि में शोधकर्ता एक साथ कुछ व्यक्तियों के समूह को किसी विषय वस्तु पर चर्चा करने के लिए एकत्रित करता है समूह में सदस्य की संख्या कम रखी जाती है ताकि सदस्य स्वयं को अधिक स्वतंत्र तरीके से व्यक्त कर सकें।

प्रत्यक्ष अवलोकन 

 इसमें बाहरी गवाह के द्वारा प्रदत एकत्रित किया जाता है।

गहन साक्षात्कार

  यह स्वरूपित होता है और इसमें कुछ तथ्यों की गहराई तक जाने का प्रयास रहता है

यह शोध मुख्य साहित्य की समीक्षा करने में सही होता है और उसी का एक दृष्टिकोण माना जा सकता है।

 यह गुणात्मक अनुसंधान का ही एक रूप है जिसमें शोधकर्ता एक या अधिक व्यक्तियों के किसी घटना विशेष के बारे में उनके अनुभव को समझने का प्रयास करता है हम यह भी कह सकते हैं कि घटनाजन्य अनुसंधान का उद्देश्य भागीदारों के दृष्टिकोण से वर्तमान में स्थित किसी भी प्रक्रिया है। है। या घटना विशेष का उसका स्वत्व और वास्तविक परिस्थितियों में अध्ययन करना है

नृ – जातीय या जतिवृत्त शोध

जातिवृतात्मक अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य भौतिक और सामाजिक परिवेश जिसमें अध्ययन किए जाने वाले लोग रहते हैं शिक्षण संस्थान में आते हैं जाते हैं या कोई अन्य कार्य करते हैं आदि का निर्धारण करना जातिवृतात्मक का मूल मानव शास्त्र में है।

व्यक्तिगत अध्ययन  

यहां हम कई इकाइयों या न्याय दर्शन का अध्ययन करने की अपेक्षा एक का गहन अध्ययन करते हैं जैसे इकाइयां कुछ निराशाओं में छिपी होती हैं यह मुख्य मनोवैज्ञानिक सूचकांक सामाजिक शास्त्र व्यापार क्षेत्र आदि में सदस्यों को एकत्र करने की एक विधि है।

यह इकाई एक व्यक्ति परिवार समूह है,   या  समुदाय हो सकता है या सामाजिक इकाई का एक समग्र रूप में परीक्षण करता है इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य इकाई के जीवन चक्र को समझने होता है जिसमें प्रदत गुणात्मक होते हैं अतः व्यक्ति अध्ययन के लिए इकाई का चयन सावधानी पूर्वक करना चाहिए।

प्रदत्त आधारित सिद्धांत

 एक गुणात्मक दृष्टिकोण है जिसमें शोधकर्ता द्वारा एकत्रित किए गए प्रश्नों का विश्लेषण के आधार पर किसी सिद्धांत को विकसित किया जा सकता है, हालांकि गुणात्मक शोध में सिद्धांत स्थापित करना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसमें आगमन उपागम का प्रयोग किया जाता है और जिसके आधार भूमि प्रदत्त होते हैं।

जिनके शोधकर्ताओं द्वारा प्राकृतिक परिस्थितियों में निष्कर्ष और विश्लेषण कर सिद्धांत निर्माण का कार्य किया जाता है, इस पद्धति में प्रदेकर के निर्माण के विभिन्न स्रोतों, जैसे- परिवादात्मक प्रदत्त अभिलेखों का पुनरुद्धार, साक्षात्कार, परीक्षण और सर्वेक्षण का उपयोग किया जाता है।

 उपरोक्त आह के अलावा पात्र निष्कर्षण निरंतर प्रक्रिया या घटना विशेष का उसकी स्वाभाविक और वास्तविक परिस्थितियों में अध्ययन करना है।

3- मिश्रित अनुसंधान मिक्सड रिसर्च गुणात्मक अनुसंधान में अधिक शोध लाने और उनके बेहतर सत्यापन के लिए मात्रात्मक प्रयोगशालाओं का भी प्रयोग किया जा सकता है 1970 के दशक तक वाक्यांश गुणात्मक अनुसंधान का उपयोग केवल मानव विज्ञान या समाजशास्त्र के एक विषय का उल्लेख करने के लिए होता है।

  1970 और 1980 के बीच के दशक के बीच के दशक के बीच के दशक के बीच के दशक के बीच गुणात्मक अनुसंधान का उपयोग अन्य विषयों के लिए भी किया जा रहा है लगाया गया है 1980 -1990 के बीच के दशक के अंत में मात्रात्मक पक्ष की ओर से आलोचनाओं की बाढ़ के आंकड़ा विश्लेषण। विश्वसनीयता और ताकत। के। संबंध में परिकल्पित समस्याओं से निबटने के लिए गुणात्मक अनुसंधान की नई विशेषताओं का विकास हुआ।

जांच के आधार पर अनुसंधान

यह अनुसंधान मुख्य रूप से अनुसंधान समस्या को किस प्रकार से हम हल कर सकते हैं के बारे में अध्ययन करता है। 

जांच के आधार पर अनुसंधान दो प्रकार का है-

 यह मूल परिधीय अनुसंधान या निगमन विधि के जैसा ही है।

  सामाजिक विषय पर अनुसंधान कार्यक्रम रखना पड़ता है इसलिए इसका गुणात्मक अनुसंधान और आगमन विधि से मिश्रित संबंध है।

उद्देश्यों के आधार पर अनुसंधान का वर्गीकरण 

अनुसंधान के उद्देश्यों के आधार पर अनुसंधान को मुख्य रूप से 5 श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

    वर्णनात्मक अनुसंधान 

 जैसे कि नाम से पता चलता है इस प्रकार का अनुसंधान स्थिति का वर्णन करता है यह क्या है या क्या था जैसे सवालों का उत्तर देने का प्रयास करता है यह तर्क करने जैसा है।

 इसमें मुख्यता सर्वेक्षण पद्धति का उपयोग होता है इस प्रकार के शोध में शोधकर्ता का चरों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है इसमें जांच परिस्थिति या वातावरण में परिवर्तन के बिना ही एकत्रित की जाती है। इसमें किसी भी चर के साथ हेरफेर नहीं किया जाता है अनुसंधान के रूप में भी निर्दिष्ट किया जाता है

 इस शोध में सर्वेक्षण और पर्याप्त व्याख्या के साथ-साथ तथ्यों की खोज को सम्मिलित किया जाता है उदाहरण के लिए वर्णनात्मक शोध यह पता लगाने का प्रयास किया जा सकता है कि किसी भी स्कूल जिले के राज्य या प्रांत में शिक्षा का स्तर कैसा है। 

  घटनोक्तर अनुसंधान ऐतिहासिक अनुसंधान और विश्लेषात्मक अनुसंधान भी इसी अनुसंधान के विभिन्न प्रारूप कहे जा सकते हैं

सहसंबंध अनुसंधान (समन्वय अनुसंधान) 

(1) सहसंबंध अनुसंधान में एक स्थिति के दो पहलुओं के बीच संबंध और चर निर्भरता का पता चलता है दो या दो से अधिक चर एक साथ होते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह एक दूसरे के लिए है

(2) इस शोध के द्वारा एक निश्चित परिस्थिति में प्रमुख कारकों की पहचान की जा सकती है।

शोधात्मक शोध 

(एक्सप्लेनेटरी रिसर्च)

 व्याख्यात्मक अनुसंधान में एक स्थिति या घटना के दो पहलू कैसे और क्यों जैसे सवालों का जवाब देने की चेष्टा की जाती है उदाहरण के लिए –

1- रट्टा लगाने के फल स्वरुप परीक्षा से संबंधित तनाव क्यों होता है।

2- तनाव की वजह से ह्रदय रोग की उत्पत्ति कैसे होती है।

Research Aptitude (अनुसंधान अभिक्षमता) अनुसंधान: अर्थ, विशेषताएं और प्रकार

2020 New Education Policy-(नई शिक्षा नीति 2020)

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Kushal Pathshala

शोध प्रक्रिया के चरण (Step of Research Process)

  • Post author: admin
  • Post category: Research Aptitude

शोध नया ज्ञान प्राप्त करने का एक माध्यम है। शोध में शोधार्थी को अनुसंधान कार्य पूरा करने के लिए शोध के विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ता है। शोधार्थी को शोध प्रक्रिया में प्रत्येक चरण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है जिससे सही ढंग शोध कार्य संपन्न हो सके। शोध प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की विस्तृत कार्य योजना तैयार करना चाहिए तथा प्रत्येक चरणों को ध्यान पूर्वक अवलोकन कर और जांच कर आवश्यकता अनुसार परिवर्तन एवं संशोधन कर लेना चाहिए। जैसा कि हम लोग जानते हैं कि शोध एक सतत चलने प्रक्रिया है इसमें कोई कार्य अन्तिम नहीं होता। शोध प्रक्रिया में शोधार्थी को विभिन्न स्तर पर निम्नलिखित चरणों से गुजरना होता है।

research ke types in hindi

Table of Contents

1. शोध समस्या की पहचान करना ( Identifying of the Research Problem)

प्रथम चरण में शोधार्थी को शोध समस्या की पहचान करना होता है अर्थात जिसे विशिष्ट क्षेत्र में उसे शोध कार्य करना है उसकी पहचान करना होता है। शोध समस्या ऐसी होनी चाहिए जिससे किसी नये ज्ञान की आविर्भाव हो और समसामयिक रूप से उपयोगी हो।इसमें शोधार्थी विशेष शोध समस्या का चयन करता है अर्थात वह एक विशेष विषय क्षेत्र पर कार्य करने के लिए मन:स्थिति बनाता है और विशिष्ट शोध समस्या का प्रतिपादन परिष्कृत तकनीकी शब्दों में करता है। शोधार्थी को ध्यान रखना चाहिए कि शोध समस्या का प्रतिपादन प्रभाव कारी एवं स्पष्ट तकनीकी शब्दावली में किया जाए। इसके साथ-साथ शोधार्थी को शोध समस्या में समाहित उप समस्याएं कौन-कौन सी हैं। इसका भी विस्तार से वर्णन करना चाहिए एवं शोधार्थी को विषय शोध विषय क्षेत्र में विशिष्ट साहित्य खोज करना चाहिए जिससे शोध विषय के बारे में स्पष्ट ज्ञान हो सके।

2. संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण ( Review of Relevant Literature)

शोधार्थी अपने विशेष शोध समस्या से संबंधित विषय पर गहन अध्ययन करता है। अन्य शोधकर्ताओं और विद्वानों द्वारा अद्यतन किए गए शोध कार्य का गहन अध्ययन व अवलोकन करता है। शोधकर्ता शोध से संबंधित शोध प्रबंधों, लेखों व अन्य स्वरूपों में उपलब्ध सामग्री का गहन सर्वेक्षण करता है। जिससे शोधार्थी को शोधकार्य करने की दिशा निर्देश मिलता है। इसमें शोधकर्ता अपने शोध समस्या से जुड़ी हुई अभी तक किए गए शोध प्रविधि, आंकड़ों का संकलन विधि और तकनीकी, आंकड़े विश्लेषण तकनीकी आदि का भी सार तैयार करता है।

शोधार्थी को इस चरण में यह भी स्पष्ट उल्लेख कर लेना चाहिए कि उसका शोध कार्य पूर्वर्ती शोध कार्य से किस तरह भिन्न है। इस चरण में संबंधित विषय क्षेत्र पर महत्वपूर्ण जानकारी प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक सूचना स्रोत तथा अन्य स्रोत से प्राप्त कर गहन चिंतन और साहित्य सर्वेक्षण कर लेना आवश्यक होता है, ताकि शोधार्थी को शोध कार्य करने में एक दिशा निर्देश मिल सके।

3. उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन (Selection of Appropriate Research Method)

इस चरण में शोधार्थी को उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन करना होता है। हर शोध समस्या एक विशिष्ट प्रकार की होती है और उसका समाधान भी एक विशेष शोध प्रविधि की सहायता से खोजा जा सकता है यदि हम समय विस्तार के आधार पर संबंधित समस्याओं के उत्तर खोजने का प्रयास करें तो निम्न मुख्य तीन शोध प्रविधि को अपनाना होता है -ऐतिहासिक शोध प्रविधि (Historical Method), सर्वेक्षण शोध प्रविधि  (Survey Method), प्रयोगात्मक शोध प्रविधि (Experimental Method)

  • ऐतिहासिक शोध प्रविधि उस शोध समस्या का समाधान के लिए उपयोगी होता है जिसमें शोधार्थी को भूतकाल में उत्तर या समाधान खोजना होता है। उदाहरण स्वरूप भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व पुस्तकालयों की स्थिति, डॉ एस आर रंगनाथन का पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के विकास में योगदान आदि इस शोध प्रविधि में वर्तमान परिस्थिति और समस्याओं का हल भूतकाल में हुए संबंधित विषय का अध्ययन के आधार पर खोजने का प्रयास किया जाता है।
  • सर्वेक्षण शोध प्रविधि में उन समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। जिसका हल वर्तमान परिस्थिति में से खोजना होता है। यह प्रविधि सामाजिक विज्ञान में सबसे अधिक प्रयोग होता है जैसे पाठक-अध्ययन, पुस्तकालय सर्वेक्षण, ग्रामीण पाठकों का सूचना खोजने संबंधी व्यवहार आदि शोध समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है।

4. शोध परिकल्पना का प्रतिपादन ( Formulation of Research Hypothesis)

शोध प्रक्रिया को सही दिशा प्रदान करने के लिए शोध प्राककल्पना का प्रतिपादन करना अत्यंत आवश्यक है। शोध में आंकड़े के संकलन और विश्लेषण के पूर्व शोध के परिणामों का अनुमान करना परिकल्पना है। यह एक बुद्धिमत्ता पूर्ण भविष्यवाणी होती है। यह परिकल्पना पूर्व निर्धारित सिद्धांतों अपना व्यक्तिगत अनुभवों अथवा आनुभविक विचारों के आधार पर शोध प्राक्कलन का निर्माण किया जाता है।

5. आंकड़ा संकलन तकनीक और उपकरणों का चयन ( Selection of Data Collection Tools and Techniques)

शोध के लिए आंकड़ा संकलन की अनेक विधियां हैं। शोधार्थी को अपनी शोध समस्या के अनुरूप तकनीकों का सहारा लेने की आवश्यकता होती है। प्रत्येक तकनीक और उपकरण एक विशिष्ट प्रकार के शोध के लिए उपयोगी होता है। अतः शोधार्थी को अपने शोध समस्या के अनुरुप तकनीक और उपकरण का चयन करना होता है ताकि आसानी से शोध समस्या का हल निकाला जा सके। शोध समस्या के समाधान हेतु आंकड़े का संकलन हेतु निम्नलिखित तकनीक और उपकरण का प्रयोग करते हैं।

  • अवलोकन (Observation)
  • मापन (Measurement) एवं
  • प्रश्नावली (Questionnaire)
  • अवलोकन (Observation) आंकड़ा संकलन का एक महत्वपूर्ण तकनीक है। यह तकनीक व्यक्ति या समूह के व्यवहार अध्ययन व विशेष परिस्थिति अध्ययन करने में अत्यंत ही उपयोगी होता है। कृष्ण कुमार इसके तीन घटक बताएं है – अनुभूति (Sensation), मनोयोग (Attention), एवं प्रत्यक्ष ज्ञान (Perception)। अनुभूति में हम संवेदी अंगों जैसे आंख, कान, नाक, त्वचा आदि का उपयोग किया जाता है। मनोयोग से तात्पर्य अध्ययन की जा रही विषय वस्तु पर एकाग्रता की क्षमता से है। प्रत्यक्ष ज्ञान एक व्यक्ति को तथ्यों को पहचानने में, अनुभव, आत्म-विश्लेषण, अनुभूति के उपयोग के द्वारा समर्थ बनाता है।
  • मापन (Measurement) का प्रयोग शोध समस्या के समाधान में प्रयोग करते हैं। शोधार्थी द्वारा निर्धारित उद्येश्य की पूर्ति हेतु मापन की विभिन्न विधियों का अनुसरण किया जाता है। इसके अन्तर्गत सूचियां, समाजमिति, संख्यात्मक मापनी, वर्णनात्मक मापनी, ग्राफिक मापनी, व्यक्ति से व्यक्ति मापनी इत्यादि का उपयोग करते हैं।
  • प्रश्नावली (Questionnaire) का प्रयोग शोधार्थी प्रश्न पूछने में प्रश्नावली, अनुसूची अथवा साक्षात्कार तकनीक करते हैं। प्रश्नावली शोधार्थी प्रश्न माला तैयार कर उत्तर दाताओं को डाक, ईमेल अथवा व्यक्तिगत रूप से देता है। उत्तरदाता प्रश्नावली को पढ़कर उत्तर पूरित करते हैं। अनुसूची में शोधार्थी उत्तरदाताओं से स्वयं प्रश्न पूछकर उत्तर की प्राप्त करता है जबकि साक्षात्कार में उत्तरदाता एवं शोधार्थी आमने-सामने बैठकर संवाद करते हैं।

research ke types in hindi

  • कोहा मॉड्यूल का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction to Koha Module)
  • जून 2024 यूजीसी-नेट के लिए महत्वपूर्ण सूचना एवं निर्देश
  • कोहा की प्रमुख विशेषताएं एवं आर्किटेक्चर मॉडल
  • कोहा – इंटीग्रेटेड लाइब्रेरी मैनेजमेंट सिस्टम
  • परंपरागत संचार माध्यम (Conventional Communication Media)

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अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा | अनुसंधान प्ररचना के प्रकार | Research Design in Hindi

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा

अनुक्रम (Contents)

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा- अनुसंधान प्ररचना शब्द समझने के लिये पहले ‘अनुसंधान’ तथा ‘प्ररचना’ शब्दों का अर्थ समझ लेना जरूरी है। सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य के अनुसार “सामाजिक अनुसंधान का अर्थ सामाजिक घटनाओं तथा तथ्यों के बारे में नवीन जानकारी प्राप्त करना है अथवा पूर्व अर्जित ज्ञान में संशोधन, सत्यापन एवं संवर्द्धन करना है। एकोफ (Ackoff) ने प्ररचना शब्द की व्याख्या उपमा (Analogy) द्वारा की है। एक भवन निर्माणकर्ता भवन की प्ररचना पहले से ही बना लेता है कि यह कितना बड़ा होगा, इसमें कितने कमरे होगें, कौन सी सामग्री का प्रयोग इसमें किया जायेगा इत्यादि। ये सब निर्णय वह भवन निर्माण से पहले ही ले लेता है ताकि भवन के बारे में एक ‘नक्शा’ बना ले तथा यदि इसमें किसी प्रकार का संशोधन करना है तो निर्माण शुरु होने से पहले ही किया जा सके। ‘प्ररचना का अर्थ योजना बनाना है, अर्थात प्ररचना पूर्व निर्णय लेने की प्रक्रिया है ताकि परिस्थिति पैदा होने पर इसका प्रयोग किया जा सके। यह सूझ-बूझ एवं पूर्वानुमान की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य अपेक्षित परिस्थिति पर नियंत्रण रखना है।” इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अनुसंधान की समस्या तथा उसमें प्रयुक्त होने वाली प्रविधियों पर नियंत्रण करने के लिये पूर्व निर्धारित निर्णयों की रूपरेखा ही अनुसंधान प्ररचना है।

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सैल्टिज जहोदा तथा अन्य के अनुसार, जब अनुसंधानकर्ता ने समस्या का निर्माण कर लिया है। तथा यह निर्धारण कर लिया है कौन सी सामग्री उसे एकत्रित करनी है तो उसे अनुसंधान प्ररचना बनानी चाहिये। इनके अनुसार अनुसंधान प्ररचना आँकड़ों के संकलन तथा विश्लेषण की दशाओं की उस व्यवस्था को कहते हैं जिसका लक्ष्य अनुसंधान के उद्देश्य की प्रासंगिकता तथा कार्यविधि की मितव्ययिता का। समन्वय करना है। एकोफ, सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य विद्वानों के विचारों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुसंधान प्ररचना पूर्व निर्णय की एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मितव्ययिता के आधार पर समस्या से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करना और आने वाले परिस्थितियों को नियंत्रित करना है। साथ ही अनुसंधान के लक्ष्य के आधार पर भिन्न प्रकार की प्ररचनायें बनायी जा सकती हैं। अतः अनुसंधान प्ररचना इनसे सम्बन्धित सर्वाधिक उपयुक्त एवं सुविधाजनक योजना है। जिसका उद्देश्य अनुसंधानकर्ता को दिशा प्रदान करना तथा मानव-श्रम की बचत करना है। सम्पूर्ण अनुसंधान प्ररचना को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है –

1. निदर्शन प्ररचना (Sampling Design) – इसमें अध्ययन की प्रकृति के अनुसार निदर्शन की इकाइयों के आकार तथा निदर्शन की पद्धति के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है।

2. अवलोकनात्मक प्ररचना (Observational Design) – इसमें उन दशाओं के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है जिनके अन्तर्गत अवलोकन किया जाना है अथवा अन्य किसी प्रविधि द्वारा सामग्री संकलित की जानी है।

3. सांख्यिकीय प्ररचना (Statistical Design) – इसका सम्बन्ध संकलित सामग्री के सांख्यिकीय विश्लेषण से है अर्थात यह पूर्व निर्णय लेने से है कि सामग्री के विश्लेषण हेतु किन-किन सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया जायेगा।

4. संचालन प्ररचना (Operational Design)- इसका सम्बन्ध उन प्रविधियों के बारे में पूर्व निर्णय लेने से है। जिनके द्वारा उपर्युक्त तीनों प्ररचनाओं अर्थात निदर्शन प्ररचना अवलोकनात्मक प्ररचना तथा सांख्यिकीय प्ररचना सम्बन्धी कार्यप्रणालियों को लागू किया जाना है। संचालन प्ररचना द्वारा ही अन्य तीनो प्ररचनाओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।

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अतः विद्वानों ने अनुसंधान प्ररचना के कुछ विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है जोकि निम्नलिखित हैं-

अनुसंधान प्ररचना के प्रकार (Types of Research Design)

अनुसन्धान प्ररचना के प्रकार अनुसन्धान प्ररचना या अनुसन्धान अभिकल्प को चार भागों में विभाजित किया गया है-

1. अन्वेषणात्मक अथवा निरूपणात्मक अनुसंधान अभिकल्प या प्ररचना

जब किसी अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किन्ही सामाजिक घटनाओं में अन्तर्निहित कारणों को ढूंढ निकालना होता है तो उससे सम्बन्धित रूपरेखा को अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं। इस प्रकार के अनुसंधान अभिकल्प में शोध कार्य की रूपरेखा इस तरीके से प्रस्तुत की जाती है कि घटना की प्रकृति व धारा प्रवाहों की वास्तविकताओं की खोज की जा सके। विषय अथवा समस्या के चुनाव के पश्चात् प्राक्कल्पना का 5 सफलतापूर्वक निर्माण करने के लिए इस प्रकार के अभिकल्प का अत्यधिक महत्व है क्योंकि इसकी सहायता से हमारे लिए विषय का कार्य-कारण सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए, यदि हमें किसी विशेष सामाजिक परिस्थिति में विवाह-विच्छेद प्राप्त व्यक्तियों में व्याप्त यौन व्यभिचार के विषय में अध्ययन करना है, तो उसके लिए सर्वप्रथम उन कारकों का ज्ञान आवश्यक है जो कि उस प्रकार के व्यभिचार को पैदा करते हैं। अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प इन्ही कारणों को खोज निकालने की एक योजना बन सकती है। इसी तरह से कभी-कभी समस्या के चुनाव तथा अनुसन्धान कार्य के लिए उसकी उपयुक्तता के सम्बन्ध में हमें अन्य किसी स्रोत से ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता है, तब उस अवस्था में अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प की सहायता से हमें बहुत सहायता मिल सकती है। इस प्रकार की अनुसन्धान अभिकल्प की सफलता के लिए कुछ अनिवार्यताओं का पालन करना होता है जो निम्नलिखित है-

(अ) सम्बद्ध साहित्य का अध्ययन

(ब) अनुभव सर्वेक्षण

(स) अन्तर्दृष्टि प्रेरक घटनाओं का विश्लेषण।

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2. वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प

विषय या समस्या के सम्बन्ध में सम्पूर्ण वास्तविक तथ्यों के आधार पर उनका विस्तृत वर्णन करना ही वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प का प्रमुख उद्देश्य है। इस पद्धति में आवश्यक है कि हमें वास्तविक तथ्य प्राप्त हो तभी हम उसकी वैज्ञानिक विवेचना करने में सफल हो सकते हैं। यदि समाज की किसी समस्या का विवरण देना है, तो उस समस्या के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित तथ्य प्राप्त होने चाहिए, जैसे निम्न श्रेणी के परिवारों का विवरण देना है, तो उसकी आयु, सदस्यों की संख्या, शिक्षा का स्तर व्यावसायिक ढाँचा, जातीय और पारिवारिक संरचना आदि से सम्बन्धित तथ्य, जब तक प्राप्त नहीं होते तब तक हम उसके वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत नहीं कर सकते। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हम अपना अनुसंधान अभिकल्प विषय के उद्देश्य के अनुसार बनायें।

3. परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प

भौतिक विज्ञानों की तरह समाजशास्त्र भी अपने अनुसन्धान कार्यों में परीक्षण प्रणाली का उपयोग कर अधिकाधिक यथार्थता लाने का प्रयत्न कर रहा है। भौतिक विज्ञानों में जिस तरह कुछ नियन्त्रित अवस्थाओं में रखकर विषय का अध्ययन किया जाता है, उसी में प्रकार नियन्त्रित दशाओं में रखकर निरीक्षण परीक्षण के द्वारा सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित अध्ययन करने रूपरेखा को परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं।

4. निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना

अनुसन्धान कार्य का मूलभूत उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति एवं ज्ञान की वृद्धि करना है। किन्तु यह भी सम्भव है कि अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किसी समस्या के कारणों के सम्बन्ध में वास्तविक ज्ञान प्राप्त करके उस समस्या के समाधानों को भी प्रस्तुत करना हो। इस प्रकार के अनुसन्धान अभिकल्प को निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना कहते हैं। दूसरे शब्दों में में, विशिष्ट सामाजिक समस्या के निदान की खोज करने वाले अनुसन्धान कार्य को, निदानात्मक अनुसन्धान कहते हैं।

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Monday, October 26, 2020

क्रियात्मक अनुसंधान अर्थ, प्रकार, परिभाषाएं, उद्देश्य,चरण और इतिहास action research meaning, types, definitions, objectives, stages and history.

 शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान, कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान  है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।स्टीफन  एम. कोरे

क्रियात्मक अनुसंधान के   प्रकार

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषाएँ, क्रियात्मक अनुसंधान का इतिहास और प्रयोग, क्रियात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य , क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र , क्रियात्मक अनुसंधान के चरण/सोपान,   क्रियात्मक अनुसंधान के लाभ.

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8 comments:

research ke types in hindi

OUTSTANDING SIR THANKS A LOT

Shiksha Mein kriyatmak Anusandhan karykartaon dwara Kiya jane wala Anusandhan Hai Taki vah Apne Karya Mein Sudhar kar Saken Stephen M Kore

बहुत ही उपयोगी पोस्ट है मेने भी यही से अपना कॉपी त्यार किया है

धन्यवाद

Nice information

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शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - Research Hypothesis – Definition, Nature and Types

 शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - research hypothesis – definition, nature and types,   शोध परिकल्पना.

 परिकल्पना अनुसन्धान का एक प्रमुख एवं लाभदायक एवं उपयोगी हिस्सा है एक परिकल्पना के पीछे एक अच्छा अनुसन्धान छिपा होता है। बिना परिकल्पना के अनुसन्धा उद्देश्यहीन तथा बिन्दुहीन होता जाता है। बिना किसी अच्छे अर्थ के परिणाम अच्छे नहीं मिलते हैं इसलिये परिकल्पना का आकार मिश्रित तथा कठिन तथा लाभ से परिपूर्ण होता है। परिकल्पना का स्वरूप बड़ा एवं करीब होने पर इसके आकार को रद्दो बदल कर अनुसन्धान के अनुसार घटाया बढ़ाया जाता है। ऐसा नहीं किया जायेगा तो अनुसन्धानकर्ता अनावश्यक एवं तथ्यहीन आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है।

शोध परिकल्पना :

परिकल्पना शब्द परि + कल्पना दो शब्दों से मिलकर बना है। परि का अर्थ चारो ओर तथा कल्पना का अर्थ चिन्तन है। इस प्रकार परिकल्पना से तात्पर्य किसी समस्या से सम्बन्धित समस्त सम्भावित समाधान पर विचार करना है।

परिकल्पना किसी भी अनुसन्धान प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण स्तम्भ है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी समस्या के विश्लेषण और परिभाषीकरण के पश्चात् उसमें कारणों तथा कार्य कारण सम्बन्ध में पूर्व चिन्तन कर लिया गया है, अर्थात् अमुक समस्या का यह कारण हो सकता है, यह निश्चित करने के पश्चात उसका परीक्षण प्रारम्भ हो जाता है। अनुसंधान कार्य परिकल्पना के निर्माण और उसके परीक्षण के बीच की प्रक्रिया है। परिकल्पना के निर्माण के बिना न तो कोई प्रयोग हो सकता है और न कोई वैज्ञानिक विधि के अनुसन्धान ही सम्भव है। वास्तव में परिकल्पना के अभाव में अनुसंधान कार्य एक उद्देश्यहीन क्रिया है।

  परिकल्पना की परिभाषा :

परिकल्पना की परिभाषा से समझने के लिए कुछ विद्वानों की परिभाषाओं को समझना आवश्यक है। जो निम्न है। 

करलिंगर ( Kerlinger) - "परिकल्पना को दो या दो से अधिक चरों के मध्य सम्बन्धों का कथन मानते हैं।"

मोले (George G. Mouley ) - "परिकल्पना एक धारणा अथवा तर्कवाक्य है जिसकी स्थिरता की परीक्षा उसकी अनुरूपता, उपयोग, अनुभव-जन्य प्रमाण तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर करना है।"

गुड तथा हैट (Good & Hatt ) - "परिकल्पना इस बात का वर्णन करती है कि हम क्या देखना चाहते है। परिकल्पना भविष्य की ओर देखती है। यह एक तर्कपूर्ण कथन है जिसकी वैद्यता की परीक्षा की जा सकती है। यह सही भी सिद्ध हो सकती है, और गलत भी।"

लुण्डबर्ग (Lundberg ) - "परिकल्पना एक प्रयोग सम्बन्धी सामान्यीकरण है जिसकी वैधता की जाँच होती है। अपने मूलरूप में परिकल्पना एक अनुमान अथवा काल्पनिक विचार हो सकता है जो आगे के अनुसंधान के लिये आधार बनता है।"

मैकगुइन (Mc Guigan ) - "परिकल्पना दो या अधिक चरों के कार्यक्षम सम्बन्धों का परीक्षण योग्य कथन है।

अतः उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परिकल्पना किसी भी समस्या के लिये सुझाया गया वह उत्तर है जिसकी तर्कपूर्ण वैधता की जाँच की जा सकती है। यह दो या अधिक चरों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध है ये इंगित करता है तथा ये अनुसन्धान के विकास का उद्देश्यपूर्ण आधार भी है।

परिकल्पना की प्रकृति :

किसी भी परिकल्पना की प्रकर्षत निम्न रूप में हो सकती है। -

1. यह परीक्षण के योग्य होनी चाहिये ।

2. इसह शोध को सामान्य से विशिष्ट एवं विस्तृत से सीमित की ओर केन्द्रित करना चाहिए।

3. इससे शोध प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर मिलना चाहिए।

4. यह सत्याभासी एवं तर्कयुक्त होनी चाहिए।

5. यह प्रकर्षत के ज्ञात नियमों के प्रतिकूल नहीं होनी चाहिए।

परिकल्पना के स्रोत :

परिकल्पनाओं के मुख्य स्रोत निम्नवत है।

समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन

समस्या सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन करके उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।

विज्ञान -

विज्ञान से प्रतिपादित सिद्धान्त परिकल्पनाओं को जन्म देते हैं।

संस्कृति -

संस्कृति परिकल्पना की जननी हो सकती है। प्रत्येक समाज में विभिन्न प्रकार की संस्कृति होती है। प्रत्येक संस्कृति सामाजिक एवं सांस्कर्षतिक मूल्यों में एक दूसरे से भिन्न होती है ये भिन्नता का आधार अनेक समस्याओं को जन्म देता है और जब इन समस्याओं से सम्बन्धित चिंतन किया जाता है तो परिकल्पनाओं का जन्म होता है।

व्यक्तिगत अनुभव

व्यक्तिगत अनुभव भी परिकल्पना का आधार होता है, किन्तु नये अनुसंध नकर्ता के लिये इसमें कठिनाई है। किसी भी क्षेत्र में जिनका अनुभव जितना ही सम्पन्न होता है, उन्हें समस्या के ढूँढ़ने तथा परिकल्पना बनाने में उतनी ही सरलता होती है।

  रचनात्मक चिंतन -

यह परिकल्पना के निर्माण का बहुत बड़ा आधार है। मुनरो ने इस पर विशेष बल दिया है। उन्होने इसके चार पद बताये हैं (i) तैयारी

 (ii) विकास

 (iii) प्रेरणा और

 (iv) परीक्षण | अर्थात किसी विचार के आने पर उसका विकास

किया, उस पर कार्य करने की प्रेरणा मिली, परिकल्पना निर्माण और परीक्षण किया।

अनुभवी व्यक्तियों से परिचर्चा -

अनुभवी एवं विषय विशेषज्ञों से परिचर्चा एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।

  पूर्व में हुए अनुसंधान

सम्बन्धित क्षेत्र के पूर्व अनुसंधानों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि किस प्रकार की परिकल्पना पर कार्य किया गया है। उसी आधार पर नयी परिकल्पना का सब्जन किया जा सकता है।

उत्तम परिकल्पना की विशेषताएं या कसौटी :

एक उत्तम परिकल्पना की निम्न विशेषतायें होती हैं -

परिकल्पना जाँचनीय हो 

एक अच्छी परिकल्पना की पहचान यह है कि उसका प्रतिपादन इस ढंग से किया जाये कि उसकी जाँच करने के बाद यह निश्चित रूप से कहा जा सके कि परिकल्पना सही है या गलत । इसके लिये यह आवश्यक है कि परिकल्पना की अभिव्यक्ति विस्तष्त ढ़ंग से न करके विशिष्ट ढंग से की जाये। अतः जाँचनीय परिकल्पना वह परिकल्पना है जिसे विश्वास के साथ कहा जाय कि वह सही है या गलत ।

परिकल्पना मितव्ययी हो

परिकल्पना की मितव्ययिता से तात्पर्य उसके ऐसे स्वरूप से है जिसकी जाँच करने में समय, श्रम एवं धन कम से कम खर्च हो और सुविधा अधिक प्राप्त हो।

परिकल्पना को क्षेत्र के मौजूदा सिद्धान्तों तथा तथ्यों से सम्बन्धित होना चाहिए

कुछ परिकल्पना ऐसी होती है जिनमें शोध समस्या का उत्तर तभी मिल पाता है जब अन्य कई उप कल्पनायें (Sub-hypothesis) तैयार कर ली जाये। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि उनमें तार्किक पूर्णता तथा व्यापकता के आधार के अभाव होते हैं जिसके कारण वे स्वयं कुछ नयी समस्याओं को जन्म दे देते हैं और उनके लिये उपकल्पनायें तथा तदर्थ पूर्वकल्पनायें (adhoc assumptions) तैयार कर लिया जाना आवश्यक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हम ऐसी अपूर्ण परिकल्पना की जगह तार्किक रूप से पूर्ण एवं व्यापक परिकल्पना का चयन करते हैं।

परिकल्पना को किसी न किसी सिद्धान्त अथवा तथ्य अथवा अनुभव पर आधारित होना चाहिये

• परिकल्पना कपोल कल्पित अथवा केवल रोचक न हो। अर्थात् परिकल्पना ऐसी बातों पर आधारित न हो जिनका कोई सैद्धान्तिक आधार न हो। जैसे - काले रंग के लोग गोरे रंग के लोगों की अपेक्षा अधिक विनम्र होते हैं। इस प्रकार की परिकल्पना आधारहीन परिकल्पना है क्योंकि यह किसी सिद्धान्त या मॉडल पर आधारित नहीं है।

परिकल्पना द्वारा अधिक से अधिक सामान्यीकरण किया जा सके

परिकल्पना का अधिक से अधिक सामान्यीकरण तभी सम्भव है जब परिकल्पना न तो बहुत व्यापक हो और न ही बहुत विशिष्ट हो किसी भी अच्छी परिकल्पना को संकीर्ण ( narrow) होना चाहिये ताकि उसके द्वारा किया गया सामान्यीकरण उचित एवं उपयोगी हो ।

परिकल्पना को संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होना चाहिए

संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होने का अर्थ है परिकल्पना व्यवहारिक एवं वस्तुनिष्ठ ढंग से परिभाषित हो तथा उसके अर्थ से अधिकतर लोग सहमत हों । ऐसा न हो कि परिभाषा सिर्फ व्यक्ति की व्यक्गित सोच की उपज हो तथा जिसका अर्थ सिर्फ वही समझता हो।

इस प्रकार हम पाते हैं कि शोध मनोवैज्ञानिक ने शोध परिकल्पना की कुछ ऐसी कसौटियों या विशेषताओं का वर्णन किया है जिसके आधार पर एक अच्छी शोध परिकल्पना की पहचान की जा सकती है।

परिकल्पना के प्रकार 

मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्र तथा शिक्षा के क्षेत्र में शोधकर्ताओं द्वारा बनायी गयी परिकल्पनाओं के स्वरूप पर यदि ध्यान दिया जाय तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि उसे कई प्रकारों में बाँटा जा सकता है। शोध विशेषज्ञों ने परिकल्पना का वर्गीकरण निम्नांकित तीन आधारों पर किया है -

चरों की संख्या के आधार पर -

साधारण परिकल्पना साधारण परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना - से है जिसमें चरों की संख्या मात्र दो होती है और इन्ही दो चरों के बीच के सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण स्वरूप बच्चों के सीखने में पुरस्कार का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यहाँ सीखना तथा पुरस्कार दो चर है जिनके बीच एक विशेष सम्बन्ध की चर्चा की है। इस प्रकार परिकल्पना साधारण परिकल्पना कहलाती है।

जटिल परिकल्पना - जटिल परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना से है जिसमें दो से अधिक चरों के बीच आपसी सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। जैसे- अंग्रेजी माध्यम के निम्न उपलब्धि के विद्यार्थियों का व्यक्तित्व हिन्दी माध्यम के उच्च उपलब्धि के विद्यार्थियों की अपेक्षा अधिक परिपक्व होता है । इस परिकल्पना में हिन्दी अंग्रेजी माध्यम निम्न उच्च उपलब्धि स्तर एवं व्यक्तित्व तीन प्रकार के चर सम्मिलित हैं अतः यह एक जटिल परिकल्पना का उदाहरण है।

  चरों की विशेष सम्बन्ध के आधार पर

मैक्ग्यूगन ने (Mc. Guigan, 1990) ने इस कसौटी के आधार पर परिकल्पना के मुख्य दो प्रकार बताये हैं।

Ii) सार्वत्रिक या सार्वभौमिक परिकल्पना -

 सार्वत्रिक परिकल्पना से स्वयम् स्पष्ट होता है कि ऐसी परिकल्पना जो हर क्षेत्र और समय में समान रूप से व्याप्त हो अर्थात् परिकल्पना का स्वरूप ऐसा हो जो निहित चरों के सभी तरह के मानों के बीच के सम्बन्ध को हर परिस्थित में हर समय बनाये रखे। उदाहरण स्वरूप- पुरस्कार देने से सीखने की प्रक्रिया में तेजी आती है। यह एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें बताया गया सम्बन्ध अधिकांश परिस्थितियों में लागू होता है।

(ii) अस्तित्वात्मक परिकल्पना

 इस प्रकार की परिकल्पना यदि सभी - व्यक्तियों या परिस्थितियों के लिये नही तो कम से कम एक व्यक्ति या परिस्थिति के लिये निश्चित रूप से सही होती है। जैसे सीखने की प्रक्रिया में कक्षा में कम से कम एक बालक ऐसा है पुरस्कार की बजाय दण्ड से सीखता है इस प्रकार की परिकल्पना अस्तित्वात्मक परिकल्पना है।

विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर

विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर परिकल्पना के निम्न तीन प्रकार है।

(i) शोध परिकल्पना - इसे कार्यरूप परिकल्पना या कार्यात्मक परिकल्पना भी कहते हैं। ये परिकल्पना किसी न किसी सिद्धान्त पर आधारित या प्रेरित होती है। शोधकर्ता इस परिकल्पना की उदघोषणा बहुत ही विश्वास के साथ करता है तथा उसकी यह अभिलाषा होती है कि उसकी यह परिकल्पना सत्य सिद्ध हो उदाहरण के लिये 'करके सीखने' से प्राप्त अधिगम अधिक सुदृढ़ होता है और अधिक समय तक टिकता है।' चूँकि इस परिकल्पना में कथन 'करके सीखने के सिद्वान्त पर आधारित है अतः ये एक शोध परिकल्पना है।

शोध परिकल्पना दो प्रकार की होती है- 

दिशात्मक एवं अदिशात्मक | 

दिशात्मक परिकल्पना में परिकल्पना किसी एक दिशा अथवा दशा की ओर इंगित करती है जब कि अदिशात्मक परिकल्पना में ऐसा नही होता है।

उदाहरण- "विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि एवं कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि में अन्तर है।"

उपरोक्त परिकल्पना अदिशात्मक परिकल्पना का उदाहरण हैं।

क्योंकि बुद्धि में अन्तर किसका कम या ज्यादा है इस ओर संकेत नहीं किया गया। इसी परिकल्पना को यदि इस प्रकार लिखा जाय कि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि कला वर्ग के छात्रों की अपेक्षा कम होती है अथवा कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि से कम है तो यह एक दिशात्मक शोध परिकल्पना होगी क्योंकि इसमें कम या अ क एक दिशा की ओर संकेत किया गया है।

(ii) शून्य परिकल्पना 

शून्य परिकल्पना शोध परिकल्पना के ठीक विपरीत होती है। इस परिकल्पना के माध्यम से हम चरों के बीच कोई अन्तर नहीं होने के संबंध का उल्लेख करते हैं। उदाहरण स्वरूप उपरोक्त परिकल्पना को नल परिकल्पना के रूप में निम्न रूप से लिखा जा सकता है विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि एंव कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि में कोई अंतर नहीं है। एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि, "व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी सीखता है तो इस परिकल्पना की शून्य परिकल्पना यह होगी कि 'व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी नहीं सीखता है। अतः उपरोक्त उदाहरणों के माध्यम से शून्य अथवा नल परिकल्पना को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।

(iii) सांख्यिकीय परिकल्पना

 जब शोध परिकल्पना या शून्य परिकल्पना - का सांख्यिकीय पदों में अभिव्यक्त किया जाता है तो इस प्रकार की परिकल्पना सांख्यिकीय परिकल्पना कहलाती है। शोध परिकल्पना अथवा सांख्यिकीय परिकल्पना को सांख्यिकीय पदों में व्यक्त करने के लिये विशेष संकेतों का प्रयोग किया जाता है। शोध परिकल्पना के लिये H, तथा शून्य परिकल्पना के लिये H का प्रयोग होता है तथा माध्य के लिये X का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण- यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह 'क' बुद्धिलब्धि में समूह 'ख' से श्रेष्ठ है तो इसकी सांख्यिकीय परिकल्पना H तथा H के पदों में निम्नानुसार होगी -

H1 :  Xa > Xb

H0 : Xa = Xb

यहाँ पर माध्य X का प्रयोग इसलिये किया गया है क्योंकि एक दूसरे से बुद्धि लब्धि की श्रेष्ठता जानने के लिये दोनो समूहों की बुद्धि लब्धि का मध्यमान जानना होगा जिसके आधार पर श्रेष्ठता की माप की जा सकेगी।

इस प्रकार एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह क की बुद्धि लब्धि एवं समूह 'ख' की बुद्धि लब्धि में अन्तर है तो इसकी H एवं H, इस प्रकार होगी।

H1 : Xa "" X b

H0 : Xa = X b

इस प्रकार विभिन्न प्रकार से शोध परिकल्पना का वर्गीकरण किया जा सकता है।

परिकल्पना के कार्य

अनुसन्धान कार्य में परिकल्पना के निम्नांकित कार्य है :

दिशा निर्देश देना

परिकल्पना अनुसंधानकता को निर्देशित करती है। इससे यह ज्ञात होता है कि अनुसन्धान कार्य में कौन कौन सी क्रियायें करती हैं एवं कैसे करनी है। अतः परिकल्पना के उचित निर्माण से कार्य की स्पष्ट दिशा निश्चित हो जाती है।

प्रमुख तथ्यों का चुनाव करना

परिकल्पना समस्या को सीमित करती है तथा महत्वपूर्ण तथ्यों के चुनाव में सहायता करती है। किसी भी क्षेत्र में कई प्रकार की समस्यायें हो सकती है लेकिन हमें अपने अध्ययन में उन समस्याओं में से किन पर अध्ययन करना है उनका चुनाव और सीमांकन परिकल्पना के माध्यम से ही होता है।

पुनरावृत्ति को सम्भव बनाना

पुनरावृत्ति अथवा पुनः परीक्षण द्वारा अनुसन्धान के निष्कर्ष की सत्यता का मूल्यांकन किया जाता है। परिकल्पना के अभाव में यह पुनः परीक्षण असम्भव होगा क्यों कि यह ज्ञात ही नहीं किया जा सकेगा किस विशेष पक्ष पर कार्य किया गया है तथा किसका नियंत्रण करके किसका अवलोकन किया गया है।

निष्कर्ष निकालने एवं नये सिद्धान्तों के प्रतिपादन करना -

परिकल्पना अनुसंधानकर्ता को एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने में सहायता करती है तथा जब कभी कभी मनोवैज्ञानिकों को यह विश्वास के साथ पता होता है कि अमुक घटना के पीछे क्या कारा है तो वह किसी सिद्धान्त की पष्ठभूमि की प्रतीक्षा किये बिना परिकल्पना बनाकर जाँच लेते हैं। परिकल्पना सत्य होने पर फिर वे अपनी पूर्वकल्पनाओं परिभाषाओं और सम्प्रत्ययों को तार्किक तंत्र में बांधकर एक नये सिद्धान्त का प्रतिपादन कर देते है।

अतः उपरोक्त वर्णन के आधार पर हम परिकल्पनाओं के क्या मुख्य कार्य है आदि की जानकारी स्पष्ट रूप से प्राप्त कर सकते हैं. किसी भी शोध परिकल्पना से तात्पर्य समस्या समाधान के लिये सुझाया गया वो उत्तर हैं जो दो या दो से अधिक चरों के बीच क्या और कैसा सम्बन्ध T है बताता है। शोध परिकल्पना को प्राप्त करने के कई स्रोत है व्यक्ति अपने आस-पास के वातावरण के प्रति सजग रहकर अपनी सूझ द्वारा इसे आसानी से प्राप्त कर सकता है। उत्तम परिकल्पनाओं की विशेषताओं पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। साथ ही परिकल्पनाओं के प्रकार को भी समझाया गया है।

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क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ, प्रकार, परिभाषाएं एवं उद्देश्य | Action Research Meaning, Types, Definitions and Objectives

क्रियात्मक अनुसंधान (action research).

क्रियात्मक अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मौलिक समस्याओं का अध्ययन करके नवीन तथ्यों की खोज करना, जीवन सत्य की स्थापना करना तथा नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना है। अनुसंधान एक सोद्देश्य प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मानव ज्ञान में वृद्धि की जाती है। इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक स्वयं ही होते हैं। इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य विद्यालय की कार्यप्रणाली में संशोधन कर सुधार लाना है। क्रियात्मक अनुसंधान को संपादित करने में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुसंधान के अंतर्गत तत्कालीन प्रयोग पर अधिक बल देते हैं।

Action Research Meaning

आधुनिक युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति लाने के लिए अनुसंधान कार्य को बहुत महत्व दिया जाता है. शिक्षा के क्षेत्र में आज अनेक ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं जिनका सामना शिक्षा से संबंधित प्रत्येक व्यक्तियों को करना पड़ता है. शिक्षा की विविध समस्याओं का समाधान करने के लिए और व्यवहारिक रूप से वांछित परिवर्तन करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में भी शोध कार्य या अनुसंधान की आवश्यकता है.

इस दृष्टि से शिक्षा क्षेत्र में जो अनुसंधान कार्य होते हैं वह शिक्षण के सिद्धांत पक्ष को सबल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, किंतु शिक्षा की क्रियात्मक या व्यावहारिक पक्ष में अनुसंधान कार्य से कोई विशेष लाभ नहीं हुआ. ऐसी स्थिति में एक ऐसी पद्धति की आवश्यकता का अनुभव किया गया जिसके फलस्वरूप विद्यालय से संबंधित समस्याओं का समाधान खोजा जा सके और विशिष्ट स्थिति में परिवर्तन और सुधार किया जा सके इन विचारों के फलस्वरुप क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व बढ़ा.

क्रियात्मक अनुसंधान शिक्षक की समस्याओं के समाधान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण उपकरण है. इसके अंतर्गत शिक्षण की समस्याओं का वैज्ञानिक विधि से समाधान खोजा जाता है. क्रियात्मक अनुसंधान विद्यालय के कार्य पद्धति में विकास करने का एक सबल साधन है. इसके माध्यम से शिक्षक अपनी कक्षा तथा विद्यालय के समस्याएं सुलझाने का प्रयत्न करता है. आज शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए अनुसंधान होते जा रहे हैं जिनका उद्देश्य शिक्षा को उत्तम बनाना है और शिक्षा संबंधित समस्याओं को सुलझाना है. क्रियात्मक अनुसंधान, अनुसंधान की प्रक्रिया को गति प्रदान करता है. क्रियात्मक अनुसंधान समस्याओं के अध्ययन की वैज्ञानिक पद्धति है, जो ज्ञान की खोज के लिए किया जाता है.

वास्तव में यह निरंतर गहरी तथा सौद्देश्य प्रक्रिया है, जो सत्य की खोज करती है. साथ ही साथ उसका लक्ष्य उन्नति एवं उत्तम करने मे सहायक है. अतः कहा जा सकता है कि अनुसंधान एक क्रमबद्ध वैज्ञानिक, वस्तुनिष्ठ तथा सौद्देश्य क्रिया है, जिसका प्रमुख ध्येय ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि करना, सत्यता की पुष्टि करना तथा नए तथ्यों, सत्यों एवं सिद्धांतों का निर्माण और प्रतिपादन करना होता है. शैक्षिक अनुसंधानों का अंतिम लक्ष्य शिक्षण नियमों तथा उनकी पुष्टि करना होता है.

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Action Research)

विद्यालय से संबंधित व्यक्तियों द्वारा अपनी और विद्यालय की समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करके अपनी क्रियाओं और विद्यालय की गतिविधियों में सुधार लाना क्रियात्मक अनुसंधान कहलाता है। इसकी कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:-

1. मेक ग्रेथटे के अनुसार, "क्रियात्मक अनुसंधान व्यवस्थित खोज की क्रिया है जिसका उद्देश्य व्यक्ति समूह की क्रियाओं में रचनात्मक सुधार तथा विकास लाना है।"

2.स्टीफन एम. कोरे के अनुसार, “शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान, कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।"

3. मुनरो के अनुसार, "अनुसंधान समस्याओं को सुलझाने की वह विधि है, जिसमें सुझावों की पुष्टि तथ्यों द्वारा की जाती है।"

4. मौले के अनुसार, "शिक्षक के समक्ष उपस्थित होने वाली समस्याओं में से अनेक तत्काल ही समाधान चाहती है। मौके पर किये जाने वाले ऐसे अनुसंधान जिसका उद्देश्य तात्कालिक समस्या का समाधान होता है, शिक्षा में साधारणतः क्रियात्मक अनुसंधान के नाम से प्रसिद्ध है।"

क्रियात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य (Objectives of Action Research)

  • विद्यालय की कार्य प्रणाली में सुधार तथा विकास करना। 
  • छात्रों तथा शिक्षकों में प्रजातन्त्र के वास्तविक गुणों का विकास करना। 
  • विद्यालय के कार्य-कर्ताओं, शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक तथा निरीक्षकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना।
  • विद्यालय के कार्य-कर्ताओं में कार्य कौशल का विकास करना।
  • शैक्षिक प्रशासकों तथा प्रबन्धकों को विद्यालयों की कार्य प्रणाली में सुधार तथा परिवर्तन के लिये सुझाव देना।
  • विद्यालय की परम्परागत रूढ़िवादिता तथा यान्त्रिक वातावरण को समाप्त करना।
  • विद्यालय की कार्य प्रणाली को प्रभावशली बनाना।
  • छात्रों के निष्पत्ति स्तर को ऊँचा उठाना।

क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र (Scope of Action Research)

क्रियात्मक अनुसन्धान को विद्यालय की कार्य प्रणाली के अधोलिखित क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है:-

  • कक्षा शिक्षण विधियों एवं युक्तियों में सुधार लाना है।
  • शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली सहायक सामग्री जिसकी उपयोगिता के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिये इसका प्रयोग करते हैं।
  • छात्रों की अभिरूचि, ध्यान, तत्परता तथा जिज्ञासा में वृद्धि के लिये इसे प्रयुक्त करते हैं।
  • शिक्षकों द्वारा विभिन्न विषयों में दिये जाने वाले गृह कार्यों की प्रणाली को प्रभावशाली बनाने के लिये इसे प्रयोग करते हैं। 
  • छात्रों की अनुसन्धान सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिये इस प्रयुक्त करते हैं। 
  • भाषा शिक्षण में वर्तनी तथा वाचन की समस्याओं के लिये तथा भाषाई शुद्धि के लिए भी क्रियात्मक-अनुसन्धान को प्रयुक्त किया जाता है। 
  • छात्रों की अनुपस्थिति तथा विद्यालय विलम्ब से आने की समस्याओं के समाधान में इसे प्रयोग करते है। 
  • छात्रों एवं शिक्षक सम्बन्धी समस्याओं तथा छात्रों में परस्पर आदान-प्रदान की समस्याओं के लिये प्रयुक्त करते हैं।
  • परीक्षा में छात्रों के नकल करने की समस्याओं के समाधान में प्रयोग करते हैं।
  • विद्यालय के संगठन एवं प्रशासन से संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु प्रयोग करते हैं।

क्रियात्मक अनुसंधान के चरण/सोपान (Steps of Action Research)

  • समस्या का चयन
  • उपकल्पना का निर्माण
  • तथ्य संग्रहण की विधियाँ
  • तथ्यों का संकलन
  • तथ्यों का सांख्यिकीय विश्लेषण
  • तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष
  • सत्यापन
  • परिणामों की सूचना

एण्डरसन ने क्रियात्मक अनुसंधान के निम्न सात चरण बताये हैं:-

1. पहला सोपान (समस्या का ज्ञान):- क्रियात्मक-अनुसंधान का पहला सोपान है– विद्यालय में उपस्थित होने वाली समस्या को भली-भाँति समझना। यह तभी सम्भव है, जब विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रधानाचार्य आदि उसके सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करें। ऐसा करके ही वे वास्तविक समस्या को समझकर अपने कार्य में आगे सुधार करना चाहते हैं।

2. दूसरा सोपान (कार्य के लिए प्रस्तावों पर विचार विमर्श):- क्रियात्माक-अनुसंधान का दूसरा सोपान है– समस्या को भली-भांति समझने के बाद इस बात पर विचार करना कि उसके कारण क्या हैं और उसका समाधान करने के लिए हमें कौन-से कार्य करने हैं। शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक आदि इन कार्यों के सम्बन्ध में अपने-अपने प्रस्ताव या सुझाव देते हैं। उसके बाद वे अपने विश्वासों, सामाजिक मूल्यों, विद्यालयों के उद्देश्यों आदि को ध्यान में रखकर उन पर विचार-विमर्श करते हैं।

3. तीसरा सोपान (योजना का चयन व उपकल्पना का निर्माण):- क्रियात्मक-अनुसन्धान का तीसरा सोपान है- विचार-विमर्श के फलस्वरूप समस्या का समाधान करने के लिए एक योजना का चयन और उपकल्पना का निर्माण करना। इसके लिए विचार-विमर्श करने वाले सब व्यक्ति संयुक्त रूप से उत्तरदायी होते हैं। उपकल्पना में तीन बातों का सविस्तार वर्णन किया जाता है—

  • समस्या का समाधान करने के लिए अपनाई जाने वाली योजना,
  • योजना का परीक्षण,
  • योजना द्वारा प्राप्त किया जाने वाला उद्देश्य।

4. चौथा सोपान (तथ्य संग्रह करने की विधियो का निर्माण):- क्रियात्मक-अनुसंधान का चौथा सोपान है– योजना को कार्यान्वित करने के बाद तथ्यों या प्रमाणों का संग्रह करने की विधियाँ निश्चित करना—इन विधियों की सहायता से जो तथ्य संग्रह किये जाते हैं, उनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि योजना का क्या प्रभाव पड़ रहा है।

6. छठा सोपान (तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष):- क्रियात्मक अनुसंधान का छठा सोपान है– योजना की समाप्ति के बाद संग्रह किए हुए तथ्यों या प्रमाणों से निष्कर्ष निकालना।

7. सातवाँ सोपान (दूसरे व्यक्तियों को परिणामों की सूचना):- क्रियात्मक-अनुसंधान का सातवाँ और अन्तिम सोपान है– दूसरे व्यक्तियों को योजना के परिणामों की सूचना देना।

क्रियात्मक अनुसंधान के लाभ (Benefits of Action Research)

  • इससे शिक्षक अपनी कक्षा के वातारण में अपनी कार्यप्रणाली में सुधार तथा प्रगति करता है। 
  • शिक्षक शोध के पदों से परिचित होता है। 
  • शिक्षकों में वैज्ञानिक-प्रवृत्ति, शोध कार्य के लिए जाग्रत होती है।
  • इसके द्वारा विद्यालय के प्रशासन में सुधार तथा परिवर्तन लाया जाता है। 
  • यह विद्यालय से संबंधित व्यक्तियों की विभिन्न दैनिक समस्यओं का व्यावहारिक एवं तथ्यपूर्ण समाधान करता है।
  • यह विद्यालय को आधुनिक तथा समयानुकूल बनाने का प्रयास करता है। 
  • इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष व्यवहारिक रूप से काफी सफल होते हैं।
  • पितृसत्ता
  • पुरुषत्व और नारीवाद सिद्धांत
  • जेंडर, सेक्स एवं लैंगिकता

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कैसे एक शोधपत्र (Research Paper) लिखें

इस आर्टिकल के सहायक लेखक (co-author) हमारी बहुत ही अनुभवी एडिटर और रिसर्चर्स (researchers) टीम से हैं जो इस आर्टिकल में शामिल प्रत्येक जानकारी की सटीकता और व्यापकता की अच्छी तरह से जाँच करते हैं। wikiHow's Content Management Team बहुत ही सावधानी से हमारे एडिटोरियल स्टाफ (editorial staff) द्वारा किये गए कार्य को मॉनिटर करती है ये सुनिश्चित करने के लिए कि सभी आर्टिकल्स में दी गई जानकारी उच्च गुणवत्ता की है कि नहीं। यहाँ पर 8 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं। यह आर्टिकल १,३७,६८६ बार देखा गया है।

स्कूल की ऊंची कक्षाओं में पढ़ने के दौरान और कॉलेज पीरियड में हमेशा ही, आपको शोध-पत्र तैयार करने के लिए कहा जाएगा। एक शोध-पत्र का इस्तेमाल वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक मुद्दों की ख़ोज-बीन और पहचान में किया जा सकता है। यदि शोध-पत्र लेखन का आपका यह पहला अवसर है, तो बेशक कुछ डरावना भी लग सकता है, पर मस्तिष्क को अच्छी तरह से संयोजित और एकाग्र करें, तो आप खुद के लिए इस प्रक्रिया को आसान बना सकते हैं। शोध-पत्र तो स्वयं नहीं लिख जाएगा, पर आप इस प्रकार से योजना बना सकते हैं, और ऐसी तैयारी कर सकते हैं कि लेखन व्यावहारिक रूप में खुद-ब-खुद जेहन में उतरता चला जाए।

अपने विषयवस्तु का चयन

Step 1 अपने आप से महत्वपूर्ण प्रश्न कीजिए:

  • आम तौर पर, वेबसाइट जिनके नाम के अंत में .edu, .gov, या .org होता है, ऎसी सूचनाएं रखती हैं जिन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है कि ये वेबसाइट स्कूलों, सरकार या उन संगठनों की होती हैं जो आपके विषय से सम्बंधित हैं।
  • अपनी खोज का प्रश्न बार-बार बदलें ताकि आपके विषय पर अलग-अलग तरह के खोज परिणाम मिलें। अगर कुछ भी मिलता नज़र न आये तो ऐसा हो सकता है कि आपकी खोज का प्रश्न अधिकाँश लेखों के शीर्षक से मेल नहीं खा रहा है जो आपके विषय पर हैं।

Step 5 एकेडमिक डेटाबेस का इस्तेमाल कीजिये:

  • ऐसे डेटाबेस ढूंढ़िए जो आपके विषय को ही सम्मिलित करते हों। उदहारण के लिए PsycINFO एक ऐसा डेटाबेस है जो कि केवल मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के क्षेत्र में ही विद्वानों द्वारा किये काम को सम्मिलित करता है। एक सामान्य खोज के मुकाबले यह आपको अपने अनुरूप शोध सामग्री पाने में मदद करेगा। [२] X रिसर्च सोर्स
  • पूछताछ के एकाधिक खोज-बॉक्स या केवल केवल एक ही प्रकार के स्रोत वाले आर्काइव के साथ अधिकाँश अकादमिक डेटाबेस आपको ये सुविधा देते हैं कि आप बेहद विशिष्ट सूचना मांग सकें (जैसे केवल जर्नल आलेख या केवल समाचार पत्र)। इस सुविधा का लाभ उठाकर जितने अधिक खोज बॉक्स आप इस्तेमाल कर सकते हैं उतना करें।
  • अपने विभाग के पुस्तकालय जाएँ और लाइब्रेरियन से अकादमिक डेटाबेस, जिनकी सदस्यता ली गयी है, की पूरी सूची और उनके पासवर्ड ले लें।

Step 6 अपने शोध में रचनात्मक हो जाएँ:

एक रूपरेखा का निर्माण

Step 1 किताब पर टीका-टिप्पणी,...

  • रूपरेखा बनाने और शोधपत्र लिखने का काम आखिरकार आसान करने के लिए टीका-टिप्पणी का काम गहनता से कीजिये। जिस चीज़ के महत्वपूर्ण होने का आपको ज़रा भी अंदेशा हो या जो आपके शोधपत्र में इस्तेमाल हो सकता है, उसकी निशानदेही कर लीजिए।
  • जैसे-जैसे आप अपने शोध में महत्वपूर्ण हिस्सों को चिन्हित करते जाएँ, अपनी टिप्पणी और नोट जोड़ते जाएँ कि इन्हें आप अपने शोध-पत्र में कहाँ इस्तेमाल करेंगे। अपने विचारों को लिखना जैसे-जैसे वे आते जाएँ, आपके शोधपत्र लेखन को कहीं आसान बना देगा और ऎसी सामग्री के रूप में रहेगा जिसे आप सन्दर्भ के लिए फिर-फिर इस्तेमाल कर सकें।

Step 2 अपने नोट्स को सुनियोजित करें:

  • हर उद्धरण या विषय जिसे आपने चिन्हित किया है उसे अलग-अलग नोट कार्ड पर लिखने की कोशिश कीजिए। इस तरह से आप अपने कार्डों को मनचाहे ढंग से पुनर्व्यवस्थित कर सकेंगे।
  • अपने नोट का रंगों में कोड बना लें, ताकि वे आसान हो जाएँ। अलग-अलग स्रोतों से जो भी नोट आप ले रहे हैं, उन्हें सूची बद्ध कर लें, और फिर सूचना के अलग-अलग वर्गों को अलग-अलग रंगों में चिन्हित कर लें। उदाहरण के लिए, जो कुछ भी आप किसी विशेष किताब या जर्नल से ले रहे हैं उन्हें एक कागज़ पर लिख लें ताकि नोट्स को सुगठित किया जा सके, और फिर जो कुछ भी चरित्रों से सम्बंधित है उसे हरे से चिन्हित करें, कथानक से जुड़े सबकुछ को नारंगी रंग में चिन्हित करें, आदि-आदि।

Step 3 सन्दर्भों का पन्ना बना लें:

  • एक तार्किक शोधपत्र विवादित विषयों पर एक पक्ष लेता है और एक दृष्टिकोण के लिए तर्क प्रस्तुत करता है। मुद्दे पर एक तर्कसंगत प्रतिपक्ष के साथ बहस की जानी चाहिए।
  • एक विश्लेषणात्मक शोधपत्र किसी महत्त्वपूर्ण विषय पर नए सिरे से दृष्टिपात करता है। विषय आवश्यक नहीं है कि विवादित हो, पर आपको अपने पाठकों को सहमत करना पड़ेगा कि आपके विचारों में गुणवत्ता है। यह महज आपके शोध से विचारों की उबकाई भर नहीं, बल्कि अपने उन विशिष्ट अद्वितीय विचारों की प्रस्तुति है जिन्हें आपने गहन शोध से सीखा है।

Step 5 आपके पाठक कौन होंगे यह निर्धारित कर लीजिये:

  • थीसिस विकसित करने का आसान तरीका है कि उसे एक प्रश्न के रूप में ढालिए जिसका आपका निबंध उत्तर देगा। वह मुख्य प्रश्न या हाइपोथीसिस क्या है जिसको आप अपने शोधपत्र में प्रमाणित करना चाहते हैं? उदाहरण के लिए आपकी थीसिस का प्रश्न हो सकता है, “मानसिक बीमारियों के इलाज की सफलता को सांस्कृतिक स्वीकृति कैसे प्रभावित करती है?” यह प्रश्न आपकी थीसिस क्या होगी उसे निर्धारित कर सकता है – इस प्रश्न के लिए आपका जो भी उत्तर होगा, वही आपका थीसिस-कथन होगा।
  • शोधपत्र के सभी तर्कों को दिए बिना या उसकी रूपरेखा बताये बिना ही आपकी थीसिस को आपके शोध के मुख्य विचार को व्यक्त करना होगा। यह एक सरल कथन होना चाहिए, न कि कई सहायक वाक्यों का एक समूह, आपका बाक़ी शोधपत्र तो इस काम के लिए है ही!

Step 7 अपने मुख्य बिन्दुओं को निर्धारित कर दें:

  • जब आप अपने मुख्य विचारों की रूप-रेखा बनाएं, उनको एक विशिष्ट क्रम में रखना अहम है। अपने सबसे मज़बूत तर्कों को निबंध के सबसे पहले और सबसे अंत में रखिये। जबकि ज्यादा औसत बिन्दुओं को निबंध के बीचोंबीच या अंत की तरफ रखिये।
  • सबसे मुख्य बिन्दुओं को एक ही पैराग्राफ में समेटना ज़रूरी नहीं है, विशेष करके अगर आप एक अपेक्षाकृत लंबा शोधपत्र लिख रहे हैं। प्रमुख विचारों को जितने पैराग्राफ में आप ज़रूरी समझें फैलाकर लिख सकते हैं।

Step 8 फॉरमैटिंग के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखिये:

  • अपनी हर बात को साक्ष्यों से पुष्ट करें। क्योंकि यह एक शोधपत्र है इसलिए ऐसी टिप्पणी न करें जिसकी पुष्टि सीधे आपके शोध के तथ्यों से न हो।
  • अपने शोध में पर्याप्त व्याख्याएं दीजिये। बिना तथ्यों के अपने मत के बखान का विलोम बगैर किसी व्याख्या के बिना तथ्यों को देना होगा। यद्यपि आप निश्चित ही पर्याप्त प्रमाण देना चाहते हैं, तो भी जहां भी संभव हो अपनी टिप्पणी जोड़ते हुए यह सुनिश्चित कीजिए कि शोधपत्र पर आपकी मौलिक और विशिष्ट छाप हो।
  • बहुत सारे सीधे लम्बे उद्धरण देने से बचें। यद्यपि आपका निबंध शोध पर आधारित है, फिर भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने विचार प्रस्तुत करने हैं। जिस उद्धरण का आप इस्तेमाल करना चाहते हैं, जब तक वह बेहद अनिवार्य न हो, उसे अपने ही शब्दों में व्यक्त और विश्लेषित करने की कोशिश कीजिए।
  • अपने पेपर में साफ़-सुथरे और संतुलित गति से एक बिंदु से दूसरे तक जाने का प्रयास करें। निबंध में स्वछन्द तारतम्य और प्रवाह होना चाहिए, इसके बजाय कि अनाड़ी की तरह रुक-रुक कर क्रम टूटे और फिर अचानक शुरू हो जाए। यह ध्यान रखें कि लेख के मुख्य भाग वाला हर पैरा अपने बाद वाले से जाकर मिलता हो।

Step 2 निष्कर्ष लिखें:

  • आपके निष्कर्ष का लक्ष्य, साधारण शब्दों में, इस प्रश्न का उत्तर देना है, “तो क्या?” ध्यान रखें कि पाठक आख़िरकार महसूस करे कि उसे कुछ प्राप्त हुआ है।
  • कई कारणों से अच्छा नुस्खा तो यह है कि, निष्कर्ष को भूमिका के पहले लिख लिया जाये। पहली बात तो यह है कि जब प्रमाण आपके दिमाग में ताज़ा हों तो निष्कर्ष लिखना ज्यादा आसान होता है। उससे भी बड़ी बात यह है, सलाह दी जाती है कि आप निष्कर्ष में अपने सबसे चुनिन्दा शब्द और भाषा का मजबूती से इस्तेमाल करें और फिर उन्हीं विचारों को भिन्न शब्दों में अपेक्षाकृत कम वेग के साथ भूमिका में रख दें, न कि इसका उल्टा करें; यह पाठकों पर ज्यादा स्थायी प्रभाव छोड़ेगा।

Step 3 निबंध की प्रस्तावना लिखें:

  • MLA फॉर्मेट को विशेष रूप से साहित्यिक शोध-पत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें ‘उद्धृत सामग्री’ की एक सूची अंत में जोड़नी होती है, इस विधि में अंतरपाठीय उद्धरण प्रयोग किये जाते हैं।
  • APA फॉर्मेट का इस्तेमाल सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोधपत्रों के लिए शोधकर्त्ताओं द्वारा किया जाता है, और इसमें भी अंतरपाठीय उद्धरण देने होते हैं। इसमें निबंध का अंत “सन्दर्भ” पृष्ठ के साथ होता है, और इसमें मुख्य भाग के पैराग्राफों के बीच में अनुच्छेद शीर्षक का प्रयोग भी किया जा सकता है।
  • शिकागो फोर्मटिंग को प्रमुखतः ऐतिहासिक शोधपत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें अंतरपाठीय उद्धरण के स्थान पर पृष्ठ के नीचे फुटनोट का प्रयोग होता है और साथ में एक ‘उद्धृत सामग्री’ और सन्दर्भों का पृष्ठ जुड़ता है। [७] X रिसर्च सोर्स

Step 5 अपने कच्चे प्रारूप...

  • अपने पेपर का सम्पादन यदि खुद आपने किया है, तो उस पर वापस आने से पहले कम से कम तीन दिन प्रतीक्षा कीजिए। अध्ययन दिखाते हैं कि, लेख समाप्त करने के बाद भी दो-तीन दिन तक यह आपके जेहन में ताज़ा बना रहता है, और इसलिए ज्यादा संभावना यह रहेगी कि आम तौर पर आप जिन बुनियादी त्रुटियों को पकड़ पाते, उन्हें भी अपनी सरसरी नज़र में नजरअंदाज कर जाएँगे।
  • दूसरों के द्वारा संपादन को महज इसलिए नजरअंदाज न करें कि उनसे आपका काम बढ़ जाएगा। अगर वे आपके पेपर के किसी अंश को दोबारा लिखे जाने की सलाह दे रहे हों तो उनके इस आग्रह का संभवतया उचित कारण है। अपने पेपर के सघन सम्पादन पर समय दीजिए। [८] X रिसर्च सोर्स

Step 6 अंतिम ड्राफ्ट को लिखिए:

  • रिसर्च के दौरान महत्वपूर्ण थीम, प्रश्नों और केन्द्रीय मुद्दों को ढूँढ़ें।
  • यह समझने की कोशिश करें कि, आप वास्तव में निर्दिष्ट रूप में किस चीज़ का अन्वेषण करना चाहते हैं, इसके बजाय कि पेपर में ढेर सारे व्यापक विचारों को ठूस दिया जाए।
  • ऐसा करने के लिये अंतिम क्षण तक प्रतीक्षा मत कीजिए।
  • अपने असाइंमेंट को समयानुसार पूरा करना सुनिश्चित कीजिए।

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  • ↑ http://www.infoplease.com/homework/t3sourcesofinfo.html
  • ↑ http://www.ebscohost.com/academic
  • ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/552/03/
  • ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/544/02/
  • ↑ http://www.indiana.edu/~wts/pamphlets/thesis_statement.shtml
  • ↑ http://libguides.jcu.edu.au/content.php?pid=83923&sid=3619280
  • ↑ http://writing.yalecollege.yale.edu/why-are-there-different-citation-styles
  • ↑ http://professionalonlineediting.com/how-to-edit-your-essay-or-research-paper-fast.asp

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अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं|अनुसंधान के प्रकार का वर्णन| Types of Research in Hindi

अनुसंधान के प्रकार का वर्णन types of research in hindi.

अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं|अनुसंधान के प्रकार का वर्णन| Types of Research in Hindi

अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं ?

सामान्यतः अनुसन्धान निम्न प्रकार का होता है-   ऐतिहासिक अनुसन्धान ( historical research)  वर्णनात्मक अनुसन्धान ( descriptive research) प्रयोगात्मक अनुसन्धान ( experimental research) क्रियात्मक अनुसन्धान ( actionable research) अन्तर- अनुशासनात्मक अनुसन्धान ( inter-disciplinary research) , ऐतिहासिक अनुसन्धान  historical research details in hindi, जॉन डब्ल्यू. बेस्ट के अनुसार ,  " ऐतिहासिक अनुसन्धान का सम्बन्ध ऐतिहासिक समस्या के वैज्ञानिक विश्लेषण से है। विभिन्न पद भूतकाल के सम्बन्ध में एक नई सूझ पैदा करते है ,  जिसका सम्बन्ध वर्तमान एवं भविष्य से होता है। "   ऐतिहासिक अनुसन्धान के मूल उद्देश्य है-.

  • भूत के आधार पर वर्तमान को समझना और भविष्य के लिए सतर्क रहना।
  • शिक्षा मनोविज्ञान अमदा सामाजिक विज्ञानों में चिन्तन को नई दिशा देना।
  •   भूतकालीन तथ्यों के प्रति जिज्ञासा की तृप्ति ।
  • वर्तमान में सिद्धान्त और क्रियाएँ जो व्यवहार में है ,  उनके उद्भव में विकास की परिस्थितियों का विश्लेषण

  ऐतिहासिक अनुसन्धान के चरण  Steps of Historical Research

ऐतिहासिक अनुसन्धान के निम्नलिखित चरण होते हैं- 1.        ऑकड़ों   का संग्रह 2.        ऑकड़ों का विश्लेषण 3.        उपरोक्त आधार पर तथ्यों का विश्लेषण एवं रिपोर्ट    , ऐतिहासिक अनुसन्धान के क्षेत्र में निम्नलिखित बातों को शामिल किया जा सकता है।.

  • शिक्षाशास्त्रियों मनोवैज्ञानिकों के सुझाव।
  • प्रयोगशाला एवं संस्थाओं द्वारा किए गए व्यावहारिक कार्य।
  • विभिन्न समय अवधि में विचारों के बदलाव व विकास की स्थिति ।
  • विशेष प्रकार की विचारधारा का प्रभाव व उसके स्त्रोत।
  • पुस्तक सूची की तैयारी।

वर्णनात्मक अनुसन्धान   Descriptive Research Details in Hindi

इसके अन्तर्गत स्पष्ट परिभाषित समस्या पर कार्य किया जाता है। यह विशेष सरल एवं अत्यन्त कठिन ,  दोनों प्रकार का हो    सकता है। यह   ' क्या है '  को स्पष्ट करता है। इसके अन्तर्गत समस्या समाधान हेतु उपयोगी सूचना प्राप्त करते हैं। इसके कल्पनापूर्ण नियोजन आवश्यक है। यह अनुसन्धान संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों हो सकता है।, वर्णनात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य  , भविष्य के अनुसन्धान के प्राथमिक अध्ययन में सहायता करना। मनोवैज्ञानिक विशेषताओं से परिचय प्राप्त करना और शैक्षिक नियोजन में सहायता करना।   मानव व्यवहार के विभिन्न पक्षों की जानकारी प्राप्त करना।, वर्णनात्मक अनुसन्धान के चरण steps of descriptive research  , वर्णनात्मक अनुसन्धान के निम्नलिखित चरण है-   अनुसन्धान समस्या का कथन यह निर्धारित करना कि समस्या सर्वेक्षण अनुसन्धान के उपयुक्त है या नहीं। उचित सर्वेक्षण विधि का चुनाव ।   सर्वेक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण । सर्वेक्षण की सफलता का निर्धारण। आँकड़े प्राप्त करने का अभिकल्प। आँकड़ों का संग्रह। आंकड़ों का विश्लेषण। प्रतिवेदन तैयार करना।  , वर्णनात्मक अनुसन्धान के प्रकार types of descriptive research  , सर्वेक्षण अध्ययन अन्तर्सम्बन्धी का अध्ययन विकासात्मक अध्ययन, प्रयोगात्मक अनुसन्धान   experimental research details in hindi, यह ऐसी विधि है जिसमें हम   किसी सूक्ष्म समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं । यह विधि अर्थ एवं उपयोगिता की दृष्टि से व्यावहारिक है। इसमें अध्ययन नियन्त्रित परिस्थिति में किया जाता है। यह विधि एकल चर की धारणा पर आधारित है। यह सभी विज्ञानों में प्रयुक्त की जाती है।, प्रयोगात्मक   अनुसन्धान के   चरण, प्रयोग अनुसन्धान के विभिन्न चरण इस प्रकार है   समस्या से सम्बन्धित साहित्य का सर्वेक्षण समस्या का चयन एवं परिभाषीकरण परिकल्पना निर्माण ,  विशिष्ट पदावली तथा चरों की व्याख्या प्रयोगात्मक योजना का निर्माण।   प्रयोग करना। आंकड़ों का संकलन एवं सारणीयन प्राप्त निष्कर्ष का मापन निष्कर्ष का विश्लेषण एवं व्याख्या निष्कर्ष का विधिवत् प्रतिवेदन तैयार करना।  , क्रियात्मक अनुसन्धान    actionable research details in hindi,   कोर के अनुसार ,   " यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यावहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक विधि से अपनी समस्याओं का अध्ययन ,  अपने निर्णय व क्रियाओं में निर्देशन ,  सुधार और मूल्यांकन करते हैं। " क्रियात्मक अनुसन्धान ,  शोध का ऐसा स्वरूप है जिसमें समस्याओं के सैद्धान्तिक अध्ययन के साथ उसके व्यावहारिक अध्ययन पर न केवल बल दिया जाता है ,  बल्कि व्यावहारिक पक्ष अधिक    हावी होता है। क्रियात्मक शोधकर्ता घटनाओं की वस्तुस्थिति को समझकर ,  उनके तथ्यों का अध्ययन करके उन तथ्यों के आधार पर व्यावहारिक समस्या के हल के लिए प्रयत्न करता है।  , क्रियात्मक शोध के चरण.

  • विभिन्न श्रेणी के बालकों के लिए अलग-अलग तरह का पाठ्यक्रम निर्धारित करने ,  बदलाव लाने ,  इसे समय के अनुरूप करने का कार्य ,  क्रियात्मक शोध द्वारा किया जाता है।
  • यह शिक्षार्थियों के साथ शिक्षकों की समस्याओं का भी हल करता है। शैक्षिक प्रगति के मूल्यांकन का कार्य भी इस पद्धति द्वारा किया जाता है।

अन्तर- अनुशासनात्मक अनुसन्धान    Inter-disciplinary Research Details in Hindi

इसका अर्थ है कि प्रत्येक विषय को एक पूर्ण इकाई के रूप में अलग-अलग लेकर अनेक विषयों (अनुशासन) , जिनका एक ही लक्ष्य हो , उन्हें एक समूह में रखा जाए , जिसमें छात्रों को अधिकतम लाभ हो और एक समन्वित ज्ञान का विकास हो।

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Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य

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Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य

शोध पत्र कैसे लिखें ?[HOW TO WRITE A RESEARCH PAPER ?]

एक शोध कर्त्ता जब अपना शोध कार्य पूर्ण करता है तब वह शोध के लाभ को जन जन तक या तत्सम्बन्धी परिक्षेत्र के लोगों को उससे परिचित कराना चाहता है और शोध से प्राप्त दिशा पर विद्वत जनों काप्रतिक्रियात्मक दृष्टि कोण जानना चाहता है ऐसी स्थिति में सहज सर्वोत्तम विकल्प दिखता है -शोध पत्र सम्पूर्ण शोध ग्रन्थ को सार रूप में सरल,बोध गम्य,शीघ्र अधिगमन योग्य बनाने के लिए शोध पत्र का प्रयोग किया जाता है ऐसे कई शोध पत्र,शोध पत्रिकाओं का हिस्सा बन जाते हैं एवम ज्ञान पिपासुओं की ज्ञान क्षुधा की तृप्तीकरण का कार्य करते हैं तथा जन जन तक इसका लाभ पहुँचना सुगम हो जाता है सेमीनार में इन्ही शोधपत्रों का वाचन होता है। शोधपत्र से आशय(Meaning Of Research Paper )- शोधपत्र,शोध रिपोर्ट या शोध कार्य का व्यावहारिक प्रस्तुति योग्य सार आलेख है जो परिणाम को अन्तिम रूप में समेट भविष्य की दिशा निर्धारण में सहयोगान्मुख है। प्रो 0 एस 0 पी 0 गुप्ता ने अपनी पुस्तक अनुसंधान संदर्शिका में बताया – “पत्र पत्रिकाओं (Journals) में प्रकाशित होने वाले अथवा संगोष्ठियों (Seminars) व सम्मेलनों(Conferences) में वाचन हेतु तैयार किये गए अनुसन्धान कार्य सम्बन्धी लेखों को प्रायः अनुसंधान पत्रक (Research Paper)का नाम दिया जाता है।” इस सम्बन्ध में एक अन्य शिक्षा शास्त्री डॉ 0 आर 0 ए 0 शर्मा ने अपनी पुस्तक “शिक्षा अनुसन्धान के मूल तत्व एवं शोध प्रक्रिया” में लिखा – “शोध प्रपत्र लिखना कठिन कार्य है क्योंकि यह कार्य आलोचनात्मक,सृजनात्मक तथा चिन्तन स्तर का है। शोध प्रपत्र लेखन में एक विशिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण करना होता है जिसमें समुचित क्रम को अपनाया जाता है।” अतः उक्त आलोक में कहा जा सकता है कि शोध प्रपत्र सम्पूर्ण शोध के परिणाम व सुझाव से युक्त वह प्रपत्र है जो स्व विचार के स्थान पर तथ्य निर्धारण हेतु तत्पर शोध आधारित दृष्टिकोण से वास्ता रखता है। शोध प्रपत्र के प्रकार (Types Of Research Paper)- काल व शोध के प्रकार के आधार पर शोध पत्र के प्रकारों का निर्धारण विद्वतजनों द्वारा किया गया है कुछ विशेष प्रकारों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं – विवाद प्रिय या तार्किक शोध पत्र (Argumentative Research Paper) कारण प्रभाव शोध पत्र (Cause and Effect Research Paper) विश्लेणात्मक शोध पत्र (Analytical Research Paper) परिभाषीकरण शोध पत्र (Definition Research Paper) तुलनात्मक शोध पत्र (Contrast Research Paper) व्याख्यात्मक शोध पत्र (Interpretive Research Paper) शोध प्रपत्र का प्रारूप (Research Paper Format)- शोध पत्र लिखने का कोई पूर्व निर्धारित प्रारूप सभी प्रकार के शोध हेतु निर्धारित नहीं है शोध कर्त्ता का सम्यक दृष्टि कोण ही शोध प्रपत्र का आधार बनता है फिर भी अपूर्णता से बचने हेतु सभी प्रमुख बिंदुओं को सूची बद्ध कर लेना चाहिए।दिशा,प्रवाह, अनुभव,अवलोकन सभी से शोध पत्र को प्रभावी बनाने में मदद मिलती है सामान्यतः शोध प्रपत्र प्रारूप में अधोलिखित बिन्दुओं को आधार बनाया सकता है। – (अ)- भूमिका (ब)- विषय वस्तु (स)- मुख्य अंश (द)- परिणाम व सुझाव संक्षेप में भूमिका लिखने के बाद विषय वस्तु से परिचय कराना चाहिए यहीं शोध शीर्षक के बारे में लिखकर मुख्य अंश के रूप में शोध प्रक्रिया,उपकरण व प्रदत्त संग्रहण,विश्लेषणआदि के बारे में संक्षेप में लिखते हुए प्राप्त परिणामों को सम्यक ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए व इसी आधार पर सुझाव देने चाहिए अपने दृष्टिकोण को थोपने से बचना चाहिए। अच्छे शोध प्रपत्र के गुण (Qualities Of a Good Research Paper ) या अच्छे शोध प्रपत्र की विशेषताएं (Characteristics Of a Good Research Paper ) या अच्छे शोध प्रपत्र के लाभ (Advantage Of a Good Research Paper )- शोध प्रपत्र लिखना और सम्यक सन्तुलित शोध प्रपत्र लिखने में अन्तर है अतः प्रभावी शोध पत्र लिखने हेतु आपकी जागरूकता के साथ निम्न गुण ,विशेषताओं का होना आवश्यक है तभी समुचित लाभ प्राप्त होगा। (1 )- नवीन ज्ञान से संयुक्तीकरण। (2 )-शोध कार्यों सम्बन्धित दृष्टिकोण का सम्यक विकास। (3 )-पुनः आवृत्ति से बचाव। (4 )-परिश्रम को उचित दिशा। (5 )-विभिन्न परिक्षेत्र के शोधों से परिचय। (6 )-समीक्षा में सहायक। (7 )-विशेषज्ञों के सुझाव जानने का अवसर। (8 )-शक्ति व धन की मितव्ययता। (9 )-अनुभव में वृद्धि। (10 )-प्रसिद्धि में सहायक। सम्पूर्ण शोध पत्र लेखन के उपरान्त यदि वैदिक काल की मर्यादा के अनुसार सन्दर्भ ग्रन्थ सूची भी दे दी जाए तो कृतज्ञता ज्ञापन के साथ दूसरे शोध कर्त्ताओं की मदद हो सकेगी।

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जानिए Business Research in Hindi क्या हैं और कैसे करें?

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  • Updated on  
  • मार्च 29, 2023

business research in hindi

किसी भी काम को शुरू करने से पहले गहरे रिसर्च की आवश्यकता होती है। बिना रिसर्च के अगर आप कोई भी काम करते हैं तो उससे पहले उसके बारे में थोड़ी बहुत रिसर्च कर लेना ज़रूरी होता है। यही बात बिजनेस के बारे में भी लागू होती है। अगर आप कोई बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, तो उस बिजनेस को शुरू करने से पहले पूरी जानकारी लें, पूरी स्टडी करें, मार्केट में जाकर उसके बारे में सारी बारीकियाँ पता करें। उसके बाद उस बिजनेस को शुरू करने को लेकर कोई कदम उठाएँ। बिजनेस रिसर्च किसी भी बिजनेस को शुरू करने से जुड़ी एक बहुत ही अहम प्रक्रिया है। आज इस ब्लॉग business research in Hindi में हम आपको बिजनेस रिसर्च के मतलब से लेकर इसके महत्व और बाकी पहलुओं के बारे में विस्तार से बताएँगे। पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए business research in Hindi इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

This Blog Includes:

बिजनेस रिसर्च क्या है, बिजनेस रिसर्च कैसे किया जाता है  , बिजनेस रिसर्च कितने प्रकार के होते हैं  , बिजनेस रिसर्च के उदाहरण  , बिजनेस रिसर्च की सीमाएं , बिजनेस रिसर्च के उद्देश्य , बिजनेस रिसर्च का महत्व , बिजनेस रिसर्च की विशेषताएँ .

बिजनेस से जुड़े लक्ष्यों की पूर्ति के लिए रिसर्च करना बिजनेस रिसर्च कहलाता है। बिजनेस रिसर्च के अंतर्गत बिजनेस के उद्देश्यों और अवसरों का पता लगाया जाता है। मार्केट रिसर्च एक प्रकार से बिक्री और डाटा का एकत्रित रूप होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो बिजनेस रिसर्च मार्केट और ग्राहकों की पसंद के विषय में जानकारी इकट्ठा करना है। यह किसी भी बिजनेस को प्रारंभ करने से जुड़ी सबसे शुरुआती प्रक्रिया है, जो कि किसी भी व्यापार में बहुत ही अहम भूमिका निभाती है। 

किसी भी बिजनेस को शुरू करने से पहले उसके बारे में बेहतर तरीके से रिसर्च करना बहुत ज़रूरी है। जैसा कि आप ऊपर भी पढ़ चुके हैं कि यह किसी भी बिजनेस से जुड़ी सबसे अहम और शुरुआती प्रक्रिया है। नीचे बिजनेस रिसर्च के बारे में विस्तार से बताया गया है : 

  • प्रॉडक्ट के लिए मार्केट के मुताबिक रणनीति बनाना : आपको मार्केट के मुताबिक अपने प्रॉडक्ट के लिए स्ट्रेटेजी बनानी चाहिए। उदाहरण के लिए मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक लाल रंग को देखकर इंसान के मन में कुछ खाने की इच्छा उत्पन्न होती है। अगर आप कोई खाने पीने से जुड़ा हुआ प्रॉडक्ट बाज़ार में लेकर आ रहे हैं तो आपको उसकी पैकेजिंग लाल रंग में करनी चाहिए। इस प्रकार की रणनीति मार्केट स्ट्रेटेजी के अंतर्गत आती है। 
  • टार्गेट कस्टमर ग्रुप को समझना : आप अगर कोई भी बिजनेस शुरू करने जा रहे हैं तो आपको पहले अपने प्रॉडक्ट से जुड़े बिजनेस के कस्टमर ग्रुप को टार्गेट करना होगा। मान लीजिए आप कोई पेन बनाने का बिजनेस शुरू करने वाले हैं। तो आप पहले यह जानें कौन लोग आपका प्रॉडक्ट खरीदेंगे। आपका प्रॉडक्ट पेन है तो जाहिर सी बात है कि आपका टार्गेट कस्टमर स्टूडेंट्स और टीचर्स ही होंगे। इस हिसाब से आपको बाज़ार में चल रहे स्टूडेंट्स और टीचर्स की पसंद से जुड़ी चीजों के बारे में रिसर्च करनी चाहिए और उसी हिसाब से अपने प्रॉडक्ट को डिजाइन करना चाहिए। 
  • प्रॉडक्ट को ऑनलाइन रखना है या ऑफलाइन : आजकल सबकुछ ऑनलाइन हो गया है। किताब से लेकर कपड़ों तक सबकुछ ऑनलाइन उपलब्ध है। लेकिन यह बात हर प्रॉडक्ट के हिसाब से लागू नहीं होती। मान लीजिए आपको चिप्स का बिजनेस शुरू करना है। अब चिप्स को अगर आप ऑनलाइन बेचना शुरू करेंगे तो यह ज्यादा फायदेमंद नहीं होगा। क्योंकि चिप्स को ज़्यादातर लोग ऑनलाइन न खरीदकर सीधे दुकान से खरीदना पसंद करते हैं। इन सब बातों के बारे में आप बिजनेस रिसर्च के द्वारा ही पता कर सकते हैं। 
  • लेटेस्ट ट्रेंड के बारे में पता करें : आपको अपने बिजनेस से जुड़े लेटेस्ट ट्रेंड्स के बारे में पता होना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर आप कपड़ों का बिजनेस शुरू करना चाह रहें हैं तो आपको पहले लेटेस्ट फ़ैशन के बारे में रिसर्च करनी पड़ेगी और उसी हिसाब से अपने प्रॉडक्ट को डिजाइन करना होगा। 
  • प्रॉडक्ट लॉंच करने का समय : बिजनेस रिसर्च की मदद से आप अपने प्रॉडक्ट को लॉंच करने का सही समय चुन सकते हैं। मान लीजिए आप कोई टीवी बनाने का बिजनेस शुरू करना चाहते हैं। आपका प्रॉडक्ट बनकर तैयार है। अगर आप अपने टीवी को ऐसे समय में लॉंच करते हैं जब क्रिकेट का वर्ल्डकप शुरू होने वाला है तो गारंटी है कि आपका प्रॉडक्ट धड़ाधड़ बिकेगा। क्योंकि उस समय क्रिकेट के दीवाने लोग पूरी तरह से क्रिकेट का मज़ा लेने के लिए नए टीवी खरीदना शुरू करेंगे। आपका प्रॉडक्ट अगर कम कीमत पर ज्यादा फीचर्स प्रदान करेगा तो जाहिर सी बात है कस्टमर्स आपके टीवी को लेना पसंद करेंगे। इसके लिए आपको यह रिसर्च करनी पड़ेगी कि क्रिकेट वर्ल्ड कप कब शुरू होने वाला है और कब तक चलेगा। उसी हिसाब से आपको अपने टीवी को मार्केट में उतारना आपके लिए फायदेमंद साबित होगा। यह सब बिजनेस रिसर्च का ही हिस्सा है। 

बिजनेस रिसर्च के प्रकार ये हैं : 

  • प्राइमरी रिसर्च : इसके अंतर्गत आप किसी भी प्रॉडक्ट के बारे में आम आदमी की राय के बारे में पता करते हैं। इसमें पब्लिक पोल जैसे गतिविधियाँ शामिल होती हैं। 
  • सेकंडरी रिसर्च : इस प्रक्रिया में कोई थर्ड पार्टी आपके लिए डाटा इकट्ठा करके देती है। 
  • गुणात्मक रिसर्च : गुणात्मक रिसर्च प्राइमरी और सेकंडरी दोनों तरह के होते हैं। इससे जुड़ा कोई निश्चित नंबर नहीं पता किया जा सकता। यह पूरी तरह से एक प्रैक्टिकल प्रोसेस है जिसके बारे सही से अनुमान लगाना मुश्किल होता है। 
  • मात्रात्मक रिसर्च : ये प्राइमरी रिसर्च और सेकंडरी रिसर्च दोनों के ही समान होते हैं मगर इन्हें आसानी से अनुमानित किया जा सकता है। 
  • ब्रांडिंग रिसर्च : यह कंपनी को एक ब्रांड के रूप में स्थापित करने में मदद करता है। इसके द्वारा यह पता लगाया जाता है कि आपके ब्रांड को लोग कितना पसंद कर रहे हैं। 
  • कस्टमर रिसर्च : कस्टमर रिसर्च के अंतर्गत आपके प्रॉडक्ट से जुड़े टार्गेट कस्टमर्स के बदलते हुए टेस्ट को पहचानता है और उस हिसाब से प्रॉडक्ट में चेंजेज़ करके बेचने में मददगार साबित होता है। 
  • उत्पाद रिसर्च : इसके   तहत यह पता लगाय जाता है कि आने वाले समय में आपका प्रॉडक्ट बाज़ार में कितनी बिक्री करने वाला है। 
  • प्रतिस्पर्धा रिसर्च : इसके द्वारा यह जानने की कोशिश की जाती है कि आपके प्रॉडक्ट की तुलना में और कौनसे उत्पाद बाज़ार में उपलब्ध हैं और उनकी खूबियाँ और कमियाँ क्या क्या हैं। इस हिसाब से आपको अपने प्रॉडक्ट को तैयार करने में मदद मिलती है। 

बिजनेस रिसर्च के उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं : 

  • बिजनेस के बारे में रिपोर्ट तैयार करना : इसके अंतर्गत बिजनेस से जुड़े लाभ और हानि के मुताबिक अनुमानित डाटा तैयार किया जाता है। 
  • बजट का अनुमान लगाना : इसके अंतर्गत बाज़ार में बिकने वाले उसी तरह के प्रोडक्ट्स के आधार पर अपने प्रॉडक्ट के संबंध में होने वाले कुल खर्च का अनुमान लगाया जाता है। 
  • अवसरों और टारगेट्स का अनुमान लगाना : इस प्रक्रिया के अंतर्गत उत्पाद से सबंधित अवसरों और आने वाले समय में हासिल किए जाने वाले लक्ष्यों के संबंध में एक अनुमानित रिपोर्ट तैयार की जाती है। 

किसी भी चीज़ की अपनी कुछ सीमाएं होती हैं। यही बात बिजनेस रिसार्च के बारे में भी लागू होती है। इसकी भी अपनी कुछ सीमाएं हैं। जैसे आपको अपने प्रॉडक्ट से जुड़ी रिसर्च के लिए एक थर्ड पार्टी पर निर्भर रहना पड़ता है। आप सबकुछ खुद नहीं कर सकते। न चाहते हुए भी आपको थर्ड पार्टी की मदद लेनी ही पड़ती है। इसके बाद आपको उसकी रिसर्च पर ही निर्भर रहना पड़ता है। दूसरी बात यह है कि यह रिसर्च ज़्यादातर अनुमानित होती है। अनुमान हर बार सही साबित हो ऐसा कोई ज़रूरी नहीं। 

Business research in Hindi ब्लॉग में अब बारी है बिजनेस रिसर्च के उद्देश्यों के बारे में जानने की : 

  • लॉंच से पहले प्रॉडक्ट के लिए बाज़ार के रुख को पहचानना : बिजनेस रिसर्च का उद्देश्य किसी भी प्रॉडक्ट को लॉंच करने से पहले मार्केट में उससे जुड़ी सभी जरूरी बातों के बारे में जानकारी इकट्ठा करना होता है। इसकी मदद से आपको अपने प्रॉडक्ट को बाज़ार में उतारने में बहुत सहूलियत होती है। 
  • प्रॉडक्ट से जुड़े आइडिये को फाइनल करने में मदद : बिजनेस रिसर्च के बाद ही कोई उद्यमी अपना प्रॉडक्ट फाइनल करता है। बिजनेस रिसर्च के बाद ही उसे प्रॉडक्ट रेट और इससे जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों के बारे में पता चलता है। 
  • प्रॉडक्ट को इंवेस्टर्स के सामने पिच करने में आसानी : मार्केट रिसर्च के बाद ही कोई भी उद्यमी अपने उत्पाद को इंवेस्टर्स के सामने अच्छे से पिच कर पाता है ताकि वे उसके प्रोडक्ट में पैसा इन्वेस्ट कर सकें। 

अब तक आप इस ब्लॉग business research in Hindi में बिजनेस रिसर्च की सीमाओं और उद्देश्य के बारे में पढ़ चुके हैं। अब बिजनेस रिसर्च के कुछ महत्व भी जान लीजिए : 

  • दर्शकों के रुझान के बारे में बेहतर समझ विकसित करना : बिजनेस रिसर्च की मदद से आप अपने प्रॉडक्ट के प्रति दर्शकों के रुझान के बारे में जान सकते हैं। 
  • बाज़ार में मौजूद प्रतिस्पर्धी प्रोडक्ट्स के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाना : आप बिजनेस रिसर्च के माध्यम से बाज़ार में अपने प्रॉडक्ट से मिलते जुलते प्रोडट्स की खूबियों और खामियों के बारे में आराम से जान सकते हैं। 
  • गुणवत्ता में सुधार : बिजनेस रिसर्च की मदद से आप अपने प्रोडक्ट में मार्केट की मांग के मुताबिक क्वालिटी में सुधार कर सकते हैं। 
  • संभावित खतरों की जानकारी प्रदान करना : बिजनेस रिसर्च की मदद से आप अपने प्रोडक्ट से संबन्धित खतरों के बारे में पहले से जान सकते हैं और बीमा कराकर भविष्य में होने वाले नुकसान से बच सकते हैं। 

अब अंत में business research in Hindi के अंतर्गत बिजनेस रिसर्च से जुड़ी कुछ विशेषताओं के बारे में भी जान लीजिए: 

  • इसके तहत प्राथमिक रूप से प्रोडक्ट के संबंध में बाज़ार का डाटा इकट्ठा किया जाता है। 
  • इसके तहत ही ग्राहक की पसंद के संबंध में प्राइमारी और सेकंडरी लेवल पर डाटा तैयार किया जाता है। 
  • इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार संचालन में उद्यमी को मदद पहुंचाना होता है। 
  • हालांकि यह कभी भी पूर्णत: सही नहीं होता फिर भी किसी भी प्रोडक्ट को बाज़ार में उतारने में यह बहुत मदद प्रदान करता है। 

कुछ व्यापक लक्ष्य जो मार्केटिंग रिसर्च संगठनों को पूरा करने में मदद कर सकते हैं, उनमें शामिल हैं: महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णय लेना, निवेश और फंडिंग हासिल करना, नए व्यावसायिक अवसरों का निर्धारण करना और यहां तक ​​कि व्यावसायिक विफलताओं से बचना।

मार्केटिंग रिसर्च, जिसे “विपणन अनुसंधान” के रूप में भी जाना जाता है, संभावित ग्राहकों के साथ सीधे किए गए शोध के माध्यम से एक नई सेवा या उत्पाद की व्यवहार्यता निर्धारित करने की प्रक्रिया है।

बिज़नेस रिसर्च के उद्देश्य प्रतिस्पर्धी शक्तियों (और कमजोरियों) को उजागर करना चाहते हैं, संभावित प्रभावित करने वालों की पहचान करना, ग्राहक जनसांख्यिकी को प्रकट करना, ब्रांड जागरूकता में सुधार करना और विपणन प्रभावशीलता को मापना कुछ ऐसे तरीके हैं जिनसे कंपनियां उपभोक्ता जुड़ाव को मजबूत करने के लिए गुणवत्ता अनुसंधान का उपयोग कर सकती हैं।

ऑनलाइन मार्केट रिसर्च एक प्रकार का मार्केट रिसर्च है जो ऑनलाइन उपलब्ध दो प्रकार के डेटा का लाभ उठाता है।  डेटा आपके पास है और डेटा दूसरों द्वारा प्रकाशित किया गया है । इस प्रकार की जानकारी एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने से आपको अपने लक्षित दर्शकों के बारे में अधिक जानने और अपनी पेशकशों को सही आकार देने में मदद मिल सकती है।

उम्मीद है आपको यह ब्लॉग पढ़ने के बाद business research in Hindi इस बारे में बहुत सी जानकारियां प्राप्त हुई होगी। यदि आपको हमारा यह ब्लॉग पसंद आया हो तो आप  अपने दोस्तों और परिवार के साथ भी यह ब्लॉग जरूर शेयर करें। ऐसे ही अन्य रोचक, ज्ञानवर्धक और आकर्षक ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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Leverage Edu स्टडी अब्रॉड प्लेटफार्म में बतौर एसोसिएट कंटेंट राइटर के तौर पर कार्यरत हैं। अंशुल को कंटेंट राइटिंग और अनुवाद के क्षेत्र में 7 वर्ष से अधिक का अनुभव है। वह पूर्व में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए ट्रांसलेशन ऑफिसर के पद पर कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने Testbook और Edubridge जैसे एजुकेशनल संस्थानों के लिए फ्रीलांसर के तौर पर कंटेंट राइटिंग और अनुवाद कार्य भी किया है। उन्होंने डॉ भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, आगरा से हिंदी में एमए और केंद्रीय हिंदी संस्थान, नई दिल्ली से ट्रांसलेशन स्टडीज़ में पीजी डिप्लोमा किया है। Leverage Edu में काम करते हुए अंशुल ने UPSC और NEET जैसे एग्जाम अपडेट्स पर काम किया है। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न कोर्सेज से सम्बंधित ब्लॉग्स भी लिखे हैं।

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  6. RESEARCH METHODOLOGY (HINDI) : (METHODS AND TECHNIQUES): Buy RESEARCH

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  1. Bhartiya research ke anusar Pati ki Ijjat #comedy #shortvideo

  2. ek research ke mutabik

  3. Ek research ke according Billi paalne se Heart Attack aur strong ka Khatra 30% kam ho #viral #shorts

  4. Types of Research || अनुसन्धानका प्रकारहरु ।शिक्षक तथा बिद्यार्थीहरुकाे लागि आबश्यक || M.Ed 3rd sem

  5. वर्णनात्मक अनुसंधान l DESCRIPTIVE RESEARCH

  6. Types of Research

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  1. अनुसंधान

    अनुसंधान. व्यापक अर्थ में अनुसन्धान (Research) किसी भी क्षेत्र में 'ज्ञान की खोज करना' या 'विधिवत गवेषणा' करना होता है। वैज्ञानिक अनुसन्धान ...

  2. शोध के प्रकार (Type of Research)

    2. व्यवहारिक शोध (Applied Research) व्यवहारिक शोध अनुप्रयोग से मानव समुदाय की व्यवहारिक कठिनाइयों का हल खोजा जाता है। यह मूल रूप से प्रायोगिक समस्याओं के हल करने ...

  3. अनुसंधान (Research)- अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य और वर्गीकरण

    अनुसंधान का अर्थ (Meaning of Research) अनुसंधान की परिभाषा (Definition of Research) उद्देश्य (Objectives of Research) अनुसन्धान का वर्गीकरण (Classification of Research) योगदान की दृष्टि से ...

  4. अनुसंधान के प्रकार (Types of Research)

    Types of Research अनुसंधान आमतौर पर अंत: विषय में अनुसंधान के विभिन्न प्रकारों के बीच काफी व्यापक व्यापकता भी है.....

  5. शोध : प्रविधि और प्रक्रिया/शोध क्या है?

    व्यापक अर्थ में शोध या अनुसन्धान (Research) किसी भी क्षेत्र में 'ज्ञान की खोज करना' या 'विधिवत गवेषणा' करना होता है। वैज्ञानिक अनुसन्धान में ...

  6. Lecture-75 Types of Research (अनुसंधान के प्रकार) Part-1

    From this video, you will learn about the Types of Research (अनुसंधान के प्रकार). In this video types of research 1. On the basis of the objective of the res...

  7. शोध प्रक्रिया के चरण (Step of Research Process)

    1. शोध समस्या की पहचान करना (Identifying of the Research Problem) 2. संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण (Review of Relevant Literature) 3. उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन (Selection of Appropriate Research Method) 4 ...

  8. शैक्षिक अनुसंधान

    शैक्षिक अनुसंधान. शैक्षिक अनुसंधान (Educational research) छात्र अध्ययन, शिक्षण विधियों, शिक्षक प्रशिक्षण और कक्षा गतिकी जैसे विभिन्न पहलुओं के ...

  9. अनुसंधान प्ररचना का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार

    अनुसंधान प्ररचना के प्रकार (Types of Research Design) अनुसन्धान प्ररचना के प्रकार अनुसन्धान प्ररचना या अनुसन्धान अभिकल्प को चार भागों में ...

  10. क्रियात्मक अनुसंधान अर्थ, प्रकार, परिभाषाएं, उद्देश्य,चरण और इतिहास

    Research education के अनुसार, "क्रियात्मक अनुसंधान वह अनुसंधान है, जो एक व्यक्ति अपने उद्देश्यों को अधिक उत्तम प्रकार से प्राप्त करने के लिये ...

  11. Types of Research (in Hindi)

    This lesson represents the over all view on different research types and tries to develop insight of learners on types of research. (Hindi) Fundamentals of Research Process. 52 lessons • 13h. 1. Research: Meaning and Concept (in Hindi) 15:00mins. 2. Purpose of Research (in Hindi) 15:00mins.

  12. शोध परिकल्पना

    शोध परिकल्पना. परिकल्पना अनुसन्धान का एक प्रमुख एवं लाभदायक एवं उपयोगी हिस्सा है एक परिकल्पना के पीछे एक अच्छा अनुसन्धान छिपा होता ...

  13. क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ, प्रकार, परिभाषाएं एवं उद्देश्य

    क्रियात्मक अनुसंधान (Action Research) क्रियात्मक अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मौलिक समस्याओं का अध्ययन करके नवीन तथ्यों की खोज करना, जीवन सत्य की ...

  14. Synopsis(शोध प्रारूपिका) लघु शोध व शोध के विद्यार्थियों हेतु

    किसी भी क्षेत्र में शोध करने से पूर्व मनोमष्तिष्क में एक ...

  15. सामाजिक अनुसंधान

    सामाजिक अनुसंधान एक शृंखलाबद्ध प्रक्रिया है जिसके मुख्य चरण हैं-. (1) समस्या के क्षेत्र का चुनाव।. (2) प्रचलित सिद्धांतों और ज्ञान से ...

  16. एक शोधपत्र (Research Paper) लिखें

    कैसे एक शोधपत्र (Research Paper) लिखें. स्कूल की ऊंची कक्षाओं में पढ़ने के दौरान और कॉलेज पीरियड में हमेशा ही, आपको शोध-पत्र तैयार करने के लिए कहा जाएगा। एक शोध ...

  17. जानिए रिसर्च डिज़ाइन क्या है?

    रिसर्च के 5 घटक परिचय, साहित्य समीक्षा, विधि, परिणाम, चर्चा, निष्कर्ष है ।. उम्मीद है कि रिसर्च डिज़ाइन के बारे में आपको सभी जानकारियां ...

  18. शोध पत्र

    A collection of Research Papers, Theses, and Dissertations on themes such as Indian literature, visual arts, ... Bihar ke Lokgeeton Ka Sankalan Evam Uske Samjeet evam Sanskritic Mahatva. Centre for Cultural Resources and Training. Like 7. Dislike 0. 399. Borgit and Songs of Ankia Drama.

  19. Part 1 Types of Research (in Hindi)

    21 lessons • 2h 50m. 1. Types of Research - Course Over View (in Hindi) 6:13mins. 2. Part 1 Types of Research (in Hindi) 8:19mins. 3. Part 2 Types of Research (in Hindi)

  20. Types of Research Hindi

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  21. अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं|अनुसंधान के प्रकार का वर्णन| Types of

    अनुसंधान के प्रकार का वर्णन Types of Research in Hindi अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं ? सामान्यतः अनुसन्धान निम्न प्रकार का होता है- ...

  22. शोध पत्र कैसे लिखें ? [How to Write a Research Paper ?]

    शोध प्रपत्र का प्रारूप (Research Paper Format)-. शोध पत्र लिखने का कोई पूर्व निर्धारित प्रारूप सभी प्रकार के शोध हेतु निर्धारित नहीं है शोध ...

  23. परिकल्पना का अर्थ एवं प्रकार (Meaning and types of Research Hypothesis

    Research Methods in Education: An Introduction. Article. Nov 1971. William J. Bramble. John W. Best. Armand J. Galfo. William Wiersma. Request PDF | On Dec 26, 2016, Patanjali Mishra published ...

  24. जानिए Business Research in Hindi के बारे में विस्तार से

    अब अंत में business research in Hindi के अंतर्गत बिजनेस रिसर्च से जुड़ी कुछ विशेषताओं के बारे में भी जान लीजिए: इसके तहत प्राथमिक रूप से प्रोडक्ट के ...