निबंध और अनुच्छेद में क्या अंतर है !!
- Post author: Ankita Shukla
- Post published: December 24, 2018
- Post category: Gyan
- Post comments: 0 Comments
नमस्कार दोस्तों…. आज हम आपको कुछ ऐसी जानकारी देने जा रहे हैं जो न केवल आपका ज्ञान बढ़ाएगा बल्कि आपको गहराई तक की जानकारी भी देगा. जी हाँ दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं “निबंध और अनुच्छेद” के बारे में. जिसमे हम आपको बताएंगे कि निबंध और अनुच्छेद क्या होते हैं और इनमे क्या क्या अंतर पाए जाते है. दोस्तों हमारे वेबसाइट में नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में कई कमेंट के माध्यम से हमे पता चला कि अधिकतर लोग अनुच्छेद और निबंध में अंतर जानना चाहते हैं जिसके कारण हमने सोचा कि क्यों न इसकी भी जानकारी यूजर तक पहुंचाई जाये. तो चलिए जानते है इसके बारे में.
अनुच्छेद क्या है | What is Paragraph in Hindi !!
अनुच्छेद जिसे अंग्रेजी में हम पैराग्राफ के रूप में जानते हैं. ये किसी भी बड़े लेख का एक अंश होता है जो खुद में अस्तित्व रखता है. जिसके होने और न होने से पुरे लेख में काफी अंतर आ जाता है और साथ ही ये स्वयं अकेला भी होता है. अर्थात जब हम कोई लेख या निबंध लिखते हैं तो उनमे कई अनुच्छेद का संग्रह होता है मतलब कोई भी निबंध या कोई अन्य प्रकार का बड़ा लेख कई अनुच्छेद से मिल के बना होता है. जिसमे हर अनुच्छेद एक सीमा तक ही लिखा जाता है और उसके बाद दूसरा अनुच्छेद लिखने लगते हैं. लेकिन हर अनुच्छेद अपनेआप में पूरा होता है.
किसी भी अनुच्छेद को हम बहुत बड़ा नहीं लिखते हैं और जितना भी लिखा जाता है वो उतने में ही पूर्ण जानकारी दे देता है. अनुच्छेद में हम किसी विषय से संबंधित किसी खास और प्रायः एक विचार भाव और सूचना को दर्शाया जाता है.
अनुच्छेद को अकेला भी लिखा जा सकता है और वो भी पूरी जानकारी देता है और इसे निबंध या किसी और प्रकार के लेख में भी लिखा जा सकता है और तब भी वो पूरी जानकारी देता है लेकिन निबंध या अन्य लेख में अनुच्छेद के पूर्ववर्ती और परवर्ति अनुच्छेद भी होते हैं जो कहीं न कहीं और अनुच्छेद से संबंध रखते है लेकिन खुद में पूर्ण होते हैं.
निबंध क्या है | What is Essay in Hindi !!
निबंध जिसे अंग्रेजी में Essay कहा जाता है ये दो शब्दों से मिल के बना होता है नि+ बंध. जिसका अर्थ होता है की कोई लेख जिसमे भली प्रकार से बंधी हुई रचना हो अर्थात जिसमे अपने विचारों को प्रस्तुत करते हुए लेखक ने क्रम के साथ पूरा लेख पूर्ण किया हो. जिसमे लेखक विस्तार से अपने मन के भाव को प्रस्तुत करता है वो भी कई सारे अनुच्छेदों के जरिये. इसमें कोई वाक्य उतना सटीक न लिखते हुए भावों को गहराई और लम्बाई के साथ व्यक्त करता है लेखक.
निबंध और अनुच्छेद में क्या अंतर है | Difference Between Paragraph and Essay in Hindi !!
# अनुच्छेद की एक सीमा होती है उससे अधिक बड़ा अनुच्छेद को नहीं लिखा जा सकता लेकिन निबंध को कितना भी बड़ा लिखा जा सकता है.
# अनुच्छेद को सटीक लिखा जाता है जिससे कि कम शब्दों में ही अर्थ समझ आ जाये और पूरी जानकारी भी दी जा सके जबकि निबंध को पूर्णतः स्वतंत्र होके लिखा जाता है क्यूंकि इसमें शब्दों की कोई सीमा निश्चित नहीं की गयी है.
# अनुच्छेद कुछ लाइनों में समाप्त हो जाता है जिसे एक अनुच्छेद कहते हैं जो पूरी जानकारी रखता है. जबकि निबंध कई अनुच्छेदों का मेल होता है जिसमे सभी अनुच्छेद एक ही विषय में बात करते हैं.
# निबंध के अंदर कई अनुच्छेद हो सकते हैं लेकिन अनुच्छेद के अंदर निबंध नहीं हो सकते।
# जितनी सटीकता अनुच्छेद में होती है उतनी निबंध में नहीं होती है.
# निबंध में सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव आदि का उल्लेख किया जाता है जबकि अनुच्छेद में नहीं किया जाता है बल्कि अनुच्छेद के रूप में ही सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव का उल्लेख निबंध में होता है.
आशा करते हैं आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी यदि कहीं कोई समस्या आपको लगती है तो आप हमे नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं और यदि कोई सवाल या सुझाव भी आपके मन में हों तो वो भी आप हमसे शेयर कर सकते हैं नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स के जरिये. धन्यवाद !!
Ankita Shukla
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18 comments:.
Thanks sir, it's helpful.
Thank u sir ,this is very helpful for all students
What we should use before India?
The article can not use before county. Besides these contries ....The People's Republic of China, the United Kingdom, The United States of America, The Netherlands
very helpfull sir
It's very very good articals ....thaaxxx
Sir plz tell c.b.i,b.t.c,violan,p.c.s,kalidas me kaun sa article lagega aur kyu lagega
Kha pe article nhi lagta
The articale can be used before uncontable noun Please reply
Tq..sir it's really helpful..
After reading I Am Very Happy
eulogy ke pehle kya lage ga
Hindu me the lgega ya nhi
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विस्तार से जानिए क्या है आलेख लेखन?
- Updated on
- फरवरी 5, 2024
आलेख लेखन अपने आप में एक गहन समीक्षा, लेखनी की समझ का नतीजा होता है। आलेख लेखन एक विषय है जो हिंदी व्याकरण का एक मुख्य भाग है। इस विषय पर विद्यार्थियों को अवश्य जानकारी प्राप्त करनी चाहिए, विद्यार्थी जीवन में आलेख से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के बाद आप हिंदी व्याकरण की थोड़ी समझ रख सकते हैं। आलेख को आमतौर पर इसे लेख के जैसा ही समझ लिया जाता है। आलेख लिखते समय आप को उस मुद्दे की बारीकी से समझ होना बहुत ज़रूरी है। आलेख को निबंध के जैसा भी समझ लिया जाता है। तो आइए जानते हैं क्या है aalekh lekhan और इसे कैसे लिखें। आलेख लेखन से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।
This Blog Includes:
आलेख लेखन क्या है, अच्छे आलेख लेखन के क्या गुण होने चाहिए, आलेख लेखन और फीचर लेखन में अंतर , आलेख लेखन का उदाहरण , आलेख लेखन की प्रमुखता, प्रश्नोत्तर.
Aalekh lekhan एक सर्वांगपूर्ण सम्यक विचारों का एक संयुक्त भाव होता है। आलेख एक गंभीर और व्यंगपूर्ण रचना होती है। आलेख लेखन को वैचारिक गद्य रचना भी कहा जाता है। आलेख में गुमराह करने वाली कोई बात नहीं होनी चाहिए।
Aalekh lekhan ऐसी कला जिसको अभ्यास से ही सीखा जाता है या आदत में लाया जा सकता है। एक आदर्श आलेख पढ़कर पाठक के अन्दर उस मुद्दे को लेकर उस भावना का आना अनिवार्य है। चलिए, तो जानते हैं कि कैसे आलेख लेखन लिखा जाता है –
आलेख लेखन में भूमिका, विषय प्रतिपादन और निष्कर्ष अहम होता है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं:
- भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।
- विचार कथात्मक न हो कर विवेचन विश्लेषण वाले होने चाहिए।
- आलेख से पाठक की जिज्ञासा उत्पन्न हो जाए ऐसा होना चाहिए।
- आलेख हमेशा ज्वलंत और प्रसिद्द मुद्दों या समारोह पर होना चाहिए।
- आलेख से भावुकता संभव हो सकती है।
- आकार के विषय वस्तु पर आलेख निर्भर हो सकता है।
- आलेख लिखने से पहले उसका गहन अध्ययन होना चाहिए।
- अनुमान नहीं तथ्य पर आलेख का अस्तित्व होता है।
- आखिरी में निष्कर्ष अनिवार्य होता है।
Aalekh lekhan और फीचर में मूलभूत अंतर आप उसे पढ़कर भी बता सकते हैं। दोनों अपनी-अपनी तरह से पाठक के अन्दर एक लालसा उत्पन्न कर देते हैं।
- आलेख गंभीर व व्यंगपूर्ण होता है जबकि फीचर में हास्य और मनोरंजन।
- फीचर 250 शब्दों से अधिक का नहीं होना चाहिए जबकि आलेख बड़ा भी हो सकता है।
- आलेख को संपूर्ण जानकारी और तथ्यों के आधार पर भी लिख सकते हैं, जबकि फीचर के लिए आपको आंख, कान, भाव, अनुभूतियां और मनोवेग, आदि की सहायता लेनी पड़ती है।
- फीचर विषय से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित विशिष्ट आलेख होता है जिसमें कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल होनी चाहिए जबकि आलेख में विषय पर तथ्यात्मक, विश्लेषणात्मक अथवा विचारात्मक जानकारी होती है कल्पना का स्थान नहीं होता है।
भारतीय क्रिकेट के सरताज : सचिन तेंदुलकर
पिछले पंद्रह सालों से भारत के लोग जिन-जिन हस्तियों के दीवाने हैं उनमें एक गौरवशाली नाम है-सचिन तेंदलकर। जैसे अमिताभ का अभिनय में मुकाबला नहीं, वैसे सचिन का क्रिकेट में कोई मुकाबला नहीं। संसार-भर में एक यही खिलाड़ी है जिसने टेस्ट क्रिकेट के साथ-साथ वन-डे क्रिकेट में भी सर्वाधिक शतक बनाए हैं। इसीलिए कुछ क्रिकेट-प्रेमी सचिन को क्रिकेट का भगवान तक कहते हैं। उसके प्रशंसकों ने हनुमान चालीसा की तर्ज पर सचिन-चालीसा भी लिख दी है।
मुंबई में बांद्रा-स्थित हाउसिंग सोसाइटी में रहने वाला सचिन इतनी ऊँचाइयों पर पहँचने पर भी मासूम और विनयी है। अहंकार तो उसे छू तक नहीं गया है। अब भी उसे अपने बचपन के दोस्तों के साथ वैसा ही लगाव है जैसा पहले था। सचिन अपने परिवार के साथ बिताए हुए क्षणों को सर्वाधिक प्रिय क्षण मानता है। इतना व्यस्त होने पर भी उसे अपने पुत्र का टिफिन स्कूल पहुँचाना अच्छा लगता है।
सचिन ने केवल 15 वर्ष की आयु में पाकिस्तान की धरती पर अपने क्रिकेट-जीवन का पहला शतक जमाया था जो अपने-आप में एक रिकार्ड है। उसके बाद एक-पर-एक रिकार्ड बनते चले गए। अभी वह 21 वर्ष का भी नहीं हुआ था कि उसने टेस्ट क्रिकेट में 7 शतक ठोक दिए थे। उन्हें खेलता देखकर भारतीय लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर कहते थे-सचिन मेरा ही प्रतिरूप है।
Aalekh lekhan में प्रमुखता का बहुत अहम किरदार है। आलेख लेखन में भाषा और मुद्दे की गंभीरता, विवेचन और अध्ययन का बहुत महत्व होता है। एक अच्छा आलेख नवीनता और ताजगी से संपन्न होना चाहिए।
आलेख वास्तव में लेख का ही प्रतिरूप होता है। यह आकार में लेख से बड़ा होता है। कई लोग इसे निबंध का रूप भी मानते हैं जो कि उचित भी है। लेख में सामान्यत: किसी एक विषय से संबंधित विचार होते हैं। आलेख में ‘आ’ उपसर्ग लगता है जो कि यह प्रकट करता है कि आलेख सम्यक् और संपूर्ण होना चाहिए। आलेख गद्य की वह विधा है जो किसी एक विषय पर सर्वांगपूर्ण और सम्यक् विचार प्रस्तुत करती है।
सार्थक आलेख के निम्नलिखित गुण हैं – 1. नवीनता एवं ताजगी। 2. जिज्ञासाशील। 3. विचार स्पष्ट और बेबाकीपूर्ण। 4. भाषा सहज, सरल और प्रभावशाली। 5. एक ही बात पुनः न लिखी जाए। 6. विश्लेषण शैली का प्रयोग। 7. आलेख ज्वलंत मुद्दों, विषयों और महत्त्वपूर्ण चरित्रों पर लिखा जाना चाहिए। 8. आलेख का आकार विस्तार पूर्ण नहीं होना चाहिए। 9. संबंधित बातों का पूरी तरह से उल्लेख हो।
उत्तरः आलेख वास्तव में लेख का ही प्रतिरूप होता है। यह आकार में लेख से बड़ा होता है। कई लोग इसे निबंध का रूप भी मानते हैं जो कि उचित भी है। लेख में सामान्यतः किसी एक विषय से संबंधित विचार होते हैं। आलेख में ‘आ’ उपसर्ग लगता है जो कि यह प्रकट करता है कि आलेख सम्यक् और संपूर्ण होना चाहिए। आलेख गद्य की वह विधा है जो किसी एक विषय पर सर्वांगपूर्ण और सम्यक् विचार प्रस्तुत करती है।
उत्तरः सार्थक आलेख के निम्नलिखित गुण हैं – 1. नवीनता एवं ताजगी। 2. जिज्ञासाशील। 3. विचार स्पष्ट और बेबाकीपूर्ण। 4. भाषा सहज, सरल और प्रभावशाली। 5. एक ही बात पुनः न लिखी जाए। 6. विश्लेषण शैली का प्रयोग। 7. आलेख ज्वलंत मुद्दों, विषयों और महत्त्वपूर्ण चरित्रों पर लिखा जाना चाहिए। 8. आलेख का आकार विस्तार पूर्ण नहीं होना चाहिए। 9. संबंधित बातों का पूरी तरह से उल्लेख हो।
आलेख लिखने के लिए इन चरणों को फॉलो करें: भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए, विचार कथात्मक न हो कर विवेचन विश्लेषण वाले होने चाहिए, आलेख से पाठक की जिज्ञासा उत्पन्न हो जाए ऐसा होना चाहिए, आलेख हमेशा ज्वलंत और प्रसिद्ध मुद्दों या समारोह पर होना चाहिए आदि।
आलेख 3 प्रकार के होते हैं: दंड आलेख, आयत चित्र, बारम्बारता बहुभुज।
आलेख के यह मुख्य अंग हैं– भूमिका, विषय का प्रतिपादन, तुलनात्मक चर्चा व निष्कर्ष सर्वप्रथम शीर्षक के अनुकूल भूमिका लिखी जाती है। यह बहुत लंबी न होकर संक्षेप में होनी चाहिए।
भाषा सहज, सरल और प्रभावशाली। एक ही बात पुनः न लिखी जाए। विश्लेषण शैली का प्रयोग। आलेख ज्वलंत मुद्दों, विषयों और महत्त्वपूर्ण चरित्रों पर लिखा जाना चाहिए।
Aalekh lekhan एक सर्वांगपूर्ण सम्यक विचारों का एक संयुक्त भाव होता है। आलेख एक गंभीर और व्यंगपूर्ण रचना होती है।
आलेख की भाषा हमेशा सरल व स्पष्ट होनी चाहिए। आलेख में केवल आवश्यकतानुसार विवरण देना चाहिए तथा आलेख संक्षिप्त में होना चाहिए।
आसान भाषा में समझा जाए तो निबंध का रूप वर्णात्मक होता, तो वहीं आलेख में आवश्यकता अनुसार ही विवरण दिया जाता है और ये संक्षिप्त रूप में होते हैं।
आशा है कि आलेख लेखन से संबंधित यह ब्लॉग आपको जानकारी से भरपूर यह ब्लॉग पसंद आया होगा, साथ ही Aalekh Lekhan के विषय पर लिखित इस ब्लॉग ने आपकी व्याकरण के विषय में रूचि बड़ा दी होगी। इसी प्रकार के अन्य इंफॉर्मेटिव ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ जुड़े रहें।
देवांग मैत्रे
स्टडी अब्रॉड फील्ड के हिंदी एडिटर देवांग मैत्रे को कंटेंट और एडिटिंग में आधिकारिक तौर पर 6 वर्षों से ऊपर का अनुभव है। वह पूर्व में पोलिटिकल एडिटर-रणनीतिकार, एसोसिएट प्रोड्यूसर और कंटेंट राइटर रह चुके हैं। पत्रकारिता से अलग इन्हें अन्य क्षेत्रों में भी काम करने का अनुभव है। देवांग को काम से अलग आप नियो-नोयर फिल्म्स, सीरीज व ट्विटर पर गंभीर चिंतन करते हुए ढूंढ सकते हैं।
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अहंकार का अर्थ और कैसे करें अहंकार का सही उपयोग
इस ब्लॉग में सन्गुरु हमें मन के उस आयाम के बारे में बता रहे हैं जिसे अहंकार कहते हैं। वे बताते है कि अहंकार कैसे पैदा होता है, और अहंकार के कारण कैसे हमारी बुद्धि हमें ही दुःख देने लगती है।
अहंकार ईगो नहीं, स्वयं धारण की हुई पहचान है
मन के दूसरे आयाम को अहंकार कहा जाता है। इसका अर्थ उस पहचान से है, जो आपने धारण कर रखी है। आमतौर पर अंग्रेजी भाषा में लोग अहंकार को ‘ईगो’ समझ लेते हैं। यह ईगो नहीं है, यह आपकी पहचान है। आपकी बुद्धि हमेशा आपकी पहचान की गुलाम होती है। आप जिस चीज के साथ भी अपनी पहचान बना लेते हैं, यह उसी के इर्द-गिर्द काम करती है। लोग अपनी पहचान ऐसी चीजों के साथ स्थापित कर लेते हैं, जिन्हें उन्होंने कभी देखा भी नहीं है, और उनके भाव इन्हीं चीज़ों से जुड़ जाते हैं। यही चीजें उनके जीवन की दिशा तय करती हैं।
अहंकार की रक्षा बुद्धि किस तरह करती है? कुछ उदाहरण..
उदाहरण के लिए हम सभी किसी न किसी देश से जुड़े हैं। सौ साल पहले एक ऐसा वक्त भी था, जब बहुत सारे लोग ऐसे थे जो किसी भी देश से ताल्लुक नहीं रखते थे,
लेकिन आज हर किसी का एक देश है और यहां तक कि हर किसी का एक फुटबॉल क्लब भी है। क्योंकि दोनों के ही झंडे और चिह्न होते हैं। तो राष्ट्रीयता एक नया विचार है। बस डेढ़-दो सौ साल से ही राष्ट्रीयता का इतना जबर्दस्त भाव हमारे यहां आया है। हमने अपनी नस्ली, जातीय और दूसरी तरह की पहचानों को राष्ट्रीय पहचान की ओर सरका दिया है। जैसे ही आपके मन में आता है कि मैं इस देश का हूं तो उस देश का झंडा, राष्ट्रीय चिह्न, राष्ट्र गान आपके भीतर एक भाव जगाते हैं। इसमें कोई दिखावा नहीं होता, यह सब वास्तविक होता है। यह वास्तविक है, क्योंकि लोग इसके लिए जान देने को भी तैयार हैं, लेकिन ये सब बस एक पहचान ही तो है। आप इसे कभी भी बदल सकते हैं। आप किसी दूसरे देश में जाकर बस सकते हैं और फिर वह आपका बन सकता है। जिस पल आप अपनी पहचान किसी चीज के साथ स्थापित कर लेते हैं, आपकी बुद्धि पूरी तरह से और हमेशा इस पहचान की रक्षा करती है और इसी के इर्द-गिर्द काम करती है।
अहंकार के रूप और उससे जुड़ी मुश्किलें
अहंकार को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक पहचान आपकी बुद्धि से आती है और एक आपकी भावनाओं से जुड़ी होती है - ये दो तरह की पहचान होती है। आपकी पहचान जिन भी चीजों के साथ है, उनमें से कुछ बौद्धिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, कुछ भावनात्मक रूप से।
अगर आपने बौद्धिक रूप से किसी चीज के साथ पहचान स्थापित की हुई है, तो आप अपने चारों ओर मुश्किलों का एक भयंकर जाल महसूस करेंगे और उसमें फंसे रहेंगे। अगर आपने भावनाओं के आधार पर पहचान स्थापित की हुई है तो आपकी पहचान एक मकसद का, एक जुड़ाव का अनुभव कराएगी। लेकिन जैसे ही आपकी भावनात्मक पहचान के साथ समस्या आ जाती है आपका मरने का मन करने लगता है। हमेशा ऐसा ही होता है, क्योंकि आपको लगने लगता है कि अब दुनिया में कुछ नहीं बचा। हो सकता है, कुछ समय बाद आप इस भाव से उबर जाएं, लेकिन उस पल तो आपको यही महसूस होगा कि आपकी दुनिया खत्म हो गई।
तर्क सीधी रेखा में होते हैं। इसलिए इनसे जाल बनाने के लिए आपको कई-कई रेखाएं बनानी होंगी, जिसमें आप फंस सकें। लेकिन भाव आपस में ऐसे उलझे होते हैं कि जब भी उन्हें खतरा महसूस होता है, तो ऐसा लगता है जैसे यह दुनिया का अंत है। अगर आप किसी चीज के साथ भावनात्मक रूप से पहचान बनाते हैं तो या तो यह आपको बना देती है या तोड़ देती है। यह आपको जबर्दस्त शक्ति देती है, लेकिन जरा सी भी गड़बड़ हुई और सब खत्म।
तो पहचान ढीली ही रखनी चाहिए। जब हम किसी खास मकसद के लिए कुछ कर रहे हैं, तो हमें पहचान की जरूरत होती है। हम उसके साथ ऐसे चलते हैं जैसे हमारा जीवन उसी पर निर्भर है, लेकिन हमारे भीतर इतनी हिम्मत होनी चाहिए कि हम इसे हटाकर एक तरफ रख सकें। योग में कहा जाता है, आपको अपनी पहचान एक ढीले कपड़े की तरह रखनी चाहिए। ताकि जब आप इसे उतारना चाहें, आप इसे आसानी से उतार सकें। अगर आप यह नहीं जानते कि अपनी पहचान को कैसे उतारें, तो धीरे-धीरे आपकी बुद्धि आपकी सुरक्षा के लिए काम करना शुरू कर देगी और आत्मरक्षा की दीवारें बनाने लगेगी।
अहंकार का उचित उपियोग क्या है? और इसमें उलझने से कैसे बचें
अगर आप अपनी रक्षा के लिए अपने आसपास एक दीवार बना लेते हैं , तो कुछ समय बाद यही दीवार आपको कैद कर लेती है। पहचान को जागरूकता के साथ धारण करना, उसका होकर न रह जाना,
बल्कि उस पहचान के साथ खेलना, अगर कोई ऐसा करता है तो बुद्धि उसके खिलाफ काम नहीं करेगी। लेकिन आप तो अपनी पहचान में फंस गए हैं। आप उसे लेकर नहीं चल रहे हैं, बल्कि वह आपको चला रही है, आप उसमें फंस गए हैं। एक बार अगर आप इसमें फंस गए तो आपकी बुद्धि आपके खिलाफ काम करना शुरू कर देगी। ऐसा लगता है जैसे हर चीज आपको परेशान कर रही है। जीवन में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि किसी ने बाहर से आपको कोई चीज चुभाई हो। बाहर से आपको शारीरिक रूप से कितना कष्ट पहुंचाया गया है? मुश्किल से एकाध बार या बिल्कुल भी नहीं। आप खुद ही अपने को दुखाते हैं, आपकी पहचान आपसे चिपक गई है।
बुद्धि का सबसे अच्छा उपयोग तभी हो सकता है, जब आप अपनी पहचान को अपने से थोड़ा सा दूर रखकर धारण करें - जब तक आप चाहें इसके साथ खेलें और जब नहीं खेलना हो तो इसे दूर रख सकें। जब आपके पास इतनी आजादी होगी, तो आप देखेंगे कि आपकी बुद्धि आपके लिए परेशानी का कारण नहीं बनेगी।
फीचर लेखन क्या है Feature lekhan in hindi for class 11 and 12
स्टूडेंट्स आज हम समझेंगे फीचर लेखन क्या होता है और इसका उदाहरण भी देखेंगे | Feature lekhan in hindi with example for students of class 11 and class 12.
फीचर लेखन एक ऐसा विषय है जिसमे बच्चों को बहुत दिक्कत होती है | लेकिन हमारी वेबसाइट आप बच्चों की दिक्कत समाप्त करने के लिए ही स्थापित की गयी है |
Table of Contents
Feature lekhan in hindi with examples
संचार अभिव्यक्ति का माध्यम है। आज मानव अपनी अभिव्यक्ति दूसरों तक पहुंचाने के लिए संचार माध्यमों का सहारा लेता है। संचार क्रांति ने आधुनिक युग में लोगों का कार्य सरल कर दिया है। आज एक व्यक्ति घर बैठे देश – विदेश का हाल आंखों – देखा देख सकता है। अर्थात किसी भी घटना से वह तत्काल जुड़ सकता है , और उसकी जानकारी ले सकता है।
संचार के अनेक माध्यम है जैसे – मोबाइल , कंप्यूटर , इंटरनेट , डाक , पत्र – पत्रिका आदि।
पत्र – पत्रिका जिसमें ज्ञान – विज्ञान , मनोरंजन , सिनेमा , राजनीति तथा अन्य प्रकार की जानकारी उपस्थित रहती है। इस लेखन में समाचार लेखन तथा फीचर लेखन का विशेष महत्व है। समाचार लेखन जहां लोगों को किसी घटना से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराता है। वही फीचर लेखन जानकारी के साथ – साथ रोचक तथ्य उपलब्ध कराना और मनोरंजन का भी कार्य करती है।
जहां समाचार पत्र उल्टा पिरामिड शैली में लिखा जाता है।
अर्थात समाचार शैली में आरंभ से पूरे घटना का विस्तार देते हुए सार की ओर अग्रेषित होता है। वही फीचर लेखन में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है , यह कहीं से भी कैसे भी आरंभ किया जा सकता है।
फीचर लेखन किसी घटना का सजीव चित्रण होता है। अतः इस में पात्र की भूमिका अहम रहती है। वह फीचर लेखन में अग्रणी भूमिका निभाता है।
सारी घटना उस पात्र के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है। पात्र , इस में सजीव होता है , चलाएमान होता है।
Feature lekhan in hindi
फीचर लेखन का मुख्य कार्य पात्रों के द्वारा घटना का प्रस्तुतीकरण है। इस की शैली आकर्षक होनी चाहिए ताकि एक पाठक इस कला से तन्मयता और एकाग्रता के साथ रुचि लेकर पढ़ सके। फीचर लेखन क्योंकि मनोरंजन के साथ-साथ सूचना और ज्ञान भी देता है , इसलिए यहां पर इस लेखन में रूचि उत्पन्न करना अति आवश्यक है।
जहां समाचार पत्र कई प्रकार के बंधनों से बंधा होता है , जैसे सिर्फ और सिर्फ घटना की जानकारी देना।
उल्टा पिरामिड शैली में लेखन करना आदि। इस प्रकार की बाधा फीचर लेखन के साथ नहीं है। फीचर लेखन आकर्षक तरीके से लिखा जाता है।
फीचर लेखन समीक्षा शैली के निकट है , या यूं कहें के फीचर लेखन और समीक्षा शैली एक दूसरे के पर्याय हैं।
फीचर लेखन में –
- समाचार की पृष्ठभूमि
- खोजपरक फीचर
- साक्षात्कार फीचर
- जीवनशैली फीचर
- रूपात्मक फीचर
- व्यक्तिगत फीचर
- यात्रा फीचर
आदि विषयों पर फीचर लेखन लिखा जाता है।
फीचर लेखन किसी कहानी , उपन्यास की तरह ही कुछ बिंदुओं पर आधारित होता है – आरंभ , मध्य , चरम , समापन , भाषा – शैली , नेता तथा निष्कर्ष।
आरंभ –
फीचर लेखन का आरंभ किसी घटना , यात्रा आदि पर आधारित होता है। आरंभ में पाठक को कुछ ऐसी घटना का जिक्र करना चाहिए जिससे पूरा लेख पढ़ने की उत्सुकता पाठक के मन में बरकरार रहे।
अतः घटना की पूर्ण जानकारी आरंभ में नहीं देना चाहिए जिससे फीचर लेखन की शैली में नीरसता उत्पन्न हो।
मध्य –
इस में घटना की जानकारी को परत दर परत पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
जिसके माध्यम से पाठक आकर्षक और एकाग्रचित्त होकर उस लेख को निरंतरता के साथ पढता है।
चरम –
चरम अर्थात ऐसा ठहराव जहां पर पाठक को पूरी घटना की जानकारी रोचकता के साथ मिल जाती है। लेखक चरम पर हर उस घटना से जुड़े तथ्य को प्रकट कर चुका होता है , जो पाठक तक इस लेख के माध्यम से वह पहुंचाना चाहता है।
समापन –
समापन ऐसा बिंदु है , जहां पर पूरी घटना को प्रस्तुत करने के उपरांत लेखक कुछ सवाल , कुछ विचार व कुछ प्रश्नों के साथ इस लेख का समापन करता है। इसके उपरांत पाठक अपने मन व विवेक के अनुसार इस लेखन पर विचार करता है।
उस घटना पर अपनी राय रखने के लिए प्रेरित होता है।
भाषा शैली –
इस की एक महत्वपूर्ण बिंदु , भाषा शैली है। भाषा पाठक वर्ग के अनुसार सरल व सुबोध तथा आकर्षक होनी चाहिए। भाषा का प्रयोग क्लिष्ट व अधिक कठिन नहीं होनी चाहिए।
भाषा का प्रयोग पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए। जिससे पाठक लेख को पढ़ने में रूचि ले सके।
नेता –
भाषा शैली जिस प्रकार फीचर लेखन के लिए आवश्यक है , ठीक उसी प्रकार फीचर लेखन में नेता अर्थात वह बिंदु जिसके आगे पीछे यह पूरी घटना या यह लेख चलता है।
उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है , जो फीचर लेखन को अन्य लेखन से अलग करती है।
फीचर लेखन में तारतम्यता व सजीव चित्रण के लिए नेता का चलाएमान होना अति आवश्यक है।
निष्कर्ष –
किसी भी कला व लेख में निष्कर्ष की भूमिका अहम रहती है।
यह समापन की भूमिका निभाता है , जिसमें घटना से जुड़े प्रसंगों , उससे जुड़े प्रश्न व विचार के लिए इसमें कल्पना की जाती है।
कुछ विचार लेखक के होते हैं और कुछ विचार पाठक के लिए होता है।
पाठक पूरे लेख को पढ़कर अपने विचार अपने मत इस लेख के प्रति रख सकता है।
फीचर लेखन उदाहरण
= > नेता द्वारा किए गए चुनाव प्रचार के दौरान ‘ चुनावी वायदा ‘ पर संक्षिप्त फीचर लेखन।
तलवारें म्यान में , योद्धा मैदान में
चुनाव आते ही नेता अपने क्षेत्र में प्रचार-प्रसार के लिए लग गए हैं। रोचक तरीके से वोटरों को लुभाने में जुटे हुए हैं। नेता एक – दूसरे के कमियों को उजागर कर अपना प्रचार – प्रसार कर रहे हैं।
आज रायगढ़ में उपस्थित ‘ जय भगवान ‘ जो वहां के वर्तमान सांसद हैं , उन्होंने अपनी जनता को पुराने सभी किए गए वायदे को छिपाने के लिए नए-नए वायदे किए। सांसद अभी तक वहां मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं करवा पाए। वह फिर चुनाव को देखते हुए पुनः पुराने और नए वादे जो लोगों को लुभाने वाले हैं , उसे प्रस्तुत कर रहे हैं।
चुनावी वादे में मुख्य वायदे इस प्रकार हैं –
- सड़क नाली बनवाना सभी के लिए।
- एक – एक लैपटॉप कॉलेज विद्यार्थी को देंगे ।
- धार्मिक स्थलों का निर्माण ।
- गरीबों को घर।
- कच्ची कालोनी को पक्का करके सुविधा को बेहतर करना।
- सरकारी अस्पताल का निर्माण आदि।
नेताजी चुनावी वादे करके हंसी मजाक करते हुए वह अपनी गाड़ी में बैठे और वहां से रवाना हो गए। इस घटना को देखने के लिए वहां दर्शक जोकि कुछ अपनी श्रद्धा से आए थे और कुछ जबरदस्ती कुछ पैसे देकर लाए गए थे।
वह नेता जी के आधे घंटे भाषण को सुनने के लिए 4 घंटे से बैठे हुए थे।
इस प्रकार की घटना केवल रामगढ़ ही नहीं अपितु पूरे देश में हो रही है। वोटरों को अब यह विचार करना होगा कि कौन सांसद उन्हें खोखले आश्वासन दे रहा है। और कौन विकास और उत्थान की बात करता है , अथवा कार्य करने में अपनी निष्ठा रखता है। अतः अब लोगों को अथवा वोटरों को ही यह विचार करना होगा। धर्म , जात – पात इन सबके बहकावे में ना आकर लोगों को अपना एक मजबूत व सुदृढ़ कर्मठ नेता चुनने की आवश्यकता है।
Feature lekhan video
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कृपया अपने सुझावों को लिखिए | हम आपके मार्गदर्शन के अभिलाषी है |
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29 thoughts on “फीचर लेखन क्या है Feature lekhan in hindi for class 11 and 12”
You are so good
Thanks sumedha , keep visiting
फीचर लेखन की संपूर्ण जानकारी देने के लिए आपका धन्यवाद परंतु आपको यहां पर अपने वीडियो भी डालनी चाहिए थी जिसमें आप समझाते हैं कि यह क्या होता है और इसे कैसे लिखें तथा परीक्षा में किस प्रकार से लिखा जाता है
Very nice Sir thanks for loat
You’re welcome
It was ….so good…..tomorrow is my Hindi board ….it help me a lot …
Best of luck for your exam. We will focus on maintaining notes for exam purpose especially at one place. So keep visiting stay tuned with us
Thanks Rajan yadav , check out our other posts too.
nice video..
Thanks Sachin, keep visiting
Good content, helped me a lot Thanks
आपने फीचर लेखन पर जो इतना विशेष लेख लिखा है वह काफी सराहनीय है और मैं आपका धन्यवाद करना चाहूंगी कि आपने इतना विस्तृत तरीके से इसे समझाया।
Thankyou so much
You’re welcome Sagar. If you have any other questions then do ask here
Thank u so much
Thanks a lot
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This is the best article on Feature lekhan in hindi with all information required
It really helped me a lot. Thank you for writing this post in detail.
इस उपयोगी जानकारी को सांझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आप की हर पोस्ट उपयोगी होती है। कृपया जानकारी उपलब्ध करवाएं
You are good but give some examples also
थेंक्स सर मुझे काफी हेल्प मिली थोड़ा और विस्तार होता तो और अच्छा होता मगर मेरा इतने में ह काम हो गया थेंक्स लोट
फीचर लेखन इतनी आसान तरीके से समझ में आ जाएगा मुझे लगा ही नहीं था. यह कहना गलत नहीं होगा कि आप की वेबसाइट पर जितना अच्छे तरीके से फीचर लेखन के बारे में समझाया गया है उतना कहीं भी नहीं बताया गया.
This is a satisfactory and helpful article on feature writing in Hindi but could be better if there would any arrangement for quiz which would make us to know how much we are able to understand. Thanking you
It is very helpful for me…..thank you very much
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सभ्यता और संस्कृति में अंतर [civilization and culture in hindi]
Posted by P B Chaudhary | 💫 Key Differences
सभ्यता और संस्कृति दोनों व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाले शब्द है, हालांकि आम तौर पर हम इनके बीच के अंतर को लेकर अंजान रहते हैं और इन दोनों शब्दों को एक पर्याय के रूप में इस्तेमाल कर देते हैं;
इस लेख में हम संस्कृति और सभ्यता (civilization and culture) पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं इसके मध्य कुछ मूल अंतरों को स्पष्ट करेंगे, तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें; और साथ ही रोज़ नए-नए Content के लिए हमारे Facebook Page को लाइक जरूर करें।
सभ्यता और संस्कृति
हम किस धर्म को फॉलो करते हैं, हम क्या भोजन करते हैं, हम क्या पहनते हैं, हम इसे कैसे पहनते हैं, हमारी भाषा, विवाह, संगीत, जो हम सही या गलत मानते हैं, हम कैसे मेज पर बैठते हैं, हम आगंतुकों का अभिवादन कैसे करते हैं, हम प्रियजनों के साथ कैसे व्यवहार करते हैं और अन्य लाखों चीज़ें जिससे हमारी पहचान जुड़ी है, संस्कृति है।
ऊपर के वाक्यों से आप समझ सकते हैं संस्कृति किस स्तर की चीज़ है। और सभ्यता की बात करें तो जितनी भी चीजों का हमने ऊपर जिक्र किया है और इसके अलावे अन्य लाखों चीज़ें जो हम करते हैं या हम उसमें संलग्न (engage) होते हैं; उससे हम प्रत्यक्ष रूप से एक समन्वित भौतिक उन्नति की प्राप्ति करते हैं, जिसे हम सभ्यता कहते हैं।
यूरोप, भारत, रूस और चीन आदि अपनी समृद्ध संस्कृतियों के लिए ही तो जाने जाते हैं, ख़ासकर के भारत जो कि अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, और पर्यटकों को निरंतर आकर्षित करते हैं। [आइये इसे विस्तार से समझते हैं।]
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संस्कृति (Culture )
⚫ संस्कृति का संबंध संस्कार से है। और संस्कार का मतलब होता है भद्दापन अथवा त्रुटियों को दूर कर सही जीवन मूल्यों को स्थापित करना ताकि वे समाज के लिए उपयोगी बन सकें।
⚫ दूसरे शब्दों में कहें तो जीवन को सुंदर बनाने के लिए मानव द्वारा किया जानेवाला बौद्धिक प्रयास संस्कृति है। संस्कृति किसी सभ्यता का मूल तत्व होता है।
जैसा कि हम जानते हैं संस्कृति के लिए इंग्लिश में “Culture” शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। शब्द “Culture” एक फ्रांसीसी शब्द “ colere ” से निकला है, जिसका अर्थ है पृथ्वी की ओर बढ़ना, या खेती करना और पोषण करना।
⚫ अगर हम इंसान को एक सभ्यता माने तो उसकी आत्मा संस्कृति है, अगर एक फूल को सभ्यता माने तो उसकी खुशबू संस्कृति है। कहने का अर्थ ये है कि मनुष्य की जीवन यात्रा को सरल बननेवाली आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक उपलब्धियाँ (जो कि प्रत्यक्ष भौतिक उपलब्धियां है) सभ्यता कहलाता है। वहीं मानव जीवन को अप्रत्यक्ष रूप से समृद्ध बनानेवाली आध्यात्मिक, नैतिक, बौद्धिक और मानसिक उपलब्धियां संस्कृति कहलाता है।
⚫ कहा जाता है कि सभ्यता और संस्कृति दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है यानी कि अगर सभ्यता है तो देर-सवेर संस्कृति विकसित हो ही जाती है।
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संस्कृति का उदाहरण –
पाश्चात्य संस्कृति (Western culture) – इसका इस्तेमाल आमतौर पर यूरोपियन देशों की संस्कृति और उससे प्रभावित अन्य देशों की संस्कृति के लिए किया जाता है। जैसे कि अमेरिका, इस तरह की संस्कृति को उसके शारीरिक खुलापन, फास्ट फूड इत्यादि से जाना जाता है।
भारतीय संस्कृति (Indian culture) – इसका इस्तेमाल आमतौर पर भारतीय उप-महाद्वीप के देशों की संस्कृति के लिए किया जाता है। इसकी खासियत है अपनी समृद्ध परंपराओं को साथ लेकर आज की मान्यताओं एवं धारणाओं के साथ आगे बढना।
पूर्वी संस्कृति (Eastern culture) – पूर्वी संस्कृति आम तौर पर सुदूर पूर्व एशिया (चीन, जापान, वियतनाम, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया सहित) और कुछ हद तक भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के सामाजिक मानदंडों को संदर्भित करती है। पश्चिम की तरह, पूर्वी संस्कृति अपने प्रारंभिक विकास के दौरान धर्म और साथ ही कृषि कार्यों से काफी प्रभावित रही है। इसीलिए यहाँ की संस्कृति में कृषि एक मूल तत्व है।
अफ्रीकन संस्कृति (african culture) – भारतीय उप-महाद्वीप की संस्कृति की तरह ही अफ्रीकी संस्कृति न केवल राष्ट्रीय सीमाओं के बीच, बल्कि उनके भीतर भी भिन्न होती है। इस संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं में से एक महाद्वीप के 54 देशों में बड़ी संख्या में जातीय समूह हैं। उदाहरण के लिए, अकेले नाइजीरिया में 300 से अधिक जनजातियां हैं। इसीलिए पूरे अफ्रीका के संस्कृति को एक ही साँचे में डालना बहुत मुश्किल है।
ब्रिटानिका के अनुसार, कुछ पारंपरिक उप-सहारा अफ्रीकी संस्कृतियों में तंजानिया और केन्या के मासाई, दक्षिण अफ्रीका के ज़ुलु और मध्य अफ्रीका के बटवा शामिल हैं। इन संस्कृतियों की परंपराएं बहुत अलग वातावरण में विकसित हुईं। उदाहरण के लिए, बटवा, जातीय समूहों में से एक है जो परंपरागत रूप से वर्षावन में वनवासी जीवन शैली जीते हैं। दूसरी ओर, मासाई, खुले क्षेत्र में भेड़ और बकरियां चराते हैं।
लैटिन संस्कृति (Latin Culture) – लैटिन अमेरिका को आमतौर पर मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और मैक्सिको के उन हिस्सों के रूप में परिभाषित किया जाता है जहां स्पेनिश या पुर्तगाली प्रमुख भाषाएं हैं। ये सभी स्थान स्पेन या पुर्तगाल के उपनिवेश थे। इसीलिए यहाँ की संस्कृति में कैथीलिक परंपराओं के साथ-साथ वहाँ की स्थानीय संस्कृति और अफ्रीकियों द्वारा लाए गए संस्कृति का मिश्रण मिलता है।
मध्य पूर्वी संस्कृति (Middle Eastern culture) – मोटे तौर पर, मध्य पूर्व में अरब प्रायद्वीप के साथ-साथ पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र शामिल है। यह क्षेत्र यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम का जन्मस्थान है और अरबी से हिब्रू से तुर्की से पश्तो तक दर्जनों भाषाओं का घर है। विषम मौसमी परिस्थिति और आम जीवन पर शरिया कानून के प्रभाव के कारण यहाँ की संस्कृति एक अलग ही रूप में उभर कर आती है।
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सभ्यता (Civilization )
⚫ सभ्य , सभा से विकसित हुआ है। प्राचीन काल में शिष्ट-जनों की या राजाओं की सभा हुआ करती थी जिसमें उस समय के उच्च वर्ग के लोग या फिर जिसे अभिजात वर्ग ( Aristocrat class ) कहते हैं वहीं शामिल हो पाते थे।
इन सब लोगों को और इनके अलावे भी जिस किसी व्यक्ति को इस सभा में शामिल होने के काबिल समझा जाता था उसे सभ्य कहा जाता था।
⚫ कालांतर में अच्छे विचार रखनेवाला और भले लोगों जैसा व्यवहार करने वाला व्यक्ति सभ्य कहा जाने लगा। इसी सभ्य से सभ्यता बना है।
⚫ इन्सानों के शीलवान और सज्जन होने की अवस्था ही सभ्यता है। जैसे हम अगर सिंधु घाटी सभ्यता की बात करें तो उस समय के लोगों के आचार, व्यवहार, जीवनशैली, सामाजिक ताना बाना, आर्थिक गतिविधियों को सामान्य रूप से हम उसकी सभ्यता कहते हैं।
⚫ दूसरे शब्दों में कहें तो यह मानव समाज की बाहरी और भौतिक उन्नति है, जिसे मनुष्य ने आदिम युग से अब तक लौकिक, व्यावहारिक और सामाजिक क्षेत्र में प्राप्त की है।
⚫ सभ्यता में वे सभी उपलब्धियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हे मनुष्य ने प्रकृति पर विजय पाने और जीवन निर्वाह को सुगम बनाने के लिए हासिल की है। जैसे नदी पर बांध बनाना, सड़कें बनाना, घर एवं नालियाँ बनाना, बेहतरीन कपड़े बनाना इत्यादि।
⚫ सभ्यता के लिए इंग्लिश में Civilization शब्द का इस्तेमाल किया जाता है और विकिपीडिया के अनुसार , एक सभ्यता एक जटिल समाज है जिसके पास शहरी विकास, सामाजिक स्तरीकरण, सरकार का एक रूप, और संचार की प्रतीकात्मक प्रणालियाँ होती है।
इसके अलावा सभ्यताएं केंद्रीकरण, पौधों और जानवरों की प्रजातियों (मनुष्यों सहित), श्रम की विशेषज्ञता, प्रगति की सांस्कृतिक रूप से निहित विचारधारा, स्मारकीय वास्तुकला, कराधान, खेती पर सामाजिक निर्भरता और विस्तारवाद जैसी अतिरिक्त विशेषताओं से भी जुड़ी हुई होती है।
एथेंस के एक्रोपोलिस को व्यापक रूप से पश्चिमी सभ्यता के पालने और लोकतंत्र के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। उसी तरह से सिंधु-सरस्वती सभ्यता को भारतीय सभ्यता से जोड़कर देखा जाता है।
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| सभ्यता और संस्कृति में कुल मिलाकर अंतर
⚫ कुल मिलाकर देखें तो मनुष्य की जीवन यात्रा को सरल बननेवाली आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक उपलब्धियाँ सभ्यता है। यानी कि ये मनुष्य की प्रत्यक्ष और भौतिक उपलब्धियाँ है, वहीं मानव जीवन को अप्रत्यक्ष रूप से समृद्ध बनानेवाली आध्यात्मिक , नैतिक, बौद्धिक और मानसिक उपलब्धियां संस्कृति है।
⚫ व्यक्तित्व को समृद्ध और परिष्कृत करनेवाला दर्शन, चिंतन, आकलन, साहित्य आदि का संबंध संस्कृति से है। इसीलिए जब हम जीवन मूल्यों, सिद्धांतों, आदर्शों, रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं आदि की बात करते हैं तो इसको संस्कृति कहते है।
⚫ वहीं जब सभ्यता की बात करते हैं तो इसे एक वृहद पैमाने पर देखते हैं, ऐतिहासिक रूप से, “एक सभ्यता” को अक्सर एक बड़ी और “अधिक उन्नत” संस्कृति के रूप में समझा जाता है, जैसे कि पश्चिमी सभ्यता , भारतीय सभ्यता, रोमन सभ्यता आदि।
| संबन्धित अन्य लेख
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⚫ एंटी ऑक्सीडेंट क्या है? ये शरीर के लिए इतना जरूरी क्यों है? ⚫ चिपकना और सटना में अंतर ⚫ समालोचना और समीक्षा में अंतर ⚫ अद्भुत और विचित्र में अंतर ⚫ विश्वास और भरोसा में अंतर ⚫ ईर्ष्या और द्वेष में अंतर ⚫ ज्ञापन और अधिसूचना में अंतर ⚫ शासन और प्रशासन में अंतर
[उम्मीद है आप इस लेख के माध्यम से सभ्यता और संस्कृति को अच्छे से समझ पाये होंगे, हमारे अन्य लेखों को भी पढ़ें और इसे शेयर जरूर करें।]
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समाचार पत्र पर निबंध (Newspaper Essay in Hindi)
वर्तमान काल में यदि संसार के किसी भी कोने में कोई भी घटना घटित हो तो उसके अगले दिन हमारे पास उसकी खबर आ जाती है। ऐसा सिर्फ समाचार पत्रों के कारण ही संभव हो होता है। आज के समय में बिना समाचार पत्र के जीवन की कल्पना करना भी काफी कठिन है। यह वो पहली और आवश्यक वस्तु है, जिसे सभी हर सुबह सबसे पहले देखते हैं। यह हमें पूरे विश्व में हो रही घटनाओं के बारे में जानकारी देकर वर्तमान समय से जुड़े रखने में हमारी मदद करता है। समाचार पत्र व्यापारियों, राजनितिज्ञों, सामाजिक मुद्दों, बेरोजगारों, खेल, अन्तरराष्ट्रीय समाचार, विज्ञान, शिक्षा, दवाइयों, अभिनेताओं, मेलों, त्योहारों, तकनीकों आदि की जानकारी हमें देता है। यह हमारे ज्ञान कौशल और तकनीकी जागरूकता को बढ़ाने में भी हमारी सहायता करता है।
समाचार पत्र पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Newspaper in Hindi, Samachar Patra par Nibandh Hindi mein)
निबंध 1 (300 शब्द).
आजकल, समाचार पत्र जीवन की एक आवश्यकता बन गया है। यह बाजार में लगभग सभी भाषाओं में उपलब्ध होता है। एक समाचार पत्र खबरों का प्रकाशन होता है, जो कागजों पर छापा जाता है और लोगों के घरों में वितरित किया जाता है। अलग-अलग देश अपना अलग समाचार संगठन रखते हैं। अखबार हमें अपने देश में हो रही सभी घटनाओं के साथ ही संसार में हो रही घटनाओं से भी अवगत कराते हैं। यह हमें खेल, नीति, धर्म, समाज, अर्थव्यवस्था, फिल्म उद्योग, फिल्म (चलचित्र), भोजन, रोजगार आदि के बारे में बिल्कुल सटीक जानकारी देता है।
समाचार पत्र का उपयोग
पहलेके समय में, समाचार पत्रों में केवल खबरों का विवरण प्रकाशित होता था। हालांकि, अब इसमें बहुत से विषयों के बारे में खबरें और विशेषज्ञों के विचार यहाँ तक कि, लगभग सभी विषयों की जानकारी भी निहित होती है। बहुत से समाचार पत्रों की कीमत बाजार में उनकी खबरों के विवरण और उस क्षेत्र में प्रसिद्धि के कारण अलग-अलग होती है। समाचार पत्र या अखबार में दैनिक जीवन की सभी वर्तमान घटनाएं नियमित रुप से छपती है हालांकि, उनमें से कुछ हफ़्ते या सप्ताह में दो बार, एक बार या महीने में एक बार भी प्रकाशित होती है।
समाचार पत्र
समाचार पत्र लोगों की आवश्यकता और जरूरत के अनुसार लोगों के एक से अधिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है। समाचार पत्र बहुत ही प्रभावी और शक्तिशाली होते हैं और संसार की सभी खबरों व सूचनाओं को एक साथ एक स्थान पर लोगो को पहुंचाते हैं। सूचनाओं की तुलना में इसकी कीमत बहुत कम होती है। यह हमें हमारे चारों ओर हो रही सभी घटनाओं के बारे में सूचित करता रहता है।
यदि हम प्रतिदिन नियमित रुप से समाचार पत्र पढ़ने की आदत बनाते है, तो यह हमारे लिए काफी लाभदायक हो सकता है। यह हम में पढ़ने की आदत को विकसित करता है, हमारे प्रभाव में सुधार करता है और हमें बाहर के बारे में सभी जानकारी देता है। यहीं कारण है कि कुछ लोगों को नियमित रुप से प्रत्येक सुबह अखबार पढ़ने की आदत होती है।
निबंध 2 (400 शब्द)
इन दिनों समाचार पत्र बहुत ही महत्वपूर्ण वस्तु है। यह सभी के लिए अपने दिन की शुरुआत करने के लिए पहली और महत्वपूर्ण वस्तु है। अपने दिन की शुरुआत ताजी खबरों और सूचनाओं के साथ करना बहुत ही बेहतर होता है। यह हमें आत्मविश्वासी बनाता है और हमारे व्यक्तित्व को सुधारने में हमारी मदद करता है। यह सुबह में सबसे पहले हम सभी को ढेर सारी सूचनाओं और खबरों की जानकारी प्रदान करता है। देश का नागरिक होने के नाते, हम अपने देश व दूसरे देशों में होने वाली सभी घटनाओं और विवादों के बारे में जानने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। यह हमें राजनीति, खेल, व्यापार, उद्योग आदि के बारे में सूचित करता है। यह हमें बॉलीवुड और व्यावसायिक हस्तियों के व्यक्तिगत जीवन के बारे में भी जानकारी देता है।
समाचार पत्र का इतिहास
हमारे देश भारतवर्ष में अंग्रेजों के आने के पहले तक समाचार पत्रों का प्रचलन नहीं था। अंग्रेजों ने ही भारत में समाचार पत्रों का विकास किया। सन 1780 में भारत का सबसे पहला समाचार पत्र कोलकाता में प्रकाशित किया गया जिसका नाम था “दी बंगाल गैजेट” जिसका सम्पादन जेम्स हिक्की ने किया था। यही वो क्षण था जब से भारत में समाचार पत्रों का विकास हुआ। आज भारत में विभिन्न भाषाओं में समाचार पत्र प्रकाशित किये जा रहे हैं।
समाचार पत्र क्या है ?
समाचार पत्र हमें संस्कृति, परम्पराओं, कलाओं, पारस्परिक नृत्य आदि के बारे में जानकारी देता है। ऐसे आधुनिक समय में जब सभी व्यक्तियों को अपने पेशे या नौकरी से अलग कुछ भी जानने का समय नहीं है, ऐसी स्थिति में यह हमें मेलों, उत्सवों, त्योहारों, सांस्कृतिक त्योहारों आदि का दिन व तारीख बताता है। यह समाज, शिक्षा, भविष्य, प्रोत्साहन संदेश और विषयों के बारे में खबरों के साथ ही रुचि पूर्ण वस्तुओं के बारे में बताता है, इसलिए यह हमें कभी भी नहीं ऊबाता है। यह हमें हमेशा संसार में सभी वस्तुओं के बारे में अपने रुचि पूर्ण विषयों के माध्यम से प्रोत्साहित करता है।
वर्तमान समय में, जब सभी लोग अपने जीवन में इतने व्यस्त है, ऐसे में उनके लिए बाहरी संसार के बारे में सूचनाओं या खबरों की जानकारी होना बहुत ही मुश्किल से संभव है, इसलिए समाचार पत्र इस तरह की कमजोरी को हटाने का सबसे अच्छा विकल्प है। यह हमें केवल 15 मिनट या आधे घंटे में किसी घटना की विस्तृत जानकारी दे देता है। यह सभी क्षेत्रों से संबंधित व्यक्तियों के लिए बहुत ही लाभदायक है क्योंकि यह सभी के अनुसार जानकारियों को रखता है जैसे विद्यार्थियों, व्यापारियों, राजनेताओं, खिलाड़ियों, शिक्षकों, उद्यमियों आदि।
निबंध 3 (500 शब्द)
समाचार पत्र हमारे पास प्रतिदिन सुबह में आता है और इसे पढ़कर काफी जानकारी प्राप्त होती है, जिसके कारण हमें कई तरह की सुविधाएं प्रदान करता है। समाचार पत्र दिन-प्रतिदिन अपने बढ़ते हुए महत्व के कारण सभी क्षेत्रों में बहुत ही प्रसिद्धि प्राप्त कर रहा है, चाहे वो क्षेत्र पिछड़े हुआ हो या उन्नत समाज में लोग अपने ज्ञान स्तर और सामयिक घटनाओं, विशेष रुप से राजनीति और बॉलीवुड के बारे में जानने के लिए अधिक उत्साहित रहते हैं। विद्यार्थियों के लिए समाचार पत्र पढ़ना बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सभी के बारे में सामान्य जानकारी देता है। यह उनकी किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी नौकरी के लिए तकनीकी या प्रतियोगी परीक्षा को पास करने में भी हमारी मदद करता है।
समाचार पत्र का महत्व
समाचार पत्र पढ़ना बहुत ही रुचि का कार्य है। यदि कोई इसे नियमित रुप से पढ़ने का शौकीन हो गया तो वह कभी भी समाचार पत्र पढ़ना नहीं छोड़ सकता/सकती। यह विद्यार्थियों के लिए बहुत अच्छा है क्योंकि यह हमें सही ढंग से अंग्रेजी बोलना सिखाता है। अखबार अब देश के पिछड़े हुए क्षेत्रों में भी बहुत प्रसिद्ध हो गए हैं। किसी भी भाषा को बोलने वाला व्यक्ति समाचार पत्र पढ़ सकता है क्योंकि यह विभिन्न भाषाओं जैसे कि हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू आदि में प्रकाशित होता है। समाचार पत्र हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारे लिए दुनिया भर के कोनों से सैंकड़ों खबरें लाता है।
समाचार पत्र: राजनीति की सभी गतिविधियों की जानकारी
समाचार हमारे लिए सबसे पहली रुचि और आकर्षण है। बिना समाचार पत्र और खबरों के, हम बिना पानी की मछली से अधिक और कुछ नहीं हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहाँ जनता का अपने देश पर शासन होता है, इसलिए उनके लिए राजनीति की सभी गतिविधियों को जानना बहुत आवश्यक है। आधुनिक तकनीकी संसार में, जहाँ सब कुछ उच्च तकनीकियों पर निर्भर करता है, समाचार और खबरें कम्प्यूटर और इंटरनेट पर भी उपलब्ध हैं। इंटरनेट का प्रयोग करके, हम संसार की सभी सूचनाओं को प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी सामाजिक मुद्दे के बारे में सामान्य जनता में जागरूकता बढ़ाने के लिए समाचार पत्र सबसे अच्छा तरीका है। इसके साथ ही यह देश की आम जनता और सरकार के बीच संवाद करने का सबसे अच्छा तरीका है।
आज की लोकप्रिय व्यवस्था में समाचार पत्रों का अत्यधिक महत्व होता है। समाचार पत्र ज्ञानवर्धन का साधन होते हैं इसलिए हमें नियमित रूप से उनका अध्ययन करनी की आदत डालनी चाहिए। समाचार पत्रों के बिना आज के युग में जीवन अधुरा है। आज के समय में समाचार का महत्व बहुत बढ़ चुका है क्योंकि आज के आधुनिक युग में शासकों को जिस चीज से सबसे ज्यादा भय है वह समाचार पत्र हैं।
निबंध 4 (600 शब्द)
समाचार पत्र बहुत ही शक्तिशाली यंत्र है जो व्यक्ति के आत्मविश्वास और व्यक्तित्व को विकसित करता है। यह लोगों और संसार के बीच वार्ता का सबसे अच्छा साधन है। यह ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। यह अधिक ज्ञान और सूचना प्राप्त करने के साथ ही कुशलता के स्तर को बढ़ाने का सबसे अच्छा स्रोत है। यह लगभग सभी क्षेत्रों में उपलब्ध होता है, इसके साथ ही इसकी कीमत भी बहुत कम होती है। हम समाचार पत्रों तक आसानी से पहुँच सकते हैं। इसके लिए हमें केवल किसी भी समाचार पत्र के संगठन में सम्पर्क करके इसके लिए केवल भुगतान करने की जरूरत होती है। यह देश की विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित होता है। बहुत सारे लोग प्रतिदिन सुबह बहुत ही साहस के साथ समाचार पत्र का इंतजार करते हैं।
समाचार पत्र का सकारात्मक प्रभाव
समाचार पत्र समाज के लोगों को सकारात्मक रुप से प्रभावित करता है क्योंकि आज के समय में सभी लोग देश की सामयिक घटनाओं को जानने में रुचि रखने लगे हैं। समाचार पत्र सरकार और लोगों के बीच जुड़ाव का सबसे अच्छा तरीका है। यह लोगों को पूरे संसार की सभी बड़ी व छोटी खबरों का विवरण प्रदान करता है। यह देश के लोगों को नियमों, कानूनों और अधिकारों के बारे में जागरूक बनाता है। समाचार पत्र विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि ये विशेष रुप से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का सामान्य ज्ञान और सामयिक घटनाओं के बारे में बताता है। यह हमें सभी खुशियों, विकासों, नई तकनीकियों, शोधो, खगोलीय और मौसम में बदलावों, प्राकृतिक वातावरण आदि की सूचना देता है।
यदि हम प्रतिदिन नियमित रुप से समाचार पत्र पढ़ने की आदत बनाते है, तो यह हमारी बहुत मदद करता है। यह हम में पढ़ने की आदत विकसित करता है, हमारे प्रभाव में सुधार करता है और हमें बाहर के बारे में सभी जानकारी देता है। कुछ लोगों में समाचार पत्र को प्रत्येक सुबह पढ़ने की आदत होती है। वे समाचार पत्र की अनुपस्थिति में बहुत अधिक बेचैन हो जाते हैं और पूरे दिन कुछ अकेलापन महसूस करते हैं।
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी भी अपने मस्तिष्क को वर्तमान सामयिक घटनाओं से जोडे रखने के लिए नियमित रुप से अखबार पढ़ते हैं। समाचार पत्र आकर्षक मुख्य शीर्षक लाइन के अन्तर्गत सभी की पसंद के अनुसार बहुत अधिक खबरों को प्रकाशित करते हैं इसलिए इससे कोई भी परेशान नहीं होता। हमें विभिन्न अखबारों को पढ़ना जारी रखना चाहिए और इसके साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों और मित्रों को भी समाचार पत्र पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
समाचार पत्र से होने वाले लाभ
समाचार पत्र पढ़ने से हमें बहुत सारे फायदे हैं। समाचार पत्रों से हमें देश-विदेश में हो रही हर तरह के घटनाओं का नवीन ज्ञान मिलता है। नए अनुसंधान, नयी खोजें और नई ख़बरें की जानकारी हमें समाचार पत्रों से ही मिलती है। इसमें प्रकाशित होने वाली सरकारी सूचनाओं, आज्ञाओं और विज्ञापनों से हमें आवश्यक और महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाती है, कहीं कोई दुर्घटना हो जाये, भूकंप या बाढ़ जैसी आपदा आ जाए तो इसकी जानकारी हमें समाचार पत्रों के माध्यम से तुरंत मिल जाती है। इसके साथ ही समाचार पत्र एक व्यवसाय बन गया है। जिससे हजारों संपादकों, लेखकों, रिपोर्टरों व अन्य कर्मचारियों को रोजगार मुहैया होता है।
समाचार पत्रों से हानि
समाचार पत्रों से जहां इतने लाभ हैं, वहां इनसे कुछ हानियां भी हैं। कभी-कभी कुछ समाचार पत्र झूठे समाचार छापकर जनता को भ्रमित करने का कार्य भी करते हैं। इसी तरह कुछ समाचार पत्र साम्प्रदायिक भावनाओं को को भड़काने का कार्य करते हैं, जिसके कारण समाज में दंगे जैसी घटनाएं उत्पन्न हो जाती है। जिससे चारों ओर अशांति का माहौल व्याप्त हो जाता है। इसके साथ ही सरकार की सही नीतियों को भी कभी-कभी गलत तरीके से पेश करके जनता को भ्रमित करने का कार्य किया जाता है। जिसके कारण देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल व्याप्त हो जाता है।
समाचार पत्रों में सामाजिक मुद्दों, मानवता, संस्कृति, परम्परा, जीवन-शैली, ध्यान, योगा आदि जैसे विषयों के बारे में कई सारे अच्छे लेख संपादित होते हैं। यह सामान्य जनता के विचारों के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है और बहुत से सामाजिक तथा आर्थिक विषयों को सुलझाने में हमारी सहायता करता है। इसके साथ ही समाचार पत्रों के द्वारा हमें राजनेताओं, सरकारी नीतियों तथा विपक्षी दलों के नीतियों के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। यह नौकरी ढूँढ़ने वाले की, बच्चों को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाने, व्यापारियों को वर्तमान व्यापारिक गतिविधियों को जानने, बाजार के वर्तमान प्रचलन, नई रणनीतियों आदि को समझनें तथा जानने में भी हमारी मदद करता है। यहीं कारण है कि वर्तमान समय में समाचार पत्र को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है।
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Hindi Essay on “Prakriti aur Manav”, “प्रकृति और मानव”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.
प्रकृति और मानव
Prakriti aur Manav
विज्ञान जिस प्रकार प्रगति कर रहा है, उसी के दुष्परिणाम स्वरूप हमारी प्रकृति दूषित होती जा रही है। चारों ओर वाहनों का बढ़ता शोर, वृक्षों की कटाई, औद्योगिक इकाइयों में वृधि, स्वच्छता की भावना में कमी आदि हमारे पर्यावरण को दूषित कर रहे हैं। मनुष्य प्रकृति का अभिन्न अंग है। अपने जीवन की सभी प्रकार की आवश्यकताओं के लिए वह प्रकृति पर निर्भर है। परंतु अपनी असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वह प्रकृति का दोहन करने पर जुटा हुआ है।इसका कुपरिणाम है बढ़ता हुआ प्रदूषण। यदि पर्यावरण प्रदूषित हो तो जीवन बीमारियों और कठिनाइयों से भर जाता है। पर्यावरण की रक्षा के लिए हम महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। यदि हर नागरिक सजग हो तो पर्यावरण प्रदूषित होगा ही नहीं। प्रदूषित वातावरण इंसानों के लिए ही नहीं जानवरों और पक्षियों के लिए भी खतरनाक है।
प्रकृति महामोहमय ममतामयी मातृत्व की अपार क्षमता संपन्न | (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); छाया है। वह अपने अवयवों से गुणों की रक्षा करती है।
हमारे पर्यावरण की रक्षा के लिए हम सभी को मिलकर संकल्प लेना चाहिए। सब के संयुक्त प्रयास से पर्यावरण को दूषित होने से आसानी से बचाया जा सकता है। हमें चाहिए कि हम नदियों में कूड़ा-करकट, फूल, पूजा सामग्री, जली हुई लकडी, मूर्तियाँ आदि न तो स्वयं डालें, न ही और किसी को डालने दें। हमें लोगों में जागरूकता लानी होगी कि इन कार्यों से पर्यावरण प्रदूषित होता है। नदी, तालाबों पर कपड़े धोने व जानवरों को नहलाने से लोगों को रोकना चाहिए ताकि पर्यावरण प्रदूषित न हो। बड़ी फैक्टरियों की बची हुई गंदगी, बचा तेल, कूड़ा-करकट आदि। की नदियों में बहाए जाने पर रोक लगानी चाहिए। यदि कहीं ऐसा हो रहा है तो हमें उसे रोकने का प्रयास करना चाहिए। यदि रहे प्रकृति की रक्षा में ही मानव की सुरक्षा है।
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राजभाषा और राष्ट्रभाषा में क्या अंतर है? | rajbhasha aur rashtrabhasha mein antar
राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर
- राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है, जबकि राष्ट्रभाषा स्वाभाविक रूप से सृजित शब्द इस प्रकार राजभाषा प्रशासन की भाषा है तथा राष्ट्रभाषा जनता की भाषा।
- समस्त राष्ट्रीय तत्वों की अभिव्यक्ति राष्ट्रभाषा में होती है, जबकि केवल प्रशासनिक अभिव्यक्ति राजभाषा में होती है।
- राजभाषा की शब्दावली सीमित है, जबकि राष्ट्रभाषा की शब्दावली विस्तृत।
- राजभाषा, नियमों से बंधी होती है, जबकि राष्ट्रभाषा स्वतंत्र या मुक्त प्रकृति की होती है।
- राजभाषा में शब्दों का प्रवेश, निर्माण अथवा अनुकूलन (विशेषकर तकनीकी प्रकृति के शब्दों का) विद्वानों एवं विशेषज्ञों की समिति की राय से किया जाता है, जबकि राष्ट्रभाषा में शब्द समाज से आते हैं तथा प्रचलन के आधार पर रूढ़ होकर मान्यता प्राप्त करते हैं। इसके निर्माण में सभी का हाथ होता है।
- राजभाषा, हिंदी भाषा का प्रयोजन मूलक रूप है इसलिए तकनीकी सृजन है। जबकि राष्ट्रभाषा, हिंदी भाषा का स्वाभाविक तथा पारंपरिक रूप है।
- राजभाषा के प्रयोग का क्षेत्र सीमित होता है, जबकि राष्ट्रभाषा का क्षेत्र इतना व्यापक कि उसका व्यवहार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी होता है।
- राजभाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग उत्तरोत्तर अंग्रेजी की जगह पर हो रहा है जबकि राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग स्वाभाविक स्वरूप से देश-विदेश सर्वत्र हो रहा है।
राजभाषा का अर्थ
- संविधान में राजभाषा से संबंधित उपबंधों तथा राजभाषा अधिनियम, 1963 के उपबंधों का कार्यान्वयन, उन उपबंधों को छोड़कर जिनका कार्यान्वयन किसी अन्य विभाग को सौंपा गया है।
- किसी राज्य के उच्च न्यायालय की कार्यवाही में अंग्रेजी भाषा से भिन्न किसी अन्य भाषा का सीमित प्रयोग प्राधिकृत करने के लिए राष्ट्रपति का पूर्व अनुमोदन।
- केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के लिए हिंदी शिक्षण योजना और पत्र-पत्रिकाओं और उससे संबंधित अन्य साहित्य के प्रकाशन सहित संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रगामी प्रयोग से संबंधित सभी मामलों के लिए केन्द्रीय उत्तरदायित्व।
- संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रगामी प्रयोग से संबंधित सभी मामलों में समन्वय, जिनमें प्रशासनिक शब्दावली, पाठ्य विवरण, पाठ्य पुस्तकें, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम और उनके लिए अपेक्षित उपस्कर (मानकीकृत लिपि सहित) शामिल हैं।
- केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा का गठन और संवर्ग प्रबंधन।
- केन्द्रीय हिंदी समिति से संबंधित मामले।
- विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा स्थापित हिंदी सलाहकार समितियों से संबंधित कार्य का समन्वय।
- केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो से संबंधित मामले।
- हिंदी शिक्षण योजना और केन्द्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान से संबंधित मामले।
- क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों से संबंधित मामले।
- संसदीय राजभाषा समिति से संबंधित मामले।
- भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा माना गया है।
- राजभाषा सरकारी कामकाज की भाषा होती है।
- कार्य के निर्णय, शिक्षा का माध्यम, रेडियो और दूरदर्शन आदि में राज्य भाषा का ही प्रयोग होता है।
- क्षेत्रीय भाषा ही राजभाषा होती है।
राष्ट्रभाषा का अर्थ
- राष्ट्रभाषा की संस्कृति, इतिहास और साहित्य की प्रेरणा होती है।
- इसे राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है।
- यह शिक्षा प्रशासन और जनसंपर्क की निर्विवाद भाषा होती है।
- यह राष्ट्र की संपर्क भाषा होती है और जनजीवन को प्रभावित करती है।
- इसका अपना साहित्य होता है।
- इसका साहित्य समृद्धि एवं व्यापक होता है।
- राष्ट्रभाषा बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली जाती है।
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यमक अलंकार और पुनरुक्ति अलंकार में अंतर | Yamak Alankar aur Punarukti Alankar mein Antar
इस लेख में पुनरुक्ति अलंकार की परिभाषा उदाहरण तथा यमक अलंकार की परिभाषा उदाहरण और Yamak Alankar aur Punarukti Alankar mein Antar आदि के बारे में बताया गया है
हमें इसलिए को सरल बनाने के लिए अनेक उदाहरणों का प्रयोग किया है जिसमें विद्यार्थी सरलता पूर्वक इसे समझ सकें
यमक अलंकार की परिभाषा (Yamak Alankar ki Paribhasha)
एक शब्द एक से अधिक बार आवे और हर बार अलग-अलग अर्थ निकले वहां यमक अलंकार होता है
कनक कनक ते सौ गुनी,मादकता अधिकाय | या खाए बौराय जग, वा पाए बौराय ||
पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की परिभाषा
जब किसी काव्य या पंक्ति में एक ही शब्दों के निरंतर आवृत्ति होती हो तो वहां पर अर्थ की भिन्नता नहीं होने के कारण वह पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार माना जाता है
सुबह-सुबह बच्चे काम पर जा रहे हैं
यमक अलंकार तथा पुनरुक्ति अलंकार में अंतर
दोनों अलंकारों के बीच समानता है,दोनों अलंकार में शब्दों की बार-बार आवृत्ति होती है किंतु एक सूक्ष्म अंतर इन दोनों में भेद उत्पन्न करता है
यमक अलंकार के अंतर्गत शब्दों की दो या अधिक अधिक बार आवृत्तिहोने पर उनके अर्थ की भिन्नता होती है जैसे –
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय
यहां कनक शब्द दो बार प्रयोग हुआ है जिसमें एक का अर्थ स्वर्ण दूसरे का अर्थ धतूरा है
वही पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार में शब्दों की आवृत्ति दो या अधिक बार होती है जैसे-
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली
इसमें आगे शब्द दो बार प्रयोग हुआ है किंतु अर्थ की भिन्नता ना होने के कारण पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है
इन्हें भी पढ़ें
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- शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में क्या अंतर है?
नमस्कार दोस्तों! Hindigrammar.in.net ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत हैं। मैं Suneel Kevat इस ब्लॉग का Writer और Founder हूँ. और इस वेबसाइट के माध्यम से Hindi Grammar, Essay, Kavi Parichay, Lekhak Parichay, 10 Lines Nibandh and Hindi Biography के बारे में जानकारी शेयर करता हूँ।
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आकलन और मूल्यांकन में अंतर - Aaklan aur Mulyankan me antar
आकलन और मूल्यांकन में अंतर - Aaklan aur Mulyankan me antar: मूल्यांकन निर्धारित करता है कि पूर्व निर्धारित मानदंड के अनुसार विद्यार्थी ने सीखा या नही
आकलन और मूल्यांकन में अंतर : मूल्यांकन निर्धारित करता है कि पूर्व निर्धारित मानदंड के अनुसार विद्यार्थी ने सीखा या नहीं (सफल/ असफल) जबकि आकलन विद्यार्थी के दृढ़ विन्दुओं, उन क्षेत्रों जिनमे सुधार आवश्यक है एवं अंतर्दृष्टि के लिए प्रतिपुष्टि प्रदान करता है। वस्तुतः मूल्यांकन एक परंपरागत अवधारणा है जिसका प्रमुख उद्देश्य है विद्यार्थियों के बीच शैक्षिक संप्राप्ति के आधार पर अंतर करना और इसकी प्रकृति प्रायः योगात्मक है जबकि आकलन एक नवीन अवधारणा है जिसका उद्देश्य है विद्यार्थी निष्पादन में सुधार। आकलन एवं मूल्यांकन के प्रमुख अंतर को निम्नांकित टेबल में स्पष्ट किया गया है :
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भारतीय ग्रामीण जीवन पर निबंध | Essay on Indian Rural Life in Hindi
भारतीय ग्रामीण जीवन पर निबंध | Essay on Indian Rural Life in Hindi!
भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है जिसका एक बहुत बड़ा भाग आज भी गाँवों में निवास करता है । ये लोग आज भी अपनी आजीविका के लिए पूर्ण रूप से कृषि पर निर्भर हैं । वास्तविक रूप में यदि देखा जाए तो भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि ही है ।
गाँवों में लोग प्राय: सादा जीवन व्यतीत करते हैं । भारतीय ग्राम्य जीवन की जब भी बात होती है तो तपती हुई धूप में खेती करता हुआ किसान, दूर-दूर तक फैले हुए खेत और उन पर लहलहाती हरी – भरी फसल घर का काम-काज सँभालती हुई औरतें तथा हाट (बाजार) व मेले के दृश्य स्वत: ही मन-मस्तिष्क पर उभर आते हैं ।
प्रदूषण से दूर स्वच्छ, सुगंधित व ताजी हवा गाँव की और अनायास ही खींचती है । सभी ग्रामवासियों का मिल-जुल कर एक परिवार की भाँति रहना तथा एक-दूसरे को यथासंभव सहयोग करने हेतु सदैव तत्पर रहना हमारे ग्रामीण जीवन की विशेषता है।
ग्रामीण जीवन में मनोरंजन हेतु अनुपम व अनूठे साधन उपलब्ध हैं । लोग तरह-तरह से अपना व दूसरों का मनोरंजन करते हैं । प्राय: दिन में कार्य करने के पश्चात् सायंकाल को लोग चौपाल अथवा किसी प्रांगण आदि पर एकत्र होते हैं जहाँ वे तरह-तरह की बातों से अपना मन बहलाते हैं ।
कुछ लोग धार्मिक कथाओं जैसे श्रीराम अथवा श्रीकृष्ण आदि के जीवन-चरित्र पर चर्चा करते हैं । प्राय: लोग मंडली बनाकर ढोल मजीरे आदि वाद्य यंत्रों के साथ बैठकर संगीत व नृत्य का आनंद उठाते हैं । गायन में लोकगीत व भजन आदि प्राय: सुनने को मिलते हैं ।
विभिन्न त्योहारों का पूर्ण आनंद व उल्लास ग्राम्य जीवन में भरपूर देखने को मिलता है । दशहरा, दीवाली तथा होली आदि त्योहार ग्रामवासी परस्पर मिल-जुल कर व बड़े ही पारंपरिक ढंग से मनाते हैं । ग्रामीण मेले का दृश्य तो अपने आप में अनूठा होता है । भारतीय संस्कृति का मूल रूप इन्हीं मेलों व गाँव के जीवन में पूर्ण रूप से देखा जा सकता है ।
ADVERTISEMENTS:
ग्रामवासी प्राय: सीधे व सरल स्वभाव के होते हैं । उनमें छल-कपट व परस्पर द्वेष का भाव बहुत कम देखने को मिलता है । उनमें धार्मिक आस्था बहुत प्रबल होती है। बड़ों की आज्ञा मानना व उन्हें सम्मान देना यहाँ की संस्कृति में है ।
यदि गाँवों को विकास की दृष्टि से देखा जाए तो हम पाएँगे कि देश के अधिकांश माँस शहरों की तुलना में बहुत पीछे हैं । लाखों करोड़ों लोग आज भी निर्धनता की रेखा से नीचे जी रहे हैं । कितने ही लोग हर वर्ष भुखमरी, महामारी आदि के शिकार हो जाते हैं । गाँवों में आज भी अधिकांश लोग अशिक्षित हैं । अंधविश्वास व धर्मांधता के चलते उनमें परिवर्तन लाना बहुत मुश्किल है ।
दूसरी ओर गाँव पहले काफी हरे – भरे थे, गाँव के चारों ओर एक हरित पट्टी सी थी जो अब धीरे-धीरे नष्ट हो चुकी है । इसके कारण गाँव में पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या खड़ी हो गई है । गाँव के लोग अब लड़कियों के लिए भी शहरों पर निर्भर होते जा रहे हैं । बहुत से गाँवों के कुटीर उद्योग- धंधे भी इन्हीं कारणों से नष्ट हो गए हैं ।
देश की लगभग दो-तिहाई आबादी गाँवों में ही निवास करती है । यदि हम अपने देश की उन्नति चाहते हैं तो हमें गाँवों की अवस्था में सुधार लाना होगा । भारतीय गाँवों को विकास की प्रमुख धारा में लाए बिना देश को ऊँचाई पर ले जाना असंभव है ।
अत: यह आवश्यक है कि अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने के साथ ही हम गाँवों के विकास हेतु नई-नई योजनाएँ विकसित करें और उन्हें कार्यान्वित करें । इस प्रकार निश्चय ही हमारा देश विश्व के अग्रणी देशों में से एक होगा ।
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Home » अंतर » आमंत्रण और निमंत्रण में क्या अंतर होता है? आमंत्रण और निमंत्रण में अंतर
आमंत्रण और निमंत्रण में क्या अंतर होता है? आमंत्रण और निमंत्रण में अंतर
आमंत्रण और निमंत्रण में बहुत फर्क है भले ही दोनों एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हो। अब विस्तार से इनको समझते है कि इनमें क्या फर्क है।
आमंत्रण (Invitation) और निमंत्रण (Invitation) दोनों ही शब्द हिंदी में “invitation” का हिस्सा हैं, लेकिन उनमें थोड़ा अंतर है:
- आमंत्रण (Aamantran): यह शब्द आमतौर पर एक आपकी मित्र, परिवार का सदस्य, या किसी आयोजन के लिए आपको बुलाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह शब्द अधिक निमंत्रण स्थितियों के लिए प्रयुक्त होता है, जैसे कि घर पर किसी की शादी, जन्मदिन, या और किसी त्योहार में आमंत्रित करने के लिए।
- निमंत्रण (Nimantran): यह शब्द आमतौर पर विशेष किसी आयोजन के लिए या किसी आधिकारिक कार्यक्रम के लिए प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, किसी सरकारी कार्यक्रम, सम्मेलन, या समारोह में लोगों को आमंत्रित करने के लिए निमंत्रण भेजा जाता है। इसका प्रयोग अधिक औद्योगिक या सार्वजनिक संदर्भों में होता है।
आमंत्रण का अर्थ भी किसी को बुलाना ही होता है । जब कभी भी कहीं कोई सामाजिक कार्यकरम आयोजित किया जाता है या कोई सामूहिक प्रोग्राम किया जाता वहां पर सभी लोगो को आमंत्रित किया जाता है आमंत्रण में लोगो की इच्छा पर बात होती है कि उनकी इच्छा हो रही है आने की या नहीं उसमे कुछ विशेष नहीं की आपको आना ही आना है वह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है
चलो अब निमंत्रण की बात करते हैं निमंत्रण का अर्थ भी किसी को बुलाना ही है निमंत्रण किसी को सत्कार पूर्वक अपने घर बुलाना है जैसे निमंत्रण हम किसी व्यक्ति को विशेष रूप से भेजते है वैसे निमंत्रण विशेष आयोजन पर अपने प्रिय जनों को दिया जाता है जैसे किसी के घर में विवाह है या चूड़ा कर्म है या अन्य कोई अपने घर के आयोजन है उसमे आप सबको निमंत्रण भेजते है यहां पर आप किसी को अपने घर आमंत्रित नहीं करते हो किसी को। निमंत्रण का अर्थ है कि आपको आना ही आना है आप माना नहीं कर सकते। अगर आपको निमंत्रण दे रखा है और आप नहीं गए तो इसमें उनको दुख होगा कि आप नहीं आए । बस यही फर्क है निमंत्रण और आमंत्रण में निमंत्रण में आपकी इच्छा नहीं चलेगी और आमंत्रण में आपकी इच्छा पर बात है ।
आमंत्रण अनौपचारिक होता है और निमंत्रण औपचारिक
निमंत्रण में समय निर्धारित होता है और जो समय दिया रहता है अतिथि से उसी में आने की अपेक्षा की जाती है. निमंत्रण में रुकने का या ठहरने का प्रावधान नहीं होता, आमंत्रण हम सदस्यों को या अपनों को देते हैं औपचारिकता नहीं रहती।
अगर आवश्यकता पड़े तो ठहरने की व्यवस्था भी की जाती है जिसे आमंत्रित व्यक्ति खुद भी कर लेता है. मित्र, भाई, बहन या कछ और अनौपचारिक संबंधी आमंत्रित किये जाते हैं. सभा में सदस्यों को आमंत्रित किया जाता है।
जैसे कोरा में आने के लिए सभी आमंत्रित हैं… कवि सम्मेलन, नेताओं की स्पीच, जुलूस आदि में लोग आमंत्रित किये जाते हैं लेकिन भोज, शादी, कार्ड या पास के द्वारा किसी को निमंत्रित किया जाता है।
संबन्धित अन्तर
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इत्यादि और आदि में क्या अंतर है? इत्यादि और आदि में अंतर
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पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ी में अंतर
पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ी में अंतर पर निबंध hindi essay on generation gap ..
भारत में स्वतंत्रता से पहले जन्मे हुए लोग और स्वतंत्रता के पश्चात जन्मे हुए लोगो के सोचने का तरीका बिलकुल अलग है। 21 शताब्दी के लोगो के सोचने का तरीका बिलकुल अलग और आधुनिक ख्याल के है। विभिन्न युगों में पैदा हुए लोग के सोच एक- दूसरे से भिन्न होते हैं। दुनिया तेज़ी से बदल रही है और इस प्रकार अलग-अलग समय में पैदा हुए लोगों के रहन -सहन बीच अंतर होना स्वाभाविक है।
भारत की बात करें तो आजादी से पहले पैदा हुए लोग आज के पैदा हुए लोगों से बिलकुल अलग है। अलग हैं। दो पीढ़ियों की सोच में बहुत बड़ा अंतर है। पुरानी और नवीन पीढ़ी के लोगो के सांस्कृतिक, आर्थिक, नैतिक मूल्य, व्यवहारिक ज्ञान और सामाजिक परिवेश के बीच बहुत विशाल अंतर है। इस अंतर को हम जनरेशन गैप बोलते है।
बदलते समय के अनुसार लोगो के जीने का तरीका, सोचने का तरीका, सम्पूर्ण व्यवहार में अदभुत परिवर्तन आता है। लोगो के ज़िन्दगी जीने का तरीका पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती रहती है। परिवर्तन जिन्दगी का अहम पहलु है। माता – पिता और बच्चो के बीच भी इस अंतर को मापा जा सकता है, जब बच्चे बड़े हो जाते है। बच्चे और अभिभावक अपने पीढ़ी के मुताबिक चीज़े करते है। माता-पिता अपने पीढ़ी से सीखी हुयी चीज़े बच्चो को सिखाते है, और बच्चो से उसका अनुकरण करने के लिए कहते है। यहीं से कहीं ना कहीं मतभेद आरम्भ होता है। जेनरेशन गैप दो पीढ़ियों के बीच अंतर को दर्शाने के लिए एक शब्द अंकित किया गया है। जेनेरशन गैप का प्रभाव माता -पिता और संतान के रिश्ते पर साफ़ तौर पर दिखाई देता है। सोच में बदलाव के कारण जिन्दगी के किसी भी मोड़ पर अभिभावक और सन्तानो के मध्य टकराव हो सकते है।
समाज निरंतर तीव्र गति से बदल रहा है। लोगो के जीवन शैली, विचारधारा, उनकी राय, विश्वास समय चक्र के साथ बदलता रहता है। यह परिवर्तन नए विचारों को जन्म देता है और अनुचित रूढ़ियों को भस्म कर एक नए और सकारात्मक सोच के साथ समाज का निर्माण होता है। हमेशा अधिकांश समय इन दो पीढ़ियों के बीच कहीं ना कहीं संघर्ष बना रहता है।
पीढ़ीओं के सोच प्रत्येक व्यक्ति के पीढ़ी के अनुसार होते है। जिस पीढ़ी में व्यक्ति ने जीवन शैली और मूल्यों को जीया है, उसी के के अनुसार चलता है, इसलिए दूसरी पीढ़ी के लोगो के साथ बातचीत करने पर मतभेद होते रहते है। व्यक्ति अपने परिवार में भी पीढ़ी अंतराल को गौर कर और भली -भाँती महसूस कर सकता है।
दादा दादी के सोच और उनका रहन -सहन माता – पिता से एकदम भिन्न होता है। एक ही विषय पर दोनों के विचार अलग हो सकते है, इसमें कोई संदेह नहीं है। इसी परिवर्तन और फेर बदल को हम पीढ़ी अंतराल अर्थात जनरेशन गैप कहते है। आजकल के युवा स्वतंत्र होकर जीना पसंद करते है, उन्हें हस्तक्षेप पसंद नहीं है। उन्हें निजी जीवन जीना ज़्यादा सुखदायी लगता है। लेकिन उनके अभिभावक की सोच यहाँ एकदम अलग है। पीढ़ी अंतराल को पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता है। अगर एक साथ दोनों पीढ़ी शांत होकर सूझ -बूझ के साथ फैसला करे, तो अभिभावक और संतान का टकराव कम हो सकता है।
ज़िन्दगी के बदलाव के साथ अगर लोग थोड़ा सा परिवर्तन लोग अपने जीवन में लाये, तो जिन्दगी बेहतर हो जाती है। 1960 के दशक में पीढ़ी अंतराल जैसे नए तथ्य रिश्तों में उजागर हुए। शोध के मुताबिक युवा पीढ़ी अपने माँ – पिता के विचारो से बिलकुल अलग निकले थे। पीढ़ी अंतराल एक दिलचस्प और रोचक कांसेप्ट है। हम सोच सकते है अगर पीढ़ियों में बदलाव ना होता, तो हमारी प्रगति और सोचने समझने की क्षमता सीमित हो जाती।
परिवारों में जनरेशन गैप की वजह से छोटे – मोटे टकराव होते रहते है। अगर जनरेशन गैप नहीं होता, तो संसार में कोई फेर बदल नहीं होता। हर क्षेत्र की प्रगति और सोचने के तरीके पीढ़ियों के सोच के कारण बंध कर रह जाते। इसलिए जनरेशन गैप आवश्यक है। नयी पीढ़ी नए सोच और समाज को जन्म देता है।
दुनिया में आये दिन पहनावा, फैशन का तरीका बदल रहा है। नए खोज और आविष्कार हो रहे है, क्यों कि नए पीढ़ी के सोच, तरीके और प्रक्रियाएं बदल रहे है, कुछ नया करने का जूनून बना हुआ है। इसी वजह से दुनिया में प्रौद्योगिकी और तकनीकों में काफी प्रगति हो रही है। यह सब समय के साथ पीढ़ियों में बदलाव का नतीजा है।
जेनेरशन गैप के कारण बहुत बदलाव आये है। पहले के ज़माने में लोग अक्सर संयुक्त परिवार में रहते थे, आजकल सिर्फ छोटे परिवार में लोग रहना पसंद करते है, क्यों कि उन्हें लगता है, वे आज़ाद तरीके से जी पाएंगे और कोई भी उनके जीवन में दखल अंदाज़ी नहीं कर पायेगा। आजकल लोगो अपने निजी जीवन में रहने के लिए अपने अभिभावकों से दूर रहने में ज़्यादा खुशी महसूस करते है।
पहले के ज़माने में लोगो के पास फोन नहीं हुआ करता था। मुश्किल से लोग बाहर के टेलीफोन बूथ पर जाकर परिजनों को कॉल किया करते थे। आजकल की पीढ़ी के लोग स्मार्टफोन के बैगर गुजारा नहीं कर पाते, हर मुश्किल का हल उन्हें अपने फोन और इंटरनेट पर जाकर मिलता है।
आजकल की पीढ़ी के पास अपनों के लिए ज़्यादा वक़्त नहीं है, पहले के ज़माने में यह उपकरण नहीं थे इसलिए लोग ज़्यादातर समय अपने परिवार के लोगो के साथ व्यतीत करते थे। आजकल का फैशन और पहनावे का तरीका बदल गया है। आजकल के लोग सजावट की दुनिया में खोये रहते है, पहले के ज़माने में सादगी होती थी और पारम्परिक पोशाक और आभूषण लोग पहनते थे। पहले लोग अपने मित्रो और परिजनों के साथ सुख -दुःख की बातें करते थे। मगर आज की पीढ़ी को पार्टी, पिकनिक से ज़्यादा लगाव है।
पीढ़ियों के इस अंतर को व्यक्ति समझ और स्वीकृति के साथ संभाल सकता है। एक पीढ़ी के लोग दूसरे पीढ़ी के लोगो से बहुत अलग होते हैं जो स्वाभाविक है। लेकिन, समस्या तब उत्पन्न होती है जब विभिन्न पीढ़ियों के लोग अपने विचारों और विश्वासों को दूसरे पर थोपने की कोशिश करते है और इसकी के कारण रिश्तों में तनाव उत्पन्न हो सकता है। इसलिए पुरानी पीढ़ी और नए पीढ़ी के लोग एक दूसरे के सोच और फैसलों का सम्मान करे और एक दूसरे के सोच को स्वीकार करे, तब मतभेद नहीं होगा।
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कहानी और उपन्यास में अंतर || kahani aur upanyas mein antar
नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि उपन्यास किसे कहते हैं, कहानी किसे कहते हैं,और कहानी तथा उपन्यास में क्या-2 अंतर होते है। आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़े ताकि आपको यह विषय पूरी तरीके से समझ में आ जाए और आप परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकें।
उपन्यास क्या है?
उपन्यास शब्द 'उप' उपसर्ग और 'न्यास' पद के योग से बना है। जिसका अर्थ है उप = समीप, न्याय रखना स्थापित रखना (निकट रखी हुई वस्तु)। अर्थात् वह वस्तु या कृति जिसको पढ़ कर पाठक को ऐसा लगे कि यह उसी की है, उसी के जीवन की कथा, उसी की भाषा में कही गई है। उपन्यास मानव जीवन की काल्पनिक कथा है।
कहानी क्या है?
कहानी गद्य साहित्य की वह सबसे अधिक रोचक एवं लोकप्रिय विधा है, जो जीवन के किसी विशेष पक्ष का मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक वर्णन करती है। "हिंदी गद्य की वह विधा है जिसमें लेखक किसी घटना, पात्र अथवा समस्या का क्रमबद्ध ब्यौरा देता है, जिसे पढ़कर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न होता है, उसे कहानी कहते हैं।
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