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यात्रा वर्णन पर निबंध | essay on traveling in hindi | किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com   आपको निबंध की श्रृंखला में  यात्रा वर्णन पर निबंध | essay on traveling in hindi | किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध   प्रस्तुत करता है।

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) पर्वत यात्रा पर निबंध (2) किसी स्थान का आंखों देखा दृश्य पर निबंध (3) किसी रोचक यात्रा का वर्णन पर निबंध

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पहले जान लेते है यात्रा वर्णन पर निबंध | essay on traveling in hindi | किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध  की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना (2) यात्रा का आरम्भ (3) पर्वतारोहण (4) शिमला निवास (5) यात्रा करने का महत्व (6) उपसंहार

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यात्रा करने से मनोरंजन होता है । जीवन स्वयं एक यात्रा है। इस यात्रा का जितना अंश यात्रा में बीते, वही हितकर है। यात्रा करने से मनोरंजन के साथ-साथ अन्य कई प्रकार के लाभ भी होते है। बाहर जाने के कारण साहस, स्वावलम्बन , कष्ट सहिष्णुता की क्रियात्मक शिक्षा मिलती है।

परस्पर सहयोग की भावना बढ़ती है। निराश जीवन में आशा का संचार हो जाता है, अनुभव की वृद्धि होती है। इस प्रकार यात्रा करने का जीवन में अत्यधिक महत्त्व है।

पर्वत यात्रा तो और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पर्वतों जैसे दृश्य अन्य स्थानों पर दुर्लभ हैं । कितनी सुखद और आनन्दमयी थी-मेरी वह पर्वत यात्रा ।

प्राकृतिक-सौन्दर्य की छाई जहाँ अद्भुत छटा । है जहाँ खगकुल सुनाते मधुर कलरव चटपटा ॥ बेल लिपटी हैं द्रुमों से खिल रही सुन्दर कली। पर्वतीय प्रदेश की यात्रा अहो ! कितनी भली ॥

यात्रा का आरम्भ

ग्रीष्मावकाश हो चुका था। मेरा मित्र मोहन अपने पिताजी के साथ शिमला जाना चाहता था। उसने मुझसे भी चलने का आग्रह किया। मैंने जाने के लिए पिताज़ी की आज्ञा प्राप्त की।

सब तैयारी पूर्ण हो जाने पर हम 20 जुलाई को मेरठ से शाम को 5 बजे वाली गाड़ी से शिमला के लिए चले। रास्ते में मुजफ्फरनगर, सहारनपुर आदि स्टेशनों को पार करती हुई हमारी गाड़ी रात्रि में अम्बाला पहुँची।

यहाँ से हम दूसरी गाड़ी में बैठकर चण्डीगढ़ को पार करते हुए रात के डेढ़ बजे कालका स्टेशन पर पहुचे। यहाँ से हमें 3-4 डिब्बों वाली एक छोटी-सी गाड़ी मिली। रात के ढाई बजे के लगभग गाड़ी शिमला के लिए चल दी।

पर्वतीय-यात्रा

ज्यो-ज्यो गाड़ी ऊपर चढ़ती जा रही थी, ठण्ड बढ़ती जा रही थी खिड़की बन्द करके हम सो गये। थोड़ी देर बाद आँख खुली तो सामने मनोहर दृश्य दिखाई दे रहे थे।

अन्धकार दुम दबा कर भाग रहा था। सूर्य भगवान अपनी किरणों से शीतग्रस्त जीवों को सान्त्वना सी देने लगे गाड़ी पर्वतों पर साँंप की तरह बल खाती हुई चढ़ रही थी।

मीलों गहरे गड्ढे देखकर मैं भय से कॉप उठा छोटे-छोटे गाँव तथा उनमें घोड़े, भेड़, बकरियाँ तथा मनुष्य ऊपर से ऐसे जान पड़ते थे मानो किसी ने खिलौने सजाकर रख दिये हों।

ऊँचे-ऊँचे देवदारु के वृक्ष प्रभु के ध्यान में लीन मौन तपस्वियों की भाँति खड़े थे। फूल व फलों से लदे वृक्षों से लिपटी हुई लताएँ अत्यन्त शोभा पा रही थीं।

नीले, हरे, पीले, काले, सफेद अनेक प्रकार के पक्षी फुदक- फुदककर मधुर तान सुना रहे थे। विशालकाय पर्वतों के वक्षस्थल को चीर कर उनके बीच में से मीलों लम्बी सुरंगे बनी थीं जिनमें प्रविष्ट होने पर गांड़ी सीटी बजाती थी तथा गाड़ी में प्रकाश हो जाता था।

शिमला-निवास

इस प्रकार मनोरम दृश्यों को देखते हुए हम शिमला जा पहुँचे। कृलियों ने हमारा सामान उठाया और हमं माल रोड स्थित एक सुन्दर होटर में जा ठहरे।

वहाँ हमने चार आदमियों द्वारा खींची जाने वाली रिक्शा देखी। सुबह उठते ही घुमने जाते। पहाड़ियों पर चढ़ते, नीचे उतरते तथा मार्ग में ठण्डे- गर्म पानी के झरने देखकर मन प्रसन्न करते थे।

ऊपर बैठे हुए हम देखते थे कि नीचे बादल बरस रहे हैं।लोग भागकर घरों में घुस जाते। कहीं धूप, कहीं छाया-भगवान् की इस विचित्र माया को देखकर हम अपने आपको देवलोक में आया समझते थे।

इस प्रकार के सुन्दर दृश्यों को देखते हुए हमने एक मास व्यतीत किया। छुट्टी समाप्त हुई और हम घर वापस लौटे।

यात्रा करने से लाभ

विभिन्न स्थानों की यात्रा करने से हमारा अनुभव बढ़ता है और कष्ट सहन करने तथा स्वावलम्बी बनने का अवसर मिलता है।

कुछ दिनों के लिए दैनिक कार्यचक्र से मुक्ति मिल जाती है,जिससे जीवन में आनन्द की लहर दौड़ जाती है। यात्रा करने से विभिन्न जातियों व स्थानों के रीति-रिवाजों, भाषाओं आदि से हम परिचित हो जाते है।

परस्पर प्रेमभाव बढ़ता है। एक-दूसरे के सुख-दुःख को समझने का अवसर मिलता है। शरीर में स्फूर्ति, ताजगी, मन में साहस के साथ काम करने की भावना का उदय होता हैं है। इस प्रकार की यात्रा का मनुष्य जीवन में विशेष महत्त्व है।

शिमला की यह आनन्दमयी यात्रा आज भी मेरे स्मृति पटल पर अंकित है। जब मुझे इस यात्रा का स्मरण हो जाता है, मैं आनन्द विभोर हो उठता हूँ।

सारे दृश्य इस प्रकार सामने आ जाते हैं जैसे साक्षात ऑँखों से देख रहा हूँ। इस प्रकार के अवसर बहत कम मिलते हैं किन्तु जब भी मिलते हैं, वे जीवन की मधुर सुखद स्मृति बन जाते है।

अन्य निबन्ध पढ़िये

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SAFAR JANKARI

Yatra Vritant

Yatra vritant – यात्रा वृतान्त, yatra vritant का उद्देश्य.

Yatra Vritant अपने आप में एक बहुत बड़ा शब्द है इसके बारे में यही कहूँगा की कुछ लोगो को तो घूमना पसन्द होता है अपना बैग पैक किये निकल लिये फोटो खीची और लौट आये लेकिन कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जो घुमते है फोटो खीचते और घूमने वाली जगह के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी एकत्र करके एक लेख लिख देते है जिससे जो भी पाठक वह लेख पढता है उसे भी बड़ी ही काम की जानकारियां मिल जाती है |

लेखक Yatra Vritant को इस प्रकार लिखते है की जब आप पढोगे तो ऐसा ही लगता है की हम भी घूम रहे है हर एक चीज को विस्तृत में बयां किया जाता है जिससे पाठको में रोचकता बनी रहे , एक अच्छा यात्रा वृतांत वाही होता है जो पाठक को उस यात्रा को महसूस करा दे और पाठक उस जगह जाने के लिये भी लालायित हो जाये |

एक अच्छा यात्रा वृतांत पाठक को मानसिक रूप से तो घुमा ही देता है अच्छा हर इंसान घुमक्कड़ी होता है सबकी इच्छा कही न कही घूमने की होती न दूर तो पास ही सही और कुछ घुमक्कड़ अपनी यात्राओ को लिपिबद्ध कर देते है वही यात्रा वृतांत   कहलाता है |

चलिए यात्रा वृतांत  Yatra Vritant के उद्देश्य की बात कर ली जाये देखिये जिन व्यक्तियों को घुमक्कड़ी के साथ साथ साहित्य में भी रूचि होती है वो जहाँ भी घूमने जाते वहां का अपना सारा अनुभव एक लेख में संकलित कर देते है जिसका उद्देश्य पाठक को ट्रेवल के प्रति उस जगह के प्रति आकर्षित करना होता है जिससे पाठक को पढने में भी मजा आता है और उसकी इच्छा भी ट्रेवल के लिए बढ़ जाती है |

 एक अच्छे यात्रा वृतान्त का उद्देश्य यात्रा की जगह के सामाजिक जीवन शेली से पाठको को रूबरू कराना होता है |

Yatra Vritant यात्रा वृतान्त

दोस्तों यदि आप इन्स्टाग्राम का भी इस्तेमाल करते है तो आप हमें वहां भी फॉलो करे और सपोर्ट करे | मेरी इन्स्टाग्राम आईडी –  safarjankaritravelblog

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मेरे यात्रा वृतान्त

प्रसिद्ध यात्रा वृतान्त.

इस पेज में आपको मेरे यात्रा वृतान्त पढने को मिलेंगे मई कोई बड़ा लेखक नहीं ना ही मुझको साहित्य की ज्यादा जानकारी है लेकिन मै हर लेखक और साहित्य का बहुत सम्मान करता हूँ तो जाहिर सी बात है मेरे Yatra Vritant बहुत ज्यादा उच्च कोटि के तो नहीं होंगे लेकिन कोशिश करूँगा अपने हर एक यात्रा वृतांत में ज्यादा से ज्यादा जानकारी लिखू सच लिखू और लिखने की शैली मजेदार हो जिससे आप लोगो के चेहरे पर मुस्कान आये |

हिंदी साहित्य में यात्रा वृतान्त के लिए बहुत से लेखक जाने जाते है जिनमे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र , बालकृष्काण भट्ट , प्रताप नारायन मिश्र , हरदेवी , श्रीधर पाठक , लोचन प्रसाद पाण्डेय , देवी प्रसाद खत्री , स्वामी सत्यदेव आदि  नाम  शामिल है | अच्छा Yatra Vritant के क्षेत्र का सबसे बड़ा नाम राहुल सांस्कृत्यायन जी का है इन्होने अपना जीवन देश विदेश की यात्राओ में ही व्यतीत कर दिया 

Gauri Shankar Mandir Kannauj

Kannauj Attar Ka Shahar – यहाँ की गलियां भी महकती है और गट्टे में भी मिठास है

March 13, 2021 March 13, 2021 Anurag Singh 0

नाम तो बहुत सुना था और मेरे शहर से पड़ोस में है कन्नौज लेकिन कभी जाना नहीं हुआ था एक शाम को एकदम से सोचा क्यों न कन्नौज ही घूम आये पड़ोस में ही तो है तो बस कर ली तैयारी अरे तैयारी में क्या बस एक बोतल पानी सेनेटाईज़र मास्क आधार कार्ड बस , कन्नौज हमारे शहर हरदोई से महज 60 किलोमीटर है तो मैंने बस से जाने का तय किया और अगले ही दिन सुबह मै कन्नौज जाने वाली बस में था पड़ोस में एक व्यक्ति आके बैठ गए और थोड़ी ही देर में हमारी बस कन्नौज की और चल दी |

जो सज्जन पास बैठे थे उनसे मैंने थोड़ी हाई हेल्लो की तो पता चला की वो कन्नौज के ही निवासी है तो मैंने उनसे जानकारी मांगी की आपके शहर में क्या क्या घुमक्कड़ी की जा सकती है तो उन्होंने मुझे बाबा गौरी शंकर मन्दिर , फूलमती देवी मन्दिर , जयचंद का किला , मेहंदी घाट , माँ अन्नपूर्णा देवी मंदिर, , मखदूम जहानिया का नाम बताया अब मै ठहरा भुलक्कड़ तो ये सब मैंने मोबाइल में ही नोट कर लिया बस अब मै Kannauj Attar के शहर के आने का इंतज़ार करने लगा |

Ram Asrey Sweets Hazratganj Lucknow

Ram Asrey Sweets Hazratganj Lucknow Aur Bajpai Kachori Bhandar

January 20, 2021 January 20, 2021 Anurag Singh 0

Ram Asrey Sweets Hazratganj Lucknow Aur Bajpai Kachori Bhandar Ye Dono Shop Uttar Pradesh Ki Rajdhani Lucknow me Hai . राम आसरे स्वीट्स और बाजपेयी कचौड़ी भण्डार ये दोनों स्वाद के ठिये लखनऊवासियों के लिए तो जाने माने है इसके अलावा जो भी घुमक्कड़ी भाई बंधु तहजीब के शहर जरूर जाए लखनऊ घूमने आये तो वो भी इन दोनों खाने के अड्डो पर भी जरूर जाए |

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Lko Me Ghumne Ki Jagah गोमती नदी के मध्य बना गोमेश्वर शिव मन्दिर

January 8, 2021 January 8, 2021 Anurag Singh 0

Lko Me Ghumne Ki Jagah में हम आपको शहर लखनऊ के एक ऐसे मन्दिर के दर्शन कराएँगे जो गोमती नदी के मध्य बना हुआ है इस मंदिर का नाम गोमेश्वर शिव मन्दिर है और रोचक बात ये की इस मन्दिर में जाने के लिए हमें नाव का सहारा लेना होता है कुल मिलाके आप कह सकते हो की हम इस शिव मंदिर तक नाव में बैठकर जायेंगे क्यूंकि यह गोमती के मध्य एक टापू पर है इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे की इस शिव मन्दिर तक कैसे पहुंचे नाव का किराया क्या है और यहाँ क्या क्या है |

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एक कप चाय और घुमक्कड़ी का रिश्ता बहुत ही गहरा है दूसरो का तो पता नहीं लेकिन मेरी कोई भी घुमक्कड़ी बिन चाय के अधूरी है , और मेरी मानिये तो आप की घुमक्कड़ी की सारी थकान को चंद मिनटों में उड़न छू करने का दम रखती है सिर्फ एक कप चाय , यह पोस्ट एक वृतान्त की तरह ही है |

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dhyachal Dham जाने का विचार अचानक ही बना था चलिये शुरू करते है विन्ध्याचल धाम का यात्रा वृतांत , मै अपने गृह जनपद हरदोई में अपने मित्र लैपटॉप के साथ बैठा हुआ था वही कोई शाम के 7 बज रहे थे मई का महिना था मेरे एक जानने वाले है पेशे से वो टीचर है और लखनऊ के रहने वाले है तो उनका फ़ोन आया की कल बनारस चलोगे मै तो घूमने के लिये हमेशा तैयार ही रहता हु तो मैंने हां बोल दी तो उन्होंने बताया की कल शाम 6 बजे वरुणा एक्सप्रेस से चलना है मैंने कहा ठीक मै पहुच जाऊंगा अगले दिन मैंने बैग पैक किया और त्रिवेणी एक्सप्रेस से लखनऊ पहुच गया मई शाम को ४:20 बजे चारबाग रेलवे स्टेशन लखनऊ में था |

Meri Pehli Hawai Yatra

Meri Pehli Hawai Yatra – पहली हवाई यात्रा

September 24, 2019 July 16, 2021 Anurag Singh 2

पहली हवाई यात्रा के उत्साह, रोमांच, थोड़ा सा डर, जिज्ञासा से मन उथल पुथल हो रहा था जैसे तैसे चारबाग रेलवे स्टेशन पर पहुँचा, लखनऊ चारबाग सुबह 9 बजे ही पहुँच गया था जबकि मेरी गोवा की फ्लाइट शाम 5:30 पर थी खैर अपने एक रिश्तेदार के घर चला गया चाय नाश्ता खाना पीना करके कुछ आराम की और 3 बजे फिर आ गया चारबाग और पहुँच गया मेट्रो स्टेशन वाकई मे लखनऊ की मेट्रो के स्टेशन देखते ही बनते है, टिकट काउंटर पर जाकर लखनऊ एयरपोर्ट की टिकट ली और चल पड़ा जैसे ही प्लेटफॉर्म पर पंहुचा मेट्रो रेल आ चुकी थी मुझे तो जल्दी थी ही फटाफट चढ़ गया वाकई मे साफ़ सफाई नज़र आ रही थी मेट्रो मे, मेरा मेट्रो का सफर भी शानदार रहा |

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हिंदी यात्रा-वृत्तान्त की सूची | hindi yatra vrittant

hindi-yatra-vrittant-list

हिंदी यात्रा-वृत्तान्त 

जब कोई लेखक किसी यात्रा का कलात्मक एवं साहित्यिक विवरण प्रस्तुत करता है तो उसे यात्रावृत्त कहा जाता है। हिन्दी साहित्य में यात्रा-वृत्तान्त लिखने की परम्परा का सूत्रपात भारतेन्दु से माना जाता है। इनके यात्रावृत्त विषयक रचनाएँ कविवचन सुधा में प्रकाशित होती थीं। राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय और नागार्जुन को आधुनिक हिंदी साहित्य का ‘घुमक्कर बृहतत्रयी’ कहा जाता है। प्रमुख यात्रा-वृत्तान्त की सूची निम्नलिखित है-

यात्रा-वृत्तान्त की सूची

hindi yatra vrittant list-

  • अज्ञेय का यात्रा वृतांत ‘अरे यायावर रहेगा याद?’ स्वदेश यात्रा से संबंधित है और ‘एक बूँद सहसा उछली’ विदेश यात्रा से संबंधित है।

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मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध Yatra ka varnan in hindi essay

Yatra ka varnan in hindi essay.

हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज का हमारा आर्टिकल Yatra ka varnan in hindi essay आपको मेरी रोमांचक यात्रा के बारे में विस्तृत जानकारी देगा.दोस्तों  किसी यात्रा का वर्णन करने में बड़ा ही अच्छा महसूस होता है तोह सोचिये की यात्रा करने में कैसा महसूस होगा.यात्रा करना हमारे जीवन के लिए जरूरी भी है और लोग यात्रा करने में अच्छा महसूस भी करते हैं.

Yatra ka varnan in hindi essay

आजकल के जमाने में लोग अपने रोजाना की दैनिक दिनचर्या से बोर हो चुके हैं वह कहीं पर, अच्छी जगह यात्रा करना चाहते हैं, कुछ पल सुख से रहना चाहते हैं वह अपने समाज से कुछ पल के लिए बहार आना चाहते हैं,लोग अपनी आंखों का लाभ बाहर उठाना चाहते हैं इसलिए वह यात्रा करते हैं.यात्रा करने से  हमें बहुत सारे लाभ होते हैं हमारा स्वास्थ्य ठीक होता है,हम चलते हैं तो हमारे शरीर का रक्त संचार सही होता है और हम एक अच्छे वातावरण को देखते हुए खुश होते हैं और हमारी मानसिक स्थिति अच्छी होती है.

हर एक इंसान को अपने जीवन में किसी अच्छे स्थान पर यात्रा करने जाना चाहिए और यात्रा पूरे परिवार के साथ करना चाहिए.आज से कुछ समय पहले मैंने भी अपने परिवार के साथ यात्रा की मथुरा वृंदावन की यात्रा.दोस्तों एक दिन मेरे पापा जी ने मेरी मम्मी से कहा मथुरा वृंदावन की यात्रा को चलने के लिए और जब मेरी मम्मी ने मुझसे कहा तो मुझे बहुत ही खुशी हुई

क्योंकि उस समय मेरी छुट्टियां चल रही थी और मैं घर में रहकर बोर हो रहा था वैसे तो अक्सर हम छुट्टियों के दिनों में नाना नानी के पास चले जाते थे लेकिन उस समय मैं घर पर ही था. मैं मेरे मम्मी पापा और मेरी बहन हम चारों ने मथुरा वृंदावन की यात्रा करने का डिसीजन लिया और 1 तारीख निश्चित की गई उस दिन हम सुबह जल्दी उठे हमने नहाया और हम हमारे पास के रेलवे स्टेशन से यात्रा करने के लिए निकले.

हमने देखा कि उस समय ट्रेनों में काफी भीड़ भाड़ रहती है,सभी ट्रेने उस समय अक्सर भरी हुई होती हैं,हम ट्रेन में सवार हुए और काफी लंबे सफ़र के बाद हम ग्वालियर पहुंचे.ग्वालियर से हमने मथुरा वृंदावन जाने के लिए एक नई ट्रेन पकड़ी और वहां से निकल पड़े.रास्ते में हम सभी ने मिलकर खाना खाया,बहुत मनोरंजन किया.हमारा परिवार पहली बार ही कहीं बाहर घूमने के लिए जा रहा था, मैं अपने मम्मी पापा,अपनी बहन को देखकर काफी खुश था,सभी खुश थे क्योंकि हमने मथुरा वृंदावन के आकर्षक दृश्य के बारे में पहले ही बहुत कुछ सुना था हम ट्रेन के द्वारा मथुरा वृंदावन की भूमि पर उतरे और वहां से मंदिरों के दर्शन के लिए चल पड़े.

Related- पर्वतीय यात्रा पर निबंध           सिंदबाद की तीसरी समुद्री यात्रा

सबसे पहले हमने श्री कृष्ण जन्म भूमि वाले मंदिर के दर्शन किए. श्री कृष्ण जन्म भूमि का मंदिर शहर के बीच में स्थित है यहां पर दुनिया भर से श्रद्धालु आए हुए थे,बहुत भीड़ भाड़ थी इसके बाद हम द्वारकाधीश मंदिर गए वहां पर हमने देखा कि यमुना नदी का घाट है जहां पर बहुत सारे लोग नहाते हैं और बहुत सी नौका लगी हुई है जहां पर कोई भी व्यक्ति यमुना नदी में नौका में बैठकर घूम सकता है. मैंने अपने पापा से कहा हम चारों नौका में सवार हो गए.हमने यमुना नदी के चारों ओर चक्कर लगाया,हमें बहुत ही खुशी महसूस हो रही थी इसके बाद बांके बिहारी मंदिर के दर्शन करने के बाद हम आगे निधीवन की ओर चल पड़े.

निधिवन एक बहुत ही रमणीय स्थान है कहा जाता है कि यहां पर बहुत सारे साधुओं ने समाधि ली हुई है और श्री कृष्ण और राधा जी ने यहां पर बहुत सारी तरह-तरह की क्रीड़ाएं की है. कहते हैं यहां पर रात के समय कोई भी नहीं रुक सकता क्योंकि रात के समय श्री कृष्णा और राधा जी स्वयं यहां पर रासलीला करते हैं इसके बाद हम वहां से प्रेम मंदिर की ओर गए.

कहते हैं प्रेम मंदिर का रंग रात में हमेशा बदलता रहता है यह बहुत ही देखने लायक दृश्य होता है वाकई में मथुरा वृंदावन बहुत बढ़िया स्थान है जहां पर हर एक नागरिक को दर्शन करने के लिए जाना चाहिए इसके अलावा भी हम कई मंदिरों पर गए वहां पर जाने पर हमें बहुत खुशी महसूस हुई और हमको लगा कि हमने इस दुनिया में ईश्वर के दर्शन कर लिए.

इसके बाद हम गोवर्धन पर्वत देखने के लिए गए. कहते हैं इस गोवर्धन पर्वत को श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर उठाया था गोवर्धन पर्वत लगभग 21 किलोमीटर की दूरी में फैला हुआ है.21 किलोमीटर की दूरी तय करके लोग इसकी परिक्रमा करते हैं,इसको लोग गिर्राज जी की कहते हैं वाकई में ये देखने लायक स्थान हैं,मैंने अपने मम्मी पापा बहन सभी के साथ इन जगहों के दर्शन किए और हमें बहुत ही अच्छा लगा

इसके बाद हम वहां से वापस आ गए हमने जब वहां के दृश्य देखे तो हमारा आने का मन नहीं कर रहा था क्योंकि वहां का वातावरण इतना अच्छा था,पेड़ पौधे और वहां का वातावरण हमे अपनी ओर खींच रहे थे वाकई में वह दृश्य देखने लायक था.दोस्तों इस तरह से मैंने मथुरा वृंदावन की यात्रा की।

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kamlesh kushwah

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हिंदी यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत का स्वरूप और विकास । Theory of travelling

हिंदी यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने हेतु इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें। लेख के अंत में आपको कुछ और ज्ञानवर्धक हिंदी नोट्स की प्राप्ति होगी जो आपके ज्ञान का विस्तार करेंगे।

यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत

साहित्य’ मनोवृति का घुमक्कड़ है। जब सौंदर्यबोध की दृष्टि से उल्लास भावना से प्रेरित होकर यात्रा करता है , और उसकी मुक्त भाव से अभिव्यक्ति करता है उसे यात्रा साहित्य / यात्रा वृतांत  कहते हैं। मानव प्रकृति व सौंदर्य का प्रेमी है। वह साहित्य की भांति घुमक्कड़ स्वभाव का है , जहां भी जाता है वहां से साहित्य की भांति कुछ-न-कुछ ग्रहण करता है। उसके द्वारा ग्रहण किये गये प्रेम , सौंदर्य , भाषा , स्मृति आदि को अपने शुद्ध मनोभावों से प्रकट करता है। जो साहित्य में समाहित होकर एक नई विधा का रूप ले लेता है। यह यात्रा मानव आदि – अनादि काल से करता आ रहा है। किंतु साहित्य में यह कला नवीन है जो ‘ निबंध शैली ‘ का एक नया रूप है जिसे ” यात्रा वृतांत ” कहते हैं।

इस साहित्य विधा के पीछे का उद्देश्य लेखक के रमणीय अनुभवों को हु – बहू पाठक तक प्रेषित करना है। जिसके माध्यम से पाठक उस अनुभव को आत्मसात कर सके उसे अनुभव कर सके।

Table of Contents

आदिकाल का विश्लेषण

आदिकाल में भी यात्रा का अधिक महत्व था। लेखक एक दूसरे देश में घूमा करते थे , और अपने अनुभव को घूम – घूम कर लोगों को बताया करते थे। नौका यात्रा की एक होड़ लग गई थी। नौका से एक – दूसरे देश को ढूंढने , भ्रमण करने का प्रचलन था। इस यात्रा में लेखक एक – दूसरे संस्कृति से परिचित होते थे शिक्षा व धर्म का प्रचार – प्रसार करते थे , अपने अनुभव को पुस्तक में सँजोते थे।

मुख्य यात्री थे – अलबरूनी , इब्नबतूता , अमीर खुसरो , हेनसांग , फाहियान , मार्कोपोलो , सेल्यूकस निकेटर आदि।

विदेशी यात्रियों – ‘ फाहियान ‘ , ‘ हेन सॉन्ग ‘ इत्यादि ने भी अपने यात्रा विवरण प्रस्तुत किए हैं।

उनके यह विवरण ज्ञान के भंडार तो कहे जा सकते हैं , पर यात्रा साहित्य नहीं। संस्कृत साहित्य में ‘ कालिदास ‘ और ‘ बाणभट्ट ‘ के साहित्य में भी आंशिक रूप से यात्रा वर्णन मिलता है। ऐसे विवरणों में लेखक के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति बहुत कम हो पाती है। वह एक तटस्थ दृष्टा के रूप में देखता है और लिख देता है। प्रकृतिगत विशेषताएं प्रतिबिंबित हो उठती है , यही कारण है कि आधुनिक यात्रा साहित्य का विकास शुद्ध निबंधों की शैली से माना जाता है।

निबंध शैली में व्यक्ति परखता , स्वच्छंदता , आत्मीयता आदि गुण यात्रा साहित्य में पाए जाते हैं। यात्रा साहित्य विविध शैलियों में लिखा जाता है जो विविध रूपों में पाया जाता है।

कुछ यात्रा साहित्य ऐसे होते हैं जिनका उद्देश्य विभिन्न देशों या स्थानो का विस्तृत परिचय देना होता है –

  • राहुल सांकृत्यायन का ‘ हिमालय परिचय ‘ , ‘ किन्नर देशों में ‘ और
  • शिवनंदन सहाय का ‘ कैलाश दर्शन ‘ इसी प्रकार के यात्रा वृतांत हैं
  • कुछ यात्रा साहित्य का उद्देश्य देश – विदेश के व्यापक जीवन को उभारना होता है। इसमें
  • यशपाल का  ‘ लोहे की दीवार के दोनों ओर ‘ ,
  • गोविंद दास का ‘ सुंदर दक्षिण – पूर्व ‘ आदि प्रसिद्ध है।

आधुनिक युग ( भारतेंदु युग )

मुख्य रूप से भारतेंदु के युग को ही यात्रा साहित्य का आरंभ काल माना जा सकता है। भारतेंदु ने खड़ी बोली का विकास कर कितने ही नवीन साहित्य को जन्म दिया। यह बोली जन – जन की बोली थी।

यही कारण है कि साहित्य की पहुंच एक आम व्यक्ति तक हुई।

भारतेंदु के युग को हिंदी साहित्य का जन्मकाल कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

मुख्य रचनाएं – हरिद्वार , लखनऊ , जबलपुर , रायपुर , वैद्यनाथ की यात्रा आदि उनके काल में प्रकाशित हुई थी।

उनके द्वारा संपादित पत्र पत्रिकाओं में यात्रा का अधिक महत्व था।

मुख्य रचनाएं व लेखक –

  • दामोदर दास शास्त्री – ‘ मेरी पूर्व दिग्यात्रा ‘ (1885)
  • देवी प्रसाद खत्री – ‘ रामेश्वर यात्रा ‘ (1893)
  • शिव प्रसाद गुप्त – ‘ पृथ्वी प्रदक्षिणा ‘ (1924)
  • स्वामी सत्यदेव – ‘ मेरी कैलाश यात्रा ‘ (1915) , ‘ मेरी जर्मन यात्रा ‘ (1926)
  • कन्हैयालाल मिश्र – ‘ हमारी जापान यात्रा ‘ (1931)
  • राम नारायण मिश्र – ‘ यूरोप यात्रा के छह मास। ‘

स्वतंत्रता पूर्व (जयशंकर प्रसाद)

जो साहित्य की नींव भारतेंदु ने रखी थी वह जयशंकर प्रसाद के युग में फलता-फूलता वृक्ष बन गया था। ‘ नाटक ‘ , ‘ यात्रा ‘ , ‘ उपन्यास ‘ , ‘ निबंध ‘ , ‘ कहानी ‘ आदि क्षेत्रों में यह काफी विकास कर चुका था। जयशंकर प्रसाद को “भारतेंदु का उत्तराधिकारी” कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस काल ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रयत्न भी किया है और स्वतंत्रता प्राप्ति को देखा भी है। इस युग में ‘ केदारनाथ ‘ , ‘ नागार्जुन ‘ , ‘ राहुल सांस्कृत्यायन ‘ मुख्य यात्रा लेखक थे।

राहुल सांकृत्यायन का योगदान यात्रा साहित्य में अद्वितीय व अग्रणी है।

उन्होंने भारत ही नहीं भारत के आस – पास वह अन्य देशों में भी भ्रमण किया। उनकी यह यात्रा कई बार जानलेवा भी साबित हुई , किंतु वह उससे बच गए। वह दुर्गम घाटी , दर्रा , पहाड़ी , पठार आदि पर भी यात्रा करने से नहीं हिचकिचाते थे।

राहुल सांकृत्यायन के अनुसार – 

“जिसने एक बार घुमक्कड़ धर्म अपना लिया, उसे पेंशन कहां, उसे विश्राम कहां ? आखिर में हडि्डयां कटते ही बिखर जाएंगी।” आजीवन यायावर रहे।

उनकी रचना – 

  • ” मेरी तिब्बत यात्रा ” ,
  • ” मेरी लद्दाख यात्रा ” ,
  • ” किन्नर देश में ” ,
  • ” रूस में पच्चीस मास ” ,
  • ” तिब्बत में सवा वर्ष ” ,
  • ” मेरी यूरोप यात्रा ” प्रसिद्ध है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद (अज्ञेय युग)

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अज्ञेय व उनके द्वारा बनाया गया ” तार सप्तक ” के कवियों ने हिंदी साहित्य को कई प्रकार के बंधनों से मुक्त कर उन्हें नया आयाम वह दिशा दिखाया।

साहित्य के क्षेत्र में लोगों को आकर्षित किया।

अज्ञेय ने ‘ यात्रा वृतांत ‘ के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया उनका मानना था कि- “यायावर को भटकते हुए चालीस बरस हो गए, किंतु इस बीच न तो वह अपने पैरों तले घास जमने दे सका है, न ठाठ जमा सका है, न क्षितिज को कुछ निकट ला सका है… उसके तारे छूने की तो बात ही क्या।…यायावर न समझा है कि देवता भी जहां मंदिर में रूके कि शिला हो गए, और प्राण संचार की पहली शर्त है कि गति:गति: गति।”

उनके द्वारा रचित यात्रा वृतांत –

” अरे यायावर रहेगा याद “( 1953 ) , “एक बूंद सहसा उछली ” ( 1964 ) चित्रात्मक व वर्णात्मक शैली में प्रस्तुत कर यात्रा साहित्य को नया आयाम दिया।

मुख्य लेखक व कृतियां –

  • रामवृक्ष बेनीपुरी – ” पैरों में पंख बांधकर ” (1952) , ” उड़ते चलो उड़ते चलो” |
  • यशपाल – ” लोहे की दीवार ” (1953)
  • भगवतशरण उपाध्याय – ” कोलकाता से पैकिंग तक ” (1953) , ” सागर की लहरों पर ” ( 1959)
  • प्रभाकर माचवे – ” गोरी नजरों में हमें ” ( 1964 )
  • मोहन राकेश – ” आखिरी चट्टान तक ” ( 1953 )
  • निर्मल वर्मा ” चीड़ों पर चांदनी ” (1964)

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यात्रा साहित्य में यात्री अपने यात्रा के प्रत्येक स्थल और क्षेत्रों में से उन्हीं क्षेत्रों का संयोजन करता है जिनको वह अद्भुत सत्य के रूप में ग्रहण करता है। बाहरी जगत की प्रतिक्रिया से उसके हृदय में जो भावनाएं उमड़ती है , वह उन्हें अपनी संपूर्ण चेतना के साथ अभिव्यक्त कर देता है , जिससे शुष्क विवरण भी मधुर और भाव विभोर कर देने वाला बन जाता है।

पाठक एक साथ इतना तदात्म्य स्थापित कर लेता है , फिर वह स्वयं उस आनंद को प्राप्त करने के लिए तड़प उठता है। इस विषय में उल्लेखनीय है कि यात्रा साहित्य के लेखक को संवेदनशील होकर भी निरपेक्ष होना चाहिए अन्यथा यात्रा के स्थान पर यात्री के प्रधान हो उठने की संभावनाएं बढ़ जाती है , तथा वह अभिव्यक्त यात्रा साहित्य न रहकर आत्म चरित्र या आत्म स्मरण बन जाता है।

11 thoughts on “हिंदी यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत का स्वरूप और विकास । Theory of travelling”

I want to Yatra Sahitya varnan MA Hindi notes pleased send it as early as possible as notes is available in the market and exam dates is 15,11,2018 and also send the address where I get the notes

मुझे वेबसाइट काफी कुछ सीखने को मिलता है बल्कि इसने बहुत कुछ है जो आगे बढ़ने के लिए बहुत है मैं एक हिंदी ब्लॉगर हूं जो अपने शब्दों से व्याख्यान करता हूं

हमें यह जानकर खुशी हुई अभिषेक तिवारी जी

साहित्य एवं साहित्य विधा की अति रोचक ढंग से प्रस्तुति है। बहुत ही सुन्दर लगी।

Thanks bhagwan jha , keep supporting us

अत्यंत ज्ञानवर्धक, रोचक एवं परिमार्जित ब्लॉग है-हिंदी विभाग डॉट कॉम। इस ब्लाग को मेरी तरफ से विशेष बधाइयां। अनेकानेक कठिन प्रतीत होने वाले हिंदी साहित्य एवं भाषा संबंधी ज्ञान, अत्यंत मनोरंजक अर्थात रोचक एवं सरस, चित्रोपम ढंग से प्रस्तुत किया गया है। निश्चित रूप से ब्लॉगर महोदय बधाई के पात्र हैं।,-दिनेश कुमार मिश्र स्नेही

दिनेश कुमार मिश्र जी आपका हृदय से आभार ।आप जैसे पाठक यदि हिंदी विभाग को प्रेरित करते रहेंगे और मार्गदर्शन करेंगे तो निश्चित रूप से हिंदी विभाग एक श्रेष्ठ दिशा में आगे बढ़ेगा । आपके सुझाव और मार्गदर्शन का हम सदैव प्रतीक्षा करते हैं , आपका यह संदेश हिंदी विभाग के लिए अभूतपूर्व है इसके लिए हिंदी विभाग आपका आभारी है।

सागर कन्या और खग सावक की उदेश्य मुल सामवेदना तत्त्व के आधार पर मुल्यांकन

यह उत्कृष्ट कोटि का ब्लॉग है।इससे हिंदी साहित्य को बढ़ावा मिलेगा। आजकल जो हिंग्लिश चलन पर है ,उससे हिंदी साहित्य को काफी ठेस पहुंची है ।यह ब्लॉग हिंदी भाषियों की कसौटी पर खरा उतरता है।

बहुत ही सुंदर तरह से हमें यात्रा साहित्य की जानकारी दी है

किसी भी ऐतिहासिक इमारत की यात्रा कर उस पर यात्रा वृतांत लिखो।

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yatra vritant essay in hindi

Essay on Parvatiya Yatra in Hindi- पर्वतीय यात्रा पर निबंध

In this article, we are providing Essay on Parvatiya Yatra in Hindi. पर्वतीय यात्रा पर निबंध ( yatra Vritant in Hindi), Parvatiya Sthal ki yatra par Nibandh.

yatra vritant essay in hindi

मनुष्य एक भ्रमणशील प्राणी है। एक स्थान पर रहते-रहते जब उसका मन ऊब जाता है तो वह इधर-उधर घूमकर अन्य प्रदेशों की सैर करके अपना मन बहलाता है। पर्वतमालाओं की सैर करने का अपना अलग ही आनंद है। इस बार दशहरे की छुट्टियों में मेरी मित्र मंडली ने शिमला चलने का कार्यक्रम बनाया। अपने माता-पिता से परामर्श करके मैंने भी उसमें जाना किया। बचपन से हा मरा इच्छा था कि किसी पर्वतीय स्थान की यात्रा करू। 10 अक्तबर को हम सबने रेलगाड़ा द्वारा यात्रा शुरू की।

पर्वतीय प्रदेश का जीवनचक्र ही निराला होता है। मैं खिड़की के पास बैठा था और पर्वतीय दृश्यों को देख रहा था। रेल के डिब्बे से उनके छोटे-छोटे घर बहुत सुंदर लग रहे थे। मैं उस दृश्य का आनंद ले रहा था। कालका स्टेशन आ गया। यह पर्वतीय प्रदेश का छोटा सा जंक्शन है। इसी स्थान पर मैंने देखा लोग पहाडी वेश-भूषा पहने इधर- उधर घूम रहे थे। सौम्यता और सादगी उनके मुख से झलकती थी, पर उनमें परिश्रम करने तथा पश्थितियों से जझने का संकल्प स्पष्ट दिखाई देता था। थोडी देर प्रतीक्षा करनी पड़ी। इस बीच हमने कुछ जलपान किया। तभी हमें शिमला के लिए गाडी मिली। इस गाड़ी में चार-पांच डिब्बे थे तथा इसके दोनों ओर इंजन जुड़े हुए थे। रास्ता चक्करदार तथा संकरा था। ठंड से हम सिकुड़े जा रहे थे। हम शिमला पहुँच गए।

शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। यहाँ आधुनिक ढंग के मकान बने हुए हैं। शहर में कई सिनेमा घर है जो आकर्षण को और भी बढ़ाते हैं। मुझे स्केटिंग करने में बड़ा मज़ा आया। शिमला प्रवास के दौरान हमने राजभवन तथा इस नगरी का कोना-कोना छान मारा। हम वहाँ तीन दिन रहे। इन तीन दिनों में हमने दूर-दूर तक फैली प्रकृति की सुषमा का भरपूर आनंद लिया। ऊँची-ऊँची पर्वत मालाएँ, घाटियाँ, भाँति-भाँति के पुष्पों से लदे वृक्ष देखकर ऐसा मन कर उठा कि सारी उम्र यहीं बिता दें। पहाडियों की चोटियों से नीचे झाँकने पर गहरे गड्ढे ऐसे दिखाई देते मानो वे सीधे पाताल से संबद्ध हों। ये तीन दिन बड़ी मौज-मस्ती में कटे और तभी वापसी की तैयारियाँ शुरू कर दी गयीं। तीन दिन के प्रवास के बाद हम वहाँ से चल पड़े। इस बार हम बस द्वारा चले। बस से हमने ऊँची-नीची पहाड़ियाँ देखीं तथा चक्करदार साँपनुमा मोड़ देखे, जिनके नीचे गहरे गड्ढे थे। पर्वतों के आस-पास हरियाली, खेत में हमें आकृष्ट कर रहे थे। परंतु हम धीरे-धीरे इस प्रदेश से दूर होते गए और अपने घर आ गए। आज भी मुझे वह यात्रा याद आती है।

Kisi Yatra Ka Varnan

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किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध

किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध – yatra essay in hindi.

ज्ञानेनहीना: पशुभि: समाना:।

अर्थात्—ज्ञान से हीन मनुष्य पशु के समान है।

अध्ययन, बड़ों का सान्निध्य, सत्संग आदि ज्ञान-प्राप्ति के साधन कहे जाते हैं। इनमें अध्ययन के बाद यात्रा का स्थान प्रमुख है। यात्रा के माध्यम से विविध प्रकार का प्रत्यक्ष ज्ञान बड़ी ही सहजता के साथ तत्काल प्राप्त हो जाता है। यही कारण है कि यात्रा का अवसर हर कोई पाना चाहता है। प्रत्येक मानव अपने जीवन में छोटी-बड़ी किसी-न-किसी प्रकार की यात्रा अवश्य ही करता है।

मुझे शिक्षा-प्राप्ति के लिए त्रिशूल पर बसी विश्‍वनाथ की नगरी काशी ठीक जगह जँची, जहाँ इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से लेकर हर तरह की विद्या की शिक्षा देने के लिए हिंदू विश्‍वविद्यालय का विशाल द्वार सबके लिए खुला है। भारतीय संस्कृति की तो बात ही क्या, ऋग्वेद की ऋचाओं से लेकर चौरपंचासिका तक के पढ़ानेवाले अनेक प्रकांड पंडित भरे पड़े हैं। बहुत सोच-विचार के बाद मैंने काशी जाने का निश्‍चय कर लिया था।

मैं उन दिनों लगभग पंद्रह साल का था। मुहूर्त देखा गया। मैं बड़ी उत्कंठा से उस दिन की प्रतीक्षा करता रहा जिस दिन मुझे यात्रा पर रवाना होना था। आखिर वह दिन आया। मैं शामवाली गाड़ी से काशी के लिए चल पड़ा। पिताजी मुझे काशी पहुँचाने साथ आ रहे थे। स्टेशन से ज्यों ही गाड़ी चली कि मेरे मन की आँखों में उज्ज्वल भविष्य के सुनहरे दृश्य झलमलाने लगे। उन दृश्यों को देखते-देखते ही मैं सो गया।

पिताजी ने जगाया, तब समस्तीपुर का जंक्शन बिजली के लट्टुओं की रोशनी में जगमगा रहा था। एक बार आँखें चौंधिया गईं। गाड़ी अपने नियत समय से पैंतीस मिनट देर से आई, सो भी गलत प्लेटफॉर्म पर। बड़ी दौड़-धूप करके और कुली को अतिरिक्त पैसे देकर जैसे-तैसे हम प्रयाग फास्ट पैसेंजर के डिब्बे में बैठ पाए।

सवेरे छपरा में हाथ-मुँह धोए। उसके बाद मैं तो जब-तब कुछ-न-कुछ खाता ही रहा, परंतु पिताजी ने रास्ते भर कुछ नहीं खाया। गाड़ी चलती रही, दिन भी ऊपर उठता गया। औड़िहार में आकर पिताजी ने खोवा खरीदा। मुझे खाने को दिया, जो बहुत अच्छा लगा। फिर तो देखते-देखते ही पूरी गाड़ी खोवे के बड़े-बड़े थालों से भर गई। मालूम हुआ, यह सारा खोवा काशी जा रहा है और मैं भी काशी जा रहा हूँ। एक बार फिर मन झूम उठा।

औड़िहार से गाड़ी चल पड़ी। एकाध स्टेशन बाद प्राय: कादीपुर स्टेशन से ही सावन का मेह बरसने लगा। अलईपुर स्टेशन पर गाड़ी पहुँची, तब मूसलधार वर्षा होने लगी। पानी थमने पर सामान सहित भीगे हुए पिताजी और मैं रिक्शे पर बैठकर नगर की ओर चले।

नागरी प्रचारिणी सभा, टाउन हॉल, कोतवाली, बड़ा डाकघर, विशेश्‍वरगंज की सट्टी, मैदागिन का चौराहा आदि देखते हुए चौक पहुँच गए। वहीं पर पास में ही कचौड़ी गली में पिताजी के एक मित्र रहते थे। उन्हीं के घर सामान रखकर हम मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने चले गए। शाम को विश्‍वनाथ की आरती देखकर माता अन्नपूर्णा के दर्शन किए, फिर दशाश्‍वमेध घाट तक आए।

दशाश्‍वमेध तथा आस-पास के सुंदर और विशाल भवनों को देखकर मैं चकित रह गया। वहाँ हजारों नर-नारी स्नान, ध्यान, पूजा-पाठ में लगे थे तथा नावों पर बैठे लोग इधर-उधर सैर कर रहे थे। घाटों पर छाए अजीब कोलाहल को देखता हुआ मैं पिताजी के साथ डेरे पर लौट आया।

दूसरे दिन मैं अपने अभीष्ट कार्य में जुट गया। इस यात्रा में मुझे कितने ऐसे विषयों का ज्ञान हुआ, जो जीवन-यात्रा में आज भी उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। जब कभी अवसर मिले, यात्रा अवश्य करनी चाहिए।

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Essay on Parvatiya Yatra in Hindi – पर्वतीय यात्रा पर निबंध

September 25, 2019 by essaykiduniya

Here you will get Essay on Parvatiya Yatra in Hindi Language for Students and Kids of all Classes. Yatra Vritant in Hindi. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में पर्वतीय यात्रा पर निबंध मिलेगा।

Essay on Parvatiya Yatra in Hindi

भूमिका- गर्मी की छुट्टियो में घुमने का आनंद बहुत ही सुखद होता है। अधिकतर लोग इस समय में पर्वतीय स्थल की यात्रा करना पसंद करते हैं। मैं भी इस वर्ष अपने परिवार के साथ शिमला घुमने गया था जो कि बेहद आर्कषक पर्वतीय स्थल है। शिमला भारत के उत्तर में स्थित है और यहाँ पर बहुत से मनोरम दर्शनीय पर्यटन स्थल है। शिमला जाने का सुझाव मुझे मेरे एक करीबी दोस्त ने दिया था क्योंकि वह वहाँ पर बहुत आनंद ले रहा था।

यात्रा का आरंभ-

मैं चण्डीगढ़ रहता हूँ और मैंने अपने परिवार के साथ सुबह 5 बजे यात्रा आरंभ की थी। हमने अपना सफर रेलगाड़ी से तय किया था क्योंकि यह लंबे सफर के लिए आरामदायक रहती है। हम सुबह 10 बजे शिमला पहुँच गए थे और हमने रास्ते में खूब खाया पिया मस्ती करी और रास्ते में आ रहे ऊचें ऊचें पहाड़ों और घने जंगलों का आनंद लिया। कुछ कुछ जगहों पर डर भी लग रहा था लेकिन पहाड़ों में चलती इस रेल में मजा भी खूब आ रहा था। फिर शिमला पहुंचने के बाद हमने होटल में कमरा लिया और विश्राम किया।

शिमला की जलवायु बहुत ही ठंडी थी और यही कारण था कि हमने अपनी गर्मी की छुट्टियां वहाँ व्यतीत करने का फैसला किया था। जब हम वहाँ पहुँचे थे तो उस समय ठंडी बर्फीली हवा चल रही थी और घने बादल छाए हुए थे। हमे वहाँ गर्मी में भी ठंडक का एहसास हो रहा था और थोड़ी ही देर में वर्षा आरंभ हो गई थी। ठंडी जलवायु होने के कारण हम गर्मी में भी कंबल लेकर सोए थे।

वर्षा के रुकते ही हमने शाम को घुमना शुरू किया। सबसे पहले हम शिमला का मुख्य आकर्षण केंद्र माल रोड घुमने गए जहाँ पर शाम के समय दौ गुनी रौनक हो जाती हैं। हमने वहाँ पर घुमते हुए प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लिया। अगले दिन हम रिज गए और जाखू मंदिर जहाँ पर हनुमान जी की सबसे बड़ी मूर्ति है उसके दर्शन किए। शिमला से थोड़ी दूरी पर ही एक पर्यटन स्थल है जिसका नाम है कुफरी। हम उसी दिन शाम को कुफरी के लिए चले गए और रात को वहाँ विश्राम किया। अगले दिन पहाड़ चढ़ना, बंजी जंपिंग जैसी बहुत सी गतिविधियों में भाग लिया और बहुत मजा किया। कुफरी से वापसी आकर हमने अगले दिन शिमला कि चित्रकला को देखा जो कि सबको अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी और उससे इतिहास की बहुत सारी जानकारी भी मिल रही थी जो बच्चों के लिए बहुत ही गुणकारी थी।

शिमला से वापिसी-

अगले दिन सुबह हमने चंडीगढ़ की रेल ली और हम सब बहुत थक चुके थे लेकिन हम सब अपनी इस यात्रा से बेहद खुश भी थे। हम शाम के 4 बजे तक घर पहुँच गए थे और हमारे दिल में शिमला की यादें बसी हुई थी जिसके बारे में हम पूरे रास्ते बातें करते आए। हम सब एक बार फिर से शिमला जरूर जाना चाहेंगे ताकि हम फिर से गर्मी में ठंडक का एहसास प्राप्त कर सके और छुट्टियों का आनंद ले सके।

हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध ( Essay on Parvatiya Yatra in Hindi – पर्वतीय यात्रा पर निबंध ) को पसंद करेंगे।

Yatra Vritant in Hindi |

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मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध | Meri Avismarniya Yatra Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on my unforgettable journey in Hindi

By: Amit Singh

मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध | Meri Avismarniya Yatra Essay in Hindi

“सैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाँ,  जिन्दगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ।”

मैं शुरू से ही घुमक्कड़ प्रवृत्ति का हूँ तथा राहुल सांकृत्यायन की तरह नवाज़िन्दा-याजिन्द्रा की लिखी उपरोक्त पंक्तियाँ मुझे भी घूमने हेतु प्रोत्साहित करती रही हैं। मुझे अगस्टीन की कही बात बिल्कुल सत्य प्रतीत होती है-“संसार एक महान पुस्तक है, जो घर से बाहर नहीं निकलते वे व्यक्ति इस पुस्तक का मात्र एक पृष्ठ ही पढ़ पाते हैं।” पिछले पाँच वर्षों में मैंने भारत के लगभग बीस शहरों की यात्रा की है, इनमें दिल्ली, मुम्बई, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा, गोवा आदि शामिल हैं।

इन शहरों में भुवनेश्वर ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है। पिछले वर्ष ही गर्मी की सप्ताह भर की छुट्टी में मैं इस शहर की यात्रा पर था। यह यात्रा मेरे लिए अविस्मरणीय है।

मैं दिल्ली से रेल यात्रा का आनन्द उठाते हुए अपने सभी साथियों के साथ सुबह लगभग दस बजे भुवनेश्वर पहुँच गया था। हमने पहले ही होटल बुक करवा लिया था। वहाँ पहुँचकर सबसे पहले हम होटल में गए। मैं इस शहर के बारे में पहले ही काफी कुछ सुन चुका था। मेरे सभी दोस्त चाहते थे कि उस दिन आराम किया जाए, लेकिन मैं उनके इस विचार से सहमत नहीं था। मेरी व्याकुलता को देखते हुए सबने थोड़ी देर आराम करने के बाद तैयार होकर यात्रा पर निकलने का निर्णय लिया। भुवनेश्वर के बारे में जैसा हमने सुना था, उससे कहीं अधिक दर्शनीय पाया।

भुवनेश्वर, भारत के खूबसूरत एवं हरे-भरे प्रदेश ओडिशा की राजधानी है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है। ऐतिहासिक ही नहीं धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह शहर भारत के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है। इसे ‘मन्दिरों का शहर’ भी कहा जाता है। यहाँ प्राचीनकाल के लगभग 600 से अधिक मन्दिर हैं, इसलिए इसे पूर्व का काशी’ भी कहा जाता है।

तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने यहीं पर कलिंग युद्ध के बाद धम्म की दीक्षा ली थी। धम्म की दीक्षा लेने के बाद अशोक ने यहाँ पर बौद्ध स्तूप का निर्माण कराया था, इसलिए यह बौद्ध धर्मा बलम्बियों का भी एक बड़ा तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में भुवनेश्वर में 7,000 से अधिक मन्दिर थे, इनमें से अब केवल 600 मन्दिर ही शेष बचे हैं।

हम जिस होटल में ठहरे थे, उसके निकट ही राजा-रानी मन्दिर है, इसलिए सबसे पहले हम उसी के दर्शनों के लिए पहुँचे। इस मन्दिर की स्थापना ग्यारहवीं शताब्दी में हुई थी। इस मन्दिर में शिव एवं पार्वती की भव्य मूर्तियाँ हैं। इस मन्दिर की दीवारों पर सुन्दर कलाकृतियाँ बनी हुई हैं। इस मन्दिर से लगभग एक किलोमीटर दूर मुक्तेश्वर मन्दिर स्थित है। इसे ‘मन्दिर समूह’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर एक साथ कई मन्दिर हैं।

इन मन्दिरों में से दो मन्दिर अति महत्त्वपूर्ण है- परमेश्वर मन्दिर एवं मुक्तेश्वर मन्दिर । इन दोनों मन्दिरों की स्थापना 650 ई. के आस-पास हुई थी। इन दोनों मन्दिरों की दीवारों पर की गई नक्काशी देखते ही बनती है। मुक्तेश्वर मन्दिर की दीवारों पर पंचतन्त्र की कहानियों को मूर्तियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। राजा-रानी मन्दिर एवं मुक्तेश्वर मन्दिर की सैर करते-करते हम थक गए थे। वैसे भी हम दोपहर के बाद सैर करने निकले थे और अब रात होने को थी। इसलिए हम लोग आराम करने के लिए अपने होटल लौट आए।

Meri Avismarniya Yatra Essay in Hindi

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अगली सुबह हम लोग जल्दी तैयार होकर लिंगराज मन्दिर समूह देखने गए। इस मन्दिर के आस-पास सैकड़ों छोटे-छोटे मन्दिर बने हुए हैं, इसलिए इसे ‘लिंगराज मन्दिर समूह’ भी कहा जाता है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था। 185 फीट लम्बी यह मन्दिर भारत की प्राचीन शिल्पकला का अप्रतिम उदाहरण है। मन्दिरों की दीवारों पर निर्मित मूर्तियाँ शिल्पकारों की कुशलता की परिचायक हैं।

भुवनेश्वर की यात्रा इतिहास की यात्रा के समान है। इस शहर की यात्रा करते हुए ऐसा लगता है मानो हम उस काल में चले गए हो, जब इस शहर का निर्माण किया जा रहा था। शहर के मध्य स्थित भुवनेश्वर संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियों एवं हस्तलिखित ताड़पत्रों का अनूठा संग्रह इस आभास को और भी अधिक बल प्रदान करता है।

भुवनेश्वर के आस-पास भी ऐसे अनेक अप्रतिम स्थल हैं, जो ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व रखते हैं और जिनकी सैर के बिना इस शहर की यात्रा अधूरी ही रह जाती है। ऐसा ही एक स्थान है-धौली। यहाँ दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित एक बौद्ध स्तूप है, जिसका जीर्णोद्वार हाल ही में हुआ है। इस स्तूप के पास ही सम्राट अशोक निर्मित एक स्तम्भ भी है, जिसमे उनके जीवन एवं बौद्ध दर्शन का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त भगवान बुद्ध की मूर्ति तथा उनके जीवन से सम्बन्धित विभिन्न घटनाओं से सम्बद्ध मूर्तियाँ भी देखने लायक है। धौली के बौद्ध स्तूप के दर्शन के बाद हम लोग भुवनेश्वर शहर से लगभग 6 किमी दूर स्थित उदयगिरि एच खण्डगिरि की गुफाओं को देखने गए। इन गुफाओं को पहाड़ियों को काटकर बनाया गया है। इन गुफाओं में की गई अधिकांश चित्रकारी नष्ट हो चुकी है, किन्तु यहाँ निर्मित मूर्तियाँ अभी भी अपने प्रारम्भिक स्वरूप में ही विद्यमान है।

सैर के बाद हम लोगों ने ओडिशा के स्थानीय भोजन का आनन्द उठाया। पखाल भात, छलु तरकारी, महूराली चडचडी एवं चिगुडि ओडिशा की कुछ लोकप्रिय व्यंजन है। पखाल भात एक दिन पहले बने बाचल को आलू के साथ तलकर बनाया जाता है। छतु तरकारी एक तीखा भोजन है, जो मशरूम से बनता है। ओडिशा के लोगों को भी बंगालियों की तरह मछली खाने का बहुत शौक है। महूराली चडचडी छोटी मछली से बनी एक डिश है।

चिल्का झील में पाई जाने वाली झींगा मछली से चिगुडि नामक डिश बनाई आती है। भुवनेश्वर की यात्रा को अविस्मरणीय बनाने के लिए हमने जमकर फोटोग्राफी की थी, किन्तु फोटो के साथ-साथ हम यहाँ की कुछ प्रसिद्ध वस्तुएँ भी ले जाना चाहते थे। यहाँ पत्थर से निर्मित बड़ी खूबसूरत वस्तुएँ, जैसे-मूर्तियाँ, बर्तन, खिलौने इत्यादि मिलते हैं। यहाँ की ताड़ के पत्तों पर की गई चित्रकारी भी लोगों को खूब पसन्द आती है, जिसे पत्ता चित्रकारी’ कहते हैं। हम सबने कई प्रकार की वस्तुएँ खरीदी। ये वस्तुएँ हमें हमेशा भुवनेश्वर की प्राचीन कला की याद दिलाती है।

भुवनेश्वर की यात्रा मेरे लिए ही नहीं मेरे सभी साथियों के लिए भी एक अविस्मरणीय यात्रा बन गई वस्तुतः किसी भी व्यक्ति की यात्रा का उद्देश्य केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि मानसिक शान्ति प्राप्त करना भी होता है। सचमुच भुवनेश्वर के यातावरण में अजीब-सी पवित्रता घुली हुई है। इस यात्रा से हमारी मित्र मण्डली को जिस मानसिक शान्ति का अनुभव हुआ, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। इस अविस्मरणीय यात्रा से मैं भी डॉ. जॉनसन के इस कथन से पूर्णतः सहमत हो गया कि “यात्रा कल्पना को वास्तविकता में व्यवस्थित कर देती है।”

मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध | My Unforgettable Trip Essay in Hindi / meri aabismaraniye Yatra video

reference Meri Avismarniya Yatra Essay in Hindi

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Kisi Yatra Ka Varnan in Hindi Essay / किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध

kisi yatra ka varnan in hindi essay,kisi yatra ka varnan in hindi,kisi yatra ka varnan par nibandh,kisi yatra ka varnan nibandh,kisi yatra ka varnan,किसी की गई यात्रा का रोचक वर्णन पर निबंध

  किसी की गई यात्रा का रोचक वर्णन

रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) यात्रा की तैयारी और प्रस्थान, (3) मार्ग के दृश्य, (4) वांछित स्थान पर पहुँचना और वहाँ के दर्शनीय स्थलों का वर्णन, (5) वापसी, (6) उपसंहार ।

प्रस्तावना - प्रायः हर व्यक्ति के जीवन में एक निश्चित दिनचर्या बन जाया करती है। वह एक बँधी बँधाई दिनचर्या के अनुसार कार्य करते रहने पर कभी-कभी ऊब जाता है और अपने जीवन-चक्र में बदलाव चाहता है। हर प्रकार के परिवर्तन के लिए यात्रा का अत्यधिक महत्त्व है। यात्रा अथवा नये स्थानों पर भ्रमण से व्यक्ति के जीवन में आयी नीरसता समाप्त हो जाती है और वह अपने अन्दर एक नया उत्साह पाता है। इतना ही नहीं, इन यात्राओं से व्यक्ति के अन्दर आत्मविश्वास और साहस उत्पन्न होता है। इससे विभिन्न व्यक्तियों के बीच आत्मीयता भी बढ़ती है और हमारे व्यावहारिक ज्ञान की वृद्धि होती है।

यात्रा की तैयारी और प्रस्थान - मई का महीना था। हमारी परीक्षाएँ अप्रैल में ही समाप्त हो चुकी थीं। मेरे कुछ साथियों ने आगरा घूमने का कार्यक्रम बनाया। मैंने अपने पिताजी और माताजी से इसके लिए स्वीकृति ले ली और विद्यालय के माध्यम से रियायत प्राप्त करके रेलवे के आरक्षित टिकट बनवा लिये थे। सभी साथी अपना-अपना सामान लेकर मेरे यहाँ एकत्रित हो गये। घर से सभी छात्र एक थ्री-व्हीलर द्वारा स्टेशन पहुँचे। प्लेटफॉर्म पर बहुत भीड़ थी। कुछ समय के पश्चात् गाड़ी आयी। हमने अपना सामान गाड़ी में चढ़ाया। प्लेटफॉर्म पर सामान बेचने वालों की आवाजों से बहुत शोर हो रहा था, तभी गाड़ी ने सीटी दे दी। गाड़ी के चलने पर ठण्डी हवा लगी तो सभी को राहत मिली।

मार्ग के दृश्य - हम सभी अपनी-अपनी सीटों पर बैठ चुके थे। डिब्बे में इधर-उधर निगाह घुमायी तो देखा कि कुछ लोग बैठे हुए ताश खेल रहे हैं, तो कोई उपन्यास पढ़कर मन बहला रहा है। कुछ लोग बैठे हुए ऊँघ रहे थे। मैं भी अपने साथियों के साथ गपशप कर रहा था। खिड़की से बाहर झाँकने पर मुझे पेड़-पौधे तथा खेत-खलिहान पीछे की ओर दौड़ते नजर आ रहे थे। सभी दृश्य बड़ी तेजी से पीछे छूटते जा रहे थे। गाड़ी छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती हुई अपने गन्तव्य की ओर निरन्तर बढ़ती ही जा रही थी। हमने कुछ समय ताश खेलकर बिताया। साथ लाये भोजन और फल मिल-बाँटकर खाते-पीते हम सब यात्रा का पूरा आनन्द ले रहे थे।

एक स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही अचानक कानों में आवाज पड़ी कि 'पेठा, आगरे का मशहूर पेठा'। हम सब अपना-अपना सामान सँभालते हुए नीचे उतरे।

वांछित स्थान पर पहुँचना और वहाँ के दर्शनीय स्थलों का वर्णन -हम सभी साथी एक धर्मशाला में जाकर ठहर गये। धर्मशाला में पहुँचकर हमने मुँह-हाथ धोकर अपने को तरोताजा किया। शाम के सात बज चुके थे। इसलिए हम लोग शीघ्र ही भोजन करके धर्मशाला के आस-पास ही घूमने के लिए निकल गये। दिन 11.00 बजे दिन में हम लोग सिटी बस द्वारा ताज देखने के लिए चल दिये। भारत के गौरव और संसार के गिने-चुने आश्चयों में से एक ताजमहल के अनूठे को देखकर हम सभी स्तम्भित रह गये। श्वेत संगमरमर पत्थरों से निर्मित ताज दिन में भी शीतल की वर्षा करता प्रतीत हो रहा था। ताजमहल का निर्माण मुगल सम्राट् ने अपनी बेगम महल की स्मृति में कराया था। यह एक सफेद संगमरमर के ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है। 

इस चबूतरे के चारों कोनों पर चार मीनारें बनी हुई हैं। मुख्य इमारत इस चबूतरे के बीचों-बीच बनी हुई है। इमारत के ऊपरी भाग में चारों ओर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं। इस इमारत के चारों ओर सुन्दर बगीचे बने हुए हैं, जो इसके सौन्दर्य में चार चाँद लगा रहे हैं। वास्तव में यह भारतीय और यूनानी शैली में बनी अद्वितीय और अनुपम इमारत है, जिसे देखने के लिए दुनिया के विभिन्न भागों से प्रति वर्ष लाखों व्यक्ति आते हैं।

दूसरे दिन हमने आगरे का लाल किला तथा दयाल बाग देखने का कार्यक्रम बनाया। इन भवनों के अपूर्व सौन्दर्य ने हम सबका मन मोह लिया। आगरे का लाल किला सम्राट् अकबर द्वारा बनवाया गया है। इस विशाल किले को देखने के लिए वैसे तो कई दिन भी कम हैं, किन्तु हम लोगों ने जल्दी-जल्दी इसके तमाम महत्त्वपूर्ण स्थलों को देखा। यहीं से हम लोग बस द्वारा दयाल बाग पहुँच गये। यहाँ पर राधास्वामी मत वाले एक इमारत का निर्माण पिछले कई वर्षों से करवा रहे हैं, पर अभी भी यह अधूरी ही है। इस इमारत की भव्यता और सौन्दर्य को देखकर यह कहा जा सकता है कि जिस समय यह पूर्ण होगी, निश्चित ही स्थापत्य कला का एक अनुपम उदाहरण होगी।

वापसी —आगरा की आकर्षक और सजीव स्मृतियों को मन में सँजोये, पेठे और नमकीन की खरीदारी कर तथा काँच के चौकोर बक्से में बन्द ताज की अनुकृति लिये हुए हम लोग वापस लौटे। इस प्रकार हमारी यह रोचक यात्रा सम्पन्न हुई।

उपसंहार —घर लौट आने पर मैं प्रायः सोचता कि कूप-मण्डूकता के विनाश के लिए समय-समय पर प्रत्येक व्यक्ति को विविध स्थलों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए; क्योंकि इससे कल्पना और यथार्थ का भेद समाप्त होता है और जीवन की वास्तविकता से साक्षात्कार भी होता है। आगरा की यात्रा ने मुझे ढेर सारे नवीन अनुभवों तथा प्रत्यक्ष ज्ञान से साक्षात्कार कराया है।

👉 शाहबाद शरीफ का जीवन परिचय

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यात्रा वृत्त और यात्रा वृत्तान्तकार – लेखक और रचनाएँ, हिन्दी.

YATRA VRITANT AUR YATRA VRITANT KAR - HINDI

हिन्दी के यात्रा-वृत्तान्त और यात्रा-वृत्तान्तकार

हिन्दी का पहला यात्रा-वृत्त “सरयू पार की यात्रा” है, जिसका का रचनाकाल 1871 ई. है और इसके रचनाकार या लेखक “ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ” हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की क्रिया यात्रा कहलाती है और जिस रचना में इस यात्रा का वर्णन किया जाता है उसे यात्रा वृत्त कहते हैं।

हिन्दी के यात्रा-वृत्तान्त और यात्रा-वृत्तान्तकार के लेखकों और उनकी रचनाओं की सूची निम्नलिखित है-

  • यात्रा-वृत्तान्त और यात्रा वृत्तान्तकार

महत्वपूर्ण विधाओं के रचनाकार और रचनाएँ (लेखक और रचनाएँ)

उपन्यास-उपन्यासकार , कहानी-कहानीकार , नाटक-नाटककार , एकांकी-एकांकीकार , आलोचना-आलोचक , निबंध-निबंधकार , आत्मकथा-आत्मकथाकार , जीवनी-जीवनीकार , संस्मरण-संस्मरणकार , रेखाचित्र-रेखाचित्रकार , यात्राव्रतांत-यात्राव्रतांतकार , रिपोर्ताज-रचनाकार

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वाराणसी पर निबंध (Varanasi Essay in Hindi)

वाराणसी भारत का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। यह नगरी कवि, लेखक, भारतीय दार्शनिक तथा संगीतकारों आदि की जननी के रूप में भी जानी जाती है। धर्म शिक्षा तथा संगीत का केंद्र होने के कारण यह नगरी आगंतुकों को एक अति मनमोहनीय अनुभव प्रदान करती है, पत्थरो के ऊँची सीढ़ियों से घाटों का नजारा, मंदिर के घंटों  निकलती ध्वनि, गंगा घाट पर चमकती वो सूरज की किरणे तथा मंदिरों में होने वाले मंत्रों उच्चारण इंसान को न चाहते हुए भी भक्ति के सागर में गोते लगाने को मजबुर कर देते हैं। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार वाराणसी की भूमी पर मरने वाले लोगों को जन्म मरण के बंधन से छुटकारा मिल जाता है, लोगों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। असल में वाराणसी कला और शिल्प का केंद्र होने के साथ साथ एक ऐसा स्थान भी है जहाँ मन को शांती तथा परम आनंद की अनुभूति भी होती है।

वाराणसी पर 10 वाक्य

वाराणसी पर छोटे एवं बड़े निबंध (Short and Long Essays on Varanasi in Hindi, Varanasi par Nibandh Hindi mein)

मित्रों आज मैं निबंध के माध्यम से आप लोगों को वाराणसी के बारे में कुछ जानकारिया दुंगा, मुझे उम्मीद है कि इस माध्यम द्वारा साझा की गई जानकारियां आप सभी के लिए उपयोगी होंगी तथा आपके स्कूल आदि कार्यों में भी आपकी मदद करेंगी।

वाराणसी पर छोटा निबंध – 300 शब्द

संसार के प्राचीनतम शहरों में से एक वाराणसी भारत के हिंदूओं का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है, उत्तर प्रदेश में बसने वाला यह शहर काशी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म के अलावा जैन तथा बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी यह एक पवित्र स्थल है। गंगा नदी के किनारे बसी इस नगरी पर गंगा संस्कृति तथा काशी विश्वनाथ मंदिर का भी रंग चढ़ा हुआ दिखता  है। ये शहर सैकड़ो वर्षों से भारतीय संस्कृति को संजो कर उत्तर भारत का प्रमुख धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्र बना हुआ है।

वाराणसी की स्थिति

गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर, उत्तर प्रदेश राज्य के दक्षिण-पूर्व में 200 मील (320 किलोमीटर) के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह शहर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 320 किलोमीटर तथा भारत की राजधानी से लगभग 900 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।  

वाराणसी कॉरिडोर

13 दिसम्बर साल 2021 को पीएम मोदी ने वाराणसी में वाराणसी कॉरिडोर का उद्घाटन किया जिसने काशी की सुंदरता तथा प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। पीएम ने इस कॉरिडोर की नीव 8 मार्च साल 2019 में यहाँ की सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित रखने तथा भक्तों को उचित सुविधा प्रदान करने दृष्टि से रखा था। इस परियोजना में लगभग 700 करोड़ रुपये का खर्च आया है। वैसै तो अपने धार्मिक महत्व के कारण वाराणसी हमेशा वैश्विक पटल पर चर्चा में रहता है, मगर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर नें काशी को तमाम चर्चाओं के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया था। इस कॉरिडोर के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें बाबा काशी विश्वनाथ कें मंदिर परिसर को एकभव्य रूप प्रदान किया है, 30000 वर्ग फुट के क्षेत्रपल में फैले बाबा विश्वनाथ के प्रागंण को मोदी जी ने 5 लाख वर्ग फुट के प्रांगण का तोहफा दे दिया है। इस कॉरिडोर क द्वारा माँ गंगा को सीधे बाबा विश्वनाथ से जोड़ दिया गया है।

वाराणसी एक प्राचीन पवित्र शहर है माँ गंगा जिसका अभिषेक करती है, यह भारत के प्राचीन धार्मिक केंद्रों में से एक है, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी में भी विराजमान है। मंदिरों के शहर के नाम से प्रसिद्ध बाबा विश्वनाथ का यह धाम जैन तथा बौद्ध धर्म का भी प्रमुख केंद्र है। पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाला यह शहर भारत के प्रमुख पर्यटन केंद्रों में से भी एक है। वाराणसी अपनी रेशमी कारोबार के लिए भी दुनिया में जाना जाने वाला एक प्रसिद्ध शहर है।

वाराणसी पर बड़ा निबंध – 600 शब्द

काशी हिंदू धर्म के 7 पवित्र शहरो में से एक है, वाराणसी मूल रूप से घाटों मंदिरों तथा संगीत के लिए जाना जाता है। काशी का एक नाम वाराणसी भी है जो यहां की दो नदियों वरुणा तथा असी के नाम पर है, ये नदियां क्रमशः उत्तर एवं दक्षिण से आकर गंगा नदी में मिलती है। ऋग्वेद में इस शहर को काशी के नाम से संबोधित किया गया है।

वाराणसी के अन्य नाम

इस ऐतिहासिक धार्मिक नगरी को वाराणसी तथा काशी के अलावा अन्य नामों से भी जाना जाता है जिसमें से कुछ निम्नलिखित है-

  • मंदिरो को शहर
  • भारत की धार्मिक राजधानी
  • भगवान शिव की नगरी
  • दीपों का शहर
  • ज्ञान की नगरी
  • ब्रह्मा वर्धा
  • सुदर्शन आदि

वाराणसी की मशहूर चीजे

दोस्तों अगर आप बनारस घुमने गए और वहाँ शॉपिंग नहीं की, वहां के फूड नहीं खाए तो यकिन मानिए आपकी यात्रा अधूरी रह गई। बनारस जितना अपने धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है उतना ही प्रसिद्ध वह अपने मार्केट में बिकने वाली चीजों के लिए भी है। बनारस के बाजारों के कुछ विश्व प्रसिद्ध चीजों को हम नीचे सुची बद्ध कर रहे है आप जब कभी भी वाराणसी जाइएगा इनको लेना और चखना न भूलिएगा।

  • बनारसी रेशमी साड़ी
  • बनारसी ठंडई
  • नायाब लस्सी
  • कचौड़ी और जलेबी
  • बाटी चोखा आदि

वाराणसी का इतिहास

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर ने काशी नगरी कि स्थापना आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व की थी, भगवान शिव द्वारा इस नगरी का निर्माण होने के कारण इसे शिव की नगरी के नाम से भी जाना जाता है तथा आज यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, ये हिंदू धर्म की प्रमुख सात पुरियों में से एक है। सामान्यतः देखा जाए तो वाराणसी नगर का विकास 3000 साल पुराना लगता है मगर हिंदू परम्पराओं के अनुसार इसे और भी प्राचीन शहर माना जाता है।

महात्मा बुद्ध के समय में बनारस काशी राज्य की राजधानी हुआ करती थी, यह नगर रेशमी कपड़े, हाथी दांत, मलमल, तथा इत्र एवं शिल्प कला का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था।

वाराणसी के प्रमुख मंदिर

काशी या वाराणसी एक ऐसा धार्मिक शहर है जिसे मंदिरों के नगर के नाम से भी जाना जाता है, यहां लगभग हर गली के चौराहे पर एक मंदिर तो मिल ही जाता है। यहां लगभग कुल छोटे बड़े मंदिरों को मिलाकर 2300 के आस पास मंदिर स्थित है। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिर निम्लिखित है-

1) काशी विश्वनाथ मंदिर

इसे स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, इसके वर्तमान स्वरूप का निर्माण अहिल्या बाई होल्कर द्वारा 1780 में करवाया गया था। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक इसी मंदिर में विराजमान है।

 2) दुर्गा माता मंदिर

इस मंदिर के आस पास बंदरों की अधिक उपस्थिति के कारण इसे मंकी टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है, इस मंदिर का निर्माण 18 वीं सदी के आसपास का माना जाता है। वर्तमान में ऐसी मान्याता है कि माँ दुर्गा इस मंदिर में स्वयं से प्रकट हुई थी। इस मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ था।

3) संकट मोचन मदिर

प्रभु श्री राम के भक्त हनुमान को समर्पित यह मंदिर स्थानीय लोगों में बहुत ही लोकप्रिय है, यहां अनेक प्रकार के धार्मिक तथा संस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन वार्षिक रूप में किया जाता है। 7 मार्च 2006 को इसी मंदिर परिसर में आतंकवादियों द्वारा तीन विस्फोट किया गया था।

4) व्यास मंदिर

रामनगर में स्थित इस मंदिर के पीछे एक दंत कथा है। एक बार व्यास जी को इस नगर में घुमते घुमते काफी समय हो गया मगर उनको कहीं भी किसी भी प्रकार का दान दक्षिणा नहीं मिला, इस बात से कृद्ध ब्यास जी पूरे नगर को श्राप देने जा रहे थे, तभी भगवान शिव तथा पार्वती माता ने एक दम्पत्ति के वेष में आकर उनको खुब दान दिया तब ब्यास जी श्राप की बात भुल गए। इसके बाद भगवान शिव ने ब्यास जी का इस नहरी में प्रवेश वर्जित कर दिया, इस बात के समाधान के लिए ब्यास जी ने गंगा के दूसरी ओर वास किया जहां रामनगर में अभी भी उनका मंदिर है।

5) मणि मंदिर

करपात्री महाराज की तपोस्थली धर्मसंघ परिसर में स्थित मणि मंदिर 28 फरवरी 1940 को श्रद्धालुओं को समर्पित किया गया था। शैव तथा वैष्णव की एकता का प्रतीक यह मंदिर सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला रहता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह कि यहां 151 नर्मदेश्वर शिवलिंगों की कतार है।

काशी विश्नाथ मंदिर का इतिहास

भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर में स्थित बाबा भोलेनाथ का यह भव्य मंदिर हिंदू धर्म के अति प्राचीन मंदिरों में एक है। गंगा नदी के पश्चिमी घाट पर बसे इस नगर को हिंदू धर्म के लोग मोक्ष का द्वार मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान भगवान शिव तथा आदि शक्ति माता पार्वती का आदि स्थान है।

इस मंदिर का राजा हरिश्चंद्र ने 11 वीं सदी में जिर्णोद्धार करवाया था उसके बाद मुहम्मद गोरी ने इसे सन 1194 में तुड़वा दिया था। इसके बाद इसे एक बार फिर बनवाया गया मगर पुनः जौनपुर के सुल्तान महमुद शाह ने इसे 1447 में तुड़वा दिया। फिर पंडित नारायण भट्ट ने इसे टोडरमल की सहायता से साल 1585 में बनवाया, फिर शाहजहां ने इसे 1632 में तुड़वाने के लिए सेना भेज दी मगर हिंदूओं के कड़े प्रतिरोध के कारण वो इस कार्य में सफल नहीं हो पाया। इसके उपरान्त औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 में ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने तथा मंदिर को तुड़वाने का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद के समय में मंदिर पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का अधिकार हो गया, तब कंम्पनी ने मंदिर के निर्माण कार्य को रोक दिया। फिर एक लम्बे समय बाद सन 1780 में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनरोद्धार करवाया गया।

वाराणसी के अन्य ऐतिहासिक स्थल

  • बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
  • महात्मा काशी विद्यापीठ
  • संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय
  • सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज
  • हिंदू धर्म स्थल
  • बौद्ध धर्म स्थल
  • जैन धर्म स्थल
  • संत रविदास मंदिर तथा अन्य

काशी में गंगा घाटों की संख्या

गंगा नदी के किनारे बसे इस वाराणसी शहर में लगभग 100 के आस पास घाटों की कुल संख्या है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित है-

  • प्रह्मलाद घाट
  • भैंसासुर घाट
  • पाण्डेय घाट
  • दिगपतिया घाट
  • चौसट्टी घाट
  • राणा महल घाट
  • गंगामहल घाट
  • माता आनंदमयी घाट
  • चेतसिंह घाट
  • निरंजनी घाट
  • निर्वाणी घाट
  • गुलरिया घाट
  • प्राचीन हनुमान घाट
  • क्षेमेश्वर घाट
  • मानसरोवर घाट
  • गंगा महल घाट
  • हरिश्चंद्र घाट
  • विजयानरम् घाट
  • अहिल्याबाई घाट
  • दशाश्वमेघ घाट
  • राजेन्द्र प्रसाद घाट
  • मानमंदिर घाट
  • ग्वालियर घाट
  • पंचगंगा घाट
  • ब्रह्मा घाट
  • बूँदी परकोटा घाट
  • बद्री नारायण घाट
  • त्रिलोचन घाट
  • त्रिपुरा भैरवी घाट
  • मणिकर्णिका घाट
  • सिंधिया घाट
  • नंदेश्वर घाट
  • तेलियानाला घाट
  • आदिकेशव या वरुणा संगम घाट, इत्यादि

वाराणसी की विभूतियां

वाराणसी की इस पावन नगरी ने समय पर अनेक विभूतियों को अपनी कोख से जना है और भारत माता के सेवा में अर्पित किया है, उनमें से कुछ मुख्य विभूतियों के नाम निम्नलिखित है-

  • मदन मोहन मालवीय (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक)
  • जय शंकर प्रसाद (हिंदी साहित्यकार)
  • प्रेमचंद  (हिंदी साहित्यकार)
  • लाल बहादुर शास्त्री  (भारत के पूर्व प्रधान मंत्री)
  • कृष्ण महाराज (पद्म विभूषण प्राप्त तबला वादक)
  • रवि शंकर (भारत रत्न प्राप्त सितारवादक)
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र  (हिंदी साहित्यकार)
  • बिस्मिल्लाह खां (भारत रत्न प्राप्त शहनाईवादक)
  • नैना देवी (खयाल गायिका) 
  • भगवान दास ( भारत रत्न)
  • सिद्धेश्वरी देवी ( खयालगायिका)
  • विकाश महाराज (सरोद के महारथी)
  • समता प्रसाद (गुदई महाराज) [पद्मश्री प्राप्त तबला वादक] , इत्यादि

बनारस में परिवहन के साधन

वाराणसी एक ऐसा शहर है जो बड़े तथा मुख्य शहरों (जैसे- जयपुर, मुंबई, कोलकाता, पुणे, ग्वालियर, अहमदाबाद, इंदौर, चेन्नई, भोपाल, जबलपुर, उज्जैन और नई दिल्ली आदि) से वायु मार्ग, रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग से भलिभांति जुड़ा हुआ है।

  • वायु परिवहन

वाराणसी से लगभग 25 किलोमीटर दूर बाबतपुर में एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा) है, जो देश के बड़े शहरों के साथ साथ विदेशों को भी वाराणसी से जोड़ता है।

बनारस में उत्तर रेलवे के अधीन वाराणसी जंक्शन तथा पूर्व मध्य रेलवे के आधीन दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन तथा सीटी के मध्य में बनारस रेलवे स्टेशन (मंडुआडीह रेलवे स्टेशन) स्थित है जिनके माध्यम से वाराणसी पूरे भारत से रेलवे मार्ग से जुड़ा हुआ है।

  • सड़क परिवहन

दिल्ली कोलकाता मार्ग (NH2) वाराणसी नगर से होकर निकलता है। इसके अलावा भारत का सबसे लम्बा राजमार्ग एन.एच-7 वाराणसी को जबलपुर, नागपुर, हैदराबाद, बंगलुरु, मदुरई तथा कन्याकुमारी से जोड़ता है।

  • सार्वजनिक यातायात

वाराणसी की सड़को पर भ्रमण करने के लिए ऑटो रिक्शा, साइकिल रिक्शा, तथा मिनी बस आदि सुविधाएं उपलब्ध रहती है तथा माँ गंगा की शीतल धारा का लुफ्त उठाने के लिए छोटी नावों एवं स्टीमर का प्रयोग किया जाता है।

बनारस के व्यापार एवं उद्योग

काशी एक महत्वपूर्ण अद्यौगिक केंद्र भी है यहां के निवासी तमाम प्रकार के अलग अलग काम धंधों में निपुण है जिनमें से कुछ निम्नलिखित है-

  • वाराणसी मुस्लिन(मलमल)
  • रेशम के कपड़े
  • बनारसी इत्र
  • हाथी दांत का कार्य
  • सिल्क और ब्रोकैड्स
  • सोने और चाँदी के थ्रेडवर्क
  • जरी की कारीगरी
  • कालीन बुनाई, रेशम बुनाई
  • कालिन शिल्प एवं पर्यटन
  • बनारस रेल इंजन कारखाना
  • भारत हेवी इलेक्ट्रिक्ल्स, इत्यादि

उपरोक्त बातें ये स्पष्ट कर देती है कि प्राचीन काल के बनारस और आज के बनारस में ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है। आज भी लोग इसे बाबा विश्वनाथ की नगरी के नाम से जानते हैं, आज भी शाम और सुबह मंदिरों में तथा गंगा घाटों पर आरती एवं पूजन अर्चन का कार्य किया जाता है। बनारस की ख्याति पहले के अपेक्षा बढ़ती ही जा रही है, इसके सम्मान स्वाभिमान तथा अस्तित्व पर आज तक श्रद्धालुओं ने कोई आंच नहीं आने दिया। वाराणसी किसी एक धर्म का स्थल नहीं है बल्कि यह तमामा धर्मों का संगम स्थल है जैन, बौद्ध, हिंदु, सिक्ख, ईसाई तथा संत रविदास से लेकर लगभग सभी बड़े धर्मों के तीर्थ स्थल यहाँ मौजूद। हमारा बनारस अनेकता में एकता का एक सच्चा उदाहरण है। देश के प्रधानमंत्री का बनारस से सांसद होना तथा यहां वाराणसी कॉरिडोर की स्थापना कराना इसके चमक में एक चाँद और जोड़ देता है।

मैं आशा करता हूँ कि वाराणसी पर यह निबंध आप को पसंद आया होगा तथा यह आपके स्कूल एवं कॉलेज के दृष्टि से भी आपको महत्वपूर्ण लगा होगा।

वाराणसी पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions on Varanasi)

उत्तर- वाराणसी उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है।

उत्तर- 24 मई 1956 को अधिकारिक तौर पर काशी का नाम वाराणसी कर दिया गया।

उत्तर- काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन पीएम मोदी द्वारा 13 दिसम्बर साल 2021 में किया गया।

उत्तर- वाराणसी में कुल लगभग 2300 मंदिर स्थित है।

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Hindi Essay on “Meri Yadgar Yatra ”, “मेरी अविस्मरणीय यात्रा”, Hindi Essay for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

मेरी अविस्मरणीय यात्रा

Meri Yadgar Yatra 

हमारे जीवन में कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो बहुत समय तक हमारे मन से नहीं उतरते। ऐसे अनुभव अत्यंत रोमांचक होते हैं।

हमारे विद्यालय द्वारा आयोजित जयपुर की नखराली ढानी की एक छोटी-सी यात्रा मैं भूल नहीं पाता। दो दिन की इस यात्रा के सभी अनुभव मुझे सचित्र याद हैं। यह मेरी अपने माता-पिता से अलग पहली यात्रा थी।

यात्रा से एक रात पहले मैं उत्साहवश सो भी नहीं पाया। यात्रा के पहले दिन हम सुबह पाँच बजे विद्यालय पहुँचे और फिर बसों में बैठ जयपुर की ओर निकले। छह घंटे की इस बस यात्रा में हमने गाते-बजाते खूब मजे किए।

दोपहर में हम अपने गंतव्य पर पहुँचे । नखराली ढानी राजस्थान का सच्चा प्रतीक थी। रंग, सजावट और सत्कार में राजसी आन-बान थी। दीवारों, दरवाजों और कमरों के रंग-रूप और चित्रकारी में राजस्थानी गांव का पुन: निर्माण था। चारपाइयों पर सोने का अपना ही रोमांच था। भोजन के पश्चात् हमने आराम किया।

सायंकाल ढानी के मेले में हमने खरीदारी, ऊँट की सवारी और देसी घी के राजस्थानी भोज का आनंद लिया। कालबेलिया नृत्य और एकतारे के सुरों से वातावरण पूँज रहा था। 

अगले दिन नाश्ते के बाद हमने कठपुतली नृत्य देखा और खूब तस्वीरें खींचीं। इस यात्रा के बाद मुझमें स्वावलंबन की भावना जागी तथा आत्मबल भी बढ़ा।

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yatra vritant essay in hindi

रेल यात्रा पर निबंध – Essay on Rail Yatra in Hindi

Essay on Rail Yatra in Hindi

यात्रा करने का एक अलग आनंद होता है। यात्रा करना ज्यादातर लोगों को पसंद होता है, क्योंकि यात्रा करने से न सिर्फ घर से बाहर निकलकर थोड़ा मूड फ्रेश होता है, बल्कि बाहर की दुनिया को भी समझने का मौका मिलता है एवं दुनिया की खूबसूरती से रूबरू होने का मौका मिलता है।

वहीं अगर यात्रा ट्रेन से की जाए तो इसका रोमांच दो गुना हो जाता है, हर किसी की रेल यात्रा का एक अलग अनुभव होता है। वहीं कई बार स्कूलों में आयोजित परीक्षाओं में विद्यार्थियों से रेल यात्रा के विषय पर निबंध – Essay on Rail Yatra लिखने के लिए कहा जाता है, इसलिए आज हम आपको इस विषय पर अलग-अलग शब्द सीमा के अंदर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जो कि इस प्रकार है –

Essay on Rail Yatra

रेल से यात्रा करने का मजा ही कुछ और होता है, खासकर जब लंबे सफर की यात्रा तय करना हो तो भला किफायती दामों में और अच्छी सुविधाओं के साथ रेल यात्रा से अच्छा विकल्प कुछ और नहीं है, क्योंकि इसमें खान-पान, चलने-फिरने और बैठने, लेटने की व्यवस्था के साथ टॉयलेट आदि की सुविधा भी होती है, इसलिए ट्रेन का सफर बच्चों से लेकर सीनियर सिटीजन सभी के लिए आरामदायक होता है।

मेरी रेल यात्रा की शुरुआत और ट्रेन की सुखद सुविधाएं:

मै रमण शाह अपनी पहली रेल यात्रा के बारे में बखान कर रहा हूं, मैं कक्षा नौ का छात्र हूं, अभी तक मैने कई बार ट्रेन से सफर किया है, लेकिन मेरे सबसे यादगार रेल यात्रा मेरे घर चंडीगढ़ से मुंबई जाने की रही है। यह यात्रा मेरे अभी तक की यात्राओं में बेस्ट रही और सबसे ज्यादा मनोरंजक भी।

जब मै क्लास 7th में था, तब मै अपने माता-पिता के साथ मुंबई घूमने के लिए ट्रेन से गया। मुंबई घूमने के लिए मै पहले ही बड़ा उत्साहित था, वहीं जब मुझे पता चला कि ट्रेन से जाना है तो मै हर रोज अपनी यात्रा के दिन का इंतजार करने लगा और मन ही मन बहुत खुश था।

मेरे पिता ने इस यात्रा के लिए पहले से ही केरला संपर्क क्रांन्ति ट्रेन के AC 3rd Class में टिकट बुक करा लिया था और इस यात्रा के लिए मेरी मम्मी ने सभी सामान की पैंकिंग कर ली थी, इसके अलवा मेरी मम्मी ने ट्रेन में खाने के लिए भी बहुत सारा सामान रखा था।

मेरी सुबह की ट्रेन थी, मै फटाफट तैयार हुआ और अपनी माता-पिता और छोटी बहन के साथ टैक्सी से रेलवे स्टेशन पहुंचा। इसके बाद हम प्लेटफॉर्म पर पहुंचे, जहां बहुत भीड़ थी सभी अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहे थे।

इसके करीब 20 मिनट बाद जब मेरी ट्रेन आई तो मै अपने परिवार के साथ ट्रेन में बैठ गया और अपनी सीट के नीचे अपना सामान रखा। इस ट्रेन के AC3rd tier में बैठने पर मुझे बेहद मजा आ रहा था, घर के कमरे जैसा रेल का डिब्बा था, जिसमें खाने-पीने, उठने -बैठने, सोने के लिए बिस्तर एवं टॉयलेट की उचित व्यवस्था थी, जिसे देखकर मुझे बेहद अच्छा लग रहा था।

ट्रेन में लिया मनोरम, प्राकृतिक सुंदर दृश्यों का अनुभव:

ट्रेन में बैठने के बाद हमारी ट्रेन ने जब रफ्तार पकड़ी तब मै अपनी ट्रेन की खिड़की से बाहर की तरफ देख रहा था, सुंदर पहाड़ो, खेत-खलियान, बाग-बगीचे समेत चारों तरफ हरियाली का दृष्य अति सुंदर और मनोरम लग रहा था।

इसके साथ ही मै म्यूजिक भी सुन रहा था, जिससे मेरा सफर और ज्यादा रोचक होता जा रहा था, फिर थोड़ी देर बात जब हमारी ट्रेन आगे बढ़ी तब मम्मी ने खाना निकाला, हम सभी ने ट्रेन में खाना खाया, जिसमें मुझे काफी आनंद आ रहा था।

खाना-खाने के थोड़ी ही देर बार मुझे नींद आने लगी, फिर मैंने अपनी लोअर बर्थ पर ट्रेन से मिला हुआ साफ चादर बिछाया और करीब 2 घंटे के बाद उठा।

मेरी ट्रेन यात्रा में मिला मेरा सबसे अच्छा दोस्त:

इसके बाद मुझे चॉकलेट खाने का मन हुआ, और मैने देखा कि मेरी सीट के सामने मेरी ही उम्र का एक लड़का बैठा हुआ था, जो मुझसे बात करना चाहता था, जिसके बाद मैने उसे अपनी चॉकलेट ऑफर की।

पहले तो उसने मना कर दिया, फिर जब उसके मम्मी-पापा ने लेने के लिए कहा तो फिर उसने ले ली और मुझे धन्यवाद कहा। फिर धीरे-धीरे मेरी उससे बात होने लगी और मानो हम ऐसे बात कर रहे थे जैसे कि मै उसे बहुत दिनों से जानता हूं। उसका साथ मेरा सफर कब कट गया पता ही नहीं चला अब मेरी ट्रेन मुंबई स्टेशन पर पहुंच चुकी थी।

मेरी यह ट्रेन यात्रा मेरी सबसे यादगार एवं सुखद यात्रा रही जिसमें न सिर्फ मुझे सबसे अच्छा मित्र मिला, बल्कि मैने ट्रेन की सभी आधुनिक सुविधाओं का लुफ्त उठाया, और प्राकृतिक खूबसूरती का भी भरपूर आनंद लिया।

रेल यात्रा पर निबंध – Rail Yatra Par Nibandh

हर कोई अपनी व्यस्त जिंदगी में थोड़ा सा वक्त खुद के लिए निकालना चाहता है, तो ऐसे में घूमना एवं यात्रा करना हर किसी को लुभाता है, क्योंकि इससे न सिर्फ प्रकृति के करीब आने का मौका मिलता है, बल्कि मन शांत होता है और खुशी मिलती है इसके साथ ही दैनिक जिंदगी में थोड़ा सा बदलाव भी आता है। वहीं सभी सुविधाओं से परिपूर्ण रेल यात्रा, सफर के रोमांच को दोगुना कर देती है।

मेरी पहली रेल यात्रा – Meri Paheli Rail Yatra

मेरी पहली रेल यात्रा मेरी सबसे खूबसूरत अनुभवों में से एक हैं क्योंकि इस यात्रा में मैने एक ऐसा उदार दृश्य देखा, जिससे मुझे अपने अंदर मानवीय गुणों को विकसित करने में मद्द मिली और मेरे अंदर परोपरकार की भावना जागृत हुई।

जब मैं क्लास 9th में पढ़ता था, उस समय मेरे घर वालों ने रेल यात्रा के माध्यम से शिमला घूमने जाने के प्लान के बारे में मुझे बताया, जिसे सुनकर मैं बहुत खुश हुआ और इससे पहले मैंने कभी ट्रेन से यात्रा भी नहीं की थी तो मैं अपने पहली रेल यात्रा को लेकर बेहद उत्साहित भी था, मेरी खुशी मेरे चेहरे पर साफ झलक रही थी।

मेरी रात की ट्रेन थी, मै इतना उत्साहित था कि पूरा दिन का इंतजार करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था, मेरी नजर घड़ी की सुई पर अटकी हुई थी, वहीं जैसे ही शाम के 7 बजे मेरे पिता जी ने टैक्सी मंगवाई और हम सब ट्रेन आने के 1 घंटा पहले ही रेलवे स्टेशन पहुंच गए और फिर अपनी ट्रेन आने का इंतजार करने लगे।

मेरे पिता जी ने सीट पहले से ही AC कोच में रिजर्व करवा ली थी, वहीं जब ट्रेन आई तो मुझे आसानी से सीट मिल गई, और मैने अपने परिवार वालों के साथ अपना सामान शिफ्ट किया, ट्रेन पर बैठकर मुझे ऐसा लग रहा था कि मानों मुझे घर में कोई सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण कमरा दे दिया गया है जिसे देखकर मै बहुत खुश था।

थोड़े ही देर बाद ट्रेन ने अपनी रफ्तार पकड़ ली और ट्रेन दूसरे स्टेशन पर पहुंची जिसके बाद मैने ट्रेन में स्वादिष्ट भोजन का लुफ्त उठाया फिर मै ट्रेन का खिड़की में बैठकर म्यूजिक सुनने लगा, और बाहर की सुंदरता का अनुभव लेने लगा।

फिर मेरी ट्रेन जब दूसरे स्टेशन पर पहुंची तो मैने देखा एक बुजुर्ग दंपति ट्रेन पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, तभी एक बुजुर्ग अंकल का पैर फिसल गया और यह देखकर मेरे सामने वाली सीट पर बैठा शख्स जल्दी से उठा और उनको ट्रेन में चढा़ने में न सिर्फ उनकी मद्द की बल्कि उनके सामान को शिफ्ट किया और उन्हें सीट पर सही तरीके से बिठाया।

इसके साथ ही ट्रेन में दिए हेल्पलाइन नंबर के माध्यम से उस शख्स ने डॉक्टर को भी कॉल किया जिसके बाद बुजुर्ग अंकल को तुरंत ट्रीटमेंट दिया गया, जिसे देखकर मुझे अच्छा लगा साथ ही परोपकार करने की सीख भी मिली।

इस तरह मेरी पहली ट्रेन यात्रा से मैने मानवीयता की शिक्षा ली और सुखद यात्रा का अनुभव किया।

  • Essay in Hindi

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1 thought on “रेल यात्रा पर निबंध – Essay on Rail Yatra in Hindi”

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It is showing the true relation between the essay and the topic. I think it is very useful and calming the mind type essay for all people who read it.

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दा इंडियन वायर

रथ यात्रा पर निबंध

yatra vritant essay in hindi

By विकास सिंह

rath yatra essay in hindi

रथ यात्रा त्यौहार को रथ के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है, दशावतार यात्रा, गुंडिचा जात्रा, नवादिना यात्रा और घोसा यात्रा जो भारत में हर साल लोगों द्वारा बहुत उत्साह, खुशी और खुशी के साथ मनाई जाती है। यह त्योहार पूरी तरह से हिंदू भगवान, भगवान जगन्नाथ को समर्पित है और विशेष रूप से भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी में मनाया जाता है।

विषय-सूचि

रथ यात्रा पर निबंध (rath yatra essay in hindi)

पूरी रथ यात्रा प्रक्रिया में हिंदू देवताओं भगवान पुरी जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के गुंडिचा माता मंदिर के पवित्र जुलूस शामिल होते हैं। नौ दिनों के बाद लोग रथ यात्रा के साथ हिंदू देवताओं को उसी स्थान पर लाते हैं जिसका अर्थ है पुरी जगन्नाथ मंदिर। पुरी जगन्नाथ मंदिर में रथ यात्रा की वापसी प्रक्रिया को बहुदा यात्रा कहा जाता है।

रथयात्रा उत्सव का इतिहास:

भारत के उड़ीसा राज्य में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन हर साल रथ यात्रा उत्सव मनाया जाता है, जो पुरी जगन्नाथ मंदिर से गौंडी माता मंदिर के रास्ते भगवान जगन्नाथ रथों का जुलूस निकालने के लिए होता है। हिंदू भगवान और देवी की प्रतिमा वाले रथों को आकर्षक रूप से रंगीन फूलों से सजाया गया है। प्रसाद पूरा करने के लिए कुछ समय के लिए मौसी मां मंदिर में जुलूस निकलता है।

पवित्र जुलूस में अत्यधिक सजाए गए तीन रथ (भगवान पुरी जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के लिए) मंदिर से काफी मिलते-जुलते हैं, जो पुरी की सड़कों पर बिजली की व्यवस्था या भक्तों द्वारा खींचे जाते हैं। यह त्योहार भगवान पुरी जगन्नाथ, भगवान बलभद्र की अपनी बहन सुभद्रा सहित अपनी चाची के घर यानी गुंडिचा माता मंदिर की यात्रा को पूरा करने के लिए मनाया जाता है।

यह त्योहार दुनिया भर से भक्तों की भारी भीड़ को आकर्षित करता है और भगवान की पवित्र जुलूस में भाग लेने के साथ-साथ उनकी हार्दिक इच्छाओं को पूरा करता है। रथ को खींचने वाले रथ में शामिल लोग ड्रम की आवाज के साथ भक्ति गीत, मंत्र गाते हैं।

रथयात्रा उत्सव का प्रतीक:

यात्रा हिंदू धर्म में पूजा का सबसे प्रसिद्ध और अनुष्ठान हिस्सा है। यह दो प्रकार का हो सकता है, एक मंदिर के चारों ओर भक्तों द्वारा बनाई गई यात्रा है और दूसरा एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक सजे हुए रथ में हिंदू देवताओं की रथ यात्रा है। पुरी जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा माता मंदिर तक भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ भगवान जगन्नाथ की यात्रा करने के लिए प्रतिवर्ष मनाई जाने वाली रथ यात्रा भी दूसरी प्रकार की यात्रा है।

ऐसा माना जाता है कि वामन अवतार का अर्थ है कि भगवान विष्णु का बौना रूप भगवान जगन्नाथ (जो जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हैं) का अवतार था। यात्रा हिंदू धर्म के विशेष और पवित्र अवसरों के दौरान हुई सबसे महत्वपूर्ण घटना है। भगवान जगन्नाथ हिंदू देवता हैं, जिनका अवतार द्वापर युग में पृथ्वी पर भगवान कृष्ण के रूप में हुआ था।

रथ की पवित्र यात्रा का यह विशेष त्योहार भक्तों, संतों, धर्मग्रंथों, कवियों द्वारा पवित्र मंत्रों और भक्ति गीतों द्वारा किया जाता है। लोग रथ को छूना चाहते हैं या रस्सियों को खींचकर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। भक्त इस दिन एक विशेष उड़िया गीत गाते हुए पवित्र रथ को पहियों पर खींचते हैं।

पूरी में रथ यात्रा:

पूरे त्योहार के उत्सव में पुरी की सड़कों पर खींची गई मंदिर संरचनाओं से मिलते-जुलते तीन विशाल आकर्षक ढंग से सजाए गए रथ शामिल हैं। यह पवित्र त्योहार हिंदू श्रद्धालुओं द्वारा नौ दिनों तक पुरी जगन्नाथ मंदिर से 2 किमी की दूरी पर स्थित गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र सहित अपनी बहन सुभद्रा की पवित्र यात्रा के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

त्योहार के उत्सव के दौरान, दुनिया भर के लाखों हिंदू भक्त उत्सव का हिस्सा बनने के लिए गंतव्य पर आते हैं और भगवान जगन्नाथ के बहुत से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। लोग संगीत और अन्य वाद्ययंत्रों सहित ढोल और नगाड़ों की ध्वनि पर भक्ति गीत गाकर रथ खींचते हैं।

पूरे भारत और विदेशों में पवित्र त्यौहार का जश्न विभिन्न टीवी चैनलों पर सीधा प्रसारित होता है। कारपेंटर की टीम द्वारा दूसरे राज्य से लाए गए विशेष वृक्षों जैसे कि धौसा, फसी आदि की लकड़ियों का उपयोग करके पुरी महल के सामने अक्षय तृतीया पर रथों का निर्माण कार्य शुरू होता है।

सभी विशाल रथों को सिंहद्वार पर राजसी मंदिर में लाया जाता है। भगवान जगन्नाथ का रथ 44 फीट ऊँचाई, 24 फीट चौड़ाई, 6 फीट व्यास के 26 पहिए और सजे हुए लाल और पीले वस्त्रों से युक्त नंदीघोष रथ का हकदार है। भगवान बलराम के रथ का नाम तलध्वज रथ है जिसकी ऊंचाई 44 फीट है, 7 फीट व्यास के 14 पहिए हैं और इन्हें लाल, नीले या काले कपड़े से सजाया गया है।

पश्चिम बंगाल में रथ यात्रा कैसे मनाई जाती है ?

भारत में सबसे प्रसिद्ध रथ यात्रा ओडिशा के पुरी और उसके बाद गुजरात के अहमदाबाद में है। पश्चिम बंगाल में तीन प्रसिद्ध रथयात्राएं हैं जो अतीत की हैं। इनमें से पहली महेश रथ यात्रा है जो 14 वीं शताब्दी ईस्वी में शुरू हुई थी।

यह श्री डरबनंद भ्रामचारी द्वारा अग्रगामी था और आज तक मनाया जाता है। इसके लिए रथ या रथ आखिरी बार कृष्णाराम बसु द्वारा दान किया गया था और मार्टिन बर्न कंपनी द्वारा निर्मित किया गया था। यह एक लोहे की गाड़ी है, जिसमें नौ टावरों का एक वास्तुशिल्प डिजाइन है, जो 50 फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है।

इसका वजन 125 टन है और इसमें 12 पहिए हैं। यह 20,000 रूपए के खर्च पर बनाया गया था और 1885 से रथ यात्रा में उपयोग किया जाता रहा है। विशाल नौ स्तरित और बहुस्तरीय रथ को रंगीन कंफ़ेद्दी और धातु के हैंगिंग से सजाया गया है। यह लकड़ी के घोड़ों और कई लकड़ी की मूर्तियों से सुसज्जित है।

रथ के कई पहिये चार मोटी रस्सियों से खींचे जाते हैं, जिनमें से एक केवल महिलाओं द्वारा खींचे जाने के लिए आरक्षित होता है। गुप्तपारा की रथ यात्रा एक प्रमुख त्यौहार है और यह स्थान वैष्णव पंथ की पूजा का एक प्रमुख केंद्र है। हालाँकि, गुप्तीपारा में बंगाल के पहले सार्वजनिक या “सरबजनिन” दुर्गा पूजा के आयोजन और स्थापना का सम्मान और प्रसिद्धि है, लेकिन यह गुप्तिपारा का मुख्य त्योहार नहीं है।

गुप्तीपारा का रस्सा और रंगीन रथ वे हैं जो इसे पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध और मांग करते हैं। महिषादल, पूर्वी मिदनापुर में, हालांकि महेश या गुप्तपारा के रूप में इतना प्रसिद्ध नहीं है, फिर भी यह दुनिया में सबसे लंबा लकड़ी का रथ होने के लिए काफी प्रसिद्ध है।

70 फीट ऊंचे रथ को 13 मीनारों के वास्तुशिल्प डिजाइन में बनाया गया है और इसे भव्य रूप से रंगीन लकड़ी के घोड़े और मूर्तियों से सजाया गया है।

यह 1776 में रानी जानकी देवी के संरक्षण में बनाया गया था और इस तथ्य के बावजूद कि रथ के डिजाइन और दृष्टिकोण में कई प्रकार के परिवर्तन हुए हैं, इसकी मुख्य संरचना पिछले 236 वर्षों से बरकरार है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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मेरी प्रथम रेल यात्रा पर निबंध | Rail Se Pehli Yatra Essay In Hindi

प्रिय दोस्तों Rail Se Pehli Yatra Essay In Hindi के इस लेख में हम मेरी प्रथम रेल यात्रा पर निबंध के बारें में पढेगे.

बच्चों के लिए कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 वीं के स्टूडेंट्स रेल यात्रा पर निबंध का उपयोग कर सकते हैं. सरल भाषा में जीवन अनुभव पर आधारित ऐसे सवाल परीक्षा में भी पूछे जाते हैं.

Rail Se Pehli Yatra Essay In Hindi

मेरी प्रथम रेल यात्रा पर निबंध Rail Se Pehli Yatra Essay In Hindi

प्राचीनकाल में यात्राएं इतनी सुगम नहीं थीं. जितनी कि आज हैं. निसंदेह विज्ञान ने आज संसार को बहुत ही निकट ला दिया हैं.

यद्पि यात्राओं में कष्ट तो होता हैं. किन्तु नये स्थानों, प्राकृतिक दृश्यों तथा अनेक धार्मिक स्थानों के दर्शन से सारा कष्ट आनंद में बदल जाता हैं.

प्रस्थान: मुझे मई के आरम्भ में अजमेर की यात्रा करनी पड़ी. मैंने अपनी सीट आठ दिन पूर्व ही सुरक्षित करा ली थी. मैंने अजमेर जाने की तैयारियाँ कीं और जरुरी सामान लेकर स्टेशन पर आ गया.

रेलवे स्टेशन का वर्णन: टिकट घर पर सैकड़ों व्यक्ति पंक्तियों में खड़े टिकट ले रहे थे. कुछ लोग इस बात के लिए प्रयत्नशील थे कि टिकट शीघ्र मिल जाए.

इसलिए कभी कभी धक्का मुक्की हो जाती थी लेकिन पुलिस के सिपाही शांति बनाये रखने में प्रयत्न शील थे. स्टेशन पर बड़ी भीड़ थी.

प्लेटफोर्म पर मेला सा लगा हुआ था. लगभग रात के 12 बजे हमारी गाड़ी सवाई माधोपुर पर आई. भीड़ के कारण चढ़ने में कुछ परेशानियां आईं. थोड़ी देर में हमारी गाड़ी चल दी.

यात्रा का वर्णन: गाड़ी तेजी से चली जा रही थी. इधर हम पर निद्रा देवी ने अधिकार जमा लिया. प्रातः काल के 5 बजे थे, जयपुर थोड़ी दूर ही रहा होगा. कि मेरे साथी जागे और उन्होंने अपना सामान सम्भालना आरम्भ कर दिया. जयपुर पर वे लोग मुझसे विदा ले गये.

कुछ क्षणों के बाद उस स्थान पर अन्य यात्री आ गये तथा उनसे परिचय आरम्भ हो गया. प्रातःकाल का सुहावना समय था. शीतल मंद सुगंध हवा चल रही थी.

लगभग 9 बजे मैंने अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सुंदर एवं आकर्षक नगरी अजमेर में प्रवेश किया. गाड़ी के सामान उतारकर कुली पर रखवाकर प्लेटफोर्म के बाहर आया और धर्मशाला चला गया.

उपसंहार: रेल यात्रा में बड़े आनन्द आते हैं. नवीन दृश्यों से मन मोहित हो जाता हैं. अपरिचित व्यक्तियों से भेंट होती है. विभिन्न प्रकार की वेशभूषा, भाषा तथा बोलियों से परिचय होता हैं. इस प्रकार यात्रा करने से हमारा ज्ञान बढ़ता हैं.

मेरी पहली रेल यात्रा My First Train Journey in Hindi English

My First Train Journey Essay: 1st Journey or trip experience is different from daily routine. when we saw the first time train,

bus or airplane then what thought comes to mind. maybe many wishes but one of them must come when I do the First time Train Journey.

Essay on My First Train Journey I sharing with you the same as this my experience when I trip first time on the rail (train Journey).

Essay on My First Train Journey in Hindi And English providing for students who read in class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, etc.

  Essay on My First Train Journey in Hindi English मेरी पहली रेल यात्रा:

out of my many railway journeys, I remember the trip to Agra, this is my first My First Train Journey.

the last October we two friends made up our mind to visit the taj mahal. we started on 2nd October to enjoy our holiday. we reached New Delhi station by taxi. there was a great rush on the booking office.

somehow we managed to buy two tickets. at the new Delhi railway platform, we saw hawkers selling seats, fruits, toys, tea, and cigarettes. we got seats.

passengers had occupied me seats, the train started earlier. from the running train, we saw green fields on either side. taj express was gaining speed.

we played playing cards. we enjoyed jokes. we reached Agra railway station. time seemed passing quickly chit-chat. we drove straight to the taj mahal.

Essay on My First Train Journey in Hindi -मेरी पहली रेल यात्रा 

मेरी कई रेलवे यात्राओं में से, मुझे आगरा की यात्रा याद है, यह मेरी पहली पहली रेल यात्रा थी। पिछले अक्टूबर में हम दो दोस्तों ने ताज महल जाने के लिए अपना मन बना लिया।

हमने अपनी छुट्टी का आनंद लेने के लिए 2 अक्टूबर को हमारा आगरा सफर शुरू किया। हम टैक्सी द्वारा नई दिल्ली स्टेशन पहुंचे। बुकिंग कार्यालय पर बड़ी भीड़ थी।

किसी भी तरह हम दो टिकट खरीदने में कामयाब रहे। नई दिल्ली रेलवे प्लेटफार्म में, हमने सीट, फल, खिलौने, चाय और सिगरेट बेचने वाले से हमने कुछ खाने पीने का सामान लिया और हमारी गाड़ी की ओर चल पड़े।

हमें जाते ही डिब्बे में सीटें मिल गई. हालांकि कई यात्रियों ने ट्रेन के शुरू होने से पूर्व ही सीटों पर कब्जा कर रखा तथा. इसी बीच हम भी एक सीट बचाने में कामयाब रहे.

धीरे धीरे हमारी ताज एक्सप्रेस स्पीड पकड़ रही थी. हरे हरे खेतों व पहाड़ों के मनोरम द्रश्य लगातार हमसे पीछे छुट रहे थे.।

समय बिताने के लिए हमने कार्ड्स का गेम खेला तथा मेरे दोस्त ने कुछ चुटकले भी सुनाये. बातों ही बातों में वक्त कैसे गुजर गया, पता ही नही चला. अब हम आगरा रेलवे स्टेशन पहुच चुके थे. बाद में हम ताजमहल की तरफ रवाना हो गये.

Rail Yatra Essay In Hindi

कहा जाता हैं कि यदि भारत की सैर करनी हो तो सबसे सस्ता एवं सुलभ साधन रेल के सिवाय और दूसरा नहीं हैं. रेल भारत की सबसे अच्छी एवं विविधतापूर्ण तस्वीर प्रस्तुत करती हैं.

रेल यात्रा के महत्व एवं पर्यटन से इसके सीधे सम्बन्ध को देखते हुए भारतीय रेलवे समय समय पर विशेष प्रकार की रेलगाड़ियों का परिचालन करवाती हैं.

कुछ ऐसी भी रेलगाड़ियाँ हैं जो अपनी विशेषता के लिए विश्वभर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. डेक्कन ओडिसी, पैलेस ओन व्हील्स, हेरिटेज ओन व्हील्स, महाराजा एक्सप्रेस, फेयरी क्वीन एवं रॉयल राजस्थान ओन व्हील्स कुछ ऐसी ही रेल गाड़ियाँ हैं.

इन सबके अतिरिक्त दार्जलिंग में चलने वाली टॉय ट्रेन भी पर्यटन के दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखती हैं. रेलवे को भारत की जीवन रेखा कहा जाता हैं. किसी न किसी उद्देश्य से प्रत्येक व्यक्ति को कभी न कभी रेलगाड़ी से यात्रा करनी ही पड़ती हैं.

रेल यात्रा के कई लाभ हैं. इसके माध्यम से लम्बी दूरी को कम समय में तय किया जा सकता है. यह बस से यात्रा करने की अपेक्षा काफी सस्ती होती हैं.

लम्बी दूरी का सफर बस से तय करना काफी कष्टप्रद होता हैं, जबकि रेलगाड़ी में लम्बी दूरी के सफर को देखते हुए शौचालय के साथ साथ अन्य कई प्रकार की सुविधाएँ होती हैं, जिससे यात्री लाभान्वित होता हैं.

यदि सपरिवार यात्रा करनी हो तो रेल के अलावा दूसरा कोई बेहतर विकल्प दिखाई नहीं पड़ता. इस तरह रेलगाड़ी से यात्रा करने से न केवल समय की बचत होती हैं, बल्कि धन की बचत भी होती हैं एवं यात्रा सुविधाजनक भी होती हैं.

रेल यात्रा के कई फायदे हैं, तो इसके साथ ही कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं भी जुड़ जाती हैं, जो इस यात्रा को काफी दुखद बना देती हैं. पिछले कुछ वर्षों में रेलगाड़ियों में विभिन्न प्रकार के अपराधों में वृद्धि हुई हैं.

जहरखुरानी गिरोहों द्वारा यात्रियों को नशीला पदार्थ खिलाकर उनसे लूटपाट, हिंसा इत्यादि के कारण भारत में रेल यात्रा कभी कभी दुखद बन जाती हैं.

कुछ यात्री जबर्दस्ती आरक्षित सीटों पर कब्जा कर लेते हैं, जिससे अन्य यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं. बिना टिकट यात्रा करने वालों के कारण रेलवे को तो घाटा होता ही हैं,

ये लोग अन्य यात्रियों को भी बिना वजह परेशान करते रहते हैं. इसके अतिरिक्त रेलगाड़ियों में भीख मांगने वालों की संख्या में भी दिन प्रतिदिन वृद्धि होना चिंता का विषय हैं.

रेलों में चाय या अन्य सामान बेचने वाले लोग भी यात्रियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं. इन घटनाओं के कारण रेल यात्रा दुःखद हो जाती हैं.

इन सबके अतिरिक्त रेलगाड़ियों का देर से परिचालन भी रेल यात्रा का एक दुखद पहलू हैं. कभी कभी डिब्बे के गेट पर खड़े होने वाले कुछ यात्री भी दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं.

किन्तु यदि कुछ सावधानी बरती जाएं, तो इन परेशानियों से काफी हद तक बचा जा सकता हैं. रेल यात्रा को सुखद बनाने के लिए पहले ही सीट आरक्षित करवा लेनी चाहिए.

यात्रा के दौरान किसी अजनबी से खाने पीने की सामग्री नहीं लेनी चाहिए. किसी प्रकार की संदेहास्पद वस्तुओं की स्थिति में रेलवे को सूचित करना चाहिए.

किसी भी व्यक्ति से किसी प्रकार की अनावश्यक बहस से जहाँ तक हो सके बचना चाहिए. ट्रेन आने के नियत समय से पहले प्लेटफार्म पर पहुँच जाना चाहिए.

रेल में सवार होने से पहले टिकट की भली भांति जांच कर लेनी चाहिए. जिस डिब्बे की सीट आरक्षित हो उसी डिब्बे में सवार होना चाहिए.

डिब्बे के गेट पर यात्रा नहीं करनी चाहिए. शरीर का कोई भी अंग खिड़की से बाहर नहीं निकलना चाहिए, यदि बच्चे साथ हो तो उनका विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता होती हैं.

उन्हें कभी भी अपने से अलग नहीं करना चाहिए. यात्रा के दौरान खाने पीने के सामानों का भी उचित प्रबंध करके चलना चाहिए. इन बातों का ध्यान रखकर अपनी रेल यात्रा को सुखद बनाया जा सकता हैं.

भारतीय रेल के इतिहास पर नजर डालें तो भारत में रेलवे की शुरुआत 1853 में की गई थी. तब से लेकर अब तक इसमें कई प्रकार के परिवर्तन किये गये है और आज भारतीय रेलवे का दुनिया में एक विशेष स्थान हैं. इस समय भारत में कई प्रकार की रेलगाड़ियां चलाई जाती हैं.

मेल एवं एक्सप्रेस रेलगाड़ियों के अतिरिक्त पर्यटन के लिए विशेष रेलगाड़ियाँ भी चलाई जाती हैं. पैसेंजर रेलगाड़ियाँ महानगरों की जीवन रेखा का कार्य करती हैं

महानगरों के अतिरिक्त भी कुछ क्षेत्रों में पैसेन्जर रेलगाड़ियों का परिचालन किया जाता हैं इन सबके अतिरिक्त राजधानी एक्सप्रेस, गरीब रथ जनशताब्दी एक्सप्रेस शताब्दी एक्सप्रेस इत्यादि कुछ विशेष प्रकार की भारतीय रेलगाड़ियाँ हैं.

वैसे तो हर प्रकार की यात्रा आनन्ददायक होती हैं, किन्तु रेल यात्रा का अपना अलग ही आनन्द हैं. इसलिए लोग रेल से की गई अपनी यात्रा को कभी भी भूलते नहीं. यदि यह यात्रा लम्बी हो और किसी विशेष रेल मार्ग पर तय की गई हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता हैं.

मुझे तो वर्ष में प्रायः हर महीने रेल से यात्रा करनी ही पड़ती हैं. इनमें से दिल्ली से शिमला मेरी एक ऐसी भी रेल यात्रा हैं, जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता. उस दिन मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचकर अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहा था. तय समय पर मेरी ट्रेन पहुँच गई.

मैं निर्धारित डिब्बे में अपने सामान के साथ सवार हो गया. मेरे साथ मेरे दो मित्र भी थे. थोड़ी देर बाद सिटी बजाते हुए ट्रेन चल पड़ी. ट्रेन के चलने के बाद हम आपस में बातें करने लगे. मैं खिड़की के पास बैठा था. ट्रेन की खिड़की के पास बैठने का भी अपना एक अलग ही मजा होता हैं.

खिड़की के बाहर झांकते हुए पेड़ पौधों को देखना काफी आनन्ददायक होता हैं. कुछ देर बाद हम लोगों ने मिलकर खाना खाया. रेलगाड़ी के हिमाचल प्रदेश की सीमा में प्रवेश करने के बाद पहाड़ों का अप्रितम सौन्दर्य वास्तव में देखने लायक था.

बड़े बड़े खूबसूरत पेड़ चलती ट्रेन से और भी खूबसूरत नजर आ रहे थे. पहाड़ों का सौन्दर्य भी बढ़ा हुआ प्रतीत होता था. ट्रेन कई स्टेशनों पर रूकते हुए जा रही थी.

हर स्टेशन पर अपना एक अलग ही रूप रंग दिखाई पड़ता था. किसी स्टेशन की कोई चीज मशहूर होती, तो किसी अन्य स्टेशन की कोई अन्य चीज.

नया स्टेशन आते ही लोग आपस में इन्ही चीजों के बारें में बातें करने लगते. इन बातों के अतिरिक्त देश की वर्तमान राजनीति भी लोगों की बातचीत का मुख्य विषय था. हम सभी दोस्तों ने आपस में बात करने की बजाय उन लोगों की बातों का आनन्द लेना शुरू किया.

यह यात्रा वास्तव में कई अर्थो में मजेदार थी, शिमला पहुँचने के साथ ही मेरी रेल यात्रा समाप्त हो गई. हम लोगों ने पहले बस से वापस होने का निर्णय लिया था. इतनी मजेदार रेलयात्रा के बाद हमने सोचा फिर से रेल से वापस जाना अच्छा रहेगा.

इसलिए हम शिमला की यात्रा शुरू करने से पहले वापसी का टिकट लेने टिकट काउन्टर पर पहुँच गये. मेरी यह रेल यात्रा मजेदार ही नहीं सुखद एवं यादगार भी रही.

  • भारतीय रेल का इतिहास हिंदी में
  • यात्रा पर निबंध
  • रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबंध
  • रेलवे कुली पर निबंध

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