यात्रा वर्णन पर निबंध | essay on traveling in hindi | किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध
समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com आपको निबंध की श्रृंखला में यात्रा वर्णन पर निबंध | essay on traveling in hindi | किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध प्रस्तुत करता है।
इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम
(1) पर्वत यात्रा पर निबंध (2) किसी स्थान का आंखों देखा दृश्य पर निबंध (3) किसी रोचक यात्रा का वर्णन पर निबंध
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पहले जान लेते है यात्रा वर्णन पर निबंध | essay on traveling in hindi | किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध की रूपरेखा ।
निबंध की रूपरेखा
(1) प्रस्तावना (2) यात्रा का आरम्भ (3) पर्वतारोहण (4) शिमला निवास (5) यात्रा करने का महत्व (6) उपसंहार
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यात्रा करने से मनोरंजन होता है । जीवन स्वयं एक यात्रा है। इस यात्रा का जितना अंश यात्रा में बीते, वही हितकर है। यात्रा करने से मनोरंजन के साथ-साथ अन्य कई प्रकार के लाभ भी होते है। बाहर जाने के कारण साहस, स्वावलम्बन , कष्ट सहिष्णुता की क्रियात्मक शिक्षा मिलती है।
परस्पर सहयोग की भावना बढ़ती है। निराश जीवन में आशा का संचार हो जाता है, अनुभव की वृद्धि होती है। इस प्रकार यात्रा करने का जीवन में अत्यधिक महत्त्व है।
पर्वत यात्रा तो और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पर्वतों जैसे दृश्य अन्य स्थानों पर दुर्लभ हैं । कितनी सुखद और आनन्दमयी थी-मेरी वह पर्वत यात्रा ।
प्राकृतिक-सौन्दर्य की छाई जहाँ अद्भुत छटा । है जहाँ खगकुल सुनाते मधुर कलरव चटपटा ॥ बेल लिपटी हैं द्रुमों से खिल रही सुन्दर कली। पर्वतीय प्रदेश की यात्रा अहो ! कितनी भली ॥
यात्रा का आरम्भ
ग्रीष्मावकाश हो चुका था। मेरा मित्र मोहन अपने पिताजी के साथ शिमला जाना चाहता था। उसने मुझसे भी चलने का आग्रह किया। मैंने जाने के लिए पिताज़ी की आज्ञा प्राप्त की।
सब तैयारी पूर्ण हो जाने पर हम 20 जुलाई को मेरठ से शाम को 5 बजे वाली गाड़ी से शिमला के लिए चले। रास्ते में मुजफ्फरनगर, सहारनपुर आदि स्टेशनों को पार करती हुई हमारी गाड़ी रात्रि में अम्बाला पहुँची।
यहाँ से हम दूसरी गाड़ी में बैठकर चण्डीगढ़ को पार करते हुए रात के डेढ़ बजे कालका स्टेशन पर पहुचे। यहाँ से हमें 3-4 डिब्बों वाली एक छोटी-सी गाड़ी मिली। रात के ढाई बजे के लगभग गाड़ी शिमला के लिए चल दी।
पर्वतीय-यात्रा
ज्यो-ज्यो गाड़ी ऊपर चढ़ती जा रही थी, ठण्ड बढ़ती जा रही थी खिड़की बन्द करके हम सो गये। थोड़ी देर बाद आँख खुली तो सामने मनोहर दृश्य दिखाई दे रहे थे।
अन्धकार दुम दबा कर भाग रहा था। सूर्य भगवान अपनी किरणों से शीतग्रस्त जीवों को सान्त्वना सी देने लगे गाड़ी पर्वतों पर साँंप की तरह बल खाती हुई चढ़ रही थी।
मीलों गहरे गड्ढे देखकर मैं भय से कॉप उठा छोटे-छोटे गाँव तथा उनमें घोड़े, भेड़, बकरियाँ तथा मनुष्य ऊपर से ऐसे जान पड़ते थे मानो किसी ने खिलौने सजाकर रख दिये हों।
ऊँचे-ऊँचे देवदारु के वृक्ष प्रभु के ध्यान में लीन मौन तपस्वियों की भाँति खड़े थे। फूल व फलों से लदे वृक्षों से लिपटी हुई लताएँ अत्यन्त शोभा पा रही थीं।
नीले, हरे, पीले, काले, सफेद अनेक प्रकार के पक्षी फुदक- फुदककर मधुर तान सुना रहे थे। विशालकाय पर्वतों के वक्षस्थल को चीर कर उनके बीच में से मीलों लम्बी सुरंगे बनी थीं जिनमें प्रविष्ट होने पर गांड़ी सीटी बजाती थी तथा गाड़ी में प्रकाश हो जाता था।
शिमला-निवास
इस प्रकार मनोरम दृश्यों को देखते हुए हम शिमला जा पहुँचे। कृलियों ने हमारा सामान उठाया और हमं माल रोड स्थित एक सुन्दर होटर में जा ठहरे।
वहाँ हमने चार आदमियों द्वारा खींची जाने वाली रिक्शा देखी। सुबह उठते ही घुमने जाते। पहाड़ियों पर चढ़ते, नीचे उतरते तथा मार्ग में ठण्डे- गर्म पानी के झरने देखकर मन प्रसन्न करते थे।
ऊपर बैठे हुए हम देखते थे कि नीचे बादल बरस रहे हैं।लोग भागकर घरों में घुस जाते। कहीं धूप, कहीं छाया-भगवान् की इस विचित्र माया को देखकर हम अपने आपको देवलोक में आया समझते थे।
इस प्रकार के सुन्दर दृश्यों को देखते हुए हमने एक मास व्यतीत किया। छुट्टी समाप्त हुई और हम घर वापस लौटे।
यात्रा करने से लाभ
विभिन्न स्थानों की यात्रा करने से हमारा अनुभव बढ़ता है और कष्ट सहन करने तथा स्वावलम्बी बनने का अवसर मिलता है।
कुछ दिनों के लिए दैनिक कार्यचक्र से मुक्ति मिल जाती है,जिससे जीवन में आनन्द की लहर दौड़ जाती है। यात्रा करने से विभिन्न जातियों व स्थानों के रीति-रिवाजों, भाषाओं आदि से हम परिचित हो जाते है।
परस्पर प्रेमभाव बढ़ता है। एक-दूसरे के सुख-दुःख को समझने का अवसर मिलता है। शरीर में स्फूर्ति, ताजगी, मन में साहस के साथ काम करने की भावना का उदय होता हैं है। इस प्रकार की यात्रा का मनुष्य जीवन में विशेष महत्त्व है।
शिमला की यह आनन्दमयी यात्रा आज भी मेरे स्मृति पटल पर अंकित है। जब मुझे इस यात्रा का स्मरण हो जाता है, मैं आनन्द विभोर हो उठता हूँ।
सारे दृश्य इस प्रकार सामने आ जाते हैं जैसे साक्षात ऑँखों से देख रहा हूँ। इस प्रकार के अवसर बहत कम मिलते हैं किन्तु जब भी मिलते हैं, वे जीवन की मधुर सुखद स्मृति बन जाते है।
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किसी यात्रा का रोचक वर्णन पर निबन्ध
किसी यात्रा का रोचक वर्णन पर निबन्ध हिंदी में.
इस निबन्ध के अन्य शीर्षक -
- यात्री संस्मरण
- किसी अविस्मरणीय यात्रा का वर्णन
- किसी रमणीय स्थान का आँखों देखा वर्णन
- किसी रोमांचकारी यात्रा का वर्णन
रुपरेखा –
1. प्रस्तावनता, 2. यात्रा का आरम्भ, 3. पर्वतीय यात्रा, शिमला वर्णन; 5. यात्रा करने के लाभ, 6. उपसंहार
प्राकृतिक सौन्दर्य की छाई जहाँ अद्भुत छटा। हैं जहाँ खगकुल सुनाते मधुर कलरव चटपटा॥ बेल लिपटी है दुमों से खिल रही सुन्दर कली। पर्वतीय प्रदेश कीं यात्रा अहो! कितनी भली॥
प्रस्तावना –
यात्रा करने से मनोरंजन होता है। जीवन स्वयं एक यात्रा है। इस यात्रा का जितना अंश यात्रा में बीते, वही हितकर है। यात्रा करने से मनोरंजन के साथ-साथ अन्य कई प्रकार के लाभ भी होते हैं। घर से बाहर जाने के कारण साहस, स्वावलम्बन, कष्ट सहिष्णुता की क्रियात्मक शिक्षा मिलती है। परस्पर सहयोग की भावना बढ़ती है। निराश जीवन में आशा का संचार हो जाता है, अनुभव की वृद्धि होती है। इस प्रकार यात्रा करने का जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। पर्वत यात्रा तो और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पर्वतों जैसे दृश्य अन्य स्थानों पर दुर्लभ हैं। कितनी सुखद और आनन्दमयी थी- मेरी वह पर्वत यात्रा।
यात्रा का आरम्भ –
ग्रीष्मावकाश हो चुका था। मेरा मित्र मोहन अपने पिताजी के साथ शिमला जाना चाहता था। उसने मुझसे भी चलने का आग्रह किया। मैने जाने के लिए पिताजी की आज्ञा प्राप्त की। सब तैयारी पूर्ण हो जाने पर हम 20-7-91 को मेरठ से शाम को 5 बजे वाली गाड़ी से शिमला के लिए चले। रास्ते में मुजफ्फरनगर, सहारनपुर आदि स्टेशनों को पार करती हुई हमारी गाड़ी रात्रि में अम्बाला पहुँची। यहाँ से हम दूसरी गाड़ी में बैठकर चण्डीगढ़ को पार करते हुए रात के डेढ़ बजे कालका स्टेशन पर पहुंचे। यहाँ से हमें 3-4 डिब्बों वाली एक छोटी-सी गाड़ी मिली। रात के ढाई बजे के लगभग गाड़ी शिमला के लिए चल दी।
पर्वतीय यात्रा –
ज्यों-ज्यों गाड़ी ऊपर चढ़ती जा रही थी, ठण्ड बढ़ती जा रही थी। खिड़की बन्द करके - हम सो गये। थोड़ी देर बाद आँख खुली तो सामने मनोहर दृश्य दिखाई दे रहे थे। अन्धकार दुम दबा कर भाग रहा था। सूर्य भगवान् अपनी किरणों से शीतग्रस्त जीवों को सान्त्वना सी देने लगे। गाड़ी पर्वतों पर साँप की तरह बल खाती हुई चढ़ रही थी। मीलों गहरे गड्ढे देखकर मैं भय से काँप उठा। छोटे-छोटे गाँव तथा उनमें घोड़े, भेड़, बकरियों तथा मनुष्य ऊपर से ऐसे जान पड़ते थे मानो किसी ने खिलौने सजाकर रख दिये हों। ऊँचे-ऊंचे देवदारु के वृक्ष प्रभु के ध्यान में लीन मौन तपस्वियों की भाँति खड़े थे। फूल व फलों से लदे वृक्षों से लिपटी हुई लताएँ अत्यन्त शोभा पा रही थीं। नीले, हरे, पीले, काले, सफेद अनेक प्रकार के पक्षी फुदकफुदककर मधुर तान सुना रहे थे। विशालकाय पर्वतों के वक्षस्थल को चीर कर उनके बीच में से मीलों लम्बी सुरंगें बनी थीं जिनमें प्रविष्ट होने पर गाड़ी सीटी बजाती थी तथा गाड़ी में प्रकाश हो जाता था।
शिमला वर्णन –
इस प्रकार मनोरम दृश्यों को देखते हुए हम शिमला जा पहुंचे। कुलियों ने हमारा सामान उठाया और हम माल रोड स्थित एक सुन्दर होटल में जा ठहरे। वहाँ हमने चार आदमियों द्वारा खींची जाने वाली रिक्शा देखी। सुबह उठते ही घूमने जाते। पहाड़ियों पर चढ़ते, नीचे उतरते तथा मार्ग में ठण्डे-गर्म पानी के झरने देखकर मन प्रसन्न करते थे। ऊपर बैठे हुए हम देखते थे कि नीचे बादल बरस रहे हैं। लोग भागकर घरों में घुस जाते। कही धूप, कहीं छाया-भगवान् की इस विचित्र माया को देखकर हम अपने आपको देवलोक में आया समझते थे। इस प्रकार के सुन्दर दृश्यों को देखते हुए हमने एक मास व्यतीत किया। छुटटी समाप्त हुई और हम घर वापस लौटे।
यात्रा करने के लाभ –
विभिन्न स्थानों की यात्रा करने से हमारा अनुभव बढ़ता है और कष्ट सहन करने तथा स्वावलम्बी बनने का अवसर मिलता है। कुछ दिनों के लिए दैनिक कार्यचक्र से मुक्ति मिल जाती है जिससे जीवन में आनन्द की लहर दौड़ जाती है। यात्रा करने से विभिन्न जातियों व स्थानों के रीति-रिवाजों, भाषाओं आदि से हम परिचित हो जाते हैं। परस्पर प्रेमभाव बढ़ता है। एक-दूसरे के सुख-दुःख को समझने का अवसर मिलता है। शरीर में स्फूर्ति, ताजगी, मन में साहस के साथ काम करने की भावना का उदय होता है। इस प्रकार की यात्रा का मनुष्य जीवन में विशेष महत्त्व है।
उपसंहार –
शिमला की यह आननन्दमयी यात्रा आज भी मेरे स्मृति पटल पर अंकित है। जब मुझे इस यात्रा का स्मरण हो जाता है, मैं आनन्द विभोर हो उठता हूँ। सारे दृश्य इस प्रकार सामने आ जाते हैं जैसे साक्षात आँखों से देख रहा हूँ। इस प्रकार के अवसर बहुत कम मिलते हैं किन्तु जब भी मिलते हैं, वे जीवन की मधुर सुखद स्मृति बन जाते हैं।
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SUSHIL SHARMA
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मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध | Meri Avismarniya Yatra Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on my unforgettable journey in Hindi
By: Amit Singh
मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध | Meri Avismarniya Yatra Essay in Hindi
“सैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाँ, जिन्दगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ।”
मैं शुरू से ही घुमक्कड़ प्रवृत्ति का हूँ तथा राहुल सांकृत्यायन की तरह नवाज़िन्दा-याजिन्द्रा की लिखी उपरोक्त पंक्तियाँ मुझे भी घूमने हेतु प्रोत्साहित करती रही हैं। मुझे अगस्टीन की कही बात बिल्कुल सत्य प्रतीत होती है-“संसार एक महान पुस्तक है, जो घर से बाहर नहीं निकलते वे व्यक्ति इस पुस्तक का मात्र एक पृष्ठ ही पढ़ पाते हैं।” पिछले पाँच वर्षों में मैंने भारत के लगभग बीस शहरों की यात्रा की है, इनमें दिल्ली, मुम्बई, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा, गोवा आदि शामिल हैं।
इन शहरों में भुवनेश्वर ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है। पिछले वर्ष ही गर्मी की सप्ताह भर की छुट्टी में मैं इस शहर की यात्रा पर था। यह यात्रा मेरे लिए अविस्मरणीय है।
मैं दिल्ली से रेल यात्रा का आनन्द उठाते हुए अपने सभी साथियों के साथ सुबह लगभग दस बजे भुवनेश्वर पहुँच गया था। हमने पहले ही होटल बुक करवा लिया था। वहाँ पहुँचकर सबसे पहले हम होटल में गए। मैं इस शहर के बारे में पहले ही काफी कुछ सुन चुका था। मेरे सभी दोस्त चाहते थे कि उस दिन आराम किया जाए, लेकिन मैं उनके इस विचार से सहमत नहीं था। मेरी व्याकुलता को देखते हुए सबने थोड़ी देर आराम करने के बाद तैयार होकर यात्रा पर निकलने का निर्णय लिया। भुवनेश्वर के बारे में जैसा हमने सुना था, उससे कहीं अधिक दर्शनीय पाया।
भुवनेश्वर, भारत के खूबसूरत एवं हरे-भरे प्रदेश ओडिशा की राजधानी है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है। ऐतिहासिक ही नहीं धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह शहर भारत के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है। इसे ‘मन्दिरों का शहर’ भी कहा जाता है। यहाँ प्राचीनकाल के लगभग 600 से अधिक मन्दिर हैं, इसलिए इसे पूर्व का काशी’ भी कहा जाता है।
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने यहीं पर कलिंग युद्ध के बाद धम्म की दीक्षा ली थी। धम्म की दीक्षा लेने के बाद अशोक ने यहाँ पर बौद्ध स्तूप का निर्माण कराया था, इसलिए यह बौद्ध धर्मा बलम्बियों का भी एक बड़ा तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में भुवनेश्वर में 7,000 से अधिक मन्दिर थे, इनमें से अब केवल 600 मन्दिर ही शेष बचे हैं।
हम जिस होटल में ठहरे थे, उसके निकट ही राजा-रानी मन्दिर है, इसलिए सबसे पहले हम उसी के दर्शनों के लिए पहुँचे। इस मन्दिर की स्थापना ग्यारहवीं शताब्दी में हुई थी। इस मन्दिर में शिव एवं पार्वती की भव्य मूर्तियाँ हैं। इस मन्दिर की दीवारों पर सुन्दर कलाकृतियाँ बनी हुई हैं। इस मन्दिर से लगभग एक किलोमीटर दूर मुक्तेश्वर मन्दिर स्थित है। इसे ‘मन्दिर समूह’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर एक साथ कई मन्दिर हैं।
इन मन्दिरों में से दो मन्दिर अति महत्त्वपूर्ण है- परमेश्वर मन्दिर एवं मुक्तेश्वर मन्दिर । इन दोनों मन्दिरों की स्थापना 650 ई. के आस-पास हुई थी। इन दोनों मन्दिरों की दीवारों पर की गई नक्काशी देखते ही बनती है। मुक्तेश्वर मन्दिर की दीवारों पर पंचतन्त्र की कहानियों को मूर्तियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। राजा-रानी मन्दिर एवं मुक्तेश्वर मन्दिर की सैर करते-करते हम थक गए थे। वैसे भी हम दोपहर के बाद सैर करने निकले थे और अब रात होने को थी। इसलिए हम लोग आराम करने के लिए अपने होटल लौट आए।
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अगली सुबह हम लोग जल्दी तैयार होकर लिंगराज मन्दिर समूह देखने गए। इस मन्दिर के आस-पास सैकड़ों छोटे-छोटे मन्दिर बने हुए हैं, इसलिए इसे ‘लिंगराज मन्दिर समूह’ भी कहा जाता है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था। 185 फीट लम्बी यह मन्दिर भारत की प्राचीन शिल्पकला का अप्रतिम उदाहरण है। मन्दिरों की दीवारों पर निर्मित मूर्तियाँ शिल्पकारों की कुशलता की परिचायक हैं।
भुवनेश्वर की यात्रा इतिहास की यात्रा के समान है। इस शहर की यात्रा करते हुए ऐसा लगता है मानो हम उस काल में चले गए हो, जब इस शहर का निर्माण किया जा रहा था। शहर के मध्य स्थित भुवनेश्वर संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियों एवं हस्तलिखित ताड़पत्रों का अनूठा संग्रह इस आभास को और भी अधिक बल प्रदान करता है।
भुवनेश्वर के आस-पास भी ऐसे अनेक अप्रतिम स्थल हैं, जो ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व रखते हैं और जिनकी सैर के बिना इस शहर की यात्रा अधूरी ही रह जाती है। ऐसा ही एक स्थान है-धौली। यहाँ दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित एक बौद्ध स्तूप है, जिसका जीर्णोद्वार हाल ही में हुआ है। इस स्तूप के पास ही सम्राट अशोक निर्मित एक स्तम्भ भी है, जिसमे उनके जीवन एवं बौद्ध दर्शन का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त भगवान बुद्ध की मूर्ति तथा उनके जीवन से सम्बन्धित विभिन्न घटनाओं से सम्बद्ध मूर्तियाँ भी देखने लायक है। धौली के बौद्ध स्तूप के दर्शन के बाद हम लोग भुवनेश्वर शहर से लगभग 6 किमी दूर स्थित उदयगिरि एच खण्डगिरि की गुफाओं को देखने गए। इन गुफाओं को पहाड़ियों को काटकर बनाया गया है। इन गुफाओं में की गई अधिकांश चित्रकारी नष्ट हो चुकी है, किन्तु यहाँ निर्मित मूर्तियाँ अभी भी अपने प्रारम्भिक स्वरूप में ही विद्यमान है।
सैर के बाद हम लोगों ने ओडिशा के स्थानीय भोजन का आनन्द उठाया। पखाल भात, छलु तरकारी, महूराली चडचडी एवं चिगुडि ओडिशा की कुछ लोकप्रिय व्यंजन है। पखाल भात एक दिन पहले बने बाचल को आलू के साथ तलकर बनाया जाता है। छतु तरकारी एक तीखा भोजन है, जो मशरूम से बनता है। ओडिशा के लोगों को भी बंगालियों की तरह मछली खाने का बहुत शौक है। महूराली चडचडी छोटी मछली से बनी एक डिश है।
चिल्का झील में पाई जाने वाली झींगा मछली से चिगुडि नामक डिश बनाई आती है। भुवनेश्वर की यात्रा को अविस्मरणीय बनाने के लिए हमने जमकर फोटोग्राफी की थी, किन्तु फोटो के साथ-साथ हम यहाँ की कुछ प्रसिद्ध वस्तुएँ भी ले जाना चाहते थे। यहाँ पत्थर से निर्मित बड़ी खूबसूरत वस्तुएँ, जैसे-मूर्तियाँ, बर्तन, खिलौने इत्यादि मिलते हैं। यहाँ की ताड़ के पत्तों पर की गई चित्रकारी भी लोगों को खूब पसन्द आती है, जिसे पत्ता चित्रकारी’ कहते हैं। हम सबने कई प्रकार की वस्तुएँ खरीदी। ये वस्तुएँ हमें हमेशा भुवनेश्वर की प्राचीन कला की याद दिलाती है।
भुवनेश्वर की यात्रा मेरे लिए ही नहीं मेरे सभी साथियों के लिए भी एक अविस्मरणीय यात्रा बन गई वस्तुतः किसी भी व्यक्ति की यात्रा का उद्देश्य केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि मानसिक शान्ति प्राप्त करना भी होता है। सचमुच भुवनेश्वर के यातावरण में अजीब-सी पवित्रता घुली हुई है। इस यात्रा से हमारी मित्र मण्डली को जिस मानसिक शान्ति का अनुभव हुआ, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। इस अविस्मरणीय यात्रा से मैं भी डॉ. जॉनसन के इस कथन से पूर्णतः सहमत हो गया कि “यात्रा कल्पना को वास्तविकता में व्यवस्थित कर देती है।”
मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध | My Unforgettable Trip Essay in Hindi / meri aabismaraniye Yatra video
reference Meri Avismarniya Yatra Essay in Hindi
I am a technology enthusiast and write about everything technical. However, I am a SAN storage specialist with 15 years of experience in this field. I am also co-founder of Hindiswaraj and contribute actively on this blog.
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एक हिल स्टेशन की यात्रा पर निबंध (A Visit to a Hill Station Essay in Hindi)
“सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ।” ‘राहुल सांकृत्यायन’ का ये प्रसिद्द उदाहरण उन लोगों के लिए है जिन्हें घूमना बहुत ही पसंद और अच्छा लगता है। आनंद या खुशी प्राप्त करने का एक जरिया घूमना या यात्रा करना भी है। जिन लोगों को घूमने में मजा आता है, ऐसे लोग विभिन्न जगह घुमने जाना पसंद करते है। वो कुछ ऐसी जगह जाना पसंद करते है, जहां के बारे में वो जानकारी और प्राकृतिक या प्राचीन कलाकृतियों और उनकी सुंदरता का आनद ले सकें। घूमने का शौख मुझे भी बहुत है। नयी जगहों पर जाना, वहां के बारे में जानना, वहां की सुंदरता को निहारना, इत्यादि चीजें मुझे अपनी ओर आकर्षित करती है। मुझे रोमांचित और प्राकृतिक जगहों पर जाना बहुत अच्छा लगता है।
एक हिल स्टेशन की यात्रा पर दीर्घ निबंध (Long Essay on A Visit to a Hill Station in Hindi, Ek Hill Station ki Yatra par Nibandh Hindi mein)
मैं इस निबंध में अपने हिल स्टेशन/पर्वतीय स्थल दौरे के अनुभव को बताने जा रहा हूँ। मुझे उम्मीद है ये आपकी पढ़ाई में सहायक होगी।
Long Essay – 1500 Words
भारत विभिन्न ऋतुओं का एक देश है। गर्मी के दिनों में दक्षिणी और मध्य भारत बहुत ही गर्म हो जाता है और यहां गर्मियों का मौसम एक लम्बी अवधी तक बना रहता है। ऐसे में इस मौसम और गर्मी से राहत पाने के लिए हम गर्मियों के दिनों में विभिन्न हिल स्टेशनों/पर्वतीय स्थलों पर जाने का मन बनाते है। इस तरह के स्थल पर जाना हमारे लिए रोमांच, आनंददायी, गर्मियों से राहत और प्रकृति से निकटता को दर्शाता है।
हिल स्टेशन/पर्वतीय स्थल किसे कहते है ?
हिल स्टेशन मनमोहक पहाड़ियों के एक झुण्ड को कहते है। यहां पहाड़ों की खूबसूरती के अलावा प्राकृतिक सुंदरता भी होती है। एक ऐसा दृश्य जो आखों को चकाचौंध के साथ मन को ठंडक और शांति प्रदान करती है। ऐसी जगह की जलवायु में मन के साथ-साथ शरीर को ठंडक पहुंचाने वाला वातावरण होता है। उचाईयों पर होने के कारण ऐसे स्थान हमेशा ठंडे होते है, इसलिए गर्मियों के दिनों में ऐसे स्थानों पर बहुत सुकून मिलता है।
हिल स्टशनों की उचाई भारत में लगभग 1000 मीटर से लेकर 2500 मीटर तक होती है। ऐसे स्थान लोगों के लिए बहुत मनमोहक और रोचक होते है, क्योंकि ऐसे स्थानों में भगवान की प्राकृतिक सुंदरता निहित या शामिल होते है। भारत में ऐसे कई हिल स्टेशन है जहाँ गर्मियों के दिनों में लोग गर्मी से छुटकारा पाने के लिए और प्राकृतिक सुंदरता को देखने के लिए जाना पसंद करते है।
हिल स्टेशन पर जाने का मेरा अनुभव
मेरे आपके और हम सभी की इच्छा होती है की कभी घूमने का मौका मिले तो किसी खूबसूरत से हिल स्टेशन पर जाये, या ऐसे स्थान पर जो आपके मन को मोहता हो, जिसके बारे में आपने किसी से सुना हो, तस्वीरों या फिल्मों में देखा हो ऐसी जगहों पर जाना ज्यादा पसंद करते है। मुझे भी एक ऐसा मौका मिला, और मैं उन खूबसूरत वादियों के ख्यालों में खो गया। मैं हमेशा सोचता हूँ की वो लोग कितने भाग्यशाली है जो पहले से ही ऐसी खूबसूरत जगहों पर रहते है। उन्हें रोज चारों तरफ फैली प्राकृतिक मनमोहक दृश्य देखने को मिलता होगा और वो इसे देख आनंदित होते होंगे।
इसी दौरान मुझे अपने परिवार के साथ हिल स्टेशन पर जाने का मौका मिला। उस समय मेरे मन में बहुत रोमांच और खुशी से भरा था। मुझे उत्तराखंड के एक प्रसिद्द हिल स्टेशन मसूरी जाने का मौका मिला। यह जगह काफी मनोरम और सुंदर है जो पहाड़ियों और प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है।
- यात्रा की शुरुआत
जिस दिन से मैंने मसूरी जाने के बारे में सुना था उस दिन से मैं काफी रोमांचित था। मैंने अपने सामान की पैकिंग पहले से ही कर ली थी। सभी अपनी यात्रा को यादगार बनाना चाहते थे इसलिए पहुंचने में थोड़ी देर ही सही, हमने अपना टिकट ट्रेन से कराया था। अंततः यात्रा का दिन आ गया और मैं अपने परिवार के साथ स्टेशन पहुंच गया। लखनऊ से अपनी ट्रेन पकड़ने के बाद हम लगभग 12 घंटे बाद अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गए। पिताजी ने पहले से ही वहां होटल बुक करा रखा था इसलिए स्टेशन पर हमें होटल की गाड़ी लेने आई थी। सभी ट्रेन के सफर से थक चुके थे, इसलिए होटल पहुंचने के बाद सबने पहले थोड़ा आराम करने का फैसला किया, और बाद में एक-एक कर हर जगह घूमने का मन बनाया।
- घूमने के लिए एक खूबसूरत जगह
मैदानी इलाकों की अपेक्षा मसूरी में मौसम बहुत ही अलग और सुहाना था। यहां की वादियों में एक नमी थी जो हमारे दिल और मन को बहुत ही सुखद एहसास दे रही थी। हमने मसूरी घूमने के लिए होटल में पहले ही जगहों की सूचि बना ली थी। हमारे कैब के ड्राइवर ने भी कुछ जगहों पर घूमने का अपना सुझाव दिया, क्योंकि वह वही का निवासी था और उसे सभी जगहों के बारे में अच्छे से पता था।
सबसे पहले हमने ‘सर जॉर्ज एवरेस्ट’ जगह पर जाने का फैसला किया। यह जगह हमारे होटल से थोड़ी दूर थी पर रास्ते में हरियाली और मौसम का आनंद लेते हुए मन प्रसन्न हो गया, और हम सब वहां पहुंच गए। वहां पहुंचकर सबसे पहले हमने सर जॉर्ज का घर देखा। यह स्थान हिमालय और दून की पहाड़ियों में स्थित था। यहां से हमें पहाड़ियों का एक अद्भुत नज़ारा देखने को मिला। हम सभी ने यहां के पहाड़ियों और अपनी कुछ फोटो भी खिचवाई जो हमारे लिए सबसे अच्छे यादगार लम्हों में से एक है।
इसके बाद हमने मसूरी के सबसे ऊँचे स्थान लाल टिब्बा का दौरा किया। यहाँ से हम दूरबीन के सहारे केदारनाथ और वहां की अन्य पहाड़ियों को देखने का सुखद अनुभव प्राप्त किया। कैमल रोड प्राकृतिक द्वारा बनाई गई एक सुंदर आकृति है, यह बिल्कुल ऊंट की कूबड़ की तरह दीखता है और इस पर काफी आसानी से चला जा सकता था। हमने यहां कुछ समय बिताये और कुछ तस्वीरें भी ली। यहां हमने नाग देवता के मंदिर के दर्शन किये, यह भगवान शिव का एक प्रसिद्द मंदिर है। केम्पटी फाल्स एक ऐसी मनोरम जगह है जहां पहाड़ों से गिरते झरनों का एक सुन्दर और मनोरम दृश्य देखने को मिला। यह देखना सबसे सुखद एहसास था।
ऐसे मोहक और मन को लुभाने वाले नज़ारे को देखकर मेरा मन वही का हो गया। मेरी इच्छा वहां से लौटने की बिल्कुल भी नहीं थी, पर सभी ने कहां हमें और भी जगहों पर जाना है। फिर वहां से हम मसूरी की खूबसूरत झील को देखने के लिए आ गए, झील भी काफी मनोरम था। साफ पानी और एक तरफ पहाड़ों के बीच हरियाली और दूसरी तरफ ठहरने के लिए कुछ होटल इत्यादि ने मेरे मन को मोह लिया। मैंने झील में नाव की सवारी की और वहां से सुन्दर घाटियों का नज़ारा लिया। ये सब मुझे सपने सा लग रहा था। अंत हम ‘धनोल्टी’ घूमने गए और हमने वहां से बर्फ से ढ़की पहाड़ियों का नज़ारा देखा और कुछ तस्वीरें भी ली, इसके बाद हम लोग अपने होटल के लिए रवाना हो गए और रास्ते में प्राकृति के नज़ारे का आनंद लिया।
- यात्रा का अंत
हम अपने होटल पहुंचकर रात्रि का एक शानदार भोजन किया और सभी अपने-अपने कमरे में चले गए। मैं मसूरी की खूबसूरत वादियों को याद करते हुए होटल की बालकनी में टहल रहा था और वहां से होटल के आस-पास के रात्रि नज़ारे का आनंद ले रहा था। मसूरी की सुन्दर वादियों में एक सप्ताह का दिन कैसे बीत गया मुझे पता भी नहीं चला। ये हमारे सफर का आखिरी दिन था, पर अभी भी मेरा मन यहां से जाने को तैयार नहीं था। खैर अगले दिन सुबह की हमारी टिकट थी तो मैं भी जा कर सो गया और मसूरी की हसीन वादियों के सपनों के साथ कब नींद आ गई मुझे पता भी नहीं चला।
क्या हिल स्टेशन हमें प्रकृति से निकटता प्रदान करती है ?
हिल स्टेशन प्रकृति की सुन्दर वादियों से घिरा होता है। यह एक ऐसा स्थान है जो प्रकृति के बहुत ही करीब माने जाते है। यहां से प्रकृति के हर सुन्दर वादियों को देखा और एहसास किया जा सकता है। ये प्रकृति के इतने करीब होते है की यहां की वादियों में शहरों जैसा कोलाहल और प्रदूषण नहीं होता। यहां बस चारों तरफ शांति और यहां पर लोगों और वायु का प्रदूषण भी बहुत कम होता है, जो हमारे मन को मोह लेता है।
मैंने मसूरी के ऐसे ही एक हिल स्टेशन को देखा जो देहरादून से लगभग 25 किमी दूर है। यहां पहाड़ों पर फैली चारों तरफ हरियाली, एक सुखद मौसम, शांत वातावरण, गगनचुम्बी ऊँचे-ऊँचे पेड़, बहुत कम उचाईयों पर बादल इत्यादि थे। मसूरी के मार्केटों में शॉपिंग मॉल, रेस्टोरेंट इत्यादि सब मौजूद थे। दूर बर्फ से ढके पर्वत, पहाड़ों से गिरते झरने, और ऊँची-ऊँची पर्वतों की चोटियां हमें एक सुखद अनुभव दे रही थी और हमें प्रकृति के काफी नजदीक ले जा रही थी।
मैं उस सुन्दर जगह से इतना प्रभावित हुआ जैसे सारा मसूरी मेरे साथ है और मैं बस वही का हो कर रह गया। वहां का मौसम इतना मनोरम था की मैं तस्वीरें लेते समय यह महसूस किया की किस जगह की तस्वीर लू और किस जगह की छोड़ दू। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं प्रकृति के इस सुंदरता को अपने अंदर बसा लू और यही का होकर रह जाऊ। पहाड़ों पर फैली हरियाली और उनसे गिरते पानी के झरने मुझे बहुत ही अच्छा लगा। ये सारी चीजें मुझे प्रकृति के इतने करीब ले गई जैसे मानों मैं स्वर्ग में हूँ। किसी ने क्या खूब कहा है की “धरती पर कही जन्नत है तो ऐसी ही हसीन वादियों में है”। यहां की वादियों को देखकर मुझे यह कथन सत्य लगा।
अतः मैं इन सब चीजों को देखकर यह कह सकता हूँ कि हिल स्टेशन एक ऐसा स्थान है जो हमें प्रकृति के नजदीक होने का एहसास कराता है।
मसूरी की वह सुंदरता आज भी मेरे दिमाग में बसी है। मैं जब भी उस पल को महसूस करता हूँ तो मुझे लगता है आज भी मैं वही हूँ। वह सफर मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत और हसीन लम्हों में से एक है और मैं आज भी ऐसे स्थानों पर जाना पसंद करता हूँ। मैं ऐसे ही हिल स्टशनों की यात्रा जीवन में बार-बार करने की इच्छा मन में रखता हूँ।
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हिंदी यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत का स्वरूप और विकास । Theory of travelling
हिंदी यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने हेतु इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें। लेख के अंत में आपको कुछ और ज्ञानवर्धक हिंदी नोट्स की प्राप्ति होगी जो आपके ज्ञान का विस्तार करेंगे।
यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत
साहित्य’ मनोवृति का घुमक्कड़ है। जब सौंदर्यबोध की दृष्टि से उल्लास भावना से प्रेरित होकर यात्रा करता है , और उसकी मुक्त भाव से अभिव्यक्ति करता है उसे यात्रा साहित्य / यात्रा वृतांत कहते हैं। मानव प्रकृति व सौंदर्य का प्रेमी है। वह साहित्य की भांति घुमक्कड़ स्वभाव का है , जहां भी जाता है वहां से साहित्य की भांति कुछ-न-कुछ ग्रहण करता है। उसके द्वारा ग्रहण किये गये प्रेम , सौंदर्य , भाषा , स्मृति आदि को अपने शुद्ध मनोभावों से प्रकट करता है। जो साहित्य में समाहित होकर एक नई विधा का रूप ले लेता है। यह यात्रा मानव आदि – अनादि काल से करता आ रहा है। किंतु साहित्य में यह कला नवीन है जो ‘ निबंध शैली ‘ का एक नया रूप है जिसे ” यात्रा वृतांत ” कहते हैं।
इस साहित्य विधा के पीछे का उद्देश्य लेखक के रमणीय अनुभवों को हु – बहू पाठक तक प्रेषित करना है। जिसके माध्यम से पाठक उस अनुभव को आत्मसात कर सके उसे अनुभव कर सके।
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आदिकाल का विश्लेषण
आदिकाल में भी यात्रा का अधिक महत्व था। लेखक एक दूसरे देश में घूमा करते थे , और अपने अनुभव को घूम – घूम कर लोगों को बताया करते थे। नौका यात्रा की एक होड़ लग गई थी। नौका से एक – दूसरे देश को ढूंढने , भ्रमण करने का प्रचलन था। इस यात्रा में लेखक एक – दूसरे संस्कृति से परिचित होते थे शिक्षा व धर्म का प्रचार – प्रसार करते थे , अपने अनुभव को पुस्तक में सँजोते थे।
मुख्य यात्री थे – अलबरूनी , इब्नबतूता , अमीर खुसरो , हेनसांग , फाहियान , मार्कोपोलो , सेल्यूकस निकेटर आदि।
विदेशी यात्रियों – ‘ फाहियान ‘ , ‘ हेन सॉन्ग ‘ इत्यादि ने भी अपने यात्रा विवरण प्रस्तुत किए हैं।
उनके यह विवरण ज्ञान के भंडार तो कहे जा सकते हैं , पर यात्रा साहित्य नहीं। संस्कृत साहित्य में ‘ कालिदास ‘ और ‘ बाणभट्ट ‘ के साहित्य में भी आंशिक रूप से यात्रा वर्णन मिलता है। ऐसे विवरणों में लेखक के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति बहुत कम हो पाती है। वह एक तटस्थ दृष्टा के रूप में देखता है और लिख देता है। प्रकृतिगत विशेषताएं प्रतिबिंबित हो उठती है , यही कारण है कि आधुनिक यात्रा साहित्य का विकास शुद्ध निबंधों की शैली से माना जाता है।
निबंध शैली में व्यक्ति परखता , स्वच्छंदता , आत्मीयता आदि गुण यात्रा साहित्य में पाए जाते हैं। यात्रा साहित्य विविध शैलियों में लिखा जाता है जो विविध रूपों में पाया जाता है।
कुछ यात्रा साहित्य ऐसे होते हैं जिनका उद्देश्य विभिन्न देशों या स्थानो का विस्तृत परिचय देना होता है –
- राहुल सांकृत्यायन का ‘ हिमालय परिचय ‘ , ‘ किन्नर देशों में ‘ और
- शिवनंदन सहाय का ‘ कैलाश दर्शन ‘ इसी प्रकार के यात्रा वृतांत हैं
- कुछ यात्रा साहित्य का उद्देश्य देश – विदेश के व्यापक जीवन को उभारना होता है। इसमें
- यशपाल का ‘ लोहे की दीवार के दोनों ओर ‘ ,
- गोविंद दास का ‘ सुंदर दक्षिण – पूर्व ‘ आदि प्रसिद्ध है।
आधुनिक युग ( भारतेंदु युग )
मुख्य रूप से भारतेंदु के युग को ही यात्रा साहित्य का आरंभ काल माना जा सकता है। भारतेंदु ने खड़ी बोली का विकास कर कितने ही नवीन साहित्य को जन्म दिया। यह बोली जन – जन की बोली थी।
यही कारण है कि साहित्य की पहुंच एक आम व्यक्ति तक हुई।
भारतेंदु के युग को हिंदी साहित्य का जन्मकाल कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
मुख्य रचनाएं – हरिद्वार , लखनऊ , जबलपुर , रायपुर , वैद्यनाथ की यात्रा आदि उनके काल में प्रकाशित हुई थी।
उनके द्वारा संपादित पत्र पत्रिकाओं में यात्रा का अधिक महत्व था।
मुख्य रचनाएं व लेखक –
- दामोदर दास शास्त्री – ‘ मेरी पूर्व दिग्यात्रा ‘ (1885)
- देवी प्रसाद खत्री – ‘ रामेश्वर यात्रा ‘ (1893)
- शिव प्रसाद गुप्त – ‘ पृथ्वी प्रदक्षिणा ‘ (1924)
- स्वामी सत्यदेव – ‘ मेरी कैलाश यात्रा ‘ (1915) , ‘ मेरी जर्मन यात्रा ‘ (1926)
- कन्हैयालाल मिश्र – ‘ हमारी जापान यात्रा ‘ (1931)
- राम नारायण मिश्र – ‘ यूरोप यात्रा के छह मास। ‘
स्वतंत्रता पूर्व (जयशंकर प्रसाद)
जो साहित्य की नींव भारतेंदु ने रखी थी वह जयशंकर प्रसाद के युग में फलता-फूलता वृक्ष बन गया था। ‘ नाटक ‘ , ‘ यात्रा ‘ , ‘ उपन्यास ‘ , ‘ निबंध ‘ , ‘ कहानी ‘ आदि क्षेत्रों में यह काफी विकास कर चुका था। जयशंकर प्रसाद को “भारतेंदु का उत्तराधिकारी” कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस काल ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रयत्न भी किया है और स्वतंत्रता प्राप्ति को देखा भी है। इस युग में ‘ केदारनाथ ‘ , ‘ नागार्जुन ‘ , ‘ राहुल सांस्कृत्यायन ‘ मुख्य यात्रा लेखक थे।
राहुल सांकृत्यायन का योगदान यात्रा साहित्य में अद्वितीय व अग्रणी है।
उन्होंने भारत ही नहीं भारत के आस – पास वह अन्य देशों में भी भ्रमण किया। उनकी यह यात्रा कई बार जानलेवा भी साबित हुई , किंतु वह उससे बच गए। वह दुर्गम घाटी , दर्रा , पहाड़ी , पठार आदि पर भी यात्रा करने से नहीं हिचकिचाते थे।
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार –
“जिसने एक बार घुमक्कड़ धर्म अपना लिया, उसे पेंशन कहां, उसे विश्राम कहां ? आखिर में हडि्डयां कटते ही बिखर जाएंगी।” आजीवन यायावर रहे।
उनकी रचना –
- ” मेरी तिब्बत यात्रा ” ,
- ” मेरी लद्दाख यात्रा ” ,
- ” किन्नर देश में ” ,
- ” रूस में पच्चीस मास ” ,
- ” तिब्बत में सवा वर्ष ” ,
- ” मेरी यूरोप यात्रा ” प्रसिद्ध है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद (अज्ञेय युग)
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अज्ञेय व उनके द्वारा बनाया गया ” तार सप्तक ” के कवियों ने हिंदी साहित्य को कई प्रकार के बंधनों से मुक्त कर उन्हें नया आयाम वह दिशा दिखाया।
साहित्य के क्षेत्र में लोगों को आकर्षित किया।
अज्ञेय ने ‘ यात्रा वृतांत ‘ के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया उनका मानना था कि- “यायावर को भटकते हुए चालीस बरस हो गए, किंतु इस बीच न तो वह अपने पैरों तले घास जमने दे सका है, न ठाठ जमा सका है, न क्षितिज को कुछ निकट ला सका है… उसके तारे छूने की तो बात ही क्या।…यायावर न समझा है कि देवता भी जहां मंदिर में रूके कि शिला हो गए, और प्राण संचार की पहली शर्त है कि गति:गति: गति।”
उनके द्वारा रचित यात्रा वृतांत –
” अरे यायावर रहेगा याद “( 1953 ) , “एक बूंद सहसा उछली ” ( 1964 ) चित्रात्मक व वर्णात्मक शैली में प्रस्तुत कर यात्रा साहित्य को नया आयाम दिया।
मुख्य लेखक व कृतियां –
- रामवृक्ष बेनीपुरी – ” पैरों में पंख बांधकर ” (1952) , ” उड़ते चलो उड़ते चलो” |
- यशपाल – ” लोहे की दीवार ” (1953)
- भगवतशरण उपाध्याय – ” कोलकाता से पैकिंग तक ” (1953) , ” सागर की लहरों पर ” ( 1959)
- प्रभाकर माचवे – ” गोरी नजरों में हमें ” ( 1964 )
- मोहन राकेश – ” आखिरी चट्टान तक ” ( 1953 )
- निर्मल वर्मा ” चीड़ों पर चांदनी ” (1964)
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यात्रा साहित्य में यात्री अपने यात्रा के प्रत्येक स्थल और क्षेत्रों में से उन्हीं क्षेत्रों का संयोजन करता है जिनको वह अद्भुत सत्य के रूप में ग्रहण करता है। बाहरी जगत की प्रतिक्रिया से उसके हृदय में जो भावनाएं उमड़ती है , वह उन्हें अपनी संपूर्ण चेतना के साथ अभिव्यक्त कर देता है , जिससे शुष्क विवरण भी मधुर और भाव विभोर कर देने वाला बन जाता है।
पाठक एक साथ इतना तदात्म्य स्थापित कर लेता है , फिर वह स्वयं उस आनंद को प्राप्त करने के लिए तड़प उठता है। इस विषय में उल्लेखनीय है कि यात्रा साहित्य के लेखक को संवेदनशील होकर भी निरपेक्ष होना चाहिए अन्यथा यात्रा के स्थान पर यात्री के प्रधान हो उठने की संभावनाएं बढ़ जाती है , तथा वह अभिव्यक्त यात्रा साहित्य न रहकर आत्म चरित्र या आत्म स्मरण बन जाता है।
11 thoughts on “हिंदी यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत का स्वरूप और विकास । Theory of travelling”
I want to Yatra Sahitya varnan MA Hindi notes pleased send it as early as possible as notes is available in the market and exam dates is 15,11,2018 and also send the address where I get the notes
मुझे वेबसाइट काफी कुछ सीखने को मिलता है बल्कि इसने बहुत कुछ है जो आगे बढ़ने के लिए बहुत है मैं एक हिंदी ब्लॉगर हूं जो अपने शब्दों से व्याख्यान करता हूं
हमें यह जानकर खुशी हुई अभिषेक तिवारी जी
साहित्य एवं साहित्य विधा की अति रोचक ढंग से प्रस्तुति है। बहुत ही सुन्दर लगी।
Thanks bhagwan jha , keep supporting us
अत्यंत ज्ञानवर्धक, रोचक एवं परिमार्जित ब्लॉग है-हिंदी विभाग डॉट कॉम। इस ब्लाग को मेरी तरफ से विशेष बधाइयां। अनेकानेक कठिन प्रतीत होने वाले हिंदी साहित्य एवं भाषा संबंधी ज्ञान, अत्यंत मनोरंजक अर्थात रोचक एवं सरस, चित्रोपम ढंग से प्रस्तुत किया गया है। निश्चित रूप से ब्लॉगर महोदय बधाई के पात्र हैं।,-दिनेश कुमार मिश्र स्नेही
दिनेश कुमार मिश्र जी आपका हृदय से आभार ।आप जैसे पाठक यदि हिंदी विभाग को प्रेरित करते रहेंगे और मार्गदर्शन करेंगे तो निश्चित रूप से हिंदी विभाग एक श्रेष्ठ दिशा में आगे बढ़ेगा । आपके सुझाव और मार्गदर्शन का हम सदैव प्रतीक्षा करते हैं , आपका यह संदेश हिंदी विभाग के लिए अभूतपूर्व है इसके लिए हिंदी विभाग आपका आभारी है।
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यह उत्कृष्ट कोटि का ब्लॉग है।इससे हिंदी साहित्य को बढ़ावा मिलेगा। आजकल जो हिंग्लिश चलन पर है ,उससे हिंदी साहित्य को काफी ठेस पहुंची है ।यह ब्लॉग हिंदी भाषियों की कसौटी पर खरा उतरता है।
बहुत ही सुंदर तरह से हमें यात्रा साहित्य की जानकारी दी है
किसी भी ऐतिहासिक इमारत की यात्रा कर उस पर यात्रा वृतांत लिखो।
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मनुष्य एक भ्रमणशील प्राणी है। एक स्थान पर रहते-रहते जब उसका मन ऊब जाता है तो वह इधर-उधर घूमकर अन्य प्रदेशों की सैर करके अपना मन बहलाता है। पर्वतमालाओं की सैर करने का अपना अलग ही आनंद है। इस बार दशहरे की छुट्टियों में मेरी मित्र मंडली ने शिमला चलने का कार्यक्रम बनाया। अपने माता-पिता से परामर्श करके मैंने भी उसमें जाना किया। बचपन से हा मरा इच्छा था कि किसी पर्वतीय स्थान की यात्रा करू। 10 अक्तबर को हम सबने रेलगाड़ा द्वारा यात्रा शुरू की।
पर्वतीय प्रदेश का जीवनचक्र ही निराला होता है। मैं खिड़की के पास बैठा था और पर्वतीय दृश्यों को देख रहा था। रेल के डिब्बे से उनके छोटे-छोटे घर बहुत सुंदर लग रहे थे। मैं उस दृश्य का आनंद ले रहा था। कालका स्टेशन आ गया। यह पर्वतीय प्रदेश का छोटा सा जंक्शन है। इसी स्थान पर मैंने देखा लोग पहाडी वेश-भूषा पहने इधर- उधर घूम रहे थे। सौम्यता और सादगी उनके मुख से झलकती थी, पर उनमें परिश्रम करने तथा पश्थितियों से जझने का संकल्प स्पष्ट दिखाई देता था। थोडी देर प्रतीक्षा करनी पड़ी। इस बीच हमने कुछ जलपान किया। तभी हमें शिमला के लिए गाडी मिली। इस गाड़ी में चार-पांच डिब्बे थे तथा इसके दोनों ओर इंजन जुड़े हुए थे। रास्ता चक्करदार तथा संकरा था। ठंड से हम सिकुड़े जा रहे थे। हम शिमला पहुँच गए।
शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। यहाँ आधुनिक ढंग के मकान बने हुए हैं। शहर में कई सिनेमा घर है जो आकर्षण को और भी बढ़ाते हैं। मुझे स्केटिंग करने में बड़ा मज़ा आया। शिमला प्रवास के दौरान हमने राजभवन तथा इस नगरी का कोना-कोना छान मारा। हम वहाँ तीन दिन रहे। इन तीन दिनों में हमने दूर-दूर तक फैली प्रकृति की सुषमा का भरपूर आनंद लिया। ऊँची-ऊँची पर्वत मालाएँ, घाटियाँ, भाँति-भाँति के पुष्पों से लदे वृक्ष देखकर ऐसा मन कर उठा कि सारी उम्र यहीं बिता दें। पहाडियों की चोटियों से नीचे झाँकने पर गहरे गड्ढे ऐसे दिखाई देते मानो वे सीधे पाताल से संबद्ध हों। ये तीन दिन बड़ी मौज-मस्ती में कटे और तभी वापसी की तैयारियाँ शुरू कर दी गयीं। तीन दिन के प्रवास के बाद हम वहाँ से चल पड़े। इस बार हम बस द्वारा चले। बस से हमने ऊँची-नीची पहाड़ियाँ देखीं तथा चक्करदार साँपनुमा मोड़ देखे, जिनके नीचे गहरे गड्ढे थे। पर्वतों के आस-पास हरियाली, खेत में हमें आकृष्ट कर रहे थे। परंतु हम धीरे-धीरे इस प्रदेश से दूर होते गए और अपने घर आ गए। आज भी मुझे वह यात्रा याद आती है।
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ट्रेन छूटने में अभी काफी समय था । कुली ने हमारा सामान ठीक तरह से लगा दिया। फिर भी डिब्बे में भीड़ का सामना करना पड़ा । सर्दी के मौसम में भी पसीने के कण माथे पर उभर आये थे । इस परेशानी के बावजूद मन में विशेष उल्लास था ।
निश्चित समय पर गार्ड ने हरी झण्डी दिखाई । ट्रेन चली और कुछ ही देर में वह अपनी सामान्य गति पकड़ गई । कुछ देर तक हमने गपशप की, फिर पलकें भारी होने लग गईं और हमने सुरक्षित बर्थ पर अपने बिस्तर लगा लिए । कम्बल ओढ़ कर हम दोनों लेट गए। कोई स्टेशन आने पर हम देख लेते ।
रेलगाड़ी अब तीव्र गति से मंजिल की ओर बड़ रही थी । तब पता नहीं हमें कब निद्रा देवी ने आ दबोचा । अगले दिन सुबह एक स्थान पर देखा कि बिजली के तारों के छोटे-छोटे चार बक्से अपने आप खिसकते जा रहे हैं।
पूछने पर पता चला कि, चण्डीगढ़ के सीमेण्ट कारखाने में ऑटोमैटिक क्रन्दन डारा पत्थर ढोये जा रहे हैं । कुछ देर बाद हम कालका जी पहुँच गए । डिब्बे से नीचे उतर कर ठंड से बचने के लिए गरम-गरम चाय पी । सामने काफी दूरी तक ऊँचे-ऊँचे काले पर्वत दिखाई दे रहे थे ।
ADVERTISEMENTS:
कालका जी से हमें शिमला जाने के लिए ट्रेन बदलनी पड़ी । उस ट्रेन के डिब्बे कुछ छोटे थे । हमारा सामान साथ के डिब्बे में रख दिया गया । उस पर नम्बर और हमारे नामों की पर्ची लगा दी गई । हमारी यह छोटी ट्रेन धीरे- धीरे ऊपर की ओर चढ़ रही थी । 30 मिनट बाद ही नीचे की ओर मैदान दिखाई देने लग गए । जिस समय ट्रेन पहाड़ियों पर गोल घूमती थी हमें इंजन के साथ वाले डिब्बे में बैठे हुए यात्री बिल्कुल साफ दिखाई देते थे ।
धीरे – धीरे सोलन जैसे छोटे-छोटे स्टेशन आते रहे । एकदम गड़गड़ाहट हुइ । सब यात्री डर गए । रेल की बत्तियाँ जल गईं । पता चला वह सुरंग थी । इसी प्रकार की कई सुरंगें आईं । बाद में शिमला का स्टेशन आ गया । एक ओर यह स्टेशन था और दूसरी ओर खाइयाँ, पेड़ व पहाड़ बर्फ से ढँके थे ।
स्टेशन पर उतरते ही हमें ठंड लगने लगी । सूरज का कहीं नामोनिशान नहीं था । हमने गरम कपड़ों से अपने को लाद लिया । फिर कुली की पीठ पर सामान लदवा कर होटल की तलाश में निकले । आसपास के सभी होटल भरे हुए थे । बड़ी मुश्किल से एक होटल में 270 रुपये रोज पर एक कमरा मिला । एक सौ पच्चीस सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते हमारी साँस फूल गई । फिर भी ईश्वर को धन्यवाद दिया कि सिर ढकने को स्थान, तो मिला ।
कुछ देर आराम कर और भोजन आदि से निबट कर मालरोड़ पर घूमने के लिए निकले, वहाँ काफी चहल-पहल थी । अगले दो दिनों में जाखू मन्दिर, करोड़ा देवी, शल्पा देवी, संजोली, कुफरा, टूटी कड़ी, चिड़ियाघर, राजभवन और छोटा शिमला आदि घूमे । संध्या का समय हमारा ‘ रिज ‘ पर कटा ।
यहाँ पर घूमने में ठंड होते हुए भी ठंड महसूस नहीं हुई । नव वर्ष की तैयारी में शिमला दुल्हन की तरह सज उठा था । वहाँ से टैक्सी द्वारा दिल्ली लौट आए । हमारी यह छोटी-सी शिमला यात्रा चिरस्मरणीय रहेगी ।
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किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध
किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध – yatra essay in hindi.
ज्ञानेनहीना: पशुभि: समाना:।
अर्थात्—ज्ञान से हीन मनुष्य पशु के समान है।
अध्ययन, बड़ों का सान्निध्य, सत्संग आदि ज्ञान-प्राप्ति के साधन कहे जाते हैं। इनमें अध्ययन के बाद यात्रा का स्थान प्रमुख है। यात्रा के माध्यम से विविध प्रकार का प्रत्यक्ष ज्ञान बड़ी ही सहजता के साथ तत्काल प्राप्त हो जाता है। यही कारण है कि यात्रा का अवसर हर कोई पाना चाहता है। प्रत्येक मानव अपने जीवन में छोटी-बड़ी किसी-न-किसी प्रकार की यात्रा अवश्य ही करता है।
मुझे शिक्षा-प्राप्ति के लिए त्रिशूल पर बसी विश्वनाथ की नगरी काशी ठीक जगह जँची, जहाँ इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से लेकर हर तरह की विद्या की शिक्षा देने के लिए हिंदू विश्वविद्यालय का विशाल द्वार सबके लिए खुला है। भारतीय संस्कृति की तो बात ही क्या, ऋग्वेद की ऋचाओं से लेकर चौरपंचासिका तक के पढ़ानेवाले अनेक प्रकांड पंडित भरे पड़े हैं। बहुत सोच-विचार के बाद मैंने काशी जाने का निश्चय कर लिया था।
मैं उन दिनों लगभग पंद्रह साल का था। मुहूर्त देखा गया। मैं बड़ी उत्कंठा से उस दिन की प्रतीक्षा करता रहा जिस दिन मुझे यात्रा पर रवाना होना था। आखिर वह दिन आया। मैं शामवाली गाड़ी से काशी के लिए चल पड़ा। पिताजी मुझे काशी पहुँचाने साथ आ रहे थे। स्टेशन से ज्यों ही गाड़ी चली कि मेरे मन की आँखों में उज्ज्वल भविष्य के सुनहरे दृश्य झलमलाने लगे। उन दृश्यों को देखते-देखते ही मैं सो गया।
पिताजी ने जगाया, तब समस्तीपुर का जंक्शन बिजली के लट्टुओं की रोशनी में जगमगा रहा था। एक बार आँखें चौंधिया गईं। गाड़ी अपने नियत समय से पैंतीस मिनट देर से आई, सो भी गलत प्लेटफॉर्म पर। बड़ी दौड़-धूप करके और कुली को अतिरिक्त पैसे देकर जैसे-तैसे हम प्रयाग फास्ट पैसेंजर के डिब्बे में बैठ पाए।
सवेरे छपरा में हाथ-मुँह धोए। उसके बाद मैं तो जब-तब कुछ-न-कुछ खाता ही रहा, परंतु पिताजी ने रास्ते भर कुछ नहीं खाया। गाड़ी चलती रही, दिन भी ऊपर उठता गया। औड़िहार में आकर पिताजी ने खोवा खरीदा। मुझे खाने को दिया, जो बहुत अच्छा लगा। फिर तो देखते-देखते ही पूरी गाड़ी खोवे के बड़े-बड़े थालों से भर गई। मालूम हुआ, यह सारा खोवा काशी जा रहा है और मैं भी काशी जा रहा हूँ। एक बार फिर मन झूम उठा।
औड़िहार से गाड़ी चल पड़ी। एकाध स्टेशन बाद प्राय: कादीपुर स्टेशन से ही सावन का मेह बरसने लगा। अलईपुर स्टेशन पर गाड़ी पहुँची, तब मूसलधार वर्षा होने लगी। पानी थमने पर सामान सहित भीगे हुए पिताजी और मैं रिक्शे पर बैठकर नगर की ओर चले।
नागरी प्रचारिणी सभा, टाउन हॉल, कोतवाली, बड़ा डाकघर, विशेश्वरगंज की सट्टी, मैदागिन का चौराहा आदि देखते हुए चौक पहुँच गए। वहीं पर पास में ही कचौड़ी गली में पिताजी के एक मित्र रहते थे। उन्हीं के घर सामान रखकर हम मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने चले गए। शाम को विश्वनाथ की आरती देखकर माता अन्नपूर्णा के दर्शन किए, फिर दशाश्वमेध घाट तक आए।
दशाश्वमेध तथा आस-पास के सुंदर और विशाल भवनों को देखकर मैं चकित रह गया। वहाँ हजारों नर-नारी स्नान, ध्यान, पूजा-पाठ में लगे थे तथा नावों पर बैठे लोग इधर-उधर सैर कर रहे थे। घाटों पर छाए अजीब कोलाहल को देखता हुआ मैं पिताजी के साथ डेरे पर लौट आया।
दूसरे दिन मैं अपने अभीष्ट कार्य में जुट गया। इस यात्रा में मुझे कितने ऐसे विषयों का ज्ञान हुआ, जो जीवन-यात्रा में आज भी उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। जब कभी अवसर मिले, यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
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धार्मिक स्थल की यात्रा पर निबंध.
धार्मिक स्थल की यात्रा पर निबंध धार्मिक स्थल की यात्रा पर निबंध इस वर्ष मैं अपने माता - पिता व भाई बहनों के साथ हरिद्वार गया .हम वहां बस हरिद्वार हरिद्वार द्वारा प्रातः १० बजे पहुंचे .हम एक होटल में ठहरे .हरिद्वार एक प्रसिद्ध पवित्र नगरी है जो पवित्र गंगा के किनारे स्थित है .गंगा जल शुद्ध पवित्र जल है जिसमें एक गोता सभी पापों को दूर करता है .
हरिद्वार |
धार्मिक स्थल का विवरण -
अच्छी व्यवस्था - , यात्रा सुखद रही - .
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निर्मल वर्मा
1929 - 2005 | शिमला , हिमाचल प्रदेश
समादृत उपन्यासकार-कथाकार और निबंधकार। भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित।
- कवियों की सूची
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- आलोचनात्मक लेखन 2
निर्मल वर्मा के यात्रा वृत्तांत
जहाँ कोई वापसी नहीं.
सिंगरौली-1983 वह धान रोपाई का महीना था—जुलाई का अंत—जब बारिश के बाद खेतों में पानी जमा हो जाता है। हम उस दुपहर सिंगरौली के एक क्षेत्र—नवागाँव गए थे। इस क्षेत्र की आबादी पचास हज़ार से ऊपर है, जहाँ लगभग अठारह छोटे-छोटे गाँव बसे हैं। इन्हीं गाँवों में
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Yatra Vritant
Yatra vritant – यात्रा वृतान्त, yatra vritant का उद्देश्य.
Yatra Vritant अपने आप में एक बहुत बड़ा शब्द है इसके बारे में यही कहूँगा की कुछ लोगो को तो घूमना पसन्द होता है अपना बैग पैक किये निकल लिये फोटो खीची और लौट आये लेकिन कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जो घुमते है फोटो खीचते और घूमने वाली जगह के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी एकत्र करके एक लेख लिख देते है जिससे जो भी पाठक वह लेख पढता है उसे भी बड़ी ही काम की जानकारियां मिल जाती है |
लेखक Yatra Vritant को इस प्रकार लिखते है की जब आप पढोगे तो ऐसा ही लगता है की हम भी घूम रहे है हर एक चीज को विस्तृत में बयां किया जाता है जिससे पाठको में रोचकता बनी रहे , एक अच्छा यात्रा वृतांत वाही होता है जो पाठक को उस यात्रा को महसूस करा दे और पाठक उस जगह जाने के लिये भी लालायित हो जाये |
एक अच्छा यात्रा वृतांत पाठक को मानसिक रूप से तो घुमा ही देता है अच्छा हर इंसान घुमक्कड़ी होता है सबकी इच्छा कही न कही घूमने की होती न दूर तो पास ही सही और कुछ घुमक्कड़ अपनी यात्राओ को लिपिबद्ध कर देते है वही यात्रा वृतांत कहलाता है |
चलिए यात्रा वृतांत Yatra Vritant के उद्देश्य की बात कर ली जाये देखिये जिन व्यक्तियों को घुमक्कड़ी के साथ साथ साहित्य में भी रूचि होती है वो जहाँ भी घूमने जाते वहां का अपना सारा अनुभव एक लेख में संकलित कर देते है जिसका उद्देश्य पाठक को ट्रेवल के प्रति उस जगह के प्रति आकर्षित करना होता है जिससे पाठक को पढने में भी मजा आता है और उसकी इच्छा भी ट्रेवल के लिए बढ़ जाती है |
एक अच्छे यात्रा वृतान्त का उद्देश्य यात्रा की जगह के सामाजिक जीवन शेली से पाठको को रूबरू कराना होता है |
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मेरे यात्रा वृतान्त
प्रसिद्ध यात्रा वृतान्त.
इस पेज में आपको मेरे यात्रा वृतान्त पढने को मिलेंगे मई कोई बड़ा लेखक नहीं ना ही मुझको साहित्य की ज्यादा जानकारी है लेकिन मै हर लेखक और साहित्य का बहुत सम्मान करता हूँ तो जाहिर सी बात है मेरे Yatra Vritant बहुत ज्यादा उच्च कोटि के तो नहीं होंगे लेकिन कोशिश करूँगा अपने हर एक यात्रा वृतांत में ज्यादा से ज्यादा जानकारी लिखू सच लिखू और लिखने की शैली मजेदार हो जिससे आप लोगो के चेहरे पर मुस्कान आये |
हिंदी साहित्य में यात्रा वृतान्त के लिए बहुत से लेखक जाने जाते है जिनमे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र , बालकृष्काण भट्ट , प्रताप नारायन मिश्र , हरदेवी , श्रीधर पाठक , लोचन प्रसाद पाण्डेय , देवी प्रसाद खत्री , स्वामी सत्यदेव आदि नाम शामिल है | अच्छा Yatra Vritant के क्षेत्र का सबसे बड़ा नाम राहुल सांस्कृत्यायन जी का है इन्होने अपना जीवन देश विदेश की यात्राओ में ही व्यतीत कर दिया
Kannauj Attar Ka Shahar – यहाँ की गलियां भी महकती है और गट्टे में भी मिठास है
March 13, 2021 March 13, 2021 Anurag Singh 0
नाम तो बहुत सुना था और मेरे शहर से पड़ोस में है कन्नौज लेकिन कभी जाना नहीं हुआ था एक शाम को एकदम से सोचा क्यों न कन्नौज ही घूम आये पड़ोस में ही तो है तो बस कर ली तैयारी अरे तैयारी में क्या बस एक बोतल पानी सेनेटाईज़र मास्क आधार कार्ड बस , कन्नौज हमारे शहर हरदोई से महज 60 किलोमीटर है तो मैंने बस से जाने का तय किया और अगले ही दिन सुबह मै कन्नौज जाने वाली बस में था पड़ोस में एक व्यक्ति आके बैठ गए और थोड़ी ही देर में हमारी बस कन्नौज की और चल दी |
जो सज्जन पास बैठे थे उनसे मैंने थोड़ी हाई हेल्लो की तो पता चला की वो कन्नौज के ही निवासी है तो मैंने उनसे जानकारी मांगी की आपके शहर में क्या क्या घुमक्कड़ी की जा सकती है तो उन्होंने मुझे बाबा गौरी शंकर मन्दिर , फूलमती देवी मन्दिर , जयचंद का किला , मेहंदी घाट , माँ अन्नपूर्णा देवी मंदिर, , मखदूम जहानिया का नाम बताया अब मै ठहरा भुलक्कड़ तो ये सब मैंने मोबाइल में ही नोट कर लिया बस अब मै Kannauj Attar के शहर के आने का इंतज़ार करने लगा |
Ram Asrey Sweets Hazratganj Lucknow Aur Bajpai Kachori Bhandar
January 20, 2021 January 20, 2021 Anurag Singh 0
Ram Asrey Sweets Hazratganj Lucknow Aur Bajpai Kachori Bhandar Ye Dono Shop Uttar Pradesh Ki Rajdhani Lucknow me Hai . राम आसरे स्वीट्स और बाजपेयी कचौड़ी भण्डार ये दोनों स्वाद के ठिये लखनऊवासियों के लिए तो जाने माने है इसके अलावा जो भी घुमक्कड़ी भाई बंधु तहजीब के शहर जरूर जाए लखनऊ घूमने आये तो वो भी इन दोनों खाने के अड्डो पर भी जरूर जाए |
Lko Me Ghumne Ki Jagah गोमती नदी के मध्य बना गोमेश्वर शिव मन्दिर
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Lko Me Ghumne Ki Jagah में हम आपको शहर लखनऊ के एक ऐसे मन्दिर के दर्शन कराएँगे जो गोमती नदी के मध्य बना हुआ है इस मंदिर का नाम गोमेश्वर शिव मन्दिर है और रोचक बात ये की इस मन्दिर में जाने के लिए हमें नाव का सहारा लेना होता है कुल मिलाके आप कह सकते हो की हम इस शिव मंदिर तक नाव में बैठकर जायेंगे क्यूंकि यह गोमती के मध्य एक टापू पर है इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे की इस शिव मन्दिर तक कैसे पहुंचे नाव का किराया क्या है और यहाँ क्या क्या है |
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एक कप चाय और घुमक्कड़ी का रिश्ता बहुत ही गहरा है दूसरो का तो पता नहीं लेकिन मेरी कोई भी घुमक्कड़ी बिन चाय के अधूरी है , और मेरी मानिये तो आप की घुमक्कड़ी की सारी थकान को चंद मिनटों में उड़न छू करने का दम रखती है सिर्फ एक कप चाय , यह पोस्ट एक वृतान्त की तरह ही है |
Vindhyachal Dham ki Meri Yatra
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dhyachal Dham जाने का विचार अचानक ही बना था चलिये शुरू करते है विन्ध्याचल धाम का यात्रा वृतांत , मै अपने गृह जनपद हरदोई में अपने मित्र लैपटॉप के साथ बैठा हुआ था वही कोई शाम के 7 बज रहे थे मई का महिना था मेरे एक जानने वाले है पेशे से वो टीचर है और लखनऊ के रहने वाले है तो उनका फ़ोन आया की कल बनारस चलोगे मै तो घूमने के लिये हमेशा तैयार ही रहता हु तो मैंने हां बोल दी तो उन्होंने बताया की कल शाम 6 बजे वरुणा एक्सप्रेस से चलना है मैंने कहा ठीक मै पहुच जाऊंगा अगले दिन मैंने बैग पैक किया और त्रिवेणी एक्सप्रेस से लखनऊ पहुच गया मई शाम को ४:20 बजे चारबाग रेलवे स्टेशन लखनऊ में था |
Meri Pehli Hawai Yatra – पहली हवाई यात्रा
September 24, 2019 July 16, 2021 Anurag Singh 2
पहली हवाई यात्रा के उत्साह, रोमांच, थोड़ा सा डर, जिज्ञासा से मन उथल पुथल हो रहा था जैसे तैसे चारबाग रेलवे स्टेशन पर पहुँचा, लखनऊ चारबाग सुबह 9 बजे ही पहुँच गया था जबकि मेरी गोवा की फ्लाइट शाम 5:30 पर थी खैर अपने एक रिश्तेदार के घर चला गया चाय नाश्ता खाना पीना करके कुछ आराम की और 3 बजे फिर आ गया चारबाग और पहुँच गया मेट्रो स्टेशन वाकई मे लखनऊ की मेट्रो के स्टेशन देखते ही बनते है, टिकट काउंटर पर जाकर लखनऊ एयरपोर्ट की टिकट ली और चल पड़ा जैसे ही प्लेटफॉर्म पर पंहुचा मेट्रो रेल आ चुकी थी मुझे तो जल्दी थी ही फटाफट चढ़ गया वाकई मे साफ़ सफाई नज़र आ रही थी मेट्रो मे, मेरा मेट्रो का सफर भी शानदार रहा |
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हिंदी यात्रा-वृत्तान्त की सूची | hindi yatra vrittant
हिंदी यात्रा-वृत्तान्त
जब कोई लेखक किसी यात्रा का कलात्मक एवं साहित्यिक विवरण प्रस्तुत करता है तो उसे यात्रावृत्त कहा जाता है। हिन्दी साहित्य में यात्रा-वृत्तान्त लिखने की परम्परा का सूत्रपात भारतेन्दु से माना जाता है। इनके यात्रावृत्त विषयक रचनाएँ कविवचन सुधा में प्रकाशित होती थीं। राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय और नागार्जुन को आधुनिक हिंदी साहित्य का ‘घुमक्कर बृहतत्रयी’ कहा जाता है। प्रमुख यात्रा-वृत्तान्त की सूची निम्नलिखित है-
यात्रा-वृत्तान्त की सूची
hindi yatra vrittant list-
भारतेन्दु | सरयू पार की यात्रा |
मेंहदावल की यात्रा | |
लखनऊ की यात्रा | |
प्रताप नारायण मिश्र | विलायत यात्रा |
राहुल सांकृत्यायन | मेरी तिब्बत यात्रा |
मेरी लद्दाख यात्रा | |
किन्नर देश में | |
रूस में पच्चीस मास | |
घुमक्कड़ शास्त्र | |
यात्रा के पन्ने | |
एशिया के दुर्गम भूखंड | |
चीन में कम्यून | |
चीन में क्या देखा | |
राहुल यात्रावली | |
रामबृक्ष बेनीपुरी | पैरों में पंख बांधकर |
उड़ते चलो-उड़ते चलो | |
यशपाल | लोहे की दीवार के दोनों ओर |
राह बीती | |
काका कलेलकर | हिमालय की यात्रा |
सूर्योदय का देश | |
अज्ञेय | अरे यायावर रहेगा याद? |
एक बूँद सहसा उछली | |
बहता निर्मल पानी | |
भगवतशरण उपाध्याय | कलकत्ता से पोलिंग |
सागर की लहरों पर | |
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ | देश-विदेश |
मेरी यात्राएं | |
प्रभाकर माचवे | गोरी नज़रों में हम |
मोहन राकेश | आखिरी चट्टान तक |
रघुवंश | हरी घाटी |
निर्मल वर्मा | चीड़ों पर चाँदनी |
हँसती घाटी दहकते निर्जन | |
धर्मवीर भारती | यादें यूरोप की |
यात्रा चक्र | |
ठेले पर हिमालय | |
विष्णु प्रभाकर | हँसते निर्झर: दहकती भट्टी |
ज्योति पुंज हिमालय | |
हमसफर मिलते रहे | |
अमृता प्रीतम | इक्कीस पत्तियों का गुलाब |
नगेन्द्र | तंत्र लोक से यंत्र लोक तक |
अप्रवासी की यात्राएं | |
श्रीकान्त शर्मा | अपोलो का रथ |
गोविन्द मिश्र | धुन्ध भरी सुर्खी |
कमलेश्वर | खण्डित यात्राएं |
कश्मीर रात के बाद | |
आँखों देखा पाकिस्तान | |
बलराज साहनी | रुसी सफरनामा |
कर्ण सिंह चौहान | यूरोप में अंतर्यात्राऐं |
रामदरश मिश्र | तना हुआ इन्द्र धनुष |
मोर का सपना | |
पड़ोरा की खुशबू | |
मंगलेश डबराल | एक बार आयोवा |
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी | आत्मा की धरती |
अंतहीन आकाश | |
एक नाव के यात्री | |
रमेश चन्द्र शाह | एक लम्बी छाह |
कृष्णदत्त पालीवाल | जापान में कुछ दिन |
नरेश मेहता | कितना अकेला आकाश |
नासिरा शर्मा | जहाँ फव्वारे लहू रोते हैं |
मनोहर श्याम जोशी | क्या हाल है चीन के |
पश्चिमी जर्मनी पर उड़ती नज़र | |
निर्मला जैन | दिल्ली: शहर-दर-शहर |
असगर वजाहत | चलते तो अच्छा था |
रास्ते की तलाश में | |
पाकिस्तान का मतलब क्या | |
कृष्णा सोबती | बुद्ध का कमण्डल: लद्दाख |
ज्ञानरंजन | कबाड़खाना |
पंकज विस्ट | खरामा-खरामा |
रमणिका गुप्ता | लहरों की लय |
पुरुषोत्तम अग्रवाल | हिंदी सराय: अस्त्राखान वाया येरेवान |
उर्मिलेश | क्रिस्टेनिया मेरी जान |
विनोद तिवारी | नाज़िम हिकमत के देश में |
पदमा सचदेव | मैं कहती हूँ आँखिन देखी |
हरिराम मीणा | जंगल-जंगल जलियांवाला |
साइबर सिटी से नंगे आदिवासियों तक | |
आदिवासी लोक की यात्राएँ | |
सांवरमल सांगानेरिया | अपना क्षितिज, अपना सूरज |
देवेन्द्र मेवाड़ी | दिल्ली से तुंगनाथ वाया नागनाथ |
अमृतलाल वेगड़ | तीरे-तीरे नर्वदा |
अलोक रंजन | सियाहत |
फूलचन्द मानव | मोहाली से मेलबर्न |
अनुराधा बेनीवाल | आज़ादी मेरा ब्रांड |
- अज्ञेय का यात्रा वृतांत ‘अरे यायावर रहेगा याद?’ स्वदेश यात्रा से संबंधित है और ‘एक बूँद सहसा उछली’ विदेश यात्रा से संबंधित है।
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Meri Yatra / Yatra Vritant Essay in Hindi | Kisi Yatra Ka Varnan in Hindi Essay. किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध, यात्रा के स्थल का वर्णन यात्रा का निर्णय और तैयारी यात्रा का वर्णन
यात्रा करने से मनोरंजन होता है। इस साइट पर पर्वत यात्रा, स्थान का आंखों देखा दृश्य, रोचक यात्रा का वर्णन पर निबंध के समालोचन के साथ हिंदी में लिखे हुए निबंध की रूपरेखा
यात्रा का वर्णन . Yatra ka Varnan. हर आदमी की एक बंधी-बंधाई निश्चित दिनचर्या होती है जिससे आदमी अक्सर ऊब जाता है। फिर वह अपनी इस दिनचर्या में थोड़ा बदलाव चाहता है ...
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Hindi yatra sahitya aur yatra vritant hindi notes. हिंदी यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत का स्वरूप और विकास की सम्पूर्ण जानकारी। Theory of travelling ... I want to Yatra Sahitya varnan MA Hindi notes pleased send ...
हिंदी साहित्य में लिखे गए यात्रा संस्मरणों को खंगाल कर दैनिक 'जनसत्ता' के ...
पर्वतीय यात्रा पर निबंध- Essay on Parvatiya Yatra in Hindi / Parvatiya Sthal ki yatra par Nibandh.मनुष्य एक भ्रमणशील प्राणी है। एक स्थान पर रहते-रहते जब उसका मन ऊब जाता है तो वह इधर-उधर घूमकर अन्य ...
Yatra ka varnan in hindi essay. हर एक इंसान को अपने जीवन में किसी अच्छे स्थान पर यात्रा करने जाना चाहिए और यात्रा पूरे परिवार के साथ करना चाहिए.आज से कुछ समय पहले मैंने भी ...
रेल यात्रा का वर्णन पर निबन्ध | Essay on Train Journey in Hindi! मैंने अपने मित्र कमल के साथ दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में ' हिमपात ' देखने का विचार बनाया ...
Hindi Essay on "Kisi Yatra ka Varnan" , "किसी यात्रा का वर्णन" Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes. किसी यात्रा का वर्णन . Kisi Yatra ka Varnan .
किसी यात्रा का वर्णन पर निबंध, Yatra Essay in Hindi, अध्ययन, बड़ों का सान्निध्य, सत्संग आदि ज्ञान-प्राप्ति के साधन कहे जाते हैं। इनमें अध्ययन के बाद यात्रा का स्थान ...
धार्मिक स्थल की यात्रा पर निबंध. धार्मिक स्थल की यात्रा पर निबंध इस वर्ष मैं अपने माता - पिता व भाई बहनों के साथ हरिद्वार गया .हम वहां ...
बाल साहित्य के अंतर्गत बच्चों और किशोरों के लिए लिखी गई रचनाएँ संकलित की गई हैं।. Nirmal Verma Yatra Vritaant available in Hindi.Access to Yatra Vritaant's videos, audios & Ebooks of Nirmal Verma.
Essay on my Trip in Hindi | आज के दौर में हम अपने काम और करियर के पीछे इतना व्यस्त हो गए हैं कि हमें अपने और अपने परिवार के लिए समय निकालना दूभर हो रहा है।
लेखक Yatra Vritant को इस प्रकार लिखते है की जब आप पढोगे तो ऐसा ही ... ब्लॉग Tourist Places in India in hindi से सम्बन्धित Complete Travel Blog in Hindi है और यह एक प्रयास है आप तक ...
यात्रा-वृत्तान्त की सूची. hindi yatra vrittant list-. अरे यायावर रहेगा याद? अज्ञेय का यात्रा वृतांत 'अरे यायावर रहेगा याद?'. स्वदेश यात्रा से संबंधित ...
रथ यात्रा पर निबंध (rath yatra essay in hindi) पूरी रथ यात्रा प्रक्रिया में हिंदू देवताओं भगवान पुरी जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के गुंडिचा माता मंदिर के ...