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अनुसंधान का अर्थ ( Meaning of Research)
अनुसंधान के द्वारा उन मौलिक प्रश्नों के उत्तर देने के प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। यह उत्तर मानवीय प्रयासों पर आधारित होता है इस प्रत्यय को चन्द्रमा के एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। कुछ वर्ष पहले जब तक मनुष्य चन्द्रमा पर नहीं पहुँचा था, चन्द्रमा वास्तव में क्या हैं ? इस सम्बन्ध में सही जानकारी नहीं थी। यह एक समस्या भी थी जिसका कोई समाधान भी नहीं था। मनुष्य को चन्द्रमा के सम्बन्ध में मात्र आवधारणाएं ही थी, शुद्ध ज्ञान नहीं था। परन्तु मनुष्य अपने प्रयास से चन्द्रमा पर पहुंच गया है। इस प्रकार शोध कार्यों द्वारा उन प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर साहित्य में उपलब्ध नहीं है अथवा मनुष्य की जानकारी में नहीं है। उन समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयत्न किया जाता है जिसका समाधान उपलब्ध नहीं है और न ही मनुष्य की जानकारी में है।
अनुसंधान की परिभाषा ( Definition of Research)
अनेक परिभाषाएं अनुसन्धान की गई है प्रमुख परिभाषा इस प्रकार हैं-
रेडमेन एवं मोरी के अनुसार- “नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए व्यावस्थित प्रयास ही अनुसंधान हैं।”
पी० एम० कुक के अनुसार- ‘अनुसंधान किसी समस्या के प्रति ईमानदारी, एवं व्यापक रूप में समझदारी के साथ की गई खोज है। जिसमें तथ्यों, सिद्धान्तों तथा अर्थों की जानकारी की जाती है। अनुसंधान की उपलिब्ध तथा निष्कर्ष प्रामाणिक तथा पुष्टि करने योग्य होते हैं। जिससे ज्ञान में वृद्धि होती है।
उद्देश्य ( Objectives of Research)
शोध समस्याओं की विविधता अधिक है इसके चार प्रमुख उद्देश्य होते हैं- सैद्धान्तिक उद्देश्य, तथ्यात्मक उद्देश्य, सत्यात्मक उद्देश्य तथा व्यावहारिक उद्देश्य इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
- सैद्धान्तिक उद्देश्य ( Theoretical Objectives)- अनुसंधान में वैज्ञानिक शोध कार्य द्वारा नये सिद्धान्तों तथा नये नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। इस प्रकार के शोध कार्य में अर्थापन होता है। इसमें चरों के सम्बन्धों को प्रगट किया जाता है और उनके सम्बन्ध में सामान्यीकरण किया जाता है। इससे नवीन ज्ञान की वृद्धि होती है, जिनका उपयोग शिक्षण तथा निर्देशन की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाता है।
- तथ्यात्मक उद्देश्य ( Factual Objectives)- शिक्षा के अन्तर्गत ऐतिहासिक शोध-कार्यो। द्वारा नये तथ्यों की खोज की जाती है। इनके आधार पर वर्तमान को समझने में सहायता मिलती है। इन उद्देश्यों की प्रकृति वर्णनात्मक होती है। क्योंकि तथ्यों की खोज करके, उनका अथवा घटनाओं का वर्णन किया जाता है। नवीन तथ्यों की खोज शिक्षा-प्रक्रिया के विकास तथा सुधार में सहायक होती है, निर्देशन प्रक्रिया का विकास तथा सुधार किया जाता है।
- सत्यात्मक उद्देश्य ( Establishment of Truth Objective)- दार्शनिक शोध कार्यों द्वारा नवीन सत्यों का प्रतिपादन किया जाता है। इनकी प्राप्ति अन्तिम प्रश्नों के उत्तरों से की जाती है। दार्शनिक शोध-कार्यों द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों, सिद्धान्तों तथा शिक्षण विधियों तथा पाठ्यक्रम की रचना की जाती है। शिक्षा की प्रक्रिया के अनुभवों का चिन्तन बौद्धिक स्तर पर किया जाता है। जिससे नवीन सत्यों तथा मूल्यों को प्रतिपादन किया जा सकता है।
- व्यावहारिक उद्देश्य ( Application Objectives)- शैक्षिक अनुसंधा निष्कर्षों का व्यावहारिक प्रयोग होना चाहिए। परन्तु कुछ शोध-कार्यों में केवल इन्हें विकासात्मक अनुसन्धान भी कहते है। क्रियात्मक अनुसन्धान से शिक्षा की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास किया जाता है अर्थात् इनका उद्देश्य व्यावहारिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से इसका उपयोग अधिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से भी इस उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। निर्देशन में इसकी उपयोगिता अधिक होती है।
अनुसन्धान का वर्गीकरण (Classification of Research)
अनुसन्धान के उद्देश्यों से यह स्पष्ट है कि अनुसन्धानों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है। प्रमुख वर्गीकरण मानदण्ड पर आधारित है-
योगदान की दृष्टि से (Contribution Point of View)
शोध कार्यों के योगदान की दृष्टि से शैक्षिक अनुसन्धानों को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-
मौलिक अनुसंधान ( Basic or Fundamental Research)- इन शोध कार्यों द्वारा नवीन ज्ञान की वृद्धि की जाती है-नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन नवीन तथ्यों की खोज, नवीन तथ्यों का प्रतिपादन होता है। मौलिक-अनुसन्धानों से ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि की जाती है। इन्हें उद्देश्यों की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
- प्रयोगात्मक शोध-कार्यों से नवीन सिद्धान्तों तथा नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। सर्पक्षण शोध से इसी प्रकार का योगदान होता है।
- ऐतिहासिक शोध कार्यो से नवीन तथ्यों की खोज की जाती है। जिनमें अतीत का अध्ययन किया जाता है और उनके आधार पर वर्तमान को समझने का प्रयास किया जाता है।
- दार्शनिक शोध कार्यों से नवीन सत्यों एवं मूल्यों का प्रतिपादन किया जाता है। शिक्षा का सैद्धान्तिक दार्शनिक अनुसन्धानों से विकसित किया जा सकता है।
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- शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)-परिभाषा, विशेषताएँ, सिद्धान्त
- शैक्षिक निर्देशन-उद्देश्य एवं आवश्यकता (Objectives & Need)
- व्यावसायिक निर्देशन (Vocational guidance)- अर्थ, उद्देश्य, शिक्षा का व्यावसायीकरण
- परामर्श (Counselling)- परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य, विशेषताएँ
- विशेष शिक्षा की आवश्यकता | Need for Special Education
- New Education Policy- Characteristics & Objectives in Hindi
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सम्पूर्ण जानकारी देने में सक्षम है।
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अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा | अनुसंधान प्ररचना के प्रकार | Research Design in Hindi
अनुक्रम (Contents)
अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा
अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा- अनुसंधान प्ररचना शब्द समझने के लिये पहले ‘अनुसंधान’ तथा ‘प्ररचना’ शब्दों का अर्थ समझ लेना जरूरी है। सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य के अनुसार “सामाजिक अनुसंधान का अर्थ सामाजिक घटनाओं तथा तथ्यों के बारे में नवीन जानकारी प्राप्त करना है अथवा पूर्व अर्जित ज्ञान में संशोधन, सत्यापन एवं संवर्द्धन करना है। एकोफ (Ackoff) ने प्ररचना शब्द की व्याख्या उपमा (Analogy) द्वारा की है। एक भवन निर्माणकर्ता भवन की प्ररचना पहले से ही बना लेता है कि यह कितना बड़ा होगा, इसमें कितने कमरे होगें, कौन सी सामग्री का प्रयोग इसमें किया जायेगा इत्यादि। ये सब निर्णय वह भवन निर्माण से पहले ही ले लेता है ताकि भवन के बारे में एक ‘नक्शा’ बना ले तथा यदि इसमें किसी प्रकार का संशोधन करना है तो निर्माण शुरु होने से पहले ही किया जा सके। ‘प्ररचना का अर्थ योजना बनाना है, अर्थात प्ररचना पूर्व निर्णय लेने की प्रक्रिया है ताकि परिस्थिति पैदा होने पर इसका प्रयोग किया जा सके। यह सूझ-बूझ एवं पूर्वानुमान की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य अपेक्षित परिस्थिति पर नियंत्रण रखना है।” इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अनुसंधान की समस्या तथा उसमें प्रयुक्त होने वाली प्रविधियों पर नियंत्रण करने के लिये पूर्व निर्धारित निर्णयों की रूपरेखा ही अनुसंधान प्ररचना है।
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सैल्टिज जहोदा तथा अन्य के अनुसार, जब अनुसंधानकर्ता ने समस्या का निर्माण कर लिया है। तथा यह निर्धारण कर लिया है कौन सी सामग्री उसे एकत्रित करनी है तो उसे अनुसंधान प्ररचना बनानी चाहिये। इनके अनुसार अनुसंधान प्ररचना आँकड़ों के संकलन तथा विश्लेषण की दशाओं की उस व्यवस्था को कहते हैं जिसका लक्ष्य अनुसंधान के उद्देश्य की प्रासंगिकता तथा कार्यविधि की मितव्ययिता का। समन्वय करना है। एकोफ, सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य विद्वानों के विचारों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुसंधान प्ररचना पूर्व निर्णय की एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मितव्ययिता के आधार पर समस्या से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करना और आने वाले परिस्थितियों को नियंत्रित करना है। साथ ही अनुसंधान के लक्ष्य के आधार पर भिन्न प्रकार की प्ररचनायें बनायी जा सकती हैं। अतः अनुसंधान प्ररचना इनसे सम्बन्धित सर्वाधिक उपयुक्त एवं सुविधाजनक योजना है। जिसका उद्देश्य अनुसंधानकर्ता को दिशा प्रदान करना तथा मानव-श्रम की बचत करना है। सम्पूर्ण अनुसंधान प्ररचना को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. निदर्शन प्ररचना (Sampling Design) – इसमें अध्ययन की प्रकृति के अनुसार निदर्शन की इकाइयों के आकार तथा निदर्शन की पद्धति के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है।
2. अवलोकनात्मक प्ररचना (Observational Design) – इसमें उन दशाओं के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है जिनके अन्तर्गत अवलोकन किया जाना है अथवा अन्य किसी प्रविधि द्वारा सामग्री संकलित की जानी है।
3. सांख्यिकीय प्ररचना (Statistical Design) – इसका सम्बन्ध संकलित सामग्री के सांख्यिकीय विश्लेषण से है अर्थात यह पूर्व निर्णय लेने से है कि सामग्री के विश्लेषण हेतु किन-किन सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया जायेगा।
4. संचालन प्ररचना (Operational Design)- इसका सम्बन्ध उन प्रविधियों के बारे में पूर्व निर्णय लेने से है। जिनके द्वारा उपर्युक्त तीनों प्ररचनाओं अर्थात निदर्शन प्ररचना अवलोकनात्मक प्ररचना तथा सांख्यिकीय प्ररचना सम्बन्धी कार्यप्रणालियों को लागू किया जाना है। संचालन प्ररचना द्वारा ही अन्य तीनो प्ररचनाओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।
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अतः विद्वानों ने अनुसंधान प्ररचना के कुछ विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है जोकि निम्नलिखित हैं-
अनुसंधान प्ररचना के प्रकार (Types of Research Design)
अनुसन्धान प्ररचना के प्रकार अनुसन्धान प्ररचना या अनुसन्धान अभिकल्प को चार भागों में विभाजित किया गया है-
1. अन्वेषणात्मक अथवा निरूपणात्मक अनुसंधान अभिकल्प या प्ररचना
जब किसी अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किन्ही सामाजिक घटनाओं में अन्तर्निहित कारणों को ढूंढ निकालना होता है तो उससे सम्बन्धित रूपरेखा को अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं। इस प्रकार के अनुसंधान अभिकल्प में शोध कार्य की रूपरेखा इस तरीके से प्रस्तुत की जाती है कि घटना की प्रकृति व धारा प्रवाहों की वास्तविकताओं की खोज की जा सके। विषय अथवा समस्या के चुनाव के पश्चात् प्राक्कल्पना का 5 सफलतापूर्वक निर्माण करने के लिए इस प्रकार के अभिकल्प का अत्यधिक महत्व है क्योंकि इसकी सहायता से हमारे लिए विषय का कार्य-कारण सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए, यदि हमें किसी विशेष सामाजिक परिस्थिति में विवाह-विच्छेद प्राप्त व्यक्तियों में व्याप्त यौन व्यभिचार के विषय में अध्ययन करना है, तो उसके लिए सर्वप्रथम उन कारकों का ज्ञान आवश्यक है जो कि उस प्रकार के व्यभिचार को पैदा करते हैं। अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प इन्ही कारणों को खोज निकालने की एक योजना बन सकती है। इसी तरह से कभी-कभी समस्या के चुनाव तथा अनुसन्धान कार्य के लिए उसकी उपयुक्तता के सम्बन्ध में हमें अन्य किसी स्रोत से ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता है, तब उस अवस्था में अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प की सहायता से हमें बहुत सहायता मिल सकती है। इस प्रकार की अनुसन्धान अभिकल्प की सफलता के लिए कुछ अनिवार्यताओं का पालन करना होता है जो निम्नलिखित है-
(अ) सम्बद्ध साहित्य का अध्ययन
(ब) अनुभव सर्वेक्षण
(स) अन्तर्दृष्टि प्रेरक घटनाओं का विश्लेषण।
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2. वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प
विषय या समस्या के सम्बन्ध में सम्पूर्ण वास्तविक तथ्यों के आधार पर उनका विस्तृत वर्णन करना ही वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प का प्रमुख उद्देश्य है। इस पद्धति में आवश्यक है कि हमें वास्तविक तथ्य प्राप्त हो तभी हम उसकी वैज्ञानिक विवेचना करने में सफल हो सकते हैं। यदि समाज की किसी समस्या का विवरण देना है, तो उस समस्या के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित तथ्य प्राप्त होने चाहिए, जैसे निम्न श्रेणी के परिवारों का विवरण देना है, तो उसकी आयु, सदस्यों की संख्या, शिक्षा का स्तर व्यावसायिक ढाँचा, जातीय और पारिवारिक संरचना आदि से सम्बन्धित तथ्य, जब तक प्राप्त नहीं होते तब तक हम उसके वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत नहीं कर सकते। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हम अपना अनुसंधान अभिकल्प विषय के उद्देश्य के अनुसार बनायें।
3. परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प
भौतिक विज्ञानों की तरह समाजशास्त्र भी अपने अनुसन्धान कार्यों में परीक्षण प्रणाली का उपयोग कर अधिकाधिक यथार्थता लाने का प्रयत्न कर रहा है। भौतिक विज्ञानों में जिस तरह कुछ नियन्त्रित अवस्थाओं में रखकर विषय का अध्ययन किया जाता है, उसी में प्रकार नियन्त्रित दशाओं में रखकर निरीक्षण परीक्षण के द्वारा सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित अध्ययन करने रूपरेखा को परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं।
4. निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना
अनुसन्धान कार्य का मूलभूत उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति एवं ज्ञान की वृद्धि करना है। किन्तु यह भी सम्भव है कि अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किसी समस्या के कारणों के सम्बन्ध में वास्तविक ज्ञान प्राप्त करके उस समस्या के समाधानों को भी प्रस्तुत करना हो। इस प्रकार के अनुसन्धान अभिकल्प को निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना कहते हैं। दूसरे शब्दों में में, विशिष्ट सामाजिक समस्या के निदान की खोज करने वाले अनुसन्धान कार्य को, निदानात्मक अनुसन्धान कहते हैं।
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अनुसंधान की विधियां (Methods Of Research)
- ऐतिहासिक अनुसंधान (Historical Research)
2. वर्णनात्मक अनुसंधान (Descriptive Research)
3. क्रियात्मक अनुसंधान (action research), 4. प्रयोगात्मक अनुसंधान (experimental research), 5. पूरालक्षी या पश्चिओमुखी अनुसंधान (ex post facto research), 6. अंतर्वस्तु विश्लेषण (content analysis).
7. अंतर अनुशासनात्मक विधि (Interdisciplinary Approach)
1. ऐतिहासिक अनुसंधान Historical Research-
जॉन डब्ल्यू बेस्ट के अनुसार “ऐतिहासिक अनुसंधान का संबंध में ऐतिहासिक समस्याओं के वैज्ञानिक विश्लेषण से है| इसके विभिन्न पद भूत के संबंध में एक नई अवधारणा बताते हैं जिनका संबंध वर्तमान और भविष्य से होता है |”
ऐतिहासिक अनुसंधान का क्षेत्र-
- बड़े शिक्षा शास्त्र एवं मनोवैज्ञानिक को के विचार ऐतिहासिक अनुसंधान क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं|
- विभिन्न कार्यों में शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक विचारों के विकास की स्थिति|
- शिक्षा के लिए संवैधानिक व्यवस्था ऐतिहासिक अनुसंधान का एक क्षेत्र है
- एक विशेष प्रकार की विचारधारा का प्रभाव और उसके स्त्रोत|
- संस्थाओं एवं प्रयोगशाला द्वारा किए गए कार्य|
ऐतिहासिक अनुसंधान अनुसंधान के मूल्य उद्देश्य इस प्रकार है –
- ऐतिहासिक अनुसंधान का मूल उद्देश्य भूत के आधार पर वर्तमान को समझना एवं भविष्य के लिए सतर्क होना है|
- शिक्षा मनोविज्ञान अथवा अन्य सामाजिक विज्ञान में चिंतन को नई दिशा देने एवं नीति निर्धारण में सहायता करना है|
- किसी क्षेत्र विशेष के व्यावसायिक कार्यकर्ताओं के लिए पूर्व अनुभव के आधार पर भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा निर्धारित करने में सहायता करना है|
- किन परिस्थितियों में किन कारणों से व्यक्ति अथवा व्यक्तियों ने एक विशेष प्रकार का व्यवहार किया है उसका प्रभाव समाज या व्यक्ति विशेष पर क्या पड़ा है|
- वर्तमान में सिद्धांत तथा क्रियाएं व्यवहार में है उसका उद्भव एवं विकास तथा परिस्थितियों का विश्लेषण|
ऐतिहासिक अनुसंधान का महत्व –
- शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक अनुसंधान समाज एवं विद्यालय के संबंधों की व्याख्या करता है तथा मनोवैज्ञानिक क्षेत्र में इसके कारणों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है|
- ऐतिहासिक अनुसंधान भूतकाल इन त्रुटियों से परिचित करा कर भविष्य के प्रति सतर्क करता है|
- ऐतिहासिक अनुसंधान वर्तमान शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल ढूंढने में सहायक होता है
- ऐतिहासिक अनुसंधान शिक्षा तथा मनोविज्ञान के क्षेत्र में सिद्धांत एवं क्रिया पक्ष की आलोचनात्मक व्याख्या करता हुआ उनके वर्तमान स्वरूप की ऐतिहासिक एवं विकासात्मक स्थिति को स्पष्ट करता है |
यहां अनुसंधान वर्तमान में चल रही स्थितियों का वर्णन एवं विश्लेषण करता है| मन में चल रही अभ्यास, विश्वास, विचारधारा अथवा अभिवृत्ति का अनुभव जो प्राप्त किए जा रहे हैं अथवा नई दिशाएं जो विकसित हो रही हैं उसी से इसका संबंध है |
वर्णनात्मक अनुसंधान की विशेषताएं
- वर्णनात्मक अनुसंधान विशेष सरल एवं अत्यंत कठिन दोनों प्रकार का हो सकता है|
- इसके अंतर्गत स्पष्ट परिभाषित समस्या पर कार्य करते हैं|
- इसके अंतर्गत एक ही समय में अधिकांश मनुष्यों के विषय में आंकड़े प्राप्त किए जाते हैं|
- इसके अंतर्गत किसी वैज्ञानिक नियम का निर्धारण नहीं करते अपितु समस्या के समाधान हेतु उपयोगी सूचना प्रदान करते हैं|
- इसकी प्रकृति cross-sectional है| यह क्या है यह स्पष्ट करता है|
- वर्णन शाब्दिक भी हो सकता है तथा इसके अंतर्गत गणितीय सूत्रों द्वारा भी इसे व्यक्त किया जा सकता है
- वर्णनात्मक अनुसंधान गुणात्मक और संख्यात्मक दोनों ही प्रकार का हो सकता है
- इसमें आंकड़ों की व्याख्या एवं विश्लेषण में सावधानी रखते हैं |
- के लिए विशिष्ट एवं कल्पना पूर्ण नियोजन आवश्यक है |
वर्णनात्मक अनुसंधान के विभिन्न पद –
- अनुसंधान समस्या का कथन
- समस्या संरक्षण अनुसंधान के उपयुक्त है या नहीं या निश्चित करना
- सर्वेक्षण विधि का चुनाव
- सर्वेक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण
- आंकड़े प्राप्त करने के उपकरण उपलब्ध है या नहीं यह निश्चित करना
- प्रस्तावित सर्वेक्षण की सफलता का पूर्वानुमान
- प्रतिनिधि कारी न्याय दर्शन के प्राप्त होने का निश्चय
- अनुसंधान के लिए न्याय दर्शन का चुनाव
- सर्वेक्षण की सफलता का पूर्वानुमान
- आंकड़े प्राप्त करने का अभिकल्प
- आंकड़ों का संग्रह
- आंकड़ों का विश्लेषण
- प्रतिवेदन तैयार करना
कोरे के अनुसार-” क्रियात्मक अनुसंधान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यवहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक विधि से अपनी समस्याओं का अध्ययन, अपने निर्णय और क्रियाओं में निर्देशन, सुधार और मूल्यांकन करते है|
- क्रियात्मक अनुसंधान का उद्देश्य शिक्षा, समाज सुधार, व्यवसाय अथवा औद्योगिक क्षेत्र के कार्यकर्ताओं द्वारा स्वयं अपनी समस्याओं का अध्ययन एवं वैज्ञानिक विधि से उनका समाधान करना है|
- इस क्रिया के द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर वे वर्तमान क्रिया में सुधार करते हैं तथा भावी योजनाएं भी बनाते हैं|
- इस अनुसंधान को प्रकाश में लाने का श्रेय टीचर्स कॉलेज कोलंबिया विश्वविद्यालय के होरे. समन. लिंकन तथा इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्कूल एक्सपेरिमेंटेशन के प्रोफेसर स्टीफन एम कोरे को प्राप्त है |
अनुसंधान की इस विधि में हम किसी सूक्ष्म समस्या का सुक्ष्म समाधान प्रस्तुत करते हैं| प्रयोगात्मक विधि अर्थ तथा उपयोगिता की दृष्टि से अत्यंत व्यावहारिक है क्योंकि इसमें अध्ययन अनियंत्रित परिस्थितियों में किया जाता है|
बे ब्रिज के अनुसार “ प्रयोग में बहुधा किसी घटना को ज्ञात दशाओं में कराया जाता है और बाहरी प्रभावों को यथासंभव दूर करते हुए निरीक्षण किया जाता है जिसमें प्रपंच के संबंध को भली प्रकार प्रदर्शित किया जाता है|”
चैंपियन के अनुसार,” नियंत्रित दशाओं में किए गए निरीक्षण में प्रयोगात्मक अनुसंधान है|” इनके अनुसार प्रयोग में नियंत्रण आवश्यक है यह नियंत्रण कभी अध्ययन के मामलों द्वारा तथा कभी चल राशियों के घटाने अथवा बढ़ाने से प्राप्त हो जाता है|
प्रयोगात्मक विधि के मुख्य लक्षण
- यह विधि एक चर की धारणा पर आधारित है|
- जहां भी चलो पर नियंत्रण संभव है इस विधि को सफलतापूर्वक प्रयोग में लाया जा सकता है यह सभी विज्ञानों में प्रयुक्त की जाती है|
- मानव परिस्थितियों में सभी संबंधित चारों पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं इस कारण सभी समस्याओं का प्रयोगात्मक अध्ययन भी नहीं किया जा सकता है|
- मूलभूत तथा प्रयोगात्मक अथवा क्रियात्मक अनुसंधान सभी में प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग कर सकते हैं|
- प्रयोगात्मक विधि व्यवहार के आणविक तत्वों का अध्ययन करती है |
प्रयोगात्मक विधि के विभिन्न पद
- समस्या से संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण
- समस्या का चयन एवं परिभाषा करण
- परिकल्पना का निर्माण विशिष्ट शब्दावली तथा चारों की व्याख्या
- प्रयोगात्मक योजना का निर्माण
- प्रयोग करना
- आंकड़ों का संकलन एवं सारणी बनाना
- प्राप्त निष्कर्ष का मापन
- प्राप्त निष्कर्ष का विश्लेषण एवं व्याख्या
- विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष निकालना
- फल अथवा निष्कर्ष की रिपोर्ट तैयार करना
कुछ प्रयोग इस प्रकार अकल्पित किए जाते हैं जिनमें आश्रित परिवर्ती के माध्यम से स्वतंत्र परिवर्तन का अध्ययन किया जा सके ऐसे प्रयोगों को पूरा लक्ष्य अथवा पश्चिम मुखी कहते हैं |
“यहां एक ऐसे प्रकार का अनुसंधान है जिससे स्वतंत्र चर अथवा चोरों का कार्य हो चुका है तथा अनुसंधानकर्ता किसी आश्रित चर अथवा चोरों का निरीक्षण से कार्य आरंभ करता है वह स्वतंत्र चर का पश्चावलोकन करता है ताकि आश्रित जोरों पर पड़ने वाले प्रभावों तथा उनके संबंधों को वहां ज्ञात कर सके| “
आदर्श रूप से सामाजिक वैज्ञानिक अनुसंधान में न्याय दर्शन के सदस्यों को यादृच्छिक रूप में चुनने तथा इन सदस्यों को या यादृच्छिक रूप में समूहों में विभक्त करने आदि की सदैव संभावना रहती है किंतु वास्तविक अनुसंधान में इन सभी संभावनाओं को पूर्ण करना कठिन होता है| पश्चिम मुखी तथा प्रयोगात्मक अनुसंधान में न्याय दर्शकों यादृच्छिक रूप में चयन करना संभव होता है |
पूरालक्षी या पश्चिओमुखी अनुसंधान महत्व –
पश्चिम मुखी अनुसंधान मनोविज्ञान शिक्षा तथा समाज शास्त्र के अनुसार दानों के लिए आवश्यक है| शिक्षा, समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान की अधिकांश समस्याओं का प्रयोगात्मक रूप से अध्ययन नहीं किया जा सकता| बुद्धि पारिवारिक वातावरण शिक्षा के प्रभाव स्कूल का वातावरण आदि संबंधी अध्ययन स्पष्ट रूप से हंसता दी प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं है।
- वस्तु विश्लेषण द्वारा अनुसंधान की गुणात्मक सामग्री को वैज्ञानिक तथ्यों में इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि सांख्यिकी उपयोग किया जा सके और किसी वैज्ञानिक निष्कर्षों तक पहुंचा जा सके। इस प्रकार एक क्रिया के द्वारा सामग्री के जटिल एवं स्पष्ट स्वरूप को सुविधाजनक एवं बोद्ध गम में बनाया जाता है।
- यह एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा सामूहिक संचार साधनों ( टेलीविजन रेडियो समाचार पत्र व्याख्यान प्रतिवेदन आदि) की अंतर्वस्तु का विश्लेषण सुचारू रूप से किया जाता है यद्यपि इस विधि को एक विशेष नाम दे दिया गया है किंतु यह गुणात्मक सामग्री के वर्गीकरण की श्रेणी में आती है।
- इसका मूल उद्धव सामूहिक संचार साधनों के विश्लेषण से ही हुआ है किंतु इसका उपयोग प्राचीन काल से ही समालोचक इतिहासकार आदि अपने क्षेत्र की सामग्री के विश्लेषण में करते रहे हैं
- अब इसका उपयोग क्षेत्रों में भी प्रचुरता से होने लगा है-
- व्यक्तिगत अभिलेखों का विश्लेषण
- असंचारित साक्षात्कार का विश्लेषण
- प्रक्षेपी परीक्षणों के उत्तरों का विश्लेषण
- रोगियों के निदानात्मक अभिलेखों का विश्लेषण
बेरेंसन के अनुसार,” अंतर्वस्तु विश्लेषण अर्धविराम अनुसंधान की एक ऐसी विधि है, जिसके अंतर्गत प्रत्यक्ष संचार की अंतर्वस्तु का वर्णन वास्तुनिष्ठ , नियोजित एवं संख्यात्मक रूप में करते हैं।”
अंतर अनुशासनात्मक विधि (Interdisciplinary Approach)
इस विधि में अनुशासन शब्द का प्रयोग एक ऐसे विषय के लिए किया गया है जो वैज्ञानिक, वैज्ञानिक अनुसंधान की विधियों के अनुरूप है, वैज्ञानिक निष्कर्षों पर आधारित जिसकी व्यक्तिगत विशेषताएं हैं उसे अनुशासन कहते हैं जब हम किसी से पूछते हैं कि आप का संबंध किस अनुशासन से हैं तो वह उत्तर देता है मनोविज्ञान समाजशास्त्र शिक्षाशास्त्र रूप से है यह नवीन शब्द अमेरिका की देन है|
संदर्भ में अंतर-अनुशासन से तात्पर्य अनेक विषयों के ऐसे समूह से है जो परस्पर संबद्ध अथवा जिनका समान लक्ष्य है। अंतर अनुशासनात्मक विधि से तात्पर्य यह है कि प्रत्येक विषय को एक पूर्ण स्वतंत्र इकाई रूप में अलग अलग ना लेकर अनेक विषयों जिनका एक ही लक्ष्य है उन्हें एक समूह में रखा जाए जिससे छात्रों को अधिक से अधिक लाभ हो और एक समन्वित ज्ञान का विकास हो।
इसी धारणा के फल स्वरुप मानव शास्त्र सामाजिक विज्ञान तथा व्यावहारिक विज्ञान आदि के अनुशासन का विकास हुआ है।
यह अनुसंधान एक अकर्मक क्रिया है। प्रत्येक प्रकार के अनुसंधान को कुछ विशिष्ट पदों में अथवा क्रमानुसार किया जाता है। यह क्रियाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई होती है परंतु इन क्रियाओं का क्रम कभी-कभी बिगड़ भी जाता है।
डेविड j-fox ने अनुसंधान के कुछ पद बताए हैं जो निम्नानुसार हैं –
- प्रारंभिक विचार तथा समस्याओं की पहचान करना
- साहित्य का प्रारंभिक सर्वेक्षण
- विशिष्ट अनुसंधान की समस्या का निश्चय
- अनुसंधान कार्य की सफलता का पूर्वानुमान
- संबंधित साहित्य का द्वितीय सर्वेक्षण
- अनुसंधान की प्रक्रिया का चयन
- अनुसंधान की परिकल्पना का निर्माण
- आंकड़े प्राप्त करने की विधियों का निश्चय
- आंकड़े प्राप्त करने के लिए उपकरणों का चुनाव तथा निर्माण
- आंकड़ों के विश्लेषण की योजना तैयार करना
- आंकड़ों को एकत्र करने के लिए योजना बनाना
- संख्या तथा न्याय दर्शन का नशा करना
- एक छोटे समूह पर अध्ययन कर कठिनाइयों का ज्ञान प्राप्त करना
- आंकड़ों का संग्रह करना
- आंकड़ों का विश्लेषण करना
- अनुसंधान का प्रतिवेदन तैयार करना
- प्राप्त निष्कर्षों का प्रचार तथा क्रियान्वित करने पर बल देना
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Book Source: Digital Library of India Item 2015.346366
dc.contributor.author: B.m. Jain dc.date.accessioned: 2015-08-13T00:19:00Z dc.date.available: 2015-08-13T00:19:00Z dc.date.copyright: 1945 dc.date.digitalpublicationdate: 2010/07 dc.date.citation: 1945 dc.identifier.barcode: 99999990277477 dc.identifier.origpath: /data6/upload/0130/279 dc.identifier.copyno: 1 dc.identifier.uri: http://www.new.dli.ernet.in/handle/2015/346366 dc.description.scannerno: Banasthali University dc.description.scanningcentre: Banasthali University dc.description.main: 1 dc.description.tagged: 0 dc.description.totalpages: 274 dc.format.mimetype: application/pdf dc.language.iso: Hindi dc.publisher.digitalrepublisher: digital library of india dc.publisher: Research Publication In Soshal Sciences dc.source.library: Prakrit Bharati Academy, Jaipur dc.title: Research Methodology dc.type: print - paper dc.type: book
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व्यावहारिक अनुसन्धान की परिभाषा | व्यावहारिक अनुसन्धान प्रकार | Applied Research in Hindi
अनुक्रम (Contents)
व्यावहारिक अनुसन्धान की परिभाषा
व्यावहारिक अनुसन्धान- व्यावहारिक शोध का सम्बन्ध सामाजिक जीवन के व्यावहारिक पक्ष से होता है और वह सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में ही नहीं बल्कि सामाजिक नियोजन, सामाजिक अधिनियम, स्वास्थ्य, रक्षा सम्बन्धी नियम, धर्म, शिक्षा, न्यायालय, मनोरंजन आदि विषयों के सम्बन्ध में भी अनुसन्धान करता है तथा इनके सम्बन्ध में कारण सहित व्याख्या व तर्कयुक्त ज्ञान से हमें समृद्ध करता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि व्यावहारिक शोध का कोई सम्बन्ध समाज-सुधार से सामाजिक व्याधियों के उपचार से, सामाजिक कानूनों को बनाने या सामाजिक नियोजनों को व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत करने से नहीं होता है। वह स्वयं यह सब कुछ नहीं करता है, अपितु यह काम तो समाज सुधारक, नेता, प्रशासक और अधिकारी का होता है। व्यावहारिक शोध का कार्य केवल व्यावहारिक जीवन से सम्बन्धित विषयों तथा समस्याओं के सम्बन्ध में हमें यथार्थ ज्ञान प्रदान करना है। व्यावहारिक शोध में भी अनुसन्धान के उन्हीं उपकरणों का प्रयोग किया जाता है जिनका सम्बन्ध मौलिक अथवा विशुद्ध विज्ञान से है, और इसलिये इनके द्वारा प्रस्तुत व्यावहारिक ज्ञान बड़े महत्व का तथा साथ ही यथार्थ सिद्ध होता है। व्यावहारिक शोध हमारे व्यावहारिक जीवन में आने वाली समस्याओं तथा अन्य घटनाओं पर नियन्त्रण प्राप्त करने अथवा उनका उपचार करने के लिये आवश्यक सिद्धान्तों के सम्बन्ध में हमारी चिन्तन प्रक्रिया को सक्रिय कर सकता है। इसका कारण यह है कि अक्सर देखा गया है कि आश्चर्य रूप से प्रयोग सिद्ध व्यावहारिक खोज की व्याख्या अथवा विश्लेषण करने के मध्य अनुसन्धानकर्ता के निदान में सहायक होते हैं।
इसी भी पढ़ें…
- सामाजिक सर्वेक्षण की परिभाषा | सामाजिक सर्वेक्षण की विशेषताएँ
व्यावहारिक अनुसन्धान प्रकार (Types of Applied Research)
व्यावहारिक अनुसन्धान के दो प्रमुख स्वरूपों का उल्लेख किया गया है। जिन्हें निदानात्मक अनुसन्धान तथा क्रियात्मक अनुसन्धान कहा जाता है –
1. निदानात्मक अनुसन्धान (Diagonostic Research) – निदानात्मक अनुसंधान व्यावहारिक अनुसन्धान का वह प्रकार है जिसका उद्देश्य किसी समस्या के कारणों को ज्ञात करके उनका निदान करना होता है। समस्या के कारणों को समझने और उनका निदान अनुसन्धान द्वारा मनमाने तरीके से नहीं किया जाता अपितु वैज्ञानिक पद्धतियों की सहायता से पहले तथ्यों को तटस्थ रूप से संग्रहित किया जाता है तथा इसके पश्चात् प्राप्त तथ्यों के सन्दर्भ में भी समस्या का निदान करने के लिए सुझाव दिये जाते हैं। अध्ययनकर्त्ता द्वारा समस्या का निदान स्वयं नहीं किया जाता अपितु उसके द्वारा दिये गये सुझावों के आधार पर यह कार्य प्रशासकों अथवा सामाजिक सेवकों द्वारा किया जाता है।
उदाहरण यदि कोई शोध कार्य श्रमिक असन्तोष के कारणों को मालूम करने और उन कारणों पर आधारित समस्या का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करने के लिए किया जाए, तब इसे निदानात्मक अनुसन्धान कहा जायेगा।
2. क्रियात्मक अनुसन्धान- क्रियात्मक अनुसन्धान व्यावहारिक अनुसन्धान से अनेक अर्थ में मिलता-जुलता है क्योंकि इसका भी सम्बन्ध सामाजिक जीवन की ऐसी समस्याओं तथा घटन होता है जिनका कि क्रियात्मक महत्व हो । जब सामाजिक शोध अध्ययन के निष्कर्षो को क्रियात्मक स्वरूप देने की किसी तात्कालिक अथवा भावी योजना से सम्बन्धित होता है, तो उसे क्रियात्मक अनुसंधान कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि क्रियात्मक शोध वह अनुसन्धान है जो किसी सामाजिक समस्या या घटना के क्रियात्मक पक्ष पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है और साथ ही अनुसन्धान के निष्कर्षों का प्रयोग विद्यमान सामाजिक अवस्थाओं में परिवर्तन लाने की योजना के एक भाग के रूप में करता है।
- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रकार | Samajik Sarvekshan Ke Prakar
क्रियात्मक अनुसन्धान में अनुसन्धानकर्त्ता को आरम्भ से ही कुछ विशिष्ट बातों का ध्यान सावधानीपूर्वक रखना पड़ता है, जो इस प्रकार हैं –
(i) अध्ययन के समय घटना अथवा समस्या के वास्तविक क्रिया पक्ष पर ध्यान- इसका अर्थ यह है कि जिस घटना का अध्ययन अनुसन्धानकर्ता कर रहा है उसमें अन्तर्निहित मानवीय क्रियाओं, उसके कारणों, आधारों व नियमों के प्रति वह अत्यधिक सचेत रहता है। यदि वह प्रजातीय पक्षपात का अध्ययन कर रहा है, तो वह यह समझने का प्रयत्न करेगा कि श्वेत प्रजाति के व्यक्ति श्याम प्रजाति के व्यक्तियों के प्रति किस तरह का व्यवहार करते हैं तथा उनके उन व्यवहारों का क्या कारण व आधार है। साथ-ही – साथ अनुसन्धानकर्त्ता उस समस्या से सम्बन्धित क्रियात्मक साधनों को प्राप्त करने का प्रयास करेगा। समस्या के चुनाव के सम्बन्ध में उस समस्या से सम्बन्धित प्राथमिक ज्ञान प्राप्त करने के सम्बन्ध में, उस घटना की वास्तविक क्रियाशीलता को प्राप्त करने में यहाँ तक कि तथ्यों के संकलन में भी क्रियात्मक साधनों का सहयोग सर्वाधिक लाभप्रद सिद्ध होता है।
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(iv) रिपोर्ट को प्रारम्भ में ही अन्तिम रूप में न देना- इसका अर्थ यह है कि क्रियात्मक अनुसन्धान की रिपोर्ट को एकाएक अन्तिम रूप देकर नहीं प्रस्तुत करना चाहिए। पहले अन्तरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिये। जिससे कि उससे प्रभावित होने वाले लोगों अथवा समूहों की प्रतिक्रियाओं को जाना जा सके। उन प्रतिक्रियाओं के आधार पर अन्तिम रिपोर्ट में जरूरी सुधार या बदलाव करने की गुजांइश सदा रहनी चाहिये, तभी वह अन्तिम रिपोर्ट वास्तव में उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
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इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..
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रिसर्च मेथोदोलोग्य | Research Methodology
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शोध प्रक्रिया के चरण (Step of Research Process)
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शोध नया ज्ञान प्राप्त करने का एक माध्यम है। शोध में शोधार्थी को अनुसंधान कार्य पूरा करने के लिए शोध के विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ता है। शोधार्थी को शोध प्रक्रिया में प्रत्येक चरण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है जिससे सही ढंग शोध कार्य संपन्न हो सके। शोध प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की विस्तृत कार्य योजना तैयार करना चाहिए तथा प्रत्येक चरणों को ध्यान पूर्वक अवलोकन कर और जांच कर आवश्यकता अनुसार परिवर्तन एवं संशोधन कर लेना चाहिए। जैसा कि हम लोग जानते हैं कि शोध एक सतत चलने प्रक्रिया है इसमें कोई कार्य अन्तिम नहीं होता। शोध प्रक्रिया में शोधार्थी को विभिन्न स्तर पर निम्नलिखित चरणों से गुजरना होता है।
Table of Contents
1. शोध समस्या की पहचान करना ( Identifying of the Research Problem)
प्रथम चरण में शोधार्थी को शोध समस्या की पहचान करना होता है अर्थात जिसे विशिष्ट क्षेत्र में उसे शोध कार्य करना है उसकी पहचान करना होता है। शोध समस्या ऐसी होनी चाहिए जिससे किसी नये ज्ञान की आविर्भाव हो और समसामयिक रूप से उपयोगी हो।इसमें शोधार्थी विशेष शोध समस्या का चयन करता है अर्थात वह एक विशेष विषय क्षेत्र पर कार्य करने के लिए मन:स्थिति बनाता है और विशिष्ट शोध समस्या का प्रतिपादन परिष्कृत तकनीकी शब्दों में करता है। शोधार्थी को ध्यान रखना चाहिए कि शोध समस्या का प्रतिपादन प्रभाव कारी एवं स्पष्ट तकनीकी शब्दावली में किया जाए। इसके साथ-साथ शोधार्थी को शोध समस्या में समाहित उप समस्याएं कौन-कौन सी हैं। इसका भी विस्तार से वर्णन करना चाहिए एवं शोधार्थी को विषय शोध विषय क्षेत्र में विशिष्ट साहित्य खोज करना चाहिए जिससे शोध विषय के बारे में स्पष्ट ज्ञान हो सके।
2. संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण ( Review of Relevant Literature)
शोधार्थी अपने विशेष शोध समस्या से संबंधित विषय पर गहन अध्ययन करता है। अन्य शोधकर्ताओं और विद्वानों द्वारा अद्यतन किए गए शोध कार्य का गहन अध्ययन व अवलोकन करता है। शोधकर्ता शोध से संबंधित शोध प्रबंधों, लेखों व अन्य स्वरूपों में उपलब्ध सामग्री का गहन सर्वेक्षण करता है। जिससे शोधार्थी को शोधकार्य करने की दिशा निर्देश मिलता है। इसमें शोधकर्ता अपने शोध समस्या से जुड़ी हुई अभी तक किए गए शोध प्रविधि, आंकड़ों का संकलन विधि और तकनीकी, आंकड़े विश्लेषण तकनीकी आदि का भी सार तैयार करता है।
शोधार्थी को इस चरण में यह भी स्पष्ट उल्लेख कर लेना चाहिए कि उसका शोध कार्य पूर्वर्ती शोध कार्य से किस तरह भिन्न है। इस चरण में संबंधित विषय क्षेत्र पर महत्वपूर्ण जानकारी प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक सूचना स्रोत तथा अन्य स्रोत से प्राप्त कर गहन चिंतन और साहित्य सर्वेक्षण कर लेना आवश्यक होता है, ताकि शोधार्थी को शोध कार्य करने में एक दिशा निर्देश मिल सके।
3. उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन (Selection of Appropriate Research Method)
इस चरण में शोधार्थी को उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन करना होता है। हर शोध समस्या एक विशिष्ट प्रकार की होती है और उसका समाधान भी एक विशेष शोध प्रविधि की सहायता से खोजा जा सकता है यदि हम समय विस्तार के आधार पर संबंधित समस्याओं के उत्तर खोजने का प्रयास करें तो निम्न मुख्य तीन शोध प्रविधि को अपनाना होता है -ऐतिहासिक शोध प्रविधि (Historical Method), सर्वेक्षण शोध प्रविधि (Survey Method), प्रयोगात्मक शोध प्रविधि (Experimental Method)
- ऐतिहासिक शोध प्रविधि उस शोध समस्या का समाधान के लिए उपयोगी होता है जिसमें शोधार्थी को भूतकाल में उत्तर या समाधान खोजना होता है। उदाहरण स्वरूप भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व पुस्तकालयों की स्थिति, डॉ एस आर रंगनाथन का पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के विकास में योगदान आदि इस शोध प्रविधि में वर्तमान परिस्थिति और समस्याओं का हल भूतकाल में हुए संबंधित विषय का अध्ययन के आधार पर खोजने का प्रयास किया जाता है।
- सर्वेक्षण शोध प्रविधि में उन समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। जिसका हल वर्तमान परिस्थिति में से खोजना होता है। यह प्रविधि सामाजिक विज्ञान में सबसे अधिक प्रयोग होता है जैसे पाठक-अध्ययन, पुस्तकालय सर्वेक्षण, ग्रामीण पाठकों का सूचना खोजने संबंधी व्यवहार आदि शोध समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है।
4. शोध परिकल्पना का प्रतिपादन ( Formulation of Research Hypothesis)
शोध प्रक्रिया को सही दिशा प्रदान करने के लिए शोध प्राककल्पना का प्रतिपादन करना अत्यंत आवश्यक है। शोध में आंकड़े के संकलन और विश्लेषण के पूर्व शोध के परिणामों का अनुमान करना परिकल्पना है। यह एक बुद्धिमत्ता पूर्ण भविष्यवाणी होती है। यह परिकल्पना पूर्व निर्धारित सिद्धांतों अपना व्यक्तिगत अनुभवों अथवा आनुभविक विचारों के आधार पर शोध प्राक्कलन का निर्माण किया जाता है।
5. आंकड़ा संकलन तकनीक और उपकरणों का चयन ( Selection of Data Collection Tools and Techniques)
शोध के लिए आंकड़ा संकलन की अनेक विधियां हैं। शोधार्थी को अपनी शोध समस्या के अनुरूप तकनीकों का सहारा लेने की आवश्यकता होती है। प्रत्येक तकनीक और उपकरण एक विशिष्ट प्रकार के शोध के लिए उपयोगी होता है। अतः शोधार्थी को अपने शोध समस्या के अनुरुप तकनीक और उपकरण का चयन करना होता है ताकि आसानी से शोध समस्या का हल निकाला जा सके। शोध समस्या के समाधान हेतु आंकड़े का संकलन हेतु निम्नलिखित तकनीक और उपकरण का प्रयोग करते हैं।
- अवलोकन (Observation)
- मापन (Measurement) एवं
- प्रश्नावली (Questionnaire)
- अवलोकन (Observation) आंकड़ा संकलन का एक महत्वपूर्ण तकनीक है। यह तकनीक व्यक्ति या समूह के व्यवहार अध्ययन व विशेष परिस्थिति अध्ययन करने में अत्यंत ही उपयोगी होता है। कृष्ण कुमार इसके तीन घटक बताएं है – अनुभूति (Sensation), मनोयोग (Attention), एवं प्रत्यक्ष ज्ञान (Perception)। अनुभूति में हम संवेदी अंगों जैसे आंख, कान, नाक, त्वचा आदि का उपयोग किया जाता है। मनोयोग से तात्पर्य अध्ययन की जा रही विषय वस्तु पर एकाग्रता की क्षमता से है। प्रत्यक्ष ज्ञान एक व्यक्ति को तथ्यों को पहचानने में, अनुभव, आत्म-विश्लेषण, अनुभूति के उपयोग के द्वारा समर्थ बनाता है।
- मापन (Measurement) का प्रयोग शोध समस्या के समाधान में प्रयोग करते हैं। शोधार्थी द्वारा निर्धारित उद्येश्य की पूर्ति हेतु मापन की विभिन्न विधियों का अनुसरण किया जाता है। इसके अन्तर्गत सूचियां, समाजमिति, संख्यात्मक मापनी, वर्णनात्मक मापनी, ग्राफिक मापनी, व्यक्ति से व्यक्ति मापनी इत्यादि का उपयोग करते हैं।
- प्रश्नावली (Questionnaire) का प्रयोग शोधार्थी प्रश्न पूछने में प्रश्नावली, अनुसूची अथवा साक्षात्कार तकनीक करते हैं। प्रश्नावली शोधार्थी प्रश्न माला तैयार कर उत्तर दाताओं को डाक, ईमेल अथवा व्यक्तिगत रूप से देता है। उत्तरदाता प्रश्नावली को पढ़कर उत्तर पूरित करते हैं। अनुसूची में शोधार्थी उत्तरदाताओं से स्वयं प्रश्न पूछकर उत्तर की प्राप्त करता है जबकि साक्षात्कार में उत्तरदाता एवं शोधार्थी आमने-सामने बैठकर संवाद करते हैं।
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रिसर्च डिज़ाइन क्या है?
- Updated on
- नवम्बर 14, 2022
विज्ञान और टेक्नोलॉजी, कला और संस्कृति, मीडिया अध्ययन, भूगोल, गणित और अन्य विषय हों, रिसर्च हमेशा अज्ञात को खोजने का मार्ग रहा है। वर्तमान निराशाजनक परिस्थितियों में जब कोरोनावायरस ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है, इसके इलाज के लिए टीके खोजने के लिए भारी मात्रा में रिसर्च किया जा रहा है। इस ब्लॉग में, हम समझेंगे कि विभिन्न प्रकार के रिसर्च डिज़ाइन और उनके संबंधित फैक्टर क्या है।
This Blog Includes:
एक रिसर्च डिज़ाइन क्या है, रिसर्च डिज़ाइन के लाभ, रिसर्च डिजाइन के तत्व, रिसर्च डिजाइन की विशेषताएं, ग्रुपिंग द्वारा रिसर्च डिज़ाइन प्रकार, जनसंख्या वर्ग स्टडी, क्रॉस सेक्शनल स्टडी, लोंगिट्यूडनल स्टडी, क्रॉस-सेक्युएंशियल स्टडी, क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव रिसर्च डिजाइन, फिक्स्ड बनाम फ्लेक्सिबल रिसर्च डिजाइन, रिसर्च डिज़ाइन ppt.
शोध’ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक कलेक्शन है जिसमें रिसर्च मेथड्स को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक हाइपोथिसिस स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन (कंपाइलेशन) है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है। रिसर्च अकादमिक के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार पर भी किया जा सकता है। आइए पहले समझते हैं कि रिसर्च डिज़ाइन का वास्तव में क्या अर्थ है।
रिसर्च डिजाइन एक रिसर्चर को अज्ञात में अपनी यात्रा को आगे बढ़ाने में मदद करता है लेकिन उनके पक्ष में एक सिस्टेमेटिक अप्रोच के साथ। जिस तरह से एक इंजीनियर या आर्किटेक्ट एक स्ट्रक्चर के लिए एक डिजाइन तैयार करता है, उसी तरह रिसर्चर विभिन्न तरीकों से डिजाइन को चुनता है, ताकि यह जांचा जा सके कि किस प्रकार का रिसर्च किया जाना है।
रिसर्च डिज़ाइन के कुछ लाभ इस प्रकार हैं:
- एक रिसर्च डिज़ाइन तैयार करने से रिसर्चर को अध्ययन के प्रत्येक चरण में सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।
- यह अध्ययन के प्रमुख और छोटे कार्यों की पहचान करने में मदद करता है।
- यह शोध अध्ययन को प्रभावी और रोचक बनाता है।
- इससे एक रिसर्चर आसानी से शोध कार्य के उद्देश्यों को तैयार कर सकता है।
- एक अच्छे रिसर्च डिज़ाइन का मुख्य लाभ यह है कि यह शोध को संतुष्टि,आत्मविश्वास, एक्यूरेसी, रिलियाबिलिटी, कंटीन्यूटी और वैलिडिटी प्रदान करता है।
- इसके द्वारा लिमिटेड रिसोर्सेज में भी सभी कार्यों को बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
- इससे रिसर्च में कम समय लगता है।
यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व दिए हैं:
- एकत्रित विवरण का एनालिसिस करने के लिए लागू की गई विधि
- रिसर्च मेथड का प्रकार
- सटीक उद्देश्य कथन
- शोध के लिए संभावित आपत्तियां
- रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें
- एनालिसिस का मापन
- शोध अध्ययन के लिए सेटिंग्स
रिसर्च डिजाइन के प्रकार
अब जब हम व्यापक रूप से क्लासीफाइड प्रकार के रिसर्च को जानते हैं, तो क्वांटिटेटिव और क्वालिटेटिव रिसर्च को निम्नलिखित 4 प्रमुख प्रकार के research design in Hindi में विभाजित किया जा सकता है-
- डिस्क्रिप्टिव रिसर्च डिजाइन
- कॉरिलेशनल रिसर्च डिजाइन
- एक्सपेरिमेंटल रिसर्च डिजाइन
- डायग्नोस्टिक रिसर्च डिजाइन
- एक्सप्लेनेटरी रिसर्च डिजाइन
अध्ययन डिजाइन प्रकारों का एक अन्य क्लासिफिकेशन इस पर आधारित है कि प्रतिभागियों को कैसे क्लासीफाइड किया जाता है। ज्यादातर स्थितियों में, समूहीकरण रिसर्च के आधार और व्यक्तियों के नमूने के लिए उपयोग की जाने वाली विधि द्वारा निर्धारित किया जाता है। प्रायोगिक रिसर्च डिजाइन के आधार पर एक विशिष्ट अध्ययन में आम तौर पर कम से कम एक प्रयोगात्मक और एक नियंत्रण समूह होता है। चिकित्सा रिसर्च में, उदाहरण के लिए, एक समूह को चिकित्सा दी जा सकती है जबकि दूसरे को कोई नहीं मिलता है। तुम मेरा फॉलो समझो। हम प्रतिभागी समूहन के आधार पर चार प्रकार के अध्ययन डिजाइनों में अंतर कर सकते हैं:
एक को होर्ट अध्ययन एक प्रकार का अनुदैर्ध्य रिसर्च है जो पूर्व निर्धारित समय अंतराल पर एक समूह के क्रॉस-सेक्शन (एक सामान्य लक्षण वाले लोगों का एक समूह) लेता है। यह पैनल रिसर्च का एक रूप है जिसमें समूह के सभी लोगों में कुछ न कुछ समान होता है।
सामाजिक विज्ञान, चिकित्सा रिसर्च और जीव विज्ञान में, एक क्रॉस-अनुभागीय अध्ययन प्रचलित है। यह अध्ययन दृष्टिकोण किसी विशिष्ट समय पर जनसंख्या या जनसंख्या के प्रतिनिधि नमूने के डेटा की जांच करता है।
एक अनुदैर्ध्य अध्ययन एक प्रकार का अध्ययन है जिसमें एक ही चर को कम या लंबी अवधि में बार-बार देखा जाता है। यह आमतौर पर अवलोकन संबंधी शोध है, हालांकि यह दीर्घकालिक रेंडम प्रयोग का रूप भी ले सकता है।
क्रॉस-अनुक्रमिक रिसर्च डिजाइन अनुदैर्ध्य और क्रॉस-अनुभागीय रिसर्च विधियों को जोड़ती है, दोनों में निहित कुछ दोषों की कंपनसेशन के लक्ष्य के साथ।
क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव research design in Hindi के बीच अंतर निम्नलिखित हैं-
स्थिर और फ्लेक्सिबल research design in Hindi के बीच एक अंतर भी खींचा जा सकता है। क्वांटिटेटिव (निश्चित डिजाइन) और क्वालिटेटिव (लचीला डिजाइन) डेटा एकत्र करना अक्सर इन दो अध्ययन डिजाइन श्रेणियों से जुड़ा होता है। आपके द्वारा डेटा एकत्र करना शुरू करने से पहले ही रिसर्च डिज़ाइन एक निर्धारित अध्ययन डिजाइन के साथ पूर्व-निर्धारित और समझा जाता है। दूसरी ओर, लचीले डिज़ाइन, डेटा संग्रह में अधिक लचीलापन प्रदान करते हैं – उदाहरण के लिए, आप निश्चित उत्तर विकल्प प्रदान नहीं करते हैं, इसलिए उत्तरदाताओं को अपने स्वयं के उत्तर देने होंगे।
Research design in Hindi के लिए PPT नीचे दी गई है-
चूंकि हम रिसर्च डिज़ाइन के प्रकारों से निपट रहे हैं, इसलिए यह समझना अनिवार्य है कि रिसर्च करने का अभ्यास कितना फायदेमंद है और इसके कुछ प्रमुख लाभ हैं: 1. रिसर्च विषय की गहरी समझ प्राप्त करने में मदद करता है। 2. आप इसके विविध पहलुओं के साथ-साथ इसके विभिन्न स्रोतों जैसे प्राथमिक और माध्यमिक के बारे में जानेंगे। 3. यह महत्वपूर्ण एनालिसिस और अनसुलझी समस्याओं के मापन के माध्यम से किसी भी क्षेत्र में जटिल समस्याओं को हल करने में मदद करता है। 4. आप यह भी जान पाएंगे कि संरक्षित मान्यताओं को तौलकर एक परिकल्पना कैसे बनाई जाती है।
रिसर्च ‘ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक संग्रह है जिसमें शोध पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक परिकल्पना स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है।
यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व है: 1. एकत्रित विवरण का एनालिसिस करने के लिए लागू की गई विधि 2. रिसर्च पद्धति का प्रकार 3. सटीक उद्देश्य कथन 4. रिसर्च के लिए संभावित आपत्तियां 5. रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें 6. समय 7. एनालिसिस का मापन 8. रिसर्च स्टडीज के लिए सेटिंग्स
एक सुनियोजित शोध डिजाइन यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि आपके तरीके आपके शोध के उद्देश्यों से मेल खाते हैं, कि आप उच्च-गुणवत्ता वाले डेटा एकत्र करते हैं, और यह कि आप विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करते हुए अपने प्रश्नों का उत्तर देने के लिए सही प्रकार के विश्लेषण का उपयोग करते हैं । यह आपको वैध, भरोसेमंद निष्कर्ष निकालने की अनुमति देता है।
रिसर्च के 5 घटक परिचय, साहित्य समीक्षा, विधि, परिणाम, चर्चा, निष्कर्ष है ।
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देवांग मैत्रे
स्टडी अब्रॉड फील्ड के हिंदी एडिटर देवांग मैत्रे को कंटेंट और एडिटिंग में आधिकारिक तौर पर 6 वर्षों से ऊपर का अनुभव है। वह पूर्व में पोलिटिकल एडिटर-रणनीतिकार, एसोसिएट प्रोड्यूसर और कंटेंट राइटर रह चुके हैं। पत्रकारिता से अलग इन्हें अन्य क्षेत्रों में भी काम करने का अनुभव है। देवांग को काम से अलग आप नियो-नोयर फिल्म्स, सीरीज व ट्विटर पर गंभीर चिंतन करते हुए ढूंढ सकते हैं।
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अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं|अनुसंधान के प्रकार का वर्णन| Types of Research in Hindi
अनुसंधान के प्रकार का वर्णन types of research in hindi.
अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं ?
सामान्यतः अनुसन्धान निम्न प्रकार का होता है- ऐतिहासिक अनुसन्धान ( historical research) वर्णनात्मक अनुसन्धान ( descriptive research) प्रयोगात्मक अनुसन्धान ( experimental research) क्रियात्मक अनुसन्धान ( actionable research) अन्तर- अनुशासनात्मक अनुसन्धान ( inter-disciplinary research) , ऐतिहासिक अनुसन्धान historical research details in hindi, जॉन डब्ल्यू. बेस्ट के अनुसार , " ऐतिहासिक अनुसन्धान का सम्बन्ध ऐतिहासिक समस्या के वैज्ञानिक विश्लेषण से है। विभिन्न पद भूतकाल के सम्बन्ध में एक नई सूझ पैदा करते है , जिसका सम्बन्ध वर्तमान एवं भविष्य से होता है। " ऐतिहासिक अनुसन्धान के मूल उद्देश्य है-.
- भूत के आधार पर वर्तमान को समझना और भविष्य के लिए सतर्क रहना।
- शिक्षा मनोविज्ञान अमदा सामाजिक विज्ञानों में चिन्तन को नई दिशा देना।
- भूतकालीन तथ्यों के प्रति जिज्ञासा की तृप्ति ।
- वर्तमान में सिद्धान्त और क्रियाएँ जो व्यवहार में है , उनके उद्भव में विकास की परिस्थितियों का विश्लेषण
ऐतिहासिक अनुसन्धान के चरण Steps of Historical Research
ऐतिहासिक अनुसन्धान के निम्नलिखित चरण होते हैं- 1. ऑकड़ों का संग्रह 2. ऑकड़ों का विश्लेषण 3. उपरोक्त आधार पर तथ्यों का विश्लेषण एवं रिपोर्ट , ऐतिहासिक अनुसन्धान के क्षेत्र में निम्नलिखित बातों को शामिल किया जा सकता है।.
- शिक्षाशास्त्रियों मनोवैज्ञानिकों के सुझाव।
- प्रयोगशाला एवं संस्थाओं द्वारा किए गए व्यावहारिक कार्य।
- विभिन्न समय अवधि में विचारों के बदलाव व विकास की स्थिति ।
- विशेष प्रकार की विचारधारा का प्रभाव व उसके स्त्रोत।
- पुस्तक सूची की तैयारी।
वर्णनात्मक अनुसन्धान Descriptive Research Details in Hindi
इसके अन्तर्गत स्पष्ट परिभाषित समस्या पर कार्य किया जाता है। यह विशेष सरल एवं अत्यन्त कठिन , दोनों प्रकार का हो सकता है। यह ' क्या है ' को स्पष्ट करता है। इसके अन्तर्गत समस्या समाधान हेतु उपयोगी सूचना प्राप्त करते हैं। इसके कल्पनापूर्ण नियोजन आवश्यक है। यह अनुसन्धान संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों हो सकता है।, वर्णनात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य , भविष्य के अनुसन्धान के प्राथमिक अध्ययन में सहायता करना। मनोवैज्ञानिक विशेषताओं से परिचय प्राप्त करना और शैक्षिक नियोजन में सहायता करना। मानव व्यवहार के विभिन्न पक्षों की जानकारी प्राप्त करना।, वर्णनात्मक अनुसन्धान के चरण steps of descriptive research , वर्णनात्मक अनुसन्धान के निम्नलिखित चरण है- अनुसन्धान समस्या का कथन यह निर्धारित करना कि समस्या सर्वेक्षण अनुसन्धान के उपयुक्त है या नहीं। उचित सर्वेक्षण विधि का चुनाव । सर्वेक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण । सर्वेक्षण की सफलता का निर्धारण। आँकड़े प्राप्त करने का अभिकल्प। आँकड़ों का संग्रह। आंकड़ों का विश्लेषण। प्रतिवेदन तैयार करना। , वर्णनात्मक अनुसन्धान के प्रकार types of descriptive research , सर्वेक्षण अध्ययन अन्तर्सम्बन्धी का अध्ययन विकासात्मक अध्ययन, प्रयोगात्मक अनुसन्धान experimental research details in hindi, यह ऐसी विधि है जिसमें हम किसी सूक्ष्म समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं । यह विधि अर्थ एवं उपयोगिता की दृष्टि से व्यावहारिक है। इसमें अध्ययन नियन्त्रित परिस्थिति में किया जाता है। यह विधि एकल चर की धारणा पर आधारित है। यह सभी विज्ञानों में प्रयुक्त की जाती है।, प्रयोगात्मक अनुसन्धान के चरण, प्रयोग अनुसन्धान के विभिन्न चरण इस प्रकार है समस्या से सम्बन्धित साहित्य का सर्वेक्षण समस्या का चयन एवं परिभाषीकरण परिकल्पना निर्माण , विशिष्ट पदावली तथा चरों की व्याख्या प्रयोगात्मक योजना का निर्माण। प्रयोग करना। आंकड़ों का संकलन एवं सारणीयन प्राप्त निष्कर्ष का मापन निष्कर्ष का विश्लेषण एवं व्याख्या निष्कर्ष का विधिवत् प्रतिवेदन तैयार करना। , क्रियात्मक अनुसन्धान actionable research details in hindi, कोर के अनुसार , " यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यावहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक विधि से अपनी समस्याओं का अध्ययन , अपने निर्णय व क्रियाओं में निर्देशन , सुधार और मूल्यांकन करते हैं। " क्रियात्मक अनुसन्धान , शोध का ऐसा स्वरूप है जिसमें समस्याओं के सैद्धान्तिक अध्ययन के साथ उसके व्यावहारिक अध्ययन पर न केवल बल दिया जाता है , बल्कि व्यावहारिक पक्ष अधिक हावी होता है। क्रियात्मक शोधकर्ता घटनाओं की वस्तुस्थिति को समझकर , उनके तथ्यों का अध्ययन करके उन तथ्यों के आधार पर व्यावहारिक समस्या के हल के लिए प्रयत्न करता है। , क्रियात्मक शोध के चरण.
- विभिन्न श्रेणी के बालकों के लिए अलग-अलग तरह का पाठ्यक्रम निर्धारित करने , बदलाव लाने , इसे समय के अनुरूप करने का कार्य , क्रियात्मक शोध द्वारा किया जाता है।
- यह शिक्षार्थियों के साथ शिक्षकों की समस्याओं का भी हल करता है। शैक्षिक प्रगति के मूल्यांकन का कार्य भी इस पद्धति द्वारा किया जाता है।
अन्तर- अनुशासनात्मक अनुसन्धान Inter-disciplinary Research Details in Hindi
इसका अर्थ है कि प्रत्येक विषय को एक पूर्ण इकाई के रूप में अलग-अलग लेकर अनेक विषयों (अनुशासन) , जिनका एक ही लक्ष्य हो , उन्हें एक समूह में रखा जाए , जिसमें छात्रों को अधिकतम लाभ हो और एक समन्वित ज्ञान का विकास हो।
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Transformations That Work
- Michael Mankins
- Patrick Litre
More than a third of large organizations have some type of transformation program underway at any given time, and many launch one major change initiative after another. Though they kick off with a lot of fanfare, most of these efforts fail to deliver. Only 12% produce lasting results, and that figure hasn’t budged in the past two decades, despite everything we’ve learned over the years about how to lead change.
Clearly, businesses need a new model for transformation. In this article the authors present one based on research with dozens of leading companies that have defied the odds, such as Ford, Dell, Amgen, T-Mobile, Adobe, and Virgin Australia. The successful programs, the authors found, employed six critical practices: treating transformation as a continuous process; building it into the company’s operating rhythm; explicitly managing organizational energy; using aspirations, not benchmarks, to set goals; driving change from the middle of the organization out; and tapping significant external capital to fund the effort from the start.
Lessons from companies that are defying the odds
Idea in Brief
The problem.
Although companies frequently engage in transformation initiatives, few are actually transformative. Research indicates that only 12% of major change programs produce lasting results.
Why It Happens
Leaders are increasingly content with incremental improvements. As a result, they experience fewer outright failures but equally fewer real transformations.
The Solution
To deliver, change programs must treat transformation as a continuous process, build it into the company’s operating rhythm, explicitly manage organizational energy, state aspirations rather than set targets, drive change from the middle out, and be funded by serious capital investments.
Nearly every major corporation has embarked on some sort of transformation in recent years. By our estimates, at any given time more than a third of large organizations have a transformation program underway. When asked, roughly 50% of CEOs we’ve interviewed report that their company has undertaken two or more major change efforts within the past five years, with nearly 20% reporting three or more.
- Michael Mankins is a leader in Bain’s Organization and Strategy practices and is a partner based in Austin, Texas. He is a coauthor of Time, Talent, Energy: Overcome Organizational Drag and Unleash Your Team’s Productive Power (Harvard Business Review Press, 2017).
- PL Patrick Litre leads Bain’s Global Transformation and Change practice and is a partner based in Atlanta.
IMAGES
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अनुसंधान का अर्थ (Meaning of Research) अनुसंधान की परिभाषा (Definition of Research) उद्देश्य (Objectives of Research) अनुसन्धान का वर्गीकरण (Classification of Research) योगदान की दृष्टि से ...
अनुसंधान प्ररचना के प्रकार (Types of Research Design) अनुसन्धान प्ररचना के प्रकार अनुसन्धान प्ररचना या अनुसन्धान अभिकल्प को चार भागों में ...
PDF | On Dec 26, 2016, Patanjali Mishra published इकाई-7 शोध समया क परभाषा एवं शोध समया चु नने का आधार (Definition of ...
अनुसंधान. व्यापक अर्थ में अनुसन्धान (Research) किसी भी क्षेत्र में 'ज्ञान की खोज करना' या 'विधिवत गवेषणा' करना होता है। वैज्ञानिक अनुसन्धान ...
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अनुसंधान की विधियां (Methods Of Research) ऐतिहासिक अनुसंधान (Historical Research) 2. वर्णनात्मक अनुसंधान (Descriptive Research) 3. क्रियात्मक अनुसंधान (Action Research) 4.
Hindi. Book Source: Digital Library of India Item 2015.346366. dc.contributor.author: B.m. Jain ... Research Methodology dc.type: print - paper dc.type: book. Addeddate 2017-01-16 17:13:48 ... Pdf_module_version 0.0.13 Ppi 300 Scanner Internet Archive Python library 1.1.0 ...
8. 'kks/k izjpuk ds izdkj % vUos"k.kkRed rFkk o.kZukRed 'kks/k (Types of Research Design: Exploratory and Descriptive) 67 9. 'kks/k izjpukvksa ds izdkj % ijh{k.kkRed ,oa rqyukRed (Types of Research Design: Experimental and Cross-Sectional Design) 74 10. rF;ksa ds izdkj ,oa muds Lkzksr (Types of Data and Their Sources) 84
Notes of M.Ed. First Sem 2021-22, Research Methodology शैक्षिक अनुसंधान.pdf - Study Material. Experience Teachmint X - AI driven Interactive Flat Panels and Smart Boards ... Educational Research.pdf b-tech. Researchmethodology. 1 Likes. 207 Views. Copied to clipboard Dr. Achyut Kumar. ... Hindi. 0 Likes. 334 Views ...
1. निदानात्मक अनुसन्धान (Diagonostic Research) - निदानात्मक अनुसंधान व्यावहारिक अनुसन्धान का वह प्रकार है जिसका उद्देश्य किसी समस्या के कारणों ...
भाषा : हिंदी | फ्री | पृष्ठ:272 | साइज:12.74 MB | लेखक:बी. एम. जैन - B. M. Jain | Research ...
1. शोध समस्या की पहचान करना (Identifying of the Research Problem) 2. संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण (Review of Relevant Literature) 3. उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन (Selection of Appropriate Research Method) 4 ...
Get access to the latest Types of research: fundamental, applied, action, evaluation (in Hindi) prepared with NTA-UGC-NET & SET Exams course curated by Navdeep Kaur on Unacademy to prepare for the toughest competitive exam. ... (Hindi) Research Aptitude Crash Course. 12 lessons • 1h 59m . 1. Research Aptitude Concepts (in Hindi) 9:32mins. 2 ...
Research Proposal. Full-text available. May 2020. Noushad Husain. PDF | The book provides in details about the different topics related to "Research in Education". | Find, read and cite all the ...
Types-of-Research-Hindi - Free download as PDF File (.pdf), Text File (.txt) or read online for free.
F. N. Kerlinger. Research Methods in Education: An Introduction. Article. Nov 1971. William J. Bramble. John W. Best. Armand J. Galfo. William Wiersma. PDF | On Dec 26, 2016, Patanjali Mishra ...
8 lessons • 47m. 1. Meaning of Research Aptitude (in Hindi) 5:01mins. 2. Characteristics of Research (in Hindi) 5:30mins. 3. Aims and Objective of Research (in Hindi)
रिसर्च के 5 घटक परिचय, साहित्य समीक्षा, विधि, परिणाम, चर्चा, निष्कर्ष है ।. उम्मीद है कि रिसर्च डिज़ाइन के बारे में आपको सभी जानकारियां ...
Research may have certain other qualities such as: a) It is a prearranged / structured enquiry (a formal step by step method or sequence to take up research activity is developed to ensure correctness of data and validity of processes). Scientific methods consist of systematic observation, classification and interpretation of data.
T/F 6) Case study method is most useful in clinical setting. T/F 7) Opinion polls are the examples of survey methods. T/F 8) Social behaviour under the war condition can be studied by the field study method. T/F 9) Quasi-experimental research involves random assignment of subject to different groups.
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