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अनुसंधान के प्रकार (Types of Research)

अनुसंधान आमतौर पर अंत: विषय में अनुसंधान के विभिन्न प्रकारों के बीच काफी व्यापक व्यापकता भी है

Table of Contents

परिणाम के आधार पर अनुसंधान का वर्गीकरण

परिणाम के आधार पर अनुसंधान दो प्रकार का होता है –

मौलिक अनुसंधान और  व्यावहारिक अनुसंधान  

मौलिक या प्राथमिक अनुसंधान (बेसिक रिसर्च)

 यह मूल ज्ञान के वर्तमान समय में विधि के लिए होता है इससे सिद्धांतों और धारणाएं विकसित होती हैं हो सकती हैं कि वर्तमान में इनका कोई उपयोग ना हो या अकादमी के दृष्टिकोण से ज्यादा महत्वपूर्ण है मौलिक या प्राथमिक अनुसंधान से ज्ञान में वृद्धि की खोज या अविष्कार   मुख्यता वाचिक होती है और विस्तृत अध्ययन किया जाता है

व्यावहारिक अनुसंधान (अप्लाइड रिसर्च)

 व्यावहारिक अनुसंधान विशिष्ट और व्यावहारिक समस्याओं का समाधान करने के लिए किया जाता है यह नीति निर्धारण प्रशासन और किसी घटना को समझने के लिए उपयोग किया जा सकता है क्या यह मुक्ता मौलिक अनुसंधान के आधार पर ही किया जाता है व्यावहारिक अनुसंधान समाधान उन्मुख होता है व्यावहारिक अनुसंधान समाधान उन्मुख होता है मूल परिस्थितियों में लागू होता है और इस का गहन अध्ययन किया जाता है।

तर्क के आधार पर अनुसंधान का वर्गीकरण

(Classification of Research on the Basis of Logic) 

आगमन और निधन को ज्ञान प्राप्ति की मूलभूत शिल्पी कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी यह दोनों अपने-अपने तरीके से ज्ञात करने के लिए सहायक उपकरण हैं।

आगमन (सूचक)

आगमन तक प्रणाली तक का प्रयोग कर ज्ञान प्राप्त करने की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें हम विभिन्न उदाहरणों या अनुभवों के सामान्यीकरण द्वारा वांछित ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

 निगम आंतरिक प्रणाली ज्ञान प्राप्ति के लिए एक ऐसी तर्क प्रणाली है जिसमें हम सामान्य से विशिष्ट की ओर चलते हैं।

 अतः हम कह सकते हैं कि सिर्फ आगमन या सिर्फ निधन की सहायता से विश्वसनीय वैध और वस्तुनिष्ठ ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है या नहीं किसी पर अत्यधिक निर्भरता हमारी सोच और उसके निष्कर्षों को गलत दिशा में ले जा सकती है आगमन या निस्सहायता वादों ये हैं से किसी को भी पूर्णतया त्रुटि रहित या विश्वसनीय उपगमम माना नहीं जा सकता है।

प्रक्रिया के आधार पर अनुसंधान का वर्गीकरण

 इस आधार पर अनुसंधान को तीन प्रकार का माना गया है।

  • परिधीय या परिधीय अनुसंधान
  • गुणात्मक अनुसंधान
  • मिश्रित अनुसंधान

1-  परिधीय अनुसंधान

 स्वभाव से यह निद्रता का ही रूप है इसमें पहले उपलेखना का निर्धारण होता है जिसमें सिद्धांत भी पहले से ही निर्धारित होते हैं यह शोध आंकड़ों पर आधारित होता है और इसके निष्कर्ष भी आंकड़ों द्वारा ही निर्धारित होता है मात्रात्मक शोध आदेशात्मक है और निरोध विधि पर आधारित   होता है।

मात्रात्मक शोध किसी प्रकार के पक्ष या भाव से रहित होता है यह या सटीक घटना और परिणाम या प्रभाव के बीच संबंधों पर केंद्रित रहता है मात्रात्मक शोध में सूचना सांख्यिकीय के रूप में होता है या सर्वेक्षण संरक्षित साक्षात्कार अवलोकन रिकॉर्ड और रिपोर्ट की समीक्षा का डेटा संग्रह होता है।

विश्वविद्यालय आयोग Universities Commission

2-  गुणात्मक अनुसंधान

इस शोध को आगमन का रूप माना जाता है कि मानव व्यवहार को गणित के स्रोतों में नहीं बांधा जा सकता है गुणात्मक शोध का मुख्य उद्देश्य मानव व्यवहार और उसे नियंत्रित करने वाले कारणों को गहराई से समझने से होता है ।

यह विधि ना केवल क्या कहां कब सवाल की जांच करती है बल्कि क्यों और कैसे फिर भी इस प्रकार के अनुसंधान के लिए बड़े हमलोंदर्शो की बजाए छोटे लेकिन कैनद्रित मदरसों को ज्यादा उपयोगी माना गया है गुणात्मक शोध निर्देशन से कार्य करता है गुणात्मक शोध में आमतौर पर उपलेख का प्रयोग नहीं करते यह विकल्प खुला रखते हैं। 

Research Aptitude /अनुसंधान अभिक्षमता अनुसंधान: अर्थ,

गुणात्मक शोध बहुत लचीला होता है गुणात्मक शोध मात्रात्मकता के स्थान पर व्यक्तिगत अनुभव के विश्लेषण पर जोर देता है गुणात्मक शोध में शोध के निष्कर्ष में भाव और पक्ष को स्थान दिया जाता है। यह कारण का विश्लेषण और सत्यापन करता है।

 उदाहरण के लिए यदि हमें शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षण प्रभावशीलता के बारे में अध्ययन करना है तो जो संबंधित तथ्य सामने आते हैं उन्हीं का परीक्षण और रिकॉर्डिंग द्वारा वर्णनात्मक तथ्यों के रूप में शिक्षक प्रभावशीलता की गुणात्मक तथ्यों पर टिप्पणी की जाएगी।

गुणात्मक अनुसंधान का उपयोग अफसर   नीति और कार्यक्रम मूल्यांकन अनुसंधान के लिए किया जाता है विश्वसनीयता और वैधता को गुणात्मक अनुसंधान का एक मुख्य विषय माना गया है गुणात्मक शोध में कुछ विशिष्ट गुणों और सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है जिसका वर्णन उद्देश्यों लिखित अनुच्छेदों में किया गया है इसको गुणात्मक अनुसंधान के विभिन्न प्रकार भी कहा जा सकता है

समूह केंद्रीय 

  इस विधि में शोधकर्ता एक साथ कुछ व्यक्तियों के समूह को किसी विषय वस्तु पर चर्चा करने के लिए एकत्रित करता है समूह में सदस्य की संख्या कम रखी जाती है ताकि सदस्य स्वयं को अधिक स्वतंत्र तरीके से व्यक्त कर सकें।

प्रत्यक्ष अवलोकन 

 इसमें बाहरी गवाह के द्वारा प्रदत एकत्रित किया जाता है।

गहन साक्षात्कार

  यह स्वरूपित होता है और इसमें कुछ तथ्यों की गहराई तक जाने का प्रयास रहता है

यह शोध मुख्य साहित्य की समीक्षा करने में सही होता है और उसी का एक दृष्टिकोण माना जा सकता है।

 यह गुणात्मक अनुसंधान का ही एक रूप है जिसमें शोधकर्ता एक या अधिक व्यक्तियों के किसी घटना विशेष के बारे में उनके अनुभव को समझने का प्रयास करता है हम यह भी कह सकते हैं कि घटनाजन्य अनुसंधान का उद्देश्य भागीदारों के दृष्टिकोण से वर्तमान में स्थित किसी भी प्रक्रिया है। है। या घटना विशेष का उसका स्वत्व और वास्तविक परिस्थितियों में अध्ययन करना है

नृ – जातीय या जतिवृत्त शोध

जातिवृतात्मक अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य भौतिक और सामाजिक परिवेश जिसमें अध्ययन किए जाने वाले लोग रहते हैं शिक्षण संस्थान में आते हैं जाते हैं या कोई अन्य कार्य करते हैं आदि का निर्धारण करना जातिवृतात्मक का मूल मानव शास्त्र में है।

व्यक्तिगत अध्ययन  

यहां हम कई इकाइयों या न्याय दर्शन का अध्ययन करने की अपेक्षा एक का गहन अध्ययन करते हैं जैसे इकाइयां कुछ निराशाओं में छिपी होती हैं यह मुख्य मनोवैज्ञानिक सूचकांक सामाजिक शास्त्र व्यापार क्षेत्र आदि में सदस्यों को एकत्र करने की एक विधि है।

यह इकाई एक व्यक्ति परिवार समूह है,   या  समुदाय हो सकता है या सामाजिक इकाई का एक समग्र रूप में परीक्षण करता है इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य इकाई के जीवन चक्र को समझने होता है जिसमें प्रदत गुणात्मक होते हैं अतः व्यक्ति अध्ययन के लिए इकाई का चयन सावधानी पूर्वक करना चाहिए।

प्रदत्त आधारित सिद्धांत

 एक गुणात्मक दृष्टिकोण है जिसमें शोधकर्ता द्वारा एकत्रित किए गए प्रश्नों का विश्लेषण के आधार पर किसी सिद्धांत को विकसित किया जा सकता है, हालांकि गुणात्मक शोध में सिद्धांत स्थापित करना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसमें आगमन उपागम का प्रयोग किया जाता है और जिसके आधार भूमि प्रदत्त होते हैं।

जिनके शोधकर्ताओं द्वारा प्राकृतिक परिस्थितियों में निष्कर्ष और विश्लेषण कर सिद्धांत निर्माण का कार्य किया जाता है, इस पद्धति में प्रदेकर के निर्माण के विभिन्न स्रोतों, जैसे- परिवादात्मक प्रदत्त अभिलेखों का पुनरुद्धार, साक्षात्कार, परीक्षण और सर्वेक्षण का उपयोग किया जाता है।

 उपरोक्त आह के अलावा पात्र निष्कर्षण निरंतर प्रक्रिया या घटना विशेष का उसकी स्वाभाविक और वास्तविक परिस्थितियों में अध्ययन करना है।

3- मिश्रित अनुसंधान मिक्सड रिसर्च गुणात्मक अनुसंधान में अधिक शोध लाने और उनके बेहतर सत्यापन के लिए मात्रात्मक प्रयोगशालाओं का भी प्रयोग किया जा सकता है 1970 के दशक तक वाक्यांश गुणात्मक अनुसंधान का उपयोग केवल मानव विज्ञान या समाजशास्त्र के एक विषय का उल्लेख करने के लिए होता है।

  1970 और 1980 के बीच के दशक के बीच के दशक के बीच के दशक के बीच के दशक के बीच गुणात्मक अनुसंधान का उपयोग अन्य विषयों के लिए भी किया जा रहा है लगाया गया है 1980 -1990 के बीच के दशक के अंत में मात्रात्मक पक्ष की ओर से आलोचनाओं की बाढ़ के आंकड़ा विश्लेषण। विश्वसनीयता और ताकत। के। संबंध में परिकल्पित समस्याओं से निबटने के लिए गुणात्मक अनुसंधान की नई विशेषताओं का विकास हुआ।

जांच के आधार पर अनुसंधान

यह अनुसंधान मुख्य रूप से अनुसंधान समस्या को किस प्रकार से हम हल कर सकते हैं के बारे में अध्ययन करता है। 

जांच के आधार पर अनुसंधान दो प्रकार का है-

 यह मूल परिधीय अनुसंधान या निगमन विधि के जैसा ही है।

  सामाजिक विषय पर अनुसंधान कार्यक्रम रखना पड़ता है इसलिए इसका गुणात्मक अनुसंधान और आगमन विधि से मिश्रित संबंध है।

उद्देश्यों के आधार पर अनुसंधान का वर्गीकरण

अनुसंधान के उद्देश्यों के आधार पर अनुसंधान को मुख्य रूप से 5 श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

    वर्णनात्मक अनुसंधान 

 जैसे कि नाम से पता चलता है इस प्रकार का अनुसंधान स्थिति का वर्णन करता है यह क्या है या क्या था जैसे सवालों का उत्तर देने का प्रयास करता है यह तर्क करने जैसा है।

 इसमें मुख्यता सर्वेक्षण पद्धति का उपयोग होता है इस प्रकार के शोध में शोधकर्ता का चरों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है इसमें जांच परिस्थिति या वातावरण में परिवर्तन के बिना ही एकत्रित की जाती है। इसमें किसी भी चर के साथ हेरफेर नहीं किया जाता है अनुसंधान के रूप में भी निर्दिष्ट किया जाता है

 इस शोध में सर्वेक्षण और पर्याप्त व्याख्या के साथ-साथ तथ्यों की खोज को सम्मिलित किया जाता है उदाहरण के लिए वर्णनात्मक शोध यह पता लगाने का प्रयास किया जा सकता है कि किसी भी स्कूल जिले के राज्य या प्रांत में शिक्षा का स्तर कैसा है। 

  घटनोक्तर अनुसंधान ऐतिहासिक अनुसंधान और विश्लेषात्मक अनुसंधान भी इसी अनुसंधान के विभिन्न प्रारूप कहे जा सकते हैं

सहसंबंध अनुसंधान (समन्वय अनुसंधान) 

(1) सहसंबंध अनुसंधान में एक स्थिति के दो पहलुओं के बीच संबंध और चर निर्भरता का पता चलता है दो या दो से अधिक चर एक साथ होते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह एक दूसरे के लिए है

(2) इस शोध के द्वारा एक निश्चित परिस्थिति में प्रमुख कारकों की पहचान की जा सकती है।

शोधात्मक शोध

(एक्सप्लेनेटरी रिसर्च)

 व्याख्यात्मक अनुसंधान में एक स्थिति या घटना के दो पहलू कैसे और क्यों जैसे सवालों का जवाब देने की चेष्टा की जाती है उदाहरण के लिए –

1- रट्टा लगाने के फल स्वरुप परीक्षा से संबंधित तनाव क्यों होता है।

2- तनाव की वजह से ह्रदय रोग की उत्पत्ति कैसे होती है।

Research Aptitude (अनुसंधान अभिक्षमता) अनुसंधान: अर्थ, विशेषताएं और प्रकार

2020 New Education Policy-(नई शिक्षा नीति 2020)

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अनुसंधान का अर्थ ( Meaning of Research)

अनुसंधान के द्वारा उन मौलिक प्रश्नों के उत्तर देने के प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। यह उत्तर मानवीय प्रयासों पर आधारित होता है इस प्रत्यय को चन्द्रमा के एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। कुछ वर्ष पहले जब तक मनुष्य चन्द्रमा पर नहीं पहुँचा था, चन्द्रमा वास्तव में क्या हैं ? इस सम्बन्ध में सही जानकारी नहीं थी। यह एक समस्या भी थी जिसका कोई समाधान भी नहीं था। मनुष्य को चन्द्रमा के सम्बन्ध में मात्र आवधारणाएं ही थी, शुद्ध ज्ञान नहीं था। परन्तु मनुष्य अपने प्रयास से चन्द्रमा पर पहुंच गया है। इस प्रकार शोध कार्यों द्वारा उन प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर साहित्य में उपलब्ध नहीं है अथवा मनुष्य की जानकारी में नहीं है। उन समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयत्न किया जाता है जिसका समाधान उपलब्ध नहीं है और न ही मनुष्य की जानकारी में है।

अनुसंधान की परिभाषा ( Definition of Research)

अनेक परिभाषाएं अनुसन्धान की गई है प्रमुख परिभाषा इस प्रकार हैं-

रेडमेन एवं मोरी के अनुसार- “नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए व्यावस्थित प्रयास ही अनुसंधान हैं।”

पी० एम० कुक के अनुसार- ‘अनुसंधान किसी समस्या के प्रति ईमानदारी, एवं व्यापक रूप में समझदारी के साथ की गई खोज है। जिसमें तथ्यों, सिद्धान्तों तथा अर्थों की जानकारी की जाती है। अनुसंधान की उपलिब्ध तथा निष्कर्ष प्रामाणिक तथा पुष्टि करने योग्य होते हैं। जिससे ज्ञान में वृद्धि होती है।

उद्देश्य ( Objectives of Research)

शोध समस्याओं की विविधता अधिक है इसके चार प्रमुख उद्देश्य होते हैं- सैद्धान्तिक उद्देश्य, तथ्यात्मक उद्देश्य, सत्यात्मक उद्देश्य तथा व्यावहारिक उद्देश्य इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  • सैद्धान्तिक उद्देश्य ( Theoretical Objectives)- अनुसंधान में वैज्ञानिक शोध कार्य द्वारा नये सिद्धान्तों तथा नये नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। इस प्रकार के शोध कार्य में अर्थापन होता है। इसमें चरों के सम्बन्धों को प्रगट किया जाता है और उनके सम्बन्ध में सामान्यीकरण किया जाता है। इससे नवीन ज्ञान की वृद्धि होती है, जिनका उपयोग शिक्षण तथा निर्देशन की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाता है।
  • तथ्यात्मक उद्देश्य ( Factual Objectives)- शिक्षा के अन्तर्गत ऐतिहासिक शोध-कार्यो। द्वारा नये तथ्यों की खोज की जाती है। इनके आधार पर वर्तमान को समझने में सहायता मिलती है। इन उद्देश्यों की प्रकृति वर्णनात्मक होती है। क्योंकि तथ्यों की खोज करके, उनका अथवा घटनाओं का वर्णन किया जाता है। नवीन तथ्यों की खोज शिक्षा-प्रक्रिया के विकास तथा सुधार में सहायक होती है, निर्देशन प्रक्रिया का विकास तथा सुधार किया जाता है।
  • सत्यात्मक उद्देश्य ( Establishment of Truth Objective)- दार्शनिक शोध कार्यों द्वारा नवीन सत्यों का प्रतिपादन किया जाता है। इनकी प्राप्ति अन्तिम प्रश्नों के उत्तरों से की जाती है। दार्शनिक शोध-कार्यों द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों, सिद्धान्तों तथा शिक्षण विधियों तथा पाठ्यक्रम की रचना की जाती है। शिक्षा की प्रक्रिया के अनुभवों का चिन्तन बौद्धिक स्तर पर किया जाता है। जिससे नवीन सत्यों तथा मूल्यों को प्रतिपादन किया जा सकता है।
  • व्यावहारिक उद्देश्य ( Application Objectives)- शैक्षिक अनुसंधा निष्कर्षों का व्यावहारिक प्रयोग होना चाहिए। परन्तु कुछ शोध-कार्यों में केवल इन्हें विकासात्मक अनुसन्धान भी कहते है। क्रियात्मक अनुसन्धान से शिक्षा की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास किया जाता है अर्थात् इनका उद्देश्य व्यावहारिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से इसका उपयोग अधिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से भी इस उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। निर्देशन में इसकी उपयोगिता अधिक होती है।

अनुसन्धान का वर्गीकरण (Classification of Research)

अनुसन्धान के उद्देश्यों से यह स्पष्ट है कि अनुसन्धानों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है। प्रमुख वर्गीकरण मानदण्ड पर आधारित है-

योगदान की दृष्टि से (Contribution Point of View)

शोध कार्यों के योगदान की दृष्टि से शैक्षिक अनुसन्धानों को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-

मौलिक अनुसंधान ( Basic or Fundamental Research)- इन शोध कार्यों द्वारा नवीन ज्ञान की वृद्धि की जाती है-नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन नवीन तथ्यों की खोज, नवीन तथ्यों का प्रतिपादन होता है। मौलिक-अनुसन्धानों से ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि की जाती है। इन्हें उद्देश्यों की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  • प्रयोगात्मक शोध-कार्यों से नवीन सिद्धान्तों तथा नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। सर्पक्षण शोध से इसी प्रकार का योगदान होता है।
  • ऐतिहासिक शोध कार्यो से नवीन तथ्यों की खोज की जाती है। जिनमें अतीत का अध्ययन किया जाता है और उनके आधार पर वर्तमान को समझने का प्रयास किया जाता है।
  • दार्शनिक शोध कार्यों से नवीन सत्यों एवं मूल्यों का प्रतिपादन किया जाता है। शिक्षा का सैद्धान्तिक दार्शनिक अनुसन्धानों से विकसित किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण लिंक

  • निर्देशन (Guidance)- अर्थ, परिभाषा एवं विशेषतायें, शिक्षा तथा निर्देशन में सम्बन्ध
  • सूक्ष्म-शिक्षण- प्रकृति, प्रमुख सिद्धान्त, महत्त्व, परिसीमाएँ
  • निर्देशन के उद्देश्य (Aims of Guidance in Hindi)
  • शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)-परिभाषा, विशेषताएँ, सिद्धान्त
  • शैक्षिक निर्देशन-उद्देश्य एवं आवश्यकता (Objectives & Need)
  • व्यावसायिक निर्देशन (Vocational guidance)- अर्थ, उद्देश्य, शिक्षा का व्यावसायीकरण
  • परामर्श (Counselling)- परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य, विशेषताएँ
  • विशेष शिक्षा की आवश्यकता | Need for Special Education
  • New Education Policy- Characteristics & Objectives in Hindi
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1992 की संकल्पनाएँ या विशेषताएँ- NPE 1992
  • सूक्ष्म शिक्षण- परिभाषा, सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया, प्रतिमान, पद
  • व्यावसायिक निर्देशन- आवश्यकता एवं उद्देश्य (Need & Objectives)

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बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सम्पूर्ण जानकारी देने में सक्षम है।

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Kushal Pathshala

शोध प्रक्रिया के चरण (Step of Research Process)

  • Post author: admin
  • Post category: Research Aptitude

शोध नया ज्ञान प्राप्त करने का एक माध्यम है। शोध में शोधार्थी को अनुसंधान कार्य पूरा करने के लिए शोध के विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ता है। शोधार्थी को शोध प्रक्रिया में प्रत्येक चरण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है जिससे सही ढंग शोध कार्य संपन्न हो सके। शोध प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की विस्तृत कार्य योजना तैयार करना चाहिए तथा प्रत्येक चरणों को ध्यान पूर्वक अवलोकन कर और जांच कर आवश्यकता अनुसार परिवर्तन एवं संशोधन कर लेना चाहिए। जैसा कि हम लोग जानते हैं कि शोध एक सतत चलने प्रक्रिया है इसमें कोई कार्य अन्तिम नहीं होता। शोध प्रक्रिया में शोधार्थी को विभिन्न स्तर पर निम्नलिखित चरणों से गुजरना होता है।

research ke types in hindi

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1. शोध समस्या की पहचान करना ( Identifying of the Research Problem)

प्रथम चरण में शोधार्थी को शोध समस्या की पहचान करना होता है अर्थात जिसे विशिष्ट क्षेत्र में उसे शोध कार्य करना है उसकी पहचान करना होता है। शोध समस्या ऐसी होनी चाहिए जिससे किसी नये ज्ञान की आविर्भाव हो और समसामयिक रूप से उपयोगी हो।इसमें शोधार्थी विशेष शोध समस्या का चयन करता है अर्थात वह एक विशेष विषय क्षेत्र पर कार्य करने के लिए मन:स्थिति बनाता है और विशिष्ट शोध समस्या का प्रतिपादन परिष्कृत तकनीकी शब्दों में करता है। शोधार्थी को ध्यान रखना चाहिए कि शोध समस्या का प्रतिपादन प्रभाव कारी एवं स्पष्ट तकनीकी शब्दावली में किया जाए। इसके साथ-साथ शोधार्थी को शोध समस्या में समाहित उप समस्याएं कौन-कौन सी हैं। इसका भी विस्तार से वर्णन करना चाहिए एवं शोधार्थी को विषय शोध विषय क्षेत्र में विशिष्ट साहित्य खोज करना चाहिए जिससे शोध विषय के बारे में स्पष्ट ज्ञान हो सके।

2. संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण ( Review of Relevant Literature)

शोधार्थी अपने विशेष शोध समस्या से संबंधित विषय पर गहन अध्ययन करता है। अन्य शोधकर्ताओं और विद्वानों द्वारा अद्यतन किए गए शोध कार्य का गहन अध्ययन व अवलोकन करता है। शोधकर्ता शोध से संबंधित शोध प्रबंधों, लेखों व अन्य स्वरूपों में उपलब्ध सामग्री का गहन सर्वेक्षण करता है। जिससे शोधार्थी को शोधकार्य करने की दिशा निर्देश मिलता है। इसमें शोधकर्ता अपने शोध समस्या से जुड़ी हुई अभी तक किए गए शोध प्रविधि, आंकड़ों का संकलन विधि और तकनीकी, आंकड़े विश्लेषण तकनीकी आदि का भी सार तैयार करता है।

शोधार्थी को इस चरण में यह भी स्पष्ट उल्लेख कर लेना चाहिए कि उसका शोध कार्य पूर्वर्ती शोध कार्य से किस तरह भिन्न है। इस चरण में संबंधित विषय क्षेत्र पर महत्वपूर्ण जानकारी प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक सूचना स्रोत तथा अन्य स्रोत से प्राप्त कर गहन चिंतन और साहित्य सर्वेक्षण कर लेना आवश्यक होता है, ताकि शोधार्थी को शोध कार्य करने में एक दिशा निर्देश मिल सके।

3. उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन (Selection of Appropriate Research Method)

इस चरण में शोधार्थी को उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन करना होता है। हर शोध समस्या एक विशिष्ट प्रकार की होती है और उसका समाधान भी एक विशेष शोध प्रविधि की सहायता से खोजा जा सकता है यदि हम समय विस्तार के आधार पर संबंधित समस्याओं के उत्तर खोजने का प्रयास करें तो निम्न मुख्य तीन शोध प्रविधि को अपनाना होता है -ऐतिहासिक शोध प्रविधि (Historical Method), सर्वेक्षण शोध प्रविधि  (Survey Method), प्रयोगात्मक शोध प्रविधि (Experimental Method)

  • ऐतिहासिक शोध प्रविधि उस शोध समस्या का समाधान के लिए उपयोगी होता है जिसमें शोधार्थी को भूतकाल में उत्तर या समाधान खोजना होता है। उदाहरण स्वरूप भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व पुस्तकालयों की स्थिति, डॉ एस आर रंगनाथन का पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के विकास में योगदान आदि इस शोध प्रविधि में वर्तमान परिस्थिति और समस्याओं का हल भूतकाल में हुए संबंधित विषय का अध्ययन के आधार पर खोजने का प्रयास किया जाता है।
  • सर्वेक्षण शोध प्रविधि में उन समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। जिसका हल वर्तमान परिस्थिति में से खोजना होता है। यह प्रविधि सामाजिक विज्ञान में सबसे अधिक प्रयोग होता है जैसे पाठक-अध्ययन, पुस्तकालय सर्वेक्षण, ग्रामीण पाठकों का सूचना खोजने संबंधी व्यवहार आदि शोध समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है।

4. शोध परिकल्पना का प्रतिपादन ( Formulation of Research Hypothesis)

शोध प्रक्रिया को सही दिशा प्रदान करने के लिए शोध प्राककल्पना का प्रतिपादन करना अत्यंत आवश्यक है। शोध में आंकड़े के संकलन और विश्लेषण के पूर्व शोध के परिणामों का अनुमान करना परिकल्पना है। यह एक बुद्धिमत्ता पूर्ण भविष्यवाणी होती है। यह परिकल्पना पूर्व निर्धारित सिद्धांतों अपना व्यक्तिगत अनुभवों अथवा आनुभविक विचारों के आधार पर शोध प्राक्कलन का निर्माण किया जाता है।

5. आंकड़ा संकलन तकनीक और उपकरणों का चयन ( Selection of Data Collection Tools and Techniques)

शोध के लिए आंकड़ा संकलन की अनेक विधियां हैं। शोधार्थी को अपनी शोध समस्या के अनुरूप तकनीकों का सहारा लेने की आवश्यकता होती है। प्रत्येक तकनीक और उपकरण एक विशिष्ट प्रकार के शोध के लिए उपयोगी होता है। अतः शोधार्थी को अपने शोध समस्या के अनुरुप तकनीक और उपकरण का चयन करना होता है ताकि आसानी से शोध समस्या का हल निकाला जा सके। शोध समस्या के समाधान हेतु आंकड़े का संकलन हेतु निम्नलिखित तकनीक और उपकरण का प्रयोग करते हैं।

  • अवलोकन (Observation)
  • मापन (Measurement) एवं
  • प्रश्नावली (Questionnaire)
  • अवलोकन (Observation) आंकड़ा संकलन का एक महत्वपूर्ण तकनीक है। यह तकनीक व्यक्ति या समूह के व्यवहार अध्ययन व विशेष परिस्थिति अध्ययन करने में अत्यंत ही उपयोगी होता है। कृष्ण कुमार इसके तीन घटक बताएं है – अनुभूति (Sensation), मनोयोग (Attention), एवं प्रत्यक्ष ज्ञान (Perception)। अनुभूति में हम संवेदी अंगों जैसे आंख, कान, नाक, त्वचा आदि का उपयोग किया जाता है। मनोयोग से तात्पर्य अध्ययन की जा रही विषय वस्तु पर एकाग्रता की क्षमता से है। प्रत्यक्ष ज्ञान एक व्यक्ति को तथ्यों को पहचानने में, अनुभव, आत्म-विश्लेषण, अनुभूति के उपयोग के द्वारा समर्थ बनाता है।
  • मापन (Measurement) का प्रयोग शोध समस्या के समाधान में प्रयोग करते हैं। शोधार्थी द्वारा निर्धारित उद्येश्य की पूर्ति हेतु मापन की विभिन्न विधियों का अनुसरण किया जाता है। इसके अन्तर्गत सूचियां, समाजमिति, संख्यात्मक मापनी, वर्णनात्मक मापनी, ग्राफिक मापनी, व्यक्ति से व्यक्ति मापनी इत्यादि का उपयोग करते हैं।
  • प्रश्नावली (Questionnaire) का प्रयोग शोधार्थी प्रश्न पूछने में प्रश्नावली, अनुसूची अथवा साक्षात्कार तकनीक करते हैं। प्रश्नावली शोधार्थी प्रश्न माला तैयार कर उत्तर दाताओं को डाक, ईमेल अथवा व्यक्तिगत रूप से देता है। उत्तरदाता प्रश्नावली को पढ़कर उत्तर पूरित करते हैं। अनुसूची में शोधार्थी उत्तरदाताओं से स्वयं प्रश्न पूछकर उत्तर की प्राप्त करता है जबकि साक्षात्कार में उत्तरदाता एवं शोधार्थी आमने-सामने बैठकर संवाद करते हैं।

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शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - Research Hypothesis – Definition, Nature and Types

 शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - research hypothesis – definition, nature and types,   शोध परिकल्पना.

 परिकल्पना अनुसन्धान का एक प्रमुख एवं लाभदायक एवं उपयोगी हिस्सा है एक परिकल्पना के पीछे एक अच्छा अनुसन्धान छिपा होता है। बिना परिकल्पना के अनुसन्धा उद्देश्यहीन तथा बिन्दुहीन होता जाता है। बिना किसी अच्छे अर्थ के परिणाम अच्छे नहीं मिलते हैं इसलिये परिकल्पना का आकार मिश्रित तथा कठिन तथा लाभ से परिपूर्ण होता है। परिकल्पना का स्वरूप बड़ा एवं करीब होने पर इसके आकार को रद्दो बदल कर अनुसन्धान के अनुसार घटाया बढ़ाया जाता है। ऐसा नहीं किया जायेगा तो अनुसन्धानकर्ता अनावश्यक एवं तथ्यहीन आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है।

शोध परिकल्पना :

परिकल्पना शब्द परि + कल्पना दो शब्दों से मिलकर बना है। परि का अर्थ चारो ओर तथा कल्पना का अर्थ चिन्तन है। इस प्रकार परिकल्पना से तात्पर्य किसी समस्या से सम्बन्धित समस्त सम्भावित समाधान पर विचार करना है।

परिकल्पना किसी भी अनुसन्धान प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण स्तम्भ है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी समस्या के विश्लेषण और परिभाषीकरण के पश्चात् उसमें कारणों तथा कार्य कारण सम्बन्ध में पूर्व चिन्तन कर लिया गया है, अर्थात् अमुक समस्या का यह कारण हो सकता है, यह निश्चित करने के पश्चात उसका परीक्षण प्रारम्भ हो जाता है। अनुसंधान कार्य परिकल्पना के निर्माण और उसके परीक्षण के बीच की प्रक्रिया है। परिकल्पना के निर्माण के बिना न तो कोई प्रयोग हो सकता है और न कोई वैज्ञानिक विधि के अनुसन्धान ही सम्भव है। वास्तव में परिकल्पना के अभाव में अनुसंधान कार्य एक उद्देश्यहीन क्रिया है।

  परिकल्पना की परिभाषा :

परिकल्पना की परिभाषा से समझने के लिए कुछ विद्वानों की परिभाषाओं को समझना आवश्यक है। जो निम्न है। 

करलिंगर ( Kerlinger) - "परिकल्पना को दो या दो से अधिक चरों के मध्य सम्बन्धों का कथन मानते हैं।"

मोले (George G. Mouley ) - "परिकल्पना एक धारणा अथवा तर्कवाक्य है जिसकी स्थिरता की परीक्षा उसकी अनुरूपता, उपयोग, अनुभव-जन्य प्रमाण तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर करना है।"

गुड तथा हैट (Good & Hatt ) - "परिकल्पना इस बात का वर्णन करती है कि हम क्या देखना चाहते है। परिकल्पना भविष्य की ओर देखती है। यह एक तर्कपूर्ण कथन है जिसकी वैद्यता की परीक्षा की जा सकती है। यह सही भी सिद्ध हो सकती है, और गलत भी।"

लुण्डबर्ग (Lundberg ) - "परिकल्पना एक प्रयोग सम्बन्धी सामान्यीकरण है जिसकी वैधता की जाँच होती है। अपने मूलरूप में परिकल्पना एक अनुमान अथवा काल्पनिक विचार हो सकता है जो आगे के अनुसंधान के लिये आधार बनता है।"

मैकगुइन (Mc Guigan ) - "परिकल्पना दो या अधिक चरों के कार्यक्षम सम्बन्धों का परीक्षण योग्य कथन है।

अतः उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परिकल्पना किसी भी समस्या के लिये सुझाया गया वह उत्तर है जिसकी तर्कपूर्ण वैधता की जाँच की जा सकती है। यह दो या अधिक चरों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध है ये इंगित करता है तथा ये अनुसन्धान के विकास का उद्देश्यपूर्ण आधार भी है।

परिकल्पना की प्रकृति :

किसी भी परिकल्पना की प्रकर्षत निम्न रूप में हो सकती है। -

1. यह परीक्षण के योग्य होनी चाहिये ।

2. इसह शोध को सामान्य से विशिष्ट एवं विस्तृत से सीमित की ओर केन्द्रित करना चाहिए।

3. इससे शोध प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर मिलना चाहिए।

4. यह सत्याभासी एवं तर्कयुक्त होनी चाहिए।

5. यह प्रकर्षत के ज्ञात नियमों के प्रतिकूल नहीं होनी चाहिए।

परिकल्पना के स्रोत :

परिकल्पनाओं के मुख्य स्रोत निम्नवत है।

समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन

समस्या सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन करके उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।

विज्ञान -

विज्ञान से प्रतिपादित सिद्धान्त परिकल्पनाओं को जन्म देते हैं।

संस्कृति -

संस्कृति परिकल्पना की जननी हो सकती है। प्रत्येक समाज में विभिन्न प्रकार की संस्कृति होती है। प्रत्येक संस्कृति सामाजिक एवं सांस्कर्षतिक मूल्यों में एक दूसरे से भिन्न होती है ये भिन्नता का आधार अनेक समस्याओं को जन्म देता है और जब इन समस्याओं से सम्बन्धित चिंतन किया जाता है तो परिकल्पनाओं का जन्म होता है।

व्यक्तिगत अनुभव

व्यक्तिगत अनुभव भी परिकल्पना का आधार होता है, किन्तु नये अनुसंध नकर्ता के लिये इसमें कठिनाई है। किसी भी क्षेत्र में जिनका अनुभव जितना ही सम्पन्न होता है, उन्हें समस्या के ढूँढ़ने तथा परिकल्पना बनाने में उतनी ही सरलता होती है।

  रचनात्मक चिंतन -

यह परिकल्पना के निर्माण का बहुत बड़ा आधार है। मुनरो ने इस पर विशेष बल दिया है। उन्होने इसके चार पद बताये हैं (i) तैयारी

 (ii) विकास

 (iii) प्रेरणा और

 (iv) परीक्षण | अर्थात किसी विचार के आने पर उसका विकास

किया, उस पर कार्य करने की प्रेरणा मिली, परिकल्पना निर्माण और परीक्षण किया।

अनुभवी व्यक्तियों से परिचर्चा -

अनुभवी एवं विषय विशेषज्ञों से परिचर्चा एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।

  पूर्व में हुए अनुसंधान

सम्बन्धित क्षेत्र के पूर्व अनुसंधानों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि किस प्रकार की परिकल्पना पर कार्य किया गया है। उसी आधार पर नयी परिकल्पना का सब्जन किया जा सकता है।

उत्तम परिकल्पना की विशेषताएं या कसौटी :

एक उत्तम परिकल्पना की निम्न विशेषतायें होती हैं -

परिकल्पना जाँचनीय हो 

एक अच्छी परिकल्पना की पहचान यह है कि उसका प्रतिपादन इस ढंग से किया जाये कि उसकी जाँच करने के बाद यह निश्चित रूप से कहा जा सके कि परिकल्पना सही है या गलत । इसके लिये यह आवश्यक है कि परिकल्पना की अभिव्यक्ति विस्तष्त ढ़ंग से न करके विशिष्ट ढंग से की जाये। अतः जाँचनीय परिकल्पना वह परिकल्पना है जिसे विश्वास के साथ कहा जाय कि वह सही है या गलत ।

परिकल्पना मितव्ययी हो

परिकल्पना की मितव्ययिता से तात्पर्य उसके ऐसे स्वरूप से है जिसकी जाँच करने में समय, श्रम एवं धन कम से कम खर्च हो और सुविधा अधिक प्राप्त हो।

परिकल्पना को क्षेत्र के मौजूदा सिद्धान्तों तथा तथ्यों से सम्बन्धित होना चाहिए

कुछ परिकल्पना ऐसी होती है जिनमें शोध समस्या का उत्तर तभी मिल पाता है जब अन्य कई उप कल्पनायें (Sub-hypothesis) तैयार कर ली जाये। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि उनमें तार्किक पूर्णता तथा व्यापकता के आधार के अभाव होते हैं जिसके कारण वे स्वयं कुछ नयी समस्याओं को जन्म दे देते हैं और उनके लिये उपकल्पनायें तथा तदर्थ पूर्वकल्पनायें (adhoc assumptions) तैयार कर लिया जाना आवश्यक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हम ऐसी अपूर्ण परिकल्पना की जगह तार्किक रूप से पूर्ण एवं व्यापक परिकल्पना का चयन करते हैं।

परिकल्पना को किसी न किसी सिद्धान्त अथवा तथ्य अथवा अनुभव पर आधारित होना चाहिये

• परिकल्पना कपोल कल्पित अथवा केवल रोचक न हो। अर्थात् परिकल्पना ऐसी बातों पर आधारित न हो जिनका कोई सैद्धान्तिक आधार न हो। जैसे - काले रंग के लोग गोरे रंग के लोगों की अपेक्षा अधिक विनम्र होते हैं। इस प्रकार की परिकल्पना आधारहीन परिकल्पना है क्योंकि यह किसी सिद्धान्त या मॉडल पर आधारित नहीं है।

परिकल्पना द्वारा अधिक से अधिक सामान्यीकरण किया जा सके

परिकल्पना का अधिक से अधिक सामान्यीकरण तभी सम्भव है जब परिकल्पना न तो बहुत व्यापक हो और न ही बहुत विशिष्ट हो किसी भी अच्छी परिकल्पना को संकीर्ण ( narrow) होना चाहिये ताकि उसके द्वारा किया गया सामान्यीकरण उचित एवं उपयोगी हो ।

परिकल्पना को संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होना चाहिए

संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होने का अर्थ है परिकल्पना व्यवहारिक एवं वस्तुनिष्ठ ढंग से परिभाषित हो तथा उसके अर्थ से अधिकतर लोग सहमत हों । ऐसा न हो कि परिभाषा सिर्फ व्यक्ति की व्यक्गित सोच की उपज हो तथा जिसका अर्थ सिर्फ वही समझता हो।

इस प्रकार हम पाते हैं कि शोध मनोवैज्ञानिक ने शोध परिकल्पना की कुछ ऐसी कसौटियों या विशेषताओं का वर्णन किया है जिसके आधार पर एक अच्छी शोध परिकल्पना की पहचान की जा सकती है।

परिकल्पना के प्रकार 

मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्र तथा शिक्षा के क्षेत्र में शोधकर्ताओं द्वारा बनायी गयी परिकल्पनाओं के स्वरूप पर यदि ध्यान दिया जाय तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि उसे कई प्रकारों में बाँटा जा सकता है। शोध विशेषज्ञों ने परिकल्पना का वर्गीकरण निम्नांकित तीन आधारों पर किया है -

चरों की संख्या के आधार पर -

साधारण परिकल्पना साधारण परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना - से है जिसमें चरों की संख्या मात्र दो होती है और इन्ही दो चरों के बीच के सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण स्वरूप बच्चों के सीखने में पुरस्कार का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यहाँ सीखना तथा पुरस्कार दो चर है जिनके बीच एक विशेष सम्बन्ध की चर्चा की है। इस प्रकार परिकल्पना साधारण परिकल्पना कहलाती है।

जटिल परिकल्पना - जटिल परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना से है जिसमें दो से अधिक चरों के बीच आपसी सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। जैसे- अंग्रेजी माध्यम के निम्न उपलब्धि के विद्यार्थियों का व्यक्तित्व हिन्दी माध्यम के उच्च उपलब्धि के विद्यार्थियों की अपेक्षा अधिक परिपक्व होता है । इस परिकल्पना में हिन्दी अंग्रेजी माध्यम निम्न उच्च उपलब्धि स्तर एवं व्यक्तित्व तीन प्रकार के चर सम्मिलित हैं अतः यह एक जटिल परिकल्पना का उदाहरण है।

  चरों की विशेष सम्बन्ध के आधार पर

मैक्ग्यूगन ने (Mc. Guigan, 1990) ने इस कसौटी के आधार पर परिकल्पना के मुख्य दो प्रकार बताये हैं।

Ii) सार्वत्रिक या सार्वभौमिक परिकल्पना -

 सार्वत्रिक परिकल्पना से स्वयम् स्पष्ट होता है कि ऐसी परिकल्पना जो हर क्षेत्र और समय में समान रूप से व्याप्त हो अर्थात् परिकल्पना का स्वरूप ऐसा हो जो निहित चरों के सभी तरह के मानों के बीच के सम्बन्ध को हर परिस्थित में हर समय बनाये रखे। उदाहरण स्वरूप- पुरस्कार देने से सीखने की प्रक्रिया में तेजी आती है। यह एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें बताया गया सम्बन्ध अधिकांश परिस्थितियों में लागू होता है।

(ii) अस्तित्वात्मक परिकल्पना

 इस प्रकार की परिकल्पना यदि सभी - व्यक्तियों या परिस्थितियों के लिये नही तो कम से कम एक व्यक्ति या परिस्थिति के लिये निश्चित रूप से सही होती है। जैसे सीखने की प्रक्रिया में कक्षा में कम से कम एक बालक ऐसा है पुरस्कार की बजाय दण्ड से सीखता है इस प्रकार की परिकल्पना अस्तित्वात्मक परिकल्पना है।

विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर

विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर परिकल्पना के निम्न तीन प्रकार है।

(i) शोध परिकल्पना - इसे कार्यरूप परिकल्पना या कार्यात्मक परिकल्पना भी कहते हैं। ये परिकल्पना किसी न किसी सिद्धान्त पर आधारित या प्रेरित होती है। शोधकर्ता इस परिकल्पना की उदघोषणा बहुत ही विश्वास के साथ करता है तथा उसकी यह अभिलाषा होती है कि उसकी यह परिकल्पना सत्य सिद्ध हो उदाहरण के लिये 'करके सीखने' से प्राप्त अधिगम अधिक सुदृढ़ होता है और अधिक समय तक टिकता है।' चूँकि इस परिकल्पना में कथन 'करके सीखने के सिद्वान्त पर आधारित है अतः ये एक शोध परिकल्पना है।

शोध परिकल्पना दो प्रकार की होती है- 

दिशात्मक एवं अदिशात्मक | 

दिशात्मक परिकल्पना में परिकल्पना किसी एक दिशा अथवा दशा की ओर इंगित करती है जब कि अदिशात्मक परिकल्पना में ऐसा नही होता है।

उदाहरण- "विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि एवं कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि में अन्तर है।"

उपरोक्त परिकल्पना अदिशात्मक परिकल्पना का उदाहरण हैं।

क्योंकि बुद्धि में अन्तर किसका कम या ज्यादा है इस ओर संकेत नहीं किया गया। इसी परिकल्पना को यदि इस प्रकार लिखा जाय कि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि कला वर्ग के छात्रों की अपेक्षा कम होती है अथवा कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि से कम है तो यह एक दिशात्मक शोध परिकल्पना होगी क्योंकि इसमें कम या अ क एक दिशा की ओर संकेत किया गया है।

(ii) शून्य परिकल्पना 

शून्य परिकल्पना शोध परिकल्पना के ठीक विपरीत होती है। इस परिकल्पना के माध्यम से हम चरों के बीच कोई अन्तर नहीं होने के संबंध का उल्लेख करते हैं। उदाहरण स्वरूप उपरोक्त परिकल्पना को नल परिकल्पना के रूप में निम्न रूप से लिखा जा सकता है विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि एंव कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि में कोई अंतर नहीं है। एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि, "व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी सीखता है तो इस परिकल्पना की शून्य परिकल्पना यह होगी कि 'व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी नहीं सीखता है। अतः उपरोक्त उदाहरणों के माध्यम से शून्य अथवा नल परिकल्पना को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।

(iii) सांख्यिकीय परिकल्पना

 जब शोध परिकल्पना या शून्य परिकल्पना - का सांख्यिकीय पदों में अभिव्यक्त किया जाता है तो इस प्रकार की परिकल्पना सांख्यिकीय परिकल्पना कहलाती है। शोध परिकल्पना अथवा सांख्यिकीय परिकल्पना को सांख्यिकीय पदों में व्यक्त करने के लिये विशेष संकेतों का प्रयोग किया जाता है। शोध परिकल्पना के लिये H, तथा शून्य परिकल्पना के लिये H का प्रयोग होता है तथा माध्य के लिये X का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण- यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह 'क' बुद्धिलब्धि में समूह 'ख' से श्रेष्ठ है तो इसकी सांख्यिकीय परिकल्पना H तथा H के पदों में निम्नानुसार होगी -

H1 :  Xa > Xb

H0 : Xa = Xb

यहाँ पर माध्य X का प्रयोग इसलिये किया गया है क्योंकि एक दूसरे से बुद्धि लब्धि की श्रेष्ठता जानने के लिये दोनो समूहों की बुद्धि लब्धि का मध्यमान जानना होगा जिसके आधार पर श्रेष्ठता की माप की जा सकेगी।

इस प्रकार एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह क की बुद्धि लब्धि एवं समूह 'ख' की बुद्धि लब्धि में अन्तर है तो इसकी H एवं H, इस प्रकार होगी।

H1 : Xa "" X b

H0 : Xa = X b

इस प्रकार विभिन्न प्रकार से शोध परिकल्पना का वर्गीकरण किया जा सकता है।

परिकल्पना के कार्य

अनुसन्धान कार्य में परिकल्पना के निम्नांकित कार्य है :

दिशा निर्देश देना

परिकल्पना अनुसंधानकता को निर्देशित करती है। इससे यह ज्ञात होता है कि अनुसन्धान कार्य में कौन कौन सी क्रियायें करती हैं एवं कैसे करनी है। अतः परिकल्पना के उचित निर्माण से कार्य की स्पष्ट दिशा निश्चित हो जाती है।

प्रमुख तथ्यों का चुनाव करना

परिकल्पना समस्या को सीमित करती है तथा महत्वपूर्ण तथ्यों के चुनाव में सहायता करती है। किसी भी क्षेत्र में कई प्रकार की समस्यायें हो सकती है लेकिन हमें अपने अध्ययन में उन समस्याओं में से किन पर अध्ययन करना है उनका चुनाव और सीमांकन परिकल्पना के माध्यम से ही होता है।

पुनरावृत्ति को सम्भव बनाना

पुनरावृत्ति अथवा पुनः परीक्षण द्वारा अनुसन्धान के निष्कर्ष की सत्यता का मूल्यांकन किया जाता है। परिकल्पना के अभाव में यह पुनः परीक्षण असम्भव होगा क्यों कि यह ज्ञात ही नहीं किया जा सकेगा किस विशेष पक्ष पर कार्य किया गया है तथा किसका नियंत्रण करके किसका अवलोकन किया गया है।

निष्कर्ष निकालने एवं नये सिद्धान्तों के प्रतिपादन करना -

परिकल्पना अनुसंधानकर्ता को एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने में सहायता करती है तथा जब कभी कभी मनोवैज्ञानिकों को यह विश्वास के साथ पता होता है कि अमुक घटना के पीछे क्या कारा है तो वह किसी सिद्धान्त की पष्ठभूमि की प्रतीक्षा किये बिना परिकल्पना बनाकर जाँच लेते हैं। परिकल्पना सत्य होने पर फिर वे अपनी पूर्वकल्पनाओं परिभाषाओं और सम्प्रत्ययों को तार्किक तंत्र में बांधकर एक नये सिद्धान्त का प्रतिपादन कर देते है।

अतः उपरोक्त वर्णन के आधार पर हम परिकल्पनाओं के क्या मुख्य कार्य है आदि की जानकारी स्पष्ट रूप से प्राप्त कर सकते हैं. किसी भी शोध परिकल्पना से तात्पर्य समस्या समाधान के लिये सुझाया गया वो उत्तर हैं जो दो या दो से अधिक चरों के बीच क्या और कैसा सम्बन्ध T है बताता है। शोध परिकल्पना को प्राप्त करने के कई स्रोत है व्यक्ति अपने आस-पास के वातावरण के प्रति सजग रहकर अपनी सूझ द्वारा इसे आसानी से प्राप्त कर सकता है। उत्तम परिकल्पनाओं की विशेषताओं पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। साथ ही परिकल्पनाओं के प्रकार को भी समझाया गया है।

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व्यावहारिक अनुसन्धान की परिभाषा | व्यावहारिक अनुसन्धान प्रकार | Applied Research in Hindi

व्यावहारिक अनुसन्धान की परिभाषा

अनुक्रम (Contents)

व्यावहारिक अनुसन्धान की परिभाषा 

व्यावहारिक अनुसन्धान- व्यावहारिक शोध का सम्बन्ध सामाजिक जीवन के व्यावहारिक पक्ष से होता है और वह सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में ही नहीं बल्कि सामाजिक नियोजन, सामाजिक अधिनियम, स्वास्थ्य, रक्षा सम्बन्धी नियम, धर्म, शिक्षा, न्यायालय, मनोरंजन आदि विषयों के सम्बन्ध में भी अनुसन्धान करता है तथा इनके सम्बन्ध में कारण सहित व्याख्या व तर्कयुक्त ज्ञान से हमें समृद्ध करता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि व्यावहारिक शोध का कोई सम्बन्ध समाज-सुधार से सामाजिक व्याधियों के उपचार से, सामाजिक कानूनों को बनाने या सामाजिक नियोजनों को व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत करने से नहीं होता है। वह स्वयं यह सब कुछ नहीं करता है, अपितु यह काम तो समाज सुधारक, नेता, प्रशासक और अधिकारी का होता है। व्यावहारिक शोध का कार्य केवल व्यावहारिक जीवन से सम्बन्धित विषयों तथा समस्याओं के सम्बन्ध में हमें यथार्थ ज्ञान प्रदान करना है। व्यावहारिक शोध में भी अनुसन्धान के उन्हीं उपकरणों का प्रयोग किया जाता है जिनका सम्बन्ध मौलिक अथवा विशुद्ध विज्ञान से है, और इसलिये इनके द्वारा प्रस्तुत व्यावहारिक ज्ञान बड़े महत्व का तथा साथ ही यथार्थ सिद्ध होता है। व्यावहारिक शोध हमारे व्यावहारिक जीवन में आने वाली समस्याओं तथा अन्य घटनाओं पर नियन्त्रण प्राप्त करने अथवा उनका उपचार करने के लिये आवश्यक सिद्धान्तों के सम्बन्ध में हमारी चिन्तन प्रक्रिया को सक्रिय कर सकता है। इसका कारण यह है कि अक्सर देखा गया है कि आश्चर्य रूप से प्रयोग सिद्ध व्यावहारिक खोज की व्याख्या अथवा विश्लेषण करने के मध्य अनुसन्धानकर्ता के निदान में सहायक होते हैं।

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  • सामाजिक सर्वेक्षण की परिभाषा | सामाजिक सर्वेक्षण की विशेषताएँ

व्यावहारिक अनुसन्धान प्रकार (Types of Applied Research)

व्यावहारिक अनुसन्धान के दो प्रमुख स्वरूपों का उल्लेख किया गया है। जिन्हें निदानात्मक अनुसन्धान तथा क्रियात्मक अनुसन्धान कहा जाता है –

1. निदानात्मक अनुसन्धान (Diagonostic Research) – निदानात्मक अनुसंधान व्यावहारिक अनुसन्धान का वह प्रकार है जिसका उद्देश्य किसी समस्या के कारणों को ज्ञात करके उनका निदान करना होता है। समस्या के कारणों को समझने और उनका निदान अनुसन्धान द्वारा मनमाने तरीके से नहीं किया जाता अपितु वैज्ञानिक पद्धतियों की सहायता से पहले तथ्यों को तटस्थ रूप से संग्रहित किया जाता है तथा इसके पश्चात् प्राप्त तथ्यों के सन्दर्भ में भी समस्या का निदान करने के लिए सुझाव दिये जाते हैं। अध्ययनकर्त्ता द्वारा समस्या का निदान स्वयं नहीं किया जाता अपितु उसके द्वारा दिये गये सुझावों के आधार पर यह कार्य प्रशासकों अथवा सामाजिक सेवकों द्वारा किया जाता है।

उदाहरण यदि कोई शोध कार्य श्रमिक असन्तोष के कारणों को मालूम करने और उन कारणों पर आधारित समस्या का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करने के लिए किया जाए, तब इसे निदानात्मक अनुसन्धान कहा जायेगा।

2. क्रियात्मक अनुसन्धान- क्रियात्मक अनुसन्धान व्यावहारिक अनुसन्धान से अनेक अर्थ में मिलता-जुलता है क्योंकि इसका भी सम्बन्ध सामाजिक जीवन की ऐसी समस्याओं तथा घटन होता है जिनका कि क्रियात्मक महत्व हो । जब सामाजिक शोध अध्ययन के निष्कर्षो को क्रियात्मक स्वरूप देने की किसी तात्कालिक अथवा भावी योजना से सम्बन्धित होता है, तो उसे क्रियात्मक अनुसंधान कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि क्रियात्मक शोध वह अनुसन्धान है जो किसी सामाजिक समस्या या घटना के क्रियात्मक पक्ष पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है और साथ ही अनुसन्धान के निष्कर्षों का प्रयोग विद्यमान सामाजिक अवस्थाओं में परिवर्तन लाने की योजना के एक भाग के रूप में करता है।

  • सामाजिक सर्वेक्षण के प्रकार | Samajik Sarvekshan Ke Prakar

क्रियात्मक अनुसन्धान में अनुसन्धानकर्त्ता को आरम्भ से ही कुछ विशिष्ट बातों का ध्यान सावधानीपूर्वक रखना पड़ता है, जो इस प्रकार हैं –

(i) अध्ययन के समय घटना अथवा समस्या के वास्तविक क्रिया पक्ष पर ध्यान- इसका अर्थ यह है कि जिस घटना का अध्ययन अनुसन्धानकर्ता कर रहा है उसमें अन्तर्निहित मानवीय क्रियाओं, उसके कारणों, आधारों व नियमों के प्रति वह अत्यधिक सचेत रहता है। यदि वह प्रजातीय पक्षपात का अध्ययन कर रहा है, तो वह यह समझने का प्रयत्न करेगा कि श्वेत प्रजाति के व्यक्ति श्याम प्रजाति के व्यक्तियों के प्रति किस तरह का व्यवहार करते हैं तथा उनके उन व्यवहारों का क्या कारण व आधार है। साथ-ही – साथ अनुसन्धानकर्त्ता उस समस्या से सम्बन्धित क्रियात्मक साधनों को प्राप्त करने का प्रयास करेगा। समस्या के चुनाव के सम्बन्ध में उस समस्या से सम्बन्धित प्राथमिक ज्ञान प्राप्त करने के सम्बन्ध में, उस घटना की वास्तविक क्रियाशीलता को प्राप्त करने में यहाँ तक कि तथ्यों के संकलन में भी क्रियात्मक साधनों का सहयोग सर्वाधिक लाभप्रद सिद्ध होता है।

(ii) समस्या अथवा घटना के सम्बन्ध में ज्ञान – क्रियात्मक अनुसन्धान में शोधकर्त्ता के लिए जरूरी है कि उसे समस्या अथवा घटना के सम्बन्ध में कुछ-न-कुछ ज्ञान अवश्य ही हो । यदि ऐसा नहीं है, तो उस घटना अथवा समस्या में अन्तर्निहित किसी भी क्रियात्मक पक्ष का यथार्थ अनुसन्धान उसके लिए सम्भव न होगा । अतः इस प्रकार के अनुसन्धान कार्य में अनुसन्धानकर्त्ता सम्पूर्ण घटना अथवा समस्या को और उनमें भाग लेने वाले व्यक्तियों या मानव समूहों के व्यवहार प्रतिमान को समझने का प्रयत्न करता है ।

  • सामाजिक सर्वेक्षण की सीमाएं | Samajik Sarvekshan ki Simaye

(iii) अधिकाधिक सहयोग की प्राप्ति इसका- अर्थ है कि अनुसन्धानकर्त्ता को निरन्तर इस बात का प्रयास करना पड़ता है कि अपने कार्य में कम से कम विरोध करना पड़े। क्रियात्मक शोध का प्रथम उद्देश्य विद्यमान दशाओं में परिवर्तन लाना होता है, हो सकता है कि इस समाज अथवा समूह में प्रकार के कुछ व्यक्ति या स्वार्थ समूह हों, जो इस परिवर्तन के पक्ष में न हों, क्योंकि परिवर्तन होने से इस उनके स्वार्थ को ठेस पहुँचेगी। इसलिए वे इस परिवर्तन का विरोध कर सकते हैं जिससे कि अनुसन्धान कार्य में बाधा उत्पन्न हो सकती है अतः अनुसन्धानकर्ता को इस तरह की परिस्थितियों को उत्पन्न करना। होता है जिससे कि विरोध की सम्भावनायें कम हों।

(iv) रिपोर्ट को प्रारम्भ में ही अन्तिम रूप में न देना- इसका अर्थ यह है कि क्रियात्मक अनुसन्धान की रिपोर्ट को एकाएक अन्तिम रूप देकर नहीं प्रस्तुत करना चाहिए। पहले अन्तरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिये। जिससे कि उससे प्रभावित होने वाले लोगों अथवा समूहों की प्रतिक्रियाओं को जाना जा सके। उन प्रतिक्रियाओं के आधार पर अन्तिम रिपोर्ट में जरूरी सुधार या बदलाव करने की गुजांइश सदा रहनी चाहिये, तभी वह अन्तिम रिपोर्ट वास्तव में उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

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क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ, प्रकार, परिभाषाएं एवं उद्देश्य | Action Research Meaning, Types, Definitions and Objectives

क्रियात्मक अनुसंधान (action research).

क्रियात्मक अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मौलिक समस्याओं का अध्ययन करके नवीन तथ्यों की खोज करना, जीवन सत्य की स्थापना करना तथा नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना है। अनुसंधान एक सोद्देश्य प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मानव ज्ञान में वृद्धि की जाती है। इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक स्वयं ही होते हैं। इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य विद्यालय की कार्यप्रणाली में संशोधन कर सुधार लाना है। क्रियात्मक अनुसंधान को संपादित करने में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुसंधान के अंतर्गत तत्कालीन प्रयोग पर अधिक बल देते हैं।

Action Research Meaning

आधुनिक युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति लाने के लिए अनुसंधान कार्य को बहुत महत्व दिया जाता है. शिक्षा के क्षेत्र में आज अनेक ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं जिनका सामना शिक्षा से संबंधित प्रत्येक व्यक्तियों को करना पड़ता है. शिक्षा की विविध समस्याओं का समाधान करने के लिए और व्यवहारिक रूप से वांछित परिवर्तन करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में भी शोध कार्य या अनुसंधान की आवश्यकता है.

इस दृष्टि से शिक्षा क्षेत्र में जो अनुसंधान कार्य होते हैं वह शिक्षण के सिद्धांत पक्ष को सबल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, किंतु शिक्षा की क्रियात्मक या व्यावहारिक पक्ष में अनुसंधान कार्य से कोई विशेष लाभ नहीं हुआ. ऐसी स्थिति में एक ऐसी पद्धति की आवश्यकता का अनुभव किया गया जिसके फलस्वरूप विद्यालय से संबंधित समस्याओं का समाधान खोजा जा सके और विशिष्ट स्थिति में परिवर्तन और सुधार किया जा सके इन विचारों के फलस्वरुप क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व बढ़ा.

क्रियात्मक अनुसंधान शिक्षक की समस्याओं के समाधान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण उपकरण है. इसके अंतर्गत शिक्षण की समस्याओं का वैज्ञानिक विधि से समाधान खोजा जाता है. क्रियात्मक अनुसंधान विद्यालय के कार्य पद्धति में विकास करने का एक सबल साधन है. इसके माध्यम से शिक्षक अपनी कक्षा तथा विद्यालय के समस्याएं सुलझाने का प्रयत्न करता है. आज शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए अनुसंधान होते जा रहे हैं जिनका उद्देश्य शिक्षा को उत्तम बनाना है और शिक्षा संबंधित समस्याओं को सुलझाना है. क्रियात्मक अनुसंधान, अनुसंधान की प्रक्रिया को गति प्रदान करता है. क्रियात्मक अनुसंधान समस्याओं के अध्ययन की वैज्ञानिक पद्धति है, जो ज्ञान की खोज के लिए किया जाता है.

वास्तव में यह निरंतर गहरी तथा सौद्देश्य प्रक्रिया है, जो सत्य की खोज करती है. साथ ही साथ उसका लक्ष्य उन्नति एवं उत्तम करने मे सहायक है. अतः कहा जा सकता है कि अनुसंधान एक क्रमबद्ध वैज्ञानिक, वस्तुनिष्ठ तथा सौद्देश्य क्रिया है, जिसका प्रमुख ध्येय ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि करना, सत्यता की पुष्टि करना तथा नए तथ्यों, सत्यों एवं सिद्धांतों का निर्माण और प्रतिपादन करना होता है. शैक्षिक अनुसंधानों का अंतिम लक्ष्य शिक्षण नियमों तथा उनकी पुष्टि करना होता है.

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Action Research)

विद्यालय से संबंधित व्यक्तियों द्वारा अपनी और विद्यालय की समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करके अपनी क्रियाओं और विद्यालय की गतिविधियों में सुधार लाना क्रियात्मक अनुसंधान कहलाता है। इसकी कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:-

1. मेक ग्रेथटे के अनुसार, "क्रियात्मक अनुसंधान व्यवस्थित खोज की क्रिया है जिसका उद्देश्य व्यक्ति समूह की क्रियाओं में रचनात्मक सुधार तथा विकास लाना है।"

2.स्टीफन एम. कोरे के अनुसार, “शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान, कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।"

3. मुनरो के अनुसार, "अनुसंधान समस्याओं को सुलझाने की वह विधि है, जिसमें सुझावों की पुष्टि तथ्यों द्वारा की जाती है।"

4. मौले के अनुसार, "शिक्षक के समक्ष उपस्थित होने वाली समस्याओं में से अनेक तत्काल ही समाधान चाहती है। मौके पर किये जाने वाले ऐसे अनुसंधान जिसका उद्देश्य तात्कालिक समस्या का समाधान होता है, शिक्षा में साधारणतः क्रियात्मक अनुसंधान के नाम से प्रसिद्ध है।"

क्रियात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य (Objectives of Action Research)

  • विद्यालय की कार्य प्रणाली में सुधार तथा विकास करना। 
  • छात्रों तथा शिक्षकों में प्रजातन्त्र के वास्तविक गुणों का विकास करना। 
  • विद्यालय के कार्य-कर्ताओं, शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक तथा निरीक्षकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना।
  • विद्यालय के कार्य-कर्ताओं में कार्य कौशल का विकास करना।
  • शैक्षिक प्रशासकों तथा प्रबन्धकों को विद्यालयों की कार्य प्रणाली में सुधार तथा परिवर्तन के लिये सुझाव देना।
  • विद्यालय की परम्परागत रूढ़िवादिता तथा यान्त्रिक वातावरण को समाप्त करना।
  • विद्यालय की कार्य प्रणाली को प्रभावशली बनाना।
  • छात्रों के निष्पत्ति स्तर को ऊँचा उठाना।

क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र (Scope of Action Research)

क्रियात्मक अनुसन्धान को विद्यालय की कार्य प्रणाली के अधोलिखित क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है:-

  • कक्षा शिक्षण विधियों एवं युक्तियों में सुधार लाना है।
  • शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली सहायक सामग्री जिसकी उपयोगिता के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिये इसका प्रयोग करते हैं।
  • छात्रों की अभिरूचि, ध्यान, तत्परता तथा जिज्ञासा में वृद्धि के लिये इसे प्रयुक्त करते हैं।
  • शिक्षकों द्वारा विभिन्न विषयों में दिये जाने वाले गृह कार्यों की प्रणाली को प्रभावशाली बनाने के लिये इसे प्रयोग करते हैं। 
  • छात्रों की अनुसन्धान सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिये इस प्रयुक्त करते हैं। 
  • भाषा शिक्षण में वर्तनी तथा वाचन की समस्याओं के लिये तथा भाषाई शुद्धि के लिए भी क्रियात्मक-अनुसन्धान को प्रयुक्त किया जाता है। 
  • छात्रों की अनुपस्थिति तथा विद्यालय विलम्ब से आने की समस्याओं के समाधान में इसे प्रयोग करते है। 
  • छात्रों एवं शिक्षक सम्बन्धी समस्याओं तथा छात्रों में परस्पर आदान-प्रदान की समस्याओं के लिये प्रयुक्त करते हैं।
  • परीक्षा में छात्रों के नकल करने की समस्याओं के समाधान में प्रयोग करते हैं।
  • विद्यालय के संगठन एवं प्रशासन से संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु प्रयोग करते हैं।

क्रियात्मक अनुसंधान के चरण/सोपान (Steps of Action Research)

  • समस्या का चयन
  • उपकल्पना का निर्माण
  • तथ्य संग्रहण की विधियाँ
  • तथ्यों का संकलन
  • तथ्यों का सांख्यिकीय विश्लेषण
  • तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष
  • सत्यापन
  • परिणामों की सूचना

एण्डरसन ने क्रियात्मक अनुसंधान के निम्न सात चरण बताये हैं:-

1. पहला सोपान (समस्या का ज्ञान):- क्रियात्मक-अनुसंधान का पहला सोपान है– विद्यालय में उपस्थित होने वाली समस्या को भली-भाँति समझना। यह तभी सम्भव है, जब विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रधानाचार्य आदि उसके सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करें। ऐसा करके ही वे वास्तविक समस्या को समझकर अपने कार्य में आगे सुधार करना चाहते हैं।

2. दूसरा सोपान (कार्य के लिए प्रस्तावों पर विचार विमर्श):- क्रियात्माक-अनुसंधान का दूसरा सोपान है– समस्या को भली-भांति समझने के बाद इस बात पर विचार करना कि उसके कारण क्या हैं और उसका समाधान करने के लिए हमें कौन-से कार्य करने हैं। शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक आदि इन कार्यों के सम्बन्ध में अपने-अपने प्रस्ताव या सुझाव देते हैं। उसके बाद वे अपने विश्वासों, सामाजिक मूल्यों, विद्यालयों के उद्देश्यों आदि को ध्यान में रखकर उन पर विचार-विमर्श करते हैं।

3. तीसरा सोपान (योजना का चयन व उपकल्पना का निर्माण):- क्रियात्मक-अनुसन्धान का तीसरा सोपान है- विचार-विमर्श के फलस्वरूप समस्या का समाधान करने के लिए एक योजना का चयन और उपकल्पना का निर्माण करना। इसके लिए विचार-विमर्श करने वाले सब व्यक्ति संयुक्त रूप से उत्तरदायी होते हैं। उपकल्पना में तीन बातों का सविस्तार वर्णन किया जाता है—

  • समस्या का समाधान करने के लिए अपनाई जाने वाली योजना,
  • योजना का परीक्षण,
  • योजना द्वारा प्राप्त किया जाने वाला उद्देश्य।

4. चौथा सोपान (तथ्य संग्रह करने की विधियो का निर्माण):- क्रियात्मक-अनुसंधान का चौथा सोपान है– योजना को कार्यान्वित करने के बाद तथ्यों या प्रमाणों का संग्रह करने की विधियाँ निश्चित करना—इन विधियों की सहायता से जो तथ्य संग्रह किये जाते हैं, उनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि योजना का क्या प्रभाव पड़ रहा है।

6. छठा सोपान (तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष):- क्रियात्मक अनुसंधान का छठा सोपान है– योजना की समाप्ति के बाद संग्रह किए हुए तथ्यों या प्रमाणों से निष्कर्ष निकालना।

7. सातवाँ सोपान (दूसरे व्यक्तियों को परिणामों की सूचना):- क्रियात्मक-अनुसंधान का सातवाँ और अन्तिम सोपान है– दूसरे व्यक्तियों को योजना के परिणामों की सूचना देना।

क्रियात्मक अनुसंधान के लाभ (Benefits of Action Research)

  • इससे शिक्षक अपनी कक्षा के वातारण में अपनी कार्यप्रणाली में सुधार तथा प्रगति करता है। 
  • शिक्षक शोध के पदों से परिचित होता है। 
  • शिक्षकों में वैज्ञानिक-प्रवृत्ति, शोध कार्य के लिए जाग्रत होती है।
  • इसके द्वारा विद्यालय के प्रशासन में सुधार तथा परिवर्तन लाया जाता है। 
  • यह विद्यालय से संबंधित व्यक्तियों की विभिन्न दैनिक समस्यओं का व्यावहारिक एवं तथ्यपूर्ण समाधान करता है।
  • यह विद्यालय को आधुनिक तथा समयानुकूल बनाने का प्रयास करता है। 
  • इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष व्यवहारिक रूप से काफी सफल होते हैं।
  • पितृसत्ता
  • पुरुषत्व और नारीवाद सिद्धांत
  • जेंडर, सेक्स एवं लैंगिकता

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अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा | अनुसंधान प्ररचना के प्रकार | Research Design in Hindi

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा

अनुक्रम (Contents)

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा- अनुसंधान प्ररचना शब्द समझने के लिये पहले ‘अनुसंधान’ तथा ‘प्ररचना’ शब्दों का अर्थ समझ लेना जरूरी है। सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य के अनुसार “सामाजिक अनुसंधान का अर्थ सामाजिक घटनाओं तथा तथ्यों के बारे में नवीन जानकारी प्राप्त करना है अथवा पूर्व अर्जित ज्ञान में संशोधन, सत्यापन एवं संवर्द्धन करना है। एकोफ (Ackoff) ने प्ररचना शब्द की व्याख्या उपमा (Analogy) द्वारा की है। एक भवन निर्माणकर्ता भवन की प्ररचना पहले से ही बना लेता है कि यह कितना बड़ा होगा, इसमें कितने कमरे होगें, कौन सी सामग्री का प्रयोग इसमें किया जायेगा इत्यादि। ये सब निर्णय वह भवन निर्माण से पहले ही ले लेता है ताकि भवन के बारे में एक ‘नक्शा’ बना ले तथा यदि इसमें किसी प्रकार का संशोधन करना है तो निर्माण शुरु होने से पहले ही किया जा सके। ‘प्ररचना का अर्थ योजना बनाना है, अर्थात प्ररचना पूर्व निर्णय लेने की प्रक्रिया है ताकि परिस्थिति पैदा होने पर इसका प्रयोग किया जा सके। यह सूझ-बूझ एवं पूर्वानुमान की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य अपेक्षित परिस्थिति पर नियंत्रण रखना है।” इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अनुसंधान की समस्या तथा उसमें प्रयुक्त होने वाली प्रविधियों पर नियंत्रण करने के लिये पूर्व निर्धारित निर्णयों की रूपरेखा ही अनुसंधान प्ररचना है।

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सैल्टिज जहोदा तथा अन्य के अनुसार, जब अनुसंधानकर्ता ने समस्या का निर्माण कर लिया है। तथा यह निर्धारण कर लिया है कौन सी सामग्री उसे एकत्रित करनी है तो उसे अनुसंधान प्ररचना बनानी चाहिये। इनके अनुसार अनुसंधान प्ररचना आँकड़ों के संकलन तथा विश्लेषण की दशाओं की उस व्यवस्था को कहते हैं जिसका लक्ष्य अनुसंधान के उद्देश्य की प्रासंगिकता तथा कार्यविधि की मितव्ययिता का। समन्वय करना है। एकोफ, सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य विद्वानों के विचारों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुसंधान प्ररचना पूर्व निर्णय की एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मितव्ययिता के आधार पर समस्या से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करना और आने वाले परिस्थितियों को नियंत्रित करना है। साथ ही अनुसंधान के लक्ष्य के आधार पर भिन्न प्रकार की प्ररचनायें बनायी जा सकती हैं। अतः अनुसंधान प्ररचना इनसे सम्बन्धित सर्वाधिक उपयुक्त एवं सुविधाजनक योजना है। जिसका उद्देश्य अनुसंधानकर्ता को दिशा प्रदान करना तथा मानव-श्रम की बचत करना है। सम्पूर्ण अनुसंधान प्ररचना को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है –

1. निदर्शन प्ररचना (Sampling Design) – इसमें अध्ययन की प्रकृति के अनुसार निदर्शन की इकाइयों के आकार तथा निदर्शन की पद्धति के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है।

2. अवलोकनात्मक प्ररचना (Observational Design) – इसमें उन दशाओं के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है जिनके अन्तर्गत अवलोकन किया जाना है अथवा अन्य किसी प्रविधि द्वारा सामग्री संकलित की जानी है।

3. सांख्यिकीय प्ररचना (Statistical Design) – इसका सम्बन्ध संकलित सामग्री के सांख्यिकीय विश्लेषण से है अर्थात यह पूर्व निर्णय लेने से है कि सामग्री के विश्लेषण हेतु किन-किन सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया जायेगा।

4. संचालन प्ररचना (Operational Design)- इसका सम्बन्ध उन प्रविधियों के बारे में पूर्व निर्णय लेने से है। जिनके द्वारा उपर्युक्त तीनों प्ररचनाओं अर्थात निदर्शन प्ररचना अवलोकनात्मक प्ररचना तथा सांख्यिकीय प्ररचना सम्बन्धी कार्यप्रणालियों को लागू किया जाना है। संचालन प्ररचना द्वारा ही अन्य तीनो प्ररचनाओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।

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अतः विद्वानों ने अनुसंधान प्ररचना के कुछ विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है जोकि निम्नलिखित हैं-

अनुसंधान प्ररचना के प्रकार (Types of Research Design)

अनुसन्धान प्ररचना के प्रकार अनुसन्धान प्ररचना या अनुसन्धान अभिकल्प को चार भागों में विभाजित किया गया है-

1. अन्वेषणात्मक अथवा निरूपणात्मक अनुसंधान अभिकल्प या प्ररचना

जब किसी अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किन्ही सामाजिक घटनाओं में अन्तर्निहित कारणों को ढूंढ निकालना होता है तो उससे सम्बन्धित रूपरेखा को अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं। इस प्रकार के अनुसंधान अभिकल्प में शोध कार्य की रूपरेखा इस तरीके से प्रस्तुत की जाती है कि घटना की प्रकृति व धारा प्रवाहों की वास्तविकताओं की खोज की जा सके। विषय अथवा समस्या के चुनाव के पश्चात् प्राक्कल्पना का 5 सफलतापूर्वक निर्माण करने के लिए इस प्रकार के अभिकल्प का अत्यधिक महत्व है क्योंकि इसकी सहायता से हमारे लिए विषय का कार्य-कारण सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए, यदि हमें किसी विशेष सामाजिक परिस्थिति में विवाह-विच्छेद प्राप्त व्यक्तियों में व्याप्त यौन व्यभिचार के विषय में अध्ययन करना है, तो उसके लिए सर्वप्रथम उन कारकों का ज्ञान आवश्यक है जो कि उस प्रकार के व्यभिचार को पैदा करते हैं। अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प इन्ही कारणों को खोज निकालने की एक योजना बन सकती है। इसी तरह से कभी-कभी समस्या के चुनाव तथा अनुसन्धान कार्य के लिए उसकी उपयुक्तता के सम्बन्ध में हमें अन्य किसी स्रोत से ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता है, तब उस अवस्था में अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प की सहायता से हमें बहुत सहायता मिल सकती है। इस प्रकार की अनुसन्धान अभिकल्प की सफलता के लिए कुछ अनिवार्यताओं का पालन करना होता है जो निम्नलिखित है-

(अ) सम्बद्ध साहित्य का अध्ययन

(ब) अनुभव सर्वेक्षण

(स) अन्तर्दृष्टि प्रेरक घटनाओं का विश्लेषण।

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2. वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प

विषय या समस्या के सम्बन्ध में सम्पूर्ण वास्तविक तथ्यों के आधार पर उनका विस्तृत वर्णन करना ही वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प का प्रमुख उद्देश्य है। इस पद्धति में आवश्यक है कि हमें वास्तविक तथ्य प्राप्त हो तभी हम उसकी वैज्ञानिक विवेचना करने में सफल हो सकते हैं। यदि समाज की किसी समस्या का विवरण देना है, तो उस समस्या के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित तथ्य प्राप्त होने चाहिए, जैसे निम्न श्रेणी के परिवारों का विवरण देना है, तो उसकी आयु, सदस्यों की संख्या, शिक्षा का स्तर व्यावसायिक ढाँचा, जातीय और पारिवारिक संरचना आदि से सम्बन्धित तथ्य, जब तक प्राप्त नहीं होते तब तक हम उसके वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत नहीं कर सकते। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हम अपना अनुसंधान अभिकल्प विषय के उद्देश्य के अनुसार बनायें।

3. परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प

भौतिक विज्ञानों की तरह समाजशास्त्र भी अपने अनुसन्धान कार्यों में परीक्षण प्रणाली का उपयोग कर अधिकाधिक यथार्थता लाने का प्रयत्न कर रहा है। भौतिक विज्ञानों में जिस तरह कुछ नियन्त्रित अवस्थाओं में रखकर विषय का अध्ययन किया जाता है, उसी में प्रकार नियन्त्रित दशाओं में रखकर निरीक्षण परीक्षण के द्वारा सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित अध्ययन करने रूपरेखा को परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं।

4. निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना

अनुसन्धान कार्य का मूलभूत उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति एवं ज्ञान की वृद्धि करना है। किन्तु यह भी सम्भव है कि अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किसी समस्या के कारणों के सम्बन्ध में वास्तविक ज्ञान प्राप्त करके उस समस्या के समाधानों को भी प्रस्तुत करना हो। इस प्रकार के अनुसन्धान अभिकल्प को निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना कहते हैं। दूसरे शब्दों में में, विशिष्ट सामाजिक समस्या के निदान की खोज करने वाले अनुसन्धान कार्य को, निदानात्मक अनुसन्धान कहते हैं।

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अनुसन्धान: अर्थ, परिभाषा विशेषताएँ और प्रकार सोपान विधियाँ | Research kaise karte hain

  अनुसन्धान: अर्थ , विशेषताएँ और प्रकार   research kaise karte hain.

अनुसन्धान: अर्थ, परिभाषा विशेषताएँ और प्रकार सोपान विधियाँ | Research kaise karte hain

अनुसन्धान का अर्थ   Meaning of Research in Hindi

मानव प्रगति में अनुसन्धान का सर्वाधिक महत्त्व रहा है। मानव के समक्ष प्रकृति और समय निरन्तर चुनौतियाँ प्रस्तुत करते रहे हैं। उन्हें दूर करने के लिए मानव तर्क एवं प्रयोग के द्वारा अनुसन्धान कर प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ. 

अनुसन्धान की परिभाषाएँ 

जेम्स ड्रेवर के अनुसार , 

" किसी क्षेत्र में ज्ञान अथवा सत्यापन हेतु की जाने वाली क्रमबद्ध खोज हो अनुसन्धान है। '

रेडमैन व अन्य के अनुसार , 

" अनुसन्धान नवीन ज्ञान प्राप्त करने हेतु एक व्यवस्थित प्रयास है।"

ट्रेवर्स के अनुसार , 

" शैक्षिक अनुसन्धान वह प्रक्रिया है जो शैक्षिक परिस्थितियों में एक व्यवहार सम्बन्धी विज्ञान के विकास की ओर अग्रसर होती है।"

रामेल जे. फ्रांसिस का मानना है कि

  "अनुसन्धान नवीन सूचनाओं या सम्बन्धों की खोज हेतु सावधानीपूर्वक किया गया शोध व जांच-पड़ताल है ,  जो विद्यमान ज्ञान में अभिवृद्धि करती है तथा उसे सत्यापित करती है।"

वेस्टर के अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोश के अनुसार , 

" अनुसन्धान केवल सत्य के लिए खोज मात्र नहीं है अपितु यह दीर्घकालीन सघन और सादृश्य संधान है।"

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि   अनुसन्धान वह क्रमबद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है ,  जिसमें वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग द्वारा वर्तमान ज्ञान का परिमार्जन ,  उसका विकास अथवा किसी नए तथ्य की खोज द्वारा ज्ञानकोश में वृद्धि की जाती है।

अनुसन्धान शब्द का अर्थ 

अंग्रेजी में अनुसन्धान को   ' रिसर्च '  कहते हैं ,  जो दो शब्दों से मिलकर बना है  Research = Re+ Search.  'Re'  का अंग्रेजी में अर्थ होता है , " फिर से यानी बार-बार '  तथा   'Search'  का अर्थ है   ' खोजना ' . 
  • अंग्रेजी का यह शब्द   ' रिसर्च '  शोध की प्रक्रिया को प्रस्तुत करता है कि शोधकर्ता किसी तथ्य को बार-बार देखता है ,  जिससे वह उसके सम्बन्ध में प्रदत्तों को एकत्रित करता है और उसके आधार पर निष्कर्ष निकालता है। शोधकार्य द्वारा चरों का सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है। प्रयोगात्मक शोध से कारण प्रभाव ,  सह-सम्बन्ध तथा सर्वेक्षण शोध कार्य द्वारा सामान्य सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है। विकासात्मक शोधकार्यों में चरों की प्रभावशीलता का अध्ययन किया जाता है। ऐतिहासिक शोधकार्यों में नवीन तथ्यों की खोज की जाती है।

अनुसन्धान की विशेषताएँ    Characteristics of Research in Hindi

अनुसन्धान   की   मूलभूत विशेषताएँ   —

  • अनुसन्धान की प्रक्रिया वैज्ञानिक ,  वस्तुनिष्ठ ,  व्यवस्थित तथा सुनियोजित होती है।
  • इस प्रक्रिया से नवीन ज्ञान की वृद्धि एवं विकास किया जाता है।
  • इस कार्य में गुणात्मक तथा परिमाणात्मक प्रदतों की व्यवस्था की जाती है और उनका विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
  • शोधकार्य का आलेख शोध प्रबन्ध सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता है।
  • प्रत्येक शोधकार्य को अपनी विधि व प्रविधियाँ होती हैं ,  जो शोध के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होती है।
  • इस प्रक्रिया में प्रदतों के आधार पर परिकल्पनाओं की पुष्टि की जाती है।  
  • प्रत्येक शोधकार्य से निष्कर्ष निकाल कर उनका सामान्यीकरण किया जाता है।
  • इसमें व्यक्तिगत पक्षों ,  भावनाओं तथा विचारों को महत्व नहीं दिया जाता है।  
  • अनुसन्धान कार्य सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दो प्रकार से हो सकते हैं।
  • यह प्रक्रिया कई चरणों में सम्पन्न की जाती है।

अनुसन्धान के प्रकार  Types of Research in Hindi

  किसी समस्या के समाधान प्राप्त करने के दो मुख्य कारण होते हैं

  (1)  बौद्धिक तथा

  (2)  व्यावहारिक।

  इसी के आधार पर समस्त अनुसन्धानों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है

  (I)  मूलभूत अनुसन्धान

  (ii)  व्यावहारिक अनुसन्धान

मूलभूत अनुसन्धान क्या होते हैं 

  • इसका मूल उद्देश्य नई प्ररचनाओं का निर्माण करना है। इस प्रकार के अनुसन्धान के निष्कर्ष से विशेष वैज्ञानिक नियमों का प्रतिपादन होता है। इस प्रकार के अनुसन्धान का मुख्य कारण तथ्यों का   एकत्रीकरण है। मूलभूत अनुसन्धान हमारे ज्ञान की वृद्धि करता है। यह व्यावहारिक अनुसन्धान के लिए आधार तथ्यों की खोज तथा एकत्रीकरण करता है।

व्यावहारिक अनुसन्धान क्या होते हैं ?

  • इसके तहत ऐसे अनुसन्धान आते हैं ,  जिनके द्वारा किसी समस्या विशेष का समाधान आवश्यक हो तथ्यों द्वारा यदि अनुसन्धानकर्ता किसी क्रियात्मक समस्या का समाधान करे तो यह अनुसन्धान व्यावहारिक अनुसन्धान की श्रेणी में आता है।
  • यद्यपि अनुसन्धानों का इस प्रकार वर्गीकरण किया गया है ,  तथापि मूलभूत अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान को अलग करना एक कठिन कार्य है।  
  • मूलभूत अनुसन्धानों से प्राप्त तथ्यों की पुष्टि व्यावहारिक अनुसन्धान से की जाती है। अनुसन्धान में इन तथ्यों व निष्कर्षो का अनुप्रयोग होता है। सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में क्रियात्मक समस्याओं पर किए अनुसन्धान नए सिद्धान्तों व नियमों को बनाने में सहायक होते हैं।

अनुसन्धान कार्य की श्रेणियां

सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत किए जाने वाले अनुसन्धान कार्य को निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है-

  •   प्रयोगशाला प्रयोग
  •   क्षेत्र प्रयोग
  •   क्षेत्र अध्यन
  •   सर्वेक्षण अनुसन्धान

अनुसन्धान के सोपान  Steps of Research in hindi

अनुसन्धान एक क्रमबद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है। अनुसन्धान प्रक्रिया को विशिष्ट ढंग से क्रमबद्ध किया जाता है। यह प्रक्रिया कई क्रियाओं के मिलने से पूरी होती है ,  जो परस्पर जुड़ी होती हैं।  

  सामान्यतः अनुसन्धान की प्रक्रिया में छः चरण होते हैं-

  •   समस्या का चयन
  •   परिकल्पना का प्रतिपादन
  •   शोध की रूपरेखा
  •   आंकड़ों/डाटा का संकलन
  •   प्रदत्तों का विश्लेषण
  • सामान्यीकरण तथा निष्कर्षों का प्रतिपादन

अनुसन्धान प्रक्रिया का पहला चरण

  • अनुसन्धान प्रक्रिया के पहले चरण में समस्या का चयन किया जाता है। समस्या की परिभाषा और सीमा को परिभाषित किया जाता है ताकि इसे व्यावहारिक रूप दिया जा सके।

अनुसन्धान प्रक्रिया का दूसरा  चरण

  • दूसरे चरण में इस समस्या के सभी सम्भावित समाधानों के लिए परिकल्पना की जाती है। इसके लिए कथन दिए जाते हैं। इन्हें परिकल्पना कहते हैं। इन्हीं परिकल्पनाओं से समस्या का समाधान होता है।

अनुसन्धान प्रक्रिया का तीसरा चरण

  • तीसरे चरण में परिकल्पनाओं की पुष्टि के लिए रूपरेखा तैयार की जाती है। इससे शोध विधि तथा प्रविधियों के बारे में निर्णय लिया जाता है।

अनुसन्धान प्रक्रिया का चौथा चरण

  • चौथे चरण में परिकल्पना से सम्बन्धित प्रदतो/आंकड़ों का भिन्न तरीकों से संकलन किया जाता है।

अनुसन्धान प्रक्रिया का पंचवा चरण

  • पाँचवे चरण में प्रदत्तों को सार्थक बनाने के लिए सांख्यिकीय प्रविधियों को प्रयुक्त किया जाता है। आँकड़ों या तथ्यों के विश्लेषण से परिकल्पनाओं की पुष्टि की जाती है और उनके आधार पर निर्णय लिया जाता है। प्रदत्तों के विश्लेषणों के परिणामों की व्याख्या की जाती है।

अनुसन्धान प्रक्रिया का छठवा चरण

छठे चरण में प्रदत्तों के विश्लेषण और परिणामों के आधार पर निष्कर्षों का प्रतिपादन किया जाता है। बार-बार निष्कर्षों की पुनरावृत्ति होने पर वे सामान्य नियम या सिद्धान्त बन जाते हैं ,  जो नए ज्ञान की वृद्धि करते हैं और जिनके द्वारा क्रियाओं में सुधार और विकास लाया जाता है।

सभी प्रकार के अनुसन्धान कार्यों में इन्हीं सोपानो का अनुसरण किया जाता है।

अनुसन्धान की विधियाँ    Methods of Research in Hindi

प्रत्येक अनुसन्धान एक विशेष प्रकृति की समस्या का वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत करता है। समस्या की    प्रकृति के अनुसार अनुसन्धान की विधि निर्धारित की जाती है।

अनुसन्धान का अन्वेषणात्मक प्रारूप प्राथमिक दिशाएँ प्रदान करता है। जब तक किसी अनुसन्धानकर्ता को समस्या की सुस्पष्ट व्याख्या ,  उसके सैद्धान्तिका परिप्रेक्ष्यों तथा प्रयोगात्मक पक्षों का ज्ञान नहीं होगा ,  तब तक यह अनुसन्धान करने में समर्थ नहीं होगा। 

अन्वेक्षणात्मक अनुसन्धान प्ररचना की निम्न पद्धतियाँ है-

  • सम्बन्धित   साहित्य का सर्वेक्षण एवं सिंहावलोकन
  •   आनुभविक व्यक्तियों से सर्वेक्षण
  •   एकल विषय अध्ययन

अनुसन्धान की विधियों का वर्गीकरण विद्वानों ने अनेक प्रकार से किया है। किसी ने विषय क्षेत्र के अनुसार वर्गीकरण किया और किसी ने शिक्षा सम्बन्धी ,  मनोविज्ञान सम्बन्धी तथा इतिहास सम्बन्धी अनुसन्धान के रूप में वर्गीकृत किया। किसी विद्वान ने इसके ऑकड़े प्राप्त करने की विधि के आधार पर तो किसी ने उसके उद्देश्य के आधार पर वर्गीकरण किया है।

सामान्य तौर पर अनुसन्धान विधियों को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  •   ऐतिहासिक अनुसन्धान ( Historical Research) 
  • वर्णनात्मक अनुसन्धान ( Descriptive Research)
  • प्रयोगात्मक अनुसन्धान ( Experimental Research)
  • क्रियात्मक अनुसन्धान ( Actionable Research)
  • अन्तर- अनुशासनात्मक अनुसन्धान ( Inter-disciplinary Research) .

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Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य

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Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य

Synopsis / शोध प्रारूपिका (लघु शोध व शोध के विद्यार्थियों हेतु)

किसी भी क्षेत्र में शोध करने से पूर्व मनोमष्तिष्क में एक तूफ़ान एक हलचल महसूस होती है, शोध परिक्षेत्र की तलाश प्रारम्भ होती है, विषय की तलाश से लेकर परिणति तक का आयाम मुखर होने लगता है और इसी मनोवेग वैचारिक तूफ़ान को शोध एक सृजनात्मक आयाम देता है एवं अस्तित्व में आता है शोध प्रोपोज़ल या शोध प्रारूपिका। हमारे शोधार्थियों में इसके लिए शब्द प्रचलन में है: —- Synopsis.

शोध को क्रमबद्ध वैज्ञानिक स्वरुप देने हेतु लघुशोध व शोध के विद्यार्थी सरलता से कार्य कर सहजता से इस परिणति तक ले जा सकते हैं, Synopsis के चरणों(Steps) को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है –

1. प्रस्तावना 2. आवश्यकता क्यों? 3. समस्या 4.उद्देश्य 5.परिकल्पना 6. प्रतिदर्श 7. शोध विधि 8. शोध उपकरण 9. प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि 10. परिणाम, निष्कर्ष एवं सुझाव 11. प्रस्तावित रूपरेखा (शोध स्वरूपानुसार)

1. प्रस्तावना(Introduction)-

जिस तरह रत्नगर्भा पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त अयस्क परिशोधन से शुद्ध धात्वीय स्वरुप प्राप्त करते हैं उसी प्रकार हमारे मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते तथ्य प्रगटन के लिए अपने परिशुद्ध स्वरुप को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और हम अपनी क्षमता के अनुसार उसे बोधगम्य बनाकर उसका प्रारम्भिक स्वरुप प्रस्तुत करते हैं जो मूलतः हमारे विषय से सम्बन्ध रखता है, शीर्षक से जुड़ाव का यह मुखड़ा, भूमिका या प्रस्तावना का स्वरुप लेता है इसके शब्द हमारी क्षमता अधिगम स्तर और प्रस्तुति कौशल के अनुसार अलग-अलग परिलक्षित होता है इसमें वह आलोक होता है जो हमारे शोध का उद्गार बनने की क्षमता रखता है।

2. आवश्यकता क्यों?(Importance)-

यह बिंदु विषय-वस्तु के महत्त्व को प्रतिपादित करता है और उस पर कार्य करने के औचित्य को सिद्ध करता है कि आखिर अमुक चर को या अमुक पात्र या विषय वस्तु को ही हमने अपने अध्ययन का आधार क्यों बनाया? हमें देश, काल, परिस्थितियों के आलोक में अपने विषय और उसी परिक्षेत्र पर कार्य करने की तीव्रता का परिचय कराना होता है इसे ऐसे शब्दों में लिखा जाना चाहिए कि पढ़ने वाला उसकी तीव्रता को महसूस कर सके और उसका मानस सहज रूप से आपके तर्कों का कायल हो जाए।

3. समस्या(Problem)-

यहाँ समस्या या समस्या कथन से आशय शोध के ‘शीर्षक’ से है। शीर्षक संक्षिप्त, सरल, सहज बोधगम्य व सार्थक भाव युक्त होना चाहिए अनावश्यक विस्तार या अत्यधिक कठिन शब्दों के प्रयोग से बचकर उसे अधिक पाठकों की बोधगम्यता परिधि में लाया जा सकता है यह शुद्ध व भाव स्पष्ट करने में समर्थ होना चाहिए। शोध स्वरूपानुसार इसका उपयुक्त चयन व शुद्ध निरूपण होना चाहिए।

4. उद्देश्य(Objectives)-

उद्देश्य बहुत सधे शब्दों में बिन्दुवार दिए जाने चाहिए। तुलनात्मक अध्ययन में निर्धारित चर के आधार पर न्यादर्श के प्रत्येक वर्ग का दुसरे से तुलनात्मक अध्ययन करना, उद्देश्य का अभीप्सित होगा यह शोधानुसार क्रमिक रूप से व्यवस्थित किए जा सकते हैं।

5. परिकल्पनाएं(Hypothesis)-

परिकल्पनाओं का स्वरुप शोध के स्वरुप पर अवलम्बित होता है। सकारात्मक, नकारात्मक और शून्य परिकल्पना अस्तित्व में है लेकिन शोध हेतु शून्य परिकल्पना सर्वाधिक उत्तम रहती है, इसको भी क्रमवार तुलना के स्वरुप के आधार पर व्यवस्थित करते हैं। यदि ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ के लड़कों की ‘कम्प्यूटर के प्रति भय’ के आधार पर तुलना करनी हो तो इसे इस प्रकार लिखेंगे :

ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ के लड़कों में कम्प्यूटर के प्रति भय के आधार पर कोई सार्थक अन्तर नहीं है।

6. प्रतिदर्श(Sample)-

प्रतिदर्श या न्यादर्श शोध की प्रतिनिधिकारी जनसंख्या होती है यह समस्या के स्वरुप, शोधार्थी की क्षमता, समय व साधनों द्वारा निर्धारित होती है। शोध हेतु चयनित जनसंख्या का शोध स्वरूपानुसार विभिन्न वर्गों में वितरण कर लेते हैं जिससे परस्पर तुलना सुगम हो जाती है यह भी परिकल्पना निर्धारण में सहायक होती है।

7. शोध विधि(Research Method)-

इसका निर्धारण शोध शीर्षक के स्वरुप पर अवलम्बित होता है हिस्टॉरिकल रिसर्च या सर्वेक्षण आधारित शोध Synopsis के पूरे स्वरुप को प्रभावित करते हैं। शोध विधि, शोध की दिशा तय करने में सक्षम है।

8. शोध उपकरण(Research Tools)-

शोध स्वरूपानुसार ही इसकी आवश्यकता होती है कुछ प्रामाणिक शोध उपकरण मौजूद हैं एवं कभी आवश्यकता अनुसार खुद भी स्व आवाश्यक्तानुसार शोध उपकरण विकसित करना होता है। वर्णनात्मक शोध प्रबन्ध में इसकी आवश्यकता नहीं होती।

9. प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि(Used Statistical Method)-

जिन शोध के प्राप्य समंक होते हैं उनसे किसी निष्कर्ष तक पहुँचने में शोध की प्रवृत्ति के अनुसार सांख्यिकी का प्रयोग करना होता है यहां केवल प्रयुक्त सूत्र एवं उसमे प्रयुक्त अक्षर का आशय लिखना समीचीन होगा।

10. परिणाम, निष्कर्ष एवं सुझाव(Result, Outcome & Suggestion)-

इस भाग में केवल इतना लिखना पर्याप्त होगा कि ‘प्रदत्तों का सांख्यकीय विश्लेषण से प्राप्त परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जायेगा एवं भविष्य हेतु सुझाव सुनिश्चित किए जाएंगे।

11. प्रस्तावित रूपरेखा (शोध स्वरूपानुसार)(Proposed Framework)-

  • सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन
  • अध्ययन की योजना का प्रारूप
  • आकङों का विश्लेषण एवं विवेचन
  • शोध निष्कर्ष एवं सुझाव
जहां सांख्यिकीय विश्लेषण आवश्यक नहीं है उन वर्णनात्मक, ऐतिहासिक या विवेकनात्मक शोध में चतुर्थ अध्याय आवश्यकतानुसार परिवर्तनीय होगा।

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रिसर्च डिज़ाइन क्या है?

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  • Updated on  
  • नवम्बर 14, 2022

विज्ञान और टेक्नोलॉजी, कला और संस्कृति, मीडिया अध्ययन, भूगोल, गणित और अन्य विषय हों, रिसर्च हमेशा अज्ञात को खोजने का मार्ग रहा है। वर्तमान निराशाजनक परिस्थितियों में जब कोरोनावायरस ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है, इसके इलाज के लिए टीके खोजने के लिए भारी मात्रा में रिसर्च किया जा रहा है। इस ब्लॉग में, हम समझेंगे कि विभिन्न प्रकार के रिसर्च डिज़ाइन और उनके संबंधित फैक्टर क्या है।

This Blog Includes:

एक रिसर्च डिज़ाइन क्या है, रिसर्च डिज़ाइन के लाभ, रिसर्च डिजाइन के तत्व, रिसर्च डिजाइन की विशेषताएं, ग्रुपिंग द्वारा रिसर्च डिज़ाइन प्रकार, जनसंख्या वर्ग स्टडी, क्रॉस सेक्शनल स्टडी, लोंगिट्यूडनल स्टडी, क्रॉस-सेक्युएंशियल स्टडी, क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव रिसर्च डिजाइन, फिक्स्ड बनाम फ्लेक्सिबल रिसर्च डिजाइन, रिसर्च डिज़ाइन ppt.

शोध’ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक कलेक्शन है जिसमें रिसर्च मेथड्स को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक हाइपोथिसिस स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन (कंपाइलेशन) है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है। रिसर्च अकादमिक के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार पर भी किया जा सकता है। आइए पहले समझते हैं कि रिसर्च डिज़ाइन का वास्तव में क्या अर्थ है।

रिसर्च डिजाइन एक रिसर्चर को अज्ञात में अपनी यात्रा को आगे बढ़ाने में मदद करता है लेकिन उनके पक्ष में एक सिस्टेमेटिक अप्रोच के साथ। जिस तरह से एक इंजीनियर या आर्किटेक्ट एक स्ट्रक्चर के लिए एक डिजाइन तैयार करता है, उसी तरह रिसर्चर विभिन्न तरीकों से डिजाइन को चुनता है, ताकि यह जांचा जा सके कि किस प्रकार का रिसर्च किया जाना है।

रिसर्च डिज़ाइन के कुछ लाभ इस प्रकार हैं:

  • एक रिसर्च डिज़ाइन तैयार करने से रिसर्चर को अध्ययन के प्रत्येक चरण में सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  • यह अध्ययन के प्रमुख और छोटे कार्यों की पहचान करने में मदद करता है।
  • यह शोध अध्ययन को प्रभावी और रोचक बनाता है।
  • इससे एक रिसर्चर आसानी से शोध कार्य के उद्देश्यों को तैयार कर सकता है।
  • एक अच्छे रिसर्च डिज़ाइन का मुख्य लाभ यह है कि यह शोध को संतुष्टि,आत्मविश्वास, एक्यूरेसी, रिलियाबिलिटी, कंटीन्यूटी और वैलिडिटी  प्रदान करता है।
  • इसके द्वारा लिमिटेड रिसोर्सेज  में भी सभी कार्यों को बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
  • इससे रिसर्च में कम समय लगता है।

यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व दिए हैं:

  • एकत्रित विवरण का एनालिसिस  करने के लिए लागू की गई विधि
  • रिसर्च मेथड का प्रकार
  • सटीक उद्देश्य कथन
  • शोध के लिए संभावित आपत्तियां
  • रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें
  • एनालिसिस का मापन
  • शोध अध्ययन के लिए सेटिंग्स

रिसर्च डिज़ाइन

रिसर्च डिजाइन के प्रकार

अब जब हम व्यापक रूप से क्लासीफाइड प्रकार के रिसर्च को जानते हैं, तो क्वांटिटेटिव और क्वालिटेटिव रिसर्च को निम्नलिखित 4 प्रमुख प्रकार के research design in Hindi में विभाजित किया जा सकता है-

  • डिस्क्रिप्टिव रिसर्च डिजाइन
  • कॉरिलेशनल रिसर्च डिजाइन
  • एक्सपेरिमेंटल रिसर्च डिजाइन 
  • डायग्नोस्टिक रिसर्च डिजाइन
  • एक्सप्लेनेटरी रिसर्च डिजाइन 

अध्ययन डिजाइन प्रकारों का एक अन्य क्लासिफिकेशन इस पर आधारित है कि प्रतिभागियों को कैसे क्लासीफाइड किया जाता है। ज्यादातर स्थितियों में, समूहीकरण रिसर्च के आधार और व्यक्तियों के नमूने के लिए उपयोग की जाने वाली विधि द्वारा निर्धारित किया जाता है। प्रायोगिक रिसर्च डिजाइन के आधार पर एक विशिष्ट अध्ययन में आम तौर पर कम से कम एक प्रयोगात्मक और एक नियंत्रण समूह होता है। चिकित्सा रिसर्च में, उदाहरण के लिए, एक समूह को चिकित्सा दी जा सकती है जबकि दूसरे को कोई नहीं मिलता है। तुम मेरा फॉलो समझो। हम प्रतिभागी समूहन के आधार पर चार प्रकार के अध्ययन डिजाइनों में अंतर कर सकते हैं:

एक को होर्ट अध्ययन एक प्रकार का अनुदैर्ध्य रिसर्च है जो पूर्व निर्धारित समय अंतराल पर एक समूह के क्रॉस-सेक्शन (एक सामान्य लक्षण वाले लोगों का एक समूह) लेता है। यह पैनल रिसर्च का एक रूप है जिसमें समूह के सभी लोगों में कुछ न कुछ समान होता है।

सामाजिक विज्ञान, चिकित्सा रिसर्च और जीव विज्ञान में, एक क्रॉस-अनुभागीय अध्ययन प्रचलित है। यह अध्ययन दृष्टिकोण किसी विशिष्ट समय पर जनसंख्या या जनसंख्या के प्रतिनिधि नमूने के डेटा की जांच करता है।

एक अनुदैर्ध्य अध्ययन एक प्रकार का अध्ययन है जिसमें एक ही चर को कम या लंबी अवधि में बार-बार देखा जाता है। यह आमतौर पर अवलोकन संबंधी शोध है, हालांकि यह दीर्घकालिक रेंडम  प्रयोग का रूप भी ले सकता है।

क्रॉस-अनुक्रमिक रिसर्च डिजाइन अनुदैर्ध्य और क्रॉस-अनुभागीय रिसर्च विधियों को जोड़ती है, दोनों में निहित कुछ दोषों की कंपनसेशन के लक्ष्य के साथ।

क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव research design in Hindi के बीच अंतर निम्नलिखित हैं-

स्थिर और फ्लेक्सिबल research design in Hindi के बीच एक अंतर भी खींचा जा सकता है। क्वांटिटेटिव (निश्चित डिजाइन) और क्वालिटेटिव  (लचीला डिजाइन) डेटा एकत्र करना अक्सर इन दो अध्ययन डिजाइन श्रेणियों से जुड़ा होता है। आपके द्वारा डेटा एकत्र करना शुरू करने से पहले ही रिसर्च डिज़ाइन एक निर्धारित अध्ययन डिजाइन के साथ पूर्व-निर्धारित और समझा जाता है। दूसरी ओर, लचीले डिज़ाइन, डेटा संग्रह में अधिक लचीलापन प्रदान करते हैं – उदाहरण के लिए, आप निश्चित उत्तर विकल्प प्रदान नहीं करते हैं, इसलिए उत्तरदाताओं को अपने स्वयं के उत्तर देने होंगे।

Research design in Hindi के लिए PPT नीचे दी गई है-

चूंकि हम रिसर्च डिज़ाइन के प्रकारों से निपट रहे हैं, इसलिए यह समझना अनिवार्य है कि रिसर्च करने का अभ्यास कितना फायदेमंद है और इसके कुछ प्रमुख लाभ हैं: 1. रिसर्च विषय की गहरी समझ प्राप्त करने में मदद करता है। 2. आप इसके विविध पहलुओं के साथ-साथ इसके विभिन्न स्रोतों जैसे प्राथमिक और माध्यमिक के बारे में जानेंगे। 3. यह महत्वपूर्ण एनालिसिस और अनसुलझी समस्याओं के मापन के माध्यम से किसी भी क्षेत्र में जटिल समस्याओं को हल करने में मदद करता है।  4. आप यह भी जान पाएंगे कि संरक्षित मान्यताओं को तौलकर एक परिकल्पना कैसे बनाई जाती है।

रिसर्च ‘ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक संग्रह है जिसमें शोध पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक परिकल्पना स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है।

यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व है: 1. एकत्रित विवरण का एनालिसिस  करने के लिए लागू की गई विधि 2. रिसर्च पद्धति का प्रकार 3. सटीक उद्देश्य कथन 4. रिसर्च के लिए संभावित आपत्तियां 5. रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें 6. समय 7. एनालिसिस का मापन 8. रिसर्च स्टडीज के लिए सेटिंग्स

एक सुनियोजित शोध डिजाइन  यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि आपके तरीके आपके शोध के उद्देश्यों से मेल खाते हैं, कि आप उच्च-गुणवत्ता वाले डेटा एकत्र करते हैं, और यह कि आप विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करते हुए अपने प्रश्नों का उत्तर देने के लिए सही प्रकार के विश्लेषण का उपयोग करते हैं  । यह आपको वैध, भरोसेमंद निष्कर्ष निकालने की अनुमति देता है।

रिसर्च के 5 घटक परिचय, साहित्य समीक्षा, विधि, परिणाम, चर्चा, निष्कर्ष है ।

उम्मीद है कि रिसर्च डिज़ाइन के बारे में आपको सभी जानकारियां मिल गई होंगी। यदि आप रिसर्च डिजाइन करना चाहते हैं तो Leverage Edu एक्सपर्ट्स के साथ 30 मिनट का फ्री सेशन 1800 572 000 बुक करें और बेहतर गाइडेंस पाएं।

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देवांग मैत्रे

स्टडी अब्रॉड फील्ड के हिंदी एडिटर देवांग मैत्रे को कंटेंट और एडिटिंग में आधिकारिक तौर पर 6 वर्षों से ऊपर का अनुभव है। वह पूर्व में पोलिटिकल एडिटर-रणनीतिकार, एसोसिएट प्रोड्यूसर और कंटेंट राइटर रह चुके हैं। पत्रकारिता से अलग इन्हें अन्य क्षेत्रों में भी काम करने का अनुभव है। देवांग को काम से अलग आप नियो-नोयर फिल्म्स, सीरीज व ट्विटर पर गंभीर चिंतन करते हुए ढूंढ सकते हैं।

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कैसे एक शोधपत्र (Research Paper) लिखें

इस आर्टिकल के सहायक लेखक (co-author) हमारी बहुत ही अनुभवी एडिटर और रिसर्चर्स (researchers) टीम से हैं जो इस आर्टिकल में शामिल प्रत्येक जानकारी की सटीकता और व्यापकता की अच्छी तरह से जाँच करते हैं। wikiHow's Content Management Team बहुत ही सावधानी से हमारे एडिटोरियल स्टाफ (editorial staff) द्वारा किये गए कार्य को मॉनिटर करती है ये सुनिश्चित करने के लिए कि सभी आर्टिकल्स में दी गई जानकारी उच्च गुणवत्ता की है कि नहीं। यहाँ पर 8 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं। यह आर्टिकल १,३९,८४४ बार देखा गया है।

स्कूल की ऊंची कक्षाओं में पढ़ने के दौरान और कॉलेज पीरियड में हमेशा ही, आपको शोध-पत्र तैयार करने के लिए कहा जाएगा। एक शोध-पत्र का इस्तेमाल वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक मुद्दों की ख़ोज-बीन और पहचान में किया जा सकता है। यदि शोध-पत्र लेखन का आपका यह पहला अवसर है, तो बेशक कुछ डरावना भी लग सकता है, पर मस्तिष्क को अच्छी तरह से संयोजित और एकाग्र करें, तो आप खुद के लिए इस प्रक्रिया को आसान बना सकते हैं। शोध-पत्र तो स्वयं नहीं लिख जाएगा, पर आप इस प्रकार से योजना बना सकते हैं, और ऐसी तैयारी कर सकते हैं कि लेखन व्यावहारिक रूप में खुद-ब-खुद जेहन में उतरता चला जाए।

अपने विषयवस्तु का चयन

Step 1 अपने आप से महत्वपूर्ण प्रश्न कीजिए:

  • आम तौर पर, वेबसाइट जिनके नाम के अंत में .edu, .gov, या .org होता है, ऎसी सूचनाएं रखती हैं जिन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है कि ये वेबसाइट स्कूलों, सरकार या उन संगठनों की होती हैं जो आपके विषय से सम्बंधित हैं।
  • अपनी खोज का प्रश्न बार-बार बदलें ताकि आपके विषय पर अलग-अलग तरह के खोज परिणाम मिलें। अगर कुछ भी मिलता नज़र न आये तो ऐसा हो सकता है कि आपकी खोज का प्रश्न अधिकाँश लेखों के शीर्षक से मेल नहीं खा रहा है जो आपके विषय पर हैं।

Step 5 एकेडमिक डेटाबेस का इस्तेमाल कीजिये:

  • ऐसे डेटाबेस ढूंढ़िए जो आपके विषय को ही सम्मिलित करते हों। उदहारण के लिए PsycINFO एक ऐसा डेटाबेस है जो कि केवल मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के क्षेत्र में ही विद्वानों द्वारा किये काम को सम्मिलित करता है। एक सामान्य खोज के मुकाबले यह आपको अपने अनुरूप शोध सामग्री पाने में मदद करेगा। [२] X रिसर्च सोर्स
  • पूछताछ के एकाधिक खोज-बॉक्स या केवल केवल एक ही प्रकार के स्रोत वाले आर्काइव के साथ अधिकाँश अकादमिक डेटाबेस आपको ये सुविधा देते हैं कि आप बेहद विशिष्ट सूचना मांग सकें (जैसे केवल जर्नल आलेख या केवल समाचार पत्र)। इस सुविधा का लाभ उठाकर जितने अधिक खोज बॉक्स आप इस्तेमाल कर सकते हैं उतना करें।
  • अपने विभाग के पुस्तकालय जाएँ और लाइब्रेरियन से अकादमिक डेटाबेस, जिनकी सदस्यता ली गयी है, की पूरी सूची और उनके पासवर्ड ले लें।

Step 6 अपने शोध में रचनात्मक हो जाएँ:

एक रूपरेखा का निर्माण

Step 1 किताब पर टीका-टिप्पणी,...

  • रूपरेखा बनाने और शोधपत्र लिखने का काम आखिरकार आसान करने के लिए टीका-टिप्पणी का काम गहनता से कीजिये। जिस चीज़ के महत्वपूर्ण होने का आपको ज़रा भी अंदेशा हो या जो आपके शोधपत्र में इस्तेमाल हो सकता है, उसकी निशानदेही कर लीजिए।
  • जैसे-जैसे आप अपने शोध में महत्वपूर्ण हिस्सों को चिन्हित करते जाएँ, अपनी टिप्पणी और नोट जोड़ते जाएँ कि इन्हें आप अपने शोध-पत्र में कहाँ इस्तेमाल करेंगे। अपने विचारों को लिखना जैसे-जैसे वे आते जाएँ, आपके शोधपत्र लेखन को कहीं आसान बना देगा और ऎसी सामग्री के रूप में रहेगा जिसे आप सन्दर्भ के लिए फिर-फिर इस्तेमाल कर सकें।

Step 2 अपने नोट्स को सुनियोजित करें:

  • हर उद्धरण या विषय जिसे आपने चिन्हित किया है उसे अलग-अलग नोट कार्ड पर लिखने की कोशिश कीजिए। इस तरह से आप अपने कार्डों को मनचाहे ढंग से पुनर्व्यवस्थित कर सकेंगे।
  • अपने नोट का रंगों में कोड बना लें, ताकि वे आसान हो जाएँ। अलग-अलग स्रोतों से जो भी नोट आप ले रहे हैं, उन्हें सूची बद्ध कर लें, और फिर सूचना के अलग-अलग वर्गों को अलग-अलग रंगों में चिन्हित कर लें। उदाहरण के लिए, जो कुछ भी आप किसी विशेष किताब या जर्नल से ले रहे हैं उन्हें एक कागज़ पर लिख लें ताकि नोट्स को सुगठित किया जा सके, और फिर जो कुछ भी चरित्रों से सम्बंधित है उसे हरे से चिन्हित करें, कथानक से जुड़े सबकुछ को नारंगी रंग में चिन्हित करें, आदि-आदि।

Step 3 सन्दर्भों का पन्ना बना लें:

  • एक तार्किक शोधपत्र विवादित विषयों पर एक पक्ष लेता है और एक दृष्टिकोण के लिए तर्क प्रस्तुत करता है। मुद्दे पर एक तर्कसंगत प्रतिपक्ष के साथ बहस की जानी चाहिए।
  • एक विश्लेषणात्मक शोधपत्र किसी महत्त्वपूर्ण विषय पर नए सिरे से दृष्टिपात करता है। विषय आवश्यक नहीं है कि विवादित हो, पर आपको अपने पाठकों को सहमत करना पड़ेगा कि आपके विचारों में गुणवत्ता है। यह महज आपके शोध से विचारों की उबकाई भर नहीं, बल्कि अपने उन विशिष्ट अद्वितीय विचारों की प्रस्तुति है जिन्हें आपने गहन शोध से सीखा है।

Step 5 आपके पाठक कौन होंगे यह निर्धारित कर लीजिये:

  • थीसिस विकसित करने का आसान तरीका है कि उसे एक प्रश्न के रूप में ढालिए जिसका आपका निबंध उत्तर देगा। वह मुख्य प्रश्न या हाइपोथीसिस क्या है जिसको आप अपने शोधपत्र में प्रमाणित करना चाहते हैं? उदाहरण के लिए आपकी थीसिस का प्रश्न हो सकता है, “मानसिक बीमारियों के इलाज की सफलता को सांस्कृतिक स्वीकृति कैसे प्रभावित करती है?” यह प्रश्न आपकी थीसिस क्या होगी उसे निर्धारित कर सकता है – इस प्रश्न के लिए आपका जो भी उत्तर होगा, वही आपका थीसिस-कथन होगा।
  • शोधपत्र के सभी तर्कों को दिए बिना या उसकी रूपरेखा बताये बिना ही आपकी थीसिस को आपके शोध के मुख्य विचार को व्यक्त करना होगा। यह एक सरल कथन होना चाहिए, न कि कई सहायक वाक्यों का एक समूह, आपका बाक़ी शोधपत्र तो इस काम के लिए है ही!

Step 7 अपने मुख्य बिन्दुओं को निर्धारित कर दें:

  • जब आप अपने मुख्य विचारों की रूप-रेखा बनाएं, उनको एक विशिष्ट क्रम में रखना अहम है। अपने सबसे मज़बूत तर्कों को निबंध के सबसे पहले और सबसे अंत में रखिये। जबकि ज्यादा औसत बिन्दुओं को निबंध के बीचोंबीच या अंत की तरफ रखिये।
  • सबसे मुख्य बिन्दुओं को एक ही पैराग्राफ में समेटना ज़रूरी नहीं है, विशेष करके अगर आप एक अपेक्षाकृत लंबा शोधपत्र लिख रहे हैं। प्रमुख विचारों को जितने पैराग्राफ में आप ज़रूरी समझें फैलाकर लिख सकते हैं।

Step 8 फॉरमैटिंग के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखिये:

  • अपनी हर बात को साक्ष्यों से पुष्ट करें। क्योंकि यह एक शोधपत्र है इसलिए ऐसी टिप्पणी न करें जिसकी पुष्टि सीधे आपके शोध के तथ्यों से न हो।
  • अपने शोध में पर्याप्त व्याख्याएं दीजिये। बिना तथ्यों के अपने मत के बखान का विलोम बगैर किसी व्याख्या के बिना तथ्यों को देना होगा। यद्यपि आप निश्चित ही पर्याप्त प्रमाण देना चाहते हैं, तो भी जहां भी संभव हो अपनी टिप्पणी जोड़ते हुए यह सुनिश्चित कीजिए कि शोधपत्र पर आपकी मौलिक और विशिष्ट छाप हो।
  • बहुत सारे सीधे लम्बे उद्धरण देने से बचें। यद्यपि आपका निबंध शोध पर आधारित है, फिर भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने विचार प्रस्तुत करने हैं। जिस उद्धरण का आप इस्तेमाल करना चाहते हैं, जब तक वह बेहद अनिवार्य न हो, उसे अपने ही शब्दों में व्यक्त और विश्लेषित करने की कोशिश कीजिए।
  • अपने पेपर में साफ़-सुथरे और संतुलित गति से एक बिंदु से दूसरे तक जाने का प्रयास करें। निबंध में स्वछन्द तारतम्य और प्रवाह होना चाहिए, इसके बजाय कि अनाड़ी की तरह रुक-रुक कर क्रम टूटे और फिर अचानक शुरू हो जाए। यह ध्यान रखें कि लेख के मुख्य भाग वाला हर पैरा अपने बाद वाले से जाकर मिलता हो।

Step 2 निष्कर्ष लिखें:

  • आपके निष्कर्ष का लक्ष्य, साधारण शब्दों में, इस प्रश्न का उत्तर देना है, “तो क्या?” ध्यान रखें कि पाठक आख़िरकार महसूस करे कि उसे कुछ प्राप्त हुआ है।
  • कई कारणों से अच्छा नुस्खा तो यह है कि, निष्कर्ष को भूमिका के पहले लिख लिया जाये। पहली बात तो यह है कि जब प्रमाण आपके दिमाग में ताज़ा हों तो निष्कर्ष लिखना ज्यादा आसान होता है। उससे भी बड़ी बात यह है, सलाह दी जाती है कि आप निष्कर्ष में अपने सबसे चुनिन्दा शब्द और भाषा का मजबूती से इस्तेमाल करें और फिर उन्हीं विचारों को भिन्न शब्दों में अपेक्षाकृत कम वेग के साथ भूमिका में रख दें, न कि इसका उल्टा करें; यह पाठकों पर ज्यादा स्थायी प्रभाव छोड़ेगा।

Step 3 निबंध की प्रस्तावना लिखें:

  • MLA फॉर्मेट को विशेष रूप से साहित्यिक शोध-पत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें ‘उद्धृत सामग्री’ की एक सूची अंत में जोड़नी होती है, इस विधि में अंतरपाठीय उद्धरण प्रयोग किये जाते हैं।
  • APA फॉर्मेट का इस्तेमाल सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोधपत्रों के लिए शोधकर्त्ताओं द्वारा किया जाता है, और इसमें भी अंतरपाठीय उद्धरण देने होते हैं। इसमें निबंध का अंत “सन्दर्भ” पृष्ठ के साथ होता है, और इसमें मुख्य भाग के पैराग्राफों के बीच में अनुच्छेद शीर्षक का प्रयोग भी किया जा सकता है।
  • शिकागो फोर्मटिंग को प्रमुखतः ऐतिहासिक शोधपत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें अंतरपाठीय उद्धरण के स्थान पर पृष्ठ के नीचे फुटनोट का प्रयोग होता है और साथ में एक ‘उद्धृत सामग्री’ और सन्दर्भों का पृष्ठ जुड़ता है। [७] X रिसर्च सोर्स

Step 5 अपने कच्चे प्रारूप...

  • अपने पेपर का सम्पादन यदि खुद आपने किया है, तो उस पर वापस आने से पहले कम से कम तीन दिन प्रतीक्षा कीजिए। अध्ययन दिखाते हैं कि, लेख समाप्त करने के बाद भी दो-तीन दिन तक यह आपके जेहन में ताज़ा बना रहता है, और इसलिए ज्यादा संभावना यह रहेगी कि आम तौर पर आप जिन बुनियादी त्रुटियों को पकड़ पाते, उन्हें भी अपनी सरसरी नज़र में नजरअंदाज कर जाएँगे।
  • दूसरों के द्वारा संपादन को महज इसलिए नजरअंदाज न करें कि उनसे आपका काम बढ़ जाएगा। अगर वे आपके पेपर के किसी अंश को दोबारा लिखे जाने की सलाह दे रहे हों तो उनके इस आग्रह का संभवतया उचित कारण है। अपने पेपर के सघन सम्पादन पर समय दीजिए। [८] X रिसर्च सोर्स

Step 6 अंतिम ड्राफ्ट को लिखिए:

  • रिसर्च के दौरान महत्वपूर्ण थीम, प्रश्नों और केन्द्रीय मुद्दों को ढूँढ़ें।
  • यह समझने की कोशिश करें कि, आप वास्तव में निर्दिष्ट रूप में किस चीज़ का अन्वेषण करना चाहते हैं, इसके बजाय कि पेपर में ढेर सारे व्यापक विचारों को ठूस दिया जाए।
  • ऐसा करने के लिये अंतिम क्षण तक प्रतीक्षा मत कीजिए।
  • अपने असाइंमेंट को समयानुसार पूरा करना सुनिश्चित कीजिए।

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  • ↑ http://www.infoplease.com/homework/t3sourcesofinfo.html
  • ↑ http://www.ebscohost.com/academic
  • ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/552/03/
  • ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/544/02/
  • ↑ http://www.indiana.edu/~wts/pamphlets/thesis_statement.shtml
  • ↑ http://libguides.jcu.edu.au/content.php?pid=83923&sid=3619280
  • ↑ http://writing.yalecollege.yale.edu/why-are-there-different-citation-styles
  • ↑ http://professionalonlineediting.com/how-to-edit-your-essay-or-research-paper-fast.asp

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Types of research with examples in hindi-शोध के प्रकार -ugc net.

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Types of research with examples in hindi-शोध के प्रकार   

शोध एक व्यापक व अन्तः विषय (Inter disciplinary) विषय है  ।

 शोध के विभिन्न प्रकारों के बीच काफी  परस्पर व्यापकता (overlapping)  है । 

अनुसंधान के विभिन्न प्रकारों का निम्न 6 आधारों पर वर्गीकरण  किया जा सकता है  -  

  (संक्षेप में / In Short)

A परिणाम के आधार पर (On the basis of Output)-

1- मौलिक / प्राथमिक / आधारभूत/ शुद्ध शोध /fundamental / Primary / Basic/ Pure Research  -

2- व्यावहारिक / प्रयुक्त शोध /Applied Research

3- क्रियात्मक शोध / Action Research 

B  उद्देश्यों के आधार पर -(On the basis of Objectives)

1- वर्णनात्मक / Descriptive शोध 

इसके निम्न प्रकार होते हैं -

I - घटनोत्तर / Ex - post Facto Research 

II - एतिहासिक / Historical Research 

III -विश्लेषणात्मक / Analytical Research 

2- सहसंबंध शोध / Correlation Research

3- व्याख्यात्मक / Explanatory Research 

4- अनुसंधान मूलक / समन्वेशी  / Exploratory Research 

5- प्रयोगिक / प्रयोगात्मक / Experimental Research 

C -तर्क के आधार पर / On the basis of Logic -

1- आगमनत्मक / Inductive Research 

2- निगमनात्मक / Deductive Research 

D - प्रक्रिया के आधार पर / On the basis of process 

1- मात्रात्मक / Quantitative  Research 

2- गुणात्मक /  Qualitative Research - इसके निम्न प्रकार होते हैं -

I - समूह केन्द्रित / Focus Group Research 

II - प्रत्यक्ष अवलोकन /Direct Observation Research 

III -गहन साक्षात्कार / In-depth Interview  Research  

IV -कथात्मक अनुसंधान / Narrative Research 

V - घटनाजन्य / Phenomenological Research 

VI - नृजातीय या जातिवृत्ति अनुसंधान / Ethnography  Research 

VII - व्यक्तिगत अध्ययन / अनुसंधान / Case Study Research 

VIII  - प्रदत्त आधारित सिद्धांत / Grounded Theory 

3- मिश्रित / Mixed Research 

E - जाँच के आधार पर / On the basis of Investigation- 

1- संरचित / Structured Approach 

2- असंरचित / Unstructured Approach 

F - अवधारणा के आधार पर / On the basis of Concept -

1- वैचारिक / Conceptual Research 

2- अनुभव सिद्ध / Empirical Research 

विस्तृत वर्णन -

1- मौलिक / प्राथमिक / आधारभूत/ शुद्ध शोध (fundamental / Primary / Basic/ Pure Research) -

इस शोध का मुख्य उद्देश्य किसी एक क्षेत्र में  सिद्धान्त विकिसित करना होता है, ये शोध किसी प्रकार की समस्या के समाधान के लिए नहीं किए जाते हैं । 

इसका मूलतः उद्देश्य वर्तमान ज्ञान में वृद्धि करना होता है । 

इसमें खोज या आविष्कार होते हैं यह मुख्य रूप से शैक्षणिक होता है । 

इसका क्षेत्र विस्तृत ( Broader) होता है । 

  2- व्यावहारिक / प्रयुक्त शोध ( Applied Research )-

  • इसका उद्देश्य व्यावहारिक समस्याओं का समाधान करना होता है । 
  • इसका प्रयोग वास्तविक/ विशिष्ट व्यवहारिक  समस्याओं के समाधान में किया जाता है 
  • इसका क्षेत्र गहन ( Deep ) होता है । 
  • कुर्ट लेविन ने सबसे पहले Action Research शब्द का प्रयोग किया था । 
  • इसका प्रयोग  किसी तत्काल समस्या के समाधान के लिए किया जाता है ।
  • इसमें यदि किसी समस्या का समाधान प्रगति में है तो उसकी प्रगति की जांच भी की जाती है 
  • इसमें किसी समस्या के समाधान में उपयोग की रही प्रक्रियाओं में भी  सुधार / संशोधन किया जात है। 
  • इसका शिक्षा के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है 
  • इसमें सदैव सुधार की गुंजाइस रहती है 
  • इसका प्रयोग - छात्रों को प्रेरित करने में , शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में , मूल्यांकन प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में , पाठ्यचर्या सुधार में , संस्था प्रशासन में एवं तात्कालिक सामाजिक समस्याओं के समाधान में किया जाता है ।   

वर्णनात्मक शोध  / Observation Research - 

  • ये स्थिति का वर्णन करता है 
  • ये क्या है , क्या था पर आधारित प्रश्नो का उत्तर देने का प्रयास करता है 
  • ये रिपोर्टिंग से समानता रखता है 
  • इसमें मुख्य रूप से सर्वे विधि का प्रयोग किया जाता है 
  • इसमें शोध कर्ता का चरों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है 
  • न ही चरों के साथ हेर फेर किया जाता है 
  • ये वास्तविक परिस्थितियों मे ही पूर्ण किया जाता  है 
  • इसमें तथ्यों की खोज भी की जाती  है 
  • ये वर्णनात्मक , आनुभविक  तथा Non Experimental शोध है 
  • ये किसी घटना के लिए प्रयोग किया जाता है 
  • ये घटना के स्वतंत्र चर से संबन्धित होता है 
  • इसमें घटना /  प्रभाव / व्यवहार / परिणाम के आधार पर कारणों की खोज की जाती है 
  • इसका प्रयोग घटना घट चुकने के बाद किया जाता है 
  •  इसमे प्रभाव - कारण संबंध होता है 
  • प्रभाव -आश्रित चर होता है 
  • कारण( पूर्व में घट चुकी घटनाएँ )   - स्वतंत्र चर होता है 
  • इसमें स्वतंत्र चर में किसी तरह का कोई जोड़- तोड़ नहीं क्या जाता है । 
  • क्योकि इसमें स्वतंत्र चर की घोषणा शोध प्रारम्भ होने से बहुत पहले हो चुकी होती है 
  • इसमें Randomisation का प्रयोग नही किया जा सकता 
  • इसमें Post hoc fallacy पायी जाती है 
  • Post hoc fallacy - जब शोध कर्ता स्वतंत्र चर व आश्रित चर के बीच के संबंध की उचित  व्याख्या नहीं कर  पाता और घटना में वह एक को कारण और दूसरे को प्रभाव केवल इसलिए मन लेता है क्योकि दोनों हमेशा साथ साथ होते पाये जाते हैं । 
  • इसमें भूतकालीन घटनाओं का विश्लेषण करके आज की समस्याओं का समाधान  ढूंढा जाता है 
  • ये किसी विषय के एतिहासिक पहलू पर ध्यान केन्द्रित करता  है 
  • इसमें पहले से घाटी घटनाओं का अध्ययन लिखित रेकॉर्ड के आधार पर किया जाता  है 
  • उपलब्ध समग्र ( population )  का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया जाता है 
  • एकस्थिति के दो पहलुओं के बीच संबंध एवं परस्पर निर्भरता का पता चलता है 
  • इसमें दो या दो से अधिक चर एक साथ तो होते हैं लेकिन आवश्यक नहीं कि वह एक दूसरे के लिए हैं 
  • इसमें एक निश्चित परिस्थित में प्रमुख कारकों की  पहचान की  जाती है 
  • ये Non Experimental है ।  
  • इसमें एक स्थिति या घटना के दो पहलुओं के बीच कैसे और क्यों जैसे सवालों का जबाब देने कि कोशिश की  जाती है 
  • इसे किसी शोध के प्रारम्भ मे किया जाता है 
  • इसे मुख्य अनुसंधान का लघु रूप भी कहा जा सकता है 
  • इसमें यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि  चरो के बीच कैसा संबंध है और तथ्य इकट्ठे किए जाते हैं फिर नयी परिकल्पना  बनाई जाती है 
  • छोटे पैमाने पर अध्ययन से शोध  की व्यावहारिकता का पता चल जाता है कि विस्तृत शोध के योग्य  है या नही  
  • यह एक स्थिति या घटना के दो या अधिक पहलुओं के बीच के संबंध को स्पष्ट करने का प्रयास  करता है 
  • इसका मुख्य उद्देश्य घटना के B ackground की  जानकारी प्राप्त  करना , तथ्यों को परिभाषित करना , समस्याओं को स्पष्ट करना , परिकल्पना विकिसित करना तथा अनुसंधान  प्राथमिकताओं व उद्देश्यों की  स्थापना करना होता है । 
  • इसमें Secondary Data , इंटरव्यू, Projective , तथा डेल्फ़ी तकनीकी का प्रयोग किया जाता है 
  • इसमें चारों के बार मे कोई भविष्यवाणी नहीं की  जाती है 
  • इस शोध के परिणाम से शोध करता को चरों के बीच सम्बन्धों का तो पता चल जाता है लेकिन कोई सबूत नहीं मिलता 
  • इसमें शोध कर्ता कारण - प्रभाव सम्बन्धों की व्याख्या करता है । 
  • इसमें स्वतंत्र चर कारण तथा आश्रित चर प्रभाव के साथ संबन्धित होता है 
  • इसमें  शोध कर्ता नियंत्रित परिस्थिति में चरों में जोड़- तोड़ करता है तथा उसका  आश्रित चर पर प्रभाव का अध्ययन करता  है 
  • इसमें  Randomization का प्रयोग डाटा collection में किया जाता है 
  • परिकल्पना का निर्धारण पहले होता है 
  • सिद्धान्त भी पहले से ही निर्धारित होते हैं 
  • ये शोध आंकड़ों पर आधारित होता है 
  • ये पक्षपात रहित होता है 
  • ये घटना - परिणाम / प्रभाव के बीच सम्बन्धों पर  केन्द्रित होता है 
  • इसमें समस्त डाटा संख्यात्मक रूप में होता है 
  • ये अनुसंधान का आगमनात्मक रूप माना जाता है 
  • इसके अनुसार मानव व्यवहार को गणित के सूत्रों में नहीं बांधा  जा सकता 
  • इसका मुख्य उद्देश्य मानव व्यवहर और उसे नियंत्रित करने वाले कारणों को गहराई से समझना होता है । 
  • इसमें चरों का विश्लेषण उनके गुणों के आधार पर होता है 
  • इस विधि से क्या ? कहाँ ? कब ? क्यों ? और कैसे?  इस तरहके सभी प्रश्नो की जांच की जाती है । 
  • इसमें बड़े Sample की जगह छोटे Sample को ज्यादा उपयोगी  माना गया है
  • ये निर्देशन से कार्य करता है 
  •  इसमें समान्यतः Hypothesis का प्रयोग नहीं किया जाता है लेकिन इसका विकल्प खुला रहता है । 
  • ये व्यक्तिगत अनुभवों के विश्लेषण पर ज़ोर देता है 
  • यह कारण का विश्लेषण और सत्यापन करता है । 
  • इसमें शोध कर्ता एक साथ कुछ व्यक्तियों के समूह को किसी विषय पर चर्चा के लिए एकत्रित करता  है 
  • समूह में सदस्यों की संख्या कम रखी जाती है। 

research ke types in hindi

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Hindi got its name from the Persian word Hind, which means ”land of the Indus River”. It is spoken by more than 528 million people as a first language and around 163 million use it as a second language in India, Bangladesh, Mauritius and other parts of South Asia.

Hindi is written with the Devanagari alphabet , developed from the Brahmi script in the 11th century AD. It contains 36 consonants and 12 vowels . In addition, it has its own representations of numbers that follow the Hindu-Arabic numeral system.

  • 14 Independent Vowels (१३ स्वर):  अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, ऋ, ॠ
  • 36 Consonants (३६ व्यंजन):  क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह
  • 3 Joint Words (संयुक्त अक्षर):  क्ष, त्र, ज्ञ
  • Full Stop (पूर्ण विराम):  ।
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    कैसे एक शोधपत्र (Research Paper) लिखें. स्कूल की ऊंची कक्षाओं में पढ़ने के दौरान और कॉलेज पीरियड में हमेशा ही, आपको शोध-पत्र तैयार करने के लिए कहा जाएगा। एक शोध ...

  21. Types of Research Hindi

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  22. Types of research with examples in hindi-शोध के प्रकार

    Types of Research Sample-प्रतिदर्शन - न्यादर्श -नमूना -प्रतिचयन- UGC NET जब शोधकर्ता(Researcher) अपने शोध के लिए जीवसंख्या(Population) से कुछ निश्चित संख्या में ...

  23. Type in Hindi

    Our FREE online Hindi typing software uses Google transliteration typing service. It provides fast and accurate typing - making it easy to type the Hindi language anywhere on the Web.. After you type a word in English and hit a space bar key, the word will be transliterated into Hindi.You can also hit a backspace key or click on the selected word to get more options on the dropdown menu.

  24. Who will win India's general election and become the new prime minister

    Hundreds of millions of votes cast, more than six weeks of polling, and billions of dollars spent: India on Tuesday will declare a new leader after a mammoth nationwide election that has become a ...