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लैंगिक समानता, हर बच्चा अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने का हकदार है, लेकिन उनके जीवन में लैंगिक असमानता और उनके लिए देखभाल करने वालों के जीवन में इस वास्तविकता में बाधा है।.

Children react during an activity at an Anganwadi center in Cherki, Bihar.

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हर लड़के और लड़की के समग्र विकास में गतिशील प्रगति होना चाहिए

प्रत्येक बच्चे का अधिकार है कि उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले. लेकिन लैंगिक असमानता की कुरीति की वजह से वह ठीक से फल फूल नहीं पते है साथ हैं भारत में लड़कियों और लड़कों के बीच न  केवल उनके घरों और समुदायों में बल्कि हर जगह लिंग असमानता दिखाई देती है.  पाठ्यपुस्तकों , फिल्मों , मीडिया आदि सभी जगह उनके साथ लिंग के अधरा पर भेदभाव किया जाता है यही नहीं एंका देखभाल करने वाले पुरुषों और महिलाओं के साथ भी भेदभाव किया जाता है

 भारत में लैंगिक असमानता के कारण अवसरों में भी असमानता उत्पन्न करता है , जिसके प्रभाव दोनों लिंगो पर पड़ता है लेकिन आँकड़ों के आधार पर देखें तो इस भेदभाव से सबसे अधिक लड़कियां आचे आसरों से वंचित रह जाती हैं।

आंकड़ों के आधार पर विश्व स्तर जन्म के समय लड़कियों के जीवित रहने की संख्या अधिक है साथ ही साथ उनका विकास भी व्यवस्थित रूप से होता है. उन्हें पप्री स्कूल भी जाते पाया गया है  जबकि   भारत एकमात्र ऐसा बड़ा देश है जहां लड़कों की अनुपात में अधिक लड़कियों का मृत्यु दर अधिक है उनके स्कूल नहा जाने या बेच में ही किनही करणों से स्कूल छोड़ने की प्रवित्ति अधिक पाई गई है .  

भारत में   लड़के और लड़कियों के  बालपन के अनुभव में बहुत अलग होता है यहाँ  लड़कों को लड़कियों की तुलना अधिक स्वतंत्रता  मिलती है.  जबकि लड़कियों की स्वतंत्रता  में अनेकों पाबंदियाँ होती हैं एस पाबंदी का असर उनकी शिक्षा , विवाह और सामाजिक रिश्तों , खुद के लिए निर्णय के अधिकार आदि को प्रभावित करती है।

 लिंग असमानता एवं लड़कियों और लड़कों के बीच भेदभाव जैसे जैसे बढ़ती जाती हैं इसका असर न केवल उनके बालपन में दिखता है बल्कि वयस्कता तक आते आते इसका स्वरूप और व्यापक हो जाता है नतीजतन कार्यस्थल में मात्र एक चौथाई महिलाओं को ही काम करते पाया जाता है।

 हालांकि कुछ  भारतीय महिलाओं को विश्वस्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली पदों पर  नेतृत्व करते पाया गया है , लेकिन भारत में अभी भी ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों को पितृ प्रधान समाज के विचारों , मानदंडों , परंपराओं और संरचनाओं के कारण अपने अधिकारों का पूर्ण रूप से अनुभव करने की स्वतंत्रता नहीं मिली है।            

लड़कियों को शिक्षा , कौशल विकास , खेल कूद में भाग लेने एवं सशक्त कर के ही हम उन्हें समाज मैं महत्व दे सकते हैं .

लड़कियों को सशक्त कर के ही अल्पकालिक कार्यों जैसे सभी को शिक्षा ,  खून की कमी (एनीमिया) ,  अन्य मध्यम अवधि कार्यक्रम जैसे बाल विवाह को समाप्त करना एवं अन्य दीर्घकालिक कार्यक्रम जैसे लिंग आधारित पक्षपात चयन करना आदि को समाप्त करने में हम सामूहिक रूप से विशिष्ट रूप से योगदान कर सकते हैं.

समाज में लड़कियों के महत्व को बढ़ाने के लिए पुरुषों , महिलाओं और लड़कों सभी को संगठित रूप मिलकर चलना होगा. समाज  की धारणा व सोच बदलेगी , तभी भारत की सभी लड़कियों और लड़कों  को  लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए केंद्रित निवेश और सहयोग की आवश्यकता है। उन्हें शिक्षा , कौशल विकास के साथ साथ सुरक्षा प्रदान करना होगा तब ही वे देश के विकास में युगदान कर सकेंगी.   

लड़कियों को दैनिक जीवन में जीवन-रक्षक संसाधनों , सूचना और सामाजिक नेटवर्क तक पहुंचने काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता.

 लड़कियों को विशेष रूप से केंद्रित कर बनाए कार्यक्रमों जैसे शिक्षा , जीवन कौशल विकसित करने , हिंसा को समाप्त करने और कमजोर व लाचार समूहों से लड़कियों के योगदान को स्वीकार कर उनके पहुँच इन कार्यकमों तक करा कर ही हम लड़कियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बना सकेंगे.

लड़कियों को आधारित कर बनाई गई दीर्घकालिक योजनाओं से ही हम उनके जीवन में संभावनाएँ उत्पन्न करता है .

 हमने  लड़कियो को एक प्लैटफ़ार्म देना होगा जहाँ वे अपनी चुनोतीयों को साझा कर साथ ही साथ एक विकल्प तलाश कर सकें उन चुनोतियों के लिए. जिससे की समाज में उनका बेहतर भविष्य बन सके . 

यूनिसेफ इंडिया द्वारा देश के लिए 2018-2022 कार्यक्रम का निर्माण किया गया है जिसके तहत बच्चों को हो रहे अभाव एवं लिंग आधारित विकृत्यों को चिन्हित करने के साथ ही सभी को लिंग समानता पर विशेष बल देते हुए कार्यक्रम के परिणाम एवं बजट को तय किया गया है. जोकि इस प्रकार है :-

• स्वास्थ्य: महिलाओं के अत्यधिक मृत्यु दर को पांच के नीचे ले जाना तथा लड़कियों और लड़कों के के प्रति समान व्यवहार व देखभाल की मांग का समर्थन करना। (जैसे कि फ्रंट-लाइन कार्यकर्ता परिवार में बीमार बच्चियों को तुरंत अस्पताल ले जाने के लिए प्रोत्साहित करें)

• पोषण: महिलाओं और लड़कियों के पोषण को सुधारना , विशेष रूप से पुरुषों एवं महिलाओं को एक समान भोजन करना. उदाहरण के तौर पर : महिला सहकारी समितियां द्वारा मैक्रो योजनाओं का निर्माण कर गाँव में बेहतर पोषण व्यवस्था कार्यान्वित करना चाहिए.

• शिक्षा: पाठ्यक्रम में अधिक से अधिक लिंग समानता संबंधित बातें सिखाना चाहिए जिससे कि लड़कियां और लड़के को लैंगिक समानता व संवेदनशीलता के बारे में जानकारी होनी चाहिए.

(उदाहरण: कमजोर लोगों की पहचान करने के लिए नई रणनीति लागू करना  चाहिए , पाठ्यपुस्तक में ऐसी तस्वीरों , भाषाओं और संदेश को हटा देना चाहिए जिससे रूढ़िवादी लिंग असमानता की झलक नहीं आती है.

• बाल संरक्षण: बल विवाह की प्रथा को समाप्त करना (उदाहरण के तौर पर : पंचायतों को "बाल-विवाह मुक्त" बनाने के लिए , लड़कियों और लड़कों के लिए क्लबों की सुविधा देना जिससे जो लड़कियों को खेल , फोटोग्राफी , पत्रकारिता और अन्य गैर-पारंपरिक गतिविधियाँ सिखा सके)

• वॉश: मासिकधर्म के दौरान सफाई रखना (मासिकधर्म स्वच्छता प्रबंधन) के बारे में जानकारी देना , स्कूलों में सभी सुविधा वाला साफ़ एवं अलग अलग शौचालयों का निर्माण (उदाहरण: स्वच्छ भारत मिशन दिशानिर्देश पर लिंग आधारित मार्गदर्शिका को विकसित करना , राज्यों के एमएचएम नीति को समर्थन देना)

• सामाजिक नीति: राज्य सरकारों को जेंडर रेस्पोंसिव कैश कार्यक्रमों को विकसित करने में समर्थन देना , स्थानीय शासन में महिलाओं नेतृत्व को समर्थन देना  (उदाहरण: पश्चिम बंगाल में जेंडर रेस्पोंसिव कैश कार्यक्रम चलाया जा रहा लड़कियों को स्कूल जारी रखने के लिए प्रेरित करने के उद्देश से , झारखंड में महिला पंचायत नेताओं के लिए संसाधन केंद्र का निर्माण )

• आपदा जोखिम न्यूनिकरण: आपदा जोखिम न्यूनिकरण में कमी लाने के लिएअधिक से अधिक महिलाओं और लड़कियों को जोड़ना (उदाहरण: ग्राम आपदा प्रबंधन समितियों में अधिक से अधिक महिलाओं का नेतृत्व और भागीदारी)

लाडो अभियान, ग्राम – बम्भोर, जिला टोंक, जयपुर, राजस्थान, भारत से प्राप्त मेरिट प्रमाणपत्र दिखाते हुए आदर्श अचीवर छात्र/छात्रा सुभाष और मनीषा

इसके अलावा, तीन क्रॉस-कटिंग थीम सभी परिणामों का समर्थन करेगा :

• संयुक्त C4D- लैंगिक रणनीति: यूनिसेफ का संचार विकास ( C 4 D) टीम सामाजिक और व्यवहारिक परिवर्तन के संप्रेषण विकसित करता है. जोकि असमान सामाजिक प्रथाओं को बदलने में बदलने में मद्द करता है .

 • लड़कियों के समान अधिकार को समर्थन व बढ़ावा देना: यूनिसेफ क्मुनिकेशन अड्वोकसी एंड पार्टनरशिप टीम मीडिया , इन्फ़्लुइंसर व गेमचेंजर के साथ   साझेदारी में काम करती है , 2018-2022 के कार्यक्रम में लड़कियों और लड़कों के समान अधिकार और महत्व को शामिल किया गया है..  

• लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षित को बढ़ाने के साथ साथ बेहतर बनाना: यूनिसेफ इंडिया ने कुछ राज्यों में महिलाओं और लड़कियों की क्षमता विकास और स्वतंत्रता में सुधार के लिए नए भागीदारों के साथ कई  कार्यक्रमों पर काम करना शुरू किया है , जिससे वे  स्कूलों और अस्पतालों में सरकारी सेवाएं कर सकेंगी ।

रणनीतिक साझेदारी

यूनिसेफ इंडिया द्वारा राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर समर्थित मुख्य साझेदार/पार्टनर में महिला एवं बालविकास मंत्रालय शामिल है और विशेष रूप से बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम में इसका नेतृत्व | लैंगिक समानता को समर्थन देने के लिए यूनिसेफ इंडिया अन्य यूएन संस्थाओं के साथ करीबी रूप से काम कर रही है जिस मे मुख्य रूप से यूएन पापुलेशन फण्ड और यूएन वीमेन शामिलहैं| लैंगिक विशेषज्ञ और सक्रिय कार्यकर्ताओं सहित नागरिक संगठन भी मुख्य सहयोगी हैं| 

भारत में बाल-विवाह समाप्ति पर संक्षेपण

अतुल ठाकोर समझाते हैं, "कम उम्र में शादी लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए हानिकारक है| बनास कांठा के इस 17 वर्षीय लड़के का विवाह एक साल पहले इसकी हम उम्र लड़की स

बाल विवाह को समाप्त कर, बचपन को सुरक्षित करें

लड़कियों को सूचना, कौशल और समर्थन नेटवर्क के साथ सशक्त बनाना।

भारत में बाल-विवाह की समाप्ति: प्रेरक एवं रणनीति

भारत ने अनेकों नीतियों, कानून और कार्यक्रमों के माध्यम से बाल-विवाह समाप्त करने के अपने संकल्प को व्यक्त किया है|

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लैंगिक भेदभाव । Gender discrimination in hindi

Posted by P B Chaudhary | 💡 Social and Politics

लैंगिक भेदभाव या लैंगिक असमानता समाज की वो कुरीति है जिसकी वजह से महिलाएं उस सामाजिक दर्जे से हमेशा वंचित रही जो दर्जा पुरुष वर्ग को प्राप्त है।

आज ये एक ज्वलंत मुद्दा है। इस लेख में लैंगिक भेदभाव (Gender discrimination) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

लैंगिक भेदभाव

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लैंगिक भेदभाव क्या है?

स्त्री-पुरुष मानव समाज की आधारशिला है। किसी एक के अभाव में समाज की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन इसके बावजूद लैंगिक भेदभाव एक सामाजिक यथार्थ है।

लैंगिक भेदभाव से आशय लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव से है, जहां स्त्रियों को पुरुषों के समान अवसर नहीं मिलता है और न ही समान व्यवहार।

स्त्रियों को एक कमजोर वर्ग के रूप में देखा जाता है और उसे शोषित और अपमानित किया जाता है। इस रूप में स्त्रियों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार को लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) कहा जाता है।

आइये अब समझते हैं कि लैंगिक भेदभाव की शुरुआत कहाँ से होती है। पर इससे पहले आपको बता दूं कि अगर आपको Age Calculate करनी है, तो आप दिए गए Online Tool का इस्तेमाल कर सकते हैं – Age Calculator Online

लैंगिक भेदभाव की शुरुआत कहाँ से होती है?

इसकी शुरुआत परिवार से ही समाजीकरण (Socialization) के क्रम में प्रारंभ होती है, जो आगे चलकर पोस्ट होती जाती है। परिवार  मानव की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। यह समाज का आधारशिला है।

समाज में जितने भी छोटे-बड़े संगठन हैं, उनमें परिवार का महत्व सबसे अधिक है यह मानव की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति से संबंधित है।

व्यक्ति जन्म से जैविकीय प्राणी होता है और जन्म से ही लिंगों के बीच कुछ विशेष भिन्नताओं  को स्थापित और पुष्ट करती है। बचपन से ही लड़कों व लड़कियों के लिंग-भेद के अनुरूप व्यवहार करना, कपड़ा पहनना एवं खेलने के ढंग आदि सिखाया जाता है। यह प्रशिक्षण निरंतर चलता रहता है, फिर जरूरत पड़ने पर लिंग अनुरूप सांचे में डालने  के लिए बाध्य किया जाता है तथा यदा-कदा सजा भी दी जाती है।

बालक व बालिकाओं के खेल व खिलौने इस तरह से भिन्न होते हैं कि समाज द्वारा परिभाषित नर-नारी के धारणा के अनुरूप ही उनका विकास हो सके। सौंदर्य के प्रति अभिरुचि  की आधारशिला भी बाल्यकाल  से ही लड़की के मन में अंकित कर दी जाती है, इस प्रक्रिया में बालिका के संदर्भ में सौंदर्य को बुद्धि की तुलना में प्राथमिकता दी जाती है।

कहने का अर्थ ये है कि जहां समाज में लड़कों के बौद्धिक क्षमताओं को प्राथमिकता दी जाती है वहीं लड़कियों के बौद्धिक क्षमताओं को दोयम दर्जे का समझ जाता है।

समाज द्वारा स्थापित ऐसी अनेक संस्थाएं या व्यवस्थाएं हैं जो नारी की प्रस्थिति को निम्न बनाने में सहायक होती है, जैसे कि –

(1) पितृ-सतात्मक समाज (Patriarchal society)

पितृ-सतात्मक भारतीय समाज आज भी महिलाओं की क्षमताओं को लेकर, उनकी आत्म-निर्भरता के सवाल पर पूर्वाग्रहों से ग्रसित है। स्त्री की कार्यक्षमता और कार्यदक्षता को लेकर तो वह इस कदर ससंकित है कि नवाचार को लेकर उनके किसी भी प्रयास को हतोत्साहित करता दिखता है।

देश में आम से लेकर ख़ास व्यक्ति तक लगभग सभी में यह दृष्टिकोण व्याप्त है कि स्त्री का दायरा घर की चारदीवारी तक ही होनी चाहिए। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि स्त्रियों की लिंग-भेद आधारित काम एवं अधीनता जैसी असमानता जैविक नहीं बल्कि सामाजिक – सांस्कृतिक मूल्यों, विचारधाराओं और संस्थाओं की देन है।

आज सामाजिक असमानता एक सार्वभौमिक तथ्य है और यह प्रायः सभी समाजों की विशेषता रही है भारत की तो यह एक प्रमुख समस्या है। यहाँ जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जितनी सुविधाएं एवं स्वतंत्रता पुरुषों को प्राप्त है उतनी स्त्रियों को नहीं।

इस बात की पुष्टि विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी 15वीं वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक 2021 की रिपोर्ट से हो जाती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत 156 देशों की सूची में 140वें स्थान पर है।

भारत की स्थिति इस मामले में कितनी ख़राब है इसका पता इससे चलता है कि नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका भी भारत से अच्छी स्थिति में है।

यहाँ से देखें – भारतीय राजव्यवस्था टॉपिक वाइज़ लेख

(2) लड़का और लड़की के शिक्षा में अंतर

यदि हम भारत में लड़कियों की शिक्षा की बात करें तो स्वतंत्रता के बाद अवश्य ही लड़कियों की साक्षरता दर बढ़ी है, लेकिन लड़कियों को शिक्षा दिलाने में वह उत्साह नहीं देखी जाती है। भारतीय परिवार में लड़के की शिक्षा पर धन व्यय करने की प्रवृति है क्योंकि वे सोचते है कि ऐसा करने से ‘धन’ घर में ही रहेगा

जबकि बालिकाओं के शिक्षा के बारे में उनके माता–पिता की यह सोच है कि उन्हें शिक्षित करके आर्थिक रूप से हानि ही होगी क्योंकि बेटी तो एक दिन चली जाएगी। शायद इसीलिए भारत में महिला साक्षरता की दर पुरुषों की अपेक्षा इतनी कम है:

सन् 1991 की जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता की दर 32 प्रतिशत एवं पुरुष साक्षरता 53 प्रतिशत थी। 2001 की जनगणना के अनुसार पुरुष साक्षरता 76 प्रतिशत थी तो महिलाओं की साक्षरता 54 प्रतिशत थी।

2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष साक्षरता 82.14 प्रतिशत है एवं महिला साक्षरता 65.46 प्रतिशत है। जिनमें आन्ध्र-प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में स्त्री पुरुष साक्षरता में 25 प्रतिशत का अंतर हैं।

इस सब के बावजूद भी जो लडकियाँ आत्मविश्वास से शिक्षित होने में सफल हो जाती है और पुरुषों के समक्ष अपना विकास करना चाहती है, उन्हें पुरुषों के समाज में उचित सम्मान तक नहीं मिलता है। यहाँ तक कि नौकरियों में महिला कर्मचारियों को पुरुषों के मुकाबले कम वेतन मिलता है।

इस बात की पुष्टि लिंक्डइन अपार्च्युनिटी सर्वे-2021 से होती है। इस सर्वे के अनुसार देश की 37 प्रतिशत महिलाएं मानती हैं कि उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है, जबकि 22 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि उन्हें पुरुषों की तुलना में वरीयता नहीं दी जाती है।

लड़कियों के प्रति किया जाने वाला यह भेदभाव बचपन से लेकर बुढ़ापे तक चलता है। शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में यह भेदभाव अधिक देखने को मिलता हैं। अनुमान है की भारत में हर छठी महिला की मृत्यु लैंगिक भेदभाव के कारण होती हैं।

यहाँ से देखें – भारत में आरक्षण [Reservation in India] [1/4]

(3) लैंगिक भेदभाव को प्रोत्साहन देने वाली मानसिकता

अनेक पुरुष-प्रधान परिवारों में लड़की को जन्म देने पर माँ को प्रतारित किया जाता हैं। पुत्र प्राप्ति के चक्कर में उसे बार-बार गर्भ धारण करना पड़ता हैं और मादा भ्रूण होने पर गर्भपात करना पड़ता हैं।

यह सिलसिला वर्षो तक चलता रहता है चाहे महिला की जान ही क्यों न चला जाए। यही कारण है जिससे प्रति हज़ार पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या हमेशा कम रही है।

जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 1901 में प्रति हजार पुरुषों पर 972 औरतें थी। 1951 में औरतों की संख्या प्रति हजार 946 हो गई, जो कि 1991 तक आते-आते सिर्फ 927 रह गई।

सन् 2001 की जनगणना की रिपोर्टों के अनुसार यह संख्या 933 हुई और 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार ये 940 तक पहुंची है।

इस घटते हुए अनुपात का प्रमुख कारण समाज का नारी के प्रति बहुत ही संकीर्ण मानसिकता है। अधिकांश परिवार यह सोचते हैं की लड़कियां न तो बेटों के समान उनके वृद्धावस्था का सहारा बन सकती है और ना ही दहेज ला सकती है। इस प्रकार की मानसिकता वाले समाज में महिलाओं के लिए रहना कितना दुष्कर होगा; ये सोचने वाली बात है।

(4) लैंगिक भेदभाव के अन्य कारक

▪️ वैधानिक स्तर पर पिता की संपत्ति पर महिलाओं का पुरुषों के समान ही अधिकार है लेकिन आज भी भारत में व्यावहारिक स्तर पर पारिवारिक संपत्ति में महिलाओं के हक़ को नकार दिया जाता है।

▪️ राजनैतिक भागीदारी के मामलों में अगर पंचायती राज व्यवस्था को छोड़ दें तो उच्च वैधानिक संस्थाओं में महिलाओं के लिये किसी प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। संसद में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का बिल अभी भी अधर में लटका हुआ है।

▪️ कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जैसे कि मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश एवं चंडीगढ़ आदि को छोड़ दें तो वर्ष 2017-18 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey) के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में महिला श्रम शक्ति (Labour Force) और कार्य सहभागिता (Work Participation) की दर में कमी आयी है।

▪️ महिलाओं के द्वारा किए गए कुछ कामों को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में नहीं जोड़ा जाता है जैसे कि महिलाओं द्वारा परिवार के खेतों और घरों के भीतर किये गए अवैतनिक कार्य (जैसे खाना बनाना, बच्चे की देखभाल करना आदि)।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का एक अध्ययन बताता है कि अगर भारत में महिलाओं को श्रमबल में बराबरी मिल जाए तो GDP में 27 प्रतिशत तक का इजाफा हो सकता है।

यहाँ से देखें – वर्टिकल एवं हॉरिजॉन्टल आरक्षण में अंतर

लैंगिक भेदभाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?

▪️ कहने को तो लड़के और लड़कियाँ एक ही सिक्के के दो पहलू है पर लड़कियाँ सिक्के का वो पहलू है, जिन्हें दूसरे पहलू (लड़कों) द्वारा दबाकर रखा जाता हैं। समस्या की मूल जड़ इसी सोच के साथ जुड़ी है, जहां लड़कों को बचपन से यही सिखाया जाता है कि वे परिवार के भावी मुखिया हैं और लड़कियों को यह बताया जाता है कि वे तभी अच्छी मानी जाएंगी, जब वे हर स्थिति में पहली प्राथमिकता परिवार को देंगी।

‘प्रभुत्व’ का भाव पुरुषों के हिस्से और देखभाल का भाव स्त्री के हिस्से मान लिया जाता है। ये दोनों भाव पुरुष और स्त्री के व्यक्तित्व को ऐसे गढ़ देते हैं कि वे इस खोल से निकलने की कोशिश ही नहीं करते। इसके लिए पुरुष वर्ग को खुद आगे बढ़कर अपने प्रभुत्व के भाव को स्त्रियों के साथ साझा करना होगा और उन कामों को जिसे स्त्रियों का माना जाता है उसमें सहयोग करना होगा।

▪️ यूनीसेफ का कहना है कि घर व बाहर, दोनों जगह के कार्यों का दबाव स्त्रियों को शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार कर रहा है, ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि – घर के काम में पुरुष सदस्य सहयोग करें, पिता का दायित्व सिर्फ आर्थिक दायित्वों की पूर्ति से ऊपर उठकर बच्चों की देखभाल तक हो। इससे समानता का भाव बढ़ेगा और स्त्री खुद को अन्य जरूरी कामों में संलग्न कर पाएगी।

▪️ भारतीय समाज में स्त्री को बड़े ही आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया है। देवियों के विभिन्न रूपों में सरस्वती, काली, लक्ष्मी, दुर्गा आदि का वर्णन मिलता है।

यहाँ तक की भारत को भी भारतमाता के रूप में जाना जाता है। परन्तु व्यवहार में स्त्रियों को उचित सम्मान तक नहीं मिलता है। इसके लिए पुरुष वर्ग को अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा ताकि वे स्त्रियों को उसी सम्मान और आदर के भाव से देखें जो वह खुद अपने लिए अपेक्षा करता है।

▪️ लड़कियों को उच्च शिक्षा ,  कौशल विकास ,  खेल कूद आदि में प्रोत्साहन देकर सशक्त बनाया जा सकता है। इसके लिए समाज को लड़कियों के प्रति अपनी धारणा व सोच बदलनी पड़ेगी और सरकार को भी उचित कानून बनाकर या जागरूकता या निवेश के जरिये महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना होगा।

▪️ चूंकि लड़कियों को शुरू से ही काफी असमानताओं का सामना करना पड़ता है इसीलिए हमें लड़कियों को एक प्लैटफ़ार्म देना होगा जहाँ वे अपनी चुनौतियों को साझा कर सके, अपने लिए एक सही विकल्प तलाश कर सकें और अपने वैधानिक अधिकार, कर्तव्य एवं शक्तियों को पहचान सकें।

यहाँ से देखें – कहानियाँ

लैंगिक असमानता को समाप्त करने के लिए किया जा रहा प्रयास

▪️ बालिकाओं के संरक्षण और सशक्तिकरण के उद्देश्य से जनवरी 2015 में ‘ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ’ अभियान की शुरुआत की गई। जो कि बेटियों के अस्तित्व को बचाने एवं उसका संरक्षण करने की दिशा में बहुत बड़ा कदम माना जाता है।

इसके साथ ही वन स्टॉप सेंटर योजना ’, ‘ महिला हेल्पलाइन योजना ’ और ‘ महिला शक्ति केंद्र ’ जैसी योजनाओं के द्वारा महिला सशक्तीकरण का सरकारी प्रयास सराहनीय है।

▪️ सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे महिलाओं तक पहुंचे इसके लिए जेंडर बजटिंग का चलन बढ़ रहा है। दरअसल जब किसी देश के बजट में महिला सशक्तीकरण के लिए अलग से धन आवंटित किया जाये तो उसे जेंडर बजटिंग कहा जाता है।

▪️ यूनिसेफ इंडिया द्वारा लैंगिक समानता स्थापित करने की दिशा में काफी कुछ किया जा रहा है। इसके लिए देश में 2018-2022 तक चलने वाले कार्यक्रम का निर्माण किया गया है जिसके तहत लिंग आधारित असमानता एवं विकृत्यों को चिन्हित कर उसका उन्मूलन करने का प्रयास किया जाएगा। इस पूरे कार्यक्रम को यहाँ क्लिक करके देख सकते हैं।

कुल मिलाकर लैंगिक भेदभाव को मिटाने के लिए काफी कुछ किया गया है और काफी कुछ अभी भी किए जाने की जरूरत है। खासकर के समान वेतन, मातृत्व, उद्यमिता, संपत्ति और पेंशन जैसे मामलों में लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए आगे कड़े प्रयत्न करने होंगे। महिलाओं में आत्मविश्वास और स्वाभिमान का भाव पैदा हो इसके लिए पुरुषों के समान अधिकार और आर्थिक स्वतंत्रता को सुदृढ़ करना होगा।

References, लैंगिक भेदभाव शोध पत्र https://en.wikipedia.org/wiki/2011_Census_of_India लैंगिक विषमता के समांतर सवाल – जनसत्ता

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gupteshwar kumar

लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने के उपायों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

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Gender Equality Essay in Hindi – लिंग समानता पर निबंध

Gender Equality Essay in Hindi: समानता या गैर-भेदभाव वह राज्य है जहां हर व्यक्ति को समान अवसर और अधिकार मिलते हैं। समाज का प्रत्येक व्यक्ति समान स्थिति, अवसर और अधिकारों के लिए तरसता है। हालांकि, यह एक सामान्य अवलोकन है कि मनुष्यों के बीच बहुत भेदभाव मौजूद है। सांस्कृतिक अंतर, भौगोलिक अंतर और लिंग के कारण भेदभाव मौजूद है। लिंग पर आधारित असमानता एक ऐसी चिंता है जो पूरी दुनिया में प्रचलित है। 21 वीं सदी में भी, दुनिया भर में पुरुष और महिलाएं समान विशेषाधिकार प्राप्त नहीं करते हैं। लैंगिक समानता का अर्थ राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा और स्वास्थ्य पहलुओं में पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान अवसर प्रदान करना है।

Gender Equality Essay in Hindi – लिंग समानता पर निबंध

Gender Equality Essay in Hindi

लिंग समानता का महत्व

एक राष्ट्र प्रगति कर सकता है और उच्च विकास दर तभी प्राप्त कर सकता है जब पुरुष और महिला दोनों समान अवसरों के हकदार हों। समाज में महिलाओं को अक्सर मक्का में रखा जाता है और उन्हें मजदूरी के मामले में स्वास्थ्य, शिक्षा, निर्णय लेने और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने से परहेज किया जाता है।

सामाजिक संरचना जो लंबे समय से इस तरह से प्रचलित है कि लड़कियों को पुरुषों के समान अवसर नहीं मिलते हैं। महिलाएं आमतौर पर परिवार में देखभाल करने वाली होती हैं। इस वजह से, महिलाएं ज्यादातर घरेलू गतिविधियों में शामिल होती हैं। उच्च शिक्षा, निर्णय लेने की भूमिका और नेतृत्वकारी भूमिकाओं में महिलाओं की कम भागीदारी है। यह लैंगिक असमानता किसी देश की विकास दर में बाधा है। जब महिलाएं कार्यबल में भाग लेती हैं तो देश की आर्थिक विकास दर बढ़ जाती है। लैंगिक समानता आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ राष्ट्र की समग्र भलाई को बढ़ाती है।

लिंग समानता कैसे मापी जाती है?

देश के समग्र विकास को निर्धारित करने में लैंगिक समानता एक महत्वपूर्ण कारक है। लैंगिक समानता को मापने के लिए कई सूचकांक हैं।

Gender-Related Development Index (GDI) – GDI मानव विकास सूचकांक का एक लिंग केंद्रित उपाय है। जीडीआई किसी देश की लैंगिक समानता का आकलन करने में जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और आय जैसे मापदंडों पर विचार करता है।

लिंग सशक्तीकरण उपाय (GEM) – इस उपाय में बहुत अधिक विस्तृत पहलू शामिल हैं जैसे राष्ट्रीय संसद में महिला उम्मीदवारों की तुलना में सीटों का अनुपात, आर्थिक निर्णय लेने वाली भूमिका में महिलाओं का प्रतिशत, महिला कर्मचारियों की आय का हिस्सा।

Gender Equity Index (GEI) – GEI लैंगिक असमानता के तीन मानकों पर देशों को रैंक करता है, वे हैं शिक्षा, आर्थिक भागीदारी और सशक्तिकरण। हालांकि, GEI स्वास्थ्य पैरामीटर की उपेक्षा करता है।

ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स – वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने 2006 में ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स की शुरुआत की थी। यह इंडेक्स महिला नुकसान के स्तर की पहचान करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। सूचकांक जिन चार महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर विचार करता है वे हैं आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षिक प्राप्ति, राजनीतिक सशक्तीकरण, स्वास्थ्य और उत्तरजीविता दर।

भारत में लिंग असमानता

विश्व आर्थिक मंच की लैंगिक अंतर रैंकिंग के अनुसार, भारत 149 देशों में से 108 वें स्थान पर है। यह रैंक एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अवसरों के भारी अंतर को उजागर करता है। भारतीय समाज में लंबे समय से, सामाजिक संरचना ऐसी रही है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्णय लेने के क्षेत्रों, वित्तीय स्वतंत्रता आदि जैसे कई क्षेत्रों में महिलाओं की उपेक्षा की जाती है।

एक और प्रमुख कारण, जो भारत में महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार में योगदान देता है, वह है विवाह में दहेज प्रथा। इस दहेज प्रथा के कारण ज्यादातर भारतीय परिवार लड़कियों को बोझ समझते हैं। बेटे के लिए पसंद अभी भी कायम है। लड़कियों ने उच्च शिक्षा से परहेज किया है। महिलाएं समान रोजगार के अवसरों और मजदूरी की हकदार नहीं हैं। 21 वीं सदी में, महिलाओं को अभी भी घर के प्रबंधन गतिविधियों में लिंग पसंद किया जाता है। कई महिलाओं ने परिवार की प्रतिबद्धताओं के कारण अपनी नौकरी छोड़ दी और नेतृत्व की भूमिकाओं से बाहर हो गईं। हालांकि, पुरुषों के बीच ऐसी क्रियाएं बहुत ही असामान्य हैं।

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एक राष्ट्र की समग्र भलाई और विकास के लिए, लैंगिक समानता पर उच्च स्कोर करना सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। लैंगिक समानता में कम असमानता वाले देशों ने बहुत प्रगति की है। लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने भी कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। लड़कियों को प्रोत्साहित करने के लिए कई कानून और नीतियां तैयार की जाती हैं। “बेटी बचाओ, बेटी पढाओ योजना ” (लड़की बचाओ, और लड़कियों को शिक्षित बनाओ) अभियान बालिकाओं के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए बनाया गया है। लड़कियों की सुरक्षा के लिए कई कानून भी हैं। हालाँकि, हमें महिला अधिकारों के बारे में ज्ञान फैलाने के लिए अधिक जागरूकता की आवश्यकता है। इसके अलावा, सरकार को नीतियों के सही और उचित कार्यान्वयन की जांच करने के लिए पहल करनी चाहिए।

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लैंगिक असमानता पर निबंध। Essay On Gender Inequality In Hindi

लैंगिक असमानता पर निबंध। Essay On Gender Inequality In Hindi : नमस्कार साथियों आपका स्वागत हैं,

आज का लेख लिंग असमानता gender Equality & inequality और लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) के विषय पर दिया गया हैं.

लैंगिक समानता और असमानता क्या है इसके कारण परिभाषा समाज में प्रभाव शिक्षा में दुष्प्रभाव आदि बिन्दुओं पर यह लेख दिया गया हैं.

लैंगिक असमानता पर निबंध Essay On Gender Inequality In Hindi

लैंगिक असमानता पर निबंध। Essay On Gender Inequality In Hindi

वर्तमान में भारत की तरफ पूरी दुनिया नजर गाड़ी हुई है और शायद यकीनन हर भारतवासी को अपने भारतीय होने पर गर्व है लेकिन 21वीं सदी के भारत में भी कुछ ऐसे चिंताजनक विषय है.

जो समय के साथ हमें और भी गहराई से विचार करने पर मजबूर करते हैं। समाज महिला और पुरुष दोनों से बनता है।

अगर हमारे एक पैर में चोट लग जाती है तो हम ठीक से चल नहीं पाते। इसी तरह अगर समाज में किसी एक वर्ग की स्थिति चिंताजनक है तो वह समाज न आदर्शवादी समाज बन पाता है और ना अपने आपको तरक्की के रास्ते पर ले जा सकता है। 

क्योंकि समाज के संपूर्ण सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण होती है अगर महिलाओं की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण ना समझी जाए तो समाज अपने आप में आधा रह जाएगा जिससे उसका सतत विकास संभव नहीं होगा।

भारत जैसे विशाल पारंपरिक, लोकतांत्रिक और एक आदर्शवादी देश में लैंगिक असमानता कहे तो एक कलंक के समान है।

महर्षि दयानंद सरस्वती, राम मोहन रॉय, महात्मा गांधी, भीमराव अंबेडकर जैसे अनेकों महापुरुषों ने समाज में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए प्रयास किए और कुछ हद तक सफल भी हुए।

परंतु लैंगिक असमानता जैसी कुरीति को समाज से मिटा देना इतना आसान नहीं है। जब तक हर भारतीय अपनी व्यवहारिक जिम्मेदारी समझते हुए अपने व्यवहार और परंपराओं में परिवर्तन नहीं करेंगे तब तक ऐसी कुरीति को झेलना ही पड़ेगा।

क्योंकि बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए समय-समय पर हमें अपनी सामाजिक व्यवस्था में बदलाव की जरूरत होती है।

यानी सदियों-सदियों तक प्रयास करके भी हम आज तक लैंगिक असमानता को पूर्णतया खत्म नहीं कर सके हैं।

हर रोज ऐसी घटनाएं देखने को सुनने को मिलती है जो लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाली होती है। समाज में आपसी कपट, राजनीति की लालसा, नेतृत्व की भावना जैसे अवगुण समाज के पतन का कारण बनते हैं।

विश्व बैंक समूह की एक आर्थिक रिपोर्ट यह बताती है कि लैंगिक असमानता से विश्व भर की अर्थव्यवस्था में करीब 160 खराब डॉलर का नुकसान हुआ है।

आर्थिक आंकड़े के नुकसान का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है जिसकी वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था कितनी पीछे चल रही है क्योंकि संपूर्ण समाज का योगदान है समाज के विकास का आधार होता है

दुनिया भर में महिलाओं पर बढ़ते अपराध यौन उत्पीड़न सामाजिक एवं आर्थिक शोषण जैसी घटनाएं भी लैंगिक असमानता को बढ़ावा दे रही है।

लैंगिक समानता कब से है, इसके कारण, इसके प्रभाव और आने वाले समय में इसकी स्थिति को लेकर हम इस आलेख में चर्चा करेंगे।

 लैंगिक समानता का शाब्दिक अर्थ (Meaning of gender equality)

लैंगिक समानता का अर्थ है समाज में लैंगिक आधार पर भेदभाव यानी महिलाओं के साथ भेदभाव। जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तौर पर समाज में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कितनी प्राथमिकता है।

विभिन्न संस्थानों के द्वारा प्रकाशित होने वाले साल दर साल आंकड़े लैंगिक असमानता को एक सामाजिक चुनौती के रूप में स्वीकार करने के लिए मजबूर करते हैं।

लैंगिक असमानता जैसी एक विशाल चुनौती के लिए कोई एक कारक जिम्मेदार नहीं है बल्कि हमारे अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग रीति रिवाज अर्थात पारिवारिक एवं धार्मिक मान्यताएं सबसे बड़ा कारण हैै।

भारत के देश के विभिन्न समुदायों में लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाली कई ऐसी प्रथाएं थी जिनका किसी समाज विशेष में पूर्णतया चलन था और वह समाज के प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करती थी।

इसके अलावा कुछ ऐसी कुरीतियां भी समाज में थी जिनकी वजह से महिलाओं को अपना जीवन जीने  स्वतंत्रता भी नहीं थीी। (सती प्रथा – विधवा महिला को अपने पति की चिता में जीवित आहुति देनी पड़ती थी।,

जोहर- यह प्रथा राजपूत समाज में थी जिसमें हारे हुए राजपूत राजा की पत्नी विरोधियों के शोषण और उत्पीड़न से बचने के लिए अपनी इच्छा से आत्महत्या कर लेते थी) जिनकी वजह से समाज में महिलाओं का शोषण होता रहा।

लैंगिक असमानता के कारण (Due to gender inequality)

लैंगिक असमानता का सबसे प्रमुख कारण है समाज का पितृसत्तात्मक होना और महिलाओं को विकास के समान अवसर उपलब्ध ना होना।

जहां पुरुष वर्ग समाज का स्वामी समझा जाता है और महिलाएं आजीवन उन्ही रीति-रिवाजों को निभाती चली जाती है जो पुरुषों के द्वारा निर्देशित हो।

जैसे मुस्लिम धर्म में पुरुष के द्वारा पत्नी को तीन बार तलाक कहने से धार्मिक व सामाजिक रूप से दोनों एक दूसरे के पति पत्नी नहीं रह जाते। परंतु संवैधानिक रूप से अब यह रिवाज अपराध एवं दंडनीय है।

संवैधानिक रूप से संपत्ति का व्यवहार होने के बावजूद भी व्यवहारिक रूप से भारतीय समाज में महिलाओं को संपत्ति का अधिकार नहीं है।

महिलाओं की आर्थिक स्थिति कमजोर होने का यह सबसे बड़ा कारण है। महिलाओं के द्वारा किए गए घरेलू अथवा अवैतनिक कार्यों को देश के आर्थिक विकास के आंकड़ों में शामिल नहीं किया जाता।

पंचायती राज व्यवस्था को छोड़ दिया जाए तो भारतीय संविधान में कहीं भी राजनीतिक स्तर पर महिलाओं को आरक्षण नहीं है।

जिसकी वजह से समाज में महिलाओं  की आवश्यकताएं एवं उनकी समस्याएं देश के राजनीतिक तौर पर प्रमुख संस्था तक नहीं पहुंच पाती।

समाज की संकीर्ण मानसिकता, सामाजिक सुरक्षा इत्यादि के कारण भारत में महिलाएं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों से अभी भी बहुत पीछे हैं।

वर्ल्ड इकोनामिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार यमन, पाकिस्तान और सीरिया शीर्ष तीन देश है जहां महिलाओं का शोषण अत्यधिक है या दूसरे शब्दों में कहे तो लैंगिक असमानता का ज्यादा प्रभाव इन 3 देशों में में देखने को मिलता है।

आंकड़ों की बात की जाए तो 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लिंगानुपात 943 है अर्थात 1000 पुरुषों पर 943 महिलाएंं।

अवसरों की उपलब्धता मेंअपवाद के तौर पर भारत एक 153 देशों में एकमात्र देश है जिसमें महिलाओं की आर्थिक क्षेत्र में भागीदारी राजनीतिक क्षेत्र की तुलना में कम है।

कहां कहां देखने को मिलती है लैंगिक असमानता

समाज के विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक असमानता अखबार, टेलीविजन के माध्यम से या प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलती है।

नौकरशाही –

समाज की व्यवस्था का आधार नौकरशाही होती हैं।लेकिन लैंगिक असमानता यहां भी देखने को मिलती है। जैसे किसी बड़े निर्णय के निर्धारण में आमतौर पर पुरुषों की नीतियों अथवा सलाह को ही प्राथमिकता दी जाती है।

विभिन्न नीतियों अथवा योजनाओं की गाइडलाइंस तैयार करने के लिए बनाई गई समितियां भी पुरुष कर्मचारियों की अध्यक्षता में ही रहती है।

खेल जगत –

खेलों में भी लैंगिक असमानता बहुत देखने को मिलती है। पुरुष खिलाड़ियों का वेतन महिला खिलाड़ियों के वेतन से अक्सर ज्यादा होता है।

सामाजिक तौर पर भी पुरुष खिलाड़ियों को अधिक सम्मान मिलता है। इसके अलावा पुरुषों के खेलों को अधिक ख्याति प्राप्त है।

मनोरंजन जगत –

मनोरंजन के जगत में भी लैंगिक असमानता अपने पैर पसार चुकी है। जैसे किसी फिल्म को अभिनेता विशेष के नाम से ही ज्यादा जाना जाता है एवं प्रसिद्धि मिलती है। और अभिनेता ही मुख्य किरदार के रूप में जाने जाते हैं।

बाजारी कार्यशैली –

अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में लैंगिक असमानता सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। लगभग हर असंगठित क्षेत्र मैं समान कार्य के लिए वेतन महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मिलता है एवं महिला कर्मचारियों को इतना महत्व भी नहीं दिया जाता।

स्वामित्व में असमानता –

भारत में संवैधानिक तौर पर महिलाओं को स्वामित्व का अधिकार दिया गया है परंतु जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। जब महिला बाल्यावस्था मैं या व्यस्क होती है तब सारे अधिकार उसके पिता के पास होते हैं।

शादी के बाद महिलाओं को अपने पति के कहने पर चलना होता है तथा वृद्धावस्था में महिलाएं अपने बच्चों के नियंत्रण में रहती है। हालांकि शहरी इलाकों में यह स्थिति कुछ हद तक बदली है

परंतु ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के पास स्वामित्व का अधिकार व्यवहारिक तौर पर कहीं नाम मात्र ही देखने को मिलता है.

जो की महिलाओं के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण है और यह लैंगिक असमानता को और मजबूती प्रदान करता है जो देश के लिए चिंतनीय है।

शिक्षा जगत –

शिक्षाा के क्षेत्र में भी लैंगिक असमानता शिक्षित समाज के लिए एक बड़ी चुनौती है। कम उम्र में शादी कर देना सामाजिक सुरक्षा को लेकर जो स्थितियां भारत के विभिन्न समुदायों में है उनकी वजह से महिलाओं की शादी कम उम्र में कर दी जाती है।

जिसकी वजह से देश में महिला साक्षरता पुरुषों की तुलना में बहुत कम है। समाज की व्यवस्था के चलते महिलाओं के पढ़ने लिखने को लेकर ग्रामीण भारत की मानसिकता अभी काफी संकीर्ण है।

जैसे तेलुगू भाषा में एक कहावत है- ‘लड़की को पढ़ाना दूसरे के बगीचे के पेड़ को पानी देने जैसा है जिसका फल हमें नहीं मिलता।’

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभिन्न समुदायों में महिलाओं को लेकर समाज के क्या मानसिकता है।

लैगिकक असमानता को खत्म करने पर सरकारी एवं न्यायपालिका सक्रियता से कार्य कर रही है। उदाहरण के तौर पर- वर्तमान में व्याप्त है ऐसे कुछ उदाहरण जो लैंगिक समानता को बढ़ावा दे रहे थे परन्तु उन पर रोक लगी है।

कुछ सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक मुद्दे जिन पर रोक लगाई गई है, तीन तलाक का कानून, हाजी दरगाह में प्रवेश इत्यादि कुछ प्रमुख उदाहरण है।

भारत ने मैक्‍सिको कार्ययोजना (1975), नैरोबी अग्रदर्शी (Provident) रणनीतियाँ (1985) और लैगिक समानता तथा विकास एवं शांति पर संयुक्त‍ राष्‍ट्र महासभा सत्र द्वारा 21वीं शताब्‍दी के लिये अंगीकृत “बीजिंग डिक्लरेशन एंड प्‍लेटफार्म फॉर एक्‍शन को कार्यान्‍वित करने के लिये और कार्रवाइयाँ एवं पहलें”  जैसे लैंगिक समानता की पहलों की शुरुआत की है। जो विश्वभर में क्रियान्वित होगी।

अलग-अलग राज्य सरकारों के द्वारा ऐसी अनेकों योजनाएं शुरू की जा रही है जिन से महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन का स्तर ऊपर उठेगा। जैसे ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ााओ’, ‘वन स्टॉप सेंटर योजना शक्ति केंद्र’ ‘उज्जवला योजना’।

जेंडर रेस्पॉन्सिव बजट – महिला सशक्तिकरण एवं शिशु कल्याण के लिए राजकोषीय नीतियों के द्वारा सुधार करना जीआरबी कहलाता हैै। भारत सरकार ने अपने वित्तीय बजट में इस बजट को 2005 में औपचारिक रूप से पहली बार जगह दी थी।

पर तमाम राजनीतिक और न्यायिक प्रयासों के बावजूद जमीनी हकीकत कुछ और ही है यानी लैंगिक असमानता समाज में व्याप्त वह बीमारी है जो सैकड़ों बरसो से अपनेेेे पैर जमाए हुए हैं। असाधारण प्रयासों से ही लैंगिक समानता पर विजय हासिल की जा सकती है।

देश में लैंगिक समानता की आवश्यकता को लेकर सभाएं की जाए, अलग-अलग कार्यक्रम किए जाए, अभियान चलाए जाए, कठोर एवं प्रभावी नीतियां बनाई जाए, कठोर कानून बनाए जाए तथा समाज को शिक्षित किया जाए।

जब तक समाज के पुरुष वर्ग के हर सदस्य को इस भावना से ओतप्रोत नहीं किया जाए कि सबको बराबरी का हकदार बनाने का यह मतलब नहीं है

कि हमारे अधिकार छीन लिए गए हो क्योंकि नीतियों और कानूनों से ज्यादा प्रभाव समाज की मानसिकता का होता है।

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भारत में लैंगिक असमानता (निबंध) Gender Inequality in India in Hindi

Table of Content

इस लेख में आप भारत में लैंगिक असमानता (निबंध) Gender Inequality in India in Hindi पढ़ेंगे। इसमें लैंगिक असमानता की परिभाषा, इतिहास, आँकड़े, प्रकार, कारण, प्रभाव, रोकने के उपायों के विषय में जानकारी दी गई है।

लैंगिक असमानता की परिभाषा Definition of Gender Inequality

असमानता एक बेहद बुरा शब्द है, जो हर तरफ से पक्षपात की तरफ इशारा करता है। लैंगिक असमानता का तात्पर्य ऐसे पक्षपात अथवा असमानता से है, जो लिंग के आधार पर किया जाता है। 

अधिकतर यह पक्षपात महिलाओं के साथ अधिक होता है। लैंगिक असमानता का अर्थ यह नहीं है कि हर तरफ केवल पुरुष अथवा केवल स्त्रियों की संख्या अधिक हो। यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक शब्द है, जो लिंग के आधार पर भेद प्रकट करता है।

सबसे ज्यादा गति शील देशों में हमारा देश भारत भी शामिल है। लेकिन इतनी सफलता के बावजूद भी समाज में आज तक लैंगिक असमानता का दानव जीवित है। यह बहुत पुराने समय से ही लोगों के बीच अपनी जगह बना चुका है। 

लैंगिक असमानता महिलाओं के लिए बेहद दयनीय परिस्थिति होती है, जहां बचपन से लेकर अंत तक उनका शोषण, अपमान और भेदभाव किया जाता है। लैंगिक असमानता का मुख्य कारण पितृसत्तात्मक विचारधारा को ठहराया जा सकता है।

भारत में लैंगिक असमानता का इतिहास History of Gender Inequality in India

इतिहास गवाह है कि जब भी लोग किसी रीति रिवाज का अर्थ अच्छे से नहीं समझने के बावजूद भी उसे अपना लेते हैं, तो वह कुप्रथा में परिवर्तित हो जाती है। लैंगिक असमानता आज व्यापक स्तर पर पहुंच गई है, यह सभी को पता है। लेकिन प्राचीन समय में महिलाओं की स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती जितनी कि आज है।

न जाने कितने ही तरह की प्रथाएं और रीति-रिवाजों ने महिलाओं का जीवन बर्बाद कर दिया है। किंतु प्राचीन समय में वैदिक काल में महिलाओं का वर्चस्व बहुत अधिक था। 

बड़ी-बड़ी सभा और समितियों में भी महिलाएं अपना प्रतिनिधित्व करती थी। यहां तक कि वेदों की रचना करने में योगदान देने वाली लोपामुद्रा तथा अपाला जैसी महान ऋषिकाएं भी उल्लेखित हैं। तो भला हमारा समाज इतना पक्षपाती कैसे बन गया जो पहले ऐसा नहीं था।

जिस तरह स्वेच्छा से किए गए दान को लोगों ने दहेज प्रथा में बदल दिया। इसी प्रकार न जाने कितने ही ऐसे महान रिवाज़ होंगे, जिन्हें लोग समझ नहीं पाए और उसे अंधश्रद्धा में तब्दील कर लिया। 

महिलाओं के प्रति होने वाले अधिकतर पक्षपात इन्हीं अंधश्रद्धा और रीति-रिवाजों के कारण होता है। सती प्रथा, दहेज प्रथा, और न जाने कितने ही अनगिनत प्रथाएं समाज में प्रचलित है।

भारत में लैंगिक असमानता के आँकड़े Gender Inequality in India Statistics 2020-2022

2022 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) द्वारा ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत को 146 देशों में से 135वां स्थान पर प्राप्त हुआ है। 2021 में भारत 156 देशों में 140वें स्थान पर था।

2021 के मुकाबले वर्ष 2022 में महिलाओं की संख्या में पुरुषों के मुकाबले सुधार हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारीक रिपोर्ट में भारत में लगभग 66 करोड़ से अधिक महिलाओं के आंकड़े दर्ज किए गए थे, जो कि अब 2021 से 22 में सुधार हुआ दिखाई दे रहा है। 

लैंगिक असमानता के प्रकार Types of Gender Inequality in India)

घरेलू असमानता.

भारतीय समाज में पुरुषों को अधिक वरीयता दी जाती है। उनकी अपेक्षा महिलाओं को इतनी स्वतंत्रता नहीं होती है। कई बार यह असमानता माता-पिता और परिवार वालों की तरफ से किए जाते हैं। 

पुत्रों को अधिक वरीयता देते हुए आज भी हमारे समाज में लोग कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध को अंजाम देने से भी पीछे नहीं हटते है। अक्सर स्त्रियों को वह करने की छूट नहीं होती है, जो भी वे करना चाहती हैं।

बुनियादी सुविधा में असमानता

यह पूरी तरह से एक अन्याय है, जहां बुनियादी सुविधाओं में भी लैंगिक असमानता किया जाता है। भारत सहित कई एशियाई व दूसरे महाद्वीप के देशों में शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्र में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के लिए कम अवसर मौजूद होते हैं। समाज ऐसा करने में बड़ा ही गर्व और सम्मान महसूस करता है।

स्वामित्व असमानता

स्वामित्व में भी महिलाओं और पुरुषों के बीच एक बड़ी असमानता देखी जाती है। पारिवारिक संपत्ति केवल पुरुषों का ही अधिकार बना रहता है। एक ही परिवार का होने के बावजूद भी माता पिता की संपत्ति पर एक स्त्री का कोई अधिकार नहीं रहता। यह समस्या भारतीय समाज में साफ देखी जा सकती है।

मृत्यु दर असमानता

भारत के कई राज्यों में महिलाओं और पुरुषों के लैंगिक अनुपात में बड़ा फर्क है। अक्सर लोग महिला शिशु की तुलना में पुरुष शिशु को वरीयता देते हैं। 

जिसके कारण उनका बचपन से ही अच्छे से ख्याल रखा जाता है। यही कारण है महिलाओं की मृत्यु दर पुरुषों की तुलना में अधिक है। क्योंकि उन्हें स्वास्थ्य की देखभाल और पोषण युक्त आहार तथा अन्य ज़रूरी चीजें नहीं मिल पाता।

जन्मजात असमानता

लोगों की मानसिकता इतनी गिर गई है कि वह जन्मजात शिशुओं में भी भेद करते हैं। ऐसे ही दूषित मानसिकता वाले लोगों को यदि पता चले कि गर्भ में पल रहा शिशु एक महिला है, तो उसी समय कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध करने में यह लोग बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते हैं। भारत में टेक्नोलॉजी की सहायता से लिंग का चयन करके गर्भपात करना एक साधारण बात हो गई है।

विशेष अवसर असमानता

रूढ़िवादी और पुरानी सोच लिए हुए लोग अक्सर बच्चियों को वह अवसर नहीं प्रदान करते हैं, जो कि भविष्य निर्माण के लिए बेहद आवश्यक होते हैं। उदाहरण स्वरूप शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण अवसरों में अक्सर लड़कियां पीछे रह जाती हैं, क्योंकि उन्हें ऐसे अवसर ही नहीं दिए जाते हैं।

रोजगार असमानता

अक्सर रोजगार के साधनों में भी महिला और पुरुष कार्यकर्ताओं में पक्षपात किया जाता है। पुरुषों को उनके काम के लिए अधिक वेतन प्रदान किया जाता है, जबकि यदि उतना ही कार्य महिला करें तो लोग उसे ज्यादा महत्व नहीं देते और वेतन भी कम प्रदान करते हैं। इसके अलावा पदोन्नति के मामले में भी लैंगिक असमानता उत्पन्न होती है।

भारत में लैंगिक असमानता का कारण Causes of Gender Inequality in India

निरक्षर का तात्पर्य ऐसे लोगों से है, जिनके पास भले ही बड़ी-बड़ी शिक्षा की डिग्रियां मौजूद हों लेकिन उनकी विचारधारा वही घिसी पिटी होती है। समानता और मानवता की शिक्षा बचपन से ही दी जानी चाहिए।

गरीबी एक बहुत बड़ा कारण है, लैंगिक असमानता का। लोग बेटी पैदा होने पर इसे एक बहुत बड़ा कर्ज के रूप में देखते हैं। क्योंकि उन्हें उसके विवाह के लिए दहेज की चिंता सताने लगती है। ऐसे में लोग ज्यादा से ज्यादा पुरुष शिशु को जन्म देने के पक्ष में रहते हैं।

पितृसत्तात्मक व्यवस्था

पुराने समय से चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच की कड़ी अभी भी जारी है। यह व्यवस्था हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। जब तक इस पक्षपाती व्यवस्था में बदलाव नहीं किया जाएगा, तब तक लैंगिक असमानता को खत्म करना असंभव है।

महिलाओं में जागरूकता का अभाव

लैंगिक असमानता को कभी भी खत्म नहीं किया जा, सकता बसरते महिलाएं इसके लिए स्वयं जागरूक ना हो। आज भी करोड़ों महिलाएं लैंगिक असमानता का शिकार होती हैं क्योंकि वे अपने अधिकारों से वंचित है।

सामाजिक विश्वास

भारतीय समाज में बेटियों को बहुत नाजुक और दायित्व के रूप में देखा जाता है। वह लोग बेटों को अपने वृद्ध आयु में सहारा के रूप में देखते हैं। ऐसे लोगों को किरण बेदी, मैरी कॉम और दूसरी सफल महिलाओं के विषय में जरूर जानना चाहिए।

रोजगार का अभाव

ज्यादातर रोजगार के कामों में पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता है। रोजगार के जितने साधन पुरुषों के लिए मौजूद हैं, उतने महिलाओं के लिए नहीं है। सीमित रोजगार के कारण भी लैंगिक असमानता को बढ़ावा मिलता है।

दुर्लभ राजनीतिक प्रतिनिधित्व

हमारे देश को आजादी मिले कई साल बीत चुके हैं, लेकिन अंग्रेजों के बाद देश पर शासन करने वाले लोग पितृसत्तात्मक है, यह कई मायने में कहना सही साबित होता है। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी तो है लेकिन एक सीमित स्तर पर।

धार्मिक स्वतंत्रता का अभाव

ऐसे हजारों साक्ष्य मौजूद है जो ऊंची आवाज में चिल्ला कर कहते हैं कि जितने भी धार्मिक मान्यताएं हैं, अधिकतर वे महिलाओं पर लागू होते हैं। 

जब धार्मिक नियम कानून एक महिला के मान सम्मान और महत्व पर आ जाए तो यह सरासर गलत हो जाता है। बहुत से ऐसे धार्मिक कानून है, जो महिलाओं के स्वतंत्रता को खोखला करते हैं।

पुरानी प्रथाएं

दुनियां कितनी आगे बढ़ गई है, लेकिन आज भी हम पुराने विचारों को ही लेकर बैठे हैं। जब तक समाज से पूरी तरह से कुप्रथा नष्ट नहीं होंगे, तब तक महिलाओं को उनका खोया हुआ सम्मान और अधिकार वापस नहीं मिल सकेगा।

भारत में लैंगिक असमानता का प्रभाव (effects of gender inequality in india)

सीमित रोजगार.

गौरतलब है कि अधिकतर रोजगार पुरुषों के लिए ही उचित माने जाते हैं। यदि कोई महिला ऐसे किसी रोजगार में प्रतिनिधित्व करती है, तो फिर समाज के ताने भी सुनने पड़ते हैं। इस प्रकार सीमित रोजगार भी असमानता का एक कारण है।

दूषित मानसिकता का पीढ़ी दर पीढ़ी विकास

एक उम्र के बाद यदि लोगों के धारणाओं में परिवर्तन नहीं आया, तो वह जीवन भर उसी विचार को लिए जीते रहेंगे और अपने आने वाली पीढ़ी को भी वही शिक्षा देंगे। इस तरह लैंगिक असमानता पीढ़ी दर पीढ़ी फैलती है।

आर्थिक निर्भरता

ना के बराबर स्वतंत्रता और सीमित रोजगार होने के कारण अधिकतर महिलाओं को अपने परिवार वालों पर अधिक निर्भर होना पड़ता है, जिसके कारण वे हमेशा दबाव महसूस करती हैं।

राजनिति में दुर्लब अवसर

राजनीति में महिलाओं की प्रधानता कई लोगों को रास नहीं आती है। बहुत ही मुश्किल से यदि कोई महिला राजनीति के बड़े पद पर पहुंच भी जाए, तो दूषित मानसिकता वाले लोग उनकी आलोचना करने से पीछे नहीं हटते हैं।

खेल जगत में कम महत्व

खेल की दुनिया में भी लैंगिक असमानता का प्रभाव साफ देखा जा सकता है, जहां किसी स्पर्धा में खेलने वाले पुरुषों को देखने वाली जनता के लिए भीड़ उमड़ती है। लेकिन वही महिला खिलाड़ियों के लिए ना के बराबर दर्शक आते हैं।

विज्ञान क्षेत्र में कठिन प्रवेश

कई लोगों को आज भी लगता है कि महिला पुरुषों के जितना कार्य और उन्नति नहीं कर सकती। विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़े ही मुश्किल से महिलाओं की भागीदारी होती है। यह लैंगिक असमानता को प्रदर्शित करता है।

घरेलू हिंसा का शिकार

कई बार पारिवारिक झगड़े में महिलाओं को अपमान का सामना करना पड़ता है। उन्हें प्रताड़ित भी किया जाता है, जो विशेष तौर पर लैंगिक असमानता को दर्शाता है।

समाजिक समस्याएं

जब पूरा समाज ही दूषित मानसिकता लिए बैठा है, तो भला ऐसी कौन सी सुरक्षित जगह होगी जहां महिलाओं के साथ जादती न की जाए। यह बड़े दुख की बात है कि महिलाओं को केवल उनके कर्तव्य बताएं जाते हैं, लेकिन अधिकारों के विषय में कोई बात नहीं करना चाहता।

सीमित स्वतंत्रता

यह तो हर कोई जानता है कि किस तरह स्वतंत्रता के नाम पर भी महिलाओं के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया जाता है। चाहे परिवार हो या फिर पूरा समाज हर कोई महिलाओं को अपने मुट्ठी में रखना चाहता है।

मनोरंजन जगत में पक्षपात

मनोरंजन जगत भी लैंगिक असमानता से अछूता नहीं रहा है। कई अभिनेत्रियों और कलाकारों को भी इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता है।

लैंगिक असमानता को भारत में कम करने के उपाय how to reduce gender inequality in india

महिला सशक्तिकरण.

संगठन में शक्ति है। यदि महिलाएं सशक्त और स्वयं के अधिकारों के लिए जागरूक हो जाए, तो दुनिया में कोई भी उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकेगा।

दुनिया का सत्य है कि जब आप आर्थिक रूप से मजबूत हो जाते हैं, तो लोगों का मुंह भी बंद हो जाता है। लैंगिक असमानता से लड़ने के लिए यह एक बहुत बड़ा कदम है, कि महिलाओं को खुद आर्थिक निर्भर बनना पड़ेगा।

सरकारी योजनाएं

बीतते समय के साथ सरकार भी कई योजनाएं बेटियों के पक्ष में लाती रहती है। ‘ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ‘ योजना जैसे कई थीम्स लैंगिक समानता को बढ़ावा देती हैं और यह एक बहुत अच्छा कदम है।

परंपरागत धार्मिक विचारधारा

लोगों को अपने पुराने परंपरागत चले आ रहे विचारधारा में बदलाव करने की जरूरत है। तभी समाज में लोगों की सोच महिलाओं के विषय में बदलेंगे।

बच्चियों के जन्म पर आर्थिक सहायता

गरीब और मध्यम वर्ग में बेटी पैदा होने पर सरकार और दूसरी बड़ी संस्थाओं को जरूरतमंद परिवारों की आर्थिक सहायता करनी चाहिए। इससे लोगों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रेरणा मिलेगा।

बड़े पदों पर नियुक्ति

राजनीति हो या फिर कोई बड़ी कंपनी महिलाओं को उनका अधिकार पुनः दिलवाने के लिए लोगों को खुद आगे आना होगा और बड़े पदों पर उनकी क्षमता को परख कर न्याय करते हुए महिलाओं की भी नियुक्ति करनी चाहिए।

कानूनी व्यवस्थाओं का कड़ाई से पालन

भारतीय संविधान में ऐसे कई प्रावधान और नियम कानून है, जिन्हें लोग वास्तविकता में नहीं मानते हैं। लोग अपनी आदत से मजबूर है, यदि इस कानून व्यवस्था को सख्त कर दिया जाए और लोगों को इसका पालन करने के लिए बाध्य किया जाए, तो अवश्य असमानता को समानता में बदला जा सकता है।

शिक्षा पर बल

अगर किसी बेटी को अच्छी शिक्षा प्रदान किया जाता है, तो इससे एक पूरा परिवार शिक्षित बनता है, जिससे समाज में भी साक्षरता आती है। असमानता को दूर करने के लिए महिलाओं की शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

लैंगिक समानता की जागरूकता

अंधविश्वास की तरह कृतियों का पालन करते आए लोगों को जागरूक बनाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। जिससे कि उन्हें लैंगिक समानता का असली इतिहास और इसका महत्व पता चल सके।

अपराध करने की सख्त सजा 

कन्या भ्रूण हत्या, दहेज और गर्भ में लिंग की जांच करने वाले लोग भी एक जीते जाते मनुष्य की हत्या करने वाले अपराधी के बराबर होते हैं। कानूनी अवस्थाएं तो बहुत सारी बनाए गए हैं, लेकिन जरूरत है उन्हें कड़ाई से पालन करने की जिससे लैंगिक समानता को बल मिल सके।

निष्कर्ष Conclusion

इस लेख में आपने भारत में लैंगिक असमानता (Gender Inequality in India in Hindi) के विषय में पढ़ा। आशा है यह लेख आपको जानकारी से भरपूर लगा होगा। अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें।

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नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

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लिंग भेदभाव पर निबंध (Essay on Gender Discrimination in Hindi)

लिंग भेदभाव पर निबंध (Essay on Gender Discrimination in Hindi) लैंगिक समानता या जेंडर समानता वह अवस्था है जब सभी मनुष्य अपने जैविक अंतरों के बावजूद सभी अवसरों, संसाधनों आदि के लिए आसान और समान पहुंच प्राप्त कर सकते हैं।

Essay On Gender discrimination in Hindi

लैंगिक भेदभाव पर निबंध पर 10 पंक्तियाँ ( 10 lines on essay on gender discrimination )

  • लैंगिक भेदभाव का तात्पर्य व्यक्तियों के लिंग के आधार पर उनके साथ असमान व्यवहार से है।
  • यह पूरे इतिहास में एक प्रचलित मुद्दा रहा है और आज भी दुनिया के कई हिस्सों में मौजूद है।
  • लैंगिक भेदभाव कई रूप ले सकता है, जिसमें असमान वेतन, सीमित नौकरी के अवसर और लिंग आधारित हिंसा शामिल हैं।
  • यह बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इसका व्यक्तियों और समाज पर समग्र रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • महिलाएं और लड़कियां अक्सर लैंगिक भेदभाव की प्राथमिक शिकार होती हैं।
  • लैंगिक भेदभाव शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य आवश्यक संसाधनों तक पहुंच को सीमित कर सकता है।
  • यह सामाजिक मानदंडों और दृष्टिकोणों से कायम है जो महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझते हैं।
  • लैंगिक भेदभाव उन पुरुषों और लड़कों को भी प्रभावित कर सकता है जो पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं के अनुरूप नहीं हैं।
  • लैंगिक भेदभाव को संबोधित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें नीतिगत परिवर्तन, शिक्षा और सांस्कृतिक बदलाव शामिल हैं।
  • एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए लैंगिक समानता हासिल करना आवश्यक है जहां सभी व्यक्तियों को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने का अवसर मिले।

Extra Tips 4 Extra Marks :

Practice essay writing online, लैंगिक असमानता से तात्पर्य (what is gender discrimination in hindi).

  • लैंगिक असमानता का तात्पर्य लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव से है। परंपरागत रूप से समाज में महिलाओं को कमज़ोर वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है।
  • वे घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण, अपमान और भेदभाव से पीड़ित होती हैं। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव दुनिया में हर जगह प्रचलित है। 
  • वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, 2020 के अनुसार भारत 153 देशों में 112वें स्थान पर रहा। इससे साफ तौर पर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हमारे देश में लैंगिक भेदभाव की जड़ें कितनी मज़बूत और गहरी हैं।

चिंताजनक हैं आँकड़े (Essay on gender inequality in hindi)

  • स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता के क्षेत्र में भारत (150वाँ स्थान) का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। 
  • जबकि भारत के मुकाबले हमारे पड़ोसी देशों का प्रदर्शन बेहतर रहा- बांग्लादेश (50वाँ), नेपाल (101),श्रीलंका (102वाँ), इंडोनेशिया (85वाँ) और चीन (106वाँ)। 
  • जबकि यमन (153वाँ), इराक़ (152वाँ) और पाकिस्तान (151वाँ) का प्रदर्शन सबसे खराब रहा।
  • लेकिन भारतीय राजनीति में आज भी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बहुत ही कम है, आकड़ों के अनुसार, केवल 14 प्रतिशत महिलाएँ ही संसद तक पहुँच पाती हैं ( विश्व में 122वाँ स्थान)।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के इस बेहतर प्रदर्शन का कारण यह है कि भारतीय राजनीति में पिछले 50 में से 20 वर्षों में अनेक महिलाएँ राजनीतिक शीर्षस्थ पदों पर रही है। ( इंदिरा गांधी, मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता आदि)
  •  जबकि इस मानक पर वर्ष 2018 में भारत का स्थान 114वाँ और वर्ष 2017 में 112वें स्थान पर रहा। 
  • 153 देशों में किये गए सर्वे में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत राजनीतिक क्षेत्र से कम है।
  • WEF के आँकड़ों के अनुसार, अवसरों के मामले में विभिन्न देशों में आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति इस प्रकार है- भारत (35.4%), पाकिस्तान (32.7%), यमन (27.3%), सीरिया (24.9%) और इराक़ (22.7%)।

मतदाता दिवस

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Essay on Gender Inequality in Hindi

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Read these 4 Essays on ‘Gender Inequality’ in Hindi

Essay # 1. जेण्डर का अर्थ:

स्त्री एवं पुरुष में यदि अन्तर देखें तो कुछ वे अंतर दिखायी देते हैं जो शारीरिक होते हैं, जिन्हें हम प्राकृतिक अन्तर कहते हैं । इसे लिंग भेद भी कहा जा सकता है किन्तु अधिक अन्तर वे हैं, जिन्हें समाज ने बनाया है ।

चूँकि इस अंतर को समाज ने बनाया है, अत: ये अंतर वर्ग, स्थान व काल के अनुसार बदलते रहते हैं । इस सामाजिक अंतर को बदलने वाली संरचना को जेण्डर कहा जाता है । इसे हम ‘सामाजिक लिंग’ कह सकते हैं ।

जेण्डर शब्द महिला और पुरुषों की शारीरिक विशेषताओं को समाज द्वारा दी गई पहचान से अलग करके बताता है । जेण्डर समाज द्वारा रचित एक आभास है जिससे महिला-पुरुष के सामाजिक अंतर को उजागर किया जाता है । अक्सर भ्रांतियों के कारण जेण्डर शब्द को महिला से जोड़ दिया जाता है ।

जैसे- शिक्षा से सम्बन्धित एक कार्यशाला में चर्चा चल रही थी कि गांव से पाठशाला दूर है तथा बीच में गन्ने के खेत एवं थोड़ा सा जंगल है तो शिक्षा की व्यवस्था कैसी होगी ? तब एक प्रतिभागी ने उत्तर दिया कि बालकों को तो कोई समस्या नहीं होगी किन्तु बालिकाओं को समस्या आयेगी । वह इतनी दूर कैसे जायेगी, उसकी सुरक्षा से सम्बन्धित समस्याएं आयेंगी ।

अत: जेण्डर शब्द के अन्तर्गत निम्न बातों का समावेश होता है :

1. यह महिला एवं पुरुष के बीच समाज में मान्य भूमिका एवं सम्बन्धों की जानकारी देता है ।

2. यह सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों तथा सम्बन्धों की व्यवस्था की ओर इंगित करता है ।

ADVERTISEMENTS:

3. यह महिला एवं पुरुष की शारीरिक रचना से अलग हटकर दोनों को ही समाज की एक इकाई के रूप में देखता है तथा दोनों को ही बराबर का महत्व देता है तथा यह मानता है कि दोनों में ही बराबर की क्षमता है ।

4. यह एक अस्थाई सीखा हुआ व्यवहार है जो कि समय, समाज व स्थान के साथ-साथ बदलता रहता है ।

5. जेण्डर सम्बन्ध अलग-अलग समाज एवं समुदाय में अलग-अलग हो सकते हैं, तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भों को समझ कर अभिव्यक्त किये जाते हैं ।

उदाहरण स्वरूप मानव जीवन में नीचे दर्शाये गए पहलुओं को जेण्डर परिभाषित करता है:

१. वेशभूषा एवं शारीरिक गठन :

i. स्त्री एवं पुरुषों की वेशभूषा समाज एवं संस्कृति तय करती है जैसे घाघरा, सलवार सूट, धोती-कुर्ता, पैंट शर्ट, जनेऊ, मंगल सूत्र का प्रयोग आदि ।

ii. स्त्री एवं पुरुष के शरीर का गठन कैसा होगा । अक्सर यह भी संस्कृति एवं समाज तय करता है, जैसे- छोटे बाल, बड़े बाल, मोटा, पतला, गोरा, काला आदि होना ।

२. व्यवहार:

i. बालक-बालिका, स्त्री पुरुष के बोलने का ढंग, उठना बैठना, हंसना बोलना एवं चलना आदि समाज एवं संस्कृति के मानदण्डों के आधार पर तय होता है ।

ii. बड़ों का आदर करना, बड़ों के समक्ष बोलना इत्यादि समाज द्वारा निर्धारित मानदण्डों के अनुसार ही तय होता है ।

i. स्त्री एवं पुरुषों की अलग-अलग भूमिकाएं हैं, जैसे- माँ, पिता, गृहणी आदि ।

४. कर्तव्य एवं अधिकार:

एक लड़की तथा एक लड़के के विकास के साथ-साथ उसके कर्तव्य एवं अधिकारों में परिवर्तन होता रहता है एवं यह सब कुछ तय होता है समाज एवं संस्कृति के मानदण्डों के आधार पर । उपरोक्त स्थितियों को देखने के साथ-साथ एक बात पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि जेण्डर क्या नहीं है ।

i. जेण्डर शब्द से केवल महिला ही प्रदर्शित नहीं होती है ।

ii. यह पुरुषों को शेष समाज से अलग नहीं देखता है ।

iii. जेण्डर का तात्पर्य सिर्फ नारीवाद नहीं है ।

iv. यह केवल महिलाओं की समस्या को नहीं देखता ।

v. इसके अन्तर्गत सिर्फ महिलाओं की बात नहीं होती ।

vi. यह लिंग का पर्यायवाची नहीं है इत्यादि ।

Essay # 2. जेण्डर सम्बन्ध विश्लेषण:

जेण्डर सम्बन्ध विश्लेषण एक व्यवस्थित दृष्टिकोण है, इसके जरिए पुरुष व महिलाओं की अलग-अलग भूमिकाओं के कारण, उन पर विकास के अलग-अलग पड़ने वाले प्रभावों एवं परिणामों का अन्दाजा लगाया जा सकता है और उन्हें समझा जा सकता है ।

जेण्डर भूमिकाओं के असर से श्रम का बँटवारा होता है तथा जेण्डर आधारित श्रम विभाजन के चलते वर्तमान सम्बन्ध यथास्थिति बने रहते हैं और संसाधन, लाभ तथा जानकारियों तक पहुँच व निर्णय प्रक्रिया की मौजूदा स्थिति मजबूत बनी रहती है ।

जेण्डर भूमिकाएँ जीवन के हर पक्ष में मिलती हैं इसलिए सार्थक विश्लेषण करने के लिए घर, बाहर तथा कार्यक्रमों के अलग-अलग अवयवों पर विशेष ध्यान दिए जाने वाले क्षेत्रों, जैसे- स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, शिक्षा, मानवीय सहायता आदि की सीमाएं पार करते हुए जेण्डर हितों को परखना पड़ेगा । यद्यपि जेण्डर अंतर, जीवन के आरम्भ से ही व्यक्तिगत पहचान की परिभाषा तय करना शुरू कर देते हैं, इसलिए जेण्डर सम्बन्ध विश्लेषण को हर आयु पर लागू करना चाहिए और यह संगत भी है ।

पितृसत्ता :

पितृसत्ता का स्वरूप हर जगह एक जैसा नहीं होता । इतिहास के अलग-अलग कालखण्ड में अलग-अलग समुदाय, समाज तथा वर्गों में इसका स्वरूप भले ही भिन्न हो किन्तु छोटी-मोटी विशेषताएं वही रहती हैं तथा पुरुषों के नियंत्रण का स्वरूप भले ही अलग-अलग हो किन्तु उनका नियंत्रण एवं वर्चस्व तो रहता ही है ।

प्राचीन काल के इतिहास पर यदि एक नजर डालें तो पता चलता है कि जेण्डर भेदभाव की उत्पत्ति एक ऐतिहासिक समय से हुई । पुरातत्वकालीन मूर्तियों एवं प्राप्त चित्रों से पता चलता है कि महिलाओं की प्रजनन शक्ति का पूजन किया जाता है लेकिन किसी कारणवश यह श्रद्धा और भक्ति की भावना बदलकर दमन और शोषण बन गयी ।

इस बदलाव के पीछे संभवत: यह कारण था कि जब निजी सम्पत्ति की उत्पत्ति हुई तब महिला पर पुरुष की सत्ता बन गई । पुरुषों ने अपने ही वंश को सुनिश्चित करने के लिए ‘विवाह प्रथा’ को शुरू किया जिसके अन्तर्गत एक महिला केवल एक ही पुरुष के साथ सम्बन्ध रख सकती है, जिससे संतान के पिता का पता हो इससे पितृसत्ता की उत्पत्ति हुई । मानव जीवन के प्रारम्भ के इतिहास में ऐसा भी युग हुआ होगा जब वर्ग एवं लिंग के आधार पर कोई असमानता नहीं होगी ।

प्रसिद्ध समाजशास्त्री ऐंजलस ने समाज के विकास को तीन कालखंडों में विभाजित किया है:

1. जंगली युग,

2. बर्बरता का युग,

3. सभ्यता का युग ।

1. जंगली युग :

मनुष्य जंगलों में लगभग जानवरों की तरह रहता था । शिकार करके खुराक इकट्ठा करना यही उसकी दिनचर्या थी, उस समय में विवाह प्रथा या फिर निजी सम्पत्ति नाम की कोई वस्तु नहीं हुआ करती थी तथा मानव का वंश माँ के नाम से चलता था । स्त्री या पुरुष आवश्यकता पड़ने पर अपनी इच्छा से यौन सम्बन्ध स्थापित कर सकते थे ।

2. बर्बरता युग :

i. इस युग में मानव का विकास हुआ तथा शिकार करके खुराक इकट्ठा करने की गतिविधियों के साथ-साथ कृषि एवं पशुपालन के कार्यों का भी विकास हुआ । पुरुष शिकार करने दूर-दूर तक जाते थे, उस समय बच्चों, पशुओं, कृषि तथा आवास की देखभाल की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती थी । इसी समय से लिंग पर आधारित श्रम विभाजन की शुरुआत हुई ।

ii. इस समय अंतराल में सत्ता औरतों के पास थी । वंश (कबीला या सगोत्री पर समुदाय की औरतों का नियंत्रण था ।

iii. पुरुषों ने जब से पशुपालन कार्य की शुरुआत की, तो उनको गर्भधारण की प्रक्रिया का महत्व समझ में आया, शिकार एवं शस्त्र विकसित किए गये, लोगों को जीतकर गुलाम बनाया गया । कबीलों ने ज्यादा से ज्यादा पशुओं एवं गुलामों (विशेष रूप से स्त्री गुलामों) पर कब्जा करना प्रारम्भ कर दिया ।

iv. पुरुष ताकत के बल पर दूसरों पर सत्ता जमाने लगे तथा पशु एवं गुलामों के रूप में ज्यादा से ज्यादा सम्पत्ति इकट्ठी करने लगे । इन सबके कारण निजी सम्पत्ति अस्तित्व में आई ।

v. ज्यादा से ज्यादा सम्पत्ति अपनी ही संतान को मिले, ऐसी सोच का विकास हुआ तथा बच्चा पुरुष का अपना ही है, इसकी जानकारी के लिए यह जरूरी हुआ कि औरत किसी भी एक पुरुष के साथ ही शारीरिक सम्बन्ध रखे ।

vi. इस तरह के उत्तराधिकार पाने के लिए मातृत्व अधिकार को नकार दिया गया ।

vii. पिता के अधिकार को चिर स्थायी बनाने के लिए पुरुषों ने एक ही कबीले में रहकर महिलाओं की यौनिकता को सीमित करने के लिए एवं उनका सारा ध्यान एक ही पुरुष पर केन्द्रित करने के लिए उनके अन्दर एक विशेष मानसिकता पैदा की गई ।

यह सब कुछ धर्म, शिक्षा, संस्कार, गाथा-कविताओं आदि के सहारे किया गया जिससे कि महिलाएं धीरे-धीरे अपनी अधीनता को अपना गौरव मानने लगी । पति के लिए भूखे रहना, उसकी हर प्रकार से सेवा करना, उन्हीं के सुख की चिन्ता करना और अपने बारे में कभी नहीं सोचना, इसी को औरत का धर्म कहकर महिलाओं ने सब कुछ नकार दिया ।

इस प्रवृत्ति को धर्म ने और बढ़ावा दिया । संस्कृति तथा कला ने भी इसी से सम्बन्धित चित्र सामने रखे । घरेलू व औपचारिक शिक्षा ने यही सिखलाया । कानून ने भी इसे बनाये रखा और मीडिया ने भी इसी परिप्रेक्ष्य में बात की । परिणामस्वरूप महिला पर अधिकार या तो उसके पति का होगा या फिर उसके भाई, ससुर, पिता, जेठ या बड़े बेटे का । महिला के जीवन के सारे महत्वपूर्ण निर्णय इन्हीं पुरुषों के द्वारा ही लिए जाने लगे ।

3. सभ्यता युग:

धीरे-धीरे सामाजिक एवं आर्थिक रूप से महिलाएं पुरुषों पर निर्भर होती गई । वंशानुगत सम्पत्ति पर अधिकार बनाये रखने के लिए तथा वंश को चलाने वाले उत्तराधिकारी को जन्म देने के लिए औरतों को घर की चारदीवारी में मर्यादित किया गया ।

साथ ही साथ एक पत्नी वाला परिवार ‘पुरुष प्रधान परिवार’ में परिवर्तित हो गया, जहाँ पर पत्नी के द्वारा घर पर किया जाने वाला श्रम, निजी सेवाओं, में बदल गया एवं पत्नी एक दासी बन गई । इन सबके परिणामस्वरूप जेण्डर भेदभाव सबके अंतर गहराई से फैला हुआ है चाहे वे महिला हों या पुरुष । इसकी जड़ इतने अतीत में है कि इसे मिटाने का काम एक दिन में नहीं हो सकता ।

जेण्डर भेदभाव के कुछ अपवाद भी हैं । कही-कहीं समाज में महिलाओं को अलग दर्जा प्राप्त है, जैसे केरल और मेघालय में देखने को मिलता है । इन प्रदेशों में कुछ जातियाँ ऐसी हैं जिनके समाज में पुरुष शादी के बाद महिला के घर आकर रहने लगते है ।

इन जातियों में महिलाओं की स्थिति कुछ अच्छी है क्योंकि इन्हें अपना घर नहीं छोड़ना पड़ता है । लेकिन सारे अधिकार पति के हाथ में ही रहते हैं । मातृसत्तात्मक समाज में हलांकि सम्पत्ति लड़की को मिलती है परन्तु उस पर नियंत्रण भाईयों या मामाओं का होता है ।

बेटियाँ सम्पत्ति की मालिक न होकर संरक्षक होती है । उन्हें वह पूर्ण आजादी नहीं है जो अन्य समाजों में पुरुषों को मिलती है । मातृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के मुखिया होने के बावजूद उन्हें अधिकार काफी कम है ।

एक पूर्णतया मातृसत्तात्मक समाज उस समाज को कहते हैं जहाँ महिलाओं को पूर्ण अधिकार प्राप्त हों और उनके हाथ में सत्ता हो, धार्मिक संस्थाएं, आर्थिक व्यवस्था, उत्पादन, व्यापार सभी कुछ पर उनका नियंत्रण भी रहे ।

महिलाओं का उत्थान एवं पतन:

चरण १- आदिम समाज :

a. अपेक्षाकृत अधिक जेण्डर समानता,

b. मातृ वंशात्मकता,

c. प्रजनन में पुरुष भूमिका की जानकारी न होना,

d. सार्वभौम रूप से माता की पूजा,

e. स्त्री की शारीरिक प्रक्रियाओं का आदर, अशुद्ध मानकर घृणा नहीं ।

चरण २- एक ही जगह बसना:

a. जनसंख्या वृद्धि,

b. आदिम खेती-बाड़ी और पशु पालन की बेहतर तकनीक,

c. प्रजनन में पुरुष भूमिका की समझ ।

d. जमीन व अन्य प्राकृतिक संसाधनों के लिए होड़,

e. युद्ध में पुरुषों को भेजना,

f. व्यक्तिगत सम्पत्ति का आरम्भ ।

चरण ३- पितृवंशात्मकता / पितृसत्तात्मकता:

बच्चें जैविकीय रूप से उनके हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए पुरुषों ने महिलाओं की यौनिकता और प्रजनन पर नियंत्रण किया ।

a. सत्ता और पवित्रता की विचारधारा ।

b. आने-जाने पर बन्धन / अलग-अलग रहना ।

c. आर्थिक स्वतंत्रता से दूर रखना ।

Essay # 3. जेण्डर का उदय:

समाज में जेण्डर को बनाने वाले दो अलग-अलग आयाम हैं:

i. मानसिकता एवं विचारधारा,

ii. शक्ति का विभाजन/बँटवारा ।

i. मानसिकता एवं विचारधारा:

मानव समाज में कभी-कभी कहीं-कहीं किसी सामाजिक वर्ग की एक विशेष मानसिकता होती है । जो यह तय करती है कि महिलाओं और पुरुषों में क्या सामाजिक अंतर होने चाहिए । यह मानसिकता कई कारणों से प्रभावित होकर बनती हैं, जैसे- धर्म, मानव व्यवहार, शिक्षा व्यवस्था, कानून, भौगोलिक क्षेत्रफल, मीडिया, बाजार, परिस्थितियों इत्यादि ।

इस तरह की मानसिकता पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती जाती है । यह बचपन से ही डाले गए संस्कारों द्वारा सीखी जाती है तो कुछ सामाजिक परम्पराओं के रूप में हमेशा उसी विचारधारा को याद दिलाती  हैं । इस तरह की विचारधारा के अन्तर्गत प्रारम्भ से ही यह माना जाता है कि महिला-पुरुष से कमजोर होती है, उसकी क्षमताओं में कमी होती है और उसका जीवन तभी सार्थक होगा जब वह किसी पुरुष की सेवा करेंगी ।

इस तरह की मानसिकता एवं विचारधारा के आधार पर महिलाओं एवं पुरुषों की समाज में अलग-अलग भूमिकाएँ निर्धारित हो जाती हैं एवं दोनों के लिए ही अलग-अलग व्यवहार एवं बोलचाल का तरीका भी तय होता है ।

उदाहरणार्थ :

1. पुरुष घर के बाहर के काम करेगा ।

2. महिला घर में रहकर काम करेगी ।

3. पति चाय की दुकान पर बैठ सकता है या मित्रों के घर जाकर देर से आ सकता है ।

4. पत्नी किसी के साथ बैठकर बातचीत करती हुई या जोर से हँसती हुई नहीं दिखनी चाहिए । यदि इस तरह की पूर्व निर्धारित भूमिकाओं / व्यवहार को बदला जाता है तो यह समुदाय में चर्चा का विषय बन जाता है ।

उदाहरणस्वरूप :

a. कोई महिला कहे कि वह बच्चों की देखभाल नहीं करना चाहती ।

b. पुरुषों द्वारा घर का काम करना या फिर किसी बात पर आँसू बहाना आदि ।

ii. शक्ति का विभाजन/बँटवारा:

महिलाओं एवं पुरुषों के बीच अंतर को बनाये रखने के लिए शक्ति या ताकत के बहुत सारे साधन हैं, जैसे- धनी / सम्पत्ति, जानकारी / शिक्षा, कार्यक्षमता / कार्यशक्ति आदि । प्रत्येक साधन के स्वामित्व से ताकत मिलती है तो यह ताकत अन्य साधनों तक पहुँच बढ़ाती है । इनमें से अधिकांश संसाधनों पर पुरुषों का नियंत्रण है तथा सत्ता मुख्य रूप से पुरुषों के ही हाथ में होती है ।

उदाहरणार्थ- पहाड़ों पर महिलाएं अधिक काम का बोझ सम्भालती हैं, लेकिन उनके हाथ में पैसे नहीं रहते क्योंकि बाजार पुरुष के नियंत्रण में रहता है, जैसे कि खेतों में अनाज का उत्पादन महिलाओं के द्वारा किया जाता है किन्तु उसके बेचने का काम परिवार के पुरुष सदस्य करते हैं ।

घर की आय, पुरुषों के नाम होती है । महिला को घर के काम-काज को सम्भालना है, अत: उसे अधिक पढ़ाई की आवश्यकता नहीं है । वह अखबार अथवा मैगजीन पढ़ती हुई या खाली बैठकर रेडियो सुनती हुई नहीं दिखनी चाहिए ।

अपना ज्ञान बढ़ाने हेतु वह स्वतंत्र रूप से कहीं नहीं जा सकती क्योंकि उसके समय एवं दिनचर्या पर पुरुषों का ही नियंत्रण रहता है । उपरोक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक अंतर बना ही रहता है ।

जेण्डर को कौन बनाये रखता है ?

यह एक तरह से उलझाने वाला प्रश्न है क्योंकि इसके साथ ही कुछ अन्य प्रश्न भी उठ खड़े होते हैं ।

1. क्या महिलाएं ही इस अन्याय को बनाए रखती हैं ?

2. क्या महिला ही महिला का शोषण करती हैं ?

3. क्या हर चीज के लिए पुरुष ही जिम्मेदार है ?

4. इस जेण्डर भेदभाव को आज तक कम क्यों नहीं किया जा सका ?

5. महिलाओं ने इसे खत्म क्यों नहीं किया ?

इस तरह क प्रश्नों के बहुत सारे उत्तर भी समाज से ही निकल कर आते हैं , जैसे:

i. महिलाओं में आत्मविश्वास नहीं है, भय है ।

ii. महिलाओं में असफलता का डर है, लोकलज्जा है ।

iii. महिलाओं में एकता नहीं है, संघर्ष की क्षमता नहीं है ।

iv. महिलाओं को अन्याय का पूरा एहसास नहीं है ।

वैसे देखा जाए तो समाज के दबे वर्ग में दो तरह की विशेषताएं पाई जाती हैं, चाहे वो महिला हो या दलित । उस वर्ग के सदस्यों पर कोई प्रत्यक्ष रूप से दबाव नहीं दिखता, लेकिन उसके मन में समाज के नियम तोड़ने का दुस्साहस करने की हिम्मत जुटाना उनकी सोच के बाहर है ।

यहाँ तक कि वे अन्याय के बारे में सोचते तक नहीं है और उसे सहते रहना जीवन की नियति मानते हैं । उस वर्ग के लोग स्वयं ही अपनी अगली पीढ़ी को दबे रहना सिखाते हैं । शोषण की परम्परा को अनायास वे स्वयं ही आगे बढ़ाते हैं ।

वे अपनी अगली पीढ़ी में इस प्रकार का अहसास डालते हैं कि उनके मन में कभी भी विरोध की भावना न आये । जैसे यदि कोई दलित बंधुवा मजदूर है तो वह अपने बेटे और पत्नी को भी बंधुवा मजदूर बना देता है । कर्ज के बहाने यह चलन पीढ़ी दर पीढ़ी उस परिवार में चलता रहता है ।

उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि दबे वर्गों में मानसिकता ऐसी बनी रहती है कि वे अपनी वर्तमान स्थिति में परिवर्तन के बारे में सोच ही नहीं पाते । इन मानसिकता को बनाए रखने में घरेलू अनौपचारिक शिक्षा और घर का वातावरण मुख्य भूमिका निभाते हैं ।

दूसरी ओर पुरुष का पक्ष है । वे जेण्डर भेदभाव को क्यों नहीं तोड़ते ? इसके लिए हमें यह याद रखना होगा कि हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है । यहाँ भेदभाव निष्पक्ष नहीं है । इससे सत्ता का बँटवारा होता है और ज्यादा ताकत या शक्ति पुरुषों को मिलती है ।

धन, सम्पत्ति, संसाधन, कार्यशक्ति आदि पर नियंत्रण अधिकतर पुरुषों का ही है, अत: उनको इसका पूरा-पूरा फायदा मिलता है । जिस व्यवस्था से उनका स्वार्थ जुड़ा, वे उसे भला क्यों बदलेंगे ? अत: इसके लिए हमें स्वयं ही प्रयास करने होंगे ।

Essay # 4. जेण्डर भेदभाव :

महत्व इस बात का नहीं है कि लोग जेण्डर भेदभाव क्यों करते हैं । महत्व इस बात का है कि वे कौन से कारण (कारक) हैं जो जेण्डर भेदभाव पैदा करते है, इनके आधार पर उनका प्रभाव कम करना या उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए । भेदभाव के लिए प्रयोग होने वाले कुछ घटक अथवा कारक निम्न प्रकार से है-लिंग, धर्म एवं जाति, वर्ग एवं समुदाय, धन/सम्पत्ति, कद अथवा डीलडौल, नस्ल, राजनैतिक विश्वास/जुड़ाव, रंग आदि ।

जेण्डर भेदभाव कम करने हेतु सामान्य रूप से समुदाय स्तर पर जो उपाय किये जा सकते हैं , उनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया गया है:

१. जानबूझ कर किया जाने बाला भेदभाव:

पक्षपात एवं पूर्वाग्रहवश लोगों द्वारा जानबूझ कर किये जाने वाले कार्य जैसे- नीति विशेषज्ञों, अध्यापकों, विकास कार्यकर्त्ताओं, मालिकों आदि के द्वारा लोगों को शिक्षित कर उनके मन मस्तिष्क को बदलना चाहिए ।

२. असमान व्यवहार:

यह समाज में आमतौर पर देखने को मिलता है, जैसे- अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, बड़ा-छोटा, बूढ़े-जवान, स्त्री-पुरुष, छुआछूत आदि के साथ विभिन्न समाज एवं वर्ग के लोगों का अलग-अलग व्यवहार होता है । इसे दूर करना चाहिए और सभी समूहों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए ।

३. व्यवस्थित एवं संस्थागत भेदभाव:

(क) ऐसे रीति-रिवाज जिनका महिलाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । हालांकि ये समुदाय आधारित रीति-रिवाज तथा संगठित नीति निर्देश किसी पूर्वाग्रह के साथ या नुकसान पहुँचाने के इरादे से नहीं बनाये गये थे ।

(ख) व्यवस्थित भेदभाव को संस्थागत भेदभाव भी कहा जाता है । संस्थाओं एवं संगठनों की प्रक्रियाओं और रीतियों के भीतर सामाजिक, सांस्कृतिक व भौतिक मानक गहरे होते हैं । लोग इस तरह के भेदभाव को अनुभव तो कर सकते हैं लेकिन इस पर उँगली नहीं उठा सकते । यह ज्यादातर अनचाहा होता है ।

४. अन्तर्संस्थात्मक भेदभाव:

किसी एक क्षेत्र में जानबूझ कर किया गया भेदभाव दूसरे क्षेत्र में अनजाने भेदभाव के रूप में परिणत हो सकता है । मिसाल के लिए महिलाओं को शिक्षा व प्रशिक्षण के अवसर न मिलने पर वे तब नुकसान में रहती है चूँकि पदोन्नति या राजगार के लिए आवश्यक शिक्षण स्तर को आधार बनाया जाता है ।

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essay on discrimination in hindi

Essay on Caste Discrimination in India in Hindi

आज हमारा देश बहुत तेजी से विकसित हो रहा है ,हर कोई अपने सपनों को पूरा करने में लगा हुआ है। जहां देश इतनी तरक्की कर रहा है वहीं देश में कुछ ऐसे भी कार्य हो रहे है जो मानवता को शर्मिंदा करता है।वर्तमान समय में जहां जागरूकता इतनी ज्यदा बढ़ रही है वहीं लोगों के बीच अंधविश्वास और जाती भेदभाव की भावना घटने के जगह बढ़ते जा रही है।आज भारत, चंद्रमा और मंगल ग्रह जैसे ग्रहों पे कदम रख रही है तो वहीं भेदभाव की खोखली बातो से लोग आपस में ही हिन की भावना रख रहे है।जाती और सामाजिक मुद्दों से लोग आपस में ही लड़ रहे है और अपनेपन के बीच में दरार डाल रहे है। जाति भेदभाव वैसे तो एक सामाजिक मुद्दा है जो कि इन लोगों ने अपने और नीची जातियों के बीच में बना लिया है। वे उन लोगों से भेदभाव करते हैं जो उनके बराबर के नहीं या फिर उनसे कम पैसे कमाते हैं या फिर रंग रूप में उनसे ज्यादा सुंदर नहीं है। इन्हीं सब चीजों के कारण लोग आपस में भेदभाव और जाति व्यक्त करने लग गए हैं। हाला की जाति और भेदभाव को हमारे कई सारे देश के पुत्रों ने हटाने की कोशिश की परंतु वे असफल रहे। यदि कुछ हद तक भावना कम भी हो गई तो खत्म नहीं हुई।

जाति भेदभाव और हिन भावना:-

भारत देश में जाति भेदभाव की भावना कई युगों से चली आ रही है। कहा जाता है कि जब देवता ने धरती का संचार किया तब से ही जाति और लोगों के बीच में हीन भावना उत्पन्न हो गई। एक दूसरे के रहने के ढंग को एक दूसरे के रूप रंग को और एक दूसरे की कमाई को अपने से आकना और खुदसे बराबरी करना यह सब लोगों के बीच में दरार डालने का काम कर रही है। आम तौर पर देखा जाए तो बड़े से बड़े राज्य और छोटे से छोटे कस्बों में जाति भेदभाव और हिना की भावनाएं एक दूसरे में इतनी ज्यादा है कि कोई किसी को पानी तक देना पसंद नहीं करता। और वहीं दूसरी ओर लोग अपना अच्छाई का नकाब पहनकर बड़े-बड़े प्रलोचन हाकती है। एक और तो देश की भलाई और जनता की सेवा के झूठे वादे करते हैं दूसरी ओर उसी जनता से बात तक करना पसंद नहीं करते। देश में नेताओं और सरकार द्वारा किया गया यह एक ऐसा नाटक है जो देश को बर्बाद कर देगा।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा 1950 में बनाया गया ऐसा लाखों कॉन्स्टिट्यूशन और कानून है जो जाति भेदभाव के खिलाफ है। उनके द्वारा यह माना गया है कि हर व्यक्ति को उसके अधिकार के साथ जीना उसका हक है। उनके हक के लिए उन्होंने अपने देश के बड़े-बड़े हस्तियों से लड़ लिया नीचे और जातियों के बीच में फर्क करते थे उनको भी धूल चटा दी। ऐसे महान शख्सियत के द्वारा बनाए गए कानूनों को आजकल सिर्फ किताबों में पढ़ा जाने लगा है निभाता कोई नहीं।

भेदभाव एक अंधविश्वास है:-

जाति भेदभाव को अंधविश्वास के रूप में भी देखा जाता है। लोगों का मानना है कि जब भगवान हमें भेदभाव नहीं करते तो हम आपस में भाई बहन हो करके भेदभाव क्यों करें। देश पर तैनात रहने वाले वह जवान जाति भेदभाव तो नहीं देखते , सब का इलाज करने वाला डॉक्टर जाति भेदभाव तो नहीं देखता, देश की भलाई करने वाला सरकार भेदभाव नहीं देखता, यहां तक की हम जिससे अपने लिए सुरक्षा की पॉलिसी खरीदते हैं वह भी हमारी जातीय भेदभाव नहीं देखता।तो हमें कैसे कह सकते हैं कि जाति भेदभाव हमारे देश में रखना चाहिए या नहीं।हो सकता है कि जाति भेदभाव बड़े-बड़े महाराजाओ द्वारा किया जाता है परंतु आज के समय में जहां आधुनिकता इतनी ज्यादा बढ़ गई है जाति भेदभाव करना एक अपराध साबित हो रहा है।

जाति भेदभाव को अंधविश्वास कहना कोई गलत नहीं है क्योंकि यहां हर कोई उनको अपने दम पर चल रहा है जो बनाने वाले इस दुनिया में ही नहीं है। जब जाति भेदभाव का कोई सुबूत ही नहीं मिलता तो लोग आंख बंद करके इसको क्यों मान रहे हैं? आपस में लड़ने और झगड़ने से कुछ नहीं मिलने वाला यह क्यों नहीं समझते? इसलिए जाती भेद भाव को देश में अंधविश्वास माना जा रहा है।

जाति विभाजन एक बुरी प्रथा:-

प्राचीन काल में अगर देखा जाए तो जाति भेदभाव और हिना की भावना ना केवल नीची जातियों से बल्कि दूसरी जातियों से भी किया जाता था। परंतु आज के समय में हर कोई एक दूसरे से जाति भेदभाव और हिना भावना रखने लगा है। जाति विभाजन सबसे पहले राजाओं के समय में हुआ करता था तब व्यक्तिगत मामलों में कार्यों को बांटा गया था। जैसे कि जो उच्च जाति के हैं और जो राज परिवार से हैं वह राजा होंगे जो उनसे नीचे है या फिर ब्राह्मण या मंत्रालय में आते हैं तो वह उन्हें मंत्री और सज्जन मानते थे। और जो क्षत्रिय होते थे उन्हें मंत्री लोगों से नीचे की जाति और जो आम आदमी होते थे उन्हें सबसे नीचे दे दिया जाता था। परंतु आज के समय में जाति प्रथा को एक अलग स्तर दे दिया गया है। यहां हर ऊंचाई जाति का व्यक्ति नीची जाति से घृणा करता है।

जाति की प्रथा वैसे तो हटाने की बहुत कोशिश की गई परंतु आज भी लोग उसको कहीं ना कहीं अपने और लोगों के बीच में देखते हैं। जाति प्रथा को हटाने के लिए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कई सारे कोशिशें की। वे खुद भी निजी जाति के होने के कारण ऐसी बहुत सारे लोगों द्वारा उन्हें बहुत सारे वेटनाए दिया गया था।लोग उनसे बात करना पसंद नहीं करते थे उनके साथ है ना पसंद नहीं करते थे इन सब को देख करके उनके मैंने बस यही आता था की लिखी जाती हो ना क्या मेरा कुसूर है। बाद में उच्च कोटि की पढ़ाई करने के बाद वे इस जाति प्रथा को हटाने में लग गए। पूरी जीवन केवल जाति को और जाति विभाजन को दूर करते करते आखिर उन्होंने इसे खत्म कर दिया ।परंतु आज भी लोगों के मन में कहीं ना कहीं जाती भेदभाव की भावना है।

जाति विभाजन ऐसे एक बुरी प्रथा है परंतु लोग अभी से नहीं मानते हैं।आधुनिकता जितना बढ़ते जा रही है लोगों के मन में बुरी चीज है उतनी ज्यादा आते जा रही है। यही कारण है कि आम देशों के मुकाबले भारत देश ज्यादा तरक्की नहीं कर पा रहा। हो सकता है कि कुछ राज्यों में जाति विभाजन का आज भी माना जाता है परंतु पूरी तरीके से इसके आवेश में आ जाना यह गलत है। लोगों को उनकी जाति के हिसाब से उनके साथ व्यवहार करना यह सब ही गलत चीजें हैं। इन सब चीजों के कारण विद्रोह और गलतफहमियां बढ़ती है जिस कारण लोग आपस में मिलकर रहना बंद कर देते। आपसी मामलों में जाति भेदभाव के वजह से दरार पड़ जाती है और लोग एक दूसरे से घृणा और हिना की भावना रखते हैं। यही कारण है कि देश में जो नीचे जाती है वह बढ़ती जा रही है और ऊंची जातियां घटती जा रही है। सरकार द्वारा भी नीची जातियों को बहुत सारी सुख सुविधाएं दी जा रही है जबकि उसे जातियों को नहीं कम से कम यह समझ कर ही लोगों को जाति भेदभाव की हीन भावना को हटाना चाहिए।

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[ 600 शब्द ] Essay on Gender Discrimination in Hindi - लैंगिक भेदभाव पर निबंध

Today, we are sharing Simple essay on Gender Discrimination in Hindi . This article can help the students who are looking for Long essay on Gender Discrimination in Hindi . This is the simple and short essay on Gender Discrimination which is very easy to understand it line by line. The level of this article is mid-level so, it will be helpful for small and big student and they can easily write on this topic. This Long essay on Gender Discrimination is generally useful for class 5, class 6, and class 7, class 8, 9, 10 .

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Gender Discrimination par nibandh Hindi mein

भूमिका: आज हमारे देश में लैंगिक भेदभाव एक गंभीर समस्या है। लोग आज भी लड़का और लड़की में भेदभाव करते हैं। लोगों का विश्वास है कि अगर लड़का हुआ तो उनके परिवार के लिए काफी अच्छा है। लड़के बड़े होकर मां-बाप का सहारा बनेंगे और इसके अलावा लड़के की शादी जब वह करेंगे तो भारी भरकम उन्हें दहेज भी प्राप्त होगा। इसलिए लोग लड़कों को बहुत ज्यादा ही प्राथमिकता देते हैं लड़कियों के मुकाबले।

लेकिन लैंगिक भेदभाव की समस्या को समाप्त करना बहुत ज्यादा आवश्यक है। क्योंकि अगर ऐसा रहा तो 1 दिन देश और दुनिया दोनों जगह लड़कियों की संख्या में कमी हो जाएगी और ऐसा हुआ तो सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा।

लैंगिक भेदभाव का अर्थ क्या होता है: लैंगिक भेदभाव का मतलब होता है समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव उनके साथ दुर्व्यवहार करना। इसके अलावा जो भी अधिकार पुरुषों को प्राप्त है उनसे महिलाओं को वंचित करना विशेष तौर पर भारत में।

लैंगिक भेदभाव की विचारधारा तेजी के साथ प्रसारित प्रसारित हो रही है। जिसके कारण देश में कन्या भ्रूण हत्या जैसी गंभीर समस्या भी उत्पन्न हो रही है। लोग लड़कों की चाह में लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दे रहे हैं। भारत में सरकार ने इसके लिए कानून में बनाया है की जन्म से पहले बच्चे का लिंग का आप परीक्षण नहीं कर सकते हैं। लेकिन फिर भी कई जगहों पर चोरी छुपे लोग जन्म से पहले ही लिंग का परीक्षण कर लेते हैं। और जब उनको मालूम चलता है कि लड़की है तो उसे गर्भ में ही मार देते हैं।

लैंगिक भेदभाव के कारण क्या है: लैंगिक भेदभाव जैसी समस्या उत्पन्न होने के पीछे सबसे बड़ी वजह है कि लोगों का विश्वास है की अगर लड़का पैदा होता है तो बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगा इसके अलावा लड़का पैसे कमाकर घर की आर्थिक स्थिति को संभाल लेगा और वंश को आगे बढ़ाएगा। इसलिए लोग लड़कों को लड़कियों के मुकाबले ज्यादा तरजीह देते हैं। इसके अलावा शादी होने पर वह अच्छा खासा पैसा दहेज के रूप में प्राप्त कर सकते हैं।

सबसे बड़ी बातें की लड़कियों के साथ भेदभाव प्राचीन काल से ही चला रहा है। प्राचीन काल में लोगों का विश्वास था कि लड़कियों का प्रमुख कर्तव्य घर संभालना है। उनके लिए बाहर जाना वर्जित था। इसके कारण लड़कियों को प्राचीन काल में शिक्षा की प्राप्ति नहीं होती थी। जिसके फल स्वरुप लड़कियों के स्थिति समाज में कभी भी मजबूत नहीं हो पाई।

  • समाज में जागरूकता अभियान चलाना होगा ताकि लोगों को समझ में आ सके कि लड़कियां लड़कों से किसी भी मामले में कम नहीं है।
  • लड़कियों के शक्तिकरण करने के लिए सरकार को कई प्रकार के जन हितकारी योजना का संचालन करना चाहिए ताकि लड़कियां सशक्त और मजबूत बन सके।
  • सरकार के द्वारा दहेज प्रथा, बाल विवाह प्रथा, शारीरिक और मानसिक शोषण से संबंधित जितने प्रकार की कुपरंपरा और प्रथाएं हैं उनके लिए कठोर से कठोर नियम और कानून बनाएं चाहिए ताकि समाज में लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव को समाप्त किया जा सके।
  • महिलाओं के साथ हो रहे घरेलू हिंसा को रोकने के लिए घरेलू हिंसा से संबंधित और भी कठोर कानून सरकार को बनाने चाहिए ताकि महिलाओं के साथ हो रहे घरेलू हिंसा को रोका जा सके।
  • समाज के प्रभावशाली पुरुषों को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए और उन्हें बढ़-चढ़कर महिलाओं के हित के लिए भी काम करना चाहिए ताकि समाज में महिलाओं को सशक्त और मजबूत करने में मदद मिले।

उपसंहार : भारत जैसे विशाल देश में लड़कियों के साथ भेदभाव की समस्या अधिक है। लेकिन सरकार और कई सामाजिक संस्थाओं के द्वारा दिन रात काम किया जा रहा है और भारत में इस समस्या को काफी हद तक समाप्त भी किया गया है। लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में और भी ज्यादा प्रयास की जरूरत है ताकि भारत में सेक्सुअल भेदभाव जैसी समस्या को जड़ से समाप्त किया जा सके।

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F.A.Q ( अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल )

  • लैंगिक भेदभाव किसे कहते है ?
  • लैंगिक भेदभाव को अंग्रेजी में क्या कहते है ?
  • लैंगिक भेदभाव के कारण कौनसी सामाजिक कठिनाई होती है ?

Students in school, are often asked to write Long essay on Gender Discrimination in Hindi . We help the students to do their homework in an effective way. If you liked this article, then please comment below and tell us how you liked it. We use your comments to further improve our service. We hope you have got some learning about Gender Discrimination. You can also visit my YouTube channel which is https://www.youtube.com/synctechlearn. You can also follow us on Facebook at https://www.facebook.com/synctechlearn .

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discrimination का हिन्दी अर्थ

Discrimination के हिन्दी अर्थ, संज्ञा .

  • विभेदन-क्षमता

discrimination शब्द रूप

Discrimination की परिभाषाएं और अर्थ अंग्रेजी में, discrimination संज्ञा.

  • favoritism , favouritism

पक्षपात , भेदभाव

भेदभाव, ... सदस्यता लें

discrimination के समानार्थक शब्द

essay on discrimination in hindi

Discrimination is the process of making unfair or prejudicial distinctions between people based on the groups, classes, or other categories to which they belong or are perceived to belong, such as race, gender, age, religion, physical attractiveness or sexual orientation. Discrimination typically leads to groups being unfairly treated on the basis of perceived statuses based on ethnic, racial, gender or religious categories. It involves depriving members of one group of opportunities or privileges that are available to members of another group.

भेदभाव या विभेदन (discrimination) किसी व्यक्ति या अन्य चीज़ के पक्ष में या उस के विरुद्ध, उसके व्यक्तिगत गुणों-अवगुणों को न देखते हूए, उसके किसी वर्ग, श्रेणी या समूह का सदस्य होने के आधार पर भेद करने की प्रक्रिया को कहते हैं। भेदभाव में अक्सर किसी व्यक्ति को केवल उसके वर्ग के आधार पर अवसरों, स्थानों, अधिकारों और अन्य चीज़ों से वंछित कर दिया जाता है। भेदभावी परम्पराएँ, नीतियाँ, विचार, क़ानून और रीतियाँ बहुत से समाजों, देशों और संस्थाओं में हैं और अक्सर यह वहाँ भी मिलती हैं जहाँ औपचारिक रूप से भेदभाव को न्यायिक रूप से वर्जित या अनौचित्य समझा जाता है। यह किसी धर्म जाति मूल वंश के प्रति किया गया नकारात्मक व्यवहार है

discrimination

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discrimination meaning in Hindi | discrimination का हिन्दी अर्थ

essay on discrimination in hindi

discrimination  भेदभाव

essay on discrimination in hindi

discrimination =  भेदभाव

Pronunciation  =  🔊 bb1.onclick = function(){ if(responsivevoice.isplaying()){ responsivevoice.cancel(); }else{ responsivevoice.speak("discrimination", "uk english female"); } }; discrimination, pronunciation in hindi  =  डिस्क्रिमिनेशन, discrimination  in hindi : भेदभाव, part of speech :  noun  , definition in english : unfair treatment of a person or group on the basis of prejudice , definition in  hindi : पूर्वाग्रह के आधार पर किसी व्यक्ति या समूह के साथ अनुचित व्यवहार करना, examples in english :.

  • Racial discrimination should not be tolerated at any cost.

Examples in Hindi :

  • जाति या रंग के आधार पर भेदभाव

Synonyms of discrimination

Antonyms of discrimination, about english hindi dictionary.

Multibhashi’s Hindi-English Dictionary will help you find the meaning of different words from Hindi to English like meaning of Kshamta meaning of nipun and from English to Hindi like meaning of Ability, The meaning of capability etc. Use this free dictionary to get the definition of capability in Hindi and also the definition of capability in English. Also see the translation in Hindi or translation in English, synonyms, antonyms, related words, image and pronunciation for helping spoken English improvement or spoken Hindi improvement.

About English Language

English is one of the most widely spoken languages across the globe and a common language of choice for people from different backgrounds trying to communicate with each other. This is the reason why English is the second language learned by most of the people.

About the Hindi Language

Hindi is among the oldest languages to be discovered by mankind, which has its roots laid back in around the 10th Century AD. It is a descendant of Sanskrit, which was the earliest speech of the Aryans in India. Hindi- also known as Hindustani or Khari-Boli, is written in the Devanagari script, which is the most scientific writing system in the world and is widely spoken by over ten million people across the globe as their first or second language, which makes it 3rd most widely spoken language in the world.

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Hindi Essay (Hindi Nibandh) 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन

Hindi Essay (Hindi Nibandh) | 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन – Essays in Hindi on 100 Topics

हिंदी निबंध: हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। हमारे हिंदी भाषा कौशल को सीखना और सुधारना भारत के अधिकांश स्थानों में सेवा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूली दिनों से ही हम हिंदी भाषा सीखते थे। कुछ स्कूल और कॉलेज हिंदी के अतिरिक्त बोर्ड और निबंध बोर्ड में निबंध लेखन का आयोजन करते हैं, छात्रों को बोर्ड परीक्षा में हिंदी निबंध लिखने की आवश्यकता होती है।

निबंध – Nibandh In Hindi – Hindi Essay Topics

  • सच्चा धर्म पर निबंध – (True Religion Essay)
  • राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान निबंध – (Role Of Youth In Nation Building Essay)
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  • मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध – (Means Of Entertainment Essay)
  • मेट्रो रेल पर निबंध – (Metro Rail Essay)
  • दूरदर्शन पर निबंध – (Importance Of Doordarshan Essay)
  • दूरदर्शन और युवावर्ग पर निबंध – (Doordarshan Essay)
  • बस्ते का बढ़ता बोझ पर निबंध – (Baste Ka Badhta Bojh Essay)
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  • दहेज नारी शक्ति का अपमान है पे निबंध – (Dowry Problem Essay)
  • सुरीला राजस्थान निबंध – (Folklore Of Rajasthan Essay)
  • राजस्थान में जल संकट पर निबंध – (Water Scarcity In Rajasthan Essay)
  • खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – (Khule Me Soch Mukt Gaon Par Essay)
  • रंगीला राजस्थान पर निबंध – (Rangila Rajasthan Essay)
  • राजस्थान के लोकगीत पर निबंध – (Competition Of Rajasthani Folk Essay)
  • मानसिक सुख और सन्तोष निबंध – (Happiness Essay)
  • मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध नंबर – (My Aim In Life Essay)
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  • राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – (The Major Folk Deities Of Rajasthan Essay)
  • देशप्रेम पर निबंध – (Patriotism Essay)
  • पढ़ें बेटियाँ, बढ़ें बेटियाँ योजना यूपी में लागू निबंध – (Read Daughters, Grow Daughters Essay)
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  • मेरा प्रिय त्यौहार निबंध – (My Favorite Festival Essay)
  • मेरा प्रिय पुस्तक पर निबंध – (My Favourite Book Essay)
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  • मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध हिंदी में – (My Favorite Player Essay)
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  • शिक्षा में खेलकूद का स्थान निबंध – (Shiksha Mein Khel Ka Mahatva Essay)a
  • खेल का महत्व पर निबंध – (Importance Of Sports Essay)
  • क्रिकेट पर निबंध – (Cricket Essay)
  • ट्वेन्टी-20 क्रिकेट पर निबंध – (T20 Cricket Essay)
  • मेरा प्रिय खेल-क्रिकेट पर निबंध – (My Favorite Game Cricket Essay)
  • पुस्तकालय पर निबंध – (Library Essay)
  • सूचना प्रौद्योगिकी और मानव कल्याण निबंध – (Information Technology Essay)
  • कंप्यूटर और टी.वी. का प्रभाव निबंध – (Computer Aur Tv Essay)
  • कंप्यूटर की उपयोगिता पर निबंध – (Computer Ki Upyogita Essay)
  • कंप्यूटर शिक्षा पर निबंध – (Computer Education Essay)
  • कंप्यूटर के लाभ पर निबंध – (Computer Ke Labh Essay)
  • इंटरनेट पर निबंध – (Internet Essay)
  • विज्ञान: वरदान या अभिशाप पर निबंध – (Science Essay)
  • शिक्षा का गिरता स्तर पर निबंध – (Falling Price Level Of Education Essay)
  • विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – (Advantages And Disadvantages Of Science Essay)
  • विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा निबंध – (Health Education Essay)
  • विद्यालय का वार्षिकोत्सव पर निबंध – (Anniversary Of The School Essay)
  • विज्ञान के वरदान पर निबंध – (The Gift Of Science Essays)
  • विज्ञान के चमत्कार पर निबंध (Wonder Of Science Essay in Hindi)
  • विकास पथ पर भारत निबंध – (Development Of India Essay)
  • कम्प्यूटर : आधुनिक यन्त्र–पुरुष – (Computer Essay)
  • मोबाइल फोन पर निबंध (Mobile Phone Essay)
  • मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध – (My Unforgettable Trip Essay)
  • मंगल मिशन (मॉम) पर निबंध – (Mars Mission Essay)
  • विज्ञान की अद्भुत खोज कंप्यूटर पर निबंध – (Vigyan Ki Khoj Kampyootar Essay)
  • भारत का उज्जवल भविष्य पर निबंध – (Freedom Is Our Birthright Essay)
  • सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा निबंध इन हिंदी – (Sare Jahan Se Achha Hindustan Hamara Essay)
  • डिजिटल इंडिया पर निबंध (Essay on Digital India)
  • भारतीय संस्कृति पर निबंध – (India Culture Essay)
  • राष्ट्रभाषा हिन्दी निबंध – (National Language Hindi Essay)
  • भारत में जल संकट निबंध – (Water Crisis In India Essay)
  • कौशल विकास योजना पर निबंध – (Skill India Essay)
  • हमारा प्यारा भारत वर्ष पर निबंध – (Mera Pyara Bharat Varsh Essay)
  • अनेकता में एकता : भारत की विशेषता – (Unity In Diversity Essay)
  • महंगाई की समस्या पर निबन्ध – (Problem Of Inflation Essay)
  • महंगाई पर निबंध – (Mehangai Par Nibandh)
  • आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप निबंध – (Reservation System Essay)
  • मेक इन इंडिया पर निबंध (Make In India Essay In Hindi)
  • ग्रामीण समाज की समस्याएं पर निबंध – (Problems Of Rural Society Essay)
  • मेरे सपनों का भारत पर निबंध – (India Of My Dreams Essay)
  • भारतीय राजनीति में जातिवाद पर निबंध – (Caste And Politics In India Essay)
  • भारतीय नारी पर निबंध – (Indian Woman Essay)
  • आधुनिक नारी पर निबंध – (Modern Women Essay)
  • भारतीय समाज में नारी का स्थान निबंध – (Women’s Role In Modern Society Essay)
  • चुनाव पर निबंध – (Election Essay)
  • चुनाव स्थल के दृश्य का वर्णन निबन्ध – (An Election Booth Essay)
  • पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध – (Dependence Essay)
  • परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – (Nuclear Energy Essay)
  • यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो हिंदी निबंध – (If I were the Prime Minister Essay)
  • आजादी के 70 साल निबंध – (India ofter 70 Years Of Independence Essay)
  • भारतीय कृषि पर निबंध – (Indian Farmer Essay)
  • संचार के साधन पर निबंध – (Means Of Communication Essay)
  • भारत में दूरसंचार क्रांति हिंदी में निबंध – (Telecom Revolution In India Essay)
  • दूरसंचार में क्रांति निबंध – (Revolution In Telecommunication Essay)
  • राष्ट्रीय एकता का महत्व पर निबंध (Importance Of National Integration)
  • भारत की ऋतुएँ पर निबंध – (Seasons In India Essay)
  • भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – (Future Of Sports Essay)
  • किसी खेल (मैच) का आँखों देखा वर्णन पर निबंध – (Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan Essay)
  • राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध – (Criminalization Of Indian Politics Essay)
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हिन्दी निबंध – (Narendra Modi Essay)
  • बाल मजदूरी पर निबंध – (Child Labour Essay)
  • भ्रष्टाचार पर निबंध (Corruption Essay in Hindi)
  • महिला सशक्तिकरण पर निबंध – (Women Empowerment Essay)
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध (Beti Bachao Beti Padhao)
  • गरीबी पर निबंध (Poverty Essay in Hindi)
  • स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध (Swachh Bharat Abhiyan Essay)
  • बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध – (Child Marriage Essay)
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  • गंगा की सफाई देश की भलाई पर निबंध – (The Good Of The Country: Cleaning The Ganges Essay)
  • सत्संगति पर निबंध – (Satsangati Essay)
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  • परहित सरिस धरम नहिं भाई पर निबंध – (Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Essay)
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इसलिए, यह जानना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि विषय के बारे में संक्षिप्त और कुरकुरा लाइनों के साथ एक आदर्श हिंदी निबन्ध कैसे लिखें। साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं। तो, छात्र आसानी से स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें, इसकी तैयारी कर सकते हैं। इसके अलावा, आप हिंदी निबंध लेखन की संरचना, हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए टिप्स आदि के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। ठीक है, आइए हिंदी निबन्ध के विवरण में गोता लगाएँ।

हिंदी निबंध लेखन – स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें?

प्रभावी निबंध लिखने के लिए उस विषय के बारे में बहुत अभ्यास और गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसे आपने निबंध लेखन प्रतियोगिता या बोर्ड परीक्षा के लिए चुना है। छात्रों को वर्तमान में हो रही स्थितियों और हिंदी में निबंध लिखने से पहले विषय के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानना चाहिए। हिंदी में पावरफुल निबन्ध लिखने के लिए सभी को कुछ प्रमुख नियमों और युक्तियों का पालन करना होगा।

हिंदी निबन्ध लिखने के लिए आप सभी को जो प्राथमिक कदम उठाने चाहिए उनमें से एक सही विषय का चयन करना है। इस स्थिति में आपकी सहायता करने के लिए, हमने सभी प्रकार के हिंदी निबंध विषयों पर शोध किया है और नीचे सूचीबद्ध किया है। एक बार जब हम सही विषय चुन लेते हैं तो विषय के बारे में सभी सामान्य और तथ्यों को एकत्र करते हैं और अपने पाठकों को संलग्न करने के लिए उन्हें अपने निबंध में लिखते हैं।

तथ्य आपके पाठकों को अंत तक आपके निबंध से चिपके रहेंगे। इसलिए, हिंदी में एक निबंध लिखते समय मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें और किसी प्रतियोगिता या बोर्ड या प्रतिस्पर्धी जैसी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर करें। ये हिंदी निबंध विषय पहली कक्षा से 10 वीं कक्षा तक के सभी कक्षा के छात्रों के लिए उपयोगी हैं। तो, उनका सही ढंग से उपयोग करें और हिंदी भाषा में एक परिपूर्ण निबंध बनाएं।

हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची

हिंदी निबन्ध विषयों और उदाहरणों की निम्न सूची को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे कि प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, सामान्य चीजें, अवसर, खेल, खेल, स्कूली शिक्षा, और बहुत कुछ। बस अपने पसंदीदा हिंदी निबंध विषयों पर क्लिक करें और विषय पर निबंध के लघु और लंबे रूपों के साथ विषय के बारे में पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त करें।

विषय के बारे में समग्र जानकारी एकत्रित करने के बाद, अपनी लाइनें लागू करने का समय और हिंदी में एक प्रभावी निबन्ध लिखने के लिए। यहाँ प्रचलित सभी विषयों की जाँच करें और किसी भी प्रकार की प्रतियोगिताओं या परीक्षाओं का प्रयास करने से पहले जितना संभव हो उतना अभ्यास करें।

हिंदी निबंधों की संरचना

Hindi Essay Parts

उपरोक्त छवि आपको हिंदी निबन्ध की संरचना के बारे में प्रदर्शित करती है और आपको निबन्ध को हिन्दी में प्रभावी ढंग से रचने के बारे में कुछ विचार देती है। यदि आप स्कूल या कॉलेजों में निबंध लेखन प्रतियोगिता में किसी भी विषय को लिखते समय निबंध के इन हिस्सों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से इसमें पुरस्कार जीतेंगे।

इस संरचना को बनाए रखने से निबंध विषयों का अभ्यास करने से छात्रों को विषय पर ध्यान केंद्रित करने और विषय के बारे में छोटी और कुरकुरी लाइनें लिखने में मदद मिलती है। इसलिए, यहां संकलित सूची में से अपने पसंदीदा या दिलचस्प निबंध विषय को हिंदी में चुनें और निबंध की इस मूल संरचना का अनुसरण करके एक निबंध लिखें।

हिंदी में एक सही निबंध लिखने के लिए याद रखने वाले मुख्य बिंदु

अपने पाठकों को अपने हिंदी निबंधों के साथ संलग्न करने के लिए, आपको हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखते समय कुछ सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। कुछ युक्तियाँ और नियम इस प्रकार हैं:

  • अपना हिंदी निबंध विषय / विषय दिए गए विकल्पों में से समझदारी से चुनें।
  • अब उन सभी बिंदुओं को याद करें, जो निबंध लिखने शुरू करने से पहले विषय के बारे में एक विचार रखते हैं।
  • पहला भाग: परिचय
  • दूसरा भाग: विषय का शारीरिक / विस्तार विवरण
  • तीसरा भाग: निष्कर्ष / अंतिम शब्द
  • एक निबंध लिखते समय सुनिश्चित करें कि आप एक सरल भाषा और शब्दों का उपयोग करते हैं जो विषय के अनुकूल हैं और एक बात याद रखें, वाक्यों को जटिल न बनाएं,
  • जानकारी के हर नए टुकड़े के लिए निबंध लेखन के दौरान एक नए पैराग्राफ के साथ इसे शुरू करें।
  • अपने पाठकों को आकर्षित करने या उत्साहित करने के लिए जहाँ कहीं भी संभव हो, कुछ मुहावरे या कविताएँ जोड़ें और अपने हिंदी निबंध के साथ संलग्न रहें।
  • विषय या विषय को बीच में या निबंध में जारी रखने से न चूकें।
  • यदि आप संक्षेप में हिंदी निबंध लिख रहे हैं तो इसे 200-250 शब्दों में समाप्त किया जाना चाहिए। यदि यह लंबा है, तो इसे 400-500 शब्दों में समाप्त करें।
  • महत्वपूर्ण हिंदी निबंध विषयों का अभ्यास करते समय इन सभी युक्तियों और बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, आप निश्चित रूप से किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं में कुरकुरा और सही निबंध लिख सकते हैं या फिर सीबीएसई, आईसीएसई जैसी बोर्ड परीक्षाओं में।

हिंदी निबंध लेखन पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. मैं अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार कैसे कर सकता हूं? अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक किताबों और समाचार पत्रों को पढ़ना और हिंदी में कुछ जानकारीपूर्ण श्रृंखलाओं को देखना है। ये चीजें आपकी हिंदी शब्दावली में वृद्धि करेंगी और आपको हिंदी में एक प्रेरक निबंध लिखने में मदद करेंगी।

2. CBSE, ICSE बोर्ड परीक्षा के लिए हिंदी निबंध लिखने में कितना समय देना चाहिए? हिंदी बोर्ड परीक्षा में एक प्रभावी निबंध लिखने पर 20-30 का खर्च पर्याप्त है। क्योंकि परीक्षा हॉल में हर मिनट बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, सभी वर्गों के लिए समय बनाए रखना महत्वपूर्ण है। परीक्षा से पहले सभी हिंदी निबन्ध विषयों से पहले अभ्यास करें और परीक्षा में निबंध लेखन पर खर्च करने का समय निर्धारित करें।

3. हिंदी में निबंध के लिए 200-250 शब्द पर्याप्त हैं? 200-250 शब्दों वाले हिंदी निबंध किसी भी स्थिति के लिए बहुत अधिक हैं। इसके अलावा, पाठक केवल आसानी से पढ़ने और उनसे जुड़ने के लिए लघु निबंधों में अधिक रुचि दिखाते हैं।

4. मुझे छात्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ औपचारिक और अनौपचारिक हिंदी निबंध विषय कहां मिल सकते हैं? आप हमारे पेज से कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों के लिए हिंदी में विभिन्न सामान्य और विशिष्ट प्रकार के निबंध विषय प्राप्त कर सकते हैं। आप स्कूलों और कॉलेजों में प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं और भाषणों के लिए हिंदी में इन छोटे और लंबे निबंधों का उपयोग कर सकते हैं।

5. हिंदी परीक्षाओं में प्रभावशाली निबंध लिखने के कुछ तरीके क्या हैं? हिंदी में प्रभावी और प्रभावशाली निबंध लिखने के लिए, किसी को इसमें शानदार तरीके से काम करना चाहिए। उसके लिए, आपको इन बिंदुओं का पालन करना चाहिए और सभी प्रकार की परीक्षाओं में एक परिपूर्ण हिंदी निबंध की रचना करनी चाहिए:

  • एक पंच-लाइन की शुरुआत।
  • बहुत सारे विशेषणों का उपयोग करें।
  • रचनात्मक सोचें।
  • कठिन शब्दों के प्रयोग से बचें।
  • आंकड़े, वास्तविक समय के उदाहरण, प्रलेखित जानकारी दें।
  • सिफारिशों के साथ निष्कर्ष निकालें।
  • निष्कर्ष के साथ पंचलाइन को जोड़ना।

निष्कर्ष हमने एक टीम के रूप में हिंदी निबन्ध विषय पर पूरी तरह से शोध किया और इस पृष्ठ पर कुछ मुख्य महत्वपूर्ण विषयों को सूचीबद्ध किया। हमने इन हिंदी निबंध लेखन विषयों को उन छात्रों के लिए एकत्र किया है जो निबंध प्रतियोगिता या प्रतियोगी या बोर्ड परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं। तो, हम आशा करते हैं कि आपको यहाँ पर सूची से हिंदी में अपना आवश्यक निबंध विषय मिल गया होगा।

यदि आपको हिंदी भाषा पर निबंध के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है, तो संरचना, हिंदी में निबन्ध लेखन के लिए टिप्स, हमारी साइट LearnCram.com पर जाएँ। इसके अलावा, आप हमारी वेबसाइट से अंग्रेजी में एक प्रभावी निबंध लेखन विषय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए इसे अंग्रेजी और हिंदी निबंध विषयों पर अपडेट प्राप्त करने के लिए बुकमार्क करें।

Translation of "Discrimination" into Hindi

पक्षपात, विवेक, विभेदन are the top translations of "Discrimination" into Hindi. Sample translated sentence: Because I don't want them discriminated against anymore." ↔ क्योंकि मैं नहीं चाहता कि बेटियों के साथ पक्षपात हो।"

A content descriptor developed by the Pan European Gaming Information (PEGI) and the British Board of Film Classification (BBFC).

Automatic translations of " Discrimination " into Hindi

"discrimination" in english - hindi dictionary.

Currently we have no translations for Discrimination in the dictionary, maybe you can add one? Make sure to check automatic translation, translation memory or indirect translations.

Translations with alternative spelling

a distinction; discernment, the act of discriminating, discerning, distinguishing, noting or perceiving differences between things. [..]

English-Hindi dictionary

Because I don't want them discriminated against anymore."

क्योंकि मैं नहीं चाहता कि बेटियों के साथ पक्षपात हो।"

distinct treatment on the basis of prejudice

Less frequent translations

Phrases similar to "Discrimination" with translations into Hindi

  • positive discrimination भाई भतीज़ावाद · सकारात्मक भेदभाव
  • discriminating विवेकी
  • price discrimination मूल्य निर्णय
  • racial discrimination जातिगत भेदभाव
  • discriminant method अच्छा रेखीयपक्षपात रहित भविष्यवक्ता · आवृत्ति का बटवारा · कारक विश्लेषण · कारकीय विश्लेषण · क्रीड़ा सिद्धान्त · घटक विश्लेषण · तदनुरूपक अनुरूपक विश्लेषण · पर खण्डीय विश्लेष्ण · प्रसरण का विश्लेषण · प्रायिकता परीक्षण · प्रोबेबिलिटी · बहुप्रसरण विश्लेषण · बहुसमाश्रय विश्लेषण · बेएसिआन सिद्धान्त · मल्टीकोलीनियरटी · मार्ग विश्लेषण · मोन्टकार्लो विधि · यादृच्छिक प्रक्रियाएँ · विविक्टिकर विधि · विविक्टिकर विश्लेषण · समाश्रयण विश्लेषण · सहप्रसरण का विश्लेषण · सांख्यिकीय अनिश्चितता · सांख्यिकीय निष्पादन · सांख्यिकीय विज्ञानी · सांख्यिकीय विधियाँ · सांख्यिकीय विभिन्नता · सांख्यिकीय विश्लेषण
  • discriminant analysis अच्छा रेखीयपक्षपात रहित भविष्यवक्ता · आवृत्ति का बटवारा · कारक विश्लेषण · कारकीय विश्लेषण · क्रीड़ा सिद्धान्त · घटक विश्लेषण · तदनुरूपक अनुरूपक विश्लेषण · पर खण्डीय विश्लेष्ण · प्रसरण का विश्लेषण · प्रायिकता परीक्षण · प्रोबेबिलिटी · बहुप्रसरण विश्लेषण · बहुसमाश्रय विश्लेषण · बेएसिआन सिद्धान्त · मल्टीकोलीनियरटी · मार्ग विश्लेषण · मोन्टकार्लो विधि · यादृच्छिक प्रक्रियाएँ · विविक्टिकर विधि · विविक्टिकर विश्लेषण · समाश्रयण विश्लेषण · सहप्रसरण का विश्लेषण · सांख्यिकीय अनिश्चितता · सांख्यिकीय निष्पादन · सांख्यिकीय विज्ञानी · सांख्यिकीय विधियाँ · सांख्यिकीय विभिन्नता · सांख्यिकीय विश्लेषण
  • linear discriminant analysis lda in ai
  • discriminate अंतर · अंतर करना · अन्तर करना या देखना · पक्षपात · पक्षपात करना · पहचानना · पृथक करना · भेद करना · भेद~करना · भेदकरना · लक्षण करना

Translations of "Discrimination" into Hindi in sentences, translation memory

Cambridge Dictionary

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Translation of discriminate – English–Hindi dictionary

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discriminate verb ( TREAT DIFFERENTLY )

Discriminate verb ( see a difference ).

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two-wheeler

a vehicle with two wheels, usually a bicycle

Keeping up appearances (Talking about how things seem)

Keeping up appearances (Talking about how things seem)

essay on discrimination in hindi

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Discrimination मीनिंग : Meaning of Discrimination in Hindi - Definition and Translation

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Definition of discrimination.

  • unfair treatment of a person or group on the basis of prejudice
  • the cognitive process whereby two or more stimuli are distinguished

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Synonym/Similar Words : favouritism , secernment , favoritism

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Hindi translation of 'discrimination'

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As politicians stoke religious hatred online, these veterans of social causes deliver their messages in person: “Talk to each other. Don’t let anyone divide you.”

A woman sitting in a chair talks to a few other women in a room with sky-blue walls. A sewing machine is in the background.

By Sameer Yasir

Reporting from Lucknow and New Delhi in India

One recent morning, Roop Rekha Verma, an 80-year-old peace activist and former university leader, walked through a north Indian neighborhood prone to sectarian strife and parked herself near a tea shop.

From her sling bag, she pulled out a bundle of pamphlets bearing messages of religious tolerance and mutual coexistence and began handing them to passers-by.

“Talk to each other. Don’t let anyone divide you,” one read in Hindi.

Spreading those simple words is an act of bravery in today’s India.

Ms. Verma and others like her are waging a lonely battle against a tide of hatred and bigotry increasingly normalized by India’s ruling Bharatiya Janata Party, or B.J.P.

As Prime Minister Narendra Modi and his deputies have vilified the country’s minorities in a yearslong campaign that has escalated during the current national election, the small band of aging activists has built bridges and preached harmony between religious groups.

They have continued to hit the pavement even as the price for dissent and free speech has become high, trying to keep the flame alive for the nonsectarian ideal embedded in India’s constitution and in their own memories.

More than three dozen human rights defenders, poets, journalists and opposition politicians face charges, including under antiterrorism laws, for criticizing Mr. Modi’s divisive policies, according to rights groups. (The government has said little about the charges, other than repeating its line that the law takes its own course.)

The crackdown has had a chilling effect on many Indians.

“That is where the role of these civil society activists becomes more important,” said Meenakshi Ganguly, a deputy director at Human Rights Watch. “Despite a crackdown, they are refusing to cow down, leading them to hold placards, distributing fliers, to revive a message that once was taken for granted.”

The use of posters and pamphlets to raise public awareness is a time-tested practice among Indian activists. Revolutionaries fighting for independence from British colonizers employed them to drum up support and mobilize ordinary Indians. Today, village leaders use them to spread awareness about health and other government programs.

Such old-school outreach may seem quixotic in the digital age. Every day, India’s social media spaces, reaching hundreds of millions of people, are inundated with anti-Muslim vitriol promoted by the B.J.P. and its associated right-wing organizations.

During the national election that ends next week, Mr. Modi and his party have targeted Muslims directly , by name, with brazen attacks both online and in campaign speeches. (The B.J.P. rejects accusations that it discriminates against Muslims, noting that government welfare programs under its supervision assist all Indians equally.)

Those who have worked in places torn apart by sectarian violence say polarization can be combated only by going to people on the streets and making them understand its dangers. Merely showing up can help.

For Ms. Verma, the seeds of her activism were planted during her childhood, when she listened to horror stories of the sectarian violence that left hundreds of thousands dead during the partition of the Indian subcontinent in 1947.

Later, as a university philosophy professor, she fought caste discrimination and religious divides both inside and outside the classroom. She opposed patriarchal attitudes even as slurs were thrown at her. In the early 1980s, when she noticed that the names of mothers were excluded from student admission forms, she pressed for their inclusion and won.

But more than anything else, it was the campaign to build a major Hindu temple in the town of Ayodhya in her home state of Uttar Pradesh that gave Ms. Verma’s life a new meaning.

In 1992, a Hindu mob demolished a centuries-old mosque there, claiming that the site had previously held a Hindu temple. Deadly riots followed. This past January, three decades later, the Ayodhya temple opened, inaugurated by Mr. Modi.

It was a significant victory for a Hindu nationalist movement whose maligning and marginalizing of Muslims is exactly what Ms. Verma has devoted herself to opposing.

The Hindu majority, she said, has a responsibility to protect minorities, “not become complicit in their demonization.”

While the government’s incitement of religious enmity is new in India, the sectarian divisions themselves are not. One activist, Vipin Kumar Tripathi, 76, a former physics professor at the prestigious Indian Institute of Technology in New Delhi, said he had started gathering students after classes and educating them about the dangers of “religious radicalization” in the early 1990s.

Today, Mr. Tripathi travels to different parts of India with a message of peace.

Recently, he stood in a corner of a busy train station in northeastern New Delhi. As office workers, students and laborers ran toward platforms, he handed information sheets and brochures to anyone who extended a hand.

His materials addressed some of the most provocative issues in India: the troubles in Kashmir, where the Modi government has rescinded the majority-Muslim region’s semi-autonomy ; the politics over the Ayodhya temple; and ordinary citizens’ rights to question their government.

“To respect God and to pretend to do that for votes are two different things,” read one of his handouts.

At the station, Anirudh Saxena, a tall man in his early 30s with a pencil mustache, stopped and looked Mr. Tripathi straight in the eyes.

“Sir, why are you doing this every week?” Mr. Saxena asked.

“Read this,” Mr. Tripathi told Mr. Saxena, handing him a small 10-page booklet. “This explains why we should read books and understand history instead of reading WhatsApp garbage and extracting pleasure out of someone’s pain.”

Mr. Saxena smiled, nodded his head and put the booklet in his handbag before disappearing into the crowd.

If just 10 out of a thousand people read his materials, Mr. Tripathi said, his job is done. “When truth becomes the casualty, you can only fight it on the streets,” he said.

Shabnam Hashmi, 66, another activist based in New Delhi, said she had helped distribute about four million pamphlets in the state of Gujarat after sectarian riots there in 2002. More than 1,000 people, most of them Muslims, died in the communal violence, which happened under the watch of Mr. Modi, who was the state’s top leader at the time.

During that period, she and her colleagues were harassed by right-wing activists, who threw stones at her and filed police complaints.

In 2016, months after Mr. Modi became prime minister, the government prohibited foreign funding for her organization. She has continued her street activism nonetheless.

“It is the most effective way of reaching the people directly,” she said. “What it does is, it somehow gives people courage to fight fear and keep resisting.”

“We might not be able to stop this craziness,” she added, “but that doesn’t mean we should stop fighting.”

Even before Mr. Modi’s rise, said Ms. Verma, the activist in Uttar Pradesh, governments never “showered roses” on her when she was doing things like leading marches and bringing together warring factions after flare-ups of religious violence.

Over the decades, she has been threatened with prison and bundled into police vehicles.

“But it was never so bad,” she said, as it has now become under Mr. Modi.

The space for activism may completely vanish, Ms. Verma said, as his party becomes increasingly intolerant of any scrutiny.

For now, she said, activists “are, sadly, just giving proof of our existence: that we may be demoralized, but we are still alive. Otherwise, hatred has seeped so deep it will take decades to rebuild trust.”

Sameer Yasir covers news from India and other countries in the region. He is based in New Delhi. More about Sameer Yasir

The Persistent Reality of Institutionalized Discrimination in Modern Society

This essay about institutionalized discrimination examines how systemic biases are deeply embedded in various institutions, perpetuating inequality and social injustice. It discusses how discrimination in the criminal justice system disproportionately affects people of color, leading to higher incarceration rates and harsher sentencing. In education, minority students face disparities in resources and disciplinary practices, resulting in lower academic achievement. The workplace is also highlighted, showing how women and minorities often encounter barriers to advancement and equitable pay. Additionally, healthcare disparities are addressed, illustrating how minority communities receive lower-quality treatment and have less access to care. The essay concludes with the need for policy reforms, cultural shifts, and individual accountability to address and dismantle these systemic barriers.

How it works

In many communities, institutionalized prejudice is still a deeply rooted problem that shapes marginalized people’ prospects and experiences. Inequality and social injustice are sustained by structural prejudices, which persist in many forms despite notable advancements in the civil rights and equality movements. It is necessary to continue monitoring this widespread issue and take proactive steps to undermine the systems that support it.

At its core, institutionalized discrimination refers to policies, practices, and norms within institutions that systematically disadvantage certain groups based on race, gender, sexuality, socioeconomic status, or other characteristics.

These discriminatory practices are often subtle, embedded in the standard operating procedures of organizations, and perpetuated by cultural norms that favor the dominant group. Unlike overt discrimination, which is explicit and identifiable, institutionalized discrimination is insidious, operating beneath the surface and often going unnoticed by those who are not directly affected by it.

One of the most glaring examples of institutionalized discrimination is evident in the criminal justice system. Studies have consistently shown that people of color, particularly Black and Hispanic individuals, are disproportionately targeted by law enforcement, face harsher sentencing, and have higher incarceration rates compared to their white counterparts. This disparity is not solely a result of individual biases but is also a consequence of systemic practices such as racial profiling, mandatory minimum sentencing laws, and the war on drugs, which disproportionately impacts minority communities.

Education is another area where institutionalized discrimination is prevalent. Minority students often attend underfunded schools with fewer resources, less experienced teachers, and inadequate facilities compared to schools in predominantly white, affluent neighborhoods. This educational inequity results in lower academic achievement and reduced opportunities for higher education and employment for students from marginalized backgrounds. Additionally, disciplinary practices in schools often disproportionately affect minority students, contributing to the school-to-prison pipeline, where students are funneled from the educational system into the criminal justice system.

In the workplace, institutionalized discrimination manifests through hiring practices, promotion policies, and workplace culture that favor certain groups over others. Women, for instance, often face a glass ceiling that limits their advancement to top leadership positions, and they are typically paid less than their male counterparts for the same work. Similarly, employees from minority backgrounds may encounter biases that hinder their professional growth, such as being overlooked for promotions or being subjected to microaggressions and a hostile work environment. These systemic barriers contribute to the persistence of income inequality and limit the economic mobility of marginalized groups.

Healthcare disparities also illustrate the pervasive nature of institutionalized discrimination. Minority communities often have less access to quality healthcare, face higher rates of chronic illnesses, and receive lower-quality treatment compared to white patients. These disparities are exacerbated by factors such as socioeconomic status, residential segregation, and implicit biases among healthcare providers. The COVID-19 pandemic has further highlighted these inequities, with minority groups experiencing higher infection rates and mortality due to a combination of preexisting health disparities and systemic barriers to adequate healthcare.

Addressing institutionalized discrimination requires a multifaceted approach that includes policy reforms, cultural shifts, and individual accountability. Policies that promote equality and diversity, such as affirmative action and anti-discrimination laws, are crucial in leveling the playing field. However, policy changes alone are insufficient; there must also be a concerted effort to change the underlying cultural norms that perpetuate discrimination. This involves raising awareness, fostering inclusive environments, and encouraging individuals to confront their own biases and advocate for systemic change.

Moreover, institutions must implement measures to ensure accountability and transparency in their operations. This includes conducting regular audits to identify and address discriminatory practices, providing diversity and inclusion training for employees, and establishing mechanisms for reporting and addressing grievances related to discrimination. By creating an environment where equity and inclusion are prioritized, institutions can begin to dismantle the structures that uphold discrimination and move towards a more just and equitable society.

In summary, institutionalized prejudice is a widespread problem that has an impact on a variety of societal domains, including the criminal justice system, the labor market, healthcare, and education. An all-encompassing strategy that incorporates individual acts, cultural changes, and institutional reforms is needed to address this issue. We can only hope to remove the structural obstacles that support inequality and make sure that everyone has the chance to prosper by persistently working toward our goals.

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The Persistent Reality of Institutionalized Discrimination in Modern Society. (2024, Jun 01). Retrieved from https://papersowl.com/examples/the-persistent-reality-of-institutionalized-discrimination-in-modern-society/

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PapersOwl.com. (2024). The Persistent Reality of Institutionalized Discrimination in Modern Society . [Online]. Available at: https://papersowl.com/examples/the-persistent-reality-of-institutionalized-discrimination-in-modern-society/ [Accessed: 3 Jun. 2024]

"The Persistent Reality of Institutionalized Discrimination in Modern Society." PapersOwl.com, Jun 01, 2024. Accessed June 3, 2024. https://papersowl.com/examples/the-persistent-reality-of-institutionalized-discrimination-in-modern-society/

"The Persistent Reality of Institutionalized Discrimination in Modern Society," PapersOwl.com , 01-Jun-2024. [Online]. Available: https://papersowl.com/examples/the-persistent-reality-of-institutionalized-discrimination-in-modern-society/. [Accessed: 3-Jun-2024]

PapersOwl.com. (2024). The Persistent Reality of Institutionalized Discrimination in Modern Society . [Online]. Available at: https://papersowl.com/examples/the-persistent-reality-of-institutionalized-discrimination-in-modern-society/ [Accessed: 3-Jun-2024]

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News | LA lifeguard alleges religious discrimination in lawsuit over pride flags

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Capt. Jeffrey Little, who describes himself as a devout evangelical Christian who has worked for Los Angeles County for more than 22 years, stated in the lawsuit that he took down three Pride Flags at his workplace in Pacific Palisades last June hoisted in support of LGBTQ residents because he did not want to work “in these conditions.”

Last year, the county’s Board of Supervisors voted to require that many government buildings — including the facilities where Little worked at Will Rogers Beach, home to an LGBTQ-friendly section known as Ginger Rogers Beach — fly the Progress Pride Flag throughout June, which is Pride Month.

“The views commonly associated with the Progress Pride Flag on marriage, sex, and family are in direct conflict with Captain Little’s bona fide and sincerely held religious beliefs on the same subjects,” according to the suit filed in Los Angeles federal court. “His bona fide and sincerely held religious beliefs require him to reject those views.”

Little’s suit, which names the fire department and three chief officers in the lifeguard division as defendants, alleges that after he took down the flags, he was suspended from his role with the department’s background investigation unit, which investigates emergencies on the beach.

A representative for the L.A. County Fire Department, which oversees lifeguards, said the department cannot comment on personnel issues or any ongoing litigation.

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