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दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi)

दहेज मूल रूप से शादी के दौरान दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को दिए नकदी, आभूषण, फर्नीचर, संपत्ति और अन्य कीमती वस्तुओं आदि की इस प्रणाली को दहेज प्रणाली कहा जाता है। यह सदियों से भारत में प्रचलित है। दहेज प्रणाली समाज में प्रचलित बुराइयों में से एक है। यह मानव सभ्यता पुरानी है और यह दुनिया भर में कई हिस्सों में फैली हुई है।

दहेज़ प्रथा पर छोटे तथा लंबे निबंध (Short and Long Essay on Dowry System in Hindi, Dahej Pratha par Nibandh Hindi mein)

दहेज़ प्रथा पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

दहेज भारत के विभिन्न हिस्सों में फैली एक पुरानी प्रथा है और आज भी प्रचलित है। यह शादी होने पर दो परिवारों के बीच पैसे या उपहारों का आदान-प्रदान है। दुल्हन के माता-पिता द्वारा दूल्हे या उसके परिवार को पैसा या महँगी चीजे देना दहेज़ प्रथा कहलाता है। यह हमारे देश में प्रचलित एक सामाजिक कुप्रथा है जिसके कारण लड़की के माता-पिता पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।

दहेज प्रथा के कारण

समाज में दहेज प्रथा के बढ़ने का एक मुख्य कारण पुरुष प्रधान समाज है। यह एक ऐसी स्थिति पैदा करता है जिसमें माता-पिता अपनी बेटी की शादी सुनिश्चित करने के लिए दहेज देने के लिए मजबूर होते हैं। दोनों लिंगों के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानता एक और प्रमुख कारक है जो हमारे देश में दहेज प्रथा के प्रसार का कारण बनता है।

दहेज प्रथा के प्रभाव

दहेज प्रथा का भारतीय आबादी पर दूरगामी प्रभाव पड़ा है और इसने समाज को बहुत नुकसान पहुँचाया है। इसने दुल्हन के परिवारों के लिए एक बड़ा वित्तीय बोझ पैदा कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वे भारी कर्ज में डूब जाते है। यह प्रथा कभी-कभी परिवारों को उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेने या यहां तक कि दहेज के लिए अपनी संपत्ति बेचने के लिए मजबूर करता है। इसके परिणामस्वरूप कई निर्दोष लोगों की मौत भी हुई है क्योंकि लोग दूल्हे के परिवार की मांगों को पूरा करने के लिए इस प्रकार के कदम भी उठाते हैं।

दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है जो कई सदियों से भारतीय समाज को प्रभावित करती आ रही है। सरकार के प्रयासों के बावजूद, यह प्रथा अभी भी भारत के अधिकांश हिस्सों में प्रचलित है। इस प्रथा के पीछे सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ना और समाज में लैंगिक समानता का माहौल बनाना जरूरी है।

Dahej Pratha par Nibandh – 2 (400 शब्द)

दहेज प्रथा जो लड़कियों को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए एक सभ्य प्रक्रिया के रूप में शुरू की गई, क्योंकि वे नए सिरे से अपना जीवन शुरू करती हैं, धीरे-धीरे समाज की सबसे बुरी प्रथा बन गई है। जैसे बाल विवाह, बाल श्रम, जाति भेदभाव, लिंग असमानता, दहेज प्रणाली आदि भी बुरी सामाजिक प्रथाओं में से एक है जिसका समाज को समृद्ध करने के लिए उन्मूलन की जरूरत है। हालांकि दुर्भाग्य से सरकार और विभिन्न सामाजिक समूहों द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद यह बदनाम प्रथा अभी भी समाज का हिस्सा बनी हुई है।

दहेज प्रणाली अभी भी कायम क्यों है ?

सवाल यह है कि दहेज को एक दंडनीय अपराध घोषित करने के बाद और कई अभियानों के माध्यम से इस प्रथा के असर के बारे में जागरूकता फैलाने के बाद भी लोग इसका पालन क्यों कर रहे हैं? यहां कुछ मुख्य कारण बताए गए हैं कि दहेज व्यवस्था जनता के द्वारा निंदा किए जाने के बावजूद बरकरार क्यों हैं:

  • परंपरा के नाम पर

दुल्हन के परिवार की स्थिति का अनुमान दूल्हे और उसके परिवार को गहने, नकद, कपड़े, संपत्ति, फर्नीचर और अन्य परिसंपत्तियों के रूप में उपहार देने से लगाया जाता है। यह चलन दशकों से प्रचलित है। इसे देश के विभिन्न भागों में परंपरा का नाम दिया गया है और जब शादी जैसा अवसर होता है तो लोग इस परंपरा को नजरअंदाज करने की हिम्मत नहीं कर पाते। लोग इस परंपरा का अंधाधुंध पालन कर रहे हैं हालांकि यह अधिकांश मामलों में दुल्हन के परिवार के लिए बोझ साबित हुई है।

  • प्रतिष्ठा का प्रतीक

कुछ लोगों के लिए दहेज प्रथा एक सामाजिक प्रतीक से अधिक है। लोगों का मानना है कि जो लोग बड़ी कार और अधिक से अधिक नकद राशि दूल्हे के परिवार को देते हैं इससे समाज में उनके परिवार की छवि अच्छी बनती है। इसलिए भले ही कई परिवार इन खर्चों को बर्दाश्त ना कर पाएं पर वे शानदार शादी का प्रबंध करते हैं और दूल्हे तथा उसके रिश्तेदारों को कई उपहार देते हैं। यह इन दिनों एक प्रतियोगिता जैसा हो गया है जहाँ हर कोई दूसरे को हराना चाहता है।

  • सख्त कानूनों का अभाव

हालांकि सरकार ने दहेज को दंडनीय अपराध बनाया है पर इससे संबंधित कानून को सख्ती से लागू नहीं किया गया है। विवाह के दौरान दिए गए उपहारों और दहेज के आदान-प्रदान पर कोई रोक नहीं है। ये खामियां मुख्य कारणों में से एक हैं क्यों यह बुरी प्रथा अभी भी मौजूद है।

इन के अलावा लैंगिक असमानता और निरक्षरता भी इस भयंकर सामाजिक प्रथा के प्रमुख योगदानकर्ता हैं।

यह दुखदाई है कि भारत में लोगों द्वारा दहेज प्रणाली के दुष्प्रभावों को पूरी तरह से समझने के बाद भी यह जारी है। यह सही समय है कि देश में इस समस्या को खत्म करने के लिए हमें आवाज़ उठानी चाहिए।

दहेज़ प्रथा पर निबंध – 3 (500 शब्द)

प्राचीन काल से ही दहेज प्रणाली हमारे समाज के साथ-साथ विश्व के कई अन्य समाजों में भी प्रचलित है। यह बेटियों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद करने के रूप में शुरू हुई थी क्योंकि वे विवाह के बाद नए स्थान पर नए तरीके से अपना जीवन शुरू करती है पर समय बीतने के साथ यह महिलाओं की मदद करने के बजाए एक घृणित प्रथा में बदल गई।

दहेज सोसायटी के लिए एक अभिशाप है

दहेज दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे और उसके परिवार को नकद, संपत्ति और अन्य संपत्तियों के रूप में उपहार देने की प्रथा है जिसे वास्तव में महिलाओं, विशेष रूप से दुल्हनों, के लिए शाप कहा जा सकता है। दहेज ने महिलाओं के खिलाफ कई अपराधों को जन्म दिया है। यहाँ विभिन्न समस्याओं पर एक नजर है जो इस प्रथा से दुल्हन और उसके परिवार के सदस्यों के लिए उत्पन्न होती है:

  • परिवार पर वित्तीय बोझ

हर लड़की के माता-पिता उसके जन्म के बाद से उसकी शादी के लिए बचत करना शुरू कर देते हैं। वे कई साल शादी के लिए बचत करते हैं क्योंकि शादी के मामले में सजावट से लेकर खानपान तक की पूरी जिम्मेदारी उनके ही कंधों पर होती है। इसके अलावा उन्हें दूल्हे, उसके परिवार और उसके रिश्तेदारों को भारी मात्रा में उपहार देने की आवश्यकता होती है। कुछ लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों से पैसे उधार लेते हैं जबकि अन्य इन मांगों को पूरा करने के लिए बैंक से ऋण लेते हैं।

  • जीवन स्तर को कम करना

दुल्हन के माता-पिता अपनी बेटी की शादी पर इतना खर्च करते हैं कि वे अक्सर अपने जीवन स्तर को कम करते हैं। कई लोग बैंक ऋण के चक्कर में फंसकर अपना पूरा जीवन इसे चुकाने में खर्च कर देते हैं।

  • भ्रष्टाचार को सहारा देना

जिस व्यक्ति के घर में बेटी ने जन्म लिया है उसके पास दहेज देने और एक सभ्य विवाह समारोह का आयोजन करने से बचने का कोई विकल्प नहीं है। उन्हें अपनी लड़की की शादी के लिए पैसा जमा करना होता है और इसके लिए लोग कई भ्रष्ट तरीकों जैसे कि रिश्वत लेने, टैक्स चोरी करने या अनुचित साधनों के जरिए कुछ व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन करना शुरू कर देते हैं।

  • लड़की के लिए भावनात्मक तनाव

सास-ससुर अक्सर उनकी बहू द्वारा लाए गए उपहारों की तुलना उनके आसपास की अन्य दुल्हनों द्वारा लाए गए उपहारों से करते हैं और उन्हें नीचा महसूस कराते हुए व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं। लड़कियां अक्सर इस वजह से भावनात्मक रूप से तनाव महसूस करती हैं और मानसिक अवसाद से पीड़ित होती हैं।

  • शारीरिक शोषण

जहाँ कुछ ससुराल वालों ने अपनी बहू के साथ बदसलूकी करने की आदत बना रखी है और कभी भी उसे अपमानित करने का मौका नहीं छोड़ते वहीँ कुछ ससुराल वाले अपनी बहू का शारीरिक शोषण करने में पीछे नहीं रहते। कई मामले दहेज की भारी मांग को पूरा करने में अपनी अक्षमता के कारण महिलाओं को मारने और जलाने के समय-समय पर उजागर होते रहते हैं।

  • कन्या भ्रूण हत्या

एक लड़की को हमेशा परिवार के लिए बोझ के रूप में देखा जाता है। यह दहेज प्रणाली ही है जिसने कन्या भ्रूण हत्या को जन्म दिया है। कई दम्पतियों ने कन्या भ्रूण हत्या का विरोध भी किया है। भारत में नवजात कन्या को लावारिस छोड़ने के मामले भी सामान्य रूप से उजागर होते रहे हैं।

दहेज प्रथा की जोरदार निंदा की जाती है। सरकार ने दहेज को एक दंडनीय अपराध बनाते हुए कानून पारित किया है लेकिन देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी भी इसका पालन किया जा रहा है जिससे लड़कियों और उनके परिवारों का जीना मुश्किल हो रहा है।

निबंध 4 (600 शब्द) – Dahej Pratha par Nibandh

दहेज प्रणाली भारतीय समाज का प्रमुख हिस्सा रही है। कई जगहों पर यह भारतीय संस्कृति में अंतर्निहित होने के लिए जानी जाती है और उन जगहों पर यह परंपरा से भी बढ़कर है। दुल्हन के माता-पिता ने इस अनुचित परंपरा को शादी के दौरान नकद रूपए और महंगे तोहफों को बेटियों को देकर उन की मदद के रूप में शुरू किया क्योंकि उन्हें शादी के बाद पूरी तरह से नई जगह पर अपना नया जीवन शुरू करना पड़ता था।

शुरुआत में दुल्हन को नकद, आभूषण और ऐसे अन्य उपहार दिए जाते थे परन्तु इस प्रथा का एकमात्र उद्देश्य समय गुजरने के साथ बदलता चला गया और अब उपहार दूल्हा, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों को दिए जाते हैं। दुल्हन को दिए गए गहने, नकदी और अन्य सामान भी ससुराल वालों द्वारा सुरक्षित अपने पास रखे जाते हैं। इस प्रथा ने निरपेक्षता, लिंग असमानता और सख्त कानूनों की कमी जैसे कई कारकों को जन्म दिया है।

दहेज प्रणाली के खिलाफ कानून

दहेज प्रणाली भारतीय समाज में सबसे जघन्य सामाजिक प्रणालियों में से एक है। इसने कई तरह के मुद्दों जैसे कन्या भ्रूण हत्या, लड़की को लावारिस छोड़ना, लड़की के परिवार में वित्तीय समस्याएं, पैसे कमाने के लिए अनुचित साधनों का उपयोग करना, बहू का भावनात्मक और शारीरिक शोषण करने को जन्म दिया है। इस समस्या को रोकने के लिए सरकार ने दहेज को दंडनीय अधिनियम बनाते हुए कानून बनाए हैं। यहां इन कानूनों पर विस्तृत रूप से नज़र डाली गई है:

दहेज निषेध अधिनियम , 1961

इस अधिनियम के माध्यम से दहेज देने और लेने की निगरानी करने के लिए एक कानूनी व्यवस्था लागू की गई थी। इस अधिनियम के अनुसार दहेज लेन-देन की स्थिति में जुर्माना लगाया जा सकता है। सजा में कम से कम 5 वर्ष का कारावास और 15,000 रुपये का न्यूनतम जुर्माना या दहेज की राशि के आधार पर शामिल है। दहेज की मांग दंडनीय है। दहेज की कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मांग करने पर भी 6 महीने का कारावास और 10,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।

घरेलू हिंसा अधिनियम , 2005 से महिला का संरक्षण

बहुत सी महिलाओं के साथ अपने ससुराल वालों की दहेज की मांग को पूरा करने के लिए भावनात्मक और शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है। इस तरह के दुरुपयोग के खिलाफ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए इस कानून को लागू किया गया है। यह महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाता है। शारीरिक, भावनात्मक, मौखिक, आर्थिक और यौन सहित सभी प्रकार के दुरुपयोग इस कानून के तहत दंडनीय हैं। विभिन्न प्रकार की सजा और दुरुपयोग की गंभीरता अलग-अलग है।

दहेज प्रणाली को समाप्त करने के संभावित तरीके

सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों के बावजूद दहेज प्रणाली की अभी भी समाज में एक मजबूत पकड़ है। इस समस्या को समाप्त करने के लिए यहां कुछ समाधान दिए गए हैं:

दहेज प्रणाली, जाति भेदभाव और बाल श्रम जैसे सामाजिक प्रथाओं के लिए शिक्षा का अभाव मुख्य योगदानकर्ताओं में से एक है। लोगों को ऐसे विश्वास प्रणालियों से छुटकारा पाने के लिए तार्किक और उचित सोच को बढ़ावा देने के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए जो ऐसी बुरे प्रथाओं को जन्म देते हैं।

  • महिला सशक्तीकरण

अपनी बेटियों के लिए एक अच्छी तरह से स्थापित दूल्हे की तलाश में और बेटी की शादी में अपनी सारी बचत का निवेश करने के बजाए लोगों को अपनी बेटी की शिक्षा पर पैसा खर्च करना चाहिए और उसे स्वयं खुद पर निर्भर करना चाहिए। महिलाओं को अपने विवाह के बाद भी काम करना जारी रखना चाहिए और ससुराल वालों के व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के प्रति झुकने की बजाए अपने कार्य पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करना चाहिए। महिलाओं को अपने अधिकारों, और वे किस तरह खुद को दुरुपयोग से बचाने के लिए इनका उपयोग कर सकती हैं, से अवगत कराया जाना चाहिए।

  • लैंगिक समानता

हमारे समाज में मूल रूप से मौजूद लिंग असमानता दहेज प्रणाली के मुख्य कारणों में से एक है। बहुत कम उम्र से बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि दोनों, पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकार हैं और कोई भी एक-दूसरे से बेहतर या कम नहीं हैं।

इसके अलावा इस मुद्दे को संवेदनशील बनाने के लिए तरह तरह के अभियान आयोजित किए जाने चाहिए और सरकार द्वारा निर्धारित कानूनों को और अधिक कड़े बनाना चाहिए।

दहेज प्रणाली लड़की और उसके परिवार के लिए पीड़ा का कारण है। इस कुरीति से छुटकारा पाने के लिए यहां उल्लिखित समाधानों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इन्हें कानून में शामिल करना चाहिए। इस प्रणाली को समाप्त करने के लिए सरकार और आम जनता को साथ खड़ा होने की ज़रूरत है।

Essay on Dowry System

FAQs: Frequently Asked Questions on Dowry System (दहेज़ प्रथा पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

उत्तर- शिक्षा का प्रसार एवं बच्चों की परवरिश में समरूपता के साथ-साथ उच्च कोटि के संस्कार का आचरण।

उत्तर- केरल

उत्तर- उत्तर प्रदेश में

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दहेज प्रथा पर निबंध 10 lines 100, 200, 250, 300, 500, 1000, शब्दों मे (Dowry System Essay in Hindi)

dowry system in india essay in hindi

दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) – दहेज प्रथा भारतीय समाज में सबसे लंबे समय से चले आ रहे अन्यायों में से एक है जो विवाह से जुड़ा है। 21वीं सदी में सूक्ष्म और प्रत्यक्ष दोनों रूपों में यह प्रथा अब भी आम है, इसके खिलाफ बहुत सी बातें और कार्रवाई करने के बावजूद। यहाँ ‘दहेज प्रथा’ पर कुछ नमूना निबंध दिए गए हैं।

दहेज प्रथा पर 10 लाइनें (10 Lines on Dowry System in Hindi)

  • 1) दहेज वह उपहार है जो दुल्हन को उसके पिता की ओर से उसके विवाह के समय दिया जाता है।
  • 2) दहेज प्रथा तब बन जाती है जब दूल्हे का परिवार दुल्हन के परिवार से महंगे उपहार की मांग करता है।
  • 3) यह भारतीय समाज की उन बुराइयों में से एक है जिसने बहुत सारे परिवारों को बर्बाद कर दिया है।
  • 4) इसके बुरे प्रभावों के बावजूद, भारतीय समाज में दहेज प्रथा अभी भी प्रचलित है।
  • 5) शादी तय करते समय दूल्हे का परिवार दुल्हन के परिवार पर दहेज के लिए दबाव बनाने लगता है।
  • 6) कई ऐसी शादियां भी रद्द कर दी गई हैं जहां दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार की भारी मांगों को पूरा करने में असमर्थ था।
  • 7) शादी के बाद स्थिति गंभीर हो जाती है जब उचित दहेज न लाने पर दुल्हन को प्रताड़ित, पीटा और प्रताड़ित किया जाता है।
  • 8) नियमित यातना और अपमान दुल्हन को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करता है या दूल्हे के परिवार द्वारा जबरन जला दिया जाता है।
  • 9) पुलिस का कहना है कि हर साल दुल्हन को जलाने की 2500 से अधिक रिपोर्ट और दहेज हत्या की 9000 रिपोर्ट प्राप्त होती है।
  • 10) दहेज हत्या को रोकने और दहेज प्रथा का पालन करने वालों को दंडित करने के लिए सरकार ने कड़े कानून बनाए हैं।

दहेज प्रथा पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay On Dowry System in Hindi)

भारत में दहेज प्रथा एक लंबे समय से चली आ रही प्रथा है और भारतीय संस्कृति में इसकी गहरी जड़ें हैं। यह दो परिवारों के बीच एक पूर्व-निर्धारित समझौता है और आमतौर पर शादी के समय तय किया जाता है। दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को विभिन्न उपहार और धन प्रदान करता है। इन उपहारों में आमतौर पर आभूषण, कपड़े और नकद शामिल होते हैं। यद्यपि यह प्रणाली व्यापक रूप से स्वीकृत है, इसके कई नकारात्मक प्रभाव हैं। सबसे गंभीर परिणाम यह है कि यह लैंगिक भेदभाव की ओर ले जाता है। कुछ मामलों में, दूल्हे के परिवार से दहेज की मांग इतनी अधिक हो सकती है कि दुल्हन के परिवार के लिए उन्हें पूरा करना असंभव हो जाता है। इससे दुल्हन के परिवार को सामाजिक भेदभाव और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।

दहेज प्रथा पर 200 शब्दों का निबंध (200 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रथा भारत में सदियों पुरानी प्रथा है, और यह आज भी मजबूत हो रही है। दहेज पैसे और/या संपत्ति का एक उपहार है जो एक दुल्हन का परिवार अपने दूल्हे के परिवार को उनकी शादी के दिन देता है। यह आमतौर पर दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन की देखभाल करने और उसे प्रदान करने के बदले में किया जाने वाला भुगतान होता है। यह प्रणाली आज भी भारत में बहुत अधिक प्रचलन में है, और इसे अक्सर सामाजिक स्थिति के संकेत के रूप में देखा जाता है।

दहेज प्रथा के नकारात्मक प्रभावों का उचित हिस्सा है। शुरुआत के लिए, अभ्यास एक गहरी जड़ वाली लैंगिक असमानता को प्रोत्साहित करता है। लड़कियों को अक्सर आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता है और परिवारों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी बेटी की शादी के लिए मोटी रकम अदा करें। इससे संपन्न परिवारों में भी आर्थिक शोषण के मामले सामने आए हैं। इसके अलावा, एक बड़ा दहेज देने का दबाव अक्सर परिवारों को कर्ज में डूब जाता है। ग्रामीण इलाकों में यह विशेष रूप से समस्याग्रस्त है, जहां कई लोग पहले से ही गुज़ारा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। नतीजतन, कई लड़कियां शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं।

हालाँकि, भारत में मौजूदा दहेज प्रथा के खिलाफ लड़ने के लिए कई पहल की गई हैं। भारत सरकार ने दहेज की मांग को अवैध बना दिया है, और गैर-लाभकारी संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो।

दहेज प्रथा पर 250 शब्दों का निबंध (250 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) – दहेज वह गतिविधि है जो विवाह के समय की जाती है जब दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को नकद, चल संपत्ति या अचल संपत्ति के रूप में धन हस्तांतरित करता है। दहेज प्रथा के अस्तित्व का पता लगाना कठिन है, लेकिन यह भारत में लंबे समय से अस्तित्व में है।

दहेज प्रथा दुल्हन के परिवार के सिर पर काले बादल ला देती है। युवा लड़कियों के पिता अपनी बेटी की शादी के दिन से डरते हैं और उस दिन के लिए पैसे बचाते हैं। भारत के उत्तरी भाग में, जातिवाद के साथ-साथ दहेज प्रथा काफी अधिक प्रचलित है। दहेज महिलाओं के लिए एक बुरे सपने के अलावा कुछ नहीं है। हर महिला बदसूरत दौर से गुजरती है, जहां उसे ऐसा महसूस कराया जाता है कि वह एक दायित्व है।

दहेज प्रथा के खिलाफ देश लगातार लड़ रहा है। विभिन्न गैर सरकारी संगठनों ने आगे आकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाकर इस मुद्दे को उठाया है। नवविवाहितों की ओर मदद का हाथ बढ़ाने के खूबसूरत भाव ने एक बदसूरत मोड़ ले लिया है।

दहेज एक दंडनीय अपराध है, और जो कोई भी, किसी भी तरह से, सच्चाई का समर्थन करने या यहां तक ​​कि छिपाने की कोशिश करता है, उसे कानूनी परिणाम भुगतने होंगे। दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत दहेज देने वाले और लेने वाले दोनों पक्षों को दंडित किया जाएगा।

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दहेज प्रथा पर 300 शब्दों का निबंध (300 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रणाली, जिसमें दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को नकद और उपहार के रूप में उपहार देता है, समाज द्वारा काफी हद तक निंदा की जाती है, हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि इसके अपने फायदे हैं और लोग अभी भी इसका पालन कर रहे हैं क्योंकि यह करता है दुल्हन के लिए महत्व रखते हैं और उन्हें कुछ खास तरीकों से लाभ पहुंचाते हैं।

क्या दहेज प्रथा के कोई लाभ हैं?

इन दिनों कई जोड़े स्वतंत्र रूप से रहना पसंद करते हैं और ऐसा कहा जाता है कि दहेज जिसमें ज्यादातर नकद, फर्नीचर, कार और ऐसी अन्य संपत्तियां देना शामिल है, उनके लिए वित्तीय सहायता के रूप में कार्य करता है और उन्हें एक अच्छे नोट पर अपना नया जीवन शुरू करने में मदद करता है। जैसा कि दूल्हा और दुल्हन दोनों ने अभी अपना करियर शुरू किया है और आर्थिक रूप से इतने मजबूत नहीं हैं कि वे इतने बड़े खर्च को एक साथ वहन नहीं कर सकते। लेकिन क्या इसकी वाजिब वजह है? अगर ऐसा है तो दोनों परिवारों को सारा बोझ दुल्हन के परिवार पर डालने के बजाय उन्हें निपटाने में निवेश करना चाहिए। इसके अलावा, यह अच्छा होना चाहिए अगर परिवार कर्ज में डूबे बिना या अपने स्वयं के जीवन स्तर को कम किए बिना नवविवाहितों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते हैं।

कई लोग यह भी तर्क देते हैं कि जो लड़कियां अच्छी नहीं दिखती हैं, वे बाद की वित्तीय मांगों को पूरा करके दूल्हा ढूंढ सकती हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लड़कियों को एक बोझ के रूप में देखा जाता है और 20 साल की उम्र में उनकी शादी कर देना उनके माता-पिता की प्राथमिकता है जो इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। ऐसे मामलों में भारी दहेज देना काम करता है और यह कुप्रथा उन लोगों के लिए वरदान की तरह लगती है जो अपनी बेटियों के लिए दूल्हा ढूंढ (खरीद) पाते हैं। हालांकि, अब समय आ गया है कि ऐसी मानसिकता बदलनी चाहिए।

दहेज प्रथा के समर्थकों का यह भी कहना है कि दूल्हे और उसके परिवार को बड़ी मात्रा में उपहार देने से परिवार में दुल्हन की स्थिति बढ़ जाती है। हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में इसने लड़कियों के खिलाफ काम किया है।

दहेज प्रथा के पैरोकार व्यवस्था का समर्थन करने के लिए विभिन्न अनुचित कारणों के साथ सामने आ सकते हैं लेकिन तथ्य यह है कि यह समग्र रूप से समाज के लिए अच्छे से अधिक नुकसान करता है।

दहेज प्रथा पर 500 शब्दों का निबंध (500 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) – दहेज प्रथा भारत में एक सदियों पुरानी प्रथा है जो दुल्हन के परिवार से दूल्हे के परिवार को संपत्ति और धन के हस्तांतरण को संदर्भित करती है। यह प्रणाली भारत और कुछ अन्य देशों में सबसे लोकप्रिय है। बड़े होकर हममें से अधिकांश लोगों ने इस प्रणाली को देखा या सुना है। दहेज प्रथा के कारण दुल्हन का परिवार पीड़ित है। कई बार दूल्हे पक्ष की दहेज की मांग पूरी नहीं होने पर अचानक शादी तोड़ दी जाती है। इसके अलावा, यह प्रणाली दुल्हन के परिवार पर भी बहुत दबाव डालती है, खासकर दुल्हन के पिता पर। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे दूल्हे के परिवार को सभी उपहार और धन प्रदान करें। यह एक बड़ा वित्तीय बोझ हो सकता है और परिवार की वित्तीय अस्थिरता का कारण बन सकता है।

1961 का भारत सरकार अधिनियम इस घृणित सामाजिक प्रथा को समाप्त करने के सरकार के प्रयास के तहत व्यक्तियों को दहेज स्वीकार करने से रोकता है।

दहेज प्रथा का नकारात्मक प्रभाव

अन्याय | दुल्हन के परिवार के लिए दहेज एक महत्वपूर्ण वित्तीय बोझ है। इसलिए एक लड़की को परिवार पर एक संभावित बोझ और संभावित वित्तीय नाली के रूप में देखा जाता है। यह दृष्टिकोण कन्या भ्रूण हत्या और भ्रूण हत्या का रूप ले लेता है। लड़कियों को स्कूली शिक्षा के उन क्षेत्रों में अक्सर हाशिए पर रखा जाता है जहां परिवार के लड़कों को वरीयता दी जाती है। परिवार के सम्मान को बनाए रखने के नाम पर उन्हें कई सीमाओं के अधीन किया जाता है और घर के अंदर रहने के लिए मजबूर किया जाता है। आयु को अभी भी शुद्धता के माप के रूप में देखा जाता है, जिसके कारण बाल विवाह की प्रथा जारी है। यह प्रथा इस तथ्य से समर्थित है कि दहेज की राशि लड़की की उम्र के साथ बढ़ती है।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा | आम धारणा के विपरीत, दहेज हमेशा एकमुश्त भुगतान नहीं होता है। पति का परिवार, जो लड़की के परिवार को धन की अंतहीन आपूर्ति के रूप में देखता है, हमेशा माँग करता रहता है। आगे की मांगों को पूरा करने में लड़की के परिवार की अक्षमता का परिणाम अक्सर मौखिक दुर्व्यवहार, पारस्परिक हिंसा और यहां तक ​​कि घातक परिणाम भी होते हैं। महिलाएं लगातार शारीरिक और मनोवैज्ञानिक शोषण सहती हैं और इसलिए अवसाद का अनुभव करने और यहां तक ​​कि आत्महत्या का प्रयास करने का जोखिम भी अधिक होता है।

आर्थिक बोझ | दूल्हे के परिवार द्वारा की गई दहेज की मांग के कारण, भारतीय माता-पिता अक्सर एक लड़की की शादी को अच्छी खासी रकम के साथ जोड़ते हैं। परिवार अक्सर बड़ी मात्रा में कर्ज लेते हैं और घरों को गिरवी रख देते हैं, जो उनके आर्थिक स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचाता है।

लैंगिक असमानता | लड़की से शादी करने के लिए दहेज देने की धारणा लिंगों के बीच असमानता की भावना को बढ़ाती है, पुरुषों को महिलाओं से ऊपर उठाती है। युवा लड़कियों को स्कूल जाने से रोक दिया जाता है जबकि उनके भाइयों को स्कूल जाने की अनुमति दी जाती है। उन्हें अक्सर व्यवसाय करने से हतोत्साहित किया जाता है क्योंकि उन्हें घरेलू कर्तव्यों के अलावा अन्य नौकरियों के लिए अनुपयुक्त माना जाता है। अधिकांश समय, उनकी राय को चुप करा दिया जाता है, अनदेखा कर दिया जाता है या उनके साथ अनादर किया जाता है।

दहेज की अन्यायपूर्ण प्रथा का मुकाबला करने के लिए, एक राष्ट्र के रूप में भारत को अपनी वर्तमान मानसिकता में भारी बदलाव लाने की आवश्यकता है। उन्हें यह समझना चाहिए कि आज की दुनिया में महिलाएं किसी भी कार्य को करने में पूरी तरह से सक्षम हैं जो पुरुष करने में सक्षम हैं। महिलाओं को स्वयं इस धारणा को त्याग देना चाहिए कि वे पुरुषों के अधीन हैं और उनकी देखभाल के लिए उन पर निर्भर रहना चाहिए।

दहेज प्रथा पर 1000 शब्दों का निबंध (1000 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) – भारत में दहेज प्रथा काफी समय से चली आ रही है। यह वह पैसा है जो लड़के या उनके परिवार को शादी के समय दिया जाता है, संपत्ति भी दहेज में शामिल हो सकती है। प्राचीन काल में दहेज प्रथा की शुरुआत विवाह के दौरान दूल्हे को धन दिया जाता था ताकि वह अपनी दुल्हन की उचित देखभाल कर सके, इसका उपयोग परिवार के दोनों पक्षों के सम्मान के लिए किया जाता था। जैसे-जैसे समय बदलता है दहेज समाज में अभी भी बना हुआ है लेकिन समय के साथ इसका महत्व बदलता रहता है। 

आजकल दहेज प्रथा कुछ जातियों के लिए एक व्यवसाय की तरह होती जा रही है। दहेज प्रथा दुल्हन के परिवार के लिए बोझ बनती जा रही है। कई बार लड़के पक्ष की मांग पूरी न होने पर इस असफलता के फलस्वरूप अचानक विवाह रद्द कर दिया जाता है। अगर हम इसे अपने एशियाई देश में देखें तो वर पक्ष के लिए मुख्य रूप से भारत जैसे देशों में दहेज अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है। इस जघन्य सामाजिक प्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार ने 1961 के अधिनियम के तहत लोगों को दहेज लेने से रोकने के लिए कानून बनाया है। 

वधु पक्ष द्वारा जो भी धन या संपत्ति दी जाए उसे स्वीकार कर लेना चाहिए लेकिन उसका कभी पालन नहीं हुआ। कई जगहों पर हमें पता चलता है कि वर पक्ष की ओर से ऐसा न करने पर लड़कियों को इस तरह से नुकसान पहुंचाया जाता है कि कई बार तो मौत भी हो जाती है। कुछ लोग दहेज को अपराध की तरह भी समझते हैं, यह अवैध है और वे दुल्हन के परिवार से कभी कुछ नहीं मांगते हैं। 

भारत में हर कोई महिलाओं के अधिकारों के लिए बोलता है और आगे बढ़ता है और कहता है ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ लेकिन एक लड़की अपने जीवन में सब कुछ हासिल करने के बाद भी; जहां वह अपने परिवार की देखभाल करने लगती है, लेकिन फिर भी वह दहेज की बेड़ियों से नहीं बच पाती है। कभी-कभी दहेज के कारण जो ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे के लोगों में प्रचलित है, वे अपनी बेटियों को पैदा होने के बाद या मां के गर्भ में जन्म से पहले ही मार देते हैं ताकि वे दहेज से बच सकें। चूंकि वे बड़े होने और उसे शिक्षित करने के बाद जानते हैं, फिर भी उन्हें उसकी शादी करने के लिए दहेज देने की जरूरत है। हालांकि, कोई यह समझने में विफल रहता है कि यह बेटी की गलती नहीं है जिसके लिए उसे गलत तरीके से दंडित किया जा रहा है बल्कि समाज की गलती है जो आजादी के इतने सालों बाद भी ऐसी प्रथाओं की अनुमति देती है। 

दहेज का इतिहास 

दहेज प्रथा ब्रिटिश काल और भारत में उपनिवेशीकरण से पहले की है। उन दिनों, दहेज को “पैसा” या “शुल्क” नहीं माना जाता था जिसे दुल्हन के माता-पिता को देना पड़ता था। दहेज के मूलभूत उद्देश्यों में से एक यह था कि यह पति और उसके परिवार द्वारा दुर्व्यवहार के खिलाफ पत्नी के लिए सुरक्षा के रूप में कार्य करता था। दहेज ने दूल्हा और दुल्हन को शादी के बाद एक साथ जीवन बनाने में मदद करने के लिए भी काम किया। 

हालांकि, जब ब्रिटिश शासन लागू हुआ, तो महिलाओं को किसी भी संपत्ति का मालिक बनने से रोक दिया गया था। महिलाओं को कोई अचल संपत्ति, जमीन या संपत्ति खरीदने की अनुमति नहीं थी। नतीजतन, पुरुषों ने दुल्हन को उसके माता-पिता द्वारा प्रदान किए गए सभी “उपहार” प्राप्त करना शुरू कर दिया। 

ब्रिटिश राज के दौरान, दहेज प्रथा को अनिवार्य कर दिया गया था जिसके कारण दुल्हन के परिवार पर आर्थिक रूप से अत्यधिक दबाव था। दहेज हिंसा एक प्रमुख पहलू बन गया है जिसे आज तक देखा जा सकता है। पति या उसका परिवार दुल्हन के परिवार से “उपहार” के रूप में पैसे निकालने के लिए एक तरीके के रूप में हिंसा का उपयोग करता है। यह प्रणाली महिलाओं को उनकी शादी के बाद अपने पति या ससुराल वालों पर निर्भर होने की ओर ले जाती है।

दहेज प्रथा के प्रभाव क्या हैं?

  • लैंगिक रूढ़िवादिता: दहेज प्रथा के कारण महिलाओं को अक्सर देनदारियों के रूप में देखा जाता है। उन्हें अक्सर शिक्षा और अन्य सुविधाओं के मामले में अधीनता और दोयम दर्जे के व्यवहार के अधीन किया जाता है। 
  • महिलाओं के करियर को प्रभावित करना: श्रम में महिलाओं की कमी, और इस प्रकार उनकी वित्तीय स्वतंत्रता की कमी, दहेज प्रथा के लिए बड़ा संदर्भ है। समाज के गरीब वर्ग अपनी बेटियों को दहेज के लिए पैसे बचाने में मदद करने के लिए बाहर काम करने के लिए भेजते हैं। जबकि अधिकांश मध्यम और उच्च वर्ग के परिवार अपनी लड़कियों को स्कूल भेजते हैं, वे नौकरी के अवसरों को प्राथमिकता नहीं देते हैं। 
  • महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करना: आज का दहेज शक्तिशाली कनेक्शन और आकर्षक व्यावसायिक संभावनाओं तक पहुंच प्राप्त करने के लिए दुल्हन के परिवार द्वारा वित्तीय निवेश के बराबर है। नतीजतन, महिलाओं को वस्तुओं तक सीमित कर दिया जाता है। 
  • महिलाओं के खिलाफ अपराध: घरेलू हिंसा में दहेज की मांग से संबंधित हिंसा और हत्याएं शामिल हैं। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हिंसा, और उत्पीड़न को अनुपालन लागू करने या पीड़ित को दंडित करने के तरीके के रूप में घरेलू हिंसा के समान दहेज से संबंधित अपराधों में उपयोग किया जाता है।

दहेज की सामाजिक बुराई से कैसे निपटा जाए?

दहेज प्रथा एक सामाजिक वर्जना है जिसे समाप्त किया जाना चाहिए। हर लड़की को अपने ससुराल जाने में गर्व होना चाहिए। भारत में, दहेज प्रथा 10 में से 5 परिवारों को प्रभावित करती है। हालाँकि सरकार ने कई नियम बनाए हैं, फिर भी हमारे समाज में दहेज प्रथा का अस्तित्व बना हुआ है। नतीजतन, हम सभी को इससे निपटने के लिए कार्रवाई शुरू करनी चाहिए। अपने घरों से शुरुआत करना पहला कदम है। घर में लड़के और लड़कियों दोनों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए और उन्हें समान अवसर दिए जाने चाहिए। उन दोनों को शिक्षित किया जाना चाहिए और पूरी तरह आत्मनिर्भर होने की आजादी दी जानी चाहिए। शिक्षा और स्वतंत्रता दो सबसे शक्तिशाली और मूल्यवान उपहार हैं जो माता-पिता अपनी बेटियों को दे सकते हैं। केवल शिक्षा ही उसे आर्थिक रूप से सुरक्षित और परिवार का एक मूल्यवान सदस्य, अपना सम्मान और उपयुक्त पारिवारिक स्थिति अर्जित करने की अनुमति देगी। नतीजतन, 

एक और चीज जो करने की जरूरत है वह है उपयुक्त कानूनी संशोधन करना। जनता के पूर्ण सहयोग के बिना कोई भी कानून लागू नहीं किया जा सकता है। एक कानून का अधिनियमन, निस्संदेह, व्यवहार का एक पैटर्न स्थापित करता है, सामाजिक विवेक को शामिल करता है, और समाज सुधारकों को इसे निरस्त करने के प्रयासों में सहायता करता है। व्यवस्था को आम लोगों को उनके दिमाग और दृष्टिकोण का विस्तार करने के लिए अधिक नैतिक मूल्य-आधारित शिक्षा देनी चाहिए। 

समाज को लैंगिक समानता के लिए प्रयास करना चाहिए। राज्यों को लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए पूरे जीवन चक्र – जन्म, प्रारंभिक बचपन, प्राथमिक शिक्षा, पोषण, आजीविका, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच आदि – में लिंग-विच्छेदित डेटा का मूल्यांकन करना चाहिए। कार्यस्थल पूर्वाग्रह को कम करने और सहायक कार्य संस्कृतियों को स्थापित करने के लिए चाइल्डकैअर का विस्तार करना और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। पुरुषों और महिलाओं के पास समान घरेलू काम और जिम्मेदारियां होनी चाहिए। 

अनुच्छेद दहेज प्रथा पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

युवतियों के मन में दहेज को लेकर क्या प्रभाव है.

दहेज प्रथा एक गहरी जड़ वाली समस्या है और इसने युवा महिलाओं को मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से प्रभावित किया है। पैसे या किसी संपत्ति की मांग युवती को उसके माता-पिता के लिए एक दायित्व बनाती है। प्रभाव अब तक की रिपोर्ट या अधिकारियों की रिपोर्ट की तुलना में कहीं अधिक है। हर साल युवतियां दहेज प्रथा के लिए ससुराल वालों के हाथों प्रताड़ित होती हैं। देश के कई ग्रामीण हिस्सों में बच्चियों को अभिशाप माना जाता था। कुल मिलाकर, दहेज प्रथा के अस्तित्व के कारण युवा महिलाओं को बहुत नुकसान हुआ है।

दहेज प्रथा कब शुरू हुई थी?

दहेज प्रथा का मध्यकाल में पता लगाया जा सकता है। इसका मकसद शादी के बाद दुल्हन को स्वतंत्र बनाना और नवविवाहित जोड़े को नया जीवन शुरू करने में सहयोग देना था।

भारत में औसत दहेज कितना है?

दहेज की मात्रा कई कारकों पर निर्भर करती है, मुख्य रूप से आर्थिक। इस प्रकार, कम आय वाले परिवार के लिए यह औसतन लगभग 3 लाख रुपये से शुरू हो सकता है।

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दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) : दहेज पर निबंध 100, 200, 500 शब्दों में

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दहेज प्रथा पर निबंध ( Dowry System Essay in Hindi ) - दहेज प्रथा (Dahej pratha in hindi) भारतीय समाज की प्रमुख समस्याओं में से एक है। हर माता-पिता द्वारा बेटी को शादी के समय स्नेहवश उपहार दिए जाने की परंपरा रही है। विवाह के समय दिए जाने वाले इस उपहार को दहेज कहा जाता है। घर से विदा करते समय दिए जाने वाले घरेलू जरूरत के सामान, आभूषण, कपड़ा, फर्नीचर, उपकरण आदि दहेज में शामिल होते हैं। बेटी के नए जीवन को आसान बनाने का स्वैच्छिक प्रयास कालांतर में बाध्यता में परिवर्तित हो गया। ससुराल पक्ष के लोग अब उपहारों की सूची बनाकर रखने लगे हैं दहेज प्रथा में बेटी को क्या दिया जाना है, इसका फैसला वही करने लगे हैं। इसके चलते दहेज प्रथा की समस्या मुंह फैलाने लगी।

दहेज प्रथा पर निबंध (Dahej Pratha par nibandh)

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दहेज की परिभाषा क्या है?(Dahej ki paribhasha kya hai?)

भारतीय परंपरा में कन्या की शादी के समय, कन्या पक्ष की तरफ से दूल्हे और उसके परिवार को बहुत से उपहार स्नेह वश प्रदान किए जाते हैं, ये परंपरा हमारे समाज में सदियों से चली आ रही है। परंतु जब यह उपहार प्रदान करना कन्या पक्ष के लिए शोषण का रूप धारण कर लेता है, तो इसे दहेज कहा जाता है। विवाह जैसी पवित्र रीति में जब लालच की भावना शामिल हो जाती है, तो यह दहेज का रूप धारण कर लेती है।

उपहार में क्या मिलना चाहिए जब यह फैसला पाने वाला करेगा तो उसकी मंशा तो यही होगी कि अच्छे से अच्छा और महंगे से महंगा उपहार उसे मिले। यह बात हर कोई जानता है कि लोभ और लालच का कोई अंत नहीं हैं। ससुराल पक्ष की अनाप-शनाप मांगों ने दहेज की समस्या को विकराल बना दिया है क्योंकि ससुराल पक्ष के लोग दहेज को अपना अधिकार समझकर लड़की के मां-बाप के सामने अपनी मांगसूची पेश करने लगे और दावे करते हैं कि यह सब लड़की के लिए ले रहे हैं। ऐसे में यदि सूची में शामिल सामान देने में कन्यापक्ष असमर्थता जताए तो शादी करने से इंकार कर दिया जाने लगा। अब तो ऐसी स्थिति से बन गई है कि रिश्ते तय करने से पहले दहेज तय किया जाता है।

संपन्न और शिक्षित परिवार में बेटी खुश रहेगी यह सोचकर मजबूरी में अपनी क्षमता से बाहर जाकर लड़की के मां-बाप किसी तरह शादी के लिए दहेज में चाहे गए सामान जुटाते हैं। अनंत विस्तार वाली लालची प्रवृत्ति ने दहेज प्रथा को विकराल बना दिया है। भारतीय समाज में लंबे समय से चली आ रही कुरीतियों में से एक है दहेज प्रथा जो कि दो दिलों और परिवारों का मेल कराने वाले पवित्र बंधन विवाह को कलंकित करने लग गई है। दहेज प्रथा को रोकने के लिए कानून भी बनाया गया, बावजूद इसके दहेज प्रथा 21वीं सदी में अब भी विद्यमान है। यहां 'दहेज प्रथा पर हिन्दी में निबंध (Dowry System Essay in Hindi)' पर कुछ नमूना निबंध दिए गए हैं।

ये भी पढ़ें : हिंदी में निबंध- भाषा कौशल, लिखने का तरीका जानें

दहेज प्रथा हमारे भारतीय समाज में बस चुकी एक ऐसी महामारी है, जिससे अधिकतर लोग ग्रसित है। यह कुप्रथा सादियों से हमारे समाज को दूषित करती आ रही है। दहेज प्रथा हमारे समाज की मानसिकता को कुंठित करती है, जो अधिकतर लोगों को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती है। जिसकी वजह से कन्या भूर्ण हत्या, लड़कियों के प्रति भेदभाव, ऑनर किलिंग तथा महिलाओं के प्रति अपराध में वृद्धि होती हैं। यही वजह है कि लोगों के बीच इस कुप्रथा को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए दहेज पर निबंध (Essay on Dowry in hindi) लिखा व लिखवाया जाता है। छात्रों को परीक्षा में कभी-कभी अच्छे अंक के लिए दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) लेखन से संबंधित प्रश्न पूछ लिए जाते हैं। नीचे हमने इस बेहद ही संवेदनशील विषय पर निबंध प्रदान किए है।

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भारत में दहेज प्रथा (dahej pratha) एक लंबे समय से चली आ रही प्रथा है और यह भारतीय संस्कृति में गहराई से बसी हुई है। यह दो परिवारों के बीच एक पूर्व-निर्धारित समझौता है और आम तौर पर शादी के समय तय किया जाता है। दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को विभिन्न उपहार तथा धन प्रदान करता है। इन उपहारों में आमतौर पर आभूषण, कपड़े तथा नकदी शामिल होते हैं। हालाँकि यह प्रणाली व्यापक रूप से स्वीकृत है, फिर भी इसके कई नकारात्मक प्रभाव हैं। सबसे गंभीर परिणाम यह है कि इसके कारण समाज में लैंगिक भेदभाव उत्पन्न होता है। कुछ मामलों में, दूल्हे के परिवार की ओर से दहेज की मांग इतनी अधिक हो जाती है कि दुल्हन के परिवार के लिए उन्हें पूरा करना असंभव हो जाता है। इससे दुल्हन के परिवार को सामाजिक भेदभाव तथा आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

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दहेज प्रथा भारत में सदियों पुरानी प्रथा है और यह आज भी हमारे समाज में विध्यमान है। दहेज धन और/या संपत्ति का एक उपहार है जो दुल्हन का परिवार, दूल्हे के परिवार को उनकी शादी के समय देता है। यह आम तौर पर दूल्हे के परिवार को दुल्हन की देखभाल करने के लिए दिया जाता है। यह प्रणाली आज भी भारत में बहुत प्रचलित है, और इसे अक्सर सामाजिक स्थिति के संकेत के रूप में देखा जाता है।

दहेज प्रथा के नकारात्मक प्रभाव बहुत अधिक है। दहेज प्रथा (dahej pratha) भारतीय समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी है तथा यह दहेज प्रथा (dahej pratha) लैंगिक असमानता को प्रोत्साहित करती है। दहेज प्रथा पर निबंध लिखने की नौबत ही इसलिए आई क्योंकि इस सामाजिक कुरीति ने एक भयावह सामाजिक समस्या का रूप ले लिया है। इसके चलते परिवार लड़कियों को बोझ के रूप में देखने लग जाते हैं क्योंकि परिवारों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी बेटी की शादी के समय मोटी रकम अदा करेंगे। संपन्न परिवारों में भी वित्तीय शोषण के मामले सामने आए हैं। इसके अलावा, बड़ी मात्रा में दहेज देने के दबाव के कारण अक्सर परिवार कर्ज में डूब जाते हैं। यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में समस्याग्रस्त है, जहां कई लोग पहले से ही अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, कई लड़कियाँ शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित रह जाती हैं।

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हालाँकि, भारत में मौजूदा दहेज प्रथा (dahej pratha) के खिलाफ लड़ने के लिए कई पहल शुरू की गई हैं। भारत सरकार ने दहेज की मांग करना गैरकानूनी बना दिया है, और गैर-लाभकारी संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाए।

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दहेज प्रथा (dahej pratha) भारत में सदियों पुरानी प्रथा है जो दुल्हन के परिवार से दूल्हे के परिवार को संपत्ति और धन के हस्तांतरण करने को संदर्भित करती है। यह प्रणाली भारत और कुछ अन्य देशों में सबसे लोकप्रिय है। बड़े होते हुए, हममें से अधिकांश ने इस प्रणाली को देखा या सुना है। दहेज प्रथा के कारण दुल्हन का परिवार पीड़ित होता है। कई बार दूल्हे पक्ष की दहेज की मांग पूरी न होने पर शादी अचानक रद्द कर दी जाती है। इसके अलावा, यह प्रणाली दुल्हन के परिवार, विशेषकर दुल्हन के पिता पर भी बहुत दबाव डालती है। उससे अपेक्षा की जाती है कि वह दूल्हे के परिवार को सभी उपहार और धन प्रदान करेगा। यह एक बड़ा वित्तीय बोझ हो सकता है और परिवार की वित्तीय अस्थिरता का कारण बन सकता है।

1961 का भारत सरकार अधिनियम इस घृणित सामाजिक प्रथा को समाप्त करने के सरकार के प्रयास के रूप में व्यक्तियों को दहेज स्वीकार करने से रोकता है।

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अन्याय | दुल्हन के परिवार के लिए, दहेज एक महत्वपूर्ण वित्तीय बोझ वहन करता है। इसलिए लड़कियों को परिवार पर संभावित बोझ और संभावित वित्तीय बर्बादी के रूप में देखा जाता है। यही दृष्टिकोण कन्या भ्रूण हत्या और भ्रूण हत्या का रूप ले लेता है। स्कूली शिक्षा के उन क्षेत्रों में जहाँ परिवार के लड़कों को प्राथमिकता दी जाती है, लड़कियों को अक्सर हाशिए पर रखा जाता है। पारिवारिक सम्मान बनाए रखने के नाम पर उन पर कई तरह की सीमाएं लगाई जाती हैं और घर के अंदर रहने के लिए मजबूर किया जाता है। आयु को अभी भी पवित्रता के माप के रूप में देखा जाता है, जिसके कारण बाल विवाह की प्रथा जारी है। इस प्रथा को इस तथ्य से समर्थन मिलता है कि दहेज की राशि लड़की की उम्र के साथ बढ़ती जाती है।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा | आम धारणा के विपरीत, दहेज हमेशा एक बार दिया जाने वाला भुगतान नहीं होता है। पति का परिवार, जो लड़की के परिवार को धन की अंतहीन आपूर्ति के रूप में देखता है, हमेशा मांग करता रहता है। लड़की के परिवार की आगे की माँगों को पूरा करने में असमर्थता के परिणामस्वरूप अक्सर मौखिक दुर्व्यवहार, पारस्परिक हिंसा और यहाँ तक कि हत्या भी होती हैं। महिलाएं लगातार शारीरिक और मनोवैज्ञानिक शोषण सहती हैं और इसलिए उनमें अवसाद का उत्पन्न होने और यहां तक कि आत्महत्या का प्रयास करने का जोखिम बढ़ जाता है।

वित्तीय बोझ | दूल्हे के परिवार द्वारा की जाने वाली दहेज की माँगों के कारण, भारतीय माता-पिता अक्सर लड़की की शादी को पर्याप्त धनराशि से जोड़कर देखते हैं। परिवार अक्सर बड़ी मात्रा में कर्ज लेते हैं और घर गिरवी रखते हैं, जो उनके आर्थिक स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचाता है।

लैंगिक असमानता | किसी लड़की से शादी करने के लिए दहेज देने की धारणा लिंगों के बीच असमानता की भावना को बढ़ाती है, जिससे पुरुषों को महिलाओं से बेहतर समझा जाता है। युवा लड़कियों को स्कूल जाने से रोक दिया गया है जबकि उनके लड़कों को स्कूल जाने की अनुमति दी जाती है। उन्हें अक्सर व्यवसाय करने से हतोत्साहित किया जाता है क्योंकि उन्हें घरेलू कर्तव्यों के अलावा अन्य नौकरियों के लिए अयोग्य माना जाता है। अधिकांश समय, उनकी राय को चुप करा दिया जाता है, नज़रअंदाज कर दिया जाता है, या अनादर के साथ व्यवहार किया जाता है।

दहेज की अन्यायपूर्ण प्रथा से निपटने के लिए, एक राष्ट्र के रूप में भारत को अपनी वर्तमान मानसिकता में भारी बदलाव करने की आवश्यकता है। उन्हें यह समझना चाहिए कि आज की दुनिया में महिलाएं हर उस कार्य को करने में पूरी तरह सक्षम हैं जिसे करने में पुरुष सक्षम हैं। महिलाओं को स्वयं यह धारणा छोड़ देनी चाहिए कि वे पुरुषों के अधीन हैं और उनकी देखभाल के लिए उन पर निर्भर रहना चाहिए।

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Frequently Asked Question (FAQs)

भारत में दहेज प्रथा एक लंबे समय से चली आ रही प्रथा है और यह भारतीय संस्कृति में गहराई से बसी हुई है। यह दो परिवारों के बीच एक पूर्व-निर्धारित समझौता है और आमतौर पर शादी के समय तय किया जाता है। दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को विभिन्न उपहार तथा धन प्रदान करता है। इन उपहारों में आमतौर पर आभूषण, कपड़े तथा नकदी शामिल होते हैं। हालाँकि गैरकानूनी होने के बावजूद भी यह प्रणाली समाज में व्यापक रूप से स्वीकृत है, फिर भी इसके कई नकारात्मक प्रभाव हैं।

दहेज प्रथा भारत में सदियों पुरानी प्रथा है जो दुल्हन के परिवार से दूल्हे के परिवार को संपत्ति और धन के हस्तांतरण करने को संदर्भित करती है। यह प्रणाली भारत और कुछ अन्य देशों में सबसे लोकप्रिय है। बड़े होते हुए, हममें से अधिकांश ने इस प्रणाली को देखा या सुना है। दहेज प्रथा के कारण दुल्हन का परिवार पीड़ित होता है। कई बार दूल्हे पक्ष की दहेज की मांग पूरी न होने पर शादी अचानक रद्द कर दी जाती है। इसके अलावा, यह प्रणाली दुल्हन के परिवार, विशेषकर दुल्हन के पिता पर भी बहुत दबाव डालती है। उससे अपेक्षा की जाती है कि वह दूल्हे के परिवार को सभी उपहार और धन प्रदान करेगा। यह एक बड़ा वित्तीय बोझ हो सकता है और परिवार की वित्तीय अस्थिरता का कारण बन सकता है। इस प्रथा के फलने फूलने का सबसे बड़ा कारण धन का लालच और दिखावा है।

दहेज प्रथा भारतीय समाज के जड़ से जुड़ी एक ऐसी कुप्रथा है, जिसकी वजह से भारत में कई लड़कियां और उसके माँ-बाप मानसिक, शारीरिक व आर्थिक रूप से शोषित होते रहे हैं। यह प्रथा गैरकानूनी घोषित होने के बावजूद आज भी भारतीय समाज में स्वीकृत है और खुले आम व सहर्ष इसे स्वीकार किया जाता है।

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दहेज़ प्रथा पर निबंध हिंदी में (Essay on Dowry System in Hindi) 100 से 500 शब्दों में कक्षा 7 से 10 के लिए यहां देखें

Updated On: December 29, 2023 07:09 pm IST

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दहेज़ प्रथा पर निबंध हिंदी में (Essay on Dowry System in Hindi)

दहेज़ प्रथा पर निबंध (Essay on dowry system in Hindi) 100 से 500 शब्दों में  

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  • इससे बदले में उसे आर्थिक रूप से मजबूत होने और परिवार में योगदान देने वाला सदस्य बनने में मदद मिलेगी, जिससे उसे परिवार में सम्मान और सही दर्जा मिलेगा।
  • इसलिए बेटियों को ठोस शिक्षा प्रदान करना और उसे अपनी पसंद का करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना सबसे अच्छा दहेज है जो कोई भी माता-पिता अपनी बेटी को दे सकते हैं।
  • केंद्र और राज्य सरकारों को लोक अदालतों, रेडियो प्रसारण, टेलीविजन और समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों के बीच 'निरंतर' आधार पर 'दहेज विरोधी साक्षरता' बढ़ाने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए।
  • दहेज प्रथा के खतरे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए युवा ही आशा की एकमात्र किरण हैं। उनके दिमाग को व्यापक बनाने और उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाने के लिए उन्हें नैतिक मूल्य आधारित शिक्षा दी जानी चाहिए।
  • बच्चों की देखभाल और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन का विस्तार करने, भर्ती में भेदभाव को कम करने और कार्यस्थल पर सकारात्मक माहौल बनाने की आवश्यकता है।
  • घर पर, पुरुषों को घरेलू काम और देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ महिलाओं के साथ साझा करनी चाहिए।

दहेज प्रथा का निष्कर्ष क्या है?

दहेज़ प्रथा पर निबंध 10 लाइन (essay on dowry in 10 lines in hindi).

  • दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या है जो विवाह के समय विभिन्न आर्थिक और सामाजिक चीज़ों की मांग को दर्शाती है।
  • इस प्रथा में, विवाह के लिए विशेषकर लड़की के परिवार को अत्यधिक धन की मांग की जाती है।
  • यह एक अत्यंत अवार्धनीय परंपरागत चीज़ है, जिससे महसूस होता है कि बेटी को घर छोड़ने पर परिवार का अधिकार बनता है।
  • दहेज प्रथा ने समाज में स्त्रीओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया है और उन्हें अधिकारहीन बनाया है।
  • इस प्रथा के चलते कई स्थानों पर लड़कियों को बचपन से ही आत्मविश्वास कम होता है और उनमे आत्मनिर्भरता की कमी होती है।
  • यह एक आर्थिक बोझ बनता है जो घरेलू संरचनाओं को भी प्रभावित करता है और समाज में आर्थिक असमानता बढ़ाता है।
  • दहेज प्रथा ने लड़कियों के लिए शादी को एक अवश्यकता बना दिया है, जिससे उनका व्यक्तिगत और पेशेवर विकास रुका है।
  • इस प्रथा का सीधा असर व्यक्ति के अधिकारों और स्वतंत्रता पर होता है, और यह समाज में बिगड़ते संबंधों का कारण बनता है।
  • दहेज प्रथा से निपटने के लिए समाज में जागरूकता, शिक्षा, और समानता के प्रति विचार को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  • समाज को दहेज प्रथा के खिलाफ सामूहिक रूप से आवाज उठाना चाहिए ताकि इस अवस्था को समाप्त करने की दिशा में प्रयास किया जा सके।

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सामाजिक संगठनें दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने, समाज में समानता को बढ़ाने, और सकारात्मक परिवर्तन के लिए काम करती हैं।

दहेज प्रथा से जुड़े समाचार और घटनाएं समय-समय पर मीडिया में आती रहती हैं, जो इसे बदलने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए जागरूक कर सकती हैं।

दहेज प्रथा को रोकने के लिए सामाजिक जागरूकता, शिक्षा में समानता, सकारात्मक कानून, और समाज में समानता के प्रति विशेष ध्यान देना चाहिए।

दहेज प्रथा एक सामाजिक अनैतिकता है जिसमें विवाह के समय लड़की के परिवार से अधिक धन, सामाजिक स्थान, और आर्थिक चीज़ों की मांग की जाती है।

इस लेख में दहेज़ प्रथा पर विस्तार से निबंध लिखकर बताया गया है। इच्छुक छात्र यहां से दहेज़ प्रथा पर निबंध का नमूना देखकर खुद के लिए निबंध तैयार कर सकते हैं। 

दहेज प्रथा को रोकने के लिए समाज, सरकार, और व्यक्तिगत स्तर पर कई कदम उठाए जा सकते हैं। यहाँ कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं जो इस समस्या के समाधान में मदद कर सकते हैं:

  • शिक्षा का प्रचार-प्रसार
  • सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम
  • कड़ी से कड़ी कानूनी कदम
  • समाज में समानता का प्रचार-प्रसार
  • धार्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता

दहेज प्रथा का मुख्य कारण समाज में सामाजिक और आर्थिक असमानता है। इस प्रथा के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जो विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक प्रतिष्ठाओं से संबंधित होते हैं। 

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दहेज प्रथा पर निबंध भाषण | Speech Essay on Dowry System in Hindi

दहेज प्रथा पर निबंध भाषण | Speech Essay on Dowry System in Hindi : दहेज हमारे आधुनिक समाज का एक अभिशाप ही हैं. लड़की की शादी के अवसर पर वर पक्ष को मुहंमागी सामग्री और धन देने की कुप्रथा को हम दहेज प्रथा के रूप में जानेगे.

प्राचीन काल से चली आ रही इस प्रथा को अब समाप्त करने का समय आ गया हैं दहेज की समस्या पर निबंध को जानते हैं.

दहेज प्रथा पर निबंध भाषण | Speech Essay on Dowry System in Hindi

Essay On Dahej Pratha In Hindi  प्रिय विद्यार्थियों आज के लेख  दहेज प्रथा पर निबंध में आपका स्वागत हैं. दहेज आज एक सामाजिक समस्या का रूप ले चुका है.

बच्चों को दहेज़ क्या है दहेज पर निबंध, दहेज प्रथा क्या हैं इसका निबंध कक्षा 1, 2 ,3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के विद्यार्थियों के लिए Essay On Dahej Pratha In Hindi को 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में यहाँ पर आपके लिए छोटा बड़ा निबंध बता रहे हैं.

निबंध Essay (400 शब्द)

दहेज निबंध 1

भारतीय संस्कृति में मंगलमय भावनाओं की प्रधानता रही है. इन भावनाओं की अभिव्यक्ति संस्कारों के रूप में, शिष्टाचार के रूप में व अन्य कई रूपों में होती रही है.

प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति में अन्नदान, विद्यादान, धन दान आदि को महत्व दिया गया है. इन दानो के अंतर्गत कन्यादान भी एक प्रमुख दान माना जाता था.

माता-पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार कन्या को आभूष्ण, वस्त्र व आवश्यक वस्तुएं देते थे, जिससे कन्या को गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते समय समुचित सहायता मिल जाती थी. उस समय माता पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार दहेज देते थे.

दहेज प्रथा एक सामाजिक कलंक (Dowry is a social stigma)

प्रारम्भ में दहेज प्रथा के साथ जो मंगलमय भावना थी, उसका धीरे धीरे लोप होने लगा है. शुरू में दहेज स्वैछिक था, परन्तु कालान्तर में यह परमावश्यक हो गया, फलस्वरूप कन्या का जन्म ही अशुभ माना जाने लगा. कन्यादान माता पिता के लिए बोझ बन गया है.

धर्म के ठेकेदारों ने इसे धार्मिक मान्यता भी प्रदान कर दी है. धर्म भीरु भारतीय जनता के पास इसका कोई विकल्प शेष नही था. दहेज के इस विकृत रूप से बाल विवाह, अनमेल विवाह और बहुविवाह प्रथाओं का जन्म हुआ.

दहेज प्रथा की समस्या (Problem of Dahej Pratha)

बीसवी शताब्दी में मध्यकाल से वर्तमान काल तक दहेज प्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया है. और इसके फलस्वरूप नारी समाज के साथ अमानवीय व्यवहार होता है. कन्या का विवाह एक विकराल समस्या बन गई है.

माता पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार दहेज देना चाहते है. जबकि वर पक्ष वाले मुंहमांगा दहेज लेना चाहते है. वे लड़के के जन्म से लेकर शादी तक का पूरा खर्चा वसूलना चाहते है. माता पिता महंगाई के इस युग में पेट काटकर लडकियों को शिक्षित करते है, उन्हें योग्य बनाते है.

फिर दहेज के चक्कर में आजीवन कर्ज के भार से दब जाते है. कई बार मुह्मांगे दहेज की व्यवस्था नही होने पर दुल्हे सहित बरात लौट जाती है उस समय कन्या के माता पिता, रिश्तेदारों और उस कन्या की दशा क्या होती होगी.

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम (Side effects of Dahej Pratha)

इस प्रथा के कारण कन्या व उसके माता पिता को अनेक असहनीय यातनाएं भोगनी पडती है. आज का युवा वर्ग मानवीय द्रष्टिकोण अपनाना चाहता है, परन्तु कुछ तो लालची अपने माता पिता का विरोध नही कर पाते है.

और कुछ लोग शादी का रिश्ता तय करते समय सुधारवादी बनने का ढोंग रचते है, परन्तु शादी में इच्छित दहेज नही मिलने पर बहू को परेशान किया जाता है.

उसे अनेक यातनाएं दी जाती है. उसे कई बार मार दिया जाता है. इनमे बहु को जलाकर मार डालने का प्रतिशत अधिक होता है. रसोई घर में स्टोव से जलने की बात कह दी जाती है.

ससुराल में जब जुल्मों की हद हो जाती है तो मुक्ति पाने के लिए वह आत्महत्या करने को विवश हो जाती है.

दहेज प्रथा को रोकने के उपाय (Measures to stop Dahej Pratha)

सन 1975 में दहेज उन्मूलन कानून भी बनाया गया. कानून के अनुसार दहेज लेना व देना कानूनी अपराध है. सरकार ने दहेज विरोधी कानून को प्रभावी बनाने के लिए एक संसदीय समिति का गठन किया है.

सन 1983 में दहेज से सम्बन्धित नए कानून प्रस्तावित किये गये, इसके अनुसार जो दहेज के लालच में युवती को आत्महत्या के लिए विवश करे, उस व्यक्ति को दंडित किया जाए.

सरकार ने इस प्रथा के उन्मूलन के लिए सचेष्ट है. तथा कुछ सामाजिक संगठन भी इस समस्या के उन्मूलन का प्रयास कर रहे है. इस समस्या के कारण नारी समाज पर अत्याचार हो रहे है.

नवयुवतियों के अरमानों को रौदा जा रहा है. अतः भारत के भावी नागरिकों को इस विषय पर आगे आकर दहेज प्रथा को रोकने के लिए इनोवेटिव उपाय करने होंगे.

निबंध Essay (500 शब्द)

दहेज निबंध 2

नारी का स्थान – भारतीय नारी के सम्मान को सबसे अधिक आघात पहुचाने वाली समस्या दहेज प्रथा हैं. भारतीय महापुरुषों ने और धर्मग्रंथों ने नारी की महिमा में बड़े सुंदर सुंदर वाक्य रचे हैं.

किन्तु दहेज ने इन सभी किर्तिगानों को उपहास का साधन बना दिया गया हैं. आज दहेज के भूखे और पुत्रों की कामना करने वाले लोग गर्भ में ही कन्याओं की हत्या करा देने का महापाप कर रहे हैं.

दहेज का वर्तमान स्वरूप – आज दहेज कन्या के पति प्राप्ति की फीस बन गया हैं. दहेज के लोभी बहुओं को जीवित जला रहे हैं. फांसी पर चढ़ा रहे हैं.

समाज के धनी लोगों ने अपनी कन्याओं के विवाह में धन के प्रदर्शन की जो कुत्सित परम्परा चला दी, वह दहेज कि आग में घी का काम कर रही हैं. साधारण लोग भी इस मूर्खतापूर्ण होड़ में शामिल होकर अपना भविष्य दांव पर लगा रहे हैं.

दहेज के दुष्परिणाम – दहेज के कारण एक साधारण परिवार की कन्या और कन्या के पिता का सम्मानसहित जीना कठिन हो गया हैं.

इस प्रथा की बलिवेदी पर न जाने कितने कन्या कुसुम बलिदान हो चुके हैं. लाखों परिवारों के जीवन की शांति को नष्ट करने और मानव की सच्चरित्रता को मिटाने का अपराध इस प्रथा ने किया हैं.

समस्या का समाधान – इस कुरीति से मुक्ति का उपाय क्या हैं. इसके दो पक्ष है- जनता और शासन. शासन कानून बनाकर इसे समाप्त कर सकता हैं और कर भी रहा हैं. किन्तु बिना जनसहयोग के ये कानून फलदायक नहीं हो सकते.

इसलिए महिला वर्ग को और कन्याओं स्वयं संघर्षशील बनना होगा, स्वावलंबी बनना होगा. ऐसे घरों का तिरस्कार करना होगा जो उन्हें केवल धन प्राप्ति का साधन मात्र समझते हैं.

इसके अतिरिक्त विवाहों में सम्पन्नता के प्रदर्शन तथा अपव्यय पर भी कठोर नियंत्रण आवश्यक हैं. विवाह में व्यय की एक सीमा निर्धारित की जाए और उसका कठोरता से पालन कराया जाय.

यदपि दहेज विरोधी कानून काफी समय से अस्तित्व में हैं, किन्तु प्रशासन की ओर से इस पर ध्यान नहीं दिया जाता. आयकर विभाग जो निरंतर नये नये करों को थोपकर सामान्य जन को त्रस्त करता हैं.

इस और क्यों ध्यान नही देता. विवाहों में एक निश्चित सीमा से अधिक व्यय पर अच्छा ख़ासा कर लगाया जाया. साधू संत और धर्मोपदेशक क्यों नहीं.

इस नारी विरोधी प्रथा की आलोचना करते हैं. जनता और प्रशासन दोनों को ही इस दिशा में सक्रिय होना चाहिए और इस सामाजिक कलंक को समाप्त कर देना चाहिए.

दहेज निबंध Essay (600 शब्द)

दहेज निबंध 3

दहेज़ की परम्परा हमारे समाज में प्राचीनकाल से चली आ रही हैं. कन्यादान के साथ दी जाने वाली दक्षिणा के सामान यह दहेज़ हजारों वर्षों से विवाह का अनिवार्य अंग बन चूका हैं. किन्तु प्राचीन और वर्तमान दहेज़ के स्वरूप और आकार में बहुत अंतर आ चूका हैं.

वर्तमान स्थिति- प्राचीन समय में दहेज नव दम्पति को नवजीवन प्रारम्भ करने के उपकरण देने का और सद्भावना का चिह्न था. राजा महाराजा और धनवान लोग धूमधाम से दहेज देते थे. परन्तु सामान्य गृहस्थी का काम तो दो चार बर्तन या गौदान से ही चल जाता था.

आज दहेज अपने निकृष्टतम रूप को प्राप्त कर चूका हैं. काले धन से सम्पन्न समाज का धनी वर्ग, अपनी लाड़ली के विवाह में धन का जो अपव्यय और प्रदर्शन करता हैं. वह औरों के लिए होड़ का कारण बनता हैं.

अपने परिवार का भविष्य दांव पर लगाकर समाज के सामान्य व्यक्ति भी इस मूर्खतापूर्ण होड़ में सम्मिलित हो जाते हैं. इसी धन प्रदर्शन के कारण वर पक्ष भी कन्या पक्ष के पूरे शोषण पर उतारु रहता हैं.

कन्या पक्ष की हीनता- प्राचीनकाल में को वर चुनने की स्वतंत्रता थी किन्तु जबसे माता पिता ने उसको गले से बाँधने का कार्य अपने हाथों में लिया, तब से कन्या अकारण ही हीनता की पात्र बन गई हैं. आज तो स्थिति यह है कि बेटी वालो को बेटे की उचीत अनुचित मांगे माननी पड़ती हैं.

इस भावना का अनुचित लाभ वर पक्ष पूरा पूरा उठाता हैं. घर में चाहे साइकिल भी न हो परन्तु वह स्कूटर पाए बिना तोरण स्पर्श न करेगे. बेटी का बाप होना मानों पुनर्जन्म और वर्तमान का भीषण पाप हो.

कुपरिणाम- दहेज के दानव ने भारतीय संस्कृति की मनोवृति को इस हद तक दूषित किया हैं कि एक साधारण परिवार की कन्या और कन्या के पिता का जीना कठिन हो गया हैं.

इस प्रथा की बलिवेदी न जाने कितने कन्या कुसुम बलिदान हो चुके हैं. लाखों परिवारों के जीवन की शांति को नष्ट करने का अपराध इस प्रथा ने किया हैं.

मुक्ति के उपाय- इस कुरीति से मुक्ति का उपाय क्या हैं. इसके दो पक्ष है जनता और शासन. शासन कानून बनाकर इसे समाप्त कर सकता हैं और कर भी रहा हैं. किन्तु बिना जन सहयोग के ये कानून फलदायी नही हो सकते.

इसलिए महिला वर्ग को और कन्याओं को स्वयं संघर्षशील बनना होगा, स्वावलंबी बनना होगा. ऐसे वरों का तिरस्कार करना होगा, जो उन्हें केवल धन प्राप्ति का माध्यम समझते हैं.

उपसंहार- हमारी सरकार ने दहेज विरोधी कानून बनाकर इस कुरीति के उन्मूलन की चेष्टा की हैं. लेकिन वर्तमान दहेज कानून में अनेक कमियां हैं. इसे कठोर से कठोर बनाया जाना चाहिए. परन्तु सामाजिक चेतना के बिना केवल कानून के बल पर इस समस्या से छुटकारा नही पाया जा सकता.

निबंध Essay (700 शब्द)

दहेज निबंध 4

भारतीय संस्कृति में जिसने भी कन्यादान की परम्परा चलाई, उसने नारी जाति के साथ बड़ा अन्याय किया. भूमि, वस्त्र, भोजन, गाय आदि के दान के समान कन्या का भी दान कैसी विडम्बना हैं.

मानो कन्या कोई जीवंत प्राणी मनुष्य न होकर कोई निर्जीव वस्तु हो. दान के साथ दक्षिणा भी अनिवार्य मानी गई हैं बिना दक्षिणा  दान निष्फल होता हैं तभी तो कन्यादान के साथ दहेज रुपी दक्षिणा की व्यवस्था की गई हैं.

दहेज की परम्परा – दहेज हजारों वर्ष पुरानी परम्परा है लेकिन प्राचीन समय में दहेज का आज जैसा निकृष्ट रूप नहीं था. दो चार वस्त्र, बर्तन और गाय देने से सामान्य गृहस्थ का काम चल जाता था. वह नवदम्पति के गृहस्थ जीवन में कन्यापक्ष का मंगल कामना का द्योतक था.

आज तो दहेज कन्या का पति बनने की फीस बन गया हैं. विवाह के बाजार में वर की नीलामी होती हैं. काली कमाई के अपव्यय से समाज के सम्पन्न लोग आमजन को चिढाते और उकसाते हैं.

कन्यापक्ष की हीनता – इस स्थिति का कारण सांस्कृतिक रुधिग्रस्त्ता भी हैं. प्राचीनकाल में कन्या को वर चुनने की स्वतंत्रता थी, किन्तु जब से माता पिता ने उसको किसी के गले बाँधने का यह पुण्यकर्म अपने हाथों में ले लिया तब से कन्या अकारण  हीनता का पात्र बन गई.

आज तो स्थिति यह है कि बेटी वाले को बेटे वालों की उचित अनुचित सभी बाते सहन करनी पड़ती हैं. कन्या का पिता वर पक्ष के यहाँ भोजन तो क्या पानी तक न पी सकेगा. कुछ कट्टर रुढ़ि भक्तों में तो उस नगर या गाँव का जल तक पीना मना हैं. मानो सम्बन्ध क्या किया दुश्मनी मोल ले ली.

इस भावना का अनुचित लाभ वर पक्ष पूरा पूरा उठाता हैं. वर महाशय चाहे अष्टावक्र हो परन्तु पत्नी उर्वशी का अवतार चाहिए. घर में चाहे साइकिल भी न हो परन्तु वह कीमती मोटरसाईकिल पाए बिना तोरण स्पर्श न करेंगे.

बेटी का बाप होना होना जैसे पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन का भीषण पाप हो गया हैं. विवाह जैसे परम पवित्र सम्बन्ध को सौदेबाजी और व्यापार के स्तर तक ले जाने वाले निश्चय ही नारी के अपमानकर्ता और समाज के घोर शत्रु हैं. यदि कोई भी व्यक्ति बेटी का बाप न बनना चाहे तो पुरुषों की स्थिति क्या होगी.

दहेज के दुष्परिणाम – दहेज के दानव ने भारतीयों की मनोवृति को इस हद तक दूषित किया हैं कि एक साधारण परिवार की कन्या के पिता का सम्मान सहित जीना कठिन हो गया हैं. इस प्रथा की बलिवेदी पर न जाने कितने कन्या कुसुम बलिदान हो चुके हैं.

लाखों परिवार के जीवन की शांति को भंग करने और मानव की सच्चरित्रता को मिटाने का अपराध इस प्रथा ने किया हैं. जिस अग्नि को साक्षी मानकर कन्या ने वधू पद पाया हैं,

आज वही अग्नि उसके प्राणों की शत्रु बन गई हैं. किसी भी दिन का समाचार पत्र उठाकर देख लीजिए, वधू दहन के दो चार समाचार अवश्य दृष्टि में पड़ जाएगे.

समस्या का समाधान – इस कुरीति से मुक्ति का उपाय क्या है, इसके दो पक्ष हैं जनता और शासन. शासन कानून बनाकर इसे समाप्त कर सकता हैं. और कर भी रहा हैं किन्तु बिना जन सहयोग के ये कानून लाभदायक नहीं हो सकते.

इसलिए महिला वर्ग और कन्याओं को स्वयं संघर्षशील बनना होगा, स्वावलम्बी बनाना होगा. ऐसे वरों का तिरस्कार करना होगा जो उन्हें केवल धन प्राप्ति का साधन मात्र समझते हैं. इसके अतिरिक्त विवाहों में सम्पन्नता के प्रदर्शन तथा अपव्यय पर भी कठोर नियंत्रण आवश्यक हैं.

उपसंहार – यदपि दहेज विरोधी कानून काफी समय से अस्तित्व में हैं, किन्तु प्रशासन की ओर से इस पर ध्यान नहीं दिया जाता. आयकर विभाग जो निरंतर नये नये करों को थोपकर सामान्य जन को त्रस्त करता हैं.

इस ओर क्यों ध्यान नहीं देता. विवाहों में एक निश्चित सीमा से अधिक व्यय पर अच्छा ख़ासा कर लगाया जाए. साधु संत और धर्मोपदेशक क्यों नहीं इस नारी विरोधी प्रथा की आलोचना करते हैं. जनता और प्रशासन दोनों को ही इस दिशा सक्रिय होना चाहिए और इस सामाजिक कंलक को समाप्त कर देना चाहिए.

दहेज निबंध 1000 शब्द

दहेज प्रथा क्या है कारण दुष्परिणाम रोकने के उपाय व कानून | Dowry System Essay Meaning Causes Effects To Stop Low In India In Hindi

दहेज वह धन या सम्पति होती है, जो विवाह के अवसर पर वधू पक्ष द्वारा विवाह की आवश्यक शर्त के रूप में वर पक्ष को दी जाती है. इस कुप्रथा ने लड़कियों के विवाह को एक दुष्कर कार्य बना दिया है.

निम्न तथा मध्यमवर्गीय परिवार के पिता दहेज के कारण अपनी बेटियों की शादी समय पर नही कर पाते है. यदि कर भी देते है तो इनके लिए उन्हें बड़ी रकम ऋण के रूप में लेनी पड़ती है. भारत में दहेज प्रथा पर पूरी तरह रोक है, मगर आज भी यह धड़ल्ले से चल रही है.

दहेज प्रथा क्या है और इतिहास

प्राचीन समय में वधू के पिता कन्या के साथ कन्यादान के रूप में कुछ धन वर को देता था. जो स्वेच्छा से तथा स्नेह के रूप में प्रदान किया जाता था. उसमें किसी तरह की अनिवार्यता नही होती थी.

धीरे धीरे इस प्रथा ने विकृत रूप धारण कर लिया जिसे दहेज प्रथा का नाम दिया गया. इसमें वधू के पिता को आवश्यक रूप से धन और अन्य सामान वर को प्रदान करना पड़ता है. कई बार वर या वर पक्ष द्वारा विवाह मंडप में ही वधू पक्ष से अनावश्यक धन व महंगी वस्तुओं की मांग कर ली जाती है.

जो वधू पक्ष को आर्थिक कठिनाई में डाल देती है. कई बार तो वधू पक्ष को वर पक्ष की ऐसी अनावश्यक मांग को पूरा करने के लिए अपनी सम्पति तक बेचनी पड़ जाती है. तथा कई बार इस शर्त को पूरा किये बिना विवाह ही नही होता है. वर्तमान में दहेज प्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया है.

  • गरीबी के कारण अपनी आर्थिक स्थति सुधारने की नियत से वर पक्ष वधू पक्ष से इस प्रकार की मांग करता है.
  • 1956 से पहले भारत में हिन्दू उतराधिकारी कानून के पूर्व पुरुषों को उतराधिकार प्राप्त था. इस कारण महिलाओं को हमेशा उन पर आश्रित रहना पड़ता था. इस कारण भी पुरुष वर्ग द्वारा विवाह के अवसर पर दहेज के रूप में धन लेने की प्रवृति को बढ़ावा मिला.
  • अशिक्षा भी दहेज प्रथा का एक मुख्य कारण रहा है. आज जैसे जैसे बालिका शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है, इस प्रथा का उन्मूलन हो रहा है.
  • अपनी झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण भी लोग वधू पक्ष से विवाह के समय दहेज की मांग करते है.
  • महिलाओं का आर्थिक रूप से सक्षम न होना भी दहेज प्रथा का एक मूल कारण है.

भारत में इस कुप्रथा की रोकथाम के लिए बच्चों को शिक्षित किया जाना बेहद जरुरी है. समाज में इस कुरीति के विरुद्ध जागरूकता पैदा की जानी चाहिए तथा जो व्यक्ति दहेज की मांग करे उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाना चाहिए.

हमारे देश में दहेज प्रथा की रोकथाम के लिए वर्ष 1961 में दहेज निरोधक कानून पारित किया गया. लेकिन इस प्रथा को रोकने में यह प्रभावी नही हो सका है.

कर्ज का बोझ -दहेज प्रथा गरीब परिवारों के लिए ऋणग्रस्तता का कारण बनती है. गरीब माँ बाप को अपनी लाडली कन्या का विवाह करने के लिए धन जुटाना आवश्यक होता है.

चूँकि उनके आर्थिक साधन सिमित होते है, अतः उन्हें मजबूरन इस कार्य के लिए ऋण लेना पड़ता है. जिसकों चुकता कर पाना उनके लिए कठिन कार्य होता है. कई बार इस कार्य के लिए उन्हें अपनी जमीन, जायदाद, आभूषण आदि भी बेचने पड़ते है.

महिलाओं पर अत्याचार-  जो महिलाएं अपने साथ दहेज के रूप में काफी धन व अन्य सामान नही ला पाती है, उन्हें ससुराल में पति, सास व अन्य परिवारजनों की प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है.

कभी कभी वे इन दहेजलोभियों से तंग आकर आत्महत्या तक कर लेती है. तो कभी ससुराल वालों द्वारा जलाकर या अन्य प्रकार से मार दी जाती है. अतः दहेज प्रथा के कारण कन्या का जीवन नरक बन जाता है.

समाज में कन्या भ्रूण हत्या व कन्या वध को बढ़ावा-  दहेज की इस प्रथा के कारण लड़कियां माँ बाप पर बोझ मानी जाती है. अतः समाज भी युवतियों को हेय दृष्टि से देखता है.

लड़की के जन्म पर कोई खुशी नही मनाई जाती है. बल्कि समाज के कई वर्गों में तो पैदा होने से पूर्व ही मार दिया जाता है. या उन्हें पैदा होते ही गला घोटकर मार दिया जाता है.

बेमेल विवाह को प्रोत्साहन-  गरीब परिवारों में युवतियों को दहेज की व्यवस्था करने में विफल हो जाने पर कई बार अनमेल विवाह जैसे शारीरिक रूप से अक्षम या अधिक उम्रः के व्यक्ति के साथ विवाह कर दिया जाता है.

उपाय व कानून

दहेज निरोधक कानून 1961

इस प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से वर्ष 1961 में इस कानून को पारित किया गया. यह अधिनियम 20 मई 1961 से लागू हुआ. 1984 में इसमें संशोधन हुआ तथा 1986 में इसे पुनः संशोधित किया गया, ताकि यह कानून और अधिक शक्तिशाली बन सके.

अब इस कानून के तहत न्यायालय अपने ज्ञान के आधार पर किसी भी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था की शिकायत पर कार्यवाही कर सकता है. इन अपराधों की ठीक प्रकार से जांच करने के लिए इसे गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है.

इस अधिनियम के तहत दहेज लेने या देने के लिए प्रेरित करने वाले व्यक्ति को कम से कम 5 वर्ष तक का कारावास या न्यूनतम 15000 रूपये या दहेज की रकम जो भी अधिक हो, का आर्थिक दंड या दोनों सजाएं न्यायालय द्वारा दी जा सकती है.

दहेज कानून इंडियन पैनल कोड

भारतीय कानून संहिता (ipc) में एक नया अनुच्छेद 304B हाल ही के वर्षों में जोड़ा गया है. जिसके अनुसार यदि लड़की की मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के अंदर असामान्य परिस्थितियों में हुई हो तो, इसमें पति या उसके परिवार वालों को प्रमाण प्रत्र देने का उत्तरदायी ठहराया गया है.

तथा यदि के दहेज हत्या के दोषी है तो यह कानून उन्हें 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान करता है. अधिनियम में दहेज निषेध अधिकारी की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया है. दहेज के मामलों को प्रभावशाली ढंग से निपटाने के लिए दहेज विरोधी प्रकोष्ठ की स्थापना की गई है.

IPC की धारा 498 A भी पत्नी को उसके पति या ससुराल वालों की ओर से दहेज हेतु प्रताड़ित करने पर दोषियों को तीन वर्ष तक की सजा का प्रावधान करती है.

महिलाओं का घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम

भारतीय संसद द्वारा महिलाओं को घरेलू उत्पीड़न व अपराधों से बचाने के लिए जिनमें दहेज के लिए तंग करना भी शामिल है. यह अधिनियम पारित किया गया था. इस अधिनियम के तहत महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा के विरुद्ध दीवानी न्याय (civil remedy) उपलब्ध करवाने का प्रावधान है.

इस अधिनियम के तहत न्यायालय को पीड़ित महिला को न्यायिक सुरक्षा प्रदान करने व दोषी पक्षकार को मौद्रिक परितोष (Monetary gratification) प्रदान करने का अधिकार भी दिया गया है.

रोकने के उपाय

जैसे जैसे समाज में शिक्षा का स्तर बढ़ेगा, वैसे वैसे दहेज प्रथा, बाल विवाह आदि कुप्रथाएँ समाप्त होती जाएगी. अब लड़कियां भी शिक्षित होकर अपने पैरों पर खड़ी होने लगी है. अतः शिक्षित परिवारों में दहेज की पूर्व जिसु अनिवार्यता काफी हद तक कम होने लगी है.

साथ ही समाज में अन्तर्रजातीय विवाह को बढ़ावा देकर भी इस प्रथा को कम किया जा सकता है.

दहेज प्रथा पर भाषण- Short Speech on Dowry System in Hindi

हमारे समाज में दहेज प्रथा एक भयावह कुरीति का रूप ले रही हैं, आए दिन कई बहिन बेटियां इस अभिशापित प्रथा के चलते अपना जीवन गंवा रही हैं.

मेरे प्रिय गुरुजनों प्यारे दोस्तों एवं मंच की शोभा मुख्य अतिथि महोदय, समस्त मेरे शिक्षकों एवं स्टूडेंट्स फ्रेड्स को मेरी ओर से प्रणाम. मैं रोहन कक्षा 9 का विद्यार्थी हूँ, आज के भाषण समागम में मैं दहेज़ प्रथा एक अभिशाप विषय पर बोलने जा रहा हूँ.

रीति रिवाज एवं प्रथाएं समाज का अभिन्न अंग होती हैं, समय के साथ साथ इनका स्वरूप भी बदल जाता हैं. भारत में दहेज़ की प्रथा काफी पुरातन हैं.

सबसे प्राचीन ग्रन्थ मनुस्मृति में विवाह के अवसर पर कन्या के माता पिता को कुछ धन, सम्पति, गाय इत्यादि देने की बात कहीं गई हैं, जो दहेज कहलाता था.

मगर इस ग्रन्थ में ऐसा कही नहीं कहा गया कि बेटी को कितना धन का भाग दिया जाए. यह स्वैच्छिक प्रथा कालान्तर में वर पक्ष के लिए अधिकार के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गई. बदलते दौर में इसने एक सामाजिक बुराई और कुप्रथा के स्वरूप को अपना लिया.

दहेज प्रथा आज के आधुनिक समाज में एक महादानव का रूप ले चूका हैं. यह ऐसा विषैला सर्प है जिसका डंसा पानी नहीं मांगता हैं. इस कुरीति के कारण विवाह जैसे पवित्र संस्कार को एक व्यापार बना दिया गया.

भारतीय हिन्दू समाज के सिर पर कलंक बन चुकी हैं. जिन्होंने न जाने कितने घरों को बर्बाद कर दिया, अनेक अल्पायु में बहनों को घूट घुट कर जीवन जीने को मजबूर हो जाती हैं.

इस प्रथा ने समाज में अनैतिकता को बढ़ावा भी मिला जिससे पारिवारिक संघर्ष को तेजी से बढ़ रही हैं. इस प्रथा के चलते बाल विवाह, बेमेल विवाह और विवाह विच्छेद जैसी विकृतियों ने हमारे समाज में स्थान पा लिया.

दहेज की समस्या आजकल बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही हैं. धन के लालच के कारण पति पक्ष के लोग विवाह में दहेज से संतुष्ट नही होते हैं. इसके नतीजेजन बेटियों को जीवित ही जला दिया जाता हैं.

इसके कारण बहुत से परिवारों तो लड़की के जन्म को अभिशाप मानने लगे हैं. यह समस्या दिन प्रतिदिन तो लड़की के जन्म को अभिशाप मानने लगे हैं. यह समस्या दिन प्रतिदिन विकराल रूप में धारण करती जा रही हैं. धीरे धीरे सारा समाज इसकी चपेट में आता जा रहा हैं.

इस सामाजिक कोढ़ से छुटकारा पाने के लिए हमें भरसक प्रयास करना चाहिए, इसके लिए हमारी सरकार द्वारा अनेक प्रयास भी किये हैं उदहारण के लिए हिन्दू उतराधिकार अधिनियम पारित कर दिया.

इसमें कन्याओं को पैतृक सम्पति में अधिकार मिलने की व्यवस्था हैं. दहेज़ प्रथा को दंडनीय अपराध घोषित किया तथा इसकी रोकथाम के लिए दहेज़ निषेध अधिनियम पारित किया गया. तथा इसकी रोकथाम के लिए दहेज निषेध अधिनियम पारित किया गया.

इन सबका बहुत प्रभाव नहीं पड़ा हैं. इसके उपरान्त विवाह योग्य आयु की सीमा बढ़ाई गई. आवश्यकता इस बात की हैं कि कठोरता से पालन किया जाय.

लड़कियों को उच्च शिक्षा दी जाए, युवा वर्ग के लिए अन्तर्रजातीय विवाह सम्बन्धों को बढ़ावा दिया जाए ताकि वे इस कुप्रथा का डट कर सामना किया जा सके. अतः हम सबकों मिलकर इस प्रथा को जड़ से ही मिटा देनी चाहिए तभी हमारा समाज और देश आगे बढ़ सकता हैं.

दहेज एक समय अच्छी सामाजिक प्रथा थी, माता पिता अपनी बेटी को उपहार स्वरूप कुछ उपहार दिया करते थे, जिसे दहेज का नाम दिया जाता था.

मगर बदलते वक्त के साथ इसका स्वरूप विकृत होता चला गया और आज वर पक्ष की तरफ से धन की मांग की जाने लगी हैं. एक तरह से बेटी का मोल भाव किया जाने लग गया हैं. विचारों की पतनशीलता को रोकने के लिए समाज को अपने स्तर पर ऐसी अमानवीय प्रथा पर रोक लगानी होगी.

आज हम सभी को यह संकल्प लेना हैं कि हम न तो अपनी बेटी को दहेज देगे और न ही अपनी बहु से दहेज मांगेगे, जब हर एक भारतवासी ऐसा सोचेगा तो अपने आप इस प्रथा का उन्मूलन हो जाएगा.

हमारे छोटे से प्रयास से किसी बहु बेटी को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ना से मुक्ति मिल सकती हैं. इन दो पंक्तियों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देना चाहुगा.

दहेज़ की खातिर, लड़की को मत जलाओ, अगर वास्तव में मर्द हो तो, कमाकर खिलाओ.

दहेज का अर्थ क्या है?

दहेज का कानून कौनसा हैं, दहेज लेने या देने पर कितनी सजा हो सकती हैं.

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आशा करता हूँ दोस्तों Essay on Dowry System in Hindi दहेज प्रथा पर निबंध pdf   का यह लेख आपकों पसंद आया होगा. यदि आपकों यह निबंध पसंद आया  हो तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे.

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दहेज प्रथा पर निबंध Essay on Dowry System in Hindi

दहेज प्रथा पर निबंध Essay on Dowry System in Hindi

क्या आप दहेज प्रथा पर निबंध (Essay on Dowry System in Hindi) की तलाश कर रहे हैं? अगर हां तो इस लेख के बाद आपकी सारी तलाश पूरी होने वाली है। इस लेख में हमने दहेज प्रथा के ऊपर हिंदी में निबंध लिखा है। जिसमें दहेज प्रथा की परिभाषा, इतिहास, दुष्प्रभाव, अभिशाप, कानून, समाधान तथा 10 वाक्यों को शामिल किया गया है।

Table of Contents

प्रस्तावना(दहेज प्रथा पर निबंध Essay on Dowry System in Hindi)

भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति है। प्राचीनतम ग्रंथों में सभी लोगों के लिए न्याय संगत तथा एक समान व्यवस्था होता था, जिसमें किसी के भी साथ अन्याय की कोई गुंजाइश नहीं होती थी।

लेकिन बीते कुछ समय में कई प्रकार की कुरीतियां और प्रथाएं व्यापक स्तर पर फैल चुकी हैं। यह प्रथाएं न केवल हमारी संस्कृति का अपमान करती हैं, बल्कि एक सभ्य समाज की बहुत हानि करती है।

दहेज प्रथा ऐसी ही एक प्रथा है, जिसमें महिलाओं के साथ अन्याय पूर्ण व्यवहार किया जाता है। प्रतिदिन अखबारों में यह खबर छापी जाती है, कि दहेज के लिए महिलाओं को प्रताड़ित किया गया। कई बार तो दहेज की मांग में महिलाओं को मौत के घाट उतार दिया जाता है।

यह बात सत्य है की दहेज प्रथा पुराने समय से ही चली आ रही है लेकिन आज के समय में इन प्रथाओं को बेहद तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है जो अपने वास्तविक स्वरूप से बिल्कुल अलग है।

दहेज प्रथा सबसे अधिक भारत देश में ही देखने को मिलता है। विज्ञान चाहे कितने भी प्रगति क्यों न कर लें किंतु लोगों की रूढ़िवादी प्रथाएं कभी खत्म ही नहीं होती हैं।

दहेज प्रथा क्या ? What is Dowry System in Hindi?

विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ से वर को दी जाने वाली संपत्ति दहेज कहलाती है। विवाह के दौरान वर को दहेज के रूप में नकदी, संपत्ति, आभूषण,  फर्नीचर आदि कीमती वस्तुएं भेंट में दी जाती हैं।

दहेज को उर्दू में जहेज़ कहा जाता है। भारत के अलावा यूरोपीय और अफ्रीकी देशों में दहेज प्रथा का इतिहास बहुत पुराना रहा है।

आमतौर पर दहेज वह संपत्ति होती है जो वर के परिवार वालों को वधू के साथ दिया जाता है। यह प्रथा समाज में लंबे समय से प्रचलित है। आधुनिक समय में दहेज प्रथा नाम की बुराई दिन-ब-दिन अपना विकराल रूप धारण कर रही है।

दहेज प्रथा का इतिहास History of Dowry System in Hindi

प्राचीन समय में कई प्रकार की प्रथाएं प्रचलित हुआ करती थी। वास्तव में दहेज प्रथा का इतिहास बहुत पुराना है जो वैदिक समय से शुरू होकर आज के आधुनिक युग में भी जारी है। दहेज प्रथा का प्रारंभ उत्तर वैदिक काल में हुआ था तब यह प्रथा केवल नाम मात्र की थी।

प्राचीन समय के राजा महाराजा अपनी पुत्री का विवाह करते समय वर पक्ष को अपनी खुशी के लिए अनमोल उपहार देते थे। हालांकि वर पक्ष की ऐसी कोई भी मांग नहीं होती थी।

राजा महाराजाओं से फैलकर यह प्रथा आम लोगों में भी प्रचलित होने लगी। लोग दहेज देने को अपनी प्रतिष्ठा तथा सम्मान से जोड़कर देखने लगे।

जिस रूप में यह छोटी सी रीति शुरू हुई थी वह आज विकराल रूप धारण कर चुकी है। आज के समय में यदि वर पक्ष को दहेज न दिया जाए तो विवाह नहीं हो पाता है।

इन कुरीतियों के कारण लोग विवाह के पहले ही लड़की के परिवार वालों से बड़े-बड़े दहेज की मांग करते हैं। यह शर्त रखी जाती है कि यदि उन्हें उनका मनचाहा दहेज मिलता है तभी वे विवाह करेंगे।

इस कलयुग में यदि दहेज न दिया जाए तो ससुराल में विवाहित महिलाओं को खूब प्रताड़ित किया जाता है।

विद्वानों का मानना है कि कोई भी चीज या प्रथा स्वयं में अच्छी अथवा बुरी नहीं होती है बल्कि उसे तोड़ मरोड़ कर अपने स्वार्थ हेतु अनुकूल बना दिया जाता है। 

दहेज़ प्रथा के दुष्प्रभाव Side Effects of Dowry System in Hindi

दहेज प्रथा आज के समय में एक ऐसी बीमारी बन चुकी है जो अनपढ़ लोगों के साथ- साथ पढ़े लिखे लोगों में भी देखने को मिलती है।

आज के समय में कुछ लोग चाहे कितनी भी अच्छी नौकरी क्यों न कर रहे हो किंतु दहेज से मिलने वाला धन उनके लिए अधिक सुखदाई होता है।

दहेज प्रथा के कारण देश में हर घंटे में एक महिला को मौत के घाट उतार दिया जाता है। यदि प्रताड़ित करने पर कोई असर ना हुआ तो महिलाओं को मौत की आग में झोंक दिया जाता है।

भारत में वर्ष 2007 से 2011 के बीच दहेज से प्रताड़ित और मारी गई महिलाओं के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक इन वर्षों में सबसे अधिक दहेज प्रथा के मामले हुए हैं।

ऐसी बात नहीं है कि इस कुरीति का प्रभाव केवल गरीब लोगों पर पड़ता है, अपितु मध्यम तथा उच्च वर्गीय परिवारों में भी यह समस्या देखी जाती है।

ससुराल के लोगों द्वारा महिलाओं को अपने घर से अधिक धन लाने के लिए प्रताड़ित किया जाता है। लड़की के माता-पिता यदि दहेज का इंतजाम नहीं कर पाते हैं तो वें भी आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।

दहेज प्रथा एक अभिशाप Dowry system a curse in Hindi

दहेज प्रथा हमारे  समाज और देश के लिए एक अभिशाप बन गई है। यह प्रथा हमारे देश में सदियों से विद्यमान है।

कहने को तो यह एक सामाजिक रीती है, लेकिन इसका दुष्प्रभाव केवल नवविवाहित लड़कियों को ही भोगना पड़ता है। 

जो लोग गरीब होते हैं वे वर पक्ष के मांगों को पूरा करने के लिए साहूकारों से कर्ज उधार ले लेते हैं, जिसे चुकाने के लिए वे पूरी जिंदगी बोझ तले दब जाते हैं ।

यह हमारे लिए बहुत शर्म की बात है कि विज्ञान के क्षेत्र में इतनी तरक्की करने के बाद भी हमारे समाज में ऐसी रूढ़िवादी प्रथाएं आज भी देखी जाती हैं।

दहेज प्रथा पर कानून Law on dowry system in Hindi

दहेज प्रथा को लगाम लगाने के लिए वर्ष 1961 में दहेज निषेध अधिनियम लाया गया था। जिसके अनुसार दहेज लेने- देने या इसके लेनदेन में किसी प्रकार के सहयोग करने पर 5 साल की कैद हो सकती है और ₹15000 के जुर्माने भी लगाया जा सकता है।

भारतीय दंड संहिता के अनुसार दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर पति और उनके रिश्तेदारों को अवैधानिक मांग के मामले में 3 वर्ष की कैद तथा जुर्माना लगाया जा सकता है।

यदि लड़के के परिवार वाले लड़की के स्त्रीधन को सौंपने से मना करते हैं, तो इसके लिए भी उन्हें कड़ी सजा दी जा सकती है।

आज के समय में लोग इतने लालची और क्रूर हो गए हैं की विवाहित युवतियों को दहेज के लिए प्रताड़ित करके मार दिया जाता है तथा इसे आत्महत्या का नाम दे दिया जाता है।

ऐसे दानवों की चतुराई का भी हल निकाला गया है। जिसके लिए यदि किसी भी लड़की के विवाह के 7 वर्ष के भीतर उसकी असामान्य हत्या होती है और यह साबित हो जाता है कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था, तो दंड संहिता के आधार पर सभी गुनहगारों को उम्रकैद की सजा भी दी जा सकती है।

दहेज प्रथा का समाधान Solution to dowry system in Hindi

दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए चाहे कितने भी कानून बना दिए जाएं किंतु यह सब जानते हैं कि आज भी लोग खुल्लम- खुल्ला दहेज का लेनदेन करते हैं।

किसी भी कुरीति को खत्म करने के लिए पूरे समाज को आगे आना होगा। दहेज प्रथा को रोकने के लिए सभी महिलाओं को सशक्तिकरण करके इसके विरुद्ध खड़ा होना होगा।

यह घृणित समस्या के निवारण के लिए सभी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त  बनाना पड़ेगा। किसी भी रूढ़िवादी प्रथा को खत्म करने का सबसे उत्तम उपाय शिक्षा होता है इसलिए सभी लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है।

दहेज प्रथा पर 10 वाक्य 10 lines on dowry system in Hindi

  • गांधीजी के अनुसार जो भी व्यक्ति दहेज को विवाह का शर्त बनाता है, वह अपने शिक्षा और देश का अपमान करता है साथ ही स्त्री जाति का भी अपमान करता है।
  • दहेज प्रथा का प्रचलन हमारे हमारे समाज में वैदिक काल से चला आ रहा है जिसका अर्थ ह्रदय से दी गयी भेंट होता था।
  • विवाह के समय लड़की के परिवार वालों के द्वारा वर पक्ष को दिया जाने वाला भेंट दहेज कहलाता है।
  • दहेज के कारण नव विवाहित महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास रुक जाता है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार हर घंटे एक महिला को दहेज के कारण मार दिया जाता है।
  • दहेज प्रथा के विरोध में सन 1961 में भारत सरकार द्वारा “दहेज निषेध अधिनियम” कानून लाया गया था।
  • ऐसी रूढ़िवादी प्रथाओं के कारण समाज का अधिक विकास नहीं हो पाता है क्योंकि किसी भी देश का विकास वहां की महिलाओं पर आधारित होता है।
  • महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए “महिला सशक्तिकरण आयोग” का गठन किया गया है।
  • दहेज प्रथा के खिलाफ सामाजिक जागरूकता फैलाने की अत्यंत आवश्यकता है।
  • दहेज देने के भय से कई लोग कन्याओं को गर्भ में ही मार डालते हैं जो एक अपराध है। 

निष्कर्ष Conclusion

इस लेख में आपने दहेज प्रथा पर हिंदी में (Essay on  dowry system in Hindi) निबंध पढ़ा। आशा है यह लेख आपके लिए सहायक सिद्ध हो। अगर यह निबंध आपको अच्छा लगा हो तो शेयर जरूर करें।

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Dowry System Essay in Hindi

दहेज़ प्रथा पर निबंध – Dowry System Essay in Hindi

दहेज़ प्रथा पर छोटे तथा लंबे निबंध (essay on dowry system essay in hindi), हमारे समाज का कोढ़ : दहेज–प्रथा – the leprosy of our society: dowry.

अन्य सम्बन्धित शीर्षक–

  • दहेज–प्रथा : एक सामाजिक अभिशाप,
  • दहेज का दानव,
  • सामाजिक प्रतिष्ठा और दहेज,
  • क्या दहेज समाप्त हो सकेगा?
  • दहेज–प्रथा : समस्या और समाधान।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

“दहेज बुरा रिवाज है, बेहद बुरा। …… पूछो, आप लड़के का विवाह करते हैं कि उसे बेचते हैं।”

-मुंशी प्रेमचन्द

  • प्रस्तावना,
  • दहेज का अर्थ,
  • (क) धन के प्रति अधिक आकर्षण,
  • (ख) जीवन–साथी चुनने का सीमित क्षेत्र,
  • (ग) बाल–विवाह,
  • (घ) शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा,
  • (ङ) विवाह की अनिवार्यता,
  • (क) बेमेल विवाह,
  • (ख) ऋणग्रस्तता,
  • (ग) कन्याओं का दुःखद वैवाहिक जीवन,
  • (घ) आत्महत्या,
  • (ङ) अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि,
  • (क) कानून द्वारा प्रतिबन्ध,
  • (ख) अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन,
  • (ग) युवकों को स्वावलम्बी बनाया जाए,
  • (घ) लड़कियों की शिक्षा,
  • (ङ) जीवन–साथी चुनने का अधिकार,

प्रस्तावना– दहेज का दानव आज भारतीय समाज में विनाशलीला मचाए हुए है। दहेज के कारण कितनी ही युवतियाँ काल के क्रूर गाल में समा जाती हैं। प्रतिदिन समाचार–पत्रों में इन दुर्घटनाओं (हत्याओं और आत्महत्याओं) के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। नारी–उत्पीड़न के किस्सों को सुनकर कठोर–से–कठोर व्यक्ति का हृदय भी पीड़ा और ग्लानि से भर जाता है।

समाज का यह कोढ़ निरन्तर विकृत रूप धारण करता जा रहा है। समय रहते इस भयानक रोग का निदान और उपचार आवश्यक है; अन्यथा समाज की नैतिक मान्यताएँ नष्ट हो जाएँगी और मानव–मूल्य समाप्त हो जाएंगे।

दहेज का अर्थ–सामान्यत: दहेज का तात्पर्य उन सम्पत्तियों तथा वस्तुओं से समझा जाता है, जिन्हें विवाह के समय वधू–पक्ष की ओर से वर–पक्ष को दिया जाता है। मूलतः इसमें स्वेच्छा का भाव निहित था, किन्तु आज दहेज का अर्थ इससे नितान्त भिन्न हो गया है।

अब इसका तात्पर्य उस सम्पत्ति अथवा मूल्यवान् वस्तुओं से है, जिन्हें विवाह की एक शर्त के रूप में कन्या–पक्ष द्वारा वर–पक्ष को विवाह से पूर्व अथवा बाद में देना पड़ता है। वास्तव में इसे दहेज की अपेक्षा वर–मूल्य कहना अधिक उपयुक्त होगा।

दहेज–प्रथा के प्रसार के कारण–दहेज–प्रथा के विस्तार के अनेक कारण हैं। इनमें से प्रमुख कारण हैं-

(क) धन के प्रति अधिक आकर्षण–आज का युग भौतिकवादी युग है। समाज में धन का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। धन सामाजिक एवं पारिवारिक प्रतिष्ठा का आधार बन गया है। मनुष्य येन–केन–प्रकारेण धन के संग्रह में लगा हुआ है। वर–पक्ष ऐसे परिवार में ही सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है, जो धन–सम्पन्न हो तथा जिससे अधिकाधिक धन प्राप्त हो सके।

(ख)जीवन–साथी चुनने का सीमित क्षेत्र–हमारा समाज अनेक जातियों तथा उपजातियों में विभाजित है। सामान्यतः प्रत्येक माँ–बाप अपनी लड़की का विवाह अपनी ही जाति या अपने से उच्चजाति के लड़के के साथ करना चाहता है। इन परिस्थितियों में उपयुक्त वर के मिलने में कठिनाई होती है; फलत: वर–पक्ष की ओर से दहेज की माँग आरम्भ हो जाती है।

(ग) बाल–विवाह–बाल–विवाह के कारण लड़के अथवा लड़की को अपना जीवन साथी चुनने का अवसर नहीं मिलता। विवाह–सम्बन्ध का पूर्ण अधिकार माता–पिता के हाथ में रहता है। ऐसी स्थिति में लड़के के माता–पिता अपने पुत्र के लिए अधिक दहेज की माँग करते हैं। .

(घ) शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा–वर्तमान युग में शिक्षा बहुत महँगी है। इसके लिए पिता को कभी–कभी अपने पुत्र की शिक्षा पर अपनी सामर्थ्य से अधिक धन व्यय करना पड़ता है। इस धन की पूर्ति वह पुत्र के विवाह के अवसर पर दहेज प्राप्त करके करना चाहता है।

शिक्षित लड़के ऊँची नौकरियाँ प्राप्त करके समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं, परन्तु इनकी संख्या कम है और प्रत्येक बेटीवाला अपनी बेटी का विवाह उच्च नौकरी प्राप्त प्रतिष्ठित युवक के साथ ही करना चाहता है; अत: इस दृष्टि से भी वर के लिए दहेज की माँग निरन्तर बढ़ती जा रही है।

(ङ) विवाह की अनिवार्यता–हिन्दू–धर्म में एक विशेष अवस्था में कन्या का विवाह करना पुनीत कर्त्तव्य माना गया है तथा कन्या का विवाह न करना ‘महापातक’ कहा गया है। प्रत्येक समाज में कुछ लड़कियाँ कुरूप अथवा विकलांग होती हैं, जिनके लिए योग्य जीवन–साथी मिलना प्राय: कठिन होता है। ऐसी स्थिति में कन्या के माता–पिता वर–पक्ष को दहेज का लालच देकर अपने इस ‘पुनीत कर्त्तव्य’ का पालन करते हैं।

दहेज–प्रथा के दुष्परिणाम–दहेज प्रथा ने हमारे सम्पूर्ण समाज को पथभ्रष्ट तथा स्वार्थी बना दिया है। समाज में यह रोग इतने व्यापक रूप से फैल गया है कि कन्या के माता–पिता के रूप में जो लोग दहेज की बुराई करते हैं, वे ही अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर मुंहमांगा दहेज प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। इससे समाज में अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हो गई हैं तथा अनेक नवीन समस्याएँ विकराल रूप धारण करती जा रही हैं; यथा

(क) बेमेल विवाह–दहेज–प्रथा के कारण आर्थिक रूप से दुर्बल माता–पिता अपनी पुत्री के लिए उपयुक्त वर प्राप्त नहीं कर पाते और विवश होकर उन्हें अपनी पुत्री का विवाह ऐसे अयोग्य लड़के से करना पड़ता है, जिसके माता–पिता कम दहेज पर उसका विवाह करने को तैयार हों। दहेज न देने के कारण कई बार माता–पिता अपनी कम अवस्था की लड़कियों का विवाह अधिक अवस्था के पुरुषों से करने के लिए भी विवश हो जाते हैं।

(ख)ऋणग्रस्तता–दहेज–प्रथा के कारण वर–पक्ष की माँग को पूरा करने के लिए कई बार कन्या के पिता को ऋण भी लेना पड़ता है, परिणामस्वरूप अनेक परिवार आजन्म ऋण की चक्की में पिसते रहते हैं।

(ग) कन्याओं का दुःखद वैवाहिक जीवन–वर–पक्ष की माँग के अनुसार दहेज न देने अथवा दहेज में किसी प्रकार की कमी रह जाने के कारण ‘नव–वधू’ को ससुराल में अपमानित होना पड़ता है।

(घ) आत्महत्या–दहेज के अभाव में उपयुक्त वर न मिलने के कारण अपने माता–पिता को चिन्तामुक्त करने हेतु अनेक लड़कियाँ आत्महत्या भी कर लेती हैं। कभी–कभी ससुराल के लोगों के ताने सुनने एवं अपमानित होने पर विवाहित स्त्रियाँ भी अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु आत्महत्या कर लेती हैं।

(ङ) अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि–दहेज–प्रथा के कारण कई बार निर्धन परिवारों की लड़कियों को उपयुक्त वर नहीं मिल पाते। आर्थिक दृष्टि से दुर्बल परिवारों की जागरूक युवतियाँ गुणहीन तथा निम्नस्तरीय युवकों से विवाह करने की अपेक्षा अविवाहित रहना उचित समझती हैं, जिससे अनैतिक सम्बन्धों और यौन–कुण्ठाओं जैसी अनेक सामाजिक विकृतियों को बढ़ावा मिलता है।

समस्या का समाधान–दहेज–प्रथा समाज के लिए निश्चित ही एक अभिशाप है। कानून एवं समाज–सुधारकों ने दहेज से मुक्ति के अनेक उपाय सुझाए हैं। यहाँ पर उनके सम्बन्ध में संक्षेप में विचार किया जा रहा है-

(क) कानून द्वारा प्रतिबन्ध–अनेक व्यक्तियों का विचार था कि दहेज के लेन–देन पर कानून द्वारा प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए। फलत: 9 मई, 1961 ई० को भारतीय संसद में ‘दहेज निरोधक अधिनियम’ स्वीकार कर लिया गया।

सन् 1986 ई० में इसमें संशोधन करके इसे और अधिक व्यापक तथा सशक्त बनाया गया। अब दहेज लेना और देना दोनों अपराध हैं। इसमें दहेज लेने और देनेवाले को 5 वर्ष की कैद और 1500 रुपये तक के जुर्माने की सजा दी जा सकती है। इस अधिनियम की धारा 44 के अन्तर्गत दहेज माँगनेवाले को 6 माह से 2 वर्ष तक की कैद तथा 15000 रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है।

दहेज उत्पीड़न एक गैर–जमानती अपराध होगा। यदि विवाहिता की मृत्यु किसी भी कारण से विवाह के सात वर्षों के भीतर हो जाती है तो दहेज में दिया गया सारा सामान विवाहिता के माता–पिता या उसके उत्तराधिकारी को मिल जाएगा।

यदि विवाह के सात वर्ष के भीतर विवाहिता की मृत्यु अप्राकृतिक कारण (आत्महत्या भी इसमें सम्मिलित है) से होती है तो ऐसी मृत्यु को हत्या की श्रेणी में रखकर आरोपियों के विरुद्ध हत्या का मुकदमा चलाया जाएगा, जिसमें उन्हें सात साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

(ख) अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन–अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देने से वर का चुनाव करने के क्षेत्र में विस्तार होगा तथा युवतियों के लिए योग्य वर खोजने में सुविधा होगी। इससे दहेज की माँग में भी कमी आएगी।

(ग) युवकों को स्वावलम्बी बनाया जाए–स्वावलम्बी होने पर युवक अपनी इच्छा से लड़की का चयन कर सकेंगे। दहेज की माँग अधिकतर युवकों की ओर से न होकर उनके माता–पिता की ओर से होती है। स्वावलम्बी युवकों पर माता–पिता का दबाव कम होने पर दहेज के लेन–देन में स्वत: कमी आएगी।

(घ) लड़कियों की शिक्षा–जब युवतियाँ भी शिक्षित होकर स्वावलम्बी बनेंगी तो वे अपना जीवन–निर्वाह करने में समर्थ हो सकेंगी। दहेज की अपेक्षा आजीवन उनके द्वारा कमाया गया धन कहीं अधिक होगा। इस प्रकार की युवतियों की दृष्टि में विवाह एक विवशता के रूप में भी नहीं होगा, जिसका वर–पक्ष प्रायः अनुचित लाभ उठाता है।

(ङ) जीवन–साथी चुनने का अधिकार–प्रबुद्ध युवक–युवतियों को अपना जीवन–साथी चुनने के लिए अधिक छूट मिलनी चाहिए। शिक्षा के प्रसार के साथ–साथ युवक–युवतियों में इस प्रकार का वैचारिक परिवर्तन सम्भव है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप विवाह से पूर्व एक–दूसरे के विचारों से अवगत होने का पूर्ण अवसर प्राप्त हो सकेगा।

उपसंहार– दहेज–प्रथा एक सामाजिक बुराई है; अतः इसके विरुद्ध स्वस्थ जनमत का निर्माण करना चाहिए। जब तक समाज में जागृति नहीं होगी, दहेजरूपी दैत्य से मुक्ति पाना कठिन है। राजनेताओं, समाज–सुधारकों तथा युवक–युवतियों आदि सभी के सहयोग से ही दहेज–प्रथा का अन्त हो सकता है।

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दहेज प्रथा पर निबंध- Essay on Dowry System in Hindi

In this article, we are providing Nibandh Dahej Pratha / Essay on Dowry System in Hindi. दहेज प्रथा पर निबंध in 150, 200, 300, 500, 1000 words For Class 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10,11,12 Students.

दहेज प्रथा पर निबंध- Essay on Dowry System in Hindi

Dahej pratha par nibandh 300 words.

दहेज प्रथा सामाजिक और पारिवारिक जीवन के लिए एक कलंक है क्योंकि बड़े दुख की बात है कि हमारे देश में शिक्षा और जीवन स्तर में विकास होने के बावजूद भी दहेज प्रथा अभी तक चलती आ रही है। इस दहेज प्रथा की वजह से ना जाने कितने घर बर्बाद हो चुके हैं और कितनों को भुखमरी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है।

दहेज प्रथा क्या है?

यह प्रथा प्राचीन काल से चलती आ रही है, पहले काफी हद तक अच्छी मानी जाती थी मगर अभी इस प्रथा ने बुरा स्वरूप धारण कर लिया है । किसी भी माता-पिता के पास इतने सारे पैसे नहीं होते हैं कि वह अपनी बेटी की शादी के लिए दहेज 10-20 लाख दे पाए, इसी कारण वर्ष दहेज के अभाव में योग्य कन्याएं अयोग्य वरों को सौंप दी जाती हैं । दहेज प्रथा का simple सा अर्थ यह होता है कि , शादी विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा सामने वाले पक्ष को उपहार में कोई भी महंगी भेंट दी जाती है, इसे “दहेज़” काहा जाता है‌, दहेज प्रथा समाज के लिए कलंक मानी जाती है ।

दहेज प्रथा को किस तरह से रोका जा सकता है ?

दहेज को रोकने के लिए आज बहुत सारी संस्थाएं बनाई गई है और इसके अलावा भारत सरकार ने दहेज पर प्रतिबंध के लिए, दहेज कानून अधिनियम 1961 के अनुसार दहेज लेने या फिर देने पर 5 वर्ष की कैद और 150000 रुपए का जुर्माना लगाया गया है ।

दहेज प्रथा को हम किस तरह से रोक सकते है ?

दहेज प्रथा के प्रतिबंध के लिए बहुत सारे कानून बनाए गए हैं लेकिन जब तक पुराने जमाने की सोच नहीं बदलेगी, तब तक दहेज प्रथा बदलना असंभव है । इसलिए हमें सबसे पहले हमारी सोच बदलनी होगी । जब तक समाज में दहेज प्रथा के प्रति जागृति नहीं आएगी तब तक दहेज प्रथा को बदलना मुश्किल होगा । दहेज प्रथा को खत्म करना हमारी जिम्मेदारी है! हम सभी युवकों को सामने आना चाहिए और लोगों को इसकी बुराइयों के बारे में बताना चाहिए! रिश्ते हमेशा दिल के होते हैं पैसों के नहीं. हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी बेटी अपने परिवार में बोझ ना बने, इसके लिए दहेज प्रथा को खत्म करना बहुत जरूरी है। जो भी विद्यार्थि इस लेख को पढ़ रहे हैं, आप अपने मन से वचन लीजिए कि आने वाले समय में आप दहेज नहीं लेंगे ।

Essay on Dowry System in Hindi in 1500 words

नारी तुम केवल श्रद्धा हो,

विश्वास रजत नग-पग तल में।

पीयूष स्रोत सी बहा करो,

जीवन के सुन्दर समतल में॥

कविवर जयशंकर प्रसाद की ये काव्य-पंक्तियों/जीवन उद्यान में महकते, सुगन्धित, सौन्दर्यमय पुष्प रूपी नारी के महत्व को और उसकी कमनीयता को अभिव्यक्त करती है। सृष्टि के आरम्भ से ही प्रकृति और पुरुष दो मूल तत्व सृष्टि-प्रसार के आधार स्तम्भ रहे हैं। जीवन और गृहस्थ रूपी रथ के ये दो चक्र है और दोनों यथाशक्ति भार वहन करते हैं। इन दोनों के संतुलन में जीवन का सौन्दर्य और सुख छिपा हुआ है। अत: प्रत्येक दृष्टि से नारी जीवन-संघर्ष में, जीवन-यात्रा में सहयात्री है, सहचरी है।

दहेज प्रथा का अर्थ- दहेज शब्द अरबी भाषा के ‘जहेज’ शब्द से बना है। जिसका अर्थ है ‘सौगात’। ‘संस्कृत में ‘दायज’ शब्द मिलता है, जिसका अर्थ है उपहार या दान। मेक्सरेडिल ने दहेज को स्पष्ट करते हुए लिखा है-

“साधारणतया दहेज वह सम्पत्ति है जो एक व्यक्ति विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष से प्राप्त करता है।”

इस परिभाषा के अनुसार दहेज़ की संपत्ति प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार के नियम की अथवा बंधन का ज्ञान नहीं होता है। वस्तुत: माता-पिता का अपनी लाड़ली पुत्री के प्रति जो वात्सल्य और स्नेह की भावना होती है उसी के कारण प्राचीन काल में भी लोग अपनी पुत्री को दान दिया करते थे ताकि उनकी कन्या अपना गृहस्थ जीवन आरम्भ करते हुए किसी भी प्रकार की परेशानियों का सामना न करे। इस दान के मूल में यही शुभेच्छा थी। वर्तमान युग में दहेज अब वात्सल्य और स्नेह का प्रतीक नहीं रह गया है अपितु यह वह अभिशाप है जो कन्या के जन्म लेते समय माता-पिता को पीड़ित करता है और उसके बाद कन्या के सिर पर सवार होकर ससुराल तक भी उसका पीछा नहीं छोड़ता। इतना ही नहीं कभी-कभी यह वरक-वधु दोनों पक्षों के घरों को उजाड़ कर ही साँस लेता है।

दहेज-प्रथा का प्राचीन रूप- मनु ने मनुस्मृति में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख किया है—ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्य विवाह, प्रजापत्य विवाह, आसुर विवाह, गान्धीव विवाह, राक्षस विवाह तथा पैशाच विवाह। आसुर विवाह का उल्लेख करते हुए कहा गया  है कि यदि विवाह के अवसर पर वर को कन्या के माता-पिता धन देते हैं तो वह आसुर विवाह कहलाता है-

जातिभ्योविणं दत्वा कन्यायै चैव शकि्तत |

कन्या प्रदान चर्म उच्यते॥

विवाह की प्रथा के अनुसार शास्त्र के ज्ञाता के समक्ष विवाह सम्पन्न कराते  तथा कन्या का हाथ वर के हाथ में देते। इसी अवसर पर बन्धु-बान्धव तथा प्रिजयन कन्या को प्रेमोपहार स्वरूप कुछ दहेज देते थे। युग की अवस्था के अनुसार दहेज का स्वीरूप भी बदलता गया। कृषि-युग में पशुओं तथा भूमि का महत्व बढ़ा। अत: दहेज के रूप में भूमि दान तथा गाय दान आदि की प्रथा चल पड़ी। इसीलिए आज भी लोग विवाह में गाय दान तथा भूमि दान को बहुत ही पवित्र रूप में मानते हैं। कृषि युग के पश्चात् औद्योगीकरण होने लगा तथा अर्थ को विशेष महत्व दिया जाने लगा। इसलिए दहेज के स्थान पर धन, वस्त्र, आभूषण आदि प्रमुख बन गए। अब यही प्रथा चल पड़ी। आज के युग में स्कूटर, टैलीविजन, फ्रिज आदि की माँग और प्रथा इस तथ्य का प्रमाण है कि जिस युग में जिस वस्तु विशेष का महत्व रहा वही दहेज के रूप में भी दी जाती रही।

आधुनिक युग में दहेज एक अभिशाप- कन्या का जन्म पुरुष प्रधान समाज में केवल दु:ख का ही कारण माना जाता रहा है। उसके जन्म से ही उसे ‘पराया धन’ कहा जाता है। प्राचीनकाल में स्त्री की शिक्षा-दीक्षा भी इसी दृष्टिकोण को मध्य नज़र रख कर दी जाती है। लड़के के जन्म को शुभ माना जाता है तथा लड़की के जन्म को अशुभ माना। कालिदास ने ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम’ में लिखा है कि कन्या का पिता होना कष्टकारक होता है

पुत्रीति जाता महतीह चिन्ता, कस्मै प्रदेयेति महान् वितर्कः॥

दत्वा सुखं प्राप्स्यति वा नवेति, कन्या पितृत्वं खलु नाम कष्ट्म॥

इस प्राचीन विचारधारा में कन्या को विपत्ति का कारण अन्य दृष्टियों से माना जाता था परन्तु आधुनिक युग में दहेज के अभिशाप के कारण कन्या का जन्म होते ही माता-पिता गहरी श्वास छोड़ने लगते हैं। जो लोग सम्पन्न होते हैं वे उसके जन्म से ही उसके लिए, विवाह के अवसर के लिए धन संचित करने लगते हैं, परन्तु जो आर्थिक रूप से विपन्न होते हैं वे इसी चिन्ता में घुलने लगते हैं। आज स्थिति इतनी विकट हो गई है कि जो लड़कियां नौकरी में भी होती हैं, उनके विवाह के अवसर पर भी दहेज के लालची लोग हिसाब लगाते हैं कि कितने वर्षों में कितने रुपए महीने के हिसाब से कितना धन जमा होगा। दहेज की स्थिति व्यापारी वर्ग में तो इस रूप में फैली है कि साधारण व्यापारी इस बोझ के नीचे दब  कर रह जाता है। सारे परिवार का उद्देश्य ही लड़की की शादी के लिए धन एकत्रित करना हो जाता है। मध्यवर्गीय परिवारों में स्थिति अत्यन्त विकट होती है। ऐसे लोग जो नौकरी पेशा वाले होते हैं, अपनी भविष्य-निधि, ‘प्राविडेन्ट फण्ड या जीवन-बीमा सुरक्षा आदि बचत योजनाओं से पैसा निकाल कर लगभग खाली हो जाते हैं।

दहेज आज फैशन और प्रतिष्ठा का रूप ले रहा है तथा भयानक दानव बनकर मासूम निर्दोष लड़कियों को निगल रहा है। प्रति दिन पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों में दहेज में पर्याप्त  रूप से धन न मिलने पर या अधिक माँग पूरी न होने पर सास और ससुर, ननद और देवर तथा पति द्वारा लड़की पर होने वाली जघन्य, अमानवीय, क्रूर अत्याचारों का वर्णन मिलता है। स्टोव का फटना, आग लगना, गैस सिलिण्डर से जलना ये घटनाएं केवल नवविवाहिताओं के साथ ही होती हैं। दहेज-दानव की बलि चढ़ने वाली अभागी लड़कियों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जाती है। कभी-कभी तो लड़की खुद ही आत्महत्या कर लेती है। सन् 1988 में कानपुर के एक साधारण परिवार की तीनों बहनों ने एक साथ आत्महत्या की थी क्योंकि उनके लिए वर इसलिए नहीं मिलता था कि उनके पिता की दहेज देने की सामथ्र्य नहीं थी। आज के युग में लड़कों की नीलामी होती है। डॉक्टर, आफिसर या इंजीनियर लड़का कार तथा लाखों से कम में नीलाम नहीं होता। उसकी मान-मर्यादा, धर्म-ईमान सभी दाव पर लग जाते हैं जिनकी रक्षा अधिक दहेज प्राप्त करने से ही हो सकती है। सन् 1990 के एक सर्वेक्षण के अनुसार दहेज की राशि साधारण पेशे के लिए 50-60 हज़ार से शुरु होती है, द्वितीय, श्रेणी के लिए उसकी कीमत अब 70-80 हज़ार तक तथा प्रथम श्रेणी के लिए लाखों बन गई हैं।

दहेज के कलह के कारण लड़की का पारिवारिक जीवन नारकीय बन जाता है और तलाक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। दहेज प्रथा के कारण ही निर्धन परिवारों की योग्य लड़कियाँ अयोग्य और अनमेल वर से विवाह के लिए बाध्य हो जाती हैं जिससे फिर कलह उत्पन्न होता है।

दहेज-प्रथा को रोकने के उपाय-दहेज- प्रथा आज समाज में भयानक स्थिति में पहुंच गई है तथा उसका रूप वीभत्स हो गया है। इस कुप्रथा के कारण ही लोग विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचार करने पर विवश हो जाते हैं। लड़की के विवाह के लिए धन एकत्रित करने के लिए पिता अनेक प्रकार के अनैतिक साधन अपनाता है। इस प्रथा को रोकने के लिए केन्द्रीय सरकार ने सन् 1961 में दहेज निरोधक अधिनियम बनाया तथा सन् 1985 में भी इसी प्रकार का नियम बनाया गया। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार का दहेज विवाह में नहीं देगा। यदि कोई व्यक्ति किसी भी रूप में देता हुआ पकड़ा जाएगा तो उसे कैद एवं जुर्माने की सजा भी हो सकती है।

महिलाओं के संगठन- ‘नैशनल फैडरेशन आफ इंडियन वोमेन’ ने भी सन् 1976 में दहेज विरोधी प्रस्ताव पारित किया था। इस का सारे देश में व्यापक प्रचार करवा कर इस कुपथा के प्रति जनमत बनाने का प्रयास किया गया था।

इस प्रथा का उन्मूलन सामाजिक एवं नैतिक आधार पर किया जा सकता है। युवक और युवतियाँ दृढ़ प्रतिज्ञ होकर अपने विवाह में न दहेज लें और न दहेज दें। यदि कहीं पर इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो भी जाए तो उसका विरोध किया जाए। समाज के लोग मिलकर दहेज लेने वालों का विरोध करें, उनका सामाजिक बहिष्कार करें तथा सरकार उन्हें कठोरतम दण्ड दे। दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए महात्मा गांधी ने कहा था-“दहेज की पातकी प्रथा के खिलाफ ज़बरदस्त लोकमत बनाया जाना चाहिए और जो नवयुवक इस प्रकार गलत ढंग से लिए गए धन से अपने हाथों को अपूर्वित्र करें उन्हें जाति से बहिष्कृत कर देना चाहिए।” अन्तर्जातीय तथा प्रेम-विवाह को प्रोत्साहन दिया जाए जिससे इनके प्रति युवक-युवतियों का आकर्षण बढ़े। यदि सामूहिक विवाह का आयोजन किया जाए तो वह भी उचित रहेगा। इस दिशा में स्त्रियों का सक्रिय सहयोग आवश्यक है। |ाँ किसी ऐसे युवक से विवाह करने के लिए सहमत ही न हों जो दहेज का लोभी है।\नारी की शिक्षा, स्वतंत्रता भी दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए आवश्यक है। यदि उसका मनोबल सुदृढ़ हो, उसमें अन्याय और अत्याचार करने की प्रबल भावना हो तो इस प्रथा को रोकना असंभव नहीं। कानून के माध्यम से ही इसे रोकना संभव नहीं। नारी जाति में जागृति और चेतना लाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए, तभी इस प्रथा को रोका जा सकता है। श्रीमती इन्दिरा गांधी के शब्दों में-इस बुराई को कानून द्वारा ही समाप्त नहीं किया जा सकता है इसके लिए सामूहिक चेतना व जागृति भी आवश्यक है।”

उपसंहार – दहेज की कुप्रथा किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं अपितु संपूर्ण राष्ट्र तथा इतिहास और संस्कृति के लिए ही कलंक है। यह नारकीय और राक्षसी, कृत्य मानवता के लिए आत्मघाती है तथा जीवन के उपवन में तुषारापात है। देश के प्रत्येक व्यक्ति का यह पावन कर्तव्य है कि वह इस कार्य में सक्रिय सहयोग दे ताकि इस से देश पर लगा कलंक का टीका धोया जा सके हैं और मनुष्यता की भी रक्षा हो सके। समाज के सर्वागीण विकास के लिए इस प्रथा को समाप्त करना अत्यावश्यक है। मानव समाज के इतिहास में यह अमानवीय प्रथा अशान्ति और अनेक जीवन को नष्ट करने की कलंकित प्रथा है।

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दहेज प्रथा पर निबंध | Essay on Dowry System in Hindi

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दहेज प्रथा पर निबंध | Essay on Dowry System in Hindi!

भारत में दहेज एक पुरानी प्रथा है । मनुस्मृति मे ऐसा उल्लेख आता है कि माता-कन्या के विवाह के समय दाय भाग के रूप में धन-सम्पत्ति, गउवें आदि कन्या को देकर वर को समर्पित करे ।

यह भाग कितना होना चाहिए, इस बारे में मनु ने उल्लेख नहीं किया । समय बीतता चला गया स्वेच्छा से कन्या को दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे वरपक्ष का अधिकार बनने लगा और वरपक्ष के लोग तो वर्तमान समय में इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मान बैठे हैं ।

अखबारों में अब विज्ञापन निकलते है कि लड़के या लडकी की योग्यता इस प्रकार हैं । उनकी मासिक आय इतनी है और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत सम्माननीय है । ये सब बातें पढ़कर कन्यापक्ष का कोई व्यक्ति यदि वरपक्ष के यहा जाता है तो असली चेहरा सामने आता है । वरपक्ष के लोग घुमा-फिराकर ऐसी कहानी शुरू करते हैं जिसका आशय निश्चित रूप से दहेज होता है ।

दहेज मांगना और देना दोनों निन्दनीय कार्य हैं । जब वर और कन्या दोनों की शिक्षा-दीक्षा एक जैसी है, दोनों रोजगार में लगे हुए हैं, दोनों ही देखने-सुनने में सुन्दर हैं, तो फिर दहेज की मांग क्यों की जाती है? कन्यापक्ष की मजबूरी का नाजायज फायदा क्यों उठाया जाता है?

ADVERTISEMENTS:

शायद इसलिए कि समाज में अच्छे वरों की कमी है तथा योग्य लड़के बड़ी मुश्किल से तलाशने पर मिलते हैं । हिन्दुस्तान में ऐसी कुछ जातियां भी हैं जो वर को नहीं, अपितु कन्या को दहेज देकर ब्याह कर लेते हैं; लेकिन ऐसा कम ही होता है । अब तो ज्यादातर जाति वर के लिए ही दहेज लेती हैं ।

दहेज अब एक लिप्सा हो गई है, जो कभी शान्त नहीं होती । वर के लोभी माता-पिता यह चाह करते हैं कि लड़की अपने मायके वालों से सदा कुछ-न-कुछ लाती ही रहे और उनका घर भरती रहे । वे अपने लड़के को पैसा पैदा करने की मशीन समझते हैं और बेचारी बहू को मुरगी, जो रोज उन्हें सोने का अडा देती रहे । माता- पिता अपनी बेटी की मांग कब तक पूरी कर सकते हैं । फिर वे भी यह जानते हैं कि बेटी जो कुछ कर रही है, वह उनकी बेटी नहीं वरन् ससुराल वालों के दबाव के कारण कह रही है ।

यदि फरमाइश पूरी न की गई तो हो सकता है कि उनकी लाड़ली बिटिया प्रताड़ित की जाए, उसे यातनाएं दी जाएं और यह भी असंभव नहीं है कि उसे मार दिया जाए । ऐसी न जाने कितनी तरुणियों को जला देने, मार डालने की खबरें अखबारों में छपती रहती हैं ।

दहेज-दानव को रोकने के लिए सरकार द्वारा सख्त कानून बनाया गया है । इस कानून के अनुसार दहेज लेना और दहेज देना दोनों अपराध माने गए हैं । अपराध प्रमाणित होने पर सजा और जुर्माना दोनों भरना पड़ता है । यह कानून कालान्तर में संशोधित करके अधिक कठोर बना दिया गया है ।

किन्तु ऐसा लगता है कि कहीं-न-कहीं कोई कमी इसमें अवश्य रह गई है; क्योंकि न तो दहेज लेने में कोई अंतर आया है और न नवयुवतियों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं अथवा उनकी हत्याओं में ही कोई कमी आई है । दहेज संबंधी कानून से बचने के लिए दहेज लेने और दहेज देने के तरीके बदल गए हैं ।

वरपक्ष के लोग शादी से पहले ही एक मोटी रकम कन्यापक्ष वालों से ऐंठ लेते हैं । जहां तक सामान का सवाल है रंगीन टीवी, सोफा सेट, अलमारी, डायनिंग टेबल, घड़ी, अंगूठियां-ये सब चीजें पहले ही वर पक्ष की शोभा बढ़ाने के लिए भेज दी जाती हैं या शादी के समय दी जाती है । बाकी बचती हैं ज्योनार उसमें खा-पीकर लोग चले जाते हैं ।

शुरू-शुरू में वर एवं कन्यापक्ष दोनों में मेलभाव होता है, अतएव दोनों से पूरी सतर्कता बरती जाती है । यदि सब कुछ खुशी-खुशी चलता रहा, तब तो सब गुप्त रहता है अन्यथा कोई दुर्घटना हो जाने पर सब रहस्य खुल जाते हैं । कन्या अथवा कन्यापक्ष के लोगों में यह हिम्मत नहीं होती कि वे लोग ये सुनिश्चित कर लें कि शादी होगी तो बिना दहेज अन्यथा शादी ही नहीं होगी ।

दहेज के कलंक और दहेज रूपी सामाजिक बुराई को केवल कानून के भरोसे नहीं रोका जा सकता । इसके रोकने के लिए लोगों की मानसिकता में बदलाव लाया जाना चाहिए । विवाह अपनी-अपनी जाति में करने की जो परम्परा है उसे तोड़ना होगा तथा अन्तर्राज्यीय विवाहों को प्रोत्साहन देना होगा; तभी दहेज लेने के मौके घटेंगे और विवाह का क्षेत्र व्यापक बनेगा ।

अन्तर्राज्यीय, अन्तर्प्रान्तीय और अन्तर्राष्ट्रीय विवाहों का प्रचलन शुरू हो गया है, यदि कभी इसमें और लोकप्रियता आई और सामाजिक प्रोत्साहन मिलता रहा, तो ऐसी आशा की जा सकती है कि दहेज लेने की प्रथा में कमी जरूर आएगी । सरकार चाहे तो इस प्रथा को समूल नहीं तो आंशिक रूप से जरूर खत्म किया जा सकता है । सरकार उन दम्पतियों को रोजगार देने अथवा धंधों में ऋण देने की व्यवस्था करे, जो अन्तर्राज्यीय अथवा बिना दहेज के विवाह करना चाहते हों या किया हो ।

पिछले दिनों बिहार के किसी सवर्ण युवक ने हरिजन कन्या से शादी की थी, तो उसे किस प्रकार सरकार तथा समाज का कोपभाजन बनना पड़ा था, इसे सभी जानते हैं, ज्यादा पुरानी घटना नहीं है । अत: आवश्यकता है कि सरकार अपने कर्तव्य का पालन करे और सामाजिक जागृति आए, तो दहेज का कलंक दूर हो सकता है ।

दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है । आजकल यह प्रथा व्यवसाय का रूप लेने लगी है । मां-बाप चाहते हैं कि बच्चे को पढ़ाने-लिखाने और उसे लायक बनाने के लिए उन्होंने जो कुछ खर्च किया है, वह लड़के का विवाह करके वसूल कर लेना चाहिए । इंजीनियर, डॉक्टर अथवा आई.ए.एस. लड़कों का दहेज पचास लाख से एक करोड़ रुपये तक पहुंच गया है । बताइए एक सामान्य गृहस्थ इस प्रकार का खर्च कैसे उठा सकता है ।

वर्तमान परिस्थितियों में उचित यही है कि ऐसे सभी लोग एक मंच पर आवें, जो दहेज को मन से निकृष्ट और त्याज्य समझते हों । वे स्वयं दहेज न लें तथा दहेज लेने वालों के खिलाफ आवाज उठाएं । यदि वे ऐसा समझते हों कि उनके काम का विरोध होगा, तो वे अपने सद्उद्देश्य के लिए सरकार से मदद भी मांग सकते हैं ।

कुछ साल तक यदि समग्र देश में दहेज विरोधी आन्दोलन चलाया जाए, तभी इस कुप्रथा को मिटाना संभव बन पाएगा । अन्यथा, अन्य कोई सूरत ऐसी दिखाई नहीं पड़ती जो इस अमानवीय कुप्रथा को समाप्त कर सके ।

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दहेज प्रथा पर निबंध – कारण, उपाय, अधिनियम 1961 || Dahej Pratha

आज के आर्टिकल में हम दहेज प्रथा (Dahej Pratha) पर निबंध को पढेंगे। दहेज प्रथा के कारण (Dahej Pratha ke Karan) , दहेज रोकने के उपाय (Dahej Pratha Rokne ke Upay) , दहेज निषेध अधिनियम 1961 (Dowry Prohibition Act 1961) के बारे में जानेंगे।

दहेज प्रथा पर निबंध – Dahej Pratha Par Nibandh

Table of Contents

Dahej Pratha

सब मिलकर अभियान चलाएं

दहेज शब्द अरबी भाषा ’जहेज’ शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसका अर्थ होता है – भेंट या सौगात । धर्मशास्त्र में इसे ’दाय’ कहा गया है, जिसका आशय वैवाहिक उपहार है। भारतीय संस्कृत में प्राचीनकाल से अनेक शिष्टाचारों का प्रचलन रहा है। उस काल में विवाह-संस्कार को मंगल-भावनाओं का प्रतीक मानकर प्रेमपूर्वक दायाद, दाय या दहेज का प्रचलन था परन्तु कालान्तर में यह शिष्टाचार रूढ़ियों एवं प्रथाओं के रूप में सामाजिक ढाँचे में फैलने लगा। जो वर्तमान सामाजिक जीवन में एक अभिशाप-सी बन गया है।

दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है, जो एक बहुत तेजी के साथ पूरे समाज में फैलती जा रही है। दहेज का अर्थ है – वह सम्पत्ति जो विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ से वर को दी जाती है। वधू के परिवार द्वारा नकद या वस्तुओं और गहनों के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है।

विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को उपहार के रूप में जो भेंट दी जाती है, उसे ’दहेज’ कहते हैं। यह प्रथा अत्यंत प्राचीनकाल से चली आ रही है। आज यह बुराई का रूप धारण कर चुकी है। परंतु मूल रूप में यह बुराई नहीं है। दहेज का अर्थ है – विवाह के समय लङकी के परिवार की तरफ से लङके के परिवार को धन-सम्पत्ति आदि का देना। वास्तव में धन-सम्पत्ति की माँग लङके के परिवार वाले सामने से करते है और लङकी के घर वालों को उनकी माँग के अनुसार धन-सम्पत्ति देनी पङती है।

दहेज भारतीय समाज के लिए अभिशाप है। यह कुप्रथा घुन की तरह समाज को खोखला करती चली जा रही हैं। इसने नारी जीवन तथा सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस करके रख दिया है। प्राचीन काल से ही दहेज प्रथा हमारे समाज में प्रचलित है। यह बेटियों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद करने के रूप में शुरू हुई थी क्योंकि वे विवाह के बाद नए स्थान पर नए तरीके से अपना जीवन शुरू करती है।

लेकिन समय बीतने के साथ यह महिलाओं की मदद करने के बजाए एक घृणित प्रथा में बदल गई। अब उपहार दूल्हा और उसके माता-पिता रिश्तेदारों को दिए जाते हैं। शादियों में दिए जाने वाले सभी उपहार ’दहेज’ की श्रेणी में आते हैं। इस प्रथा में लिंग असमानता और सख्त कानूनों की कमी जैसे कई कारणों ने भी इसको जन्म दे दिया है।

दहेज प्रथा एक अभिशाप

प्राचीनकाल में कन्या-विवाह के अवसर पर पिता स्वेच्छा से अपनी सम्पत्ति का कुछ अंश उपहार रूप में देता था। उस समय यही शुभ-कामना रहती थी कि नव-वर-वधू अपना नया घर अच्छी तरह बसा सकें तथा उन्हें कोई असुविधा न रहे। परन्तु परवर्ती काल में कुछ लोग अपना बङप्पन जताने के लिए अधिक दहेज देने लगे।

ऐसी गलत परम्परा चलने से समाज में कन्या को भारस्वरूप माना जाने लगा। उन्नीसवीं शताब्दी में दहेज प्रथा के कारण समाज में अनेक गलत परम्पराएँ चलीं, यथा – बहुविवाह, बालविवाह, कन्या को मन्दिर में चढ़ाना या देवदासी बनाना आदि। कुछ जातियों के लोग इसी कारण कन्या-जन्म को अशुभ मानते हैं।

’’सोच बदलो चरित्र बदलो,

दहेज प्रथा को दूर करो’’

दहेज प्रथा का इतिहास

भारत के सबसे बङे पौराणिक ग्रंथ रामायण और महाभारत में माता-पिता द्वारा बेटियों को दहेज देने का उदाहरण मिलता है। इसके अलावा उत्तरवैदिक काल में भी दहेज प्रथा के कुछ उदाहरण मिलते है। लेकिन उस समय दहेज प्रथा का स्वरूप कुछ अलग था।

दहेज प्रथा के कारण

(1) धार्मिक विश्वास –.

हिन्दुओं के धार्मिक विश्वास ने दहेज प्रथा को प्रोत्साहन दिया है। हिन्दुओं की धार्मिक मान्यता के अनुसार माता-पिता द्वारा अपनी कन्या को अधिक-से-अधिक सम्पत्ति, आभूषण और उपहार देना विवाह संस्कार से सम्बन्धित एक धार्मिक कृत्य है। यह विश्वास धार्मिक परम्परा से सम्बन्धित है।

(2) शिक्षा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा –

वर्तमान समय में शिक्षा एवं व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का महत्त्व अधिक है इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह शिक्षित एवं प्रतिष्ठित लङके के साथ करना चाहता है। जिसके लिए उसके काफी दहेज देना होता है क्योंकि ऐसे लङकों की समाज में कमी पायी जाती है।

(3) कुलीन विवाह का नियम –

कुलीन विवाह के नियम के कारण एक और कुलीन परिवारों के लङकों की मांग अत्यधिक मद जाती है और जीवन साथ के तनाव का क्षेत्र भी सीमित रह जाता है। इस स्थिति में वर-पक्ष को कन्या-पक्ष से अधिक दहेज प्राप्त करने का अवसर मिल जाता है।

(4) बाल-विवाह भारत में बाल –

विवाहों का अत्यधिक प्रचलन होने के कारण माता-पिता लङकी की योग्यता को नहीं जा पाते। इस स्थिति में दहेज में दी गयी राशि की लङकी की योग्यता बन जाती है।

(5) दुष्चक्र –

दहेज एक दुष्चक्र है जिन लोगों ने अपनी लङकियों के लिए दहेज दिया है, बाद में वही लोग अपने अवसर आने पर अपने लङकों के लिए दहेज प्राप्त करना चाहते है। इसी प्रकार से लङके के लिए दहेज प्राप्त करके वे अपनी लङकियों के लिए देने के लिए उसे सुरक्षित रखना चाहते हैं।

(6) पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था –

भारतीय समाज हमेशा से ही पुरुष-प्रधान समाज रहा है। इस समाज में सभी परम्पराओं तथा व्यवहारों का निर्धारण पुरुष के पक्ष में ही होता है। दहेज प्रथा के द्वारा स्त्रियों पर पुरुषों के प्रभुत्व को स्थापित करने का प्रयास किया गया है। कई लोगोें ने दहेज प्रथा का विरोध भी किया है लेकिन जब कभी इसका विरोध किया गया था तब उन्हें कालान्तर में अनेक असमर्थताओं का सामना करना पङा था। इसी कारण दहेज प्रथा की वास्तविक सुधार नहीं हो सका।

(7) सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक –

अधिकतर परिवार दहेज प्रथा को इसलिए प्रोत्साहन देते हैं क्योंकि वे यह सोचते है कि अगर हम अपनी लङकी को अधिक दहेज देंगे तो उनकी लङकी को अपने पति के संयुक्त परिवार में अधिक प्रतिष्ठा मिलेगी। कुलीन परिवार तो सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर सार्वजनिक रूप से दहेज की मांग करना अनुचित नहीं समझते।

(8) धन का महत्त्व –

वर्तमान में धन का महत्त्व बढ़ गया है और धन से ही व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा का पता चलता है। जिस व्यक्ति को अधिक दहेज प्राप्त होता है, उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। अधिक दहेज देने वाले व्यक्ति को भी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है।

(9) माता-पिता का प्रभुत्व –

भारत में आज भी विवाह सम्बन्धों का निर्धारण करना माता-पिता का अथवा परिवार का दायित्व है, इसमें लङके और लङकी को कोई स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती। इस स्थिति में जीवन साथी के व्यक्तिगत गुणों की अपेक्षा उसके परिवार की दहेज की राशि को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

(10) प्रदर्शन एवं झूठी प्रतिष्ठा –

अपनी प्रतिष्ठा एवं शान का प्रदर्शन करने के लिए भी लोग अधिकाधिक दहेज लेते है ओर देते है।

(11) सामाजिक प्रथा –

दहेज का प्रचलन समाज में एक सामाजिक प्रथा के रूप में पाया जाता है। जो व्यक्ति अपनी कन्या के लिए दहेज देता है वह अपने पुत्र के लिए भी दहेज प्राप्त करना चाहता है।

(12) अन्तर्विवाह –

अपनी ही जाति के अंदर विवाह करने के नियम ने भी दहेज प्रथा को बढ़ावा दिया है, इसके कारण विवाह का क्षेत्र अत्यंत सीमित हो गया है। वर की सीमित संख्या की वजह से वर मूल्य बढ़ता गया है।

(13) विवाह की अनिवार्यता –

विवाह एक अनिवार्य संस्कार है। शारीरिक रूप से कमजोर, असुन्दर व विकलांग कन्याओं के पिता अधिक दहेज देकर वर की तलाश करते है।

(14) संयुक्त परिवारों में स्त्रियों का शोषण –

स्मृति काल तक स्त्रियों की दशा अत्यंत दयनीय हो गयी थी। संयुक्त परिवारों में नव वधुओं को सताया जाता था। इसी कारण कन्या पक्ष को ज्यादा धन देने लगे, जिससे परिवार में उसकी कन्या को अधिक सम्मान मिल सके।

दहेज-प्रथा के दुष्परिणाम

वर्तमान समय में हमारे देश में दहेज-प्रथा अत्यन्त विकृत हो गई है। आजकल वर पक्ष वाले अधिक दहेज माँगते हैं। वे लङके के जन्म से लेकर पूरी पढ़ाई-लिखाई व विवाह का खर्चा माँगते हैं, साथ ही बहुमूल्य आभूषण एवं साज-सामान की माँग करते हैं। मनचाहा दहेज न मिलने से नववधू को तंग किया जाता है, उसे जलाकर मार दिया जाता है।

कई नव-वधुएँ आत्महत्या कर लेती हैं या दहेज के लोभी उसे घर से निकाल लेते हैं। इन बुराइयों के कारण आज दहेज-प्रथा समाज के लिए कलंक है। या तो कन्या को लाखों का दहेज देने के लिए घूस, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, काला-बाजारी आदि का सहारा लेना पङता है। नहीं तो उनकी बेटियाँ अयोग्य वरों के मत्थे मढ़ दी जाती है।

आज हम हर रोज समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं कि दहेज के लिए युवती रेल के नीचे कट कर मरी, किसी बहु को ससुराल वालों ने जिंदा जलाकर मार डाला, किसी बहन-बेटी ने डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर ली। ये सभी घिनौने परिणाम दहेज रूपी दैत्य के ही हैं।

दहेज प्रथा के बहुत से दुष्परिणाम हैं। जिन लङकियों को अधिक दहेज नहीं दिया जाता उनको ससुराल में अधिक सम्मान नहीं दिया जाता उनको ससुराल में अधिक सम्मान नहीं होता, उन्हें कई प्रकार से तंग किया जाता है। इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिए बाध्य होकर कुछ लङकियाँ आत्महत्या तक कर लेती हैं। दहेज देने के लिए कन्या के पिता को रुपया उधार लेना पङता है या अपनी जमीन व जेवरात, मकान आदि को गिरवीं रखना पङता है या बेचना पङता है। परिणामस्वरूप परिवार ऋणग्रस्त हो जाता है।

कन्या के लिए दहेज जुटाने के लिए परिवार को अपनी आवश्यकताओं में कटौती करनी पङती है। बचत करने के चक्कर में परिवार का जीवन-स्तर गिर जाता है। दहेज के अभाव में कन्या का विवाह अशिक्षित, वृद्ध, कुरूप, अपंग एवं अयोग्य व्यक्ति के साथ भी करना पङता है। ऐसी स्थिति में कन्या को जीवन भर कष्ट उठाना पङता है। अपनी मर्जी का दहेज ना मिल पाने के कारण बहुत से लोग तलाक लेकर विवाह तक समाप्त कर देते हैं।

’’दहेज एक प्रथा नहीं व्यापार है

जो बेकसूर बेटी की जान है लेता

लालची लोगों का वो हथियार है’’

दहेज प्रथा, एक बुराई

प्राचीन समय में दहेज एक सभ्य तरीके से केवल बेटी को माता-पिता द्वारा प्रेमपूर्वक और सामथ्र्य के अनुसार उपहार स्वरूप दिया जाता था। भला उपहार देने में कैसी बुराई ? परन्तु आज दहेज प्रथा ने एक राक्षस का स्वरूप ले लिया है जो आए दिन बेटियों के अरमानों का गला घोंट रहा है।

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आज दहेज फैशन लालच और अभिमान को देखते हुए दिया और लिया जा रहा है। जितना योग्य दूल्हा होगा उसके माता-पिता द्वारा उतना ही अधिक दहेज मांगा जाता है। यदि इस प्रकार से चलता ही अधिक दहेज मांगा जाता है। यदि इस प्रकार से चलता रहा तो पढ़ी-लिखी व योग्य लङकियां धन की कमी के कारण एक योग्य जीवनसाथी से वंचित रह जायेगी।

दहेज-प्रथा में अपेक्षित सुधार

दहेज-प्रथा की बुराइयों को देखकर समय-समय पर समाज सुधारकों ने इस ओर ध्यान दिया है। भारत सरकार ने दहेज प्रथा में सुधार लाने के लिए दहेज प्रथा उन्मूलन का कानून बनाकर उसे सख्ती से लागू कर दिया है। अब दहेज देना व लेना कानूनन दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। इस प्रकार दहेज प्रथा में सुधार लाने के लिए भारत सरकार ने जो कदम उठाये हैं, वे प्रशंसनीय है।

परन्तु नवयुवकों एवं नवयुवतियों में जागृति पैदा करने से इस कानून का सरलता से पालन हो सकता है। शिक्षा एवं संचार-प्रचार माध्यमों से जन-जागरण किया जा रहा है।

दहेज प्रथा को रोकने के उपाय

हालाँकि दहेज की बुराई को रोकने के लिए समाज में अनेक संस्थाएँ बनी हैं। युवकों को प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर भी करवाये गए हैं। परंतु समस्या ज्यों की त्यों है। इसमें कोई सुधार नहीं हुआ है। सरकार ने ’दहेज निषेध’ अधिनियम के अंतर्गत दहेज के दोषी के कङा दंड देने का विधान रखा है। परंतु आवश्यकता है – जन जागृति की।

जब तक युवा दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे और युवतियाँ दहेज-लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेंगी। तब तक यह कोढ़ चलता रहेगा। हमारे साहित्यकारों और कलाकारों को चाहिए कि वे युवकों के हृदय में दहेज के प्रति तिरस्कार जगाएँ।

स्त्री-शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार किया जाये ताकि वे पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनें और अपने प्रति होने वाले अत्याचारों का खुले रूप से विरोध कर सके। लङके व लङकियों को अपना जीवन-साथी स्वयं चुनने की स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर अपने आप दहेज प्रथा समाप्त हो जायेगी। अन्तर्जातीय विवाह की छूट होने पर विवाह का दायरा विस्तृत से भी दहेज-प्रथा समाप्त हो सकेगी।

लङकों को स्वावलम्बी बनाया जाए और उन्हें दहेज ना लेने हेतु प्रेरित किया जाए। दहेज प्रथा की समाप्ति के लिए कठोर कानूनों का निर्माण किया जाए एवं दहेज मांगने वालों को कङी-से-कङी सजा दी जाए। वर्तमान में ’दहेज निरोधक अधिनियम, 1961’ लागू है, परन्तु इसे संशोधित करने की आवश्यकता है।

हमारे समाज में प्रारम्भिक काल में दहेज का स्वरूप अत्यन्त उदात्त था, परन्तु कालान्तर में रूढ़ियों एवं लोभ-लालच के कारण यह सामाजिक अभिशाप बन गया। यद्यपि ’दहेज-प्रथा उन्मूलन’ कानून बनाकर सरकार ने इस कुप्रथा को समाप्त करने के प्रयास किये हैं, परन्तु इसे जन-जागरण से ही समाप्त किया जा सकता है।

दहेज जैसी कुप्रथा को रोकने हेतु सामाजिक स्तर पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। हम सभी को मिलकर अपनी सोच बदलनी होगी। लङकों को दहेज ना लेेने हेतु प्रेरित करना होगा और लङकियों को पढ़ा-लिखा कर सशक्त और काबिल बनाना होगा तभी दहेज प्रथा का समूल नाश हो पायेगा।

’’दहेज प्रथा का सब मिलकर करो बहिष्कार, समाज में आए समानता, फिर किसी को बेटी ना लगे इक भार।’’

’’दहेज की खातिर लङकी को मत जलाओ अगर वास्तव में मर्द हो तो कमाकर खिलाओ।।’’

’’कब तक नारी के अरमानों की चिता जलाई जाएगी कब तक नारी यूं दहेज की बलि चढ़ाई जाएगी।’’

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961

  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम 20 मई 1961 को अधिनियमित हुआ था तथा 1 जुलाई 1961 को लागू हुआ था।
  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम का उद्देश्य – यह अधिनियम दहेज का देना या लेना प्रतिषिद्ध करने के लिए बनाया गया है।
  • इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम ’दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961’ है।
  • इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत में है।
  • इस अधिनियम को राष्ट्रपति की स्वीकृति – 20 मई 1961 को मिली थी।
  • दहेज लेना एवं देना ’दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961’ के अंतर्गत अपराध है।

dahej pratha per nibandh

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धाराएं

  • धारा 1 – दहेज का संक्षिप्त नाम और विस्तार है।
  • धारा 2 – दहेज का अधिनियम की धारा 2 में पारिभाषित किया गया है। इस अधिनियम में दहेज से कोई ऐसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति अभिप्रेत है, जो विवाह के समय या उसके पूर्व या पश्चात् विवाह के एक पक्षकार द्वारा विवाह के दूसरे पक्षकार को दिया या लिया जाता है। इसके अंतर्गत विवाह के संबंध में या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दिया गया हो या देने के लिए करार किया गया हो शामिल है, यह दहेज कहलाता है।
  • धारा 3 – दहेज देने या लेने के लिए शास्ति यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् दहेज देगा या लेगा अथवा दहेज देना या लेना दुष्ट प्रेरित करेगा तो वह कारावास से जिसकी अवधि 5 वर्ष से कम ही नहीं होगी और जुर्माने से जो 15000 से या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम तक का इनमें से जो भी अधिक हो, दंडनीय होगा।
  • धारा 4 (क) – विज्ञापन पर निषेध – दहेज के विज्ञापन पर पाबंदी है ऐसा करने पर कारावास से जिसकी अवधि 6 माह से कम नहीं होगी किंतु जो 5 वर्ष तक हो सकती है या जुर्माने से जो 15000 रु. तक होना दण्डनीय अपराध है।
  • धारा 5 – दहेज देने या लेने के लिए करार शून्य होता है।
  • धारा 6 – दहेज पत्नी या उसके उत्तराधिकारियों के फायदे के लिए होना।
  • धारा 7 – अपराधों संज्ञान – दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुसार अपराधियों का संज्ञान प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट ले सकेंगे।
  • धारा 8 – इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक अपराध अजमानती और अशमनिय होता है।
  • धारा 9 – नियम बनाने की शक्ति – केंद्र सरकार अधिनियम के संबंध में नियम बना सकती है केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया। प्रत्येक नियम यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष 30 दिन की अवधि के लिए रखा जायेगा।

आज के आर्टिकल में हमने दहेज प्रथा (Dahej Pratha) पर निबंध को पढ़ा। दहेज प्रथा के कारण (Dahej Pratha ke Karan), दहेज रोकने के उपाय (Dahej Pratha Rokne ke Upay), दहेज निषेध अधिनियम 1961 (Dowry Prohibition Act 1961)  के बारे में भी जानकारी प्राप्त की। हम आशा करते है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी…धन्यवाद

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दहेज प्रथा पर निबंध | Dowry System Essay in Hindi

by Editor January 10, 2019, 3:06 PM 11 Comments

दहेज प्रथा पर हिन्दी निबंध | Dowry Essay in Hindi 

दहेज प्रथा केक सामाजिक बुराई है जो समय के साथ-साथ बढ़ी है। इस बुराई के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हम लेकर आए हैं दहेज प्रथा पर हिन्दी निबंध। 

दहेज प्रथा पर निबंध (150 शब्द)

दहेज का अर्थ है विवाह के समय लड़की के परिवार की तरफ से लड़के के परिवार को धन-संपत्ति आदि का देना। वास्तव में धन-संपत्ति की मांग लड़के के परिवार वाले सामने से करते हैं और लड़की के घर वालों को उनकी मांग के अनुसार धन-संपत्ति देनी पड़ती है।

दहेज प्रथा एक ऐसी कुरिवाज है जो सदियों से भारत जैसे देश में अपनी पकड़ बनाए हुई है। दहेज प्रथा के कारण ना जाने कितनी महिलाओं का शारीरिक व मानसिक शोषण होता है, कई बार तो दहेज के कारण नव वधू की हत्या भी कर दी जाती है।

भारत में दहेज प्रथा को रोकने के लिए कानून भी बनाया गया है लेकिन दुख की बात यह है की कानून बनने के बाद भी दहेज प्रथा की जड़ें और मजबूत हो गईं है।

दहेज जैसी कुप्रथा को रोकने के लिए समाज के लोगों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है, तभी हम इस कुरीति को खतम कर सकते हैं।

दहेज प्रथा पर निबंध (250 शब्द)

दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। भारत और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है। भारत में इसे दहेज के नाम से जाना जाता है।

बहुत पहले विवाह के समय वधू का परिवार वर को इसलिए धन-संपत्ति देता था क्यूंकी उस समय लड़की को अपने पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था, इसलिए विवाह के समय ही एक पिता अपनी बेटी को उसका अधिकार दे देता था। लेकिन फिर धीरे-धीरे यह एक कुरिवाज में बादल गयी और अब तो वर पक्ष के लोग सामने से दहेज मांगते हैं और मजबूर होकर कन्या पक्ष को दहेज देना पड़ता है।

दहेज प्रथा के कारण ना जाने कितनी महिलाओं को आत्म हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, माँ-बाप गरीब होने की वजह से अपनी बेटी की शादी नहीं कर पाते और ना जाने कितनी शादी-शुदा ज़िंदगी दहेज के कारण तबाह हो जाती हैं। 

भारत जैसे देश में दहेज प्रथा की जड़ें बहुत मजबूत हैं। यहाँ तक की शिक्षित समाज भी इस कुप्रथा से अछूता नहीं है। हमारे समाज में दहेज प्रथा के बारे में सभी लोगों ने एक ऐसी सोच बना रखी है जिसमे दहेज देना कन्या पक्ष के लिए जरूरी बना दिया गया है। यदि कन्या पक्ष दहेज देने के इच्छुक नहीं है तो ऐसी परिस्थिति में लड़की के विवाह में भी अड़चनें आ सकतीं है।

ऐसा नहीं की दहेज प्रथा को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है, कानून तो है लेकिन उसका अनुसरण कोई नहीं करना चाहता क्यूंकी जिस घर में बेटी है तो वहाँ बेटा भी है। मतलब की एक हाथ लड़की की शादी में दहेज देना पड़ता है तो दूसरे हाथ दहेज ले भी लिया जाता है। दहेज प्रथा को रोकने के लिए समाज को अपनी सोच बदलने की जरूरत है।

दहेज प्रथा पर निबंध (400 शब्द)

दहेज अर्थात विवाह के समय दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे को धन-संपत्ति आदि का देना। पहले दहेज एक पिता अपनी बेटी को खुशी से देता था लेकिन आज वो एक सामाजिक बुराई बन गयी है और हमारे समाज में दहेज प्रथा की जड़ें बहुत मजबूत हो चुकीं हैं। 

दहेज जैसी कुप्रथा की वजह से बेटियों को पेट में ही मार दिया जाता है क्यूंकी बेटी का जन्म हुआ तो उसकी शादी में ढेर सारा धन देना पड़ेगा। समाज में लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है और उन्हें बोझ की तरह समझा जाता है। भारत के कई राज्यों में लड़कों कीअपेक्षा लड़कियों की संख्या में कमी आई है।

दहेज प्रथा की वजह से महिलाओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ा है। अकसर उन्हें लड़के के घर वालों द्वारा दहेज के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है और कई बार उन्हें आत्महत्या करने के लिए भी मजबूर कर दिया जाता है।

दहेज जैसी कुप्रथा को दूर करने के लिए भारत देश में कानून बनाया गया है जिसके तहत दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनन अपराध है। इसके बावजूद भी दहेज प्रथा पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।

दहेज प्रथा के कई कारण है। समाज में पहले से ही इसकी रिवाज बना दी गयी है जिसे समाज के लोग एक परंपरा के रूप में मानते हैं। लड़के वाले दहेज लेने से समाज में उनका कद बढ़ाने की सोचते हैं। लालच इसकी सबसे बड़ी वजह है जिसमे वर पक्ष बड़ी बेशर्मी से ढेर सारा रुपया-पैसा कन्या पक्ष से मांगता है। हमारी सामाजिक संरचना इस प्रकार की है जिसमे महिला को पुरुषों से कम समझा जाता है और उन्हें सिर्फ एक वस्तु माना जाता है। यही सोच समाज में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार की बड़ी वजह है।

ऐसा नहीं है की कम पढे-लिखे लोग ही दहेज की मांग करते हैं बल्कि उसके विपरीत अधिक पढे-लिखे लोग भी दहेज की प्रथा को सही मानते हैं और विवाह में वो भी खूब दहेज की मांग करते हैं।

दहेज प्रथा को यदि हमें जड़ से खतम करना है तो सबसे पहले कड़े कानून बनाकर उनका सख्ती से अमल कराना चाहिए। समाज में लोगों को अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है की बेटा हो या बेटी सभी समान है, बेटी हर काम कर सकती है और वो बेटों से कम नहीं है। लड़कियों को शिक्षित करना भी जरूरी है ताकि वो आगे चलकर आत्मनिर्भर बन सकें।

दहेज प्रथा को खतम करना है तो सबसे पहले महिलाओं को जागरूक बनना पड़ेगा और पुरुष प्रधान समाज को आईना दिखाने की जरूरत है। जो सोच सदियों से चली आ रही है उसमें बदलाव की जरूरत है।

दहेज प्रथा पर विस्तृत निबंध (1200 शब्द)

दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनन अपराध क्यूँ ना हो लेकिन इसकी जड़ें अब इतनी मजबूत हो चुंकी हैं की 21वीं सदी में आने के बाद भी यह खतम नहीं हुई है। समय के साथ-साथ इस कुप्रथा का चलन और ज्यादा बढ़ा है। भारत जैसे देश में दहेज प्रथा अब भी मौजूद है।

दहेज का अर्थ

दहेज का मतलब है विवाह के समय कन्या के परिवार द्वारा वर को दी जाने वाली धन-संपत्ति। विवाह के समय लड़की के घर वाले लड़के को ढेर सारा पैसा, माल सामान आदि देते हैं जिसे दहेज के रूप में जाना जाता है। दहेज तब तक तो ठीक है जब लड़की का पिता अपनी खुशी से दे रहा हो लेकिन जब लड़के के घर वाले अधिक धन-संपत्ति मांग कर लें जिसे देने में कन्या का परिवार सक्षम ना हो तब दहेज का हमें भयानक चेहरा देखने को मिलता है। विवाह के दौरान लड़के के घर वाले कई बार ऐसी मांग कर देते हैं जिसे पूरा करने के लिए लड़की के घर वाले सक्षम नहीं होते, ऐसी हालत में कई बार शादी टूटने तक की नोबत आ जाती है। इसी को दहेज प्रथा कहते हैं।

भारत में दहेज प्रथा

भारत जैसे देश में दहेज प्रथा ने सदियों से अपनी जड़ें मजबूत कर रखीं हैं। आज भी आधुनिक समाज में दहेज लिया जाता है और समय के साथ-साथ यह कुरिवाज बढ़ी है।

पहले के समय में जब लड़की को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था तब एक पिता अपनी बेटी को उसके विवाह के समय ही धन-संपत्ति दे देता था। उस समय इसे एक अच्छी रिवाज माना जाता था। लेकिन धीरे-धीरे इस रिवाज ने दहेज जैसी कुप्रथा को जन्म दिया।

अब ऐसा समय आया है की लड़के के घर वाले सामने से दहेज की मांग करते हैं भले ही लड़की का परिवार देने में सक्षम हो या ना हो। शादी तय करने से पहले ही दहेज की बात तय हो जाती है। शादी तभी की जाती है जब कन्या का पक्ष मांगा गया दहेज लड़के के घर वालों को दे देता है।

हमारा पढ़ा-लिखा समाज भी इससे अछूता नहीं है, बल्कि पढे लिखे लोग ही सबसे ज्यादा दहेज विवाह में लेते हैं।

दहेज प्रथा के कारण

दहेज जैसी कुप्रथा आज भी हमारे समाज में मौजूद है जिसके कई कारण है।

1. लालच: दहेज की मांग अक्सर लालच के वशीभूत होकर की जाती है। लड़का पढ़ा-लिखा है, अच्छी नौकरी करता है, घर अच्छा है आदि कारण देकर लड़की के घर वालों से दहेज की मांग की जाती है। बड़ी बेशर्मी के साथ लड़के के घर वाले अपनी मांगों को रखते हैं।

2. सामाजिक संरचना: दहेज प्रथा काफी हद तक भारतीय समाज की पुरुष प्रधान सोच का नतीजा है जहां पुरुषों को शारीरिक और मानसिक क्षमताओं के पहलुओं में महिलाओं से बेहतर माना जाता है। ऐसी सामाजिक संरचना की पृष्ठभूमि के साथ, महिलाओं को अक्सर दूसरी श्रेणी का नागरिक माना जाता है जो केवल घरेलू भूमिकाओं को संभालने के लिए सही होती हैं। इस तरह की धारणाएँ अक्सर उन्हें पहले पिता द्वारा और फिर पति द्वारा आर्थिक दृष्टि से बोझ समझा जाता हैं। इस भावना को दहेज प्रथा द्वारा और अधिक जटिल बना दिया गया है।

3. महिलाओं की सामाजिक स्थिति – भारतीय समाज में महिलाओं की हीन सामाजिक स्थिति इतनी गहरी है, कि उन्हें मात्र वस्तुओं के रूप में स्वीकार किया जाता है, न केवल परिवार द्वारा, बल्कि महिलाओं द्वारा भी खुद को। जब विवाह को महिलाओं के लिए अंतिम उपलब्धि के रूप में देखा जाता है, तो दहेज जैसी कुप्रथा समाज में जड़ पकड़ लेती है।

4. निरक्षरता – शिक्षा का अभाव दहेज प्रथा की व्यापकता का एक अन्य कारण है। बड़ी संख्या में महिलाओं को जानबूझकर स्कूलों से दूर कर दिया जाता है। आज भी ऐसी सोच के लोग मौजूद हैं जो लड़की के अधिक पढ़-लिख जाने के खिलाफ होते हैं।

5. दिखावा करने का आग्रह – दहेज अक्सर हमारे देश में सामाजिक कद दिखाने के लिए एक साधन है। समाज में किसी के मूल्य को अक्सर इस बात से मापा जाता है कि वो बेटी की शादी में कितना खर्च कर रहा है या कोई कितना धन देता है। यह नजरिया दहेज की मांग के प्रचलन को काफी हद तक सही ठहराता है। बदले में लड़के का परिवार अपनी नई दुल्हन की दहेज की राशि के आधार पर अपना सामाजिक कद बढ़ाने के बारे में सोचता है।

दहेज प्रथा के दुष्प्रभाव

कन्या भ्रूण हत्या – गर्भ में ही बेटी को मार दिया जाता है जिसे कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। इसका बड़ा कारण कहीं ना कहीं दहेज प्रथा ही है। बेटी हुई तो उसकी शादी कैसे होगी, दहेज कैसे देंगे यही सोच रखकर माँ-बाप गर्भ में ही बेटियों को मार देते हैं। कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज में लड़कियों की संख्या में भी कमी दर्ज की जाती है।

लड़कियों के प्रति भेदभाव – लड़की बोझ होती है – समाज की यह सोच भी दहेज प्रथा के कारण है। लड़की को पढ़ाओ-लिखाओ उसका खर्च और उसके बाद उसकी शादी में ढेर सारा खर्च ऐसा सोच कर बचपन से ही लड़कों की तुलना में लड़की के साथ भेद भाव किया जाता है।

महिलाओं का शारीरिक और मानसिक शोषण – दहेज प्रथा के कारण हर साल हजारों शादी-शुदा महिलाएं आत्महत्या कर लेतीं हैं या लड़के के घर वालों द्वारा उन्हें मार दिया जाता है। हर रोज महिलाएं शारीरिक और मानसिक प्रताड़नाएं सहन करतीं हैं।

आर्थिक बोझ – लड़की की शादी में ढेर सारा दहेज देना पड़ता है और शादी का खर्च अलग से उठाना पड़ता है, इस वजह से लड़की के घर वालों को अक्सर आर्थिक बदहाली का सामना करना पड़ता है। कई बार तो उन्हें उधार लेकर दहेज की मांग पूरी करनी पड़ती है।

दहेज प्रथा रोकने के उपाय 

दहेज जैसी कुप्रथा को दूर करना बहुत कठिन है क्यूंकी यह समाज के लोगों की सोच में इस तरह अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी है जिसे बदलना मुश्किल है। फिर भी इसे रोकने के लिए हम निम्न कदम उठा सकते हैं। कडा कानून – दहेज प्रथा और उससे उपजी महिलाओं के खिलाफ अन्याय को रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। दहेज निषेध अधिनियम 20 मई, 1961 को पारित किया गया था, जिसका उद्देश्य समाज से इस बुरी प्रथा को समाप्त करना था। यह कानून न केवल दहेज को गैरकानूनी मानता है, बल्कि इसे देने या मांग करने पर दंड भी देता है।

सामाजिक जागरूकता – दहेज प्रथा की बुराइयों के खिलाफ एक व्यापक जागरूकता पैदा करना ही इस प्रथा को खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहला कदम है। समाज के सभी तबके तक पहुंचने के लिए और दहेज के खिलाफ कानूनी प्रावधानों के बारे में ज्ञान फैलाने के लिए सामाजिक जागरूकता जरूरी है।

महिलाओं की शिक्षा और आत्म-निर्भरता – जीवन में केवल अपने व्यवसाय को खोजने के लिए शिक्षा की आवश्यकता नहीं है। दहेज जैसी व्यापक सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए लड़कियों को शिक्षित करने पर जोर देना महत्वपूर्ण है। उनके अधिकारों का ज्ञान ही उन्हें दहेज प्रथा और उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ बोलने में सक्षम करेगा। वे आत्म-निर्भरता के लिए भी प्रयास करने में सक्षम होंगी और शादी को उनके एकमात्र उद्देश्य के रूप में नहीं समझेंगी।

11 Comments

This is correct

Very, very amazing

Good thinking dowry system is bad

Dowry system is bad but at many place. People take money from girl parents. It is very bad think.

Super 👍👍👍😘😘😘

Very good thinking

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Essay on dowry system in hindi दहेज प्रथा पर निबंध.

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hindiinhindi Essay on Dowry System in Hindi

Essay on Dowry System in Hindi 150 Words

दहेज प्रथा पर निबंध

विचार – बिंदु – • दहेज – एक समस्या • दहेज के दुष्परिणाम • समाधान • लड़की का आत्मनिर्भर बनना • कानून के प्रति जागरूकता।

आज दहेज – प्रथा एक बुराई का रूप धारण करती जा रही है। दहेज की माँग एक बुराई है। इसके अभाव में योग्य कन्याएँ अयोग्य वरों को सौंप दी जाती हैं। अयोग्य कन्याएँ धन की ताकत से योग्यतम वरों को खरीद लेती हैं। दोनों ही स्थितियों में पारिवारिक जीवन सुखद नहीं बन पाता। गरीब कन्याएँ तथा उनके माता – पिता दहेज के नाम से भी घबराते हैं। परिणामस्वरूप उनके जीवन में अशांति , भय और उदासी घर कर जाती है। माँ – बाप बच्चों का पेट काटकर पैसे बचाने लगते हैं। यहाँ तक कि वे रिश्वत , गबन जैसे अनैतिक कार्य करने से भी नहीं चूकते। दहेज के लालच में बहुओं को परेशान किया जाता है। कभी – कभी उन्हें इतना सताया जाता है कि वे आत्महत्या कर लेती हैं। कई दुष्ट वर अपने हाथों से नववधू को जला डालते हैं।

इस बुराई को दूर करने के सच्चे उपाय देश के नवयुवकों के हाथ में हैं। वे अपने जीवनसाथी के गुणों को महत्त्व दें। विवाह ‘ प्रेम ‘ के आधार पर करें , दहेज के आधार पर नहीं। कन्याएँ भी दहेज के लालची युवकों को दुत्कारें तो यह समस्या तुरंत हल हो सकती है। लड़कियाँ आत्मनिर्भर बनकर भी दहेज पर रोक लगा सकती हैं। यद्यपि आज हमारे पास ‘ दहेज निषेध विधेयक ‘ है , किंतु दहेज को रोकने का सच्चा उपाय युवक – युवतियों के हाथों में है।

Essay on Dowry System in Hindi 300 Words

हम भारत समाज में रहते हैं जो विभिन्न जातियों और उप-जातियों से बना है, विभिन्न परंपराओं और संस्कृतियां हैं। कुछ परंपराएं अच्छे हैं, लेकिन उनमें से सभी नहीं हैं जैसे कि दहेज प्रणाली सामाजिक बुराइयों में से एक है, जो अभी तक चल रही है। शादी के वक़्त दुल्हन को अपने माता-पिता द्वारा दी गई संपत्ति या धन जब अपने पति के घर ले जाती है, तो उसे दहेज कहते है। लड़की के माता-पिता को दूल्हे के परिवार के लिए नकदी के रूप में उपहार देने और कीमती चीजें देना भी शामिल है।

अपरिहार्य दहेज लाने के लिए पति और उनके परिवार द्वारा अक्सर लड़की को अत्याचार किया जाता है। कभी-कभी वे अत्याचार से बचने के लिए आत्महत्या करने के लिए मजबूर होते हैं। इससे भी बदतर, लोग भी दुल्हन को दूर करने के लिए हत्या का सहारा लेते हैं, जो पर्याप्त दहेज नहीं लाती। हमारे समाज में “दहेज की मौत” बहुत गंभीर समस्या बन गई है। इस समस्या से निपटने के लिए पिछले 15 वर्षों में विभिन्न विधायी सुरक्षा उपायों को पेश किया गया है। लेकिन दुखद सत्य यह है कि दहेज की मृत्यु सहित वैवाहिक और घरेलू हिंसा बढ़ती रही है जो पहले के मुकाबले और भी फैल गई है।

दहेज कि काफी हद तक समाज द्वारा निंदा भी की जाती है, लेकिन कुछ लोगों का तर्क यह भी है कि इसका अपना महत्व है जिसे लोग परंपरा के नाम पर अभी भी इसका अनुसरण कर रहे हैं और वह इसे प्रतिष्ठा का प्रतीक मानते है। दूसरी तरफ से देखे तो यह दुल्हन को कई तरीकों से लाभ भी पहुँचा रही है।

पर मुझे लगता है कि इस प्रणाली को कानून द्वारा प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। शादी के समय सभी शिक्षित लड़कियों और लड़कों को इस प्रणाली को हतोत्साहित करना चाहिए और ऐसी बुराइयों से बचना चाहिए। लड़कियों के माता-पिता को अपनी बेटियों को अच्छी तरह से शिक्षित करना चाहिए। अगर लड़कियों को शिक्षित किया जाए, तो उन्हें अच्छे पति मिल जाएंगे। किसी भी कीमत पर, इस प्रणाली को एक सुसंस्कृत और सभ्य समाज के लिए हमारा सफाया होना चाहिए।

Essay on Dowry System in Hindi 1000 Words

हमारे समाज में अनेक त्रुटियां और कुरीतियां है जो समाज को घुन की तरह लग कर अंदर ही अन्दर खोखला कर रही हैं। दहेज एक ऐसी ही सामाजिक बुराई है, जो समाज के माथे पर कलंक है। दहेज लड़की के लिए, लड़की के माता पिता के लिए तो अभिशाप है ही, साथ ही यह भारतीय समाज के लिए भी एक दु:खद और घृणित अभिशाप है।

दहेज शब्द अरबी के शब्द ज़हेज़ का बदला हुआ रूप है जिसका अर्थ है, विवाह के अवसर पर वर को दिया जाने वाला धन या उपहार। संस्कृत में यौतुक शब्द है जिसका अर्थ है “वर और वधू को दिया जाने वाला”। मनुस्मृति में विवाह के भेदों के अन्तर्गत आर्य विवाह में दो गौएं देने का उल्लेख है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बहुत पुराने समय में वर पक्ष की ओर से मांग कर या जबरदस्ती कुछ नहीं लिया जाता था। माता-पिता पुत्री को विदा करते समय प्रेम के कारण कुछ उपहार देते थे या उनके मन में यह भावना होती थी कि उन्होंने नई गृहस्थी बसानी है, कुछ सहायता हम भी कर दें।

दहेज के रूप में अधिक धन सम्पत्ति देने का रिवाज राजाओं और जागीरदारों से आरम्भ हुआ। वे लोग अपने बराबर के या अपने से बड़े के यहां ही अपनी लड़की का रिश्ता करते थे ताकि उनका राज्य या जागीर सुरक्षित रहे। उनके लिए लड़की-लड़के का सम्बन्ध उनकी महत्ता नहीं रखता था जितनी महत्ता सैनिक या राजनैतिक सम्बन्धों की होती थी। फलस्वरूप प्रलोभन के लिए अधिक से अधिक सोना, चांदी तथा अन्य वस्तुएं और नौकर-नौकरानियां भी दहेज में दी जाती थीं। धीरे-धीरे यह बीमारी समाज के अन्य वर्गों में भी फैलती गईं।

अब तो यह हाल है कि कई बिरादरियों में रिश्ता तय करते समय पहले सौदा होता है कि लड़की वाले इतना दहेज़ देंगे तब विवाह होगा। लड़का जितना अधिक पढ़ा लिखा या जितनी बड़ी नौकरी पर होता है उसी के अनुसार दहेज का मूल्य भी निश्चित किया जाता है। दहेज के लाभ में कुरूप लड़कियां भी वर पक्ष द्वारा स्वीकार कर ली जाती हैं। बाद में लड़के-लड़की का मन न मिलने पर कई प्रकार की उलझनें उत्पन्न होती हैं।

दहेज के इस अभिशाप ने मध्यवर्ग की बुरी दशा कर दी है। मध्यवर्ग वास्तव में मजदूर वर्ग ही होता है क्योंकि बिना काम या मेहनत के इसका निर्वाह नहीं चल पाता, परन्तु आकांक्षाएं उच्चवर्ग में पहुंचने की होती है। हर मध्यवर्गीय युवक और उसके माता-पिता भी यह चाहते हैं कि उनके पास कोठी, कार, फ्रिज, टैलीविज़न, कीमती गहने, बढ़िया कपड़े आदि सभी वस्तुएं हों। नौकरी या सामान्य काम धंधे से सिर्फ रोटी ही मिलती है, ये सब कुछ नहीं बन पाता। फलस्वरूप दहेज से सब कुछ पाने की कोशिश की जाती है। उधर लड़की के मध्यवर्गीय माता-पिता भी अपनी नाक रखने के लिए अपनी समायं से बढ़ कर दहेज देने का यत्न करते हैं तो भी वर पक्ष का पेट नहीं भर पाते।

एक भयानक चक्र आरम्भ हो जाता है। लड़की की सास या ननदें उसे दिनरात तानें उलाहने देने लगती हैं और उसका जीना दूभर कर देती हैं। कई बार पति भी साफ शब्दों में धन की मांग रखते हैं कि मायके से इतना लेकर आओ। लड़की माता-पिता के पास आकर रोती है, वे उसे बसती देखना चाहते हैं और किसी न किसी तरह प्रबन्ध करके धन दे देते हैं। लड़के वालों के मुंह लहू लग जाता है। मांग पूरी न होने की दशा में या तो लड़की को छोड़ दिया जाता है या तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं। समाचार पत्रों में नवविवाहिता युवतियों के स्टोव से जलने के अनेक समाचार आते हैं। ऐसे समाचार भी पढ़ने में आए हैं कि दहेज कम लाने के कारण विष देकर या गला घोंट कर युवतियों की हत्या कर दी गई।

इस अभिशाप के लिए नई और पुरानी दोनों पीढ़ियां दोषी हैं। यदि लड़के के माता-पिता दहेज के लालची हैं तो लड़का उनका विरोध क्यों नहीं करता ? यदि लड़की के माता-पिता दहेज देना चाहते हैं तो लड़की को भी स्पष्ट रूप से कह देना चाहिए कि वह दहेज के लालची लड़के से कदापि विवाह नहीं करेगी। इसमें कोई सन्देह नहीं कि पिछले दिनों अनेक जगह युवकों और युवतियों ने सामूहिक रूप से दहेज लेने-देने के विरुद्ध प्रतिज्ञाएं की हैं किन्तु भीड़ में की गई वे प्रतिज्ञाएं क्या हृदय से निकली हुई सच्ची भावनाएं थीं ?

इस अभिशाप को मिटाने के लिए सर्वप्रथम युवक और युवतियों को कटिबद्ध होना चाहिए। माता-पिता को भी सोचना चाहिए कि विवाह दो हृदयों का मिलन है, कोई व्यापार नहीं है। सरकार को चाहिये कि कानूनों को कठोरता से लागू करे और उल्लंघन करने वालों के साथ किसी भी प्रकार की रियायत न की जाए। समाज के प्रतिष्टित व्यक्तियों को भी चाहिए कि वे अपने लड़कों और लड़कियों के विवाह बिना किसी दहेज और बिना किसी धूमधाम के बड़ी सादगी के साथ करके अन्य लोगों के सामने आदर्श प्रस्तुत करें। इसके अतिरिक्त धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक सभी मंचों से धन के लोभ का विरोध होना चाहिए, क्योंकि यही दहेज का मुख्य कारण है। यदि दहेज का यह अभिशाप न मिटा तो न जाने कितने अनमोल विवाह कितने हृदयों का खून करेंगे और कितनी नवयुवतियों को भरी जवानी में मृत्यु की भेंट चढ़ा दिया जाएगा अथवा स्वयं आत्म-हत्या करने पर विवश होंगी। इस अभिशाप को मिटा कर ही समाज का माथा उज्जवल तथा गौरव से ऊंचा रखा जा सकेगा।

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Dowry System Essay in Hindi

दहेज क्या होता है? दहेज प्रथा पर निबंध: Dowry System Essay in Hindi

शादी-विवाह के समय आपने ‘दहेज’ शब्द तो ज़रूर सुना होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि दहेज क्या होता है? अंग्रेजी में Dowry System से जाना जाने वाला दहेज प्रथा आज के समाज की एक काफ़ी बड़ी समस्या है। और आज हम दहेज प्रथा पर निबंध के रूप में विस्तार से बात करेंगे कि Dahej Kya Hota Hai? इसके कारण क्या हैं, अगर इसका समाधान करना है तो हमें क्या करना होगा?

Table of Contents

दहेज क्या होता है?

लड़की के घर वालों और नाते-रिश्तेदारों की ओर से शादी के समय, शादी से पहले और शादी के बाद जो उपहार दिए जाते हैं, वे सब दहेज हैं। पुराने जमाने में बेटी के विवाह को कन्यादान के रूप में माना जाता था। बेटी माँ-बाप उसे घर-गृहस्थी की जरुरत की सारी चीजों देकर विदा करते थे, ताकि नई गृहस्थी बसाने में बेटी को कई परेशानी न आए।

यह दान अपनी इच्छा से अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिया जाता था। धीरे-धीरे यह एक परम्परा सी बन गई, और आज के समय में तो लोग पैसे के भी माँग करते हैं। वर पक्ष के लोग इसे अपना अधिकार समझने लगे। दान की पुरानी परम्परा ने घिनौनी दहेज परम्परा का रूप ले लिया। समाज के लिए यह एक अभिशाप बन गया।

दहेज प्रथा के कारण

पहले दहेज प्रथा कुछ विशेष जातियों तथा वर्गों तक ही सीमित थी। अब तो सभी वर्गों तथा जातियों में यह कुप्रथा सामान रूप से व्याप्त है। दहेज प्रथा के इतने विस्तार तथा फैलाव के कई कारण हैं।

  • आजकल शादी में धन लेना सामाजिक व पारिवारिक प्रतिष्ठा का आधार बन गया है। रंगीन टीवी, स्कूटर, फ्रिज, कार प्रतिष्ठा के मापदंड बन गए हैं। एक मध्यम वर्ग के परिवार के व्यक्ति के लिए ये सभी सामान जुटा पाना आसान काम नहीं है। इसलिए लड़के वाले लड़की वालों से माँगते हैं।
  • हमारा समाज अनेक जातियों तथा उपजातियों में विभाजित है। सामान्यतः लड़की का विवाह अपनी ही जाति में किया जाता है। इससे उपयुक्त वर मिलने में कठिनाई होती है। यही कारण है कि वार पक्ष की ओर से अधिक दहेज माँगा जाता है।
  • दहेज की कुप्रथा को बढ़ाने में दिखावे का भी बहुत बड़ा योगदान है। झूठी शान के कारण भी लोग दहेज की माँग करते हैं। दूसरों को बताते हैं कि उनके लड़के को इतना अधिक दहेज मिला है।
  • यदि किसी परिवार को दहेज नहीं मिला है तो उसके परिवार वाले ही तरह-तरह की बातें बनाते हैं। लोग कहते हैं कि लड़के में कोई कमी होगी, जिसके कारण उसे दहेज नहीं मिला। कभी वधू पक्ष भी दिखाने के लिए अधिक दहेज देता है।
  • वर्तमान युग में शिक्षा बहुत महँगी है, जिसके कारण माता-पिता को पुत्र की शिक्षा पर अपनी सामर्थ्य से अधिक धन खर्च करना पड़ता है। इस धन की पूर्ति वह पुत्र के विवाह के अवसर लड़के समाज में प्रतिष्ठा और अच्छी नौकरी प्राप्त करते हैं। इनकी संख्या कम ही है। शिक्षित वर के लिए दहेज की माँग अधिक बढ़ती जा रही है।

Dowry System Essay in Hindi

दहेज प्रथा ने हमारे सम्पूर्ण समाज को पथ-भ्रष्ट तथा स्वार्थी बना दिया है। लड़के को लोग बैंक का चेक समझते हैं। यदि लड़का अच्छे पद पर नियुक्त हो या डॉक्टर, वकील, इंजीनियर आदि हो तो दहेज की माँग और भी बढ़ जाती है। मज़े की बात है कि दहेज लेने वाले बड़े-बड़े लोग दहेज की निंदा करते हैं। दहेज प्रथा की हानियाँ हैं।

  • पुत्र के विवाह के अवसर पर घर वाले नियम-कानून सब भूल जाते हैं। अधिक-से-अधिक दहेज की माँग करते हैं। कभी-कभी तो कुछ लालची लोग बारात तक वापस ले जाने की धमकी दे देते हैं।
  • दहेज की माँग को पूरा करने के लिए कन्या के पिता को कर्ज़ लेना पड़ता है। उस ऋण को चुकाने में ही उसकी जिंदगी बीत जाती है।
  • दहेज न देने के कारण कभी-कभी लड़की की शादी अधिक उम्र के लड़के के साथ करनी पड़ती है, क्योंकि उसको उपयुक्त वर नहीं मिल पाता।
  • इच्छानुसार दहेज न मिलने के कारण ससुराल में लड़कियों को परेशान किया जाता है। कभी-कभी लड़कियाँ आत्महत्या कर लेती हैं।
  • कभी-कभी दहेज न होने के कारण लड़कियों का विवाह समय से नहीं हो पाता। इससे माता-पिता पर निर्भर रहने वाली लड़कियाँ परेशान रहती हैं, जिसके कारण लड़कियाँ आत्महत्या कर लेती हैं।
  • दहेज न दे पाने के कारण निर्माण परिवार की लड़कियों को उपयुक्त वर नहीं मिल पाते। आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवारों की जागरूक लड़कियाँ कम पढ़े-लिखे अथवा सामान्य स्तरीय लड़कों से विवाह कर लेने की अपेक्षा अविवाहित रहना अधिक पसंद करती हैं। अतः अनेक युवतियाँ अविवाहित रह जाती हैं।

दहेज प्रथा को कैसे रोका जाए?

वैसे तो सरकार दहेज प्रथा को रोकने के लिए बहुत से कानून बनाती है, लेकिन उसका असर नहीं दिखता। इसके लिए हमको अपनी सोच बदलनी होगी। नवयुवकों को पहल करनी होगी। तभी नर और नारी एक समान का नारा सार्थक हो सकेगा। स्त्रियों पर अत्याचार समाप्त होंगे।

9 मई, 1961 को भारतीय सांसद द्वारा दहेज प्रतिषेध कानून पारित किया गया। सन 1983 में उच्चतम न्यायालय में केंद्रीय व सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि शादी से पहले सात वर्षों के भीतर संदेह की परिस्थिति में होने वाले सभी मौतें की पूरी-पूरी जाँच की जाए।

  • अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाए।
  • लड़कियों को स्वावलंबी बनाया जाए।
  • लड़कियों को शिक्षित किया जाए।
  • स्वयं जीवन साथी चुनने का अधिकार दिया जाए।
इसे भी पढ़ें: शिक्षा का अधिकार अधिनियम क्या है?

दहेज प्रथा पर निबंध

कानून की नजर में दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध हैं। दहेज को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा सन 1961 में एक कानून लागू किया गया था। इसे दहेज प्रतिषेध अधिनियम-1961 के नाम से जाना जाता है।

इस अधिनियम में दहेज के लेन-देन में किसी भी रूप में शामिल सभी व्यक्ति सजा के भागीदार होते हैं। इसका मतलब यह कतई नहीं कि बेटी के विवाह में कोई भी उपहार नहीं दिए जा सकते। उपहार दिए जा सकते हैं, परंतु वही, जो माता-पिता की सामर्थ्य में हों और अपनी ख़ुशी से बिना किसी दबाव के दिए जाएँ।

विवाह के पहले, विवाह के समय या विवाह के बाद जो उपहार अपनी ख़ुशी से बिना किसी दबाव के दिए जाते हैं, वे दहेज नहीं माने जाते। उन्हें स्त्री-धन कहा जाता है। इस स्त्री-धन पर केवल उस स्त्री का हक़ होता है। और किसी का उस पर कोई अधिकार नहीं होता।

स्त्री उन उपहारों को जिसे चाहे, दे सकती है। विवाह के समय वधू को मिलने वाले सभी उपहारों की सूची जरुर बनानी चाहिए। इस सूची में उपहार का नाम, उसकी कीमत और देने वाले का नाम और पता आदि साफ-साफ लिखा जाना चाहिए। सूची के अंत में वर-वधू दोनों के दस्तखत या अंगूठे के निशान होने चाहिए।

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Dowry System Essay

500+ words essay on dowry system.

Marriage is a beautiful relationship between two people where they are bonded by love and begin their new life together. In India, there is a custom of giving some gifts either in cash or gold or both before and after the wedding to the bride and the groom out of affection. It is considered as love and blessings for the newly wedded couple that help them in starting their new life. However, during the last three or four decades the Dowry System has become associated with the status of a family. Now, it has become compulsory to give money and gold to the groom’s family. This has given birth to the dowry system. In this essay on the Dowry System, we will highlight the points related to dowry in marriage and how it has affected our society. Moreover, at the end, we have discussed some steps to be taken to stop the dowry system.

Dowry System

Dowry has been conveniently defined as money, goods or estates, which a woman brings to her husband’s home after marriage. The system of dowry in marriages has been haunting our society for a long time. This is a social curse, which has gone unchecked, though time and again it has tormented people in general. Lust for money and acquiring high social status for one’s family has given birth to the social evil called Dowry. It has become the root cause of suicides and murders of brides. Bride burning for want of dowry has become a way of life. Different communities have different marriage customs, but the custom of giving dowry is shared by all the communities.

The dowry system is a great evil that still exists in society. It is an act of discrimination against unmarried girls, whose values are defined based on the prices of their respective dowries. It is an example of greed and selfishness and is a great curse, especially for the parents who belong to the lower middle class. This is the reason why people get depressed and feel cursed at the birth of a daughter. Moreover, the dowry system paves the way for other crimes against women like female foeticide, female infanticides, dowry death, cruelty by husband and his relatives.

How Can the Dowry System be Stopped?

A dowry system is a social stigma that needs to end. Every girl should go to her in-law’s house with pride. In India, every 5 out of 10 families face the dowry system. There are many laws made by the government but the custom of dowry persists in our society. So, there is an urgent need that we all start taking action against it. The first step is to start from our homes. At home, we should treat both boys and girls equally by providing them equal opportunities. We should educate both of them and give them freedom to be fully independent. The upbringing of the girls should not be limited to household work and marriage. In fact, they should be nourished in such a way that they feel free to make their choice, put their demands, ask questions, think openly and have the guts to fulfil their dreams.

There is a need to create awareness campaigns in different sections of society to make people aware of it. The campaign includes voluntary organization, civil marriage, launching of the youth movements etc. Eradicating the dowry practice will give equal rights to women and boost their confidence level. It will help in the growth of the family, society and nation. The sooner the dowry becomes a thing of the past, the better for our society.

Frequently asked Questions on Dowry System Essay

How can we write an effective essay on the dowry-system.

Students need to first understand what and how the Dowry system functions. This will automatically help students to write a descriptive essay.

Why is the Dowry-system an important topic for essay writing?

Students must be informed about such illegal practises happening around them. This will help them become responsible citizens of India.

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One Campaign, A Billion Stories: ‘WOMB’ (Women Of My Billion) Is A Documentary Worth Watching

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The review is interlaced with snippets of conversation with Srishti Bakshi about the film and the campaign, conducted for this piece.

In the middle of the famous dance of democracy, the news cycle is flooded with promises, propaganda and everything in between. 48.5% of the Indian population is female and the SBI projections indicate 49% of voter turnout will be women this year, with speculations about women surpassing male voters by 2029. Yet, this election stands on the tumultuous ground of gender-based violence against women – from Manipur to Sandeshkhali to Prajwal Revanna. The latest NCRB report revealed that 4.4 lakh cases of crime against women were registered – which amounts to 51 cases every hour. WOMB – Women of My Billion , an Indian documentary released last week on the Indian OTT platform would be an ideal watch before you vote. 

The gender that has been for the longest time known as the mother, daughter, sister or wife of someone, needs to be reinstated from the collective and generic to the individual and unique

Anyone familiar with a newspaper or news portal knows the familiar surge of anger and helplessness of thumbing through yet another case of sexual violence or worse, the acquittal of an accused on the grounds of good behaviour or political power. Srishti Bakshi, working miles away from the country, was experiencing what so many of us have been feeling. A lesser-known case on Highway 91 propelled Srishti to quit the security and comfort of her life and career in Hong Kong. She returned to her country to make sense of reality.

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In 2016, a teenage girl and her mother were allegedly gang-raped along National Highway 91 while the male members were tied up. Bakshi decided to walk 3800 km – from Kanyakumari to Kasmir, to talk about and understand this violent plague that has India in its chokehold. Thus CrossBow Miles was born and eventually led to the birth of the documentary WOMB – Women of My Billion . In a conversation with Srishti Bakshi she opened up about the genesis of the project, ‘ What did I do? If I am pointing fingers – ki government ko kuch karna chahiye aur logo ko kuch karna chahiye – uss logon mein main bhi hoon. So what am I doing about it? ’

Presented by Priyanka Chopra and produced by Apoorva Bakshi, founder-partner at Awedacious Originals and Srishti Bakshi’s sister, WOMB is directed by Ajitesh Sharma. Srishti’s journey decides the literal course of the film while transforming into a symbol of the struggle against gender-based violence in India. The structure stands on three pillars – Sangeeta Tiwari – a retired and decorated army doctor, Pragya Prasun – the founder of Atijeevan and Neha Rai.

WOMB is based on the experiences of Sangeeta, a widow who was pushed around by men throughout her life till she had had enough, Pragya, an acid-attack survivor who created a bridge for hundreds of other survivors to cross – from trauma to life, and Neha, a marital rape and assault survivor who is happily married and recuperating. Their narratives are presented like case studies weaving through the film to make a coherent document. There are two more significant cases – Laxmi and Anjali – showing two different faces of violence in rural India. 

Srishti’s journey decides the literal course of the film while transforming into a symbol of the struggle against gender-based violence in India.

We are introduced to the first three characters in an indoor, polished setting, but as the film progresses and we meet more women, we do not get a chance to know their names. Feminist conversations have often thrown light upon the importance of calling women by their name – the gender that has been for the longest time known as the mother, daughter, sister or wife of someone, needs to be reinstated from the collective and generic to the individual and unique.

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When asked about the choice, Bakshi said, ‘ It’s not about the face of the person. Neha, Sangeeta, Pragya – we needed to know them deeply because these women represent the 300, 400 interviews we have of women… We did not show a lot of names because what they are saying is… representational of many other women. ’

‘ I had to hand over the decision of who would be those three individuals… I wanted all of their voices to go far and wide. ’

The three central stories progress as a slow reveal through the breadth of WOMB and act as a crucial anchor, as Srishti makes her way from Kanyakumari to Kashmir. The journey of the film – from anger to hopelessness to hope and strength – is echoed in their narratives. Even in the overwhelming sadness and anger you feel throughout the film there is a moment of joy when near the end of their story you see their faces relax, eyes soften and mouths brighten with smiles. The weakest link of the film is that it switches gears, in both voice and narrative, far too many times – pulling the audience in many directions.

WOMB opens with an investigative tone where the filmmaker along with Srishti is seen following the sound of a woman screaming. They barge into an evident scene of violence. They help her out of the house. The screen goes black and the film begins, switching the narrative to the campaign. The tone of the film continues to change and falter. There are many such relevant focal points in the film – from circumstantial evidence to marital rape and domestic abuse to the dowry system to child sexual abuse to the sheer volume of stories to the campaign’s novel initiative to the emotional and physical toll of such an initiative to financial and digital literacy.

Srishti won the Changemakers’ Award at the UN SDG Awards for this campaign – especially for her work in using financial and digital literacy as tools of women’s empowerment.

Srishti won the Changemakers’ Award at the UN SDG Awards for this campaign – especially for her work in using financial and digital literacy as tools of women’s empowerment. Yet WOMB barely captures this part of the campaign. You also get glimpses of the workshop’s design. A room full of women imagining their 11-year-old with eyes closed and apologising to them for the unrealised dreams is an image difficult to shake off.

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Despite such moments the film struggles to sink its teeth into your conscience, even in its hopelessness and hopefulness it feels unsure. A campaign that was so heavily designed with so many components is not easy to summarise – but was the film indeed a summary or did it want us to explore a particular insight gained through the campaign?

Srishti said they had shortlisted five focal stories but keeping the time frame in mind they could only accommodate three. ‘ I had to hand over the decision of who would be those three individuals… I wanted all of their voices to go far and wide. ’ WOMB was a way to look at the campaign through her eyes – be in her shoes, walking the length of the country. ‘ You really live the emotion that I lived. It did a good job at that… you can replace my face with any face… It could be any woman, any person who deeply feels for the cause .’

A campaign that was so heavily designed with so many components is not easy to summarise – but was the film indeed a summary or did it want us to explore a particular insight gained through the campaign?

As Srishti rested her head on the car’s window, it was almost impossible not to feel her exhaustion. One of the most memorable dialogues in the film is a cryptic but significant statement where Bakshi states that we are all opportunists. We have all been witness to how rape and assault cases become political capital. When asked about the statement Srishti says, ‘ It was Asifa’s case, in 2018. It was towards the end of my walk. I was already in Jammu in Kashmir by that time… I just walked the whole country and it’s happened again. The media was like, what do you say about it? I was like, I don’t want to say anything. I was actually very angry at the world… at everybody suggesting this, go and capitalise on this opportunity. (I decided) I won’t say anything, won’t even let it come in the film. ’ Be it in the film or a candid conversation, this particular statement reflects Srishti’s intention and dedication to the cause. 

Women’s empowerment cannot be seen in absolute terms – nor can deductions be made without studying socio-political contexts, says WOMB

This was Srishti’s first impact work in rural India. The daughter of an army officer, Srishti had seen many parts of India, but she shares how this experience has humbled her. ‘ The amount of revelation of love, culture, food, people, their practices, their thinking process… it happened during that one year of work. I used to claim, I am an army officer’s daughter. I’ve moved around the country a lot. I know my country deeply. And I knew it at the surface. That’s right. I went deeper in when I went on the work .’

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Through WOMB , you see that development as well and witness her grapple with the reality of intersectional issues. The film tries to find answers or reasons in the intense but brief journey of the campaign, revealing the need for contextual approaches. Women’s empowerment cannot be seen in absolute terms – nor can deductions be made without studying socio-political contexts. A widowed mother’s lamentation for a son when one of her four daughters has been raped and killed cannot fit into the mould of an upper-class Savarna family’s desire for a male child. The results of social conditioning might look similar but the causes are deeply contextual.

Later in the film, Srishti says that empowerment of women is nonexistent in families from below the poverty line and that dowry is a reason why the poorer families seek a boy child. In the parallel narrative of the three main stories, Neha (economically affluent) shares her grief over dowry. WOMB exists in such dichotomies –  making it a conflicted metanarrative. 

Srishti acknowledges her privileges and presents herself with immense honesty which shines through in the film.

Srishti acknowledges her privileges and presents herself with immense honesty which shines through in the film. From the entire team who designed the campaign, to her family, to the network of friends and acquaintances who joined hands with her restores the faith in the tribe. Srishti said, ‘ When she (Priyanka Chopra) watched the film, she (said) I’m also an army officer’s daughter if you would have not done it… I would (have) liked to do it .’

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In a day and age when we have been numbed by the volume of tragic news, such projects remind us that the power resides in us. One must watch WOMB to remind themselves of the immense task we have at hand in terms of women’s safety in India and do our bit.

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She/they is an editor and illustrator from the suburbs of Bengal. A student of literature and cinema, Sohini primarily looks at the world through the political lens of gender. They uprooted herself from their hometown to work for a livelihood, but has always returned to her roots for their most honest and intimate expressions. She finds it difficult to locate themself in the heteronormative matrix and self-admittedly continues to hang in limbo

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दहेज प्रथा पर निबंध | Dowry System Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay onDowry System in Hindi

By: savita mittal

दहेज प्रथा का वर्तमान स्वरूप | Dowry System Essay in Hindi

दहेज हत्या पर समाजशास्त्रियों के निम्नलिखित विचार हैं, दहेज प्रथा पर निबंध/ dahej pratha par nibandh/essay on dowry system in hindi video.

‘दहेज’ शब्द अरबी भाषा के ‘जहेज’ शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसका अर्थ होता है-भेंट या सौगात। भेंट में काम सम्पन्न हो जाने पर स्वेच्छा से अपने परिजन या कुटुम्ब को कुछ उपहार अर्पित करने का भाव निहित रहता है। वास्तम में, दहेज और ‘स्त्रीधन’ की प्राचीन हिन्दू परम्परा से सम्बन्धित है। विवाह के समय कन्यादान में क्यू के पिता, जबकि स्त्रीधन में घर के पिता, कपड़े एवं गहने दूसरे सम्बन्धित पक्ष को देते हैं वह दहेज होता है।

सांस्कारिक हिन्दू विवाह प्रणाली के अनुसार विवाह हमेशा के लिए सम्पन्न होता है, जिसे स्त्री-पुरुष के जीवित रहते भंग नहीं किया जा सकता अर्थात् हिन्दू समाज में विवाह एक संस्कार है, जो के साथ ही समाप्त हो सकता है, जबकि अन्य समाज में विवाह एक समझौता है, इसलिए यहाँ इसे भंग करने का भी प्रावधान है।

प्राचीन भारतीय हिन्दू समाज में दहेज की प्रथा का स्वरूप स्वेच्छावादी था। कन्या के पिता तथा उसके पक्ष के सदस्य स्वेच्छा एवं प्रसन्नता से अपनी पुत्री को जो ‘पत्रम् पुष्पम् फलम् तोयम्’ प्रदान करते थे, उसमें वाध्यता नहीं थी। सामर्थ्य के अनुसार दिया गया ‘दान’ था। तुलसीदास ने रामचरितमानस’ में पार्वती के विवाह के दौरान उनके पिता हिमवान द्वारा दहेज दिए जाने का वर्णन किया है।

“दासी दास तुरंग रथ नागा। धेनु बसन मनि वस्तु विभागा। अन्न कनक भाजन भरि जाना। दाइज दीन्ह न जाइ बखाना।।”

उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ है–सेविका, सेवक, घोडे, रथ, हाथी, गायें, वस्त्र आदि बहुत प्रकार की वस्तुओं के साथ-साथ अनाज और सोने के बर्तन गाड़ियों में लदबाकर दहेज में दिए गए, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता।

Dowry System Essay in Hindi

यहाँ पढ़ें :  1000 महत्वपूर्ण विषयों पर हिंदी निबंध लेखन यहाँ पढ़ें :   हिन्दी निबंध संग्रह यहाँ पढ़ें :   हिंदी में 10 वाक्य के विषय

आज दहेज का स्वरूप पूरी तरह परिवर्तित हो गया है। वर का पिता अपने पुत्र के विवाह में कन्या के पिता की सामर्थ्य-असामर्थ्य, शक्ति-अशक्ति, प्रसन्नता अप्रसन्नता आदि का विचार किए बिना उससे दहेज के नाम पर धन वसूलता है। दहेज, विवाह बाज़ार में बिकने वाले घर का वह मूल्य है, जो उसके पिता की सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति को देखकर निश्चित किया जाता है। 

जिस प्रथा के अन्तर्गत कन्या का पिता अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर, अपना घर-द्वार बेचकर अपने शेष परिवार का भविष्य अन्धकार में धकेलकर दहेज देता है, यहाँ दहेज लेने वाले से उसके सम्बन्ध स्नेहपूर्ण कैसे हो सकते हैं। ‘मनुस्मृति’ में वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष वालों से दहेज लेना राक्षस विवाह के अन्तर्गत रखा गया है, जिसका वर्णन ‘मनु’ ने इस प्रकार किया है।

“”कन्या प्रदानं स्वाच्छन्यादासुरो धर्म उच्येत्त।”

इस प्रकार यहाँ कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को धन आदि दिया जाना दानव धर्म बताया गया है। अतः वर्तमान समय में दहेज प्रथा भारतीय समाज में व्याप्त एक ऐसी कुप्रथा है, जिसके कारण कन्या और उसके परिजन अपने भाग्य को कोसते रहते हैं।

माता-पिता द्वारा दहेज की राशि न जुटा पाने पर कितनी कन्याओं को अविवाहित ही जीवन बिताना पड़ता है, तो कितनी ही कन्याएँ अयोग्य या अपने से दोगुनी आयु वाले पुरुषों के साथ ब्याह दी जाती है। इस प्रकार, एक ओर दहेज रूपी दानव का सामना करने के लिए कन्या का पिता गलत तरीकों से धन कमाने की बात सोचने लगता है, तो दूसरी ओर कन्या भ्रूण हत्या जैसे पापों को करने से भी लोग नहीं चूकते हैं। 

महात्मा गांधी ने इसे ‘हृदयहीन गुराई’ कहकर इसके विरुद्ध प्रभावी लोकमत बनाए जाने की वकालत की थी। जवाहरलाल नेहरू ने भी इस का खुलकर विरोध किया था। राजा राममोहन राय, महर्षि दयानन्द आदि समाज सेवकों ने भी इस घृणित कुप्रथा को उखाड़ फेंकने के लिए लोगों का आह्वान किया था। प्रेमचन्द ने उपन्यास ‘कर्मभूमि’ के माध्यम से इस कुप्रथा के कुपरिणामों को देशवासियों के सामने रखने का प्रयास किया।

दहेज प्रथा उन्मूलन सम्बन्धी कानून एवं महिलाओं की स्थिति भारत में दहेज निषेध कानून, 1961 और घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के लागू होने के बावजूद दहेज न देने अथवा कम दहेज देने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 5,000 बहुओं को मार दिया जाता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान समय में  भारत में लगभग प्रत्येक 100 मिनट में दहेज से सम्बन्धित एक हत्या होती है। अधिकांश दहेज हत्याएँ पति के घर के एकान्त में और परिवार के सदस्यों के सहयोग से होती हैं, इसलिए अधिकांश मामलों में अदालत प्रमाण के अभाव में दहेज हत्यारों को दण्डित भी नहीं कर पाती हैं। कभी-कभी पुलिस छानबीन करने में इतनी शिथिल हो जाती है कि न्यायालय भी पुलिस अधिकारियों की कार्य-कुशलता और सत्यनिष्ठा पर सन्देह प्रकट करते हैं।

अतः दहेज प्रथा अर्थात् दहेज प्रताड़ना से बचाव के लिए आईपीसी की धारा 498 ए में प्रावधान किया गया है। इसमें पति या उसके रिश्तेदारों के ऐसे सभी बर्ताव को शामिल किया गया है, जो किसी महिला को मानसिक या शारीरिक हानि पहुचाएँ या उसे आत्महत्या करने पर मजबूर करता हो। इसके लिए दोषी पाए जाने पर पति को अधिकत्तम तीन वर्ष की सजा का प्रावधान है। वर्ष 2015 में इससे सम्बन्धित 1,18,403 मामले सामने आए थे। अतः इसे लेकर वर्ष 2017-18 में सर्वोच्च न्यायालय ने पुनर्विचार कर शक्त बनाया है। 

• मध्यम वर्ग की स्त्रियों के उत्पीड़न की दर निम्न वर्ग या उच्च वर्ग की स्त्रियों से अधिक होती है। 

• लगभग 70% पीड़ित महिलाएँ 21-24 वर्ष आयु समूह की होती है अर्थात् ये केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, अपितु सामाजिक एवं भावात्मक रूप से भी अपरिपक्च होती हैं।

• वह समस्या निम्न जाति की अपेक्षा उच्च जाति की अधिक है। 

• हत्या से पहले युवा वधू को कई प्रकार से सताया एवं अपमानित किया जाता है, जो पीड़िता के परिवार के सदस्यों के सामाजिक व्यवहार के अव्यवस्थित स्वरूप को दर्शाता है।

• दहेज हत्या के कारणों में सबसे महत्त्वपूर्ण समाजशास्त्रीय कारक, अपराधी पर बातावरण का दबाव या सामाजिक तनाव है, जो उसके परिवार के आन्तरिक एवं बाह्य कारणों से उत्पन्न होता है।

• लड़की की शिक्षा के स्तर और दहेज के लिए की गई उसकी हत्या में कोई पारस्परिक सम्बन्ध नहीं होता। नववधू की हत्या में परिवार की रचना निर्णायक भूमिका निभाती है। 

• अन्य महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक कारक जैसे-हत्यारे का सत्तावादी व्यक्तित्व, प्रबल प्रकृति और उसके व्यक्तित्व का असमायोजन है।

दहेज सम्बन्धी कुप्रथा का चरमोत्कर्ष यदि दहेज हत्या है, तो इसके अतिरिक्त महिलाओं के बिरुद्ध हिंसा के अन्य स्वरूपों का प्रदर्शन भी सामने आता है, जिसमें पत्नी को पीटना, लैंगिक या अन्य दुर्व्यवहार, मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना आदि शामिल हैं।

भारत की पवित्र धरती से दहेज रूपी विप वृक्ष को समूल उखाड़ फेंकने के लिए देश के युवा वर्ग को आगे आना होगा। युवाओं के नेतृत्व में गाँव-गाँव और शहर-शहर में सभाओं का आयोजन करके लोगों को जागरूक करना होगा, ताकि वे दहेज लेने व देने जैसी बुराइयों से बच सके। साथ ही युवाओं को यह प्रण लेना होगा कि हम ना दहेर लेगे और ना देंगे। ताकि समाज में लोगों हृदय परिवर्तन हो सके। 

प्रेस और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी इस कुप्रथा को दूर करने में खुलकर सहयोग करने की आवश्यकता है। इस प्रकार, समाज में फैली सामाजिक बुराई दहेज प्रथा के नाम पर नारियों पर हो रहे अत्याचार को हमें समाप्त करना होगा। 

सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay

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dowry system in india essay in hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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दहेज़ प्रथा पर निबंध Dowry System Essay in Hindi

दहेज़ प्रथा पर निबंध व जानकारी Dowry System Essay in Hindi

आज के इस लेख में हमने दहेज़ प्रथा पर निबंध Dowry System Essay in Hindi हिन्दी में लिखा है। आज दहेज़ प्रथा एक अभिशाप बन चूका है। छोटे से बड़े सभी शादियों में दहेज़ की मांग को देखा गया है।

इसी दहेज़ के लेन और देन के कारण ही विवाह के पश्चात महिलाओं के साथ हिंसात्मक गतिविधियाँ होते हैं जो की बहुत बुरी बात है।

तो आईये आपको शुरू करते हैं – दहेज़ प्रथा एक अभिशाप पर निबंध Dowry System Essay in Hindi

Table of Content

दहेज़ प्रथा पर निबंध Dowry System Essay in Hindi (900 Words)

हमारे देश भारत में धीरे धीरे दहेज प्रथा बढ़ते ही चले जा रहा है। आज के इस आधुनिक युग में भी दहेज प्रथा देश में एक अभिशाप के रूप में फैल चुका है। आज भी इस 21वीं सदी में बेटी के जन्म लेते ही ज्यादातर माता-पिता के सिर पर चिंता सवार हो जाता है।

चिंता इस बात की नहीं होती है की लड़की की पढ़ाई कैसे करवाएंगे? चिंता तो इस बात की होती है की विवाह कैसे करवाएंगे, विवाह के लिए दहेज कैसे इकट्ठा करेंगे? यही सोच दहेज़ प्रथा जैसी सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

हालाकि आज कन्या भ्रूण हत्या मैं कमी आई है परंतु आज भी ज्यादातर घरों में बेटी पैदा होती है तो उनके लिए वह दुख का दिन होता है क्योंकि इसका सबसे बड़ा कारण है दहेज प्रथा। आज भी हमारे हिंदू समाज के माथे पर यह एक कलंक के जैसे चिपका हुआ है।

आज भारत विकासशील देशों में गिना जाता है। परंतु कुछ छोटी सोच और समाज के पुराने रिवाज जैसे बाहर शौच करना, कूड़ा इधर-उधर फेंकना, बेटी को शिक्षा ना दिलाना और दहेज प्रथा हमारे देश भारत को विकसित होने से रोक रहे हैं।

दहेज प्रथा समस्या की शुरुवात कब हुई? When Dowry System in India Started?

दहेज प्रथा की शुरुआत कब हुई यह बता पाना सटीक रूप से तो बहुत मुश्किल है परंतु यह बता सकते हैं कि यह प्राचीन काल से चला आ रहा है।

हिंदू जाति के महान पौराणिक कथाओं या ग्रंथों जैसे रामायण तथा महाभारत में कन्या की बिदाई के समय पर माता पिता द्वारा दहेज के रूप में धन-संपत्ति देने का उदाहरण मिलता है। परंतु उस समय भी दहेज को लोग स्वार्थ भावना के रूप में नहीं लिया करते थे और लड़के वालों की ओर से कोई दहेज की मांग नहीं हुआ करती थी।

विवाह को एक पवित्र एवं धार्मिक बंधन माना जाता था जिसमें दो परिवारों का मिलन होता था। उस समय दहेज को लड़की के माता-पिता लड़की के लिए सामान के रूप में दे दिया करते थे, जिसे बिना कोई लोभ लड़के के घर वाले रख लिया करते थे। परंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया और हिंदू समाज में सती-प्रथा, जाती-पाती, छुआ-छुत जैसी समाज की बुराइयां बढ़ने लगी वैसे ही दहेज प्रथा ने भी एक व्यापार का रुप ले लिया।

शुरूआती समय मे तो जेवर, कपड़े, फर्नीचर, फ्रिज, गाड़ी और टेलीविजन तक ही बात है परंतु बाद में लोग मोटी रकम भी लड़की वालों से लेने लगे। गलती से कहीं अगर लड़का यदि कोई डॉक्टर, इंजीनियर, या कोई बड़ी सरकारी नौकरी वाला हो तो फिर सौदे की बात ज़मीन-जायदाद या मोटरकार तक भी पहुंच जाती है।

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम Disadvantages of Dowry System in Hindi

आज 21 वीं सदी में दहेज प्रथा एक बहुत ही क्रूर रूप ले चुका है। एसा भी होता है, अगर विवाह के समय दहेज में कमी हुई तो कुछ लोग तो शादी किए बिना ही बारात वापस ले जाते हैं। अगर गलती से शादी हो भी जाती है तो लड़की का जीवन नरक सामान बीतता है या फिर लड़कियों को कुछ गलत बहानों से तलाक दे दिया जाता है।

बात तो यहां तक भी बिगड़ चुकी है की कुछ लड़कियों से तलाक ना मिलने पर ससुराल वाले उन्हें जलाकर मार चुके हैं। आज दहेज प्रथा कैंसर की तरह समाज को नष्ट करते चले जा रहा हैं।

सरकार भी दहेज प्रथा को रोकने के लिए कई प्रकार के नियम बना रही है परंतु दहेज प्रथा कुछ इस तरीके से पूरे देश में फैल चुका है कि अब इसे रोकना कोई आसान काम नहीं है। साथ ही कन्या भूर्ण हत्या को रोकने के लिए सरकार ने लड़कियों के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान या सुकन्या समृद्धि योजना जैसी योजनाएं भी शुरु की है।

आज लड़कियां लड़कों के साथ कंधा मिलाकर देश के हर एक क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। पता नहीं फिर भी लोगों के समझ में क्यों नहीं आ रहा है कि लड़का-लड़की एक समान।

आज के इस आधुनिक युग में भी हमें दहेज प्रथा के खिलाफ कदम उठाने होंगे और  हमें मिलकर प्रण लेना होगा कि ना ही हम दहेज लेंगे और ना किसी को लेने देंगे। अंतरजातीय विवाह ने भी दहेज प्रथा को कुछ हद तक पीछे करने में मदद की है। किसी भी अन्य जाति के योग्य लड़के को जो दहेज़ के खिलाफ हो उसे कन्या देने में थोड़ा भी संकोच नहीं करना चाहिय।

निष्कर्ष Conclusion

दहेज प्रथा के कारण ही नारी जाती को कई प्रकार के अत्याचार को सहना पड़ा है। आज हमें हर घर तक इस संदेश को पहुंचाना ही होगा कि दहेज लेना पाप है और देना सही नहीं है।

आज हमें मिलजुल कर कसम खाना होगा की हमजाति प्रथा को उखाड़ फेकेंगे और भारत को एक उन्नत शांतिपूर्ण देश बनाएंगे। आशा करते हैं आपको दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) अच्छा लगा होगा।

16 thoughts on “दहेज़ प्रथा पर निबंध Dowry System Essay in Hindi”

good acha hai

sahi baat hai

Dowry system is very bad so we should stop it

Many2 thanks for this blog.

Itne ache batt batane ke liye thanks we will stop this system

You are giving good answer I like it

thanks for this type of moral

Dowry system is very bad so we should stop it.

Thank-you for helping us

एक ढेले का कोनी

Thank you for this nice essay. You has tell all the things in it.

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dowry system in india essay in hindi

Hindi Grammar by Sushil

दहेज प्रथा पर निबंध | Dowry System Essay in Hindi

Dowry System Essay in Hindi:- समाज के अंदर समस्याओं का विकराल जाल फैला हुआ है परंतु कभी-कभी कोई समस्याएं जी का जंजाल बन जाती है। यह समस्याएं एक असाधारण रूप का रूप धारण कर लेती है तथा समाज के रूप को वितरित और घिनौना बना देती हैं उन समस्याओं में से एक समस्या है दहेज प्रथा जो समाज की जड़ों को निरंतर खोखला करती जा रही है।

रावण ने तो मात्र एक सीता का अपहरण करके उसकी जिंदगी को अभिशप्त दुखद तथा आंसुओं की गाथा बनाया था परंतु दहेज रूपी रावण ने असंग कन्याओं के सौभाग्य सिंदूर को पहुंचकर उनकी जिंदगी को पीड़ाओं की अमर गाथा बना दिया है।

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दहेज प्रथा पर निबंध (100 शब्दों में)

दहेज प्रथा अब एक आम बुराई बन चुकी है। अतः इसे समाप्त करने के लिए शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिए। जिससे समाज में नवीन मूल्यों का निर्माण हो सके साथ ही लोग इस प्रथा का विरोध करने के लिए प्रेरित हो। शिक्षित नवयुवक व युवतियों को इस कुप्रथा का कड़ा विरोध करें ।दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए स्त्रियों में शिक्षा को बढ़ावा और उनको उन्नति शील बनाने की अति आवश्यकता है। जब उन में शिक्षा का अच्छा विकास हो जाएगा तो उनका स्तर पुरुष के बराबर बन जाएगा ।परिणाम स्वरूप सामाजिक क्षेत्र में उनका महत्व बढ़ेगा आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। इन सब कारणों से वे स्वयं ही इतनी सक्षम हो जाएंगी कि अपने लिए वर्ग का चयन कर सके ऐसा होने पर माता-पिता स्वता ही दहेज की चिंता से मुक्त हो जाएंगे इस दूषित प्रथा को समाप्त करने के लिए देश मैं कवियों उपन्यास कारों नाटक कारों तथा चलचित्र निर्माण कर्ताओं को चाहिए कि वह दहेज प्रथा उन्मूलन में अपना सहयोग दें और ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे समाज में लोग दहेज को एक बुराई समझ कर उसका त्याग कर दें।

दहेज प्रथा पर निबंध (250 शब्दों में)

अगर दहेज प्रथा की बात की जाए तो भारत में दहेज प्रथा का प्रचलन प्राचीन काल से ही है प्राचीन काल में सामंत अपनी इच्छा अनुसार अपनी पुत्रियों के विवाह के समय पर उन्हें दास दासियों एवं अन्य प्रकार के उपहार दहेज के रूप में देते थे।

परंतु आज के युग में धन की लालची लोगों ने दहेज को एक अनिवार्य प्रथा बना दिया है जिसके कारण एक निर्धन पिता की योग्य पुत्री एक आयोग्य वर के साथ जीवन जीने के लिए बाध्य कर दी जाती है। अतः हमें चाहिए कि यह सब कुप्रथा को जितनी जल्दी हो सके हम अपने समाज से इस को अलग कर दें जिससे कि एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके।

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आज आए दिन समाचारों में दहेज के कारण हो रही प्रताड़ना ओं की खबरें हमें सुनने को मिलती है इससे हमारी ओक्षीं सोच और स्त्रियों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार का पता चलता है। अतः हमें चाहिए कि हम अपनी सोच को बदलें और धन के लिए किसी भी स्त्री को परेशान ना करें कि वह अपने जीवन से निराश होकर किसी भी प्रकार के अन्य गलत रास्तों को अपनाएं।

दहेज प्रथा को रोकने के लिए आज हमें समाज में नारी शिक्षा एवं नारी सशक्तिकरण पर एक विशेष ध्यान देना होगा जिससे कि नारी अपने आत्मसम्मान के लिए स्वयं खड़ी हो सके ,और अपने लिए वह निर्णय लेने में सक्षम हो क्योंकि जब तक नारी शिक्षित नहीं होगी तब तक वह अपने अधिकारों के लिए खड़ी नहीं हो सकती और दहेज प्रथा जैसी समस्याओं से हमेशा घिरी रहेगी।

दहेज प्रथा जैसी समस्याओं को समाप्त करने के लिए हमें अपनी पुरानी सोच को छोड़कर एक नई सोच के साथ और नई उमंग के साथ आगे आना चाहिए जिससे कि हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकें जिसमें हर तरफ खुशियां ही खुशियां हो।

दहेज प्रथा पर निबंध (300 शब्दों में)

दहेज प्रथा का प्रचलन प्राचीन काल से ही विद्यमान है तुलसीकृत रामचरितमानस में शिव पार्वती विवाह में पार्वती के पिता हिमवान अपनी बेटी के विवाह के अवसर पर अपार संपत्ति और दास दासी प्रदान करते हैं इसी प्रकार दहेज प्रथा का उल्लेख अन्य भारतीय ग्रंथों में मिलता है।

प्राचीन काल में हमारा देश भारत एक समृद्ध देश था इसलिए इसे ‘सोने की चिड़िया’ की संज्ञा दी जाती थी। माता पिता अपनी संपत्ति का एक भाग लाडली कन्याओं को विवाह के अवसर पर अपनी इच्क्षा से लिया करते थे ।उस समय तक समाज में इसके पीछे कोई लालच हुआ सौदेबाजी की भावना नहीं थी।

परंतु आज का युग भौतिकवादी युग है इसमें धन को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है परिणाम स्वरूप जिन लोगों के पास धन अधिक होता है, वह अनुकूल लड़के को धन देकर क्रय कर लेते हैं, कन्या की शिक्षा व सुंदरता पर ध्यान नहीं दिया जाता है वस्तुतः दहेज एक पाठ पूर्ण चक्र है जो एक बार चलने पर कभी समाप्त नहीं होता।

वास्तव में निर्धन माता-पिता के लिए दहेज एक अभिशाप बन चुका है जिसके कारण वह अपनी लाडली पुत्री को किसी सदग्रहस्थ को देने में सदा असमर्थ रहते हैं।

दहेज उन्मूलन अधिनियम के द्वारा सरकार ने इस कुप्रथा को कानूनी अपराध घोषित कर दिया है परंतु दहेज प्रथा इतनी मजबूत हो चुकी है, कि अकेली सरकार दूर नहीं कर सकती । इस कार्य में समाज सुधारकों को आगे आना चाहिए ,अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिससे विवाह के लिए वर् ढूंढने के क्षेत्र का विस्तार हो सके।

आज के समाज में बढ़ रही नारी शिक्षा तथा तथा बदलती सोच के कारण यह कुप्रथा पर काफी लगाम लगाई गई है परंतु अभी इसका निवारण में बहुत समय लगेगा अतः हमें चाहिए कि हम लगातार इस को मिटाने के लिए प्रयासरत रहें। यदि समाज के लोगों को जीवित रहना है तो इस बुराई को समय रहते अंत किया जाना बहुत जरूरी है जैसा कि ए. एस. ऑलटेकर ने कहा है –”अब समय आ गया है कि मनुष्य को समाज में दहेज जैसी कुप्रथा का अंत कर देना चाहिए जिससे समाज की अनेक निर्दोष कन्याओं को आत्मदाह करने को मजबूर कर दिया है, ऐसा होने पर समाज को इस महाव्याधि से मुक्ति मिल सकेगी।”

दहेज प्रथा पर निबंध (500 शब्दों में)

“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी। आंचल में है दूध और आंखों में पानी।।”

समाज के अंतर्गत समस्याओं का विकराल जाल फैला हुआ है यह तो चेक तथा साधारण समस्याएं कभी-कभी जी का जंजाल बन जाती है लाड प्यार तथा स्नेह से पहले पोषित शिशु कभी-कभी बड़े होकर जिस प्रकार माता-पिता के लिए बोझ बन जाते हैं तथा अनुसार ये समस्याएं भी असाध्य रोग का रूप धारण कर लेती हैं।

उन समस्याओं में से एक विकराल समस्या है दहेज प्रथा जो समाज की जड़ों को खोखला किए जा रही है इससे समाज तथा व्यक्तिगत प्रगति पर विराम साल लग गया है ।अनुराग एवं वात्सल्य का प्रतीक दहेज युग परिवर्तन के साथ खुद भी परिवर्तित होकर विकराल रूप में उपस्थित है।

दहेज का आशय एवं स्वरूप

साधारण रूप में दहेज व संपत्ति है जिसे पिता अपनी बेटी के पाणिग्रहण संस्कार के समय अपनी पुत्री को इच्छा अनुकूल प्रदान करता है, इसके अंतर्गत विवाह के समय कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को आभूषण वस्त्र एवं रुपए सहर्ष रूप में प्रदत्त किए जाते थे ,परंतु समय के साथ-साथ यह परंपरा एवं प्रवृत्ति अपरिहार्य तथा आवश्यक बन गई। आज वर पक्ष द्वारा अपासे दहेज के रूप में टीवी,एसी, स्कूटर एवं कार आदि की निसंकोच मांग करता है ।एवं इसके अभाव में जो शिक्षित एवं योग्य कन्या को मनचाहा जीवनसाथी नहीं मिल पाता।

आज की स्थिति में दहेज ना दे पाने पर एक निर्धन पैदा की पुत्री या तो अविवाहित रहकर पिता तथा परिवार के लिए बोझ बन जाती है अथवा बेमेल एवं अयोग्य भर के साथ जीवन जीने के लिए विवश होती है दहेज की कुप्रथा ने अनेक युवतियों को काल के गाल में ढकेल दिया है।

दहेज प्रथा का आविर्भाव

यदि इतिहास की धुंधली दूरबीन उठाकर भूतकाल की छीन पगडंडी पर दृष्टिपात करते हैं तो यह बात स्पष्ट होती है कि दहेज प्रथा का प्रचलन सामंती युग में भी था ।सामंत अपनी बेटियों की शादी में अश्व, आभूषण एवं दास दास या उपहार अथवा भेंट के रूप में प्राप्त किया करते थे। धीरे-धीरे इस बुरी प्रथा ने संपूर्ण समाज को ही अपनी परिधि में समेट लिया इस कुप्रथा के लिए झूठीशान, रूढ़िवादिता तथा धर्म का अंधानुकरण उत्तरदाई है।

दहेज के दुष्परिणाम

दहेज के फल स्वरुप आज सामाजिक वातावरण में विषैला, एवं दूषित हो गया है अनमोल विवाहों की भरमार है जिसके कारण परिवार एवं घर में प्रतिपल संघर्ष एवं कोहराम मचा रहता है। जिस बहू के घर से दहेज में यथेष्ट धन नहीं दिया जाता ससुराल में आकर उसे जो पीड़ा एवं ताने मिलते हैं उसकी कल्पना मात्र से शरीर से हर ने लगता है।

कभी-कभी उसे ससुराल वालों द्वारा ज़हर दे दिया जाता है अथवा जलाकर मार दिया जाता है मनुष्य क्षण भर के लिए यह सोचने के लिए विवश हो जाता है कि आदर्श भारत का जिंदगी का रथ किस ओर अग्रसर हो रहा है। प्रणय सूत्र में बंधने के पश्चात जहां संबंध स्नेह ,अनुराग एवं भाईचारे के होने चाहिए वहां आज कटुता एवं शत्रुता पैर पसारे हुए हैं।

दहेज के प्रति नौजवानों के कर्तव्य

दहेज प्रथा समस्या का निराकरण समाज एवं सरकार के बूते का कार्य नहीं है इसके लिए तो युवक एवं युवतियों को स्वयं आगे बढ़कर दहेज न लेने एवं देने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। मात्र कानून बनाने से इस समस्या का निराकरण नहीं हो सकता जितने कानून निर्मित किए जा रहे हैं दहेज लेने एवं देने वाले भी शोध ग्रंथों की तरह नए-नए उपाय खोजने में सफल हो रहे हैं।

इसको प्रथा को समाप्त करने के लिए महिलाओं को इस संदर्भ में प्रयास करना चाहिए। इसके लिए एक प्रभावी आंदोलन चलाना चाहिए। सरकार को भी कठोर कानून बनाकर इस बुरी प्रथा पर प्रतिबंध लगाना चाहिए ।सरकार ने 1961 में दहेज विरोधी कानून पारित किया 1976 में इसमें संशोधन भी किए किंतु फिर भी दहेज पर अंकुश नहीं लग सका ।समाज सुधारक में इस दिशा में पर्याप्त सहयोग दे सकते हैं।

दहेज प्रथा को रोकने के उपाय

दहेज प्रथा को रोकने के लिए सबसे बड़ा उपाय नारी शिक्षा है इसके लिए हमें अधिक से अधिक अपनी स्त्रियों एवं बच्चियों को शिक्षा प्रदान करवानी चाहिए जिससे कि वह अपने अधिकारों के बारे में जाने एवं उनके साथ हो रहे गलत व्यवहारों के प्रति वह खड़ी हो सके एवं अपने अधिकारों की मांग कर सकें।

जब एक नारी शिक्षित होगी तो वह सशक्त बनेगी एवं जब वह सशक्त बनेगी तो वह अपने निर्णय लेने में खुद ही काबिल होगी एवं उसकी समाज एवं परिवार में एक पहचान होगी जिसके चलते वह अपने बारे में हो रही किसी भी प्रकार की गतिविधि के लिए जिम्मेदार होगी इस प्रकार जब हम अपनी सोच को बदल लेंगे तभी इस देश से दहेज जैसी को प्रथाओं को मिटाया जा सकता है।

विगत अनेक वर्षों से इस बुरी प्रथा को समाप्त करने के लिए भागीरथी प्रयास किया जा रहा है लेकिन दहेज का कैंसर ठीक होने के स्थान पर निरंतर विकराल रूप धारण करता जा रहा है इस कुप्रथा का तभी समापन होगा जब सरपंच एवं कन्या पाछे सम्मिलित रूप से इसे समाप्त करने में अपना योगदान देंगे।

यदि इस दिशा में जरा भी उपेक्षा अपनाई गई तो यह ऐसा कोढ़ है जो समाज रूपी शरीर को विकृत एवं दुर्गंध से आप प्रीत कर देगा समाज एवं शासन दोनों को जोरदार तरीके से दहेज विरोधी अभियान प्रारंभ करना परम आवश्यक है।

अब तो एक ही नारा होना चाहिए दुल्हन ही दहेज है यह नारा मात्र कल्पना की भूमि पर बिहार करने वाला ना होगा समाज की यथार्थ धरती पर स्थित होना चाहिए तभी भारत के कण-कण से सावित्री सीता एवं गार्गी तुल्य कन्याओं की यह धोनी गुंजित होगी।

“सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा।”

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Suneel

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